बंपर ड्रा : बीवी के चंगुल में थानेदार

थानेदार साहब की पत्नी की फरमाइशें रोजाना बढ़ती जा रही थीं. वे परेशान थे, आखिर करें तो क्या करें? इधर लोगों में बहुत जागरूकता आ गई थी. थोड़ी भी आड़ीटेढ़ी बात होती कि ‘मानवाधिकार आयोग’ को फैक्स कर देते थे.

कुछ उठाईगीर तो आजकल मोबाइल फोन पर रेकौर्डिंग कर के उन्हें सुना भी देते थे. एक बार तो थानेदार साहब अपनी फेसबुक पर थे कि अचानक एक वीडियो दिखा. उन्हें लगा कि यह तो किस्सा कहीं देखा है.

उस वीडियो की असलियत यही थी कि थानेदार साहब एक शख्स को पंखा बना कर लात, जूतों, डंडे से मार रहे थे. थोड़ी देर बाद जब जूम कर के कैमरा थानेदार के चेहरे पर गया, तो पता चला कि अरे, यह तो वे खुद ही हैं.

कुछ महीने पहले उन्होंने एक अपराधी को जेब काटने पर मारा था और उस से जेबकटी का अपना हिस्सा मांगा था. पर उस ने नहीं दिया था, तब उसे पंखे पर लटका कर पिटाई की थी.

यह वीडियो वही था. इसी के चलते उन का तबादला हो गया था. वे तो शानदार सैटिंग वाले थे, हमेशा मंदिर में भिखारी से ले कर पुजारी और भगवान को चढ़ावा चढ़ाते थे, जिस की बदौलत लाइन हाजिर नहीं हो पाए थे. बात वैसे इतनी सी थी कि एक जेबकटी की रिपोर्ट आई थी. रिपोर्ट करने वाले बंदे ने बताया कि 6 हजार रुपए निकाले गए थे.

बाजार का दिन था और उस दिन जेबकटाई का ठेका पोटा को दिया गया था. उसे पकड़ कर जब पूछा गया, तो उस ने कसम खा कर कहा था कि कुल जमा 8 सौ रुपए थे. अब सच्चा कौन था और झूठा कौन था, पता नहीं.

बस, यही बात पता करने के लिए उसे पंखे पर लटका कर कुटाई की थी और सच की खोज को आम कर देने के चलते थानेदार साहब बदनाम हो गए थे.

बाद में पता चला कि जिस की जेब कटी थी, वही झूठ बोला था. उस की घर वाली ने साड़ी खरीदने के लिए रुपए जेब से निकाल लिए थे.

थानेदार साहब की बहुत इच्छा हुई कि पोटा से माफी मांग लें. लेकिन वरदी के घमंड के चलते वे ऐसा नहीं कर पाए, क्योंकि पोटा ने बारबार कहा था, ‘सर, बेईमानी के काम में ईमानदारी बहुत जरूरी है. मैं ईमानदारी से बता रहा हूं.’

लेकिन जो होना था, वह हो ही गया था. पर आज तक वे जान ही नहीं पाए थे कि आखिर किस ने वीडियो शूट किया था, क्योंकि आजकल तो पैन में भी शूटिंग की सहूलियत आने लगी है. जो नया थाना मिला था, वहां के भूखेनंगे, अमीर सब अच्छे दिनों की औलाद थे. उम्मीद से भरे हुए. महात्मा गांधी की बातों पर चलने वाले कि मामला आपस में सुलझा लो बेहतर है, इसलिए रिपोर्टारिपोर्टी कुछ होती नहीं थी.

थानेदार साहब को हैरत थी कि आखिर ऐसी अहिंसक जगह पर थाना खोलने की जरूरत क्या थी?

जिंदगी में अगर आप एक बार जो खर्चा करने लगें, उस पर लगाम लगाना अगले जन्म में ही मुमकिन है. पत्नीजी को जो खर्च की आदतें लग गई थीं, वे कम होने का नाम ही नहीं लेती थीं. रिश्तेदार भी भिखारियों की तरह आ कर जीजाजी, मामाजी कहते हुए महीनों तक पड़े रहते थे. ऐसे में माली हालत भिखारियों जैसी हो जाना जायज थी.

थानेदार साहब ने पुराने घाघ अपने हवलदार को बुला कर पूछा, ‘‘यहां कुछ महीने और रहा, तो पैंटशर्ट उतार कर तीरथ जाना होगा.’’

हवलदार ने उन्हें तसल्ली दी और अच्छे दिनों का वास्ता देते हुए कहा, ‘‘इतंजार का फल मीठा होता है. आप इंतजार करें.’’

बिल्ली के भाग्य से छींका टूट भी गया. मामला कुछ ऐसा हुआ कि कहीं एक लड़के और लड़की का चोंच लड़ाने का मामला था. कहानी में अमीरीगरीबी की जगह जातपांत आ गई. लड़की वालों ने कहा कि ‘प्राण जाए पर जाति न जाए’ और लड़के को प्यार से बुला कर समझाया, मनाया और जब उस के दिमाग में बात नहीं गई, तो एक लट्ठ जो दिया तो वह मजनू ऐसा गिरा कि खड़ा ही नहीं हो पाया.

उसी दिन एक रिपोर्ट और आई कि एक घर में सेठसेठानी के यहां 2 लोगों ने बंदूक की नोक पर लूटमार कर ली थी. दोनों की रिपोर्ट आ गई और थानेदार साहब ने जांच के लिए एक हवलदार को लगा दिया.

इधर पिछले हफ्ते घरवाली ने नोटिस दे दिया था कि अगर कुछ कमाई नहीं की, तो वह मायके चली जाएगी. उसी समय यह सुनहरे 2 केस हो गए.

थानेदार साहब ने हवलदार को अपने कमरे में बुला कर खास हिदायत दी, ‘‘पहले लूट वाले केस को सुलझाते हैं. हत्या वाला तो आईने की तरह साफ है.’’

हवलदार थानेदार से ज्यादा शातिर था और उस ने करतब दिखाना शुरू कर दिया. जहां डकैती हुई थी, उस गांव के और उस गांव से लगे 10 गांवों के उठाईगीरों, गुंडों के अलावा शरीफ घरों के एक दर्जन लड़कों को पकड़ लिया.

थाने के नाम से उन सब को ठंड लगने लगी थी. दिल्ली से और कुछ के लोकल विधायक, सांसद के फोन आने लगे. जिन के फोन आए, उन्हें एक अलग कमरे में बिठा कर ‘चाय का आर्डर’ करवा दिया. चाय के बाद उन से माफी मांगते हुए एक घंटे और रुक कर कानून की मदद करने की गुजारिश की.

चाय की रिश्वत से ही लड़के मान गए और शांति के साथ मोबाइल पर फिल्में देखने लगे. जिन के फोन नहीं आए थे, उन्हें एकएक कर के कमरे में ले गए और उन्हें बताया गया कि इस मुकदमे की जमानत नहीं होती है और वकील की फीस में 50 हजार खर्च होंगे, फोकट में बदनामी और होगी. टुच्चे पत्रकार चटकारे लेले कर खबर छापेंगे सो अलग.

हवलदार ने थानेदार साहब के सामने ऐसा दिल दहला देने वाला सीन पेश किया कि सब की घिग्घी बंध गई. कुछ प्रवचन सुन कर रोने लगे, कुछ थानेदार साहब के पैरों में गधे की तरह लोटपोट हो गए.

हैरत की बात यह थी कि 2 आदमियों ने लूटा और बुलाया गया था 80 को. 20 थाने में फोन से छूट गए थे. अब जो रकम थी, वह 60 लोगों से ही वसूल करनी थी. उन के मोबाइल, पैन, चश्मे सब उतार कर गुप्त जांच कर ली गई थी और थानेदार साहब कहीं से

2 नंगे तार ले आए, उन्हें बिजली के स्विच में डालते हुए बोले, ‘‘इसे छुआने के बाद जो 750 वोल्ट का करंट लगेगा, तो देश में आबादी रुक जाने में तुम सहयोगी हो जाओगे.’’

तार देख कर भविष्य की चिंता कर के आखिर वे सबकुछ देने को तैयार हो गए, जिस की मांग रखी गई थी. कुछ कमजोर, नंगे लोग भी थे. कुल जमा तकरीबन 3 लाख रुपए की कमाई हो गई और 20 हजार हवलदार, पत्रकारों को और ऊपर भिजवाने के बाद भी 2 लाख का मुनाफा हो गया था. जो 2 लुटेरे थे, वे अभी भी खोजे जाने बाकी थे. वैसे, पूरी लूट 10-20 हजार रुपए की हुई थी.

दूसरा केस तो इश्कमुहब्बत का था. शहर के सब आशिकों को पकड़ कर थाने ले आए और मर्डर केस के बारे में जो मुगलेआजम से ले कर प्रेम कहानी के आखिर तक कहानी सुनाई गई, तो आशिकों ने मां कसम खा कर कहा, ‘वह हमारी बहन जैसी हैं.’

‘‘तब ही तो सालो, तुम ने अपने जीजा का मर्डर कर दिया,’’ थानेदार साहब ने गुस्से में कहा.

सब प्रेमी माथा ठोंकने लगे, ‘कैसे मुंह से बहन शब्द निकल गया. मर्डर केस में मिली उम्रकैद में कैसे जवानी अंधेरे में डूब जाएगी…’

उस महाकाव्य को हवलदार ने पढ़ कर सुनाया, तो सब थरथर कांपने लगे और इस केस में भी थानेदार साहब ने 6 लाख रुपए दक्षिणा में लिए थे.

हत्यारे तो पहले से ही पता थे. उन का केस कमजोर करने के नाम पर एकएक लाख रुपए अलग से लिए और मामला मारने का नहीं, बल्कि एक हादसे का बना दिया गया था.

जिनजिन को थानेदार साहब ने लूट या हत्या में बुलवाया था और छोड़ दिया था, वह सब उन के गुण गाते थक नहीं रहे थे और कुछ ने जो चाय पी लेने के बाद घर का रास्ता नापा था, वे भी खुश थे. कुछ छोटीमोटी शिकायत हुई भी तो विधायक, सांसद ने वे शिकायतें कचरे के डब्बे में फेंक दीं. वे थानेदार साहब का एहसान भूले नहीं थे कि उन के फोन करते ही थानेदार साहब ने चाय पिला कर उन्हें इज्जत के साथ छोड़ दिया था.

थानेदार साहब बहुत खुश थे कि चलो, उन का लकी बंपर ड्रा खुल गया था. वे इंतजार कर रहे थे, ‘काश, ऐसी लौटरी हर महीने खुलती रहे, तो नीचे से ऊपर तक सब खुश रहेंगे. दुनियादारी निभाना इसी को तो कहते हैं.’

थानेदार साहब आजकल बहुत खुश हैं और नई बंपर लौटरी का इंतजार कर रहे हैं.

पिंक टैक्सी: कैसी थी रिदा की ससुराल

रिदा की जिंदगी दीवार पर टंगे किसी पुराने कलैंडर जैसी थी, जिस में न किसी तारीख का बदलाव होता है और न ही किसी पन्ने का. अपने निकाह से पहले मायके में कितनी खुश थी रिदा. मांबाप का साया भले ही उस के सिर से हट गया था, पर बड़े भाई महमूद ने उस की परवरिश में कोई कमी नहीं आने दी. महमूद का आटोमोबाइल का छोटामोटा काम था. ऊपर एक कमरे का मकान और नीचे छोटी सी दुकान. दिन में 4-5 मोटरसाइकिल रिपेयरिंग का काम हो गया, तो आमदनी अच्छी हो जाती थी. महमूद भाई शाम को घर आते, तो खुशी उन के चेहरे पर बाकायदा नजर आती.

15 साला रिदा भी गाहेबगाहे दुकान पर पहुंच जाती और वहां खड़ी मोटरसाइकिलों पर चढ़ाउतरा करती. वह उन्हें खुलतेबनते देखती और पता नहीं कब उस ने भाईजान से मजेमजे में ही मोटरसाइकिल चलाना सीख लिया और उन की तकनीकों के बारे में भी जानने लगी. महमूद भाईजान भी खूब भरोसा रखने लगे थे रिदा पर. बिन मांबाप की बेटी की शादी जल्दी ही तय हो गई.

20 साल की होतेहोते रिदा की शादी नावेद से हो गई.पहलेपहल तो सब ठीकठाक रहा, पर फिर एक दिन रिदा को पता चला कि नावेद शराब भी पीता है और न जाने कहां से उसे जुए की लत लग गई है. नामुराद जुए की लत ने पहले तो उस के शौहर की नौकरी ले ली और फिर धीरेधीरे घर का छोटामोटा सामान चोरी होने लगा.उस के बाद नावेद की नजर रिदा के एकाध गहने पर पहुंची.

जब रिदा ने उसे अपने गहने देने से रोका, तो उस ने रिदा के साथ मारपीट की.रिदा ने कई बार महमूद भाईजान से भी इस की शिकायत की, तो उन्होंने नावेद को समझाया. कुछ दिन तो वह खामोश रहता और फिर वही जुए की हार के बाद रिदा से पैसे की मांग करता और न देने पर उसे मारनापीटना शुरू हो जाता.अभी तक रिदा की गोद नहीं भर पाई थी. इलाज भी न मिला. इफरात में पैसे कभी हो ही नहीं पाए, जो अच्छे डाक्टर से रिदा इलाज करवाती.

नावेद ने इसी गम को कम करने के लिए शराब पीने का बहाना बताया.कभीकभी तो देर रात गए नावेद की वापसी होती और आते ही वह बिरयानी की मांग करने लगता. अब अचानक रिदा बेचारी बिरयानी कैसे और कहां से बनाए. पहले से ही रोटी और दाल चलानी मुश्किल थी और बिरयानी की फरमाइश… रिदा तो पूरी तरह से टूट चुकी थी.एक शाम को नावेद का इतनी जल्दी घर वापस आना रिदा को कुछ अजीब लगा. नावेद के साथ सूटकेस लिए हुए एक 30 साल का आदमी भी था.

‘‘इन से मिलो… यह मेरे बचपन का दोस्त अजीमा है. पहले ये लोग हमारे बगल वाले घर में ही रहते थे, फिर ये सब बेच कर दुबई चले गए थे,’’ यह बताते हुए नावेद बहुत खुश दिख रहा था.रिदा ने झिझक के साथ उस आदमी की तरफ देखा, जो सीधा रिदा की आंखों में ही झांक रहा था. हलका सा मुसकराते हुए अजीमा ने सलाम किया, तो रिदा ने भी मुसकरा कर उस का जवाब दे दिया.

बातोंबातों में नावेद ने रिदा को बताया कि अजीमा नया मकान मिलते ही यहां से चला जाएगा. तब तक वह कुछ दिन उन लोगों के साथ ही रहेगा.दोस्तीयारी एक तरफ थी, मगर इस तंगहाली में किसी बाहर के आदमी का घर में आना रिदा को थोड़ा अजीब जरूर लगा, पर संकोच के चलते वह कुछ कह नहीं पाई.अगले दिन से ही रिदा को ऐसा लगा कि अजीमा काफी पैसे वाला है, क्योंकि वह नावेद और उस के लिए बाजार से अच्छे कपड़े और खानेपीने की चीजें ले आया था और कहने लगा कि वह दुबई से कुछ नहीं ला पाया था, इसीलिए लोकल मार्केट से खरीदारी की है. अजीमा आगे भी कुछ न कुछ खर्च करता ही रहता और साथ ही साथ उस ने नावेद को महंगी वाली शराब भी पिलानी शुरू कर दी, जिस का भरपूर मजा नावेद ले रहा था.

नावेद ने कुछ लोगों से कर्ज ले रखा था. यह बात जैसे ही अजीमा को पता चली, तो उस ने झट से नावेद को पैसे दिए और कहा कि वह जल्दी से अपना कर्जा चुकता कर दे. अजीमा का आना तो नावेद की जिंदगी में मजा ले आया था.

नावेद का जुआ खेलना बदस्तूर जारी ही था. वह अब भी घर से घंटों गायब रहता था. रिदा को महसूस होता था कि उस की गैरहाजिरी में अजीमा की आंखें लगातार रिदा के जिस्म का आगेपीछे से मुआयना करती रहती थीं.एक घूरने वाले गैरमर्द का यों घर में होना रिदा को बिलकुल नहीं अच्छा लग रहा था, फिर भी वह कुछ कह न सकी.‘‘यह क्या भाभीजी, आप ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया कि नावेद का जुआ खेलना आप को पसंद नहीं है. मैं आज ही उस की यह आदत छुड़वाता हूं,’’

अजीमा ने रिदा से कहा.नावेद के वापस आने पर अजीमा ने उसे बताया कि बाहर जा कर ताश के पत्तों से जुआ खेलना तो बीते जमाने की बात हो गई है और अगर पैसे से पैसे ही बनाने का शौक है, तो इस पर दांव लगा,’’ कहते हुए अजीमा ने नावेद को एक मोबाइल फोन थमाया.

‘‘क्रिकेट का एक टूर्नामैंट होता है पाईपीएल, उस में खेल रहे खिलाडि़यों पर पैसा लगाना होता है, जीते तो काफी पैसे मिलते हैं,’’ अजीमा ने यह भी बताया कि बिना डरे और बिना शरमाए घर बैठे ही इसे खेला जा सकता है.नावेद ने कुछ ही देर में इस खेल को खेलने के सारे तौरतरीके सीखने भी शुरू कर लिए थे. पर मोबाइल पर ही इस खेल को खेलने के लिए पैसे चाहिए थे, पर नावेद तो पहले से ही कर्ज में डूब गया था, इसलिए उस ने अजीमा से पैसे मांगने में कोई शर्म नहीं की.

शायद अजीमा को यह अहसास था, इसलिए उस ने तुरंत नावेद के खाते में पैसे ट्रांसफर कर दिए.मोबाइल फोन पर ‘जीतो दुनिया’ नामक एप पर नावेद जल्दी ही पैसे लगाने लगा और हारने भी लगा. इस से फिर घर में तंगी आने लगी. ऊपर से अजीमा का खर्चा भी भारी पड़ ही रहा था और अजीमा था कि काफी बेतकल्लुफी से नावेद और रिदा के घर में खापी कर मजे कर रहा था.रात में रिदा ने शिकायती लहजे में नावेद से कहा कि उसे अब अजीमा का यहां रहना अच्छा नहीं लगता.

अब उन्हें चले जाना चाहिए.रिदा की इस बात को सिरे से खारिज करते हुए नावेद ने कहा कि उन लोगों पर तो उस के बहुत अहसान हैं, इसलिए वह हर तरीके से अजीमा का ध्यान रखे.अपने शौहर की बात सुन कर रिदा खामोश हो गई, पर एक औरत किसी मर्द की नीयत को पहचानने में गलती नहीं करती. रिदा भी एकदम सही थी. अजीमा की नीयत तो खराब थी ही और एक दिन जब नावेद नशे में चूर हो कर पड़ा था, तब अजीमा रिदा के कमरे में आया और रिदा के पीछे जा कर उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बांहों में कस लिया.

रिदा अजीमा का खतरनाक इरादा भांप गई थी. उस ने अजीमा की कैद से आजाद होने की कोशिश की और नावेद को मदद के लिए पुकारा.‘‘कोई फायदा नहीं. जिसे तू मदद के लिए पुकार रही है न, उस के मुंह पर मैं पैसे का ताला लगा चुका हूं और उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है.’’रिदा लगातार हाथपैर पटक रही थी,

‘‘मेरे शौहर को भटका कर तुम मेरे साथ खेलना चाहते हो. मेरी मरजी के बगैर तुम मुझे छू भी नहीं सकते. तुम्हारी नीयत पर मुझे पहले से ही शक था…’’

अचानक से अजीमा ने रिदा के बदन से अपनी पकड़ ढीली कर दी और लापरवाही वाले अंदाज में उसे बताया कि बाजार के लोगों का हजारों रुपए का कर्ज नावेद के ऊपर है. अभी जो उस ने पैसे कर्ज चुकाने के लिए उसे दिए थे, वे भी नावेद पाईपीएल में हार चुका है और उस के एक इशारे पर कर्ज देने वाले लोग नावेद को हथकड़ी लगवाने पर उतारू हैं और उसे इस मुश्किल से सिर्फ वही बचा सकता है.

अगर वह अपनी आबरू अजीमा को सौंप दे तो वह न सिर्फ नावेद का सारा कर्ज चुकाने में मदद करेगा, बल्कि नावेद को अच्छी राह पर लाने की कोशिश भी करेगा.किसी के साथ अपनी अस्मत का सौदा करना रिदा को कतई मंजूर नहीं था. वह बाहर की ओर जाने लगी.

अजीमा ने कोई जबरदस्ती नहीं की.घर के अंदर रिदा को इज्जत जाने का खतरा लग रहा था, सो उस ने बाहर ही रात काटी और सुबह होते ही महमूद भाईजान को फोन लगा कर नावेद की बढ़ती हरकतों और अजीमा के बारे में बताया और मायके आ कर वहीं रह जाने की बात की. रिदा को अपने भाई महमूद की तरफ से हमदर्दी तो हासिल हुई,

पर उस की जिम्मेदारी लेने से महमूद ने कतई मना कर दिया, ‘‘देख, अब तेरा निकाह हुए समय हो गया है. जिंदगी की परेशानियां अब तुझे खुद ही झेलनी हैं, क्योंकि मेरा भी परिवार है और महंगाई के इस दौर में उन्हीं का खर्चा चलाना मेरे लिए भारी पड़ रहा है.’’कुछ दिनों बाद जब तेज बारिश हो रही थी, तब नावेद अजीमा के साथ रिदा के कमरे में आया और कहने लगा,

‘‘अरे, अजीमा भाई कुछ मांग रहे हैं तुझ से, तो तू दे क्यों नहीं देती? तेरे तो औलाद होने का भी खतरा नहीं है. इन की अभी शादी नहीं हुई है… इन की भी तो कुछ जरूरतें हैं,’’ नावेद की बेहयाई भरी बातों को सुन कर रिदा सकते में आ गई.अजीमा ने रिदा को आ कर पकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों को उसी के शौहर के सामने मसलने लगा और उसे पलंग पर गिरा कर बेतहाशा चूमने लगा.रिदा समझ चुकी थी कि नावेद ने उस की अस्मत का सौदा कर लिया है.

ताकतवर अजीमा कोमल रिदा पर छा गया था. कमरे में जोरजबरदस्ती का तूफान तो था ही, पर एक औरत के मन में उस के शौहर के लिए एक नफरत का तूफान भी पनप रहा था, क्योंकि उस का शौहर उसे लुटते हुए अपनी आंखों से देख रहा था.जिंदगी रिदा को घाव तो दे चुकी थी, पर अब इसे नासूर बनने से बचाना था. लिहाजा, एक दिन रिदा शहर जाने वाली बस में बैठ गई.शहर में रिदा ने कई रिहायशी कालोनियों में काम मांगा, तो लोगों ने साफसफाई का काम करवाने के लिए हामी तो भर दी, पर रिदा की सही पहचान जानने के लिए आधारकार्ड मांगा गया.

अब भला शौहर की बेवफाई की मारी रिदा आधारकार्ड कहां से लाती?रिदा अब हारने लगी थी. शायद अब भीख मांग कर अपना पेट भरना ही उस के लिए आखिरी रास्ता रह गया था. वह एक पार्क में जा कर बैठ गई. शरीर में कमजोरी और थकावट के चलते कब उसे बेहोशी ने आ घेरा, वह नहीं जान सकी थी.कुछ देर बाद एक झटके से जब रिदा की आंख खुली, तो उस ने देखा कि सामने वाली बैंच पर बैठा एक 50-55 साल का आदमी उसे घूर रहा था.रिदा थोड़ा घबराई और वहां से जाने की कोशिश करने लगी, तो वह आदमी बोला,

‘‘अजनबी लगती हो… कुछ परेशान भी हो…’’रिदा ने उस आदमी को बताया कि उसे काम की जरूरत है.वह आदमी एक इंटर कालेज में चौकीदार था. उस ने रिदा से साफसफाई वाला काम दिला देने को कहा, पर साथ ही साथ रिदा से यह भी कहा कि इस दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता, इसलिए वह रिदा को काम दिलाने के बदले उस की पहली तनख्वाह में से आधा हिस्सा ले लेगा. रिदा ने तुरंत हां कर दी.‘‘पर, पहले चल कर कुछ खापी लो. शरीर में जान होगी,

तभी तो मेहनत कर पाओगी,’’ वह आदमी बोला.अगले ही दिन से उस आदमी ने रिदा को काम पर लगवा दिया और स्कूल के साइकिल स्टैंड के पास बने पुराने स्टोररूम में उस के रहने का इंतजाम भी करवा दिया.अगले दिन से ही रिदा पूरी मेहनत से सफाई का काम करने लगी. अपनी मेहनत से वह सब की चहेती बनती जा रही थी,

चाहे किसी को पानी पिलाना हो या किसी की कोई खोई फाइल ढूंढ़नी हो. सभी की जबान पर रिदा का ही नाम रहता था.आज कालेज के सभी बच्चे तो जा चुके थे, फिर भी मोटरसाइकिल स्टैंड पर 12वीं क्लास का एक लड़का आरव अपनी पुरानी सी बाइक स्टार्ट करने में लगा हुआ था, पर उस की बाइक स्टार्ट ही नहीं हो रही थी.रिदा ने ठिठक कर उसे परेशान हालत में देखा और पूछा, ‘‘क्या हुआ भैया? आप कहो, तो मैं स्टार्ट कर के देखूं?’’आरव को रिदा का ऐसा कहना बड़ा अजीब लगा,

पर उस के जवाब का इंतजार किए बिना ही रिदा ने आरव के हाथ से बाइक ले ली और चंद मिनट तक इधरउधर चैक करने के बाद ऐसी किक मारी कि बाइक स्टार्ट हो गई.आरव हैरान था. रिदा ने मुसकराते हुए उसे बताया कि उस की बाइक का प्लग साफ करते ही वह स्टार्ट हो गई है, पर फिर भी उसे आगे जा कर इस में नया प्लग डलवा ही लेना चाहिए.आरव थैंक्स बोल कर चला गया.आरव की मां नीमा एक समाजसेविका थीं और एक संस्था भी चलाती थीं.

उन की संस्था मजदूरों और गरीबों को आगे बढ़ाने का काम करती थी. एक दिन आरव की मां कालेज के आसपास काम करने वाले मजदूरों से मिलने और उन्हें उपहार देने आई थीं.आरव ने अपनी मां नीमा को रिदा के बारे में पहले से ही बता दिया था.‘‘उस दिन तुम ने बाइक कैसे स्टार्ट कर ली थी?’’ नीमा ने रिदा से पूछा.रिदा ने बताया कि कैसे वह अपने भाईजान की दुकान पर बाइक चलाना और थोड़ीबहुत मरम्मत करना सीख गई थी. उस ने यह भी बताया कि वह ड्राइवर बनना चाहती है, क्योंकि उन्हें ज्यादा पैसा मिलता है.‘‘पर इतना भरोसा एक औरत पर कोई नहीं करेगा,’’

नीमा ने कहा.रिदा ने नीमा को एक आइडिया  बताया कि यहां सैलानियों को एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए टैक्सीरिकशा की डिमांड रहती है. उस ने कुछ लोगों को बाइक पर लिफ्ट लेते भी देखा है. अगर उसे एक बाइक मिल जाती तो वह उसे ‘बाइक टैक्सी’ के रूप में चलाती.रिदा का आइडिया नीमा को पसंद आया और उन्होंने रिदा को अपना पता देते हुए 2 दिन बाद अपने घर बुलाया.

घर पर नीमा ने रिदा को बताया कि ‘बाइक टैक्सी’ वाला आइडिया तो अच्छा है, पर उस के लिए तो सब से पहले रिदा को ड्राइविंग लाइसैंस चाहिए होगा और उस के बाद कुछ रकम लगा कर एक बाइक खरीदनी होगी.रिदा परेशान हो गई थी. इतना सब वह कैसे करेगी? बाइक कैसे खरीदेगी वह?नीमा ने कहा कि वे अपनी जानपहचान से उस का ड्राइविंग लाइसैंस बनवा देंगी, पर ध्यान रहे कि आरटीओ औफिस में पूछे गए सभी सवालों का वह सही जवाब दे.

नीमा ने रिदा से आरव की पुरानी बाइक लेने को कहा, पर मुफ्त में नहीं, क्योंकि मुफ्त में देने से लोगों को उस की कदर नहीं रहती है, इसलिए रिदा को 1,000 रुपए प्रति माह लगातार 30 महीने तक देने होंगे. रिदा ने तुरंत हां कर दी.रिदा इस बीच स्कूल में सफाई का काम करती रही और जब उस का ड्राइविंग लाइसैंस आ गया, तब वह मानो आसमान में उड़ने लगी.इस बीच रिदा ने आरव की मदद से उस की पुरानी बाइक में जरूरी मरम्मत करा ली और आरटीओ औफिस से एक बाइक को ‘टैक्सी बाइक’ के रूप में चलाने की इजाजत भी ले ली थी.जब सारी औपचारिकताएं पूरी हो गईं, तो हैलमैट लगा कर नीमा बाइक पर निकली. बाइक के आगे ही एक छोटी सी प्लेट पर लिखा हुआ था, ‘पिंक टैक्सी’.

खुदकुशी : क्यों मरा चमनलाल

मेरी नजरें पंखे की ओर थीं. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मैं पंखे से झूल रहा हूं और कमरे के अंदर मेरी पत्नी चीख रही है. धीरेधीरे उस की चीख दूर होती जा रही थी.

सालों के बाद आज मुझे उस झुग्गी बस्ती की बहुत याद आ रही थी जहां मैं ने 20-22 साल अपने बच्चों के साथ गुजारे थे.

मेरे पड़ोसी साथी चमनलाल की धुंधली तसवीर आंखों के सामने घूम रही थी. वह मेरी खोली के ठीक सामने आ कर रहने लगा था. उसी दिन से वह मेरा सच्चा यार बन गया था. उस के छोटेबड़े कई बच्चे थे.

समय का पंछी तेजी से पंख फैलाए उड़ता जा रहा था. देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए. चमनलाल का बड़ा बेटा जो 20-22 साल का था, बुरी संगत में पड़ कर आवारागर्दी करने लगा. घर में हुड़दंग मचाता. छोटे भाईबहनों को हर समय मारतापीटता.

चमनलाल उसे समझाबुझा कर थक चुका था. मैं ने भी कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. जब भी चमनलाल से इस बारे में बात होती तो मैं उसे ही कुसूरवार मान कर लंबाचौड़ा भाषण झाड़ता. शायद उस के जख्म पर मरहम लगाने के बजाय और हरा कर देता.

सुहानी शाम थी. सभी अपनेअपने कामों में मसरूफ थे. तभी पता चला कि चमनलाल की बेटी अपने महल्ले के एक लड़के के साथ भाग गई.

चमनलाल हांफताकांपता सा मेरे पास आया और यह खबर सुनाई तो उस के जख्म पर नमक छिड़कते हुए मैं बोला, ‘‘कैसे बाप हो? अपने बच्चों की जरा भी फिक्र नहीं करते. कुछ खोजखबर ली या नहीं? चलो साथ चल कर ढूंढ़ें. कम से कम थाने में तो गुमशुदगी की रिपोर्ट करा ही दें.’’

चमनलाल चुपचाप खड़ा मेरी ओर देखता रहा. मैं ने उस का हाथ पकड़ कर खींचा लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ.

मैं ने अपनी पत्नी से जब यह कहा तो वह रोनी सूरत बना कर बोली, ‘‘गरीब अपनी बेटी के हाथों में मेहंदी लगाए या उस के अरमानों की अर्थी उठाए…’’

मैं अपनी पत्नी का मुंह देखता रह गया, कुछ बोल नहीं पाया.

जंगल की आग की तरह यह खबर फैल गई. लोग तरहतरह के लांछन लगाने लगे. जिस के मुंह में दांत भी नहीं थे, वह भी अफवाहें उड़ाने और चमनलाल को बदनाम कर के मजा लूट रहा था. किसी ने भी एक गरीब लाचार बाप के दर्द को सम  झने की कोशिश नहीं की. किसी ने आ कर हमदर्दी के दो शब्द नहीं बोले.

चमनलाल अंदर ही अंदर टूट गया था. उस ने चिंताओं के समंदर से निकलने के लिए शराब पीना शुरू कर दिया. गम कम होने के बजाय और बढ़ता गया. घर की सुखशांति छिन गई.

रोज शाम को वह नशे की हालत में घर आता और घर से चीखपुकार, गालीगलौज, लड़ाई  झगड़ा शुरू हो जाता. चमनलाल जैसा हंसमुख आदमी अब पत्नी को पीटने भी लगा था. वह गंदीगंदी गालियां बकता था.

इधर, मिल में हड़ताल हो गई थी. दूसरे मजदूरों के साथसाथ चमनलाल की गृहस्थी का पत्ता धीरेधीरे पीला होने लगा था. आधी रात को चमनलाल ने मेरा दरवाजा खटखटाया. मेरे बच्चे सो रहे थे.

मैं ने दरवाजा खोला और चमनलाल को बदहवास देखा तो घबरा गया.

‘‘क्या बात है चमनलाल?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

चमनलाल उस वक्त बिलकुल भी नशे में नहीं था. वह रोनी सूरत बना कर बोला, ‘‘मेरा बड़ा बेटा दूसरी जात की लड़की को ब्याह लाया है और उसे इसी घर में रखना चाहता है लेकिन मैं उसे इस घर में नहीं रहने दे सकता.’’

मैं ने कहा, ‘‘उसे कहा नहीं कि दूसरी जगह ले कर रखे?’’

‘‘नहीं, वह इसी घर में रहना चाहता है. मेरी उस से बहुत देर तक तूतू मैंमैं हो चुकी है,’’ चमनलाल बोला.

मैं ने कहा, ‘‘रात में हंगामा खड़ा मत करो. अभी सो जाओ. सुबह देखेंगे.’’

अगली सुबह मैं जरा देर से उठा. बाहर भीड़ जमा थी. मैं हड़बड़ा कर उठा. बाहर का सीन बड़ा भयावह था. चमनलाल की पंखे से लटकी हुई लाश देख कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

उस के बाद से पुलिस का आनाजाना शुरू हो गया. कभी भी, किसी भी समय आती और लोगों से पूछताछ कर के लौट जाती. चमनलाल की मौत से लोग दुखी थे वहीं पुलिस से तंग आ गए थे.

मेरे मन में कई बुरे विचार करवट लेते रहे. क्या चमनलाल ने खुदकुशी की थी या किसी ने उस की… फिर… किस ने…? कई सवाल थे जिन्होंने मेरी नींद चुरा ली थी.

मेरी पत्नी और बच्चे डरेसहमे थे. पुलिस बारबार आती और एक ही सवाल दोहराती. हम लोग इस हरकत से परेशान हो गए थे.

इस बेजारी के चलते और बच्चों की जिद पर मैं उस महल्ले को छोड़ कर दूसरे शहर चला गया और उस कड़वी यादों को भुलाने की कोशिश करने लगा.

लेकिन सालों बाद चमनलाल की याद और उस की रोनी सूरत आंखों के सामने घूमने लगी. उस का दर्द आज मुझे महसूस होने लगा, क्योंकि आज मेरी बड़ी बेटी पड़ोसी के अवारा लड़के के साथ… वह मेरी… नाक कटा गई थी. मैं खुद को कितना मजबूर महसूस कर रहा था. आज मैं चमनलाल की जगह खुद को पंखे से लटका हुआ देख रहा था.

रहमानी : क्या थी कालू सेठ की चाल

‘‘अ रे रहमानी, तुम्हें कालू सेठ ने बुलाया है,’’ जब शम्मी बोला, तो रहमानी का चौंकना लाजिमी था.

‘‘क्यों मुझ से क्या काम आ गया?’’ रहमानी पूछ बैठा.

‘‘मुझे क्या मालूम, तुम मिल लो न,’’ शम्मी इतना कह कर चला गया.

‘‘जी, आप ने याद किया,’’ रहमानी सीधा कालू के पास जा कर बोला.

‘‘हां, आइए,’’ कहते हुए कालू ने रहमानी को अपने पास बिठाया और चायनाश्ता कराया.

‘‘जी बताइए, मैं आप की क्या खिदमत करूं?’’ रहमानी झुकते हुए बोला.

‘‘अरे, खिदमत कैसी. तुम्हारी बूआ तुम्हें याद कर रही है. घर आओ न,’’ कालू रहमानी से बड़े प्यार से मिला.

‘‘तो भाईजान, मैं कल आऊंगा.’’

‘‘अरे, पैदल नहीं. मैं तुम्हें मंडी से अपने साथ ले चलूंगा. तुम रात का खाना मेरे घर खाना,’’ इतना कह कालू ने रहमानी को प्यार से विदा किया.

रहमानी रात को अपने घर आया. उस का पुराने सुभाषनगर में छोटा सा झुग्गीनुमा घर है. उस के पापा दुकान चलाते थे. गैस कांड के बाद उन्हें सांस की शिकायत है, फिर भी वे घर से ही कारोबार में मदद करते हैं.

‘‘अब्बू, कालू सेठ ने बुलाया है?’’ रहमानी अब्बू से बात करते हुए बोला.

‘‘अरे, वह तो बड़ा बदमाश है. तेरी बूआ की ननद का बेटा है. आलू का बड़ा कारोबारी है. हम गरीब हैं, इसलिए हमें कोई नहीं पूछ रहा है.’’

‘‘उस ने कल शाम को खाने पर बुलाया है. दुकान बंद कर के चल पड़ेंगे.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर दोनों बापबेटा खाना खा कर सो गए.

सुबह 5 बजे उठ कर अब्बू बाजार से सब्जी उठा लाए. रहमानी शाम के 4 बजे मंडी चला गया. वहां से रात के 10 बजे तक सारा माल बेच कर खाली हुआ ही था कि कालू अपनी कार में अब्बू को बिठाए वहां आ गया.

वे दोनों मिठाई खरीद कर बूआ से मिलने कालू के घर पहुंचे. कालू के यहां रहमानी के फूफा फुरकान काम करते थे और 5 बेटियों के अब्बा थे, पर कालू उन की सगी बहन का बेटा था.

रहमानी को देख कर फूफा, बूआ, कालू की मां सब खुश हुए और इसी बीच कालू की बहन का मसला सामने आया.

‘‘भाईजान, आप मेरी बहन से निकाह कर लें,’’ कालू सीधे मुद्दे की बात पर आ गया.

‘‘आप इतने अमीर और कहां मैं गरीब. मेरे घर वह सुखी नहीं रह पाएगी,’’ यह रहमानी के अब्बू की आवाज थी.

‘‘गरीबीअमीरी मुद्दा नहीं है. लड़का मेहनती है, पहचान का है. फिर बीए पास भी है,’’ कालू बोला.

‘‘मेरी लड़की पढ़ीलिखी तो है, पर सब से बड़ी बात यह कि वह दागदार है,’’ लड़की के अब्बा ने कहा.

‘‘क्या मतलब…?’’ रहमानी चौंक गया.

‘‘वह पार्षद सगीर के बेटे अरबाज से प्यार करती थी. दोनों कैरियर कालेज में पढ़ते थे. फिर हम ने निकाह के लिए हामी भरी, बल्कि उन्हें छूट भी दे दी, पर एक महीना पहले सड़क हादसे में अरबाज चल बसा. बस, हम लोग परेशान हो गए.

‘‘सगीर का दूसरा बेटा…’’ रहमानी ने यह वाक्य जान कर अधूरा छोड़ दिया.

‘‘मत लो नाम उन का. वे मतलबी निकले. आज वे माईका के कारोबारी हैं. पूरे 10 लाख की चोट दे गए.’’

‘‘अब हम लोग आप की क्या मदद कर सकते हैं?’’ रहमानी ने कहा.

‘‘कुछ नहीं भाईजान, आप मेरी बहन का हाथ थाम लें. हम आप का यह एहसान कभी नहीं भूलेंगे,’’ कालू बोला.

‘‘आप को पता है कि मेरा बेटा 38 साल का है. लड़की काफी छोटी होगी. फिर हम लोग झुग्गी में रहते हैं. क्या वह हमारे साथ रह पाएगी? दूसरी बात यह कि क्या वह खाना पका सकती है?’’

‘‘खाना बनाना ही नहीं, वह सारा काम जानती है. रुको, हम रुखसाना को बुलाते हैं.’’

थोड़ी देर के बाद रुखसाना चाय ले कर सब के बीच आ कर बैठ गई.

‘‘देखो, हम लोग झुग्गी में रहते हैं. क्या आप हमारे साथ रह पाओगी? दूसरी बात, मेरे अब्बा भी साथ रहते हैं. खाना 3 लोगों का बनाना होगा.’’

‘‘मुझे सबकुछ बनाना आता है, फिर मेहनत करना तो अच्छी बात है,’’ इतना कह कर रुखसाना भीतर चली गई.

सांवले रंग की रुखसाना तकरीबन 28-30 साल के बीच की है. अब सब फाइनल हो गया. कालू की गुंडई के आगे सब शांत थे.

‘‘फिर ठीक है. अगले हफ्ते निकाह पढ़वा

लेते हैं,’’ कालू खुश हो कर बोला.

‘‘इतनी जल्दी, कुछ तो तैयारी करनी होगी,’’ रहमानी बोला.

‘‘सब मैं करवा दूंगा. आप इस तैयारी को देखें,’’ कालू ने उन्हें इज्जत से विदा किया.

फिर तो हफ्तेभर में काजी ने निकाह पढ़वा दिया. रुखसाना ससुराल आ गई. उस ने सबकुछ संभाल लिया. रहमानी के अब्बा ने शादी में जेवर, कपड़े और सामान इतना दिया कि कालू चौंक गया.

‘‘भाईजान, मेरी बहन को जन्नत मिल गई. आप तो हम से भी अमीर हैं.’’

‘‘क्यों मजाक कर रहे हो…’’ रहमानी बोला.

‘‘सच में दूल्हा भाई, 3 लाख के जेवर ही होंगे, फिर कपड़े, सामान, हम सब लोग हैरान हैं,’’ कालू बोला.

‘‘हमारा और कौन है. बस, आप की बहन ही है न. हम दोनों सुखी रहें, हमें और क्या चाहिए,’’ रहमानी मस्ती में जवाब दे बैठा.

सुबह 5 बजे चाय पी कर रहमानी का बूढ़ा बाप मंडी चला जाता और सामान ले आता. कालू के यहां से 4 कट्टा आलू भी ले आता.

फिर दिनरात का काम. बेटा कम काम करता. बस, बाप काम करता था. इस का नतीजा यह हुआ कि घर के हालात अच्छे होने लगे. उधर रुखसाना, जो हवस का शिकार थी, प्यार पा कर निहाल थी.

सो, उस दिन… सुबह के 5 बजे अब्बू चाय पी कर जा चुके थे और रुखसाना उठ कर फै्रश हो चुकी थी. वह चाय बनाने जा रही थी कि रहमानी पीछे से उसे पकड़ बैठा.

‘‘अरे,’’ कहते हुए वह रहमानी के सिर पर हाथ फेरने लगी.

रहमानी को जन्नत का सुख मिलने लगा, ‘‘तुम कितनी अच्छी हो,’’ वह उसे चूमते हुए बोला.

चाय पी कर दोनों पतिपत्नी एक हो गए. रहमानी को खूब मजा मिलने लगा, वहीं रुखसाना को तो कितनी बार लूटाखसोटा जा चुका था, पर उसे यहां गरीबी में भी सुख का अहसास हो चुका था.

कालू गुंडा था, जिस से लोग डरते थे, मगर कुछ लोगों से कालू भी डरता था, इसलिए जानबूझ कर बहन की इज्जत जैसे मामले पर वह चुप रहा.

‘‘कालू उसे मजा चखा दो न,’’ मांबाप के कहने पर वह भड़का जरूर, मगर दूध के उफान सा ठंडा हो चुका था.

‘‘बदनाम लड़की से शादी कौन करेगा? फिर वह तो मर चुका है. बस, हर जगह जोश अच्छा नहीं होता,’’ सभी कालू को समझा रहे थे. वहीं यह बलि का बकरा अच्छा मिल गया था.

‘‘क्या रहमानी, अपना कामधाम अच्छा चल रहा है न?’’

‘‘आराम से और पूरे ढंग से सब काम हो

रहा है.’’

‘‘रहमानी, जोरू कैसी है?’’ जब दोस्त पूछते, तो वह मुसकरा कर काम में खो जाता.

रहमानी को पत्नी बासी रोटी सी मिली थी, मगर वह खुश था. पत्नी के सारे काम ढंग से कर रही थी, वहीं अब्बू भी खुश थे. उधर सगीर भी इस समस्या का सही समाधान पा कर शांत बैठा था.

एक दिन अचानक गाड़ी का टायर फटने से पार्षद सगीर चल बसा. हत्या का केस बना और रहमानी को भी थाने बुलाया गया.

‘‘सगीर की मौत के बारे में पूछताछ करनी है,’’ दारोगा शांत भाव से बोला.

‘‘साहब, मैं न तो सगीर को जानता हूं, न कभी उस से मिला.’’

‘‘देख रहमानी, तू सच बोलेगा तो छूट जाएगा,’’ दारोगा समझाते हुए बोला.

‘‘साहब, सगीर हमारे पार्षद थे, मगर कभी मुलाकात नहीं हुई.’’

‘‘फिर भी कोई वाकिआ?’’

‘‘कुछ भी नहीं. मैं आलू बेचता हूं,’’ रहमानी दीन सी आवाज में बोला.

‘‘क्या तेरी बीवी का पहले सगीर के बेटे से रिश्ता हुआ था?’’ दारोगा ने पूछा.

‘‘मुझे शादी के पहले की बात कैसे पता होगी. कालू भाई मेरे अब्बू के पास आए और फिर मेरा निकाह हो गया,’’ रहमानी बोला.

‘‘ठीक है, तुम जा सकते हो, मगर जरूरत होगी तो हम कल आएंगे.’’

‘‘जरूर हुजूर,’’ सलाम करता हुआ रहमानी घर आ गया.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ रुखसाना की घबराहट से भरी आवाज थी.

‘‘कुछ नहीं, सगीर गाड़ी का टायर फटने से मर गया. उसी सिलसिले में मुझे थाने में बुलाया था.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘कुछ नहीं. मुझे कुछ मालूम नहीं था, इसलिए वापस भेज दिया. चल, चाय बना. मंडी जाना है. वैसे ही लेट हो रहा हूं,’’ रहमानी ने कहा. फिर उस ने जल्दी से चाय पी और मंडी चला गया.

खाली जगह : गरीबी से परेशान हो कर सुरेश ने क्या कदम उठाया

वह इतनी जोर से चीखा कि सड़क पर चलते सभी लोग एक पल को सहम गए. उस ने नारियल काटने वाला बड़ा सा छुरा निकाला और हरे नारियल को हाथ में ले कर एक झटके में ऐसा काटा मानो किसी का सिर काट रहा हो. नारियल फट गया, उस में भरा पानी हाथों से होता हुआ नीचे तक फैल गया. वह कटे नारियल को हाथ में लिए बैठ गया और जोरों से चीखते हुए रो पड़ा.

बात ही कुछ ऐसी थी कि बदहाली और गरीबी से परेशान हो कर सुरेश गांव छोड़ कर वेल्लोर आ गया था. बीआईटी यूनिवर्सिटी के सामने उस ने नारियल पानी बेचने की एक दुकान लगा ली थी. दुकान क्या… एक डब्बा रखा, एक फट्टे पर 10-20 नारियल रखे और हाथ में बड़ा सा छुरा.

हालांकि सुरेश को नारियल काटने की आदत थी. गांव में वह मिनटों में नारियल के पेड़ पर चढ़ जाता था और तेज धार के छुरे से नारियलों को पेड़ से काट कर नीचे गिरा देता था.

पिछले 2 सालों से बरसात नहीं हुई थी. धान की फसल सूख गई थी. गांव में मजदूरी नहीं थी. मांबाप ने गांव छोड़ने की बात कही तब सुरेश ने उन्हें पुश्तैनी जगह छोड़ कर जाने से मना कर दिया और खुद जाने का फैसला लिया. वहां

से वेल्लोर पास था. सीएमसी बहुत बड़ा मैडिकल कालेज था लेकिन सड़क पर बहुत से लोग दुकानें सजाए बैठे थे. उस के लिए कोई जगह नहीं थी. गांव के एक मुंहबोले अन्ना के झोपड़े में उस ने पनाह ली थी. उसी ने नारियल पानी बेचने की सलाह दी थी. एक नारियल पर 5 से 10 रुपए बच जाते थे. दिनभर में 50-100 रुपए की आमदनी हो जाएगी. नारियल का कचरा सूख जाने पर ईंधन के लिए काम में आ जाएगा, लेकिन जगह की दिक्कत थी.

सुरेश आवारा की तरह जगह खोज रहा था. वेल्लोर के बीआईटी कैंपस के सामने जगह खाली थी और बहुत से लड़केलड़कियां वहां से गुजरते थे. वे जरूर नारियल पानी पीना पसंद करेंगे. उस ने अन्ना से कह कर अपने लिए

20 नारियल उधार ले लिए. छुरा भी मिल गया. एक बोरे में नारियल ले कर वह एक फट्टे को बिछा कर सड़क किनारे बैठ गया.

पहले दिन 5-7 नारियल ही बिके. स्ट्रा का एक डब्बा भी रख लिया था. शाम को बाकी बचे नारियलों को कंधे पर रख कर वह अन्ना के ?ोंपड़े में लौटा. चावल और रसम खा कर वह अपने गांव की याद में खो गया. यह गांव कभी यादों में से जाता क्यों नहीं है? क्यों बारबार बुलाता है?

सुरेश 6 फुट का एकदम काले रंग का लेकिन मेहनती लड़का था. एक पुरानी रंगीन लुंगी और गंदी सी  शर्ट, बाल उलझे हुए और ग्राहक को तलाशती आंखें.

अगली सुबह सुरेश फिर फट्टा ले कर वहां बैठ गया. 2 तरह के नारियल रखे. बड़ा पानी वाला 20 रुपए का, छोटा 15 रुपए का था. अंदर मलाई वाला भी था. पानी पीने के बाद वह नारियल को फाड़ कर अंदर की मलाई खरोंच कर दे देता था. 1-2 बार उस की भी बड़ी इच्छा हुई कि पानी पी कर देखे, मलाई खा कर देखे, लेकिन एक नारियल पर 10 रुपए का नुकसान हो जाएगा. अभी उसे रुपयों की जरूरत है, वह बिलकुल भी नारियल का पानी नहीं पी सकता.

यूनिवर्सिटी कैंपस से लड़कों का हुजूम निकलता था. कुछ पास आते, मोलभाव करते और आगे बढ़ जाते. लड़कालड़की आते तो एक नारियल में 2 स्ट्राडाल कर एकसाथ पीते. वह देखता, उसे सबकुछ बहुत अजीब लगता. वह अपनी नजरें फेर लेता था.

कभीकभी लड़कालड़की इतना चिपक कर नारियल पानी पीते कि उसे लगता, उस के शरीर में कुछ गड़बड़ी हो रही है. वह नजरें घुमा लेता तो उन के हंसने की आवाज कानों में आती. वह नजरें नीची कर लेता.

वैसे भी सुरेश की उम्र अभी 20-22 साल की रही होगी. प्यार जैसे रिश्तों से उस का कोई नाता नहीं पड़ा था, फिर जिस गांव में वह रहता

था वहां प्यार नहीं होता था, सीधे शादी और बच्चा पैदा होता था. लेकिन यहां जोकुछ हो रहा था, वह सब हैरानी की बात थी.

एक हफ्ता होतेहोते सुरेश की बिक्री बढ़ गई. वह तकरीबन 40-50 नारियल काटने लगा था. कचरा भी उठा कर अपने झोंपड़े में अन्ना के लिए ले आता था. उस ने अन्ना को 100-200 रुपए देने भी शुरू कर दिए थे. उन्हीं की जमानत पर तो वह नारियल उठा पा रहा था. थोड़े से रुपए उस ने गांव में भी भेज दिए थे और प्लास्टिक की एक पुरानी मेज ले ली थी जिस पर नारियल का ढेर रख लेता था. वह जानता था कि कालेज से कब लड़केलड़की बाहर आएंगे. इसलिए वह 3-4 नारियल पहले ही छील कर रख लेता था.

एक दिन एक ग्राहक आया. उस ने नारियल मांगा. सुरेश ने काट कर उसे दिया. उस ने पीया और 10 रुपए का नोट देने लगा. सुरेश ने कहा, ‘‘भाई, यह 20 रुपए का नारियल है.’’

‘‘मैं 20 रुपए ही देता, लेकिन नारियल में पानी नहीं था,’’ वह बोला.

‘‘भाई, अभी नारियल का मौसम नहीं है. पानी कम हो जाता है. मलाई बन जाती है,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘नहीं… ये 10 रुपए रख,’’ कह कर वह चला गया. सुरेश को बहुत गुस्सा आया. सोचा कि अब ग्राहक से रुपए पहले लेगा, फिर नारियल काटेगा, लेकिन ऐसा करने पर दुकानदारी पर बुरा असर पड़ेगा. वह ग्राहक को देखसमझ कर रुपए मांगेगा.

धूप में खड़े रहने और दिनभर मेहनत करने से सुरेश का शरीर और काला मजबूत हो गया था. गरमी का मौसम जा चुका था, बरसात लग गई थी. कभी भी बरसात होने लगती थी. सामने की एक बड़ी दुकान के छज्जे के नीचे जा कर

वह खड़ा हो जाता था. इस से ग्राहकी पर बुरा असर पड़ रहा था. दिन में 20-30 नारियल ही बिक रहे थे.

एक दोपहर बारिश हो कर रुकी ही थी कि सुरेश छज्जे की ओट से निकल कर अपनी दुकान के पास जा कर खड़ा हुआ. इतने में एक चमचमाती कार सड़क के उस ओर खड़ी हुई, उस में से एक मैडम उतर कर उस की दुकान पर आईं.

सुरेश मन ही मन खुश हो गया कि चलो एक नारियल तो कटेगा. पर वह सीधी बड़ी दुकान में चली गई. वह मन मसोस कर रह गया. ढेर सा सामान खरीद कर वह बाहर निकली. एक पल के लिए उस ने सुरेश को देखा और उस की मेज के पास आई और पूछा ‘‘कितने में दिया है नारियल?’’

‘‘मैडमजी, बड़ा 20 रुपए का और छोटा वाला 15 रुपए का,’’ सुरेश ने नारियल हाथ में उठा कर दिखाते हुए कहा.

‘‘एक 20 रुपए वाला काट दो,’’ उस मैडम ने कहा. उस मैडम के कपड़ों से एक अजीब सी महक आ रही थी जो सुरेश को बहुत ही अच्छी लग रही थी मानो कहीं मोगरे या गुलाब के फूल खिले हों. उस ने 3 बार में नारियल को छील कर नारियल में एक स्ट्रा डाल कर मैडम की ओर बढ़ा दिया.

मैडम ने नारियल के पानी को पीना शुरू किया. 2-3 मिनट में पी लिया

और कहने लगीं, ‘‘तुम लोग बहुत ठगने लगे हो…’’

‘‘क्यों मैडमजी?’’

‘‘नारियल में कितना कम पानी था.’’

‘‘एक और काट देता हूं.’’

‘‘ताकि तेरे एक नारियल के रुपए और बन जाएं,’’ मैडम ने कहा.

‘‘नहीं मैडमजी, ऐसी बात नहीं है,’’ कह कर बिना मैडम की इच्छा जाने उस ने एक और नारियल काट कर सामने कर दिया.

थोड़े से संकोच के बाद मैडम ने नारियल ले लिया. वह बड़ी उम्मीद से तारीफ सुनने के लिए मैडम को देख रहा था.

मैडम ने पानी पीया, फिर नारियल को एक ओर पटक दिया और 50 रुपए का नोट दिया. सुरेश ने 30 रुपए मैडम को वापस किए.

मैडम ने रुपए देखे, ‘‘अरे, यह क्या, 2 नारियल लिए?हैं.’’

‘‘मैडमजी, पानी कम था न.’’

‘‘अरे, तुम दुकान चला रहे हो या…’’

‘‘एक नारियल से कुछ नहीं होता.’’

‘‘ये पूरे 50 ही रखो,’’ कह कर मैडम ने 50 रुपए उसे पकड़ा दिए.

‘‘मैडम जी, मैं सुरेश,’’ न जाने क्यों और कैसे उस के मुंह से निकल गया.

‘‘मैं सुंदरी,’’ कह कर मैडम ने हाथ मिलाने को आगे बढ़ा दिया. सुरेश ने डरते हुए हाथ आगे किया. कितने खुरदरे और काले हाथ हैं उस के और मैडम के हाथ कितने नरम और गोरे. पलभर को उसे लगा मानो स्वर्ग मिल गया हो.

‘‘दिनभर में कितने नारियल बेच लेते हो?’’ मैडम ने पूछा.

‘‘40 से 50.’’

‘‘कितना मुनाफा होगा है?’’

‘‘100 से 150 रुपए मिल जाते हैं,’’ सुरेश बताया.

‘‘मैं कल आऊंगी, तुम नारियल ले कर मत आना. इसी समय आऊंगी,’’ कह कर वह मैडम बास्केट उठा कर जाने को हुईं, तो सुरेश ने पूछा, ‘‘क्यों मैडमजी?’’

‘‘नारियल मत लाना. मैं मिलती हूं,’’ कह कर मैडम सड़क के उस पार खड़ी कार में जा कर बैठ गईं.

सुरेश का दिमाग बहुत तेजी से दौड़ने लगा. आखिर क्यों कल नारियल नहीं लाने हैं? मैडम क्यों आएंगी? वह और भी कुछ सोचता, लेकिन तब तक कालेज के कुछ लड़केलड़कियां वहां आ गए तो वह उन में लग गया, लेकिन दिमाग से वह बात जा नहीं रही थी कि आखिर मैडम ने ऐसा क्यों कहा? वह जितना सोच रहा था उतना ही उल?ाता जा रहा था. कभी एक काले से लड़के पर उस की नजर पड़ी जो नारियल की दुकान के पास आ कर खड़ा हो गया था.

‘‘क्या बात है?’’

‘‘भाई, मैं पास के गांव से आया हूं.’’

‘‘तो…?’’ सुरेश की आवाज में अजीब सा रूखापन था.

‘‘क्या मुझे काम मिल जाएगा?’’

‘‘मुझे जिंदा रहना भारी पड़ रहा है, तुझे कौन सा काम दे पाऊंगा,’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘मेरे पास 500 रुपए हैं.’’

‘‘भाई, तो मैं क्या करूं?’’

‘‘भाई, मैं यहां पड़ोस में दुकान खोल लूं?’’ उस ने बहुत अदब के साथ पूछा. सुरेश का दिमाग खराब हो गया कि यह तो उस का धंधा ही चौपट करने की सोच रहा है.

‘‘भाग यहां से. पुलिस वाले एक दिन में उठा कर भगा देंगे.’’

‘‘भाई, मैं थोड़ी दूर नारियल की दुकान खोल लूंगा, गांव में मुझे इस का बहुत अनुभव है, नारियल तोड़ने का, काटने का. मैं ने अपने गांव में सेठ के यहां काम भी किया था. आप मदद कर दें तो…’’ वह लड़का गिड़गिड़ा रहा था.

‘‘यार, धंधा खराब चल रहा?है. तू आगे बढ़ जा,’’ सुरेश की आवाज में नाराजगी थी. वह लड़का आगे बढ़ गया.

मौसम खराब था. उस ने सुरेश का मूड और भी खराब कर दिया. उस ने सामान समेटा और अपने झोंपड़े की ओर लौट पड़ा. रात चावल और सांबर खाया. अन्ना के हाथ में 5 रुपए रख दिए. झोंपड़े में चटाई डाल कर हाथ का सिरहाना बना कर लेट गया. बाहर रिमझिम बरसात हो रही थी. पूरी बस्ती में कीचड़ थी. आबोहवा में नमी थी. बारबार मैडम का चेहरा सामने आ रहा था. आखिर उन्होंने कल क्यों नारियल नहीं लाने को कहा? सोचतेसोचते कब नींद लग गई, पता नहीं चला. सुबह मौसम खुला हुआ था, लेकिन बाहर कीचड़ बहुत थी.

सुरेश उठा, कौफी पी, रात के चावल का नाश्ता किया और अन्ना से जल्दी आने की कह कर निकल गया. जब वह कालेज के गेट पर गया, सुबह के 9 बज रहे थे. कुछ देर इंतजार के बाद उस ने मेज और नारियल निकाले और अपनी दुकान खोल ली. 1-2 ग्राहकों को नारियल दिया कि तभी उस की नजर कल वाले लड़के पर पड़ी जो कालेज

के गेट की दूसरी ओर जगह तलाश रहा था. गुस्सा तो उसे बहुत आया लेकिन चुपचाप मेज के पास खड़ा रहा.

थोड़ी देर बाद ही वह चमचमाती कार आ कर सड़क के किनारे खड़ी हो गई. थोड़ा सा कांच खिड़की का खुला और थोड़ा सा हाथ बाहर निकला और पास आने का उस ने इशारा किया. सुरेश का दिल जोरों से धड़क उठा. वह कार के पास गया.

मैडम ने कहा, ‘‘मैं ने मना किया था न कि आज तुम दुकान मत लगाना.’’

‘‘नारियल रात को घर नहीं ले गया था. बस, इसीलिए मेज पर रख लिए.’’

‘‘जल्दी जाओ और नारियल समेट कर कार में आओ,’’ मैडम ने कहा.

‘‘जी,’’ कह कर वह पलटा. आखिर क्यों बुलाया है उस ने? क्यों ले जाया

जा रहा है उसे? और कहां? लेकिन कभीकभी ऐसे सवाल बहुत पीछे छूट जाते हैं.

सुरेश ने गेट के उस ओर खड़े लड़के को आवाज दी. वह पास आया तो सुरेश ने उसे बताया, ‘‘35 नारियल हैं. छोटे वाला नारियल 15 का एक और बड़ा

20 रुपए का एक बेचना. ये स्ट्रा हैं. मैं शाम को आता हूं. संभाल लेगा न?’’

‘‘हां भाई, आप भरोसा करो.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुरेश तेजी से कार की ओर बढ़ गया. मैडम ने कार का दरवाजा खोला और वह डरते हुए उस में बैठ गया.

कार आगे बढ़ गई. एक कपड़े की बड़ी सी दुकान के सामने रुकी. वे उसे ले कर अंदर गई. उसे आईने के सामने बैठा कर उस के बालों को काटा, फिर उसे नहलाया और रेडीमेड कपड़ों को पहनाया गया. 2-3 घंटे में ही वह निखर गया. जब आईने के सामने सुरेश खड़ा हुआ तो खुद को पहचान नहीं पाया. लेकिन आखिर मैडमजी क्यों इतनी मेहरबानी कर रही हैं?

फिर दोनों एक अच्छे से होटल में खाने के लिए गए. सुरेश तो चावल और रसम खाने की उम्मीद कर रहा था लेकिन मैडम ने न जाने क्याक्या खाने को मंगवा लिया जो बहुत लजीज था.

सुरेश ने भरपेट खाना खाया. वह सबकुछ ऐसा ही कर रहा था जैसा मैडम कह रही थीं. हालांकि उस का नालायकपन उभरउभर कर सामने आ रहा था. किस फूहड़ता से वह खापी रहा था. जब वहां से निकले तो एक छोटे से लेकिन महंगे सिनेमाघर में जा कर बैठ गए. कोई हिंदी फिल्म थी. प्रेमकथा थी. वह बरसों बाद फिल्म देख रहा था. थोड़े से पैर लंबे किए तो सीट फैल कर आरामदायक हो गई.

फिल्म में सुरेश कई बार ‘होहो’ कर के हंसा तो मैडमजी ने उस की जांघ पर हाथ रख कर चुप रहने का संकेत किया. हंसने में किस तरह की रोक? जब फिल्म देख कर बाहर निकले तो रात

हो चुकी थी. आसमान में काले बादलों ने अपना डेरा जमा लिया था. ठंडीठंडी हवा चल रही थी.

जिंदगी इतनी खूबसूरत भी हो सकती है, सुरेश ने आज जाना था. दोनों कार से शहर का चक्कर लगा कर एक बंगले के सामने ठहरे. दोनों उतर कर अंदर गए. सुरेश का दिल जोरों से धड़क रहा था. ऐसे घर उस ने सपने में भी नहीं देखे थे.

मैडम उसे अपने साथ बैडरूम में ले गईं. सुरेश को रात के पहने जाने वाले कपड़े दिए जो वे अपने साथ लाई थीं. उसे बहुत हैरानी हुई कि सोने के कपड़े अलग क्यों. जबकि वह तो सुबह से रात तक एक ही कपड़े पहने रहता था.

नहाने के बाद रात में एक बड़े बिस्तर पर उसे सोने को कह दिया. ऐसे बिस्तर पर तो उसे नींद नहीं आएगी.

बाहर हवा तेज चल रही थी. काले बादलों से रिमझिम पानी गिरना शुरू हो गया था. मैडम सुरेश के बगल में आ कर लेट गईं. सुरेश हड़बड़ा कर उठ बैठा. लेकिन मैडमजी ने हाथ पकड़ कर लेटे रहने को मजबूर कर दिया. वह बुरी तरह से घबरा गया. ऐसी घटना की तो उस ने कभी कल्पना नहीं की थी. इतनी अमीर और पढ़ीलिखी मैडम जिंदगी में आएंगी.

मैडमजी ने नारियल का तेल लिया, उस के बालों में लगाना शुरू किया. उस के काले बालों में धीमेधीमे उंगलियां चला रही थीं, सुरेश किसी बेहोशी का शिकार हो रहा था. बाहर बिजली चमकी और काले घने बादलों ने बरसना शुरू किया और फिर बरसते गए. सुबह जब सुरेश की नींद खुली तो उसे अपने झोंपड़े की याद आई. पूरा बदन दर्द से टूट रहा था.

एक नौकरानी नाश्ते में इडली, चटनी, सांबर और थर्मस में कौफी रख गई. उस ने मुंह धोड्डया और चुपचाप नाश्ता कर लिया जो बहुत ही स्वाद वाला था. वह इस महल से बाहर निकलना चाह रहा था, लेकिन डर भी रहा था.

तकरीबन 2 रातों तक सुरेश वहीं ठहरा. न जाने कितने सपने उस के टूट गए थे. टूट जाने के बाद भी उसे सबकुछ अच्छा लग रहा था.

अगली सुबह अन्ना के झोंपड़े पर जाने की बात तय हो गई थी. रात बहुत ही उदासी, बेचैनी से कटी.

अगले दिन मैडम ने अन्ना के झोंपड़े के पास उतार दिया. शाम को या अगले दिन मिलने के वादे के साथ. सुरेश की जेब में हजार रुपए जबरदस्ती रख दिए गए थे, इसलिए नहीं कि उस की कीमत चुकाई गई हो. यह दुकान के नुकसान की भरपाई थी. अन्ना से जब वह मिला तो अन्ना उसे ले कर बहुत परेशान थे.

सुरेश को झोंपड़ा ऐसा लग रहा था मानो कहां की जेल में आ गया हो. यह झोंपड़पट्टी की चाल उसे किसी गटर जैसी लग रही थी. उसे लगा कि यहां कितनी बदबू है और यहां लोग कैसे रहते हैं? यहां तो एक पल भी नहीं रहा जा सकता. उस के कपडे़, कटिंग देख कर अन्ना को बहुत हैरानी हुई. हजार सवाल होने पर भी उन्होंने कहा कुछ नहीं.

दोपहर होतेहोते सुरेश कालेज के गेट पर जा पहुंचा. ऐसे शानदार कपड़े पहन कर वह कैसे नारियल काट कर बेचेगा? न तो यह बेइज्जती होगी कपड़ों की. वह मैडम की मदद से कुछ नया काम खोज लेगा. उस ने मन ही मन विचार किया. कालेज के गेट पर गांव का काला लड़का ग्राहकों को नारियल काटकाट कर बेच रहा था. सुरेश को देख कर वह पहचाना नहीं लेकिन फिर बहुत हैरानी के साथ उस ने कहा, ‘‘भाई, आप तो बिलकुल हीरो लग रहे हो.’’

सुरेश झोंप गया.

मौसम खुल गया था, तपिश थी, उमस थी. हवा बिलकुल नहीं चल रही थी. सुरेश मैडमजी का इंतजार कर रहा था. दूर से वह काली कार आती दिखाई दी. कार आ कर सड़क के उस ओर ठहरी व खिड़की का कांच नीचे उतरा, हाथ बाहर निकला और पास आने का इशारा किया.

सुरेश आगे बढ़ा. अचानक हाथ ने इशारे से आने को मना किया और सुरेश को इशारा किया मानो कह रही हो, ‘तुम नहीं, वह नया काला लड़का जो खड़ा है, उसे भेजो.’

सुरेश ठिठक गया. वह लौट गया और उस गांव वाले लड़के को कहा, ‘‘मैडमजी तुझे बुला रही हैं.’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘तू जा तो सही, मालूम पड़ जाएगा,’’ सुरेश ने कहा.

वह काला लड़का कार में बैठ गया. मैडम ने सुरेश पर एक नजर डाली जिस में कोई भी भाव नहीं था. लड़के को ले कर वह कार आगे बढ़ गई.

सुरेश अपमानित सा अपनी दुकान के सामने खड़ा था. वह सड़क पर इतने जोर से चीखा कि सड़क पर चलते सभी लोग एक पल को सहम गए. उस ने छुरा निकाला और हरे नारियल को हाथ में ले कर एक झटके में ऐसा काटा मानो किसी का सिर काट रहा हो. वह चीखते हुए रो पड़ा. यह शहर अजीब है. यहां के रिश्ते, परंपराएं अजीब हैं. न प्यार, न कोई अपनापन. वह ऐसी जगह नहीं रह सकता. वह रोते हुए उठा, थैले में नारियल लिए, अन्ना के झोंपड़े में आया और सूचना दी, ‘‘मैं गांव जा रहा हूं.’’

अगले 2 दिनों बाद कार आई, रुकी, पर वहां कोई नहीं था. सुरेश वाली जगह खाली पड़ी थी. नया काला गांव का लड़का भी अपने गांव को रवाना हो गया था. जगह खाली थी, कोई नहीं था. मैडम की आंखों में अजीब सी खोज थी, लेकिन वहां कोई नहीं था. कुछ देर ठहर कर वे अगले किसी चौराहे पर कार को ले कर बढ़ गईं.

आसमान में बादल थे लेकिन वे बरस नहीं रहे थे. चारों तरफ अजीब सा सूखापन और गरमी थी.

अपराधबोध: अंजू ने क्यों तुड़वाई शादी

अपने मकान के दूसरे हिस्से में भारी हलचल देख कर अंजु हैरानी में पड़ गई थी कि इतने लोगों का आनाजाना क्यों हो रहा है. जेठजी कहीं बीमार तो नहीं पड़ गए या फिर जेठानी गुसलखाने में फिसल कर गिर तो नहीं गईं.

जेठानी की नौकरानी जैसे ही दरवाजे से बाहर निकली, अंजु ने इशारे से उसे अपनी तरफ बुला लिया.

चूंकि देवरानी और जेठानी में मनमुटाव चल रहा था इसलिए जेठानी के नौकर इस ओर आते हुए डरते थे.

अंजु ने चाय का गिलास नौकरानी को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘थोड़ी देर बैठ कर कमर सीधी कर ले.’’

चाय से भरा गिलास देख कर नौकरानी खुश हो उठी, फिर उस ने अंजु को बहुत कुछ जानकारी दे दी और यह कह कर उठ गई कि मिठाई लाने में देरी हुई तो घर में डांट पड़ जाएगी.

यह जान कर अंजु के दिल पर सांप लोटने लगा कि जेठानी की बेटी निन्नी का रिश्ता अमेरिका प्रवासी इंजीनियर लड़के से पक्का होने जा रहा है.

जेठानी का बेटा डाक्टर बन गया. डाक्टर बहू घर में आ गई.

अब तो निन्नी को भी अमेरिका में नौकरी करने वाला इंजीनियर पति मिलगया.

ईर्ष्या से जलीभुनी अंजु पति और पुत्र दोनों को भड़काने लगी, ‘‘जेठजेठानी तो शुरू से ही हमारे दुश्मन रहे हैं. इन लोगों ने हमें दिया ही क्या है. ससुरजी की छोड़ी हुई 600 गज की कोठी में से यह 100 गज में बना टूटाफूटा नौकर के रहने लायक मकान हमें दे दिया.’’

हरीश भी भाई से चिढ़ा हुआ था. वह भी मन की भड़ास निकालने लगा, ‘‘भाभी यह भी तो ताने देती कहती हैं कि भैया ने अपनी कमाई से हमें दुकान खुलवाई, मेरी बीमारी पर भी खर्चा किया.’’

‘‘दुकान में कुछ माल होता तब तो दुकान चलती, खाली बैठे मक्खी तो नहीं मारते,’’ बेटे ने भी आक्रोश उगला.

अंजु के दिल में यह बात नश्तर बन कर चुभती रहती कि रहन- सहन के मामले में हम लोग तो जेठानी के नौकरों के बराबर भी नहीं हैं.

जेठजेठानी से जलन की भावना रखने वाली अंजु कभी यह नहीं सोचती थी कि उस का पति व्यापार करने के तौरतरीके नहीं जानता. मामूली बीमारी में भी दुकान छोड़ कर घर में पड़ा रहता है.

बच्चे इंटर से आगे नहीं बढ़ पाए. दोनों बेटियों का रंग काला और शक्लसूरत भी साधारण थी. न शक्ल न अक्ल और न दहेज की चाशनी में पगी सुघड़ता, संपन्नता तो अच्छे रिश्ते कहां से मिलें.

अंजु को सारा दोष जेठजेठानी का ही नजर आता, अपना नहीं.

थोड़ी देर में जेठानी की नौकरानी बुलाने आ गई. अंजु को बुरा लगा कि जेठानी खुद क्यों नहीं आईं. नौकरानी को भेज कर बुलाने की बला टाल दी. इसीलिए दोटूक शब्दों में कह दिया कि यहां से कोई नहीं जाएगा.

कुछ देर बाद जेठ ने खुद उन के घर आ कर आने का निमंत्रण दिया तो अंजु को मन मार कर हां कहनी पड़ी.

जेठानी के शानदार ड्राइंगरूम में मखमली सोफों पर बैठे लड़के वालों को देख कर अंजु के दिल पर फिर से सांप लोट गया.

लड़का तो पूरा अंगरेज लग रहा है, विदेशी खानपान और रहनसहन अपना-कर खुद भी विदेशी जैसा बन गया है.

लड़के के पिता की उंगलियों में चमकती हीरे की अंगूठियां व मां के गले में पड़ी मोटी सोने की जंजीर अंजु के दिल पर छुरियां चलाए जा रही थी.

एकाएक जेठानी के स्वर ने अंजु को यथार्थ में ला पटका. वह लड़के वालों से उन लोगों का परिचय करा रहे थे.

लड़के वालों ने उन की तरफ हाथ जोड़ दिए तो अंजु के परिवार को भी उन का अभिवादन करना पड़ा.

जेठजी कितने चतुर हैं. लड़के वालों से अपनी असलियत छिपा ली, यह जाहिर नहीं होने दिया कि दोनों परिवारों के बीच में बोलचाल भी बंद है. माना कि जेठजी के मन में अब भी अपने छोटे भाई के प्रति स्नेह का भाव छिपा हुआ है पर उन की पत्नी, बेटा और बेटी तो दुश्मनी निभाते हैं.

भोजन के बाद लड़के वालों ने निन्नी की गोद भराई कर के विवाह की पहली रस्म संपन्न कर दी.

लड़के की मां ने कहा कि मेरा बेटा विशुद्ध भारतीय है. वर्षों विदेश में रह कर भी इस के विचार नहीं बदले. यह पूरी तरह भारतीय पत्नी चाहता था. इसे लंबी चोटी वाली व सीधे पल्लू वाली निन्नी बहुत पसंद आई है और अब हम लोग शीघ्र शादी करना चाहते हैं.

अंजु को अपने घर लौट कर भी शांति नहीं मिली.

निन्नी ने छलकपट कर के इतना अच्छा लड़का साधारण विवाह के रूप में हथिया लिया. इस चालबाजी में जेठानी की भूमिका भी रही होगी. उसी ने निन्नी को सिखापढ़ा कर लंबी चोटी व सीधा पल्लू कराया होगा.

अंजु के घर में कई दिन तक यही चर्चा चलती रही कि जीन्सशर्ट पहन कर कंधों तक कटे बालों को झुलाती हुई डिस्को में कमर मटकाती निन्नी विशुद्ध भारतीय कहां से बन गई.

एक शाम अंजु अपनी बेटी के साथ बाजार में खरीदारी कर रही थी तभी किसी ने उस के बराबर से पुकारा, ‘‘आप निन्नी की चाची हैं न.’’

अंजु ने निन्नी की होने वाली सास को पहचान लिया और नमस्कार किया. लड़का भी साथ था. वह साडि़यों केडब्बों को कार की डिग्गी में रखवा रहा था.

‘‘आप हमारे घर चलिए न, पास मेंहै.’’

अंजु उन लोगों का आग्रह ठुकरा नहीं पाई. थोड़ी नानुकुर के बाद वह और उस की बेटी दोनों कार में बैठ गईं.

लड़के की मां बहुत खुश थी. उत्साह भरे स्वर में रास्ते भर अंजु को वह बतातीरहीं कि उन्होंने निन्नी के लिए किस प्रकारके आभूषण व साडि़यों की खरीदारी की है.

लड़के वालों की भव्य कोठी व कई नौकरों को देख अंजु फिर ईर्ष्या से जलने लगी. उस की बेटी के नसीब में तो कोई सर्वेंट क्वार्टर वाला लड़का ही लिखा होगा.

अंजु अपने मन के भाव को छिपा नहीं पाई. लड़के की मां से अपनापन दिखाती हुई बोली, ‘‘बहनजी, कभीकभी आंखों देखी बात भी झूठी पड़ जाती है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

अंजु ने जो जहर उगलना शुरू किया तो उगलती ही चली गई. कहतेकहते थक जाती तो उस की बेटी कहना शुरू कर देती.

लड़के की मां सन्न बैठी थी, ‘‘क्या कह रही हो बहन, निन्नी के कई लड़कों से चक्कर चल रहे हैं. वह लड़कों के साथ होटलों में जाती है, शराब पीती है, रात भर घर से बाहर रहती है.’’

‘‘अब क्या बताऊं बहनजी, आप ठहरीं सीधीसच्ची. आप से झूठ क्या बोलना. निन्नी के दुर्गुणों के कारण पहले भी उस का एक जगह से रिश्ता टूट चुका है.’’

अंजु की बातों को सुन कर लड़के की मां भड़क उठी, ‘‘ऐसी बिगड़ी हुई लड़की से हम अपने बेटे का विवाह नहीं करेंगे. हमारे लिए लड़कियों की कमी नहीं है. सैकड़ों रिश्ते तैयार रखे हैं.’’

अंजु का मन प्रसन्न हो उठा. वह यही तो चाहती थी कि निन्नी का रिश्ता टूट जाए.

लोहा गरम देख कर अंजु ने फिर से चोट की, ‘‘बहनजी, आप मेरी मानें तो मैं आप को एक अच्छे संस्कार वाली लड़की दिखाती हूं, लड़की इतनी सीधी कि बिलकुल गाय जैसी, जिधर कहोगे उधर चलेगी.’’

‘‘हमें तो बहन सिर्फ अच्छी लड़की चाहिए, पैसे की हमारे पास कमी नहीं है.’’

लड़के की मां अगले दिन लड़की देखने के लिए तैयार हो गईं.

एक तीर से दो निशाने लग रहे थे. निन्नी का रिश्ता भी टूट गया और अपनी गरीब बहन की बेटी के लिए अच्छा घरपरिवार भी मिल गया.

अंजु ने उसी समय अपनी बहन को फोन कर के उन लोगों को बेटी सहित अपने घर में बुला लिया.

फिर बहन की बेटी को ब्यूटीपार्लर में सजाधजा कर उस ने खुद लड़के वालों के घर ले जा कर उसे दिखाया पर लड़के को लड़की पसंद नहीं आई.

अंजु अपना सा मुंह ले कर वापस लौट आई.

फिर भी अंजु का मन संतुष्ट था कि उस के घर शहनाई न बजी तो जेठानी के घर ही कौन सी बज गई.

निन्नी का रिश्ता टूटने की खुशी भी तो कम नहीं थी.

एक दिन निन्नी रोती हुई उस के घर आई, ‘‘चाची, तुम ने उन लोगों से ऐसा क्या कह दिया कि उन्होंने रिश्ता तोड़ दिया.’’

अंजु पहले तो सुन्न जैसी खड़ी रही, फिर आंखें तरेर कर निन्नी की बात को नकारती हुई बोली, ‘‘तुम्हारा रिश्ता टूट गया, इस का आरोप तुम मेरे ऊपर क्यों लगा रही हो. तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि मैं ने उन लोगों से तुम्हारी बातें लगाई हैं.’’

‘‘लेकिन वे लोग तो तुम्हारा ही नाम ले रहे हैं.’’

‘‘मैं भला उन लोगों को क्या जानूं,’’ अंजु निन्नी को लताड़ती हुई बोली, ‘‘तुम दोनों मांबेटी हमेशा मेरे पीछे पड़ी रहती हो, रिश्ता टूटने का आरोप मेरे सिर पर मढ़ कर मुझे बदनाम कर रही हो. यह भी तो हो सकता है कि तुम्हारी किसी गलती के कारण ही रिश्ता टूटा हो.’’

‘‘गलती… कैसी गलती? मेरी बेटी ने आज तक निगाहें उठा कर किसी की तरफ नहीं देखा तो कोई हरकत या गलती भला क्यों करेगी?’’ दीवार की आड़ में खड़ी जेठानी भी बाहर निकल आई थीं.

जेठानी की खूंखार नजरों से घबरा कर अंजु ने अपना दरवाजा बंद कर लिया.

इस घटना को ले कर दोनों घरों में तनाव की अधिकता बढ़ गई थी. फिर जेठजी ने अपनी पत्नी को समझा कर मामला रफादफा कराया.

एक रात अंजु का बेटा दफ्तर से घर लौटा तो उस के पास 500 और 1 हजार रुपए के नएनए नोट देख कर पूरा परिवार हैरान रह गया.

अंजु ने जल्दी से घर का दरवाजा बंद कर लिया और धीमी आवाज में रुपयों के बारे में पूछने लगी.

बेटे ने भी धीमी आवाज में बताया कि आज सेठजी अपना पर्स दुकान में ही भूल गए थे.

हरीश को बेटे की करतूत नागवार लगी, ‘‘तू ने सेठजी का पर्स घर में ला कर अच्छा नहीं किया. उन्हें याद आएगा तो वे तेरे ही ऊपर शक करेंगे. तू इन रुपयों को अभी उन्हें वापस कर आ.’’

आंखें तरेर कर अंजु ने पति से कहा, ‘‘तुम सचमुच के राजा हरिश्चंद्र हो तो बने रहो. हमें सीख देने की जरूरत नहीं है.’’

मांबेटा दोनों देर रात तक रुपयों को देखदेख कर खुश होते रहे और रंगीन टेलीविजन खरीदने के मनसूबे बनाते रहे.

सुबह किसी ने घर का दरवाजा जोरों से खटखटाया.

अंजु ने दरवाजा खोलने से पहले खिड़की से बाहर देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. बेटे की दुकान का मालिक कई लोगों के साथ खड़ा था.

अंजु घबरा कर पति को जगाने लगी, ‘‘देखो तो, यह कौन लोग हैं?’’

बाहर खड़े लोग देरी होते देख कर चिल्लाने लगे थे, ‘‘दरवाजा खोलते क्यों नहीं? मुंह छिपा कर इस तरह कब तक बैठे रहोगे. हम दरवाजा तोड़ डालेंगे.’’

शोर सुन कर जेठजेठानी का पूरा परिवार बाहर निकल आया. उन को बाहर खड़ा देख कर अंजु का भी परिवार बाहर निकल आया.

‘‘आप लोग इस प्रकार से हंगामा क्यों मचा रहे हैं?’’ हरीश ने साहस कर के प्रश्न किया.

‘‘तुम्हारा लड़का दुकान से रुपए चुरा कर ले आया है,’’ मालिक क्रोध से आगबबूला हो कर बोला.

‘‘सेठजी, आप को कोई गलत- फहमी हुई है. मेरा बेटा ऐसा नहीं है. इस ने कोई रुपए नहीं चुराए हैं,’’ अंजु घबराहट से कांप रही थी.

‘‘हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा,’’ सारे लोग जबरदस्ती घर में घुसने लगे.

तभी जेठजी अंजु के घर के दरवाजे में अड़ कर खड़े हो गए, ‘‘तुम लोग अंदर नहीं जा सकते, हमारी इज्जत का सवालहै.’’

‘‘हमारे रुपए…’’

‘‘हम लोग चोर नहीं हैं, हमारे खानदान में किसी ने चोरी नहीं की.’’

‘‘यह लड़का चोर है.’’

‘‘आप लोगों के पास क्या सुबूत है कि इस ने चोरी की?’’ जेठजी की कड़क आवाज के सामने सभी निरुत्तर रह गए थे.

तभी जेठजी का डाक्टर बेटा सामने आ गया, उस के हाथों में नोटों की गड्डियां थीं. आक्रोश से बोला, ‘‘बोलो, कितने रुपए थे आप के. जितने थे इस में से ले जाओ.’’

वे लोग चुपचाप वापस लौट गए.

जेठजी व उन के बेटे के प्रति अंजु कृतज्ञता के भार से दब गई थी. अगर जेठजी साहस नहीं दिखाते तो आज उन सब की इज्जत सरे बाजार नीलाम हो जाती.

अंजु रोने लगी. लालच में अंधी हो कर वह कितनी बड़ी गलती कर बैठी थी. उस ने वे सारे रुपए निकाल कर बेटे के मुंह पर दे मारे, ‘‘ले, दफा हो यहां से, चोरी करेगा तो इस घर में नहीं रह पाएगा. मालिक को रुपए लौटा कर माफी मांग कर आ नहीं तो मैं तुझे घर में नहीं घुसने दूंगी,’’ फिर वह जेठजेठानी के पैरों पर गिर कर बोली, ‘‘आप लोगों ने आज हमारी इज्जत बचा ली.’’

‘‘तुम लोगों की इज्जत हमारी इज्जत है. खून तो एक ही है, आपस में मनमुटाव होना अलग बात है पर बाहर वाले आ कर तुम्हें नीचा दिखाएं तो हम कैसे देख सकते हैं,’’ जेठजी ने कहा.

अंजु शरम से पानीपानी हो रही थी. जेठजी के मन में अब भी उन लोगों के प्रति अपनापन है और एक वह है कि…उस ने जेठजी के प्रति कितना बड़ा अपराध कर डाला. उफ, क्या वह अपनेआप को कभी माफ कर सकेगी.

अंजु मन ही मन घुलती रहती. निन्नी का कुम्हलाया हुआ चेहरा उसे अंदर तक कचोटता रहता.

निन्नी छोटी थी तो उस का आंचल थामे पूरे घर में घूमती फिरती. मां से अधिक वह चाची से हिलीमिली रहती.

अपने बच्चे हो गए तब भी अंजु निन्नी को अपनी गोद में बैठा कर खिलातीपिलाती रहती. और अब ईर्ष्या की आग में जल कर उस ने अपनी उसी प्यारी सी निन्नी की भावनाओं का गला घोंट दिया था.

एक दिन अंजु के मन में छिपा अपराधबोध, सहनशक्ति से बाहर हो गया तो वह निन्नी को पकड़ कर अपने घर में ले आई, उस पर अपनापन जताती हुई बोली, ‘‘खानापीना क्यों बंद कर दिया पगली, क्या हालत बना डाली अपनी. लड़कों की कमी है क्या…’’

निन्नी उस की गोद में गिर कर बच्चों की भांति फूटफूट कर रो पड़ी, ‘‘चाची, मुझे माफ कर दो, मैं उस दिन आप से बहुत कुछ गलत बोल गई थी, उन लोगों की बातों पर विश्वास कर के मैं ने आप को गलत समझ लिया, मैं जानती हूं कि आप मुझे बहुत प्यार करती हैं.’’

‘‘हां, बेटी मैं तुझे बहुत प्यार करती हूं, पर मुझ से भी गलती हो सकती है. इनसान हूं न, फरिश्ता थोड़े ही हूं,’’ अंजु की आंखों से आंसू बहने लगे थे, ‘‘पता नहीं इनसानों को क्या हो जाता है जो कभी अपने होते हैं वे पराए लगने लगते हैं पर तू चिंता मत कर, मैं तेरे लिए उस विदेशी इंजीनियर से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ निकालूंगी. बस, तू खुश रहा कर, वैसे ही जैसे बचपन में रहती थी. मैं तुझे अपने हाथों से दुलहन बना कर तैयार करूंगी, ससुराल भेजूंगी, मेरी अच्छी निन्नी, तू अब भी वही बचपन वाली गुडि़या लगती है.’’

जेठानी छत पर खड़ी हो कर देवरानी की बातें सुन रही थी.

अंजु के शब्दों ने उस के अंदर जादू जैसा काम किया. नीचे उतर कर पति से बोली, ‘‘झगड़ा तो हम बड़ों के बीच चल रहा है, बच्चे क्यों पिसें. तुम अंजु के बेटे की कहीं अच्छी सी नौकरी लगवा दो न.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो.’’

‘‘अंजु की लड़कियां पूरे दिन घर में खाली बैठी रहती हैं. एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन ला कर उन्हें दे दो. मांबेटियां सिलाई कर के कुछ आर्थिक लाभ उठा लेंगी.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहती हो वैसा ही करेंगे. इन लोगों का और है ही कौन.’’

अंजु ने निन्नी पर प्यार जताया तो जेठानी के मन में भी उस के बच्चों के प्रति ममता का दरिया उमड़ पड़ा था.

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