पासा पलट गया : कैसाथा विक्रम

आभा गोरे रंग की एक खूबसूरत लड़की थी. उस का कद लंबा, बदन सुडौल और आंखें बड़ीबड़ी व कजरारी थीं.

उस की आंखों में कुछ ऐसा जादू था कि उसे जो देखता उस की ओर खिंचा चला जाता. विक्रम भी पहली ही नजर में उस की ओर खिंच गया था.

उन दिनों विक्रम अपने मामा के घर आया हुआ था. उस के मामा का घर पटना से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर एक गांव में था.

विक्रम तेजतर्रार लड़का था. वह बातें भी बहुत अच्छी करता था. खूबसूरत लड़कियों को पहले तो वह अपने प्रेमजाल में फंसाता था, फिर उन्हें नौकरी दिलाने का लालच दे कर हुस्न और जवानी के रसिया लोगों के सामने पेश कर पैसे कमाता था. इसी प्लान के तहत उस ने आभा से मेलजोल बढ़ाया था.

उस दिन जब आभा विक्रम से मिली तो बेहद उदास थी. विक्रम कई पलों तक उस के उदास चेहरे को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘क्या बात है आभा, आज बड़ी उदास लग रही हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘विक्रम, मैं अब आगे पढ़ नहीं पाऊंगी और अगर पढ़ नहीं पाई तो अपना सपना पूरा नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कैसा सपना?’’

‘‘पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होने का सपना ताकि अपने मांबाप को गरीबी से छुटकारा दिला सकूं.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘तुम बस इसे इतनी सी ही बात समझाते हो?’’

‘‘और नहीं तो क्या…’’ विक्रम बोला, ‘‘तुम पढ़लिख कर नौकरी ही तो करना चाहती हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘वह तो तुम अब भी कर सकती हो.’’

‘‘लेकिन, भला कम पढ़ीलिखी लड़की को नौकरी कौन देगा? मैं सिर्फ इंटर पास हूं,’’ आभा बोली.

‘‘मैं कई सालों से पटना की एक कंपनी में काम करता हूं, इस नाते मैनेजर से मेरी अच्छी जानपहचान है. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे बारे में उस से बात कर सकता हूं.’’

‘‘तो फिर करो न…?’’ आभा बोली, ‘‘अगर तुम्हारे चलते मुझे नौकरी मिल गई तो मैं हमेशा तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

आभा विक्रम के साथ पटना आ गई थी. एक होटल के कमरे में विक्रम ने एक आदमी से मिलवाया. वह तकरीबन 45 साल का था.

जब विक्रम ने उस से आभा का परिचय कराया तो वह कई पलों तक उसे घूरता रहा, फिर अपने पलंग के सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

आभा ने एक नजर कुरसी के पास खड़े विक्रम को देखा, फिर कुरसी पर बैठ गई.

उस के बैठते ही विक्रम उस आदमी से बोला, ‘‘सर, आप आभा से जो कुछ पूछना चाहते हैं, पूछिए. मैं थोड़ी देर में आता हूं,’’ कहने के बाद विक्रम आभा को बोलने का कोई मौका दिए बिना जल्दी से कमरे से निकल गया.

उसे इस तरह कमरे से जाते देख आभा पलभर को बौखलाई, फिर अपनेआप को संभालते हुए तथाकथित मैनेजर को देखा.

उसे अपनी ओर निहारता देख वह बोला, ‘‘तुम मुझे अपने सर्टिफिकेट दिखाओ.’’

आभा ने उसे अपने सर्टिफिकेट दिखाए. वह कुछ देर तक उन्हें देखने का दिखावा करता रहा, फिर बोला, ‘‘तुम्हारी पढ़ाईलिखाई तो बहुत कम है. इतनी कम क्वालिफिकेशन पर आजकल नौकरी मिलना मुश्किल है.’’

‘‘पर, विक्रम ने तो कहा था कि इस क्वालिफिकेशन पर मुझे यहां नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘ठीक है, मैं विक्रम के कहने पर तुम्हें अपनी फर्म में नौकरी दे तो दूंगा, पर बदले में तुम मुझे क्या दोगी?’’ कहते हुए उस ने अपनी नजरें आभा के खूबसूरत चेहरे पर टिका दीं.

‘‘मैं भला आप को क्या दे सकती हूं?’’ आभा उस की आंखों के भावों से घबराते हुए बोली.

‘‘दे सकती हो, अगर चाहो तो…’’

‘‘क्या…?’’

‘‘अपनी यह खूबसूरत जवानी.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप?’’ आभा झटके से अपनी कुरसी से उठते हुए बोली, ‘‘मैं यहां नौकरी करने आई हूं, अपनी जवानी का सौदा करने नहीं.’’

‘‘नौकरी तो तुम्हें मिलेगी, पर बदले में मुझे तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म चाहिए,’’ कहता हुआ वह आदमी पलंग से उतर कर आभा के करीब आ गया. वह पलभर तक भूखी नजरों से उसे घूरता रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

उस आदमी की इस हरकत से आभा पलभर को बौखलाई, फिर उस के जिस्म में गुस्से और बेइज्जती की लहर दौड़ गई. वह बोली, ‘‘मुझे नौकरी चाहिए, पर अपने जिस्म की कीमत पर नहीं,’’ कहते हुए आभा दरवाजे की ओर लपकी.

पर दरवाजे पर पहुंच कर उसे झटका लगा. दरवाजा बाहर से बंद था. आभा दरवाजा खोलने की कोशिश करती रही, फिर पलट कर देखा.

‘‘अब यह दरवाजा तभी खुलेगा जब मैं चाहूंगा,’’ वह आदमी अपने होंठों पर एक कुटिल मुसकान बिखेरता हुआ बोला, ‘‘और मैं तब तक ऐसा नहीं चाहूंगा जब तक तुम मुझे खुश नहीं कर दोगी.’’

उस आदमी का यह इरादा देख कर आभा मन ही मन कांप उठी. वह डरी हुई आवाज में बोली, ‘‘देखो, तुम जैसा समझाते हो, मैं वैसी लड़की नहीं हूं. मैं गरीब जरूर हूं, पर अपनी इज्जत का सौदा नहीं कर सकती. प्लीज, दरवाजा खोलो और मुझे जाने दो.’’

‘‘हाथ आए शिकार को मैं यों ही कैसे जाने दूं…’’ बुरी नजरों से आभा के उभारों को घूरता हुआ वह बोला, ‘‘तुम्हारी जवानी ने मेरे बदन में आग लगा दी है और मैं जब तक तुम्हारे तन से लिपट कर यह आग नहीं बुझा लेता, तुम्हें जाने नहीं दे सकता,’’ कहते हुए वह झपट कर आगे बढ़ा, फिर आभा को अपनी बांहों में दबोच लिया.

अगले ही पल वह आभा को बुरी तरह चूमसहला रहा था. साथ ही, वह उस के कपड़े भी नोच रहा था. ऐसे में जब आभा का अधनंगा बदन उस के सामने आया तो वह बावला हो उठा. उस ने आभा को गोद में उठा कर पलंग पर डाला, फिर उस पर सवार हो गया.

आभा रोतीछटपटाती रही, पर उस ने उसे तभी छोड़ा जब अपनी मनमानी कर ली. ऐसा होते ही वह हांफता हुआ आभा पर से उतर गया.

आभा कई पलों तक उसे नफरत से घूरती रही, ‘‘तू ने मुझे बरबाद कर डाला. पर याद रख, मैं इस की सजा दिला कर रहूंगी. तेरी काली करतूतों का भंडाफोड़ पुलिस के सामने करूंगी.’’

‘‘तू मुझे सजा दिलाएगी, पर मैं तुझे इस लायक छोड़ूंगा ही नहीं,’’ कहते हुए उस ने झपट कर आभा की गरदन पकड़ ली और उसे दबाने लगा.

आभा उस के चंगुल से छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी, पर थोड़ी ही देर में उसे यह अहसास हो गया कि वह उस से पार नहीं पा सकती और वह उसे गला घोंट कर मार डालेगा.

ऐसा अहसास करते ही उस ने अपने हाथपैर पटकने बंद कर दिए, अपनी सांसें रोक लीं और शरीर को शांत कर लिया.

जब तथाकथित मैनेजर को इस बात का अहसास हुआ तो उस ने आभा की गरदन छोड़ दी और फटीफटी आंखों से आभा के शरीर को देखने लगा. उसे लगा कि आभा मर चुकी है. ऐसा लगते ही उस के चेहरे से बदहवासी और खौफ टपकने लगा.

तभी दरवाजा खुला और विक्रम कमरे में आया. ऐसे में जैसे ही उस की नजर आभा पर पड़ी, उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई. वह कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘यह क्या किया आप ने? इसे तो जान से मार डाला आप ने?’’

‘‘नहीं,’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘मैं इसे मारना नहीं चाहता था, पर यह पुलिस में जाने की धमकी देने लगी तो मैं ने इस का गला दबा दिया.’’

‘‘और यह मर गई…’’ विक्रम उसे घूरता हुआ बोला.

‘‘जरा सोचिए, मगर इस बात का पता होटल वालों को लगा तो वह पुलिस बुला लेंगे. पुलिस आप को पकड़ कर ले जाएगी और आप को फांसी की सजा होगी.’’

‘‘नहीं…’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘ऐसा कभी नहीं होना चाहिए.’’

‘‘वह तो तभी होगा जब चुपचाप इस लाश को ठिकाने लगा दिया जाए.’’

‘‘तो लगाओ,’’ वह आदमी बोला.

‘‘यह इतना आसान नहीं है,’’ कहते हुए विक्रम की आंखों में लालच की चमक उभरी, ‘‘इस में पुलिस में फंसने का खतरा है और कोई यह खतरा यों ही नहीं लेता.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘कीमत लगेगी इस की.’’

‘‘कितनी?’’

‘‘5 लाख?’’

‘‘5 लाख…? यह तो बहुत ज्यादा रकम है.’’

‘‘आप की जान से ज्यादा तो नहीं,’’ विक्रम बोला, ‘‘और अगर आप को कीमत ज्यादा लग रही है तो आप खुद इसे ठिकाने लगा दीजिए, मैं तो चला,’’ कहते हुए विक्रम दरवाजे की ओर बढ़ा.

‘‘अरे नहीं…’’ वह हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दूंगा, पर इस मामले में तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा. तुम्हें सबकुछ अकेले ही करना होगा.’’

विक्रम ने पलभर सोचा, फिर हां में सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘कर लूंगा, पर पैसे…?’’

‘‘काम होते ही पैसे मिल जाएंगे.’’

‘‘पर याद रखिए, अगर धोखा देने की कोशिश की तो मैं सीधे पुलिस के पास चला जाऊंगा.’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा,’’ कहते हुए वह कमरे से निकल गया.

इधर वह कमरे से निकला और उधर उस ने बेसुध पड़ी आभा को देखा. वह उसे ठिकाने लगाने के बारे में सोच ही रहा था कि आभा उठ बैठी.

अपने सामने आभा को खड़ी देख विक्रम की आंखें हैरानी से फटती चली गईं. उस के मुंह से हैरत भरी आवाज फूटी, ‘‘आभा, तुम जिंदा हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘पर, अब तुम जिंदा नहीं रहोगे. तुम भोलीभाली लड़कियों को नौकरी का झांसा दे कर जिस्म के सौदागरों को सौंपते हो. मैं तुम्हारी यह करतूत लोगों को बतलाऊंगी, तुम्हारी शिकायत पुलिस में करूंगी.’’

आभा का यह रूप देख कर पहले तो विक्रम बौखलाया, फिर उस के सामने गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘‘ऐसा मत करना.’’

‘‘क्यों न करूं मैं ऐसा, तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और कहते हो कि मैं ऐसा न करूं.’’

‘‘क्योंकि, तुम्हारे ऐसा न करने से मेरे हाथ एक मोटी रकम लगेगी जिस में से आधी रकम मैं तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘मतलब…?’’

विक्रम ने उसे पूरी बात बताई.

‘‘सच कह रहे हो तुम?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘अपनी बात से तुम पलट तो नहीं जाओगे?’’

‘‘ऐसे में तुम बेशक पुलिस में मेरी शिकायत कर देना.’’

‘‘अगर तुम ने मुझे धोखा नहीं दिया तो मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूंगी.’’

तीसरे दिन आभा के हाथ में ढाई लाख की मोटी रकम विक्रम ने ला कर रख दी. उस ने एक चमकती नजर इन नोटों पर डाली, फिर विक्रम की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘अगर दोबारा कोई ऐसा ही मोटा मुरगा फंसे तो मुझ से कहना. मैं फिर से यह सब करने को तैयार हो जाऊंगी,’’ कहते हुए आभा मुसकराई.

‘‘जरूर,’’ कहते हुए विक्रम के होंठों पर भी एक दिलफरेब मुसकान खिल उठी.

नसीब : वैदेही की दर्द भरी कहानी

वैदेही फार्मेसी के आखिरी साल में थी. वह मोहिते परिवार की सबसे शांत और सुशील बेटी थी. घर में कोई मेहमान भी आ जाए तो गिलास का पानी ले कर बाहर नहीं आती थी. कुछ सवालों के जवाब देने के अलावा वह कभी किसी से बात नहीं करती थी.

वैदेही पढ़ाईलिखाई में होशियार थी. देखने में भी वह खूबसूरत थी इसलिए हर कोई उस के लिए एक अच्छा रिश्ता चाहता था. घर में दादादादी थे. छोटी बहन अक्षरा 8वीं जमात में पढ़ती थी. पिता की किराना की दुकान थी और मां मालिनी खुशमिजाज. इस तरह से वैदेही का एक सुंदर परिवार था.

‘‘अरे ओ मालिनी, 8 बज गए, नाश्तापानी दोगी कि ऐसे ही भूखा मारोगी?’’

‘‘हांहां लाती हूं. हम लोग मरमर के काम करते हैं, फिर भी भूख नहीं लगती है और इन्हें चारपाई पर बैठेबैठे ही भूख लग जाती है. 2 बेटों को जन्म दिया है तो दोनों के घर जा कर रहना चाहिए न. मैं ने अकेले ठेका ले रखा है क्या इन बूढ़ेबुजुर्गों का?’’

‘‘अब चुप हो जा मां, क्या सवेरेसवेरे तुम दोनों का बड़बड़ाना शुरू हो जाता है.’’

‘‘बहू, चाय रख दे. वामन काका आए हैं.’’

‘‘12 बजे तक 4 कप चाय पी कर जाएगा यह बुड्ढा. पूरी जिंदगी बीत गई यही सब करने में.’’

‘‘बहू, चाय ला रही हो न?’’

‘‘हां, ला रही हूं बाबा.’’

दादादादी के साथ मां की होने वाली किचकिच देख कर वैदेही का शादी से मन ही उठ गया था. हम पढ़ेलिखे हैं, खुद कमाखा सकते हैं, शादी कर के दूसरे के परिवार में नौकर की तरह क्यों रहना? वैदेही शाम को कालेज से आई. मातापिता कमरे में ही बैठे थे.

‘‘क्यों न हम 4-5 दिन के लिए कहीं घूम आएं? अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं.’’

‘‘मालिनी, मैं ने कितनी बार कहा है कि पैसे ले लो और बच्चों को ले कर कहीं घूमने चली जाओ. मांपिताजी को छोड़ कर मैं कहीं बाहर नहीं जा सकता हूं.’’

‘‘हां, हमेशा की तरह बहाना बनाओ. उन्हें 4-5 दिन के लिए अपने छोटे भाई के पास क्यों नहीं भेज देते?’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा और आगे से इस मुद्दे पर किसी तरह की कोई बात नहीं होगी,’’ ऐसा बोलते हुए नितिन हाथ में पकड़ा अखबार फेंकते हुए घर से बाहर निकल गया. मालिनी हमेशा की तरह रसोई में जा कर रोने लगी.

‘‘मेरा नसीब ही फूटा है. यह बंगला, गाड़ी और पैसा होने के बावजूद कोई फायदा नहीं है. कभी थिएटर में फिल्म देखने तक नहीं गई. होटल में खाना, सैरसपाटा करना किसी तरह का कोई मजा नहीं है जिंदगी में.’’

‘‘मां, मेरी शादी होने के बाद मेरे साथ भी तो ऐसा ही होगा?’’

‘‘ऐसा नहीं है बेटी. औरत का जन्म ही दूसरों के लिए हुआ है. तुम दोनों

मेरी प्यारी बेटियां हो, यही मेरा असली सुख है.’’

मेहमानों का देखने आना, सिर पर पल्लू रख कर चलना, दहेज की मांग करना, शादी के बाद सासननद के ताने सुनना और उन के छोटेछोटे बच्चों की सेवा करना, बड़ों के पैर छूना वगैरह कितनी बकवास परंपराएं हैं.

इस के अलावा किसी की मौत हो जाने के बाद 10-10 दिन तक नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा लगने पर सभी को खाना बना कर खिलाना वगैरह.

एक बहू को लगातार घर का काम करते हुए वैदेही ने करीब से देखा. एक बार शादी हो गई तो हम इस परंपराओं में पूरी तरह से फंस जाएंगे, जिस से छुटकारा मिलना मुश्किल है. इस से बेहतर है कि मैं शादी ही न करूं.

एक दिन दूध लेने वैदेही बाहर गई. पड़ोस के ही सार्थक से उस की टक्कर हो गई. सार्थक हैंडसम था. 10वीं के बाद डिप्लोमा कर के 2 साल से वह पुणे की एक कंपनी में नौकरी करता था. इस समय वह 2 महीने की छुट्टी ले कर गांव आया था. वैदेही उसे अच्छी लगती थी, इसलिए वह अलगअलग तरीके से उस का ध्यान खींचने की कोशिश करता था.

दूसरे दिन वैदेही कालेज जाने के लिए निकली. सार्थक भी उस के पीछेपीछे मोटरसाइकिल से गया. वैदेही ने अपनी गाड़ी के शीशे में से सार्थक को आते हुए देखा और नजरअंदाज कर के चली गई.

सार्थक पूरा दिन उस के फार्मेसी कालेज में बैठा रहा. शाम को कालेज से निकलते ही उस ने वैदेही को रोक लिया, ‘‘वैदेही, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘पागल हो क्या तुम? काम क्या करते हो?’’

‘‘पुणे की एक कंपनी में नौकरी करता हूं. 15,000 रुपए तनख्वाह है मेरी. तुम भी वहां 12,000 से 13,000 रुपए कमा सकती हो. सुखी संसार होगा हमारा.’’

‘‘चुप… घर वाले सुनेंगे तो मुझे ही मार डालेंगे.’’

‘‘क्यों मारेंगे? अभीअभी मेरे फ्रैंड की लव मैरिज हुई है. पहले रजिस्टर मैरिज करेंगे, फिर जान को खतरा है बता कर पुलिस स्टेशन में एफआईआर कर देंगे. कुछ नहीं होता है.’’

‘‘बहुत प्रैक्टिस किए लगते हो. चलो हटो रास्ते से.’’

‘‘तो क्या मैं हां समझ?’’

‘‘मैं ने हां बोला क्या?’’

‘‘लेकिन, न भी तो नहीं कहा अभी तुम ने.’’

वैदेही मन ही मन हंसते हुए अपनी गाड़ी पर बैठ के निकल गई. सार्थक अकसर अपनी खिड़की से उस के घर की तरफ देखता रहता था.

वैदेही के बाहर निकलने पर हाथ हिला कर इशारा करता था. मोबाइल फोन पर गाने बजाता था. उसे कालेज में जा कर गिफ्ट देता था. उस के बाहर जाते ही वह भी मोटरसाइकिल ले कर उस के पीछे लग जाता था.

‘‘तुम बस हां कह दो वैदेही. कुछ दिक्कत नहीं होगी. मेरा एक दोस्त पुणे में पुलिस विभाग में है. वह हमारी मदद करेगा. मैं तुम्हें जिंदगीभर खुश रखूंगा. तुम जैसा कहोगी वैसे ही होगा. तुम्हें कभी बिना खाए सोना नहीं पड़ेगा.

‘‘मुझ से ज्यादा तुम्हें कोई प्यार नहीं करेगा. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं. सिर्फ तुम हां कह दो.’’

सार्थक की रोमांटिक कविताएं, मैसेज सबकुछ वैदेही को अच्छे लगते थे. दादादादी की रोजरोज की किचकिच, मांपिता के बीच आपसी मनमुटाव देख कर वह सोचने लगी, अरैंज मैरिज करने के बाद मेरे साथ भी यही होगा. ऐसे में भाग कर सार्थक से शादी कर लेने में क्या बुराई है.

इसी विचार के साथ एक दिन वैदेही सार्थक के साथ भाग कर पुणे आ गई. इस के बाद दोनों परिवारों की खूब बदनामी हुई.

सार्थक वैदेही के साथ अपने एक दोस्त के फ्लैट में रहने लगा. 10-15 दिन अच्छे से बीते. इस के बाद वैदेही नौकरी करने की जिद करने लगी.

‘‘अभी इस की जरूरत नहीं है. पैसे की कमी होगी तो मैं खुद तुम्हारे लिए नौकरी देखूंगा स्वीट हार्ट.’’

एक दिन सार्थक कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर आया, जिसे देखते ही वैदेही ने मुंह लगाया और आधी बोतल खाली कर दी. 5-10 मिनट बाद उसे नींद आने लगी.

‘‘सार्थक, मुझे कुछ हो रहा है यार.’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम बैड पर चुपचाप सो जाओ. मैं यहीं हूं.’’

दूसरे दिन जब वैदेही उठी तो देखा कि उस की बगल में कोई दूसरा लड़का सोया हुआ है. वैदेही के साथ जो हुआ, उसे वह समझ गई. वह जल्दी से कमरे से बाहर आई.

‘‘धोखेबाज, तुम ने मुझे फंसाया है. मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी,’’ वैदेही ने सार्थक से कहा.

‘‘जा, पुलिस के पास जा. वे लोग तुम्हें खड़ा भी करेंगे क्या. 10 दिन पहले वही पुलिस तुम्हें अपने मांपिता के पास जाने की कह रही थी तो तुम ने नहीं सुना.’’

‘‘कितने गिरे हुए इनसान हो तुम. एक लड़की की जिंदगी से खेलते हुए तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आई?’’

‘‘अरे ओ लड़की, जो अपने जन्म देने वाले मांपिता की नहीं हुई तो वह भविष्य में मेरा क्या होगी? मांपिता के चेहरे पर कालिख लगाते हुए तुम्हें जरा भी लाजशर्म नहीं आई. और अब तुम मुझ से लाजशर्म की बात करती हो?’’

वैदेही फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस के पास जाने में उसे शर्म आ रही थी. सार्थक के अलावा जिंदगी में कभी किसी पर यकीन नहीं किया था. अब मैं यहां से कहां जाऊंगी. लेकिन यहां रहूंगी तो धंधा करना पड़ेगा.

‘‘मांपिता को दुख दे कर दुनिया में कोई खुश नहीं रह सकता, यह सच है. मुझे माफ कर दो, लेकिन किसी तरह सार्थक के चंगुल से बाहर निकालो,’’ वैदेही मन ही मन खुद को कोस रही थी.

सार्थक बाहर चला गया था. थोड़ी देर बाद ही उन्मेष बैडरूम से बाहर आया.

‘‘मैं ने सब सुन लिया है. इस लफंगे के साथ घर छोड़ कर तुम आई थी. तुम ने कभी सोचा कि तुम्हारे इस बरताव से मांपिता की समाज में कितनी बदनामी होगी. जिंदगी के 20 साल साथ रहने वाले मांपिता को छोड़ कर 2 महीने की पहचान के इस गुंडेमवाली के जाल में कैसे फंस गई तुम? ऐसे में तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या फायदा है?’’

‘‘मैं सब समझ रही हूं, लेकिन अब क्या करूं?’’

‘‘तुम्हारे लिए एक प्रस्ताव है मेरे पास. मेरी बीवी के बच्चा नहीं हो सकता है. क्या तुम मुझे बच्चा दोगी? मैं जिंदगीभर तुम्हें प्यार और इज्जत दूंगा.’’

‘‘सार्थक के साथ रहने के बजाय अगर मेरी जिंदगी किसी के काम आ जाए तो इस में क्या गलत है. मैं तैयार हूं तुम्हारे साथ रहने के लिए. लेकिन, सार्थक…?’’

‘‘उसे मैं देख लूंगा. उस के मुंह पर पैसे फेंक कर मैं तुम्हें उस से आजाद करा लूंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे साथ आने के लिए तैयार हूं.’’

वैदेही बैग ले कर उन्मेष के साथ एक नए सफर पर निकल गई.

नहीं हुई मुन्नी बदनाम : रमेश और चंदू की अनबन

चंदू पहली बार रमेश से मवेशियों के हाट में मिला था. दोनों भैंस खरीदने आए थे. अब चंदू के पास कुल 2 भैंसें हो गई थीं. दोनों भैंसों से सुबहशाम मिला कर 30 लिटर दूध हो जाता था, जिसे बेच कर घर का गुजारा चलता था. इस के अलावा कुछ खेतीबारी भी थी.

चंदू अपनी बीवी और बेटी के साथ खुश था. तीनों मिल कर खेतीबारी से लेकर भैंसों की देखभाल और दूध बेचने का काम अच्छी तरह संभाले हुए थे.

एक दिन चंदू अपनी भैंसों को चराने कोसी नदी के तट पर ले गया. वहां एक खास किस्म की घास होती थी जिसे भैंसें बड़े चाव से चरती थीं और दूध भी ज्यादा देती थीं.

रमेश भी वहां पर भैंस चराने जाता था. रमेश से मिल कर चंदू खुश हो गया. दोनों अपनी भैंसों को चराने रोजाना कोसी नदी के तट पर ले जाने लगे. भैंसें घास चरती रहतीं, चंदू और रमेश आपस में गपें लड़ाते रहते.

रमेश के पास एक अच्छा मोबाइल फोन था. वह उस में गाना लगा देता था. दोनों गानों की धुन पर मस्त रहते. कभी कोई अच्छा वीडियो होता तो रमेश चंदू को दिखाता.

चंदू भी ऐसा ही मोबाइल फोन लेने की सोचता था, पर कभी उतने पैसे न हो पाते थे. उस के पास सस्ता मोबाइल फोन था जिस से सिर्फ बात हो पाती थी.

कुछ दिनों से एक चरवाहा लड़की अपनी 20-22 बकरियों को चराने कोसी नदी के तट पर लाने लगी थी. वह 20 साल की थी. शक्लसूरत कोई खास नहीं थी, लेकिन नई जवानी की ताजगी उस के चेहरे पर थी.

रमेश ने जल्दी ही उस लड़की से दोस्ती बढ़ा ली थी. अब वह चंदू के साथ कम ही रहता था. वह हमेशा उस लड़की को दूर ले जा कर बातें करता रहता था.

रमेश से ही चंदू को मालूम हुआ था कि उस चरवाहा लड़की का नाम मुन्नी है, जो पास के गांव में अपनी विधवा मां के साथ रहती है.

चंदू को हमेशा चिंता रहती थी कि भैंसों का पेट भरा या नहीं. मौका देख जहां अच्छी घास मिलती वह काट लेता ताकि घर लौट कर भैंसों को खिला सके. लेकिन रमेश मुन्नी के चक्कर में अपनी भैंसों की भी परवाह नहीं करता था. वह चंदू को ही अपनी भैंसों की देखरेख करने को कह कर खुद मुन्नी के साथ दूर झाड़ियों की ओट में चला जाता था.

चंदू को रमेश और मुन्नी पर बहुत गुस्सा आता. दोनों मटरगश्ती करते रहते और उसे दोनों के मवेशियों की देखभाल करनी पड़ती.

एक दिन चंदू ने गौर किया कि एक काली और ऊंचे सींग वाली बकरी गायब है. उस ने इधरउधर ढूंढ़ा पर वह कहीं नहीं मिली. वह घबरा गया और दौड़तेदौड़ते उन   झाडि़यों के पास जा पहुंचा जिन की ओट में रमेश और मुन्नी थे ताकि उन्हें बकरी के खोने के बारे में बता दे. लेकिन चंदू के अचरज और नफरत का ठिकाना न रहा जब उस ने उन दोनों को आधे कपड़ों में एकदूसरे से लिपटे देखा.

चंदू उलटे पैर लौट गया. थोड़ी देर और ढूंढ़ने पर चंदू को वह खोई हुई बकरी एक गड्ढे में बैठ कर जुगाली करते हुए मिल गई. वह शांत हो गया लेकिन उसे रमेश पर रहरह कर गुस्सा आ रहा था.

काफी देर बाद रमेश चंदू के पास आया तो चंदू उस पर उबल पड़ा, ‘‘तुम जो भी कर रहे हो वह ठीक नहीं है. तुम 2 बच्चों के बाप हो. घर पर तुम्हारी बीवी है, फिर भी ऐसी हरकत. अगर कहीं कुछ गलत हो गया तो मुन्नी से कौन शादी करेगा?’’

रमेश सब सुन रहा था. वह बेहयाई से बोला, ‘‘तुम्हें भी मजा करना है तो कर ले. मैं ने कोई रोक थोड़ी लगा रखी है,’’ इतना कह कर वह एक गाना गुनगुनाते हुए अपनी भैंसों की तरफ चल पड़ा.

धीरेधीरे 5 महीने बीत गए. मुन्नी पेट से हो गई थी. उस के पेट का उभार दिखने लगा था.

रमेश ने भी अब मुन्नी से मिलनाजुलना कम कर दिया था. मुन्नी खुद बुलाती तभी जाता और तुरंत वापस आ जाता. उस ने मुन्नी को   झाडि़यों में ले जाना भी बंद कर दिया था.

कुछ दिनों के बाद रमेश ने कोसी नदी के तट पर भैंस चराने आना भी छोड़ दिया. जब रमेश कई दिनों तक नहीं आया तो एक दिन मुन्नी ने चंदू के पास आ कर रमेश के बारे में पूछा.

चंदू ने जवाब दिया, ‘‘मु  झे नहीं मालूम कि रमेश अब क्यों नहीं आ रहा है.’’

मुन्नी रोने लगी. वह बोली, ‘‘अब इस हालत में मैं कहां जाऊंगी. किसे अपना मुंह दिखाऊंगी. कौन मु  झे अपनाएगा. रमेश ने शादी का वादा किया था और इस हालत में छोड़ गया.’’

थोड़ी देर आंसू बहाने के बाद मुन्नी दोबारा बोली, ‘‘अगर रमेश कहीं मिले तो एक बार उसे मु  झ से मिलने को कहना.’’

‘‘ठीक है. वह मिला तो मैं जरूर कह दूंगा,’’ चंदू ने कहा.

इस के बाद मुन्नी धीरे से उठी और बकरियों के पीछे चली गई.

उस दिन से चंदू रमेश पर नजर रखने लगा.

एक दिन चंदू ने रमेश को मोटरसाइकिल पर शहर की ओर जाते देखा. मोटरसाइकिल पर दूध रखने के कई बड़े बरतन लटके हुए थे.

‘‘कहां जा रहे हो रमेश? आजकल तुम दिखाई नहीं देते?’’ चंदू ने पूछा.

‘‘आजकल काम बहुत बढ़ गया है. शहर में 200 घरों में दूध पहुंचाने जाता हूं इसीलिए समय नहीं मिलता,’’ रमेश ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘200 घर… पर तुम्हारी तो 2 ही भैंसें हैं. वे 30-40 लिटर से ज्यादा दूध नहीं देती होंगी, फिर 200 घरों में दूध कैसे देते हो?’’ चंदू ने पूछा.

‘‘ऐसा है…’’ रमेश अटकते हुए बोला, ‘‘मैं गांव के कई लोगों से दूध खरीद कर शहर में बेच देता हूं.’’

‘‘इसीलिए इतनी तरक्की हो गई है. मोटरसाइकिल की सवारी करने लगे हो…’’ चंदू ने कहा, ‘‘खैर, एक बात बतानी थी. मुन्नी तुम्हें याद कर रही थी. तुम्हें जल्दी से जल्दी मिलने को कह रही थी.’’

मुन्नी का जिक्र आते ही रमेश परेशान हो गया. वह बोला, ‘‘इन फालतू बातों को छोड़ो. मेरे पास समय नहीं है. मु  झे शहर जाना है. देर हो रही है,’’ कह कर उस ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और चला गया.

चंदू को बहुत गुस्सा आया. कोई लड़की परेशानी में है और रमेश को जरा भी परवाह नहीं है. लेकिन चंदू क्या कर सकता था.

एक दिन चंदू अपनी भैंसें कोसी नदी के तट पर चरा रहा था कि तभी उस ने किसी के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी. उस समय वहां कोई नहीं था.

चंदू आवाज की दिशा में आगे बढ़ा. कुछ दूर चलने के बाद उस ने   झाडि़यों के पीछे मुन्नी को लेटे देखा जो रहरह कर चीख रही थी. चंदू कुछकुछ सम  झ गया कि शायद मुन्नी को बच्चा जनने का दर्द हो रहा था.

मुन्नी की हालत खराब थी. वह बेसुध हो कर जमीन पर पड़ी थी. कभीकभी वह अपने हाथपैर पटकने लगती थी. चंदू ने सोचा कि लौट जाए, लेकिन मुन्नी को इस हाल में छोड़ कर जाना उसे ठीक नहीं लगा. वह हिम्मत कर के मुन्नी के पास पहुंचा और उसे ढांढस बंधाने लगा.

थोड़ी देर बाद बच्चे का जन्म हो गया. चंदू ने लाजशर्म छोड़ कर मुन्नी की देखभाल की. बच्चे को साफ कर अपने गमछे में लपेट कर मुन्नी के पास लिटा दिया. मुन्नी को बेटा हुआ था.

जब सूरज डूबने को आया तब जा कर मुन्नी कुछ ठीक महसूस करने लगी. लेकिन बच्चे को देख कर वह रो पड़ी. बिना शादी के पैदा हुए बच्चे को वह अपने पास कैसे रख सकती थी?

मुन्नी रोते हुए बोली, ‘‘मैं इस बच्चे को अपने साथ नहीं रख सकती. लोग क्या कहेंगे? इसे यहीं छोड़ जाती हूं या कोसी में बहा देती हूं.’’

यह सुन कर चंदू कांप गया. कुछ सोच कर वह बोला, ‘‘अगर तुम बच्चे को अपने साथ नहीं रखना चाहती तो मैं इसे अपने पास रख लूंगा.’’

‘‘ठीक है भैया, जैसा आप चाहो. लेकिन इस बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए, नहीं तो मैं बदनाम हो जाऊंगी,’’ कह कर मुन्नी लड़खड़ाते कदमों से अपनी बकरियों को हांक कर घर की ओर चल पड़ी.

बच्चे को गोद में उठा कर चंदू भी भैंसों के साथ घर लौट आया. बच्चे को देख कर उस की पत्नी बोली, ‘‘यह किस का बच्चा उठा लाए हो?’’

चंदू ने   झूठ बोला, ‘‘पता नहीं किस का बच्चा है. मु  झे तो यह   झाडि़यों के पीछे मिला था. शायद अनचाहा बच्चा है. इस की मां इसे झाड़ियों के पीछे फेंक गई होगी.’’

चंदू की पत्नी बोली, ‘‘चलो, बच्चे की जिंदगी बच गई. हमारी एक ही बेटी है, अब बेटे की कमी पूरी हो गई.’’

पत्नी की बात सुन कर चंदू ने राहत की सांस ली. लेकिन चंदू को रमेश का मतलबी रवैया खटकता था. कोई कुंआरी लड़की के प्रति इतना लापरवाह कैसे हो सकता है?

रमेश बहुत तरक्की कर रहा था. चंदू ने गांव वालों से सुना कि उस ने काफी सारी जमीन और एक ट्रैक्टर खरीद लिया था. वह पक्का मकान भी बनवा रहा था. लेकिन चंदू को यह सम  झ में नहीं आता था कि 200 घरों में दूध देने के लिए कम से कम 200 लिटर दूध चाहिए, जबकि उस की भैंसें 30-40 लिटर से ज्यादा दूध नहीं देती होंगी.

हैरानी की बात यह भी थी कि गांव वाले भी रमेश को दूध नहीं बेचते थे क्योंकि गांव में दूध की कमी थी.

धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. चंदू पहले की तरह अपनी भैंसों को चराने कोसी नदी के तट पर ले जाता था, पर मुन्नी ने वहां आना छोड़ दिया था.

एक शाम चंदू अपनी भैंसों को चरा कर लौट रहा था तो रास्ते में उस ने एक बरात जाती देखी. पता किया तो मालूम हुआ कि बगल के गांव में मुन्नी नाम की किसी लड़की की शादी है.

चंदू समझ गया कि उसी मुन्नी की शादी है. वह खुश हो गया. बेचारी मुन्नी बदनाम होने से बच गई.

घर पहुंचा तो चंदू ने एक और नई बात सुनी. गांव में कई पुलिस वाले आए थे और रमेश को गिरफ्तार कर के ले गए थे.

रमेश अपने घर में नकली दूध बनाता था. उस से खरीदा हुआ दूध पी कर शहर के कई लोग बीमार पड़ गए थे. चंदू को रमेश की तरक्की का राज अब अच्छी तरह समझ में आ गया था.

महादान : कैसा था मनकूलाल

सर्दी का मौसम था. धूप खिली हुई थी. गांव की चौपाल पर बैठे लोग कहकहे लगा रहे थे कि लेकिन अचानक वे चुप हो गए. थोड़ी ही दूरी पर कंजूस मनकूलाल आता दिखाई दिया. सिर पर पुरानी टोपी, सस्ती सूती कमीज, धोती और टूटी चप्पलों को पैरों में घसीटता सा वह चला आ रहा था.

मनकूलाल पहले से ही जानता था कि चौपाल पर बैठे लोग उस पर ताने कसेंगे, इसलिए वह दूर से ही मुसकराने लगा. जैसे ही वह करीब आया, एक नौजवान ने पूछा, ‘‘क्यों कंजूस चाचा, आज इधर कैसे?’’

‘‘हाट जा रहा हूं भाई,’’ मनकूलाल ने उसी तरह मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अरे, तो पैदल क्यों जा रहे हो? बस भी तो आने वाली है.’’

‘‘मैं तो पैदल ही जाऊंगा. बेकार में 25 रुपए खर्च हो जाएंगे. हाट यहां से है ही कितना दूर. इतनी दूर तो शहर के लोग सैर करने जाते हैं.’’

‘‘अरे, तो जनाब सैर करने जा रहे हैं?’’ दूसरे नौजवान ने ताना कसते हुए कहा.

तभी वहां एक जोरदार ठहाका गूंज उठा. पर मनकूलाल पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह उसी तरह मुसकराता चला गया.

चौपाल पर बैठे लोगों में से एक ने कहा, ‘‘यह कभी नहीं सुधरेगा.’’

‘‘उस के पास बहुत रुपए हैं, पर खर्च तो वह एक पाई भी नहीं करता,’’ दूसरा आदमी बोला.

‘‘अरे, यह सब कहने की बातें हैं…’’ एक अधेड़ आदमी बुरा सा मुंह बना कर बोला, ‘‘कंजूस का धन कौए खाते हैं. अभी पिछले दिनों उस के घर चोरी हो गई थी. अभीअभी उस का छोटा बेटा बीमार पड़ गया था. एक हफ्ते तक अस्पताल में भरती रहा. न जाने कितना रुपया खर्च हुआ होगा…’’

मनकूलाल के बारे में ऐसी बातें आएदिन होती थीं. गांव के लोग उसे नफरत की नजर से देखते थे. वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. गांव में उस की

20 बीघा जमीन थी. उसी से उस की गृहस्थी चलती थी.

उत्तर प्रदेश के दूरदराज इलाके में बसे इस गांव में कोई भी अमीर नहीं था. सभी मनकूलाल की तरह मामूली किसान थे. वह गांव के लोगों की नजरों में इसलिए भी गिरा हुआ था, क्योंकि वह किसी धरमकरम के मामले में कभी दान नहीं देता था. गांव में नौटंकी हो या रामलीला, मंदिर बन रहा हो या मसजिद, वह कभी चंदा नहीं देता था. गांव में कोई भी साधुसंत आया हो, तो मनकूलाल उस के सामने नाक रगड़ने नहीं जाता था.

आज तक उस ने किसी ब्राह्मण से पूजापाठ नहीं करवाया था. एक बार गांव में साधुओं की टोली चंदा मांगने के लिए आई. गांव में इतने साधु एकसाथ चंदा लेने कभी नहीं आए थे, इसलिए गांव वाले उन के साथ घूम कर चंदा दिलवा रहे थे. गांव वालों की श्रद्धा देख कर साधु फूले नहीं समा रहे थे.

उन्हें लग रहा था कि इस गांव में तो खूब दानदक्षिणा मिलेगी. जब से गांवदेहात में मंदिरों की कायाकल्प होने लगी थी, तब से साधुसंतों की खूब आवभगत होने लगी थी.

जब साधुसंतों की टोली मनकूलाल के घर पहुंची, तब वह खेतों की ओर जाने की तैयारी कर रहा था. साधु सीधे उस के पास पहुंच कर चंदा मांगने लगे, पर मनकूलाल ने चंदा देने से साफ इनकार कर दिया. गांव वालों के समझाने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ.

तब एक साधु तैश में आ कर बोला, ‘‘अधर्मी, हम कोई अपने लिए चंदा नहीं मांग रहे हैं, बल्कि हम यज्ञ करने के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं.’’

‘‘यज्ञ करने से क्या होगा बाबा?’’ मनकूलाल ने पूछा.

‘‘अरे मूर्ख, इतना भी नहीं जानता कि यज्ञ करने से क्याक्या फायदे होते हैं? राम ने अश्वमेध यज्ञ क्यों करवाया

था? युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ क्यों करवाया था?’’

साधु के रुकते ही मनकूलाल बोला, ‘‘बाबा, वे राजा लोग थे. उन के कई चोंचले होते थे. हम तो अपना पेट ही बड़ी मुश्किल से भर रहे हैं, फिर बेकार में इन चोंचलों में पैसा खर्च कर के क्या फायदा?’’

साधु मनकूलाल का मुंह देखते रह गए. उन से कुछ बोलते नहीं बना. पर गांव वालों के सामने अपनी हेठी न हो जाए, यह सोच कर एक साधु बोला, ‘‘अरे, वे सब चोंचले नहीं करते थे. सुन, यज्ञ से आदमी का बहुत भला होता है, दुनिया में शांति होती है, देवता खुश होते हैं, पानी अच्छा बरसता है,’’ कह कर उस साधु ने अपने पीछे खड़े गांव के लोगों की तरफ देखा.

‘‘मैं इतना जानकार तो नहीं हूं और दुनियादारी की बात नहीं जानता. पर आज से पहले भी तो बहुत से यज्ञ करवाए गए हैं, उन से क्या हुआ? कौन सी शांति आई? गरीबी कहां दूर हुई? हमारे गांव में तो रोज ही झगड़े होते हैं. लोग हर साल ही तंगी में जीते हैं. हर साल बारिश कम होती है,’’ कह कर मनकूलाल खामोश हो गया.

साधु खिसिया गए और उसे अधर्मी, पापी वगैरह कहते हुए चले गए. उस दिन से गांव वाले मनकूलाल से ज्यादा ही नफरत करने लगे. वे सोचते थे कि मनकू को साधुओं का ‘शाप’ जरूर लगेगा. पूरा साल गुजर गया, पर उस का कुछ नहीं बिगड़ा.

अगले साल उस इलाके में बारिश न होने के चलते अकाल जैसी हालत पैदा हो गई. लोग भूखे मरने लगे. ऐसी हालत में साहूकारों ने भी मुंह फेर लिया. सरकारी दावों में खूब प्रचार किया गया कि इतने करोड़ भूखों का पेट भरा गया है, पर हकीकत में सरकारी मदद गांव तक पहुंच ही नहीं पाई थी.

मनकूलाल के गांव वाले पहले ही गरीब थे. गांव में ऐसा एक भी परिवार नहीं था, जो दूसरे परिवार की मदद कर सके. पूरे गांव में हाहाकार मचा हुआ था. पर गांव के 10-12 परिवार, जो मजदूरी कर के गुजारा करते थे, बहुत ही बुरी हालत में दिन बिता रहे थे. वे परिवार गांव से शहर जाने के लिए मजबूर हो गए थे. इस के चलते गांव के सभी लोग बेहद दुखी थे, पर वे कर भी क्या सकते थे, क्योंकि वे तो खुद ही बड़ी मुश्किल से दिन गुजार रहे थे. जिस दिन वे मजदूर परिवार ट्रैक्टरट्रौली पर अपना सामान लाद कर रवाना होने वाले थे, तब गांव के सभी लोग वहां इकट्ठे हो गए थे.

उसी समय मनकूलाल वहां आया. उस के हाथ में लाल कपड़े की छोटी सी पोटली थी. गांव के मुखिया को वह गठरी देते हुए मनकूलाल ने कहा, ‘‘यह मेरी 10 सालों की जमापूंजी है. रुपया मुसीबत के समय ही काम आता है. आज अपने गांव में भी मुसीबत आई हुई है. ऐसे समय में मेरा पैसा गांव के काम आ जाए, तो मैं खुद को धन्य समझूंगा.’’

मुखिया हैरान रह गया. वह कभी मनकूलाल की तरफ देखता, तो कभी पोटली में लिपटे रुपयों की तरफ. वहां खड़े सभी लोगों की भी यही हालत थी. एक आदमी ने खुश हो कर रुपए गिने, तो उस की खुशी की सीमा न रही. वे इतने रुपए थे कि उन से तंगहाली में आ गए सभी परिवारों के लिए सालभर का अनाज आ सकता था. मुखिया ने यह बात गांव के सब लोगों को बताई, तो वे वाहवाह कर उठे.

कुछ लोग तो शर्म के मारे मनकूलाल से आंखें नहीं मिला पा रहे थे. गांव छोड़ कर जाने वाले परिवार रुक गए. मनकूलाल के लिए उन के दिल इज्जत से भर गए थे. पूरा गांव जिस इनसान को अधर्मी, कंजूस और न जाने क्याक्या समझता था, वही आज मुसीबत के समय गांव के काम आया था.

अब गांव वाले सोच रहे थे कि मनकूलाल कंजूस नहीं, किफायती था. थोड़े खर्चे से काम चलाता था. वह उन की तरह अंधविश्वासी और मूर्ख नहीं था. वह जानता था कि दान कहां देना है. मुसीबत के समय दिया जाने वाला दान ही ‘महादान’ है. वही सच्चा धर्म है. बाकी सब बेकार की बातें हैं.

सब लोगों ने मनकूलाल को यकीन दिलाया कि अब वे भी बचत करेंगे और उस की पाईपाई सूद समेत सालभर में चुका देंगे.

मनकूलाल ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारा भला चाहिए, सूद नहीं.’’

इस पर मुखिया बोला, ‘‘सूद तो तुम्हारा हक है. भला तुम इन गरीबों

को बिना लिखतपढ़त के उधार दे कर

ही क्या कम कर रहे हो… यह पैसा तो तुम्हें लेना ही होगा, जब भी वे लोग

दे सकेंगे.’’

मनकूलाल मुसकरा कर रह गया. उस ने मुखिया की बात का मान रखा.

एआई तकनीक का चक्रव्यूह : मोबाइल फोन से लूटे रुपए

दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में रहने वाली 24 साल की प्रतिभा एक बड़ी कंपनी में इंफौर्मेशन टैक्नोलौजी डिपार्टमैंट के सपोर्ट सिस्टम में काम करती थी. वह अपने काम में माहिर थी. उस का पूरा परिवार इलाहाबाद में रहता था, बस यहां पश्चिम विहार में उस का 18 साल का छोटा भाई राघव साथ में रहता था. राघव का कालेज में पहला साल था और वह मैट्रो से कालेज आताजाता था.

प्रतिभा के घर वाले उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे, लेकिन वह अपने औफिस के एक लड़के दीपक को पसंद करती थी. दोनों में खूब जमती थी और वे डेट पर भी जाते थे.

प्रतिभा का औफिस ओखला में था और वह मैट्रो से आनाजाना करती थी. 10 से 6 बजे का औफिस था. सुबह 8 बजे घर से निकलना और रात के 8 बजे तक घर वापसी.

एक दिन प्रतिभा औफिस के काम में मगन थी. सोमवार था शायद. दोपहर के 12 बजे उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. ह्वाट्सएप काल थी. अनजान नंबर होने के बावजूद प्रतिभा ने वह काल पिक कर ली, ‘‘हैलो…’’

सामने से एक रोबीली मर्दाना आवाज आई, ‘आप प्रतिभा बोल रही हैं?’

‘‘जी कहिए, क्या काम है?’’ प्रतिभा ने कहा.

‘काम तो ऐसा है मैडमजी कि आप के छोटे भाई ने बहुत बड़ा कांड कर दिया है,’ उस आवाज ने यह कह कर अचानक बम सा फोड़ दिया.

‘‘मतलब…?’’ राघव का खयाल आते ही प्रतिभा के तनबदन में डर की ?ार?ारी सी फैल गई.

‘मतलब, राघव ने तगड़ा क्लेश कर दिया है और वह अभी पुलिस हिरासत में है,’ उस रोबीली आवाज की सख्ती धीरेधीरे बढ़ने लगी थी.

‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप? राघव तो अभी कालेज में होगा,’’ अपना सारा डर दबाते हुए प्रतिभा बोली. पर तब तक उस के माथे पर पसीना आ गया था.

‘तेरा भाई कालेज में ड्रग्स लेते पकड़ा गया है. पैडलर है वह. ड्रग्स की स्मगलिंग भी करता है,’ इतना सुनते ही प्रतिभा को मानो लकवा सा मार गया.

‘और सुन, मैं बोल रहा हूं स्पैशल पुलिस विंग का इंस्पैक्टर. हमारा काम ही ऐसे स्लीपर पैडलर को पकड़ना है. अब तो वह लंबे समय के लिए गया जेल में,’ उस आदमी की आवाज मानो और भी कड़क होती जा रही थी.

प्रतिभा की अब तक घिग्घी बंध चुकी थी. उस के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था. उसे लगा कि जैसे वह किसी गहरे अंधे कुएं में गिर गई है और कोई उस पर मिट्टी डाल रहा है. उसे चक्कर सा आ गया.

इतने में प्रतिभा के साथ वाली सीट पर बैठी सुधा को शक हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है. उस ने प्रतिभा का हाथ पकड़ कर झिड़का. हाथ एकदम ठंडा पड़ा हुआ था. प्रतिभा जैसे नींद से जागी और उसे अहसास हुआ कि वह तो औफिस में बैठी है.

प्रतिभा ने तुरंत मोबाइल फोन पर हाथ रखा और सुधा को इग्नोर करते हुए वाशरूम की तरफ बढ़ गई. सुधा ने इशारे से दीपक को बुलाया.

दीपक उस कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर था और जैसे ही उस ने सुधा से प्रतिभा के बारे में सुना, तो वह दबे पैर प्रतिभा के पीछे गया.

‘‘आप मेरे भाई से बात कराइए,’’ प्रतिभा उस फोन करने वाले से कह रही थी.

थोड़ी देर तक दूसरी तरफ से आवाज नहीं आई, तो प्रतिभा ने कहा, ‘‘हैलो…’’

‘दीदी, प्लीज मुझे बचा लो. मैं आगे से ऐसा काम नहीं करूंगा. दीदी, इन्होंने मुझे बहुत मारा. मेरा हाथ तोड़ दिया है. पुलिस वाले अंकल को किसी भी तरह मना लो. मेरा कैरियर खत्म हो जाएगा. प्लीज दीदी…’ इतना कहते ही आवाज आनी बंद हो गई.

यह तो राघव की आवाज थी. प्रतिभा के दिल में तेज चुभन सी हुई और उस के पैर लड़खड़ा गए.

‘‘प्रतिभा, सब ठीक है न?’’ पीछे खड़े दीपक ने उसे संभालने की कोशिश की.

प्रतिभा एकदम से गरजी, ‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो? दफा हो जाओ. मैं ठीक हूं…’’

दीपक ने बहुत कोशिश की कि प्रतिभा उसे फोन पकड़ा दे, पर वह नाकाम रहा और वहां से चला गया.

‘हां जी मैडम, फिर क्या विचार है आप का? इस लड़के को छोड़ दें या बना दें कोई पक्का केस?’ फोन पर आवाज आई.

‘‘आप को क्या चाहिए?’’ प्रतिभा गिड़गिड़ाई.

‘‘जी, वैसे तो हम पुलिस वाले रिश्वत लेने में विश्वास नहीं करते हैं, पर आप के भाई ने कांड ही इतना बड़ा कर दिया कि बिना पैसे लिए छोड़ नहीं सकते. ऐसा करो, आप 50,000 रुपए हमारे खाते में डलवा दो और अपने भाई को छुड़वा लो.’

प्रतिभा ने आव देखा न ताव और तुरंत उस आदमी द्वारा बताए गए एक खाते में 20,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए.

‘‘देखो, मैं ने पैसे भेज दिए हैं. अब आप मेरे भाई को छोड़ दो…’’ प्रतिभा अपनी बात पूरी कर पाती, इस से पहले ही फोन कट गया.

प्रतिभा हैरान रह गई. उस ने दोबारा वही नंबर मिलाया, पर नहीं लगा. वह सम?ा गई कि उस के साथ कोई धोखाधड़ी हुई है. हालांकि, उस ने 20,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए थे, फिर भी उस ने मोबाइल एसएमएस पर चैक किया. 20,000 रुपए का चूना लग चुका था. फिर उस ने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि चलो, भाई तो महफूज है.

प्रतिभा सीट पर आई ही थी कि दोबारा उसी आदमी का फोन आ गया, ‘मैडम, यह आप ने क्या कर दिया. सिर्फ 20,000 रुपए ही भेजे हैं. अब तो हमारे बड़े साहब नाराज हो गए हैं. वे बोल रहे हैं कि ड्रग्स का मामला है, कम से कम 2 लाख रुपए और लगेंगे.’

प्रतिभा बोली, ‘‘आप मु?ो थोड़ा समय दें. मु?ो इतने सारे रुपए जमा करने में 2 घंटे से ज्यादा का समय लगेगा.’’

उधर से आवाज आई, ‘जल्दी कर जो करना है…’ और फोन कट गया.

प्रतिभा को रोते देख कर आसपास का स्टाफ वहां जमा हो गया. थोड़ी देर के बाद प्रतिभा ने बताया कि पिछले 15 मिनट में उस की जिंदगी में कितना बड़ा तूफान तबाही मचा कर गया है.

सब लोग हैरान थे कि अगर राघव अपने कालेज में था, तो फिर वह आवाज किस की थी, जिसे राघव सम?ा लिया गया? साइबर क्राइम का यह कैसा घिनौना रूप है, जो आप को पैसे के साथसाथ दिमागी तौर पर भी तोड़ देता है?

दीपक ने कहा, ‘‘आजकल मोबाइल फोन पर लोगों को इस तरह ?ाठ के जाल में बरगलाया जाता है कि अच्छाभला पढ़ालिखा इनसान भी गच्चा खा जाता है.

‘‘इसे एक सच्ची खबर से सम?ाते हैं. हाल ही में मुंबई में रहने वाले एक सीनियर सिटीजन के पास कनाडा से एक फोन आया. यहां ठग ने पीडि़त शख्स से कहा कि मैं आप के बेटे का दोस्त बोल रहा हूं. उस ने हूबहू बेटे के दोस्त की आवाज में बात की थी. इसी के साथ ठग ने

3 लाख रुपए की चपत लगा दी.

‘‘यह 2 मार्च, 2024 का मामला है. पुलिस ने बताया कि 63 साल के शिकायत करने वाले आदमी की

2 बेटियां और एक बेटा है. तीनों विदेश में रहते हैं. 2 मार्च को उन के पास एक अनजान नंबर से ह्वाट्सएप पर वौइस काल आई.

‘‘काल करने वाले ने अपना नाम विकास गुप्ता बताया. चूंकि पीडि़त विकास गुप्ता को बचपन

से जानते थे और काल करने वाले की आवाज विकास गुप्ता से मिलतीजुलती थी, इसलिए पीडि़त ने उस आवाज पर भरोसा कर लिया.

‘‘इस के बाद फोन करने वाला यह कहते हुए रोने लगा कि वह मुसीबत में है और उसे तुरंत पैसों की जरूरत है. इस के बाद पीडि़त ने काल करने वाले के खाते में 2 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए और अपने

2 दोस्तों से भी 50-50 हजार रुपए और ट्रांसफर करवा दिए.

‘‘जब जालसाज ने फिर से पैसों की मांग की तो पीडि़त को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है. उस ने काल करने वाले को वीडियो काल किया, जिस का जवाब नहीं दिया गया, तब पुष्टि हुई कि उन के साथ धोखाधड़ी हुई है.’’

दीपक की बात सुन कर सब हैरान रह गए. फिर एक लड़की सुरभि ने दूसरी खबर का हवाला देते हुए कहा, ‘‘सर, यह तो एकदम ताजा मामला है. साइबर ठगों ने एआई डीपफेक की मदद से आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रहे छात्र की आवाज में उस की मां को ह्वाट्सएप काल कर 40,000 रुपए हड़प लिए.

‘‘आईआईटी कानपुर में पढ़ रहे इंजीनियरिंग के एक छात्र उत्कर्ष सिंह ने बताया कि बीती 3 अप्रैल को किसी अनजान शख्स ने उन की मां सरिता देवी को ह्वाट्सएप काल की. किसी पुलिस वाले की डीपी लगे नंबर से काल करने वाले ने खुद को पुलिस वाला बताते हुए कहा कि उन के बेटे को दुष्कर्म व हत्या के मामले में पकड़ा गया है.

‘‘इतना ही नहीं, यकीन दिलाने के लिए शातिरों ने आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस (एआई) से बेटे की आवाज में एक संदेश भी सुनाया, जिस में बेटा खुद को बचा लेने की गुहार लगा रहा था. उस ने कहा कि मेरे दोस्तों ने मु?ो फंसा दिया है, मु?ो बचा लीजिए.

‘‘बेटे की आवाज सुनाई देने पर तुरंत मां ने बताए गए बैंक खाते में 40,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए. हालांकि, जब रुपए देने के बाद मांबेटे की आपस में बात हुई, तो इस साइबर ठगी का पता चला.’’

‘‘पर, यह हूबहू आवाज कैसे मिला दी जाती है?’’ किसी ने सवाल किया.

दीपक ने बताया, ‘‘जहां तक मैं जानता हूं, आजकल बहुत से ऐसे वौइस इंजन टूल हैं, जो सिर्फ छोटे से औडियो से ही क्लोन वौइस जैनरेट करने की ताकत रखते हैं. इस के साथ ही ये कई भाषाओं में काम कर सकते हैं.

‘‘इतना ही नहीं, ये टूल्स आवाज के साथसाथ किसी इनसान की शक्ल से भी लोगों को बेवकूफ बना सकते हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नई तकनीक के गलत इस्तेमाल पर अपनी चिंता जाहिर की है.

‘‘एक एआई ऐक्सपर्ट अतुल रौय ने बताया है, ‘एआई के जरीए क्लोन बनाना अब आसान हो गया है, जिस का फायदा अपराधी भी उठा रहे हैं. ऐसे में जरूरी है कि हम सतर्क रहें और अपनी जानकारी को बढ़ाएं.’

‘‘आप को याद होगा कि कुछ साल पहले एक वैब सीरीज आई थी ‘जामताड़ा-सब का नंबर आएगा’. इस में इसी मुद्दे को उठाया गया था कि मोबाइल फोन में सिम बदलबदल कर कैसे लोगों को लालच दे कर उन से पैसा किसी अनजान अकाउंट में डलवाया जाता था.

‘‘अब एआई तकनीक ने इस साइबर क्राइम को और ज्यादा भयावह बना दिया है. पर अगर जरा सी सावधानी बरती जाए, तो समय रहते बचा भी जा सकता है.’’

‘‘पर कैसे?’’ दीपक के एक साथी ने पूछा.

‘‘जब भी आप के पास कोई काल आए तो सामने वाले की पहचान पूरी होने के बाद ही अपनी जानकारी उसे दें. स्कैमर्स आप को काल लगाते हैं और पर्सनल जानकारी मांगते हैं, इसलिए कोई काल करने के साथ ही पैसे या पर्सनल जानकारी मांगे, तो सम?ा जाएं कि स्कैमर्स हैं.

‘‘पर भारत में लोग अभी भी इस सब तकनीकी से अनजान हैं. एक खबर के मुताबिक, दुनिया में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस वौइस स्कैम का सब से ज्यादा भारत के ही लोग शिकार हो रहे हैं. एक सर्वे में शामिल 47 फीसदी से ज्यादा भारतीयों ने माना है कि या तो वे खुद पीडि़त हैं या ऐसे किसी को जानते हैं, जो वौइस स्कैम का शिकार हुआ है.’’

फिर दीपक ने कुछ आंकड़ों का हवाला दिया कि दुनिया के 7 देशों में 7,054 लोगों पर किए गए सर्वे की रिपोर्ट इस तरह है :

* 83 फीसदी लोग यह पता लगाने में नाकाम हैं कि उन के पास आया स्पैम काल किसी मशीन या सौफ्टवेयर की मदद से किया गया है या सच में कोई इनसान बोल रहा है.

* 66 फीसदी भारतीयों ने बताया है कि ऐसे वौइस स्कैम वाले ज्यादा काल किसी दोस्त या परिवार के सदस्य से आते हैं, जिसे पैसे की तत्काल जरूरत होती है.

* स्कैम वौइस काल में सब से ज्यादा दावा किया गया था ‘मैं लुट गया हूं’ (70 फीसदी). इस के बाद ‘कार हादसा हो गया’ (69 फीसदी), ‘फोन खो गया या पर्स खो गया’ (65 फीसदी) या ‘विदेश में हू्ं पैसे की तुरंत जरूरत है’ (62 फीसदी) जैसे बहाने बनाए गए.

‘‘तो फिर ठगी का शिकार लोग क्या करें और कहां गुहार लगाएं?’’ किसी ने दीपक से सवाल किया.

‘‘आज हमारे औफिस में यह कांड हुआ है, तो मैं प्रतिभा से कहूंगा कि वह पहले तो खुद को संभाले और फिर सब से पहले अपने बैंक अकाउंट से धोखाधड़ी कर के निकाले गए पैसों को वापस लेने के लिए अपने बैंक से बात करे. अगर बैंक की ब्रांच दूर है, तो फोन कर के कस्टमर केयर को जानकारी दे.

‘‘जिस के साथ भी यह कांड हुआ है, वह तुरंत पुलिस को जानकारी दे. धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क करें. आप साइबर सुरक्षा अधिकारियों को भी रिपोर्ट कर सकते हैं, जैसे कि नैशनल साइबर सिक्योरिटी एजेंसी या नैशनल इनफार्मेशन सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन.’’

सब लोग दीपक की बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे और प्रतिभा उसे देखे जा रही थी. वह चुप हो गया. जब सब लोग चले गए, तो प्रतिभा ने दीपक से कहा, ‘‘बांट दिया ज्ञान… अब काम करने का समय आ गया है. उस आदमी का लालच बढ़ गया है. उस ने 2 लाख रुपए की डिमांड की है. हमारे पास बस 2 घंटे हैं उसे ट्रेस करने के लिए.’’

दीपक ने एक आंख दबाते हुए कहा, ‘‘तुम तो बड़ी दिलेर निकली, जो 20,000 रुपए का रिस्क ले लिया. अगर वह ट्रेस नहीं हो पाया तो…?’’

‘‘ट्रेस तो उस का बाप भी होगा. तुम किस मर्ज की दवा हो. चलो, अपने अड्डे पर और करते

हैं उस बेवकूफ का सबकुछ हैक,’’ प्रतिभा बोली.

‘‘अजी, आप की खातिर हम उसे ट्रेस तो कर देंगे, पर इस गरीब को क्या इनाम मिलेगा?’’ दीपक थोड़ा रोमांटिक होते हुए बोला.

‘‘डार्लिंग, आज यह मिशन पूरा होते ही मैं सारी रात तुम्हारे साथ अपार्टमैंट्स पर रहूंगी, क्योंकि राघव तो इलाहाबाद गया हुआ है. फिर निकाल लेना अपने दिल के अरमान. पूरी रात जश्न मनेगा.’’

दरअसल, प्रतिभा और दीपक एक एआई कंपनी के लिए काम करते थे. दीपक किसी के भी फोन से उस इनसान की सारी जानकारी निकाल लेता था, जिसे हैकिंग कहते हैं. अब जब उस आदमी का 2 लाख रुपए लेने के लिए फोन आएगा, तब प्रतिभा उसे बातों में उल?ा कर रखेगी और दीपक उस की लोकेशन से फोन के जरीए उसे हैक कर लेगा.

थोड़ी देर में वे दोनों एक ऐसे औफिस में बैठे थे, जो उन्हीं की कंपनी में गुप्त तरीके से बना हुआ था. वहां सिर्फ स्पैशल लोग ही जा सकते थे, जैसे आज प्रतिभा और दीपक का मिशन था.

2 घंटे होते ही उस आदमी का फोन आ गया. दीपक ने प्रतिभा को सम?ा दिया कि वह किसी तरह उसे बातों में उल?ा कर उस बैंक अकाउंट तक पहुंच जाए, फिर वह उसे हैक कर लेगा.

प्रतिभा बोली, ‘‘देखिए भाई साहब, मैं आप को

2 लाख रुपए तो एकसाथ नहीं दे पाऊंगी, पहले 10,000 रुपए आप के अकाउंट में आएंगे और फिर उस के आधे घंटे के बाद पूरी रकम आप को मिल जाएगी.’’

‘यह क्या नौटंकी है. जो करना है जल्दी कर. अगर बड़े साहब नाराज हो गए, तो रकम बढ़ जाएगी. फिर मत रोना,’ यह कहते हुए उस आदमी ने अपना अकाउंट नंबर बता दिया. थोड़ी देर में ही उस के खाते में 10,000 रुपए चले गए.

इधर दीपक अपना काम कर रहा था. वह हैकिंग का मास्टर था. उस ने नई तकनीक की मदद से उस आदमी का फोन हैक कर के उस के बैंक अकाउंट में सेंध लगा दी थी. उस आदमी ने भी लापरवाही बरतते हुए अपना फोन स्विच औफ नहीं किया था और न ही सिमकार्ड बदला था.

5 मिनट में ही दीपक ने उस आदमी का फोन पूरी तरह से हैक कर लिया था. इतना ही नहीं, उस के सोशल मीडिया अकाउंट से 10 और दोस्तों के फोन हैक कर के उन के बैंक अकाउंट की डिटेल भी अपने कब्जे में ले ली थी.

दीपक को यह सब जानने के बाद शक हुआ कि यह कोई बड़ा गिरोह है, जो साइबर क्राइम को अंजाम देता है और इस गिरोह के सरगना विदेश में बैठे हैं और बड़े जालिम हैं.

दीपक ने अपनी करामात दिखाते हुए उन सब के अकाउंट से 1-1 लाख रुपए एक अनजान बैंक अकाउंट में भेज दिए.

इस के बाद दीपक ने प्रतिभा से कहा, ‘‘अभी उस आदमी का फोन आएगा. उसे पता चल चुका होगा कि उस के बैंक अकाउंट से पैसे कहीं ट्रांसफर हुए हैं. अब तुम उसे दिन में तारे दिखा देना.’’

‘‘मैं भी फोन आने का इंतजार कर रही हूं,’’ इतना कह कर प्रतिभा ने दीपक को चूम लिया.

वही हुआ भी. ह्वाट्सएप काल आ गया. उधर से आवाज आई, ‘यह सब क्या माजरा है? मेरे अकाउंट से पैसे कहां चले गए. क्या किया है तुम ने?’

‘‘क्या हुआ?’’ प्रतिभा ने ?ाठी हैरानी जताते हुए कहा.

‘तुम ने किया क्या है और तुम हो कौन?’ उस आदमी की हेकड़ी जैसे निकल रही थी.

‘‘क्या किसी पुलिस वाले को कोई चूना लगा गया? अपने बड़े साहब को बता दो या फिर मैं तुम्हारे आका का भी फोन हैक करूं. खुद को बड़ा शातिर सम?ाता है न.

‘‘बेटा, अभी तुम इस खेल के नए खिलाड़ी हो. तुम ने गलत इनसान से पंगा ले लिया है. तेरे ही क्या, तेरे और दूसरे 10 साथियों के अकाउंट से पैसे ट्रांसफर हुए हैं, वे भी तेरे बैंक अकाउंट में. उन का फोन आने ही वाला होगा.

‘‘तुम लोगों ने आम जनता की जिंदगी जहन्नुम कर रखी है. उन की गाढ़ी कमाई को साइबर क्राइम से लूट लेते हो और फिर कोई सुबूत भी नहीं छोड़ते. पर, मैं जहां नौकरी करती हूं, वहां आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस पर ही काम होता है.

‘‘तू ने हमें अपना शिकार नहीं बनाया है, बल्कि हम ने तु?ो किसी चूजे की तरह फांसा है. ज्यादा चूंचपड़ की तो ऐसा हाल करेंगे कि जिंदगीभर किसी को बेवकूफ नहीं बना पाएगा.

‘‘और हां, यह मत सम?ा लेना कि मु?ो किसी तरह का नुकसान पहुंचा पाएगा. तेरे फरिश्ते भी मु?ा तक नहीं पहुंच पाएंगे, पर हम लोग तेरी एकएक रग से वाकिफ हो चुके हैं. मु?ो कहीं भी और कभी भी एक खरोंच तक आई, तो तेरे पूरे गिरोह का बैंड बजा देंगे. वैसे भी तेरी तो उलटी गिनती शुरू हो चुकी है…’’ प्रतिभा ने अपना असली रूप दिखा दिया.

इतना सुनना था कि दूसरी तरफ से फोन कट गया. दीपक और प्रतिभा ने एकदूसरे को देखा और खिलखिला कर हंस दिए. उन के औफिस स्टाफ को भी नहीं मालूम था कि वे किस तरह से यह खुफिया काम करते हैं.

दीपक प्रतिभा के बालों में हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘डार्लिंग, उस आदमी को तो तुम ने दिन में तारे दिखा दिए हैं, अब आज रात का क्या सीन है?’’

प्रतिभा बोली, ‘‘जो वादा किया था, आज रात को पूरा होगा. फिर कर लेना अपने मन की.’’

इस के बाद वे दोनों अपना मिशन पूरा कर के औफिस की तरफ चल दिए, जहां वे आम मुलाजिमों की तरह काम करते थे.

मुआवजा : क्यों हो रही थी मीटिंग पर मीटिंग

दोपहर को कलक्टर साहब और उन के मुलाजिमों का काफिला आया था. शाम तक जंगल की आग की तरह खबर फैल गई कि गांव और आसपास के खेतखलिहान, बागबगीचे सब शहर विकास दफ्तर के अधीन हो जाएंगे. सभी लोगों को बेदखल कर दिया जाएगा.

रामदीन को अच्छी तरह याद है कि शाम को पंचायत बैठी थी. शोरशराबा और नारेबाजी हुई. सवाल उठा कि अपनी पुश्तैनी जमीनें छोड़ कर हम कहां जाएंगे? हम खेतिहर मजदूर हैं. गायभैंस का धंधा है. यह छोड़ कर हम क्या करेंगे?

पंचायत में तय हुआ कि सब लोग विधायकजी के पास जाएंगे. उन्हें अपनी मुसीबतें बताएंगे. रोएंगे. वोट का वास्ता देंगे.

इस के बाद मीटिंग पर मीटिंग हुईं. बड़े जोरशोर से एक धुआंधार प्लान बनाया गया, जो इस तरह था:

* जुलूस निकालेंगे. नारेबाजी करेंगे. जलसे करेंगे.

* लिखापढ़ी करेंगे. मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखेंगे.

* विधायकजी से फरियाद करेंगे. उन्हें खबरदार करेंगे.

* कोर्टकचहरी जाएंगे.

* सरकारी मुलाजिमों को गांव या उस के आसपास तक नहीं फटकने देंगे.

* चुनाव में वोट नहीं डालेंगे.

* आखिर में सब गांव वाले बुलडोजर व ट्रकों के सामने लेट जाएंगे. नारे लगाएंगे, ‘पहले हमें मार डालो, फिर बुलडोजर चलाओ’.

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जब नोटिस आया, तो कुछ ने लिया और बहुतों ने वापस कर दिया. नोटिस देने वाला मुलाजिम पुलिस के एक सिपाही को साथ ले कर आया था. वह सब को सम?ाता था, ‘नोटिस ले लो, नहीं तो दरवाजे पर चिपका देंगे. लोगे तो अच्छा मुआवजा मिलेगा, नहीं तो सरकार जमीन मुफ्त में ले लेगी. न घर के रहोगे और न घाट के.’

आज रामदीन महसूस करता है कि मुलाजिम की कही बात में सचाई थी. अपनेआप को जनता का सेवक कहने वाले सरपंचजी कन्नी काटने लगे थे. विधायकजी वोट ले कर फरार हो गए थे.

रामदीन पढ़ालिखा न था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘इस कागज का हम क्या करेंगे?’’ रामदीन पूछ बैठा.

‘‘अपने पट्टे के कागज ले कर दफ्तर जाना. वहां तुम्हारी जमीन की कीमत आंकी जाएगी. उस के बाद सरकार अपना भाव निकालेगी और तुम्हें उसी के मुताबिक ही भुगतान होगा,’’ डाकिए ने सम?ाया.

3 गांवों पर इस का असर पड़ा था. इतमतपुर, इस्माइलपुर और गाजीपुर. गांव वाले खेतों से ध्यान हटा कर सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने लगे. उन्हें तमाम सवालों का दोटूक जवाब मिलता, ‘फाइलें खुल रही हैं. जानते हो न, सरकारी कामकाज कैसे चलता?है… चींटी की चाल.’

दफ्तर के बाहर ‘सरकारी काम में रुकावट न डालें’ का नोटिस भी लगा दिया गया था.

गांव वाले दफ्तर के बाहर से ही उलटे पैर लौटा दिए जाने लगे थे. लोहे की सलाखों वाला फाटक ऐसे बंद कर दिया गया था मानो जेल हो.

6 महीने बीते. अचानक चारों तरफ ट्रैक्टर, ट्रक, बुलडोजर और टिड्डियों की तरह आदमी मंडराने लगे. खड़ी फसल, आम और अमरूद के बाग देखते ही देखते उजाड़ दिए गए. जहां हरियाली थी, वहां अब पीली मिट्टी का सपाट मैदान हो गया था.

गुस्साए गांव वालों ने ‘पहले पैसा दो, फिर जमीन लो’, ‘हम कहां जाएंगे’, ‘हायहाय’ के नारे लगाए थे. नारेबाजी हुई, फिर पत्थरबाजी भी हुई थी.

पुलिस आई. गिरफ्तारियां हुईं. पुलिस ने जीभर कर लोगों की पिटाई की. मुकदमा चला सो अलग.

25 आदमी कुसूरवार पाए गए. 6-6 महीने की सजा हुई. रामदीन भी उन में से एक था.

जब रामदीन घर लौट कर आया, तब तक सबकुछ बदल चुका था. दरवाजे पर नोटिस चिपका हुआ था. जहां उस का बगीचा था, वहां ‘इंदिरा आवास योजना’ का बड़ा सा बोर्ड लगा था. जिस ने गरीबी मिटाने का नारा लगाया था, उसी के नाम पर कालोनी बन रही है.

घर में खाने के लाले पड़े हुए थे. आमदनी के नाम पर 4 भैंसें व 2 गाएं ही बची थीं. रामदीन दिहाड़ी के लिए निकल पड़ा था. वह भी कभी मिलती और कभी नहीं.

सोतेसोते रामदीन चौंक कर उठ बैठता. वह टकटकी बांधे छत को ताकता रहता. यह मकान भी खाली करना था. खुले आसमान की छत ही उस की जिंदगी का अगला पड़ाव होगा.

फिर दफ्तर के चक्कर लगाना रामदीन का रोज का काम हो गया था. दफ्तर के बरामदे में ‘नोटिस पर भुगतान के लिए मिलें’ का दूसरा नोटिस लग चुका था, इसीलिए वह दफ्तर में घुस गया था.

एक बाबू ने बताया, ‘‘सरकार के पास पैसा नहीं है.’’

दूसरा बाबू बोला, ‘‘तुम्हारा तो नाम ही नहीं है.’’

तीसरे ने कहा, ‘‘फाइलें बन गई हैं.’’

चौथे ने हंस कर कहा था, ‘‘मैं ही सब करूंगा… पहले मेरी दराज में तो कुछ डालो.’’

जितने मुंह उतनी ही बातें. रामदीन को तो खुद ही खाने के लाले पड़े थे, फिर किसी को चायपानी क्या कराता? उन की जेबें कैसे गरम करता?

चपरासी भी बख्शिश के चक्कर में बड़े साहब से मिलाने के लिए टालमटोल कर रहा था. 50 रुपए जेब में रखने के बाद ही उस ने साहब के कमरे का दरवाजा खोला था.

रामदीन साहब के पैरों में गिर कर रो पड़ा था. गिड़गिड़ाते हुए उस ने कहा था, ‘‘साहब, 3 साल हो गए हैं, एक पैसा भी नहीं मिला है. मैं पढ़ालिखा नहीं हूं. घर में खाने के लाले पड़े हैं.’’

साहब ने हमदर्दी दिखाई थी, वादा भी किया था, ‘‘घर से बेदखल करने से पहले तुम्हें कुछ न कुछ जरूर भुगतान किया जाएगा.’’

रामदीन इस तरह खुश हो कर घर लौटा था, जैसे दुनिया ही जीत ली हो. लेकिन जल्दी ही भरम टूटा. 6 महीने बाद भी वह वादा वादा ही रहा.

पुलिस घरों में घुसघुस कर सामान बाहर फेंकने लगी. सरकारी हुक्म की तामील जो हो रही थी.

रामदीन अपने घर वालों और जानवरों को ले कर अपने मौसेर भाई के यहां कुकरेती जा कर बस गया.

एक दिन रामदीन को लोगों ने बताया कि मामला कोर्ट में पहुंच गया है. जनता का भला करने वाले कुछ लोगों ने वहां अर्जी लगाई थी.

बातबात में रामदीन ने एक दिन अपने एक ग्राहक, जो एक दारोगा की बीवी थी, को अपनी कहानी सुना दी. दारोगाइन को उस पर तरस आ गया. दारोगाजी ने कागज देखे, 2-3 अर्जियां लिखीं. वे उस के साथ भी गए.

इस से दफ्तर के बाबुओं की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई थी. रामदीन की फाइलें दौड़ने लगी थीं.

एक महीने में ही रामदीन के नाम के 3 चैक बने. एक 50,000 का, दूसरा 20,000 का और तीसरा 30,000 का. ये तीनों चैक खेत, मकान और बगीचे के एवज में थे.

पहला चैक मिलते ही रामदीन के दिन फिर गए. दारोगाजी उस के लिए भले इनसान साबित हुए थे. वह उन्हें दुआएं देता रहा और मुफ्त में दूध भी.

बाकी चैक पाने के लिए दफ्तर के चक्कर काटना रामदीन का अब रोजाना का काम बन गया था. बहुत से बाबू व अफसर उसे अच्छी तरह पहचान गए थे. वह उन्हें पान, सिगरेट, गुटका भी देता या कभी चाय भी पिलाता.

बाबू रामदीन को खबर देते. उसे बताया गया था कि पहले 8 रुपए वर्गफुट के हिसाब से मिलने वाले थे, अब शायद 10 रुपए वर्गफुट के हिसाब से मिलेंगे.

एक दिन दफ्तर में रामदीन को उस का पड़ोसी राम खिलावन मिल गया. बातचीत से उसे पता चला कि शायद कोर्ट जमीन के भाव बढ़ा कर 10 या 13 रुपए वर्गफुट कर दे.

राम खिलावन ने बताया, ‘‘जानते हो रामदीन, सरकार हम से 10 रुपए वर्गफुट के हिसाब से जमीन खरीद कर सौ या 150 रुपए तक के भाव में बेच रही है.’’

दूसरी किस्त का चैक कुछ ही दिनों में मिलने वाला था. आखिरी चैक तो कोर्ट के फैसले के बाद ही मिलेगा.

रामदीन दुखी हो कर सोचने लगा, ‘सरकार 10 रुपए दे कर सौ रुपए में बेच रही है. एक फुट पर 90 रुपए का फायदा. महाजन को भी मात दे दी. क्या यही है जनता का राज?’

दारोगा साहब का तबादला हो गया था, लेकिन वह उसे एक समाजसेवक से मिलवा गए थे.

अब बाबुओं के तेवर बदल गए, ‘तुम उस के बूते पर बहुत कूदते थे, अब लेना ठेंगा.’

कुछ तो कहते, ‘इतनी सी बात भी तुम्हारी सम?ा में नहीं आती कि हम सरकारी मुलाजिम हैं. हमारे पास कलम है, ताकत?है.’

उस समाजसेवक की कोशिशों के बावजूद दूसरी किस्त लेने के लिए 5,000 रुपए बाबुओं की जेबों में डालने पड़े और इतना ही समाजसेवक साहब को भी खर्चापानी देना पड़ा.

रामदीन दौड़ता रहा. कभी दफ्तर में तो कभी कोर्टकचहरी में. उस ने मकान बनवा लिया था. अब उस के पास 10 भैंसें, 4 गाएं, 2 बैल और 2 बीघा जमीन भी थी.

जिंदगी में नई सुबह आई थी. लेकिन सब से ज्यादा फर्क रामदीन की सोच में आया था. वह जान गया था कि अनपढ़ होना मुसीबत की जड़ है.

रामदीन के 4 में से 3 बच्चे स्कूल में पढ़ते थे. पहला छठी में, दूसरा तीसरी में, तीसरी बिटिया पहले दर्जे में. चौथा बेटा 3 साल का था. वह अगले साल उस का दाखिला कराएगा. वह खुद भी अपने बच्चों से पढ़ता था.

कोर्ट का फैसला जल्दी ही आ गया. अदालत ने 13 रुपए वर्गफुट का भाव लगाया था. साथ ही, एक अधबना मकान लोगों से आधा पैसा ले कर देना था. 10 साल के इंतजार के बाद उस के और दूसरे गांव वालों के चेहरों पर मुसकान दिखी थी.

कोर्ट में अर्जी लगाने वाली संस्था के वकीलों के हाथों में चैक थे और चेहरों पर गहरी मुसकान. कुल 15 फीसदी देना होगा. 6 फीसदी वकीलों को, 5 फीसदी बाबुओं व अफसरों को और 4 फीसदी गैरसरकारी संस्था को.

सभी भोलेभाले लोग हैरान रह गए थे. सरपंच, नेता, पार्टी, पंडा, वकील, सरकारी दफ्तर क्या ये सभी दलाल हैं, मुरदों के भी कफन खसोटने वाले?

फर्क सिर्फ इतना है कि पंडे धर्म के नाम पर पूजा कराने, वकील कचहरी में फैसला कराने, नेता, समाजसेवक लोगों का भला कराने, बाबू दफ्तरों के काम कराने के पैसे लेते हैं.

दलाली के भी अलगअलग नाम हैं. जैसे चढ़ावा, दक्षिणा, फीस, चंदा और चायपानी. सभी का एक ही मकसद है, लोगों की जेब खाली कराना.

लोगों में बातचीत हो रही थी. जलसे हुए. बाद में कुल 10 फीसदी पर आम राय हो गई.

10 साल बीत चुके थे, पर मुआवजे की किस्तें अभी भी अधूरी थीं. चींटियों की चाल चल रही थी सारी सरकारी कार्यवाही. जब तक सांस है, आस भी है. कभी न कभी मुआवजा तो मिलेगा ही.

मेघनाद : मेघनाद और श्वेता का प्रेम संसार

‘मेघनाद…’ हमारे प्रोफैसर क्लासरूम में हाजिरी लेते हुए जैसे ही यह नाम पुकारते, ‘खीखी’ की दबीदबी आवाजें आने लगतीं. एक तो नाम भी मेघनाद, ऊपर से जनाब 6 फुट के लंबे कद के साथसाथ अच्छेखासे सांवले रंग के मालिक भी थे. उस पर घनीघनी मूंछें. कुलमिला कर मेघनाद को देख कर हम शहर वाले उसे किसी फिल्मी विलेन से कम नहीं सम झते थे.

पास ही के गांव से आने वाला मेघनाद पढ़ाई में अव्वल तो नहीं था लेकिन औसत दर्जे के छात्रों से तो अच्छा ही था.

आमतौर पर क्लास में पीछे की तरफ बैठने वाला मेघनाद इत्तिफाक से एक दिन मेरे बराबर में ही बैठा था. जैसे ही प्रोफैसर ने उस का नाम पुकारा कि ‘खीखी’ की आवाजें आने लगीं.

मेरे लिए अपनी हंसी दबाना बड़ा ही मुश्किल हो रहा था. मु झे लगा कि मेघनाद को बुरा लग सकता है, लेकिन मैं ने देखा कि वह खुद भी मंदमंद मुसकरा रहा था.

कुछ दिनों से मैं नोट कर रहा था कि मेघनाद चुपकेचुपके श्वेता की तरफ देखता रहता था. कालेज में लड़कियों की तरफ खिंचना कोई नई बात नहीं थी लेकिन श्वेता अपने नाम की ही तरह खूब गोरी और बेहद खूबसूरत थी. क्लास के कई लड़के उस पर फिदा थे लेकिन श्वेता किसी को भी घास नहीं डालती थी.

मैं ने यह बात खूब मजे लेले कर अपने दोस्तों को बताई.

एक दिन जब प्रोफैसर महेश ने मेघनाद का नाम पुकारा तो कोई जवाब नहीं आया. उन्होंने फिर से नाम पुकारा लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं आया.

मेघनाद कभी गैरहाजिर नहीं होता था इसलिए प्रोफैसर महेश ने सिर उठा कर फिर से उस का नाम लिया. अब तक क्लास की ‘खीखी’ अच्छीखासी हंसी में बदल गई थी.

इतने में श्वेता ने मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘सर, वह शायद लक्ष्मणजी के साथ कहीं युद्ध कर रहा होगा.’’

यह सुन कर सभी हंसने लगे. यहां तक कि प्रोफैसर महेश भी अपनी हंसी न रोक पाए.

तभी सब की नजर दरवाजे पर पड़ी जहां मेघनाद खड़ा था. आज उस की ट्रेन लेट हो गई थी तो वह भी थोड़ा लेट हो गया था. उस ने श्वेता की बात सुन ली थी और उस का चेहरा उतर गया था.

मुझे मेघनाद का उदास सा चेहरा देख कर अच्छा नहीं लगा. शायद उस को लोगों की हंसी से ज्यादा श्वेता की बात बुरी लगी थी.

बीएससी पूरी कर के मैं दिल्ली आ गया और फिर अगले 10 सालों में एक बड़ी मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर बन गया.

कालेज के मेरे कुछ दोस्त सरकारी टीचर बन गए तो कुछ अपना कारोबार करने लगे.

कालेज के कुछ पुराने छात्रों ने 10 साल पूरे होने पर रीयूनियन का प्रोग्राम बनाया. अनुराग, अजहर, विनोद, इकबाल, पारुल वगैरह ने प्रोग्राम के लिए काफी मेहनत की.

प्रोग्राम में अपने पुराने साथियों से मिल कर मु झे बहुत अच्छा लगा.

यों तो प्रोग्राम में अपनी क्लास के करीब आधे ही लोग आ पाए, फिर भी उन सब से मिल कर काफी अच्छा लगा.

मेरे सहपाठी हेमेंद्र और दीप्ति शादी कर के मुंबई में रह रहे थे तो संजय एक बड़ी गारमैंट कंपनी में वाइस प्रैसीडैंट बन गया था. अतीक जरमनी में सीनियर साइंटिस्ट के पद पर था. वह प्रोग्राम में तो नहीं आ पाया लेकिन उस ने हम सब को अपनी शुभकामनाएं जरूर भेजी थीं.

वंदना एक कामयाब डाक्टर बन गई थी. हमारे टीचरों ने भी हम सब को अपनेअपने फील्ड में कामयाब देख कर अपना आशीर्वाद दिया. कुलमिला कर सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा.

हमारे सीनियर मैनेजर मनीष सर 2 साल के लिए अमेरिका जा रहे थे. उन की जगह कोई नए सीनियर मैनेजर हैदराबाद से आ रहे थे. मेरे साथी असिस्टैंट मैनेजर ऋषि, जिन को औफिस में सब ‘पार्टी बाबू’ के नाम से बुलाते थे, ने नए सीनियर मैनेजर के स्वागत में एक छोटी सी पार्टी करने का सु झाव दिया. हम सभी को उन की बात जंच गई और सभी लोग पार्टी की तैयारियों में लग गए.

तय दिन पर नए सीनियर मैनेजर औफिस में पधारे और उन को देखते ही मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही. मेरे सामने मेघनाद खड़ा था. वह भी मु झे देख कर तुरंत पहचान गया और बड़ी गर्मजोशी से आ कर मिला.

मेघनाद बड़ा आकर्षक लग रहा था. सूटबूट में आत्मविश्वास से भरपूर फर्राटेदार अंगरेजी में बात करता एक अलग ही मेघनाद मेरे सामने था. अपने पहले ही भाषण में उस ने सभी औफिस वालों को प्रभावित कर लिया था.

थोड़ी देर बाद चपरासी ने आ कर मुझ से कहा कि सीनियर मैनेजर आप को बुला रहे हैं. मेघनाद ने मेरे और परिवार के बारे में पूछा. फिर वह अपने बारे में बताने लगा कि ग्रेजुएशन करने के बाद वह कुछ साल दिल्ली में रहा, फिर हैदराबाद चला गया. पिछले साल ही उस ने हमारी कंपनी की हैदराबाद ब्रांच जौइन की थी. फिर उस ने मु झे रविवार को सपरिवार अपने घर आने की दावत दी.

रविवार को मैं अपनी श्रीमती के साथ मेघनाद के घर पहुंचा. घर पर मेघनाद के 2 प्यारेप्यारे बच्चे भी थे. लेकिन असली  झटका मु झे उस की पत्नी को देख कर लगा. मेरे सामने श्वेता खड़ी थी. मेरे हैरानी को भांप कर मेघनाद भी हंसने लगा.

‘‘हैरान हो गए क्या…’’ मेघनाद ने हंसते हुए कहा, फिर खुद ही वह अपनी कहानी बताने लगा, ‘‘दिल्ली आने के बाद नौकरी के साथसाथ मैं एमबीए भी कर रहा था. वहां मेरी मुलाकात श्वेता से हुई थी. फिर हमारी दोस्ती हो गई और कुछ समय बाद शादी. वैसे, मुझ में इन्होंने क्या देखा यह आज तक मेरी सम झ में नहीं आया.’’

श्वेता ने भी अपने दिल की बात बताई, ‘‘कालेज में तो मैं इन को सही से जानती भी नहीं थी, पता नहीं कहां पीछे बैठे रहते थे. दिल्ली आकर मैं ने इन के अंदर के इनसान को देखा और समझा. मैं ने अपनी जिंदगी में इन से ज्यादा ईमानदार, मेहनती और प्यार करने वाला इनसान नहीं देखा.’’

मेघनाद और श्वेता के इस प्रेम संसार को देख कर मुझे वाकई बड़ी खुशी हुई. सच ही है कि आदमी की पहचान उस के नाम या रंगरूप से नहीं, बल्कि उस के गुणों से होती है. और हां, अब मुझे मेघनाद नाम सुन कर हंसी नहीं आती, बल्कि फख्र महसूस होता है.

अनपढ़ : कालू डकैत ने फूलबतिया को क्यों उठाया

फूलबतिया को कालू डकैत उठा कर ले गया था. उस की ससुराल वाले कालू का कुछ नहीं बिगाड़ पाए. पर कालू के ऐनकाउंटर के बाद फूलबतिया वहां से भाग गई. फिर वह रमेसरा से मिली और उस की घरवाली के रूप में रहने लगी. आगे क्या हुआ?

‘‘र मेसरा ने फूलबतिया से घर कर लिया है,’’ कंटीर मिसर अपने पड़ोसी देवेन को बता रहे थे.

‘‘अच्छा, मगर रमेसरा तो सीधासादा है,’’ देवेन बोले.

‘‘तभी तो फूलबतिया ने उसे फंसा लिया होगा. कौन नहीं जानता कि फूलबतिया को कालू डकैत उठा ले गया था,’’ कंटीर मिसर बोल रहे थे.

पूरे गांव के लोग परेशान थे. वजह, 2 महीने पहले कालू डकैत और उस के गिरोह के 4 सदस्य पुलिस ऐनकाउंटर में मारे गए थे. पूरा गिरोह ही खत्म हो गया था.

फूलबतिया को वही कालू 4 साल पहले उठा ले गया था. वह उसी की मंगेतर थी. कालू ने जीभर कर उसे भोगा और ऐनकाउंटर के बाद फूलबतिया रमेसरा से घर कर बैठी.

रमेसरा सीधासादा मजदूर था, जो दिल्ली में मजदूरी करता था. साल में एक बार घर आता था. उस के पिताजी सालों पहले गुजर चुके थे. उस ने पिछले साल अपनी मां को भी खो दिया था. वह 35-36 साल का होगा, जबकि फूलबतिया भी 30-32 साल के पास की होगी.

फूलबतिया के बाकी सभी बहनभाइयों की शादी हो चुकी थी. सो, वह आराम से रमेसरा से ब्याह कर बैठी.

काली और दोहरे बदन की अंगूठाछाप फूलबतिया खुद को कालू डकैत से कम नहीं समझती थी. वह तो अच्छा था कि पुलिस को सबक सिखाने वालों की टीम में वह नहीं शामिल थी.

‘चलो, उस पुलिस वाले साहब ने हमारा अड्डा और धंधा चौपट कर दिया है. उसे सबक सिखाना है. उसे बीवीबच्चों के सामने ही निबटा देना है,’ ऐनकाउंटर पर जाने से पहले कालू डकैत अपने साथियों से बोला था.

‘यही ठीक रहेगा. कल शाम को शैतान सिंह के घर धावा बोलना है,’ दूसरे साथी ने कहा था.

‘मैं भी साथ चलूंगी,’ फूलबतिया कालू के सामने ऐंठते हुए बोली थी.

‘तू यहीं रह. उस के लिए हम 4 ही काफी हैं. तू अच्छा सा मुरगाभात बना कर रखना,’ कालू डकैत ने कहा था.

‘अरे हरिया, शैतान सिंह को कल शाम का समय बोल दे. देख लें उस के पुलिस बल में कितनी औकात है?’ कालू दहाड़ा था.

पुलिस आखिर पुलिस होती है. वे चारों फिल्मी अंदाज में वहां गए और शैतान सिंह ने तो नहीं, हां सिर्फ 2 पुलिस वालों ने उन्हें ही निबटा दिया था.

उन चारों का अंतिम संस्कार हो, उस के पहले ही फूलबतिया वहां से भाग गई थी. उसे रमेसरा अच्छा मुरगा लगा था, जिस से आसानी से हलाल किया जा सकता था. इधर फूलबतिया के घर वालों ने उस से नाता ही तोड़ लिया था.

हुआ यह था कि भारी बरसात में फूलबतिया डाकुओं के अड्डे से भाग निकली थी और साड़ी में भीगती भागी जा रही थी. अचानक रेलवे स्टेशन पर जो गाड़ी दिखी, उस में चढ़ गई. उसी गाड़ी से रमेसरा भी अपने गांव से जा रहा था.

‘अरे, आप तो भीग गई हैं. आइए, बैठ जाइए,’ रमेसरा ने एक तरफ फूलबतिया को अपने पास सरकते हुए उसे बिठाया था.

‘यह गाड़ी कहां जा रही है?’ फूलबतिया धीरे से पूछ बैठी थी.

‘दिल्ली… आप को कहां जाना है?’ रमेसरा ने इनसानियत के नाते पूछा था.

‘मेरा कोई ठिकाना नहीं है. आप कहां से आ रहे हैं?’

‘बिहार से,’ रमेसरा बोला.

‘कहीं आप सतीश के लड़के रामेश्वर यानी रमेसरा तो नहीं है?’ फूलबतिया उसे पहचानते हुए बोली थी.

‘बिलकुल ठीक पहचाना. मैं वही रमेसरा हूं. दिल्ली में काम करता हूं. मगर आप…?’ रमेसरा ने हैरानी से पूछा था.

‘मैं फूलबतिया हूं, पास वाले गांव के सुगना की बेटी,’ वह जवाब देते हुए बोली थी.

‘अच्छा…’ कह कर रमेसरा सोचने लगा था, मगर जब कुछ याद नहीं आया, तो वह शांत बैठ गया था. अचानक उस का ध्यान फूलबतिया के कपड़ों पर गया. भीगी चोली में बड़े व लटके दोनों उभार अजीब दिख रहे थे.

‘आप को कहां जाना है?’ रमेसरा ने पूछा था.

इस पर फूलबतिया रोने लगी थी. अपनी पहचान का समझ कर वह उस के साथ दिल्ली पहुंच गई थी. फिर तो 15 दिनों के अंदर ही उस ने रमेसरा का घर संभाल लिया था.

दिल्ली में फूलबतिया सरल भाव से रह रही थी, जबकि सब उसे रमेसरा की पत्नी बता रहे थे. वह भी पत्नी जैसा ही बरताव कर रही थी.

‘आप मेरे से शादी कर लो,’ एक दिन फूलबतिया रमेसरा से सीधे बोली थी.

‘देख रही हो, लोग आप को मेरी लुगाई समझ रहे हैं. आप को बुरा नहीं लगता?’ रमेसरा ने हैरान होते हुए पूछा था.

‘कैसा बुरा? मुझे कुछ भी खराब नहीं लगता. आप मुझ लाचार और बेबस औरत को अपने घर में रखे हैं, मेरा पूरा ध्यान रखते हैं,’ फूलबतिया मुसकराते हुए बोली थी.

‘मगर, आप का पति और परिवार वाले…’ रमेसरा ने पूछा था.

‘कोई नहीं है. मेरा परिवार मुझे कालू डकैत को सौंप कर अलग हो चुका है. कालू और उस की टीम मारी जा चुकी है.’

‘तुम तो डकैत रह चुकी हो. किसी बात पर नाराज हुई तो मेरा भी खात्मा कर डालोगी. कोई भरोसा नहीं है तुम्हारा,’ रमेसरा डरते हुए बोला था.

‘अरे नहीं, मैं एक औरत हूं. पत्नी के रूप में घर चलाती हूं. फिर डकैत की जिंदगी बेकार की है. पुलिस की गोली से या आपस में ही खत्म हो जाती है,’ फूलबतिया समझाते हुए बोली थी.

‘फिर तुम कैसे वहां पहुंच गई?’ रमेसरा ने पूछा था.

‘आज से 6 साल पहले मेरी शादी मोहित मंडल से करवाई गई थी. शादी के बाद एक साल तो ठीक बीता, पर फिर कालू डकैत मुझे उठा ले गया. ससुराल और पीहर वालों में से किसी ने भी मेरी हिफाजत नहीं की.

‘मेरा पति भी कुछ नहीं कर सका और बाद में एक सड़क हादसे में चल बसा. तब से मैं कालू के साथ ही थी. वह गिद्ध की तरह मुझे नोचताखसोटता था. अभी कुछ दिन पहले उस के सारे लोग मारे गए.’

‘तुम तो मोस्ट वांटेड होगी?’ रमेसरा पूछ बैठा था.

‘नहीं, मैं अलग थी. कालू के किसी कारोबार या डकैती से मेरा कुछ भी लेनादेना नहीं था. पुलिस कभी भी मेरे पास नहीं आई, न ही मुझ से कोई मतलब है,’ फूलबतिया रोते हुए बोली थी.

‘मुझ से क्या चाहती हो? मैं तुम्हारे किस काम आ सकता हूं,’ रमेसरा ने पूछा था.

‘तुम मुझ से शादी कर लो. शादी क्या चादर डाल दो,’ फूलबतिया थोड़ा शरमाते हुए बोली थी.

‘‘ठीक है, मेरा तो कोई है नहीं. तुम्हारे घर वालों को तो कोई एतराज नहीं होगा न?’ रमेसरा बोला था.

‘कौन घर वाले? जो डकैत के हवाले कर गए या जो मुझे कभी झांकने नहीं आए? तुम ईमानदार हो, मुझे कभी हाथ नहीं लगाया. गलत नजर से नहीं देखा. तुम एक अबला समझ कर मुझे अपने पास रखे हो और इतना मान दे रहे हो.’

अब रमेसरा शांत भाव से फूलबतिया को देखने लगा था. वह एक घरेलू अनपढ़ लग रही थी. इस तरह वह अपनी वीरान जिंदगी में एक मौका समझ बैठा था.

फिर एक रात तकरीबन 8 बजे रमेसरा काम से घर वापस आया. घर में आते ही फूलबतिया पर नजर पड़ी. वह खाना बना रही थी. उस ने हाथपैर धोए और खाना खाया. वह भी खाने लगी. खा कर जब दोनों लेटे तो वह न जाने क्यों उसे छूने लगा.

फूलबतिया हंसते हुए उस से सट गई और पूरा सुख दिया. रमेसरा को खूब मजा आ रहा था. वह भी पूरा साथ दे रही थी. पहली बार दोनों जीभर कर खेल रहे थे.

‘आओ, आप आराम से अपनी इच्छा शांत करो,’ फूलबतिया ने कहा था.

‘नहीं, यह पाप था,’ रमेसरा शांत होने पर पछताते हुए बोला था.

‘कोई पाप नहीं था. यह मजा है. फिर मैं तेरी जोरू हूं. सब पत्नी से सब सोते हैं, फिर पाप कैसा?’ वह बोली थी.

रमेसरा उस के बाद काम में खो गया. सुबह से शाम तक का काम और फिर अपने घर पर पत्नी तो अद्भुत थी ही. जब भी इच्छा होती जैसी भी इच्छा होती, वह अपनी इच्छा शांत करता. पत्नी हमेशा साथ देती थी.

डकैत भी प्यार के भूखे होते हैं. फूलबतिया एक पत्नी की तरह घर संभाल रही थी, समय पर भोजन, पानी, सबकुछ संभाल रखा था.

हद तो तब हो गई, जब फूलबतिया ने 70,000 रुपए का आटोरिकशा खरीद कर रमेसरा को चलाने के लिए दे दिया.

‘रोज 500 रुपए घरखर्च के और बाकी बैंक की किस्त,’ रमेसरा फूलबतिया के हाथ में पैसे देते हुए बोला था.

‘काहे की किस्त? मैं ने अपनी जमा रकम से आटोरिकशा लिया है. तुम घरखर्च के जो पैसे देते थे, उसी में से बचा कर पूरे एक लाख में से 70,000 रुपए की खरीदी है. बाकी कभी परेशानी, बीमारी या आफत के लिए.’

अब रमेसरा फूलबतिया को पूरी तरह से बांहों में भर कर चूमने लगा.

‘कौन कहता है कि तुम ऐसीवैसी हो. तुम तो किसी भी पत्नी से अच्छी हो.’

‘दिनरात काम करने की जरूरत नहीं है. आराम से जितना काम हो उतना करना. मुसीबत के लिए पैसे जोड़ रखे हैं. जल्दी ही यह झुग्गी भी अपनी होगी.’

‘क्या?’ रमेसरा ने हैरान हो कर कहा.

‘अरे, 70,000 रुपए इस के दे दिए हैं. 2 लाख की झुग्गी है. सालभर में अपनी हो जाएगी,’ फूलबतिया खुशी से झूम कर बोली.

रमेसरा निश्चिंत भाव से फूलबतिया को देख रहा था.

मन की थाह : राधेश्याम की अनोखी गाथा

रामलाल बहुत हंसोड़ किस्म का शख्स था. वह अपने साथियों को चुटकुले वगैरह सुनाता रहता था.

वह अकसर कहा करता था, ‘‘एक बार मैं कुत्ते के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गया. वहां आदमियों का वजन तोलने के लिए बड़ी मशीन रखी थी. मैं ने एक रुपया दे कर उस पर अपने कुत्ते को खड़ा कर दिया. मशीन में से एक कार्ड निकला जिस पर वजन लिखा था 35 किलो और साथ में एक वाक्य भी लिखा था कि आप महान कवि बनेंगे.’’

यह सुनते ही सारे दोस्त हंसने लगते थे.

रामलाल जितना मजाकिया था, उतना ही दिलफेंक भी था. उम्र निकले जा रही थी पर शादी की फिक्र नहीं थी. शादी न होने की एक वजह घर में बैठी बड़ी विधवा बहन भी थी. गणित में पीएचडी करने के बाद वह इलाहाबाद के डिगरी कालेज में प्रोफैसर हो गया और वहीं बस गया. उस के एक दोस्त राधेश्याम ने दिल्ली में नौकरी कर घर बसा लिया.

एक बार राधेश्याम को उस से मिलने का मन हुआ. काफी समय हो गया था मिले हुए, इसलिए उस ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘मैं 3-4 दिनों के लिए इलाहाबाद जा रहा हूं. रामलाल से भी मिलना हो जाएगा. काफी सालों से उस की कोई खबर भी नहीं ली है. आज ही फोन कर के उसे अपने आने की सूचना देता हूं.’’

राधेश्याम ने रामलाल को अपने आने की सूचना दे दी. इलाहाबाद के रेलवे स्टेशन पर पहुंचते ही राधेश्याम ने रामलाल को खोजना शुरू कर दिया. पर जो आदमी एकदम उस के गले आ कर लिपट गया वह रामलाल ही होगा, ऐसा उस ने कभी सोचा भी नहीं था क्योंकि रामलाल कपड़ों के मामले में जरा लापरवाह था. पर आज जिस आदमी ने उसे गले लगाया वह सूटबूट पहने एकदम जैंटलमैन लग रहा था.

राधेश्याम के गले लगते ही रामलाल बोला, ‘‘बड़े अच्छे मौके पर आए हो दोस्त. मैं एक मुसीबत में फंस गया हूं.’’

‘‘कैसी मुसीबत? मुझे तो तुम अच्छेखासे लग रहे हो,’’ राधेश्याम ने रामलाल से कहा. इस पर रामलाल बोला, ‘‘तुम्हें पता नहीं है… मैं ने शादी कर ली है.’’

इस बात को सुनते ही राधेश्याम चौंका और बोला, ‘‘अरे, तभी कहूं कि 58 साल का बुड्ढा आज चमक कैसे रहा है? यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह तो बता इतने सालों बाद तुझे शादी की क्या सूझ? अब पत्नी की जरूरत कैसे पड़ गई? हमें खबर भी नहीं की…’’

इस पर रामलाल फीकी सी मुसकराहट के साथ बोला, ‘‘बस यार, उम्र के इस पड़ाव पर जा कर शादी की जरूरत महसूस होने लगी थी. पर बात तो सुन पहले. मैं ने जिस लड़की से शादी की है, वह मेरे कालेज में ही मनोविज्ञान में एमए कर रही है.’’

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है,’’ राधेश्याम ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छीवच्छी कुछ नहीं. उस ने आते ही मेरे ड्राइंगरूम का सामान निकाल कर फेंक दिया और उस में अपनी लैबोरेटरी बना डाली, ‘‘बुझ हुई आवाज में रामलाल ने कहा.

‘‘तब तो तुम्हें बड़ा मजा आया होगा,’’ राधेश्याम ने चुटकी ली.

‘‘हांहां, शुरूशुरू में तो मुझे बड़ा अजीब सा लगा, पर आजकल तो बहुत बड़ी मुसीबत आई हुई है,’’ दुखी  आवाज में रामलाल बोला.

‘‘आखिर कुछ बताओगे भी कि हुआ क्या है या यों ही भूमिका बनाते रहोगे?’’ राधेश्याम ने खीजते हुए कहा.

‘‘सब से पहले उस ने मेरी बहन के मन की थाह ली और अब मेरी भी…’’

राधेश्याम ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाई रामलाल, तुम ने बहुत बढि़या बात सुनाई. तुम्हारे मन की थाह भी ले डाली.’’

‘‘हां यार, और कल उस ने रिपोर्ट भी दे दी.’’

‘‘रिपोर्ट? हाहाहाहा, तुम भी खूब आदमी हो. जरा यह तो बताओ कि उस ने यह सब किया कैसे था?’’

‘‘उस ने मुझे एक पलंग पर लिटा दिया. मेरी बांहों में किसी दवा का एक इंजैक्शन लगाया और बोली कि मैं जो शब्द कहूं, उस से फौरन कोई न कोई वाक्य बना देना. जल्दी बनाना और उस में वह शब्द जरूर होना चाहिए.’’

‘‘सब से पहले उस ने क्या शब्द कहा?’’ राधेश्याम ने पूछा.

रामलाल ने कहा, ‘‘दही.’’

राधेश्याम ने पूछा, ‘‘तुम ने क्या वाक्य बनाया?’’

रामलाल बोला, ‘‘क्योंजी, मध्य प्रदेश में दही तो क्या मिलता होगा?’’

राधेश्याम ने पूछा, ‘‘फिर?’’

रामलाल बोला, ‘‘फिर वह बोली, ‘बरतन.’

‘‘मैं ने कहा कि मुरादाबाद में पीतल के बरतन बनते हैं.

‘‘बस ऐसे ही बहुत से शब्द कहे थे. देखो जरा रिपोर्ट तो देखो,’’ यह कह कर उस ने अपनी जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाला.

यह एक लैटरपैड था, जो इस तरह लिखा हुआ था, सुमित्रा गोयनका, एमए साइकोलौजी.

मरीज का नाम, रामलाल गोयनका.

बाप का नाम, हरिलाल गोयनका.

पेशा, अध्यापन.

उम्र, 58 साल.

ब्योरा, हीन भावना से पीडि़त. आत्मविश्वास की कमी. अपने विचारों पर दृढ़ न रहने के चलते निराशावादी बूढ़ा.

‘‘अबे, किस ने कहा था बुढ़ापे में शादी करने के लिए और वह भी अपने से 10-15 साल छोटी उम्र की लड़की से? जवानी में तो तू वैसे ही मजे लेता रहा है. तेरा ब्याह क्या हुआ, तेरे घर में तो एक अच्छाखासा तमाशा आ गया. तुझे तो इस में मजा आना चाहिए, बेकार में ही शोर मचा रहा है.’’

‘‘तू नहीं समझेगा. वह मेरी बहन को घर से निकालने पर उतारू हो गई है. दोनों में रोज लड़ाई होती है. अब मेरी बड़ी विधवा बहन इस उम्र में कहां जाएंगी?

‘‘अगर मैं उन्हें घर से जाने को कहता हूं, तो समाज कह देगा कि पत्नी के आते ही, जिस ने पाला, उसे निकाल दिया. मेरी जिंदगी नरक हो गई है.’’

इतनी बातें स्टेशन पर खड़ेखड़े ही हो गईं. फिर सामान को कार में रख कर रामलाल राधेश्याम को एक होटल में ले गया. वहां एक कमरा बुक कराया. उस कमरे में दोनों ने बैठ कर चायनाश्ता किया.

तब रामलाल ने उसे बताया, ‘‘इस समय घर में रहने में तुम्हें बहुत दिक्कत होगी. कहीं ऐसा न हो, वह तुम्हारे भी मन की थाह ले ले, इसलिए तुम्हारा होटल में ठहरना ही सही है.’’

इस पर राधेश्याम ने हंसते हुए कहा, ‘‘मुझे तो कोई एतराज नहीं है. मुझे तो और मजा ही आएगा. यह तो बता कि वह दिखने में कैसी लगती है?’’

रामलाल ठंडी आह लेते हुए बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत हैं. बिलकुल कालेज की लड़कियों जैसी. तभी तो उस पर दिल आ गया.’’

राधेश्याम ने उस को छेड़ने की नीयत से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात तो बता, जब तुम ने उस का चुंबन लिया होगा तो उस के चेहरे पर कैसे भाव थे?’’

‘‘वह इस तरह मुसकराई थी, जैसे उस ने मेरे ऊपर दया की हो. उस ने

कहा था कि आप में अभी बच्चों जैसी सस्ती भावुकता है,’’ रामलाल झोंपता हुआ बोला.

चाय पीने के बाद राधेश्याम ने जल्दी से कपड़े बदल कर होटल के कमरे का ताला लगाया और रामलाल के साथ उस के घर की ओर चल दिया.

राधेश्याम मन ही मन उस मनोवैज्ञानिक से मिलने के लिए बहुत बेचैन था. होटल से घर बहुत दूर नहीं था. जैसे ही घर पहुंचे, घर का दरवाजा खुला हुआ था, इसलिए घर के अंदर से जोर से बोलने की आवाजें बाहर साफ सुनाई दे रही थीं. वे दोनों वहीं ठिठक गए.

रामलाल की बहन चीखचीख कर कह रही थीं, ‘‘मैं आज तुझे घर से निकाल कर छोड़ूंगी. तू ने इस घर का क्या हाल बना रखा है? तू मुझे समझाती क्या है?’’

रामलाल की नईनवेली बीवी कह रही थी, ‘‘तुम तो न्यूरोटिक हो, न्यूरोटिक.’’

इस पर रामलाल की बहन बोलीं, ‘‘मेरे मन की थाह लेगी. इस घर से चली जा, मेरे ठाकुरजी की बेइज्जती मत कर… समझ?’’

तब रामलाल की पत्नी की आवाज आई, ‘‘तुम्हें तो रिलीजियस फोबिया हो गया है.’’

इस पर बहन बोलीं, ‘‘सारा महल्ला मुझ से घबराता है. तू कल की छोकरी… चल, निकल मेरे घर से.’’

तब रामलाल की पत्नी की आवाज आई, ‘‘तुम में भी बहुत ज्यादा हीन भावना है.’’

रामलाल बेचारा चुपचाप सिर झकाए खड़ा हुआ था. तब राधेश्याम ने उस के कान में कहा, ‘‘तुम फौरन जा कर अपनी पत्नी को मेरा परिचय एक महान मनोवैज्ञानिक के रूप में देना, फिर देखना सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’

रामलाल ने राधेश्याम को अपने ड्राइंगरूम में बिठाया और पत्नी को बुलाने चला गया. उस के जाते ही राधेश्याम ने खुद को आईने में देखा कि क्या वह मनोवैज्ञानिक सा लग भी रहा है या नहीं? उसे लगा कि वह रोब झाड़ सकता है.

थोड़ी देर बाद रामलाल अपनी पत्नी के साथ आया. वह गुलाबी रंग की साड़ी बांधे हुई थी. चेहरे पर गंभीर झलक थी. बाल जूड़े से बंधे हुए थे और पैरों में कम हील की चप्पल पहने हुए थी. उस ने बहुत ही आहिस्ता से राधेश्याम से नमस्ते की.

नमस्ते के जवाब में राधेश्याम ने केवल सिर हिला दिया और बैठने का संकेत किया.

तब रामलाल ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आप मेरे गुरुपुत्र हैं. कल ही विदेश से लौटे हैं. मनोवैज्ञानिक जगत में आप बड़े मशहूर हैं. विदेशों में भी.

इस पर राधेश्याम बोला, ‘‘रामलाल ने मुझे बताया कि आप साइकोलौजी में बड़ी अच्छी हैं, इसीलिए मैं आप से मिलने चला आया. कुछ सुझाव भी दूंगा. मैं आदमी को देख कर पढ़ लेता हूं, किताब के जैसे. मैं बता सकता हूं कि इस समय आप क्या सोच रही हैं?’’

रामलाल की पत्नी तपाक से बोली, ‘‘क्या…?’’

राधेश्याम ने कहा, ‘‘आप इस समय आप हीन भावना से पीडि़त हैं.’’

रामलाल की पत्नी घबरा गई और बोली, ‘‘आप मुझे अपनी शिष्या बना लीजिए.’’

इस पर राधेश्याम बोला, ‘‘अभी नहीं. अभी मेरी स्टडी चल रही है. अब से कुछ साल बाद मैं अपनी लैबोरेटरी खोलूंगा.’’

‘‘मैं ने तो अपनी लैबोरेटरी अभी से खोल ली है,’’ रामलाल की पत्नी झट से बोली.

‘‘गलती की है. अब से 10 साल बाद खोलना. मैं तुम्हें कुछ किताबें भेजूंगा, उन्हें पढ़ना. अपनी लैबोरेटरी को अभी बंद करो. मुझे मालूम हुआ है कि आप अपनी ननद से भी लड़ती हैं. उन से माफी मांगिए.’’

रामलाल की पत्नी वहां से उठ कर चली गई. रामलाल राधेश्याम से लिपट गया और वे दोनों कुछ इस तरह खिलखिला कर हंसने लगे कि ज्यादा आवाज न हो.

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