गर्भवती महिलाओं के लिए आवश्यक संतुलित आहार!

गर्भवती महिलाओं को बैंलेंस डाइट लेना चाहिए. कुछ महिलाओं का दृष्टिकोण होता है कि गर्भवती महिला के साथ एक नया जीवन जुड़ा हुआ होता है. इसलिए दोगुना आहार लेने की जरूरत होती है, लेकिन घर की खान-पान शैली उपयुक्त नहीं होती है. इस लिए लाखों महिलाएं गर्भावस्था के समय एनीमिया (रक्त की कमी) के कारण कई प्रकार के बीमारी से पीड़ित हो जाती है. इन सबसे बचने के लिए जरूरी है , संतुलित आहार लेना .

संतुलित आहार लेने से गर्भवती महिला एवं गर्भस्थ शिशु स्वस्थ रहते हैं. जो महिलाएं स्वस्थ रहती है, उनमें औरों की अपेक्षा प्रसव पीढ़ा को शारीरिक-मानसिक स्तर पर सहने की क्षमता अधिक होती है.

संतुलित आहार में प्रोटीन, काबरेहाइड्रेट, खनिज, मिनरल, विटामिन और वसा की उचित मात्रा मौजूद हो.

गर्भवती महिलाओं को निम्न आहार लेना चाहिए. इस समय कई बार आपको खाने का मन नहीं करता है, लेकिन मन को माना कर स्वाद बदल बदल कर संतुलित  आहार का सेवन करते रहना चाहिए . दस विंदुओ में समझते है  , संतुलित आहार के स्वाद अनुसार सेवन से क्या लाभ है . किन किन बातों का रखें ख्याल , आईए जानते है …

  1. रक्त की कमी न हो इसलिए महिला रोग विशेषज्ञ की सलाह से कैल्शियम एवं आयरन की गोली लेना शुरू से ही प्रारंभ कर देना चाहिए. साथ ही स्वाद अनुसार या जो आपको पसंद हो उस सब्जी का सेवन आपको करना है .
  2. आपके खाने के थाली में गोभी, पत्ता गोभी, सभी लंबी हरी पत्तेदार सब्जियां, तौरई, परवल, लौकी या पालक में से कोई एक प्रतिदिन शामिल होना चाहिए . इसका चुनाव आप अपने पसंद और स्वाद अनुसार कर सकती है .

3. जिन महिलाओं को गर्भपात की शिकायत पूर्व में रही हो , उन्हें अगर बैंगन, पपीता, प्याज, मिर्ची, अदरक, लहसुन, काली मिर्च और सरसों अगर पसंद हो भी तो नहीं खाना चाहिए. अगर आपको इन सब्जियों का स्वाद बहुत पसंद है तो आप बहुत कम मात्रा में प्रयोग करें.

4. फलों में काले अंगूर, केला, पका आम, खजूर, काजू आदि अत्यधिक लाभकारी होता है. जो आपको सुविधा अनुसार मिल जाए और जिनका स्वाद आपको पसंद है उसका आप सेवन कर सकती है .

5. चावल, पुलाव और खिचड़ी के साथ – साथ रोटी , चपाती, परांठा आदि गेहूं से बने आहार को अपने भोजन में स्वाद अनुसार  सम्मलित करें.

6. मक्खन, दूध, शहद में कोई एक तो आपको पसंद ही होगा , इसका सेवन आप कर सकते है . साथ ही गुड़ से या सफेद चीनी से बने मिठाई को भी आप अपने स्वाद अनुसार अपने आहार में शामिल कर सकती है . दूध से कैल्शियम की पूर्ति होती है. दूध का सेवन नियमित करें.

7. भारतीय गर्भवती महिलाएं गर्भवस्था के समय उपवास रख लेती हैं. उन्हें उपवास नहीं रखना चाहिए. इससे गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है.

8. जिन महिलाओं को कॉस्टीपिशन (उदरकोष्ठ) रहता है वह भोजन में हरे मटर को शामिल करें.

9. कोल्ड ड्रिंक, एल्कोहल, तंबाकू, सिगरेट, पान-मसाला, फास्ट एवं जंक फूड न लें. चाय, कॉफी और आइस्क्रीम कभी-कभी खाएं. तली, भुनी चीजें न खाएं.

10. मटन, चिकन, अंडा और मछली को भोजन में शामिल करें, लेकिन अधिक मात्रा में नहीं.

इन सभी को अपने भोजन में शामिल करने से मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य ठीक रहता है.

सुबह 2 ग्लास पानी रखे आपकी सेहत को स्वस्थ

सुबह उठकर आप जो भी करते उससे कहीं ने कहीं आपके पूरे दिन में असर पढ़ता हैं. दिन की शुरुआत अगर थोड़ी एक्सरसाइज करे तो काफई अच्छा रहेंगा. इसके साथ अगर आप अपने ब्रेकफास्ट पर भी ध्यान देंगे तो ये अपको पुरी दिल खुश और सेहतमंद रखेंगे. इसके साथ ही सुबह की एक ऐसा भी आदात है जो आपको स्वस्थ रखने में काफी मदद करेंगी और वो है दो ग्लास पानी. दो ग्‍लास पानी के साथ अपने दिन की शुरुआत करना स्वस्थ आदत है जिसकी आदत सभी को डालनी चाहिए. इसको शुरूआत में करने पर आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है, मगर कुछ ही दिन में आप आसानी से सुबह दो ग्‍लास पानी पीने लग जाएंगे. अगर ये पानी थोड़े गुनगुने होंगे तो इसके लाभ दोगुने हो सकते हैं.

पेट साफ तो हर रोग माफ

सुबह अगर आपका पेट साफ नही होता तो 2 ग्लास पानी आपे लिए वरदान हो सकता हैं. यह मल त्याग में सुधार कर सकता है और इससे संबंधित सभी पाचन विकारों को रोक सकता है. यदि आप नियमित रूप से खाली पेट पानी पीते हैं तो आपको रोज मल त्याग आसानी से होगा.

मेटाबौलिज्‍म के रखे स्वस्थ

पानी का सेवन आपके मेटाबौलिज्‍म को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है. खाली पेट पानी पीने से मेटाबौलिज्‍म बेहतर होगा. सिर्फ सुबह का पानी ही नहीं, आपको अपने मेटाबौलिज्‍म को बेहतर बनाने के लिए दिन भर में पर्याप्त पानी पीना चाहिए.

चेहरे पर निखार लाता है पानी

पानी का सेवन आपकी त्वचा के स्वास्थ्य से विभिन्न तरीकों से संबंधित है. सुबह-सुबह एक या दो ग्‍लास पानी भी आपकी त्वचा की सेहत में सुधार करेगा और आपकी त्वचा को ग्लो देगा. त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए पर्याप्त पानी का सेवन सबसे आसान तरीका है.

एनर्गी को बढ़ता है पानी

खाली पेट पर पानी पीना आपके दिन को बेहतर बनाता है. ये आपके एनर्गी लेवल को बढ़ा सकता है क्योंकि ये आपके शरीर से विषाक्त पदार्थों (Toxic substances) को बाहर निकालता है. नियमित रूप से खाली पेट पानी पीने की कोशिश करें और फर्क महसूस करें.

स्पाइनल इंजरी का सेक्सुअल लाइफ पर प्रभाव

स्पाइनल इंजरी किसी के भी जीवन की त्रासदपूर्ण घटना हो सकती है. इस से व्यक्ति एक तरह से लकवाग्रस्त हो सकता है. इंजरी जब गरदन में हो तो इस से टेट्राप्लेजिया हो सकता है. यदि इंजरी गरदन के नीचे हो तो इस से पाराप्लेजिया यानी दोनों टांगों और इंजरी से निचले धड़ में लकवा हो सकता है. केंद्रीय स्नायुतंत्र का हिस्सा होने के कारण स्पाइनल कौर्ड की सेहत पर ही पूरे शरीर की सेहत निर्भर करती है. इंजरी से यौन सक्रियता भी प्रभावित हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी ऊंचाई से गिरने, सड़क दुर्घटना, हिंसक या खेल की घटनाओं के कारण हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी के नौनट्रोमेटिक कारणों में स्पाइन और ट्यूमर के टीबी जैसे संक्रमण शामिल हैं.

यौन सक्रियता जरूरी

स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति को यथासंभव आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश होनी चाहिए. भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में यौन स्वास्थ्य पर चर्चा करना हमेशा वर्जित विषय माना जाता रहा है, इसलिए इस विषय पर बात करने से लोग कतराते हैं और मरीज खामोशी से इसे सहता रहता है. शिक्षा, ज्ञान और जागरूकता के अभाव में लोग ऐसे मरीजों के बारे में यह समझने लगते हैं कि वे यौनेच्छा एवं यौन उत्कंठा से पीडि़त हैं. लेकिन सच यह है कि सामान्य व्यक्ति की तरह ही स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति के लिए भी यौन सक्रियता उतनी ही जरूरी है.

पार्टनर का अभाव

दरअसल, स्पाइन इंजरी इच्छाशक्ति का स्तर तो प्रभावित नहीं करती, लेकिन किसी व्यक्ति की यौन गतिविधि प्रभावित जरूर हो जाती हैं. कई बार ऐसा पार्टनर के अभाव में भी होता है. अन्य मामलों में यह मांसपेशियों पर नियंत्रण रखने वाले व्यायाम की कमजोर क्षमता के कारण भी हो सकता है. यौन अनिच्छा लिंग के आधार पर भी अलगअलग हो सकती है. पुरुष जहां उत्तेजना के अभाव के कारण प्रभावित होते हैं, वहीं महिलाएं आमतौर पर शिथिल पार्टनर होने के कारण इस से कम प्रभावित होती हैं खासकर भारतीय समाज में. लेकिन स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन अनिच्छा को सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम और निरंतर अभ्यास से बहुत हद तक दूर किया जा सकता है.

समस्या की अनदेखी

ऐसे मरीजों में आत्मविश्वास जगाना और यौन स्वास्थ्य के बारे में उन से खुल कर बात करना बहुत जरूरी होता है. इस में तंबाकू पूरी तरह से निषेध होना चाहिए. शारीरिक गतिविधियों के अभाव और दर्द के अलावा एससीआई मरीज आकर्षण, संबंधों और प्रजनन की क्षमता जैसे अन्य कारकों को ले कर भी चिंतित रहते हैं. समय के साथ जहां मरीज अपने नवजात शिशु के साथ जीना सीख जाते हैं और परिवर्तित जिंदगी अपना लेते हैं, वहीं वे अपने यौन स्वास्थ्य को ले कर अकसर अनजान रहते हैं. मरीज के शरीर की कुछ खोई गतिविधियां बहाल करने के लिए व्यापक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के दौरान भी यौन समस्या की अनदेखी ही की जाती है.

खुद पहल नहीं करतीं

एससीआई के मामले में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अकसर सैक्सुअल पार्टनर बनना ज्यादा आसान होता है जो न सिर्फ शारीरिक रचना के कारण, बल्कि सक्रियता के स्तर पर भी संभव होता है. भारत जैसे रूढिवादी समाज में महिलाओं से यौनइच्छा की उम्मीद करना मुश्किल है. भारत की 80% महिलाएं ऐसी पैसिव सैक्सुअल पार्टनर होती हैं जो खुद पहल नहीं करतीं. इसलिए पुरुषों की तुलना में उन के लिए यौन स्वास्थ्य वापस पाना ज्यादा आसान होता है और उन का मुख्य लक्ष्य यौन सक्रियता वापस पाना तथा संभोग करने की क्षमता हासिल करना होता है.

समस्या का समाधान

पुरुषों के मामले में समस्याएं उत्तेजना में कमी और स्खलन से ही जुड़ी होती हैं. उन की उत्तेजना क्षमता और स्खलन में बदलाव आने के अलावा कामोत्तेजना की यौन संतुष्टि भी एक ऐसा क्षेत्र है जो एससीआई पीडि़त पुरुषों के लिए चिंता का कारण होता है. एक अन्य चिंता स्पर्म की क्वालिटी पर होने वाले प्रभाव और स्पर्म काउंट को ले कर होती है. ज्यादातर स्पाइनल इंजरी के मामले में वियाग्रा जैसी दवा से उत्तेजना की समस्या दूर की जा सकती है. कुछ मामलों में वैक्यूम ट्यूमेसेंस कंस्ट्रक्शन थेरैपी (वीटीसीटी) या पैनाइल प्रोस्थेसिस जैसे उपकरण की भी जरूरत पड़ सकती है.

गलत धारणा की वजह

सैक्सुअल काउंसलिंग और मैनेजमैंट विकासशील देशों में एससीआई के सब से उपेक्षित पहलुओं में से एक है. लेखकों के एक अध्ययन से पाया गया है कि एससीआई से पीडि़त 60% मरीजों और उन के 57% पार्टनरों ने पर्याप्त रूप से सैक्सुअल काउंसलिंग नहीं ली. जिन फैक्टर्स पर बहुत कम जोर दिया जाता है, उन में से एक है जागरूकता और सांस्कृतिक बदलाव. पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का मकसद सिर्फ बच्चे पैदा करना ही माना जाता है. सेक्स के बारे में बातचीत को खराब माना जाता है.

यौन समस्याएं न सिर्फ आम हो गई हैं, बल्कि सेक्स की अनदेखी, सेक्स के बारे में गलत धारणाओं और नकारात्मक सोच भी इस के मुख्य कारण माने जाते हैं. पारंपरिक वर्जना भी इस में अहम भूमिका निभाती है. सैक्सुअलिटी को प्रभावित करने वाले अन्य सामाजिक, पारंपरिक फैक्टर्स में यौन संबंधी सोच, मातापिता के प्रति सम्मान तथा अन्य ऐसे कारण शामिल हैं, जिन में सेक्स को खराब माना जाता है और पुरुषों तथा महिलाओं के लिए बरताव के दोहरे मानदंड अपनाए जाते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थिति बदतर होती है.

आत्मविश्वास में कमी

एक अध्ययन के अनुसार, विकसित देशों की तुलना में भारत जैसे देश में स्पाइनल कौर्ड इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन गतिविधि की बारंबारता कम रहती है. ज्यादातर मरीज इंजरी से पहले की तुलना में मौजूदा स्तर पर अपने सेक्स जीवन को कमतर आंकते हैं. यह शायद एससीआई की समस्याओं, इंजरी के बाद पार्टनर की असंतुष्टि, यौनक्रिया के दौरान पार्टनर से कम सहयोग, आत्मविश्वास में कमी तथा अपर्यात सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के कारण भी हो सकता है.

पश्चिमी देशों के मामलों की तरह बहुत कम पार्टनर संतुष्ट होते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाएं यौन संतुष्टि के अभाव की शिकायतें ज्यादा करती हैं. इस के पीछे प्रचलित सांस्कृतिक मान्यता है कि किसी बीमार महिला के साथ यौन संबंध बनाना नैतिकता के विरुद्ध है और इस से पुरुष पार्टनर में भी रोग संचारित हो सकता है. भारतीय समाज में महिलाओं की कमतर स्थिति, पार्टनर की भिन्न सोच, पाचनतंत्र आदि की गड़बड़ी और निजता का अभाव भी इस के कुछ अन्य संभावित कारण हो सकते हैं.

यौनजीवन का अंत नहीं

निष्कर्षतया स्पाइनल इंजरी को यौनजीवन का अंत नहीं मान लेना चाहिए. इस से इंजरी पीडि़त व्यक्ति को अपने नए शरीर में यौन सुख स्वीकार करने में मदद की जरूरत पड़ती है और कई बार उस के लिए अलग तरीके से सोचने की जरूरत होती है. परिवर्तित संवेदनशीलता, शारीरिक प्रतिबंध की स्वीकृति या उन्नत मसल कंट्रोल जैसे फैक्टर्स को समझने से स्पाइनल इंजरी मरीज को स्वस्थ यौनजीवन बहाल करने में मदद मिल सकती है. उस के सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के लिए मैडिकल प्रोफैशनल्स की मदद की जरूरत होती है. इस संबंध में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है खासकर भारतीय समाज तथा प्रोफैशनल्स के बीच.

युवाओं में बढ़ता बौडी और फिटनैस का क्रेज

आज युवाओं पर सिक्स पैक ऐब्स का जनून इस कदर छाया है कि वे अपनी बौडी को आकर्षक बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं. वे अपने बौडी लुक और फिटनैस को ले कर कुछ ज्यादा ही क्रेजी हो गए हैं, लेकिन वे यह नहीं समझते कि सिक्स पैक बनाना इतना आसान नहीं है. इस के लिए संतुलित डाइट के साथसाथ ट्रेनर की देखरेख में ऐक्सरसाइज करने की जरूरत भी होती है.

अगर आप फिट हैं तो हर खुशी हासिल कर सकते हैं और फिटनैस आप को मिलेगी संतुलित डाइट और नियमित व्यायाम से.

बौडी बनाने का अर्थ है मांसपेशियों को कसना, जिस से कि आप सुडौल दिखें. इस काम में खासी मशक्कत करनी पड़ती है. ऐब्स बनाने के लिए कार्बोहाइड्रेट तथा फैट की मात्रा को घटा कर प्रोटीन की मात्रा बढ़ाई जाती है, ताकि मांसपेशियां सख्त हो सकें.

चाहिए सिक्स पैक तो देना होगा समय

यदि आप चाहते हैं कि आप की बौडी सुडौल व आकर्षक बने, तो इस के लिए आप को समय निकालना होगा. ‘बौडी फिटनैस सैंटर’ के ट्रेनर पवन मान के मुताबिक, ‘‘युवाओं को सिक्स पैक बनाने से पहले इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उन की बौडी पर फैट कितना चढ़ा है. यदि शरीर अधिक फैटी है तो पहले उसे घटाने के लिए कुछ खास तरह की ऐक्सरसाइज करनी होती है. साथ ही डाइट पर भी ध्यान देना होता है.’’

यदि आप फैटी हैं तो जिम जाने से पहले नियमित व्यायाम बहुत जरूरी है. नियमित व्यायाम में स्विमिंग, साइकिलिंग, जौगिंग आदि जरूरी हैं. इन के अलावा मौर्निंगवाक भी बहुत जरूरी है.

वैसे सिक्स पैक ऐब्स बनाने के लिए जिम ट्रेनर कई प्रकार के डाइट सप्लिमैंट्स देते हैं, जिन में सिंथैटिक पोषक तत्त्व मौजूद होते हैं. ये तत्त्व शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. आमतौर पर लिए जाने वाले सप्लिमैंट्स में क्रिएटिन, प्रोटीन, स्टीरायड आदि हारमोन होते हैं. इस बारे में वरिष्ठ चिकित्सक डा. उमेश सरोहा कहते हैं, ‘‘ये पोषक तत्त्व शरीर को सुडौल बनाने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. सुडौल बौडी पाने के लिए नियमित व्यायाम और संतुलित डाइट ज्यादा लाभदायक है.’’

कुछ लोग फैट कम करने के लिए अपने भोजन से फैट वाली चीजें बिलकुल हटा देते हैं, जिस से शरीर को लाभ पहुंचने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचता है. फैट की अधिक कमी से शरीर के अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए फैट की प्रचुर मात्रा शरीर के लिए बहुत जरूरी है.

फिटनैस के लिए जरूरी डाइट

– सिक्स पैक बौडी के लिए फाइबरयुक्त भोजन लेना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इस से शरीर का विकास होता है. प्रोटीन की मात्रा बनाए रखने के लिए मौसमी फलों का सेवन बहुत लाभदायक है.

– सुबह का नाश्ता अति आवश्यक है. नाश्ता हैवी व लंच हलका लें. डिनर तो नाश्ते व लंच से भी हलका लें. इस तरह का चार्ट बना लें. यह आप की सेहत के लिए जरूरी है.

– दिन भर में कम से कम 10 गिलास पानी पीएं. पानी हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है, क्योंकि अधिक ऐक्सरसाइज करने से शरीर में डिहाइडे्रशन की आशंका बनी रहती है, इसलिए इस से बचने के लिए व्यक्ति को अपने वजन के हिसाब से पानी पीना चाहिए.

– ढेर सारा भोजन एकसाथ न लें. हिस्सों में बांट कर दिन में कई बार भोजन करें. इस से पाचन तंत्र मजबूत बना रहता है. साथ ही ऐक्सरसाइज करने के लिए और अधिक ताकत मिलती है.

– हरी सब्जियों का सेवन ज्यादा करें. ये शरीर को ऊर्जा देने के साथसाथ आप को तरोताजा रखती हैं. प्रोटीन डाइट में अंडा, पनीर, दूध, दही, मछली आदि लें.

– अलकोहल का सेवन बिलकुल न करें. यह आप के शरीर को बेकार करता है.

– भोजन नियमित मात्रा में ही लें. संतुलित आहार शरीर को रोगमुक्त रखता है. एक सीमा में रह कर ही जिम में वर्कआउट करें. ऐसी किसी दवा का सेवन न करें, जो शरीर को नुकसान पहुंचा

खास अंगों की साफसफाई, ध्यान रखें ये बातें

अब से तकरीबन 23 साल पहले जब दीपक कुशवाहा ने भोपाल के नजदीक बैरसिया कसबे में अपना जनरल स्टोर खोला था, तब दुकान में कहने भर को ही लेडीज आइटम हुआ करते थे, लेकिन दीपक की आधे से ज्यादा दुकान अब लेडीज आइटमों से भरी पड़ी है, जिन में सैनेटरी नैपकिन, हेयर रिमूवर, अंडरगारमैंट्स, क्रीम, पाउडर और तरहतरह के दूसरे आइटम ज्यादा हैं.

इस बदलाव की वजह बताते हुए दीपक कहते हैं, ‘‘शिक्षा और जागरूकता ज्यादा है, जो कसबाई और देहाती लड़कियों में मीडिया और इश्तिहारों के जरीए आई है.’’

कसबे के हाईस्कूल में दाखिले बढ़े, तो नएनए आइटमों की मांग आने लगी. फिर कालेज खुला तो लड़कियों की झिझक और दूर होने लगी. अब तो हालात ऐसे हैं कि लड़कियां खरीदारी में बिलकुल नहीं शरमाती हैं.

दीपक कुशवाहा की बातों पर गौर करें, तो कसबाई और देहाती लड़कियों में खूबसूरती और सेहत के प्रति जबरदस्त जागरूकता आई है और वे बाहरी के साथसाथ अंदरूनी साफसफाई की भी अहमियत समझने लगी हैं. इस बाबत उन्हें घरों से भी छूट मिली हुई है. इसी वजह के चलते कसबे में हर ब्रांडेड कंपनी का हेयर रिमूवर और सैनेटरी नैपकिन मिलते हैं, जिन्हें खरीदने के लिए आसपास के गांवों की लड़कियां भी इफरात से आती हैं.

लेकिन इन लड़कियों की एक बड़ी दिक्कत आज भी यह है कि इन्हें खास अंगों की साफसफाई के बारे में कोई पुख्ता जानकारी कहीं से नहीं मिलती. आधीअधूरी जानकारी के चलते वे कई बार परेशानियों से भी घिर जाती हैं. घर में मां या भाभी अकसर पुराने यानी अपने जमाने के उपाय बाताती हैं, जबकि अब दौर नए तौरतरीकों का है.

मिसाल प्राइवेट पार्ट के आसपास के बालों की सफाई का लें, तो लड़कियां अब हाईस्कूल में आतेआते हेयर रिमूवर का इस्तेमाल शुरू कर देती हैं. पहले इस के लिए ब्लेड और कैंची का इस्तेमाल ज्यादा होता था, हालांकि अभी भी होता है, पर न के बराबर. और जो लड़कियां इन का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी पुराने ब्लेड का इस्तेमाल न करें. इस से इंफैक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

आजकल बाजार में प्राइवेट पार्ट और बगलों के बालों को हटाने के लिए खास तरह के महीन ब्लेड वाले ब्रांडेड रेजर आ रहे हैं, इन का इस्तेमाल ज्यादा सुरक्षित रहता है.

तरीका जो भी अपनाएं, लेकिन बालों की समयसमय पर सफाई जरूरी है, क्योंकि इन्हीं बालों के ऊपर पसीना जमता है, जो बदबू की बड़ी वजह होता है.

हेयर रिमूवर के इस्तेमाल से बाल एक बार में पूरी तरह साफ हो जाते हैं. इस का इस्तेमाल करने से पहले इसे थोड़ी सी तादाद में हाथ पर कुछ देर लगाए रखना चाहिए. अगर जलन न पड़े तो इस का बेहिचक इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा प्राइवेट पार्ट को रोजाना एक बार कुनकुने पानी से जरूर साफ करें. और हर बार पेशाब करने के बाद साफ पानी से इसे धो लेना चाहिए.

कोशिश यह होनी चाहिए कि प्राइवेट पार्ट को ज्यादा से ज्यादा सूखा रखा जाए. इस के लिए साफ कपड़े या टिशू पेपर से उसे पोंछ लेना चाहिए. इस से कई बीमारियों से बचाव होता है और बदबू भी नहीं आती.

बाल साफ करते रहने से पार्टनर को भी सैक्स में मजा आता है और वह अपने मनचाहे तरीके से प्यार करने में नहीं हिचकता. लेकिन प्राइवेट पार्ट पर कभी तेज खुशबू वाले परफ्यूम और साबुन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इस से इंफैक्शन का खतरा बना रहता है.

माहवारी के 5 दिन भले ही तकलीफ वाले होते हों, लेकिन इन दिनों में खासतौर से एहतियात बरतना चाहिए. नैपकिन हर 4 घंटे बाद बदल लेना चाहिए, नहीं तो बदबू तो बढ़ती ही है साथ ही कई बीमारियों का भी डर बना रहता है. अंडरवियर भी इन दिनों में धो कर और सुखा कर ही पहनना चाहिए. सस्ते और लोकल सैनेटरी नैपकिन और अंडरगारमैंट्स के बजाय ब्रांडेड ही लेने चाहिए. ये भरोसेमंद भी होते हैं और अपना काम भी बेहतर तरीके से करते हैं.

दीपक की मानें, तो गांवों के हाट बाजारों में सस्ते के नाम पर लोकल नैपकिन और अंडरगारमैंट्स धड़ल्ले से बिकते हैं, लेकिन इन की न तो क्वालिटी अच्छी होती है और न ही नतीजे अच्छे मिलते हैं.

इन अंगों पर भी दें ध्यान

नाभि, स्तन, नितंब, जांघें और पीठ भी कम खास नहीं होते, जिन की साफसफाई पर लड़कियां कम ही ध्यान देती हैं. इन अंगों की साफसफाई अच्छे साबुन से हो जाती है. सेहत के अलावा ये अंग सैक्स में भी अहम रोल निभाते हैं, इसलिए इन को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कई लड़कियों की जांघों और नितंबों पर भी महीन बाल उग आते हैं जो हार्मोंस की गड़बड़ी के चलते मामूली बात है. इन बालों को भी रेजर या रिमूवर से हटा लेना चाहिए.

खास अंगों की साफसफाई को ले कर आ रही जागरूकता एक अच्छी बात है, जो लड़कियों को आत्मविश्वास से भरे रखती है. जरूरत इस बात की है कि यह जागरूकता घरघर पहुंचे.

नए तौरतरीकों और प्रोडक्ट्स की जानकारी के किए लड़कियों के लिए खासतौर से निकाली जाने वाली मैगजीन ‘गृहशोभा’ जरूर पढ़नी चाहिए. इस के उपयोगी लेख, फैशन, सेहत, खूबसूरती और सैक्स के अलावा जिंदगी के दूसरे अहम पहलुओं की पेचीदगियों से रूबरू कराते हुए न केवल सही रास्ता सुझाते हैं, बल्कि लड़कियों को नए जमाने से भी जोड़े रखते हैं.

शरीर पर टैटू बनवाने से पहले जान लें ये 6 बातें

यदि आप ने टैटू बनवाने का फैसला कर लिया है तो इस बारे में आप को बहुत सारी बातें पता होनी चाहिए, क्योंकि यह आप के साथ हमेशा रहने वाली चीज होगी. टैटू आर्टिस्ट सनी और विकी पाटिल के अनुसार, टैटू गुदवाने से पहले कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है.

1.  जो टैटू आर्टिस्ट आप की बौडी पर टैटू बना रहा है, उस की सोशल प्रोफाइल अच्छी तरह चैक कर लें. वह प्रशिक्षित होना चाहिए. कई बार टैटू में गड़बड़ी हो जाती है, क्योंकि लोग आर्टिस्ट के बारे में ज्यादा ध्यान नहीं देते. भले ही उस के पहले के काम का अच्छा पोर्टफोलियो हो, यह सुनिश्चित कर लें कि लोगों की उस के काम के बारे में क्या राय है. उस की सभी स्पैशल प्रोफाइल्स अच्छी तरह देख लें.

2. पार्लर साफसुथरा हो, उस के सारे इंस्ट्रूमैंट और ग्लब्स, जिन का टैटू आर्टिस्ट इस्तेमाल कर रहा है, नए व फ्रैश हों. पहले से इस्तेमाल चीजों से इन्फैक्शन का खतरा रहता है.

ये तो थी टैक्निकल चीजें जो आप को पता होनी चाहिए. ऐसी कई और भी बातें हैं जिन की जानकारी आप को टैटू गुदवाने से पहले होनी ही चाहिए जैसे कि आप दर्द सहने के लिए तैयार रहें. टैटू गुदवाने में कभी ज्यादा दर्द भी हो सकता है. स्किन की ऊपरी सतह पर 10 से 15 विशेषरूप से डिजाइन की गई टैटू की सुईयां चुभोई जाती हैं. सुईयों की संख्या कमज्यादा भी हो सकती है, उसी के हिसाब से दर्र्द भी कमज्यादा होगा.

3. टैटू बिना कुछ कहे अपनेआप को व्यक्त करने का एक तरीका है. अपने टैटू से आप को प्रेरणा भी मिल सकती है. इसलिए बहुत सोचसमझ कर डिजाइन चुनना चाहिए. यदि आप को डिजाइन पसंद नहीं आ रहा है, तो अपनेआप से ही पूछें कि आप तितली क्यों बनाना चाहते हैं. जो भी डिजाइन चुनें उस का कोई मतलब हो. लोग टैटू बनवा तो लेते हैं लेकिन उस का कोई मतलब ही नहीं होता. कई बार तो स्पैलिंग भी गलत होती हैं, वह देखने में अच्छा नहीं लगता.

4. किस जगह टैटू गुदवाना है, अच्छी तरह सोच लें. कुछ लोग ऐसी जगह टैटू बनवाते हैं जहां आसानी से कोई देख ही नहीं पाता. टैटू गुदवाने से पहले बौडी पार्ट का ध्यान रखें, क्योंकि कुछ जगहों पर टैटू नहीं होने चाहिए जैसे आंखों के आसपास, ब्रैस्ट्रस, यौनांग. इस बारे में अपने टैटू आर्टिस्ट से अच्छी तरह सलाहमशवरा कर लें. बांहें, कलाइयां, पैर कौमन जगहें हैं, जहां लोग टैटू गुदवाते हैं.

5. अगर आप को किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्या है जैसे हृदय रोग, एलर्जी, डायबिटीज तब आप टैटू गुदवाने से पहले अपने डाक्टर से सलाह जरूर लें. अगर आप को स्किन एलर्जी है तो आप परमानैंट टैटू न बनवाएं.

6. ऐक्सपर्ट्स की मानें तो जो फैशन, स्टाइल के लिए टैटू गुदवाने का शौक रखते हैं, उन्हें अस्थायी टैटू ही बनवाना चाहिए. ये आप की स्किन को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और इन्हें आप मूड के मुताबिक बदल भी सकते हैं.

इस बात का ध्यान रखें कि परमानैंट टैटू बनवाना जितना आसान है, उसे हटाना उतना ही मुश्किल है.

यौनजनित बीमारियां: बताने में शर्म कैसी

यौनजनित एलर्जी एवं रोगों का पता नहीं चल पाता, क्योंकि यह थोड़ा निजी सा मामला है. इस बारे में बात करने में लोग झिझकते हैं और अकसर चिकित्सक या परिजनों को भी नहीं बताते. जहां यौन संसर्ग से होने वाले रोग (एसटीडी) कुछ खास विषाणु एवं जीवाणु के कारण होते हैं, वहीं यौनक्रिया से होने वाली एलर्जी लेटेक्स कंडोम के कारण हो सकती है. अन्य कारण भी हो सकते हैं, परंतु लेटैक्स एक प्रमुख वजह है.

यौन संसर्ग से होने वाले रोग

एसटीडीज वे संक्रमण हैं जो किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग करने पर फैलते हैं. ये रोग योनि अथवा अन्य प्रकार के सैक्स के जरिए फैलते हैं, जिन में मुख एवं गुदा मैथुन भी शामिल हैं. एसटीडी रोग एचआईवी वायरस, हेपेटाइटिस बी, हर्पीज कौंपलैक्स एवं ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जैसे विषाणुओं या गोनोरिया, क्लेमिडिया एवं सिफलिस जैसे जीवाणु के कारण हो सकते हैं.

इस तरह के रोगों का खतरा उन लोगों को अधिक रहता है जो अनेक व्यक्तियों के साथ सैक्स करते हैं, या फिर जो सैक्स के समय बचाव के साधनों का प्रयोग नहीं करते हैं.

कैंकरौयड : यह रोग त्वचा के संपर्क से होता है और अकसर पुरुषों को प्रभावित करता है. इस के होने पर लिंग एवं अन्य यौनांगों पर दाने व दर्दकारी घाव हो जाते हैं. इन्हें एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सकता है और अनदेखा करने पर इन के घातक परिणाम हो सकते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर इस रोग के होने की आशंका बहुत कम हो जाती है.

क्लैमाइडिया : यह अकसर और तेजी से फैलने वाला संक्रमण है. यह ज्यादातर महिलाओं को होता है और इलाज न होने पर इस के दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते, परंतु कुछ मामलों में योनि से असामान्य स्राव होने लगता है या मूत्र त्यागने में कष्ट होता है. यदि समय पर पता न चले तो यह रोग आगे चल कर गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब या पूरी प्रजनन प्रणाली को ही क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिस से बांझपन की समस्या हो सकती है.

क्रेब्स (प्यूबिक लाइस) : प्यूबिक लाइस सूक्ष्म परजीवी होते हैं जो जननांगों के बालों और त्वचा में पाए जाते हैं. ये खुजली, जलन, हलका ज्वर पैदा कर सकते हैं और कभीकभी इन के कोई लक्षण सामने नहीं भी आते. कई बार ये जूं जैसे या इन के सफेद अंडे जैसे नजर आ जाते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर भी इन जुंओं को रोका नहीं जा सकता, इसलिए बेहतर यही है कि एक सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ ही यौन संसर्ग किया जाए. दवाइयों से यह समस्या दूर हो जाती है.

गोनोरिया : यह एक तेजी से फैलने वाला एसटीडी रोग है और 24 वर्ष से कम आयु के युवाओं को अकसर अपनी चपेट में लेता है. पुरुषों में मूत्र त्यागते समय गोनोरिया के कारण जलन महसूस हो सकती है, लिंग से असामान्य द्रव्य का स्राव हो सकता है, या अंडकोशों में दर्द हो सकता है. जबकि महिलाओं में इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते. यदि इस की चिकित्सा समय से न की जाए, तो जननांगों या गले में संक्रमण हो सकता है. इस से फैलोपियन ट्यूब्स को क्षति भी पहुंच सकती है जो बांझपन का कारण बन सकती है.

हर्पीज : यह रोग यौन संसर्ग अथवा सामान्य संपर्क से भी हो सकता है. मुख हर्पीज में मुंह के अंदर या होंठों पर छाले या घाव हो सकता है. जननांगों के हेर्पेस में जलन, फुंसी हो सकती है या मूत्र त्याग के समय असुविधा हो सकती है. य-पि दवाओं से इस के लक्षण दबाए जा सकते हैं, लेकिन इस का कोई स्थायी इलाज मौजूद नहीं है.

एचआईवी या एड्स : ह्यूमन इम्यूनोडैफिशिएंसी वाइरस अथवा एचआईवी सब से खतरनाक किस्म का यौनजनित रोग है. एचआईवी से पूरा तंत्रिका तंत्र ही नष्ट हो जाता है और व्यक्ति की जान भी जा सकती है. एचआईवी रक्त, योनि व गुदा के द्रव्यों, वीर्य या स्तन से निकले दूध के माध्यम से फैल सकता है. सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ यौन संबंध रख कर और सुरक्षा उपायों का प्रयोग कर के एचआईवी को फैलने से रोका जा सकता है.

पैल्विक इन्फ्लेमेटरी डिसीज : पीआईडी एक गंभीर संक्रमण है और यह गोनोरिया एवं क्लेमिडिया का ठीक से इलाज न होने पर हो जाता है. यह स्त्रियों के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है, जैसे फैलोपियन ट्यूब. गर्भाशय या डिंबग्रंथि में प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण स्पष्ट नहीं होते. परंतु इलाज न होने पर यह बांझपन या अन्य कई समस्याओं का कारण हो सकता है.

यौनजनित एलर्जी : इस तरह की एलर्जी की अकसर लोग चर्चा नहीं करते. सैक्स करते वक्त कई बार हलकीफुलकी एलर्जी का पता भी नहीं चलता. परंतु, एलर्जी से होने वाली तीव्र प्रतिक्रियाओं की अनदेखी नहीं हो सकती, जैसे अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण, और एनाफाइलैक्सिस. इन में से कई एलर्जिक प्रतिक्रियाएं तो लेटैक्स से बने कंडोम के कारण होती हैं. कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जैसे कि वीर्य से एलर्जी, गस्टेटरी राइनाइटिस आदि.

लेटैक्स एलर्जी : यह एलर्जी कंडोम के संपर्क में आने से होती है और स्त्रियों व पुरुषों दोनों को ही प्रभावित कर सकती हैं. लेटैक्स एलर्जी के लक्षणों में प्रमुख हैं- जलन, रैशेस, खुजली या अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण और एनाफाइलैक्सिस आदि. ये लक्षण कंडोम के संपर्क में आते ही पैदा हो सकते हैं.

यह एलर्जी त्वचा परीक्षण या रक्त परीक्षण के बाद पता चल पाती है. यदि परीक्षण में एलजीई एंटीबौडी मिलते हैं तो इस की पुष्टि हो जाती है, क्योंकि वे लेटैक्स से प्रतिक्रिया करते हैं. लेटैक्स कंडोम का प्रयोग बंद करने से इस एलर्जी को रोका जा सकता है.

वीर्य से एलर्जी : बेहद कम मामलों में ऐसा होता है, लेकिन कुछ बार वीर्य में मौजूद प्रोटीन से स्त्री में इस तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है. कई बार भोजन या एनसैड्स व एंटीबायोटिक्स में मौजूद प्रोटीन पुरुष के वीर्य से होते हुए स्त्री में एलर्जी करने लगते हैं. इस का लक्षण है- योनि संभोग के 30 मिनट के भीतर योनि में जलन. अधिक प्रतिक्रियाओं में एरियूटिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा और एनाफाइलैक्सिस आदि शामिल हैं. प्रभावित महिला के साथी के वीर्य की जांच कर के इस एलर्र्जी की पुष्टि की जा सकती है.

दरअसल, नियमित यौन जीवन जीने वाले महिलाओं व पुरुषों को किसी विशेषज्ञ से प्राइवेट पार्ट्स की समयसमय पर जांच कराते रहना चाहिए. इस से यौनजनित विभिन्न रोगों का पता चलेगा और उन से आप कैसे बचें, इस का भी पता चल सकेगा. यदि ऐसी कोई समस्या मौजूद हुईर्, तो आप उचित इलाज करा सकते हैं. यह अच्छी बात नहीं है कि झिझक या शर्र्म के चलते ऐसी बीमारियों का इलाज रोक कर रखा जाए. यदि आप को या आप के साथी को ऐसी कोईर् बीमारी या एलर्जी हो, तो तत्काल विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.

6 टिप्स: जाने क्या होता है ब्‍लैडर इनफेक्शन

ब्‍लैडर इनफेक्शन एक ऐसी समस्या है जो महिला और पुरुषों दोनों को हो सकती है. आमतौर पर तो देखा जाता है की इस समस्या से ज्यादा परेशान महिला होती है पर अब ये  समस्या पुरुषों में भी देखी जाती हैं. ब्‍लैडर इनफेक्शन को साइस्‍ट‍िसिस और ब्‍लैडर में सूजन भी कहा जाता है. लड़को में उम्र के साथ ब्‍लैडर इनफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसा अंडकोश के आकार में बढ़ोत्तरी होने के कारण होता है.

1. ब्‍लैडर इनफेक्शन के लक्षण

ब्‍लैडर इनफेक्शन में व्‍यक्ति को यूरीन करते समय जलन होती है. यह ब्‍लैडर इनफेक्शन का सबसे सामान्‍य लक्षण है.

2. यूरीन ज्यादा आना

अगर आपको ज्यादा यूरीन आता है तो आप ब्‍लैडर इनफेक्शन की समस्या हो सकती हैं. बहुत तेज यूरीन आने पर भी पूरी तरह से मूत्र त्‍याग न कर पाना  भी इसका एक लक्षण हैं.

3. यूरीन से तेज बदबू आना

अगर आपके यूरीन से तेज बदबू आती है और यूरीन का रंग लाल या काला होता है तो शायद आपको ब्‍लैडर इनफेक्शन हो सकता हैं.

4. मूत्राशय में ऐंठन

अधिक उम्र में लोगों को काफी अधिक थकान और मानसिक दुविधा हो सकती है- ये अधिक गंभीर मूत्राशय संक्रमण का कारण हो सकता है।

5. किडनी हो सकती है प्रभावित

यूरीन करते वक्त दर्द और साथ में उल्‍टी, बुखार, ठंड और कमर या पेट में दर्द होने का मतलब है की इंफेक्शन ने आपकी किडनी को भी प्रभावित कर दिया है. इन सबका अर्थ यह भी है कि आपके प्रोस्‍टेट भी संक्रमित हो चुके हैं या आपको किडनी ट्यूमर हो चुका है. इन परिस्थितियों में फौरन चिकित्‍सीय सहायता लीजिए.

6. डाक्टर नहीं लगा पाए पता की क्यों होता है इंफेक्शन

आखिर पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में इस इंफेक्शन के क्‍या कारण हैं. उनकी ऐसी राय है कि क्‍योंकि महिलाओं का मूत्रमार्ग पुरुषों की अपेक्षा छोटा होता है, इसलिए उन्‍हें यह संक्रमण होने का खतरा अधिक होता है. यह मार्ग काफी छोटा होता है. यह करीब डेढ़ इंच का होता है, ऐसे में मूत्रमार्ग का बैक्‍टीरिया से प्रभावित होने का खतरा बढ़ जाता है.

टाइट अंडरवियर कर सकती है स्पर्म काउंट कम, जानें 4 तरीकों से कैसे

ऐसा देखा जाता है की फैशन को फौलो करने के चक्कर में कपड़ो के साथ साथ अंडरगारमेंट्स भी अब पीछे नही है. मार्केट मे अलग अलग प्रकार के अंडरवियर आपको देखने को मिलेंगे. इन अंडरवियर को पहनने में जरुर अच्छा अनुभव होगा पर, क्या आप जानते है अंडरवियर का गलत चुनाव आपको पिता बनने से रोक सकता है. हाल ही में औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च से पता चलता है की कि टाइट अंडरवियर पहनने से पुरुषों में स्पर्म काउंट कम सकती है. जिसके कारण लड़के भविष्य में पिता बन नही पाते.

1. तेजी से बड़ रही है स्पर्म काउंट और क्वालिटी की समस्या

दुनियाभर के युवाओं में इन दिनों स्पर्म काउंट और क्वालिटी दोनों घटे हैं. इसका एक बड़ा कारण पुरुषों का अंडरवियर हो सकता है. पुरुषों के लिए बाजार में 2 तरह के अंडरवियर उपलब्ध हैं- ब्रीफ और बौक्सर. हम काफी इन अंतर पर ज्यादा ध्यान नही देते और फैशन के चक्कर में टाइट अंडरवियर पहनना पसंद करते है. जिससे हमें लगता है की इससे अच्छा शेप नजर आएंगा.

2. ढीले अंडरवियर क्यों है सही

आपको जानकर हैरानी होगी पर जो लोग ढीले-ढाले अंडरवियर पहनते हैं, उनके स्पर्म की क्वालिटी उन पुरुषों से बेहतर होती है, जो टाइट अंडरवियर पहनते हैं. ये रिसर्च औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रकाशित Human Reproduction नामक जर्नल में छापी गई है. पिछले काफी समय से इस बारे में रिसर्च की जा रही थी कि पुरुषों के अंडरवियर का उनकी सेहत पर क्या प्रभाव पड़ता है. खराब स्पर्म क्वालिटी या कम काउंट के कारण पुरुषों के पिता बनने की क्षमता प्रभावित होती है. पुरुषार्थ से जुड़ी ऐसी कई समस्या है जो अंडरगारमेंट्स के कारण देखी जाती है.

3. कैसी अंडरवियर है सही?

पुरुषों के लिए बौक्सर अंडरवियर की शुरुआत 19’s में हुई थी. ये अंडरवियर जांघों के पास से ढीले होते हैं. इसके लगभग एक दशक बाद ब्रीफ अंडरवियर की शुरुआत हुई. ब्रीफ की खास बात ये थी कि ये बिकनी की तरह त्वचा से चिपकी रहती थीं. ब्रीफ का आकार छोटा होने, फिटिंग अच्छी होने के कारण कुछ लोगों को आज भी ये बौक्सर के मुकाबले ज्यादा स्टाइलिश लगता है.

4. कैसे होता है स्पर्म काउंट प्रभावित

स्पर्म का निर्माण टेस्टिस में होता है. ये बेहद संवेदनशील अंग है, जो तापमान से प्रभावित होता है. यह तो आप भी जानते हैं कि हमारे शरीर का अंदरूनी तापमान ज्यादा होता है. अंडकोषों को हेल्दी स्पर्म बनाने के लिए आपके शरीर के वास्तविक तापमान से 2-4 डिग्री सेल्सियस कम का तापमान होना जरूरी है. शायद यही कारण है कि प्रकृति ने पुरुषों के इस अंग को शरीर के बाहर एक अलग जगह दी है, ताकि इस अंग को पर्याप्त ठंडक मिल सके. ये व्यवस्था सिर्फ इंसानों ही नहीं, बल्कि ढेर सारे स्तनधारी जीवों में प्रकृति ने स्वयं की है. जब कोई व्यक्ति टाइट अंडरवियर पहनता है, तो शरीर से निकलने वाली गर्मी के कारण अंडकोष भी गर्म हो जाते हैं और स्पर्म के सेहतमंद प्रोडक्शन में बाधा पहुंचती है. वहीं जब कोई व्यक्ति ढीले-ढाले अंडरगारमेंट्स पहनता है, तो शरीर की गर्मी बाहर निकलती रहती है और ताजी हवा का प्रवेश भी त्वचा तक आसानी से हो जाता है. इसलिए जब आप अब मार्केट अंडरवियर खरीदने जाएंगे तो इस बात पर जरुर ध्यान दे की आप ऐसी अंडरवियर खरीदे को इतनी ढिली हो की उससे हवा पास होती रहे.

लड़कों के लिए क्यों जरूरी है अपने प्राइवेट पार्ट की ग्रूमिंग करना, जानें यहां

हमारे शरीर पर कई ऐसी जगह होती है जहां काफी बाल उगते है. इन पार्ट्स को टाइम टाइम पर ग्रूम करना काफी जरुरी है. लड़के अपने सिर के बालों की ग्रू‍मिंग पर हमेशा ध्‍यान देते हैं, लेकिन वे हमेश अपने प्राइवेट पार्ट के बालों को नजरअंदाज करते हैं. प्राइवेट पार्ट को आप अपने सर के बालों से ज्यादा ध्यान दे क्योंकी इन्हें नज़रअंदाज़ करना न सिर्फ आत्मविश्वास को कमज़ोर करता है बल्कि निजी स्वच्छता को भी प्रभावित करता है. जबकी महिलाएं इस मामले में ज्यादा सजग नज़र आती हैं. प्राइवेट पार्ट की ग्रूमिंग क्यों जरुरी है आइंए जानते है.

साफ-सफाई है एक बड़ा कारण

अगर आप प्राइवेट पार्ट्स की समय पर ग्रूमिंग नहीं करते, तो बढ़े हुए बालों के कारण गर्मी, पसीने और बैक्टीरिया उनके आस-पास इकट्ठा हो जाते हैं. इस पार्ट की ट्रिमिंग या शेव करने से किसी भी अवांछित संक्रमण से बचाव होता है और स्वच्छता बनाए रखने में भी मदद मिलती है.

प्राइवेट पार्ट को बड़ा दिखाता है ग्रूमिंग

प्राइवेट पार्ट के बालों की सफाई न करने पर ये आपके आत्‍मविश्‍वास को प्रभावित करते हैं, क्‍योंकि इनके बड़े होने पर आपका प्राइवेट पार्ट छोटा नजर आता है. इसलिए इस जगह के बालों की सफाई जरूरी है.

स्वस्थ नजर आए प्राइवेट पार्ट

प्राइवेट एरिया को ग्रूम करने पर वो साफ और  स्वस्थ नजर आता है. इस एरिया की सफाई यह सुनिश्चित करती है कि आपको किसी प्रकार का संक्रमण या बीमारी नहीं है और इससे आपका प्राइवेट एरिया भी स्वस्थ रहता है. इसके विपरीत प्राइवेट एरिया को ग्रूम करने से आप देख पाते हैं कि इस जगह कोई रेशेज या इनफेक्शन तो नहीं हो रहा है. जो उस एरिया के लिए बेहद जरुरी है.

अगर दिखाना हो आकर्षक

प्राइवेट पार्ट के एरिया की सफाई करने से यह अधिक आकर्षक नजर आता है. इससे आपके पार्टनर को भी समस्‍या नहीं होती है और आपका पार्टनर आपके साथ प्‍यार के पलों में असहज नहीं होता है. प्राइवेट पार्ट के आस-पास की त्वचा छूने में बेहद संवेदनशील होती हैं. और जब इस स्थान पर साफाई रहती है तो स्पर्श का बेहतर अनुभव होता है.

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