दूरियां – भाग 2 : क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

वैसे तो मु  झे उस के छूने से, उस के करीब आने से एक नैसर्गिक प्रसन्नता और तृप्ति मिलती थी, लेकिन उन दिनों औफिस के माहौल से बहुत परेशान थी. घर आते ही मन करता था नील के कंधे पर सिर रख कर औफिस की भड़ास निकाल कर थोड़ा रोने का. लेकिन उसे आधे घंटे में ट्यूशन पढ़ाने निकलना होता था. मेरे आते ही वह मु  झे बांहों में खींच कर चूमने लगता.

उस दिन कुछ तबीयत ठीक नहीं थी और औफिस में भी कुछ अधिक ही कहासुनी हो गई. भरी बैठी थी. अत: उस के करीब आते ही सारा आक्रोश उस पर निकल गया. धक्का देते हुए बोली, ‘‘इस तन के अलावा और कुछ नहीं सू  झता क्या?’’

वह ठिठक गया. फिर एकदम पलट कर बाहर चला गया.

रात को 12 बजे तक आता था और मेरी नींद न खुले, इसलिए ड्राइंगरूम में ही सो जाता

था. उस रात भी उस ने ऐसा ही किया. सुबह जब मेरी आंख खुली वह तैयार हो कर औफिस जा रहा था. बिना कुछ खाए और बोले वह चला गया. शाम को मेरे आने से 1 घंटा पहले घर आ जाता था और मेरे आते ही हम आधा घंटा अपनी तनमन की सब बातें करते थे. इस के अलावा हमारे पास एकदूसरे के लिए समय नहीं होता था. लेकिन अब मेरे आने से पहले वह निकल जाता था. रोना तो बहुत आता था, पर मैं सही थी. उस के पास मु  झ से बात करने के लिए 2 पल भी नहीं होते थे.

वह खड़ा हो गया. मेरे कंधों को जोर से पकड़ चीखते हुए बोला, ‘‘तुम ने उस दिन मेरे प्रेम को गाली दी, जीवन में अगर अपने से अधिक किसी को प्यार किया तो वह तुम हो. अगर केवल तुम्हारे तन का भूखा होता तो कालेज में 3 साल तक बिना हाथ लगाए नहीं रहता. मन तो तब बहुत मचलता था, लेकिन वादा किया था कि तुम्हारी इज्जत से कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा. वही तो आधा घंटा मिलता था करीब आने का. सारा दिन बीत जाता तुम्हारे बारे में सोचतेसोचते… तुम्हारे नजदीक आ कर पूर्णता का एहसास होता, स्फूर्ति आ जाती, दुनिया का सामना करने की ताकत मिल जाती. मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति थी वह, तुम में समा कर इतने गरीब हो जाने का एहसास था कि लगता हम एक हैं.’’

उस ने मेरे कंधे छोड़ दिए, आवाज थरथरा रही थी. आंखों में दर्र्द था और वह लड़खड़ाते हुए बाथरूम में चला गया. मेरा मन भारी हो गया. उस की नजरों से कभी सोचने की कोशिश नहीं की. दोनों एकदूसरे का साथ चाहते थे, लेकिन अलगअलग तरीके से. जीवन की भागदौड़ में समय इतना कम जरूरतें इतनी अधिक सब बिखर गया. बात केवल इन गलतफहमियों के कारण बिगड़ी होती तो शायद संभल जाती, लेकिन हमारे रिश्ते में धोखा और   झूठ भी शामिल हो गए थे. कमरे में जा कर लेट गई और रोतेरोते कब सो गई पता नहीं चला.

सुबह फिर बाहर के दरवाजे के खुलने की आवाज से आंख खुली. ताला कुछ सख्त लगता है. कमरे से बाहर आई तो नील खानेपीने का सामान ले कर आया था. चेहरे पर वही उस की चिरपरिचित मुसकान. कितने भी गुस्से में हो बहुत जल्दी सामान्य हो जाता है, मैं बातों को मन में रख कर अपना भी दिमाग खराब कर लेती हूं और दूसरों से भी चिढ़ कर बात करने लगती हूं.

‘‘नीलू, आज गरमगरम कौफी पीते हैं… नीचे कुछ खानेपीने की दुकानें खुल गई हैं,’’ कह मैं जल्दी से मंजन कर आई. फिर हम कल की तरह बालकनी में फर्श पर बैठ कर नाश्ता करने लगे.

नील आसमान की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘यहां से

सुबहशाम आसमान की छटा कितनी निराली दिखती है. अद्भुत नजारा है. अगर हम साथ रहते तो कितना अच्छा लगता. रोज यहां बैठ कर बातें करते.’’

कह तो सही रहा था, लेकिन जो नहीं हो सकता मैं उस के बारे में बात नहीं करना चाहती. नाश्ते में एक पेस्ट्री भी रखी थी. हम अकसर छोटी से छोटी खुशी सैलिब्रेट करने के लिए मीठे में एक पेस्ट्री ले आते थे, दोनों आधीआधी खा लेते थे.

‘‘यह पेस्ट्री किस खुशी में?’’

‘‘याद है आज ही के दिन हमें मिले 4 महीने हुए थे और तुम ने मेरे साथ डेट पर जाना स्वीकार कर लिया था.’’

‘‘तुम भी कमाल करते हो न जाने कैसी छोटीछोटी बातें याद रख लेते हो. वह डेटवेट नहीं थी. कालेज कैंटीन में बैठ कर कौफी पी थी बस.’’

‘‘केवल तुम से संबंधित बातें ही याद रख पाता हूं. कैंटीन में उस दिन साथ बैठ कर कौफी पीना एक महत्त्वपूर्ण कदम था. जब तुम पहले दिन कालेज आई थी तो हिरेन और मेरी तुम पर एकसाथ नजर पड़ी थी. दोनों के मुंह से निकला था कि वाह, कितनी खूबसूरत लड़की है. हम दोनों के दिल पर तुम ने एकसाथ दस्तक दी थी. हम ने निश्चय किया कि हम दोनों तुम्हें लाइन मारेंगे और जिस की तरफ तुम्हारा   झुकाव होगा, दूसरा रास्ते से हट जाएगा. उस दिन कैंटीन में कौफी पीते हुए यह खामोश ऐलान था कि तुम मेरी गर्लफ्रैंड हो.’’

मु  झे ये सब नहीं पता था, हिरेन ने शुरू में मु  झे प्रभावित करने की कोशिश तो की थी. नील गुलाब देता तो वह गुलदस्ता लाता. वह पैसे वाले घर से था, इसलिए महंगे तोहफे देता था, लेकिन मु  झे नील पहली नजर में ही भा गया था. उस के हंसमुख व्यवहार और केयरिंग ऐटिट्यूड के आगे सब फीका था. धीरेधीरे हम दोनों सम  झ गए थे कि हमारा एकदूसरे के बिना गुजारा नहीं और हमारे परिवार को हमारा साथ गवारा नहीं.

नील के ब्राह्मण परिवार को मेरे खानपान से दिक्कत थी तो मेरे मातापिता को नील की आर्थिक स्थिति खल रही थी. वैसे मेरे परिवार के पास भी कुछ खास नहीं था, लेकिन पिताजी को लगता अपनी बहनों की तरह मैं भी अपनी खूबसूरती के बल पर पैसे वाले घर में स्थान बना सकती हूं.

स्नातक करते ही हम दोनों ने शादी की और जो नौकरी मिली पकड़ ली. फिर किराए का घर ढूंढ़ना शुरू किया. क्व10-12 हजार से कम का कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा था. बहुत धक्के खा कर 2 कमरों का प्लैट क्व7 हजार किराए पर मिला, वह भी बस कामचलाऊ था. तब हम ने निर्णय लिया आगे सोचसम  झ कर जीवन की राह पर चलेंगे. पहले कुछ पैसे जमा करेंगे. अपना स्वयं का घर नहीं बन जाता तब तक परिवार नहीं बढ़ाएंगे.

शुरू की हमारी जिंदगी बड़ी खुशहाल रही, दोनों 6 बजे तक घर आ जाते. फिर बहुत बातें करते और सपने देखते. किराया देने के बाद अधिक नहीं बचता था, लेकिन एकदूसरे के साथ मस्त थे. फिर नील को लगा कुछ और पैसे कमाने के लिए ट्यूशन पकड़ लेनी चाहिए और मु  झे लगा पदोन्नति और अच्छे वेतन के लिए एम. कौम. कर लेना चाहिए. बस हम दोनों दौड़ में शामिल हो गए, एक बेहतरीन भविष्य की कामना में. इतने थके रहने लगे कि एकदूसरे के लिए समय नहीं होता. बस   झुं  झलाहट रहने लगी.

इस बीच नील का मन सीए की पढ़ाई करने का भी करता बीचबीच में. वह बहुत होशियार है. मु  झे कई बार लगता इतनी जल्दी शादी कर के कहीं पछता तो नहीं रहा. वह आगे पढ़ कर बहुत कुछ कर सकता था.

इस बीच नील के पिताजी का देहांत हुआ तो उस के बड़े भाई ने घर बेचने का निर्णय ले लिया. घर खस्ता हालत में था, फिर भाई को पैसे चाहिए थे फ्लैट खरीदने के लिए. वह दूसरे शहर में रहता था. नील की माताजी मेरे कारण हमारे साथ नहीं रहना चाहती थीं. मकान बेच कर जो रकम मिली उस के

3 हिस्से हुए. 2 हिस्से माताजी व भाई साहब के साथ चले गए. अपने हिस्से से हम ने भी फ्लैट बुक करा दिया. हमारी मुसीबतें और बढ़ गईं. जहां रहते थे उस का किराया, फ्लैट की किश्तें, फिर जिंदा रहने के लिए रोटी और कपड़ा भी जरूरी था. अब हमारे बीच खीज भी रहने लगी. ऐसा नहीं था हम हमेशा एकदूसरे से सड़े रहते थे. जब किसी का जन्मदिन या छुट्टी होती तो प्रेम भी खूब लुटाते, लेकिन अकसर एकदूसरे से बचते या चिढ़ कर बात करते.

मजबूरन मु  झे नौकरी भी छोड़नी पड़ी. वहां का माहौल बरदाश्त के बाहर हो गया था. नील को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा. लेकिन मेरी परेशानी सम  झते हुए कुछ बोला नहीं. उन्हीं दिनों हिरेन से फिर मुलाकात हुई. वह सीए कर चुका था और अपने पिता की फर्म में काम करता था. परेशान देख जब उस ने कारण पूछा तो पुराने दोस्त के सामने बाढ़ के पानी की तरह सारा उदगार तीव्रता से उमड़ पड़ा. उस ने तुरंत अपनी फर्म में बहुत अच्छे वेतन के साथ नौकरी का प्रस्ताव दे दिया और मैं ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. नील को यह बात भी अच्छी नहीं लगी, लेकिन इस बार वह चुप नहीं रहा.   झगड़ा किया और बहुत कुछ बोल गया.

उस समय सम  झ नहीं सकी थी नील के आक्रोश का कारण, लेकिन आज सम  झ गई. उस के स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी. अब हमारे बीच बोलचाल खत्म हो गई थी. मैं कुछ भी बोलने से डरती कि वह बखेड़ा न खड़ा कर दे. वह सामने पड़ते ही मुंह फेर कर इधरउधर हो जाता.

हिरेन के पास दिल्ली के बाहर कई दूसरे शहरों का भी काम था. वह अकसर बाहर जाता रहता था. मु  झे नौकरी करते हुए अधिक समय नहीं हुआ था, फिर भी मेरा नाम लखनऊ जाने वाली टीम में शामिल था.

असुविधा के लिए खेद है – भाग 3 : जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

आखिर वह कौन था? सेल्विना का बौयफ्रैंड? मगर क्यों? कनैक्शन क्यों जमा आखिर? अचानक अंधेरे में रोशनी की तरह अपना नेपाली दोस्त अनादि याद आया, कालेज में 3 साल हम अच्छे ही दोस्त थे. अब वह कोलकाता में ही रहता है और सिक्यूरिटी गार्ड सप्लाई संस्थान चलाता है. बैचलर है, घरपरिवार का झंझट नहीं, मेरी मदद कर पाएगा.

हमारे कालेज के वाल्सअप गु्रप में हम सभी जुड़े हैं और इस लिहाज से उस के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी मुझे थी. शाम के 6 बज रहे थे. मैं चल पड़ी उस के ठिकाने की ओर.

पहली मंजिल में उस का औफिस और दूसरी मंजिल में उस का घर था.

वह औफिस में ही मिल गया मुझे.

मुझे देख वह इतना खुश हुआ कि मुझे कुछ हद तक यह भी लगा कि मैं पहले ही इस से अपनी दोस्ती जारी रख सकती थी.

थोड़ी देर की बातचीत और कुछ स्नैक्सकौफी के बाद मैं मुद्दे पर आ गई. मैं ने उस से कहा, ‘‘अनादि, बात उतनी खतरनाक न सही, चिंता वाली तो है. मैं प्रोफैशनल तरीका अपना कर ज्यादा होहल्ला नहीं मचाना चाहती. बस जीजी की खुराफात बंद हो. मैं जानती हूं उस में बदले की भावना बचपन से ही कुछ ज्यादा है. अगर किसी पर उस ने टारगेट बना लिया तो उस की खैर नहीं.’’

मैं ने अपनी शादी और उस लड़के के इनकार की घटना बताई ताकि कुछ सूत्र मिल

सके अनादि को. सारी बातें सुन कर उस की दिलचस्पी जगी, कहा, ‘‘चलो कुछ तो खास

करने का मौका मिला वरना यह बिजनैस ऊबाने वाला है.’’

‘‘देखो, हमारे पास 2 पौइंट हैं. एक बदला जीजी का, दूसरा जीजू से पीछा छुड़ा कर किसी सुंदर लड़के के प्रेम में पड़ कर अपनी जिंदगी को अपनी मरजी से जीना, तो इन 2 बातों में से कौन सी के लिए जीजी इतनी डैस्परेट है?’’

‘‘आज रात को वह सेल्विना के बौयफ्रैंड को बुला रही है. सेल्विना के स्कूल में जीजी पेंटिंग्स सिखाती है.’’

‘‘बाप रे काफी मसले हैं. हमें क्या

करना है?’’

‘‘समस्या यह है कि जीजी के पास उस वक्त कैसे पहुंचा जाए जब जीजी का बुलाया व्यक्ति वहां मौजूद हो क्योंकि मुझे घर में

देखते ही वह पैतरा बदल देगी और विश्वास में

न लूं तो गेम डबल कर के मुझे उलझएगी.

बेहतर यही होगा कि उसे विश्वास दिलाया जाए कि हम से उसे कोई खतरा नहीं. तो एक बात

हो सकती है तुम मेरे बौयफ्रैंड बन कर मेरे साथ घर चलो.

‘‘जीजू के घर मम्मीपापा को छोड़ जब आ रही थी तो  तुम से मुलाकात हुई और कालेज के दिनों से मुझ से प्रेम करने वाले तुम अब मुझे पा कर खोना नहीं चाहते, जीजी हमारी शादी में मदद करे, मम्मीपापा और रिश्तेदारों को समझने में मदद करे. तो हम भी उन की करतूतों पर आंख मूंदे ही साथ रहे हैं,’’ मैं ने प्लान बताया जो जीजी से कहना था.

‘‘ऐसा क्या?’’ नेपाली बाबू ने मेरी ओर बड़ी गहरी दृष्टि डाली.

मुझे कुछ अटपटा लगा. फिर भी मैं ने

सहज रह कर बाकी बातें पूरी की, ‘‘जब

जानेगी कि हमें उस की जरूरत है तो वह हमारा भी फायदा उठाना चाहेगी, और वक्तवक्त पर हमें भी अपनी कारगुजारियों से अनजाने ही अवगत करा देगी. इस के लिए वह कुछ हद तक हमारी ओर से निश्चिंत रहेगी. वह मेरे इस प्रेम वाले कमजोर पक्ष की वजह से मेरी ओर से लापरवाह हो जाएगी क्योंकि उसे लगेगा कि अब मैं ही

खुद अपनी जरूरत के लिए उस के सामन

झकी रहूंगी.’’

अनादि सामान्य दिख रहा था. बोला, ‘‘ग्रेट आइडिया, लैट्स प्रोसीड.’’

रात 9 बजे जब मैं और अनादि घर पहुंचे अपनी चाबी से दरवाजा खोल हम अंदर गए, जीजी के कमरे में लाइट जल रही थी. दोनों बिस्तर पर व्यस्त थे.

लड़का मेरी ही उम्र का लगभग 27 के आसपास, गोरा स्मार्ट और बहुत खूबसूरत था.

हम ने अपना वीडियो कैमरा औन कर लिया.

हमें प्रमाण चाहिए था और इस के लिए ग्रिल वाली खिड़की और परदे की आड़ हमारे लिए काफी थी. जीजी बीचबीच में लड़के से बातें भी करती जाती.

‘‘सेल्विना को वापस जाने को कब कहोगे?’’

‘‘रहने दो न उसे, बेचारी का बहुत पैसा लगा है स्कूल में.’’

‘‘तो मैं तुम्हें कैसे पा सकूंगी. शादी कैसे होगी हमारी?’’

‘‘तुम बड़ी हो उस से 4 साल, मां नहीं मानेगी.’’

‘‘अच्छा तो सिर्फ  मजे के लिए मैं?’’ जीजी होश खो रही थी.

जीजी ने आगे कहा, ‘‘और वह नैकलैस लाए?’’

‘‘हां.’’

‘‘हीरे की लौकेट वाला न?’’

‘‘हां बाबा.’’

‘‘कल, 20 हजार ट्रांसफर करने को बोला था बैंक में. किए?’’

‘‘करता हूं.’’

‘‘अभी करो.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है?’’

‘‘फिर इस वीडियो को देखो, सेल्विना तो क्या हर जगह पहुंच जाएगा. अच्छा लगेगा?

तुम्ही बताओ?’’

तनय वीडियो देख कर तनाव में आ कर उठ बैठा, ‘‘तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?’’

‘‘नहीं तनय. मैं तो बस सावधान कर रही हूं, सुख मुझे अकेले नहीं मिल रहा है, तुम्हें भी मिल रहा है, तो कुछ तो चुकाओगे न?’’

तनय ने मोबाइल से तुरंत रुपए ट्रांसफ र कर दिए. जीजी शातिर गेम खेल सकती है, मैं जानती नहीं थी. मैं उलझती ही जा रही थी.

हम ने कैमरा बंद कर दरवाजा खटखटाया. दोनों संभल गए. कुछ देर बाद जीजी ने कमरे का दरवाजा खोला.

हम ने अपनी तय बातें उन के सामने रखीं. जैसाकि पहले से मालूम था वह भी इसी शर्त पर हमारी शादी में मदद को राजी हुई कि घर पर वे कुछ भी करें, हम उस के मामले में न दखल दें, न ही किसी से कुछ कहें.

हम ने उस का आभार माना और अपने कमरे में चले आए. 10 मिनट में अनादि चला गया. तनय भी थोड़ी देर बाद चला गया.

जीजू यानी निहार का संदेश मिला, ‘‘कब आओगी ईशा? साथ ही फोटो भी लाना. वाकई, जीजू ने कमाल किया. बेहद स्मार्ट और स्लिम हो गए. सच प्यार में बड़ी शक्ति है. उन की तसवीर देख चकित थी.’’

पता कर लिया था कि उन्होंने पार्कस्ट्रीट की एक कालोनी में सेल्विना के साथ मिल कर फ्लैट खरीदा था और सेल्विना के साथ तब तक लिवइन में था, जब तक न सेल्विना को भारतीय नागरिकता मिले और उस से कानूनी प्रक्रिया के तहत शादी हो जाए.

अनादि ने मुझे पता करने को कहा कि जीजी का इस तनय के साथ पहले से फेसबुक और चैटिंग का कोई रिश्ता है क्या?

जीजी से यह पूछने की फिराक में थी कि अनादि का संदेश आया, ‘‘ईशा क्या

मेरी बनोगी? बड़ा मिस करने लगा हूं यार तुम्हें.’’

‘‘यह क्या? जीजी के केस के बीच यह नया गेम क्या है?’’

5 फुट 7 ईंच का अनादि देखनेभालने में गोरा, सीधा, सरल नेपाली नहीं. कहती कि मुझे

5 फुट 7 ईंच की हाइट की लड़की के साथ बिलकुल नहीं जमेगा. लेकिन मैं तो…

मैं मन ही मन झल्ला गई. पर कोई जवाब नहीं दिया. क्या पता नहीं क्यों उसे दुखी कर

पाई. उस का हंसता सा चेहरा मेरी आंखों के आगे घूम गया.

खुशियों के फ़ूल -भाग 2 : किस बात से डर गए थे निनाद और अम्बा

“मिस्टर निनाद, आप और आपकी वाइफ कोरोना पोजिटिव आए हैं, लेकिन आपके सिम्टम्स बहुत माइल्ड हैं. इसलिए आप दोनों को अपने घर पर ही सेल्फ क्वॉरेंटाइन में रहना होगा. यह रही

निनाद  बात बात पर उसे अपने से कम हैसियत के परिवार का तायना देता.गाहे बगाहे  वह मां से मिलने जाती तो उस से लड़ता. मामूली बातों पर उससे उलझ पड़ता. बात बात पर उसे झिड़कता.

अम्बा  एक बेहद सुलझी हुई, समझदार और मैच्योर युवती  थी. वह भरसक निनाद को अपनी ओर से कोई मौका नहीं देती कि वह क्रुद्ध  हो लेकिन दुष्ट निनाद  किसी न किसी बात पर उससे रार  कर ही बैठता.

निनाद अम्बा  के विवाह को तीन  वर्ष बीत  चले.पति के खुराफ़ाती स्वभाव से त्रस्त अम्बा  कभी-कभी सोचती, पति से अलग होकर उसे इस यातना से मुक्ति मिल जाएगी.जिस दिन गले तक निनाद के दुर्व्यवहार से भर जाती, मां से अपनी व्यथा कथा साझा  करती.उससे अलग होने की मंशा जताती. लेकिन पुरातनपंथी मां हर बार उसे धीरज रखने की सलाह देकर चुप करा कर वापस अपने घर भेज देती.

एक  दिन लेकिन हद ही हो गई. उस दिन अम्बा  मां के घर से लौटी ही थी, कि रात के आठ  बजे तक टेबल पर डिनर सर्व ना होने की फ़िजूल सी बात पर निनाद उस पर गुस्से से फट पड़ा और उस दिन निनाद का बेवजह गुस्से से चीखना चिल्लाना सुन अम्बा  का धैर्य जवाब दे गया. वह उल्टे पैरों वापस मां के घर चली आई. बहुत सोच विचार कर मां के यहां एक माह  रहने के बाद उसने निनाद को फोन करके कहा “निनाद, अब मैं यहां माँ के साथ ही रहूँगी. तुम्हारे घर नहीं लौटूंगी. मुझे तुमसे तलाक चाहिए.’’

अम्बा की यह बात सुनकर निनाद अतीव क्रोध से बिफर उठा. अम्बा की तलाक की मांग उसे अपने पौरुष पर प्रहार लगी. सो गुस्से से भड़कते हुए वह चिल्लाया, “शौक से रहो माँ के साथ.मैं भी तुम्हारे बिना मरा नहीं जा रहा. जब चाहोगी तलाक मिल जाएगा.’’

मन ही मन समझता था कि वह पत्नी के साथ ज्यादती कर रहा है लेकिन अपने पुरुषोचित, अड़ियल  और अहंवादी  स्वाभाव से मजबूर था.

अम्बा तलाक की कार्यवाही शुरू करने के लिए एक अच्छे वकील की तलाश में जुट गई थी. अम्बा को माँ के यहां आए तीन माह हो चले थे.तभी अम्बा को एक अच्छी महिला वकील मिल गई थी और वह उससे मिलने ही वाली थी कि तभी  उन्हीं दिनों लंदन में एक कॉन्फ्रेंस में दोनों को जाना पड़ा. कॉन्फ्रेंस अटेंड कर एक ही फ़्लाइट से वे दोनों अपने देश लौटे ही थे कि लंदन में कोरोना  के प्रकोप के चलते  अपने शहर के एयरपोर्ट पर निनाद को हल्का बुखार निकला. फिर हौस्पिटल में दोनों का कोरोना का टेस्ट हुआ और उसमें  दोनों कोरोना पॉजिटिव निकले

कि तभी निनाद की  पुकार से उसकी तंद्रा टूटी और वह वर्तमान में वापस आई और दौड़ी-दौड़ी निनाद के पास गई.

निनाद आंखें बंद कर लेटा हुआ था.”अम्बा,  मेरे पास बैठो.  मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा.”

” कैसा लग रहा है निनाद?”

”  बहुत कमजोरी लग रही है और घबराहट हो रही है.”

“अरे घबराने की क्या बात है?  चलो मैं तुम्हारे लिए गर्मागर्म टमेटो सूप बनाकर लाती हूं.सूप पीकर तुम बेहतर फ़ील करोगे,” यह कहकर अम्बा  रसोई में जाकर दस  मिनट में सूप बनाकर ले आई.

” अम्बा,  हम दोनों ठीक तो हो जाएंगे ना?”

” हां हां बिल्कुल ठीक हो जाएंगे. डाक्टर ने कहा था न, हम दोनों के ही सिमटम्स बहुत माइल्ड हैं. डरने की कोई बात नहीं है. तुम सोने की कोशिश करो. सो लोगे तो बेहतर फील करोगे.”

” तुम भी जा कर आराम करो. तुम्हें भी तो थकान हो रही होगी.”

” नहीं नहीं, मेरा इंफेक्शन  शायद  कुछ ज्यादा ही माइल्ड है. मुझे कुछ गड़बड़ फील नहीं हो रहा. तुम सो जाओ.”

तभी निनाद ने अपना हाथ बढ़ाकर अम्बा का हाथ थाम उसे जकड़ लिया और उसे खींच कर अपने पास बिठाते हुए उससे बेहद मीठे स्वरों में बोला, “मुझसे नाराज़ हो? मैं अपनी पिछली गलतियों को लेकर बेहद शर्मिंदा हूं. मेरे पास बैठो. तुम मुझसे दूर चली जाती हो तो मुझे लगता है, मेरी जिंदगी मुझसे दूर चली गई. वापिस आजाओ अम्बा मेरी ज़िंदगी में. तुम्हारे बिना मैं बहुत अकेला हो गया हूँ.“ यह कह कर उसने उसकी  हथेली को चूम उसके हाथों को अपनी गिरफ़्त में जकड़ लिया.”

महीनों बाद पति के स्नेहिल स्पर्श और स्वरों  से अम्बा  एक अबूझ  मृदु ऐहसास  से भर उठी लेकिन दूसरे ही क्षण वह असमंजस से भर उठी. तीन वर्षों तक उसका दुर्व्यव्हार सह कर क्या अब उसे एक बार फिर उसके करीब आना चाहिए?

पति के हाथों को जकड़े जकड़े अम्बा  सोच रही थी, “काश, तुम पहले भी ऐसे ही रहते तो जिंदगी कितनी खुशनुमा होती.”

अगली सुबह निनाद  जब उठा तो उसके सर में तेज दर्द था. अम्बा  ने निनाद के फैमिली डॉक्टर को निनाद के चेकअप के लिए बुलाया. वह आए और निनाद  की हालत देख अम्बा  से बोले, “चिंता की कोई बात नहीं है. अभी भी इनके सिम्टम्स माइल्ड ही  हैं. हॉस्पिटलाइजेशन की जरूरत नहीं है. बस इन पर पूरे वक्त वॉच रखिए और तबीयत बिगड़े तो मुझे इन्फॉर्म करिए. आपको भी कोरोना का इंफेक्शन है. बेहतर होगा यदि आप एक नर्स रख लें.”

“नहीं-नहीं डॉक्टर, मैं बिल्कुल ठीक हूं.  ना मुझे कोई कमजोरी लग रही न ही कहीं दर्द है. आप निश्चिंत रहिए मैं इन पर पूरे वक्त वॉच रखूंगी.”

डाक्टर के जाने के बाद निनाद  ने अम्बा  से कहा, “तुम  इतना लोड लोगी तो तुम भी बीमार पड़ जाओगी. प्लीज कोई नर्स रख लो.”

“हां, इस बारे में सोचती हूं. तुम अभी सो जाओ.’’

अंधेरी रात का जुगनू – भाग 1: रेशमा की जिंदगी में कौन आया

शाम होते ही नया बना मकान रंगीन रोशनी से जगमगा उठा. मुख्यद्वार पर आने वाले मेहमानों का तांता लगा था. पूरा घर अगरबत्ती, इत्र और लोबान की खुशबू से महक रहा था. कव्वाली की मधुर स्वरलहरी शाम की रंगीनियों में चार चांद लगा रही थी. पंडाल से उठती मसालेदार खाने की खुशबू ने वातावरण को दिलकश बना दिया था.

तभी बाहर जीप रुकने की आवाज सुन कर एक 20-22 वर्ष की लड़की दरवाजे पर आ खड़ी हुई और दोनों हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘नमस्ते, चाचाजी.’’

‘‘जीती रहो, रेशमा बिटिया,’’ कहते हुए 2 अंगरक्षकों के साथ इलाके के विधायक रमेशजी ने मकान में प्रवेश किया.

पोर्च में खड़े हो कर मकान के चारों तरफ नजर डालते रमेशजी के चेहरे पर मुसकराहट खिलने लगी, ‘‘बिटिया, आज तुम ने अपने अब्बाजान का सपना पूरा कर के दिखला दिया. तुम्हारी हिम्मत और हौसले को देख कर लोग अब से बेटे नहीं बेटियां चाहेंगे.’’

रमेशजी की इस बात से रेशमा की आंखें नम हो गईं. खुद को संभालते हुए संयत स्वर में बोल उठी रेशमा, ‘‘चाचाजी, आप ने ही तो अब्बू की तरह हमेशा मेरा संबल बढ़ाया. मकान बनाते हुए आने वाली तमाम परेशानियों को सुलझाने में हमेशा मेरी मदद की.’’

‘‘बिटिया, तुम्हारे अब्बू इकबाल मेरा लंगोटिया यार था. उस की असमय मृत्यु के बाद उस के परिवार का खयाल रखना मेरा फर्ज था. मैं ने उसे निभाने की बस कोशिश की है. बाकी सबकुछ तुम्हारे साहस और धैर्य के सहारे ही संभव हो सका है.’’

‘‘चाचाजी, चलिए, खाना टेबल पर लग गया है,’’ रेशमा के चाचा का बेटा आफताब बड़े आदरपूर्वक रमेशजी को खाने की मेज की तरफ ले गया.

रेशमा की अम्मी खालेदा इकबाल ओढ़नी से सिर को ढके परदे के पीछे से चाचाभीतीजी का वात्सल्यमयी वार्तालाप सुन रही थीं और रेशमा को घर के इस कोने से उस कोने तक आतेजाते, मेहमानों का स्वागत करते हुए गृहप्रवेश की मुबारकबाद स्वीकारते हुए भीगी आंखों से मंत्रमुग्ध हो कर देख रही थीं. तभी मेहमानों की भीड़ से उठते कहकहों ने उन्हें चौंकाया और वे दुपट्टे के छोर से उमड़ते आंसुओं को पोंछ कर, अतीत की यादों के चुभते नश्तर से बचने के लिए मेहमानों की गहमागहमी में खो जाने का असफल प्रयास करने लगीं.

देर रात तक मेहमानों को विदा कर के बिखरे सामान को समेट और मेनगेट पर ताला लगा कर ज्योंही वे भीतर जाने लगीं, ऐसा लगा जैसे इकबाल साहब ने आवाज दी हो, ‘फिक्र न करना बेगम, धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. आज सिर पर छत का साया मिला है, कल रेशमा की शादी, फिर बेटों की गृहस्थी…’

वे चौंक कर पीछे पलटीं तो दूर तक रात की नीरवता के अलावा कुछ भी न था. कहां हैं इकबाल साहब? यहां तो नहीं हैं? कैसे नहीं हैं यहां? यही सोतेजागते, उठतेबैठते हर वक्त लगता है कि वे मेरे करीब ही बैठे हैं. बातें कर रहे हैं. विश्वास ही नहीं हो रहा है कि अब वे हमारे बीच नहीं हैं. बिस्तर पर पहुंचने तक बड़ी मुश्किल से रुलाई रोक पाई थीं रेशमा की अम्मी. दिनभर का रुका हुआ अवसाद आंखों के रास्ते बह निकला. बहुत कोशिशें कीं बीते हुए तल्ख दिनों को भूल जाने की लेकिन कहां भूल पाईं वे.

इकबाल साहब की मौत के बाद हर दिन का सूरज नईनई परेशानियों की तीखी किरणें ले कर उगता और उन की हर रात समस्याओं के समाधान ढूंढ़ने में आंखों ही आंखों में कट जाती. दर्द की लकीरें आंसुओं की लडि़यां बन कर आंखों में तैरती रहतीं.

8 भाईबहनों में 5वें नंबर के इकबाल की शिक्षा माध्यमिक कक्षा से आगे संभव न हो सकी थी. लेकिन कलाकार मस्तिष्क ने 14 साल की उम्र में ही टायरट्यूब खोल कर पंचर बनाने और गाडि़यां सुधारने का काम सीख लिया था. भूरी मूछों की रेखाओं के काली होने तक पाईपाई बचा कर जोड़ी गई रकम से शहर की मेन मार्केट में टायरों के खरीदनेबेचने की दुकान खरीद ली. शाम होते ही दुकान पर दोस्तों का मजमा जमता, ठहाके लगते. शेरोशायरी की महफिल जमती. सालों तक दोस्तों के साथ इकबाल साहब के व्यवहार का झरना अबाध गति से बहता रहा. उन की 2 बेटियां और छोटे भाई के 2 बेटों के बीच गहरा प्यार और अपनापन देख कर रिश्तेदारों और महल्ले वालों के लिए फर्क करना मुश्किल हो जाता कि कौन से बच्चे इकबाल साहब के हैं और कौन से उन के भाई के. खुशियां हमेशा उन के किलकते परिवार के इर्दगिर्द रहतीं.

अकसर एकांत के क्षणों में इकबाल साहब खालेदा का हाथ अपने हाथ में ले कर कहते, ‘बेगम, मेरा कारोबार और ट्यूबलैस टायर बनाने की टेकनिक टायर कंपनी को पसंद आ गई तो मैं खुद डिजाइन बना कर एक आलीशान और खूबसूरत सा घर बनाऊंगा जिस के आंगन में गुलाबों का बगीचा होगा. सब के लिए अलगअलग कमरे होंगे और छत को, आखिरी सिरे तक छूने वाले फूलों की बेल से सजाऊंगा.’

रेशमा अकसर अपनी ड्राइंगकौपी में घर की तसवीर बना कर पापा को दिखाते हुए कहती, ‘पापा, मेरी गुडि़या और डौगी के लिए भी अलग कमरे बनवाइएगा.’

सुन कर इकबाल साहब हंस कर मासूम बेटी को गले लगा कर बोलते, ‘जरूर बनाएंगे बेटे, अगर लंबी जिंदगी रही तो आप की हर ख्वाहिश पूरी करेंगे.’

‘तौबातौबा, कैसी मनहूस बातें मुंह से निकाल रहे हैं आप. आप को हमारी उम्र भी लग जाए,’ रेशमा की अम्मी ने प्यार से झिड़का था शौहर को.

ठंडी सांस भर कर सोचने लगीं, शायद उन्हें आने वाली दुर्घटनाओं का पूर्वाभास हो चुका था. तभी तो तीसरे ही दिन हट्टेकट्टे इकबाल साहब सीने के दर्द को हथेलियों से दबाए धड़ाम से गिर पड़े थे फर्श पर. देखते ही गगनभेदी चीख निकल गई थी रेशमा की अम्मी के मुंह से.

‘पापा की तबीयत खराब है,’ सुन कर तीर की तरह भागी थी रेशमा कालेज से.

घर के दालान में लोगों का जमघट और कमरे में पसरा पड़ा जानलेवा सन्नाटा. बेहोश अम्मी को होश में लाने की कोशिशें करती पड़ोसिन, हालात की संजीदगी से बेखबर सहमे से कोने में खड़े दोनों चचाजान, भाई और फर्श पर पड़ा अब्बू का निर्जीव शरीर. घर का दर्दनाक दृश्य देख कर रेशमा की निस्तेज आंखें पलकें झपकाना ही भूल गईं और पैर बर्फ की सिल्ली की तरह जम गए.

दामाद: अमित के सामने आई आशा की सच्चाई

अमित आज शादी के बाद पहली बार अपनी पत्नी को ले कर ससुराल जा रहा था. पढ़ाईलिखाई में अच्छा होने के चलते उसे सरकारी नौकरी मिल गई थी. सरकारी नौकरी लगते ही उसे शादी के रिश्ते आने लगे थे. उस के गरीब मांबाप भी चाहते थे कि अमित की शादी किसी अच्छी जगह हो जाए. अमित के गांव के एक दलाल ने उस का रिश्ता पास के शहर के एक काफी अमीर घर में करवा दिया. अमित तो गांव की ऐसी लड़की चाहता था जो उस के मांबाप की सेवा कर सके लेकिन पता नहीं उस दलाल ने उस के पिता को क्या घुट्टी पिलाई थी कि उन्होंने तुरंत शादी की हां कर दी.

सगाई होते ही लड़की वाले तुरंत शादी करने की कहने लगे थे और अमित के पिताजी ने तुरंत ही शादी की हां भर दी. शादी से पहले अमित को इतना भी मौका नहीं मिला था कि वह अपनी होने वाली पत्नी से बात कर सके. अमित की मां ने उस की बात को भांप लिया था और उन्होंने अमित के पिता से कहा भी कि अमित को अपनी होने वाली पत्नी को देख तो लेने दो, लेकिन उस के पिता ने कहा कि शादी के बाद खूब जीभर के देख लेगा.

खैर, शादी हो गई और अमित को दहेज में बहुतकुछ मिला. लड़की वाले तो अमित को कार भी दे रहे थे लेकिन अमित ने मना कर दिया कि वह दहेज लेने के भी खिलाफ है लेकिन उस के पिताजी के कहने पर वह मान गया. सुहागरात को ही अमित को कुछकुछ समझ में आने लगा था क्योंकि उस की नईनई पत्नी बनी आशा ने न तो उस के मातापिता की ही इज्जत की थी और न ही सुहागरात को उस ने अमित को अपने पास फटकने दिया था.

अमित ने आशा से भी कई बार पूछा भी कि तुम्हारी शादी मुझ से जबरदस्ती तो नहीं की गई है लेकिन आशा ने कोई जवाब नहीं दिया. शादी के तीसरे दिन अमित अपनी मां और पिताजी के कहने पर एक रस्म के मुताबिक आशा को छोड़ने ससुराल चल दिया.

अमित और आशा ट्रेन से उतर कर पैदल ही चल दिए. अमित की ससुराल रेलवे स्टेशन के पास ही थी. रास्ते में आशा अमित से आगे चलने लगी. अमित ने देखा कि 2 लड़के मोटरसाइकिल पर उन की तरफ आ रहे थे. वे आशा को देख कर रुक गए और आशा भी उन को देख कर काफी खुश हुई.

अमित जब तक आशा के पास पहुंचा तब तक वे दोनों लड़के उस की तरफ देखते हुए चले गए. आशा के चेहरे पर असीम खुशी झलक रही थी. अमित के पास आने पर आशा ने अमित को उन लड़कों के बारे में कुछ नहीं बताया और अमित ने भी नहीं पूछा.

अमित अपनी ससुराल पहुंचा. वहां पर सब लोग केवल आशा को देख कर खुश हुए और अमित की तरफ किसी ने ध्यान भी नहीं दिया. आशा की मां उसे ले कर अंदर चली गईं और अमित बाहर बरामदे में खड़ा रहा. अंदर से उस के ससुर और दोनों साले बाहर आए.

अमित के ससुर ने पास ही रखी कुरसी की तरफ इशारा किया और बोले, ‘‘अरे, खड़े क्यों हो, बैठ जाओ.’’ अमित चुपचाप बैठ गया. उसे वहां का माहौल कुछ ठीक नहीं लग रहा था.

अमित के सालों ने तो उस की तरफ ध्यान भी नहीं दिया था. शाम होने को थी और अंधेरा धीरेधीरे बढ़ रहा था. अमित को फर्स्ट फ्लोर के एक कमरे में ठहरा दिया. अमित थोड़ा लेट गया और उस की आंख लग गई. नीचे से शोर सुन कर अमित की आंख खुली तो उस ने देखा कि अंधेरा हो चुका था और रात के 9 बज चुके थे.

अमित खड़ा हुआ और उस ने मुंह धोया. उस को हैरानी हो रही थी कि किसी ने उस से चाय तक की नहीं पूछी थी. अमित उसे अपना वहम समझ कर भूलने की कोशिश कर रहा था. लेकिन दिमाग तो उस के पास भी था इसलिए वह अपने ही विचारों में खोया हुआ था.

अब नीचे से जोरजोर से हंसने की आवाज आ रही थी. अमित के ससुर शायद किसी से बात कर रहे थे. अमित ने नीचे झांका तो पाया कि उस के ससुर और 2-3 लोग बरामदे में महफिल लगाए शराब पी रहे थे. अमित के ससुर बहुत शराब पी चुके थे इसलिए वे अब होश में नहीं थे.

वे बोले, ‘‘देखा मेरी अक्ल का कमाल. मैं ने अपनी बिगड़ैल बेटी की शादी कैसे एक गरीब लड़के से करा दी वरना आप लोग तो कह रहे थे कि इस बिगड़ी लड़की से कौन शादी करेगा,’’ इतना कह कर वे जोर से हंसे और बाकी बैठे दोनों लोगों ने भी उन का साथ दिया और उन की इस बात का समर्थन किया. अमित के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई.

तभी अमित की सास आईं और उस के ससुर के कान में कुछ बोलीं जिस को सुन कर वे तुरंत अंदर गए. अब अमित को समझ आ गया था कि उस के ससुर ने ही अपना रोब दिखा कर उस के पिताजी को डराया होगा और उस की शादी आशा से कर दी होगी. तभी उस के पिताजी उस की शादी में उस के सवालों के जवाब नहीं दे रहे थे.

अमित का सिर चकरा रहा था. वह तुरंत नीचे उतरा और अंदर कमरे के दरवाजे पर पहुंचा. अमित ने अंदर देखा कि आशा एक कोने में नीचे ही बैठी है और उस के ससुर उस के पास खड़े उसे डांट रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब वह किस के साथ अपना मुंह काला करा आई. अमित को तो अब बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था, ऐसा लगता था कि उस की शादी किसी बिगड़ैल लड़की से करा दी गई है और उस का परिवार भी सामाजिक नहीं है. तभी उस की सास ने आशा के बाल पकड़े और उस को मारने लगीं.

आशा बिलकुल चुप थी और वह अपनी पिटाई का भी बिलकुल विरोध नहीं कर रही थी. आशा की मां उसे रोते हुए मारे जा रही थीं. तभी पता नहीं अमित को क्या सूझा कि वह अंदर पहुंचा और अपनी सास से आशा को मारने को मना किया.

अमित को अंदर आया देख सासससुर घबरा गए. ससुर का तो नशा भी उतर गया था. वे समझ चुके थे कि अमित ने सब सुन लिया है. अमित के ससुर अब कुरसी पर बैठ कर रो रहे थे और उस की सास का भी बुरा हाल था. तभी अमित के ससुर एक झटके से उठे और कमरे से अपनी दोनाली बंदूक ले आए और आशा की तरफ तान कर बोले, ‘‘मैं ने इस की हर गलती को माफ किया है. बड़ी मुश्किल से मैं ने इस की शादी कराई है और अब यह मुंह काला करा कर पता नहीं किस का पाप अपने पेट में ले आई है. मैं इसे नहीं छोड़ूंगा.’’

तभी अमित ने उन के हाथों से बंदूक छीन ली और एक तरफ फेंक दी. वह बोला, ‘‘चलो आशा, मेरे साथ अपने घर.’’ आशा ने झटके से अपना चेहरा ऊपर उठाया. अमित की बात सुन कर उस के सासससुर भी चौंक गए.

अमित के ससुर बोले, ‘‘अमित, तुम आशा की इतनी बड़ी गलती के बावजूद उसे अपने साथ घर ले जाना चाहते हो?’’ अमित बोला, ‘‘आप सब लोगों के लाड़प्यार की गलती आशा ही क्यों भुगते. इस में इस की क्या गलती है. गलती तो आप के परिवार की है जो ऐसे काम को अपनी शान समझते हैं और उस को छिपाने के लिए मुझ जैसे लड़के से उस की शादी करवा दी.’’

अमित थोड़ी देर रुका और फिर बोला, ‘‘आशा की यही सजा है कि उसे मेरे साथ मेरी पत्नी बन कर रहना पड़ेगा.’’ यह सुन कर उस के ससुर ने उस के पैर पकड़ लिए लेकिन अमित ने उन्हें उठाया और आशा का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकल गया.

आशा अमित के पीछेपीछे हो ली. अमित के ससुर तो हाथ जोड़े खड़े थे. अमित और आशा पैदल ही जा रहे थे तभी उन्हें वही दोनों लड़के मिले जो उन्हें आते हुए मिले थे. अब की बार वे दोनों पैदल ही थे. आशा को देख उन में से एक बोला, ‘‘चलो आशा डार्लिंग, हम तुम्हारे पेट में पल रहे बच्चे को गिरवा देते हैं और फिर से मजे करेंगे.’’

इतना कह कर वे दोनों बड़ी बेहूदगी से हंसने लगे. उन में से एक ने आशा का हाथ पकड़ने की कोशिश की तो अमित ने उसे पकड़ कर अच्छीखासी धुनाई कर दी और जब दूसरा लड़का अपने साथी को बचाने आया तो आशा ने उस के बाल पकड़ कर नीचे गिरा दिया और लातों से अधमरा कर दिया. थोड़ी देर में वे दोनों ही वहां से भाग खड़े हुए. आशा का साथ देना अमित को अच्छा लगा था. अमित ने आशा का हाथ पकड़ा और रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े.

घर पहुंच कर अमित ने अपने मां और पिताजी को कुछ नहीं बताया. अब आशा ने अमित के घर को इस तरह से संभाल लिया था कि अमित सबकुछ भूल गया. आशा ने जब उस के पेट में पल रहे बच्चे को गिराने की बात कही तो अमित ने कहा, ‘‘इस में इस मासूम की क्या गलती है…’’ आशा अमित के पैरों में गिर पड़ी और रोने लगी. अमित ने उसे उठाया और गले से लगा लिया. वह बोला, ‘‘आशा, तुम्हारे ये पछतावे के आंसू ही तुम्हारी पवित्रता हैं.’’

आशा अमित के गले लग कर रोए जा रही थी. दूर शाम का सूरज नई सुबह में दोबारा आने के लिए डूब रहा था.

ऐसे ही सही-भाग 1: क्यों संगीता को सपना जैसा देखना चाहता था

पार्किंग में अपना स्कूटर खड़ा कर के मैं इमरजेंसी वार्ड की तरफ बढ़ा. काफी पूछने पर पता चला कि जिस व्यक्ति को मैं ने यहां भरती कराया था वह अब आई.सी.यू. में है. रात को हालत ज्यादा बिगड़ जाने के कारण उसे वहां शिफ्ट कर दिया गया था. आई.सी.यू. चौथी मंजिल पर था. मैं लिफ्ट का इंतजार करने के बजाय तेजी से सीढि़यां चढ़ता हुआ वहां पहुंचा.

थोड़ा सा ढूंढ़ने पर मैं ने उन की पत्नी को एक कोने में मायूस गुमसुम बैठे देखा. मैं तेजी से उन के पास गया और उन का हाल पूछा. वह पहले तो मुझे अजनबियों की तरह देखती रहीं फिर याद आने पर मेरे साथ उठ कर एक तरफ आ कर फूटफूट कर रोने लगीं.

‘‘क्या हुआ. सब ठीक तो है न?’’ मैं थोड़ा चिंतित हो गया.

‘‘कुछ भी ठीक नहीं है. आप के जाने के बाद कई डाक्टर आए. कई टैस्ट किए फिर भी कमर से नीचे के हिस्से में कोई हरकत नहीं हो रही है. उन्हें रात को ही यहां शिफ्ट कर दिया गया था. बस, तब से यहीं बैठी हूं. क्या करूं…एकदम नया शहर और आते ही यह हादसा,’’  कह कर वह पुन: साड़ी का पल्लू मुंह में दबाए सिसकने लगीं. मेरी समझ में नहीं आ रहा था, मैं क्या कहूं.

सब से पहले मैं ने कैंटीन से चाय और बिस्कुट ला कर उन्हें दिए. लग रहा था जैसे रात से उन्होंने कुछ खाया नहीं है. उन के पास ही उन की 10 साल की बेटी बैठी हुई थी, जो थोड़ीथोड़ी देर में सहमे हुए मां का हाथ पकड़ लेती थी. उन के पास कुछ देर बैठ कर मैं डाक्टर से मिलने चला गया.

डाक्टर से पता चला कि उन की स्पाइनल कौर्ड में कोई गहरी चोट आई है जिस के कारण यह हादसा हुआ है. यह भी कह पाना मुश्किल है कि वह कब तक ठीक हो पाएंगे और ठीक भी हो पाएंगे या नहीं.

‘‘तो क्या यह उम्र भर यों ही पड़े रहेंगे,’’ मैं ने बेचैनी से पूछा.

‘‘अभी कुछ भी कहना संभव नहीं,’’ डाक्टर बोला, ‘‘कुछ विशेषज्ञ बुलाए हैं…शायद वे कुछ सलाह दे सकें.’’

‘‘तो आप उन्हें कब तक यहां आई.सी.यू. में रखेंगे?’’

‘‘ज्यादा से ज्यादा 3 दिन,’’ कह कर डाक्टर वहां से चला गया.

एक बीमा एजेंट होने के नाते उन की बीमारी के प्रति जानकारी रखना मेरे लिए स्वाभाविक बात थी. और तब ज्यादा जब सबकुछ मेरी आंखों के सामने हुआ.

कल दोपहर को आफिस जाते समय अचानक स्पीड ब्रेकर सामने आ गया तो मुझे तेजी से ब्रेक लगाने पड़े, क्योंकि स्पीड ब्रेकर ठीक से नहीं बना था. इतने में देखा कि एक तेज गति से आती वैन उस स्पीड ब्रेकर से टकराई और चलाने वाला व्यक्ति उछल कर बाहर जा गिरा. वैन सामने पेड़ से टकरा गई. यह हादसा मुझ से कुछ ही दूरी पर हुआ था.

मैं ने वहां जा कर उस व्यक्ति को  देखा जो मूर्च्छितावस्था में एक तरफ पड़ा हुआ था. मैं ने कुछ लोगों की सहायता से उसे एक आटोरिकशा में लिटाया और पास ही एक नर्सिंग होम में ले गया. उस व्यक्ति के सिर पर गहरी चोट का निशान था.

वहां मौजूद डाक्टरों को मैं ने पूरी घटना का विवरण दिया और उसे लिटा दिया. उस की जेब से एक परिचयपत्र निकला जिस पर उस के आफिस का पता और फोन नंबर लिखा था. पता चला कि वह एक सरकारी संस्थान में डिप्टी डायरेक्टर है और उस का नाम विनोद शर्मा है.

मैं ने उस संस्थान से उन के घर का फोन नंबर लिया और उन की पत्नी को इस हादसे के बारे में बताया. थोड़ी ही देर में वह वहां आ गईं. उन को सबकुछ बताने के बाद मैं ने उन से इजाजत मांगी. वह मन भर कर बोलीं, ‘‘मैं आप की बहुत शुक्रगुजार हूं कि आप ने इन्हें यहां तक पहुंचा दिया, वरना आज के व्यस्त जीवन में कौन ऐसा करता है.’’

‘‘अरे, यह तो मेरा फर्ज था. बस, यह ठीक हो जाएं तो समझूंगा कि मेरा लाना सफल हुआ.’’

‘‘एक मेहरबानी और कर दीजिए,’’ वह कहने लगीं, इन की गाड़ी किसी तरह घर पहुंचा दीजिए…जो भी खर्च आएगा, मैं दे दूंगी.’

‘‘ठीक है, मैम, अभी तो देखना होगा कि वह चलने लायक है या नहीं,’’ कह कर मैं ने अपने एक परिचित को वर्कशाप में फोन कर के गाड़ी को वहां से निकालने का इंतजाम किया. बीमा एजेंट होने के नाते यह सब काम करना, करवाना मैं अच्छी तरह जानता था.

इस सारी प्रक्रिया से निबट कर मैं जब घर पहुंचा तो 8 बज चुके थे. संगीता ने दरवाजा खोलते ही अपने चिरपरिचित स्वर में मुंह बना कर कहा, ‘‘तो आज क्या बहाना है देर से आने का?’’

इतना सुनना था कि मेरा मन  कसैला हो गया. उस का यह स्वभाव और व्यवहार सर्पदंश की तरह मुझे हर बार डंस जाता. मेरे विवाह को 4 साल हो चुके थे और इन 4 सालों में मैं ने कभी उस के मुंह से फूल झड़ते नहीं देखे. हमेशा किसी न किसी बात को ले कर वह ताने देती रहती थी.

शुरुआत में मैं ने बड़ी कोशिश की कि उस के पास बैठ कर कोई प्यार की बात कर सकूं. मगर हर बात मायके से शुरू हो कर मायके पर ही खत्म होती. बातों को तूल न देने के लिए मैं खामोश हो जाता और इस खामोशी का उस ने भरपूर फायदा उठाया.

हद तो तब हो गई जब मेरी सास और साली ने मुझ पर संगीता को खुश रखने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. उसे अच्छे कपडे़े, जेवर और घुमानेफिराने, घर जल्दी लौटने का सिलसिलेवार क्रम भी उन्होंने ही तय कर दिया. मैं हर बात का जवाब देना जानता था पर मर्यादाओं में रह कर और वह अमर्यादित हो चुकी थी.

‘‘यह बात तो तुम प्यार से भी पूछ सकती हो. पर मेरे किसी उत्तर से तुम संतुष्ट तो होगी नहीं इसलिए कोई बहाना नहीं बनाऊंगा,’’ मैं ने मेज पर अपना बैग रखते हुए बड़ी नरमी से कहा.

‘‘5 बजे तुम्हारा आफिस बंद हो जाता है और 7 बजे से पहले तुम कभी आते नहीं हो. सुबह भी 8 बजे चले जाते हो. तुम से तो मजदूर अच्छे होते हैं जिन का कोई समय तो होता है.’’

‘‘तो फिर किसी मजदूर से ही शादी कर लेतीं. वह तुम्हारे घर वालों के इशारों पर नाचता और समय पर आ भी जाता. तुम्हें अच्छी तरह मेरे काम और व्यक्तिगत संपर्क के बारे में पता है.’’

‘‘पता नहीं तुम्हारी कौन सी बात से प्रभावित हो कर पापा ने शादी के लिए हां कर दी. आज इस घर में जो कुछ भी है, पापा का दिया हुआ है वरना तुम तो उन के सामने खड़े भी नहीं हो सकते.’’

‘‘जानता हूं…तभी तो तुम्हारी मां से सारा दिन ताने और आदेश सुनने पड़ते हैं. सभी कुछ तो हमारे घर पर था. कमी किस बात की थी. तुम्हीं ने जिद कर के मुझे अलग कर दिया था. सुखसुविधाओं को जुटा लेने से भी कहीं गृहस्थी चलती है. पहले पति से नहीं बनी तो मेरे पल्ले बांध दिया…और यह बात भी हम से छिपा ली. तुम ने अलग किया है तो घरगृहस्थी के सामान की व्यवस्था भी तुम करोगी. मैं ने तो पहले ही कह दिया कि…’’

‘‘मेरे पास तो कुछ भी नहीं है. यही न. कौन से मांबाप अपनी बच्ची को ऐसी हालत में देख सकते हैं. तुम्हारे मांबाप ने क्या किया,’’ वह बात काट कर तेज आवाज में बोली

‘‘उन्होंने अपने इकलौते बेटे की जुदाई का गम सहन किया…’’ कहतेकहते मेरी आंखें भर आईं और मैं बिना कोई बात किए दूसरे कमरे में चला गया. मेरा मौन हमेशा कह देता कि शादी की कीमत चुका रहा हूं.

हमारी रातें यों ही करवटें बदलते निकल जातीं और सुबह बिना किसी बात के…मैं ने मन ही मन यह फैसला किया कि टकराव की स्थिति पैदा न होने देने के लिए कम से कम घर पर रहूं.

एक दिन उत्सुकतावश मैं ने शर्माजी को फोन किया. पता चला कि उन की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है. अब उन्हें एक बडे़ प्राइवेट नर्सिंग होम में शिफ्ट कर दिया गया है जहां पर ज्यादा सुविधाएं थीं. देश के कई बडे़ डाक्टर उन्होंने अपनी जांच के लिए बुलवाए पर कोई फायदा नहीं हुआ. मैं उसी समय उन के नर्सिंग होम में पहुंचा. उन की हालत देख कर मन कसैला सा हो उठा.

दूरियां – भाग 1: क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

दीवाली में अभी 2 दिन थे. चारों तरफ की जगमगाहट और शोरशराबा मन को कचोट रहा था. मन कर रहा था किसी खामोश अंधेरे कोने में दुबक कर 2-3 दिन पड़ी रहूं. इसलिए मैं ने निर्णय लिया शहर से थोड़ा दूर इस 15वीं मंजिल पर स्थित फ्लैट में समय व्यतीत करने का. 2 हफ्ते पहले फ्लैट मिला था. बिलकुल खाली. बस बिजलीपानी की सुविधा थी. पेंट की गंध अभी भी थी.

मैं कुछ खानेपीने का सामान, पहनने के कपड़े, 1 दरी और चादरें लाई थी. शहर से थोड़ा दूर था. रिहायश कुछ कम थी. बिल्डर ने मकान आवंटित कर दिए थे. धीरेधीरे लोग आने लगेंगे. 5 साल पहले देखना शुरू किया था अपने मकान का सपना. दोनों परिवारों के विरोध के बावजूद नील और मैं ने विवाह किया था. अपने लिए किराए का घर ढूंढ़ते हुए बौरा गए थे. तब मन में अपने आशियाने की कामना घर कर गई. आज यह सपना कुछ हद तक पूरा हो गया है. लेकिन अब हमारी राहें जुदा हो गई हैं. यहां आने से पहले मैं वकील से मिलने गई थी. कह रहा था बस दीवाली निकल जाने दो, फिर कागज तैयार करवाता हूं.

मन अभी भी इस बात को स्वीकारने को तैयार नहीं था कि आगे की जिंदगी नील से अलग हो कर बितानी है. लेकिन ठीक है जब रिश्तों में गरमाहट ही खत्म हो गई हो तो ढोने से क्या फायदा? इतनी ऊंचाई से नीचे सब बहुत दूर और नगण्य लग रहा था. अकेलापन और अधिक महसूस हो रहा था. शाम के 5 बज रहे थे. औफिस में पार्टी थी. उस हंगामे से बचने के लिए यहां सन्नाटे की शरण में आई थी. आसमान में डूबते सूर्य की छटा निराली थी, पर सुहा नहीं रही थी. बहुत रोशनी थी अभी. एक कमरे में दरी बिछा कर एक कोने में लेट गई. न जाने कितनी देर सोती रही. कुछ खटपट की आवाज से आंखें खुल गईं.

घुप्प अंधेरा था. जब आंख लगी थी इतनी रोशनी थी कि बिजली जलाने की जरूरत नहीं महसूस हुई थी. किसी ने दरवाजा खोल कर घर में प्रवेश किया. मेरी डर के मारे जान निकल गई. केयर टेकर ने कहा था वह चाबी केवल मालिक को देता है. लगता है   झूठ बोल रहा था. चाबी किसी शराबी को न दे दी हो, सोचा होगा खाली फ्लैट में आराम से पीएं या उस की स्वयं की नीयत में खोट न आ गया हो. अकेली औरत इतनी ऊंचाई पर फ्लैट में फायदा उठाने का अच्छा मौका था. डर के मारे मेरी जान निकल रही थी. आसपास कोई डंडा भी नहीं होगा जिसे अपनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करूं. डंडा होगा भी तो अंधेरे में दिखेगा कैसे? सांस रोके बैठी थी. अब तो जो करेगा आगंतुक ही करेगा. हो सकता है अंधेरे में कुछ सम  झ न आए और वापस चला जाए.

तभी कमरा रोशनी से जगमगा उठा. सामने नील खड़ा था. नील को देख कर ऐसी राहत मिली कि अगलापिछला सब भूल उठी और

उस से लिपट गई. वह उतना ही हत्प्रभ था जितनी मैं सहमी हुई. कुछ पल हम ऐसे ही गले लगे खड़े रहे. फिर अपने रिश्ते की हकीकत हमें याद आ गई.

‘‘मैं? मैं तो यहां शांति से 3 दिन रहने आई हूं. तुम नहीं रह सकते यहां… तुम जाओ यहां से.’’

नील जिद्दी बच्चे की तरह अकड़ते हुए बोला, ‘‘क्यों जाऊं? मैं भी बराबर की किस्त भरता हूं इस फ्लैट की… मेरा भी हक है इस पर… मैं तो यहीं रहूंगा जब तक मेरा मन करेगा… तुम जाओ अगर तुम्हें मेरे रहने पर एतराज है तो.’’

मैं ने भी अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए   झांसी की रानी वाली मुद्रा में सीना चौड़ा कर के कहा, ‘‘मैं क्यों जाऊं?’’ पर मन में सोच रही थी कि अब तो मर भी जाऊं तो भी नहीं खिसकूंगी इस जगह से.

औफिस से निकलते हुए मन में आया होगा चल कर फ्लैट में रहा

जाए और मुंह उठा कर आ गया. कैसे रहेगा, क्या खाएगा यह सोचने इस के फरिश्ते आएंगे. कहीं ऐसा तो नहीं यह केवल फ्लैट देखने आया था. मु  झे देख कर स्वयं भी यहां टिकने का मन बना लिया. इसे मु  झे चिढ़ाने में बहुत मजा आता है. नील हक से डब्बा ले कर बाहर बालकनी में जा कर दीवार का सहारा ले कर फर्श पर बैठ गया. डब्बा उस के हाथ में था, मजबूरन मु  झे उस के पास जमीन पर बैठना पड़ा.

आसमान में बिखरे अनगिनत तारे निकटता का एहसास दे रहे थे और अंधेरे में दूर तक जगमगाती रोशनी भी तारों का ही भ्रम दे रही थी. खामोशी से बैठ यह नजारा देख बड़ा सुकून मिल रहा था. लेकिन अगर अकेली होती तो इस विशालता का आनंद ले पाती. न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया, ‘‘कैसे हो?’’

नील आसमान ताक रहा था. मेरे प्रश्न पर सिर घुमा कर मु  झे देखने लगा. एकटक कुछ पल देखने के बाद बोला, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो इस ड्रैस में.’’

नील ने दिलाई थी जन्मदिन पर. कुछ महीनों से पैसे जोड़ रहा था. इस बार तु  झे महंगी सी पार्टीवियर ड्रैस दिलाऊंगा… कहीं भी जाना हो बहुत साधारण कपड़े पहन कर जाना पड़ता है तु  झे.

सारा दिन बाजार घूमते रहे, लेकिन नील को कोई पसंद ही नहीं आ रही थी. फिर यह कढ़ाई वाली मैरून रंग की कुरती और सुनहरा प्लाजो देखते ही बोला था कि यह पहन कर देख रानी लगेगी. शीशे में देखने की जरूरत ही नहीं पड़ी. उस की आंखों ने बता दिया ड्रैस मु  झ पर कितनी फब रही है. कितना समय हो गया है इस बात को. मौके का इंतजार करती रही. किसी खास पार्टी में पहनूंगी… इतनी महंगी है कहीं गंदी न हो जाए. आज औफिस में फंक्शन में पहनने के लिए निकाली थी, लेकिन न जाने क्यों इतनी भीड़ में शामिल होने का मन नहीं कर रहा था. लगा सब को हंसताबोलता देख कहीं दहाड़ें मार कर रोने न लग जाऊं. कुछ सामान इकट्ठा किया और यहां आ गई, इस से पहले कि मेरा बौस हिरेन मु  झे लेने आ जाता.

नील अभी भी मु  झे देख रहा था. बोला, ‘‘इस के साथ   झुमके भी लिए थे वे नहीं पहने…’’

200 रुपए के   झुमके भी खरीदे थे, बड़े चाव से. कैसे 1-1 चीज दिला कर खुश होता था.

मैं हंस कर कहती, ‘‘ऐेसे खुश हो रहे हो जैसे स्वयं पहन कर बैठोगे.’’

वह मुसकरा कर कहता, ‘‘मैं अगर ये सब पहनता होता तो भी मु  झे इतनी खुशी नहीं मिलती जितनी तु  झे पहना देख कर मिलती है.’’

कितना प्रेम था हम दोनों के बीच, लेकिन सुरक्षित भविष्य की चाहत में ऐसे दौड़ पड़े कि वर्तमान असुरक्षित कर लिया… एकदूसरे से ही दूर हो गए.

मैं ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हिरेन के साथ पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रही थी, लेकिन मन नहीं कर रहा था, इसलिए उस के आने से पहले ही जल्दी से निकल गई.’’

हिरेन का नाम सुनते ही नील का चेहरा उतर गया. न जाने क्या गलतफहमी पाले बैठा है दिमाग में. रात बहुत हो गईर् थी. मैं उठ खड़ी हुई. जिस कमरे में मैं ने सामान रखा था वहां चली गई. रात के कपड़े बदल कर लेटने के लिए दरी बिछाई तो ध्यान आया नील कैसे सोएगा, बिना कुछ बिछाए. ऐसे कैसे बिना सामान के रात बिताने यहां आ गया? कितना लापरवाह हो गया है. बाहर आ कर देखा तो नील अभी भी पहले की तरह बालकनी में दीवार के सहारे बैठा आसमान को टकटकी लगाए देख रहा था. कितना कमजोर लग रहा था. पहले जरा सा भी दुबला लगता था तो आधी रोटी अधिक खिलाए बिना नहीं छोड़ती थी.

अब मु  झे क्या? क्या रिश्तों के मतलब इस तरह बदल जाते हैं? मैं ने उस की तरफ चादर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह चादर ले लो. बिछा कर लेटना. फर्श ठंडा लगेगा.’’

नील मेरी तरफ देखे बिना बोला, ‘‘नहीं रहने दो. इस की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मेरे पास 2 हैं, ले लो.’’

नील बैठेबैठे ही एकदम से मेरी तरफ मुड़ा. उस का मुख तना हुआ था. दबे आक्रोश में बोला, ‘‘जाओ यहां से फिर बोलोगी मु  झे केवल तुम्हारी देह की पड़ी रहती है. तुम्हारे शरीर के अलावा मु  झे कुछ नजर नहीं आता.’’

जब से यह वाकेआ हुआ था हमारे बीच की दरार खाई बन गई थी. वह ताने मार कर बात करता और मैं शांति बनाए रखने के लिए खामोश रहती. अब भाड़ में जाए शांति.

‘‘तो क्या गलत बोला था, थकीहारी औफिस से 6 बजे आती और तुम बस वे सब करना चाहते थे.’’

असुविधा के लिए खेद है – भाग 2 : जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

पहले जब वह अमेरिका पढ़ने गई थी तो इस लड़के से प्रेम हुआ. लड़के के

पिता जब बाद में चल बसे और लड़के की मां ने उसे यहां बुलावा भेजा तो लड़की ने भी लड़के के साथ आने का मन बनाया.

इस रशियन लड़की सेल्विना दास्तावस्की की मां नहीं रही. सौतेले पिता हैं, अब उस का यह ब्रौयफ्रैंड ही सबकुछ है. सेल्विना की आंखों में एक मधुर संभाषण और बालसुलभ कुतूहल देखा मैं ने. वाकई वह बहुत प्यारी और निश्चल थी. मुझे भा गई थी.

रात को जीजी घर आई तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘अचानक कैसे वहां ड्राइंग सीखने जाने लगी? कैसे पहचान हुई सेल्विना से तुम्हारी?’’

‘‘फेसबुक के मेरे नए प्रोफाइल पर.’’

‘‘तुम ने भेजी थी रिकवैस्ट?’’

‘‘तुझे क्या करना किस ने भेजी?’’

‘‘जीजी तुम सारी चीजों में उलझ कर रह गई, लेकिन जीजू के बारे में बिलकुल नहीं सोच रही. आखिर चाहती क्या हो? जीजू अकेले

क्यों रहें?’’

‘‘मैं ने उन से कहा तो है कोलकाता ट्रांसफर करा लें. नहीं, अपनी पैत्रिक संपत्ति छोड़ कर किराए के मकान में आना नहीं चाहते. मैं क्यों नहीं बड़े शहर में रहूं. पर तू यह बता तुझे क्यों इतनी फिक्र हो रही जीजू की?

‘‘जीजी.’’

‘‘चुप कर. ढीलेढाले पाजामे को मेरे गले बांध दिया. सभी ने मिल कर.. बैंक की नौकरी है… वह कोई मर्द है?’’

जीजी की बातें बड़ी चकित करने वाली थीं. मैं रात तक बेचैन रही.

वे मुझ से स्नेह रखते थे. जीजू की लाचारी मुझे खलने लगी. मैं ने उन्हें एक के बाद एक कई संदेश भेजे ताकि उन की खैरियत पता चल सके. कोई उत्तर न मिला मुझे तो मैं ने फोन मिला दिया. फोन उठाया गया, लेकिन कुछ पल कानाफूसी सी आवाजें आने के बाद फोन कट गया.

मुझे ऐसा क्यों लगा कि उस वक्त ऐसा कुछ था जो न  होता तो अच्छा था. कल की सुबह शनिवार की थी. जीजी अपना भलाबुरा समझ नहीं पा रही थी, मैं तो समझती थी. औफिस से

2 दिन की छुट्टी लेने की ठान मैं

सो गई.

कोलकाता से बस में 4-5 घंटे लगते थे जीजू के शहर पहुंचने में. रात को पहुंची तो मेन गेट खुला था.

बरामदे में पहुंच मैं ने दरवाजे पर हाथ रखा तो अंदर से बंद था. मुझे लग रहा था कोई दिक्कत जरूर है. मेरी छठी इंद्री ने काम शुरू किया और मैं ने बगीचे की तरफ खुल रही बैडरूम की खिड़की से हाथ अंदर कर धीरे से परदा हटा कर झंका.

दृश्य ने मुझे सदमे में डाल दिया. जीजू और उन की रसोई बनाने वाली रीना बिस्तर

पर साथ. यह क्या किया जीजू तुम ने. मुझे बहुत दुख हुआ. अभिमान और व्यथा से मैं तड़पने लगी. पर क्यों? क्या जीजी के लिए या और कुछ? मैं बरामदे में आ कर बैठ गई. क्या मैं माफ  कर दूं जीजू को? करना ही पड़ेगा. ठगा गया इंसान जीने की सूरत ढूंढ़ रहा है, थोड़ी देर में दरवाजा खोल रीना निकली. मुझे देख उस का चेहरा सफेद पड़ गया. किसी तरह नमस्ते किया और सरपट निकल गई.

मुझे देख जीजू सकपका गए. अपना सिर नीचे कर लिया. मैं अभी कुछ कहती कि वे

बोल पड़े, ‘‘ईशा, मैं तुम्हारे परिवार का गुनहगार हूं. प्रभा को कितने संदेश भेजे… न ही जवाब दिया, न ही आई. मुझ से अकेलापन बरदाश्त नहीं हो रहा था. रीना के पति का शराब पीपी कर लिवर खराब हो गया है, उसे पैसों की जरूरत

थी. सच तो यह है कि हम दोनों ही कंगाली में थे. वह गरीब है, दुखी है, मैं ने उसे संभाला, उस ने मुझे.’’

यथासंभव खुद के साथ लड़ते हुए मैं ने उन का हाथ अपने हाथों में लिया, ‘‘क्या फिर भी आप ने यह ठीक किया? जीजी को छोड़ो, कभी भी आप ने मुझे जानने की कोशिश नहीं की.’’

जीजू उम्मीद भरी आंखों से मुझे देखने लगे.

‘‘क्या कोई 10 बार यों ही किसी को संदेश भेजता है? आप के लिए शरीर ही सबकुछ है? मेरा संदेश आप की खैरियत के बारे में होता है, लेकिन इस के पीछे की कोई बात…’’

जीजू ने मेरे होंठ अपने होंठों से सिल दिए.

‘‘मैं कल्पना कैसे करूं कि आसमान का सूरज आ कर कहे कि मैं सिर्फ तुम्हारा हूं,’’

जीजू ने कहा मैं अपने आप को रोक नहीं पाई.

उन के गले लग पड़ी. और हम भावनाओं में, अनुभूतियों में, प्रेम के आकंठ अणृतवर्षा में डूब चुके थे.

‘‘ईशा. क्या सच ऐसा कभी हो सकेगा कि तुम हमेशा के लिए मेरी हो जाओ?’’

‘‘और रीना?’’ मैं ने छेड़ा.

‘‘कभी नहीं, विदा कर दूंगा उसे, माफ कर दो मुझे.’’

‘‘फिर तो यह आप पर है. लेकिन मैं मोटा जो हूं? तुम इतनी स्लिम और सुंदर?’’

‘‘उफ्फ. आप का यह भोलापन, सादगी, मेरी जान लेगा. कौन कहता है आप मोटे हो. बस इतने मोटे हो कि तीन महीने की जिम ट्रेनिंग और डायट सही कर आप बिलकुल फिट लगोगे. और वो सारा कुछ मैं इंतजाम करवा दूंगी.’’

‘‘शुक्रिया मेरे तनमनधन से तुम्हारा शुक्रिया. मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि कंगाल को राजपाट मिल गया है.’’

आज जीजू और मैं दोनों हवा से हल्के और समुद्र से भी गहरे हो गये थे.

जब लोटी तो देखा कि चार दिनों में ही जीजी में और भी बदलाव दिखे. अब वह बिलकुल मौर्डन स्टाइलिश लड़की थी, साड़ी से तो अब दूरदूर का नाता नहीं था. उस का घर आते ही अपने स्मार्टफोन में बिजी हो जाती. उस के बदलाव में कुछ और भी बात थी.

मैं ने जीजू यानी निहार से बात की और अपने मम्मीपापा को कुछ दिनों के लिए वहां छोड़ आई. तीनों को आपस में साथ रह कर एकदूसरे को समझने समझने का मौका मिले और इधर जीजी के दिमाग में शतरंज के प्यादे किसकरवट बैठ रहे हैं उस का भी मैं पता लगा पाऊं.

मम्मीपापा को निहार के पास छोड़ने जा रही थी तो जीजी से अपनी वापसी का जो दिन बताया था, उस के एक दिन पहले ही पहुंच गई मैं घर. घर की चाबी मेरे पास भी थी. मैं अंदर पहुंची तो आशा के मुताबिक जीजी फोन पर किसी से लगी पड़ी थी, ‘‘आज ही मिलो, तुम्हारी सेल्विना के साथ मैं लगभग गृहस्थी ही बसा चुकी. तुम जानते हो पेंटिंग्स की वजह से मैं तुम से जुड़ी, तुम पेंटिंग्स ग्राफिक्स का काम करते हो, और कहा भी था तुम ने कि तुम मेरे लिए वे सबकुछ करोगे जिस से मेरी पेंटिंग्स को पहचान मिले. लेकिन तुम ने तो मुझे गर्लफ्रैंड के हवाले कर दिया और भूल गये. क्या मैं तुम्हारी कुछ

भी नहीं.

‘‘कुछ भी नहीं सुनूंगी आज. मैं तुम्हें बुरी तरह मिस कर रही हूं, कल ईशा आ जाएगी वापस. आज रात सेल्विना को कोई बहाना बता कर मेरे पास आओ.’’

सारी बातें सुन कर फिर मेन दरवाजा बंद कर मैं बाहर आ गई.

खुशियों के फ़ूल -भाग 1 : किस बात से डर गए थे निनाद और अम्बा

शहर की कोरोनावायरस हैल्प लाइन का नंबर. अगर आपकी तबीयत खराब लगे तो आप इस नंबर पर फोन करिएगा.आपको हॉस्पिल ले जाने का पूरा इंतजाम हो जाएगा. अभी आपको हौस्पिटलाइजेशन की कोई जरूरत नहीं. अब आप घर जा सकते हैं. गुड लक.”

निनाद और अम्बा  डॉक्टर की बातें सुनकर सदमे  में थे.कोरोना और उनको? दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी. करोना के खौफ से दोनों के चेहरों से मानो रक्त निचुड़ सा गया था.उन्हें लग रहा था, मानो उनके पांव तले जमीन न रही थी.

हॉस्पिटल से बाहर निकल कर निनाद ने अपनी पत्नी अम्बा  से कहा ,”प्लीज़ अम्बा, घर  चलो, तुम्हारी भी तबीयत ठीक नहीं है. कोरोना का नाम सुन कर मैं हिल गया हूं. कोरोना से मौत की इतनी कहानियाँ सुन सुन कर मुझे दहशत सी हो रही है. बहुत  घबराहट हो रही है. तुम साथ होगी तो मेरी हिम्मत बनी रहेगी. प्लीज अम्बा, ना मत करना. फिर घर जाओगी तो मां को भी तुमसे बीमारी लगने का डर होगा.”

निनाद के मुंह से  प्लीज और  घर जाने की रिक्वेस्ट सुन अम्बा  बुरी तरह से चौंक गई थी. वह मन ही मन सोच रही थी, “इस बदज़ुबान और हेकड़ निनाद  को क्या हुआ? शायद तीन  महीने मुझसे अलग रहकर आटे दाल का भाव पता चल गया है इन्हें. इस बीमारी की स्थिति में किसी और परिचित या रिश्तेदार के घर जाना भी ठीक नहीं. कोई घर ऐसा नहीं जहां मैं इस मर्ज के साथ एकांत में रह सकूं. इस बीमारी में माँ के पास भी जा सकती. फिर निनाद की उसे अपने घर ले जाने की रट देख कर मन में कौतुहल जगा था, देखूं, आखिर माजरा क्या है जो ज़नाब इतनी मिन्नतें कर रहें हैं मुझे घर ले जाने के लिए. मन में दुविधा का भाव था, निनाद के घर जाये या नहीं. उससे तलाक की बात भी चल रही है. कि तभी हॉस्पिटल की ऐम्बुलेंस आगई और निनाद ने ऐम्बुलेंस का दरवाज़ा उसके लिए खोलते हुए उसे कंधों से उसकी ओर लगभग धकेलते से हुए उससे कहा, “बैठो अम्बा, क्या सोच रही हो,’’ और वह विवश ऐम्बुलेंस में बैठ गई.’’

घर पहुंचकर निनाद अम्बा  से बोला, “मैं पास  की दुकान को दूध सब्जी की होम डिलीवरी के लिए फोन करता हूं.”

“ओके.”

दुकान को फोन कर निनाद  नहा धोकर अपने बेडरूम में लेट गया और अम्बा  घर के दूसरे बेडरूम में. अम्बा  को तनिक थकान हो  आई थी और उसने आंखें बंद कर लीं. उसकी बंद पलकों में बरबस निनाद के साथ गुज़रा समय मानो सिनेमाई रील की मानिंद ठिठकते ठहरते चलने लगा  और वह बीते दिनों की भूल भुलैया में अटकती भटकती खो गई.

वह सोच रही थी, जीवन कितना अनिश्चित होता है. निनाद  से विवाह कर वह कितनी खुश थी, मानो सातवें आसमान में हो. लेकिन उसे क्या पता था, निनाद  से शादी उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी.

एक सरकारी प्रतिष्ठान में वैज्ञानिक अम्बा  और एक बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठान में वैज्ञानिक निनाद  का तीन वर्षों पहले विवाह हुआ था. निनाद ने उस दिन  अपने शहर की किसी कॉन्फ्रेंस में अपूर्व  लावण्यमयी अम्बा  को बेहद आत्मविश्वास  से एक प्रेजेंटेशन  देते सुना था, और वह उसका मुरीद हो गया. शुष्क, स्वाभाव के निनाद को अम्बा  को देखकर शायद पहली बार प्यार जैसे रेशमी, मुलायम जज़्बे का एहसास हुआ था. कॉन्फ्रेंस से घर लौट कर भी अम्बा  और उसका ओजस्वी धाराप्रवाह भाषण उसके चेतना मंडल पर अनवरत छाया रहा. उसके कशिश भरे, धीर गंभीर सौंदर्य ने सीधे उसके हृदय पर दस्तक दी थी और उसने लिंकडिन पर उसका प्रोफाइल ढूंढ उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की थी. उसके माता पिता की बहुत पहले मृत्यु हो चुकी थी.इसलिए उसने स्वयं  उसे फोन कर और फ़िर उससे मिलकर उसे विवाह का प्रस्ताव दिया था.

अम्बा  की विवाह योग्य उम्र हो आई थी. सो मित्रों परिचितों से निनाद  की नौकरी, घर परिवार और चाल चलन की तहकीकात कर उसने निनाद  से विवाह करने की हामी भर दी.

अम्बा  की मात्र मां जीवित थी. वह  बेहद गरीब परिवार से थी. पिता एक पोस्टमैन थे. उनकी मृत्यु उसके बचपन में ही हो गई थी. तो प्रतिष्ठित पदधारी निनाद  का विवाह प्रस्ताव अम्बा  और उसकी मां को बेहद पसंद आया.शुभ मुहूर्त में दोनों का परिणय  संस्कार संपन्न हुआ .

विवाह  के उपरांत सुर्ख लाल जोड़े में सजी, पायल छनकाती अम्बा  निनाद के घर आ गई, लेकिन यह विवाह उसके जीवन में खुशियों के फूल कतई न खिला सका. निनाद एक बेहद कठोर स्वाभाव  का कलह  प्रिय इंसान था. बात-बात पर क्लेश  करना उसका मानो  जन्म सिद्ध अधिकार था. फूल सी कोमल तन्वंगी अम्बा  महीने भर में ही समझ गई  कि यह विवाह कर उसने जीवन की सबसे गुरुतर  भूल की है. दिनों दिन पति के क्लेश से उसका  खिलती कली सा मासूम मन और सौंदर्य कुम्हलाने  लगा.

असुविधा के लिए खेद है – भाग 1 : जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

‘‘मेरीनानी की चचिया सास की बेटी के बेटे ने मेरी बहन से शादी करने को इनकार किया? मेरी बहन से? क्या कमी है तुझ में? मैं उसे छोड़ूंगी नहीं. मैं ने कहा था इस रिश्ते के लिए. मुझे मना करेगा? 2-4 बार उस से इस बाबत पूछ क्या लिया, कहता है कि आप मेरे

पीछे क्यों पड़ी हैं? उस की इतनी हिम्मत?

मुंबई पढ़ने गया था तो प्राइवेट होस्टल में रहने के लिए कैसे मेरी जानपहचान का फायदा लिया.

अब विदेश में नौकरी हो गई, अच्छी सैलरी

मिल गई तो मेम भा रही है उसे. मुझे इनकार. बताऊंगी उसे.’’

‘‘अरे जीजी छोड़ न. मुझे ऐसे भी पसंद नहीं था वह. तुम भी तो हाथ धो कर उस के पीछे पड़ी थी, सभ्य तरीके से मना करने के बाद भी जब तुम साथ नहीं रही थी, तभी उस ने कहा ऐसा. बात समझेगी नहीं तो क्या करे वह और तब जब पहले से ही वह किसी के प्यार में है. अब तो मैं ने भी जौब जौइन की है, कहां उस के साथ विदेश जाऊंगी. फिर मांपिताजी की तबीयत भी ऐसी कि उन्हें अकेला छोड़ा न जाए.’’

‘‘तू चुप कर. रिश्ता सही था या नहीं यह अलग बात है, पर मेरी बात को वह टालने वाला होता कौन है? आज तक किसी ने बात नहीं

टाली मेरी.’’

‘‘अरे जीजी गुस्सा क्यों होती है जब मुझे करनी ही नहीं थी शादी?’’

‘‘तु चुप करे. एक मेम के लिए मुझे ‘न’ कहा. मैं छोड़ूंगी नहीं उसे और तेरे लिए तो कभी लड़का न देखूं. कुंआरी ही रह.’’

‘‘दीदी क्यों खून जलाती है अपना? देखो 30 साल की उम्र में ही तुम कितनी चिड़चिड़ी

हो गई हो. वीपी हाई हो जाएगा. बीमार पड़ोगी

तो कंसीव नहीं कर पाओगी. जीजू कुछ कहते नहीं तुम्हें?’’

‘‘तु चुप कर. क्या कहेगा वह? उस की मम्मीपापा के भरोसे चलती थी उस की जिंदगी, अब दोनों गए ऊपर तो मेरा ही मुंह ताकता है. औफिस से घर और घर से औफिस, आता ही क्या है उसे? मुझे कहेगा?’’

जीजी को लगता कि दुनियाजहान का सारा भार जीजी के ही कंधों पर है. पहले हम दोनों

का साझ कमरा था. 3 साल हुए इधर जीजी की शादी हुई और दादादादी भी इहलोक सिधार गए. तब से उन लोगों का कमरा जीजी के नाम किया गया है.

ज्यादातर जीजी अपने भोलेभाले जरा गोलमटोल पति को रसोइए के जिम्मे छोड़ यहां आ जाती. यहां हम सब पर राज करने की पुरानी आदत उस की गई नहीं थी. जीजी के कमरे से फोन पर बात करने की आवाजें आ रही थीं.

‘‘क्यों, छोड़े क्यों? ऐसे ही छोड़ दें? निकालती हूं हवा उस की.’’

उधर शायद जीजी की वह सहेली थी जिन के पति वकील थे. बात नहीं बनी शायद. जीजी ने फोन रख दिया.

बड़ी उतावली हो वह ऐसे किसी सज्जन

को ढूंढ़ रही थी जो जीजी की बात न मान कर जीजी को अपमानित करने वाले दुर्जन की हवा निकाल सके. कौन मिलेगा ऐसा. जीजी सोच में पड़ी थी.

मैं जीजी के कमरे में गई. उसे शांत करने का प्रयास किया, ‘‘जीजी, यह कोई इशू नहीं

है, तुम ईगो पर क्यों लेती हो? तुम अब इस प्रकरण को बंद करो. मुझे नहीं करनी थी कोई शादी… अभी बहुत जल्दीबाजी होगी शादी की बात करना.’’

‘‘मत कर शादी. मैं तेरे लिए लड़ भी नहीं रही. मेरी बात टाल जाए, मुझ से ही काम निकाल कर वह भी विदेशी मेम के लिए? यह गलत है. मैं होने नहीं दूंगी.’’

‘‘बड़ी अडि़यल और बेतुकी है जीजी.’’

‘‘हूं. तुझे उस से क्या तू अपने काम से

काम रख.’’

इस के 2 दिन बाद शाम को जीजी अपना फोन लाई. मुझ से कहा इन तसवीरों में सब से अच्छी वाली कौन सी है?

‘‘क्यों?’’

‘‘तु बता न.’’

‘‘यह वाली. मगर यह तो 4 साल पुरानी तसवीर है, करोगी क्या इस का?’’

‘‘एक दूसरी एफबी प्रोफाइल खोल कर उस में मेरी सारी पुरानी पेंटिंग्स डालूंगी.’’

‘‘अरे वाह. सच जीजी. यह हुई न बात. यह प्लान बढि़या है.’’

जीजी ने नया प्रोफाइल खोला और अपनी पुरानी पेंटिंग्स की तसवीरें खींच कर उस में डालती रही. वैसे समझ नहीं पाईर् कि पेंटिंग्स पुराने एफबी प्रोफाइल में क्यों नहीं डालीं? जीजी को यहां आए 20 दिन तो हो ही चुके थे. जीजू के लिए हम सब को चिंता होती. वहां अकेले उन्हें दिक्कत होती थी. लेकिन जीजी से इस बारे में कुछ कहो तो उस का उत्तर होता, ‘‘हांहां, मैं तो हूं ही पराई. अब तू ही यहां राज कर. यहां रहने के खर्च देने पड़ेगा क्या? यह मेरा भी घर है. मेरा इस पर हक है.’’

महीनाभर हो गया तो जीजू ही आ गए. मुहतरमा ने वापस जाने को ठेंगा दिखा दिया. जीजू वापस चले गए. जीजी को लगातार फोन पर व्यस्त देखती. कोलकाता के जिस मार्केटिंग एरिया में हम रहते हैं वहां शाम होते ही बाजार और दुकानों में गहमागहमी रहती है. पहले जीजी के  साथ अकसर मैं भी मार्केटिंग को निकला करती थी. लेकिन अब तो जीजी का फोन ही सबकुछ था. कुछ दिनों बाद जीजी ने निर्णय सुनाया कि वह एक जगह पेंटिंग्स सिखाने को जाना चाहती है. कह दिया और शुरू हो गई.

जीजू के लिए वाकई मैं चिंतित थी. एक सीधासरल इंसान इस तरह बेवजह रिश्ते की उलझन में फंस जाए. अफसोस की बात थी. जीजू को एक दिन मैं ने फोन किया और उन से जीजी के बारे में बातें कीं.

‘‘मैं क्या कह सकता हूं? मेरी बातों को वह मानती नहीं, न ही इन 3 सालों में उस का अपनों से कोई लगाव देखा.

‘‘दुनिया रुकती नहीं है ईशा, मेरी भी दुनिया चल रही है. उसे मेरी फिक्र नहीं है… कुछ बोलूं तो खाने को दोड़ती है…’’

जीजी पार्क स्ट्रीट के ड्राइंग पेंटिग स्कूल में क्लास लेने जाने लगी थी. जीजी ने एक विदेशी बाला से मिलवाया. 26-27 की होगी. गोल्डन बालों में वह एशियन लड़की भारतीय सलवार सूट बड़े शौक से पहने थी.

जीजी ने इंग्लिश में परिचय कराया तो रशियन लड़की मुझ से गले मिली. फिर उस ने टूटीफूटी हिंदी में जो भी कहा उस का सार यही था कि वह अपने होने वाले पति के लिए सब छोड़ आईर् थी. लड़का अभी कोलकाता के किसी मल्टीनैशनल ग्राफिक्स डिजाइनिंग ऐंड कंपनी में काम करता है

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