Monsoon Special: वह पूनम की रात- भाग 3

इस पर फिर अपने गाल फुला कर प्रीति बोली, ‘‘ऐसी बातें करोगे, तो मैं चली जाऊंगी.‘‘

‘‘तो चली जाओ. भले ही मुझे नाराजगी न हो, यह रात और यह चांदनी, यह मौसम और ये नजारे तुम से जरूर नाराज हो जाएंगे. कहेंगे, यह लड़की कितनी पत्थर दिल है,‘‘ रूठी मैना को मनाने के चक्कर में मैं ने भी रूठने का नाटक किया.

तब अचानक अपने कदम रोक कर बिना कुछ बोले प्रीति मुझ से लिपट गई थी.

‘‘अरे, यह हुई न बात, वैसे मैं तो तुम्हें यों ही छेड़ रहा था,‘‘ मैं ने भी भावुक हो कर उसे अपनी बांहों में समेट लिया था.

प्रीति कुछ देर तक उसी तरह मेरी बांहों में लिपटी रही. दोनों की सांसें अनायास ही तेज हो चली थीं और दिल की धड़कनों का टकराना, दोनों ही महसूस कर रहे थे. फिर मैं ने प्रीति की मौन स्वीकृति को भांप कर प्यार से उस के होंठों को चूम लिया. फिर जब दोनों अलग हुए, तो दोनों की ही आंखों में प्रेम के आंसू झिलमिला रहे थे.

‘‘चलो, अब वापस चलते हैं, काफी देर हो गई,‘‘ अपने मोबाइल पर समय देखते हुए प्रीति ने कहा.

‘‘थोड़ी देर और रुको न, तुम तो जानती हो, मैं इसी रात के लिए शहर से गांव आया हूं. अगर तुम आने का वादा न करती, तो क्या मैं यहां आता?‘‘

‘‘तुम्हें पता है, मैं कितनी होशियारी से निकली हूं. अगर घर में किसी को भनक लग गई तो…‘‘

‘‘तो क्या होगा? हम यहां घूमने ही तो आए हैं, कोई गलत काम तो नहीं कर रहे.‘‘

‘‘मेरे भोले मजनूं, यह शहर नहीं गांव है. मैं यहां 14-15 साल से रह रही हूं. तुम तो बस, 2-3 दिन के लिए कभीकभार ही आते हो. यहां बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.‘‘

‘‘तो डरता कौन है? जब हमारा प्यार सच्चा है, तो मुझे किसी की परवा नहीं.‘‘

‘‘मेरी तो परवा है…‘‘

‘‘तुम्हें कोई कुछ कह कर तो देखे…‘‘

‘‘मैं अपने मांबाप की बात कर रही हूं. अगर वे ही कुछ कहेंगे तो?‘‘

‘‘अरे, उन्हें तो मैं कुछ नहीं कह सकता. मेरे लिए तो वे पूजनीय हैं, क्योंकि उन के कारण ही तो तुम मुझे मिली हो. मैं तो जिंदगी भर उन के पैर धो सकता हूं.‘‘

‘‘तो चलो, चलते हैं,‘‘ प्रीति मुसकराते हुए मेरा हाथ पकड़ कर बोली.

‘‘काश, इस तरह हम रोज मिल पाते,‘‘ मैं ने प्रीति के साथ कदम बढ़ाते हुए आह भर कर कहा.

‘‘इंतजार का मजा लेना भी सीखो. ऐसी चांदनी रात रोज नहीं हुआ करती,‘‘ प्रीति मेरी ओर देखते हंसते हुए बोली.

‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं, थोड़ी देर और ठहर लेते हैं. खैर, छोड़ो. अब तो कुछ दिन कुछ रातें, इंतजार का ही मजा लेना पड़ेगा. तुम महीने भर बाद जो शहर लौटोगी.  मुझे तो शायद कल ही लौटना पड़ेगा,‘‘ मैं ने कुछ उदास स्वर में कहा.

‘‘क्या? तुम कल ही लौट रहे हो,‘‘ प्रीति हैरानी जाहिर करते हुए बोली.

‘‘हां, पापा का फोन आया था. इस बार उन्हें छुट्टी नहीं मिल पाई वरना मम्मीपापा भी सप्ताह भर के लिए यहां आ जाते. वे नहीं आ पाएंगे, इसलिए उन्होंने इस बार दादी को भी साथ ले कर आने के लिए कहा है. अगर तुम भी साथ वापस चलती तो कितना अच्छा होता.‘‘

‘‘अगर चाचाजी आ जाते तो शायद जल्दी लौटना हो जाता, पर उन को भी छुट्टी नहीं मिल पाई. बाबा, खेतों का काम खत्म होने से पहले जाएंगे नहीं और तुम तो जानते हो मैं अकेली जा नहीं सकती.‘‘

‘‘खासकर किसी दूसरी जाति के लोगों के साथ…‘‘

‘‘फिर मुझे ताने सुना रहे हो?‘‘

‘‘नहीं, मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रहा पर कभीकभी सोचने पर विवश हो जाता हूं कि हमारा गांव इतना खूबसूरत है मगर यहां अभी भी जातपांत के पुराने खयालातों से लोग मुक्त नहीं हो पाए हैं. पता नहीं, हमारे प्यार का अंजाम क्या होगा…‘‘

‘‘तो क्या तुम अंजाम से डरते हो?‘‘

‘‘हां, डरता तो हूं. अगर कोई कहेगा, तुम्हारी जिंदगी, तुम्हारी नहीं हो सकती, तो क्या डरना नहीं चाहिए?‘‘

‘‘बिलकुल नहीं डरना चाहिए आप को, क्योंकि आप की जिंदगी हमेशा आप के साथ रहेगी,‘‘ प्रीति मुसकरा कर बोली.

‘‘तो मैं भी अंजाम से नहीं डरता,‘‘ मैं ने भी उसी अंदाज में कहा.

‘‘यह हुई न बात‘‘ फिर शांत स्वर में बोली, ‘‘रमेश, देखना इस गांव में बदलाव हम ही लाएंगे. लोगों को यह मानना पड़ेगा कि इंसानियत से बड़ी दूसरी कोई जात नहीं होती और इंसानियत कहती है कि एकदूसरे को समान दृष्टि से देखा जाए और सभी प्रेम से मिल कर रहें.‘‘

‘‘तुम जब भी इस तरह की बातें करती हो, तो मेरे अंदर एक जोश आ जाता है. आज मैं भी इस पूनम की रात में कसम खाता हूं, रास्ता चाहे जितना कठिन हो, जब तक हमें मंजिल मिल नहीं जाती, मैं हर कदम तुम्हारे साथ रहूंगा,‘‘ मैं ने अपने दोनों हाथों को ऊपर फैला कर बड़े जोश में कहा.

उस रात ढेर सारी उम्मीदों के साथ, दिल में ढेर सारे सपनों को सजाए, एकदूसरे से विदा ले कर, हम दोनों अपनेअपने घर चले गए थे. लेकिन जिस कठिन रास्ते की हम ने कल्पना की थी, वह इतना कंटीला साबित होगा, कभी सोचा न था.

उस रात लौटते वक्त शायद किसी ने हमें देख लिया था. हो सकता है, वह मंदिर का पुजारी, गांव का पंडित ही रहा हो. क्योंकि उस ने ही प्रीति के बाबा को बुलवा कर इस की शिकायत की थी. धर्म के, समाज के ऐसे ठेकेदार, जिन्हें राधाकृष्ण के प्रेम, उन की रासलीला से तो कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन यदि हम जैसे जोड़े उस का अनुसरण करें, तो उन के लिए समाज की मानमर्यादा, उस की इज्जत का सवाल उत्पन्न हो जाता है…

उस दिन प्रीति के साथ क्या हुआ? यह कहने की आवश्यकता नहीं है. उस के घर वाले तो मुझे भी ढूंढ़ने आ गए थे… पर मैं दादी को ले कर शहर के लिए सुबह की बस से पहले ही निकल गया था.

बाद में गांव से प्रीति का फोन आने पर मैं पिताजी के सामने जा कर उन्हें सारी बातें बता कर रोने लगा. हमेशा की तरह एक दोस्त के समान मेरा साथ देते हुए पिताजी मुझे समझा कर तुरंत प्रीति के चाचाजी से बात करने चले गए. जो हम से कुछ ही दूर किराए के मकान में रहते थे. चाचाजी, पिताजी की तरह ही सुलझे विचारों वाले आदमी थे. गांव जा कर सब को काफी समझाने का प्रयास किया. यहां तक कि पंचों से भी बात कर के देखा, लेकिन बात नहीं बन पाई.

भाईभाई के बीच मनमुटाव वाली स्थिति पैदा हो गई. फिर पंचों से भी यह धमकी मिली कि यदि वे समाज की परंपरा के खिलाफ जाएंगे, तो उन्हें जातबिरादरी से बाहर कर दिया जाएगा. कोई उन का छुआ पानी तक नहीं पीएगा.

अंत में हार कर चाचाजी और पिताजी को पुलिस का सहारा लेना पड़ा और न चाहते हुए भी हम दोनों की शादी मजबूरन कोर्ट में करनी पड़ी.

हम दोनों की बस इतनी ही तो इच्छा थी कि समाज के सामने सामाजिक रीतिरिवाज से हम दोनों की शादी हो जाए. लेकिन समाज की रूढि़वादी परंपराओं की दीवार को गिरा पाना आसान काम तो नहीं होता. हम ने प्रयास क्या किया? कितना कुछ घटित हो गया. बाद में यह भी पता चला कि गांव के कुछ लोगों ने हमारे घर को आग लगाई और गांव से हमेशा के लिए हमारा बहिष्कार कर दिया गया.

आज इतने सालों बाद भी स्थिति जस की तस है. हमारे लिए वह रास्ता उतना ही दुर्गम है, जो वापसी को उस गांव तक जाता है. उस रात के बारे में कभी सोचता हूं, तो अपनी उस नादानी पर डर जाता हूं. क्योंकि जिस समाज में जातपांत के आधार पर इंसान का विभाजन होता हो और जहां जवान लड़केलड़की के बीच पवित्र रिश्ते जैसी किसी चीज की कल्पना तक नहीं की जाती, वहां उस सुनसान रात में एक जवान जोड़े को घूमते देख कर क्या उन्हें यों ही छोड़ दिया जाता?

फिर भी पता नहीं क्यों? उस रात को, प्रीति का साथ मैं भी कभी भुला नहीं पाया. आज भी हर ऐसी चांदनी रात में वह पूनम की रात याद आते ही मन भावविभोर हो जाता है.

तंत्र मंत्र का खेला – भाग 3 : बाबा के जाल से निकल पाए सुजाता और शैलेश

सुजाता गदगद हो गई. आज सुबह  इतनी सुहावनी होगी, उस ने  सोचा न था. उसे पड़ोसिनों ने बताया तो था यदि मजार वाले बाबा का आशीर्वाद भी मिल जाए तो फिर तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई ही समझो.

खुश मन से सुजाता ने जब घर में प्रवेश किया, तो उस का पति चाय की चुस्की के साथ अखबार पढ़ने में तल्लीन था. सुजाता गुनगुनाते हुए घर के कार्यों में व्यस्त हो गई. महेंद्र सब समझ गया कि वह मजार का चक्कर लगा कर आई है, मगर कुछ न बोला.

वह सोचने लगा कितने सरल स्वभाव की है उस की पत्नी, सब की बातों में तुरंत आ जाती है, अब अगर मैं वहां जाने से रोकूंगा तो रुक तो जाएगी मगर उम्रभर मुझे दोषी भी समझती रहेगी कि मैं ने उस के मन के अनुसार कार्य न कर के, उसे संतान पाने के आखिरी अवसर से भी वंचित कर दिया. आज जा कर आई है तो कितनी खुश लग रही है वरना कितनी बुझीबुझी सी रहती है. चलो, कोई नहीं, 40 दिनों की ही तो बात है, फिर खुद ही शांत हो कर बैठ जाएगी. मेरे टोकने से इसे दुख ही पहुंचेगा.

दिन बीतते देर नहीं लगती, 40 दिन क्या 4 महीने बीत गए, मगर सुजाता का मजार जाना न रुका. अब वह गैस्ट फैकल्टी के कार्य में भी रुचि नहीं लेती, न ही आसपड़ोस की महिलाओं के संग कार्यक्रम में मन लगाती. अपने कमरे को अंदर से बंद कर, घंटों न जाने कैसे तंत्रमंत्र अपनाती. इन सब बातों से बेखबर एक दिन अचानक रमा उस महल्ले से गुजरी. उस ने सोचा, सुजाता भाभी की खबर भी लेती चलूं, अरसा हो गया उन्हें, वे पार्लर नहीं आईं.

दोपहर का समय, दरवाजे की घंटी सुन सुजाता को ताज्जुब हुआ कि इस समय कौन है? दरवाजा खोलते ही रमा को देख कर खुशी से चहक उठी. उसे लगभग खींचते हुए भीतर ले गई.

मगर रमा उसे देख कर हैरान थी कि क्या यह वही सुजाता है जो कितनी सजीसंवरी रहती थी. सामने मैलेकुचैले गाउन में, कालेसफेद बेतरतीब बालों की खिचड़ी के साथ, न मांग में सिंदूर, न मंगलसूत्र, न चूडि़यां, न बिंदी पहने सुजाता किसी सड़क पर घूमती पगली से कम नहीं लगी. ‘‘भाभी, आप को क्या हो गया है? तबीयत तो ठीक है न आप की? भाईसाहब ठीक तो हैं न?’’ रमा ने हैरानी से पूछा.

‘‘अब आई है, तो बैठ. तुझे सब बताती हूं. मेरी तबीयत को कुछ नहीं हुआ बल्कि मेरे चारों तरफ भूतों का डेरा हो गया है. कोई मेरी बात का विश्वास नहीं करता. यहां देख मैं इसे सोफे पर रातभर जाग कर टीवी देखती रहती हूं. अगर झपकी आई तो सो गई वरना पूरी रात यों ही कट जाती है. ये भूत दिनरात मेरे चारों तरफ मंडराते रहते हैं. दिन में भी कभी महल्ले के बच्चे के रूप में तो कभी पड़ोसिन के रूप में आ कर बैठ जाते हैं. फिर चाय बनाने या कुछ लेने भीतर जाओ, तो गायब हो जाते हैं.’’

‘‘भाभी, ऐसी बातें कर के मुझे मत डराओ?’’ रमा घबरा गई.

‘‘यह मेरी जिंदगी की सचाई बन गई है. ये देखो, मेरे हाथ में ये निशान. अगर मैं चूड़ी, बिंदी, कुछ भी पहनती हूं तो ऐसे निशान बन जाते हैं. सजनेसंवरने पर मुझे ये भूत बहुत परेशान करते हैं, इसीलिए मैं अब सादगी से रहती हूं, बाल भी नहीं रंगती, मेहंदी भी नहीं लगाती,’’ सुजाता बोली.

‘‘भाईसाहब, आप को कुछ समझाते नहीं हैं क्या?’’ रमा सुजाता की बातें सुन कर उलझन में पड़ गई.

‘‘मेरे पति के अंदर तो खुद ही आत्मा आती है. जब वह आत्मा आती है तो उन की आवाज भर्रा जाती है, चेहरा सर्द हो जाता है, उसी आत्मा ने मुझे सादगी से रहने का आदेश दिया है.’’

‘‘मैं चलती हूं भाभी, बेटे के स्कूल से लौटने का समय हो गया है,’’ कह कर रमा उठ खड़ी हुई. सुजाता की बातें सुन कर रमा के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी.

रमा अपनी स्कूटी स्टार्ट कर ही रही थी कि सामने से शैलेश आता दिखा. शैलेश उसी की गांवबिरादरी का है, रिश्ते में उस का चचेरा भाई लगता है. उसे देख कर वह रुक गई. उसी ने तो 2 महीने पहले उसे स्कूटी चलानी सिखाई थी. उस ने सुजाता के दरवाजे पर नजर डाली. सुजाता ने अपनेआप को फिर से घर में कैद कर लिया था. उस ने शैलेश को अपने पीछे बैठने का इशारा किया और वहां से सीधा अपने घर को चल पड़ी.

शैलेश ने जो बताया उसे सुन कर रमा हैरान रह गई. ‘‘सुजाता जब पहली बार मजार में गई थी तो उसी दिन बाबा ने उस के बारे में पूरी जानकारी उस से जुटा ली. सुजाता धीरेधीरे बाबा की कही बातों का आंख मूंद कर विश्वास करने लगी थी. किंतु 40 दिन बीतने के बाद भी जब कोई परिणाम न मिला तो बाबा ने उसे समझाया कि यह सब तुम्हारे पति की शंका करने की वजह से हो रहा है. जब तक वे भी सच्चे मन से इस ताकत को नमन नहीं करेंगे, तब तक तुम अपने लक्ष्य को नहीं पा सकतीं. यह सुन कर सुजाता ने अपने पति को भी मजार लाने का फैसला किया और रोधो कर, गिड़गिड़ा कर, उसे यहां तक लाने में सफल हो ही गई. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, शैलेश? रमा की उत्सुकता चरम पर थी.’’

‘‘लेकिन जब मैं ने महेंद्र सर से कहा तो वे गुस्से से लालपीले हो कर कहने लगे, ‘ये सारी बातें बकवास हैं, ये फेरे लगाने से कुछ नहीं होता बल्कि अब तो सुजाता घरेलू कार्य में भी रुचि नहीं लेती. बीमारों की तरह पूरे दिन वह लेटी रहती है. चलो, मैं भी वहां का नजारा देख कर आता हूं.

‘‘उस दिन बाबा स्टेशन से पहले पीपल के पेड़ के नीचे बैठे आसपास से आए आदिवासियों को घेर कर बैठे थे. उस दिन मजार का मेला भी था जो मजार पर न लग कर बाहर पास के मैदान में लगता है. उस दिन की भीड़ को देखते हुए किसी को भी स्टेशन की सुरक्षा के लिहाज से मजार तक जाने नहीं दिया जाता. इसलिए जो भी भक्त, चादर, अगरबत्ती, धूप जो भी चढ़ाना चाहे, वह बाबा को सौंप देता है. इसीलिए बाबा के चारों तरफ भीड़ जुटी थी. जिस में गरीब आदिवासी महिलाएं, उन की बेटियां बहुत श्रद्धा के साथ हाथ जोड़ लाइन से आगे बढ़ती जा रही थीं.’’

‘‘सर, उन सब को बड़े ध्यान से देख रहे थे. थोड़ी देर में जब बाबा की नजर मेरे साथ खड़े सर पर पड़ी तो वे समझ गए कि ये सुजाता मैम के पति होंगे. उन्होंने उन्हें दूसरे दिन आ कर बात करने को कहा. सर मेरे साथ वापस आ गए.

‘‘तब तक तो मैं भी नहीं जानता था कि मैं खुद बाबा के हाथों का मोहरा बन कर रह गया हूं. वह एकतरफ सुजाता मैम को बच्चे के ख्वाब दिखा कर बरगला रहा था तो दूसरी तरफ प्रोफैसर को दूसरी शादी के सब्जबाग दिखाने लगा. इन दोनों को अपनी बातों का विश्वास दिलाने को, बाबा जब न तब, मुझे और मेरे दोस्तों को बुला कर हमारी मनोकामनाओं के पूरी होने के उदाहरण देता. हम भी उस की बात में हां में हां मिलाते, क्योंकि हमें बाबा की ताकत पर भरोसा भी था और डर भी.’’

‘‘धीरेधीरे उस ने मैम के दिमाग में यह बात भर दी कि उस का रहनसहन, पहनावा आकर्षक होने के कारण, पीपल के पेड़ के भूत, उस पर आसक्त हो गए हैं. इसलिए उसे सब से पहले अपने आप को सादगी में रखना होगा. दूसरी तरफ, प्रोफैसर को दूसरी शादी के लिए रिश्ते दिखाने लगा. उन्हीं में से एक रिश्ते में 16 साल की एक गरीब की लड़की का रिश्ता भी था, जो प्रोफैसर को बहुत ही भा गया.

‘‘आजकल सर के बहुत चक्कर लग रहे हैं उस लड़की के गांव के. यहां से 15 किलोमीटर पर ही तो है वह गांव. वहां आदिवासी परिवार हैं. उन के वहां अभी भी बालविवाह, बहुविवाह का चलन है. अब क्या है, सर की पांचों उंगलियां घी में हैं. वे भी बस लगता है अपनी बीवी के पूरी पागल होने के इंतजार में हैं ताकि उसे पागलखाने भेज कर, उस की सहानुभूति भी बटोर लें और फिर उस कन्या से विवाह कर संतान भी पैदा कर लें.

‘‘मेरी गलती, बस, यही है कि मैं बाबा और सर की चालों को पहले समझ ही नहीं पाया वरना मैम की कुछ मदद कर देता. मगर अब उन की मानसिक स्थिति को केवल किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ से मिल कर ही संभाला जा सकता है.’’

लेकिन मानसिक रोग विशेषज्ञ इस शहर में मौजूद ही नहीं हैं और दूसरे बड़े शहर में ले जा कर इलाज कराने के मूड में प्रोफैसर हैं ही नहीं. शैलेश के मुख से यह सब सुन रमा घोर चिंता में आ गई.

बेचारी सुजाता भाभी, यह मक्कार बाबा जब प्रोफैसर को अपनी बातों में न उलझा पाया तो उस ने दूसरा जाल फेंका जिस में बड़ेबड़े ऋ षिमुनि न पार पा पाए. तो फिर उस जाल में यह प्रोफैसर कैसे बच पाता. वह दूसरी शादी करने के लिए अपनी पहली पत्नी को भूल गया, मौकापरस्त आदम जात. यह सोच कर रमा अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

क्या आपका बिल चुका सकती हूं

Monsoon Special: जरूरी हैं दूरियां, पास आने के लिए -भाग 2

‘‘पर, मैं खुश क्यों नहीं हूं, क्या मैं विहान से प्यार… नहींनहीं, हम तो बस बचपन के साथी हैं. इस से ज््यादा तो कुछ नहीं है, फिर मैं आजकल विहान को ले कर इतना क्यों परेशान रहती हूं. उस से बात न होने से मुझे ये क्या हो रहा है? क्या मैं अपनी ही फीलिंग्स समझ नहीं पा रही हूं…?‘‘

इसी उधेड़बुन में रात आंखों में ही बीत गई थी. किसी से कुछ शेयर किए बिना ही वह वापस मुंबई लौट गई.

दिन यों ही बीत रहे थे, पूजा की शादी के बारे में न घर वालों ने आगे कुछ बताया और न ही मिशी ने पूछा.
एक दिन दोपहर को मिशी को काल आया, ‘‘घर की लोकेशन भेजो, डिनर साथ ही करेंगे.‘‘

मिशी ‘करती हूं’ के अलावा कुछ ना बोल सकी. उस के चेहरे पर मुसकान बिखर गई थी, उस रोज वह औफिस से जल्दी घर पहुंची, खाना बना कर, घर संवारा और खुद को संवारने में जुट गई, ‘‘मैं विहान के लिए ऐसे क्यों संवर रही हूं, इस से पहले तो कभी मैं ने इस तरह नहीं सोचा… ‘‘ उस को खुद पर हंसी आ गई, अपने ही सिर पर धीरे से चपत लगा कर वह विहान के इंतजार में भीतरबाहर होने लगी. उसे लग रहा था, जैसे वक्त थम गया हो, वक्त काटना मुश्किल हो रहा था.

शाम के लगभग 8 बजे बेल बजी. मिशी की सांसें ऊपरनीचे हो गईं. शरीर ठंडा सा लगने लगा. होंठों पर मुसकराहट तैर गई. दरवाजा खोला, पूरे 10 महीने बाद विहान उस के सामने था. एक पल को वह उसे देखती ही रही, दिल की बेचैनी आंखों से निकलने को उतावली हो उठी.

विहान भी लंबे समय बाद अपनी मिशी से मिल उसे देखता ही रह गया.फिर मिशी ने ही किसी तरह संभलते हुए विहान को अंदर आने के लिए कहा. मिशी की आवाज सुन विहान अपनी सुध में वापस आया. दोनों देर तक चुप बैठे, छुपछुप कर एकदूसरे को देख लेते, नजरें मिल जाने पर यहांवहां देखने लगते. दोनों ही कोशिश में थे कि उन की चोरी पकड़ी न जाए.

डिनर करने के बाद जल्दी ही फिर मिलने की कह कर विहान वापस चला गया.

उस रात वह विहान से कोई सवाल नहीं कर सकी थी, जितना विहान पूछता रहा, वह उतना ही जवाब देती गई. वह खोई रही, विहान को इतने दिनों बाद अपने करीब पा कर, जैसे जी उठी थी वह उस रात…

विहान एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था… 15 दिन बीत चुके थे, इन 15 दिनों में विहान और मिशी दो ही बार मिले.

विहान का काम पूरा हो चुका था, 1 दिन बाद उस को निकलना था. मिशी विहान को ले कर बहुत परेशान थी. आखिर उस ने निर्णय लिया कि विहान के जाने के पहले वह उस से बात करेंगी… पूछेगी उस की बेरुखी की वजह… मिशी अभी उधेड़बुन में थी, तभी मोबाइल बज उठा… विहान का था…
‘‘हेलो, मिशी औफिस के बाद तैयार रहना… बाहर चलना है, तुम्हें किसी से मिलवाना है.‘‘

‘‘किस से मिलवाना है, विहान.‘‘

‘‘शाम होने तो दो, पता चल जाएगा.‘‘

‘‘बताओ तो…‘‘

‘‘समझ लो, मेरी गर्लफ्रैंड है.‘‘

इतना सुनते ही मिशी चुप हो गई. 6 बजे विहान ने उसे पिक किया. मिशी बहुत उदास थी. दिल में हजारों सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. वह कहना चाहती थी, विहान तुम्हारी शादी पूजा दी से होने वाली है, ये क्या तमाशा है. पर नहीं कह सकी, चुपचाप बैठी रही.

‘‘पूछोगी नहीं, कौन है?’’ विहान ने कहा.

‘‘पूछ कर क्या करना है? मिल ही लूंगी कुछ देर में,‘‘ मिशी ने धीरे से कहा.
थोड़ी देर बाद वे समुद्र किनारे पहंुचे. विहान ने मिशी को एक जगह इंतजार करने को कहा, ‘‘ तुम यहां रुको, मैं उस को ले कर आता हूं.‘‘

आसमान झिलमिलाते तारों की सुंदर बूटियों से सजा था. समुद्र की लहरें प्रकृति का मनभावन संगीत फिजाओं में घोल रही थीं. हवा मंथर गति से बह रही थी, फिर भी मिशिका का मन उदासी के भंवर में फंसा जा रहा था.

‘‘विहान मुझ से दूर हो जाएगा, मेरा विहान,‘‘ सोचतेसोचते उस की उंगलियां खुद बा खुद रेत पर विहान का नाम उकेरने लगीं.

‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,‘‘ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.

मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां…. है, कब आए तुम… कहां है वह?‘‘

 

क्या आप का बिल चुका सकती हूं : भाग 2

‘‘दिस इज माई च्वाइस. अकेलेपन की उदासी अकसर बहुत करीबी दोस्त होती है हमारी. हां, राशा तो वहां से अगले दिन घर लौट गई थी. हमारी एक सैलानी टोली है, पर मैं उन के शोर में ज्यादा देर नहीं टिक पाती.’’

हम दोनों कोने में लगी बेंच पर जा बैठे. झील में परछाइयां फैल रही थीं.

मैं ने उस दिन राशा की विदाई वाला किस्सा उसे सुनाया तो वह संजीदा हो उठा, ‘‘आप लोग बड़ी हैं तो भी इतना सम्मान देती हैं…वरना मैं तो बहुत मामूली व्यक्ति हूं.’’

‘‘क्या मैं पूछ सकती हूं कि आप करते क्या हैं?’’

‘‘इस तरह की जगहों के बारे में लिखता हूं और उस से कुछ कमा कर अपने घूमने का शौक पूरा करता हूं. कभीकभी आप जैसे अद्भुत लोग मिल जाते हैं तो सैलानी सी कहानी भी कागज पर रवानी पा लेती है.’’

‘‘वंडरफुल.’’

मैं ने उसे राशा का पता नोट करने को कहा तो वह बोला, ‘‘उस से क्या होगा? लेट द थिंग्स गो फ्री…’’

मैं चुप रह गई.

‘‘पता छिपाने में मेरी रुचि नहीं है…’’ वह बोला, ‘‘फिर मैं तो एक लेखक हूं जिस का पता चल ही जाता है.’’

‘‘फिर…पता देने में क्या हर्ज है?’’

‘‘बंधन और रिश्ते के फैलाव से डरता हूं… निकट आ कर सब दूर हो जाते हैं…अकसर तड़पा देने वाली दूरी को जन्म दे कर…’’

‘‘उस रोज भी शायद तुम डरे थे और जल्दी से भाग निकले थे.’’

‘‘हां, आप के कारण.’’

मैं बुरी तरह चौंकी.

‘‘उस रोज आप को देखा तो किसी की याद आ गई.’’

‘‘किस की?’’

‘‘थी कोई…मेरे दिल व दिमाग के बहुत करीब…दूरदूर से ही उसे देखता रहा और उस के प्रभामंडल को…’’ कहतेकहते वह कहीं खो गया.

मैं हथेलियों पर अपना चेहरा ले कर कुहनियों के बल मेज पर झुकी रही.

‘‘कुछ लोग बाहर से भी और भीतर से भी इतने सुंदर क्यों होते हैं…और साथ में इतने अद्भुत कि हर पल उन का ही ध्यान रहता है? और इतने अपवाद क्यों?…कि या तो किताबों में मिलें या ख्वाबों में…या मिल ही जाएं तो बिछड़ जाने को ही मिलें?’’ वह बोला.

मैं उस की आंखों में उभरती तरलता को देखती रही. वह कहता रहा…

‘‘हम जब किसी से मिलते हैं तो उस मिलन की उमंग को धीरेधीरे फीका क्यों कर देते हैं? जिंदा रहते भी उसे मार क्यों देते हैं?’’

‘‘अधिक निकटता और अधिक दूरी हमें एकदूसरे को समझने नहीं देती…’’ मैं उस से एक गहरा संवाद करने के मूड में आ गई, ‘‘हमें एक ऐसा रास्ता बने रहने देना होता है, जो खत्म नहीं होता, वरना उस के खत्म होते ही हम भी खत्म हो जाते हैं और हमारा वहम टूट जाता है.’’

उस ने मेरी आंखों में देखा और कहना शुरू किया, ‘‘जिन्हें जीना आता है वे किसी रास्ते के खत्म होने से नहीं डरते, बल्कि उस के सीमांत के पार के लिए रोमांचित रहते हैं. भ्रम तब तक बना रहता है जब तक हम आगे के दृश्यों से बचना चाहते हैं…सच तो यह है कि रास्ते कभी खत्म नहीं होते…न ही भ्रम…अनदेखे सच तक जाने के लिए भ्रम ही तो बनते हैं. किश्तियों के डूबने से पता नहीं हम डरते क्यों हैं?’’

मैं उसे ध्यान से सुनने लगी.

‘‘सुखी, संतुष्ट बने रहने के लिए हम औसत व्यक्ति बन जाते हैं, जबकि चाहतें अनंत हैं…दूरदूर तक.’’

‘‘कभीकभी हम सहमत हो कर भी अलग तलों पर नजर आते हैं…मैं तुम्हारी इस बात को शह दूं तो कहूंगी कि मैं वहां खत्म नहीं होना चाहती जहां मैं ‘मुझ’ से ही मिल कर रह जाऊं…मुझे अपनी हर हद से आगे जाना है. अपने कदमों को नया जोखिम देने के लिए अपनी हर पिछली पगडंडी तोड़नी है…’’

वह हंसा. कहने लगा, ‘‘पर इस लड़खड़ाती खानाबदोशी में हम जल्दबाज हो कर अपने को ही चूक जाते हैं. इसी में हमारी बेचैनियां आगे दौड़ने की लत पाल लेती हैं. क्या ऐसा नहीं?’’

मैं सोचने लगी कि अब हम एकदूसरे के साथ भी हैं और नहीं भी.

मुझे चुप देख कर उस ने पूछा, ‘‘विवाह को आप कैसे देखती हैं?’’

‘‘अनचाही चीज का पल्ले पड़ जाने वाली एक वाहियात रस्म.’’

वह फिर हंस कर बोला, ‘‘विवाहित या अविवाहित होना मुझे बाहर की नहीं, भीतर की घटना लगती है. जीना नहीं आता हो तो सारी इच्छाएं पूरी हो जाने पर भी बेमतलब के साथ से हम नहीं बच पाते. ज्यादातर लोग विवाहित हो कर ही इस से बच सकते हैं…या दूसरे को बचा सकते हैं, ऐसे ही किसी संबंध में आ कर. हालांकि मैं नहीं मानता कि मनुष्य नामक स्थिति की अभी रचना हो भी सकी है…मनुष्य जिसे कहा जाता है वह शायद भविष्य के गर्भ में है, वरना विवाह की या किसी भी स्थापित संबंध की जरूरत कहां है? हम अकसर अपने से ही संबंधित हो कर आकाश खोजते रह जाते हैं…’’

 

थैंक्यू मम्मी-पापा: बेटे के लिए क्या तरकीब निकाली?

‘‘हां, बोलो तानिया, कैसी हो,’’ फोन उठाते ही वरुण ने तानिया का स्वर पहचान लिया.

‘‘मैं तो ठीक हूं, पर तुम्हारी क्या समस्या है वरुण?’’ तानिया ने तीखे स्वर में पूछा.

‘‘कैसी समस्या?’’

‘‘वह तो तुम्हीं जानो पर तुम से बात करना तो असंभव होता जा रहा है. घर पर फोन करो तो मिलते नहीं हो. मोबाइल हमेशा बंद रहता है,’’ तानिया ने शिकायत की.

‘‘आज पूरा दिन बहुत व्यस्त था. बौस के साथ एक के बाद एक मीटिंगों का ऐसा दौर चला कि सांस लेने तक की फुरसत नहीं थी. मीटिंग में मोबाइल तो बंद रखना ही पड़ता है,’’ वरुण ने सफाई दी.  ‘‘बनाओ मत मुझे. तुम जानबूझ कर बात नहीं करना चाहते. मैं क्या जानती नहीं कि तुम अपनी कंपनी के उपप्रबंध निदेशक हो. तुम्हें फोन पर बात करने से कौन मना कर सकता है?’’

‘‘प्रश्न किसी और के मना करने का नहीं है पर जो नियमकायदे दूसरों के लिए बनाए गए हैं, उन का पालन सब से पहले मुझे ही करना पड़ता है,’’ वरुण ने सफाई दी.

‘‘यह सब मैं कुछ नहीं जानती. पर मैं बहुत नाराज हूं. फोन करकर के थक गई हूं मैं.’’

‘‘छोड़ो ये गिलेशिकवे और बताओ कि किसलिए इतनी बेसब्री से फोन पर संपर्क साधा जा रहा था?’’

‘‘वाह, बात तो ऐसे कर रहे हो जैसे कुछ जानते ही नहीं. याद है, आज संदीप ने तुम्हारे स्वागत में बड़ी पार्टी का आयोजन किया है.’’

‘‘याद रहने, न रहने से कोई अंतर नहीं पड़ता. मैं ने पहले ही कहा था कि मैं पार्टी में नहीं आ रहा. आज मैं बहुत व्यस्त हूं. व्यस्त न होता तो भी नहीं आता. मुझे पार्टियों में जाना पसंद नहीं है.’’

‘‘क्या कह रहे हो? संदीप बुरा मान जाएगा. उस ने यह पार्टी विशेष रूप से तुम्हारे लिए ही आयोजित की है.’’

‘‘जरा सोचो तानिया, पिछले 10 दिन में हम जब भी मिले हैं, किसी न किसी पार्टी में ही मिले हैं. तुम्हें नहीं लगता कि कभी हम दोनों अकेले में ढेर सारी बातें करें. एकदूसरे को जानेंसमझें?’’

‘‘कितने पिछड़े विचार हैं तुम्हारे, बातें तो हम पार्टी में भी कर सकते हैं और एकदूसरे को जाननेसमझने को तो पूरा जीवन पड़ा है,’’ तानिया ने अपने विचार प्रकट किए तो वरुण बुरी तरह झल्ला गया. पर वह कोई कड़वी बात कह कर कोई नई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था.

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‘‘ठीक है, तो फिर कभी मिलेंगे. बहुत सारी बातें करनी हैं तुम से,’’ वरुण ने लंबी सांस ली थी.

‘‘क्या, पार्टी में नहीं आ रहे तुम?’’ तानिया चीखी.

‘‘नहीं.’’

‘‘ऐसा मत कहो, तुम्हें मेरी कसम. आज की पार्टी में तुम्हारी मौजूदगी बेहद जरूरी है.’’

‘‘केवल एक ही शर्त पर मैं पार्टी में आऊंगा कि आज के बाद तुम मुझे किसी दूसरी पार्टी में नहीं बुलाओगी,’’ वरुण अपना पीछा छुड़ाने की नीयत से बोला था.

‘‘जैसी आप की आज्ञा महाराज,’’ तानिया नाटकीय अंदाज में हंस कर बोली.  वरुण पार्टी में पहुंचा तो वहां की तड़कभड़क देख कर दंग रह गया था. ज्यादातर युवतियां पारदर्शी, भड़काऊ परिधानों में एकदूसरे से प्रतिस्पर्धा करती नजर आ रही थीं.

तानिया को देख कर पहली नजर में तो वरुण पहचान ही नहीं सका. कुछ देर के लिए तो वह उसे देखता ही रह गया था.

‘‘अरे, ऐसे आश्चर्य से क्या घूर रहे हो?’’ तानिया खिलखिलाई थी, ‘‘कैसा लग रहा है मेरा नया रूपरंग? आज का यह नया रूपरंग, साजसिंगार खासतौर पर तुम्हारे लिए है. बालों का यह नया अंदाज देखो और यह नई ड्रैस. इसे आज के मशहूर डिजाइनर सुशी से डिजाइन करवाया है,’’ तानिया सब के सामने अपनी प्रदर्शनी कर रही थी. पर वरुण के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला था.

‘‘क्या कर रही हो तुम? क्यों लोगों के सामने अपना तमाशा बना रखा है तुम ने. अपना नहीं तो कम से कम मेरे सम्मान का खयाल करो,’’ वरुण उसे एक ओर ले जा कर बोला था.

‘‘क्यों, क्या हुआ? तुम तो ऐसे नाराज हो रहे हो जैसे मैं ने कोई अपराध कर डाला होे. खुद तो कभी मेरी प्रशंसा में दो शब्द बोलते नहीं हो और मेरे पूछने पर यों मुंह फुला लेते हो,’’ तानिया आहत स्वर में बोली थी.

‘‘तुम्हें दुखी करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. पर फिर भी…’’

‘‘फिर भी क्या?’’

‘‘मैं अपनी भावी पत्नी से थोड़े शालीन व्यवहार की उम्मीद रखता हूं और तुम्हारी यह ड्रैस? इस के बारे में जो न कहा जाए वह कम है,’’ वरुण शायद कुछ और भी कहता कि तभी संदीप अपने 2 दूसरे मित्रों के साथ आ गया था.

‘‘हैलो वरुण,’’ संदीप ने बड़ी गर्मजोशी से आगे बढ़ कर हाथ मिलाया था.

‘‘आज आप को यहां देख कर मुझे असीम प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है. मैं ने यह पार्टी आप के सम्मान में आयोजित की है. आप के न आने से इस सब तामझाम का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता,’’ संदीप ने कहा और वहां मौजूद अतिथियों से उस का परिचय कराने लगा. तानिया भी उस के साथ ही अपने दोस्तों से वरुण का परिचय करा रही थी.

‘‘इन से मिलिए, ये हैं डा. पंकज राय. शल्य चिकित्सक होने के साथ ही तानिया के अच्छे मित्र भी हैं,’’ एक युवक से परिचय कराते हुए कुछ ठिठक सा गया था संदीप.  ‘‘डा. पंकज से इन का परिचय मैं स्वयं कराऊंगी. मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं. 2 वर्ष तक हम दोनों साथ रहे हैं. एकदूसरे को जाननेसमझने का प्रयत्न किया. जब लगा कि हम एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं तो अलग हो गए,’’ तानिया ने विस्तार से डा. पंकज का परिचय दिया.  ‘‘तानिया ठीक कहती है. मैं ने तो इसे सलाह दी थी कि हमारे साथ रहने की बात आप को न बताए. पर यह कहने लगी कि आप संकीर्ण मानसिकता के व्यक्ति नहीं हैं. वैसे भी आजकल तो यह सब आधुनिक जीवन का हिस्सा है,’’

डा. पंकज ने अपने विचार प्रकट किए थे.  कुछ क्षणों के लिए तो वरुण को लगा कि उस का मस्तिष्क किसी प्रहार से सुन्न हो गया है. पर दूसरे ही क्षण उस ने खुद को संभाल लिया. वह कोई भी उलटीसीधी हरकत कर के लोगोें के उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता था.  पर मन में एक फांस सी गड़ गई थी जो लाख प्रयत्न करने पर भी निकल नहीं रही थी. अच्छा था कि वरुण के चेहरे के बदलते भावों को किसी ने नहीं देखा.

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हाथ में शीतल पेय का गिलास थामे वह एक ओर पड़े सोफे पर बैठ गया.  पिछले कुछ समय की घटनाएं चलचित्र की तरह वरुण के मानसपटल से टकरा रही थीं. 10-12 दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से तानिया से उस की सगाई हुई थी. बड़े से पांचसितारा होटल में मानो आधा शहर ही उमड़ आया था. तानिया के पिता जानेमाने व्यवसायी थे. विधानपरिषद के सदस्य होने के साथ ही राजनीतिक क्षेत्र में उन की अच्छी पैठ थी. सगाई से पहले वरुण 3-4 बार तानिया से मिला था. उसे लगा कि तानिया ही उस के सपनों की रानी है, जिस की उसे लंबे समय से प्रतीक्षा थी. अपने सुंदर रंगरूप और खुले व्यवहार से किसी को भी आकर्षित कर लेना तानिया के बाएं हाथ का खेल था.  वरुण के मातापिता ने तानिया को देखते ही पसंद कर लिया था. वरुण का परिवार भी शहर के संपन्न परिवारों में गिना जाता था. पर उस के मातापिता ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के पक्षधर थे. सगाई के अवसर की तड़कभड़क देख कर उस के मित्रों और संबंधियों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी. वरुण और उस के मातापिता ने भी इसे स्वाभाविक रूप से ही लिया था. पर अब वरुण को लग रहा था कि सबकुछ बहुत जल्दबाजी में हो गया. उसे तानिया को अच्छी तरह जाननेसमझने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए था.  तानिया की कई सहेलियां व दोस्त थे. उस ने खुद ही वरुण को सबकुछ स्पष्ट रूप से बता दिया था. शायद उस के इस खुले स्वभाव ने ही प्रारंभ में उसे प्रभावित किया था. आज जब युवा खुलेआम एकदूसरे से मिलतेजुलते हैं तो उन में मित्रता होना स्वाभाविक है. वह अब तक स्वयं को खुली मानसिकता का व्यक्ति समझता था, पर आज की घटना ने उसे पूर्ण रूप से उद्वेलित कर दिया था.

हर समय अपने पुरुष मित्रों की बातें करना, उन के गले में बाहें डाल कर घूमना, उन के साथ बेशर्मी से हंसना, खिलखिलाना, तानिया के ऐसे व्यवहार को वह सहजता से नहीं ले पा रहा था. मन ही मन स्वयं को भी झिड़क देता था.  ‘समय बहुत तेजी से बदल रहा है वरुण राज. उस के कदम से कदम मिला कर नहीं चले तो औंधे मुंह गिरोगे,’ वह खुद को ही समझाता. कभीकभी तो उसे लगता मानो वह संकीर्ण मानसिकता का शिकार है, जो आधुनिकता का जामा पहन कर भी स्त्री की स्वतंत्रता को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं आ सका.  पर आज नहीं, आज तो उसे लगा कि यह उस की सहनशक्ति से परे है. वह इतना आधुनिक भी नहीं हुआ कि समाज की समस्त वर्जनाओं को अस्वीकार कर के उच्छृंखल जीवनशैली अपना ले. उस के धीरगंभीर स्वभाव और अनुशासित जीवनशैली की सभी प्रशंसा करते थे.

धीरेधीरे सबकुछ शीशे की तरह साफ होता जा रहा था. वरुण को लगने लगा कि उसे ग्लैमर की गुडि़या नहीं जीवनसाथी चाहिए, जो शायद तानिया चाह कर भी नहीं बन सकेगी.  वरुण अपने गंभीर खयालों में खोया था कि एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में गिलास थामे तानिया लहराती हुई आई.  ‘‘हे, वरुण, तुम यहां बैठे हो? मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. चलो न, डांस करेंगे,’’ वरुण को देखते ही उस ने आग्रह किया था.  वरुण तुरंत ही उठ खड़ा हुआ था. ‘‘तानिया यह सब क्या है? तुम तो कह रही थीं कि तुम तो सिगरेटशराब को छूती तक नहीं?’’ वरुण ने तीखे स्वर में प्रश्न किया था.  ‘‘मैं तो अब भी वही कह रही हूं. यह सिगरेट तो केवल अदा के लिए है. मुझे तो एक कश लेते ही इतने जोर की खांसी उठती है कि सांस लेना कठिन हो जाता है. तुम भी लो न. अच्छा लगता है. दोनों साथ में फोटो खिचवाएंगे. और यह तो केवल शैंपेन है, महिलाओें का पेय.’’

‘‘धन्यवाद, मैं ऐसे अंदाज दिखाने में विश्वास नहीं रखता,’’ वरुण ने मना किया तो तानिया उसे डांसफ्लोर तक खींच ले गई. तानिया देर तक वहां थिरकती रही, वरुण ने कुछ देर उस का साथ देने का प्रयत्न किया फिर कक्ष से बाहर आ गया. बाहर की ठंडी सुगंधित मंद पवन ने उसे बड़ी राहत दी. वह कुछ देर वहीं बैठ कर आकाश में बनतीबिगड़ती आकृतियों को देखता रहा.  पीनेपिलाने, नाचनेगाने और देर रात तक पार्टी गेम्स खेलने के बाद जब भोजन शुरू हुआ तो सुबह के 4 बज गए थे. वरुण की भूख मर चुकी थी.  तानिया से विदा ले कर जब तक घर पहुंचा तो पौ फटने लगी थी.

‘‘यह घर आने का समय है?’’ उस की मां शोभा देवी झल्लाई थीं.

‘‘मां, तानिया के मित्रों की पार्टी थी. रात भर गहमागहमी चलती रही. मैं थोड़ी देर सो जाता हूं. 3 घंटे के बाद जगा देना. 9 बजे तक कार्यालय पहुंचना है. आवश्यक कार्य है,’’ थके उनींदे स्वर में बोल कर वरुण अपने कमरे में सोने चला गया.  ‘‘आ गया तुम्हारा बेटा?’’ प्रात: टहलने के लिए तैयार हो रहे वरुण के पिता मनोहर ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में पत्नी से कहा. ‘‘हां, आ गया,’’ शोभा ने बुझे स्वर में कहा था.

‘‘देख लो, साहबजादे के लक्षण ठीक नजर नहीं आ रहे.’’

‘‘हम दोनों चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. पढ़ालिखा समझदार है वरुण. अच्छे पद पर है. विवाह भी हम ने उस की पसंद पर छोड़ दिया है. सब देखसुन कर उस ने तानिया को पसंद किया था. पढ़ीलिखी सुंदर स्मार्ट लड़की है. दोनों आनंद से जीवन बिताएं, इस से अधिक हमें क्या चाहिए.’’

‘‘वह भी होता नजर नहीं आ रहा. तुम्हें नहीं लगता कि हमारे और उन के सामाजिक स्तर में बड़ा अंतर है.’’

‘‘होंगे वे बड़े लोग, हम भी उन से किसी बात में कम नहीं हैं. वैसे भी यदि वरुण प्रसन्न है तो तुम क्यों अपना दिल जला रहे हो,’’ शोभा ने बात को वहीं विराम देना चाहा था.

‘‘वह भी ठीक है. काजीजी दुबले क्यों…’’ ठहाका लगाते हुए मनोहर बाबू टहलने के लिए पार्क की ओर चल पड़े.

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कुछ दिन इसी ऊहापोह में बीत गए. वरुण अंतर्मुखी होता जा रहा था.  उस दिन डिनर के समय वरुण अपने ही विचारों में खोया हुआ था. शोभा देवी कुछ देर तक उसे ध्यान से देखती रही थीं.

‘‘वरुण,’’ उन्होंने धीमे स्वर में पुकारा.

‘‘हां, मां, कहिए न, क्या बात है?’’

‘‘बात क्या होगी, तेरी सगाई क्या हुई हम तो तुम से बात करने को तरस गए. बात क्या है बेटे?’’

‘‘कुछ नहीं मां. ऐसे ही कुछ सोचविचार कर रहा था.’’

‘‘सोचविचार बाद में करना. कभी हम से भी बात करने का समय निकाला करो न.’’

‘‘कैसी बात कर रही हो मां. कहिए न, क्या कहना है?’’

‘‘तानिया के पापा का फोन आया था. वे विवाह की तिथि पक्की कर के चटपट इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते हैं.’’

‘‘ऐसी जल्दी भी क्या है मां? अभी 10 दिन पहले ही तो सगाई हुई है. थोड़े दिन साथ घूमफिर लें, एकदूसरे को समझ लें, फिर विवाह के बारे में सोचेंगे.’’

‘‘क्या कह रहा है बेटे, सगाई के बाद कोई लंबे समय तक प्रतीक्षा नहीं करता. वैसे भी कितना समय चाहिए तुम्हें एकदूसरे को जानने के लिए?’’ शोभा देवी हैरानपरेशान स्वर में बोली थीं.

‘‘मां, हमारे विचारों में कोई समानता नहीं है. मुझे नहीं लगता कि यह विवाह एक दिन भी चल पाएगा. जीवन भर की तो कौन कहे,’’ वरुण रूखे स्वर में बोला था.

‘‘यह क्या कह रहा है बेटे? ये सब तो सगाई से पहले सोचना था.’’

‘‘उसी भूल की तो सजा पा रहा हूं मैं. सच कहूं तो सगाई के बाद से मैं ने एक दिन भी चैन से नहीं बिताया. मां, यह सगाई तोड़ दो. इस विवाह से न मैं खुश रहूंगा, न तानिया. हम दोनों के विचारों और जीवनशैली में जमीनआसमान का अंतर है.’’

शोभा देवी स्तब्ध रह गईं. जब मनोहर बाबू ने भोजन कक्ष में प्रवेश किया तो वहां बोझिल चुप्पी छाई थी.

‘‘क्या बात है. आज मांबेटे का मौनव्रत है क्या?’’ उन्होंने उपहास किया था.

‘‘मौनव्रत तो नहीं है पर पूरी बात सुनोगे तो तुम्हारे पांवों तले से धरती खिसक जाएगी,’’ शोभा देवी रोंआसे स्वर में बोली थीं.

‘‘फिर तो कह ही डालो. हम भी इस अलौकिक अनुभूति का आनंद उठा ही लें.’’

‘‘तो सुनो, वरुण तानिया से विवाह नहीं करना चाहता. चाहता है कि इस सगाई को तोड़ दिया जाए.’’

‘‘क्या? यह सच है वरुण?’’

‘‘जी पापा, मैं विवाह के बंधन को अपने लिए ऐसा पिंजरा नहीं बना सकता जिस में मेरा अस्तित्व मात्र एक परकटे पंछी सा रह जाए.’’  मनोहर बाबू यह सुन कर मौन रह गए थे. वरुण के स्वर से उस की पीड़ा स्पष्ट हो गई थी.  ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा. अभी तो केवल सगाई हुई है. यदि तुम समझते हो कि तुम दोनों की नहीं निभ सकती तो सगाई को तोड़ देने में ही सब की भलाई है.’’

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मनोहर बाबू और शोभा ने तानिया के मातापिता के सामने पूरी स्थिति स्पष्ट कर दी. काफी विचारविमर्श के बाद उस संबंध को वहीं समाप्त करने का निर्णय लिया गया.  दोनों पक्षों ने एकदूसरे को दी हुई वस्तुओं की अदलाबदली कर संपूर्ण प्रक्रिया की इतिश्री कर डाली.  आज बहुत दिनों के बाद शोभा देवी ने वरुण के चेहरे पर स्वाभाविक चमक देखी थी. मन में गहरी टीस होने पर भी उस के चेहरे पर संतोष था.

गलतफहमी : शिखा अपने भाई के लिए रितु को दोषी क्यों मानती थी

औफिस का समय समाप्त होने में करीब 10 मिनट थे, जब आलोक के पास शिखा का फोन आया.‘‘मुझे घर तक लिफ्ट दे देना, जीजू. मैं गेट के पास आप के बाहर आने का इंतजार कर रही हूं.’’

अपनी पत्नी रितु की सब से पक्की सहेली का ऐसा संदेश पा कर आलोक ने अपना काम जल्दी समेटना शुरू कर दिया.

अपनी दराज में ताला लगाने के बाद आलोक ने रितु को फोन कर के शिखा के साथ जाने की सूचना दे दी.

मोटरसाइकिल पर शिखा उस के पीछे कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठी है, इस बात का एहसास आलोक को सारे रास्ते बना रहा.

आलोक ने उसे पहुंचा कर घर जाने की बात कही, तो शिखा चाय पिलाने का आग्रह कर उसे जबरदस्ती अपने घर तक ले आई.

उसे ताला खोलते देख आलोक ने सवाल किया, ‘‘तुम्हारे भैयाभाभी और मम्मीपापा कहां गए हुए हैं ’’

‘‘भाभी रूठ कर मायके में जमी हुई हैं, इसलिए भैया उन्हें वापस लाने के लिए ससुराल गए हैं. वे कल लौटेंगे. मम्मी अपनी बीमार बड़ी बहन का हालचाल पूछने गई हैं, पापा के साथ,’’ शिखा ने मुसकराते हुए जानकारी दी.

‘‘तब तुम आराम करो. मैं रितु के साथ बाद में चाय पीने आता हूं,’’ आलोक ने फिर अंदर जाने से बचने का प्रयास किया.

‘‘मेरे साथ अकेले में कुछ समय बिताने से डर रहे हो, जीजू ’’ शिखा ने उसे शरारती अंदाज में छेड़ा.

‘‘अरे, मैं क्यों डरूं, तुम डरो. लड़की तो तुम ही हो न,’’ आलोक ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘मुझे ले कर तुम्हारी नीयत खराब है क्या ’’

‘‘न बाबा न.’’

‘‘मेरी है.’’

‘‘तुम्हारी क्या है ’’ आलोक उलझन में पड़ गया.

‘‘कुछ नहीं,’’ शिखा अचानक खिलखिला के हंस पड़ी और फिर दोस्ताना अंदाज में उस ने आलोक का हाथ पकड़ा और ड्राइंगरूम  की तरफ चल पड़ी.

‘‘चाय लोगे या कौफी ’’ अंदर आ कर भी शिखा ने आलोक का हाथ नहीं छोड़ा.

‘‘चाय चलेगी.’’

‘‘आओ, रसोई में गपशप भी करेंगे,’’ उस का हाथ पकड़ेपकड़े ही शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी.

चाय का पानी गैस पर रखते हुए अचानक शिखा का मूड बदला और वह शिकायती लहजे में बोलने लगी, ‘‘देख रहे हो जीजू, यह रसोई और सारा घर कितना गंदा और बेतरतीब हुआ पड़ा है. मेरी भाभी बहुत लापरवाह और कामचोर है.’’

‘‘अभी उस की शादी को 2 महीने ही तो हुए हैं, शिखा. धीरेधीरे सब सीख लेगी… सब करने लगेगी,’’ आलोक ने उसे सांत्वना दी.

‘‘रितु और तुम्हारी शादी को भी तो 2 महीने ही हुए हैं. तुम्हारा घर तो हर समय साफसुथरा रहता है.’’

‘‘रितु एक समझदार और सलीकेदार लड़की है.’’

‘‘और मेरी भाभी एकदम फूहड़. मेरा इस घर में रहने का बिलकुल मन नहीं करता.’’

‘‘तुम्हारा ससुराल जाने का नंबर जल्दी आ जाएगा, फिक्र न करो.’’

शिखा बोली, ‘‘भैया की शादी के बाद से इस घर में 24 घंटे क्लेश और लड़ाईझगड़ा रहता है. मुझे अपना भविष्य तो बिलकुल अनिश्चित और असुरक्षित नजर आता है. इस के लिए पता है मैं किसे जिम्मेदार मानती हूं.’’

‘‘किसे ’’

‘‘रितु को.’’

‘‘उसे क्यों ’’ आलोक ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि उसे ही इस घर में मेरी भाभी बन कर आना था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो ’’

‘‘मैं सच कह रही हूं, जीजू. मेरे भैया और मेरी सब से अच्छी सहेली आपस में प्रेम करते थे. फिर रितु ने रिश्ता तोड़ लिया, क्योंकि मेरे भाई के पास न दौलत है, न बढि़या नौकरी. उस के बदले जो लड़की मेरी भाभी बन कर आई है, वह इस घर के बिगड़ने का कारण हो गई है,’’ शिखा का स्वर बेहद कड़वा हो उठा था.

‘‘घर का माहौल खराब करने में क्या तुम्हारे भाई की शराब पीने की आदत जिम्मेदार नहीं है, शिखा ’’ आलोक ने गंभीर स्वर में सवाल किया.

‘‘अपने वैवाहिक जीवन से तंग आ कर वह ज्यादा पीने लगा है.’’

‘‘अपनी घरगृहस्थी में उसे अगर सुखशांति व खुशियां चाहिए, तो उसे शराब छोड़नी ही होगी,’’ आलोक ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘न रितु उसे धोखा देती, न इस घर पर काले बादल मंडराते,’’ शिखा का अचानक गला भर आया.

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ आलोक ने कहा.

‘‘कभीकभी मुझे बहुत डर लगता है, आलोक,’’ शिखा का स्वर अचानक कोमल और भावुक हो गया.

‘‘शादी कर लो, तो डर चला जाएगा,’’ आलोक ने मजाक कर के माहौल सामान्य करना चाहा.

‘‘मुझे तुम जैसा जीवनसाथी चाहिए.’’

‘‘तुम्हें मुझ से बेहतर जीवनसाथी मिलेगा, शिखा.’’

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगी हूं, आलोक.’’

‘‘पगली, मैं तो तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड का पति हूं. तुम मेरी अच्छी दोस्त बनी रहो और प्रेम को अपने भावी पति के लिए बचा कर रखो.’’

‘‘मेरा दिल अब मेरे बस में नहीं है,’’ शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘रितु को तुम्हारे इरादों का पता लग गया, तो हम दोनों की खैर नहीं.’’

‘‘उसे हम शक करने ही नहीं देंगे, आलोक. सब के सामने तुम मेरे जीजू ही रहोगे. मुझे और कुछ नहीं चाहिए तुम से… बस, मेरे प्रेम को स्वीकार कर लो, आलोक.’’

‘‘और अगर मुझे और कुछ चाहिए हो तो ’’ आलोक शरारती अंदाज में मुसकराया.

‘‘तुम्हें जो चाहिए, ले लो,’’ शिखा ने आंखें मूंद कर अपना सुंदर चेहरा आलोक के चेहरे के बहुत करीब कर दिया.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल, साली साहिबा,’’ आलोक ने उस के माथे को हलके से चूमा और फिर शिखा को गैस के सामने खड़ा कर के हंसता हुआ बोला, ‘‘चाय उबलउबल कर कड़वी हो जाएगी, मैडम. तुम चाय पलटो, इतने में मैं रितु को फोन कर लेता हूं.’’

‘‘उसे क्यों फोन कर रहे हो ’’ शिखा बेचैन नजर आने लगी.

‘‘आज का दिन हमेशा के लिए यादगार बन जाए, इस के लिए मैं तुम तीनों को शानदार पार्टी देने जा रहा हूं.’’

‘‘तीनों को  यह तीसरा कौन होगा ’’

‘‘तुम्हारी पक्की सहेली वंदना.’’

‘‘पार्टी के लिए मैं कभी मना नहीं करती हूं, लेकिन रितु को मेरे दिल की बात मत बताना.’’

‘‘मैं न बताऊं, पर इश्क छिपाने से छिपता नहीं है, शिखा.’’

‘‘यह बात भी ठीक है.’’

‘‘तब रितु से दोस्ती टूट जाने का तुम्हें दुख नहीं होगा ’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि मेरा इरादा तुम्हें उस से छीनने का कतई नहीं है.

2 लड़कियां क्या एक ही पुरुष से प्यार करते हुए अच्छी सहेलियां नहीं बनी रह सकती हैं ’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब रितु से पूछ कर दूंगा,’’ आलोक ने हंसते हुए जवाब दिया और फिर अपनी पत्नी को फोन करने ड्राइंगरूम की तरफ चला गया.

रितु और वंदना सिर्फ 15 मिनट में शिखा के घर पहुंच गईं. दोनों ही गंभीर नजर आ रही थीं, पर बड़े प्यार से शिखा से गले मिलीं.

‘‘किस खुशी में पार्टी दे रहे हो, जीजाजी ’’

‘‘शिखा के साथ एक नया रिश्ता कायम करने जा रहा हूं, पार्टी इसी खुशी में होगी,’’ आलोक ने शिखा का हाथ दोस्ताना अंदाज में पकड़ते हुए जवाब दिया.

शिखा ने अपना हाथ छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया. वैसे उस की आंखों में

तनाव के भाव झलक उठे थे. रितु और वंदना की तरफ वह निडर व विद्रोही अंदाज में देख रही थी.

‘‘किस तरह का नया रिश्ता, जीजाजी ’’ वंदना ने उत्सुकता जताई.

‘‘कुछ देर में मालूम पड़ जाएगा, सालीजी.’’

‘‘पार्टी कितनी देर में और कहां होगी ’’

‘‘जब तुम और रितु इस घर में करीब 8 महीने पहले घटी घटना का ब्योरा सुना

चुकी होगी, तब हम बढि़या सी जगह डिनर करने निकलेंगे.’’

‘‘यहां कौन सी घटना घटी थी ’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘उस का ब्योरा मैं बताना शुरू करती हूं, सहेली,’’ रितु ने पास आ कर शिखा का दूसरा हाथ थामा और उस के पास में बैठ गई, ‘‘गरमियों की उस शाम को वंदना और मैं ने तुम से तुम्हारे घर पर मिलने का कार्यक्रम बनाया था. वंदना मुझ से पहले यहां आ पहुंची थी.’’

घटना के ब्योरे को वंदना ने आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ने घंटी बजाई तो दरवाजा तुम्हारे भाई समीर ने खोला. वह घर में अकेला था. उस के साथ अंदर बैठने में मैं जरा भी नहीं हिचकिचाई क्योंकि वह तो मेरी सब से अच्छी सहेली रितु का जीवनसाथी बनने जा रहा था.’’

‘‘समीर पर विश्वास करना उस शाम वंदना को बड़ा महंगा पड़ा, शिखा,’’ रितु की आंखों में अचानक आंसू आ गए.

‘‘क्या हुआ था उस शाम ’’ शिखा ने कांपती आवाज में वंदना से पूछा.

‘‘अचानक बिजली चली गई और समीर ने मुझे रेप करने की कोशिश की. वह शराब के नशे में न होता तो शायद ऐसा न करता.

‘‘मैं ने उस का विरोध किया, तो उस ने मेरा गला दबा कर मुझे डराया… मेरा कुरता फाड़ डाला. उस का पागलपन देख कर मेरे हाथपैर और दिमाग बिलकुल सुन्न पड़ गए थे. अगर उसी समय रितु ने पहुंच कर घंटी न बजाई होती, तो बड़ी आसानी से तुम्हारा भाई अपनी हवस पूरी कर लेता, शिखा,’’ वंदना ने अपना भयानक अनुभव शिखा को बता दिया.

‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस बात पर,’’ शिखा बोली.

‘‘उस शाम वंदना को तुम्हारा नीला सूट पहन कर लौटना पड़ा था. जब उस ने वह सूट लौटाया था तो तुम ने मुझ से पूछा भी था कि वंदना सूट क्यों ले गई तुम्हारे घर से. उस सवाल का सही जवाब आज मिल रहा है तुम्हें, शिखा,’’ रितु का स्पष्टीकरण सुन शिखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम दोनों ने यह बात आज तक मुझ से छिपाई क्यों ’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘समीर की प्रार्थना पर… एक भाई को हम उस की बहन की नजरों में गिराना नहीं चाहते थे,’’ वंदना भी उठ कर शिखा के पास आ गई.

‘‘मैं समीर की जिंदगी से क्यों निकल गई, इस का सही कारण भी आज तुम्हें पता चल गया है. मैं बेवफा नहीं, बल्कि समीर कमजोर चरित्र का इंसान निकला. उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरे दिल ने साफ इनकार कर दिया था. वह आज दुखी है, इस बात का मुझे अफसोस है. पर उस की घिनौनी हरकत के बाद मैं उस से जुड़ी नहीं रह सकती थी,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तुम्हें कितना गलत समझती रही,’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

आलोक ने कहा, ‘‘मेरी सलाह पर ही आज इन दोनों ने सचाई को तुम्हारे सामने प्रकट किया है, शिखा. ऐसा करने के पीछे कारण यही था कि हम सब तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहते हैं.’’

शिखा ने अपना सिर झुका लिया और शर्मिंदगी से बोली, ‘‘मैं अपने कुसूर को समझ रही हूं. मैं तुम सब की अच्छी दोस्त कहलाने के लायक नहीं हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों की सब से अच्छी, सब से प्यारी सहेली हो, यार,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तो तुम्हारे ही हक पर डाका डाल रही थी, रितु,’’ शिखा की आवाज भर्रा उठी, ‘‘अपने भाई को धोखा देने का दोषी मैं तुम्हें मान रही थी. इस घर की खुशियां और सुखशांति नष्ट करने की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर डाल रही थी.

‘‘मेरे मन में गुस्सा था… गहरी शिकायत और कड़वाहट थी. तभी तो मैं ने आज तुम्हारे आलोक को अपने प्रेमजाल में फांसने की कोशिश की. मैं तुम्हें सजा देना चाहती थी… तुम्हें जलाना और तड़पाना चाहती थी… मुझे माफ कर दो, रितु… मेरी गिरी हुई हरकत के लिए मुझे क्षमा कर दो, प्लीज.’’

रितु ने उसे समझाया, ‘‘पगली, तुझे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि हम तुम्हें किसी भी तरह का दोषी नहीं मानते हैं.’’

‘‘रितु ठीक कह रही है, साली साहिबा,’’ आलोक ने कहा, ‘‘तुम्हारे गुस्से को हम सब समझ रहे थे. मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के तुम्हारे प्रयास हमारी नजरों से छिपे नहीं थे. इस विषय पर हम तीनों अकसर चर्चा करते थे.’’

‘‘आज मजबूरन उस पुरानी घटना की चर्चा हमें तुम्हारे सामने करनी पड़ी है. मेरी प्रार्थना है कि तुम इस बारे में कभी अपने भाई से कहासुनी मत करना. हम ने उस से वादा किया था कि सचाई तुम्हें कभी नहीं पता चलेगी,’’ वंदना ने शिखा से विनती की.

‘‘हम सब को पक्का विश्वास है कि तुम्हारा गुस्सा अब हमेशा के लिए शांत हो जाएगा और मेरे पतिदेव पर तुम अपने रंगरूप का जादू चलाना बंद कर दोगी,’’ रितु ने मजाकिया लहजे में शिखा को छेड़ा, तो  वह मुसकरा उठी.

‘‘आई एम सौरी, रितु.’’

‘‘जो अब तक नासमझी में घटा है, उस के लिए सौरी कभी मत कहना,’’ रितु ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘साली साहिबा, वैसे तो तुम्हें प्रेमिका बना कर भी मैं खुश रहता, पर…’’

‘‘शक्ल देखी है कभी शीशे में  मेरी इन सहेलियों को प्रेमिका बनाने का सपना भी देखा, तो पत्नी से ही हाथ धो बैठोगे,’’ रितु बोली.

आलोक मुसकराते हुए बोला, तो फिर दोस्ती के नाम पर देता हूं बढि़या सी पार्टी… हम चारों के बीच दोस्ती और विश्वास का रिश्ता सदा मजबूत बना रहे.

Monsoon Special: वह पूनम की रात-भाग 1

‘दिल ढूंढ़ता, है फिर वही… फुरसत के रात दिन…‘ सामने वाले मकान से आते इस गाने की धुन को सुन कर मैं जल्दी से छत पर आ गया. शायद कोई साउंड बौक्स पर या कैसियो से इस गाने की धुन को बजा रहा था.

‘‘वाह, कितना सुंदर…‘‘ मेरे मुंह से अनायास ही निकला. छत पर उस गाने की धुन और भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी. मैं चुपचाप खड़ा गाने की धुन को सुनने लगा.

उस धुन को सुन कर ऐसा लग रहा था, जैसे कानों के रास्ते दिल में कोई अमृतरस टपक रहा हो. ऊपर से मौसम भी काफी खुशगवार था. साफ आसमान, टिमटिमाते तारे, हौलेहौले बहती ठंडी हवाएं मन आनंदित हो उठा. तभी मैं ने देखा, ऊंचीऊंची इमारतों की ओट से बड़ा सा गोलगोल चमकता हुआ चांद, अपना चेहरा बाहर निकालने का इस तरह से प्रयास कर रहा है, जैसे कोई नईनवेली दुलहन शर्मोहया से लबरेज आहिस्ताआहिस्ता अपना घूंघट हटा रही हो. प्रकृति के इस खूबसूरत नजारे को देख कर मैं ठगा सा रह गया.

‘‘क्या देख रहे हो?‘‘ तभी अचानक पीछे से प्रीति की आवाज आई. उस की आवाज सुन कर क्षण भर के लिए मैं चौंक गया. फिर उसे देख कर मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, तुम भी देखो,  कितना खूबसूरत नजारा है न.‘‘

‘‘बहुत सुंदर है, आज पूनम की रात जो है.‘‘ प्रीति मेरे बगल में आ कर मुझ से सट कर खड़ी हो गई. फिर वह भी उस खूबसूरत नजारे को अपलक निहारने लगी.

‘‘ऐसी रात में अगर सारी रात भी जागना पड़ जाए, तो कुछ गम नहीं,‘‘ भावातिरेक में मैं ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘तुम्हें वह पूनम की रात याद है न?‘‘ प्रीति अपनी झील जैसी झिलमिलाती आंखों से मेरी ओर देखती, जैसे मुझे कुछ याद दिलाने का प्रयास करते हुए बोली.

‘‘उस रात को कैसे भूल सकता हूं? उस रात तो जैसे चांद ही धरती पर उतर आया था…‘‘ मैं ने गंभीर हो कर उदासी भरे स्वर में कहा.

उस गाने की धुन अभी भी सुनाई पड़ रही थी. चांद भी इमारतों की ओट से निकल आया था. उस की चांदनी से आंखों की ज्योत्सना बढ़ती जा रही थी पर उस रात की याद आते ही, मेरे साथसाथ प्रीति के चेहरे पर भी उदासी की झलक उतर आई. मैं ने देखा, इस के बावजूद उस के होंठों पर हलकी सी मुसकान उभर आई थी, लेकिन आंखों में तैर आए पानी को वह छिपा नहीं पाई. मैं ने उस के कंधे पर हौले से हाथ रख कर जैसे ढांढ़स बंधाने का प्रयास किया.

उस रात मेरी आंखों में नींद ही नहीं थी. बस, बिस्तर पर बारबार मैं करवटें बदल रहा था और अपने कमरे की खुली खिड़की से बाहर के नजारे को निहारे जा रहा था.

बाहर चांदी की चादर की तरह पूनम की चांदनी बिखरी हुई थी, जिस में सभी नजारे नहा रहे थे. ऐसी खूबसूरती को देख मेरे मन में आनंद की लहरें उमड़ रही थीं. खिड़की के ठीक सामने, आंगन में लगे जामुन की नईनई कोमल पत्तियों की चमक ऐसी थी, जैसे उन पर पिघली हुई चांदी की पतलीपतली परत चढ़ा दी गई हो. फिर हवा के झोंकों से अठखेलियां करती, उन पत्तियों की सरसराहट से मन में मदहोशी के साथ दिल में गुदगुदी सी पैदा हो रही थी.

दादी खाना खाने के बाद जैसा कि अकसर गांव में होता है, सीधे अपने कमरे में चली गई थीं. शायद वे सो रही थीं. रात के 9 बज चुके थे इसलिए चारों तरफ गहरी खामोशी थी. बस, कभीकभार कुत्तों के भौंकने की आवाज आती थी और दूर मैदानों में टुंगरी के आसपास उस निशाचरपक्षी के बोलने की आवाज सुनाईर् पड़ रही थी, जिसे कभी देखा तो नहीं, पर दादी से उस के बारे में सुना जरूर था, ‘रात को चरने वाली उस चिडि़या का नाम ‘टिटिटोहों‘ है. वह अधिकतर चांदनी रात में ही निकलती है.‘ उस का बोलना पता नहीं क्यों मेरे मन को हमेशा ही मोहित सा कर देता. लगता जैसे वह चांदनी रात में अपने साथ विचरण करने के लिए बुला रही हो.

मेरे दिल की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी, मन अधीर होता जा रहा था. उस वक्त एकएक पल जैसे घंटे के समान लग रहा था पर घड़ी के कांटे को मेरी तड़प से शायद कोई मतलब नहीं था. उस की चाल इतनी सुस्त जान पड़ रही थी कि अपने पर काबू रखना मुश्किल होता जा रहा था. फिर बड़ी मुश्किल से जब घड़ी के मिनट का कांटा तय समय पर जा कर अटका, तो मैं उसी बेचैनी के साथ जल्दी से

अपने बिस्तर से उठ कर आहिस्ताआहिस्ता अपने कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

गांव के बाहर स्थित मंदिर के पास प्रीति पहले से मेरा इंतजार कर रही थी. प्रीति को देखते ही खुशी से मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई, लेकिन अनजानी आशंका से थोड़ी घबराहट भी हुई, ‘‘कोई गड़बड़ तो नहीं हुई न,‘‘ पास पहुंचते ही मैं ने धीरे से पूछा था.

‘‘कोई गड़बड़ नहीं हुई. सभी सो चुके थे. मैं बड़ी सावधानी से निकली हूं,‘‘ प्रीति मुसकरा कर बोली थी.

‘‘तो चलो, चलते हैं,‘‘ मैं ने उत्साहित हो कर प्रीति का हाथ थामते हुए कहा.

फिर दोनों एकदूसरे का हाथ थामे टुंगरी की ओर जाने लगे. रास्ते में दोनों तरफ पुटूस के झुरमुट थे, जिन में जुगनुओं की झिलमिलाती लड़ी देखते बन रही थी. ऊपर चांदनी रात की खूबसूरती, दोनों के मन को जैसे बहकाए जा रही थी.

 

Monsoon Special: वह पूनम की रात- भाग 2

दोनों जब खुले मैदान में पहुंचे, तो नजारा और भी खूबसूरत हो उठा. साफ नीला आसमान, टिमटिमाते तारे और बड़ा गोल सा चांदी जैसा चमकता चांद, जिस की बरसती चांदनी में पूरी धरती जैसे स्नान कर रही थी और मंदमंद बहती हवा मन को जैसे मदहोश किए जा रही थी.

अचानक बेखुदी में दोनों के कदम तेज हो गए और एकदूसरे का हाथ पकड़, मैदान में दौड़ने लगे. अब टुंगरी भी बिलकुल पास ही थी. वह निशाचर चिडि़या नजदीक ही कहीं आवाज दे रही थी. तभी उस के पंख फड़फड़ाए और वह उड़ती नजर आई. मेरा दिल एक बार फिर से धक रह गया.

‘‘प्रीति, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब हकीकत है. कहीं यह ख्वाब तो नहीं,‘‘ मैं ने प्रीति की नाजुक हथेली को जोर से भींच कर कहा. अपने बहकते जज्बातों को मैं जैसे रोक नहीं पा रहा था.

‘‘ख्वाब ही तो है, जो हम दोनों हमेशा से देखते रहे थे. ऐसी चांदनी रात में एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले, कुदरत के ऐसे खूबसूरत नजारे को निहारते, एकदूसरे में खोए, जब सारी दुनिया सो रही हो, हम जागते रहें…‘‘

‘‘सच कहा तुम ने, मैं ने ऐसी ही रात की कल्पना की थी.‘‘

‘‘तो फिर अब मुझे वह गाना सुनाओ, मोहम्मद रफी वाला, जो तुम हमेशा गुनगुनाते रहते हो.‘‘

‘‘कौन सा खोयाखोया चांद वाला…‘‘ मैं ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘हां, गाओ न,‘‘ प्रीति खुशी से मुसकराते हुए आग्रहपूर्वक बोली.

‘‘एक शर्त पर,‘‘ मैं ने रुक कर कहा.

‘‘क्या,‘‘ कह कर प्रीति मुझे घूरने लगी.

‘‘तुम्हें भी उस फिल्म का गाना सुनाना होगा, जो मैं ने तुम्हें नैट से डाउनलोड कर के दिया था,‘‘ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘फिल्म ‘पाकीजा‘ का ‘मौसम है आशिकाना…‘‘ प्रीति मुसकराते हुए बोली.

‘‘हां,‘‘  कह कर मैं फिर से मुसकराया.

‘‘हमें मंजूर है, हुजूरेआला,‘‘ प्रीति भी जैसे चहक उठी.

उस चांदनी रात में गुनगुनाते हुए दोनों एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले आगे बढ़ते जा रहे थे. कुछ देर बाद दोनों टुंगरी के ऊपर थे. जहां से चांदनी रात की खूबसूरती अपने पूरे शबाब में दिख रही थी. चारों तरफ पूनम की चांदनी दूर तक बिखरी हुई थी. आसमान अब भी साफ था, लेकिन कहीं से आए छोटेछोटे आवारा बादल चांद से जैसे जबरदस्ती आंखमिचौली का खेल रहे थे.

उस दिलकश खेल को देख कर दोनों के आनंद की सीमा न रही, मन नाच उठा. फिर उस जगह की खामोशी में, रात के उस सन्नाटे में एकदूसरे के धड़कते हुए दिल की आवाज सुन कर अंगड़ाइयां लेते मीठे एहसासों से, अंदर कहां से यह आवाज आ रही थी… जैसे यह चांद कभी डूबे नहीं, यह वक्त यहीं रुक जाए, यह रात कभी खत्म न हो. काश, यह दुनिया इतनी ही सुंदर होती, जहां कोईर् पाबंदी, कोई रोकटोक नहीं होती. सभी एकदूसरे से यों प्रेम करते. इस रात में जो शांति, जो संतोष का एहसास है, ऐसा ही सब के दिलों में होता. किसी को किसी से कोई बैर नहीं होता.

‘‘प्रीति, तुम्हें नहीं लगता हम दोनों जैसा सोचते हैं, ऐसा काम तो कवि या लेखक लोग करते हैं यानी कल्पना की दुनिया में जीना. वे ऐसी दुनिया या माहौल का सृजन करते हैं, जो आज के दौर में संभव ही नहीं है.‘‘

‘‘संभव है, चाहे नहीं, पर सचाई तो सचाई होती है. जिंदगी इस चांदनी रात के समान ही होनी चाहिए, शीतल, बिलकुल स्निग्ध, एकदम तृप्त. फिर सकारात्मक सोच ही जीवन को गति प्रदान करती है. जहां उम्मीद है, जिंदगी भी वहीं है.‘‘

‘‘अरे वाह, तुम्हारी इन्हीं बातों से तो मैं तुम्हारा इतना दीवाना हूं. तुम इतनी गहराई की बातें सोच कैसे लेती हो?‘‘

‘‘जब जिंदगी में किसी से सच्चा प्यार होता है, तो मन गहराई में उतरने की कला अपनेआप सीख लेता है. फिर जिसे साहित्य से भी प्यार हो, उसे सीखने में अधिक समय नहीं लगता.‘‘

‘‘प्रीति, अगर तुम मेरी जिंदगी में न आती, तो शायद मैं आज गलत रास्ते में भटक गया होता. मुझे अधिक हुड़दंगबाजी तो कभी पसंद नहीं थी. मगर आधुनिकता के नाम पर अपने दोस्तों के साथ, पौप अंगरेजी गाने सुनना और इंटरनैट पर गंदी फिल्में देखने का नशा तो चढ़ ही चुका था. अगर इस बार परीक्षाओं में मेरा बढि़या रिजल्ट आया है, तो सिर्फ तुम्हारी वजह से. अब मैं अपने उन दोस्तों से भी शान से कहता हूं कि क्लासिकल गाने एक बार दिल से सुन कर देखो, उस के रस में, उस के जज्बातों में डूब कर देखो, तुम्हें भी मेरी तरह किसी न किसी प्रीति से जरूर प्यार हो जाएगा.‘‘

‘‘तुम अब वे फिल्में तो कभी नहीं देखते न?‘‘ प्रीति ने अचानक इस तरह से प्रश्न किया, जैसे कोई अच्छी शिक्षिका अपने छात्र को उस का सबक फिर से याद दिला रही हो.

मैं ने भी डरने का नाटक करते, उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं, कभी नहीं… अब देखूंगा भी तो तुम्हारे साथ शादी के बाद ही.‘‘

‘‘तो अभी से मन में सब सोच कर रखा है?‘‘ शिक्षिका के होंठों पर मुसकान थी, लेकिन नाराजगी स्पष्ट झलक रही थी.

‘मुझे कहीं डांट न पड़ जाए‘ यह सोच कर मैं ने झट से अपने दोनों कान पकड़ कर कहा, ‘‘अरे, नहीं बाबा, जिंदगी में कभी नहीं देखूंगा. मैं तो बस, यों ही मजाक कर रहा था पर तुम से एक बात कहने की इच्छा हो रही है.‘‘

‘‘क्या…‘‘ अपनी आंखें फिर बड़ी कर प्रीति मुझे घूरने लगी.

उसे गुस्साते देख कर, मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यही कि तुम अभी और भी खूबसूरत लग रही हो. सच कहता हूं, उस चांद से भी खूबसूरत…‘‘

‘‘अच्छा जी, तो अब  मुझे बहकाने की कोशिश हो रही है,‘‘ प्रीति फिर मुंह बना कर बोली पर चेहरे पर मुसकान थी.

‘‘सच कहता हूं, जब भी तुम्हारी ये झील जैसी आंखें और गुलाब की पंखडि़यों जैसे होंठों को देखता हूं, तो अपने दिल को समझा नहीं पाता हूं. कम से कम एक किस तो दे दो,‘‘ मैं याचना कर बैठा.

 

सब दिन रहत न एक समान

बात कोरोना के आने के एक साल पहले की है. हम अपने एटीएम कार्ड का पिन सेट करने के लिए भटक रहे थे. बैंकों में दौड़दौड़ कर, सरकारी बैंक के नखरे उठाउठा कर थक गए थे. डिजिटल इंडिया कहने और व्यावहारिक रूप से होने में जरा फर्क होता है. दिन को समय मिल नहीं पाता था, सो रात को हम 2 सहेलियां और हमारे 2 पुरुष सहयोगी एटीएम में पहुंचे.

उस समय रात के करीब 8 बजे होंगे. पर एटीएम का सिक्योरिटी गार्ड अपनी कुरसी पर लुढ़का हुआ खर्राटे मार रहा था.

मेरी सहेली और एक पुरुष सहयोगी बाहर खड़े थे, जबकि मैं और दूसरा पुरुष सहयोगी एटीएम के भीतर आ गए थे.

यह कोरोना काल तो नहीं, परंतु पराली काल जरूर था और दिल्ली में पराली के कहर से तो हर कोई वाकिफ है. सो, वायु में घुले पौल्यूशन के कहर और पराली के जहर से बचने के लिए हम ने अपनी नाक पर स्कार्फ बांधा हुआ था. डब्ल्यू के फैशनेबल स्कार्फ को सिर्फ नाक पर बांधना उस के ब्रांड और खूबसूरती का अपमान करना है. सो, मैं ने अपने स्कार्फ को हिजाब स्टाइल में सिर पर भी बांध रखा था, जिस से केवल मेरा फोरहेड और आंखें ही हिजाब की जद से बाहर थे, जहरीली हवा और जहरीली नजर से बचाव के लिए प्रदूषण पीड़ित शहरों में स्कार्फ का यह स्टाइल काफी पोपुलर है.

खैर, चूंकि हम औफिस से ही इस तरफ आ गए थे, सो मेरे सहयोगी के हाथ में एक बैग था, जिसे उन्होंने साइड में रखा और इसी के साथ सिक्योरिटी गार्ड की नींद खुल गई. आंखें खुलते ही उस की नजर हम पर पड़ी. डर, संशय और विस्मय के मिलेजुले भावों के साथ वह कुरसी से कूद कर खड़ा हो गया. तनिक कांपती हुई आवाज में यत्नपूर्वक गरजते हुए वह हम से स्कार्फ हटाने के लिए कहने लगा. मुंह और नाक से स्कार्फ हटाने पर भी उस की तसल्ली नहीं हुई और इतनी मेहनत से नेट पर से सीख कर बांधा हुआ हिजाब मुझे उस डरपोक सिक्योरिटी गार्ड की वजह से हटाना पड़ा.

खैर, जिस काम के लिए एटीएम गए थे, वह काम नहीं हुआ और अगले दिन फिर हमें सरकारी बैंक जाना पड़ा. सुबह के सवा दस बज रहे थे और धूप ऐसी चिलचिला रही थी मानो समूचे ओजोन परत को खुरच कर सारी दुनिया की बिजली आसमान पर टांग दी गई हो. मौसम का तकाजा था, सो सनग्लास जरूरी था.

हां, रात वाले हादसे की वजह से स्कार्फ को मैं ने पहले ही पर्स में मोड़ कर रख दिया था. पर उस से क्या, सरकारी जगहों पर पब्लिक को परेशान करने वाले फालतू के चोंचले न हों, तो उस के सरकारी होने पर शक होने लगता है. वही हुआ भी, ज्यों ही हम गेट पर पहुंचे, सिक्योरिटी गार्ड ने घड़ी दिखा कर कहा कि आधे घंटे बाद बैंक खुलेगा. हमें उस चिलचिलाती धूप में खड़ा कर के वह गार्ड पूरी तन्मयता के साथ चेयर से सोफे और सोफे से चेयर पर तशरीफ रखता रहा. ठीक 11 बजे ग्रिल सरका कर आंखों में सरकारी काम को पूरी मुस्तैदी से अंजाम देने के लिए खुद को ही शाबाशी देने का भाव लिए अहसान करने वाली आवाज में उस ने हमें भीतर आने को कहा. अभी हम ने पांव बढ़ाए भी नहीं थे कि उस ने सनग्लास उतार कर आंखें देखने की इच्छा जाहिर कर दी. क्योंकि ऐसे में हम कुछ और नहीं कर सकते. सो, हम ने वह भी किया. अब वह कुछ और फरमाता, उस के पहले ही हम जल्दी से भीतर की तरफ हो लिए और कई घंटों तक इस टेबल से उस टेबल, उस टेबल से इस टेबल, को होते रहे और सरकारी व्यवस्था के अत्याचार पर मन ही मन रोते रहे.

इस दौड़भाग का अंत फिर वही हुआ, जो हम सब के साथ होता है कि निरंकुश नौकरशाही भ्रष्टाचरण में आम पब्लिक केवल रोता है. पब्लिक को जितनी ज्यादा परेशानी हो, सरकारी मुलाजिम उतनी गहरी नींद सोता है. सच तो यह है कि जब तक चार दिन न दौड़ो, यहां कोई काम नहीं होता है.

और अब जरा एक नज़र कोरोना काल पर – हमें पैसे निकालने उसी एटीएम में जाना पड़ा, जहां सिक्योरिटी गार्ड ने स्कार्फ उतरवाया था. हम ने स्कार्फ, मास्क, ग्लव्स सबकुछ डाला हुआ था थैले में, सैनिटाइजर भी था, सारे सीन वही थे, पर सिक्योरिटी गार्ड न डरा, न घबड़ाया, अपनी कुरसी पर पड़ेपड़े सोता रहा. अपनी ड्यूटी के महत्त्व पर मूल्यहीनता के खर्राटे बोता रहा. हम ने बिना किसी रोकटोक के अपना काम किया और मन ही मन सोचा कि कोरोना ने चाहे जितनी तकलीफ दी हो, पर कई लोगों को निडर जरूर बना दिया. कितने आम को खास, कितने खास को आम बना दिया… कहीं पर जीवन मुश्किल तो कहीं पर आसान बना दिया.

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