इस पर फिर अपने गाल फुला कर प्रीति बोली, ‘‘ऐसी बातें करोगे, तो मैं चली जाऊंगी.‘‘
‘‘तो चली जाओ. भले ही मुझे नाराजगी न हो, यह रात और यह चांदनी, यह मौसम और ये नजारे तुम से जरूर नाराज हो जाएंगे. कहेंगे, यह लड़की कितनी पत्थर दिल है,‘‘ रूठी मैना को मनाने के चक्कर में मैं ने भी रूठने का नाटक किया.
तब अचानक अपने कदम रोक कर बिना कुछ बोले प्रीति मुझ से लिपट गई थी.
‘‘अरे, यह हुई न बात, वैसे मैं तो तुम्हें यों ही छेड़ रहा था,‘‘ मैं ने भी भावुक हो कर उसे अपनी बांहों में समेट लिया था.
प्रीति कुछ देर तक उसी तरह मेरी बांहों में लिपटी रही. दोनों की सांसें अनायास ही तेज हो चली थीं और दिल की धड़कनों का टकराना, दोनों ही महसूस कर रहे थे. फिर मैं ने प्रीति की मौन स्वीकृति को भांप कर प्यार से उस के होंठों को चूम लिया. फिर जब दोनों अलग हुए, तो दोनों की ही आंखों में प्रेम के आंसू झिलमिला रहे थे.
‘‘चलो, अब वापस चलते हैं, काफी देर हो गई,‘‘ अपने मोबाइल पर समय देखते हुए प्रीति ने कहा.
‘‘थोड़ी देर और रुको न, तुम तो जानती हो, मैं इसी रात के लिए शहर से गांव आया हूं. अगर तुम आने का वादा न करती, तो क्या मैं यहां आता?‘‘
‘‘तुम्हें पता है, मैं कितनी होशियारी से निकली हूं. अगर घर में किसी को भनक लग गई तो…‘‘
‘‘तो क्या होगा? हम यहां घूमने ही तो आए हैं, कोई गलत काम तो नहीं कर रहे.‘‘
‘‘मेरे भोले मजनूं, यह शहर नहीं गांव है. मैं यहां 14-15 साल से रह रही हूं. तुम तो बस, 2-3 दिन के लिए कभीकभार ही आते हो. यहां बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.‘‘
‘‘तो डरता कौन है? जब हमारा प्यार सच्चा है, तो मुझे किसी की परवा नहीं.‘‘
‘‘मेरी तो परवा है…‘‘
‘‘तुम्हें कोई कुछ कह कर तो देखे…‘‘
‘‘मैं अपने मांबाप की बात कर रही हूं. अगर वे ही कुछ कहेंगे तो?‘‘
‘‘अरे, उन्हें तो मैं कुछ नहीं कह सकता. मेरे लिए तो वे पूजनीय हैं, क्योंकि उन के कारण ही तो तुम मुझे मिली हो. मैं तो जिंदगी भर उन के पैर धो सकता हूं.‘‘
‘‘तो चलो, चलते हैं,‘‘ प्रीति मुसकराते हुए मेरा हाथ पकड़ कर बोली.
‘‘काश, इस तरह हम रोज मिल पाते,‘‘ मैं ने प्रीति के साथ कदम बढ़ाते हुए आह भर कर कहा.
‘‘इंतजार का मजा लेना भी सीखो. ऐसी चांदनी रात रोज नहीं हुआ करती,‘‘ प्रीति मेरी ओर देखते हंसते हुए बोली.
‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं, थोड़ी देर और ठहर लेते हैं. खैर, छोड़ो. अब तो कुछ दिन कुछ रातें, इंतजार का ही मजा लेना पड़ेगा. तुम महीने भर बाद जो शहर लौटोगी. मुझे तो शायद कल ही लौटना पड़ेगा,‘‘ मैं ने कुछ उदास स्वर में कहा.
‘‘क्या? तुम कल ही लौट रहे हो,‘‘ प्रीति हैरानी जाहिर करते हुए बोली.
‘‘हां, पापा का फोन आया था. इस बार उन्हें छुट्टी नहीं मिल पाई वरना मम्मीपापा भी सप्ताह भर के लिए यहां आ जाते. वे नहीं आ पाएंगे, इसलिए उन्होंने इस बार दादी को भी साथ ले कर आने के लिए कहा है. अगर तुम भी साथ वापस चलती तो कितना अच्छा होता.‘‘
‘‘अगर चाचाजी आ जाते तो शायद जल्दी लौटना हो जाता, पर उन को भी छुट्टी नहीं मिल पाई. बाबा, खेतों का काम खत्म होने से पहले जाएंगे नहीं और तुम तो जानते हो मैं अकेली जा नहीं सकती.‘‘
‘‘खासकर किसी दूसरी जाति के लोगों के साथ…‘‘
‘‘फिर मुझे ताने सुना रहे हो?‘‘
‘‘नहीं, मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रहा पर कभीकभी सोचने पर विवश हो जाता हूं कि हमारा गांव इतना खूबसूरत है मगर यहां अभी भी जातपांत के पुराने खयालातों से लोग मुक्त नहीं हो पाए हैं. पता नहीं, हमारे प्यार का अंजाम क्या होगा…‘‘
‘‘तो क्या तुम अंजाम से डरते हो?‘‘
‘‘हां, डरता तो हूं. अगर कोई कहेगा, तुम्हारी जिंदगी, तुम्हारी नहीं हो सकती, तो क्या डरना नहीं चाहिए?‘‘
‘‘बिलकुल नहीं डरना चाहिए आप को, क्योंकि आप की जिंदगी हमेशा आप के साथ रहेगी,‘‘ प्रीति मुसकरा कर बोली.
‘‘तो मैं भी अंजाम से नहीं डरता,‘‘ मैं ने भी उसी अंदाज में कहा.
‘‘यह हुई न बात‘‘ फिर शांत स्वर में बोली, ‘‘रमेश, देखना इस गांव में बदलाव हम ही लाएंगे. लोगों को यह मानना पड़ेगा कि इंसानियत से बड़ी दूसरी कोई जात नहीं होती और इंसानियत कहती है कि एकदूसरे को समान दृष्टि से देखा जाए और सभी प्रेम से मिल कर रहें.‘‘
‘‘तुम जब भी इस तरह की बातें करती हो, तो मेरे अंदर एक जोश आ जाता है. आज मैं भी इस पूनम की रात में कसम खाता हूं, रास्ता चाहे जितना कठिन हो, जब तक हमें मंजिल मिल नहीं जाती, मैं हर कदम तुम्हारे साथ रहूंगा,‘‘ मैं ने अपने दोनों हाथों को ऊपर फैला कर बड़े जोश में कहा.
उस रात ढेर सारी उम्मीदों के साथ, दिल में ढेर सारे सपनों को सजाए, एकदूसरे से विदा ले कर, हम दोनों अपनेअपने घर चले गए थे. लेकिन जिस कठिन रास्ते की हम ने कल्पना की थी, वह इतना कंटीला साबित होगा, कभी सोचा न था.
उस रात लौटते वक्त शायद किसी ने हमें देख लिया था. हो सकता है, वह मंदिर का पुजारी, गांव का पंडित ही रहा हो. क्योंकि उस ने ही प्रीति के बाबा को बुलवा कर इस की शिकायत की थी. धर्म के, समाज के ऐसे ठेकेदार, जिन्हें राधाकृष्ण के प्रेम, उन की रासलीला से तो कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन यदि हम जैसे जोड़े उस का अनुसरण करें, तो उन के लिए समाज की मानमर्यादा, उस की इज्जत का सवाल उत्पन्न हो जाता है…
उस दिन प्रीति के साथ क्या हुआ? यह कहने की आवश्यकता नहीं है. उस के घर वाले तो मुझे भी ढूंढ़ने आ गए थे… पर मैं दादी को ले कर शहर के लिए सुबह की बस से पहले ही निकल गया था.
बाद में गांव से प्रीति का फोन आने पर मैं पिताजी के सामने जा कर उन्हें सारी बातें बता कर रोने लगा. हमेशा की तरह एक दोस्त के समान मेरा साथ देते हुए पिताजी मुझे समझा कर तुरंत प्रीति के चाचाजी से बात करने चले गए. जो हम से कुछ ही दूर किराए के मकान में रहते थे. चाचाजी, पिताजी की तरह ही सुलझे विचारों वाले आदमी थे. गांव जा कर सब को काफी समझाने का प्रयास किया. यहां तक कि पंचों से भी बात कर के देखा, लेकिन बात नहीं बन पाई.
भाईभाई के बीच मनमुटाव वाली स्थिति पैदा हो गई. फिर पंचों से भी यह धमकी मिली कि यदि वे समाज की परंपरा के खिलाफ जाएंगे, तो उन्हें जातबिरादरी से बाहर कर दिया जाएगा. कोई उन का छुआ पानी तक नहीं पीएगा.
अंत में हार कर चाचाजी और पिताजी को पुलिस का सहारा लेना पड़ा और न चाहते हुए भी हम दोनों की शादी मजबूरन कोर्ट में करनी पड़ी.
हम दोनों की बस इतनी ही तो इच्छा थी कि समाज के सामने सामाजिक रीतिरिवाज से हम दोनों की शादी हो जाए. लेकिन समाज की रूढि़वादी परंपराओं की दीवार को गिरा पाना आसान काम तो नहीं होता. हम ने प्रयास क्या किया? कितना कुछ घटित हो गया. बाद में यह भी पता चला कि गांव के कुछ लोगों ने हमारे घर को आग लगाई और गांव से हमेशा के लिए हमारा बहिष्कार कर दिया गया.
आज इतने सालों बाद भी स्थिति जस की तस है. हमारे लिए वह रास्ता उतना ही दुर्गम है, जो वापसी को उस गांव तक जाता है. उस रात के बारे में कभी सोचता हूं, तो अपनी उस नादानी पर डर जाता हूं. क्योंकि जिस समाज में जातपांत के आधार पर इंसान का विभाजन होता हो और जहां जवान लड़केलड़की के बीच पवित्र रिश्ते जैसी किसी चीज की कल्पना तक नहीं की जाती, वहां उस सुनसान रात में एक जवान जोड़े को घूमते देख कर क्या उन्हें यों ही छोड़ दिया जाता?
फिर भी पता नहीं क्यों? उस रात को, प्रीति का साथ मैं भी कभी भुला नहीं पाया. आज भी हर ऐसी चांदनी रात में वह पूनम की रात याद आते ही मन भावविभोर हो जाता है.