तूफान: कुसुम ने क्यों अपनी इज्जत दांव पर लगा दी?- भाग 1

पर जल्दी ही एक और रहस्य खुला जिस ने ‘तूफान’ ला दिया. एक तूफान था जो जिंदगी में अचानक ही चला आया था. मन में कैसी बेचैनी, छटपटाहट और हैरानी थी. क्या करें कुसुमजी? ऐसा तो कभी नहीं हुआ, कभी नहीं सुना. संसार में आदमी की इज्जत ही तो हर चीज से बढ़ कर होती है. वह कैसे अपनी इज्जत जाने दे? कुसुमजी हैरान और दुखी हैं. इस के अलावा ऐसे में कोई कर भी क्या सकता है? बात शुरू से बताती हूं.

दरअसल, कुसुमजी एक संपन्न और सुखी घराने की बहू हैं. घर में सासससुर हैं. पति हैं. 3 प्यारेप्यारे बच्चे हैं. उन के घर में न रुपएपैसे का अभाव है न सुखशांति का. दूसरे घरों में आएदिन झगड़ेफसाद होते रहते हैं मगर कुसुमजी की छोटी सी गृहस्थी इस सब से बची हुई है. कुसुमजी के पति क्रोधी नहीं हैं. सास भी झगड़ालू नहीं हैं. सब प्रेमभाव से रहते हैं. घर में कोई मेहमान आ जाए तो भारी नहीं पड़ता. दो वक्त का भोजन उसे भी कराया जा सकता है. कोई नातेरिश्तेदार हो तो चलते समय छोटामोटा उपहार यानी कोई अच्छा कपड़ा या 11-21 रुपए देने में भी घर का बजट नहीं गड़बड़ होता. अतिथि बोझ न हो, सिर पर कर्ज न हो, घर में सुखशांति हो, इस से ज्यादा और क्या चाहिए? कुसुमजी छमछम करती अपने आंगन में घूमतीफिरती हैं और रसोई, दालान, बैठक आदि सब जगह की व्यवस्था स्वयं देखती रहती हैं. रसोई के लिए महाराजिन है और बरतन साफ करने के लिए महरी. बाजार का काम देखने को घर में कई नौकरचाकर भी हैं. सास सुशील, सुंदर बहू पा कर घर की जिम्मेदारी उसे सौंप चुकी हैं और आराम से जिंदगी के बाकी दिन गुजार रही हैं. ऐसे में क्या तूफान खड़ा हो सकता है?

क्या पति इधरउधर ताकझांक करता है? अजी नहीं, वह तो रहट का बैल है. बेचारा कंधे पर गृहस्थी का जुआ ले कर उसी धुरी के इर्दगिर्द घूमता रहता है. उस गरीब को तो घर की दालरोटी के अलावा कभी बाजार की चाटपकौड़ी की चाहत तक नहीं हुई. हुआ यह कि कुसुमजी के घर मेहमान आए. वह अकसर आते ही रहते हैं. यह कोई नई बात नहीं है. वह ठाट से 2-3 दिन रहे. जिस काम से आए थे वह निबटाया और फिर शहर भी घूम आए. उस दिन वह सुबहसवेरे चलने को तैयार हुए. अटैची बंद की. बिस्तर बांधने लगे, आधा बिस्तर बिस्तरबंद में जमा चुके तो मालूम पड़ा कि उन का कंबल नहीं है. उन्होंने फिर से देखाजांचा. वह मेहमानों के जिस कमरे में टिके हुए थे उस में उन के अलावा और कोई नहीं ठहरा था. अपनी चारपाई देखी. नीचे झांक कर देखा कि शायद चारपाई के नीचे गिर गया हो, लेकिन कंबल वहां भी नहीं था. वह अपने सब कपड़े सहेज कर पहले ही अटैची में बंद कर चुके थे. कोई और जगह ऐसी नहीं थी जहां कंबल के पड़े होने की संभावना होती. मेहमान को घर के मालिक से कहने में संकोच हो आया.

क्या एक तुच्छ कंबल की बात इतने बड़े और इज्जत वाले आदमी से कहना उचित होगा? वैसे कंबल पुराना नहीं था. यात्रा के लिए ही खरीदा गया था. रुपए भी पूरे 300 खर्च हो गए थे. ऐसे में उस नए कंबल को संकोच के मारे छोड़ जाने के लिए भी दिल नहीं मानता था. मेहमान ने झिझकते हुए कुसुमजी के बच्चे शरद से पूछ लिया, ‘‘बेटा, यहां हमारा कंबल पड़ा था. अब मिल नहीं रहा है.’’ शरद ने इधरउधर नजर दौड़ाई. कंबल कहीं न पाया तो जा कर मां से कहा. उस वक्त कुसुमजी रसोई में महाराजिन को निर्देश दे रही थीं. शरद की बात सुन कर तुरंत मेहमान के पास दौड़ी आईं. उन्होंने देखा कंबल नहीं था. घर का कोई भी सदस्य मेहमान के कमरे में नहीं आता था. इसलिए किसी का वहां आ कर मेहमान का कंबल ले जाना समझ में नहीं आ रहा था. कुसुमजी ने यों ही दिल की तसल्ली के लिए घर के बिस्तर उलटपुलट डाले. हालांकि उन्हें यकीन तो पहले से ही था कि घर का कोई भी सदस्य कंबल नहीं उठा सकता, पर मेहमान और अपनी तसल्ली के लिए उसे ढूंढ़ना तो था ही. कुसुमजी मन ही मन बड़ी झेंप महसूस कर रही थीं.

मेहमान के सामने हेठी हो गई. क्या सोचेगा भला आदमी? कैसे लोग हैं? बिस्तर में से कंबल ही गायब कर दिया. कौन कर सकता है ऐसा गलत काम? सासससुर को ऐसी बातों से कोई मतलब नहीं. वह तो लाखों का व्यापार और घरबार सब बेटेबहू को सौंपे हुए बैठे हैं. भला वह कैसे मेहमान का एक कंबल ले लेंगे? ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता. और बच्चे? वे स्वयं अपना तो कोई काम करते नहीं, फिर मेहमान के कमरे में जा कर उस का बिस्तर क्यों ठीक करेंगे? और फिर जहां तक कंबल का सवाल है वे उस का क्या करेंगे? उन्हें किसी चीज की कमी है जो वे चोरी करेंगे? रही किसी के मजाक करने की बात तो उन के बड़ों से मजाक करने का सवाल ही नहीं उठता. कुसुमजी दिल ही दिल में सवाल करती रहीं. सारी संभावनाओं पर विचार करती रहीं पर उस से कुछ हासिल न हुआ. कंबल तो न मिलना था न मिला.

लिली: उस लड़की पर अमित क्यो प्रभावित था ?-भाग 1

लिली की बिंदास पहल ने अमित को मुश्किल में डाल दिया. एक दिन वह हंस कर बोली, ‘‘क्या तुम मुझसे दोस्ती करना पसंद करोगे?’’

उस रोज अमित  झेंप गया. उसे कोई जवाब नहीं सू झा. बस, मुसकरा दिया.

रातभर वह लिली के ही बारे में सोच रहा था. कल जब उस से मुलाकात होगी, तो वह क्या जवाब देगा? क्या उस के प्रस्ताव को ठुकरा देगा?

लिली पहली लड़की थी, जिस ने उसे प्रपोज किया. एक अदने से शहर  से जब वह मुंबई नौकरी करने  आया था, तब सिवा नौकरी के उसे

कुछ नहीं पता था. न ही यहां की लड़कियों के तौरतरीके, न ही इस शहर का मिजाज.

लिली अमित को एक रैस्टोरैंट में मिली थी, जहां वह अकसर खाना खाने जाता था. यहीं से दोनों में जानपहचान शुरू हुई.

लिली ने उसे अपना ह्वाट्सएप का नंबर दिया और कहा, ‘‘अगर हां हो, तो जरूर संदेश देना.’’

लिली खूबसूरत थी. छोटे शहर की लड़कियों से अलग उस का रूपरंग बहुत अच्छा. वह फैशनेबल थी.

अमित के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था. सोचविचार कर उस ने फैसला लिया कि वह लिली की पहल को नहीं ठुकराएगा.

अगले दिन जब अमित रैस्टोरैंट गया, तो सब से पहले उस की नजर लिली की चेयर पर गई. यही समय होता था लिली के आने का.

अमित ने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, मगर वह नहीं दिखी. वह बेचैन हो गया. आज उस के दिल में एक खालीपन का अनुभव हुआ. कुरसी पर बैठ कर वह खाने का इंतजार करने लगा. रहरह कर उस की नजर दरवाजे पर चली जाती.  तभी लिली आती दिखी. अमित का चेहरा खिल गया.

लिली ने मुसकरा कर उसे विश किया. उस के बाद अपनी चेयर पर बैठ कर लिली मोबाइल पर उंगलियां फेरने लगी. अमित से रहा न गया. उस ने तत्काल उसे मैसेज दिया, ‘शाम को खाली हो?’

लिली ने मैसेज का तुरंत जवाब दिया, ‘हां.’

इस तरह दोनों ने शाम को साथ बिताने का फैसला लिया. एक तय जगह पर दोनों मिले. मोटरसाइकिल पर बैठ कर मरीन ड्राइव पर आए. समुद्र के किनारे लगे चबूतरे पर बैठ कर दोनों आपस में बातचीत करने लगे.

‘‘तुम किस कंपनी में हो?’’ लिली ने पूछा.

‘‘मैं यहीं एक सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में इंजीनियर हूं.’’

‘‘अकेले हो? मेरा मतलब शादी से है,’’ लिली ने पूछा.

‘‘अभी कुंआरा हूं,’’ कह कर अमित हंसा.

कुछ सोच कर अमित ने लिली से भी यही सवाल किया. जवाब में लिली ने बतलाया कि वह कुंआरी है. एक कुरियर कंपनी में नौकरी करती है.

इस तरह जब भी समय मिलता, वे दोनों एकदूसरे के साथ बिताना पसंद करते. धीरेधीरे दोनों के संबंध गाढ़े  होते गए.

एक रोज लिली गले में सुंदर सी चेन पहन कर आई थी. अमित ने देखा, तो तारीफ किए बिना न रह सका.

‘‘मां ने दी है. आज मेरा बर्थडे है,’’ लिली की इस बात से अमित को शर्मिंदगी हुई. बौयफ्रैंड होने के नाते यह हक सब से पहले उसे जाता था. काश, पहले पता होता, तो वह निश्चय  ही लिली को सरप्राइज दे कर निहाल  कर देता.

अमित कुछ सोच कर बोला, ‘‘देर से ही सही, आज तुम्हारा बर्थडे मेरे फ्लैट पर धूमधाम से मनेगा. मां से बोल दो कि आने में देर होगी.’’

अमित बहुत खुश था. लिली के साथ वह एक अच्छी सी दुकान में गया. वहां उस की पसंद के सोने के  झुमके दिलवाए. 40,000 रुपए का बिल चुकता किया.

लिली ने मना किया, मगर अमित के लिए अपने पहले प्यार का तोहफा था. उस के बाद केक और पिज्जा ले कर अपने फ्लैट पर आया. दोनों ने खूब मजे किए. रात 11 बजने को हुए. ‘‘अच्छा तो मैं चलती हूं,’’ कह कर लिली ने अपना पर्स संभाला.

अमित का मन तो नहीं था उसे छोड़ने का, मगर कैसे कहे. जुमाजुमा चार दिनों की मुलाकात थी. कहीं वह बुरा न मान ले.

लिली अमित के करीब आई. उस के गालों को हलके से चूम लिया. अमित का रोमरोम खिल उठा.

लिली के जाने के बाद अमित उस के ही ख्वाबों और खयालों में डूबा रहा. रहरह कर गालों पर अपनी उंगलियां फेरता तो ऐसा लगता लिली अब भी उस के करीब है. एक अजीब सी मादकता उस के ऊपर हावी हो गई. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन लिली का था.

‘‘पहुंच गई?’’ अमित ने पूछा.

‘हां,’ लिली का जवाब था, ‘क्या कर रहे हो? सोए नहीं?’ उस ने पूछा.

‘‘नींद नहीं आ रही,’’ अमित का जवाब था.

‘रात के 2 बज रहे हैं. औफिस नहीं जाना है?’

‘‘यार, तुम तो अभी से मेरी चिंता करने लगी?’’

‘क्या करूं. दिल के हाथों मजबूर हूं.’

‘‘ऐसा क्या देखा मु झ में?’’ पूछ कर अमित हंसा.

लिली सोच कर बोली, ‘कभीकभी भावनाओं के आगे शब्द कम पड़ जाते हैं,’ वह आगे बोली, ‘तुम ने मु झ में क्या देखा?’

अमित थोड़ा शरमाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे होंठ. जब गुलाबी लिपस्टिक लगा कर आती हो, तो ऐसा लगाता है मानो गुलाब की 2 पंखुडि़यां एकदूसरे को चूम रही हों.’’

‘ऐसा था तो पहल क्यों नहीं की?’ लिली ने शरारत की.

‘‘डरता था, कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘मन तो नहीं कर रहा, पर क्या करें नौकरी जो करनी है. अच्छा, गुडनाइट,’ लिली ने मोबाइल का स्विच औफ कर दिया.

आज लिली सफेद कपड़े पर गुलाब रंग के फूल बने छींटे वाला पहन कर आई थी. बालों को खास तरीके से गूंथा था. लट चेहरे पर  झूल रही थी. गोरा रंग उस पर सुर्ख गुलाबी होंठ कयामत ढा रहे थे. अमित उसे देखता ही रह गया.

आज शाम दोनों ने फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया. सिनेमाघर का सन्नाटा पा कर अमित की भावनाएं कुछ ज्यादा उबाल लेने लगीं. रहा न गया तो उस के होंठों को चूम लिया. लिली पहले तो सकपकाई, पर बाद में सहज हो गई.

यह सिलसिला अब ऐसे ही चलता रहा. अब दोनों के बीच कुछ भी परदा नहीं रहा.

एक रोज लिली परेशान थी. अमित ने उस की परेशानी की वजह पूछी, तो वह बोली, ‘‘मु झे 50,000 रुपए की सख्त जरूरत है.’’

यह पहला मौका था, जब लिली ने उस से रुपयों की डिमांड की. इज्जत का सवाल था, इसलिए वह मना न कर सका. तुरंत उस के खाते में 50,000 रुपए ट्रांसफर कर दिए.

अब लिली खुश थी. तकरीबन  2 महीने हो गए दोनों की दोस्ती को. बातोंबातों में लिली ने बताया था कि वह मुंबई में अकेली रहती है. मातापिता पूना में रहते हैं. क्यों न हम एकसाथ रहें?

अमित को यह अटपटा लगा. इस से अच्छा है कि दोनों शादी कर लें.  अमित यही चाहता था, मगर लिली तैयार नहीं हुई.

‘‘अमित, शादी कोई गुड्डेगुड्डी का खेल नहीं. पहले हम एकदूसरे को सम झ लें, फिर शादी कर लेंगे. लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे, तो एकदूसरे को सम झने में आसानी होगी,’’ दोटूक कह कर लिली ने अपनी मंशा जाहिर कर दी.

अब अमित को फैसला लेना था कि वह इसे स्वीकार करता है या नहीं.

अमित लिली को खोना नहीं चाहता था, वहीं उस के संस्कार बिना शादी किसी लड़की के साथ रहने की इजाजत नहीं दे रहे थे.

‘‘यह कैसा संबंध लिली? बिना शादी हम एकदूसरे के साथ रहें? क्या रह जाएगा हमारेतुम्हारे बीच? ऐसे ही  साथ रहना है, तो शादी कर लेने में क्या बुराई है?’’

‘‘कैसी दकियानूसी बात कर रहे हो? मैं बर्फ  नहीं, जो तुम्हारे साथ रह कर पिघल जाऊंगी? साल 6 महीने साथ  रह लेंगे तो क्या बिगड़ जाएगा?’’  लिली ने उलाहना दिया, ‘‘तुम कौन  सी दुनिया में रह रहे हो अमित. यह  नई दुनिया है. पुराने रिवाज टूट रहे  हैं,’’ लिली के प्रस्ताव के आगे  अमित ने हाथ खड़े कर दिए.

लिली कुछ कपड़े और एक सूटकेस ले कर अमित के पास रहने चली आई. लिली रविवार को अपने मांबाप से मिलने पूना जाती थी. अमित भी जाना चाहता था, मगर वह मना कर देती. पर क्यों, यह उस की सम झ से परे था.

लिली के रूपरंग में पूरी तरह डूबे अमित को लिली के सिवा कुछ नहीं सू झता. आहिस्ताआहिस्ता लिली अमित के हर मामले में दखल देने लगी. अमित पूरी तरह से लिली पर निर्भर हो गया.

अपने महीने की तनख्वाह लिली के हाथ में सौंप कर अमित निश्चिंत रहता. एक दिन लिली पूना गई, तो 3 दिन  बाद लौटी.

अमित परेशान हो गया. लिली को फोन लगाता, तो स्विच औफ  मिलता.  3 दिनों के बाद लिली लौट आई.

अमित ने शिकायत भरे लहजे में उस से हुई देरी की वजह पूछी, तो वह नाराज हो गई. वह बोली, ‘‘अमित, मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं. हम दोस्त हैं. बेहतर होगा, मेरे बारे में ज्यादा खोजबीन न किया करो.’’

यह सुन कर अमित को बुरा लगा. मगर यह सोच कर चुप रहा कि लिली ने सही कहा कि वे सिर्फ  दोस्त हैं.

अमित के बिगड़े मूड को लिली ने भांप लिया. सो, गलती सुधारने की नीयत से वह अमित के करीब आ कर बैठ गई. उस के बालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘डार्लिंग, नाराज मत होना. मां की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने रोक लिया, तो रुकना पड़ा.’’

लिली की सफाई पर अमित का मूड बदल गया.

‘‘तुम नहीं जानती कि मैं कितना परेशान था,’’ बच्चे सरीखा बरताव था अमित का. लिली उस की कमजोरी जानती थी.

सुबह दोनों अपनेअपने काम पर निकल गए. शाम को दोनों ने फिर से बाहर खाने की योजना बनाई. रात 10 बजे लौट कर आए. जैसे ही आराम करने के लिए बिस्तर पर गए, तभी लिली के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वह बरामदे में आई. वह 15 मिनट बाद वापस आई. आते ही बिस्तर पर पड़ गई.

पहेली : कौन था नव्या का कातिल?-भाग 1

पेड़ों के नीचे एक लड़की का निर्वस्त्र शव बरामद हुआ था, जो खरोंचों से भरा था. आशंका थी कि बलात्कार के बाद उस की हत्या की होगी. मृतका के पास मिले कागजातों से पता चला कि वह शव असिस्टैंट बैंक मैनेजर नव्या का था. उस की कार भी वहां से कुछ दूर खड़ी मिली. पुलिस वाले मुस्तैदी से अपने काम में जुटे थे. तभी जीप रुकी और एसआई राघव उतरे.

‘‘लाश को सब से पहले किस ने देखा था?’’ राघव ने कांस्टेबल से पूछा.

‘‘इस आदिवासी लड़की ने सर.’’ कांस्टेबल एक दुबलीपतली लड़की की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘ये खाना बनाने के लिए यहां से सूखी लकड़ियां ले जाती है.’’

‘‘हुम्म…’’ राघव ने उस लड़की पर नजर डालते हुए अगला सवाल किया, ‘‘और मृतका के घर वाले…’’

‘‘ये हैं सर,’’ कांस्टेबल की उंगली घटनास्थल से थोड़ा हट के खड़े कुछ लोगों की ओर घूम गई.

राघव उन के पास गए. एक से पूछा, ‘‘आप का मरने वाली से रिश्ता?’’

‘‘पति हूं उस का.’’ उस ने शून्य में देखते हुए जवाब दिया.

‘‘नाम?’’

‘‘मुकुल.’’

‘‘और ये लोग…’’ राघव ने उस के साथ खड़े लोगों के बारे में जानना चाहा.

‘‘यह मेरा छोटा भाई प्रताप और ये मेरे पापा,’’ मुकुल ने वहां खडे़ नौजवान और बुजुर्ग से राघव का परिचय कराया. राघव गौर से मुकुल का चेहरा देख रहे थे. उस के चेहरे पर अपनी बीवी की मौत का कोई दुख दिखाई नहीं दे रहा था. उसी समय कुछ पुरुष और महिलाएं रोते हुए वहां पहुंचे. पुलिस उन को घेरे के अंदर जाने से रोकने लगी.

‘‘साहब, मैं इस का पिता हूं,’’ उन में से एक ने किसी तरह कहा.

‘‘हम यहां कुछ जरूरी काम कर रहे हैं,’’ एक कांस्टेबल ने उसे समझाने की गरज से कहा, ‘‘थोड़ी देर में लाश आप को हैंडओवर कर देंगे.’’

एक औरत की स्थिति देख राघव ने अंदाजा लगा लिया कि वह मृतका की मां होगी. लाश का पंचनामा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. भीड़ छंटने लगी थी. शाम को राघव मुकुल के घर पूछताछ के लिए पहुंचे, वो घर पर अकेला मिला. उन्होंने उस से सवाल किया, ‘‘आप को अपनी पत्नी की मौत के बारे में किस से पता चला और आप उस समय कहां थे?’’

‘‘मुझे किसी सिपाही ने फोन किया था लाश मिलने के बारे में…’’ वह सिर झुकाएझुकाए बोला, ‘‘मैं यहीं पर था.’’

‘‘आप ने उसे आखिरी बार कब देखा?’’ उन्होंने अगला प्रश्न किया.

‘‘जब कल सुबह वे औफिस के लिए निकली थी.’’

‘‘उस के बाद बात नहीं हुई?’’

‘‘नहीं, उस को कौन सा मुझ से बात करना पसंद था,’’ मुकुल ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘वह औफिसर हो गई थी, अपने बड़ेबड़े ओहदे वाले परिचितों से उस का ज्यादा संपर्क रहता था.’’

राघव समझ गए कि अहं के टकराव ने रिश्तों को तोड़ दिया है. अपनी बात कहतेकहते मुकुल रो पड़ा. उस ने अपनी जो पारिवारिक कहानी बताई, उस के अनुसार वह किराना स्टोर चलाता था. ज्यादा पढ़ालिखा न होने के कारण खुद तो कभी नौकरी की तैयारी नहीं कर सका, लेकिन अपनी जिंदगी में ग्रेजुएट नव्या के आने के बाद उस को परीक्षाएं देने के लिए प्रेरित जरूर किया.

पति की कोशिश रंग लाई पर नव्या ने अपना अलग रंग दिखाया

नव्या भी पढ़ना चाहती थी लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति ने उस के सपने चुरा लिए थे. वह खुशीखुशी मुकुल की बात मान गई. मुकुल ने उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने से ले कर हर तरह का सहयोग किया, जिस का सुखद परिणाम भी सामने आया. नव्या ने कुछ ही प्रयासों में बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर लिया.

मुकुल की खुशी का ठिकाना नहीं था लेकिन उस के अरमानों को किसी की नजर लग गई. नव्या का अफेयर अपने एक युवा अधिकारी विमल से चलने लगा. पति अब उसे गंवार और बेकार लगने लगा था. घर में झगड़े शुरू हो गए लेकिन मुकुल उसे तलाक देने में अपनी हार देख रहा था, इसलिए वह उसे तरहतरह से समझाने में लगा रहा. नव्या के घर वाले भी पशोपेश में पड़ गए थे. एक तरफ मुकुल जैसा मध्यवर्गीय लेकिन सुलझा हुआ दामाद, दूसरी ओर विमल की शानोशौकत.

राघव वहां से चल पड़े. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद नव्या का शव उस के मायके वालों को सौंप दिया गया. मुकेश ने उस पर कोई दावा नहीं जताया था और न ही दाहसंस्कार में उस के परिवार से कोई शामिल हुआ. नव्या के मांबाप लगातार मुकुल को खूनी बता रहे थे.

लेकिन राघव इस केस में आगे कुछ करने से पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख लेना चाहते थे. उन्होंने केस से जुड़े सभी लोगों को शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाने को कहा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार करने लगे.

जल्द ही वह भी आ गई. नव्या के साथ मौत से पहले सामूहिक बलात्कार की पुष्टि हुई. लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि मौत का कारण ज्यादा नींद की गोलियां लेना बताया गया था.

राघव का दिमाग चकराने लगा कि भला ये कौन से नए अपराधी आ गए जो जंगल में में जा कर बलात्कार करें और फिर नींद की गोली दे कर हत्या. मारना ही था तो गला दबा सकते थे, चाकू का इस्तेमाल कर सकते थे.

वैसे भी लाश की हालत से स्पष्ट था कि दोषियों ने हैवानियत की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं और अगर नव्या ने बलात्कार के कारण दुखी हो कर आत्महत्या की थी तो उस सुनसान इलाके में उस के पास नींद की गोलियां आईं कैसे? उस का तो बैग तक उस की कार में ही रह गया था. इस के अलावा किसी दवा का कोई खाली रैपर आदि भी वहां से नहीं मिला था.

थोड़ी सी जमीं थोड़ा आसमां: जिंदगी की राह चुनती स्त्री- भाग 1

कविता ने ससुराल में कदम रखते ही अपनी सास के पैर छुए तो वह मुसकरा कर बोलीं, ‘‘बेटी, अपने जेठजी के भी पैर छुओ.’’

कविता राघव के पैरों पर झुक गई तो वह अपने स्थान से हटते हुए बोले, ‘‘अरे, बस…बस कविता, हो गया, तुम थक गई होगी. जाओ, आराम करो.’’

राघव को देख कर कविता को याद आ गया कि जब दोनों भाई उसे देखने पहली बार आए थे तो उस ने राघव को ही रंजन समझा था. वह तो उसे बाद में पता चला कि राघव रंजन का बड़ा भाई है और उस की शादी राघव से नहीं रंजन से तय हुई है. कविता की इस गलत- फहमी की एक वजह यह भी थी कि देखने में रंजन अपने बड़े भाई राघव से बड़ा दिखता है. उस के चेहरे पर बड़े भाई से अधिक प्रौढ़ता झलकती है.

ससुराल आने के कुछ दिनों बाद ही कविता को पता चला कि उस के जेठ राघव अब तक कुंआरे हैं और उन के शादी से मना करने पर ही रंजन की शादी की गई है.

एक दिन कविता ने पूछा था, ‘‘रंजन, जेठजी अकेले क्यों हैं? उन्होंने शादी क्यों नहीं की?’’

तब रंजन ने कविता को बताया कि मेरे पिताजी का जब देहांत हुआ तब राघव भैया कालिज की पढ़ाई पूरी कर चुके थे और मैं स्कूल में था. राघव भैया पर अचानक ही घर की सारी जिम्मेदारी आ गई थी. जैसेतैसे उन्हें नौकरी मिली, फिर भैया ने पत्राचार से एम.बी.ए. किया और तरक्की की सीढि़यां चढ़ते ही गए. उन्होंने ही मुझे पढ़ायालिखाया और अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया. जब उन की शादी की उम्र थी तब वह इस परिवार की जरूरतों को पूरा करने में व्यस्त थे और जब उन्हें शादी का खयाल आया तो रिश्ते आने बंद हो चुके थे. बस, फिर उन्होंने शादी का इरादा ही छोड़ दिया. कविता राघव भैया के सम्मान को कभी ठेस न पहुंचाना.’’

यह सब जानने के बाद तो कविता के मन में राघव के लिए आदर के भाव आ गए थे.

एक दिन कविता राघव को चाय देने गई तो देखा कि वह कोई पेंटिंग बना रहे हैं. कविता ने पूछा, ‘‘भैया, आप पेंटिंग भी करते हैं?’’

राघव ने हंस कर कहा, ‘‘हां, इनसान के पास ऐसा तो कुछ होना चाहिए जो वह सिर्फ अपनी संतुष्टि के लिए करता हो. बैठो, तुम्हारा पोटे्रट बना दूं, फिर बताना मैं कैसी पेंटिंग करता हूं.’’

कविता बैठ गई, फिर अपने बालों पर हाथ फिराते हुए बोली, ‘‘क्या आप किसी की भी पेंटिंग बना सकते हैं?’’

राघव ने एक पल को उसे देखा और कहा, ‘‘कविता, हिलो मत…’’

उन की बात सुन कर कविता बुत बन गई. उसे खामोश देख कर राघव ने पूछा, ‘‘कविता, तुम चुप क्यों हो गईं?’’

कविता ने ठुनकते हुए कहा, ‘‘आप ने ही तो मुझे चुपचाप बैठने को कहा है.’’

राघव ने जोरदार ठहाका लगाया तो कविता बोली, ‘‘जानते हैं, कभीकभी मेरा भी मन करता है कि मैं फिर से डांस करना और लिखना शुरू कर दूं.’’

राघव ने आश्चर्य से कहा, ‘‘अच्छा, तो तुम डांसर होने के साथसाथ कवि भी हो. अच्छा बताओ क्या लिखती हो?’’

‘‘कविता.’’

राघव ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारा नाम नहीं पूछा.’’

‘‘मैं ने भी अपना नाम नहीं बताया है, बल्कि आप को यह बता रही हूं कि मैं कविता लिखती हूं.’’

राघव ने कहा, ‘‘कुछ मुझे भी सुनाओ, क्या लिखा है तुम ने.’’

कविता ने सकुचाते हुए अपनी एक कविता राघव को सुनाई और प्रतिक्रिया जानने के लिए उन की ओर देखने लगी, तो वह बोले, ‘‘कविता, तुम्हारी यह कविता तो बहुत ही अच्छी है.’’

कविता ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आप को सच में अच्छी लगी?’’ फिर अचानक ही उदास हो कर वह बोली, ‘‘पर रंजन को तो यह बिलकुल पसंद नहीं आई थी. वह तो इसे बकवास कह रहे थे.’’

राघव कविता के सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए बोले, ‘‘वह तो पागल है, तुम उस की बात पर ध्यान मत दिया करो और मैं तो कहूंगा कि तुम लिखो.’’

रात को कविता ने रंजन से कहा, ‘‘तुम मेरी कविताओं का मजाक बनाते थे न, पर जेठजी को तो बहुत पसंद आईं, देखो, उन्होंने मेरा कितना सुंदर स्केच बनाया है.’’

रंजन ने बिना स्केच की ओर देखे, फाइलें पलटते हुए कहा, ‘‘अच्छा है.’’

कविता नाराज होते हुए बोली, ‘‘तुम्हें तो कला की कोई कद्र ही नहीं है.’’

रंजन हंस कर बोला, ‘‘तुम और भैया ही खेलो यह कला और साहित्य का खेल, मुझे मत घसीटो इस सब में.’’

रंजन की बातों से कविता की आंखों में आंसू आ गए तो वह चुपचाप जा कर लेट गई. थोड़ी देर बाद कविता के गाल और होंठ चूमते हुए रंजन बोला, ‘‘तुम्हारी कविता…और वह स्केच…दोनों ही सुंदर हैं,’’ इतना कहतेकहते उस ने कविता को अपने आगोश में ले लिया.

अगले दिन रंजन आफिस से जाते समय कविता से बोला, ‘‘सुनो, बहुत दिनों से हम कहीं घूमने नहीं गए, आज शाम को तुम तैयार रहना, फिल्म देखने चलेंगे.’’

पति की यह बात सुन कर कविता खुश हो गई और वह पूरे दिन उत्साहित रही, फिर शाम 5 बजे से ही तैयार हो कर वह रंजन का इंतजार करने लगी.

राघव ने उसे गौर से देखा, धानी रंग की साड़ी में कविता सचमुच बहुत सुंदर लग रही थी. वह पूछ बैठे, ‘‘क्या बात है कविता, आज कहीं जाना है क्या?’’

कविता मुसकरा कर बोली, ‘‘आज रंजन फिल्म दिखाने ले जाने वाले हैं.’’

धीरेधीरे घड़ी ने 6 फिर 7 और फिर 8 बजा दिए, पर रंजन नहीं आया. कविता इंतजार करकर के थक चुकी थी. राघव ने देखा कि कविता अनमनी सी खड़ी है, तो पल भर में उन की समझ में सारा माजरा आ गया. उन्हें रंजन पर बहुत गुस्सा आया. फिर भी वह हंस कर बोले, ‘‘कोई बात नहीं कविता, चलो, आज हम दोनों आइसक्रीम खाने चलते हैं.’’

कविता ने भी बेहिचक बच्चों की तरह मुसकरा कर हामी भर दी.

राघव ने चलतेचलते कविता से कहा, ‘‘तुम रंजन की बातों का बुरा मत माना करो, वह जो कुछ कर रहा है, सब तुम्हारे लिए ही तो कर रहा है.’’

कविता व्यंग्य से बोली, ‘‘वह जो कर रहे हैं मेरे लिए कर रहे हैं? पर मेरे लिए तो न उन के पास समय है न मेरी परवा ही करते हैं. अगर मैं ही न रही तो उन का यह किया किस काम आएगा?’’

कविता के इस सवाल का राघव ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद वह जानते थे कि कविता सही ही कह रही है.

वे दोनों आइसक्रीम खा रहे थे कि एक भिखारी उन के पास आ कर बोला, ‘‘2 दिन से भूखा हूं, कुछ दे दो बाबा.’’

राघव ने जेब से 10 रुपए निकाल कर उसे दे दिए.

वह आशीर्वाद देता हुआ बोला, ‘‘आप दोनों की जोड़ी सलामत रहे.’’

कविता ने एक पल को राघव की ओर देखा और अपनी नजरें झुका लीं.

दोनों घर पहुंचे तो देखा कि रंजन आ चुका था. कविता को देखते ही रंजन भड़क कर बोला, ‘‘कहां चली गई थीं तुम? कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, अब जल्दी चलो.’’

कविता ने भी बिफर कर कहा, ‘‘मुझे पूरी फिल्म देखनी थी, उस का अंत नहीं. मैं बहुत थक गई हूं, अब मुझे कहीं नहीं जाना है.’’

रंजन की आंखें क्रोध से दहक उठीं, ‘‘क्या मतलब है इस का? नहीं जाना था तो पहले बतातीं, मैं अपना सारा काम छोड़ कर तो नहीं आता…’’

कविता की आंखों में आंसू छलक आए, ‘‘काम, काम और बस काम…मेरे लिए कभी समय होगा तुम्हारे पास या नहीं? मैं 5 बजे से इंतजार कर रही हूं तुम्हारा, वह कुछ नहीं…तुम्हें 5 मिनट मेरा इंतजार करना पड़ा तो भड़क उठे?’’

गुस्से से पैर पटकते हुए रंजन बोला, ‘‘तुम्हारी तरह मेरे पास फुरसत नहीं है और फिर यह सब मैं तुम्हारे लिए नहीं तो किस के लिए करता हूं?’’

कविता ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं तुम से बस, तुम्हारा थोड़ा सा समय मांगती हूं, वही दे दो तो बहुत है, और कुछ नहीं चाहिए मुझे,’’ इतना कह कर कविता अपने कपड़े बदल कर लेट गई.

राघव ने उन दोनों की बातें सुन ली थीं, उन्हें लगा कि दोनों को अकेले में एकदूसरे के साथ समय बिताना बहुत जरूरी है, अगले दिन शाम को जब राघव आफिस से आए तो बोले, ‘‘मां, मैं आफिस के काम से 15 दिन के लिए बनारस जा रहा हूं, तुम भी चलो मेरे साथ, रास्ते में तुम्हें मौसी के पास इलाहाबाद छोड़ दूंगा और लौटते हुए साथ ही वापस आ जाएंगे.’’

राघव की बात पर मां तैयार हो गईं. कविता ने जब यह सुना तो एक पल को वह उदास हो गई. वह मां से बोली, ‘‘मैं  अकेली पड़ जाऊंगी मां, आप मत जाओ.’’

मां ने कविता को समझाते हुए कहा, ‘‘रंजन तो है न तेरा खयाल रखने के लिए, अब कुछ दिन तुम दोनों एकदूसरे के साथ बिताओ.’’

अगले दिन राघव और मां चले गए. रंजन आफिस जाने लगा तो कविता अपने होंठों पर मुसकान ला कर बोली, ‘‘आप आज आफिस मत जाओ न, कितने दिन हो गए, हम ने साथ बैठ कर समय नहीं बिताया है.’’

रंजन बोला, ‘‘नहीं, कविता, आज आफिस जाना बहुत जरूरी है, पर मैं शाम को जल्दी आ जाऊंगा, फिर हम कहीं बाहर खाना खाने चलेंगे.’’

पहेली : कौन था नव्या का कातिल? – भाग 2

इसी उधेड़बुन में वे नव्या के मायके पहुंचे. नव्या के मांबाप फिर मुकुल का नाम ले कर शोर मचाने लगे. राघव ने उन को समझाया.

‘‘देखिए हम मुलजिम को जरूर पकड़ेंगे लेकिन जल्दबाजी किसी निर्दोष को फंसा सकती है, इसलिए हमारा सहयोग कीजिए.’’

नव्या के पिता ये सुन कर शांत हुए. उन्होंने हर तरह से सहयोग देने की बात कही.

राघव ने पूछा, ‘‘नव्या का मुकुल के अलावा किसी से कोई विवाद था?’’

‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब.’’ नव्या के पिता बोले, ‘‘उस की तो सब से दोस्ती थी, बैंक में भी सब उस से खुश रहते थे.’’

‘‘और विमल से उस का क्या रिश्ता था?’’ राघव ने उन के चेहरे पर गौर से देखते हुए सवाल किया. वे इस पर थोड़ा अचकचा गए.

‘‘व…वो…वो…दोस्ती थी उस से भी… मुकुल बेकार में शक किया करता था उन के संबंध पर.’’

राघव ने इस समय इस से ज्यादा कुछ पूछना ठीक नहीं समझा. वो वहां से निकल गए. अगले कुछ दिन इधरउधर हाथपैर मारते बीते. उन्होंने नव्या के बैंक जा कर उस के बारे में जानकारियां जुटाईं. सब ने साधारण बातें ही बताई. कोई नव्या और विमल के रिश्तों के बारे में कुछ कहने को तैयार नहीं था.

राघव ने नव्या के उस शाम बैंक से निकलते समय की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी. वह अकेली ही अपनी कार में बैठती दिख रही थी. राघव की अन्य कर्मचारियों से तो बात हुई, लेकिन विमल से मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि वह नव्या की मौत के बाद से ही छुट्टी पर चला गया था.

उन्होंने उस का पता निकलवाया और अपनी टीम के साथ उस के घर जा धमके. वह उन को देख कहने लगा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं खुद बहुत दुखी हूं नव्या के जाने से, पागल जैसा मन हो रहा मेरा, मुझे परेशान मत करिए.’’

विमल की हकीकत क्या थी?

‘‘हम भी आप के दुख का ही निवारण करने की कोशिश में हैं विमल बाबू.’’ राघव ने अपना काला चश्मा उतारते हुए कहा, ‘‘आप भी मदद करिए, हम दोषियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डालना चाहते हैं.’’

‘‘पूछिए, क्या जानना चाहते हैं आप.’’ वो सोफे पर निढाल होता बोला. सवालजवाब का दौर चलने लगा. विमल ने बताया कि उस ने उस दिन नव्या को औफिस के बाद अपने घर बुलाया था. लेकिन उस ने मना कर दिया कि पति से झगड़ा और बढ़ जाएगा. वह अपनी कार से निकल गई थी. उस ने अगले दिन किसी पारिवारिक कारण से औफिस न आने की बात की थी. हां, विमल ने भी ये नहीं स्वीकारा कि नव्या से उस की बहुत अच्छी दोस्ती से ज्यादा कोई नाता था.

‘‘ठीक है, विमल बाबू.’’ राघव ने उठते हुए कहा, ‘‘आप का धन्यवाद. फिर जरूरत होगी तो याद करेंगे… बस आप ये शहर छोड़ कर कहीं मत जाइएगा.’’

‘‘जी जरूर.’’

राघव की जीप वहां से चल दी. अब तक इस केस में कुछ भी ऐसा हाथ नहीं लग पाया था जिस से तसवीर साफ हो. उन्होंने अपने मुखबिरों के माध्यम से भी पता लगाना चाहा कि नव्या की हत्या के लिए क्या किसी लोकल गुंडे ने सुपारी ली थी. लेकिन ऐसा भी कुछ मालूम नहीं हो सका. किसी गैंग की भी ऐसी कोई सुपारी लेने की बात सामने नहीं आ पा रही थी.

शाम को राघव घर जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि सिपाही ने एक लिफाफा ला कर दिया और बोला, ‘‘साब, ये अभी आया डाक से… लेकिन भेजने वाले का कोई नाम, पता नहीं लिखा.’’

राघव ने लिफाफे को खोला. उस में एक सीडी और चिट्ठी थी. उन्होंने उसे पढ़ना शुरू किया. उस में लिखा था, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप को नव्या के बैंक में जो सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई, वो पूरी नहीं थी. विमल ने उस में पहले ही एडिटिंग करा दी थी. नव्या की मौत वाली शाम विमल उस के साथ उस की ही कार में निकला था. आप को इस बात का सबूत इस सीडी में मिल जाएगा.’’

चिट्ठी पढ़ते ही राघव की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने जल्दी से उसे अपने लेपटौप पर लगाया. वाकई वीडियो में विमल उस शाम नव्या की कार में अंदर बैठता दिख रहा था. राघव को अपना काम काफी हद बनता लगा. वे सिपाहियों के साथ सीधे विमल के घर पहुंचे. देखा कि वह कहीं जाने के लिए पैकिंग कर रहा था. राघव पुलिसिया अंदाज में उस से बोले, ‘‘कहां चले विमल बाबू? आप को शहर से बाहर जाने को मना किया था न?’’

वो उन्हें वहां पा कर घबरा गया और हकलाने लगा.

‘‘म…मैं क…कहीं नहीं जा रहा. बस सामान सही कर रहा था.’’

‘‘इस की जरूरत अब नहीं पड़ेगी.’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘चल थाने, वहीं सब सामान मिलेगा तुझे.’’

विमल कसमसाता रहा, खुद को निर्दोष बताता रहा लेकिन सिपाहियों ने उसे जीप में डाल लिया. लौकअप में राघव के थप्पड़ विमल को चीखने पर मजबूर कर रहे थे. वह किसी तरह बोला, ‘‘सर, मैं ने कुछ नहीं किया, हां मैं उस के साथ निकला जरूर था लेकिन रास्ते में उतर गया था, वो आगे चली गई थी.’’

‘‘तो हम से ये बात छिपाई क्यों?’’ राघव ने उसे कड़कदार 2 थप्पड़ और लगाते हुए पूछा.

‘‘म्म्म मैं घब…घबरा गया था साहब कि कहीं मेरा नाम शक के दायरे में न आ जाए.’’

राघव ने उस के सैंपल लैब में भिजवा दिए जिस से नव्या के गुप्तांगों और कपड़ों पर मिले वीर्य से उस का मिलान करा के जांच की जा सके. रिपोर्ट तीसरे दिन ही आ गई. सचमुच नव्या के जिस्म से जितने लोगों के वीर्य मिले थे, उन में एक विमल से मैच कर गया.

राघव ने मारमार के विमल की देह तोड़ दी. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बोल, बोल तूने नव्या को क्यों मारा?’’

विमल ने खोला भेद, लेकिन अधूरा

‘‘साब मैं ने कुछ नहीं किया.’’ वो जोरजोर से रोते हुए बोला, ‘‘हां मैं ने कार में उस के साथ जिस्मानी संबंध जरूर बनाए थे लेकिन उस को मारा नहीं… मैं सैक्स कर के उतर गया था उस की गाड़ी से.’’

‘‘स्साला.’’ राघव का गुस्सा बढ़ता जा रह था. वे उस पर गरजे, ‘‘रुकरुक के बातें बता रहा है. जैसेजैसे भेद खुलता जा रहा है वैसेवैसे रंग बदल रहा है. तू मुझ से करेगा होशियारी?’’

उन्होंने फिर से मुक्का ताना लेकिन विमल बेहोश होने लगा था. वे उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकले.

‘‘इस को तब तक कुरसी से मत खोलना जब तक ये पूरी बात न बता दे.’’ शर्ट पहनतेपहनते उन्होंने सिपाही को आदेश दिया. वहां नव्या के मायके वाले भी आए हुए थे. विमल के बारे में जान कर उन्हें मुकुल पर लगाए अपने आरोपों पर बहुत पछतावा हो रहा था.

‘‘इस ने अपना जुर्म कबूल किया क्या इंसपेक्टर साहब?’’ नव्या के पिता ने जानना चाहा.

‘‘नहीं, अभी तक अपनी बेगुनाही का रोना रो रहा है. चालू चीज लगता है ये.’’ राघव ने लौकअप की ओर देख के उत्तर दिया. नव्या के मांबाप सीधे मुकुल के घर पहुंचे.

‘‘बेटा, हम को माफ कर देना, हम ने आप पर शक किया.’’ नव्या की मां उस से बोली. मुकुल ने धीरे से मुसकरा के सिर हिलाया. तब तक उस की मां चायपानी ले आई थी. कुछ दिन बीत गए. राघव ने विमल से सच जानने के लिए पूरा जोर लगा रखा था लेकिन वह यही दोहराता रहता कि वो निर्दोष है. उस के वकील के आ जाने से अब उस पर सख्ती करना भी मुश्किल लग रहा था.

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एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम -भाग 3

दर्द से उसे यों तड़पता देख कर उस ने दूध मेज पर रखा तथा उस के पास ‘क्या हुआ’ कहती हुई आई. उस के आते ही उस ने हाथपैर ढीले छोड़ दिए तथा सांस रोक कर ऐसे लेट गया मानो जान निकल गई हो. वह बचपन से तालाब में तैरा करता था, अत: 5 मिनट तक सांस रोक कर रखना उस के बाएं हाथ का खेल था.

सुलेखा ने उस के शांत पड़े शरीर को छूआ, थोड़ा झकझोरा, कोई हरकत न पा कर बोली, ‘‘लगता है, यह तो मर गए…अब क्या करूं…किसे बुलाऊं?’’

मनीष को उस की यह चिंता भली लगी. अभी वह अपने नाटक का अंत करने की सोच ही रहा था कि सुलेखा की आवाज आई :

‘‘सुयश, हमारे बीच का कांटा खुद ही दूर हो गया.’’

‘‘क्या, तुम सच कह रही हो?’’

‘‘विश्वास नहीं हो रहा है न, अभीअभी हार्टअटैक से मनीष मर गया. अब हमें विवाह करने से कोई नहीं रोक पाएगा…मम्मी, पापा के कहने से मैं ने मनीष से विवाह तो कर लिया पर फिर भी तुम्हारे प्रति अपना लगाव कम नहीं कर सकी. अब इस घटना के बाद तो उन्हें भी कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘देखो, तुम्हें यहां आने की कोई आवश्यकता नहीं है. बेवजह बातें होंगी. मैं नीलेश भाई साहब को इस बात की सूचना देती हूं, वह आ कर सब संभाल लेंगे…आखिर कुछ दिनों का शोक तो मुझे मनाना ही होगा, तबतक तुम्हें सब्र करना होगा,’’ बातों से खुशी झलक रही थी.

‘पहले दूध पी लूं फिर पता नहीं कितने घंटों तक कुछ खाने को न मिले,’ बड़बड़ाते हुए सुलेखा ने दूध का गिलास उठाया और पास पड़ी कुरसी पर बैठ कर पीने लगी.

मनीष सांस रोके यह सब देखता, सुनता और कुढ़ता रहा. दूध पी कर वह उठी और बड़बड़ाते हुए बोली, ‘अब नीलेश को फोन कर ही देना चाहिए…’ उसे फोन मिला ही रही थी कि  मनीष उठ कर बैठ गया.’

‘‘तुम जिंदा हो,’’ उसे बैठा देख कर अचानक सुलेखा के मुंह से निकला.

‘‘तो क्या तुम ने मुझे मरा समझ लिया था…?’’ मनीष बोला, ‘‘डार्लिंग, मेरे शरीर में हलचल नहीं थी पर दिल तो धड़क रहा था. लेकिन खुशी के अतिरेक में तुम्हें नब्ज देखने या धड़कन सुनने का भी ध्यान नहीं रहा. तुम ने ऐसा क्यों किया सुलेखा? जब तुम किसी और से प्यार करती थीं तो मेरे साथ विवाह क्यों किया?’’

‘‘तो क्या तुम ने सब सुन लिया?’’ कहते हुए वह धम्म से बैठ गई.

‘‘हां, तुम्हारी सचाई जानने के लिए मुझे यह नाटक करना पड़ा था. अगर तुम उस के साथ रहना चाहती थीं तो मुझ से एक बार कहा होता, मैं तुम दोनों को मिला देता, पर छिपछिप कर उस से मिलना क्या बेवफाई नहीं है.

‘‘10 महीने मेरे साथ एक ही कमरे में मेरी पत्नी बन कर गुजारने के बावजूद आज अगर तुम मेरी नहीं हो सकीं तो क्या गारंटी है कल तुम उस से भी मुंह नहीं मोड़ लोगी…या सुयश तुम्हें वही मानसम्मान दे पाएगा जो वह अपनी प्रथम विवाहित पत्नी को देता…जिंदगी एक समझौता है, सब को सबकुछ नहीं मिल जाता, कभीकभी हमें अपनों के लिए समझौते करने पड़ते हैं, फिर जब तुम ने अपने मातापिता के लिए समझौता करते हुए मुझ से विवाह किया तो उस पर अडिग क्यों नहीं रह पाईं…अगर उन्हें तुम्हारी इस भटकन का पता चलेगा तो क्या उन का सिर शर्म से नीचा नहीं हो जाएगा?’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मनीष. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई,’’ सुलेखा ने उस के कदमों पर गिरते हुए कहा.

‘‘अगर तुम इस संबंध को सच्चे दिल से निभाना चाहती हो तो मैं भी सबकुछ भूल कर आगे बढ़ने को तैयार हूं और अगर नहीं तो तुम स्वतंत्र हो, तलाक के पेपर तैयार करवा लेना, मैं बेहिचक हस्ताक्षर कर दूंगा…पर इस तरह की बेवफाई कभी बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

उसी समय सुलेखा का मोबाइल खनखना उठा…

‘‘सुयश, आइंदा से तुम मुझे न तो फोन करना और न ही मिलने की कोशिश करना…मेरे वैवाहिक जीवन में दरार डालने की कोशिश, अब मैं बरदाश्त नहीं करूंगी,’’ कहते हुए सुलेखा ने फोन काट दिया तथा रोने लगी.

उस के बाद फिर फोन बजा पर सुलेखा ने नहीं उठाया. रोते हुए बारबार उस के मुंह से एक ही बात निकल रही थी, ‘‘प्लीज मनीष, एक मौका और दे दो…अब मैं कभी कोई गलत कदम नहीं उठाऊंगी.’’

उस की आंखों से निकलते आंसू मनीष के हृदय में हलचल पैदा कर रहे थे पर मनीष की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस की बात पर विश्वास करे या न करे. जो औरत उसे पिछले 10 महीने से बेवकूफ बनाती रही…और तो और जिसे उस की अचानक मौत इतनी खुशी दे गई कि उस ने डाक्टर को बुला कर मृत्यु की पुष्टि कराने के बजाय अपने प्रेमी को मृत्यु की सूचना  ही नहीं दी, अपने भावी जीवन की योजना बनाने से भी नहीं चूकी…उस पर एकाएक भरोसा करे भी तो कैसे करे और जहां तक मौके का प्रश्न है…उसे एक और मौका दे सकता है, आखिर उस ने उस से प्यार किया है, पर क्या वह उस से वफा कर पाएगी या फिर से वह उस पर वही विश्वास कर पाएगा…मन में इतना आक्रोश था कि वह बिना सुलेखा से बातें किए करवट बदल कर सो गया.

दूसरा दिन सामान्य तौर पर प्रारंभ हुआ. सुबह की चाय देने के बाद सुलेखा नाश्ते की तैयारी करने लगी तथा वह पेपर पढ़ने लगा. तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा मनीष ने खोला तो सामने किसी अजनबी को खड़ा देख वह चौंका पर उस से भी अधिक वह आगंतुक चौंका.

वह कुछ कह पाता इस से पहले ही मनीष जैसे सबकुछ समझ गया और सुलेखा को आवाज देते हुए अंदर चला गया, पर कान बाहर ही लगे रहे.

सुलेखा बाहर आई. सुयश को खड़ा देख कर चौंक गई. वह कुछ कह पाता इस से पहले ही तीखे स्वर में सुलेखा बोली, ‘‘जब मैं ने कल तुम से मिलने या फोन करने के लिए मना कर दिया था उस के बाद भी तुम्हारी यहां मेरे घर आने की हिम्मत कैसे हुई. मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती…आइंदा मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’’

सुयश का उत्तर सुने बिना सुलेखा ने दरवाजा बंद कर दिया और किचन में चली गई. आवाज में कोई कंपन या हिचक नहीं थी.

वह नहाने के लिए बाथरूम गया तो सबकुछ यथास्थान था. तैयार हो कर बाहर आया तो नाश्ता लगाए सुलेखा उस का इंतजार कर रही थी. नाश्ता भी उस का मनपसंद था, आलू के परांठे और मीठा दही.

आफिस जाते समय उस के हाथ में टिफिन पकड़ाते हुए सुलेखा ने सहज स्वर में पूछा, ‘‘आज आप जल्दी आ सकते हैं. रीजेंट में बाबुल लगी है…अच्छी पिक्चर है.’’

‘‘देखूंगा,’’ न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया.

गाड़ी स्टार्ट करते हुए मनीष सोच रहा था कि वास्तव में सुलेखा ने स्वयं को बदल लिया है या दिखावा करने की कोशिश कर रही है. सचाई जो भी हो पर वह उसे एक मौका अवश्य देगा.

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