Family Story: संस्कार – आखिर मां संस्कारी बहू से क्या चाहती थी

Family Story: लेखिका- आशा जैन

नई मारुति दरवाजे के सामने आ कर खड़ी हो गई थी. शायद भैया के ससुराल वाले आए थे. बाबूजी चुपचाप दरवाजे की ओट में हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और मां, जो पीछे आंगन में झाड़ दे रही थीं, भाभी के आवाज लगाते ही हड़बड़ी में अस्तव्यस्त साड़ी में ही बाहर दौड़ी आईं.

आते ही भैया की छोटी साली ने रिंकू को गोद में भर लिया और अपने साथ लाए हुए कई कीमती खिलौने दे कर उसे बहलाने लगी. ड्राइंगरूम में भैया के सासससुर तथा भाभीभैया की गपशप आरंभ हो गई. भाभी ने मां को झटपट नाश्ता और चाय बनाने को कह दिया. मां ने मुझ से पूछ कर अपनी मैली साड़ी बदल डाली और रसोई में व्यस्त हो गईं.

मां और बाबूजी के साथ ही ऐसा समय मुझे भी बड़ा कष्टकर प्रतीत होता था. इधर भैयाभाभी के हंसीठट्टे और उधर मां के ऊपर बढ़ता बोझ. यह वही मां थीं जो भैया की शादी से पूर्व कहा करती थीं, ‘‘इस घर में जल्दी से बहू आ जाए फिर तो मैं पलंग पर ही पानी मंगा कर पिऊंगी,’’ और बहू आने के बाद…कई बार पानी का गिलास भी बहू के हाथ में थमाना पड़ता था.

जिस दिन भैया के ससुराल वाले आते थे, मां कपप्लेट धोने और बरतन मांजने का काम और भी फुरती से करने लगती थीं. घर के छोटेबड़े काम से ले कर बाजार से खरीदारी करने तक का सारा भार बाबूजी पर एकमुश्त टूट पड़ता था. कई बार यह सब देख कर मन भर आता था, क्योंकि उन लोगों के आते ही मांबाबूजी बहुत छोटे पड़ जाते थे.

दरवाजे के बाहर बच्चों का शोरगुल सुन कर मैं ने बाहर झांक कर देखा. कई मैलेकुचैले बच्चे चमचमाती कार के पास एकत्र हो गए थे. भैया थोड़ीथोड़ी देर बाद कमरे से बाहर निकल कर देख लेते थे और बच्चों को इस तरह डांटते खदेड़ते थे, मानो वे कोई आवारा पशु हों.

भैया के सासससुर के मध्य रिंकू की पढ़ाई तथा संस्कारों के बारे में वाक्युद्ध छिड़ा हुआ था. रिंकू बाबूजी द्वारा स्थापित महल्ले के ही ‘शिशु विहार’ में पढ़ता था. किंतु भाभी और उन के पिताजी का इरादा रिंकू को किसी पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलवाने का था. भाभी के पिताजी बोले, ‘‘इंगलिश स्कूल में पढ़ेगा तो संस्कार भी बदलेंगे, वरना यहां रह कर तो बच्चा खराब हो जाएगा.’’

इस से पहले भी रिंकू को पब्लिक स्कूल में भेजने की बात को ले कर कई बार भैयाभाभी आपस में उलझ पड़े थे. भैया खर्च के बोझ की बात करते थे तो भाभी घर के खर्चों में कटौती करने की बात कह देती थीं. वह हर बार तमक कर एक ही बात कहती थीं, ‘‘लोग पागल नहीं हैं जो अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाते हैं. इन स्कूलों के बच्चे ही अच्छे पदों पर पहुंचते हैं.’’

भैया निरुत्तर रह जाते थे.

बड़े उत्साह से भाभी ने स्कूल से फार्म मंगवाया था. रिंकू को किस प्रकार तैयारी करानी थी इस विषय में मुझे भी कई हिदायतें दी थीं. वह स्वयं सुबह जल्दी उठ रिंकू को पढ़ाने बैठ जाती थीं. उन्होंने कई बातें रिंकू को तोते की तरह रटा दी थीं. वह उठतेबैठते, सोतेजागते उस छोटे से बच्चे के मस्तिष्क में कई तरह की सामान्य ज्ञान की बातें भरती रहती थीं.

अब मां और बाबूजी के साथ रिंकू  का खेलना, घूमना, बातें करना, चहकना काफी कम हो गया था. एक दिन वह मांबाबूजी के सामने ही महल्ले के बच्चों के साथ खेलने लगा. भाभी उबलती हुई आईं और तमक कर बाबूजी को भलाबुरा कहने लगीं, ‘‘आप रिंकू की जिंदगी को बरबाद कर के छोड़ेंगे. असभ्य, गंदे और निरक्षर बच्चों के साथ खेलेगा तो क्या सीखेगा.’’

और बाबूजी ने उसी समय दुलारते हुए रिंकू को अपनी गोद में भर लिया था.

भाभी की बात सुन कर मेरे दिल में हलचल सी मच गई थी. ये अमीर लोग क्यों इतने भावनाशून्य होते हैं? भला बच्चों के बीच असमानता की खाई कैसी? बच्चा तो बच्चों के साथ ही खेलता है. एक मुरझाए हुए फूल से हम खुशबू की आशा कैसे कर सकते हैं. क्यों नहीं सोचतीं भाभी यह सबकुछ?

एक बार उबलता दूध रिंकू के हाथ पर गिर गया था. वह दर्द से तड़प रहा था. सारा महल्ला परेशान हो कर एकत्र हो गया था, तरहतरह की दवाइयां, तरहतरह के सुझाव. बच्चे तो रिंकू को छोड़ कर जाने को ही तैयार नहीं थे. आश्चर्य तो तब हुआ जब भाभी के मुंह से उन बच्चों के प्रति वात्सल्य के दो बोल भी नहीं फूटे. वह उन की भावनाओं के साथ, उमड़ते हुए प्यार के साथ तालमेल ही नहीं बैठा पाई थीं.

भाभी भी क्या करतीं? उन के स्वयं के संस्कार ही ऐसे बने थे. वह एक अमीर खानदान से ताल्लुक रखती थीं. पिता और भाइयों का लंबाचौड़ा व्यवसाय है. कालिज के जमाने से ही वह भैया पर लट्टू थीं. उन का प्यार दिनोंदिन बढ़ता गया. मध्यवर्गीय भैया ने कई बार अपनी परिस्थिति की यथार्थता का बोध कराया, लेकिन वह तो उन के प्यार में दीवानी हुई जा रही थीं. समविषम, ऊंचनीच का विचार न कर के उन्होंने भैया को अपना जीवनसाथी स्वीकार ही लिया.

जब इस घर में आने के बाद एक के बाद एक अभावों का खाता खुलने लगा तो वह एकाएक जैसे ढहने सी लगी थीं. उन्होंने ही ड्राइंगरूम की सजावट और संगीत की धुनों को पहचाना था. इनसानों के साथ जज्बाती रिश्तों को वह क्या जानें? वह अभावों की परिभाषा से बेखबर रिंकू को अपने भाइयों के बच्चों की तरह ढालना चाहती थीं. भैया की औकात, भैया की मजबूरी, भैया की हैसियत का अंदाजा क्योंकर उन्हें होता?

कभीकभी ग्लानि तो भैया पर भी होती थी. वह कैसे भाभी के ही सांचे में ढल गए थे. क्या वह भाभी को अपने अनुरूप नहीं ढाल सकते थे?

रिंकू टेस्ट में पास हो गया था. भाभी की खुशी का ठिकाना न रहा था. मानो उन की कोई मनमांगी मुराद पूरी हो गई थी. अब वह बड़ी खुशखुश नजर आने लगी थीं.

जुलाई से रिंकू को स्कूल में भेजे जाने की तैयारी होने लगी थी. नए कपड़े बनवाए गए थे. जूते, टाई तथा अन्य कई जरूरत की वस्तुएं खरीदी गई थीं. अब तो भाभी रिंकू के साथ टूटीफूटी अंगरेजी में बातें भी करने लगी थीं. उसे शिष्टाचार सिखाने लगी थीं.

भाभी रिंकू को जल्दी उठा देती थीं, ‘‘बेटा, देखा नहीं, तुम्हारे मामा के ऋतु, पिंकी कैसे अपने हाथ से काम करते हैं. तुम्हें भी काम स्वयं करना चाहिए. थोड़ा चुस्त बनो.’’

भाभी उस नन्ही जान को चुस्त बनना सिखा रही थीं, जिसे खुद चुस्त का अर्थ मालूम नहीं था. मां और बाबूजी रिंकू से अलग होने की बात सोच कर अंदर ही अंदर विचलित हो रहे थे.

आखिर रिंकू के जाने का निश्चित दिन आ गया था. स्कूल ड्रेस में रिंकू सचमुच बदल गया था. वह जाते समय मुझ से लिपट गया.

मैं ने उसे बड़े प्यार से पुचकार कर समझाया, ‘‘तुम वहां रहने नहीं, पढ़ने जा रहे हो, वहां तुम्हारे जैसे बहुत से बच्चे होंगे. उन में से कई तुम्हारे दोस्त बन जाएंगे. उन के साथ पढ़ना, उन के साथ खेलना. तुम हर छुट्टी में घर आ जाओगे. फिर मांबाबूजी भी तुम से मिलने आते रहेंगे.’’

भाभी भी उसे समझाती रहीं, तरहतरह के प्रलोभन दे कर. मां और बाबूजी के कंठ से आवाज ही नहीं निकल रही थी. बस, वे बारबार रिंकू को चूम रहे थे.

रिंकू की विदाई का क्षण मुझे भी रुला गया. बोगनबेलिया के फूलों से ढके दरवाजे के पास से विदाई के समय हाथ हिलाता हुआ रिंकू…मां और बाबूजी के उठे हाथ तथा आंसुओं से भीगा चेहरा… उस खामोश वातावरण में एक आवाज उभरती रही थी. बोगनबेलिया के फूलों की पुरानी पंखडि़यां हवा के तेज झोंके से खरखर नीचे गिरने लगी थीं. उस के बाद उस में संस्कार के नए फूल खिलेंगे और अपनी महक बिखेरेंगे.

Family Story: सहेली की सीख

Family Story, लेखिका- विमला भंडारी

पल्लवी और प्रज्ञा की कुछ दिन पहले ही मित्रता हुई थी. एक दिन स्कूल से घर लौटते समय प्रज्ञा ने पल्लवी को अपने घर चलने के लिए कहा तो पल्लवी अपनी असमर्थता जताती हुई बोली, ‘‘नहीं, आज नहीं. मैं फिर किसी दिन आऊंगी.’’

‘‘आज क्यों नहीं? तुम्हें आज ही चलना होगा,’’ प्रज्ञा जिद करती हुई आगे बोली, ‘‘हमारे गराज में आज सुबह ही क्रोकोडायल ने 3 बच्चे दिए हैं.’’ क्रोकोडायल प्रज्ञा की पालतू पामेरियन कुतिया का नाम था.

‘‘2 सुंदरसुंदर सफेद और एक काला चितकबरा है,’’ प्रज्ञा हाथों को नचाते हुए पिल्लों की सुंदरता का वर्णन करने लगी.

‘‘अच्छा, तब तो मैं उन्हें देखने कल जरूर आऊंगी.’’

‘‘जरूर आओगी न?’’

‘‘वादा रहा,’’ कहती हुई पल्लवी अपने घर की ओर जाने वाली गली में मुड़ गई. दूसरे दिन शाम को पल्लवी प्रज्ञा के घर पहुंची. पल्लवी का हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए प्रज्ञा उसे अपने गराज की ओर ले गई, ‘‘देखो, हैं न सुंदरसुंदर पिल्ले? बताओ इन का क्या नाम रखें?’’ अपनी सहेली की ओर देखती हुई प्रज्ञा ने अपनी गोलगोल आंखें मटकाते हुए पूछा.

‘‘आहा, इतने सुंदर पिल्ले? नाम भी इन के इतने ही सुंदर होने चाहिए,’’ कुछ सोचती हुई पल्लवी काले चितकबरे  पिल्ले की ओर इशारा करती हुई बोली, ‘‘इस का नाम ‘ब्राउनी’ ठीक रहेगा.’’

‘‘हां, बिलकुल ठीक. इन दोनों का नाम ‘व्हाइटी’ और ‘ब्राउनी’ रख लेते हैं.’’ दोनों सहेलियां पिल्लों को प्यार करने में मग्न थीं. पल्लवी सफेद पिल्ले ‘व्हाइटी’ को गोद में उठा कर पुचकार रही थी कि व्हाइटी झट से अपनी मां की ओर कूद गया और चपरचपर अपनी मां का दूध पीने लगा. यह देख प्रज्ञा पिल्ले की पीठ सहलाती हुई कहने लगी, ‘‘भूख लगी है तुझे व्हाइटी? ठीक है, जा दूध पी ले अपनी मां का.’’ इतने में प्रज्ञा को मां ने आवाज दी पर प्रज्ञा ने सुन कर भी अनसुना कर दिया. यह देख पल्लवी बोली, ‘‘प्रज्ञा, तुम्हें तुम्हारी मां पुकार रही हैं.’’

‘‘पुकारने दो, मां की तो आदत है,’’ लापरवाही से कंधे उचकाती हुई प्रज्ञा बोली और दोबारा पिल्लों से खेलने लगी. फिर मां की आवाज सुनाई दी तो पल्लवी बोली, ‘‘प्रज्ञा, तुम्हारी मां नाराज हो जाएंगी.’’

‘‘होने दो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मां तो हर बात पर नाराज होती हैं.’’ प्रज्ञा की यह हरकत पल्लवी को बिलकुल अच्छी नहीं लगी.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं,’’ कहती हुई पल्लवी उठ खड़ी हुई.

‘‘रुको न, हम थोड़ी देर और पिल्लों से खेलेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, मेरी मां मेरा इंतजार कर रही होंगी,’’ कहती हुई पल्लवी फाटक खोल कर बाहर निकल गई. दूसरे दिन स्कूल में प्रज्ञा का पैन पल्लवी के पास रह गया था. घर आ कर प्रज्ञा जब स्कूल का काम करने लगी तो उसे पैन की याद आई. वह तुरंत पल्लवी के घर पहुंची. उस समय पल्लवी पलंग पर बैठी धुले हुए सूखे कपड़ों की तह बना कर समेट रही थी.

‘‘आओ प्रज्ञा,’’ प्रज्ञा को देख पल्लवी ने कहा और प्रज्ञा का परिचय अपनी मां से कराया. पल्लवी की मां खुश होते हुए बोलीं, ‘‘बैठो बेटी, मैं अभी तुम्हारे लिए आइसक्रीम ले कर आती हूं.’’ प्रज्ञा को आइसक्रीम बहुत पसंद थी. वह मन ही मन खुश होती हुई सोच रही थी कि पल्लवी की मां कितनी अच्छी हैं. वह पल्लवी की मां और अपनी मां की तुलना करने लगी, ‘कभी कोई सहेली आ जाती है, तब भी मेरी मां खयाल नहीं करतीं और ऊपर से किसी न किसी काम के लिए पुकारती रहती हैं.’ प्रज्ञा को पल्लवी के यहां बहुत अच्छा लगा. उस के बाद वह अकसर पल्लवी के यहां जाने लगी. वह देखती पल्लवी कभी रसोई में रखे गीले बरतनों को पोंछ कर रख रही है तो कभी फर्श पर पोंछा लगा रही है. उस के आते ही वह झट से उस के साथ खेलने लग जाती पर पल्लवी की मां कभी पल्लवी को बीच में नहीं पुकारतीं और ऊपर से वे हमेशा कुछ न कुछ खाने को भी देतीं.

एक दिन तो उस के आश्चर्य की हद हो गई. उस दिन टीवी पर एक बढि़या फिल्म आ रही थी और पल्लवी मां के साथ आलू के चिप्स सुखाने में मग्न थी. ‘‘उफ, कितना उबाऊ काम करती हो तुम?’’ प्रज्ञा पल्लवी के कानोें के पास मुंह ले जा कर फुसफुसाती हुई बोली, ‘‘चलो, टीवी देखते हैं.’’ ‘‘नहीं, अभी बहुत चिप्स बाकी हैं, जाओ तुम देखो.’’

‘‘चलो न, छोड़ो. यह काम तो मां कर ही लेंगी.’’

‘‘मां अकेली क्याक्या करें? थक जाती हैं. फिर वे ये सब बनाती भी तो हमारे लिए ही हैं,’’ पल्लवी चिप्स सुखाती हुई बोली. विवश हो कर प्रज्ञा भी पल्लवी के साथ चिप्स सुखाने लगी. दोनों के इकट्ठे काम करने से काम जल्दी खत्म हो गया. पल्लवी की मां दोनों को अंदर बैठक में बैठाती हुई बोलीं, ‘‘क्या खाओगी बेटी?’’ ‘‘मां, बड़ी जोर से भूख लगी है,’’ पल्लवी ने कहा तो उस की मां उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते व पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘मैं अभी तुम्हारे लिए बिस्कुट व नमकीन लाती हूं.’’

प्रज्ञा को उदास देख पल्लवी ने पूछा, ‘‘बुरा मान गई?’’

‘‘नहीं,’’ गरदन हिलाते हुए प्रज्ञा बोली, ‘‘तुम्हारी मां बहुत अच्छी हैं.’’

‘‘मां तो सब की अच्छी होती हैं.’’

प्रज्ञा कुछ नहीं बोली. वह उदास सी चुपचाप बैठी रही. बिस्कुट खाते समय भी वह बहुत गंभीर रही. अपने घर लौटते समय वह मन ही मन सोच रही थी कि मेरी मां तो बहुत चिड़चिड़ी हैं. जराजरा सी बात पर डांटने लगती हैं और पल्लवी की मां उस का कितना खयाल रखती हैं. यह सोच कर प्रज्ञा बहुत दुखी हो गई. ऐसा लग रहा था जैसे अभी उस की रुलाई फूट पड़ेगी. घर पहुंचते ही प्रज्ञा से उस की मां ने कहा, ‘‘देखो प्रज्ञा, कल स्कूल से आ कर तुम ने अपनी स्कूल ड्रैस भी धोने के लिए नहीं रखी. यहां तक कि तुम्हारा बस्ता भी अभी तक डाइनिंग टेबल की कुरसी पर पड़ा है.’’ प्रज्ञा की मां प्रज्ञा से और भी बहुत कुछ कह रही थीं किंतु उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. वह चुपचाप बुझेबुझे कदमों से अपना बस्ता उठा कर अपने कमरे में चली गई. ‘क्या खाओगी बेटी,’ पल्लवी की मां की आवाज उस के कानों में बारबार गूंज रही थी. वह दुखी मन से वहीं पलंग पर भूखी ही लेट गई.

शाम को जब पल्लवी पिल्लों के साथ खेलने के लिए प्रज्ञा के घर पहुंची तो प्रज्ञा को उदास पाया.

‘‘क्या बात है प्रज्ञा? आज तुम सुबह से ही उदास हो?’’

प्रज्ञा कुछ नहीं बोली.

‘‘बताओ न क्या बात हुई? क्या मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘सब की मांएं अपने बच्चों को प्यार करती हैं. एक मेरी मां हैं जो बस हर समय डांटती ही रहती हैं.’’ प्रज्ञा के मुंह से यह बात सुन कर आश्चर्यचकित पल्लवी बोली, ‘‘कैसी बातें करती हो प्रज्ञा? तुम्हारी मां तो इतनी बड़ी लेखिका हैं. तुम्हें तो अपनी मां पर गर्व होना चाहिए?’’ ‘‘होंगी बड़ी लेखिका,’’ मुंह बिचकाती हुई प्रज्ञा बोली, ‘‘बातबात पर डांटना, ऐसा क्यों कर दिया, वहां क्यों रख दिया, यह नहीं किया, वह नहीं किया…’’ कहतेकहते प्रज्ञा की बड़ीबड़ी आंखों से आंसू छलछला आए.

अपने नन्हेनन्हे हाथों से प्रज्ञा के आंसू पोंछती हुई पल्लवी बोली, ‘‘एक बात कहूं प्रज्ञा, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘नहीं,’’ गरदन हिलाती प्रज्ञा आंखें पोंछती हुई बोली, ‘‘कहो, क्या कहना है तुम्हें?’’

पल्लवी बोली, ‘‘एक बात बताओ प्रज्ञा, तुम अपनी मां का कितना ध्यान रखती हो?’’

‘‘मां कोई छोटी बच्ची हैं जो मैं उन का ध्यान रखूं?’’ खीजती हुई प्रज्ञा बोली.

‘‘मेरे कहने का मतलब है कि मां जब तुम्हें कुछ कहती हैं तो तुम अनसुना कर देती हो. मां के काम बताते ही तुम मना कर देती हो. यदि तुम छोटेमोटे कामों में मां का सहयोग कर दो तो उन का काम काफी हलका हो जाएगा. मुझे देखो, मैं मां के बिना बताए ही काम कर देती हूं. मेरे छोटेमोटे काम कर देने से मां को बहुत राहत मिलती है. जब मां अकेली सारे घर का काम देखेंगी व अस्तव्यस्त सामान देखेंगी तो उन्हें समेटतेसमेटते स्वाभाविक रूप से गुस्सा तो आ ही जाएगा.’’ प्रज्ञा को मन ही मन अपनी गलती का एहसास हो रहा था. पल्लवी के जाने के बाद प्रज्ञा ने मन ही मन कुछ निश्चय किया.

सुबह प्रज्ञा मां के बिना उठाए ही उठ गई, यहां तक कि उस ने अपनी चादर भी समेट कर अलमारी में रख दी. प्रज्ञा को उठा देख कर मां ने दूध का गिलास मेज पर रख दिया था. हमेशा दूध के लिए नानुकुर करने वाली प्रज्ञा ने चुपचाप दूध पी लिया. खाली गिलास उठा कर रसोई में रखने चली गई व सिंक में रखे सभी प्यालेगिलासों को धोपोंछ कर ठीक से यथावत रख दिया. ‘‘क्या खाओगी बेटी, आज क्या बनाऊं?’’ प्रज्ञा की मां उस से पूछ रही थीं. प्रज्ञा ने कनखियों से मां का मुसकराता हुआ चेहरा देख लिया था. यह देख उसे बड़ी खुशी हुई. हमेशा शाम को स्कूल से लौट कर प्रज्ञा बस्ता पटक कर जूतेमोजे इधरउधर फेंक, बिना स्कूल ड्रैस बदले ही बाहर खेलने के लिए भाग जाती थी. मां आवाज देती रह जातीं किंतु वह सुनती कहां थी? उस दिन प्रज्ञा ने स्कूल से आ कर अपना सामान यथावत रखा. स्कूल की पोशाक बदली और हाथमुंह धो कर कमरे में झांक कर देखा तो पता चला कि मां कुछ लिखने में तल्लीन थीं. लिखते समय मां को तंग करने वाली प्रज्ञा उस दिन चुपचाप दबेपांव, रसोई की ओर मुड़ गई. देखा, सारी रसोई बिखरी पड़ी थी. ‘दिन में शायद मां से मिलने कुछ मेहमान आए होंगे,’ सोच कर प्रज्ञा ने सारा सामान समेट कर सफाई की व पूरी रसोई सुव्यवस्थित कर दी. बैठक से भी चायनाश्ते के बरतन उस ने बिना आवाज किए समेट दिए. यह सब करने के बाद वह खुद अपने हाथों से डब्बों में से केक व बिस्कुट निकाल कर प्लेट में रख कर चुपचाप खाने लगी. वहीं से वह मां को लिखते हुए देख रही थी. आज उसे पहली बार मां बहुत सुंदर लग रही थीं. पहली बार प्रज्ञा को यह सोच कर गर्व हो रहा था कि उस की मां बड़ी लेखिका हैं.

जब मां का लेखन कार्य पूरा हुआ तो वे कमरे से बाहर निकलीं. जब उन की नजरें पूरे घर में घूमीं तो उन्होंने खुशी के मारे प्रज्ञा को अपने सीने से लगा लिया, ‘‘ओह, मेरी बेटी अब समझदार हो गई है.’’ दूर बैठी क्रोकोडायल अपने पिल्लों को दूध पिला रही थी और बच्चे उस के ऊपर उछलकूद कर रहे थे. क्रोकोडायल पिल्लों को चाट रही थी. यह देख प्रज्ञा भी मां की बांहों में झूम उठी.

Romantic Story: एक नई शुरुआत – क्या समर की प्रेम कहानी आगे बढ़ पाई

Romantic Story: रोजरोज के ट्रैफिक जाम, नेताओं की रैलियां, वीआईपी मूवमैंट्स और अकसर होने वाले फेयर की वजह से दिल्ली में ट्रैवल करना समस्या बनता जा रहा है. अब अगर आप किसी बड़ी पोस्ट पर हैं तो कार से ट्रैवल करना आप की अनिवार्यता बन जाता है. बड़े शहरों में प्रैस्टिज इश्यू भी किसी समस्या से कम नहीं है. ड्राइवर रखने का मतलब है एक मोटा खर्च और फिर उस के नखरे. भीड़ भरी सड़कों पर जहां आधे से ज्यादा लोगों में गाड़ी चलाने की तमीज न हो, गाड़ी चलाना किसी चुनौती से कम नहीं है और ऐसी सूरत में ड्राइविंग को ऐंजौय कर पाना तो बिलकुल ही संभव नहीं है.

समर को ड्राइविंग करना बेहद पसंद है. पर रोजरोज की परेशानी से बचने के लिए उस ने सोचा कि अब अपने ओहदे को भूल उसे मैट्रो की शरण ले लेनी चाहिए. कहने दो, लोग या उस के जूनियर जो कहें. पैट्रोल का खर्चा जो कंपनी देती है, उसे बचाने के चक्कर में बौस मैट्रो से आनेजाने लगे हैं, ऐसी बातें उस के कानों में भी अवश्य पड़ीं, पर सीधे उस के मुंह पर कहने की तो किसी की हिम्मत नहीं थी.

आरंभ के कुछ दिन तो उसे भी दिक्कत महसूस हुई. मैट्रो में कार जैसा

आराम तो नहीं मिल सकता था, पर कम से कम वह टाइम पर औफिस पहुंच रहा था और वह भी सड़कों पर झेलने वाले तनाव के बिना. हालांकि मैट्रो में इतनी भीड़ होती थी कि कभीकभी उसे झुंझलाहट हो जाती थी. धीरेधीरे उसे मैट्रो के सफर में मजा आने लगा.

दिल्ली की लाइफलाइन बन गई मैट्रो में किस्मकिस्म के लोग. लेडीज का अलग डब्बा होने के बावजूद उन का कब्जा तो हर डब्बे में होना और पुरुषों का इस बात को ले कर खीजते रहना देखना और उन की बातों का आनंद लेना भी मानो उस का रूटीन बन गया. पुरुषों के डब्बे में भी महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें होती हैं. लेकिन वह उन पर कम ही बैठता था. उस दिन मैट्रो अपेक्षाकृत खाली थी. सरकारी छुट्टी थी. वह कोने की सीट पर बैठ गया.

वह अखबार पढ़ने में तल्लीन था कि तभी एक मधुर स्वर उस के कानों में पड़ी, ‘‘ऐक्सक्यूज मी.’’

उस ने नजरें उठाईं. लगभग 30-32 साल की कमनीय काया वाली एक महिला उस के सामने खड़ी थी. एकदम परफैक्ट फिगर… मांस न कहीं कम न कहीं ज्यादा. उस ने पर्पल कलर की शिफौन की प्रिंटेड साड़ी और स्लीवलैस ब्लाउज पहना था. गले में मोतियों की माला थी और कंधे पर डिजाइनर बैग झूल रहा था. होंठों पर लगी हलकी पर्पल लिपस्टिक एक अलग ही लुक दे रही थी. नफासत और सौंदर्य दोनों एकसाथ. कुछ पल उस पर नजरें टिकी ही रह गईं.

‘‘ऐक्सक्यूज मी, यह लेडीज सीट है. इफ यू डौंट माइंड,’’ उस ने बहुत ही तहजीब से कहा.

‘‘या श्योर,’’ समर एक झटके से उठ गया.

अगले स्टेशन के आने की घोषणा हो रही थी यानी वह खान मार्केट से चढ़ी थी. समर की नजरें उस के बाद उस से हटी ही नहीं. बारबार उस का ध्यान उस पर चला जाता था. बहुत चाहा उस ने कि उसे न देखे, पर दिल था कि जैसे उसी की ओर खिंचा जा रहा था. लेकिन यों एकटक देखते रहने का मतलब था कि उस के जैसे भद्र पुरुष का बदतमीजों की श्रेणी में आना और इस समय तो वह कतई ऐसा नहीं करना चाहता था. अपनी खुद की 35 साल की जिंदगी में किसी के प्रति इस तरह का आकर्षण या किसी को लगातार देखते रहने की चाह इस से पहले कभी उस के अंदर इतनी तीव्रता से उत्पन्न नहीं हुई थी. वैसे भी सफर लंबा था और वह उस में किसी तरह का व्यवधान नहीं चाहता था.

वैल सैटल्ड और पढ़ीलिखी व कल्चर्ड फैमिली का होने के बावजूद न जाने क्यों उसे अभी तक सही लाइफ पार्टनर नहीं मिल पाया था. कभी उसे लड़की पसंद नहीं आती तो कभी उस के मां बाप को. कभी लड़की की बैकग्राउंड पर दादी को आपत्ति होती. ऐसा नहीं था शादी को ले कर उस ने सैट रूल्स बना रखे थे पर पता नहीं क्यों फिर भी 25 साल की उम्र से शादी के लिए लड़की पसंद करने की कोशिश 35 साल तक भी किसी तरह के निर्णय पर नहीं पहुंच पाई थी.

धीरेधीरे चौइस भी कम होने लगी थी और रिश्ते भी आने कम हो गए थे.

उस ने भी अपनी इस एकाकी जिंदगी को ऐंजौय करना शुरू कर दिया था. अब तो मम्मीपापा और भाईबहन भी उस से यह पूछतेपूछते थक गए थे कि उसे कैसी लड़की चाहिए. वह अकसर कहता लड़की कोई फोटो फ्रैम तो है नहीं, जो परफैक्ट आकार व डिजाइन की मिल जाएगी. मेरे मन में कोई इमेज तो नहीं है उस की, बस जैसी मुझे चाहिए जब वह सामने आएगी तो मैं खुद ही आप लोगों को बता दूंगा.

उस के बाद से घर वाले भी शांत हो कर बैठ गए थे और वह भी मस्त रहने लगा था. वह सीट से उठी तो एक बार उस ने फिर से उसे गहरी नजरों से देखा. एक स्वाभाविक मुसकान मानो उस के चेहरे का हिस्सा ही बन गई थी.

गालों पर डिंपल पड़ रहे थे. समर को सिहरन सी महसूस हुई. क्या है यह… क्यों उस के भीतर जलतरंग सी बज रही है. वह कोई 20-21 साल का नौजवान तो नहीं, एक मैच्योर इनसान है… फिर भी उस का रोमरोम तरंगित होने लगा था. अजीब सी फीलिंग हुई… अनजानी सी… इस से पहले किसी लड़की को देख कर ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ था. मानो मिल्स ऐंड बून्स का कोई किरदार पन्नो में से निकल कर उस के भीतर समा गया हो और उसे आंदोलित कर रहा हो. यह खास फीलिंग उसे लुभा रही थी.

उस के नेहरू प्लेस उतरने के बाद जब तक मैट्रो चली नहीं वह उसे जाते देखता रहा. मन तो कर रहा था कि वहीं उतर जाए और पता करे कि वह कहां काम करती है. पर यह उसे शिष्ट आचरण नहीं लगा. उसे आगे ओखला जाना था. लेकिन मैट्रो से उतरने के बाद भी उसे लगा कि जैसे उस का मन तो उस कोने वाली सीट पर ही जा कर अटक गया है.

औफिस में भी वह बेचैन ही रहा. काम कर रहा था पर कंसनट्रेशन जैसे गायब हो चुका था. वह बारबार खुद से यही सवाल कर रहा था कि आखिर उस महिला के बारे में वह इतना क्यों सोच रहा है. क्यों उस के अंदर एक समुद्र उफान ले रहा है, क्यों वह चाहता है कि उस से दोबारा मुलाकात हो… बहुत बार उस ने अपने खयालों पर फाइलों के बोझ को डालना चाहा, बहुत बार कंप्यूटर स्क्रीन पर आंखें गड़ाने की कोशिश की पर नाकामयाब रहा. खुद को धिक्कारा भी कि किसी के बारे में यों मन में खयाल लाना अच्छी बात नहीं है. फिर भी घर लौटने के बाद और रात भर वह अपने अंदरबाहर फैली सिहरन को महसूस करता रहा.

सुबह बारबार यह सोच रहा था कि आज भी मैट्रो में उस से मुलाकात हो जाए. फिर खुद पर ही उसे हंसी आ गई. मान लो उस ने वही मैट्रो पकड़ी तब भी क्या गारंटी है कि वह आज भी उसी डब्बे में चढ़ेगी जिस में वह हो. उसे लग रहा था कि अगर उस का यही हाल रहा तो कहीं वह स्टौकर न बन जाए. समर खुद को संभाला… उस ने अपने को हिदायत दी. मैच्योर इनसान इस तरह की हरकतें करते अच्छे नहीं लगते… सही है पर खान मार्केट आते ही नजरें उसे ढूंढ़ने लगीं. पर नहीं दिखी वह.

अब तो जैसे सुबहशाम उसे तलाशना ही उस का रूटीन बन गया था. उसे लगा कि हो सकता है वह रोज ट्रैवल न करती हो. मायूस रहने लगा था समर… कोई इस तरह दिमाग पर हावी रहने लग सकता है. उस ने कभी सोचा नहीं था. क्या इसे ही लव ऐट फर्स्ट साइट कहते हैं. किताबी और फिल्मी बातें जिन का कभी वह मजाक उड़ाया करता था आज उसे सच लग रही थीं. काश, एक बार तो वह कहीं दिख जाए.

खान मार्केट से समर को कुछ शौपिंग करनी थी. वैलेंटाइनडे की वजह से खूब चहलपहल थी. बाजार रोशनी से जगमगा रहे थे, खरीदारी करने के बाद वह कौफी कैफे डे में चला गया. कौफी पी कर सारी थकान उतर जाती है उस की. एक सिप लिया ही था कि सामने से वह अंदर आती दिखी. हाथों में बहुत सारे पैकेट थे. आज मैरून कलर का कुरता और क्रीम कलर की लैगिंग पहन रखी थी उस ने. कानों में डैंगलर्स लटक रहे थे जो बीचबीच में उस की लटों को चूम लेते थे.

चांस की बात है कि सारी टेबलें भरी हुई थीं. वह बिना झिझक उस के सामने वाली कुरसी पर आ कर बैठ गई. समर को लगा जैसे उस की मनचाही मुराद पूरी हो गई. कौफी का और्डर देने के बाद वह अपने मोबाइल पर उंगली घुमाने लगी. फिर अचानक बोली, ‘‘आई होप मेरे यहां बैठने से आप को कोई प्रौब्लम नहीं होगी… और कोई टेबल खाली नहीं है…’’

उस की बात पूरी होने से पहले ही तुरंत समर बोला, ‘‘इट्स माई प्लैजर.’’

‘‘ओह रियली,’’ उस ने कुछ इस अंदाज में कहा कि समर को लगा जैसे उस ने व्यंग्य सा कसा हो. कहीं उस के चेहरे पर आए भावों का वह कोई गलत मतलब तो नहीं निकाल रही… कहीं यह सोचे कि वह उस पर लाइन मारने की कोशिश कर रहा है.

‘‘वैसे आप को कोने वाली सीट ही पसंद है… डिस्टर्बैंस कम होती है और आप को वैसे भी पसंद नहीं कि कोई आप की लाइफ में आप को डिस्टर्ब करे… अपने हिसाब से फैसले लेने पसंद करते हैं आप.’’

हैरानी, असमंजस… न जाने कैसेकैसे भाव उस के चेहरे पर उतर आए.

‘‘आप परेशान न हों, समर… मैं ने उस दिन मैट्रो में ही आप को पहचान लिया था. संयोग देखिए फिर आप से मुलाकात हो गई तो सोच रही हूं आज बरसों से दबा गुबार निकाल ही लूं. आप की हैरानी जायज है. हो सकता है आप ने मुझे पहचाना न हो. पर मैं आप को भूल नहीं पाई. अब तक तो आप को अपना परफैक्ट लाइफ पार्टनर मिल ही गया होगा. अच्छा ही है वरना बेवजह लड़कियों को रिजैक्ट करने का सिलसिला नहीं रुकता.’’

‘‘हम पहले कहीं मिल चुके हैं क्या?’’ समर ने सकुचाते हुए पूछा.

समर कहां तो इस से मुलाकात हो जाने की कामना कर रहा था और कहां अब

वही कह रही थी कि वह उसे जानती है और इतना ही नहीं उसे एक तरह से कठघरे में ही खड़ा कर दिया था.

‘‘हम मिले तो नहीं हैं, पर हमारा परिवार अवश्य एकदूसरे से मिला है. थोड़ा दिमाग पर जोर डालें तो याद आ जाए शायद कि एक बार आप के घर वाले मेरे घर आए थे. यहीं शाहजहां रोड पर रहते थे तब हम. पापा आईएएस अफसर थे. हमारी शादी की बात चली थी. आप के घर वालों को मैं पसंद आ गई थी. आप का फोटो दिखाया था उन्होंने मुझे. वे तो जल्दी से जल्दी शादी की डेट तक फिक्स करने को तैयार हो गए थे. फिर तय हुआ कि आप के और मेरे मिलने के बाद ही आगे की बात तय की जाएगी.

मैं खुश थी और मेरे मम्मीपापा भी कि इतने संस्कारी और ऐजुकेटेड लोगों के यहां मेरा रिश्ता तय हो रहा है. हम मिल पाते उस से पहले ही पापा पर किसी ने फ्रौड केस बना दिया. आप की दादी ने घर आ कर खूब खरीखरी सुनाई कि ऐसे घर में जहां बाप बेईमानी का पैसा लाता हो हम रिश्ता नहीं कर सकते हैं. पापा ने बहुत समझाया कि उन्हें फंसाया गया है पर उन्होंने एक न सुनी.

‘‘मुझे दुख हुआ पर इसलिए नहीं कि आप से रिश्ता नहीं हो पाया, बल्कि इसलिए कि बिना सच जाने इलजाम लगा कर आप की दादी ने मेरे पापा का अपमान किया था. उस के बाद मैं ने तय कर लिया था कि शादी करूंगी ही नहीं. पापा तो खैर बेदाग साबित हुए पर मेरा रिश्ता टूटने का गम सह नहीं पाए और चले गए इस दुनिया से.

‘‘हमारे समाज में किसी लड़की को रिजैक्ट कर देना आम बात है पर कोई एक बार भी यह नहीं सोचता कि इस से उस के मन पर क्या बीतती होगी, उस के घर वालों की आशा कैसे बिखरती होगी… आप को कोई रिजैक्ट करे तो कैसा लगेगा समर?’’

‘‘मेरा यकीन करो…’’

‘‘मेरा नाम निधि है.’’

नाम सुन कर समर को लगा कि जैसे घर में उस ने कई बार इस नाम को सुना था. मम्मीपापा, भाईबहन यहां तक कि दादी के मुंह से भी. वह भी कई बार कि लड़की तो वही अच्छी थी पर उस का बाप… दादी उन से शादी हो जाती तो भैया अब तक कुंआरे न होते, बहन को भी उस ने कहते सुना था कई बार. पर आप की जिद ने सब गड़बड़ कर दिया… पापा भी उलाहना देते थे कई बार दादी को. अब तक जितनी लड़कियां देखी थीं, समर के लिए वही मुझे सब से अच्छी लगी थी. मम्मी के मुंह से भी वह यह बात सुन चुका था. जिसे देखा न हो उस के बारे में वह क्या कहता. इसलिए चुप ही रहता था.

‘‘निधि, सच में मुझे कोई जानकारी नहीं है. हालांकि घर में अकसर तुम्हारी बात होती थी पर तुम मेरे लिए किसी अनजान चेहरे की तरह थीं. आई एम सौरी… मेरे परिवार वालों की वजह से तुम्हें अपने पापा को खोना पड़ा और इतना अपमान सहना पड़ा. पर…’’ कहतेकहते रुक गया समर. आखिर कैसे कहता कि जब से उसे देखा है वही उस के दिलोदिमाग पर छाई हुई है. अपने दिल की बात कह कर कहीं वह उस का दिल और न दुखा दे और फिर अब उस ने ही उसे रिजैक्ट कर दिया तो क्या होगा…

‘‘समर मुझे आप की सौरी नहीं चाहिए. यह तो आम लड़की की विडंबना है जिसे वह सहती आ रही है, उस के हर तरह से काबिल होने के बावजूद. एनी वे चलती हूं. आई होप फिर हमारी मुलाकात…’’

‘‘हो…’’ समर जल्दी से बोला, ‘‘एक मौका भूल सुधार का तो हर किसी को मिलता है. यह मेरा कार्ड है. फेसबुक पर आप को ढूंढ कर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजूंगा, प्लीज निधि ऐक्सैप्ट कर लेना… विश्वास है कि आप रिजैक्ट नहीं करेंगी… कोने वाली सीट नहीं चुनूंगा अब से,’’ समर ने अपना विजिटिंग कार्ड उसे थमाते हुए कहा, ‘‘पुराना सब कुछ भुला कर नई शुरुआत की जा सकती है.’’

कार्ड लेते हुए निधि ने अपने शौपिंग बैग उठाए. बाहर जाने के लिए पलटी तभी उस के डैंगलर ने उस की बालों की लटों को यों छुआ और लटें इस तरह हिलीं मानो कह रही हों इस बार ऐक्सैप्ट आप को करना है.

Romantic Story: अतीत की यादें – जब चेतन का अतीत आया सामने

Romantic Story: फोन की घंटी बजी तो चोंगा उठाने पर आवाज आई, ‘‘डायरैक्टर साहब हैं?’’

‘‘कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं रामनिवास बोल रहा हूं. जरा साहब से बात करा दीजिए.’’

‘‘कहिए, मैं बोल रहा हूं.’’

‘‘मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है. क्या मैं अभी 5 मिनट के लिए आ सकता हूं.’’

‘‘आप 3 बजे दफ्तर में आ जाइए.’’

‘‘अच्छी बात है. मैं 3 बजे आप के दफ्तर में हाजिर हो जाऊंगा.’’ चेतन ऊंचे पद पर हैं. उद्योग विभाग में निदेशक हैं. उन के पास नगर के बड़ेबड़े उद्योगपति और व्यापारी आते रहते हैं. रामनिवास शहर के बड़े व्यापारी हैं. कुछ  साल पहले मामूली हैसियत के थे, लेकिन अब वे करोड़पति हैं. शहर में उन की धाक है. चेतन इस नगर में 1 साल से हैं. वे सभी व्यापारियों को जानते हैं. उन्हें यह भी पता है कि कौन व्यापारी कैसा है. ठीक 3 बजे रामनिवास आ गए. चपरासी के द्वारा परची भेजी तो चेतन ने उन्हें फौरन बुला लिया. अभिवादन के बाद उन्होंने कहा, ‘‘आप से मिलने की बड़ी इच्छा थी. कई दिनों से आने की सोच रहा था. पर आप तो जानते ही हैं कि हम व्यापारियों की जिंदगी में बीसियों झंझट लगे रहते हैं.’’

चेतन ने उन की ओर देखा, फिर पूछा, ‘‘कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ उन के इस प्रश्न पर रामनिवास भीतर ही भीतर कुछ बुझ से गए. फिर संभल कर बोले, ‘‘आप की सालगिरह आ रही है, सोचा, मुबारकबाद दे दूं. आप जैसे अफसर मिलते कहां हैं. साहब, सारा शहर आप की बड़ी तारीफ करता है.’’ चेतन अकसर ऐसी बातें सुनते रहते हैं. जानते हैं कि इस के पीछे असलियत क्या है. उन्होंने कहा, ‘‘बोलिए, काम क्या है?’’

रामनिवास धीरे से बोले, ‘‘कोई खास काम तो नहीं है, आप के पास हमारी एक फाइल है. आप के दस्तखत होने हैं. उस पर दस्तखत कर दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

इतना कहतेकहते उन्होंने अपने बैग में से एक बड़ा लिफाफा निकाल कर चेतन के सामने रख दिया और बोले, ‘‘साहब, आप बुरा मत मानिए, हमारे घर में एक परंपरा है कि जब किसी से मिलने जाते हैं तो कुछ भेंट ले जाते हैं.’’ चेतन व्यापारियों के हथकंडे अच्छी तरह जानते हैं. मन ही मन उन्हें बड़ी खीझ हुई. आखिर सेठ ने यह जुर्रत कैसे की? क्या ये सोचते हैं कि मैं इतना भोला या मूढ़ हूं जो इन के जाल में फंस जाऊंगा? इन का लिफाफा मुझे खरीद लेगा? उसी समय एक आकृति उन के सामने आ खड़ी हुई. वह कह रही थी, पैसा हाथ का मैल है. आदमी की सब से बड़ी दौलत उस का चरित्र है. यह आकृति चेतन की मां की थी. वह क्षणभर उस की ओर देखती रही और फिर गायब हो गई. चेतन ने मन के ज्वार को दबाने की कोशिश की. पर वे अपनी कोशिश में पृरी तरह सफल न हुए. उन्होंने लिफाफे को रामनिवास की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप ने बड़ी कृपा की, जो मिलने आए. पर इतना याद रखिए कि सारे अफसर एक से नहीं होते. आप ने बहुत दुनिया देखी है, पर थोड़ाबहुत अनुभव हमें भी है.’’

तभी चपरासी ने एक चिट ला कर उन्हें दी. चिट देख कर चेतन ने कहा, ‘‘क्षमा कीजिए, मुझे एक मीटिंग में जाना है.’’

वे उठ खड़े हुए. रामनिवास भी नमस्कार कर के चले गए. यह चेतन के जीवन की पहली घटना नहीं थी. अनेक बार उन के सामने ऐसे प्रलोभन आए थे, पर कभी उन्होंने एक पैसा तक न छुआ. इतना ही नहीं, अपना खर्चा निकाल कर जो बचता, उसे वे जरूरतमंदों को दे देते. आज जाने क्यों, मां की उन्हें बारबार याद आ रही थी. मां ने जिन बातों के बीज अपने लाड़ले बेटे के मन में सदा के लिए बो दिए थे उन बातों को उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ कर के भी दिखा दिया था. उन की मां एक रियासत के दीवान की लड़की थीं. उन के चारों ओर बड़े ठाटबाट थे, लेकिन उन का तनिक भी उन में रस न था. उन का विवाह भी एक बड़े घराने में हुआ. वहां भी किसी तरह की कोई कमी न थी. पर मां उस सब के बीच ऐसे रहीं, जैसे कीचड़ के बीच कमल रहता है. चेतन उन का अकेला बेटा था, पर रिश्तेदारों के 1-2 बच्चे हमेशा उन के घर पर बने रहते थे. मां सब को खिला कर खातीं और सब को सुला कर सोतीं.

मां की मृत्यु हो गई पर चेतन को उन की एकएक बात याद है. घर में खूब पैसा था और मां का हाथ खुला था. जिसे तंगी होती, वही आ जाता और कभी खाली हाथ न लौटता. जाने कितने पैसे उन्होंने दूसरों को दिए, उस में से चौथाई भी वापस न आया.

चेतन कभीकभी उन से कहता, ‘मां, तुम यह क्या करती हो?’

तब उन का एक ही जवाब होता, ‘अरे, बड़ी परेशानी में है. पैसा न लौटा पाई तो क्या हुआ, हमारे यहां तो कोई कमी आने वाली है नहीं, उसे सहारा मिल जाएगा.’

ऐसी 1-2 नहीं, बीसियों घटनाएं चेतन अपनी आंखों देखता. पैसा न आता तो न आता, किंतु मां पर उस का कोई असर न होता.

देश आजाद हुआ. जमींदारी खत्म हो गई. लेकिन मां जैसी की तैसी बनी रहीं. उन्होंने पैसे पर कभी मुट्ठी नहीं बांधी. दिनभर काम में लगी रहतीं और रात को चैन से सोतीं.

वे लोग एक देहात में रहते थे. चेतन ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मां से कहा, ‘मैं आगे पढ़ना चाहता हूं.’

‘तो पढ़, तुझे रोकता कौन है?’ मां ने सहज भाव से उत्तर दिया.

चेतन ने कहा, ‘आप ने तो कह दिया कि पढ़. पर मां, शहर का खर्चा बहुत है.’

मां ने सहज भाव से कहा, ‘तू उस की चिंता क्यों करता है, उस का प्रबंध हम करेंगे.’

चेतन उम्र के लिहाज से छोटे थे, पर बड़े समझदार थे. देखते थे, आमदनी कम हो गई है और खर्च बढ़ गया है. यही बात उन्होंने मां से कह दी तो वे खूब हंसीं, फिर बोलीं, ‘चेतन, तू हमेशा पागल ही रहेगा. अरे, तुझे क्या लेनादेना है आमदनी और खर्चे से. तुझे पढ़ना है, पढ़. इधरउधर की फालतू बातें क्यों करता है? मेरे पास बहुत जेवर हैं. वे किस दिन काम आएंगे? आखिर मांबाप अपने बच्चों के लिए नहीं करेंगे तो किस के लिए करेंगे?’

यह सुन कर चेतन का जी भर आया था. मां की गोद में सिर रख कर वे रो पड़े थे. बड़े प्यार से मां उस के सिर पर हाथ फेरती रही थीं. चेतन को लगा कि मां का हाथ आज भी उन के सिर को सहला रहा है. उन की  आंखें डबडबा आईं. चेतन शहर में पढ़ने चले गए. मां बराबर खर्चा भेजती रहीं. चेतन ने भी खूब मेहनत से पढ़ाई की. वजीफा मिला तो मां को सूचना दी. वे बड़ी खुश हुईं. उन्हें भरोसा था कि उन का बेटा आगे चल कर बहुत नाम कमाएगा.  धीरेधीरे समय गुजरता गया. चेतन की पढ़ाई का 1 साल रह गया कि अचानक एक दिन उन्हें घर से सूचना मिली, मां बीमार हैं. वे घर पहुंचे तो मां बिस्तर पर पड़ी थीं. उन का ज्वर विषम हो गया था. बहुत दुबली हो गई थीं. चेतन को देख कर उन की आंखें चमक उठीं. उन्होंने बैठने का प्रयत्न किया पर बैठ न पाईं. चेतन ने उन्हें सहारा दे कर बिठाया. मां का हाल देख कर उन्हें रोना आ गया.

मां ने एक बार पूरा जोर लगा कर कहा, ‘बेटा, तू रोता है? अरे, मैं जल्दी ही अच्छी हो जाऊंगी.’

पर मां अच्छी न हुईं, 2 दिन बाद ही उन की जीवनलीला समाप्त हो गई. मां के प्यार से वंचित हो कर चेतन अपने को असहाय सा अनुभव करने लगे. साथ ही, उन्हें यह चिंता भी सताने लगी कि घर में पिताजी अकेले रह गए हैं, अब उन का क्या होगा. पर संयोग से घर में पुराना नौकर था, उस ने सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. चेतन पढ़ाई पूरी करने के लिए शहर चले गए पर कई दिनों तक उन का मन बड़ा बेचैन रहा.

एक दिन जब वे होस्टल के कमरे में बैठे थे, उन्होंने देखा, दरवाजे पर कोई खड़ा है. वे उठ कर दरवाजे पर आए तो पाया कि क्लास की रंजना है. वे सकपका से गए और बोले, ‘कहिए.’

रंजना ने मुसकराते हुए कहा, ‘क्यों, अंदर आने को नहीं कहेंगे?’

‘नहींनहीं, आइए,’ चेतन ने कमरे का दरवाजा पूरी तरह खोल दिया. कमरे में एक ही कुरसी थी, वह उन्होंने रंजना को दे दी और स्वयं पलंग पर बैठ गए. थोड़ी देर दोनों चुप रहे, फिर रंजना ने कहा, ‘मैं एक काम से आई हूं.’

‘बताइए?’ चेतन ने उत्सुकता से उस की ओर देखा.

‘मुझे एक निबंध लिखना है, लेकिन सूझता नहीं कि क्या लिखूं. आप की मदद चाहती हूं.’

इतना कह कर उस ने सारी बात विस्तार से बता दी और अंत में कहा, ‘यह निबंध एक प्रतियोगिता में जाएगा, पर समय कम है.’

चेतन का वह प्रिय विषय था. उन्होंने बिना समय खोए निबंध लिखवा दिया. रंजना तो यह सोच कर आई थी कि वे कुछ मोटीमोटी बातें बता देंगे और उन के आधार पर वह निबंध लिख डालेगी. लेकिन उन्होंने तो सारा निबंध स्वयं लिखवा दिया और ऐसा कि हजार कोशिश करने पर रंजना वैसा नहीं लिख सकती थी. उन का आभार मानते हुए वह चली गई.

कुछ समय बाद एक दिन पुस्कालय में रंजना मिल गई तो चेतन ने पूछा, ‘कहिए, उस निबंध का क्या हुआ?’

रंजना मारे शर्म के गड़ गई. बोली, ‘क्षमा कीजिए, मैं आप को बता नहीं पाई. वह निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आया और उस पर मुझे 100 रुपए का पुरस्कार मिला.’

‘बधाई,’ चेतन ने कहा, ‘आप को मिठाई खिलानी चाहिए.’

रंजना के अंदर का तार झंकृत हो उठा. बोली, वह निबंध तो आप का था, बधाई आप को मिलनी चाहिए.’

चेतन ने मुसकराते हुए कहा, ‘यह कह कर मेरी मिठाई मत मारिए, वह पक्की रही, क्यों?’

रंजना ने चेतन की ओर देख कर  निगाह नीची कर ली. पर वह मन ही  मन चाह रही थी कि वे कुछ कहें. लेकिन चेतन को किसी से मिलना था. वे चले आए और रंजना खोई सी खड़ी रही.

इस के तीसरे दिन रंजना की वर्षगांठ थी. अगले दिन वह कालेज से सीधी चेतन के होस्टल गई. चेतन वहां नहीं थे. थोड़ी देर उन्होंने राह देखी और फिर एक परचे पर लिखा, ‘कल मेरी वर्षगांठ है. आप जरूर आइएगा. मुझे बड़ी खुशी होगी. मुझे ही क्यों, सारे घर को अच्छा लगेगा. मैं राह देखूंगी, रंजना.’

उस के जाने के बाद चेतन लौटे तो उन्हें रंजना का नोट मिला, जिसे पढ़ कर उन्होंने रंजना के मन में झांकने के कोशिश की. थोड़ी ऊहापोह के बाद उन्होंने सोचा कि हो न हो, वह उन के नजदीक आना चाहती हो. क्या यह उचित होगा?

तभी उन्हें मां की बात याद आई, ‘इंसान की सब से बड़ी दौलत उस का चरित्र है.’ वे सोचने लगे, लेकिन चरित्र का अर्थ क्या है? मन का संयम. चरित्रवान वही है जो अपने को वश में रखता है. उन्होंने अपने मन को टटोला. रंजना के प्रति उन के मन में सहानुभूति थी, वासना का लेशमात्र भी नहीं था. वे बुदबुदाए, ‘तब मुझे वहां जरूर जाना चाहिए.’

वर्षगांठ के दिन उपहार में एक पुस्तक ले कर वे रंजना के घर गए. रंजना उन्हें देख कर बड़ी खुश हुई. उस ने उन्हें अपने मातापिता से मिलवाया. चेतन जितनी देर रहे, रंजना उन के आसपास चक्कर लगाती रही. आयोजन छोटा सा था, ज्यादातर घर के लोग थे. खापी कर चेतन चले आए.

इस के बाद रंजना उन से 2-3 बार मिली. पर मारे संकोच के वह मन की बात उन से कह न पाई. उस के लिए जिस साहस की जरूरत थी वह रंजना में नहीं था.

चेतन की पढ़ाई पूरी हो गई. परीक्षा भी समाप्त हो गई. जिस शाम को वे घर के लिए रवाना होने वाले थे, रंजना उन के पास आई. उस ने चेतन के पैर छुए और बिना उस के कुछ कहे कुरसी पर बैठ गई. वह अपने मन को पूरी तरह खोल कर उन के सामने रख देने का संकल्प कर के आई थी. उस ने कहना आरंभ किया, ‘अब आगे आप का क्या विचार है?’

‘घर जा रहा हूं. जैसा पिताजी कहेंगे, करूंगा,’ चेतन ने मुसकरा कर कहा, ‘पर आप का इरादा क्या है?’

रंजना जानती थी कि पढ़ाई पूरी हो जाने पर लड़कियों का क्या भविष्य होता है. पर उस ने वह कहा नहीं. बस, इतना बोली, ‘अभी कुछ सोचा नहीं है.’

चेतन ने मुक्तभाव से कहा, ‘पढ़ाई पूरी हो गई. अब आप को क्या सोचना है. वह काम तो आप के मातापिता करेंगे.’

यह सुन कर रंजना का चेहरा आरक्त हो गया. धरती को पैर के नाखून से कुरेदती हुई बोली, ‘क्या यह संभव हो सकता है…?’ आगे के शब्द उस के होंठों के पीछे रह गए. चेतन ने उसे आगे कुछ भी कहने को मौका न दिया. बोले, ‘रंजनाजी, आप को एक भाई चाहिए था, मुझे एक बहन की जरूरत थी. हालात और वक्त ने दोनों की इच्छा पूरी कर दी. क्यों, है न?’ चेतन के चेहरे पर इतनी सात्विकता थी और शब्दों में इतनी निश्छलता कि रंजना भीतर से भीग सी गई. उसे ऐसा लगा, मानो चेतन ने उसे गंगा की निर्मल धारा मेें डुबकी लगवा कर उस के तप्त हृदय को शीतल कर दिया हो. वह भारी मन ले कर आई थी, हलका मन ले कर लौटी.

बात बहुत पुरानी थी, लेकिन शाम को अपने बंगले के बरामदे में कुरसी पर बैठे चेतन अतीत की याद में ऐसा खो गए कि उन्हें पता भी न चला कि कब शाम बीत गई और कब उन का सेवक आ कर बत्ती जला गया. उन के मन में आनंद हिलोरें ले रहा था. जीवन के रणक्षेत्र की इस विजय से उन का रोमरोम पुलकित हो रहा था.

Family Story: सैल्फी – निशि को हर वक्त अपनी बेटी की चिंता क्यों रहती थी?

Family Story: निशिपत्रिका के पेज पलटे जा रही थी, परंतु कनखियों से बेटी कुहू को देखे जा रही थीं. आधे घंटे से कुहू अपने फोन पर कुछ कर रही थी. देखतेदेखते निशि अपना धैर्य खो बैठीं तो डांटते हुए बोलीं, ‘‘कुहू, क्यों अपना भविष्य अंधकारमय कर रही हो? हर समय फोन से खेलती रहती हो… आखिर तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या होगा? यदि नंबर अच्छे नहीं आए तो किसी अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिलेगा,’’ और उन्होंने उस के हाथ से फोन छीन लिया.

‘‘मम्मा, देखो भी मैं ने फेसबुक पर अपनी सैल्फी पोस्ट की थी. 100 लाइक्स थोड़ी सी देर में ही मिल गए और कौमैंट तो देखिए, मजा आ गया. कोई हौट, लिख रहा है, तो कोई सैक्सी… यह तो कमाल हो गया,’’ कह कुहू प्यार से मां से लिपट गई.

‘‘कुहू छोड़ो भी मुझे… तुम तो पागल कर के छोड़ोगी… फेसबुक पर अपना फोटो क्यों डाला?’’

‘‘तो क्या हुआ? मेरी सारी फ्रैंड्स डालती हैं, तो मेरा भी मन हो आया.’’

‘‘अच्छा, अब बहुत हो गया. उसे तुरंत डिलीट कर दो.’’

‘‘मम्मा, आप पहले कमैंट्स तो पढ़ो, मजा आ जाएगा.’’

‘‘उफ, तुम्हें कब अक्ल आएगी,’’ निशि सिर पर हाथ रख कर बैठ गईं.

तभी निधि की सास सुषमाजी कमरे में घुसती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ निशि, क्यों बेटी को डांट रही हो? क्या किया इस ने?’’

‘‘मम्मीजी, आप इसे समझाती क्यों नहीं. इस ने फेसबुक पर अपना फोटो डाला है. 18 साल की हो चुकी है, लेकिन बातें हर समय बच्चों वाली करती है… आजकल समय बहुत खराब है.’’

‘‘निशि, मैं तुम्हें बारबार समझाती हूं… पर तुम कुछ ज्यादा ही इसे ले कर परेशान रहती हो.’’

‘‘क्या करूं मम्मीजी, टीवी, पत्रपत्रिकाएं सभी लड़कियों के साथ होने वाले अत्याचारों से भरे होते हैं. अब तो हद हो गई है… रास्ते में चलती लड़कियों को कार वाले खींच कर ले जाते हैं… अपनी दिल्ली अब लड़कियों के लिए कतई सुरक्षित नहीं रह गई है. जब से दामिनी वाला हादसा हुआ है मेरा तो दिल हर समय डर से कांपता रहता है.

‘‘कल शाम को मेरी सहेली पूजा आई थी. कह रही थी कि उस का मैनेजर उसे रोज शाम को काम के बहाने रोक लेता था और फिर कभी कौफी, तो कभी डिनर के लिए चलने को कहता. फिर एक दिन तो उस ने उस का हाथ भी पकड़ लिया. बस उसी दिन से इस्तीफा दे कर वह घर बैठ गई. अब दूसरी नौकरी ढूंढ़ रही है.

‘‘मम्मीजी, हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे होते जा रहे हैं… 2-3 दिन पहले मुंबई से ईशा का फोन आया था कि जूनियर लोगों की प्रोमोशन होती जा रही है, परंतु उस की प्रोमोशन रुकी हुई है, क्योंकि वह लड़की है… लड़के अपने बौस की विदेशी दारू से सेवा करते हैं… लड़की हो तो उन की डिमांड को समझो… मम्मीजी, मुझे अपनी कुहू को देख कर बहुत डर लगता है.’’

‘‘निशि, जो डरा सो मरा. इसलिए बहादुरी से जीवन जीओ… सब की लड़कियां बड़ी होती हैं और लड़के भी बड़े होते हैं. उसे अपने पास बैठा कर अच्छेबुरे की पहचान करना सिखाओ.

‘‘यदि उस ने फेसबुक पर फोटो पोस्ट कर दिया तो इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. आजकल सभी बच्चे ये सब करते रहते हैं.’’

छोटे शहर और साधारण परिवार से संबंध रखने वाली निशि अपनी सुंदरता के कारण नेताजी के लड़के साथ ब्याह कर दिल्ली जैसे महानगर में आ गई थीं. नेताजी कपड़ों की तरह पार्टियां बदलते रहते और उन का बेटा रंगीनमिजाज नीरज सुरा और साकी दोनों ही बदलता रहता. इन सब कारणों से वह अपनी बेटी के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं.

‘‘मम्मीजी, कुहू कुछ समझने को ही तैयार नहीं… अपने कमरे में शीशे के सामने मेकअप करेगी, म्यूजिक चैनल पर डांस देखदेख कर वैसे ही डांस करती है.’’

‘‘निशि, तुम समझदार बनो… यह तो उस की उम्र है. इस समय मस्ती नहीं करेगी तो कब करेगी? तुम अपना भूल गई… तुम भी अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ फिल्मी पत्रिकाएं और फैशन की बातें छिपछिप कर करती रही होंगी.’’

‘‘मम्मीजी, आप सही कह रही हैं, मैं भी एक बार स्कूल कट कर पिक्चर देखने गई थी…’’

‘‘नीरज कह रहे हैं कि यह को-एड कालेज में ही पढ़ेगी. आप क्यों नहीं मना करती हैं? यह इतनी सुंदर है और साथ ही भोली और नाजुक भी है. कैसे लड़कों की निगाहों को झेल पाएगी?’’

‘‘माई डियर मम्मा, लो गरमगरम चाय पीओ. मैं ने बनाई है. आप खुश रहा करो… तब आप बहुत प्यारी लगती हो. आप की बेटी किसी भी लफड़े में नहीं पड़ेगी, इतना तो आप पक्का समझो.’’ कह कुहू अंदर चली गई.

‘‘निशि, मैं तुम्हारे दर्द को समझ सकती हूं कि तुम नीरज के रोजरोज के नएनए स्कैंडल से परेशान रहती हो, परंतु बेटी सब से अच्छा उपाय है कि तुम अपनी बेटी पर विश्वास करो. मैं ने भी तुम्हारे पापाजी की राजनीति में रहने के कारण बड़ी विषम परिस्थितियों को झेला है.’’

तभी निशि की बचपन की सहेली स्नेहा आ गई. बोली, ‘‘क्या बात है, चाय पर सासबहू में क्या चर्चा हो रही है?’’

सुषमाजी उठती हुई बोलीं, ‘‘मेरी तो मीटिंग है, इसलिए मैं चलती हूं… अपनी सहेली को समझा कर जाना.’’

‘‘कुहू, स्नेहा के लिए 1 कप चाय बना दो.’’

‘‘नो मम्मा. मेरा आज का चाय बनाने का कोटा फिनिश हो गया… अब मैं स्नेहा आंटी से बातें करूंगी.’’

स्नेहा एक कंपनी में मार्केटिंग हैड है, इसलिए निशि हमेशा उसे अपना आदर्श मानती हैं और अपने दिल का बोझ उस के सामने हलका कर लिया करती हैं.

स्नेहा ने कुहू को प्यार से गले लगाते हुए कहा, ‘‘माई स्वीटी, लुकिंग वैरी नाइस.’’

‘‘थैंक्यू आंटी. मम्मा ने तो मुझे परेशान कर रखा है.’’

‘‘क्या हुआ? निशि बड़ी परेशान दिख रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं… यह बड़ी हो रही है… इसे वही समझाने की कोशिश करती रहती हूं, पर इस ने तो मानो न समझने का प्रण कर रखा है.’’

‘‘दिन भर टीवी पर रेप की खबरें देखदेख कर जी दहल जाता है. जराजरा सी बात पर मुंह पर ऐसिड फेंक देते हैं.’’

‘‘निशि, सड़क पर ऐक्सीडैंट हो जाते हैं, यह सोच कर न तो गाडि़यां चलनी बंद होती हैं और न ही इनसानों का चलना. हर समय परेशान रहने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता… कुहू को अपनी सुरक्षा के लिए जूडोकराटे क्लास जौइन कराओ.’’

‘‘आंटी, मम्मा तो चाहती हैं कि मैं रातदिन किताबों के सामने से न हटूं… बताइए क्या यह संभव है? बालकनी में खड़ी हो कर बाल सुलझाने लगूं तो लंबा लैक्चर दे डालेंगी. यदि किसी दिन ट्यूशन से आने में 5 मिनट की भी देरी हो जाए तो हंगामा कर देंगी… आंटी, मेरी सारी फ्रैंड्स के बौयफ्रैंड हैं. सब साथ मूवी देखने जाते हैं, कैफे जाते हैं… खूब मस्ती करते हैं. लेकिन मैं कहीं नहीं जा सकती… सब मेरा मजाक उड़ाते हैं कि मम्माज डौटर.’’

निशि किसी काम से अंदर गई हुई थीं.

‘‘आंटी, मुझे तो खुद ही लड़कों से दोस्ती ज्यादा पसंद नहीं है, लेकिन हर समय टोकाटाकी से मैं परेशान हो जाती हूं,’’ कुहू की आंखें भर आई थीं.

तभी निशि कमरे में आ गईं. वे कुहू को डांटते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी शिकायतें पूरी हो गई हों तो जाओ… तुरंत पढ़ने बैठ जाओ.’’

‘‘मम्मा, प्लीज ठहरिए. मुझे आंटी से बात कर लेने दीजिए. मैं 15 मिनट बाद जा कर पढ़ने बैठ जाऊंगी.’’

स्नेहा प्यार से कुहू के सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘कुहू, अपने कालेज फ्रैंड़स के बारे में बताओ?’’

कुहू ने चुपके से निशि की ओर इशारा किया तो स्नेहा बोलीं, ‘‘निशि चाय पीने का मन है… चाय बना लाओ.’’

मजबूरन निशि को वहां से जाना पड़ा.

निशि के जाते ही कुहू बोली, ‘‘आंटी, मम्मा मुझ पर शक करती हैं… मेरे फोन के मैसेज छिपछिप कर चैक करती हैं… मेरा लैपटौप खंगालती रहती हैं.’’

‘‘यह तो गलत बात है. अपनी बेटी पर शक नहीं करना चाहिए.’’

‘‘आंटी, एक मजे की बात बताऊं? मैं ने अपना फोटो पोस्ट किया तो मुझे 50 फ्रैंड रिक्वैस्ट आईं… मैं ने भी मस्ती के लिए एक को क्लिक कर चैटिंग करने लगी… उस ने लिखा था कि तुम बहुत सुंदर हो… मुझ से दोस्ती करोगी? मैं ने जवाब में लिखा कि मैं तो बहुत भद्दीमोटी और काली हूं… आई एम टोटली अगली गर्ल… इसलिए मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं है. इस पर उस ने लिखा कि फिर भी मैं तुम से दोस्ती करूंगा, क्योंकि तुम लड़की तो हो ही… मस्ती के लिए लड़की चाहिए… गोरीकाली कोई भी चलेगी… बताओ कल शाम 5 बजे कहां मिलोगी?

‘‘आंटी, मुझे बहुत गुस्सा आया. अत: मैं ने लिख दिया कि मस्ती के लिए गंदे नाले में डूब मरो.

‘‘आंटी, मैं मम्मा से कहती हूं, पुरातनपंथी बातें छोड़ कर मेरी तरह मौडर्न बनो. मुझ से मेरी कालेज की बातें सुना करो, पर वे मुझे डांट देती हैं.’’

‘‘तुम्हारे पापा के स्कैंडल्स की वजह से वे परेशान रहती हैं.’’

‘‘हां, मैं समझती हूं… इसीलिए तो मैं उन्हें और भी हंसाना और खुश रखना चाहती हूं.’’

छोटी सी लड़की के दिमाग में इतना कुछ भरा हुआ है, सोच कर स्नेहा को बहुत अच्छा लग रहा था.

‘‘आंटी, परसों मेरा बर्थडे था… मम्मीपापा रात को डिनर के लिए बाहर ले जा रहे थे… मैं ने जींस के साथ शौर्ट टौप पहना… बस मम्मा ने डांटना शुरू कर दिया कि टौप बहुत छोटा है… तेरा पेट दिखाई दे रहा है. फिर पापा ही बोले कि ठीक है निशि, बच्ची है हर बात में टोका न करो.’’

निशि ने कुहू की बात सुन ली थी. आगे क्यों नहीं बताया कि मौल में किसी लड़के ने कुहनी मारी… फिर पापा से लड़ाई होने लगी… वह तो मौल के गार्ड के बीचबचाव से मामला शांत हो गया… मेरा तो मूड ही खराब हो गया था.

‘‘आप मम्मा को समझाइए कि अब मैं बड़ी हो गई हूं. चौकलेट मुझे पसंद है, इसलिए खाती हूं. जैसे ही मैं ड्रैसअप होती हूं, मुझे देखते ही डांटना शुरू कर देती हैं कि फिर तुम ने इस टौप को पहन लिया… कानों में ये क्या लटका लिए… किस के साथ जा रही हो? कहां जा रही हो? कब आओगी…? मेरी सारी फ्रैंड्स मेरा मजाक उड़ाती हैं.

‘‘भैया सारे घर में तौलिया पहन कर घूमता रहेगा… कोई कुछ नहीं बोलेगा. सारी बंदिशें मेरे लिए ही. स्लीवलैस टौप नहीं पहनोगी, शौर्ट्स नहीं पहनोगी, लिपस्टिक क्यों लगा ली? किस का फोन था? किस का मैसेज था? किस के संग बैठ कर पढ़ोगी… जैसे उन के हजार प्रश्नों से मैं तंग हो चुकी हूं. प्लीज आंटी मम्मा को समझाइए.’’

निशि के कमरे में घुसते ही कुहू पल भर में वहां से उड़नछू हो गई थी पर आंखोंआंखों से स्नेहा से रिक्वैस्ट कर गई थी.

‘‘निशि तुम ने चाय बहुत अच्छी बनाई है… क्या बात है, तुम्हारे चेहरे पर परेशानी और चिंता झलक रही है?’’

‘‘स्नेहा, मैं कुहू के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित हूं. नीरज को तो जानती ही हो, उन की अपनी दुनिया है, इसलिए हर पल मैं किसी अनिष्ट की आशंका से डरती रहती हूं.’’

‘‘ऐसा भी क्या है? अच्छीभली है तुम्हारी बेटी… पढ़ने में होशियार है… समझदार है… सुंदर है. तुम्हारे पास पैसा भी है. फिर किस बात का डर तुम्हें सताता रहता है?’’

‘‘मेरे घर का माहौल तो तुम जानती ही हो. पापाजी नेता हैं. सैकड़ों लोग आतेजाते रहते हैं… उन के कुछ दोस्त अकसर आते हैं, जिन्हें कुहू दादू कहती है… यह उन के पास बैठ कर बातें करती है, ठहाके लगाती है तो मेरा खून खौल उठता है… घर में पीनेपिलाने वाली पार्टियां होती रहती हैं… बापबेटा दोनों साथ बैठ कर पीते हैं. मैं अपने मन का डर आखिर किस से कहूं? अगले साल इसे अच्छे कालेज में दाखिला मिल जाए, तो होस्टल भेज दूंगी… मगर होस्टल का नाम सुनते ही मुझ से चिपक कर सिसकने लगती है.

‘‘जब टीवी या पेपर में रेप या ऐसिड अटैक की घटना सुनती हूं तो डर से कांपने लगती हूं. ऐसा मन करता है इसे अपने पल्लू में छिपा लूं. लेकिन ऐसा संभव नहीं है… इसे पढ़नालिखना है, भविष्य में आगे बढ़ना है, अपने पैरों पर खड़े होना है…’’

‘‘निशि, जब तुम ये सब समझती हो तो क्यों परेशान रहती हो?’’

‘‘जैसे ही मैं इसे डांटती हूं तो तुरंत मुझे जवाब देती है कि मम्मा आप बैकवर्ड हो… आप से अच्छी तो दादी हैं… वे मौडर्न हैं… आप मुझ से न जाने क्या चाहती हैं? ऐसा मन करता है कि एक दिन इस की पिटाई कर दूं.’’ एक ओर मासूम कुहू की बातें तो दूसरी ओर निशि के दिल का डर, सब कुछ मन में गड्डमड्ड होने लगा था. दोनों अपनीअपनी जगह सही थीं. फिर स्नेहा निशि का हाथ अपने हाथ में ले कर बोलीं, ‘‘निशि, मैं तुम्हारे डर को महसूस कर रही हूं… हर मां इस दौर से गुजरती है. मेरी भी बेटी बड़ी हो रही है. जब वह ड्राइवर के साथ गाड़ी में स्कूल जाती है, तो मुझे भी मन में बुरेबुरे खयाल आते हैं, लेकिन स्कूल भेजना बंद तो नहीं हो जाएगा? कुहू उम्र के ऐसे दौर में है जब सब कुछ इंद्रधनुष की तरह आकर्षक और सतरंगा दिखाई पड़ता है.

‘‘आजकल के बच्चे हम लोगों से ज्यादा होशियार और समझदार हैं… सब से पहली बात यह कि अपनी बेटी पर विश्वास करो. अपने मन से शक का कीड़ा निकाल फेंको.

‘‘तुम दिन भर घर में रहती हो. नीरज की अपनी दुनिया है. इन सब कारणों से तुम्हारे मन में नकारात्मक विचारों ने अपना घर बना लिया है… तुम्हें इस से उबरना पड़ेगा… तुम घर से बाहर निकलो. अनेक हौबी क्लासेज है… अपनी रुचि की क्लास जौइन कर लो… तुम्हें पहले घर सजाने का बड़ा शौक था… तुम इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स जौइन करो. इस समय तुम खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत को चरितार्थ कर रही हो.

‘‘जब तुम रोज घर से निकलोगी. 10-20 लोगों से मिलोगी, उन की समस्याओं और बातों को सुनोगी तो तुम्हें समझ में आएगा कि दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है. अपने को व्यस्त रखोगी तो दिन भर कुहू के लिए होने वाली चिंता अपनेआप कम हो जाएगी.

‘‘तुम कुहू की सहेली बनने का प्रयास करो. वह 21वीं शताब्दी की लड़की है. वह अपने भविष्य के लिए पूरी तरह जागरूक है.

‘‘मेरी वह निशि कहां खो गई है, जो बड़ीबड़ी बहसों में सब को हरा कर प्रथम आती थी? यदि मेरी बात कुछ समझ में आई हो तो दोनों मांबेटी मिल कर फेसबुक के कौमैंट्स पर ठहाके लगा कर देखो, कितना मजा आता है. अच्छा निशि, बातों में समय का पता ही नहीं लगा… चलती हूं… किसी दिन मेरे घर आना.’’

पीछेपीछे कुहू भागती हुई आई… शायद वह हम दोनों की बातें सुन रही थी. उस की आंखों की मासूम चमक देख अच्छा लग रहा था. वह मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में फुसफुसाई, ‘‘थैंक्स आंटी.’’

Family Story: अंदाज – रंजना पार्टी को लेकर क्यों परेशान थी?

Family Story: ‘‘जब 6 बजे के करीब मोहित ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस ने अपने परिवार वालों का मूड एक बार फिर से खराब पाया.

अपने सहयोगियों के दबाव में आ कर रंजना ने अपने पति मोहित को फोन किया, ‘‘ये सब लोग कल पार्टी देने की मांग कर रहे हैं. मैं इन्हें क्या जवाब दूं?’’

‘‘मम्मीपापा की इजाजत के बगैर किसी को घर बुलाना ठीक नहीं रहेगा,’’ मोहित की आवाज में परेशानी के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘फिर इन की पार्टी कब होगी?’’

‘‘इस बारे में रात को बैठ कर फैसला करते हैं.’’

‘‘ओ.के.’’

रंजना ने फोन काट कर मोहित का फैसला बताया तो सब उस के पीछे पड़ गए, ‘‘अरे, हम मुफ्त में पार्टी नहीं खाएंगे. बाकायदा गिफ्ट ले कर आएंगे, यार.’’

‘‘अपनी सास से इतना डर कर तू कभी खुश नहीं रह पाएगी,’’ उन लोगों ने जब इस तरह का मजाक करते हुए रंजना की खिंचाई शुरू की तो उसे अजीब सा जोश आ गया. बोली, ‘‘मेरा सिर खाना बंद करो. मेरी बात ध्यान से सुनो. कल रविवार रात 8 बजे सागर रत्ना में तुम सब डिनर के लिए आमंत्रित हो. कोई भी गिफ्ट घर भूल कर न आए.’’ रंजना की इस घोषणा का सब ने तालियां बजा कर स्वागत किया था.

कुछ देर बाद अकेले में संगीता मैडम ने उस से पूछा, ‘‘दावत देने का वादा कर के तुम ने अपनेआप को मुसीबत में तो नहीं फंसा लिया है?’’

‘‘अब जो होगा देखा जाएगा, दीदी,’’ रंजना ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अगर घर में टैंशन ज्यादा बढ़ती लगे तो मुझे फोन कर देना. मैं सब को पार्टी कैंसल हो जाने की खबर दे दूंगी. कल के दिन बस तुम रोनाधोना बिलकुल मत करना, प्लीज.’’

‘‘जितने आंसू बहाने थे, मैं ने पिछले साल पहली वर्षगांठ पर बहा लिए थे दीदी. आप को तो सब मालूम ही है.’’

‘‘उसी दिन की यादें तो मुझे परेशान कर रही हैं, माई डियर.’’

‘‘आप मेरी चिंता न करें, क्योंकि मैं साल भर में बहुत बदल गई हूं.’’

‘‘सचमुच तुम बहुत बदल गई हो, रंजना? सास की नाराजगी, ससुर की डांट या ननद की दिल को छलनी करने वाली बातों की कल्पना कर के तुम आज कतई परेशान नजर नहीं आ रही हो.’’

‘‘टैंशन, चिंता और डर जैसे रोग अब मैं नहीं पालती हूं, दीदी. कल रात दावत जरूर होगी. आप जीजाजी और बच्चों के साथ वक्त से पहुंच जाना,’’ कह रंजना उन का कंधा प्यार से दबा कर अपनी सीट पर चली गई. रंजना ने बिना इजाजत अपने सहयोगियों को पार्टी देने का फैसला किया है, इस खबर को सुन कर उस की सास गुस्से से फट पड़ीं, ‘‘हम से पूछे बिना ऐसा फैसला करने का तुम्हें कोई हक नहीं है, बहू. अगर यहां के कायदेकानून से नहीं चलना है, तो अपना अलग रहने का बंदोबस्त कर लो.’’

‘‘मम्मी, वे सब बुरी तरह पीछे पड़े थे. आप को बहुत बुरा लग रहा है, तो मैं फोन कर के सब को पार्टी कैंसल करने की खबर कर दूंगी,’’ शांत भाव से जवाब दे कर रंजना उन के सामने से हट कर रसोई में काम करने चली गई. उस की सास ने उसे भलाबुरा कहना जारी रखा तो उन की बेटी महक ने उन्हें डांट दिया, ‘‘मम्मी, जब भाभी अपनी मनमरजी करने पर तुली हुई हैं, तो तुम बेकार में शोर मचा कर अपना और हम सब का दिमाग क्यों खराब कर रही हो? तुम यहां उन्हें डांट रही हो और उधर वे रसोई में गाना गुनगुना रही हैं. अपनी बेइज्जती कराने में तुम्हें क्या मजा आ रहा है?’’ अपनी बेटी की ऐसी गुस्सा बढ़ाने वाली बात सुन कर रंजना की सास का पारा और ज्यादा चढ़ गया और वे देर तक उस के खिलाफ बड़बड़ाती रहीं.

रंजना ने एक भी शब्द मुंह से नहीं निकाला. अपना काम समाप्त कर उस ने खाना मेज पर लगा दिया. ‘‘खाना तैयार है,’’ उस की ऊंची आवाज सुन कर सब डाइनिंगटेबल पर आ तो गए, पर उन के चेहरों पर नाराजगी के भाव साफ नजर आ रहे थे. रंजना ने उस दिन एक फुलका ज्यादा खाया. उस के ससुरजी ने टैंशन खत्म करने के इरादे से हलकाफुलका वार्त्तालाप शुरू करने की कोशिश की तो उन की पत्नी ने उन्हें घूर कर चुप करा दिया. रंजना की खामोशी ने

झगड़े को बढ़ने नहीं दिया. उस की सास को अगर जरा सा मौका मिल जाता तो वे यकीनन भारी क्लेश जरूर करतीं. महक की कड़वी बातों का जवाब उस ने हर बार मुसकराते हुए मीठी आवाज में दिया.

शयनकक्ष में मोहित ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की, ‘‘किसी और की न सही पर तुम्हें कोई भी फैसला करने से पहले मेरी इजाजत तो लेनी ही चाहिए थी. मैं कल तुम्हारे साथ पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा.’’

‘‘तुम्हारी जैसी मरजी,’’ रंजना ने शरारती मुसकान होंठों पर सजा कर जवाब दिया और फिर एक चुंबन उस के गाल पर अंकित कर बाथरूम में घुस गई. रात ठीक 12 बजे रंजना के मोबाइल के अलार्म से दोनों की नींद टूट गई.

‘‘यह अलार्म क्यों बज रहा है?’’ मोहित ने नाराजगी भरे स्वर में पूछा.

‘‘हैपी मैरिज ऐनिवर्सरी, स्वीट हार्ट,’’ उस के कान के पर होंठों ले जा कर रंजना ने रोमांटिक स्वर में अपने जीवनसाथी को शुभकामनाएं दीं. रंजना के बदन से उठ रही सुगंध और महकती सांसों की गरमाहट ने चंद मिनटों में जादू सा असर किया और फिर अपनी नाराजगी भुला कर मोहित ने उसे अपनी बांहों के मजबूत बंधन में कैद कर लिया. रंजना ने उसे ऐसे मस्त अंदाज में जी भर कर प्यार किया कि पूरी तरह से तृप्त नजर आ रहे मोहित को कहना ही पड़ा, ‘‘आज के लिए एक बेहतरीन तोहफा देने के लिए शुक्रिया, जानेमन.’’

‘‘आज चलोगे न मेरे साथ?’’ रंजना ने प्यार भरे स्वर में पूछा.

‘‘पार्टी में? मोहित ने सारा लाड़प्यार भुला कर माथे में बल डाल लिए.’’

‘‘मैं पार्क में जाने की बात कर रही हूं, जी.’’

‘‘वहां तो मैं जरूर चलूंगा.’’

‘‘आप कितने अच्छे हो,’’ रंजना ने उस से चिपक कर बड़े संतोष भरे अंदाज में आंखें मूंद लीं. रंजना सुबह 6 बजे उठ कर बड़े मन से तैयार हुई. आंखें खुलते ही मोहित ने उसे सजधज कर तैयार देखा तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल,’’ अपने जीवनसाथी के मुंह से ऐसी तारीफ सुन कर रंजना का मन खुशी से नाच उठा. खुद को मस्ती के मूड में आ रहे मोहित की पकड़ से बचाते हुए रंजना हंसती हुई कमरे से बाहर निकल गई.  उस ने पहले किचन में जा कर सब के लिए चाय बनाई, फिर अपने सासससुर के कमरे में गई और दोनों के पैर छू कर आशीर्वाद लिया.  चाय का कप हाथ में पकड़ते हुए उस की सास ने चिढ़े से लहजे में पूछा, ‘‘क्या सुबहसुबह मायके जा रही हो, बहू?’’

‘‘हम तो पार्क जा रहे हैं मम्मी,’’ रंजना ने बड़ी मीठी आवाज में जवाब दिया. सास के बोलने से पहले ही उस के ससुरजी बोल पड़े, ‘‘बिलकुल जाओ, बहू. सुबहसुबह घूमना अच्छा रहता है.’’

‘‘हम जाएं, मम्मी?’’

‘‘किसी काम को करने से पहले तुम ने मेरी इजाजत कब से लेनी शुरू कर दी, बहू?’’ सास नाराजगी जाहिर करने का यह मौका भी नहीं चूकीं.

‘‘आप नाराज न हुआ करो मुझ से, मम्मी. हम जल्दी लौट आएंगे,’’ किसी किशोरी की तरह रंजना अपनी सास के गले लगी और फिर प्रसन्न अंदाज में मुसकराती हुई अपने कमरे की तरफ चली गई. वह मोहित के साथ पार्क गई जहां दोनों के बहुत से साथी सुबह का मजा ले रहे थे. फिर उस की फरमाइश पर मोहित ने उसे गोकुल हलवाई के यहां आलूकचौड़ी का नाश्ता कराया. दोनों की वापसी करीब 2 घंटे बाद हुई. सब के लिए वे आलूकचौड़ी का नाश्ता पैक करा लाए थे. लेकिन यह बात उस की सास और ननद की नाराजगी खत्म कराने में असफल रही थी.

दोनों रंजना से सीधे मुंह बात नहीं कर रही थीं. ससुरजी की आंखों में भी कोई चिंता के भाव साफ पढ़ सकता था. उन्हें अपनी पत्नी और बेटी का व्यवहार जरा भी पसंद नहीं आ रहा था, पर चुप रहना उन की मजबूरी थी. वे अगर रंजना के पक्ष में 1 शब्द भी बोलते, तो मांबेटी दोनों हाथ धो कर उन के पीछे पड़ जातीं. सजीधजी रंजना अपनी मस्ती में दोपहर का भोजन तैयार करने के लिए रसोई में चली आई. महक ने उसे कपड़े बदल आने की सलाह दी तो उस ने इतराते हुए जवाब दिया, ‘‘दीदी, आज तुम्हारे भैया ने मेरी सुंदरता की इतनी ज्यादा तारीफ की है कि अब तो मैं ये कपड़े रात को ही बदलूंगी.’’

‘‘कीमती साड़ी पर दागधब्बे लग जाने की चिंता नहीं है क्या तुम्हें?’’

‘‘ऐसी छोटीमोटी बातों की फिक्र करना अब छोड़ दिया है मैं ने, दीदी.’’

‘‘मेरी समझ से कोई बुद्धिहीन इनसान ही अपना नुकसान होने की चिंता नहीं करता है,’’ महक ने चिढ़ कर व्यंग्य किया.

‘‘मैं बुद्धिहीन तो नहीं पर तुम्हारे भैया के प्रेम में पागल जरूर हूं,’’ हंसती हुई रंजना ने अचानक महक को गले से लगा लिया तो वह भी मुसकराने को मजबूर हो गई. रंजना ने कड़ाही पनीर की सब्जी बाजार से मंगवाई और बाकी सारा खाना घर पर तैयार किया.

‘‘आजकल की लड़कियों को फुजूलखर्ची की बहुत आदत होती है. जो लोग खराब वक्त के लिए पैसा जोड़ कर नहीं रखते हैं, उन्हें एक दिन पछताना पड़ता है, बहू,’’ अपनी सास की ऐसी सलाहों का जवाब रंजना मुसकराते हुए उन की हां में हां मिला कर देती रही. उस दिन उपहार में रंजना को साड़ी और मोहित को कमीज मिली. बदले में उन्होंने महक को उस का मनपसंद सैंट, सास को साड़ी और ससुरजी को स्वैटर भेंट किया. उपहारों की अदलाबदली से घर का माहौल काफी खुशनुमा हो गया था. यह सब को पता था कि सागर रत्ना में औफिस वालों की पार्टी का समय रात 8 बजे का है. जब 6 बजे के करीब मोहित ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस ने अपने परिवार वालों का मूड एक बार फिर से खराब पाया.

‘‘तुम्हें पार्टी में जाना है तो हमारी इजाजत के बगैर जाओ,’’ उस की मां ने उस पर नजर पड़ते ही कठोर लहजे में अपना फैसला सुना दिया.

‘‘आज के दिन क्या हम सब का इकट्ठे घूमने जाना अच्छा नहीं रहता, भैया?’’ महक ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘रंजना ने पार्टी में जाने से इनकार कर दिया है,’’ मोहित के इस जवाब को सुन वे तीनों ही चौंक पड़े.

‘‘क्यों नहीं जाना चाहती है बहू पार्टी में?’’ उस के पिता ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘उस की जिद है कि अगर आप तीनों साथ नहीं चलोगे तो वह भी नहीं जाएगी.’’

‘‘आजकल ड्रामा करना बड़ी अच्छी तरह से आ गया है उसे,’’ मम्मी ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की. मोहित आंखें मूंद कर चुप बैठ गया. वे तीनों बहस में उलझ गए.

‘‘हमें बहू की बेइज्जती कराने का कोई अधिकार नहीं है. तुम दोनों साथ चलने के लिए फटाफट तैयार हो जाओ वरना मैं इस घर में खाना खाना छोड़ दूंगा,’’ ससुरजी की इस धमकी के बाद ही मांबेटी तैयार होने के लिए उठीं. सभी लोग सही वक्त पर सागर रत्ना पहुंच गए. रंजना के सहयोगियों का स्वागत सभी ने मिलजुल कर किया. पूरे परिवार को यों साथसाथ हंसतेमुसकराते देख कर मेहमान मन ही मन हैरान हो उठे थे.

‘‘कैसे राजी कर लिया तुम ने इन सभी को पार्टी में शामिल होने के लिए?’’ संगीता मैडम ने एकांत में रंजना से अपनी उत्सुकता शांत करने को आखिर पूछ ही लिया. रंजना की आंखों में शरारती मुसकान की चमक उभरी और फिर उस ने धीमे स्वर में जवाब दिया, ‘‘दीदी, मैं आज आप को पिछले 1 साल में अपने अंदर आए बदलाव के बारे में बताती हूं. शादी की पहली सालगिरह के दिन मैं अपनी ससुराल वालों के रूखे व कठोर व्यवहार के कारण बहुत रोई थी, यह बात तो आप भी अच्छी तरह जानती हैं.’’

‘‘उस रात को पलंग पर लेटने के बाद एक बड़ी खास बात मेरी पकड़ में आई थी. मुझे आंसू बहाते देख कर उस दिन कोई मुसकरा तो नहीं रहा था, पर मुझे दुखी और परेशान देख कर मेरी सास और ननद की आंखों में अजीब सी संतुष्टि के भाव कोई भी पढ़ सकता था. ‘‘तब मेरी समझ में यह बात पहली बार आई कि किसी को रुला कर व घर में खास खुशी के मौकों पर क्लेश कर के भी कुछ लोग मन ही मन अच्छा महसूस करते हैं. इस समझ ने मुझे जबरदस्त झटका लगाया और मैं ने उसी रात फैसला कर लिया कि मैं ऐसे लोगों के हाथ की कठपुतली बन अपनी खुशियों व मन की शांति को भविष्य में कभी नष्ट नहीं होने दूंगी. ‘‘खुद से जुड़े लोगों को अब मैं ने 2 श्रेणियों में बांट रखा है. कुछ मुझे प्रसन्न और सुखी देख कर खुश होते हैं, तो कुछ नहीं. दूसरी श्रेणी के लोग मेरा कितना भी अहित करने की कोशिश करें, मैं अब उन से बिलकुल नहीं उलझती हूं.

‘‘औफिस में रितु मुझे जलाने की कितनी भी कोशिश करे, मैं बुरा नहीं मानती. ऐसे ही सुरेंद्र सर की डांट खत्म होते ही मुसकराने लगती हूं.’’

‘‘घर में मेरी सास और ननद अब मुझे गुस्सा दिलाने या रुलाने में सफल नहीं हो पातीं. मोहित से रूठ कर कईकई दिनों तक न बोलना अब अतीत की बात हो गई है. ‘‘जहां मैं पहले आंसू बहाती थी, वहीं अब मुसकराते रहने की कला में पारंगत हो गई हूं. अपनी खुशियों और मन की सुखशांति को अब मैं ने किसी के हाथों गिरवी नहीं रखा हुआ है. ‘‘जो मेरा अहित चाहते हैं, वे मुझे देख कर किलसते हैं और मेरे कुछ किए बिना ही हिसाब बराबर हो जाता है. जो मेरे शुभचिंतक हैं, मेरी खुशी उन की खुशियां बढ़ाने में सहायक होती हैं और यह सब के लिए अच्छा ही है.

‘‘अपने दोनों हाथों में लड्डू लिए मैं खुशी और मस्ती के साथ जी रही हूं, दीदी. मैं ने एक बात और भी नोट की है. मैं खुश रहती हूं तो मुझे नापसंद करने वालों के खुश होने की संभावना भी ज्यादा हो जाती है. मेरी सास और ननद की यहां उपस्थिति इसी कारण है और उन दोनों की मौजूदगी मेरी खुशी को निश्चित रूप से बढ़ा रही है.’’ संगीता मैडम ने प्यार से उस का माथा चूमा और फिर भावुक स्वर में बोलीं, ‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार हो गई हो, रंजना. मेरी तो यही कामना है कि तुम जैसी बहू मुझे भी मिले.’’ ‘‘आज के दिन इस से बढिया कौंप्लीमैंट मुझे शायद ही मिले, दीदी. थैंक्यू वैरी मच,’’ भावविभोर हो रंजना उन के गले लग गई. उस की आंखों से छलकने वाले आंसू खुशी के थे.

Romantic Story: अंधेरा छंट गया – क्या नीला और आकाश के सपने पूरे हुए?

Romantic Story: शाम का सुरमई अंधेरा फैलने लगा था. खामोशी की आगोश में पार्क सिमटने लगा था. कुछ प्रेमी जोड़ों की मीठी खिलखिलाहटें सन्नाटे को चीरती हुई नीला और आकाश को विचलित कर देती थीं. हमेशा की तरह फूलों की झाडि़यों से बनी पर्णकुटी में एकदूजे का हाथ थामे, उदासी की प्रतिमूर्ति बने, सहमे से बैठे, आंसुओं से भरी मगर मुहब्बत से लबरेज नजरों से एकदूसरे को निहार रहे थे. दोनों के बीच मौन पसरा हुआ था पर वातावरण में सायंसायं की आवाज मुखरित थी.

‘‘कुछ तो कहो आकाश, 2 दिन ही रह गए हैं मेरी मंगनी होने में. उस के बाद मैं बाबूजी के अजीज मित्र के बेटे रितेश की मंगेतर हो जाऊंगी जो शायद मेरे जीतेजी संभव नहीं है,’’ नीला के हृदय से निकले इन शब्दों ने आकाश के हृदय को चीर कर रख दिया.

‘‘शायद यही हमारी नियति है, वरना इन 6 महीनों में क्या मुझे एक छोटीमोटी नौकरी भी नहीं मिलती. पिताजी के गुजर जाने के बाद किसी तरह ट्यूशन आदि कर के अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की और नौकरी की तलाश में लग गया. नौकरी तो नहीं मिली लेकिन बड़े भाई की दया पर जीने के लिए मजबूर हो कर भाभी की आंखों की किरकिरी बन गया हूं. ऐसे में तुम्हीं कहो न, मैं क्या करूं? केवल प्यार के सहारे तो जीवन नहीं चलता है. बेरोजगारी के माहौल में झुलस जाएंगे. फूलों की सेज पर पली राजकुमारी को अपने साथ ठोकर खाने के लिए मैं कोई ऐसावैसा कदम भी नहीं उठाना चाहता. मेरी मानो तो तुम रितेश से शादी कर लो,’’  आकाश के स्वर रुकरुक कर निकले थे.

‘‘नहीं आकाश, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? मेरा जीवन तुम में बस गया है और जीवन के बिना क्या कोई जीवित रह पाया है. मेरी समझ से कल हम इस शहर को छोड़ कर दिल्ली चले जाएंगे. वहां मेरी बचपन की सहेली नीता रहती है, जो हमारे रहने की व्यवस्था करेगी. मैं ने उस से बात कर ली है. उस के पति एक महीने के लिए अमेरिका गए हैं. उन के आने तक हम वहीं रहेंगे. फिर उसी बीच हम कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेंगे. मैं ने कुछ रुपए भी जोड़ रखे हैं. पहले हम यहां से निकलें तो.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि हम यहां से कायरों की तरह भाग जाएं? मेरा मन यह रास्ता कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’

नीला रोती हुई बोली, ‘‘अगर तुम्हें नौकरी मिल भी जाती है, तो भी मेरे घर वाले तुम्हारे साथ मेरा रिश्ता करने के लिए तैयार नहीं होंगे. जिस जाति के लोग नौकर बन कर आज तक हमारी सेवा कर रहे हैं, मजाल है कि वे कभी हमारी बराबरी में बैठने का साहस कर के हम से ऊंचे स्वर में बात करें. उसी जाति के लड़के को वे इस जन्म में तो क्या, अगले सौ जन्मों में भी अपना दामाद स्वीकार नहीं करेंगे. ब्राह्मण की लड़की कुर्मी जाति के लड़के से प्यार कर के शादी करने का दुस्साहस करे, तुम क्या समझते हो, वे स्वीकार करेंगे? मुझे जीतेजी काटकूट कर गाड़ देंगे. मैं ने नीता की मदद से सारा इंतजाम कर लिया है. कल रात को हम दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे. अब तुम मुझे स्टेशन पर ही मिलोगे. पार्लर जाने के बहाने मैं घर से निकल कर सीधे वहीं चली आऊंगी.’’ और आकाश के साथ नीला पार्क से निकल गई.

सच में प्रेम का आगमन जीवन का अर्थ तो बदलता ही है, नातेरिश्तों के तमाम बंधनों से मुक्त भी कर देता है.

दूसरे दिन अपने आकाश के साथ, नीला ने मां के नाम संदेश छोड़ते हुए बचपन की दहलीज छोड़ दी.

संदेश यों था, ‘मेरे प्यार को किसी तरह आप लोग अपनाते नहीं और मैं आप की पसंद को जीतेजी स्वीकृत नहीं करती. मेरे समक्ष यही विकल्प था कि हम कहीं दूर जा कर अपने सपनों में रंग भरते हुए दुनिया बसा लें. आकाश मुझे नहीं, मैं आकाश को भगा कर लिए जा रही हूं. सवर्णों से लड़ने की इतनी हिम्मत उस में कहां? पुलिस आदि के चक्कर में पड़े तो आप लोग अपनी ही रुसवाई करवाएंगे. हम दोनों बालिग हैं, कानून या समाज हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. मेरी इस धृष्टता को क्षमा करिएगा. कभी, प्यार से हमें अपनाया तो ठीक है वरना अपनी इकलौती बेटी को भूल कर मेरे दोनों भाइयों के साथ सुखी रहिएगा, मां.’

दिल्ली पहुंच कर नीता की सहायता से कोर्ट में आकाश के साथ शादी कर ली तो नीला को ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे सारी दुनिया ही सिमट कर उस की बांहों में आ गई हो.

कुछ हफ्तों के अंदर ही नीला और आकाश ने नीता को हृदय से आभार प्रकट करते हुए एक रिहायशी इलाके में अपना आशियाना ढूंढ़ ही लिया. तीसरी मंजिल पर एक कमरे के फ्लैट में नीला और आकाश की प्यारभरी गृहस्थी रचबस गई तो नौकरी की तलाश करना दोनों का जनून बन गया. सुबह होते ही जैसेतैसे खाना बना कर डब्बे में पैक कर के दोनों ही नौकरी की खोज में निकल जाया करते थे.

मेहनत रंग लाई. नीला को एक पांचसितारा होटल में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई. असीम सौंदर्य की मलिका होने के साथ वह अति प्रतिभाशाली भी थी. फर्राटेदार अंगरेजी भी बोल लेती. होटल का मैनेजर तो नीला की शालीनता से इतना प्रभावित हुआ कि उस ने जो भी अपनी मांग और शर्त रखी बेझिझक उस पर स्वीकृति की मुहर लगा दी. नीला को नौकरी मिलने से आकाश को खुशी नहीं हुई. नौकरी मिलने का कारण उस ने नीला की प्रतिभा से ज्यादा उस के सौंदर्य को समझा. दरअसल, पढ़लिख जाने से ही वर्षों की पुरुषवादी मानसिकता समाप्त नहीं हो जाती. नीला ने आकाश के अंतर्मन को पढ़ लिया. बड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोली, ‘‘निराश क्यों होते हो, बहुत जल्द तुम्हें भी नौकरी मिल जाएगी. फिर हम और हमारे इंद्रधनुषी सपने होंगे. इतनी बेकारी में इतनी जल्दी नौकरी मिलना बहुत ही खुशी की बात है. चलो, खुश हो जाओ. आज की इस बड़ी उपलब्धि को हम ठंडीठंडी कुल्फी के साथ सैलिब्रेट करेंगे.’’

आरंभ में नीला, आकाश के साथ ही घर से निकल जाया करती थी. वह होटल की राह मुड़ जाती थी और आकाश दूसरी राह की ओर. वह नौकरी की तलाश में जीतोड़ मेहनत कर रहा था. ऐसे ही कशमकश में दिन पंख लगा कर उड़ते रहे पर आकाश को कोई नौकरी नहीं मिली. आशा के साथ हर दिन सूर्योदय होता और निराशा के साथ अस्त हो जाता. घरबाहर की जिम्मेदारियों के बोझ तले नीला की जवानी कुम्हलाई जा रही थी. फूल से भी कोमल नीला वज्र से भी कठोर हो गई थी. जानबूझ कर सबकुछ ओढ़ा गया था, फिर किस से शिकवाशिकायत की जाती. पर आकाश की वेदना को नीला निराशा व उदासीभरी आंखों से ही सहला दिया करती थी. टूटन दोनों ओर थी जिसे अनछुई छुअन से ही दोनों बांटते हुए जी रहे थे.

सिर्फ नीला की तनख्वाह से गृहस्थी के खर्च पूरे नहीं हो पा रहे थे. नीला के बदन से एकएक कर के सारे जेवर गायब हो रहे थे जिस का मलाल आकाश को भी था पर अपनी बेकारी में कर ही क्या सकता था. गृहस्थी के पहिए तले दोनों के अरमान दम तोड़ रहे थे. सारे इंद्रधनुषी सपने लुप्त हो चुके थे. तसल्ली के लिए दोनों के होंठों पर छिटकी हुई थकी मुसकान, निराशा के गहन अंधेरे को चीर अंतरंग उमंग बन कर उन्हें परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति दे रही थी.

नीता के पति ने आकाश को किसी फैक्टरी में 10 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर नौकरी दिला दी जो इतनी महंगाई और दिल्ली जैसे शहर में पर्याप्त तो नहीं थी पर डूबते जहाज को एक तिनके का सहारा जैसा जरूर मिल गया था. उन दोनों की खुशियों का ठिकाना नहीं था. जैसेतैसे डूबतेउतराते उन की गृहस्थी की नैया आगे बढ़ रही थी. मकानमालकिन से नीला की घनिष्ठता दिनोंदिन गहराती जा रही थी. अपने दुखसुख को नीला निसंकोच उन से साझा करती थी. वे भी हर प्रकार की सहायता के लिए तत्पर रहती थीं. उन का वश चलता तो वे उन से किराए की रकम भी न लेतीं लेकिन उन के पति पक्के बिजनैसमैन थे. नौकरी करने के साथ आकाश अच्छी और ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी तलाश करता रहा जो उतना आसान नहीं था जितना उस ने सोच रखा था.

इधर, नीला भी होटल से थक कर चूर लौटती थी. लंच और डिनर तो वह होटल में ही ले लिया करती. घर आ कर कुछ भी करने की स्थिति में नहीं रहती थी. नीला आ कर रात का खाना बनाएगी, इस आशा में आकाश बैठा रहता था.

‘‘मैं बहुत थक गई हूं, कुछ भी करने की हिम्मत नहीं है. प्लीज आकाश, कुछ भी अपने लिए बना लो. सोचती हूं कल से तुम्हारा खाना होटल से ही लेती आऊंगी. वहां पर काम करने वालों को कम रेट पर ऐसी सुविधाएं हैं.’’ आकाश को खीझ तो बहुत आती पर भूख तो कोई बहाना नहीं सुनती. ब्रैड खा कर सो जाता.

इधर, कितने दिनों से नीला के होटल से देर से घर आने में, और वह भी मैनेजर की गाड़ी में, आकाश को परेशान कर के रख दिया था. नीला भी तो कितनी बदल गई थी. पहले उस पर कितना प्यार उड़ेलती थी पर अब रात में आकाश जब भी उस की ओर हाथ बढ़ाता, अपनी थकान की बात कहते हुए वह दूर छिटक जाती थी. रविवार को भी वह ड्यूटी करने लगी थी. पूछने पर सपाट सा उत्तर, ‘‘अतिरिक्त समय में काम करने पर जो कमाई होगी उस से हम घरगृहस्थी का समान खरीदेंगे.’’

मैनेजर जरूरत से ज्यादा उस पर मेहरबान है, इधर कुछ दिनों से नीला यह देख व महसूस कर रही थी. दिन में कई बार किसी न किसी बहाने से उसे अपने चैंबर में बुला लेता था. चायकौफी के दौर के साथ इधरउधर की बातें किया करता था. कभी अपनी मृत पत्नी को याद कर के भावुक हो जाता तो कभी अपनी बेटी की बातें कर के खुश हो लेता. कभी उस ने मर्यादा की सीमा का अतिक्रमण नहीं किया था, इसलिए नीला को उस का साथ भाने लगा था.

आकाश अब उस के देर से लौटने पर आपत्तियां उठाने लगा था, पति नाम का जीव जो था वह. सुसज्जित घर, खाना, कमाई, सब से बढ़ कर पत्नी का सान्निध्य चाहिए था उसे. नीला कभीकभी खीझ कर रह जाती थी. राजकुमारी की तरह पलीबढ़ी नीला को अपने निर्णय पर कभीकभी पश्चात्ताप होने लगता था. एक सीमा तक उस ने अपने प्यार से आकाश को बदल दिया था पर अब एकदूसरे के प्रति दोनों की भावनाएं परिवर्तित हो चुकी थीं.

नीला और मैनेजर के बीच निश्चय ही अवैध संबंध है, यह सोचसोच कर आकाश अंदर ही अंदर पागल हो रहा था. नीला के सहयोग न करने के बावजूद उस के शरीर से जबरदस्ती करने में बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती थी उसे. आपसी मनमुटावों ने आएदिन तूतूमैंमैं का रूप अख्तियार कर लिया था. अब घर लौट कर आने में भी नीला को कोई आकर्षण नहीं रह गया था. उसे मैनेजर का संगसाथ भाने लगा था. मन लायक नौकरी नहीं मिलने के कारण आकाश का रौद्र रूप नीला को सहमा कर रख देता था. सारी मर्यादाओं की सीमा का अतिक्रमण करते हुए एक दिन उस ने नीला पर हाथ उठा दिया तो किसी घायल शेरनी की तरह उस ने भी आकाश को नहीं बख्शा.

उस दिन उस ने होटल में रात की ड्यूटी ले ली. युद्ध का अखाड़ा बने उस प्यार के आशियाने में लौटने की उस की जरा सी भी इच्छा नहीं हुई. नीला को रुके देख कर मैनेजर भी होटल में ही रुक गया. रात के सन्नाटे में मैनेजर ने नीला का सान्निध्य चाहा तो चीखनेचिल्लाने के बदले नीला ने बड़ी शालीनता से उन्हें समझा दिया.

‘‘माना कि आकाश को जीवनसाथी बनाना मेरा हद तक पागलपन था. बरात नहीं आई, सात फेरे क्या, कोई रस्म नहीं हुई. मां के गले लिपट कर रोई नहीं. उन की कोख को लज्जित करते हुए चोर की तरह बाबुल की दहलीज से भाग निकली. उस के प्यार और विश्वास के सहारे ही तो इतना बड़ा कदम उठा सकी थी. सर, दिल का वह भी इतना बुरा नहीं है. बस, हमारा समय खराब है. कितनी तकलीफ उठा कर बाधाओं से लड़ कर उस ने इतनी ऊंची डिगरी ली थी पर उस डिगरी का हुआ क्या, बेरोजगारी का दावानल सारे देश में फैला हुआ है जिस में झुलस रहे हैं आकाश जैसे युवकों के सपने. हर क्षेत्र में अमरबेल की तरह पसरी हुई राजनीति ने युवकों का सर्वनाश कर के रख दिया है. जिस दिन आकाश अपनी बेकारी पर विजय प्राप्त कर लेगा, उस के योग्य उस की पसंद की नौकरी मिल जाएगी, हमारा छोटा सा आशियाना खूबसूरत जहां बन जाएगा. हम उस के राजारानी बन कर चांदतारे पकड़ेंगे.

‘‘लेकिन कब तक, कह नहीं सकती. सर, आप बहुत अच्छे हैं. आप को एक से एक सहगामिनी मिल जाएंगी. आप के आकर्षणपाश में मैं भी बंधी हूं. एक बार आप हाथ बढ़ाएंगे, मैं किसी लता की तरह आप से लिपट जाऊंगी. फिर वह हो जाएगा जिसे कदापि नहीं होना चाहिए. प्लीज सर, शरीरप्राप्ति के लिए हमारी दोस्ती को दांव पर न लगाइए,’’ कह कर नीला ने अपनी हथेलियों में मुंह को छिपा लिया और फूटफूट कर रो पड़ी. दोनों के बीच समय मूक बना रहा. बेकारी के भूलभुलैये में एक पत्नी ने अपनी अस्मिता की गरिमा को खोने नहीं दिया था. यह बेकारी के मुंह पर एक बहुत बड़ा तमाचा था. अपनी पीठ पर छुअन का एहसास होते ही नीला ने चौंक कर सिर उठाया. मैनेजर के मुख से रुकरुक कर निकलता स्वर उस के कानों में अनमोल बूंदों को टपका रहा था, ‘‘मेरी इस अक्षम्य गलती को क्षमा कर देना, नीला. बेहद सुंदरता व असीम प्रतिभा की स्वामिनी का इतना मर्यादित रूप मैं ने जीवन में पहली बार देखा है. शिखर सी ऊंची तुम्हारी मानसिकता पर मुझे गर्व है. तुम ने मुझ भटके को राह दिखाई तो क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ कर नहीं सकता.

‘‘सुनो, कल तुम आकाश को साथ लाना. होटल का पूरा ऐडमिनिस्ट्रेशन कल से वही संभालेगा. रहने को फ्लैट, गाड़ी व सारी सुविधाएं तुम दोनों को मिलेंगी. तुम्हारे जीवन से अंधेरे के एकएक कतरे को खींच कर मैं रोशनी भर दूंगा. होेटल के मालिक होटल की सारी जिम्मेदारी मुझे सौंप कर अपने बेटे के पास अमेरिका जा चुके हैं. मैं जो चाहूं, करूं.

‘‘कसौटी पर कसे ऐसे खरे सोने मिलते कहां हैं. यह एक दोस्त को एक दोस्त का प्यारभरा तोहफा होगा.’’ निसंकोच हो कर नीला ने होटल मैनेजर की बांहों को थाम लिया. वहां कोई वासना नहीं थी. इस छुअन से स्नेह, प्यार, मनुहार, विश्वास छलक रहा था. कहीं दूर सूर्य की स्वर्णिम किरणें बिखर रही थीं. उन के साथ नीला के भी जीवन के अंधेरे का अंत हो चुका था. जितना हो सके, पढ़ेलिखे बेकारों का मार्गदर्शन कर के उन का हौसला बढ़ाएगी वह. घने घिरे बादलों में उन को क्षितिज तलाशने में किसी दामिनी की तरह सभी हताश लोगों का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश करेगी. इस निश्चय के साथ ही नीला उत्सुक हो कर अपने आकाश की बांहों में सिमटने के लिए जल्द से जल्द घर पहुंचने को बेचैन हो उठी. उस का पोरपोर आकाश के प्यार में ध्वनितप्रतिध्वनित हो रहा था.

Romantic Story: स्वीकार – क्यों आनंद से आनंदी परेशान थी?

Romantic Story: आनंदी के ब्याह को लगभग 5 वर्ष होने को हैं. आनंदी सुशील, मृदुभाषी, गृहकार्य में दक्ष और पूरे परिवार का कुशलतापूर्वक ध्यान रखने वाली, सारे गुणों से परिपूर्ण, एक कुशल गृहिणी है. इस‌ के‌ बावजूद, आज तक वह अपनी ससुराल के लोगों का दिल नहीं जीत पाई. वैसे तो वह पूरे परिवार की पसंद से इस घर में ब्याह कर आई थी लेकिन आज केवल अपने पति आनंद की पसंद बन कर रह गई है.

एक आनंद ही है जिस का प्यार आनंदी को घर के दूसरे सदस्यों के अपशब्द, बेरुखी और तानों को सहने व उन्हें नज़रअंदाज़ करने की ताकत देता है. आनंद के प्यार के आगे उसे सारे दुख फीके लगते हैं. आनंदी अपने दुख का आभास आनंद को कभी नहीं होने देती, क्योंकि वह जानती है यदि आनंद को उस के दुख का भान हुआ तो वह उस से भी ज्यादा दुखी होगा. आनंद सदा उस से कहता है, “आनंदी, तुम्हें मुसकराता देख मैं अपने सारे ग़म भूल जाता हूं. तुम सदा अपने नाम की भांति यों ही हंसती, मुसकराती, खिलखिलाती और आनंदित रहा करो.”

आनंदी को याद है वह दिन जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी. उस‌ की मुंहदिखाई की रस्म में नातेरिश्तेदार और आसपड़ोस की सारी महिलाओं की हंसीठिठोली के बीच हर कोई आनंदी की खूबसूरती की तारीफ किए जा रहा था और घर का हर सदस्य इस बात पर इतरा रहा था कि घर में बेहद खूबसूरत बहू ब्याह कर आई है.

आनंदी से शादी के पहले आनंद से शादी के लिए क‌ई लड़कियां इनकार कर चुकी थीं. आज आनंदी जैसी बेहद खूबसूरत बहू पा कल्याणी फूले नहीं समां रही थी. आनंद सांवला और साधारण नैननक्श वाला था.  वहीं, आनंदी दूध की तरह गोरी और तीखे नैननक्श की. जो आनंदी को एक बार देख ले तो उस का दीवाना हो जाए और कभी न भूल पाए यह हसीन चेहरा.

स्कूलकालेज के दिनों में तो आनंदी के क‌ई दीवाने थे. महल्ले से ले कर कालेज तक हर कोई आनंदी को पाना चाहता था. हर किसी की आंखों में आनंदी की खूबसूरती का नशा और उस के शरीर को पाने की हवस साफ झलकती थी. कभीकभी पड़ोस की चाची, उस की मां से बातोंबातों में कह जातीं, ‘अपनी आनंदी के  हाथ जल्दी पीले कर दो, वरना उस की खुबसूरती की वजह से कभी कोई ऊंचनीच हो गई तो कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगी.’ यह सब सुन आनंदी की  मां के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जातीं और आनंदी को उस की खूबसूरती बेमानी लगने लगती.

इसी हंसीठिठोली के बीच सासुमां की एक सहेली ने कहा, “कल्याणी, तेरी बहू तो चांद है चांद.” उस पर सासुमां अपनी भौंहें मटकाती और थोड़ा इतराती हुई बोलीं, “चांद में दाग होता है. मेरी बहू बेदाग है. लाखों में एक है मेरी बहू.” ऐसा कहती हुईं सासुमां ने अपनी आंखों से काजल निकाल आनंदी के कानों के पीछे लगा दिया. सासुमां का प्यार देख आनंदी मन ही मन प्रकृति का धन्यवाद करने लगी कि उसे इतना प्यार करने वाला परिवार मिला है.

इसी दौरान कुछ ही देर में एक बुजुर्ग महिला के आने पर जब आनंदी ने उस महिला के पैर छुए तो  वे आशीष देती हुई बोलीं, “दूधो नहाओ पूतो फलो.” फिर आगे बोलीं, “बहूरानी, अब जल्दी से इस घर को एक वारिस दे दो.” इस बात पर तो जैसे सासुमां की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और वे हसंती हुई बोलीं, “अरे मौसी, आप के आशीर्वाद से तो मैं जल्द ही दादी बन जाऊंगी.” जैसे ही आनंदी के कानों में ये शब्द पड़े, वह बेचैन हो उठी और उसे हर्ष व उल्लास का यह मौका बोझिल लगने लगा.

कुछ समय तक सब  ठीक चलता रहा. घर के सभी सदस्यों से आनंदी को भरपूर प्यार मिलता रहा. लेकिन सब के प्यार में कुछ न कुछ स्वार्थ छिपा था. हर रिश्ता कुछ न कुछ मांग रहा था. सासुमां अकसर आनंदी से दबी आवाज़ में धीरे से पूछतीं, ‘खट्टा खाने का मन तो नहीं…?’

इस सवाल पर आनंदी थोड़ा असहज और दुखी हो जाती. जवाब में हलके से सिर नहीं में हिला देती. सालदरसाल धीमी आवाज बढ़ती ‌हुई तेज आवाज में तबदील हो गई और फिर तानों में.घर के अन्य सदस्यों के बीच अब आनंद की दूसरी शादी की फुसफुसाहट शुरू होने लगी. इन सब से बेखबर आनंद, आनंदी पर निस्वार्थ प्रेम लुटाए जा रहा था.

आज रविवार का दिन है, आनंद की छुट्टी है. घर पर सभी सदस्य हैं. आनंद और आनंदी मां से कुछ कहना चाहते हैं. लेकिन मां और घर के अन्य सदस्य किसी दूसरे कार्य में व्यस्त हैं. सभी के क्रियाकलापों से ऐसा लग रहा है मानो घर पर ख़ास मेहमान आने वाले हैं. पर इस बात की जानकारी न तो आनंदी को है और न ही आनंद को.  तभी, मां आनंद को संबोधित करती हुई बोलीं, “आनंद, अभी‌ तुम घर पर ही रहना, कहीं जाना मत.”

आनंद ने प्रश्न किया, “मां, क्या मेरा रहना जरूरी है?” इस पर मां झुंझलाती हुई‌ बोलीं, “जरूरी है, तभी तो कह रही हूं.”

निर्धारित समय पर आगंतुक आ पहुंचे. उन के आदरसत्कार का सिलसिला शुरू हुआ. तभी आनंदी चायनाश्ता ले कर पहुंची. उसे देखते ही अतिथि में से एक महिला, जो साथ आई लड़की की मां थी, बोली, “देखिए कल्याणी जी, मैं अपनी बेटी की शादी आप के बेटे आनंद ‌से तभी करूंगी जब आप का बेटा अपनी‌ पहली पत्नी से तलाक लेगा.” इस‌ बात पर कल्याणी आगंतुक महिला को आश्वस्त करती हुई बोलीं, “आप चिंता न करें, मेरा बेटा वही करेगा जो मैं चाहूंगी.”

आनंदी वहीं खड़ी सब चुपचाप सुन रही थी. आनंद भी वहीं उपस्थित था और वह भी सारी बातें सुन रहा था. अचानक आनंद मां की ओर देखते हुए बोला, “हां, मां, क्यों नहीं, मैं बिलकुल वही करूंगा जो आप चाहेंगीं.” यह‌ सुनते ही आनंदी के पैरोंतले जमीन खिसक गई. उस की आंखें डबडबा गईं. वह सोचने लगी, ‘क्या यह वही आनंद है जिस से उस की 5 मिनट की पहली मुलाकात में ही उस के मन में आनंद के लिए प्यार जगा गया. आनंद की वह बेबाक सचाई बयां करने का अंदाज जिस ने आनंदी का दिल जीत लिया और जिस की वजह से वह इस शादी के लिए हां कर बैठी.’

तभी आनंदी के कानों में आनंद के ये शब्द पड़े,  “मैं आप सभी को एक सचाई बताना चाहूंगा.” ऐसा कहते हुए आनंद कोने में खड़ी आनंदी को खींचते हुए सब के सामने ला कर बोला, “ये जो आप सब के सामने खड़ी है, ये कभी भी मां बन सकती है लेकिन मैं पिता नहीं बन सकता क्योंकि कमी इस में नहीं, मुझ में है और यह सब जानते हुए भी इस ने मुझे स्वीकार किया है. यह चाहती तो बाकी लड़कियों की तरह मुझे अस्वीकार कर सकती थी, लेकिन इस ने ऐसा नहीं‌ किया. आप‌ लोगों को क्या लगता है जिन लड़कियों ने मुझ से‌ शादी से इनकार किया, वे मेरे साधारण नैननक्श की वजह से था. नही. उन्होंने मुझ से शादी इसलिए नहीं की क्योंकि मैं उन्हें पहले ही बता देता कि मैं उन्हें वह सुख नहीं दे पाऊंगा जिस की वे कामना रखती हैं. लेकिन इस ने मुझे मेरी कमियों के साथ स्वीकार किया. इस ने मेरी भावनाओं को समझा. इसे पता है शादी केवल 2 जिस्मों का मेल नहीं, 2 परिवारों का भी मेल है.”

आनंद अपनी मां की ओर  देखते हुए बोला, “मां, तुम तो एक नारी हो‌, तुम्हें क्या लगता है, हर वक्त हर परिस्थिति में केवल नारी ही जिम्मेदार होती है?  मां, अब तुम बताओ, क्या मुझे आनंदी को इस बात के लिए तलाक देना चाहिए कि वह अपने सुख की परवा किए बगैर मेरा साथ चुपचाप निभाती रही.

आनंद के मुख से यह सब सुन सभी शांत हो ग‌ए जैसे भयानक तूफान के बाद सब शांत हो जाता है. घर के सभी लोगों के चेहरे पर अब पश्चात्ताप साफ नजर आ रहा था. सासुमां की आंखों में भी आनंदी से क्षमायाचना के भाव साफ़ झलक रहे थे. सासुमां कुछ कहती, उस से पहले आनंदी मां के पैरों को छू कर बोली, “मां, मैं और ‌आनंद अनाथालय से एक बच्ची गोद लेना चाहते हैं. आप की स्वीकृति चाहिए.”

मां बहू आनंदी के माथे पर अपना चुंबन अंकित करती हुई बोलीं, “हां, क्यों नहीं, कहो बेटा, कब चलना है हमें.”

Family Story: धोखा – क्या संदेश और शुभ्रा शादी से खुश थे?

Family Story: संदेश और शुभ्रा ने एकदूसरे को पसंद कर शादी के लिए रजामंदी दी थी. दोनों के परिवारों ने खूब अच्छी तरह देखपरख कर संदेश और शुभ्रा की शादी करने का फैसला किया था. यह कोई प्रेम विवाह नहीं था. रिश्तेदारों ने ही ये रिश्ता करवाया था.

संदेश एमबीए कर के एक कंपनी में सहायक मैनेजर के पद पर काम कर रहा था, तो शुभ्रा भी एमए कर के सिविल सर्विस के लिए कोशिश कर रही थी. ऐसे में शुभ्रा के एक रिश्तेदार ने संदेश के बारे में शुभ्रा के मम्मीपापा को बताया. शुभ्रा के मम्मीपापा रिश्ते की बात करने के लिए संदेश के घर गए.

संदेश के पिताजी बैंक से रिटायर्ड थे तो मम्मी घरेलू औरत थी. इस तरह देखादिखाई के बाद संदेश और शुभ्रा की शादी हुई.

संदेश के मातापिता उस के बड़े भाई के साथ रहते थे, तो संदेश दूसरे शहर में सर्विस करता था, इसलिए संदेश के मातापिता ने शुभ्रा को उस के साथ भेज दिया, ताकि उन को रहनेखाने में कोई दिक्कत न हो.

शुभ्रा संदेश के साथ रहने के लिए इस शहर में चली आई. संदेश के परिवार ने शहर की एक अच्छी सोसाइटी में फ्लैट ले कर दे दिया था, ताकि बारबार किराए के मकान के बदलने से छुटकारा मिल जाए.

3 कमरों का यह फ्लैट तीसरी मंजिल पर था. शुभ्रा के आने से तो मानो फ्लैट महक उठा. सुबह जब संदेश औफिस चला जाता, तो शुभ्रा अपने हाथों से साफसफाई करती, झाड़पोंछ कर घर को एकदम साफसुथरा रखती.

शाम को जैसे ही संदेश घर आता, उस के हाथ से ब्रीफकेस ले कर शुभ्रा रखती. उस के शर्ट के बटन खोलती, फिर पहले पानी और उस के बाद दोनों इकट्ठा ही चायनाश्ता करते. शाम को कभी पार्क, कभी मौल, तो कभी किधर घूमने अकसर निकल जाते संदेश और शुभ्रा. नईनई शादी हुई है, तो दोनों एकदूसरे को टूट कर प्यार करतेकरते एकदूसरे की बांहों में ऐसे समा जाते कि सुबह ही आंखें खुलती.

एकदूसरे की बांहों में समाए, प्यार करतेकरते कब शादी की सालगिरह आ गई, पता नहीं चला. शुभ्रा को तो सुबह जब संदेश ने चूम कर मुबारकबाद दी, तब याद आया.

औफिस जाते समय संदेश ने शुभ्रा से कहा, ‘‘आज शाम को बाहर चलेंगे, वहीं खाना खा कर आएंगे.’’

शाम 6 बजे सही समय पर संदेश घर आ गया, शुभ्रा पहले से ही तैयार थी. बस, संदेश तैयार होने लगा और थोड़ी देर में ही वे घर से निकल पड़े.

संदेश ने पहले से ही होटल में टेबल बुक करवा रखी थी. वहां पहुंच कर संदेश ने पहले स्नैक्स, उस के बाद खाने का और्डर दे दिया था.

जब तक वेटर ये सब ले कर आता, संदेश ने शुभ्रा को हाथ आगे करने को कहा.

जैसे ही शुभ्रा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, संदेश ने एक हीरे की बहुत ही सुंदर अंगूठी उस की उंगली में पहना दी.

यह देख शुभ्रा की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने संदेश को चूम लिया. दोनों खाना खा कर खुशीखुशी घर लौटे और सो गए.

प्यार का यह सिलसिला ठीकठाक चल ही रहा था कि अचानक संदेश के बरताव में शुभ्रा ने बदलाव महसूस करना शुरू कर दिया.

अब शाम को संदेश बहुत थकाहारा सा औफिस से लेट आता. इस के बाद खाना खा कर थोड़ीबहुत इधरउधर की बात करता, फिर सोने की तैयारी करता.

शुभ्रा उस को प्यार करने के लिए कहती, तो कभी थकावट, कभी गैस, तो कभी कोई बहाना बना कर मुंह फेर कर सो जाता. सुबह भी औफिस के लिए एक घंटा तय समय से पहले निकल जाता. सुबह इतनी हड़बड़ाहट में होता कि कभी लंच बौक्स भूल जाता, तो शुभ्रा भाग कर उस को थमा कर आती.

शुभ्रा इस की वजह जानने की कोशिश में थी, लेकिन अभी तो वह जान नहीं पाई.

ऐसे बोझिल माहौल से छुटकारा पाने के लिए शुभ्रा सुबह सोसाइटी के पार्क में घूमने लगी. सोसाइटी की एक आंटी से शुभ्रा की मुलाकात हो गई. अब सुबहसुबह दोनों इकट्ठे बैठ कर कसरत करतीं और बतियाती थीं.

एक दिन एक नौजवान लड़का भी वहां जौगिंग कर रहा था. शुभ्रा ने उसे देखा, तो आंटी ने शुभ्रा को देख लिया और शुभ्रा से कहा, ‘‘मीठा है ये.’’

शुभ्रा इस का मतलब नहीं समझी, तो आंटी ने बताया, ‘‘यह ‘गे’ है.’’

शुभ्रा ने पूछा, ‘‘कहां रहता है, यह?’’

आंटी ने कहा, ‘‘तेरे फ्लैट के नीचे वाले फ्लैट में किराए पर रहता हैं.’’

इस के बाद शुभ्रा अपने घर आ गई और आंटी अपने घर चली गई. लेकिन शुभ्रा उस नौजवान के बारे में सोच कर भिन्नाती रही कि आदमी हो कर भी यह सब. यह बात शुभ्रा के दिमाग से निकल ही नहीं रही थी.

आज भी संदेश बड़ी हड़बड़ाहट में तैयार हो कर निकला. शुभ्रा संदेश के जाने के बाद कपड़े धो कर बालकनी में सुखाने के लिए डाल रही थी, तभी उस ने नीचे देखा कि संदेश सोसाइटी से दफ्तर के लिए अब निकल रहा है, घर से निकलने के एक घंटे बाद…

शुभ्रा के दिल में शक ने जन्म ले लिया था. शाम को संदेश दफ्तर से घर आया, तो शुभ्रा ने ब्रीफकेस लिया और उस को टेबल पर रख ही रही थी कि वह खुल गया और उस में से डीओ, परफ्यूम, अंडरवियर जैसी चीजें बाहर आ गईं.

संदेश की नजर उन पर पड़ी, तो भाग कर उन को ब्रीफकेस में डाल कर बंद कर दिया.

शुभ्रा ने जब देखा, तो पूछ ही लिया, ‘‘यह सब किस के लिए…?’’

संदेश ने बहाना बना दिया कि औफिस का एक कर्मचारी रिटायर हो रहा?है, उस को गिफ्ट में देने के लिए यह सब लाया है. शुभ्रा ने कहा, ‘‘रिटायरमैंट के गिफ्ट में यह सब कौन देता है?’’

खैर, बात आईगई हो गई.

अब शुभ्रा को सब समझ आने लगा था. उस ने कई दिन जांचपड़ताल की और एक दिन सही समय पर संदेश को उस नौजवान के फ्लैट से निकलते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया. संदेश के चेहरे का रंग उड़ गया.

शुभ्रा संदेश को फ्लैट में ले कर आई. वहां संदेश ने उस नौजवान के साथ अपना संबंध स्वीकार कर लिया और कहा कि इस से संबंध बनाने के बाद मुझे तुम में या लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं रही. दोनों में काफी कहासुनी हुई.

शुभ्रा ने संदेश से कहा, ‘‘तुम ने मुझे धोखा दिया है. मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकती,’’ वह गुस्से में फुफकारती हुई निकल गई और संदेश भी अपना सूटकेस ले कर घर से निकल पड़ा.

संदेश ने शुभ्रा को रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुकी.

संदेश आंखों से ओझल होती शुभ्रा को देख कर अपने बाल नोचने लगा.

Family Story: अपना घर – सीमा अपने मायके में खुश क्यों नहीं थी?

Family Story, लेखिका- अर्चना खंडेलवाल

मोबाइल की घंटी बजते ही सीमा ने तुरंत फोन उठा लिया. रिसीवर के दूसरी ओर मां थी, ‘‘मां, आप को ही याद कर रही थी. भैया रवाना हो गए? आप सब को देखे महीना हो गया.’’ सीमा थोड़ी सी रोंआसी हो कर बोली, ‘‘भैया कब तक आएंगे? मु?ा से तो सब्र नहीं हो रहा. अब कब आ कर आप सब से मिलूं.’’

‘‘आ रहा है बेटा, तेरे बिना घर ही सूना हो गया. तू तो हमारे घर की रौनक थी. तेरे बाबूजी, भैया, मैं, हम सब को तू बहुत ही याद आती है. तेरी नई भाभी भी तु?ा से मिलने को अधीर है. दीदी कब आएंगी, बस यही पूछती रहती है. अच्छे से सामान पैक कर लेना. खानेपीने का सब रख लेना. ट्रेन से नीचे मत उतरना. मौसम थोड़ा ठंडा है, कुछ हलका ओढ़ने को रख लेना.’’

‘‘हां मां हां, अब मैं बच्ची नहीं रही. शादी हो चुकी है, मैं सब मैनेज कर लूंगी.’’ कह कर सीमा ने फोन रख दिया. ‘मां भी न,’ यह सोच कर सीमा मुसकरा दी.

दूसरे दिन सवेरे जल्दी उठ कर सीमा ने फाइनल पैकिंग कर ली. सीमा की सास ने आज उसे रसोई से छुट्टी दे दी ताकि वह आराम से सब पैक कर ले. रोहन से दूर होने का दुख था पर महीनेभर बाद मायके जाने की खुशी अलग थी. तभी डोरबेल बजी, ‘‘भैया, आप आ गए,’’ भैया को देख कर सीमा की प्रसन्नता देखने लायक थी.

सास ने दोपहर का खाना लगाया. पहली बार बहू के भाई की आवभगत में कोई कमी नहीं रखी. आते ही पूरा घर संभाल लिया. सीमा तो हमारे घर के कणकण में रचबस गई है, बेटा. इस के जाते ही बहुत अखरेगा. सीमा अपनी तारीफ में सास द्वारा कहे गए शब्दों के बो?ातले दबे जा रही थी.

‘‘जी,’’ मांजी, सास के पांव छू कर विदा ली. रोहन ने भैया, सीमा को रेलवे स्टेशन तक छोड़ दिया.

सीमा और उस के भैया की शादी दो दिनों के अंतराल से हुई थी. पहले भाभी घर में आई, एक दिन बाद सीमा की बिदाई. ज्यादा दिन साथ रहे नहीं, दोनों अपनीअपनी शादी में व्यस्त थीं. आज सीमा शादी के एक महीने बाद मायके में रहने जा रही है. दूर भी तो इतना भेज दिया, बारबार जल्दी से मायके आ भी नहीं सकते. ट्रेन की दूरी तो बहुत खल रही थी. काफी उत्साहित थी, सब से मिलने के लिए.

शादी के बाद रस्मोरिवाज, रिश्तेदारों के यहां आनेजाने में ही वक्त निकल गया. रोहन के साथ हनीमून की मीठी यादें याद करती रही, कभी मायके में बिताया हर पल. शादी के बाद लड़की 2 नावों की सवारी करती है, दोनों में संतुलन कर के चलती है. मायके वाले भी उतने ही प्रिय होते हैं जितने ससुराल वाले. मायके में जिंदगी का अल्हड़पन बीतता है. और ससुराल में जिम्मेदारी और कर्त्तव्यों को वहन करना होता है. मायके में कोई रोकटोक नहीं, कोई बंदिश नहीं, सब से बड़ी बात वहां अपेक्षाएं नहीं थीं.

ट्रेन में भैया, भाभी के गुणों की ही व्याख्या करते रहे हैं. सीमा का मन अधीर हो गया, भाभी से मिलने को.

घर की इकलौती लाड़ली सीमा काफी चतुर व सम?ादार थी. मां की बीमारी के चलते सारे घर की जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर थी. कौन सी चीज कहां रखनी है, कौन सा सामान किस तरह से घर में सैट करना है. अमुक चादर बैड पर जंचेगी या नहीं. अमुक टेबल कमरे के किस कौर्नर में रखें, गमले में आज कौन से फूल महकेंगे. सुबह के नाश्ते से ले कर रात के खाने में क्या बनेगा. सब काम सीमा के फैसले से होते थे. सीमा मां, बाबूजी, भैया के साथ अपनी ही दुनिया में डूबी हुई थी.

एकाएक उसे आभास हुआ घर में उस की शादी के चर्चा होने लगी. रोज कहीं न कहीं बाबूजी लड़का देख कर आते. उस दिन जब बूआ आई थीं, सम?ा रही थीं, ‘‘लड़की को सही वक्त पर उस के घर भेज दो, यह तो पराया घर है. एक दिन तो उसे यह घर छोड़ कर जाना है,’’ बूआ की बात कानों से सुनी, तभी से सीमा की सांस ऊपरनीचे हो गई. क्यों यह पराया घर है. जिस घर पलीबढ़ी, खेलीकूदी, हर खुशी पाई. किसी के पास जवाब नहीं था, पर सब को यही कहना था, जाना तो होगा. आखिर सब के सम?ाने पर सीमा मान गई. पर उस ने शर्त रखी कि वह मां को बीमार छोड़ कर नहीं जाएंगी. पहले भैया की भी शादी कीजिए. शर्त मान  ली गई संयोग से सुयोग्य लड़की भी  मिल गई.

ज्योंज्यों मायका नजदीक आ रहा था, वैसे ही सीमा की बेचैनी भी बढ़ने लगी. आखिर उस का घर दिख गया. रोमरोम पुलकित हो गया. भैया ने जैसे ही सामान उतारा, सीमा ने घर के आंगन में पांव रखा कि चौंक गई. बाहर आंगन में उस ने जो छोटा सा बगीचा तैयार किया था, सुबहशाम पानी डाला करती थी, जहां बैठ कर अकसर पढ़ाई किया करती थी, कितनी मेहनत से तरहतरह के पौधे लगाए थे, उस के बगीचे का नामोनिशान नहीं था. आंगन की महकती खुशबू को बेजान पत्थरों ने दबा दिया था. सारा आंगन पक्का करवा दिया गया था.

भैया ने सीमा के चेहरे के भाव पढ़ लिए, दबी जबान में बोले, ‘‘यह तुम्हारी भाभी ने कहा, सारा घर मिट्टी से सन जाता है, वैसे भी तुम्हारे जाते ही सारे फूल मुर?ा गए थे.’’

उतरे चेहरे से सीमा अंदर ड्राइंगरूम में पहुंची. मांभाभी से मिली. भाभी चायनाश्ते में जुट गई. ड्राइंगरूम का नक्शा ही बदल गया था. सीमा की पेंटिंग्स दीवार से उतर कर घर के पिछवाड़े तक जा पहुंचीं, भाभी की बनाई पेंटिंग से रूम सज रहा था. दीवान पर पेंटिंग की चादर की जगह भाभी के हाथ की कशीदे की चादर फब रही थी. अब सोफा सैट की दिशा भी बदल गई. गमलों में बनावटी फूल खिल रहे थे. परदों के रंग भी उलटपुलट हो गए.

उसे लगा वह किसी नई जगह पर आ गई है. सीमा मनमसोस कर रह गई, कहने वाली थी कि मां यह क्या? तभी मां बोली, ‘‘तेरे घर पर सब ठीक है.’’

सीमा बोली, ‘‘हां, मां, मेरे घर पर सब ठीक है.’’

उधर मां भाभी की बनाई चीजों की तारीफ करते नहीं थक रही थी. तेरी भाभी ने आते ही अपना घर संभाल लिया. ‘सच है, यह भाभी का घर है, मेरा तो कभी था ही नहीं,’ हौले से सीमा बुदबुदा दी. यह घर पराया था नहीं, पर अब लगने लगा. मेरी इस घर में कोई अहमियत नहीं रही, सीमा मन ही मन रो दी.

रात के खाने से निबटी थी. अब उसे मेहमानों का कमरा दिया गया. रातभर सोचसोच कर करवट बदलती रही.

बचपन के स्कूल के, हर पल, हर क्षण याद आते रहे. वह अपने ही मन को सम?ाती रही. मां, बाबूजी, भैया, भाभी के प्यारदुलार में कोई कमी नहीं है. फिर भी अब वह बात नहीं रही जो शादी से पहले थी. हिचकिचाहट नहीं थी. कुछ भी काम करना हो, अब पूछना होता है. भाभी के हिसाब से घर की किचन की सैटिंग है, तो मु?ो क्यों अखर रहा है. अपनेआप से सवाल करने लगी. मैं ने भी तो रोहन का घर संभाल लिया है. जैसे मु?ो पता है, घर की कौन सी चीज कहां रखी है. यह सोचतेसोचते जाने कब आंख लग गई.

सुबह नाश्ते की टेबल पर भैया ने मां के हाथ में रुपए दिए. मां ने आवाज लगाई, ‘‘बहू ये रुपए अलमारी में रख दे,’’ सीमा ने रुपयों से एकाएक नजरें चुरा लीं. शादी से पहले चाबी सीमा के ही हाथ में रहती थी. कुछ दिन मायके में रही. उस की उपस्थिति मात्र मेहमानस्वरूप ही रही. उसे महसूस हुआ, शादी के बाद लड़की ही नहीं, उस की तमाम चीजें शौक, पसंद भी पराए हो जाते हैं.

मां, भैया, भाभी ने कुछ और दिन रुकने को कहा पर सीमा टस से मस नहीं हुई. उस के अपने पराए और पराए अपने हो गए थे. अगले दिन रोहन लेने आ गए. बिना किसी मोह, आंसू के सीमा अपने पति के साथ अपने घर चल दी.

घर की इकलौती लाड़ली सीमा काफी चतुर व सम?ादार थी. मां की बीमारी के चलते सारे घर की जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर थी. कौन सी चीज कहां रखनी है, कौन सा सामान किस तरह से घर में सैट करना है. अमुक चादर बैड पर जंचेगी या नहीं. अमुक टेबल कमरे के किस कौर्नर में रखें, गमले में आज कौन से फूल महकेंगे.

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