कोर्ट रूम में क्यों हुई गैंगवार

17 जनवरी, 2018 का दिन था. दोपहर के करीब पौने एक बजे का समय रहा होगा. अजय जैतपुरा अपने कुछ साथियों के साथ राजस्थान के चुरू जिले के सादुलपुर शहर की मुंसिफ अदालत में अपनी तारीख पर आया था. उस दिन जज साहब नहीं आए थे. उन के न आने की वजह से पेशकार मोहर सिंह राठौर ही पेशी पर आने वालों को अगली तारीख दे रहे थे.

अजय जैतपुरा भी अपने वकील के साथ पेशकार के सामने  खड़ा था. उस के वकील रतनलाल प्रजापति ने पेशकार से अगली तारीख मांगी. पेशकार ने अजय जैतपुरा की फाइल निकाली. वह फाइल के पन्ने पलट ही रहे थे, तभी 4-5 युवक अदालत के कमरे में आए. पेशकार ने उन पर उड़ती हुई सी एक नजर डाली. तभी वे युवक अचानक अंधाधुंध फायरिंग करने लगे.

कोर्ट रूम में फायरिंग होने से भगदड़ मच गई. फायरिंग होते देख वह भाग कर बगल में बने जज साहब के चैंबर में घुस गए और दरवाजा बंद कर लिया.

जब फायरिंग की आवाज बंद हो गई तो कोर्टरूम में शोर होने लगा. पेशकार को जब यह यकीन हो गया कि बदमाश जा चुके हैं तो वह जज साहब के चैंबर का दरवाजा खोल कर कोर्ट रूम में आए. कोर्ट रूम का दृश्य देख कर उन की आंखें फटी रह गईं. अजय जैतपुरा लहूलुहान पड़ा था. उस के साथ आए वकील रतनलाल प्रजापति और 2 अन्य लोग प्रदीप व संदीप भी घायल पड़े थे. चारों के गोलियां लगी थीं.

क्रिमिनल ने क्रिमिनल को बनाया निशाना

जिन 4 लोगों को गोलियां लगी थीं, उन में से अजय की हालत सब से ज्यादा गंभीर थी. सभी घायलों को तत्काल अस्पताल ले जाया गया. हालत गंभीर होने की वजह से प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें हरियाणा में हिसार के अस्पताल रैफर कर दिया गया.

अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने अजय जैतपुरा को मृत घोषित कर दिया. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए पोस्टमार्टम के लिए उस का शव हिसार से सादुलपुर भेज दिया गया. बाकी तीनों घायलों को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया गया.

अजय एक हार्डकोर अपराधी था. 12 दिन पहले ही वह जमानत पर जेल से छूटा था. उस के खिलाफ जघन्य अपराधों के 40 से ज्यादा मामले चल रहे थे. अजय ने 23 सितंबर, 2015 को बैरासर गांव में हमीरवास थाने के थानेदार व सिपाहियों को अपनी गाड़ी से कुचलने का प्रयास किया था.

सादुलपुर के अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश की अदालत ने अजय को इस मामले में 14 नवंबर, 2017 को 7 साल की सजा सुनाई थी. इसी साल 5 जनवरी को ही हाईकोर्ट से उस की जमानत हुई थी. इस के 12 दिन बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

हरियाणा के अनिल जाट गैंग ने 2 दिन पहले ही अजय जैतपुरा को धमकी दी थी. दरअसल, हरियाणा के 2 लाख रुपए के इनामी बदमाश अनिल जाट को हरियाणा पुलिस ने 25 जून, 2015 को एनकाउंटर में मार गिराया था. यह एनकाउंटर हरियाणा के ईशरवाल गांव में हुआ था.

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अनिल जाट के गिरोह के सदस्यों को शक था कि उन के बौस का एनकाउंटर कराने में अजय जैतपुरा और चूरू जिले के थाना राजगढ़ के सिपाही नरेंद्र का हाथ था. अजय ने ही फोन कर के अनिल को बुलाया था. उस की मुखबिरी पर ही पुलिस ने अनिल को घेर कर मार दिया.

10 हजार रुपए के इनामी बदमाश अजय जैतपुरा को सादुलपुर के तत्कालीन थानाप्रभारी ने अपनी टीम के साथ 12 फरवरी, 2016 को जयपुर के जवाहर सर्किल से गिरफ्तार किया था. वह हमीरवास के थानेदार और सिपाहियों को गाड़ी से कुचलने की कोशिश करने के बाद फरार हो गया था. तब 23 अक्तूबर, 2015 को बीकानेर के तत्कालीन आईजी ने उस पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित किया था.

कहा जाता है कि सन 2006 में मारपीट के मामले में नामजद होने के बाद अजय अपराध की दलदल में फंसता चला गया. इस के बाद उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वह अपराध की दुनिया में अपना नाम कमाने के लिए एक के बाद एक अपराध करता चला गया. सन 2007 में उस की हिस्ट्रीशीट खुली थी.

चुरू जिले के हमीरवास थाना इलाके के गांव जैतपुरा के रहने वाले साधारण परिवार के विद्याधर जाट का बेटा अजय जैतपुरा 2 भाइयों में बड़ा था. उस के छोटे भाई का नाम विजय जैतपुरा है. शादीशुदा अजय का एक बेटा भी है.

कोर्ट रूम में अंधाधुंध गोलीबारी कर के हार्डकोर अपराधी की हत्या करने की वारदात से चुरू जिला मुख्यालय से ले कर जयपुर तक हड़कंप मच गया था. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

पुलिस ने खोजबीन में लगाया पूरा जोर

लोगों से पूछताछ में सामने आया कि हमलावरों के दोनों हाथों में पिस्टल थीं. कोर्ट रूम में फायरिंग के बाद वे हवाई फायर करते हुए मंडी की तरफ के गेट से निकल कर भाग गए.

फायरिंग से लोगों में दहशत फैल गई. लोगों ने पुलिस को बताया कि हमलावरों ने करीब 50 फायर किए थे. भागते समय उन्होंने अदालत परिसर में खड़ी अजय जैतपुरा की स्कौर्पियो गाड़ी पर भी गोलियां चलाई थीं.

पुलिस ने कोर्ट परिसर से एक दरजन से ज्यादा कारतूस के खोखे बरामद किए. ये सभी कारतूस 9 एमएम के थे. मौके पर एक जिंदा कारतूस और एक मैगजीन भी मिली.

पुलिस ने हमलावरों का पता लगाने के लिए अदालत परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. थानाप्रभारी भगवान सहाय मीणा ने हिसार जा कर घायलों के बयान लिए.

फायरिंग में घायल हुए जैतपुरा गांव के प्रदीप कुमार स्वामी ने पुलिस को बताया कि उस की और अजय की अदालत में पेशी थी. वे लोग अपने साथियों के साथ स्कौर्पियो व फार्च्युनर गाड़ी से आए थे.

मुंसिफ न्यायालय में जब वे पेशकार के पास खड़े थे, उसी दौरान संपत नेहरा, मिंटू मोडासिया, राजेश, प्रवीण, अक्षय, विपिन, कुलदीप, नवीन, संदीप आदि अपने हाथों में पिस्टल ले कर कोर्ट रूम में घुस आए और उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इस अप्रत्याशित हमले में उस के अलावा अजय जैतपुरा, संदीप गुर्जर व वकील रतन प्रजापति को गोली लगी. बाद में हमलावर हवाई फायर करते हुए भाग गए.

अदालत में मौकामुआयना करने पहुंचे एसपी राहुल बारहठ के समक्ष वकीलों ने वारदात पर आक्रोश जताते हुए अदालत परिसर में पर्याप्त पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने और पुलिस चौकी स्थापित करने की मांग की.

वकीलों ने एसपी को बताया कि घटना के दौरान अदालत में चालानी गार्ड मौजूद थे, लेकिन वे निहत्थे होने के कारण हमलावरों का मुकाबला नहीं कर सके.

अजय जैतपुरा की हत्या के दूसरे दिन सादुलपुर के सरकारी अस्पताल में 5 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड ने उस के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम में पता चला कि अजय के शरीर में कुल 7 गोलियां लगी थीं. इन में 5 गोलियां उस के शरीर के आरपार निकल गई थीं और 2 गोलियां उस के शरीर में ही फंसी हुई मिलीं.

इस से पहले अजय के परिजनों ने उस के शव का पोस्टमार्टम कराने से मना कर दिया था. बाद में एसपी राहुल बारहठ को 6 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन दे कर पोस्टमार्टम करवाने पर राजी हुए.

इस में अजय के परिवार को 50 लाख रुपए की आर्थिक मदद, उस की पत्नी को सरकारी नौकरी व भाई विजय को शस्त्र लाइसैंस, अजय के परिवार और उस के साथी प्रदीप जांदू के घर पर सुरक्षा गार्ड मुहैया कराने, अजय की हत्या की जांच पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप से कराने तथा मामले के सभी गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने की मांग शामिल थी. एसपी ने इन मांगों पर यथासंभव काररवाई करने का आश्वासन दिया.

पोस्टमार्टम के बाद अजय का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. वे लोग शव को जैतपुरा गांव की ढाणी ले गए. तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए एसपी ने शव के साथ राजगढ़ के थानाप्रभारी को भारी पुलिस बल के साथ जैतपुरा भेज दिया, जिस की मौजूदगी में अजय का अंतिम संस्कार किया गया.

वकील भी उतरे हड़ताल पर

दूसरी ओर सादुलपुर के वकीलों ने अदालत परिसर में घुस कर गोलीबारी करने और अजय के साथ वकील रतनलाल प्रजापति को गोली लगने के विरोध में मिनी सचिवालय परिसर में अनिश्चितकालीन हड़तान शुरू कर दी.

वकीलों का कहना था कि जब अदालत परिसर में ही वकील सुरक्षित नहीं हैं तो आम लोगों की सुरक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है. इस गोलीबारी के विरोध में चुरू जिला मुख्यालय और कई अन्य शहरों में भी वकीलों ने न्यायिक कार्य स्थगित रखा.

पुलिस की जांच में सामने आया कि अजय की हत्या करने में पंजाब के वांटेड गैंगस्टर संपत नेहरा का हाथ था. चुरू जिले के कालोड़ी गांव के रहने वाले रामचंद्र का बेटा संपत नेहरा पंजाब के कुख्यात लारेंस बिश्नोई से जुड़ा हुआ था. उसे लारेंस का दाहिना हाथ माना जाता था.

लारेंस आजकल राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद है. जेल में रहते हुए वह राजस्थान और पंजाब में कई बड़ी वारदातें करवा चुका है. लारेंस और संपत का मकसद एनकाउंटर में आनंदपाल की मौत के बाद राजस्थान में अपना वर्चस्व कायम करना था.

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वकीलों के आंदोलन से पुलिस पर आरोपियों को गिरफ्तार करने का दबाव बढ़ रहा था, इसलिए एसपी राहुल बारहठ ने अभियुक्तों की तलाश में कई टीमें विभिन्न जगहों पर भेजीं. राजस्थान पुलिस ने इस मामले में हरियाणा पुलिस की मदद ली.

हरियाणा पुलिस की स्पैशल टास्क फोर्स ने सादुलपुर पहुंच कर पूरे मामले की जानकारी ली. बीकानेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक विपिन पांडेय भी दूसरे दिन सादुलपुर आए. उन्होंने न्यायिक अधिकारियों व एसपी के साथ मिल कर वकीलों से भी बात की.

आईजी ने वकीलों को आश्वासन दिया कि कोर्ट परिसर में सशस्त्र गार्ड तैनात किए जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि अजय जैतपुरा के घर पर भी सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाएंगे.

तीसरे दिन भी कई जगह दबिश देने के बावजूद पुलिस को अजय के हत्यारों का सुराग नहीं लगा. इस के बाद चुरू के एसपी ने नामजद 9 आरोपियों में से हरेक पर 5-5 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

20 जनवरी को सादुलपुर में बार एसोसिएशन के आह्वान पर वकीलों ने मौन जुलूस निकाला. उन्होंने उपजिला कलेक्टर को ज्ञापन दे कर न्यायालय परिसर को संवेदनशील घोषित करने, घायल वकील रतनलाल प्रजापति को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने, अदालत परिसर में पुलिस चौकी स्थापित करने आदि की मांग की.

पूर्व मंत्री नटवर सिंह की निकली कार

फायरिंग की घटना के पांचवें दिन 21 जनवरी को पुलिस ने हमलावरों की फार्च्युनर गाड़ी हरियाणा में बरामद कर ली. हमलावर इस गाड़ी से सादुलपुर आए थे और इसी गाड़ी से भागे थे. बदमाश इस गाड़ी को हरियाणा के मौजा लाडावास एवं काकडोली के बीच रोही में छोड़ कर भाग गए थे.

जांच में पता चला कि यह गाड़ी पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री नटवर सिंह की है. 25 दिसंबर, 2017 की शाम को यह गाड़ी उन के चालक से गन पौइंट पर गुरुग्राम के सुशांत लोक इलाके से लूटी गई थी. इस गाड़ी को उन का विधायक बेटा जगत सिंह रखता था.

चालक सेवा सिंह जगत सिंह के यहां पिछले 15 सालों से नौकरी कर रहा है. 25 दिसंबर की शाम को सेवा सिंह व माली रामप्रसाद इस गाड़ी से गुरुग्राम के सुशांत लोक गोल्फ चौक गए थे. इसी दौरान लाल रंग की बोलेरो में सवार 2 युवकों ने गन पौइंट पर उन से मारपीट कर के गाड़ी छीन ली थी. इस की रिपोर्ट सुशांत लोक थाने में दर्ज थी.

24 जनवरी को जिला एवं सैशन जज योगेंद्र पुरोहित सादुलपुर पहुंचे. उन्होंने पिछले 7 दिनों से हड़ताल, धरना व अनशन कर रहे वकीलों की बातें सुनीं. जिला जज ने कहा कि उन्होंने इस घटना को गंभीरता से लिया है. वे पूरी सुरक्षाव्यवस्था को चाकचौबंद करवाने में लगे हैं. फायरिंग में घायल हुए एडवोकेट रतनलाल प्रजापति को पीडि़त पक्षकार स्कीम के तहत अधिकतम राशि दिलवाई जाएगी.

आखिर पुलिस की कोशिश रंग लाई

आखिर 29 जनवरी को पुलिस को इस मामले में नामजद आरोपी संदीप कुमार जाट को गिरफ्तार करने में कामयाबी मिली. वह हरियाणा के लोहारू थानाक्षेत्र के गांव सिंघाणी का रहने वाला था. संदीप के खिलाफ बहल, पिलानी सहित कई अन्य थानों में अनेक मामले दर्ज थे. वह हरियाणा में हुए जाट आंदोलन का भी आरोपी था. उसे हरियाणा की एक अदालत ने भगोड़ा घोषित किया था. संदीप अजय जैतपुरा हत्याकांड में नामजद आरोपी मिंटू मोडासिया का साथी था.

संदीप ने बताया कि सादुलपुर में अजय जैतपुरा की हत्या के बाद सभी आरोपी हरियाणा चले गए और वहां से अलगअलग हो गए. संदीप इस वारदात के बाद बेंगलुरु चला गया था. वह इस से पहले बेंगलुरु में काम कर चुका था.

संदीप हवाईजहाज से बेंगलुरु से दिल्ली आ कर अपने साथी प्रवीण व राजेश के गांव कैर की ढाणी जा रहा था, तभी पुलिस ने उसे रास्ते में धर दबोचा था.

पुलिस की जांच में इस मामले में शार्पशूटर अंकित भादू का नाम और सामने आया. पंजाब के शेरावाला बहाववाला, फाजिल्का निवासी अंकित भादू पर 31 जनवरी, 2018 को चुरू एसपी ने 5 हजार रुपए का इनाम घोषित किया. अजय की हत्या के मुख्य आरोपी संपत नेहरा पर 1 फरवरी को बीकानेर आईजी ने 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. कथा लिखे जाने तक अन्य आरोपी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े थे.

तलाक के डर से बच्चे की बलि

9 जुलाई, 2017 की शाम 6 बजे के करीब घर के बाहर गली में बच्चों के साथ खेल रहा सुनील का 3 साल का बेटा यश अचानक लापता हो गया. सुनील मध्य प्रदेश के जिला इंदौर के थाना गौतमपुरा के गांव गढ़ी बिल्लौदा का रहने वाला था. बेटे के गायब होने का पता चलते ही वह गांव वालों की मदद से उस की तलाश में लग गया.

काफी खोजबीन के बाद भी जब बेटे का कुछ पता नहीं चला तो सुनील ने गांव के कुछ लोगों के साथ थाना गौतमपुरा जा कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करवा दी थी. सुनील बेटे की गुमशुदगी भले ही दर्ज करवा आया था, लेकिन घर लौट कर उस से रहा नहीं गया. वह पूरी रात बेटे की तलाश में इधरउधर भटकता रहा. जहां भी संभव हो सका, उस ने बेटे को खोजा.

लेकिन सुनील की सारी मेहनत तब बेकार गई, जब सुबह मुंहअंधेरे सुनील के पड़ोसी दिलीप बागरी ने शोर मचाया कि सुनील का बेटा यश उस के आंगन में बेहोश पड़ा है.

दिलीप के शोर मचाते ही पूरा गांव उस के आंगन में जमा हो गया. गांव वालों ने यश को टटोला तो पता चला कि वह मर चुका है. तुरंत इस बात की सूचना थाना गौतमपुरा पुलिस को दी गई.

सूचना मिलते ही थाना गौतमपुरा के थानाप्रभारी हीरेंद्र सिंह राठौर पुलिस बल के साथ गांव गढ़ी बिल्लौदा पहुंच गए. उन्होंने यश को गौर से देखा तो उन्हें भी लगा कि बच्चा मर चुका है. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो उसे देख कर ही लग रहा था कि बच्चे के पूरे शरीर में सुई चुभोई गई है. उस के पूरे शरीर से खून रिस रहा था.

बच्चे के मुंह पर भी अंगुलियों के निशान थे, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बच्चे का मुंह भी दबाया गया था. संभवत: मुंह दबाने से ही दम घुटने के कारण बच्चे की मौत हुई थी. सुई चुभोने से पुलिस को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि तंत्रमंत्र में बच्चे की हत्या की गई थी. इस के बाद घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर हीरेंद्र सिंह राठौर ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

यह साफसाफ तंत्रमंत्र में हत्या का मामला था, इसलिए हीरेंद्र सिंह इस बात पर विचार करने लगे कि आखिर बच्चे की हत्या किस ने की है? तंत्रमंत्र के अलावा हत्या की कोई दूसरी वजह भी नहीं दिखाई दे रही थी. क्योंकि सुनील इतना पैसे वाला आदमी नहीं था कि कोई फिरौती के लिए उस के बेटे का अपहरण करता. उस का कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था कि दुश्मनी में उस के बेटे का कत्ल किया गया हो.

इस के अलावा थानाप्रभारी ने यह भी पता कराया कि सुनील का किसी अन्य औरत से चक्कर तो नहीं था? जिस की वजह से उस ने पत्नी और बेटे से छुटकारा पाने के लिए ऐसा किया हो.

जिस दिलीप बागरी के आंगन में यश का शव मिला था, उस से भी पूछताछ की गई. उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं मासूम बच्चे की हत्या क्यों करूंगा? मैं तो उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करता था. रात 12 बजे तक तो मैं सुनील के साथ ही था. उस के बाद घर आ कर सो गया था. बच्चे की चिंता में मैं ने रात में खाना भी नहीं खाया था.’’

दिलीप बागरी ने जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए सफाई दी थी, उस से हीरेंद्र सिंह राठौर को लगा कि शयद किसी अन्य ने बच्चे की हत्या कर के इसे फंसाने के लिए लाश इस के आंगन में फेंक दी है. यही सोच कर वह थाने लौट आए. थाने आ कर उन्होंने यश की गुमशुदगी की जगह उस की हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की खुद ही जांच शुरू कर दी.

कई दिनों तक वह इस मामले की विवचेना करते रहे, पर हत्यारे तक पहुंचने की कौन कहे, वह यह तक पता नहीं कर सके कि मासूम यश की हत्या क्यों की गई थी?

जब हीरेंद्र सिंह राठौर इस मामले में कुछ नहीं कर सके तो आईजी हरिनारायण चारी ने उन का तबादला कर उन की जगह पर गौतमपुरा का नया थानाप्रभारी अनिल वर्मा को बनाया.

अनिल वर्मा थोड़ा तेजतर्रार अधिकारी थे. अब तक की गई हीरेंद्र सिंह की जांच का अध्ययन कर के पूरी बात उन्होंने डीआईजी हरिनारायण चारी, एडिशनल एसपी पंकज कुमावत तथा एसडीओपी अमित सिंह राठौर को बताई तो सभी अधिकारियों ने एक बार फिर दिलीप बागरी से थोड़ा सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.

क्योंकि दिलीप बागरी ने भले ही अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा था, पर सभी को उसी पर शक था. अनिल वर्मा ने दिलीप से पूछताछ करने से पहले मुखबिरों से उस के बारे में पत कराया. मुखबिरों से उन्हें पता चला कि दिलीप इधर बेटे की चाह में तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा था. बेटे के लिए ही वह एक के बाद एक कर के 3 शादियां कर चुका है.

बेटे के ही चक्कर में उस की पहली पत्नी की मौत हुई थी. यह जानकारी मिलने के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप और उस की दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी को थाने बुलवा लिया. थाने में दिलीप और उस की पत्नियों से अलगअलग पूछताछ की जाने लगी तो तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास पाया गया.

इस से अनिल वर्मा का संदेह गहराया तो उन्होने दिलीप बागरी से सख्ती से पूछताछ शुरू की. पुलिस की सख्ती के आगे दिलीप टूट गया और उस ने अपनी दोनों पत्नियों संतोष कुमारी और पुष्पा के साथ मिल कर यश की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने यश की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

दिलीप की पहली शादी 17 साल की उम्र मे गौतमपुरा के नजदीक के गांव इंगोरिया की रहने वाली सज्जनबाई से हुई थी. सज्जनबाई नाम से ही नहीं, स्वभाव से भी सज्जन थी. उस ने दिलीप की घरगृहस्थी तो संभाल ही ली थी, समय पर 2 बेटियों को जन्म दे कर उस का घरआंगन महका दिया था.

2 बेटियां पैदा होने के बाद सज्जनबाई और बच्चे नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने दिलीप से औपरेशन कराने को कहा. लेकिन दिलीप इतने से संतुष्ट नहीं था. उसे तो बेटा चाहिए था, इसलिए औपरेशन कराने से मना करते हुए उस ने कहा, ‘‘बिना बेटे के इस संसार से मुक्ति नहीं मिलती, इसलिए जब तक बेटा पैदा नहीं हो जाता, तुम औपरेशन के बारे में सोचना भी मत.’’

पति के आदेश की अवहेलना करना सज्जनबाई के वश में नहीं था. क्योंकि दिलीप ने साफ कह दिया था कि उसे एक बेटा चाहिए ही चाहिए. अगर वह उस का कहना नहीं मानेगी तो वह उसे तलाक दे कर दूसरी शादी कर लेगा. दिलीप ऐसा कर भी सकता था, क्योंकि उस की जाति में यह कोई मुश्किल काम नहीं था.

इसलिए सज्जनबाई चुप रह गई. कुछ दिनों बाद सज्जनबाई तीसरी बार गर्भवती हुई. जबकि उस की उम्र तो अभी शादी लायक भी नहीं थी और वह तीसरे बच्चे की मां बनने जा रही थी. दुर्भाग्य से दिलीप का बेटे का बाप बनने का सपना पूरा नहीं हो सका. क्योंकि बच्चे को जन्म देते समय सज्जनबाई ही नहीं, उस के बच्चे की भी मौत हो गई थी.

संयोग से पैदा होने वाला बच्चा बेटा ही था. दिलीप को पत्नी और बेटे की मौत का दुख तो हुआ, लेकिन चूंकि ज्यादा दिनों तक वह अकेला नहीं रह सकता था, फिर उसे बेटा भी चाहिए था, जो दूसरी पत्नी लाने के बाद ही पैदा हो सकता था. इसलिए उस ने उज्जैन के नागदा के नजदीक के गांव उन्हेल की रहने वाली पुष्पा से दूसरी शादी कर ली. पुष्पा के घर आते ही वह बेटा पैदा करने की कोशिश में जुट गया. साल भर बाद ही पुष्पा ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह 3 महीने का हो कर गुजर गया.

इस तरह से एक बार फिर दिलीप की आशाओं पर पानी फिर गया. बेटे की मौत से वह काफी दुखी था. लेकिन उसे इस बात का अहसास हो गया था कि पुष्पा से उसे बेटा हो सकता है, इसलिए वह इस दुख को भुला कर एक बार फिर बेटा पैदा करने की कोशिश में लग गया. पुष्पा गर्भवती तो हुई, लेकिन कुछ महीने बाद उस का गर्भपात हो गया.

इस से दिलीप को वहम होने लगा कि जरूर कोई ऐसी बात है, जो उसे बेटे का बाप बनने में बाधा डाल रही है. वह पड़ोस के गांव में रहने वाले तांत्रिक बलवंत से जा कर मिला. पूरी बात सुनने के बाद तांत्रिक बलवंत ने कहा, ‘‘तुझे बेटा कहां से होगा, तेरी पत्नी की कोख में तो डायन बैठी है. वही उस की संतान को खा जाती है.’’

उपाय के नाम पर पुष्पा की झाड़फूंक शुरू हो गई. दिलीप कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उस ने संतोष कुमारी से एक और शादी कर ली. उस का सोचना था कि पुष्पा से बेटा नहीं होगा तो संतोष कुमारी से तो हो ही जाएगा. लेकिन शायद उस की किस्मत ही खराब थी. संतोष कुमारी को बेटा होने की कौन कहे, गर्भ ही नहीं ठहरा.

बेटे के लिए दिलीप तो परेशान था ही, उस की दोनों पत्नियां पुष्पा और संतोष कुमार भी परेशान रहने लगी थीं, उन की परेशानी की वजह यह थी कि बेटे के चक्कर में कहीं दिलीप उन्हें तलाक दे कर चौथी शादी न कर ले. क्योंकि उन्हें पता था कि बेटे के लिए दिलीप कुछ भी कर सकता है.

दिलीप चौथी ही नहीं, बेटे के लिए पांचवीं शादी भी कर सकता था. तलाक के बारे में सोच कर पुष्पा और संतोष परेशान रहती थीं. अपनी परेशानी पुष्पा ने पिता मनोहर सिंह को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. क्योंकि वह भी दामाद की सोच को अच्छी तरह जानते थे. दामाद को न वह रोक सकते थे, न उन की बात उस की समझ में आ सकती थी.

इसलिए बेटी का भविष्य खराब न हो, यह सोच कर वह पुष्पा को नागदा के पास स्थित गांव उमरनी के रहने वाले तांत्रिक अंबाराम आगरी के पास ले गए. पुष्पा की पूरी बात सुनने के बाद अंबाराम ने कहा, ‘‘तुम्हारी कोख में जो डायन बैठी है, वह मासूम बच्चे की बलि मांग रही है. जिस बच्चे की बलि दी जाए, वह मांबाप की पहली संतान हो. बलि के बाद तुम्हें जो गर्भ ठहरेगा, वह बेटा ही होगा और जीवित भी रहेगा.’’

तांत्रिक अंबाराम ने जो उपाय बताया था, ससुराल आ कर पुष्पा ने उसे पति दिलीप बागरी और सौत संतोष कुमारी को बताया. दिलीप तो थोड़ा कसमसाया, पर पति के तलाक के डर से संतोष कुमारी राजी हो गई. लेकिन समस्या थी मासूम बच्चे की, जो मांबाप की पहली संतान हो.

लेकिन तीनों ने जब इस विषय पर गहराई से विचार किया तो उन्हें पड़ोस में रहने वाले सुनील का 3 साल का बेटा यश याद आ गया. वह मांबाप की पहली संतान था और पड़ोसी होने के नाते दिलीप के घर आताजाता रहता था.

इस के बाद दिलीप और उस की पत्नियों ने यश की बलि देने का मन बना लिया. मासूम बच्चा मिल गया तो दिलीप ने अंबाराम से मिल कर पूछा कि बलि कब और कैसे देनी है? इस तरह अपने घर का चिराग रोशन करने के लिए दिलीप ने पड़ोसी सुनील के घर का चिराग बुझाने का मन बना लिया. अंबाराम ने बलि देने के लिए अमावस्या या पूर्णिमा का दिन बताया था.

9 जून को पूर्णिमा थी, इसलिए 8 जून को पुष्पा, दिलीप और संतोष कुमारी ने अगले दिन बलि देने की तैयारी कर के यश को अगवा करने की योजना बना डाली. इस के बाद दिलीप रोज की तरह सट्टा खेलने बड़नगर चला गया. शाम को जैसे ही यश दिलीप के घर आया, संतोष कुमारी और पुष्पा ने उसे कमरे में बंद कर के दिलीप को फोन कर के काम हो जाने की सूचना दे दी.

दिलीप उत्साह से गांव के लिए चल पड़ा. जब वह गांव पहुंचा, यश के गायब होने का हल्ला मच चुका था. पूरा गांव मासूम यश की तलाश में लगा था. दिलीप भी गांव वालों के साथ यश की तलाश का नाटक करने लगा. रात एक बजे तक वह गांव वालों के साथ यश की तलाश में लगा रहा.

जब सभी अपनेअपने घर चले गए तो दिलीप भी अपने घर आ गया. इस के बाद दोनों पत्नियों के साथ मिल कर जिस तरह तांत्रिक अंबाराम ने बलि देने की बात बताई थी, उसी तरह सभी बलि देने की तैयारी करने लगे. यश पड़ोसियों की खतरनाक योजना से बेखबर गहरी नींद में सो रहा था. अंबाराम के बताए अनुसार, दिलीप उसे उठा कर कमरे के अंदर ले गया और वहां बिछी रेत पर लिटा कर तांत्रिक के बताए अनुसार, मासूम यश के शरीर में पिनें चुभोने लगा. पीड़ा से बिलबिला कर मासूम यश रोने लगा तो संतोष और पुष्पा ने उस का मुंह दबा दिया.

दिलीप लगातार यश के होंठों, गर्दन और कंधे पर पिन चुभोता रहा. जहां पिन चुभती, वहां से खून रिसने लगता, जो बह कर रेत में समा जा रहा था. इसी तरह करीब 3 घंटे तक दिलीप यश के शरीर में पिन चुभोता रहा, क्योंकि उसे तब तक यह करना था, जब तक उस मासूम की मौत न हो जाए.

लगभग 3 घंटे बाद जब यश की मौत हुई, तब तक करीब साढ़े 3 बज चुके थे. इस के बाद यश की लाश को ला कर आंगन में रख दिया गया, जिस जगह उस मासूम का खून गिरा था, उसी के ऊपर बिना बिस्तर बिछाए दिलीप ने अपनी दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

क्योंकि तांत्रिक अंबाराम ने दिलीप से कहा था कि मासूम की बलि देने पर जो खून निकलेगा, उस के सूखने से पहले ही उस के ऊपर जितनी भी औरतों से वह शारीरिक संबंध बनाएगा, सभी को 9 महीने बाद बेटा पैदा होगा और वे जीवित भी रहेंगे. इस तरह बेटा पाने की खुशी में दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी ने जश्न मनाया.

दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी को तांत्रिक अंबाराम पर इतना भरोसा था कि यश की लाश उन के आंगन में भले मिलेगी, फिर भी पुलिस उन तीनों पर जरा भी संदेह नहीं करेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

दिलीप और उस की पत्नियों से पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने उज्जैन के रेलवे स्टेशन से तांत्रिक अंबाराम को भी गिरफ्तार कर लिया था. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस का कहना था कि उस की नीयत दिलीप की दोनों पत्नियों पर खराब हो गई थी.

उस का सोचना था कि बच्चे की हत्या के आरोप में दिलीप जेल चला जाएगा तो बाद में उस की दोनों पत्नियां संतोष और पुष्पा आसानी से उस के कब्जे में आ जाएंगी. इसीलिए उस ने बलि देने के बाद बच्चे की लाश को घर के आंगन में रखने के लिए कहा था, ताकि दिलीप आसानी से कानून के शिकंजे में फंस जाए.

पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप, पुष्पा, संतोष कुमारी और तांत्रिक अंबाराम को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. बेटे की चाहत में दिलीप ने अपना घर तो बरबाद किया ही, पड़ोसी के मासूम बेटे की जान ले कर उस के घर का भी चिराग बुझा दिया.

इस में सब से ज्यादा दोषी तो तांत्रिक अंबाराम है, जिस ने अपनी कुंठित भावना को पूरी करने के लिए 2 घर बरबाद कर दिए.

कर्नल के शिकारी बेटे का कारनामा

उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ के वीआईपी व पौश एरिया सिविललाइंस में पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों के औफिस, आवास, सर्किट हाउस, पुलिस मुख्यालय, कलेक्ट्रेट, कचहरी और पुलिस लाइन हैं. इसी इलाके में कई समृद्ध लोगों के अपने आवास भी हैं. उन्हीं में से एक आलीशान कोठी नंबर 36/4 थी, जो रिटायर्ड कर्नल देवेंद्र विश्नोई की थी. वह कोई मामूली आदमी नहीं थे. कई साल सेना में नौकरी कर के उन्होंने देश की सेवा की थी.

सन 1971 में हुई भारत पाकिस्तान की जंग में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. बाद में वह पंजाब में हुए औपरेशन ब्लूस्टार का भी हिस्सा रहे. उन के साहस की निशानियां फोटो और मैडल के रूप में उन के ड्राइंगरूम की दीवारों पर सजे थे. कई सम्मान भी उन्हें मिले थे. कुल मिलाकर उन की पृष्ठभूमि शौर्य, साहस और सम्मान की अनोखी मिसाल थी, उन्हें जानने वाले इन बातों को बखूबी जानते थे.

बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी, कर्नल साहब का एकलौता बेटा प्रशांत विश्नोई भी देश का जानामाना शूटर था. मजबूत कदकाठी और रौबदार चेहरे वाले प्रशांत की पत्नी और 2 बेटियां थीं. सभी एक साथ इसी कोठी में रहते थे. कर्नल परिवार के ईंट के भट्ठे और जमीनों के अलावा सिक्योरिटी एजेंसी का बड़ा काम था. विश्नोई परिवार करोड़ों की दौलत का मालिक तो था ही, आसपास उस की शोहरत भी थी.

कर्नल परिवार की लाइफस्टाइल हाईप्रोफाइल थी. आसपास की कोठियों में और भी लोग रहते थे, लेकिन कर्नल परिवार किसी से कोई वास्ता नहीं रखता था. वैसे भी शहरों में लोग इस तरह की जिंदगी जीने के आदी हो गए हैं. पड़ोसी को पड़ोसी की खबर नहीं होती.

हर कोई अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीना चाहता है. किस के यहां क्या हो रहा है, कोई दूसरा नहीं जानता. कर्नल की कोठी की पहचान का एक हिस्सा उन की आधा दरजन से ज्यादा महंगी कारें भी थीं. प्रशांत को कारों का शौक था. इन में लग्जरी कारों के अलावा घने जंगलों व रेगिस्तान में चलने वाली थार नामक जीप भी थी. गाडि़यां बदलती रहती थीं. खास बात यह थी कि इन सभी गाडि़यों के वीआईपी नंबर 0044 ही होते थे.

वक्त कब किस की पहचान किस रूप में सामने ला दे, इस बात को कोई नहीं जानता. 30 अप्रैल, 2017 का सवेरा हुआ तो न सिर्फ तारीख बदली थी, बल्कि कर्नल की कोठी की पहचान भी सनसनीखेज तरीके से बदल गई थी. लोग न केवल हैरान नजरों से कोठी को देख रहे थे बल्कि तरहतरह की बातें भी कर रहे थे. कर्नल साहब की कोठी अचानक ही चर्चाओं का हिस्सा बन गई थी.

दरअसल, 29 अप्रैल की दोपहर देश के गृह मंत्रालय के अधीन आने वाली डायरेक्टोरेट औफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) की दिल्ली से आई कई टीमें छापा मारने के लिए कर्नल साहब की कोठी पर पहुंच गई थीं. बाकी लोग गाडि़यों में ही बैठे रहे, सिर्फ 4 लोग कोठी के दरवाजे पर गए, डोरबैल बजाई तो नौकर बाहर आया. उस ने पूछा, ‘‘कहिए?’’

चारों में से एक अफसर ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘हमें कर्नल साहब या प्रशांतजी से मिलना है.’’

‘‘आप लोग कहां से आए हैं?’’ नौकर ने अगला सवाल किया.

‘‘दिल्ली से. उन से कहिएगा कि हमारा मिलना जरूरी है.’’

‘‘आप ठहरिए, मैं पूछ कर आता हूं.’’ नौकर ने कहा.

टीम ने नजरें दौड़ाईं, दरवाजों पर हाई क्वालिटी वाले कैमरे लगे थे, जिन का फोकस दोनों रास्तों की ओर था. कुछ ही देर में नौकर ने आ कर उन के लिए दरवाजा खोल दिया. इशारा पा कर टीम के अन्य सदस्य भी दनदनाते हुए अंदर दाखिल हो गए. इतने सारे लोगों को एक साथ देख कर ड्राइंगरूम में बैठे कर्नल देवेंद्र भड़क उठे, ‘‘यह क्या बदतमीजी है, कौन हैं आप लोग?’’

अधिकारियों ने अपना परिचय देने के साथ ही पूछा, ‘‘पहले आप यह बताइए कि प्रशांत कहां हैं?’’

‘‘वह तो घर पर नहीं है.’’

‘‘ठीक है, हमें घर की तलाशी लेनी है.’’ अफसरों ने कहा.

उन लोगों का इतना कहना था कि देवेंद्र गुस्से में आ गए. उन की उम्र काफी हो चुकी थी और आंख का औपरेशन हुआ था. लेकिन आवाज युवाओं जैसी कड़कदार थी. उन्होंने धमकाते हुए कहा, ‘‘खबरदार, अगर ऐसा किया तो ठीक नहीं होगा.’’

‘‘माफ करें, हमें इस बात का पूरा अधिकार है. बेहतर होगा कि आप शांत रहें.’’ अफसरों ने कहा.

टीम को विरोध का सामना करना पड़ सकता था, इसलिए उन्होंने पुलिस अधिकारियों को फोन कर के सूचना दी तो तुरंत पुलिस बल आ गया. देवेंद्र ने पुलिस को भी आड़े हाथों लिया और इधरउधर फोन करने लगे. पुलिस ने उन का मोबाइल और फोन अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस और टीम का सख्त रुख देख कर उन्हें शांत हो जाना पड़ा. वैसे भी उन की तबीयत ठीक नहीं थी.

डीआरआई और पुलिस की टीम ने 3 मंजिला कोठी की तलाशी लेनी शुरू की तो वहां जो कुछ मिलना शुरू हुआ, उसे देख उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पहली मंजिल पर बने प्रशांत के कमरों से देशीविदेशी हथियारों और कारतूसों का जखीरा मिलता चला गया. हालांकि प्रशांत शूटर थे, लेकिन किसी को भी इतने हथियार रखने की इजाजत नहीं हो सकती. जांच टीम के होश उड़ गए, क्योंकि यह जखीरा इतना ज्यादा था कि पूरे जिले की पुलिस के पास भी शायद इतनी गोलियां नहीं हो सकती थीं.

इतना ही नहीं, कोठी के एक विशेष कमरे में वन्यजीवों के सिर, हड्डियां, खालें व अन्य वस्तुएं मिलीं. खुद टीम को भी उम्मीद नहीं थी कि छापे में इतना कुछ निकलेगा. मामला हथियारों की तस्करी से होता हुआ वन्यजीवों की तस्करी तक पहुंच गया था.

इस के बाद सूचना पा कर पश्चिम क्षेत्र के वन संरक्षक मुकेश कुमार भी अपनी टीम के साथ कर्नल की कोठी पर पहुंच गए. उन के साथ टीम में वन अधिकारी संजीव कुमार, वन्यजीव प्रतिपालक राज सिंह, क्षेत्रीय वन अधिकारी हरीश मोहन, वन दरोगा रामगोपाल व वनरक्षक  मोहन सिंह भी थे.

प्रशांत कहां था, इस की किसी को खबर नहीं थी. उस का मोबाइल भी स्विच औफ आने लगा था. संभवत: उसे छापेमारी की खबर लग गई थी. जांच काफी बारीकी से चल रही थी. कोठी के बाहर पुलिस बल तैनात कर दिया गया था. खबर पा कर मीडिया वाले भी आ गए थे. कोठी के अंदर प्रतिबंधित सामानों का जखीरा मिलता जा रहा था. टीम सब चीजों को सील करती जा रही थी.

टीम ने जो कुछ भी बरामद किया था, उस की किसी को उम्मीद नहीं थी. कोठी से सौ से भी ज्यादा हथियार, जिन में पिस्टल, रिवौल्वर और बड़े हथियार मिले. 2 लाख कारतूस, करीब एक करोड़ रुपए नकद, कैमरे, दूरबीन के अलावा तेंदुए, काले हिरन की खालें, सांभर और काले हिरन के सींग सहित एकएक खोपड़ी, एक हिरन की खोपड़ी, गरदन सींग सहित, सांभर, हिरन के बच्चों की सींगें, चिंकारा हिरन की सींग सहित 4 खोपडि़यां, कुछ बिना सींग वाली हिरन की खोपडि़यां, अन्य कई प्रजातियों के हिरन की खोपडि़यां, वन्य जीवों के 7 दांत, हाथी दांत की मूठ वाला एक चाकू तथा 47 पैकेटों में रखा गया एक क्विंटल से अधिक 117.50 किलोग्राम वन्य जीवों का मांस बरामद किया गया. मांस के ये पैकेट बाकायदा बड़े फ्रीजर में रखे थे.

खास बात यह थी कि बरामद हथियार विदेशों के नामचीन ब्रांड बेरेटा (इटली), बेनेली (इटली), आर्सेनल (इटली), ग्लौक (आस्ट्रिया) और ब्लेजर (जर्मनी) के थे. इंटरनेशनल ब्रांड के बरामद हथियारों की कीमत 25 करोड़ रुपए के आसपास आंकी गई. कर्नल देवेंद्र और उन की पत्नी प्रशांत की करतूतों का हिस्सा थे या नहीं, यह जांच का विषय था. लेकिन वे दोनों बुजुर्ग और बीमार थे, इसलिए उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया.

छापे की यह काररवाई सुबह करीब 5 बजे तक चली. इस के बाद दिन निकलते ही कर्नल साहब की कोठी सुर्खियों में आ गई. कोठी के राज को जान कर पूरा शहर दंग रह गया. डीआरआई के अलावा वन विभाग ने भी मेरठ के थाना सिविल लाइन में प्रशांत के खिलाफ धारा 9, 50, 51, 44, 49(ए), व 49(बी)  वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मामले की जांच के साथ प्रशांत की तलाश तेज कर दी.

वह विदेश भाग सकता था, इसलिए कोठी से उस का पासपोर्ट पहले ही कब्जे में ले लिया गया था. उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर के देश के हवाईअड्डों को सतर्क कर दिया गया था. डीआरआई के अलावा क्राइम ब्रांच, एसटीएफ, वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो और दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल को भी प्रशांत की तलाश में लगा दिया गया था. इस बीच डीआरआई के एडीशनल डायरेक्टर राजकुमार दिग्विजय ने बरामदगी के बारे में विधिवत प्रैस को जानकारी दी. डीएफओ अदिति शर्मा के निर्देशन में कोठी से बरामद मांस के सैंपल जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिए गए.

प्रशांत की पोल शायद कभी खुल न पाती, अगर दिल्ली में हथियारों के साथ कुछ लोग न पकडे़ गए होते. दरअसल, अप्रैल के अंतिम सप्ताह में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से शूटर अमित गोयल और अनिल के साथ 2 विदेशी नागरिकों को 25 विदेशी हथियारों के साथ गिरफ्तार किया गया था.

ये लोग टर्किश एयरलाइंस से स्लोवेनिया की राजधानी लिजबुलजना से इस्तांबुल होते हुए दिल्ली पहुंचे थे. इन में एक बोरिस सोबोटिक मिकोलिक मध्य यूरोप के स्लोवेनिया का रहने वाला था और हथियारों का बड़ा तस्कर था.

हालांकि इन लोगों ने खुद को इंटरनेशनल शूटर बताया था. पता चला ये शूटरों को दी जाने वाली आयात पौलिसी का लाभ उठा रहे थे, लेकिन इस बार ये हवाईअड्डे की सुरक्षा जांच एजेंसियों को झांसा देने में नाकाम रहे. बरामद हथियारों की कीमत साढ़े 4 करोड़ रुपए थी. इन से पूछताछ हुई तो शूटर प्रशांत के तार इन से जुड़े मिले. मामला गंभीर था, लिहाजा शिकंजा कसने की तैयारी कर ली गई. कई दिनों की रेकी के बाद डीआरआई टीम छापा मारने प्रशांत के घर पहुंच गई.

जांच करने वालों ने कर्नल देवेंद्र से पूछताछ की लेकिन उन्होंने बरामद सामान के बारे में किसी भी तरह की जानकारी होने से इनकार कर दिया. हालांकि उन की साफगोई किसी के गले नहीं उतर रही थी. सब से बड़ा सवाल यह था कि एक सैन्य अधिकारी का बेटा इतने बड़े पैमाने पर तस्करी में कैसे लिप्त हो गया था? इस की गहराई से जांच और प्रशांत की गिरफ्तारी जरूरी थी. जबकि प्रशांत अपने मोबाइल फोन का स्विच औफ कर चुका था.

प्रशांत के नंबर की काल डिटेल्स के आधार पर उस के नेटवर्क की तह में जाने की कोशिश की गई. उस की गिरफ्तारी के लिए डीआरआई टीम के अलावा यूपी एसटीएफ, वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो और दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीमें लगी थीं. सभी को उस की सरगर्मी से तलाश थी. लेकिन वह सभी को गच्चा देने में कामयाब रहा.

पुलिस सूचनाओं के आधार पर छापे मारती रही और वह चकमा देने में कामयाब होता रहा. देखतेदेखते एक महीना बीत गया. जांच एजेंसियों के लिए वह चुनौती बना हुआ था. आखिर 1 जून को डीआरआई टीम ने उसे दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जो कुछ प्रकाश में आया, वह बेहद चौंकाने वाला था. दरअसल, कर्नल देवेंद्र ग्रामीण पृष्ठभूमि से थे. वह मेरठ जिले के ही कस्बा फलावदा के रहने वाले थे. वहां उन की जमीनें थीं. रिटायरमेंट के बाद वह कुछ साल बरेली के समाज कल्याण विभाग में तैनात रहे. इस के बाद करीब 16 साल पहले उन्होंने फलावदा और परीक्षितगढ़ में ब्रिक फील्ड नाम से ईंट के भट्ठे लगाए.

इन भट्ठों में उन्हें घाटा हो गया था, जिस से आर्थिक हालात बिगड़ गए. बाद में पितापुत्र ने बरेली में एक सिक्योरिटी एजेंसी खोली. इस एजेंसी का काम सरकारी टेंडरों के जरिए गार्ड मुहैया कराना था. धीरेधीरे कंपनी का नेटवर्क कई राज्यों में फैल गया. यह काम चल निकला और देखतेदेखते कर्नल के न सिर्फ आर्थिक हालात बदल गए, बल्कि प्रशांत का लाइफस्टाइल भी बदल गया. महंगी कारें उस का शौक बन गईं. प्रशांत शूटिंग के क्षेत्र में भी काफी नाम कमा चुका था.

प्रशांत ने बचपन से ही ऊंचे ख्वाब देखे थे. पिता कर्नल थे, लिहाजा जिंदगी ऐशोआराम में बीती. स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही वह शूटिंग प्रतियोगिताओं में हाथ आजमाने लगा था. सन 2002 में उस का विवाह निधि के साथ हुआ. समय के साथ वह 2 बेटियों का पिता बना. वह बिलियर्ड्स प्लेयर तो था ही, साथ ही राष्ट्रीय स्तर का स्कीट शूटर भी था. इस के तहत 12 बोर से शूटिंग की जाती है.

बिग बोर व .22 कैटेगरी में वह देश के लिए खेल चुका है. पहले वह दिल्ली में रह कर शूटिंग करता था. तब उस ने कई मैडल जीते थे. एक साल पहले उस ने जयपुर में 60वीं नेशनल चैंपियनशिप खेली थी, जिस में उस की 65वीं रैंक आई थी. नेशनल रायफल एसोसिएशन औफ इंडिया ने उसे रिनाउंड शूटर की मान्यता दी हुई थी.

रिनाउंड शूटर को 2 वेपन का लाइसैंस मिल सकता था. अंतरराष्ट्रीय शूटर होने के नाते प्रशांत के नामचीन लोगों से ताल्लुक थे. कई राजनेताओं से भी उस के सीधे रिश्ते थे. इन में स्थानीय नेताओं से ले कर मुख्यमंत्री तक थे. कई बड़े कारोबारी भी उस के संपर्क में रहते थे.

समय के साथ प्रशांत हथियारों और वन्यजीवों की तस्करी करने लगा. यह तस्करी देश से होते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गई. शूटिंग की आड़ में वन्यजीवों का शिकार और तस्करी का धंधा प्रशांत और उस की टीम ने पूरे देश में फैला दिया. वह कितना बड़ा शिकारी और तस्कर बन गया है, इस की खबर आसपास के लोगों को नहीं थी.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के जंगलों के अलावा बिहार के जंगल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड के जिम कार्बेट पार्क समेत कई जगहों पर भी प्रशांत व उस के साथियों ने वन्यजीवों का शिकार किया. उस की कोठी तस्करी का अड्डा बन गई.

हथियारों के आयात पर रोक के बावजूद देश में बड़ी आसानी से हथियार आते रहे. इन हथियारों को प्रशांत एजेंटों के माध्यम से मुंहमांगी कीमतों पर बेचता था. जिस हथियार की कीमत विदेश में एक लाख रुपए होती थी, उसे वह 15 से 20 लाख रुपए में बेचता था.

हथियार चूंकि विख्यात कंपनियों के होते थे, इसलिए उन की बड़ी कीमत मिल जाती थी. कई बार हथियारों के पार्ट्स ला कर भी उन्हें जोड़ लिया जाता था.

दरअसल, इस खेल को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शूटरों को सीमित मात्रा में विदेशी हथियार लाने की सरकारी छूट का प्रशांत और उस के साथी लाभ उठा रहे थे. कस्टम अधिकारियों को गुमराह कर के ये कम हथियारों की जानकारी दे कर अधिक हथियार भारत लाते थे.

वन्यजीवों का शिकार प्रशांत सिर्फ अपने शौक के लिए ही नहीं करता था, बल्कि उन के मांस की सप्लाई कई नामी होटलों में की जाती थी. हिरनों की लुप्त हो रही प्रजातियों को सहज निशाना बनाया जाता था. वन्यजीवों के मांस और उन के अंगों को कारों के जरिए ही लाया जाता था. प्रशांत ने एक कार में फ्रिजर रखने की व्यवस्था करा रखी थी. कार पर चूंकि आर्मी लिखा होता था, इसलिए चैकिंग में वह कभी नहीं पकड़ा गया.

प्रशांत कई राज्यों में नीलगायों का शिकार करने जा चुका था. उत्तर प्रदेश सहित आसपास के राज्यों में वह किसानों के आमंत्रण पर जाता रहता था. सन 2016 में बिहार सरकार ने भी 5 सौ नीलगायों को मारने के लिए शूटरों की टीम को बुलाया था. उस में प्रशांत भी शामिल था. आरोप है कि इस की आड़ में वह वन्यजीवों का शिकार और उन के अंगों एवं मांस की तस्करी करता था.

सुरक्षा एजेंसियों या स्थानीय पुलिस को कभी उस के गोरखधंधे का पता नहीं चला. लेकिन जब दिल्ली के एयरपोर्ट पर तस्करों की गिरफ्तारी हुई तो उन्होंने प्रशांत का नाम उगल दिया.

पूछताछ के बाद प्रशांत को अगले दिन पटियाला हाउस कोर्ट में मुख्य महानगर न्यायाधीश सुमित दास की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

7 जून को उसे मेरठ की अदालत में पेश किया गया. वन विभाग ने उस के रिमांड की अर्जी लगाई, लेकिन रिमांड नहीं मिल सका. उसे पुन: तिहाड़ जेल भेज दिया गया. प्रशांत ने किनकिन लोगों को हथियार बेचे, मांस की तस्करी कहांकहां की और किन लोगों से उस के तार जुड़े थे, इस सब की गहराई से जांच के लिए उसे रिमांड पर लेने की कोशिश की जा रही थी.

प्रशांत का जो चेहरा समाज के सामने आया है, वह लोगों को सोचने पर मजबूर जरूर कर रहा है कि किस तरह संभ्रांत लोग चौंकाने वाले धंधों में लिप्त होते हैं. वह जो कुछ भी कर रहा था, उस की खबर पड़ोसियों को भी नहीं थी. स्थानीय पुलिस और खुफिया एजेंसी भी जिस तरह से उस के धंधे से अनजान थीं, उस से पता चलता है कि वह कितने शातिराना अंदाज में अपने कारनामों को अंजाम दे रहा था.

दूसरी ओर कर्नल देवेंद्र ने बेटे के गोरखधंधे से खुद को अलग बता कर पल्ला झाड़ लिया है. उन का कहना था कि उन्हें पता नहीं था कि उन का बेटा यह सब कर रहा था. वह शर्मिंदा हैं. मेरठ कचहरी में पेशी के दौरान प्रशांत ने खुद को फंसाए जाने का आरोप लगाया. कथा लिखे जाने तक प्रशांत की जमानत नहीं हो सकी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार ऐसे तो नहीं हासिल होता

18 अक्तूबर, 2016 की सुबह साढ़े 5 बजे के करीब पुणे शहर की केतन हाइट्स सोसायटी की इमारत के नीचे एक्टिवा सवार एक महिला और एक आदमी के बीच कहासुनी होते देख उधर से गुजर रहे लोग ठिठक गए थे. औरत से कहासुनी करने वाले आदमी की आवाज धीरेधीरे तेज होती जा रही थी. लोग माजरा समझ पाते अचानक उस आदमी ने जेब से चाकू निकाला और एक्टिवा सवार औरत पर हमला कर दिया. औरत जमीन पर गिर पड़ी और बचाव के लिए चिल्लाने लगी. हमलावर के पास चाकू था, जबकि वहां खड़े लोग निहत्थे थे. फिर भी वहां खड़े लोग उस की ओर बढ़े, लेकिन वे सब उस तक पहुंच पाते, उस के पहले ही वह आदमी महिला पर ताबड़तोड़ चाकू से वार कर के उसी की स्कूटी से भाग निकला था. महिला जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. उस की हालत देख कर किसी ने कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी. चूंकि घटनास्थल थाना अलंकार के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी थाना अलंकार पुलिस को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल ने घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दी और खुद एआई विजय कुमार शिंदे एवं कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल के निरीक्षण में पुलिस वालों ने देखा कि घायल महिला सलवारसूट पहने थी. उस की उम्र 30-31 साल रही होगी. उस के शरीर पर तमाम गहरे घाव थे, जिन से खून बह रहा था. पुलिस को लगा कि अभी वह जीवित है, इसलिए उसे तत्काल पुलिस वैन में डाल कर इलाज के लिए सेसून अस्पताल ले जाया गया. लेकिन अस्पताल पहुंच कर पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल अपने सहायकों के साथ घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि डीएसपी सुधीर हिरेमठ और एएसपी भी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. फोरैंसिक टीम ने जरूरी साक्ष्य जुटा लिए तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. उस के बाद बी.जी. मिसाल को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. बी.जी. मिसाल ने सहयोगियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कीं और उस के बाद अस्पताल जा पहुंचे. डाक्टरों से पता चला कि महिला के शरीर पर कुल 21 घाव थे. अधिक खून बहने की वजह से ही उस की मौत हुई थी. उन्होंने काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए रखवा दिया और थाने आ कर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर इस मामले की जांच इंसपेक्टर (क्राइम) विजय कुमार शिंदे को सौंप दी.

विजय कुमार शिंदे ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई और हत्या के इस मामले की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर पुलिस को मृतका का पर्स और मोबाइल फोन मिला था. मोबाइल फोन के दोनों सिम गायब थे, इसलिए मृतका की शिनाख्त में उस से कोई मदद नहीं मिल सकी. लेकिन पर्स से उस का ड्राइविंग लाइसैंस मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. मृतका का नाम शुभांगी खटावकर था और वह कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में रहती थी. उस के पति का नाम प्रकाश खटावकर था. इस के बाद विजय कुमार शिंदे ने लाइसैंस में लिखे पते पर एक सिपाही को भेजा तो वहां मृतका का पति प्रकाश खटावकर मिल गया. सिपाही ने उसे पूरी बात बताई तो वह सिपाही के साथ थाने आ गया.

विजय कुमार शिंदे ने अस्पताल ले जा कर उसे लाश दिखाई तो लाश देख कर वह खुद को संभाल नहीं सका और जोरजोर से रोने लगा. विजय कुमार शिंदे ने किसी तरह उसे चुप कराया तो उस ने एकदम से कहा, ‘‘शुभांगी की हत्या किसी और ने नहीं, मेरे ही परिसर में रहने वाले विश्वास कलेकर ने की है. वह उसे एकतरफा प्रेम करता था. वह उसे राह चलते परेशान किया करता था.’  प्रकाश खटावकर के इसी बयान के आधार पर विजय कुमार शिंदे ने विश्वास कलेकर को नामजद कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उस के घर में ताला बंद था. आसपड़ोस वालों से पूछताछ में पता चला कि घटना के बाद से ही वह दिखाई नहीं दिया था. पुलिस को प्रकाश खटावकर से उस का नागपुर का जो पता मिला था, जांच करने पर वह फरजी पाया गया था. इस के बाद उस की तलाश के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. एक टीम नागपुर भेजी गई तो दूसरी टीम वहां जहां वह रहता और काम करता था. पुलिस ने वहां के लोगों से उस के बारे में पूछताछ की.

दूसरी टीम द्वारा पूछताछ में पता चला कि विश्वास नागपुर का नहीं, बल्कि कोल्हापुर का रहने वाला था. वहां के थाना राजारामपुरी में उस के खिलाफ हत्या का एक मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह साल भर पहले बरी हो चुका था. बरी होने के बाद ही वह पुणे आ गया था. इंसपेक्टर विजय कुमार शिंदे के लिए यह जानकारी काफी महत्त्वपूर्ण थी. कोल्हापुर जा कर वह थाना राजारामपुरी पुलिस की मदद से विश्वास को गिरफ्तार कर पुणे ले आए और उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया. थाने में अधिकारियों की उपस्थिति में विश्वास कलेकर से शुभांगी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू ही हुई थी कि वह फर्श पर गिर कर छटपटाने लगा. उस के मुंह से झाग भी निकल रहा था. अचानक उस का शरीर अकड़ सा गया. पूछताछ कर रहे सारे पुलिस वाले घबरा गए. उन्हें लगा कि पूछताछ से बचने के लिए विश्वास ने जहर खा लिया है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया.

डाक्टरों ने उसे चैक कर के बताया कि इस ने जहर नहीं खाया है, बल्कि इसे मिर्गी का दौरा पड़ा है. यह जान कर पुलिस अधिकारियों की जान में जान आई. इलाज के बाद विश्वास को थाने ला कर पूछताछ की जाने लगी तो उस से सख्ती के बजाय मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में एकतरफा प्रेम में शुभांगी की हत्या करने की उस ने जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार से थी—

शुभांगी महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले प्रकाश मधुकर खटावकर की पत्नी थी. जिस समय शुभांगी की शादी प्रकाश से हुई थी, उस समय वह बीकौम कर रहा था. शुभांगी जैसी सुंदर, संस्कारी और समझदार पत्नी पा कर वह बहुत खुश था. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक वह गांव में पिता मधुकर खटावकर के साथ खेती के कामों में उन की मदद करता रहा. खेती की कमाई से किसी तरह परिवार का खर्च तो चल जाता था, पर भविष्य के लिए कुछ नहीं बच पाता था. ऐसे में जब प्रकाश और शुभांगी को एक बच्चा हो गया तो उस के भविष्य को ले कर उन्हें चिंता हुई. दोनों ने इस बारे में गहराई से विचार किया तो उन्हें लगा कि बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें गांव छोड़ कर शहर जाना चाहिए.

इस के बाद प्रकाश और शुभांगी घर वालों से इजाजत ले कर पहले मुंबई, उस के बाद पुणे जा कर स्थाई रूप से बस गए थे. पुणे के जेल रोड पर किराए का मकान ले कर उन्होंने रोजीरोटी की शुरुआत की. प्रकाश को एक प्राइवेट कोऔपरेटिव बैंक में नौकरी मिल गई थी तो पति की मदद के लिए शुभांगी कुछ घरों में खाना बनाने का काम करने लगी थी. इस काम से शुभांगी को अच्छे पैसे मिल जाते थे. इस के अलावा वह घर से भी टिफिन तैयार कर के सप्लाई करती थी. इस तरह कुछ ही दिनों में उन की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई. शुभांगी के पास पैसा आया तो इस का असर उस के रहनसहन पर तो पड़ा ही, उस के शरीर और बातव्यवहार पर भी पड़ा. अब वह पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी.

जल्दी ही शुभांगी और प्रकाश ने कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में अपना खुद का मकान खरीद लिया था. बच्चे का भी उन्होंने एक बढि़या अंगरेजी स्कूल में दाखिला करा दिया था. शुभांगी को मेहनत ज्यादा करनी पड़ती थी और उस के पास समय कम होता था. उस की भागदौड़ को देखते हुए प्रकाश ने इस के लिए स्कूटी खरीद दी थी. शुभांगी घर और बाहर के सारे काम कुशलता से निपटा रही थी. इस के अलावा वह अपने शरीर का भी पूरा खयाल रखती थी. बनसंवर कर वह स्कूटी से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते थे. उस का शरीर सांचे में ढला ऐसा लगता था कि वह कहीं से भी 13 साल के बच्चे की मां नहीं लगती थी. उस की यही खूबसूरती उस के लिए खतरा बन गई.

शुभांगी जिस परिसर में रहती थी, उसी परिसर में 40 साल का विश्वास कलेकर भी एक साल पहले कोल्हापुर से आ कर रहने लगा था. रोजीरोटी के लिए वह वड़ापाव का ठेला लगाता था. एक ही परिसर में रहने की वजह से अकसर उस की नजर शुभांगी पर पड़ जाती थी. खूबसूरत शुभांगी उसे ऐसी भायी कि वह उस का दीवाना बन गया. इस की एक वजह यह थी कि उस की शादी नहीं हुई थी. शायद मिर्गी की बीमारी की वजह से वह कुंवारा ही रह गया था. और जब उसे घर बसाने का मौका मिला तो उस में भी कामयाब नहीं हुआ. जिस लड़की से वह प्यार करता था, उस की हत्या हो गई थी. उस की हत्या का आरोप भी उसी पर लगा था, लेकिन अदालत से वह बरी हो गया था. बरी होने के बाद वह पुणे आ गया था और उसे शुभांगी से प्यार हुआ तो वह हाथ धो कर उस के पीछे पड़ गया. शुभांगी तक पहुंचने के लिए पहले उस ने उस के पति प्रकाश से यह बता कर दोस्ती कर ली कि वह भी उस के गांव के पास का रहने वाला है. इस के बाद जल्दी ही वह शुभांगी के परिवार में घुलमिल गया. शुभांगी के घर आनेजाने में ही उस ने शुभांगी से यह कह कर अपना टिफिन भी लगवा लिया कि दिन भर काम कर के वह इस तरह थक जाता है कि रात को उसे अपना खाना बनाने में काफी तकलीफ होती थी. शुभांगी को भला इस में क्या ऐतराज होता, उस का तो यह धंधा ही था. वह उस का भी टिफिन बना कर पहुंचाने लगी.

समय अपनी गति से सरकता रहा. शुभांगी विश्वास का टिफिन देने आती तो इसी बहाने वह उसे एक नजर देख लेता, साथ ही उसे प्रभावित करने के लिए उस के बनाए खाने की खूब तारीफ भी करता. अपनी तारीफ सुन कर शुभांगी कुछ कहने के बजाय सिर्फ हंस कर रह जाती. इस से विश्वास को लगने लगा कि वह उस के मन की बात जान गई है. शायद इसी का परिणाम था कि एक दिन उस ने अपने मन की बात शुभांगी से कह दी. उस की बातें सुन कर शुभांगी सन्न रह गई. वह संस्कारी और समझदार महिला थी, इसलिए नाराज होने के बजाय उस ने उसे समझाया, ‘‘मैं शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे की मां भी हूं. मेरा अच्छा सा पति है, जिस के साथ मैं खुश हूं. तुम हमारे गांव के पास के हो, इसलिए हम सब तुम्हारी इज्जत करते हैं. तुम अपने मन में कोई ऐसा भ्रम मत पालो, जो आगे चल कर तुम्हें तकलीफ दे.’’ लेकिन शुभांगी के लिए पागल हुए विश्वास पर शुभांगी के समझाने का कोई असर नहीं हुआ. उस ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘शुभांगी, तुम्हारी वजह से मेरी रातों की नींद और दिन का चैन लुट गया है. हर घड़ी तुम मेरी आंखों के सामने रहती हो. मुझे तुम से सचमुच प्यार हो गया है. तुम पति और बच्चे को छोड़ कर मेरे पास आ जाओ. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें कोई काम नहीं करने दूंगा.’’

विश्वास कलेकर की इन बातों से शुभांगी का धैर्य जवाब दे गया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें इतना समझाया, फिर भी तुम्हारी समझ में नहीं आया. अगर फिर कभी इस तरह की बातें कीं तो ठीक नहीं होगा. मैं तुम्हारी शिकायत प्रकाश से कर दूंगी. जरूरत पड़ी तो पुलिस से भी कर दूंगी.’’ शुभांगी की इस धमकी से कुछ दिनों तक तो विश्वास शांत रहा. लेकिन एक दिन मौका मिलने पर वह शुभांगी के सामने आ कर खड़ा हो गया और पहले की ही तरह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘शुभांगी, तुम मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता.’’

शुभांगी ने नाराज हो कर उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, उस की इस हरकत की शिकायत प्रकाश से भी कर दी. प्रकाश ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस की बात को समझने के बजाय वह उलटा उसे ही समझाने लगा. इस के बाद दोनों में कहासुनी हो गई.

परेशानी की बात यह थी कि इस के बाद भी विश्वास अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. अब वह शुभांगी को परेशान करने लगा. जब इस की जानकारी शुभांगी के भाई को हुई तो उस ने विश्वास की पिटाई कर के चेतावनी दी कि अगर उस ने फिर कभी शुभांगी को परेशान किया तो ठीक नहीं होगा.

शुभांगी के भाई द्वारा पिटाई करने से विश्वास इतना आहत हुआ कि उस ने अपनी इस पिटाई और अपमान का बदला लेने के लिए शुभांगी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उसे शुभांगी के सारे कामों और आनेजाने की पूरी जानकारी थी ही, इसलिए 18 अक्तूबर, 2016 की सुबह 5 बजे जा कर वह केतन हाइट्स सोसायटी के पास खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. शुभांगी अपने समय पर वहां पहुंची तो उस की स्कूटी के सामने आ कर उस ने उसे रोक लिया. उस की इस हरकत से नाराज हो कर शुभांगी ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है. अभी तुम्हें या हमें चोट लग जाती तो?’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम तो जानती ही हो, आशिक मरने से नहीं डरते. अपनी मंजिल पाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं.’’ विश्वास ने बेशर्मी से मुसकराते हुए कहा, ‘‘आखिर तुम मेरी बात मान क्यों नहीं लेती?’’

‘‘तुम्हारी बकवास सुनने का मेरे पास समय नहीं है, तुम मेरे सामने से हटो और मुझे काम पर जाने दो.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?’’ विश्वास ने कहा.

‘‘मुझे तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं देना.’’ शुभांगी ने गुस्से में कहा.

‘‘तो क्या तुम्हारा यह आखिरी फैसला है?’’ विश्वास ने पूछा.

‘‘हां…हां,’’ शुभांगी ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है. तुम मुझे इस जन्म में तो क्या, अगले 7 जन्मों तक नहीं पा सकोगे.’’

शुभांगी के चेहरे पर अपने लिए नफरत और दृढ़ता देख कर विश्वास को गुस्सा आ गया. लंबी सांस लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितना समझाया कि तुम मेरी हो जाओ, लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं मानी. अब मैं तुम्हारा 7 जन्मों तक इंतजार करूंगा.’’

कह कर विश्वास ने जेब से चाकू निकाला और ताबड़तोड़ वार कर के शुभांगी की हत्या कर दी. इस के बाद जल्दी से उस के मोबाइल फोन के दोनों सिम निकाल कर उसी की स्कूटी से भाग निकला. स्कूटी उस ने पुणे के रेलवे स्टेशन पर पार्किंग में खड़ी कर दी और ट्रेन से कोल्हापुर चला गया.

विस्तृत पूछताछ के बाद विजय कुमार शिंदे ने उस के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह एकतरफा प्यार करने वाला विश्वास अपनी सही जगह पर पहुंच गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिस ने लूटा, वही बना सुहाग

बिहार के इस हाईप्रोफाइल केस में लड़का एक रिटायर्ड आईएएस अफसर का बेटा और करोड़पति औटोमोबाइल कारोबारी निखिल प्रियदर्शी है, वहीं लड़की बिहार के पूर्व मंत्री की बेटी सुरभि है.

9 महीने तक चले इस हंगामे के बाद दोनों ने शादी रचा कर मामले को ठंडा तो कर दिया, पर इस मामले में सुरभि ने निखिल के साथसाथ बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष पर भी जिस्मानी शोषण का आरोप लगाया था.

इस आरोप में पिता समेत जेल जाने के बाद निखिल ने अदालत में समझौता याचिका दायर की और आरोप लगाने वाली सुरभि से शादी करने की बात कही थी. उस ने याचिका में कहा था कि सुरभि से अब उस का कोई झगड़ा नहीं है और दोनों शादी करने के लिए राजी हैं.

कोर्ट के आदेश के बाद 6 नवंबर, 2017 को पटना के रजिस्ट्रार के सामने निखिल और सुरभि ने शादी रचा ली.

इस शादी के पीछे एक लंबी कहानी है. 22 दिसंबर, 2016 को सुरभि ने निखिल, उस के भाई मनीष और पिता कृष्ण बिहारी प्रसाद के खिलाफ पटना के एससीएसटी थाने में एफआईआर दर्ज की थी. उस के बाद 8 मार्च, 2017 को पीड़िता ने बुद्धा कालोनी थाने में उस की पहचान उजागर करने, एक करोड़ रुपए और औडी कार मांगने की बातों को सोशल मीडिया पर वायरल करने को ले कर निखिल और ब्रजेश पांडे पर एफआईआर दर्ज कराई थी. सीआईडी की सुपरविजन रिपोर्ट में मुख्य आरोपी निखिल को कुसूरवार करार दिया गया था. अनुसूचित जाति थाने के आईओ द्वारा की गई जांच में सीआईडी के डीएसपी ने सुपरविजन किया था.

सीआईडी के एडीजे विनय कुमार ने सुपरविजन की समीक्षा करने के बाद निखिल के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को सही पाया था.

आईजी (कमजोर वर्ग) अनिल किशोर यादव ने भी कहा था कि निखिल पर लगे आरोप सही पाए गए हैं.

निखिल को करीब से जानने वाले बताते हैं कि पावर, पैसा, पौलिटिक्स और पुलिस से निखिल की खूब यारी थी. निखिल एक नामी कार कंपनी के शोरूम का मालिक है. उस के बूते उस ने नेताओं और अफसरों के बीच खासी पैठ बना रखी थी. रसूखदारों से मिलना, उन के साथ उठनाबैठना और पार्टियां करने में उसे खूब मजा आता था. इन सब पर वह जमकर पैसा खर्च करता था.

यौन उत्पीड़न और सैक्स रैकेट चलाने के साथ ही बैंकों से लेनदेन को ले कर भी निखिल के खिलाफ कानूनी मामला चल रहा है. कुछ बैंकों से करोड़ों रुपए के लोन लेने के मामले में वह डिफौल्टर करार दिया गया है और बैंकों ने उस पर केस कर दिया है. बैंकों को रुपए लौटने के मामले में निखिल हाथ खड़े कर चुका है.

मुंबई हाईकोर्ट के आदेश पर निखिल प्रियदर्शी के बेली रोड पर बने कार शोरूम को सील कर दिया था.

टाटा कैपिटल फाइनैंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निखिल की जायदाद जब्त करने का आदेश पुलिस को दिया था. टाटा कैपिटल का करोड़ों रुपए का लोन निखिल नहीं चुका रहा था. सगुना मोड़ के पास बना उस का दूसरा शोरूम पहले ही जब्त किया जा चुका है.

निखिल समेत कांग्रेस नेता ब्रजेश पांडे और संजीत शर्मा पर सुरभि ने बलात्कार और सैक्स रैकेट चलाने का आरोप लगाया था. निखिल ऊंचे ओहदे पर बैठे कई नेताओं और अफसरों को लड़कियां सप्लाई किया करता था.

सुरभि ने एसआईटी को बताया था कि शादी का झांसा दे कर निखिल उसे महंगी गाडि़यों में घुमाता था. एक दिन वह उसे बोरिंग रोड इलाके के एक फ्लैट में ले गया. उसे कोल्ड ड्रिंक पीने के लिए दी. उसे पीने के बाद वह बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद जब उसे थोड़ा होश आया तो देखा कि ब्रजेश पांडे और संजीत शर्मा उस के साथ गलत हरकतें कर रहे थे. बाद में उस ने निखिल को फटकार लगाई और उस पर शादी करने का दबाव बनाया तो निखिल ने उस के साथ मारपीट की.

सुरभि ने मार्च महीने में पुलिस को दिए बयान में कहा था कि वह निखिल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. निखिल ने उसे शादी करने का भरोसा दिया था, पर उस के बाद वह लगातार टालमटोल कर रहा था.

पहले तो कई महीनों तक शादी का झांसा दे कर निखिल ने उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाए. उस के बाद उसे गलत कामों को करने पर जोर देने लगा. वह अपने दोस्तों के सामने उस के जिस्म को परोसना चाहता था.

एक दिन बोरिंग रोड के एक फ्लैट में ब्रजेश पांडे के सामने सुरभि को परोसने की कोशिश की. ब्रजेश ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब पीडि़ता ने उस का विरोध किया तो उस के साथ मारपीट की गई.

सुरभि ने पुलिस को बताया था कि निखिल उस के साथ गलत हरकतें करता था. पहले वह इस बारे में खुल कर कुछ नहीं कह पाती थी, क्योंकि परिवार की बदनामी का डर था. अब उस का परिवार उस के साथ खड़ा है तो वह खुल कर बोल सकती है.

सुरभि ने बताया कि ब्रजेश उसे अपने साथ दिल्ली ले जाना चाहता था. उस ने कई बार उसे दिल्ली चलने को कहा. रुपयों का लालच भी दिया, लेकिन उस ने निखिल के साथ जाने से इनकार कर दिया.

निखिल गांजा पीता था और ज्यादा डोज लेने के बाद वह जानवरों की तरह बरताव करने लगता था. वह उस के जिस्म को नोचनेखसोटने लगता था.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, फेसबुक और ह्वाट्सऐप के जरीए लड़कियों से चैटिंग करना निखिल का शौक था. कई लड़कियों को वह सैक्स के घिनौने खेल में जबरन उतार चुका था. लड़कियों को परोस कर उस ने सत्ता के गलियारों और पुलिस महकमे में अपनी गहरी पैठ बना रखी थी.

दिखावे के तौर पर तो निखिल कारों का कारोबार करता था, लेकिन लग्जरी कारों के साथसाथ खूबसूरत लड़कियां भी उस की कमजोरी थीं. अफसरों और नेताओं को औडी और जगुआर जैसी महंगी कारों में घुमा कर उन से दोस्ती गांठने में वह माहिर था.

सुरभि ने जब निखिल पर यौन शोषण का आरोप लगा कर केस दर्ज किया था तो निखिल फरार हो गया था. एसआईटी ने उस की खोज में देश के कई राज्यों में छापामारी की. उसे पता था कि पुलिस उस की खोज में भटक रही है, इसलिए वह लगातार अपने ठिकाने बदलता रहा.

साढ़े 3 महीने तक फरार रहने और पुलिस की आंखों में धूल झोंकने वाला निखिल प्रियदर्शी और उस के रिटायर आईएएस पिता कृष्ण बिहारी प्रसाद को 14 मार्च को उत्तराखंड से गिरफ्तार किया गया था.

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के लक्ष्मण झूला थाने के चीला ओपी इलाके से उन्हें सुबहसुबह दबोचा गया. बिहार पुलिस को निखिल के उत्तराखंड में होने की सूचना मिली थी.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने पौड़ी गढ़वाल जिले के एसएसपी और अपने बैचमेट मुख्तार मोहसिन को फोन कर उन्हें निखिल के बारे में सूचना दी. उस के बाद ही उत्तराखंड पुलिस निखिल की खोज में लग गई थी. चीला इलाके में गाड़ी चैकिंग के दौरान निखिल अपनी औडी गाड़ी के साथ पकड़ा गया. गाड़ी में उस के पिता भी बैठे हुए थे.

पुलिस ने बताया कि निखिल और उस के पिता के पास पहचानपत्र था. इस वजह से वे किसी होटल में नहीं रुक पा रहे थे. तकरीबन 3 महीने तक बापबेटे ने दिनरात औडी कार में ही गुजारे. वे किसी पब्लिक प्लेस पर कार खड़ी कर के आराम किया करते थे. सार्वजनिक शौचालय में फ्रैश होते और उस के बाद फिर से कार से ही आगे की ओर बढ़ जाते थे.

अब शादी करने के बाद निखिल और सुरभि की नई जिंदगी क्या करवट लेगी, यह देखने वाली बात होगी.

बच्चों की सुरक्षा के लिए सतर्कता जरूरी

7 साल का प्रद्युम्न ठाकुर गुड़गांव के ख्यातिप्राप्त रायन इंटरनैशनल स्कूल की कक्षा 2 का छात्र था. रोजाना की तरह गत 8 सितंबर को मां ने प्यार से तैयार कर उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजा. पिता द्वारा प्रद्युम्न को स्कूल में पहुंचाने के आधे घंटे के अंदर घर पर फोन आ गया कि बच्चे के साथ हादसा हो गया है. प्रद्युम्न को संदिग्ध परिस्थितियों में ग्राउंडफ्लोर पर मौजूद वाशरूम में खून से लथपथ मृत अवस्था में पाया गया. देखने से स्पष्ट था कि उस की हत्या की गई है. उस पर 2 बार चाकू से वार किए गए थे. अत्यधिक खून बहने से उस की मौत हो गई.

प्रारंभिक जांच में बस कंडक्टर को दोषी पाया गया मगर बाद की जांच में उसी स्कूल की 11वीं कक्षा के एक छात्र को हिरासत में लिया गया. आरोपी छात्र ने स्वीकार किया कि महज परीक्षा की तिथि और टीचर पेरैंट्स मीटिंग की तारीख आगे बढ़वाने के मकसद से उस ने, जानबूझ कर, इस घटना को अंजाम दिया.

वैसे, इस केस में स्कूल प्रशासन पर सुबूत छिपाने के इलजाम भी लगे और एक बार फिर स्कूलों में बच्चों की लचर सुरक्षा व्यवस्था की हकीकत सामने आ गई.

बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता ऐसा ही मामला द्वारका, दिल्ली के एक स्कूल का है. यहां 4 साल की बच्ची के साथ यौनशोषण की घटना सामने आई. आरोप बच्ची की ही कक्षा में पढ़ने वाले 4 साल के बच्चे पर लगा. छोटी सी बच्ची से बलात्कार का एक मामला 14 नवंबर को दिल्ली के अमन विहार इलाके में भी सामने आया. यह नाबालिग बच्ची अपने मातापिता के साथ किराए के मकान में रहती थी. आरोपी युवक उसी मकान में पहली मंजिल पर रहता था.

दिल्ली के एक स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ स्कूल के चपरासी द्वारा बलात्कार की घटना ने भी सभी को स्तब्ध कर दिया. इन घटनाओं ने स्कूल परिसरों में बच्चों की सुरक्षा को ले कर कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. स्कूल परिसरों में मासूम लड़कियां ही नहीं, लड़के भी यौनशोषण के शिकार हो रहे हैं.

इस संदर्भ में सभी राज्य सरकारों, स्कूल प्रशासनों और मातापिता को सतर्क होने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न घट सकें.

स्कूल की जिम्मेदारियां

कोई भी मातापिता जब अपने बच्चे के लिए किसी स्कूल का चुनाव करते हैं तो स्कूल की आधारभूत संरचना और वहां की पढ़ाई के स्तर को जांचने के साथ ही उन का विश्वास भी होता है जो उन्हें किसी विशेष स्कूल को अपने बच्चे के लिए चुनने हेतु प्रेरित करता है. ऐसे में स्कूल प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वह न सिर्फ बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध कराए, बल्कि मातापिता के विश्वास पर भी खरा उतरे.

मातापिता की जिम्मेदारियां

हर मातापिता का कर्तव्य है कि वे घरबाहर अपने बच्चों की सुरक्षा को ले कर सतर्क रहें. घर के बाद बच्चे सब से अधिक समय स्कूल में बिताते हैं. ऐसे में स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है. द्य मातापिता को चाहिए कि जिस स्कूल में वे बच्चे को दाखिल कराने जा रहे हैं, वहां की सुरक्षा व्यवस्था की वे विस्तृत जानकारी लें.

हमेशा टीचरपेरैंट्स मीटिंग में जाएं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कोई कमी नजर आए तो टीचर से उस की चर्चा जरूर करें. द्य बच्चों से स्कूल में उन के अनुभवों के बारे में खुल कर चर्चा करें. अगर अचानक बच्चा स्कूल जाने से घबराने लगे या उस के नंबर कम आने लगें तो इन संकेतों को गंभीरता से लें और इन का कारण जानने का प्रयास करें.

बच्चों को अच्छे और बुरे टच के बारे में समझाएं ताकि यदि कोई उन्हें गलत मकसद से छुए तो वे शोर मचा दें. द्य बच्चों को यह भी समझाएं कि यदि कोई बच्चा उन्हें डराधमका रहा है तो वे टीचर या मम्मीपापा को सारी बात बताएं.

बच्चों को मोबाइल और दूसरी कीमती चीजें स्कूल न ले जाने दें. द्य अगर आप के बच्चे का व्यवहार कुछ दिनों से बदलाबदला नजर आ रहा है, वह आक्रामक होने लगा है या ज्यादा चुप रहने लगा है तो इस की वजह जानने का प्रयास करें.

रोज स्कूल से आने के बाद बच्चे का बैग चैक करें. उस के होमवर्क, क्लासवर्क और ग्रेड्स पर नजर रखें. उस के दोस्तों के बारे में भी सारी जानकारी रखें. द्य छोटे बच्चे को बस में चढ़नाउतरना सिखाएं.

बसस्टौप पर कम से कम 5 मिनट पहले पहुंचें. द्य आप अपने बच्चों को सिखाएं कि किसी आपातकालीन स्थिति में किस तरह के सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं. हो सके तो बच्चों को सैल्फडिफैंस के गुर, जैसे मार्शल आर्ट व कराटे वगैरा सिखाएं.

मनोवैज्ञानिक पहलू तुलसी हैल्थ केयर, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक डा. गौरव गुप्ता बताते हैं कि गुड़गांव के प्रद्युम्न केस की बात हो या 4 साल की बच्ची का यौनशोषण, इस तरह की घटनाएं बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति व गलत कामों के प्रति आकर्षण को चिह्नित करती हैं.

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि आज लोगों के पास वक्त कम है. हर कोई भागदौड़भरी जिंदगी में व्यस्त है. संयुक्त परिवारों की प्रथा खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है. नतीजा यह है कि बच्चों का लालनपालन एक मशीनी प्रक्रिया के तहत हो रहा है. परिवार वालों के साथ रह कर जीवन की वास्तविकताओं से अवगत होने और टीवी धारावाहिक व फिल्में देख कर जिंदगी को समझने में बहुत अंतर है. एकाकीपन के माहौल में पल रहे बच्चों के मन की बातों और कुंठाओं को समझना जरूरी है. मांबाप द्वारा बच्चों के आगे झूठ बोलने, बेमतलब की कलह और विवादों में फंसने, छोटीछोटी बातों पर हिंसा करने पर उतारू हो जाने जैसी बातें ऐसी घटनाओं का सबब बनती हैं क्योंकि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं.

स्कूल भी पीछे कहां हैं? स्कूल आज शिक्षाग्रहण करने का स्थान कम, पैसा कमाने का जरिया अधिक बन गए हैं. स्कूल का जितना नाम, उतनी ही महंगी पढ़ाई. जरूरी है कि शिक्षा प्रणाली में बाल मनोविज्ञान का खास खयाल रखा जाए. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. यदि हम सब आज भी अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और उसे सही ढंग से निभाएं तो अवश्य ही हम उन्हें बेहतर भविष्य दे सकते हैं.

साइबर बुलिंग

बुलिंग का अर्थ है तंग करना. इतना तंग करना कि पीडि़त का मानसिक संतुलन बिगड़ जाए. बुलिंग व्यक्ति को भावनात्मक और दिमागी दोनों ही तौर पर प्रभावित करती है. बुलिंग जब इंटरनैट के जरिए होती है तो इसे साइबर बुलिंग कहते हैं.

साइबर बुलिंग के कहर से भी स्कूली बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. हाल ही में 174 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 17 फीसदी बच्चे बुलिंग के शिकार हैं. स्टडी में पाया गया कि 15 फीसदी बच्चे शारीरिक तौर पर भी बुलिंग के शिकार हो रहे हैं. इस में मारपीट की धमकी प्रमुख है. लड़कियों की तुलना में लड़के इस के ज्यादा शिकार होते हैं.

अपराध के बढ़ते मामले चिंताजनक

एनसीआरबी द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2016 के बीच बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में 11 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. क्राइ यानी चाइल्ड राइट्स ऐंड यू द्वारा किए गए विश्लेषण दर्शाते हैं कि पिछले एक दशक में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध तेजी से बढ़े हैं. 2006 में 18,967 से बढ़ कर 2016 में यह संख्या 1,06,958 हो गई. राज्यों के अनुसार बात करें तो 50 फीसदी से ज्यादा अपराध केवल 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए है. उत्तर प्रदेश 15 फीसदी अपराधों के साथ इस सूची में सब से ऊपर है. वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश क्रमश: 14 और 13 फीसदी अपराधों के साथ ज्यादा पीछे नहीं हैं.

अपराध की प्रवृत्ति और कैटिगरी की बात करें तो सूची में सब से ऊपर अपहरण रहा. 2016 में दर्ज किए गए कुल अपराधों में से लगभग आधे अपराध इसी प्रवृत्ति (48.9 फीसदी) के थे. इस के बाद अगली सब से बड़ी कैटिगरी बलात्कार की रही. बच्चों के खिलाफ दर्ज किए गए 18 फीसदी से ज्यादा अपराध इस श्रेणी में दर्ज किए गए.

वारदात: बेखौफ हो रहे नौसिखिए अपराधी

उत्तर प्रदेश में 53 दिनों के अंदर 2 बड़ी आपराधिक घटनाएं हुईं, जिन में बड़े माफिया का कत्ल छोटी उम्र के नौसिखिए अपराधियों ने कर दिया. पहली घटना 15 अप्रैल, 2023 को प्रयागराज में हुई, जिस में माफिया अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ की हत्या 3 नौसिखिए अपराधियों मोहित उर्फ सनी, लवलेश तिवारी और अरुण कुमार मौर्य ने कर दी थी.

उसी अंदाज में 7 जून, 2023 को लखनऊ सिविल कोर्ट में विजय यादव उर्फ ‘आनंद’ नामक 25 साल के एक नौजवान ने माफिया संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ की हत्या कर दी. यह हत्याकांड कोर्ट के भीतर पुलिस, जज, वकील और तमाम लोगों के सामने शूट हुआ था. दोनों ही वारदात में नौजवानों का इस्तेमाल शूटर के रूप में किया गया, जो समाज के लिए खतरनाक संकेत है.

अतीक अहमद और अशरफ की हत्या करने वाले तीनों नौजवान 20 से 23 साल की उम्र के थे. इस उम्र में जब उन्हें अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देना चाहिए था, वे हत्या कर के शोहरत हासिल करना चाहते थे.

मोहित उर्फ सनी नामक लड़के की उम्र 23 साल थी. उस ने ही अतीक अहमद पर पहली गोली चलाई थी. हमीरपुर जिले का रहने वाला मोहित शातिर अपराधी है. उस के खिलाफ इतनी कम उम्र में 14 मुकदमे दर्ज हैं. इन में हत्या के प्रयास और लूट जैसे मुकदमे भी शामिल हैं.

दूसरा लवलेश तिवारी नामक लड़का बांदा जिले का रहने वाला है. उस की उम्र महज 22 साल है. उस के संबंध बजरंग दल से बताए गए थे. हालांकि बजरंग दल ने इस बात से इनकार किया था.

सोशल मीडिया पर लवलेश तिवारी का एक फोटो भारतीय जनता पार्टी युवा मोरचा के अध्यक्ष रह चुके पुष्कर द्विवेदी के साथ देखा गया. इसी तरह पुष्कर द्विवेदी का फोटो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी देखा गया.

लवलेश तिवारी ने अपने फेसबुक पेज पर अपने परिचय में खुद को जिला सह सुरक्षा प्रमुख बजरंग दल के रूप में लिख रखा है. उस ने लिखा है कि ‘हम शास्त्र वाले ब्राह्मण नहीं शस्त्र ब्राह्मण हैं’.

अतीक अहमद और अशरफ की हत्या में शामिल तीसरा अपराधी अरुण कुमार मौर्य था, जिस की उम्र 18 साल थी. उस के मातापिता की मौत हो चुकी है. उस पर कासगंज में जीआरपी के एक सिपाही की हत्या करने का आरोप है.

अतीक अहमद और अशरफ की हत्या इन लोगों ने क्यों की, इस बात का खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है. जिन हथियारों से हत्या की गई, वे महंगे हैं और इन नौजवानों की माली हालत ऐसी नहीं है कि वे उन्हें खरीद सकें, जिस से साफ होता है कि इन माफियाओं की हत्या के पीछे कोई और है.

नौजवानों के सामने जब रोजीरोजगार का संकट होगा, तो वे किसी भी तरह से अपनी जिंदगी चलाने का काम करेंगे. ऐसे में अपराध की दुनिया उन्हें लुभाती है. छोटीमोटी घटनाओं में जेल जाने वाले नौजवान अपराधी जेल में सुधरने की जगह और बिगड़ कर बाहर आते हैं. इन दोनों घटनाओं में देखें, तो ये हत्यारे छोटीछोटी बातों में जेल गए और वहां से भाड़े के शूटर बन कर निकले.

अतीक अहमद और अशरफ की हत्या पुलिस और मीडिया के सामने हुई, तो लखनऊ में 7 जून, 2023 को सिविल कोर्ट में माफिया संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ की हत्या 20 साल के विजय यादव ने कर दी.

अतीक अहमद और अशरफ हत्याकांड में हत्यारे मीडिया के वेश में आए थे. ‘जीवा’ हत्याकांड में हत्यारा वकील की ड्रैस में था. इन दोनों ही हत्याकांड में सब से खतरनाक और सोचने वाली समानता यह है कि हत्या करने वालों की कोई निजी दुश्मनी नहीं थी. वे भाड़े के हत्यारे थे.

एक खास बात यह भी है कि अपराध करने वाले ये नौजवान गांव या छोटे शहरों के रहने वाले हैं. इन के अपराध में शामिल होने की सब से बड़ी वजह रोजाना बढ़ती बेरोजगारी है. दूसरी वजह यह है कि नौजवानों के मन में कट्टरपन बढ़ता जा रहा है, जिस से वे बेखौफ होते जा रहे हैं.

जौनपुर का है विजय यादव लखनऊ के कैसरबाग में बने सिविल कोर्ट में 7 जून, 2023 की दोपहर को 48 साल का संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ पेशी पर आया था. 3 बज कर 55 मिनट पर कुछ पुलिस वाले उसे ले कर पहुंचे थे. हत्या के एक मामले में उस की कोर्ट में सुनवाई होनी थी.

संजीव ‘जीवा’ एक कुरसी पर बैठा था. आसपास कई पुलिस वाले और वकील घूम रहे थे. तभी वकीलों की तरह काला कोट पहने एक नौजवान विजय यादव वहां आया और उस ने धड़ाधड़ गोलियां चलानी शुरू कर दीं. संजीव को 6 गोलियां लगीं. चारों तरफ अफरातफरी मच गई.

जैसे ही विजय की पिस्टल की गोलियां खत्म हुईं, वकीलों ने उसे पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर में पुलिस ने वहां आ कर विजय को धर लिया.

लखनऊ कोर्ट में माफिया संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ की हत्या करने वाला विजय यादव उर्फ आनंद 25 साल का नौजवान है. वह जौनपुर जिले के केराकत कसबे के सुलतानपुर गांव का रहने वाला है. उस के हावभाव देख कर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि वह कितने खतरनाक इरादे वाला है.

विजय ने मैग्नम अल्फा .357 बोर पिस्टल से संजीव ‘जीवा’ को निशाने पर ले कर 6 राउंड फायरिंग की थी. उस का सीधा निशाना ‘जीवा’ पर था.

विजय यादव के घर का नाम आनंद है. इस के पिता का नाम श्याम यादव है. आनंद के 3 भाई स्वतंत्र, सत्यम और सुंदरम हैं. पिता श्याम यादव मिठाई की दुकान चलाते हैं.

विजय यादव उर्फ आनंद मार्च में गांव आया था. तब उस ने अपने घर वालों से कहा था कि मुंबई में पैसा कम मिल रहा है, इसलिए वह काम की तलाश में लखनऊ जा रहा है. 22 मार्च को वह लखनऊ आ गया. उस ने घर वालों को यह बताया था कि पानी के पाइप बनाने वाली एक कंपनी में वह काम कर रहा है.

विजय यादव उर्फ आनंद की शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई. इस के बाद उस ने 9वीं से इंटर तक की पढ़ाई एक पब्लिक इंटर कालेज से की. साल 2016 में विजय ने मोहम्मद हसन डिगरी कालेज से बीए किया. इस के बाद से वह नौकरी तलाश रहा था.

10 जुलाई, 2016 को आजमगढ़ की एक लड़की अपने घर से भाग गई थी. आजमगढ़ पुलिस ने विजय पर लड़की भगाने का आरोप लगाया. उन दिनों वह मुंबई में था. पुलिस ने उसे वहां से पकड़ा, फिर आजमगढ़ जेल ले गई.

6 महीने बाद विजय की जमानत हो गई. पुलिस ने लड़की को किसी दूसरे लड़के के साथ बरामद कर लिया था. इस के बाद विजय उर्फ आनंद मुंबई में काम करने चला गया. वह तारीख पड़ने पर आता था.

मार्च, 2023 में यह केस खत्म हो गया था. लड़की के घर वालों ने सुलहनामा कर लिया था. केस खत्म होने के बाद विजय उर्फ आनंद ने मुंबई न जाने के बजाय घर के पास ही नौकरी तलाश करने की बात कही और फिर लखनऊ चला गया.

आजमगढ़ जेल में विजय यादव का अपराधियों से संपर्क हुआ. जिस जेल में वह बंद था, वहां पूर्वांचल के कई कुख्यात अपराधी बंद हैं. इन में बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के कई गुरगे शामिल हैं.

जिस तरह से विजय यादव ने संजीव ‘जीवा’ की हत्या की, उस से साफ है कि किसी के कहने पर उस ने इस घटना को अंजाम दिया है.

कौन था संजीव माहेश्वरी ‘जीवा’

संजीव ‘जीवा’ मुख्तार अंसारी का खास शूटर था. भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी और कृष्णानंद राय की हत्या में यह भी अभियुक्त था.

संजीव माहेश्वरी उर्फ संजीव ‘जीवा’ मूल रूप से शामली जिले का रहने वाला था. शुरुआती दिनों में वह एक दवाखाना संचालक के यहां कंपाउंडर की नौकरी करता था. इसी नौकरी के दौरान संजीव ‘जीवा’ ने अपने मालिक यानी दवाखाना संचालक को ही अगवा कर लिया था.

इस घटना के बाद संजीव ‘जीवा’ ने साल 1991 में कोलकाता के एक कारोबारी के बेटे का भी अपहरण किया और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी थी. उस समय किसी से 2 करोड़ रुपए की फिरौती की मांग होना भी अपनेआप में बहुत बड़ी होती थी.

इस के बाद संजीव ‘जीवा’ हरिद्वार की नाजिम गैंग में घुसा और फिर सतेंद्र बरनाला के साथ जुड़ा. वह जल्द से जल्द अपना खुद का गिरोह बनाना चाहता था.

10 फरवरी, 1997 को हुई भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या में संजीव ‘जीवा’ का नाम आया. इस में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. थोड़े दिनों बाद संजीव ‘जीवा’ पूर्वांचल के माफिया मुन्ना बजरंगी गैंग में शामिल हो गया. यहीं से वह मुख्तार अंसारी के संपर्क में आया.

मुख्तार अंसारी को नए हथियारों का शौक था, तो संजीव ‘जीवा’ के पास ऐसे हथियारों को जुटाने का नैटवर्क था. साल 2005 में संजीव ‘जीवा’ का नाम कृष्णानंद राय हत्याकांड में भी आया. वहां गवाह न होने के चलते मुकदमा खत्म हो गया था.

संजीव माहेश्वरी उर्फ ‘जीवा’ पर 2 दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे. इन में से 17 मामलों में वह बरी हो चुका था, जबकि उस के गैंग में 35 से भी ज्यादा सदस्य हैं.

संजीव ‘जीवा’ जेल से भी गैंग औपरेट करता था. उस पर साल 2017 में कारोबारी अमित दीक्षित उर्फ गोल्डी हत्याकांड में भी आरोप लगे थे. इस में जांच के बाद अदालत ने ‘जीवा’ समेत

4 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. ‘जीवा’ लखनऊ की जेल में बंद था और वहीं से पेशी पर सुनवाई के लिए 7 जून, 2023 को सिविल कोर्ट पुलिस की सुरक्षा में गया था.

साल 2021 में संजीव ‘जीवा’ की पत्नी पायल ने चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिख कर कहा था कि ‘जीवा’ की जान को खतरा है. पायल साल 2017 में रालोद के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं, पर वे हार गई थीं.

संजीव ‘जीवा’ माफिया की लिस्ट में 15वें नंबर पर था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर उत्तराखंड तक ‘जीवा’ का खौफ था. उस पर उत्तराखंड में 5, गाजीपुर, फर्रुखाबाद और लखनऊ में 1-1 केस मिला कर कुल 25 मामले दर्ज थे.

संजीव ‘जीवा’ पिछले 2 दशक से सलाखों के पीछे था. 10 जून, 2019 को उसे मैनपुरी से लखनऊ जेल में शिफ्ट किया गया था, तब से ही वह लखनऊ जेल में बंद था. उस को हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा गया था, जहां सीसीटीवी कैमरों से लगातार निगरानी होती थी.

सरकार पर उठ रहे सवाल

आजाद अधिकार सेना चलाने वाले और पुलिस अफसर रह चुके अमिताभ ठाकुर ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद कहा कि ‘इस घटना में कुछ बड़े लोग शामिल हो सकते हैं. यह राज्यपोषित अपराध है. पुलिस संरक्षण

में यह हुआ है, इसलिए संजीव ‘जीवा’ और अतीक अहमद मसले की जांच सीबीआई द्वारा कराई जाए, तभी इन का सच बाहर आ सकेगा.’

उत्तर प्रदेश पुलिस दावा कर रही है कि बुलडोजर के डर से अपराधी या तो जेल में बंद हैं या फरार हैं और वे कहीं और रहने लगे हैं. पर जिस तरह से बेखौफ अंदाज में यह घटना सिविल कोर्ट के अंदर घटी, उस से कानून व्यवस्था पर सवाल उठ गए हैं.

उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए यह शर्मनाक बात है कि 53 दिनों के अंदर पुलिस सुरक्षा में 3 अपराधियों को मार दिया जाता है. पुलिस यह नहीं बता पा रही है कि वे कौन बड़े अपराधी हैं, जो नौजवानों को शूटर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.

नौजवानों का इस तरह गलत इस्तेमाल समाज के हित में नहीं है. उत्तर प्रदेश की जिस कड़ी कानून व्यवस्था का ढोल पूरे देश में जोरशोर से पीटा जा रहा है, उस की पोल इन घटनाओं ने खोल कर रख दी है.

अश्लीलता पर प्रतिबंध के बहाने

अश्लीलता परोसने वाली लगभग 850 पोर्न वैबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाया गया है. हजारों वैबसाइट्स में से सिर्फ 850 ही क्यों चुनी गईं? इन्हें चुनने का क्या पैमाना है? इस के पीछे सरकार की क्या मंशा है? यदि इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की जगह क्या हम यह मान कर निश्चिंत हो सकते हैं कि पोर्नोग्राफी पर नियंत्रण से समाज में स्वस्थ मानसिकता फलीभूत होगी. फलस्वरूप क्राइम रेट घटेगा. यह कोई गारंटी नहीं है क्योंकि यौन अपराध तो साइबर क्रांति से पहले भी हो रहे थे. हां, इस बहाने सरकार को अपना छिपा एजेंडा लागू करने का मौका मिल रहा है और विरोधियों पर नियंत्रण करने का भी. कुछ लोगों का सही मानना है कि यह पाबंदी उन के अधिकारों का हनन है.

यह ठीक है कि यौन शोषण को रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए. नियमों के साथ उस के पालन पर भी पैनी नजर सरकार की होनी चाहिए. अगर इस ओर सख्ती नहीं बरती गई तो मासूम बच्चों को जिस्मफरोशी से ले कर पोर्नोग्राफी जैसे गंदे व्यवसाय में धकेला जा सकता है.

बेबुनियाद तर्क

मोबाइल पर पोर्न  देखने के मामले पर भारत चौथे स्थान पर है. कुछ ही दिनों में इंटरनैट के सब से अधिक उपभोक्ता भारत में होंगे. ऐसे में यह कहना कि पोर्न पर नियत्रंण की यह पहल समाज से हिंसा, रेप, शोषण, वेश्यावृत्ति आदि के नामोनिशान मिटाने में कारगर होगी, बेबुनियाद है.

इस प्रतिबंध से कुछ हासिल नहीं होगा. समाज में हिंसा, रेप, शोषण, वेश्यावृत्ति आदि घिनौनी हरकतों का अस्तित्व रहेगा. इंसान को जिस चीज के लिए रोका जाता है वह उसी के पीछे दौड़ता है. यह इंसान की फितरत है.

चीनी सरकार अपने नागरिकों पर नकेल कसने के लिए अनापशनाप पैसा खर्च करती है. वहां इस के लिए कई लोग नियुक्त किए गए हैं. और तो और इंटरनैट सरकारी नियंत्रण में है. फिर भी उसे आंशिक कामयाबी मिलती है. ऐसे में भारत की नीतियां व संसाधन मजबूत नहीं हैं.

चीन के मुकाबले भारत की नीतियां कमजोर हैं. हमारे यहां जिस गति से नियमकानून बनते हैं उसी गति से उन का उल्लंघन भी होता है. नियमों का पालन सख्ती से नहीं किया जाता. आपराधिक मामले लंबे अरसे तक कोट में चलते रहते हैं.

पोर्नोग्राफी मानसिक प्रदूषण फैला रहा है, जिस का सीधा प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ता है. यह नकारात्मक प्रभाव उस के व्यक्तित्व में इस कदर शुमार हो जाती है कि अमानवीय विकारों से समाज प्रदूषित होने में देर नहीं लगती.

सामाजिक स्तर पर पोर्नोग्राफी स्वस्थ समाज वाले संस्कारों जैसे नैतिकता शिष्टाचार आदि को नष्ट कर देती है. पोर्न  वैबसाइट्स पर प्रतिबंध तभी समाज में गहरी छाप छोड़ेगा जब प्रतिबंध के उल्लंघन को अपराध माना जाए.

इंटरनैट से पोर्न  वैबसाइट्स पर रोक के लिए सख्ती बहुत जरूरी है. हमारे यहां नियम बनते हैं. कुछ दिनों तक उस उस का बिगुल दुनिया भर में बजता है. फिर नियम किताबों में कैद हो जाते हैं. ऐसे में नियमों से समाज का कल्याण असंभव है.

माना हमारा संविधान भारतीय नागरिकों को इच्छानुसार जीने का अधिकार देता है, ऐसे में इस के खिलाफ आवाज उठाना गलत है. अगर कोई वयस्क चारदीवारी में पोर्न  देखता है और इस से समाज को कोई नुकसान नहीं. ऐसे में पोर्न वैबसाइट्स पर प्रतिबंध व्यक्ति का हनन है.

वहीं दूसरी ओर पोर्न वैबसाइट्स समाज के सामने हो तो वह सरासर गलत है. सरकार ने प्रतिबंध तो लगा दिया लेकिन इस के लिए सख्ती नहीं बरती तो ऐसे नियमों का कोई फायदा नहीं है. रोक लगाने के बाद भी इस की उपलब्धता को नष्ट करना होगा अन्यथा मानसिक रूप से विकृत इंसान के लिए सोशल मीडिया पर पोर्न  परोसा जा रहा है.

पैसों के लालच में दोस्ती का कत्ल

5 जून की रात के 10 बजने को थे. ग्वालियर के कंपू थाना इलाके के टोटा की बजरिया में रहने वाले जिला विशेष शाखा के आरक्षक समीर ढींगरा ने अपने पड़ोसी मनोज श्रीवास्तव के बेटे संजू की बाइक अपने घर के सामने खड़ी देखी तो वह बुदबुदाने लगे, ‘सारी जगह छोड़ कर इस लड़के को सिर्फ मेरे ही दरवाजे पर बाइक खड़ी करने को जगह मिलती है.’

बाइक को हटवाने के लिए पहले उन्होंने संजू को आवाज दी, लेकिन जब उस ने कोई रिस्पौंस नहीं दिया तो उन्होंने संजू के मोबाइल पर फोन किया. स्क्रीन पर समीर अंकल का नंबर देख संजू समझ गया कि उन्हें सड़क किनारे खड़ी अपनी स्कौर्पियो घर के भीतर रखनी होगी, इसीलिए बाहर खड़ी बाइक को हटाने के लिए फोन किया है.

समीर को हालांकि पुलिस की नौकरी में 20 साल हो गए थे, लेकिन पुलिस महकमे में आरक्षक को इतनी पगार नहीं मिलती कि वह स्कौर्पियो जैसी लग्जरी कार खरीद सके. लेकिन समीर की बात और थी, उस की महत्त्वाकांक्षाएं ऊंची थीं. उस का अपना शानदार मकान था, साथ ही 2 लग्जरी कारें भी.

दरअसल, समीर के आर्थिक दृष्टि से मजबूत होने की वजह यह थी कि वह पिछले कई सालों से प्रौपर्टी के कारोबार में जुड़ा था. इस कारोबार में उस ने अपने साझेदारों के साथ मिल कर करोड़ों रुपए कमाए थे. बस दुख की बात यह थी कि उस ने दौलत तो खूब कमाई थी, लेकिन उसे पारिवारिक सुख नहीं मिला था.

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पिता के निधन के बाद तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए समीर को पुलिस महकमे में आरक्षक की नौकरी मिल गई थी. इस के साथ ही उस ने साझेदारी में प्रौपर्टी का कारोबार भी कर लिया था.

इसी बीच उस के बहनोई का सड़क हादसे में निधन हो गया था. पति की मौत के बाद उस की बहन गीता आहूजा और भांजी को अकेलेपन का बोझ न सहना पड़े, इसलिए समीर बहन और भांजी को अपने साथ ले आया था और उन दोनों को अपने साथ घर में ही रख लिया था. भांजी पढ़लिख कर कुछ बन जाए, इसलिए उस ने उस का दाखिला बनारस के एक अच्छे स्कूल में करवा दिया था.

समीर के बारे में अच्छी बात यह थी कि वह सभी से सौहार्दपूर्ण संबंध रखता था, साथ ही दूसरों की मदद के लिए भी तैयार रहता था. धार्मिक मामलों में भी उस की काफी रुचि थी. वह ऐसे किसी भी आयोजन के लिए पैसे देता रहता था.

5 साल पहले समीर की दोनों किडनी खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे इस बात के संकेत दे दिए थे कि उस का जीवन ज्यादा लंबा चलने वाला नहीं है. यह जान कर उसे तगड़ा झटका लगा था. उसे यह चिंता सताने लगी थी कि दुनिया से जाने के बाद उस की मां, बहन और भांजी का क्या होगा. समीर को इस बात का कतई आभास नहीं था कि इस से पहले ही कोई उस की जान लेने के लिए तैयार बैठा है.

बहरहाल, समीर अंकल का फोन आने पर संजू अपनी बाइक हटाने के लिए जैसे ही घर के बाहर आया, वह यह देख कर हक्काबक्का रह गया कि समीर पर 2 युवक गोलियां चला रहे हैं. गोली चलने की आवाज सुन कर आसपास के लोग भी घर से बाहर निकल आए.

लोगों ने देखा कि समीर खून से लथपथ सड़क पर पड़ा छटपटा रहा है. जब तक पड़ोसी कुछ समझ पाते, तब तक हमलावर अंधेरे का लाभ उठा कर सफेद रंग की गाड़ी से भाग खड़े हुए थे.  पड़ोस में रहने वाले लोगों ने फोन कर के इस घटना की सूचना कंपू थाने को दे दी.

संयोग से थानाप्रभारी महेश शर्मा थाने में ही मौजूद थे. उन्होंने मामला दर्ज करवा कर इस की सूचना एसपी डा. आशीष, एएसपी अभिषेक तिवारी और सीएसपी शैलेंद्र जादौन को दे दी. इस के साथ ही वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थोड़ी देर बाद एसपी डा. आशीष, एएसपी अभिषेक तिवारी और सीएसपी शैलेंद्र जादौन भी वहां आ गए.

फोरैंसिक टीम को भी मौकाएवारदात पर बुला लिया गया था. समीर को 315 बोर के कट्टे से काफी नजदीक से गोली मारी गई थी. समीर की मां और बहन भी घर से बाहर आ गई थीं और बिलखबिलख कर रो रही थीं.

इस बीच डा. आशीष ने समीर की मां को पहचान लिया. उन्हें याद आया कि 1 जून को जब वह अपने औफिस में बैठे थे, तब यह वृद्ध महिला उन के पास शिकायत ले कर आई थी, जिस में लिखा था कि उस के बेटे के साझीदार बेईमानी पर उतर आए हैं. उन्होंने उस का काफी पैसा हड़प लिया है. इस मामले में एसपी ने उचित काररवाई की थी.

घटनास्थल से सारे साक्ष्य एकत्र करने के बाद पुलिस ने समीर की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. सीएसपी श्री जादौन और टीआई श्री शर्मा ने समीर के पड़ोस में रहने वालों से पूछताछ की तो पता चला कि उस की दोनों किडनी खराब हो चुकी थीं. डाक्टरों ने उसे बता दिया था कि इस स्थिति में वह ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाएगा. तभी से वह काफी मायूस रहने लगा था.

पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि जब समीर की जिंदगी चंद दिनों की बची थी तो फिर ऐसी कौन सी वजह थी कि उस की हत्या कर दी गई. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि हत्यारे ने समीर को काफी करीब से गोली मारी थी. इस से यह बात साफ हो गई कि समीर की हत्या रेकी करने के बाद किराए के बदमाशों से कराई गई थी.

छानबीन में पुलिस को पता चला कि समीर पुलिस की नौकरी के साथ प्रौपर्टी का कारोबार भी करता था. उस ने अपनी मां गंगादेवी के नाम से गंगादेवी बिल्डर प्राइवेट लिमिटेड नाम से फर्म बना रखी थी. इस फर्म में उस की मां गंगादेवी, बहन गीता आहूआ और परिवार के एक सदस्य पंकज गुगनानी 51 प्रतिशत के साझेदार थे. शेष में उस के जिगरी दोस्त महेश जाट की पत्नी सुनीता जाट, पिता प्रीतम जाट और मोहम्मद फारुख सहित कुछ अन्य लोग साझेदार थे.

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पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए समीर के आधा दरजन साझेदारों से गहन पूछताछ की. लेकिन हत्या की हकीकत सामने नहीं आई. क्राइम ब्रांच में तैनात कांस्टेबल महेश जाट समीर का खास दोस्त था. जब उस के बारे में समीर की मां से पूछा गया तो उन्होंने दो टूक कहा कि महेश ऐसा काम नहीं कर सकता.

पुलिस इस हत्या की गुत्थी सुलझाने में लग गई. उस ने कई बिंदुओं पर गौर किया और गंगादेवी के इनकार करने के बावजूद टीआई महेश शर्मा ने महेश जाट को थाने बुला कर सीधे सवाल किया कि फुटेज में जो जीप दिख रही है, वह किस की है? महेश ने देख कर बताया, ‘‘यह तो दीपक जाट के भाई जगमोहन किरार की है.’’

इसी क्लू से तेजतर्रार थानाप्रभारी ने सारा मामला सुलझा लिया. सुपारी किलिंग कराने वाले महेश जाट ने ही 2 लाख रुपए में समीर को ठिकाने लगाने की सुपारी दी थी. इस में बोनस औफर यह था कि जिस की गोली समीर को लगेगी, उसे पैसे के साथ एक बुलेट मोटरसाइकिल भी तोहफे में दी जाएगी. पुलिस को पूछताछ में यह भी पता चला कि समीर की हत्या करने के बाद घटनास्थल से भागते सतवीर उर्फ जग्गू किरार ने महेश जाट को फोन कर के कहा था, ‘‘मामा काम हो गया.’’

इसी वजह से पुलिस का ध्यान समीर के सब से करीबी लोगों पर जा रहा था. पुलिस ने समीर के साझेदारों को बुला कर उन से फिर पूछताछ की. लेकिन कुछ खास पता नहीं चला तो सभी को घर भेज दिया गया. 10 जून की रात में क्राइम ब्रांच की टीम ने बिरलानगर से बेताल किरार, सतवीर किरार और शिवम जाट को उठा लिया.

इन तीनों को हिरासत में ले कर जब सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों टूट गए. उन्होंने मान लिया कि समीर ढींगरा की हत्या का मास्टरमाइंड समीर का जिगरी दोस्त महेश जाट है. उस ने ही गैंगस्टर हरेंद्र राणा के साथी दीपक जाट के भाई सतवीर को सुपारी दी थी. इस अहम जानकारी के बाद पुलिस ने महेश जाट को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में समीर ढींगरा की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

महेश और समीर ढींगरा एक ही महकमे में कार्यरत होने की वजह से पिछले 22 सालों से जिगरी दोस्त थे और दोनों मिल कर पिछले 10 सालों से प्रौपर्टी खरीदने और बेचने का काम कर रहे थे. इन दोनों ने अशोक गोयल की 42 बीघा जमीन खरीद कर उस में 300 प्लौट काट कर बेचे थे. इस कारोबार में महेश का शातिर दिमाग और समीर का पैसा चल रहा था. महेश ने वहां बड़ेबड़े 20 प्लौट बेच दिए थे. लेकिन उस ने समीर के हिस्से का पैसा नहीं दिया था. अलबत्ता उस ने डेढ़ करोड़ में से कुछ रकम अशोक गोयल को जरूर दे दी थी.

इस जमीन में पौवर औफ अटार्नी में समीर की मां गंगादेवी के हस्ताक्षर थे. जिस की वजह से उन की मरजी से ही रजिस्ट्री हो सकती थी. दरअसल, जब समीर को लगा कि महेश की नीयत में खोट आ गया है तो उस ने उस जमीन की बिक्री के लिए ऐसी व्यवस्था करा दी थी कि उस की मां के बगैर जमीन की बिक्री न हो सके. इसी वजह से महेश उन प्लौटों की रजिस्ट्री उन के नाम नहीं करवा पा रहा था, जिन से उस ने एडवांस लिया था. एडवांस देने वाली पार्टी उस पर रजिस्ट्री के लिए दबाव बना रही थी.

दूसरी ओर अशोक गोयल भी समीर के व्यवहार और लेनदेन से काफी खुश थे, इसलिए वह उस के पक्ष में ही बोलते थे. मां के नाम से पंजीकृत फर्म का 12 करोड़ रुपए का चैक समीर अशोक गोयल को दे चुका था, लेकिन समीर के साझेदार महेश ने अपने हिस्से में 2 करोड़ की हेराफेरी कर दी थी. इस बात को ले कर दोनों जिगरी दोस्तों में जम कर तकरार हुई. यहां तक कि दोनों ने एकदूसरे को कानूनी नोटिस तक दे दिए थे.

महेश जाट ने बिना समीर को बताए सिटी सैंटर में 85 लाख रुपए की एक आलीशान कोठी खरीद ली थी. महेश की इस हरकत से समीर के दिल में महेश के लिए प्यार कम और नफरत ज्यादा हो गई. इसी के चलते महेश ने टेकनपुर प्रौपर्टी में पार्टनर जगमोहन किरार उर्फ जग्गू को प्रलोभन दिया कि जिस प्लौट का उस ने उसे एडवांस दिया है, उस की रजिस्ट्री मुफ्त में कर देगा लेकिन इस के एवज में उस के साझीदार समीर ढींगरा को निपटाना होगा.

जगमोहन की बहन बिरलानगर में रहती थी. आरोपी बेताल किरार भी वहीं पास में रहता था. जगमोहन ने बेताल से कहा कि कट्टे से अचूक गोली मारने वाले लड़के ढूंढो. बेताल ने शुभम जाट और सतबीर जाट को तलाश कर के सुपारी के रूप में 1-1 लाख तय किए.

जगमोहन ने पूछताछ में बताया कि महेश पिछले एक पखवाड़े से समीर को निपटाने की जुगत में लगा था. कुछ दिनों पहले भी उस ने रेलवे स्टेशन के नजदीक समीर को ठिकाने लगाने की योजना बनाई थी. लेकिन संयोग से समीर बच निकला था. समीर की हत्या के बाद पुलिस को 2 बदमाशों को भागते देखने की बात बताने वाले संजू श्रीवास्तव के पिता मनोज श्रीवास्तव ने समीर की रेकी की थी और सतबीर को फोन कर के बता दिया था कि वह अपनी स्कौर्पियो उठाने आ गया है.

मनोज के फोन के बाद ही सतबीर और शुभम समीर को गोली मारने पहुंचे. वहां पहुंच कर गोली सतबीर ने चलाई. समीर को मौत के घाट उतारने के बाद वे जगमोहन की बोलेरो में बैठ कर वहां से फरार हो गए. पुलिस पड़ताल में यह भी पता चला कि जिस वक्त सतबीर और शुभम समीर ढींगरा को जान से मारने गए, उस वक्त महेश जाट घटनास्थल के करीब ही मौजूद था और सारे घटनाक्रम पर नजर रख रहा था.

समीर ढींगरा को मौत के घाट उतारने के बाद जगमोहन उर्फ जग्गू किरार अलीगढ़ भाग गया था. वहां जा कर उस ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से खुद को अवैध कट्टा और कारतूस रखने के जुर्म में गिरफ्तार करवा दिया था. पुलिस उसे जेल भेज चुकी थी. उस की मंशा थी कि किसी भी तरह पुलिस उस तक न पहुंच पाए.

महेश जाट कितना बड़ा मास्टरमाइंड था, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि समीर की हत्या सतबीर जाट और शुभम जाट के हाथों करवाने के बाद वह मृतक की मां गंगादेवी और बड़ी बहन को दिलासा देने उन के घर पहुंच गया, क्योंकि उसे लगता था कि इस मामले में उस का नाम नहीं आएगा. वह एक हफ्ते तक बेखटके समीर के घर आताजाता रहा. लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया गया हो, एक न एक दिन उस का राज खुल ही जाता है.

कथा लिखे जाने तक समीर ढींगरा की हत्या के आरोप में पुलिस ने महेश जाट सहित सतबीर, शुभम जाट, बेताल किरार, मनोज श्रीवास्तव और जगमोहन किरार को गिरफ्तार कर के मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया था, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया था.

बहरहाल, समीर नहीं रहा. उस के न रहने से जहां उस की बूढ़ी मां गंगादेवी की दुनिया उजड़ गई, वहीं विधवा बहन गीता आहूजा का सहारा भी छिन गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ठग बिल्डरों को बचाने वाले कानून के रखवाले

जमीनों पर जबरन कब्जा करने वाले दबंगों, अपराधियों और धोखेबाज बिल्डरों का साथ देने वाले पुलिस वालों के सिर पर कानून की तलवार लटक गई है. पटना के सभी ठग बिल्डरों, प्रोपर्टी डीलरों और जमीन माफिया का कच्चाचिट्ठा तैयार किया जा रहा है.

पटना के थानों में दर्ज जमीनों पर जबरन कब्जा करने वाले बिल्डरों, अपराधियों और उन का साथ देने वाले भ्रष्ट पुलिस वालों की फाइल तैयार करने की कवायद शुरू की गई है.

पुलिस के पास लगातार ऐसी शिकायतें आ रही थीं कि कुछ पुलिस वाले दबंगों के साथ मिल कर कीमती जमीनों पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा कर रहे हैं.

दबंग अपराधी किसी भी जमीन पर अपना खूंटा गाड़ देते हैं और जमीन मालिक को औनेपौने भाव में जमीन बेचने का दबाव बनाते हैं. कई बिल्डर और प्रोपर्टी डीलर तो ग्राहकों के लाखों रुपए ठग कर फ्लैट देने में भी आनाकानी कर रहे हैं.

जब कोई पीडि़त ग्राहक या जमीन मालिक पुलिस से गुहार लगाता है, तो दबंगों पर कार्यवाही करने के बजाय भ्रष्ट पुलिस वाले उलटे जमीन मालिक को ही समझातेधमकाते हैं कि जो पैसा मिल रहा है, उतने में ही जमीन बेच दो, वरना अपराधी जबरन कब्जा कर लेंगे और जमीन के एवज में कुछ भी नहीं मिलेगा.

डीआईजी शालीन के आदेश पर सभी थानों के दागी पुलिस वालों की पहचान शुरू कर दी गई है.

मिसाल के तौर पर कंकड़बाग महल्ले के एक रिटायर्ड अफसर ने मकान बनवाया था और उन के बच्चे बिहार से बाहर नौकरी करते थे. एक दबंग ने उन से मकान बेचने को कहा. जब उन्होंने मकान नहीं बेचा, तो उस दबंग ने अपने गुरगों के साथ उन के घर पर धावा बोल दिया और घर में रखा सामान उठा कर बाहर फेंकने लगा.

उस रिटायर्ड अफसर ने पुलिस के पास गुहार लगाई, पर एफआईआर दर्ज करने के बजाय पुलिस वालों ने उन से कहा कि जितना रुपया मिल रहा है, उतने में मकान बेच दो. ज्यादा जिद और थानाकचहरी करोगे, तो आप को कुछ भी नहीं मिलेगा.

पिछले साल ऐसे मामलों में शामिल तकरीबन 6 पुलिस वालों को सस्पैंड किया गया था, इस के बाद भी पुलिस वालों ने कोई सबक नहीं सीखा है.  राजीव नगर थाना, सचिवालय थाना, गांधी मैदान थाना समेत कई थानों के पुलिस वाले ऐसे केसों में शामिल पाए गए हैं.

पिछले साल राजीव नगर थाने के तब के थाना इंचार्ज सिंधुशेखर पर कानूनी कार्यवाही की गई थी. इसी तरह दीदारगंज थाने के इंस्पैक्टर मुखलाल पासवान को सस्पैंड किया गया था. दोनों पर आरोप था कि उन्होंने जबरन जमीन बिकवाने के लिए दबंगों का साथ दिया था.

मोकामा के विधायक के बौडीगार्ड रह चुके विपिन सिंह को अपहरण के मामले में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वहीं सचिवालय थाने के सिपाही दीपक कुमार को अपहरण के मामले में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. जक्कनपुर थाने के एक सिपाही को खुलेआम रंगदारी मांगने के आरोप में सस्पैंड किया गया था.

पुलिस सूत्रों की मानें, तो पटना और दूसरे कई शहरों में कई धोखेबाज और ठग बिल्डरों पर नकेल कसने के लिए बिल्डरों के केसों की समीक्षा, वारंट जारी होने, गिरफ्तारी के हालात पैदा होने, बेल बौंड का सत्यापन कराए जाने को ले कर बिल्डरों में हड़कंप मचा हुआ है. इन से बचने के लिए कई बिल्डर पुलिस वालों की मदद ले रहे हैं.

इन केसों की समीक्षा में डीआईजी शालीन को थाना लैवल पर ही मामलों को दबाने, जमीन माफिया और ठग बिल्डरों से मिलीभगत के संकेत मिल थे.

ठग बिल्डरों के बेल बौंड के सत्यापन का काम शुरू कर दिया गया है. जांच में यह पता करने की कोशिश की जा रही है कि किनकिन लोगों ने झूठे कागजात लगा कर कोर्ट को गुमराह कर जमानत हासिल की थी. पता चलने पर ऐसे लोगों पर केस दर्ज होगा.

बिल्डर अनिल सिंह के केस में फर्जी कागजात सामने आने पर डीआईजी ने कुल 30 केसों में आरोपित पटना के बिल्डरों के बेल बौंड की समीक्षा करने का आदेश जारी किया है.

जमीन पर जबरन कब्जे को ले कर रक्सौल में हुई गोलीबारी के तार पटना के बेऊर जेल से जुड़ने लगे हैं. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, गोलीबारी करने वाले गिरोह का सरगना कई मामलों में जेल में बंद है. उस के इशारे पर ही रक्सौल में जमीन कब्जाने की कोशिश की गई थी. इस मामले में फिलहाल 12 लोगों को पकड़ा गया है. गिरफ्तार अपराधियों ने ही बेऊर जेल में बंद सरगना का नाम लिया है.

पुलिस सूत्रों की मानें, तो अपराधियों के लिए रक्सौल में एक होटल बुक कराने का काम पटना पुलिस के ही एक सिपाही ने किया था. उस सिपाही ने अपने आई कार्ड की फोटोकौपी होटल में जमा करा कर 3 कमरे बुक किए थे. पुलिस इस मामले में सिपाही के शामिल होने की जांच कर रही है.

पटना सैंट्रल के डीआईजी शालीन ने बताया कि सभी थानों से ऐसे पुलिस वालों की लिस्ट मांगी गई है, जो माफिआ से सांठगांठ कर उन की मदद करते रहे हैं. आरोप साबित होने पर उन पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी. अगर किसी जमीन मालिक को जमीन के मामले में कोई पुलिस वाला धमकी दे या किसी के खिलाफ एफआईआर न लिखे, तो सीधे डीआईजी से शिकायत की जा सकती है.

पुलिस ने उन बिल्डरों, प्रोपर्टी डीलरों और जमीन माफिया पर नकेल कसने की कवायद शुरू की है, जो फ्लैट, मकान या जमीन देने के नाम पर ग्राहकों से मोटी रकम वसूल चुके हैं, इस के बाद भी ग्राहकों को फ्लैट या जमीन नहीं दे रहे हैं.

कई बिल्डर तो ग्राहकों के साथ मारपीट कर रहे हैं और धमका रहे हैं. ग्राहक जब पुलिस थाने में केस करता है, तो बिल्डर मामले की जांच कर रहे अफसर की मुट्ठी गरम कर केस दबा रहे हैं.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, हर थाने में ऐसे 10-12 मामले हैं, जिन पर पुलिस ने कार्यवाही नहीं की है. अब हर थाने से रिपोर्ट मांगी गई है कि किसकिस बिल्डर, प्रोपर्टी डीलर और जमीन माफिया पर केस दर्ज हैं? किसकिस के खिलाफ अदालत से वारंट जारी हुआ है? किसकिस थाने में कितनों के खिलाफ मामले दर्ज हैं और उस का केस नंबर क्या है? किस तारीख को किनकिन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है?

एक ताजा मामले में बिल्डर अब्दुल खालिद के खिलाफ कोर्ट से जारी गिरफ्तारी वारंट को 6 महीने तक दबा कर रखने के आरोप में पटना के शास्त्री नगर थाने में तैनात दारोगा पर पुलिस महकमे ने कार्यवाही शुरू कर दी है. डीआईजी शालीन ने एसएसपी को आदेश दिया है कि उस दारोगा पर तुरंत कार्यवाही की जाए.

इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब 2 औरतें दारोगा के खिलाफ शिकायत ले कर डीआईजी के पास पहुंची थीं. उन औरतों ने कहा कि फ्लैट देने के नाम पर बिल्डर अब्दुल खालिद ने उस से लाखों रुपए ले लिए हैं, पर पिछले कई महीनों से वह फ्लैट देने में टालमटोल कर रहा है.

पुलिस ने जांच की, तो पता चला कि उस बिल्डर के खिलाफ पिछले 6 महीने से कोर्ट से वारंट निकला हुआ था, पर दारोगा उसे दबा कर बैठा रहा.

पटना में जिन बिल्डरों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, उन की समीक्षा की गई. दर्ज मामलों में अगर कोई बिल्डर जमानत पर है, तो उस के बेलर की जांच की जाएगी. बिल्डर अनिल सिंह का मामला सामने आने के बाद सभी बिल्डरों पर दर्ज मामलों की लिस्ट तैयार की जा रही है.

29 मामले ऐसे सामने आए हैं, जिन की पड़ताल की जा रही है. जांच में अगर पाया गया कि किसी ने फर्जी बेलर के जरीए जमानत ली है, तो बिल्डर के खिलाफ धोखाधड़ी का नया केस भी दर्ज किया जाएगा. बेलर के खिलाफ भी गलत जानकारी देने का केस दर्ज होगा.

28 अप्रैल, 2016 को एक्जिबिशन रोड पर एक जमीन को ले कर पैदा हुए विवाद में अनिल सिंह और लोकल लोगों के खिलाफ जम कर मारपीट और आगजनी हुई थी. वारदात के बाद बिल्डर और उस के गुरगों के खिलाफ गांधी मैदान थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी. वारदात के बाद ही अनिल सिंह फरार हो गया था, पर उस के पिछले रिकौर्ड की जांच में पुलिस ने पाया कि पिछले 2 मामलों में उस के बेलर ने गलत जानकारी दी थी.

गांधी मैदान थाने में दर्ज केस नंबर 331/2014 में जमानत पर चल रहे अनिल सिंह के बेलर नरेंद्र उर्फ नरेश कुमार चौधरी की खोज शुरू हुई. बेल बौंड में नरेश का पता आकाशवाणी रोड, आशियाना मोड़, राजीव नगर, पटना लिखा हुआ है. पुलिस ने जब उस पते पर नरेश कुमार की खोज की, तो उस नाम का कोई आदमी ही नहीं मिला.

इसी तरह आलमगंज थाने में दर्ज केस नंबर 211/2013 के मामले में भी अनिल सिंह ने फर्जी तरीके से जमानत ली है. कोर्ट को गुमराह करने और फर्जी तरीके से जमानत लेने के मामले में अनिल सिंह पर स्पीडी ट्रायल चलेगा.

यह केस हत्या की कोशिश, मारपीट और आर्म्स ऐक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

सांसद मनोज तिवारी भी फंसे?

भारतीय जनता पार्टी के सांसद और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी पर रियल ऐस्टेट कंपनी का गलत प्रचार करने के आरोप में पटना के गांधी मैदान थाने में केस दर्ज किया गया है. मनोज तिवारी समेत रियल ऐस्टेट कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर और डायरैक्टर समेत 9 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ है.

मनोज तिवारी इस कंपनी के ब्रांड अंबैसडर हैं. यह केस पटना हाईकोर्ट के वकील चंद्रभूषण वर्मा की बीवी मीना रानी सिन्हा ने दर्ज कराया है. उन्होंने बताया कि कंपनी ने बिना खरीदे ही जमीन बेच डाली. जब वे अपनी जमीन पर कब्जा करने मनेर गईं, तो पता चला कि वह जमीन कंपनी की नहीं है. कंपनी ने वादा किया था कि जमीन नहीं देने की हालत में वह सूद के साथ पूरी रकम वापस करेगी. वे कंपनी से पिछले कई महीनों से अपनी मूल रकम 6 लाख, 58 हजार वापस मांग रही हैं, पर कंपनी रकम नहीं दे रही है.

इस बारे में मनोज तिवारी ने बताया कि वे पिछले 10 सालों से इस कंपनी के ब्रांड अंबैसडर हैं. अगर किसी की शिकायत सही है, तो वे समस्या का निबटारा करते हैं. एक शिकायतकर्ता का पैसा वापस करने के लिए चैक तैयार किया गया है और किसी की कोई शिकायत होगी, तो उस का भी निबटारा किया जाएगा

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