भंवर: क्या पूरा हो पाया रजिया का सपना

रजिया तीखे नैननक्श की लड़की थी. खूब गोरी भी थी. एक दकियानूसी परिवार में पलीबढ़ी होने के बावजूद उस ने बीए कर लिया था. वह मास्टरनी बनना चाहती थी, इसलिए अपनी अम्मी से पूछ कर उस ने बीएड का फार्म भर दिया. कुछ ही दिनों में उस के पास बीएड में दाखिला लेने के लिए कालेज से चिट्ठी भी आ गई.

चिट्ठी आते ही रजिया के अब्बू और अम्मी में जम कर झगड़ा शुरू हो गया. अब्बू तो रजिया को शुरू से ही स्कूल में पढ़ाने के खिलाफ थे. रजिया ने जब 5वीं जमात पास की थी, तब उस की पढ़ाईलिखाई को ले कर परिवार के बुजुर्गों में बहस शुरू हो गई थी.

उस की अम्मी नरगिस के अलावा सभी की यह राय थी कि रजिया को स्कूल के बजाय अपने मजहब की तालीम दी जाए. उस के अब्बू करीम साहब चाहते थे कि उसे कुरान शरीफ रटाया जाए. लेकिन रजिया की अम्मी ने उन्हें समझाया, ‘‘वह कुरान शरीफ तो पढ़ ही चुकी है. जमाना अब बदल गया है, इसलिए रजिया के लिए भी पढ़ाईलिखाई की जरूरत है.’’

तभी एक साहब आगे बढ़े और कहने लगे, ‘‘बड़े स्कूल में न भेजो, लड़की बिगड़ जाएगी. पढ़ा कर क्या कराना है, घर में परदे में ही तो रहेगी.’’

काफी बहस के बाद रजिया का दाखिला लखनऊ में कर दिया गया, जहां उस की मौसी रहती थीं. रजिया ने अपनी अम्मी द्वारा हौसला बढ़ाए जाने और अपनी जिद से बीए कर लिया था.

दरअसल, रजिया का परिवार लखनऊ के पास एक छोटे से कसबे में रहता था. वहां आज भी लड़कियों की पढ़ाई पर इतना जोर नहीं दिया जाता था. यही वजह थी कि रजिया ने अपने इलाके के कालेज के बजाय लखनऊ से बीए किया था.

जब करीम साहब से नरगिस ने रजिया की बीएड करने की इच्छा बताई, तो वे आगबबूला हो उठे, ‘‘रहने दो, बहुत हो चुका यह नाटक. यह सब तुम्हारी वजह से हो रहा है. मेरी इज्जत का तो खयाल करो. लोग क्या कहेंगे?’’ करीम साहब ने नरगिस से कहा.

‘‘जरा समझने की कोशिश करो. इस में क्या हर्ज है?’’

‘‘मैं हरगिज रजिया को बीएड में दाखिला कराने के लिए राजी नहीं हूं. लड़की बड़ी हो कर दुलहन बनती है, अपने घर को संभालती है, न कि बेपरदा हो कर बाहर घूमती है.’’

रजिया से तब चुप न रहा गया. उस ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘आप परदापरदा चिल्ला रहे हैं. आज कहां है परदा? बाजारों और बसों में औरतें बुरका पहनती जरूर हैं, पर उन का नकाब हमेशा उठा ही रहता है… क्यों? औरतें खेतों में काम करती हैं, सब्जियां लाती हैं, फिर कहां गया उन का परदा?’’

‘‘तुम मुझ से बहस कर रही हो?’’ करीम साहब ने गुस्से से कहा.

‘‘अब्बू, मैं बहस नहीं कर रही, बल्कि सही बात कह रही हूं. लड़कों की तरह लड़कियों की भी पढ़ाईलिखाई जरूरी है. अगर वे नौकरी न भी करें तो शादी के बाद मां बन कर अपने बच्चों की देखभाल तो अच्छी तरह कर सकती हैं.’’

बातचीत के दौरान वहां उन के कुछ करीबी रिश्तेदार और पड़ोसी भी आ गए. करीम साहब के एक पोंगापंथी दोस्त कहने लगे, ‘‘छोड़ो बेटी इन बातों को, अभी तुम नादान हो. आज हमारे देश की सरकार मुसलमानों के साथ इंसाफ नहीं कर रही है. सरकारी नौकरियों में हमें बहुत कम लिया जाता है. चारों तरफ हिंदूमुसलिम के झगड़े होते रहते हैं. यहां तक कि लोग हमें गयागुजरा समझते हैं. गिरी निगाहों से देखते हैं.’’

‘‘नहीं चाचा मियां, आप के समझने में फर्क है. जो भी पढ़ाईलिखाई में तेज होता है, वह अपनी मंजिल तक आराम से पहुंच जाता है, चाहे फिर वह हिंदू हो या मुसलमान. आज हिंदुस्तान का हर आदमी आजादी से अपने मजहब के मुताबिक रहने और अपने त्योहार मनाने का पूरा हक रखता है.

‘‘उधर जरा पाकिस्तान और दूसरे मुसलिम देशों को देखो, जो इसलामी देश होने का ढिंढोरा पीटते हैं, पर वहां क्या हो रहा है? इसलाम सिखाता है कि सभी से प्यार करो, न कि सिर्फ मुसलमानों को.

‘‘उन देशों में भी बराबरी का हक नहीं है. यहां से गए मुसलमानों को छोटा समझा जाता है, जबकि हमारे देश के कानून में किसी मजहब या बिरादरी को ज्यादा सुविधा नहीं दी गई है. हमारे देश में पढ़ाईलिखाई के आधार पर ही किसी को नौकरी मिलती है, हिंदूमुसलिम के आधार पर नहीं. इस मामले में लड़केलड़कियों में भी भेद नहीं किया जाता. कई नौकरियों में तो लड़के देखते रह जाते हैं और लड़कियां अपनी पढ़ाईलिखाई और हुनर के बल पर नौकरी पा जाती हैं.

‘‘2 मिसाल हमारे गांव की ही ले लो. हरदेव का बड़ा लड़का एक मुकदमे के चक्कर में जेल चला गया. ऐसे मौके पर किसी ने उस का साथ नहीं दिया. घर में उस की औरत और एक बच्चा था. औरत पढ़ीलिखी थी, इसलिए एक दफ्तर में नौकरी कर ली.

‘‘उस ने खुद की गुजरबसर की और अपने आदमी की भी जमानत करा ली,’’ नरगिस ने करीम साहब की ओर देखते हुए फिर कहा, ‘‘दूसरी ताजा मिसाल नईम की बेटी की ले लो. वह अनपढ़ लड़की शादी के बाद ससुराल गई.

‘‘अभी 2 ही साल बीते होंगे शादी को हुए कि उस का आदमी एक हादसे में मारा गया. सासससुर थे ही नहीं, रिश्तेदारों ने भी दुत्कार दिया उसे.

‘‘अब वह अपने बच्चे के साथ दुख व लाचारी के दिन काट रही है. अगर वह भी पढ़ीलिखी होती तो उस की यह हालत नहीं होती,’’ रजिया ने मजबूती से अपनी बात रखी.

इन सब के बावजूद रजिया अपनेआप को एक गहरे भंवर में फंसा हुआ महसूस कर रही थी. करीम साहब अपने फैसले पर अडिग थे, तो आखिर में रजिया की अम्मी को कहना पड़ा, ‘‘यह फैसला मेरा नहीं, बल्कि खुद रजिया का है. कानून के मुताबिक हमें उस के फैसले में दखल देने का कोई हक नहीं है.’’

‘‘हक क्यों नहीं? क्या हम उस के…’’ करीम साहब ने बहुत कोशिश की कि रजिया बीएड में दाखिला न ले, पर नरगिस ने हमेशा की तरह उस की तरफदारी की और वह बीएड करने लगी.

समय बीतता गया. रजिया की ट्रेनिंग पूरी हो गई. कुछ ही दिनों में वह एक स्कूल में अंगरेजी की बड़ी मास्टरनी हो गई.

करीम साहब रजिया के नौकरी करने से परेशान रहने लगे थे और अकसर उन की तबीयत खराब रहने लगी थी. एक दिन जब रजिया स्कूल से आई तो घर में कोई नहीं था. पड़ोसी से पता लगा कि उस के अब्बू की तबीयत खराब हो गई है. लोग उन्हें अस्पताल ले गए हैं.

कुछ ही देर में रजिया अस्पताल पहुंच गई. वहां बड़ी भीड़ जमा थी.

तभी नर्स ने आ कर कहा, ‘‘खून चाहिए. क्या आप में से कोई खून दे सकता है? अस्पताल में खून नहीं है.’’

खून देने के नाम पर सब चुप हो गए. रजिया सब की ओर देख रही थी. रजिया के कानों में एक ही शब्द ‘खून’ बारबार गूंज रहा था.

‘‘खून जितना चाहिए मेरा ले लीजिए, पर मेरे अब्बू को बचा लीजिए.’’

एकएक पल कीमती था. नर्स उसे अंदर ले गई, पर उस का खून दूसरे ग्रुप का था.

करीम साहब का इलाज करने वाले डाक्टरों में सर्जन वसीम भी थे. वे करीम साहब को पहचान गए, जिन के मकान में तकरीबन 23 साल पहले वे अपने मातापिता के साथ रहते थे.

उस समय वसीम और रजिया बहुत छोटे थे, इसलिए अब वे एकदूसरे को नहीं पहचान पाए थे. उन्हीं दिनों वसीम के पिताजी की बदली देहरादून हो गई थी. वसीम की पढ़ाईलिखाई वहीं हुई. वही वसीम अब सर्जन वसीम हो गए थे और रजिया मास्टरनी. उन्होंने रजिया से पूछा, ‘‘ये आप के क्या लगते हैं?’’

‘‘ये मेरे अब्बू हैं.’’

‘‘तो फिर आप का नाम रजिया होगा?’’ सर्जन वसीम ने सवालिया निगाह रजिया पर डाली.

‘‘जी, हां.’’

तभी वसीम ने अपने सहयोगी डाक्टर विमल से कहा, ‘‘डाक्टर, मेरा ब्लड ग्रुप करीम साहब के ब्लड ग्रुप से मिलता है, इसलिए मेरा खून ले लीजिए,’’ कहते हुए डाक्टर वसीम खून देने के लिए करीम साहब के बगल वाले बिस्तर पर लेट गए.

जब खून देने के बाद डाक्टर वसीम बाहर निकले, तो रजिया बड़े आभार से उन्हें देखने लगी और बोली, ‘‘मैं तुम्हारा शुक्रिया किस तरह अदा करूं. तुम ने मेरे अब्बू की जान बचा ली.’’

‘‘अरे, यह तो मेरा फर्ज था,’’ वसीम ने झुकी नजरों से कहा.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ होश में आने पर करीम साहब ने पूछा.

‘‘वसीम. शायद आप ने मुझे पहचाना नहीं? आप रफीक साहब को तो जानते होंगे, जो आप के मकान में रहते थे?’’

‘‘हां. वही रफीक साहब जो सरकारी बैंक में मैनेजर थे?’’

‘‘जी हां, मैं उन्हीं का लड़का हूं.’’

अब सर्जन वसीम बिना रोकटोक उन के घर में आनेजाने लगे. एक शाम चाय पीने के बाद वसीम वहां से चले गए. रजिया ने खिड़की खोल कर सड़क की ओर देखा. सड़क की ज्यादातर बत्तियां बुझ चुकी थीं. सड़क सुनसान थी, जिसे वसीम के जूतों की आहट तोड़ रही थी. पेड़ों, मैदानों और मकानों पर चांदनी छिटक गई थी.

तभी रजिया ने खिड़की के पट बंद कर दिए और सोने की कोशिश करने लगी. लेकिन उस की आंखों के आगे बारबार वसीम का चेहरा नाचने लगता. उस के दिल में वसीम के प्रति प्यार हिलोरे मारने लगा था.

हो भी क्यों न. वसीम थे ही इतने हैंडसम. 5 फुट, 10 इंच का कद, चौड़ा सीना, चेहरामोहरा भी बहुत गजब. कालेज में खूब लड़कियां उन पर मरती होंगी.

एक दिन जब डाक्टर वसीम जाने लगा, तो रजिया ने अकेले में कहा, ‘‘कल मेरे जन्मदिन की पार्टी है. तुम आओगे न?’’

‘‘क्यों नहीं, जरूर आऊंगा और तुम्हें एक खूबसूरत तोहफा दूंगा.’’

यह सुन कर रजिया मुसकरा दी.

पार्टी के दिन अकेले में डाक्टर वसीम ने रजिया से कहा, ‘‘रजिया, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘शादी?’’ रजिया ने चौंक कर कहा, ‘‘क्या यही तोहफा है तुम्हारा?’’

‘‘सिर्फ यह ही नहीं, एक और भी है,’’ कहते हुए डाक्टर वसीम ने सोने की एक अंगूठी रजिया की उंगली में पहना दी.

कुछ ही दिनों में दोनों पक्षों में बातचीत शुरू हो गई. डाक्टर वसीम भी अपने मातापिता की एकलौती औलाद थे, इसलिए वे अपने बेटे के लिए अच्छे खानदान की खूबसूरत और पढ़ीलिखी बहू चाहते थे. राजकुमारी सी रजिया उन्हें एक ही नजर में भा गई.

करीम साहब अपनी रजिया का इतने अच्छे घराने में रिश्ता होने पर फूले नहीं समा रहे थे.

‘‘देखा न आप ने, यह सब रजिया की पढ़ाईलिखाई की वजह से हुआ है,’’ रजिया की अम्मी नरगिस ने करीम साहब से कहा.

करीम साहब बोले, ‘‘तुम ठीक कहती हो. अगर रजिया पढ़ीलिखी नहीं होती, तो किसी डाक्टर से निकाह की बात सोच भी नहीं सकती थी. यह बात सच है कि कोई मजहब पढ़ाईलिखाई के लिए मना नहीं करता.

‘‘उस वक्त मेरी आंखों पर पट्टी पड़ गई थी. अब मेरी आंखें खुल गई हैं. मैं अब सब को सही सलाह दूंगा कि

लड़के के साथसाथ लड़की की तालीम भी जरूरी है, तभी हमारी बिरादरी आगे बढ़ सकेगी.’’

और राज खुला : किरन ने क्यों बनाया आटोरिकशा वाला दोस्त

‘‘राजू मेरा नाम है. अक्ल एमए पास है और शक्ल पीएचडी करने के काबिल है,’’ अपने आटोरिकशा की रफ्तार को और तेज करते हुए राजू ने अपना परिचय फिल्मी अंदाज में दिया.

यूनिवर्सिटी के सामने से राजू ने एक खूबसूरत सवारी अपने आटोरिकशा में बैठाई थी. मशरूम कट बाल, आंखों पर नीला चश्मा, गुलाबी टीशर्ट और काली जींस पहने उस सवारी ने उस से यों ही नाम पूछ लिया था.

उस के जवाब में राजू ने अपना दिलचस्प परिचय दिया था.

राजू के जवाब पर वह सवारी मुसकरा दी, ‘‘बड़े दिलचस्प आदमी हो. कितने पढ़ेलिखे हो?’’

‘‘मैं ने इतिहास में एमए किया है. आगे पढ़ने का इरादा है, लेकिन पिताजी की अचानक मौत हो जाने की वजह से घर की गाड़ी में ब्रेक लग गया है. बैंक से कर्ज ले कर यह आटोरिकशा खरीदा है. दिनभर कमाई और रातभर पढ़ाई. बात समझ में आई…’’

‘‘वैरी गुड, कीप इट अप. तुम बहुत होशियार और मेहनती हो. मेरा नाम किरन है,’’ उस सवारी ने राजू की बात से खुश होते हुए कहा.

किरन को साइड मिरर में देख कर राजू ने सोचा, ‘यह जरूर किसी बड़े बाप की औलाद है. एसी में बैठ कर चेहरा गुलाबी हो गया है.’

आटोरिकशा आंचल सिनेमा के पास से गुजरा. उस में एक पुरानी फिल्म ‘मुझ से दोस्ती करोगे’ चल रही थी. किरन ने फिल्म का पोस्टर देख कर कहा, ‘‘मुझ से दोस्ती करोगे?’’

‘‘क्यों नहीं करूंगा. इतिहास गवाह है कि मर्द को अपने दोस्त और अपनी औरत से ज्यादा अजीज कुछ नहीं होता,’’ राजू ने जोश में आ कर कहा.

राजू की बात सुन कर किरन के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगी. उस ने तो फिल्म का बस नाम पढ़ा था और राजू ने उस का और ही मतलब निकाल लिया था, पर उस के चेहरे से जाहिर हो रहा था कि उसे इस पढ़ेलिखे आटोरिकशा वाले से दोस्ती करने में कोई एतराज नहीं है.

राजू खुश था. खुशी से उस का चेहरा दमक उठा था. पिछले 6 महीने से वह इस रूट से सवारियां उठाता रहा था, मगर हर कोई उस से तूतड़ाक में ही बात करता था. पहली बार उस के आटोरिकशा में ऐसी सवारी बैठी थी, जिस का दिल भी उसे उतना ही खूबसूरत लगा, जितना कि बदन.

‘‘आप को कहां जाना है, यह तो आप ने बताया ही नहीं?’’ राजू ने पीछे मुड़ कर पूछा.

‘‘पांचबत्ती चौराहा…’’ छोटा सा जवाब देने के बाद किरन ने गला साफ करते हुए पूछा, ‘‘फिल्में देखते हो?’’

‘‘बचपन में खूब देखता था, इसलिए फिल्मों का मुझ पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है.’’

तभी आटोरिकशा एक झटके से रुक गया और राजू बोला, ‘‘आप की मंजिल आ गई.’’

‘‘बातोंबातों में समय का पता ही नहीं चला,’’ कह कर किरन ने 20 रुपए का नोट निकाल कर राजू की ओर बढ़ाया.

राजू नोट लेने से इनकार करते हुए बोला, ‘‘दोस्ती इस मुलाकात तक ही थी तो बेशक मैं पैसे ले लूंगा, वरना आप यह नोट वापस अपनी जेब के हवाले कर लें.’’

किरन ने मुसकरा कर राजू को घूरती निगाहों से देखा, जैसे उस की निगाहें यह परख रही हों कि उस ने किसी गलत आदमी को तो अपना दोस्त नहीं बनाया है.

किरन ने नोट वापस जेब में रख लिया और फिर अपना हाथ राजू की तरफ बढ़ाया. राजू ने दोस्त के रूप में किरन का हाथ थाम लिया.

राजू ने महसूस किया कि किरन का हाथ छूते ही उस के दिमाग में अजीब सी तरंगें उठीं. किरन के जाने के 10 मिनट बाद तक राजू वहीं खड़ा रहा.

दूसरे दिन राजू को यूनिवर्सिटी के बाहर किरन के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा.

आटोरिकशा में बैठते ही किरन ने कहा, ‘‘राजू, तुम्हें एमए में कितने फीसदी नंबर मिले थे?’’

‘‘64 फीसदी,’’ कहते हुए राजू ने आटोरिकशा स्टार्ट कर साइड मिरर में किरन के चेहरे को देखा.

किरन ने राजू का जोश बढ़ाते हुए कहा, ‘‘फिर तो तुम प्रतियोगी इम्तिहान पास कर के किसी भी कालेज में लैक्चरर बन सकते हो.’’

‘‘दोस्त, अपनी तकदीर खराब है. मेरी तकदीर में तो यह आटोरिकशा चलाना ही लिखा है.’’

‘‘तकदीर, माई फुट… मुझे इन चीजों पर यकीन नहीं है. आदमी अगर पूरी लगन से काम करे तो वह जो चाहता है, पा सकता है,’’ किरन ने राजू को डांट दिया.

राजू और किरन की दोस्ती पक्की हो गई थी. दोनों राजनीति, पढ़ाईलिखाई, फिल्म, दूसरी घटनाओं वगैरह पर खुल कर बातचीत करने लगे थे.

उस दिन रविवार था. राजू सुबहसुबह पांचबत्ती चौराहा पहुंच गया. आज उस की सालगिरह थी और वह उसे किरन के साथ मनाना चाहता था.

चौराहे के दाईं ओर किरन का बंगला था. बेबाक बातें करने में माहिर किरन ने राजू को अपने नाम के अलावा अपनी निजी जिंदगी और परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया था.

किरन को बंगले से निकल कर आते देख राजू का चेहरा खिल गया. राजू को खुश देख कर किरन के होंठों पर भी मुसकान उभरी.

किरन के आटोरिकशा में बैठते ही राजू ने म्यूजिक सिस्टम चला दिया. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना…’ गीत ने किरन के चेहरे पर ताजगी ला दी. उस ने राजू से पूछा, ‘‘क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘तुम बोलो. जहां चाहो, वहां घुमा दूंगा. अच्छे होटल में खाना खिला दूंगा,’’ राजू ने कहा.

‘‘चलो, शहर में घूमते हैं. फिर दिल ने जो चाहा वही करेंगे. बोलो, मंजूर है?’’ किरन ने कहा.

‘‘आज का पूरा दिन तुम्हारे नाम. जो चाहोगे वही होगा,’’ कह कर राजू ने आटोरिकशा शहर के बाजार के भीड़भाड़ वाले इलाके की ओर मोड़ दिया.

थोड़ी दूर जाने के बाद किरन ने राजू को आटोरिकशा रोकने के लिए कहा. राजू ने आटोरिकशा रोक दिया.

‘‘आज मेरा मूड बहुत खराब है. मुझे तुम्हें कुछ बताना है. एक ऐसा सरप्राइज, जो तुम्हें चौंका देगा,’’ किरन ने आटोरिकशा रुकने के बाद कहा.

‘‘तो बताओ, क्या है सरप्राइज?’’

‘‘ऐसे नहीं, पहले तुम मुझे कुछ खिलाओपिलाओ.’’

‘‘क्या पीना है, कोल्ड डिंक या जूस?’’ राजू ने पूछा.

‘‘शराब पीनी है.’’

‘‘शराब, वह भी दिन में… मैं ने तो कभी शराब को छुआ तक नहीं,’’ राजू ने हैरानी से कहा.

‘‘अभी तो तुम ने मेरी मरजी के मुताबिक दिन बिताने का वादा किया था और फौरन भूल गए,’’ किरन ने कहा.

‘‘ठीक है, चलो,’’ कह कर राजू ने बेमन से आटोरिकशा बाजार की ओर बढ़ा दिया.

शराब का ठेका पास ही था. राजू शराब की बोतल ले आया. साथ में 2 कोल्ड ड्रिंक की बोतलें भी थीं. फिर दोनों सुनसान जगह पर जा पहुंचे. राजू ने वहां आटोरिकशा खड़ा कर दिया.

किरन ने कोल्ड ड्रिंक की दोनों बोतलों को आधा खाली कर के उन में शराब डाल दी. राजू का मन थोड़ा बेचैन सा हो गया, लेकिन वह अपने नए दोस्त को नाराज नहीं करना चाहता था. दोनों शराब पीने लगे.

जैसा कि शराब पीने के बाद पीने वाले का हाल होता है, वही उन दोनों का भी हुआ. किरन को कम, मगर राजू को बहुत नशा चढ़ गया. वह निढाल सा हो कर आटोरिकशा की पिछली सीट पर बैठ गया.

‘‘चलो, अब शहर घूमते हैं. अब आटोरिकशा चलाने का जिम्मा मेरा,’’ कह कर किरन ने आटोरिकशा स्टार्ट कर दिया.

किरन को कार चलानी आती थी, इसलिए आटोरिकशा चलाना उसे बाएं हाथ का खेल लगा. उस ने आटोरिकशा का हैंडिल थाम लिया और भीड़भाड़ वाली सड़क की ओर मोड़ दिया.

नशे के सुरूर में किरन से आटोरिकशा संभल नहीं रहा था, फिर भी उसे चलाने में मजा आने लगा.

बाजार में घुसते ही आटोरिकशा सब्जी के एक ठेले से टकरा गया, फिर आगे बढ़ कर एक साइकिल सवार को ऐसी टक्कर मारी कि वह बेचारा सड़क पर मुंह के बल गिर पड़ा. उस के होंठ व नाक से खून बहने लगा.

वह साइकिल सवार आटोरिकशा चलाने वाले को भलाबुरा कहता, उस से पहले ही सड़क के किनारे एक शोरूम के सामने खड़ी कार से आटोरिकशा टकरा कर बंद हो गया.

नशे की वजह से राजू को कुछ भी पता नहीं लगा. देखते ही देखते वहां लोगों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई.

‘‘2 थप्पड़ मारो इस को, अभी नशा उतर जाएगा. दूध के दांत भी नहीं टूटे कि शराब पीना शुरू कर दिया,‘‘ भीड़ में से किसी ने कहा.

एक लड़के ने किरन को खींच कर आटोरिकशा से बाहर निकाला और पीटना शुरू किया.

‘‘मुझे मत मारो, मैं…’’ किरन ने डरते हुए कहा. मगर उस की बात किसी ने नहीं सुनी.

तभी 2 पुलिस वाले वहां आ गए. उन्होंने भी लगे हाथ किरन के गालों पर 2 थप्पड़ रसीद कर दिए.

शोरगुल सुन कर नशे में धुत्त राजू उठ खड़ा हुआ. मारपीट देख कर वह घबरा गया. वह किरन को बचाने के लिए भीड़ में घुस गया, मगर भीड़ तो मरनेमारने पर उतारू हो चुकी थी.

‘‘मैं लड़की हूं. मुझ पर हाथ मत उठाओ,’’ किरन ने चीखते हुए कहा.

‘‘अच्छा, खुद को लड़की बता कर पिटने से बचना चाहता है…’’ एक आदमी ने उसे घूंसा मारते हुए कहा.

किरन चेहरेमोहरे और कपड़ों से लड़की नहीं लगती थी. लोगों ने उसे पीटना जारी रखा. राजू भी बीचबचाव में किरन के साथ पिटने लगा.

‘‘मैं लड़की हूं… मुझे छोड़ दो,’’ किरन ने जोर से चिल्लाते हुए अपनी टीशर्ट उतार दी.

किरन के टीशर्ट उतारते ही लोग सकते में आ गए. वे दूर हट कर खड़े हो गए. किरन के कसे हुए ब्लाउज में छाती के उभार उस के लड़की होने का सुबूत दे रहे थे.

यह देख कर राजू का नशा काफूर हो गया. जिसे वह लड़का समझ कर दोस्ती निभा रहा था, वह एक लड़की थी.

यह राज खुलना लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि राजू के लिए भी अचरज की बात थी.

मजबूरी : क्या बेटी का दहेज जुटा पाए शराफत अली

शराफत अली बड़ी बेचैनी से कमरे में चहलकदमी कर रहे थे. कभी वे दरवाजे के पास आ कर बाहर की तरफ देखते, तो कभी मोबाइल की घड़ी को. घड़ी की बढ़ती गिनती के साथ उन की चहलकदमी और भी तेज होती जा रही थी.

शराफत अली सोच रहे थे, ‘आखिर अभी तक वे लोग आए क्यों नहीं? मैं ने तो दोपहर में 2 बजे का वक्त दिया था और अब तो 3 बजने वाले हैं. फोन भी नहीं मिल रहा. आखिर ऐसी कौन सी वजह हो सकती है?’

इसी बीच एक टैक्सी तेजी से आ कर उन के दरवाजे के पास रुकी. उस टैक्सी में से एक आदमी और 2 औरतें बाहर निकलीं. टैक्सी वाले को पैसे देने के बाद वे तीनों शराफत अली के घर की तरफ बढ़े.

यह देख कर शराफत अली का चेहरा खिल उठा. वे तेजी से उन लोगों की तरफ लपके. तब तक वे तीनों दरवाजे तक आ चुके थे. शराफत अली ने बढ़ कर हाथ मिलाया और उन्हें अंदरले आए.

‘‘बैठिए, तशरीफ रखिए,’’ शराफत अलीने कहा.

‘‘जी, शुक्रिया. भई, हम लोग थोड़ी देर से आने के लिए माफी चाहते हैं,’’ उस आदमी ने बैठते हुए कहा.

शराफत अली बोले, ‘‘अरे नहीं, इस में माफी की क्या बात है, यह तो सभी के साथ हो जाता है.’’

‘‘माफ कीजिएगा साहब, आज ज्यादा देर तक नहीं रुक सकेंगे, इसलिए हो सके तो जल्द ही बिटिया को बुलवा लीजिए,’’ एक औरत ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. जैसी आप की मरजी,’’ कहते हुए शराफत अली अंदर चले गए.

जब कुछ देर बाद वे लौटे, तो उन के हाथों में नाश्ते की एक ट्रे थी. उसे

मेज पर रखते हुए वे बोले, ‘‘लीजिए, नाश्ता कीजिए.’’

‘‘अरे, इस की क्या जरूरत थी? आप बेकार परेशान हुए,’’ आदमीने कहा.

‘‘नहीं, इस में परेशानी की क्या बात है. यह तो हमारा फर्ज है. जीनत बेटी, चाय ले आओ,’’ शराफत अली ने कहा.

जीनत चाय ले कर जैसे ही अंदर दाखिल हुई, उस की खूबसूरती देख कर वे तीनों दंग रह गए.

‘‘जमाल साहब, यह है मेरी बेटी जीनत,’’ शराफत अली ने जीनत का परिचय कराते हुए कहा. तब तक जीनत चाय मेज पर रख कर वापस जा चुकी थी.

‘‘शराफत साहब, इसे आप ने तालीम कहां तक दिलवाई है?’’ जमाल अहमद ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा.

‘‘जी, इसी साल इस ने बीए किया है.’’

‘‘तो ठीक है, हमें आप की लड़की पसंद है. सबीहा, तुम लोग अंदर जा कर जीनत से कुछ बातचीत करो, तब तक मैं शराफत साहब से कुछ जरूरी बातें करता हूं,’’ जमाल अहमद ने कहा. वे दोनों औरतें उठ कर अंदर चली गईं.

‘‘देखिए शराफत साहब, हम चाहते हैं कि हमारी जो भी बातचीत हो, साफसुथरी हो, ताकि बाद में कोई मसला न खड़ा हो.

‘‘यह तो आप जानते ही हैं कि मैं ने अभी कुछ ही दिनों पहले अपनी 2 बेटियों की शादी की है. जमा किए गए मेरे सारे रुपए तो उसी में खर्च हो गए. अब मेरे पास इतने रुपए तो हैं नहीं कि मैं अकरम की शादी में कुछ लगा सकूं, इसलिए मैं चाहता हूं कि जो नकद रुपए आप उस वक्त देें, वे मुझे पहले ही दे दें, क्योंकि मैं अकरम की शादी धूमधाम से करना चाहता हूं,’’ जमाल अहमद ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘तो आप मुझ से कितना पैसा चाहते हैं?’’ शराफत अली ने पूछा.

‘‘कुछ खास नहीं, बस यही कोई 2 लाख रुपए. बाकी तो आप खुद ही देंगे. अपनी बेटी को खाली हाथ थोड़े ही विदा कर देंगे.

‘‘अब आप जानते ही हैं कि आजकल दफ्तर आनेजाने में सवारी के लिए काफी परेशान होना पड़ता है. यही वजह है कि काफी समय लग जाता है. आप का दामाद घर जल्दी चला आए, ताकि आप की बेटी को ज्यादा इंतजार न करना पड़े, इस के लिए आप बाइक तो देंगे ही.’’

‘‘2 लाख और साथ में बाइक भी?’’ शराफत अली चौंके.

‘‘अब देखिए न, आजकल इतनी सख्त गरमी पड़ती है कि आधा घंटे भी आप बाहर नहीं रह सकते. एसी होने से आप की बेटी को ठंडी हवा मिलती रहेगी.

‘‘और हां, आजकल के लड़केलड़कियों को फिल्म देखने का इतना शौक होता है कि चाहे कितने पैसे बरबाद हो जाएं, सिनेमाघर जरूर जाएंगे. जब घर में 60 इंच का बड़ा एलईडी टीवी होगा, तो वह फुजूलखर्ची अपनेआप बंद हो जाएगी. और अब खुद से क्या बताऊं, आप खुद ही समझदार हैं.’’

‘‘लेकिन जमाल साहब, मैं इस हालत में नहीं हूं कि इतना सब कर सकूं,’’ शराफत अली ने मजबूरी बताते हुए कहा.

‘‘चलिए, कोई बात नहीं. यह जरूरी नहीं कि आप छोटेबड़े सभी सामान हमें दें. अरे, 10-20 हजार रुपए के छोटेमोटे सामान आप हमें नहीं दीजिएगा तो मुझे कोई शिकायत नहीं होगी,’’ जमाल अहमद ने मानो एहसान जताते हुए कहा.

‘‘यह आप कैसी बातें कर रहे हैं जमाल साहब… आप आप तो मुसलमान हैं. आप के मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं,’’ शराफत अली ने कहा.

‘‘जी हां, मैं जानता हूं कि मैं मुसलमान हूं, लेकिन मैं यह भी अच्छी तरह जानता हूं कि मैं उस वक्त भी मुसलमान था, जब मेरी बड़ी बेटी दहेज की आग में जिंदा जला दी गई थी. मैं उस वक्त भी मुसलमान था, जब मैं ने अपनी 2 बेटियों की शादी में 5-7 लाख रुपए का खर्च उठाया था और आज जब मेरा वक्त आया, तो आप मुझे मेरे मुसलमान होने की याद दिला रहे हैं,’’ कहतेकहते जमाल अहमद का चेहरा सख्त होता चला गया.

‘‘मेरे कहने का यह मतलब नहीं था, जमाल साहब. मैं तो सिर्फ अपनी बात कर रहा था कि मैं साधारण आदमी हूं. अब आप ही सोचिए कि मैं इतना सब कैसे कर सकता हूं? मेरी मजबूरी समझने की कोशिश कीजिए जमाल साहब,’’ शराफत अली ने तकरीबन गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘कोई बात नहीं, जब आप की मजबूरी खत्म हो जाए, तभी अपनी इस बेटी की शादी के बारे में सोचिएगा, क्योंकि इस जमाने में बेटी को अगर खुश देखना चाहते हैं, तो मुंहमांगा दहेज भी देना पड़ेगा, वरना…

‘‘खैर, छोडि़ए न इन सब बातों को. मैं ऐसे हालात पर पहुंचने के बजाय शादी न करना ही बेहतर समझता हूं. और बुरा मत मानिएगा, बिना दहेज के कम से कम मैं तो शादी नहीं कर सकता,’’ जमाल अहमद ने बड़ी बेरुखी से कहा.

‘‘देखिए जमाल साहब, जो मुझ से हो सकता है, वह तो मैं दूंगा ही, लेकिन आप की मांगें मुझ जैसे आदमी के लिए बहुत ज्यादा हैं,’’ शराफत अली ने अपनी आवाज में नरमी ला कर कहा.

‘‘हो सकता है, लेकिन मैं इस से कम में शादी नहीं कर सकूंगा. आप ठीक से सोचसमझ लें.

मुझे कोई जल्दी नहीं है,’’ जमाल अहमद ने कहा और अपने साथ आईं औरतों को साथ ले कर वहां से चले गए.

शराफत अली एकदम ठगे से खड़े रह गए. जमाल अहमद की बातों से उन्हें गहरी चोट पहुंची थी. पहुंचती भी क्यों न, उन की बेटी का यह तीसरा रिश्ता भी दहेज की वजह से आज तय होतेहोते रह गया. वे कुछ सोचने लग गए.

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ अचानक उन के मुंह से ऐसे निकला मानो उन्होंने कोई बड़ा फैसला कर लिया हो.

रात के 2 बजने वाले थे. तभी महल्ले में शोर हुआ, ‘‘चोर… चोर… पकड़ो… चोर.’’

ये आवाजें शराफत अली के घर के पास ही रहने वाली रमा देवी के घर से उठ रही थीं. जब लोग वहां पहुंचे, तब तक चोर भाग चुका था.

रमा देवी बुरी तरह रोरो कर कह रही थीं, ‘‘अरे, कुछ करो. मैं लुट गई, बरबाद हो गई. अपनी बेटी की शादी के लिए एकएक पैसा मैं ने जमा किया था. अब मैं क्या करूंगी? पूरे 12 लाख रुपए के जेवर उठा ले गए. मैं तो अब कहीं की नहीं रही.’’

रमा देवी इस महल्ले की अच्छी औरतों में गिनी जाती थीं. अपने पति की मौत के बाद से वे किसी तरह सिलाईकढ़ाई कर के अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच रही थीं. उस वक्त उन के 3 छोटेछोटे बच्चे थे, 2 लड़कियां और एक छोटा लड़का. अगले हफ्ते ही उन की बेटी की बरात आने वाली थी. लोग उन्हें समझाबुझा कर थाने ले गए और चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई.

चोरी हुए 12 घंटे बीत चुके थे, लेकिन अभी तक चोर का कोई पता नहीं लगाया जा सका था. अब रमा देवी चुप हो कर बैठ गई थीं.

तभी शराफत अली हाथ में एक झोला लिए हुए उन के मकान में दाखिल हुए. रमा देवी के नजदीक पहुंच कर उन्होंने अपना झोला पलट दिया. उस में से और जेवरात नीचे गिरे.

यह देख कर रमा देवी की खुशी का ठिकाना न रहा, लेकिन अगले ही पल उन के मुंह से निकला, ‘‘यह आप के पास कैसे…?’’

‘‘बहन, मैं ने ही तुम्हारे घर में चोरी की थी. मैं ने ही भागते वक्त तुम्हें धक्का दिया था…’’ रुंधे गले से शराफत अली ने कहा.

‘‘आप ने? लेकिन क्यों?’’ रमा देवी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘अपनी बेटी के दहेज का इंतजाम जो करना था,’’ शराफत अली ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘तो फिर आप इन्हें वापस करने क्यों चले आए?’’

‘‘और करता भी क्या? जिस के लिए मैं ने यह चोरी की, वही नहीं रही,’’ कह कर शराफत अली फफकफफक कर रोने लगे.

‘‘जीनत नहीं रही? मगर, यह हुआ कैसे?’’ रमा देवी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘कुछ पल चुप रह कर उन्होंने कहा, ‘‘कल रात जब मैं आप के घर से चुराया हुआ माल ले कर अपने घर पहुंचा, तो महल्ले वालों के शोर से जीनत भी जाग चुकी थी. मैं दौड़ताहांफता हुआ जैसे ही अपने घर में अंदर घुसा, वैसे ही मेरा हाथ दरवाजे की चौखट पर इतनी जोर से टकराया कि झोला हाथ से छूट कर दूर जा गिरा.

‘‘तब तक जीनत वहां चली आई थी. बिखरे माल को देख कर उस ने मुझे झकझोरते हुए पूछा, ‘अब्बू, आप ने चोरी की है? बोलते क्यों नहीं, आप ने चोरी की है?’

‘‘मैं ने दरवाजा बंद करते हुए कहा. ‘हांहां, मैं ने चोरी की है,’

‘‘वह बोली, ‘मगर क्यों? अब्बू, क्यों?’

‘‘मैं ने कहा, ‘इसलिए कि तुझे डोली में बैठा कर विदा कर सकूं, दहेज के इन भूखे भेडि़यों के मुंह पर चांदी का जूता मार सकूं.’

‘‘इतना सुनते ही वह बोली, ‘नहीं अब्बू, नहीं. मुझे नहीं चाहिए ऐसी डोली, जो किसी बेबस की आहों पर उठे, नहीं चाहिए मुझे ऐसी डोली, नहीं चाहिए,’

‘‘यह कहते हुए जीनत अंदर चली गई. जब कुछ देर बाद मैं उस के कमरे में पहुंचा तो देखा कि पंखे से लटक रहे एक रस्सी के फंदे में वह झूल रही थी,’’ कहतेकहते शराफत अली चक्कर खा कर जमीन पर गिर पड़े.

मुंदरी का इंतकाम : क्या मिल पाई बलात्कारियों को सजा

जटपुर गांव की मुंदरी को जब यह पता चला कि उस की बड़ी बहन सुंदरी अपने 4 बलात्कारियों को तबाह और बरबाद कर के ईंटभट्ठे से गायब हो गई है, तो उसे अपनी बहन की बहादुरी और होशियारी पर बड़ा गर्व हुआ.

मुंदरी के मन में यह बात गहराने लगी कि उसे भी अपनी बहन की तरह बहादुर बनना है. वह जानती थी कि वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो है नहीं, इसलिए उसे कोई बड़ी नौकरी मिलने से रही. हां, ईंटभट्ठे पर मजदूरी का काम उसे जरूर मिल सकता है.

मुंदरी ने अपने पिता जगप्रसाद से अपने मन की बात कही, ‘‘पिताजी, मुझे भी उसी ईंटभट्ठे पर काम करना है, जहां दीदी काम करती थीं.’’

‘‘बिटिया, सुंदरी के जाने के बाद मेरा मन निढाल हो गया है. यह सब तू अच्छी तरह से जानती है कि ये दिन मैं ने कैसे काटे हैं. अगर तू भी उसी ईंटभट्ठे पर काम करना चाहती है, तो तेरी मरजी. मैं कुछ नहीं कहने वाला. सुंदरी लड़ कर गई थी, इसलिए तुझे रोकने की मेरी हिम्मत नहीं. घर में अगर दो पैसे आएंगे, तो क्या मुझे काटेंगे…’’

मुंदरी अगले ही दिन नेमतपुर गांव गई, जहां पर वह ईंटभट्ठा था. वह ठेकेदार रामपाल से नौकरी के बाबत मिली, लेकिन जब रामपाल को यह पता चला कि मुंदरी तो सुंदरी की बहन है, इसलिए वह उसे काम पर रखने के लिए आनाकानी करने लगा. उसे लगा कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फंस जाए. उस के मन में काला चोर बैठा था. उस ने सुंदरी के साथ क्याक्या किया था, उसे वे सारी बातें याद आने लगीं.

लेकिन तभी रामपाल को मुंदरी में सुंदरी का अक्स उभरता हुआ नजर आने लगा. उसे रंगीन रातें याद आने लगीं. मुंदरी को देख कर उस की हवस जागने लगी. मुंदरी की खूबसूरती और उभरती जवानी उसे अपनी ओर खींचने लगी.

लंगोट का कच्चा आदमी कहीं भी गिर जाता है. रामपाल की कमजोरी उस पर हावी हो गई और वह उसे काम पर रखने के लिए तैयार हो गया.

मुंदरी को भी ईंटभट्ठे पर रहने के लिए वही कोठरी दी गई, जो सुंदरी को रहने के लिए दी गई थी. उसे इस कोठरी में सुंदरी की याद सताने लगी. उसे याद आता कि बलात्कार के बाद कैसे सुंदरी डरीडरी और सहमीसहमी सी रहने लगी थी. बलात्कारियों के जमानत पर छूटने पर वह कैसे गुस्सा हो उठी थी. उस के बाद वह कैसे परिवार वालों से लड़?ागड़ कर ईंटभट्ठे पर आ गई थी और फिर कैसे अपने बलात्कारियों से उस ने जम कर बदला लिया था.

तब मुंदरी सोचने लगती कि आखिर उस भली और संकोची लड़की में यहां आने पर इतनी हिम्मत कहां से आ गई. वह इस राज को जानने के लिए बेसब्र हो उठी, लेकिन इस राज से परदा उठने में देर न लगी.

कुछ ही दिन बाद ठेकेदार रामपाल ने मुंदरी को अपने औफिस में बुलाया और उस से कहा, ‘‘मुंदरी, तुम्हारी बहन सुंदरी को हम ने यहां आने वाले ग्राहकों और हम से मिलने आने वाले लोगों के लिए चाय और पानी पिलाने का काम दिया था. हम तुम्हें भी यही काम देना चाहते हैं. क्या तुम यह काम करना चाहोगी?’’

मुंदरी को रामपाल पहले दिन से ही अच्छा आदमी नहीं लगा था. वह उस से दूर ही रहना चाहती थी. उस ने कहा, ‘‘साहब, अगर हम मिट्टी ढोने और ईंट पाथने का ही काम करें, तो क्या आप को कोई एतराज है?’’

रामपाल तो यही सोचता था कि मुंदरी अपनी बहन सुंदरी की तरह इस काम को करने के लिए आसानी से मान जाएगी, लेकिन वह तो आनाकानी कर रही थी. अपने दांव को उलटा पड़ता देख रामपाल ने चतुर शिकारी की तरह पैंतरा बदला और दूसरा दांव चला, ‘‘अरे, तुम खूबसूरत हो, जवान हो, इसलिए हम तुम को यह काम दे रहे हैं.’’

लेकिन यह सुनते ही मुंदरी भड़क गई, ‘‘साहब, हम यहां मजदूरी कर के दो पैसे कमाने आए हैं, अपनी खूबसूरती और जवानी की बोली लगाने नहीं. हमारे जिस्म पर बुरी नजर मत डालिए.’’

रामपाल तुरंत संभला. उसे ध्यान आया कि वह मुंदरी से बातें कर रहा है, सुंदरी से नहीं, लेकिन वह औरतों और लड़कियों को अच्छी तरह से संभालना जानता था. वह अपने क्षेत्र का अनुभवी खिलाड़ी था, अनाड़ी नहीं.

रामपाल ने मामले को तुरंत संभाला, ‘‘अरे मुंदरी, तुम तो नाहक ही नाराज होती हो. मेरे कहने का तो बस यह मतलब था कि सुंदरी का काम हम तुम्हें सौंपना चाहते हैं. कितनी अच्छी चाय बनाती थी तुम्हारी बहन, इसी तरह तुम भी अच्छी चाय बनाती होगी… क्यों?’’

‘‘हां तो साहब यह कहिए न. दीदी का काम हम संभालने के लिए तैयार हैं, लेकिन आगे से हमारे शरीर और उम्र के बारे में कुछ मत कहिएगा,’’ मुंदरी ने रामपाल को नसीहत देते हुए कहा.

रामपाल मन ही मन सोचने लगा, ‘बकरे की अम्मां कब तक खैर मनाएगी. एक बार चंगुल में फंस जा मुंदरी, तुझे तेरी जवानी का मजा न चखा दिया तो कहना.’

‘‘क्या सोचने लगे साहब?’’ सोच में डूबे रामपाल से मुंदरी ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं मुंदरी, बस यही सोच रहा था कि तुम्हारी बहन सुंदरी कितनी अच्छी चाय बनाती थी. उस की चाय पी कर कितना मजा आता था. मुंदरी, कल से तुम ही चायपानी का काम संभालो.’’

‘‘ठीक है साहब, जैसा आप का हुक्म,’’ मुंदरी बोली.

अगले दिन से मुंदरी चायपानी का काम संभालने लगी. रामपाल तो बस इसी मौके की तलाश में था कि वह कैसे मुंदरी को अपनी हवस का शिकार बनाए. रामपाल ने उसे सब तरह का लालच दे कर देख लिया, लेकिन मुंदरी उस के शिकंजे में फंसने के लिए किसी कीमत पर तैयार नहीं हो रही थी.

अब रामपाल ने मुंदरी को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए आखिरी पासा फेंका. एक शाम जब रामपाल के औफिस में कोई नहीं था और मुंदरी अपनी कोठरी पर जाने की तैयारी में थी.

तभी रामपाल ने मुंदरी को अपने औफिस में बुलाया और कहा, ‘‘मुंदरी, तुम्हारे काम को देख कर मालिक ने तुम्हारी पगार 500 रुपए बढ़ाने का फैसला किया है.’’

यह सुन कर मुंदरी बड़ी खुश हुई. उस ने कहा, ‘‘साहब, यह तो हमारे लिए बड़ी खुशी की बात है. यह सब आप की मेहरबानी है.’’

‘‘अरे मुंदरी, ले इस खुशी में यह कोल्ड ड्रिंक पी. बहुत गरमी हो रही है.’’

‘‘हां साहब, गरमी तो बहुत तेज है,’’ कोल्ड ड्रिंक का गिलास पकड़ते हुए मुंदरी ने कहा.

मुंदरी कोल्ड ड्रिंक के गिलास को होंठों से लगा कर उसे गटागट पीने लगी. उसे कोठरी पर जाने की जल्दी थी, लेकिन रामपाल की हवस भरी निगाहें तो उस के उभरे जिस्म को ताड़ रही थीं. वह तो बड़े आराम से कुरसी पर ?ाल रहा था.

मुंदरी ने जल्दी से गिलास खाली किया. अभी उस ने जाने के लिए गिलास को मेज पर रखा ही था कि उसे सिर में बेचैनी सी महसूस हुई. उसे चक्कर आने लगे. वह कुरसी पकड़ कर उस पर बैठना चाहती थी, लेकिन वह चक्कर खा कर जमीन पर गिर पड़ी.

रामपाल के चेहरे पर शैतानी मुसकान उभरी. उस का दांव कामयाब रहा. उस ने बेहोश पड़ी मुंदरी को अपनी बांहों में उठाया और उसे बराबर में बने अपने बैडरूम में ले गया. उसे बैड पर लिटाया और एक प्यारा सा चुम्मा उस के होंठों पर लिया, फिर उस ने दारू का एक बड़ा पैग तैयार किया और मोबाइल के कैमरे को ठीक से सैट किया.

दारू चढ़ाने के बाद पूरी मस्ती और इतमीनान के साथ रामपाल ने उस बैड पर मुंदरी की अस्मत का चूरमा बना डाला.

जब मुंदरी को होश आया, तो अपनेआप को बिस्तर पर बिना कपड़ों के पा कर उस के होश उड़ गए. उस ने सामने कुरसी पर रामपाल को अधनंगा बैठा देखा, तो उस ने उस पर पूरी ताकत से चीखना चाहा, लेकिन उस को लगा जैसे उस की चीख कहीं दब गई है.

मुंदरी ने चादर को अपने शरीर पर खींचते हुए से रामपाल की ओर गुस्से में देखा. वह बेशर्मी से मुसकरा रहा था.

‘‘यह सब क्या है?’’ मुंदरी ने तकरीबन आंखों में आंसू भर कर कहा.

‘‘कुछ नहीं, बस यह है,’’ रामपाल ने अपने मोबाइल की स्क्रीन मुंदरी के सामने करते हुए कहा.

उस में अपनी अस्मत लुटने की फिल्म देख कर मुंदरी के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस को लगा जैसे वह आसमान से सीधे पाताल में समा गई हो.

इस से पहले कि मुंदरी कुछ कहती, रामपाल बोला, ‘‘मेरी रानी, अगर बाहर जा कर जबान खोली, तो तेरी यह गंदी फिल्म सारी दुनिया देखेगी.’’

फिर रामपाल ने अपनी रिवौल्वर लहराई और उस के बाद उस रिवौल्वर को मुंदरी की कनपटी पर रखते हुए बोला, ‘‘और यह भी हो सकता है कि उस से पहले इस की सारी गोलियां तेरे भेजे में उतर जाएं.

‘‘वैसे भी हमारे इस भट्ठे में ईंट पकाने के लिए मोटीमोटी लकडि़यां भी रखी जाती हैं. एक लकड़ी की जगह तुम्हारी लाश को रख देंगे, फिर

तुम्हारे मांबाप को गंगा में बहाने के लिए तुम्हारी अस्थियां भी नहीं मिलेंगी. सबकुछ स्वाहा.’’

यह सुन कर मुंदरी अंदर तक कांप गई. रामपाल जानता था कि औरत का दिल होता ही कितना है. वह भी अस्मत लुटी हुई औरत का. यह काम उस ने कोई पहली बार तो किया नहीं था. गरीब और भली औरतों को डरानाधमकाना वह अच्छे से जानता था.

अभी कोल्ड ड्रिंक में मिली नशीली दवाओं का असर मुंदरी के ऊपर से अच्छी तरह नहीं उतरा था. उस की हिम्मत बिस्तर से उठने की भी नहीं हो रही थी, लेकिन वह उस राक्षस के सामने अब एक पल भी रुकना नहीं चाहती थी. उस ने जैसेतैसे अपने कपड़े पहने और बाहर निकल गई.

मुंदरी अपने को संभालते हुए अपनी कोठरी में पहुंची. एक गिलास ठंडा पानी पिया, तभी उस की नजर सामने टंगे आईने पर पड़ी. वह अपना चेहरा ध्यान से देखने लगी. उसे लगा कि वह कोई और मुंदरी है, जो अपनी दुनिया को खो चुकी है. इस के बाद वह अपने फोल्डिंग पलंग पर निढाल हो गई.

मुंदरी की आंखों में नींद तो नहीं थी, लेकिन कितने ही सवाल रहरह कर उस के मन में उठ रहे थे. फिर उन्हीं सवालों के जवाब वह मन में तलाश करती, लेकिन कई सवाल बिना जवाब मिले ही रह जाते.

मुंदरी ने यह तय कर लिया था कि इस मुंह को ले कर वह अपने मांबाप के सामने तो बिलकुल नहीं जाएगी. तो क्या वह इस रामपाल कसाई और दरिंदे के साथ ही काम करेगी और अपनी अस्मत लुटवाती रहेगी?

तभी अपनी बहन सुंदरी का चेहरा मुंदरी की आंखों के सामने घूमने लगा, जैसे वह उस से कह रही हो, ‘मुंदरी, बस तू इतने से घबरा गई… मुझे देख, मैं ने अपने 4-4 बलात्कारियों से बदला लिया है. क्या तू एक से भी बदला नहीं ले सकती? इतनी कमजोर है तू?’

मुंदरी ने मन ही मन कहा, ‘नहींनहीं, मैं इतनी कमजोर नहीं.’

मुंदरी को लगा जैसे उस के अंदर किसी अनदेखी ताकत बढ़ रही है. वह ताकत उसे लड़ने के लिए बढ़ावा दे रही है. उस का मन उसे धिक्कार रहा था और कह रहा है, ‘इस शातिर रामपाल से इस की भाषा में ही बदला लेना होगा. वह छलकपट से जीत सकता है, तो मुंदरी तू क्यों नहीं?’

मुंदरी का मन ऐसा सोचते ही घनघनाने लगा. वह रामपाल से इंतकाम लेने की सोचने लगी. उस का मन इंतकाम का खाका तैयार करने लगा. तब जा कर उस के फीके चेहरे पर कुटिल मुसकान उभरी.

मुंदरी ने तय कर लिया कि रामपाल को उस के ही तीर से मारना है. यह सोच कर उसे संतुष्टि मिली और तब वह नींद के आगोश में चली गई.

अगली सुबह मुंदरी बड़े यकीन के साथ उठी. अब वह कोई भोलीभाली मुंदरी नहीं थी, बल्कि वह तो नए तेवर वाली मुंदरी थी.

उधर रामपाल को चिंता हो रही थी कि मुंदरी कहीं कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दे. वह बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था, लेकिन वह तब हैरान रह गया जब मुंदरी ने आते ही बड़ी जालिम मुसकान और अदा के साथ कहा, ‘‘और साहब, कैसे हो? कौन सी दुनिया में खोए हो?’’

रामपाल को बिलकुल भी यकीन नहीं था कि मुंदरी उस के सामने ऐसे पेश आएगी. ऐसा होने पर अकसर लड़कियां काम छोड़ कर भाग जाती थीं और अपना मुंह भी बंद रखती थीं.

मुंदरी की मुसकान देख कर रामपाल झट से बोला, ‘‘अरे मुंदरी, मैं तो तुम्हें ही याद कर रहा था.’’

मुंदरी ने कुरसी पर बैठे रामपाल के गालों पर उंगली फिराते हुए कहा, ‘‘क्यों इतनी पसंद आ गई क्या मैं तुम को मेरे राजा?’’

‘‘ओह मुंदरी, तुम बहुत गजब की हो,’’ रामपाल ने नशीली आंखों से देखते हुए कहा.

तब मुंदरी अपने चेहरे को रामपाल के चेहरे से सटाते हुए बोली, ‘‘तो फिर इस गरीब को अपने दिल की रानी बना लो न.’’

मुंदरी की गरम सांसों ने रामपाल के तनबदन में हवस के शोले भड़का दिए. उस ने मुंदरी को कस कर अपनी बांहों में पकड़ कर उस के होंठों पर एक गहरा चुम्मा लेते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी ही तो रानी हो.’’

इस के बाद मुंदरी और रामपाल खुल कर खेलने लगे. रामपाल मुंदरी को भी सुंदरी की तरह पहाड़ों की सैर कराने लगा.

मुंदरी ने मौके का फायदा उठाया. उस ने रामपाल से कार चलाना सीख लिया. जब कभी उन्हें मौजमस्ती के लिए पहाड़ों में जाना होता, तो कार अकसर मुंदरी ही चलाती थी.

रामपाल किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होने देता था कि वह मुंदरी के साथ पहाड़ों में घूमने जाता है. पहाड़ी जीवन मुंदरी को बहुत भाता था. वह अकसर पहाड़ी औरतों को देखती कि वे कैसे पहाड़ों पर चढ़ कर घास काटती हैं और लकडि़यां ढो कर लाती हैं.

एक दिन रामपाल मुंदरी को कोटद्वार के रास्ते पौड़ी गढ़वाल ले जा रहा था. रास्ते में मुंदरी ने जानबू?ा कर रामपाल को शराब पीने के लिए उकसाया. रास्ते में वह उसे दूसरी चीजें खिलाती रही और उसे पानी पिलाती रही. यह सब उस की अपनी योजना का हिस्सा था.

यह रास्ता कई जगह बहुत संकरा और खतरनाक ढलान वाला भी था. रास्ते में रामपाल ने मुंदरी से कार रोकने को कहा, जिस से वह शौच कर सके.

मुंदरी यही तो चाहती थी. उस ने कार ऐसी जगह रोकी, जहां एक खतरनाक मोड़ था. एक तरफ ऊंचा पहाड़ था और दूसरी ओर गहरी खाई थी.

शाम ढलने को थी और गाडि़यों की आवाजाही कम थी. शौच करने के लिए रामपाल उतरा, तो मुंदरी भी कार से उतर गई.

रामपाल शौच के लिए पहाड़ की तरफ बढ़ा, तो मुंदरी ने कहा, ‘‘अरे मेरे राजा, उधर कहां जाते हो? इधर खाई की तरफ करो न. हम भी तो देखें, हमें बांहों में कस कर पकड़ने वाले गबरू नौजवान की धार कितनी दूर तक जाती है. असली मर्द की ताकत और मर्दानगी उस की तेज धार ही तो होती है.’’

मर्दानगी के सवाल पर रामपाल सबकुछ भुला बैठा. लंगोट का कच्चा तो वैसे भी अपने को दुनिया का सब से बड़ा मर्द समझाता है. उस ने कहा, ‘‘देख मुंदरी, आज तू हमारी धार देख. तब पता चलेगा तु?ो हम कितने बड़े मर्द हैं.’’

इतना कह कर रामपाल खाई की तरफ खड़ा हो कर हलका होने लगा. मुंदरी सम?ा गई कि इस से बढि़या मौका इंतकाम लेने का कोई और हो नहीं सकता. वह भेड़े की तरह चार कदम पीछे हटी और फिर रामपाल के पिछवाड़े पर इतनी जोर से लात जमाई कि वह सैकड़ों फुट नीचे खाई में जा गिरा, जहां उस के जिंदा बचने की कोई उम्मीद ही नहीं थी.

फिर मुंदरी ने नीचे खड़ेखड़े ही कार को स्टार्ट किया और कार का स्टेयरिंग खाई की तरफ मोड़ दिया. कार में गियर पड़ते ही वह भी वहीं जा गिरी, जहां रामपाल नीचे खाई में पड़ा था.

फिर मुंदरी चुपचाप दूसरी तरफ पहाड़ी पर जा चढ़ी. यह सब काम चंद सैकंड में हो गया और मुंदरी को ऐसा करते किसी ने देखा भी नहीं.

इस के बाद मुंदरी ने एक पहाड़न का सा वेश बनाया, कपड़ों पर मिट्टी और रेत लगा ली, होंठों की लिपस्टिक पोंछ डाली और कुछ लकडि़यां बीन लीं. फिर वह नीचे उतरी और कुछ दूर चल कर एक चाय की गुमटी पर वे लकडि़यां औनेपौने दाम पर बेच दीं.

यह तो सब दिखावा था, रुपए तो मुंदरी ने अपनी सलवार के नेफे में छिपा रखे थे. वहां से वह एक बस में बैठ कर पौड़ी पहुंच गई और वहां एक होटल में ठहरी.

सुबह के अखबार में मुंदरी ने पढ़ा कि ‘एक सड़क हादसे में कोटद्वार और पौड़ी के रास्ते में शराब के नशे में धुत्त एक ड्राइवर कार समेत गहरी खाई में गिर गया. इस हादसे में ड्राइवर की मौत हो गई. ड्राइवर की पहचान रामपाल सिंह, पुत्र कृपाल सिंह, गांव नेमतपुर, जिला बिजनौर के रूप में हुई है.’

इस के तुरंत बाद मुंदरी ने अपने घर फोन लगाया, ‘‘पिताजी, मैं केदारनाथ, बद्रीनाथ दर्शन के लिए जा रही हूं. मैं ने रामपाल ठेकेदार से 15 दिन की छुट्टी ले ली थी.’’

‘‘अरे मुंदरी, रामपाल तो कल एक सड़क हादसे में मर गया है,’’ पिताजी ने कहा.

‘‘ओह पिताजी, यह तो बहुत बुरा हुआ. अच्छा, तो आप एक काम करना कि आप भट्ठा मालिक से बता देना कि मैं ने रामपाल ठेकेदार से 15 दिन की छुट्टी ली थी. लौट कर मैं काम पर आ जाऊंगी.’’

मुंदरी जानती थी कि रामपाल किसी रियासत का राजा तो था नहीं, जो पुलिस उस की मौत की गहराई से छानबीन करेगी. सब ने मान लिया कि रामपाल ठेकेदार की सड़क हादसे में मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस का शराब पीना साबित हो ही चुका था.

रामपाल की तेरहवीं हो गई. मुंदरी का भी इंतकाम कामयाब हो गया और वह वापस काम पर भी लौट आई. भट्ठे पर नया ठेकेदार आ गया, जो रामपाल की तरह लंगोट का कच्चा नहीं था. सबकुछ पहले जैसा हो गया.

बिसात शतरंज की : कैसा था राठी का बेटा

राठीजी को अपने होनहार बेटे आरव पर बड़ा नाज था और होता भी क्यों नहीं, पूरे महल्ले में अकेला आरव ही तो था, जो राष्ट्रीय शतरंज टूर्नामैंट जीत कर आया था और अब शहर की शतरंज एकेडमी में आगे की प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी कर रहा था.

तकरीबन 6 फुट लंबा आरव बहुत हंसमुख था और सब से अच्छे से मिलता था. हर कोई उस के अच्छे बरताव का कायल हो जाता था. उसे अपनी कामयाबी पर बिलकुल भी घमंड नहीं था.

22 साल के आरव के घर में उस के मांबाप और एक बहन रूही रहते थे. राठीजी के इस परिवार में उस दिन खलबली मच गई, जब एक दिन दोपहर को 25 साल के आसपास की उम्र की एक लड़की ने उन के घर का दरवाजा खटखटाया.

मिसेज राठी ने दरवाजा खोला, तो सामने देखा कि एक लड़की आंसुओं में डूबी हुई खड़ी थी.

एक अनजान लड़की को सामने देख कर मिसेज राठी के चेहरे पर सवालिया निशान का भाव आ गया, जिसे पढ़ कर वह लड़की खुद ही बोलने लगी, ‘‘आंटीजी, मेरा नाम रीमा है. आप मु?ो नहीं जानतीं, पर मैं आप को जानती हूं.’’

मिसेज राठी ने रीमा को अंदर बुला कर बिठाया और पूछा कि वह किस से मिलने और किस काम से आई है?

यह बात सुन कर रीमा तेज आवाज में रोने लगी और आरव का नाम लेते हुए इलजाम लगा दिया कि आरव ने उस का रेप किया है.

‘‘क्या बकवास कर रही हो तुम? होश में तो हो न तुम, अभी दफा हो जाओ यहां से,’’ मिसेज राठी ने चिल्लाते हुए कहा.

मिसेज राठी की तेज आवाज सुन कर मिस्टर राठी और रूही भी वहां आ गए और सम?ाने में लग गए कि आखिर माजरा क्या है. रीमा अब भी रोए जा रही थी.

इतने में आरव भी वहां आ गया और रीमा को देख कर वह भी बुरी तरह से चौंक गया.

आरव को इस तरह से डरा हुआ देख कर उस के पापा ने रीमा से पूछा, ‘‘तुम जोकुछ भी कह रही हो, उस का कोई सुबूत है तुम्हारे पास?’’

इस बात को सुनते ही रीमा ने अपने बैग में से कुछ तसवीरें निकाल कर मिस्टर राठी की तरफ बढ़ा दीं, जिन में आरव और रीमा बेहद करीब दिखाई दे रहे थे. उन तसवीरों को देख कर साफ लग रहा था कि आरव ने रीमा का रेप किया है.

‘‘यह सब क्या है आरव?’’ पापा ने पूछा, तो आरव की जबान से एक शब्द न निकला और वह वहीं जड़ बन कर खड़ा हो गया.

पूरा परिवार खड़ा हुआ तमाशा देख रहा था. मिस्टर राठी ने पूछा कि आखिर यह सब हुआ कैसे, तो रीमा ने सुबकते हुए बताया, ‘‘मैं भी शतरंज की खिलाड़ी हूं और शतरंज में ही अपना कैरियर बनाना चाहती हूं. मैं ने आरव को शतरंज एकेडमी में देखा था और इसीलिए इस से कुछ टिप्स लिया करती थी.

‘‘मैं कभीकभार फोन कर के भी मदद लिया करती थी, आप चाहें तो आरव के मोबाइल में मेरे नंबर से आई हुईं काल्स चैक कर सकते हैं,’’ रीमा बहुत यकीन से सब बातें कह रही थी.

मिस्टर राठी को अपने होनहार बेटे से इस तरह की उम्मीद नहीं थी.

‘‘और वैसे भी मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है. अब मेरे सामने दो ही रास्ते हैं, या तो मैं खुदकुशी कर लूं या फिर पुलिस में जा कर आरव के खिलाफ रेप का केस दर्ज करा दूं,’’ रीमा की आवाज में छिपी हुई धमकी थी, जिसे सुन कर राठी परिवार बदनामी के डर से घबरा गया.

‘‘नहींनहीं, पुलिस में मत जाओ. पुलिस हमारे घर पूछताछ करने आएगी, मीडिया का जमावड़ा होगा, हमारी तो बहुत बदनामी हो जाएगी,’’ आरव के पापा ने कहा.

‘‘तो आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?’’ रीमा ने पूछा.

अपने बेटे को पुलिस से बचाने के लिए मिस्टर राठी ने दिमाग लगाया कि पुलिस के पास जाने से रोकने के लिए एक रास्ता है कि इस लड़की को यहीं घर में ही रोक लिया जाए.

चूंकि यह लड़की अनाथ है, इसलिए इसे कोई पूछने वाला तो होगा नहीं और कल को किसी बहाने से

इस का बच्चा गिरवा देंगे और इस को बहलाफुसला कर आरव के खिलाफ सुबूत गायब करा देंगे, तो सारा ?ां?ाट ही खत्म हो जाएगा.

‘‘आरव से गलती हो गई बेटी. वैसे, तुम चाहो तो यहीं हमारे घर में ही रुक जाओ,’’ मिस्टर राठी की इस बात पर भला रीमा को क्या एतराज होता, वह अपना सामान ला कर राठी परिवार में रहने लगी.

कुछ दिनों तक तो रीमा सहमीसहमी सी रही, पर कुछ दिनों के बाद एक रात को वह आरव के कमरे में सोने के लिए पहुंच गई.

आरव ने विरोध भी किया, तो रीमा ने जवाब दिया, ‘‘यह सब तब क्यों नहीं सोचा था, जब तुम मेरा रेप कर रहे थे. किसी भी तरह से तुम ने मेरे शरीर को छुआ है, तो तुम मेरे पति ही हुए, इसलिए मैं आज से तुम्हारे कमरे में ही सोऊंगी.’’

अगली सुबह आरव की उदासी देख कर मां ने वजह पूछी, तो आरव ने रात की बात बता दी. इस बात को जान कर मां गुस्से में आ गईं और आरव के कमरे में जा कर रीमा को डांटने लगीं, तो बदले में रीमा ने मां के पैर छू लिए. उस के इस बरताव से मां थोड़ा सकपका गईं.

‘‘चौंकिए मत मांजी, अब से मैं ही आप की बहू हूं, यह मान लीजिए, क्योंकि मैं मां बनने वाली हूं,’’ रीमा ने डाक्टर की रिपोर्ट मां की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

रीमा पेट से थी और इस के बच्चे का बाप कोई और नहीं, बल्कि राठी परिवार का होनहार बेटा आरव था. मिसेज राठी का मन घबराने लगा था.

शाम को जब आरव के पापा घर आए, तो रीमा ने किसी आदर्श बहू की तरह उन के भी पैर छुए और एक प्लेट में रख कर उन की तरफ मिठाई बढ़ा दी. उन के पूछने से पहले ही उन्हें बता दिया कि वे दादा बनने वाले हैं.

‘‘अब आप लोगों को मु?ो अपनी बहू मानना ही पड़ेगा,’’ रीमा ने कहा.

मिस्टर राठी रीमा का यह अजीब बरताव और राठी परिवार की बहू कहलाने की जिद को सम?ा नहीं पा रहे थे, पर अगले दिन ही उन्हें ये बातें सम?ा में आने लगीं, जब रीमा ने उन से 10,000 रुपए मांगे.

‘‘तुम्हे भला इतने सारे पैसों की क्या जरूरत?’’

‘‘कमाल करते हैं… मैं बहू हूं इस घर की, मु?ो भी अपना कमरा सजाना है,’’ रीमा ने इठलाते हुए कहा.

राठी परिवार भले ही रीमा के ब्लैकमेल करने के चलते डरा हुआ जरूर था, पर इतना सम?ा गया था कि दाल में कुछ काला जरूर है.

आरव कई दिन से सदमे की हालत में था और अपने परिवार को कुछ बता नहीं पा रहा था, इसलिए आरव के पापा ने कुछ सोच कर कहा, ‘‘और अगर मैं पैसे देने से मना कर दूं तो?’’

रीमा ने तुरंत ही उन तसवीरों की तरफ इशारा किया. उन तसवीरों और पुलिस का जिक्र आते ही मिस्टर राठी घबरा गए और उन्होंने पैसे दे दिए, पर 2 दिन बाद जब फिर से रीमा ने 5,000 रुपए की डिमांड की, तो उन्होंने पैसा देने से साफ मना कर दिया.

रीमा अपने असली रंग में आ गई और मिस्टर राठी को धमकी देते हुए बोली, ‘‘अगर आप पैसे नहीं दोगे तो मैं पैसों का अपनेआप ही इंतजाम कर लूंगी,’’ और इतना कहते ही उस ने अपने मोबाइल फोन से घर की कीमती चीजों की तसवीरें लेनी शुरू कर दीं और उन्हें औनलाइन बिक्री के लिए इंटरनैट की साइट्स पर अपलोड करने लगी.

रीमा की यह हरकत देख कर मिस्टर और मिसेज राठी घबरा गए और तुरंत ही उन लोगों ने रीमा से अपलोड की गई तसवीरों को डिलीट करने को कहा और उस के सामने हार मान ली. वे उसे पैसे देने को राजी हो गए.

रीमा इतने पर ही नहीं रुकी, बल्कि अब तो रोज रात को वह आरव को अपने कमरे में जबरदस्ती ले जाती और उस से अपने शरीर की मालिश करवाती और अपने नाजुक अंगों को सहलाने और मसलने के लिए कहती. अगर आरव उसे जिस्मानी सुख देने में आनाकानी करता, तो रीमा उसे धमकी देते हुए अपनी बात मनवा लेती.

आरव अपनेआप को बुरी तरह से फंसा हुआ महसूस कर रहा था. एक तरफ तो उस का खेल से ध्यान हट चुका था और वह आने वाली चैंपियनशिप की तैयारी नहीं कर पा रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ अपने ही परिवार के सामने उस की किरकिरी और बेइज्जती हो रही थी.

एक दिन की बात है. रीमा बाहर वाले पार्क में हवाखोरी करने के लिए गई हुई थी कि तभी आरव अपने पापा के पास आया और उन के गले से लिपट कर बोला, ‘‘मु?ो बचा लो पापा. मैं ने कुछ नहीं किया है. यह लड़की मु?ो बेवजह बदनाम कर रही है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो मैं खुदकुशी कर लूंगा.’’

आरव की बात उस के पापा ने बड़े ध्यान से सुनी, फिर बोले, ‘‘पर बेटा, वे तसवीरें तो कुछ और ही बयान कर रही हैं.’’

‘‘पापा, रीमा की नजर बचा कर रूही रीमा की प्रेग्नैंसी की रिपोर्ट ले कर उसी क्लिनिक में गई थी, जहां का नाम उस रिपोर्ट पर लिखा हुआ था. रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर ने रूही को बताया कि यह रिपोर्ट नकली है.’’

रिपोर्ट नकली है, इस बात ने आरव को थोड़ी हिम्मत दी और वह ठंडे दिमाग से गुजरे हुए समय की कडि़यां जोड़ने में लग गया. वह तकरीबन 3 महीने पहले की एक बात को याद करने लगा. उस के फोन पर अकसर एक नंबर से किसी लड़की का फोन आता था. वह लड़की शतरंज के बारे में जिज्ञासा दिखाती थी और खेल के टिप्स पूछा करती थी.

एक खिलाड़ी होने के नाते आरव उसे शतरंज की बारीकियां बताता रहता था और एक दिन जब उस लड़की ने आरव से मिलने की इच्छा जाहिर की, तो आरव को इस में कोई बुराई नजर नहीं आई और वह शतरंज एकेडमी के बाहर उस लड़की से मिलने चला गया.

वह लड़की और कोई नहीं, बल्कि रीमा ही थी. दोनों ने जूस कौर्नर पर खड़े हो कर जूस पिया, फिर आरव से विदा ले कर रीमा अपनी स्कूटी की तरफ चल पड़ी, पर अचानक वह चक्कर खा कर गिर गई. उसे गिरा देख कर आरव उसे पास के एक अस्पताल में ले गया और उस के बाद रीमा ने उसे घर तक छोड़ कर आने को कहा.

रीमा को उस के घर पहुंचाने के बाद जब आरव वापस जाने के लिए मुड़ा, तब रीमा ने उसे चाय पी कर जाने को कहा.

आरव चाय पीते ही बेहोश हो गया और फिर शायद यही वह समय रहा होगा, जब रीमा ने उस के शरीर के साथ मनचाही हालत में तसवीरें अपने मोबाइल फोन से खींच ली होंगी और उस के कुछ दिन बाद ही रीमा बनेबनाए प्लान के साथ राठी परिवार को ब्लैकमेल कर रही थी.

‘‘पर बेटे, यह सब तुम पहले भी तो बता सकते थे.’’

‘‘हां पापा, बता तो सकता था, पर मैं खुद वे तसवीरें देख कर सदमे जैसी हालत में था, पर जब रूही ने रिपोर्ट के नकली होने का पता लगा लिया, तब मेरे अंदर हिम्मत आ गई और मैं सारी बातें आप से कह पा रहा हूं.’’

सारी बातें सुनने के बाद आरव के पिता ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, पहली चोट तो रीमा ने की है, पर आखिरी चोट हम करेंगे,’’ इस के बाद पूरा राठी परिवार योजना बनाने में लग गया.

उस दिन जब रीमा घर लौटी तो पूरा राठी परिवार उस से सामान्य बरताव करता नजर आया, जिसे देख कर रीमा सम?ा गई कि ये सारे लोग उस की गीदड़भभकी में आ गए हैं और अब उसे उस की मनमरजी चलाने से कोई नहीं रोक सकता.

रात में रीमा औंधी हो कर बिस्तर पर लेट गई और आरव का इंतजार करने लगी कि वह आए और उस के जिस्म की मालिश करे.

थोड़ी देर में आरव अपने हाथ में एक महंगी वाली शराब की पूरी बोतल ले कर आया और रीमा के सामने रख कर उस के बदन को दबाने लगा.

रीमा की नजर शराब पर पड़ी, तो उस के मुंह में पानी आ गया और उस ने आरव से 2-4 पैग उसे भी पिलाने को कहा.

आरव को तो मानो इसी बात का इंतजार था. उस ने एक के बाद एक कई पैग रीमा को पिलाए और जब रीमा भरपूर नशे में हो गई, तो आरव ने उस की नंगी पीठ पर मसाज देना शुरू किया और पूछा, ‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि जब मैं ने तुम्हारे शरीर को हाथ तक नहीं लगाया, तब तुम पेट से कैसे हो गई और वे तसवीरें तुम्हारे पास कहां से आ गईं?’’

रीमा पर नशा हावी हो रहा था. वह एक के बाद एक कई राज बताती चली गई कि वह छोटे कसबे से शहर में  मौडल बनने आई थी.

?1-2 छोटीमोटी कंपनियों के लिए काम करने का मौका मिला और वह मौडल बन भी गई, पर मौडलिंग में बढ़ते कंपीटिशन में वह टिक नहीं पाई और उस का रोजीरोटी कमाना मुश्किल हो रहा था, इसलिए उस ने भोलेभाले लड़कों को इसी तरह अपने जाल में फंसा कर, उन के घर में घुस कर तसवीरें और नकली प्रेग्नैंसी रिपोर्ट दिखा कर ब्लैकमेल करना शुरू किया.

अपनी इज्जत बचाने के लिए कोई भी परिवार पुलिस में नहीं जाता था और रीमा की कमाई बदस्तूर चलती रहती थी.

रीमा तो नींद के आगोश में चली गई, पर आरव को तो खुशी के मारे नींद ही नहीं आई, क्योंकि उस ने रीमा को अपने जुर्मों को खुद अपनी जबान से बताते हुए आरव ने उस की वीडियो अपने मोबाइल फोन में रिकौर्ड कर ली थी और अब वह इसे ले कर पुलिस में जाने वाला था.

सुबह जब रीमा जागी, तो रोज की तरह उस ने बिस्तर पर ही चाय मांगी.

‘‘अब तुम जेल में ही जा कर चाय पीना,’’ आरव ने इतना कह कर रात वाली वीडियो चला दी, जिसे देख कर रीमा के होश उड़ गए. वह माफी मांगने लगी, पर तब तक बहुत देर हो चुकी

थी. मिस्टर राठी पुलिस के साथ आ चुके थे और पुलिस ने सब की बात सुनने और सम?ाने के बाद रीमा को गिरफ्तार कर लिया.

राठी परिवार ने रीमा की चाल के खिलाफ अगर आवाज नहीं उठाई होती, तो न जाने कब तक वे रीमा को ढोते रहते और उस की नाजायज मांगें भी मानते रहते.

आरव अब नौर्मल हो चुका था और उस ने अपना पूरा ध्यान शतरंज चैंपियनशिप पर लगा रखा था. वह मन ही मन ठान चुका था कि शतरंज खेलेगा जरूर, पर आगे से किसी धोखेबाज की शतरंज की बिसात में नहीं फंसेगा.

News Kahani: सैक्स स्कैंडल और साजिश

उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के एक गांव रत्न खेड़ा में चौधरी सुमेर सिंह का दबदबा था. वे गांव के मुखिया थे और उन की अंटी भी मजबूत थी. घर क्या पूरी कोठी थी और नौकरचाकर भी हमेशा काम पर लगे रहते थे.

चौधरी सुमेर सिंह का एकलौता बेटा था सुमित, जो अपने घर के पीछे बने एक बड़े से कमरे में एनजीओ चलाता था, जहां गरीब दलित घरों की जवान लड़कियों को सिलाईकढ़ाई सिखाई जाती थी. पर यह सब काम लोगों को भरमाने के लिए किया जाता था. सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक एनजीओ का काम होता था, पर उस के बाद वही कमरा सैक्स का दंगल बन जाता था.

दरअसल, सुमित अपनी कुछ खास गरीब लड़कियों और चमचों के साथ मिल कर पोर्न फिल्में बनाता था और अपने परमानैंट ग्राहकों को भेजता था. वे ग्राहक देशी अनब्याही लड़कियों के पोर्न वीडियो देखने के शौकीन थे और सुमित को पैसा भी देते थे. फिर वे उन वीडियो को चाहे देश में बेचें या विदेश में, सुमित को इस बात से कोई मतलब नहीं था.

सुमित के पिता चौधरी सुमेर सिंह को इस धंधे की खबर थी या नहीं, यह वही बता सकते थे, पर यह जरूर था कि सुमित अपने पिताजी की बहुत इज्जत करता था. वह अपनी मां का लाड़ला था और दिखने में बड़ा हैंडसम था.

सुमित की टीम में 2 लड़कियां खास थीं, माला और सुनहरी. 21 साल की माला गोरी थी और उस के नैननैक्श भी अच्छे थे. 24 साल की सुनहरी के आने से पहले वही सुमित की चहेती थी, पर जब से सुनहरी आई थी, तब से माला के भाव कम हो गए थे.

माला माल थी, तो सुनहरी कमाल थी. वह भले ही गरीब घर की दलित लड़की थी और उस का रंग भी दबा हुआ था, पर देह की खरा सोना थी. बड़े उभार, लंबे बाल और मदमस्त चाल सुनहरी को गजब का रूप देते थे.

सुमित को भी सुनहरी बड़ी पसंद थी और वह उसे माला से भी ज्यादा पैसे देता था. यह बात माला को खाए जा रही थी. उसे सुनहरी से जलन होने लगी थी.

एक दिन माला ने सुमित से पूछा, ‘‘आप सुनहरी को इतना सिर पर क्यों चढ़ा रहे हो? आप और मैं ऊंची जाति के हैं और वह दलित घर की गरीब लड़की, फिर वह सब से ज्यादा पैसे क्यों लेती है? मुझ में क्या कोई कमी है?’’

‘‘तुम में कोई कमी नहीं है, पर वह बिस्तर पर एकदम खुल जाती है. उस का सैक्स वाला वीडियो एकदम असली लगता है और तुम बर्फ सी ठंडी पड़ी रहती हो. शूट करने में मजा ही नहीं आता है. और फिर उस के वीडियो की आज मार्केट में डिमांड है,’’ सुमित ने हकीकत बता दी.

माला को यह बात खल गई. उस ने सुनहरी को सबक सिखाने की सोच ली. उधर, जब से सुनहरी इस धंधे में आई थी, तब से उस की जिंदगी बदल गई थी. घर वाले खुश थे और अब भूखों मरने की नौबत नहीं आती थी.

सुनहरी की मां को वैसे तो घर आता पैसा बुरा नहीं लगता था, पर बेटी के लक्षण देख कर वे थोड़ा चिंतित थीं. एक दिन उन्होंने सुनहरी को टोक दिया, ‘‘बेटी, जब से तू एनजीओ में जाने लगी है, तब से हमें दो वक्त की रोटी तो वक्त पर मिल रही है, पर तू कोई गलत काम तो नहीं कर रही है न?’’

‘‘अरे मां, गलतसही के चक्कर में मत पड़ो और जिंदगी का मजा लो. आज से 6 महीने पहले कोई इस घर में    झांकता तक नहीं था और आज मेरे लिए रिश्ते आ रहे हैं. मां, यह सब पैसे की ही माया है और फिलहाल इस माया का मजा उठाओ,’’ सुनहरी ने इतना कहा और एनजीओ के लिए निकल गई.

एनजीओ में अभी सुमित नहीं आया था. माया को मौका मिल गया और उस ने सुनहरी को छेड़ते हुए कहा, ‘‘ऐसी क्या घुट्टी पिला दी, जो सुमित सर तेरे ही सुर में सुर मिला रहे हैं? यह चार दिन की चांदनी है मेरी जान, फिर कब उन की नजर से उतरेगी, तुझे पता भी नहीं चलेगा.’’

‘‘तू अपनी देख. मु   झे क्या करना है, मैं जानती हूं. बड़ी आई सलाह देने वाली,’’ सुनहरी भी मुंहफट थी, तो एकदम से बोल पड़ी.

यह सुन कर माला सुलग गई. हद तो तब हो गई, जब सुमित ने पीछे से आ कर यह बात सुन ली और माला को ही डांट दिया.

सब के सामने अपनी इज्जत उतरते देख कर माला को बड़ा गुस्सा आया और उस ने बदला लेने की ठान ली. वह जानती थी कि सुमित सारे वीडियो एक पैन ड्राइव में संभाल कर रखता है,

तो उस ने मौका ताड़ कर एक दिन वह पैन ड्राइव चुरा ली और चौधरी सुमेर सिंह के जानी दुश्मन जगत सेठ के यहां जा पहुंची.

जगत सेठ को सुमेर सिंह का दबदबा रास नहीं आता था. दरअसल, वह गांव का मुखिया बनना चाहता था, पर गांव वाले सुमेर सिंह पर आंख मूंद कर भरोसा करते थे. वह हमेशा इस फिराक में रहता था कि किसी तरह सुमेर सिंह को नीचा दिखा दे, पर उसे मौका नहीं मिल रहा था.

आज माला को अपने पास देख कर जगत सेठ पहले तो हैरान हुआ, फिर अपनी खीज मिटाते हुए बोला, ‘‘तुम इस समय यहां क्या कर रही हो? मैं ने तुम्हें मना किया है न कि ऐसे ही मेरे पास मत आया करो.’’

माला बड़ी बेचैन थी. वह सुनहरी की उस दिन की बात पर आज भी सूखी लकड़ी की तरह सुलग रही थी, ‘‘कल की आई यह कल्लो, मु   झे भाषण दे रही है. इस की औकात क्या है मेरे आगे. सुमित ने पता नहीं क्यों इस के इतने ज्यादा रेट बढ़ा रखे हैं. न शक्ल और न सूरत, बस इसे इज्जत की जरूरत.’’

‘‘मैं सम   झा नहीं कि तुम क्या कह रही हो. तुम तो सुमित की मुंहलगी हो, फिर आज मेरे दरवाजे पर कैसे आई?’’ जगत सेठ ने माला से पूछा.

‘‘देखो जगत सेठ, सारा गांव जानता है कि आप का और चौधरी सुमेर सिंह का छत्तीस का आंकड़ा है. आप को वह फूटी आंख नहीं सुहाता है. आप का बस चले तो आज ही उस के घर के दरवाजे पर कुर्की का परचा चिपकवा दो,’’ माला ने कहा.

‘‘तो तू क्या आज उस की कुर्की कराने यहां आई है?’’ जगत सेठ ने    झल्लाते हुए माला से पूछा.

‘‘उस से बड़ा कांड है जगत सेठजी, बस आप की मदद चाहिए. फिर देखना कि मैं कैसे इस सुनहरी का सारा सुनहरापन मिट्टी में मिलाती हूं,’’ माला जैसे बदले की आग में सुलग रही थी.

‘‘पहेलियां मत बु   झाओ. कोई अंदर की खबर है तो दो, वरना अपना रास्ता नापो. मेरे पास फालतू समय नहीं है तेरी राम कहानी सुनने का,’’ जगत सेठ ने दोटूक कहा.

माला ने समय न गंवाते हुए वह पैन ड्राइव जगत सेठ के हाथ में थमा दी, जिस में बेहूदा वीडियो की भरमार थी. माला इतनी शातिर थी कि उस ने अपने वीडियो पहले ही अलग कर दिए थे. इस पैन ड्राइव में दूसरी लड़कियों के वीडियो थे, जिन्हें सुमित और उस के चमचे शूट किया करते थे.

सारे वीडियो देख कर जगत सेठ की आंखों में चमक आ गई, ‘‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे…’’ वह बुदबुदाया और फिर माला से बोला, ‘‘वाह, मेरी जानेमन, आज तो तू ने मेरा दिल ही जीत लिया. अब मैं चौधरी सुमेर सिंह को कैसे कंगाल और अपनी माला को मालामाल बनाता हूं, बस तू देखती रहना.’’

माला उछल कर जगत सेठ से लिपट गई और उसे चूम लिया. जगत सेठ ने वह पैन ड्राइव अपनी इलैक्ट्रोनिक तिजोरी में रखी और माला को बैडरूम में ले गया.

अगले दिन जगत सेठ अपने खास दोस्त इंस्पैक्टर ताराचंद के साथ थाने में चाय पी रहा था. ताराचंद वह पैन ड्राइव देख चुका था. उस ने जगत सेठ से पूछा, ‘‘अब आगे क्या करना है? सुबूत तो एकदम पक्का है. सुमित एनजीओ की आड़ में लड़कियों के गंदे वीडियो बनाने का धंधा कर रहा है. उस के बाप को इस गोरखधंधे की भनक तो होगी, पर आंख बंद किए बैठा होगा.’’

‘‘ताराचंद, मुझे उन दोनों के चेहरे झुके देखने हैं तेरे थाने में. बड़ी अकड़ दिखाते हैं अपने चौधरी होने की. उन की सारी हेकड़ी न निकाल दी, तो मेरा नाम भी जगत सेठ नहीं.’’

उसी शाम को चौधरी सुमेर सिंह के घर पर पुलिस की रेड पड़ गई. सुमित को अंदाजा नहीं था कि माला उसे जहरीली नागिन की तरह डस लेगी. कोठी के उस खास कमरे का सारा सामान जब्त कर लिया, जहां पर सारे वीडियो शूट हुए थे.

सुनहरी और बाकी लड़कियों को उस कमरे से धर दबोचा था. सुमित का बाकी स्टाफ भी पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. चौधरी सुमेर सिंह उस समय कोठी में नहीं थे. उन्हें तो इस सारे कांड की भनक तक नहीं थी.

थोड़ी देर में सब थाने में थे. सुनहरी सम   झ चुकी थी कि माला ने ही यह मुखबिरी की है और हो न हो, इस में जगत सेठ का भी हाथ है. वे दोनों कई दिनों से एकसाथ देखे गए थे. पर माला यह कह कर टाल जाती थी कि जगत सेठ उसे अपनी रातें रंगीन करने के लिए बुलाता है और इनाम भी खूब देता है.

पुलिस इंस्पैक्टर ताराचंद ने सुमित को हड़काते हुए कहा, ‘‘यह क्या रायता फैला रखा है तुम ने… एनजीओ की आड़ में पोर्न वीडियो बनाए जा रहे हैं. अपने बाप की इज्जत का तो लिहाज कर लिया होता.’’

सुमित जानता था कि ताराचंद एक नंबर का घूसखोर है, पर फिलहाल उस के हाथ में सुमित की दुखती रग थी, तो उस ने कहा, ‘‘अरे थानेदार साहब, आप भी पता नहीं किस पैन ड्राइव की बात कर रहे हैं. वैसे भी हमारे यहां काम करने वाली सब लड़कियां बालिग हैं और अपनी मरजी से लोगों के मनोरंजन के लिए ऐसी फिल्में बनाती हैं.

‘‘पूछ लो किसी से भी कि हम ने किसी के साथ कोई जोरजबरदस्ती की हो. सब को अपनी मेहनत का पैसा एडवांस में मिल जाता है और किसी को इस काम से कोई शिकायत नहीं है.’’

‘‘हां भई, तुम तो पुण्यात्मा हो और समाज की भलाई का काम कर रहे हो. ये तुम्हारी साथी सब दूध की धुली हैं और देश की तरक्की के लिए नए रोजगार पैदा कर रही हैं. पैन ड्राइव में जो सैक्स का नंगा नाच दिख रहा है, वह तो आजकल बहुत मामूली बात है न,’’ इंस्पैक्टर ताराचंद ने सुमित पर ताना कसा.

‘‘साहब, आप चाहते क्या हो, यह बताओ? मु   झे पता है कि यह सब माला की करतूत है. लड़ाई मेरे और उस के बीच की थी, फिर वह हम सब के पेट पर क्यों लात मारना चाहती है…’’ सुमित कुछ बोलता, उस से पहले ही सुनहरी ने अपनी बात रख दी.

‘‘आप की तारीफ?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद ने सुनहरी को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए देखा. सुनहरी का रंग जरूर काला था, पर उस के जिस्म में अजीब सी कसावट थी.

‘‘जी, मेरा नाम सुनहरी है और मैं दलित समाज की लड़की हूं. सुमित साहब ने हम से कभी कोई जबरदस्ती नहीं की है, बल्कि ये तो हमारे घरपरिवार का पेट पाल रहे हैं.’’

‘‘मतलब, जो तुम लोग कर रहे हो, वह कानूनन गलत नहीं है?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद ने पूछा.

‘‘कानून का तो आप जानो, पर हम ने कुछ गलत नहीं किया है. यह तो हर जगह हो रहा है. न जाने कितने वीडियो बनाने वाले रोज पकड़े जाते हैं. हाल ही में कर्नाटक में एक तथाकथित बड़ा स्कैंडल सामने आया है, जिस में एचडी देवेगौड़ा के बेटे एचडी रेवन्ना और पोते प्रज्वल रेवन्ना का नाम शामिल है.’’

इंस्पैक्टर ताराचंद ने आंखें तरेरते हुए सुनहरी से पूछा, ‘‘तुझे पूरा मामला पता भी है?’’

सुनहरी बोली, ‘‘साहब, बेशक मैं इस धंधे में देह खपा रही हूं, पर दीनदुनिया में कौन सी खबर गरम तवे पर तेल सी उछल रही है, इस की पूरी तह में जाती हूं. 10वीं जमात पास हूं, इस का मतलब यह नहीं है कि मु   झ में पढ़ने की ललक नहीं है.’’

इंस्पैक्टर ताराचंद ने उबासी लेते हुए कहा, ‘‘ज्यादा ज्ञान मत बांच, खबर क्या जानती है यह बता…’’

सुनहरी ने बताया, ‘‘खबर में छपा था कि कार्तिक गौड़ा नाम का एक आदमी रेवन्ना परिवार का पुराना ड्राइवर हुआ करता था. उस ने तकरीबन 15 साल तक रेवन्ना परिवार की गाडि़यां चलाई थीं, पर फिर न जाने क्यों धीरेधीरे रेवन्ना परिवार से उस के रिश्ते खराब होने लगे.

‘‘इस के बाद कार्तिक ने नौकरी छोड़ दी. उस की मानें तो रेवन्ना परिवार ने उस की जमीन पर कब्जा कर लिया था और इस बात की खिलाफत करने पर प्रज्वल ने उस के और उस की पत्नी के साथ मारपीट भी की थी. वह अपने साथ हुई इस ज्यादती के खिलाफ इंसाफ चाहता था.

‘‘चूंकि कार्तिक को रेवन्ना परिवार की काली करतूतों की खबर थी, उस ने अलगअलग लड़कियों के साथ रेवन्ना के बेहूदा वीडियो से भरा एक पैन ड्राइव हासिल कर लिया. इस पैन ड्राइव के साथ उस ने भारतीय जनता पार्टी के एक नेता देवराज गौड़ा से मुलाकात की.

‘‘उधर, प्रज्वल ने 1 जून, 2023 को इसे ले कर अदालत में दस्तक दी थी और कहा था कि वीडियो के सहारे उस की इमेज खराब की जा रही है.’’

‘‘पर, प्रज्वल रेवन्ना को किसी का गंदा वीडियो बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ी?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद अब इस मामले की परतें प्याज की तरह खोलना चाहता था.

सुनहरी ने थूक गटका और बोली, ‘‘दरअसल, यह मामला तब शुरू हुआ था, जब रेवन्ना परिवार में रसोइए के तौर पर काम कर चुकी एक औरत ने एफआईआर दर्ज करवाई है, जो एचडी रेवन्ना की पत्नी भवानी की रिश्तेदार बताई जाती है.

‘‘उस औरत ने अपनी शिकायत में बताया है कि जब उस ने रेवन्ना परिवार में रसोइए के तौर पर काम करने की शुरुआत की, उस के 4 महीने बाद उस का जिस्मानी शोषण शुरू हो गया था.

‘‘प्रज्वल रेवन्ना उस औरत की बेटी को फोन कर के उस के साथ गंदी बातें किया करता था. पीडि़ता ने बताया है कि साल 2019 में जब रेवन्ना परिवार के बेटे सूरज की शादी थी, तब उसे काम के लिए बुलाया गया था, लेकिन इस के बाद से जबजब मौका मिलता, रेवन्ना उसे अपने कमरे में अकेले बुलाया करते थे.

‘‘उस परिवार में 6 औरतें और काम करती थीं. सभी की सभी डरी होती थीं खासकर प्रज्वल रेवन्ना के घर आने पर औरतें सहम जाती थीं. यहां तक कि घर में काम करने वाले कुछ मर्द नौकरों ने भी उन्हें सावधान रहने को कहा था. इस तरह सभी डरेसहमे अपनी बारी का इंतजार किया करते थे.

‘‘पीडि़ता ने यह भी आरोप लगाया है कि जब रेवन्ना की पत्नी घर पर नहीं होती थीं, तो वे उसे स्टोररूम में बुला कर फल देने के बहाने उस के साथ गलत हरकत करता था. उस का यौन शोषण करता था.

‘‘कई बार उस के किचन में काम करने के दौरान रेवन्ना ने उस के साथ ज्यादती की थी, जबकि प्रज्वल उस की बेटी को वीडियो काल कर उस से गंदी बातें करता था, जिस के बाद उस की बेटी ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया था.’’

‘‘हो सकता है, उस औरत ने आपसी रजामंदी से यह सब किया हो और बाद में रेवन्ना परिवार से फायदा उठाने के लिए यह नाटक रचा हो?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद को अब सुनहरी से अपने इस सवाल का जवाब चाहिए था.

‘‘देखो साहब, मुझे यह तो नहीं पता कि कौन सच्चा है और कौन    झूठा, पर इतना तो सम   झ में आता ही है कि दाल में कुछ तो काला है. इस मामले में आईपीसी की धारा 354 (ए) यानी यौन शोषण, 354 (डी) यानी पीछा करना, 506 यानी जान से मारने की धमकी देना और 509 यानी बातें या इशारों से महिला की गरिमा का अपमान करना जैसी धाराएं शामिल हैं.

‘‘पुलिस सूत्रों की मानें, तो रेवन्ना की शिकार लड़कियों और औरतों में ज्यादातर वे ही शामिल हैं, जो किसी राजनीतिक सपने को पूरा करने या फिर अपने किसी काम को ले कर उन से मिलने आया करती थीं.’’

‘‘कानून का बड़ा ज्ञान है तुझे तो. धाराएं रटी हुई हैं. इन का मतलब भी समझती है?’’ इंस्पैक्टर ताराचंद ने सुनहरी की जानकारी से कुढ़ कर कहा.

ताराचंद ऊंची जाति का था और जातिवाद उस की रगरग में भरा था. वह यह बात कैसे सहन कर लेता कि एक दलित लड़की थाने में खड़ी हो कर धड़ल्ले से अपनी बात रख दे.

‘‘साहब, आप ने पूछा तो बता दिया. वैसे भी हम लोगों के पढ़नेलिखने की कद्र ही कहां है. हमारे समाज में तो औरत को घर की जूती समझा जाता है. ऐसी जूती जिसे किसी भी समाज का कोई भी ऐरागैरा पहनना अपना जन्मजात हक सम   झता है.

‘‘आज हम जितनी भी लड़कियां पकड़ी गई हैं न, उन में से ज्यादातर वंचित समाज की हैं और उन की इज्जत तो कम उम्र में ही लुट जाती है. मुझे तो कई साल पहले ही एक दबंग की बिगड़ैल औलाद ने खेत में धर लिया था. मना किया तो लातघूंसों से मेरी खातिरदारी की थी, रेप किया सो अलग.’’

‘‘पर, अब तो तू अपनी मरजी से वीडियो बनवा रही थी न?’’

‘‘बिलकुल बनवा रही थी और मु   झे इस का कोई अफसोस भी नहीं है. पैसा इनसान की हर कमजोरी को ताकत में बदल देता है. चौधरी साहब के बेटे ने भले ही हमारी वीडियो बनवाई हैं, पर हमें इस का कोई मलाल नहीं है. पैसा भी तो दिया है. और फिर आज की तारीख में कोई भी हमें पैसे से कमजोर नहीं कह सकता है. घर में सुखसुविधा का सारा सामान है. छोटी बहन पढ़ रही है. मांबाप को दो वक्त की रोटी मिल रही है.

‘‘साहब, इस देश में जो औरतों और लड़कियों की तरक्की का ढोल पीटा जा रहा है न, उस की पोल तो वाराणसी का रैडलाइट एरिया मंडुआडीह ही खोल देता है. देश का सब से ताकतवर नेता वहां से लोकसभा का इलैक्शन लड़ता है, पर क्या यह सामाजिक कोढ़ खत्म हो पाया? नहीं न. और होगा भी नहीं.

‘‘प्रज्वल मामले में भी शायद लीपापोती कर दी जाए, तो क्यों न हमें भी शांति से जीने दिया जाए. सब खाकमा रहे हैं, तो किसी के बाप का क्या जाता है.’’

सुनहरी के मुंह से इतना सुन कर इंस्पैक्टर ताराचंद ने चौधरी सुमेर सिंह के बेटे सुमित की ओर देखा और बोला, ‘‘लड़की की बात में दम है. आज मामला थाने में और फिर कल कोर्ट में जाएगा, तो बदनामी तो इस गांव की ही होगी न. किसी को कुछ नहीं मिलेगा.

‘‘ऐसा करो कि इस मामले को यहीं रफादफा करने के 2 लाख रुपए दे दो. तुम लोग कुछ दिन शांत रहना और फिर दोबारा जुट जाना वीडियो बनाने के धंधे में.

‘‘पर, एक बात का खयाल रखना कि दोबारा अपनी निजी लड़ाई को इस तरह थाने में मत घसीटना, वरना मैं लिहाज नहीं करूंगा. बाकी हमें भी कभीकभार अपनी जवानी का रस चखा देना,’’ सुनहरी को ताड़ते हुए इंस्पैक्टर ताराचंद ने अपनी बात खत्म की.

सुनहरी ने एक आंख दबाते हुए कहा, ‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है. आप हमारा खयाल रखें और हम आप का. आप की सेवा करने में तो अलग ही मजा है. जब भी फोन कर देंगे, आप की सेवा में हाजिर हो जाऊंगी.’’

सुमित ने थोड़ी देर में ही इंस्पैक्टर ताराचंद को 2 लाख रुपए पकड़ा दिए और अपनी लड़कियों और दूसरे स्टाफ को ले कर वहां से चला गया. अब उन्हें बेखौफ हो कर वीडियो जो बनाने थे.

मौत को बांध रखा था : क्यों खुश था सौरभ

करनाल में नामी फर्नीचर शोरूम, “लाल फर्नीचर” जिसकी करनाल, कुरूक्षेत्र, लाडवा, समालखा में कई ब्रांच थी.

शोरूम के मालिक शाह जी के नाम से जाने जाते, शाह जी का एक छोटा भाई अतुल इंग्लैंड रहता था.

यहां इंडिया में शाह जी का पत्नी और एक बेटी के अलावा और कोई रिश्तेदार नहीं था.

शाह जी बहुत बार छोटे भाई अतुल को इंडिया आने को कहते मगर अतुल एक ही जवाब देता,” भाई यहां इन्सान की कद्र उसके हुनर से है, उसकी पहचान उसकी काबलियत से है, इंडिया में इन्सान को केवल प्रापर्टी, धन-दौलत, जायदाद से ही अच्छा और बड़ा समझा जाता है, उसके हुनर की कोई कद्र नहीं, फिर ऐसे में कैसा भविष्य होगा इन्सान का? ”

और शाह जी चुप हो जाते, ऐसा नहीं वो ये बातें मानते थे, मगर वो बहस ना करना चाहते, वो समझते थे कि इन्सान की कीमत उसके गुणों से है.

शाह जी की बेटी निहारिका, शाह जी की ही तरह, किसी से कोई फालतू बात ना करनी, बस केवल अपने काम से काम रखना.

निहारिका ने जब कालिज में एडमिशन लिया, उसी की क्लास में सौरभ नाम का एक लड़का सुन्दर, सजीला जवान, जब वो निहारिका को देखता है तो देखता ही रह जाता है, बेशक निहारिका साधारण सी, ना कोई मेकअप, ना कोई स्टाइलिश कपड़े.

फिर भी ना जाने उसमें क्या कशिश थी, वो निहारिका की तरफ खिंचने लगा, उसने कई बार कोशिश की, कि निहारिका से बात करे, और भी बहुत से लड़के निहारिका से बात करने की कोशिश करते, यहां तक कि कोई -कोई तो धमकी भी देता कि उससे बात करें, वरना वो उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं.

कालिज ऐसा स्थान होता है जहां जोड़ियां बनते देर नहीं लगती. लेकिन निहारिका किसी को भी बात करने का अवसर तक ना देती. बस सुबह एक गाड़ी आती जिसमें एक अधेड़ उम्र का शख्स दिखने में ड्राइवर जैसा वो गाड़ी उसे छोड़ कर जाती और क्लास खत्म होते ही गाड़ी आ जाती और निहारिका चुपचाप उस गाड़ी में बैठ कर चली जाती.

ग्रेजुएशन के बाद सौरभ ने इंटिरियर डिजाइनर का कोर्स चुना जब सेंटर में गया तो देखा इत्तेफ़ाकन निहारिका भी इंटिरियर डिजाइनर का कोर्स करने आई है.

दोनों में हाए हैलो होती है, लेकिन इतना समय साथ रहने के बावजूद भी निहारिका ने किसी को भी अभी तक अपना फोन नंबर नही दिया था, किसी से अगर बात करनी हो तो केवल इंटरनेट से ही करती थी मैसेज द्वारा. इंटिरियर डिजाइनर का कोर्स दो साल का था, सौरभ को खुशी हुई कि इस बहाने दो साल निहारिका के साथ और रहने का मौका मिला.

इधर शाह जी की तबीयत कुछ खराब रहने लगी थी, कितनी बार पत्नी और बेटी ने डाक्टर को दिखाने को कहा, लेकिन शाह जी टालते रहे, उन्हें लगा शायद काम की अधिकता से थकावट हो जाती है.

लेकिन एक दिन निहारिका, ” पापा आज मैं क्लास नहीं जा रही, आप  जल्दी से तैयार हो जाएं, हम डाक्टर के पास चल रहे हैं”

शाह जी,” अच्छा बाबा मैं आज, अभी डाक्टर के पास जाऊंगा मगर तुम अपनी क्लास मिस मत करो”

निहारिका पापा से प्रोमिस लेकर क्लास चली गई और शाह जी चले बेटी से किया वादा निभाने डाक्टर के पास.

डाक्टर चैकअप करने के बाद कुछ टैस्ट करवाते हैं और रिपोर्ट आने पर शाह जी को पता चलता है कि उन्हें गुर्दे का कैंसर है, जो काफी ज्यादा फैल चुका है. शाह जी दवाई लेकर आते हैं, मगर यह बात किसी को नहीं बताते, बस इतना कहते हैं कि हल्का सा किडनी इनफैक्शन है जो डायलिसिस के बाद ठीक हो जाएगा. लेकिन अब उन्हें निहारिका की चिंता सताती है, निहारिका का इंटिरियर का दूसरा साल चल रहा है, शाह जी उसे साथ-साथ एडवांस कम्प्यूटर कोर्स भी  करवाते हैं और उसकी सरकारी नौकरी की कोशिश करते हैं लेकिन यहां किस्मत साथ नहीं देती.

कहीं अगर शादी की बात करते हैं तो इकलौती बेटी होने की वजह से सबका ध्यान उनकी प्रोपर्टी की ओर जाता है. अक्सर यही सुनने में मिलता है कि निहारिका बहुत साधारण सी है लेकिन चलो प्रोपर्टी तो अच्छी खासी है इसलिए अच्छी जगह रिश्ता हो सकता है, अर्थात जो भी देखता प्रोपर्टी ही देखता.

इन‌सब बातों से शाह जी का मन खिन्न हो गया उन्होंने इंग्लैंड में अपने भाई से बात की तो उन्होंने कहा कि आइलेट का कोर्स करवा दें निहारिका को और यहां इंग्लैंड भेज दें वहां इन्सान की दौलत की नहीं,  इन्सान की कद्र है, उसके हुनर की कद्र है.

शाह जी निहारिका को आइलट्स का कोर्स करवा देते हैं, जिसमें निहारिका अच्छा रैंक लाती है.

शाह जी के पास समय बहुत कम रह गया है लेकिन किसी को भी इस बात की भनक नहीं. एक महीने बाद ही निहारिका को इंग्लैंड जाना है.

निहारिका पापा से बार-बार किडनी चेंज कराने को कहती हैं, लेकिन शाह जी नहीं मानते, क्योंकि वो जानते हैं ये कैंसर है किडनी चेंज भी होगा तो भी कैंसर फिर से होगा, इसलिए कहते हैं,” बस थोड़ी सी डायलिसिस और उसके बाद हमेशा के लिए छुट्टी, बिल्कुल ठीक”

धीरे-धीरे निहारिका के जाने का दिन नज़दीक आ रहा है, निहारिका पैकिंग करते हुए, ईश्वर से प्रार्थना भी कर रही है कि पापा को जल्द ठीक कर दें, और बार-बार पापा को भी देखती है. उसके पापा खुश हैं कि उनकी बेटी दहेज के कलंक से बच गई. यहां तो बेटियों को दहेज के खर्चे की लिस्ट और लड़कों को घर बैठे कमाई का जरिया माना जाता है.

आज निहारिका की फ्लाइट है और शाह जी की डायलिसिस की टर्न भी.

निहारिका, ” पापा आप जाईए अस्पताल, मैं एअरपोर्ट खुद चली जाऊंगी”

” ठीक है बेटा जाओ, खुश रहो”

निहारिका को आशीर्वाद देते हुए शाह जी अस्पताल के लिए चल दिए, लेकिन ना जाने क्यों निहारिका का मन बैचैन था, उसे ऐसा लगा जैसे वो पापा को आखिरी बार मिल रही है, शायद फिर कभी मेल ना हो.

सौरभ को रात को बुखार था  इसलिए रात भर अच्छे से नींद नहीं आई, सुबह जब कुछ बुखार कम हुआ तो नींद की झपकी आ गई, लेकिन अचानक मोबाइल की घररर-घरररर से नींद खुली तो देखा मैसेंजर काॅल था.

जैसे ही फोन उठाया हैलो बोलने से पहले ही उधर से आवाज़ आई,” पापा चले गए छोड़कर हमेशा के लिए”

सौरभ कुछ ना बोल सका, केवल सोचता रहा उस शख्स के बारे में जिसने अपनी बेटी को एक अच्छा भविष्य देने के लिए अपनी मौत को बांध कर रख लिया था. अपनी बेटी का सुनहरा भविष्य बनाकर अब वो फ्री हो गया, मुक्त हो गया हर चिंता से.

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