घर का भूला- भाग 3: कैसे बदलने लगे महेंद्र के रंग

पूर्व कथा

पत्नी की दुर्घटना में मृत्यु से महेंद्र की जिंदगी उजड़ गई. अब गृहस्थी का भार उस के कंधों पर था. बेटी आभा बी.ए. और बेटा अमित एम.ए. फाइनल में पढ़ रहे थे. आभा ठीक से घर को संभालने की स्थिति में नहीं थी इसीलिए खाना बनाने के लिए सुघड़ महिला मालती को काम पर रख लिया. आभा महसूस कर रही थी कि मालती और पिता के बीच कुछ गलत चल रहा है. रोटी खिलाने के बहाने मालती पिता के आसपास ज्यादा न मंडराए इसलिए वह मालती को हिदायत देती है कि रात का खाना वह बना कर चली जाए. गरमगरम रोटियां वह पापा को खुद बना कर खिला देगी. महेंद्र को जब पता चलता है तो वह मालती का पक्ष लेते हुए आभा से कहते हैं कि वह रोटियां उसे ही बनाने दे.

अब आगे…

आभा किसी भी तरह मालती को काम से हटाना चाहती थी इसीलिए पापा के हर सवाल का जवाब पर जवाब दिए जा रही थी, ‘‘पापा, पसीने से तरबतर पता नहीं रोज नहाती भी है या नहीं, पास से निकलती है तो बदबू मारती है. अब तो मैं ने उसे मना कर ही दिया है. आप उस से कुछ न कहें, बल्कि मैं तो सोचती हूं बेकार में 1 हजार रुपए महीना क्यों जाए, मैं ही खाना बना लिया करूंगी. मुझे खाना बनाने का अभ्यास भी हो जाएगा.’’

‘‘अरे नहीं, लगी रहने दो उसे, वह बहुत अच्छा खाना बनाती है. बिलकुल तुम्हारी मम्मी जैसा.’’

‘‘बिलकुल झूठ पापा, मम्मी जैसा तो नानी भी नहीं बना पातीं. दादीमां भी कहा करती थीं कि माया जैसा खाना बिरली औरतें ही बना पाती हैं.’’

‘‘पर अब वह बनाने वाली हैं कहां?’’

‘‘पापा, अब मैं बनाऊंगी मम्मी जैसा खाना. कोशिश करूंगी तो सीख जाऊंगी, अब शाम का खाना मैं ही बनाऊंगी.’’

‘‘अरे आभा, उसे लगी रहने दे. उस ने हमारे घर के लिए कई घरों का काम छोड़ दिया है. उस के छोटेछोटे बच्चे हैं. उस का आदमी दारूबाज है, उस को मारतापीटता है. इतनी सुघड़ औरत की कदर नहीं करता.’’

‘‘पर पापा, आप ने सब का ठेका तो नहीं लिया. कल से शाम के खाने से उस की छुट्टी,’’ कह कर वह पापा के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना कमरे से बाहर निकल गई. पास खड़ा अमित भी सिर हिला कर मुसकरा रहा था.

इधर मालती के मुख पर उदासी का आवरण चढ़ गया. सुबह का खाना निबटा कर वह बोली, ‘‘बेबी, तो मैं जाऊं? पर साहब जाते समय कह गए थे कि शाम को नहा कर आया करूं . सुबह के कपड़ों से पसीने की बदबू आती है, इसलिए वह आप की मम्मी की ये 4 साडि़यां, ब्लाउज दे गए हैं. ये देखिए…’’

उस ने अपने झोले से कपड़े निकाल कर दिखाए तो आभा चकित रह गई. अमित भी पास खड़ा देख रहा था. गुस्से से बोला, ‘‘जब आभा ने कह दिया कि वह अब खाना बनाएगी तब तू पीछे क्योें पड़ी है. हम एक सा खातेखाते ऊब गए हैं. जब से मम्मी गई हैं तेरे हाथ का ही तो खा रहे हैं. अब शाम को नहीं आएगी तू, समझी.’’

‘‘भैयाजी, क्यों एक गरीब के पेट पर लात मार रहे हो. पगार कम मिलेगी तो 4 बच्चों का पेट मैं कैसे भरूंगी?’’

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‘‘बस मालती, तेरी गरीबी मिटाने को दुनिया में हम ही तो नहीं बचे हैं, और घर पकड़ ले जा कर,’’ वे दोनों एकसाथ चिल्लाए तो वह आंसू पोंछती बाहर निकल गई. तब दोनों में बहुत देर तक पापा की हरकतों पर चर्चा होती रही.

धीरेधीरे शाम को मालती को न देख कर पापा उदास रहने लगे. आभा शाम को उन की पसंद का ही खाना बनाती. 1-1 चपाती सेंक कर कमरे में दौड़दौड़ कर पहुंचाती परंतु वह चुपचाप ही रहते, कुछ न बोलते. मालती सुबह सब को बना कर खिलाती फिर स्वयं खा कर चुपचाप चली जाती. नित्य के इस नियम से दोनों खुश थे कि इस औरत के चंगुल से उन्होंने पापा को बचा लिया.

जब से मालती का शाम का आना बंद हुआ था पापा 7-8 बजे तक आफिस से घर लौटते. जब वे दोनों पूछते तो कह देते कि आफिस में काम बहुत था या किसी दोस्त का नाम लेते कि वहां चला गया था.

परंतु उस दिन जब अमित ने वह दृश्य देखा तो घबरा कर दौड़ा आया, ‘‘आभा, आज जो देखा उसे सुनोगी तो सिर थाम लोगी. आज पापा के साथ मालती कार में उन की बगल में बैठी थी. मम्मी के जेवर, कपड़े पहने हुए थी. पापा उसे होटल ले गए. वहां उन्होंने कमरा बुक करवाया.’’

‘‘अरे, यह क्या हो रहा है. पापा इतने गिर जाएंगे, कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था, अब हम क्या करें?’’ वह सिर पकड़ कर कुर्सी पर बैठ गई और फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘घबरा मत, आभा, रोने से क्या होगा? कोई उपाय सोचो जिस से इस औरत से पापा को बचा सकें.’’

‘‘भैया, असली जेवर तो सब बैंक में हैं, यहां तो आर्टीफिशयल ही हैं. क्या वही दे दिए पापा ने. मैं अलमारी का लाकर देखती हूं,’’ वह आंसू पोंछती हुई दौड़ी, लाकर खोल कर देखा तो स्तब्ध रह गई. डब्बे खाली पडे़ थे, जेवर गायब थे.

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‘‘अच्छा किया, जो जेवर बैंक में रख आए, वरना सब चले जाते,’’ दोनों ने चैन की सांस ली.

‘‘भैया, पापा के दोनों खास दोस्तों से बात करें. संभव है, पापा उन की बात मान लें? नहीं तो मामामामी, नानी, बूआफूफाजी को फोन कर के सब हाल बता दें. बूआजी पापा से बड़ी हैं. पापा उन का लिहाज भी बहुत करते हैं.’’

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