आहत- भाग 3: एक स्वार्थी का प्रेम

लंबेलंबे डग भरता वह होटल में शालिनी के कमरे की तरफ बढ़ा. खूबसूरत फूलों का गुलदस्ता उस के हाथों में था. दिल में शालिनी को खुश करने की चाहत लिए उस ने कमरे पर दस्तक देने के लिए हाथ उठाया ही था कि अंदर से आती शालिनी और किसी पुरुष की सम्मिलित हंसी ने उसे चौंका दिया.

बदहवास सा सौरभ दरवाजा पीटने लगा. अंदर से आई एक आवाज ने उसे स्तब्ध कर दिया था.

‘‘कौन है बे… डू नौट डिस्टर्ब का बोर्ड नहीं देख रहे हो क्या? जाओ अभी हम अपनी जानेमन के साथ बिजी हैं.’’

परंतु सौरभ ने दरवाजा पीटना बंद नहीं किया. दरवाजा खुलते ही अंदर का नजारा देख कर सौरभ को चक्कर आ गया. बिस्तर पर पड़ी उस की अर्धनग्न पत्नी उसे अपरिचित निगाहों से घूर रही थी.

जमीन पर बिखरे उस के कपड़े सौरभ की खिल्ली उड़ा रहे थे. कहीं किसी कोने में विवाह का बंधन मृत पड़ा था. उस का अटल विश्वास उस की इस दशा पर सिसकियां भर रहा था और प्रेम वह तो पिछले दरवाजे से कब का बाहर जा चुका था.

‘‘शालिनी….’’ सौरभ चीखा था.

परंतु शालिनी न चौंकी न ही असहज हुई, बस उस ने विमल को कमरे से बाहर जाने का इशारा कर दिया और स्वयं करवट ले कर छत की तरफ देखते हुए सिगरेट पीने लगी.

‘‘शालिनी… मैं तुम से बात कर रहा हूं. तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो?’’ सौरभ दोबारा चीखा.

इस बार उस से भी तेज चीखी शालिनी, ‘‘क्यों… क्यों नहीं कर सकती मैं तुम्हारे साथ ऐसा? ऐसा है क्या तुम्हारे अंदर जो मुझे बांध पाता?’’

‘‘तुम… विमल से प…प… प्यार करती हो?’’

‘‘प्यार… हांहां… तुम इतने बेवकूफ हो सौरभ इसलिए तुम्हारी तरक्की इतनी स्लो है… यह लेनदेन की दुनिया है. विमल ने अगर मुझे कुछ दिया है तो बदले में बहुत कुछ लिया भी है. कल अगर कोई इस से भी अच्छा औप्शन मिला तो इसे भी छोड़ दूंगी. वैसे एक बात बोलूं बिस्तर में भी वह तुम से अच्छा है.’’

‘‘कितनी घटिया औरत हो तुम, उस के साथ भी धोखा…’’

‘‘अरे बेवकूफ विमल जैसे रईस शादीशुदा मर्दों के संबंध ज्यादा दिनों तक टिकते नहीं. वह खुद मुझ से बेहतर औप्शन की तलाश में होगा. जब तक साथ है है.’’

‘‘तुम्हें शर्म नहीं आ रही?’’

‘‘शर्म कैसी पतिजी… व्यापार है यह… शुद्घ व्यापार.’’

‘‘शालिनी…’’

‘‘आवाज नीची करो सौरभ. बिस्तर में चूहा मर्द आज शेर बनने की ऐक्टिंग कर रहा है.’’

सौरभ रोते हुए बोला ‘‘शालिनी मत करो मेरे साथ ऐसा. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘सौरभ तुम मेरा काफी वक्त बरबाद कर चुके हो. अब चुपचाप लौट जाओ… बाकी बातें घर पर होंगी.’’

‘‘हां… हां… देखेंगे… वैसे मेरा काम आसान करने के लिए धन्यवाद,’’ कह बाहर निकलते सौरभ रमा से टकरा गया.

‘‘आप सब कुछ जानती थीं न’’ उस ने पूछा.

‘‘हां, मैं वह परदा हूं, जिस का इस्तेमाल वे दोनों अपने रिश्ते को ढकने के लिए कर रहे थे.’’

‘‘आप इतनी शांत कैसे हैं?’’

‘‘आप को क्या लगता है शालिनी मेरे पति के जीवन में आई पहली औरत है? न वह पहली है और न ही आखिरी होगी.’’

‘‘आप कुछ करती क्यों नहीं? इस अन्याय को चुपचाप सह क्यों रही हैं?’’

‘‘आप ने क्या कर लिया? सुधार लिया शालिनी को?’’

‘‘मैं उसे तलाक दे रहा हूं…’’

‘‘जी… परंतु मैं वह नहीं कर सकती.’’

‘‘क्यों, क्या मैं जान सकता हूं?’’

‘‘क्योंकि मैं यह भूल चुकी हूं कि मैं एक औरत हूं, किसी की पत्नी हूं. बस इतना याद है कि मैं 2 छोटी बच्चियों की मां हूं. वैसे भी यह दुनिया भेडि़यों से भरी हुई है और मुझ में इतनी ताकत नहीं है कि मैं स्वयं को और अपनी बेटियों को उन से बचा सकूं.’’

‘‘माफ कीजिएगा रमाजी अपनी कायरता को अपनी मजबूरी का नाम मत दीजिए. जिन बेटियों के लिए आप ये सब सह रही हैं उन के लिए ही आप से प्रार्थना करता हूं, उन के सामने एक गलत उदाहरण मत रखिए. यह सब सह कर आप 2 नई रमा तैयार कर रही हैं.’’

औरत के इन दोनों ही रूपों से सौरभ को वितृष्णा हो गई थी. एक अन्याय करना अपना अधिकार समझती थी तो दूसरी अन्याय सहने को अपना कर्तव्य.

दिल्ली छोड़ कर सौरभ इतनी दूर अंडमान आ गया था. कोर्ट में उस का केस चल रहा था. हर तारीख पर सौरभ को दिल्ली जाना पड़ता था. शालिनी ने उस पर सैक्स सुख न दे पाने का इलजाम लगाया था.

सौरभ अपने जीवन में आई इस त्रासदी से ठगा सा रह गया था, परंतु शालिनी जिंदगी में नित नए विकल्प तलाश कर के लगातार तरक्की की नई सीढि़यां चढ़ रही थी.

आज सुबह प्रज्ञा, जो सौरभ की वकील थी का फोन आया था. कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी थी, परंतु इस के बदले काफी अच्छी कीमत वसूली थी शालिनी ने. आर्थिक चोट तो फिर भी जल्दी भरी जा सकती हैं पर मानसिक और भावनात्मक चोटों को भरने में वक्त तो लगता ही है.

सौरभ अपनी जिंदगी के टुकड़े समेटते हुए सागर के किनारे बैठा रेत पर ये पंक्तियां लिख रहा था:

‘‘मुरझा रहा जो पौधा उसे बरखा की आस है,

अमृत की नहीं हमें पानी की प्यास है,

मंजिल की नहीं हमें रास्तों की तलाश है.’’

बहन का सुहाग: भाग 3- चंचल रिया की चालाकी

राजवीर सिंह की शानोशौकत देख कर रिया सोचती कि निहारिका कितनी खुशकिस्मत है, जो इसे बड़ा और अमीर परिवार मिला. उस के मन में भी कहीं न कहीं राजवीर सिंह जैसा पति पाने की उम्मीद जग गई थी.

‘‘ये लो… तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट,‘‘ राजवीर सिंह ने एक सुनहरा पैकेट रिया की और बढ़ाते हुए कहा.

‘‘ओह, ये क्या… लैपटौप… अरे, वौव जीजू… मुझे लैपटौप की सख्त जरूरत थी. आप सच में बहुत अच्छे हो जीजू…‘‘ रिया खुशी से चहक उठी थी.

राजवीर को पता था कि रिया को अपनी पढ़ाई के लिए एक लैपटौप चाहिए था, इसलिए आज उस के जन्मदिन पर उसे गिफ्ट दे कर खुश कर दिया था राजवीर ने.

रात को अपने कमरे में जा कर लैपटौप औन कर के रिया गेम्स खेलने लगी. कुछ देर बाद उस की नजर लैपटौप में पड़ी एक ‘निहारिका‘ नाम की फाइल पर पड़ी, तो उत्सुकतावश रिया ने उसे खोला. वह एक ब्लू फिल्म थी, जो अब लैपटौप की स्क्रीन पर प्ले हो रही थी.

पहले तो रिया को कुछ हैरानी हुई कि नए लैपटौप में ये ब्लू फिल्म कैसे आई, पर युवा होने के नाते उस की रुचि उस फिल्म में बढ़ती गई और फिल्म में आतेजाते दृश्यों को देख कर वह भी उत्तेजित होने लगी.
यही वह समय था, जब कोई उस के कमरे में आया और अपना हाथ रिया के सीने पर फिराने लगा था.

रिया ने चौंक कर लैपटौप बंद कर दिया और पीछे घूम कर देखा तो वह राजवीर था, ‘‘व …वो ज… जीजाजी, वह लैपटौप औन करते ही फिल्म…‘‘

‘‘अरे, कोई बात नहीं… तुम खूबसूरत हो, जवान हो, तुम नहीं देखोगी, तो कौन देखेगा… वैसे, तुम ने उस दिन मुझे और निहारिका को भी एकदूसरे को किस करते देख लिया था,‘‘ राजवीर ने इतना कह कर रिया को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया और उस के नरम होंठों को चूसने लगा.

जीजाजी को ऐसा करते रिया कोई विरोध न कर सकी थी. जैसे उसे भी राजवीर की इन बांहों में आने का इंतजार था.

राजवीर रिया की खूबसूरती का दीवाना हो चुका था, तो रिया भी उस के पैसे और शानोशौकत पर फिदा थी.
दोनों की सांसों की गरमी से कमरा दहक उठा था. राजवीर ने रिया के कपड़े उतारने शुरू कर दिए. रिया थोड़ा शरमाईसकुचाई, पर सैक्स का नशा उस पर भी हावी हो रहा था. दोनों ही एकदूसरे में समा गए और उस सुख को पाने के लिए यात्रा शुरू कर दी, जिसे लोग जन्नत का सुख कहते हैं.

उस दिन जीजासाली दोनों के बीच का रिश्ता तारतार क्या हुआ, फिर तो दोनों के बीच की सारी दीवारें ही गिर गईं.

राजवीर का काफी समय घर में ही बीतता. जरूरी काम से भी वह बाहर जाने में कतराता था. घर पर जब भी मौका मिलता, तो वह रिया को छूने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देता. और तो और दोनों सैक्स करने में भी नहीं चूकते थे.

एक दोपहर जब निहारिका कुछ रसोई के काम निबटा रही थी, तभी राजवीर रिया के कमरे में घुस गया और रिया को बांहों में दबोच लिया. दोनों एकदूसरे में डूब कर सैक्स का मजा लूटने लगे. अभी दोनों अधबीच में ही थे कि कमरे के खुले दरवाजे से निहारिका अंदर आ गई. अंदर का नजारा देख उस के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई. दोनों को नंगा एकदूसरे में लिप्त देख पागल होने लगी थी निहारिका.

‘‘ओह राजवीर, ये क्या कर रहे हो मेरी बहन के साथ… अरे, जब मेरा पेट तुम से नहीं भरा, तो मेरी बहन पर मुंह मारने लगे. माना कि मैं तुम्हारी सारी मांगें पूरी नहीं कर पाती थी, पर तुम्हें कुछ तो अपने ऊपर कंट्रोल रखना चाहिए था.

‘‘और तुम रिया…‘‘ रिया की ओर घूमते हुए निहारिका बोली, ‘‘बहन ही बहन की दुश्मन बन गई. तुम से अपनी जवानी नहीं संभली जा रही थी तो मुझे बता दिया होता. मैं मम्मीपापा से कह कर तुम्हारी शादी करा देती, पर ये क्या… तुम्हें मेरा ही आदमी मिला था अपना मुंह काला करने के लिए. मैं अभी जा कर यह बात पापा को बताती हूं,‘‘ कमरे के बाहर जाते हुए निहारिका फुंफकार रही थी.

राजवीर ने सोचा कि आज तो निहारिका पापा को यह बात बता ही देगी. अपने ही पिता की नजरों में वह गिर जाएगा…
‘‘मैं कहता हूं, रुक जाओ निहारिका… रुक जाओ, नहीं तो मैं गोली चला दूंगा…‘‘

‘‘धांय…‘‘

और अगले ही पल निहारिका के मुंह से एक चीख निकली और उस की लाश फर्श पर पड़ी हुई थी.

अपनी जेब में राजवीर हमेशा ही एक रिवौल्वर रखता था, पर किसे पता था कि वह उसे अपनी ही प्रेमिका और नईनवेली दुलहन को जान से मारने के लिए इस्तेमाल कर देगा.

यह देख रिया सकते में थी. अभी वह पूरे कपडे़ भी नहीं पहन पाई थी कि गोली की आवाज सुनते ही पापामम्मी ऊपर कमरे में आ गए.

अंदर का नजारा देख सभी के चेहरे पर कई सवालिया निशान थे और ऊपर से रिया का इस अवस्था में होना उन की हैरानी को और भी बढ़ाता जा रहा था.

‘‘क्या हुआ, बहू को क्यों मार दिया…?‘‘ मां बुदबुदाई, ‘‘पर, क्यों राजवीर?‘‘

‘‘न… नहीं… मां, मैं ने नहीं मारा उसे, बल्कि उस ने आत्महत्या कर ली है,‘‘ राजवीर ने निहारिका के हाथ के पास पड़े रिवौल्वर की तरफ इशारा करते हुए कहा और इस हत्या को आत्महत्या का रुख देने की कोशिश की.

यह देख कर सभी चुप थे.

राजवीर, रिया… और अब उस के मम्मीपापा पर अब तक बिना कहे ही कुछकुछ कहानी उन की समझ में आने लगी थी.

निहारिका के मम्मीपापा को खबर की गई.

अगले साल निहारिका के मम्मीपापा भी रोते हुए आए. पर यह बताने का साहस किसी में नहीं हुआ कि निहारिका को किस ने मारा है.

आनंद रंजन ने रोते हुए कहा, ‘‘अच्छीखासी तो थी, जब मैं मिल कर गया था उस से… अचानक से क्या हो गया और भला वह आत्महत्या क्यों करेगी? बोलो दामादजी, बोलो रिया, तुम तो उस के साथ थे. वह अपने को क्यों मारेगी…

आनंद रंजन बदहवास थे. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वे पुलिस को बुलाना चाहते थे और मामले की जांच कराना चाहते थे.

उन की मंशा समझ राजवीर ने खुद ही पुलिस को फोन किया.

आनंद रंजन को समझाते हुए राजवीर ने कहा, ‘‘देखिए… जो होना था हो गया. ऐसा क्यों हुआ, कैसे हुआ, इस की तह में ज्यादा जाने की जरूरत नहीं है… हां, अगर आप को यही लगता है कि हम निहारिका की हत्या के दोषी हैं, तो बेशक हमारे खिलाफ रिपोर्ट कर दीजिए और हम को जेल भेज दीजिए…

‘‘पर, आप को बता दें कि अगर हम जेल चले भी गए, तो जेल के अंदर भी वैसे ही रहेंगे, जैसे हम यहां रहते हैं. और अगर आप जेल नहीं भेजे हम को तो आप की छोटी बेटी की जिंदगी भी संवार देंगे.

“अगर हमारी बात का भरोसा न हो तो पूछ लीजिए अपनी बेटी रिया से.‘‘

इतना सुनने के बाद आनंद रंजन के चेहरे पर कई तरह के भाव आएगए. एक बार भरी आंखों से उन्होंने रिया की तरफ सवाल किया, पर रिया खामोश रही, मानो उस की खामोशी राजवीर की हां में हां मिला रही थी.

आनंद रंजन ने दुनिया देखी थी. वे बहुतकुछ समझे और जो नहीं समझ पाए, उस को समझने की जरूरत भी नहीं थी.

पुलिस आई और राजवीर के पैसे और रसूख के आगे इसे महज एक आत्महत्या का केस बना कर रफादफा कर दिया गया.

किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि सभी राजवीर के जलवे को जानते थे, पर हां, आनंद रंजन के नातेरिश्तेदारों और राजवीर के पड़ोसियों को जबरदस्त हैरानी तब जरूर हई, जब एक साल बाद ही आनंद रंजन ने रिया की शादी राजवीर से कर दी.

निहारिका के बैडरूम पर अब रिया का अधिकार था और राजवीर की गाड़ी में रिया घूमती थी. इस तरह एक बहन ने दूसरी बहन के ही सुहाग को छीन लिया था.

ये अलग बात थी कि जानतेबूझते हुए भी अपनी बेटी को इंसाफ न दिला पाने का गम आनंद रंजन सहन न कर पाए और रिया की शादी राजवीर के साथ कर देने के कुछ दिनों बाद ही उन की मृत्यु हो गई.
रिया अब भी राजवीर के साथ ऐश कर रही थी.

कांटे गुलाब के – भाग 2 : अमरेश और मिताली की प्रेम कहानी

एग्जाम के बाद रिजल्ट आया तो उस के साथसाथ वह भी प्रथम आया था. मौका मिला तो उस ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो. किसी कारण अब तक मुंह से कुछ नहीं कह पाई हो. मगर अब तो स्वीकार कर लो.’ अब वह अपने दिल की बात उस से छिपा न सकी. मोहब्बत का इजहार कर दिया. साथ में यह भी कह दिया, ‘जब तुम्हें नौकरी मिल जाए तो शादी का रिश्ता ले कर मेरे घर आ जाना. तब तक मैं भी कोई न कोई जौब ढूंढ़ लूंगी.’’

अमरेश उस की बात से सहमत हो गया. एक वर्ष तक उन की मुलाकात न हो सकी. कई बार फोन पर बात हुई. हर बार उस ने यही कहा, ‘मिताली, अभी नौकरी नहीं मिली है. जल्दी मिल जाएगी. तब तक तुम्हें मेरा इंतजार करना ही होगा.’

एक दिन अचानक फोन पर उस ने बताया कि उसे कोलकाता में बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. उसे जौब मिल गई थी. मिताली को नहीं मिली थी. उस ने कहा, ‘जब तक मुझे जौब नहीं मिलेगी, शादी नहीं करूंगी.’ अमरेश ने उस की एक नहीं सुनी, कहा, ‘तुम्हें नौकरी की जरूरत क्या है? मुझ पर भरोसा रखो. तुम मेरे घर और दिल में रानी की तरह राज करोगी.’

वह अमरेश को अथाह प्यार करती थी. उस पर भरोसा करना ही पड़ा. जौब करने का इरादा छोड़ कर उस से शादी कर ली. अमरेश के परिवार में मातापिता के अलावा एक बहन और 2 भाई थे. विवाह के बाद अमरेश उसे कोलकाता ले आया. पार्कस्ट्रीट में उस ने किराए पर छोटा सा फ्लैट ले रखा था.

अमरेश उसे बहुत प्यार करता था. उस की छोटीछोटी जरूरत पर भी ध्यान देता था. छुट्टियों में किचन में उस का सहयोग भी करता था. प्यार करने वाला पति पा कर मिताली जिंदगी से नाज कर उठी थी. 3 वर्ष कैसे बीत गए, पता भी नहीं चला. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बन गई. दोनों ने उस का नाम सुमित रखा था.

मिताली एक बच्चे की मां थी. बावजूद इस के उस का प्यार पहले जैसा अटल और गहरा था. अमरेश उसे टूट कर चाहता था, ठीक उसी तरह जिस तरह वह उसे बेहिसाब प्यार करती थी. सपने में भी उस से अलग होने की कल्पना नहीं करती थी. वह सोया हो या जाग रहा हो, हमेशा उस के चेहरे को देखा करती थी. मोहब्बत से भरपूर एक सुंदर चेहरा. उसी चेहरे में उसे अपना भविष्य नजर आता था. यह दुनिया नजर आती थी. बच्चे नजर आते थे. हर तरफ खुशी नजर आती थी.

3 वर्षों बाद अमरेश से कुछ दिनों के लिए अलग होने की बात हुई तो उस का दिल बैठ सा गया. यह सोच कर वह चिंता में पड़ गई कि उस के बिना कैसे रहेगी? हुआ यों कि एक दिन अमरेश ने औफिस से आते ही कहा, ‘आज मेरा सपना पूरा हो गया.’

‘कौन सा सपना?’

‘दुबई जा कर ढेर सारा रुपया कमाना चाहता था. इस के लिए 2 साल से प्रयास कर रहा था. आज सफल हो गया. वहां एक बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. 10 दिनों बाद चला जाऊंगा. कुछ महीने के बाद तुम्हें तथा सुमित को भी वहां बुला लूंगा.’

जहां इस बात की खुशी हुई कि अमरेश का सपना पूरा होने जा रहा था, वहीं उस से अलग रहने की कल्पना से दुखी हो गई थी मिताली. शादी के बाद कभी भी वह उस से अलग नहीं हुई थी. दुबई जाने से रोक नहीं सकती थी, क्योंकि वहां जा कर ढेर सारा रुपया कमाना उस का सपना था. सो, उस ने अपने दिल को समझा लिया.

दुबई से अमरेश रोज फोन करता था. कहता था कि उस के और सुमित के बिना उस का मन नहीं लग रहा है. जल्दी ही उन दोनों को बुला लेगा. कोलकाता में उसे 20 हजार रुपए मिलते थे, दुबई से वह 50 हजार रुपए भेजने लगा.

अपने समय पर मिताली पहले से अधिक इतराने लगी थी. उसे अमरेश के हाथों में अपना और सुमित का भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा था. एक वर्ष बीत गया. इस बीच अमरेश ने उन्हें दुबई नहीं बुलाया. बराबर कोई न कोई बहाना बना कर टाल दिया करता था.

एक दिन अचानक कोलकाता आ कर सरप्राइज दिया. बताया कि 15 दिन की छुट्टी पर वह इंडिया आया है.

उस ने कहा, ‘अब तक दुबई इसलिए नहीं बुलाया कि वहां अकेले रहना पड़ता. बात यह है कि कंपनी के काम से मुझे बराबर एक शहर से दूसरे शहर जाना पड़ता है. कभीकभी तो घर पर 2 महीने बाद लौटता हूं.

‘ऐसे में अकेली औरत देख कर मनचले तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते थे. मैं चाहता हूं कि सुमित के साथ तुम कोलकाता में ही रहो और अच्छी तरह उस की परवरिश करो.’ वह चुप रही. कुछ भी कहते नहीं बना.

15 दिनों बाद अमरेश दुबई लौट गया. इतने दिनों में ही उस ने पूरे सालभर का प्यार दे दिया था. मिताली उस का अथाह प्यार पा कर गदगद हो गई थी. पार्कस्ट्रीट में ही अमरेश ने उस के नाम फ्लैट खरीद दिया था. अगले 3 वर्षों तक सबकुछ आराम से चला. अमरेश वर्ष में एक बार 10 या 15 दिनों के लिए आता था. उसे अपने प्यार से नहला कर दुबई लौट जाता था.

कालांतर में वह यह चाहने लगी थी कि दुबई की नौकरी छोड़ कर अमरेश कोलकाता में उन के साथ रहे और बिजनैस करे. तीसरे वर्ष अमरेश दुबई से आया तो उस ने उस से अपने दिल की बात कह दी. वह नहीं माना. वह कम से कम 10-15 वर्षों तक वहीं रहना चाहता था.

फिर तो चाह कर भी वह अमरेश को कुछ समझाबुझा नहीं सकी. फायदा कुछ होने वाला नहीं था. उस पर दुबई में अकेले ही रहने का जनून सवार था. उस के दुबई लौट जाने के 2 महीने बाद ही स्वाति का फोन आया था और अब वह मुंबई में थी.

अब आओ न मीता- भाग 2: क्या सागर का प्यार अपना पाई वह

फिर वह बीते दिन की रिपोर्ट देने लगा. थोड़ी देर बाद मीता अपने डिपार्ट- मेंट में चली गई. सारे दिन उस के भीतर एक अजीब सी हलचल होती रही थी. सागर का अप्रत्याशित व्यवहार उसे आंदोलित किए हुए था. 30-32 साल की उम्र होगी सागर की, लेकिन इस उम्र का सहज सामान्य व्यक्तित्व न था उस का. जो गंभीरता और सौम्यता 36-37 वर्ष में मीता को खुद में महसूस होती, वही कुछ सागर को देख कर महसूस होता था. उसे न जाने क्यों वह किसी भीतरी मंथन में उलझा सा लगता. वह किसी और की व्यक्तिगत जिंदगी में न दखल देना पसंद करती न ही इस में उस की रुचि थी. पर सागर की आज की बातों ने उसे अंदर से झकझोर दिया था.

रात बड़ी देर तक वह बेचैन रही. सागर सर के शब्द कानों में गूंजते रहे. सच तो यह है कि मीता सिर्फ शब्दों पर ही विश्वास नहीं करती, क्योंकि शब्द जाल तो किसी अर्थ विशेष से जुड़े होते हैं.

ट्रेन अपनी रफ्तार से चली जा रही थी. मीता सोच रही थी, ‘मेरे जैसा इनसान जिस ने खुद को समेटतेसमेटते अब किसी से एक इंच भी फासले के लायक न रखा वह किसी भावनात्मक संबंध के लिए सोचेगा तो सब से बड़ी सजा देगा खुद को. मेरी जिंदगी तो खुला पन्ना है जिस के हाशिए, कौमा, मात्राएं सबकुछ उजागर हैं. बस, नहीं है तो पूर्णविराम. होता भी कैसे? जब जिंदगी खुद ही कटापिटा वाक्य हो तो पूर्णविराम के लिए जगह ही कहां होगी?’

आज अचानक सागर सर की गहरी आंखों ने दर्द की हदों को हौले से छू दिया तो भरभरा कर सारे छाले फूट गए. मजाक करने के लिए किस्मत हर बार मुझी को क्यों चुनती है. सोचतेसोचते करवट बदल कर सोने की कोशिश करने लगी थी मीता.

दूसरे दिन सुबह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर रही थी कि कालबेल बज उठी. दरवाजा खोला तो सागर सर खड़े थे…

‘अरे, सागर सर, आप? भीतर आइए न?’

बीमार, परेशान सागर ने कहा, ‘माफ कीजिए, मीताजी, मैं आप को परेशान कर रहा हूं. मैं 3-4 दिन फैक्टरी न जा सकूंगा. प्लीज, यह एप्लीकेशन आफिस पहुंचा दीजिएगा.’

‘हांहां, ठीक है. पहुंचा दूंगी. आप अंदर तो आइए, सर.’

‘नहीं, बस ठीक है.’

शायद चक्कर आ रहे थे सागर को. लड़खड़ाते हुए दीवार से सिर टकरातेटकराते बचा. मीता ने उन्हें जबरदस्ती बिठाया और जल्दी से चायबिस्कुट टे्र में रख कर ले आई.

‘डाक्टर को दिखाया, सर, आप ने?’

‘नहीं. ठीक हो जाऊंगा एकाध दिन में.’

‘बिना दवा के कोई चमत्कार हो जाएगा?’

‘चमत्कार तो हो जाएगा… शायद…दवा के बिना ही हो.’

‘आप की फैमिली को भी तो च्ंिता होगी?’

‘मां और भाई गांव में हैं. भाई वहीं पास के मेडिकल कालिज में है.’

‘और यहां?’

‘यहां कोई नहीं है.’

‘आप की फैमिली…यानी वाइफ, बच्चे?’

‘जब कोई है ही नहीं तो कौन रहेगा,’ सागर का अकेलापन उस की आवाज पर भारी हो रहा था.

‘यहां आप कहां रहते हैं, सर?’

‘यहीं, आप के मकान की पिछली लाइन में.’

‘और मुझे पता ही नहीं अब तक?’

‘हां, आप बिजी जो रहती हैं.’

फिर आश्चर्यचकित थी मीता. सागर उस के रोजमर्रा के कामों की पूरी जानकारी रखता था.

चाय पी कर सागर जाने के लिए खड़ा हुआ. दरवाजे से बाहर निकल ही रहा था कि वापस पलट कर बोला, ‘एक रिक्वेस्ट है आप से.’

‘कहिए.’

‘प्लीज, बुरा मत मानिए… मुझे आप सर न कहिए. एक बार और रिक्वेस्ट करता हूं.’

‘अरे, इतने सालों की आदत बन गई है, सर.’

‘अचानक कभी कुछ नहीं होता. बस, धीरेधीरे ही तो सबकुछ बदलता है.’

जवाब सुने बिना ही वह वापस लौट गया. हाथ में टे्र पकड़े मीता खड़ी की खड़ी रह गई. सागर की पहेलियां उस की समझ से परे थीं.

धीरेधीरे 4-5 दिन बीत गए. सागर का कोई पता, कोई खबर न थी. छुट्टियां खत्म हुए भी 2 दिन बीत चुके थे. मैनेजर ने मीता को बुलवा कर सागर की तबीयत पता करने की जिम्मेदारी सौंपी.

घर आने से पहले उस ने पीछे की रो में जा कर सागर का घर ढूंढ़ने की कोशिश की तो उसे ज्यादा परेशानी नहीं हुई.

बहुत देर तक बेल बजाती रही लेकिन दरवाजा न खुला. किसी आशंका से कांप उठी वह. दरवाजे को एक हलका सा धक्का दिया तो वह खुल गया. मीता भीतर गई तो सारे घर में अंधेरा ही अंधेरा था. टटोलते हुए वह स्विच तक पहुंची. लाइट आन की. रोशनी हुई तो भीतर के कमरे में बेसुध सागर को पड़े देखा.

3-4 आवाजें दीं उस ने, पर जवाब नदारद था, सागर को होश होता तब तो जवाब मिलता.

उलटे पैर दरवाजा भेड़ कर मीता अपने घर आ गई. सागर का पता बता कर नीलेश को सागर के पास बैठने भेजा और खाना बनाने में जुट गई. खिचड़ी और टमाटर का सूप टिफिन में डाल कर छोटे बेटे यश को साथ ले कर वह सागर के यहां पहुंची. इनसानियत के नाते तो फर्ज था मीता का. आम सामाजिक संबंध ऐसे ही निभाए जाते हैं.

घर पहुंच कर देखा, शाम को जो घर अंधेरे में डूबा, वीरान था अब वही नीलेश और सागर की आवाज से गुलजार था. मीता को देखते ही नीलेश उत्साहित हो कर बोला, ‘मम्मी, अंकल को तो बहुत तेज फीवर था. फ्रिज से आइस निकाल कर मैं ने ठंडी पट्टियां सिर पर रखीं, तब कहीं जा कर फीवर डाउन हुआ है.’

प्रशंसा भरी नजरों से उसे देख कर वह बोली, ‘मुझे पता था, बेटे कि तुम्हारे जाने से अंकल को अच्छा लगेगा.’

‘और अब मैं डाक्टर बन कर अंकल को दवा देता हूं,’ यश कहां पीछे रहने वाला था. मम्मी के बैग से क्रोसिन और काम्बीफ्लेम की स्ट्रिप वह पहले ही निकाल चुका था.

‘चलिए अंकल, खाना खाइए. फिर मैं दवा खिलाऊंगा आप को.’

यश का आग्रह न टाल सका सागर. आज पहली बार उसे अपना घर, घर महसूस हो रहा था… सच तो यह था कि आज पहली बार उसे भूख लगी थी. काश, हर हफ्ते वह यों ही बीमार होता रहे. घर ही नहीं उसे अपने भीतर भी कुछ भराभरा सा महसूस हो रहा था.

खाना खातेखाते मीता से उस की नजरें मिलीं तो आंखों में छिपी कृतज्ञता को पहचान लिया मीता ने. इन्हीं आंखों ने तो बहुत बेचैन किया है उसे. मीता की आंखों में क्या था सागर न पढ़ सका. शायद पत्थर की भावनाएं उजागर नहीं होतीं.

सागर धीरेधीरे ठीक होने लगा. नीलेश और यश का साथ और मीता की देखभाल से यह संभव हो सका था. उस की भीतरी दुनिया भी व्यवस्थित हो चली थी. अंतर्मुखी और गंभीर सागर अब मुसकराने लगा था. नीलेश और यश ने भी अब तक मां की सुरक्षा और छांव ही जानी थी. पापा के अस्तित्व को तो जाना ही न था उन्होंने. सागर ने उस रिश्ते से न सही लेकिन किसी बेनाम रिश्ते से जोड़ लिया था खुद को. और मीता? एक अनजान सी दीवार थी अब भी दोनों के बीच. फैक्टरी में वही औपचारिकताएं थीं. घर में नीलेश और यश ही सागर के इर्दगिर्द होते. मीता चुप रह कर भी सामान्य थी, लेकिन सागर को न जाने क्यों अपने करीब महसूस करती थी.

विदाई- भाग 2: क्या कविता को नीरज का प्यार मिला?

उस ने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया. कविता अचानक हिचकियां ले कर रोने लगी. नीरज की आंखों से भी आंसू बह रहे थे.

कविता के शरीर ने जब कांपना बंद कर दिया तब नीरज ने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त किया. अब तक अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का सहारा ले कर उस ने खुद को काफी संभाल भी लिया था.

‘‘मेरे सामने यह रोनाधोना नहीं चलेगा, जानेमन,’’ उस ने मुसकरा कर कविता के गाल पर चुटकी भरी, ‘‘इन मुसीबत के क्षणों को भी हम उत्साह, हंसीखुशी और प्रेम के साथ गुजारेंगे. यह वादा इसी वक्त तुम्हें मुझ से करना होगा, कविता.’’

नीरज ने अपना हाथ कविता के सामने कर दिया.

कविता शरमाते हुए पहली बार सहज ढंग से मुसकराई और उस ने हाथ बढ़ा कर नीरज का हाथ पकड़ लिया.

उस रात नीरज अपनी ससुराल में रुका. दोनों ने साथसाथ खाना खाया. फिर देर रात तक हाथों में हाथ ले कर बातें करते रहे.

भविष्य के बारे में कैसी भी योजना बनाने का अवसर तो नियति ने उन से छीन ही लिया था. अतीत की खट्टीमीठी यादों को ही उन दोनों ने खूब याद किया.

सुहागरात, शिमला में बिताया हनीमून, साथ की गई खरीदारी, देखी हुई जगहें, आपसी तकरार, प्यार में बिताए क्षण, प्रशंसा, नाराजगी, रूठनामनाना और अन्य ढेर सारी यादों को उन्होंने उस रात शब्दों के माध्यम से जिआ.

हंसतेमुसकराते, आंसू बहाते वे दोनों देर रात तक जागते रहे. कविता उसे यौन सुख देने की इच्छुक भी थी पर कैंसर ने इतना तेज दर्द पैदा किया कि उन का मिलन संभव न था.

अपनी बेबसी पर कविता की रुलाई फूट पड़ी. नीरज ने बड़े सहज अंदाज में पूरी बात को लिया. वह तब तक कविता के सिर को सहलाता रहा जब तक वह सो नहीं गई.

‘‘मैं तुम्हारी अंतिम सांस तक तुम्हारे पास हूं, कविता. इस दुनिया से तुम्हारी विदाई मायूसी व शिकायत के साथ नहीं बल्कि प्रेम व अपनेपन के एहसास के साथ होगी, यह वादा है मेरा तुम से,’’ नींद में डूबी कविता से यह वादा कर के ही नीरज ने सोने के लिए अपनी आंखें बंद कीं.

अगले दिन सुबह नीरज और कविता 2 कमरों वाले एक फ्लैट में  रहने चले आए. यह खाली पड़ा फ्लैट नीरज के एक पक्के दोस्त रवि का था. रवि ने फ्लैट दिया तो अन्य दोस्तों व आफिस के सहयोगियों ने जरूरत के दूसरे सामान भी फ्लैट में पहुंचा दिए.

नीरज ने आफिस से लंबी छुट्टी ले ली. जहां तक संभव होता अपना हर पल वह कविता के साथ गुजारने की कोशिश करता.

उन से मिलने रोज ही कोई न कोई घर का सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त आ जाते. सभी अपनेअपने ढंग से सहानुभूति जाहिर कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करते.

नीरज की समझ में एक बात जल्दी ही आ गई कि हर सहानुभूतिपूर्ण बातचीत के बाद वह दोनों ही उदासी और निराशा का शिकार हो जाते थे. शब्दों के माध्यम से शरीर या मन की पीड़ा को कम करना संभव नहीं था.

इस समझ ने नीरज को बदल दिया. कविता का ध्यान उस की घातक बीमारी पर से हटा रहे, इस के लिए उस ने ज्यादा सक्रिय उपायों को इस्तेमाल में लाने का निर्णय किया.

उसी शाम वह बाजार से लूडो और कैरमबोर्ड खरीद लाया. कविता को ये दोनों ही खेल पसंद थे. जब भी समय मिलता दोनों के बीच लूडो की बाजी जम जाती.

एक सुबह रसोई में जा कर नीरज ने कविता से कहा, ‘‘मुझे भी खाना बनाना सिखाओ, मैं चाय बनाने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं.’’

‘‘अच्छा, खाना बनाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जनाब,’’ कविता उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए मुसकराई.

‘‘मैडमजी, मैं पूरी लगन से सीखूंगा.’’

‘‘मेरी डांट भी सुननी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे मंजूर है.’’

‘‘तब पहले सब्जी काटना सीखो,’’ कविता ने 4 आलू मजाकमजाक में नीरज को पकड़ा दिए.

नीरज तो सचमुच आलुओं को धो कर उन्हें काटने को तैयार हो गया. कविता ने उसे रोकना भी चाहा, पर वह नहीं माना.

उसे ढंग से चाकू पकड़ना भी कविता को सिखाना पड़ा. नीरज ने आलू के आड़ेतिरछे टुकड़े बड़े ध्यान से काटे. दोनों ने ही इस काम में खूब मजा लिया.

‘‘अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा आलू के पकौड़े,’’ नीरज की इस घोषणा को सुन कर कविता ने इतनी तरह की अजीबो- गरीब शक्लें बनाईं कि उस का हंसतेहंसते पेट दुखने लगा.

नीरज ने बेसन खुद घोला. तेल की कड़ाही के सामने खुद ही जमा रहा. कविता की सहायता व सलाह लेना उसे मंजूर था, पर पकौड़े बनाने का काम उसी ने किया.

उस दिन के बाद से नीरज भोजन बनाने के काम में कविता का बराबर हाथ बंटाता. कविता को भी उसे सिखाने में बहुत मजा आता. रसोई में साथसाथ बिताए समय के दौरान वह अपना दुखदर्द पूरी तरह भूल जाती.

‘‘मैं नहीं रहूंगी, तब भी आप कभी भूखे नहीं रहोगे. बहुत कुछ बनाना सीख गए हो अब आप,’’ एक रात सोने के समय कविता ने उसे छेड़ा.

‘‘तुम से मैं ने यह जो खाना बनाना सीखा है, शायद इसी की वजह से ऐसा समय कभी नहीं आएगा, जो तुम मेरे साथ मेरे दिल में कभी न रहो,’’ नीरज ने उस के होंठों को चूम लिया.

नीरज से लिपट कर बहुत देर तक खामोश रहने के बाद कविता ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आप के प्यार के कारण अब मुझे मौत से डर नहीं लगता है.

‘‘जिस से जानपहचान नहीं उस से डरना क्या. जीवन प्रेम से भरा हो तो मौत के बारे में सोचने की फुरसत किसे है,’’ नीरज ने इस बार उस की आंखों को बारीबारी से चूमा.

‘‘आप बहुत अच्छे हो,’’ कविता की आंखें नम होने लगीं.

‘‘थैंक यू. देखो, अगर मैं तुम्हारी तारीफ करने लगा तो सुबह हो जाएगी. कल अस्पताल जाना है. अब तुम आराम करो,’’ अपनी हथेली से नीरज ने कविता की आंखें मूंद दीं.

कुछ ही देर में कविता गहरी नींद के आगोश में पहुंच गई. नीरज देर तक उस के कमजोर पर शांत चेहरे को प्यार से निहारता रहा.

हर दूसरे दिन नीरज अपने किसी दोस्त की कार मांग लाता और कविता को उस की सहेलियों व मनपसंद रिश्तेदारों से मिलाने ले जाता. कभीकभी दोनों अकेले किसी उद्यान में जा कर हरियाली व रंगबिरंगे फूलों के बीच समय गुजारते. एकदूसरे का हाथ थाम कर अपने दिलों की बात कहते हुए समय कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता.

नीरज कितनी लगन व प्रेम से कविता की देखभाल कर रहा है, यह किसी की नजरों से छिपा नहीं रहा. कविता के मातापिता व भाई हर किसी के सामने नीरज की प्रशंसा करते न थकते.

नीरज के अपने मातापिता को उस का व्यवहार समझ में नहीं आता. वे उस के फ्लैट से हमेशा चिंतित व परेशान से हो कर लौटते.

दुलहन वही जो पिया मन भाए – भाग 2

सत्यम, जिस ने जीवन में पहली बार किसी लड़की को ऐसी नजर से देखा हो उसे तो पसंद आनी ही थी. कहना न होगा कि पहली ही नजर में वह दिल हार गया सुहानी के हाथों. अलबत्ता, सत्यम की मां ने अवश्य कहा, ‘कृपया सुहानी की कुंडली हमें दे दें ताकि हम अपने पुरोहित से सलाह कर शादी का दिन निकलवा सकें.’

‘परंतु हम तो जन्मकुंडली इत्यादि में विश्वास ही नहीं करते. सो, हमारे पास सुहानी की कोई कुंडली नहीं है,’ सुहानी के पापा ने कहा.

सत्यम की मम्मी कुछ परेशान सी होने लगीं. फिर वहीं से उन्होंने अपने पुरोहित को फोन लगाया. उन से बात की और फिर, ‘देखिए, ऐसा है यदि आप के पास कुंडली नहीं है तो कोई बात नहीं. आप मेरे पुरोहितजी से मिल लें. वे जन्मदिन और वक्त के हिसाब से सुहानी बिटिया की कुंडली बना देंगे,’ कह कर सत्यम की मां ने हल निकाला.

उस दिन के बाद से घरवालों की रजामंदी से सत्यम और सुहान मिलने लगे. सत्यम को सुहानी का सुहाना सा व्यक्तित्व, सोच और जीवन के प्रति सकारात्मक विचार काफी आकर्षक लगे. सुहानी को भी सत्यम की पढ़ाई, नौकरी और सीधापन भा गया. कुछ ही दिनों में दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए और इंतजार करने लगे कि कब शादी होगी.

सुहानी तो कैफेटेरिया नहीं आई, पर सत्यम की मम्मी के फोन आने लगे.

‘‘बेटा, जल्दी घर आ जाओ, कुछ जरूरी बात बतानी है.’’

‘‘क्या हुआ मां, मैं ने तो बताया ही था कि मैं सुहानी से मिलने जा रहा हूं,’’ घर पहुंचते ही सत्यम ने कहा.

‘‘कोई जरूरत नहीं है अब उस लड़की से मिलने की,’’ मां ने लगभग चीखते हुए कहा.

‘‘क्यों, अब क्या हो गया? आप सब को तो वह पसंद है और अब मुझे भी,’’ सत्यम ने खीझते हुए कहा.

‘‘नहीं, पंडितजी ने बताया है कि सुहानी घोर मांगलिक है और उस से शादी करने वाले की शीघ्र मौत निश्चित है. मुझे अपने बेटे के लिए कोई अनिष्टकारी नहीं चाहिए,’’ मां ने कहा.

‘‘वैज्ञानिक मंगल की यात्रा कर चुके हैं और आप अभी तक उस से डरती ही हैं,’’ सत्यम ने मां को समझाना चाहा.

मां से बहस करना व्यर्थ लगा. सो, सत्यम अपने कमरे में चला गया. शाम तक घर के सभी सदस्य उस की मां की बातों से सहमत दिखे. सत्यम ने अपनी तरफ से सभी को समझाने की बड़ी कोशिशें कीं, परंतु उस की मृत्युकारी कन्या से विवाह के सभी विरुद्ध ही रहे. वह बारबार सुहानी को फोन करता रहा, परंतु उस ने कौल रिसीव ही नहीं की.

दूसरे दिन शाम को सुहानी ने उसे फोन किया.

‘‘क्या हुआ सत्यम, क्यों लगातार फोन कर रहे हो?’’

‘‘मैं कल कैफेटेरिया में देर तक तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा. तुम आई भी नहीं और मेरा फोन भी नहीं उठाया,’’ सत्यम ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘अब इतने भोले भी न बनो जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं. तुम्हारे घरवालों ने तो परसों ही सूचना दे दी थी कि मांगलिक होने की वजह से यह रिश्ता नहीं हो सकता,’’ सुहानी ने गुस्से से कहा.

‘‘और उस ढोंगी बाबा की भी कहानी सुनो, जिस की भक्त तुम्हारी मां हैं. जब मेरे पापा उस बाबा से मिले तो उस ने कहा कि मनलायक कुंडली बनाने हेतु उसे 50 हजार रुपए चाहिए. मेरे पिताजी इन बातों पर विश्वास तो करते नहीं हैं. सो, उन्होंने इनकार कर दिया. गुस्से में उस ढोंगी ने तभी धमकी दे दी कि तब तो आप की बेटी की शादी मैं उस परिवार में होने नहीं दूंगा. लड़के की मां उस की मुट्ठी में है, कुछ ऐसा भी उस ने कहा. तुम्हारे घरवालों ने मेरे पापा की बात से अधिक उस तथाकथित बाबा की बातों को माना,’’ हांफती हुई सुहानी गुस्से में बोल रही थी.

‘‘हां, तुम्हें एक अच्छी खबर दे दूं कि आज मेरी सगाई हो गई और अगले महीने शादी है. अब मुझे कभी फोन नहीं करना,’’ कहते हुए सुहानी ने फोन काट दिया.

समझौता – भाग 2 : आखिर क्यों परेशान हुई रिया

रिया को स्वयं पर ही ग्लानि हो आई थी. बिना मतलब बच्चों को धुनने की क्या आवश्यकता थी. न जाने उन के कोमल मन पर क्या बीत रही होगी. भाईबहनों में तो ऐसे झगड़े होते ही रहते हैं. कम से कम उसे तो अपने होश नहीं खोने चाहिए थे पर नहीं, वह तो अपनी झल्लाहट बच्चों पर ही उतारना चाहती थी.

रिया किसी प्रकार उठ कर बच्चों के कमरे में पहुंची थी. किशोर और कोयल अब भी मुंह फुलाए बैठे थे.

रिया ने दोनों को मनायापुचकारा, ‘‘मम्मी को माफ नहीं करोगे तुम दोनों?’’ बच्चों का रुख देख कर रिया ने झटपट क्षमा भी मांग ली थी.

‘‘पर यह क्या?’’ डांट खा कर भी सदा चहकती रहने वाली कोयल फफक पड़ी थी.

‘‘अब हमारा क्या होगा मम्मी?’’ वह रोते हुए अस्पष्ट स्वर में बोली थी.

‘‘क्या होगा का क्या मतलब है? और ऐसी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’’

‘‘पापा की नौकरी चली गई मम्मी. अब आप उन्हें छोड़ दोगी न?’’ कोयल ने भोले स्वर में पूछा था.

‘‘क्या? किस ने कहा यह सब? न जाने क्या ऊलजलूल बातें सोचते रहते हो तुम दोनों,’’ रिया ने किशोर और कोयल को झिड़क दिया था पर दूसरे ही क्षण दोनों बच्चों को अपनी बाहों में समेट कर चूम लिया था.

‘‘हम सब का परिवार है यह. ऐसी बातों से कोई किसी से अलग नहीं होता. हमसब का बंधन अटूट है. पापा की नौकरी चली गई तो क्या हुआ? दूसरी मिल जाएगी. तब तक मेरी नौकरी में मजे से काम चल ही रहा है.’’

‘‘कहां काम चल रहा है मम्मी? मेरे सभी मित्र यही कहते हैं कि अब हम गरीब हो गए हैं. तभी तो प्रगति इंटरनेशनल को छोड़ कर हमें मौडर्न स्कूल में दाखिला लेना पड़ा. ‘टाइगर हाइट्स’ छोड़ कर हमें जनता अपार्टमेंट के छोटे से फ्लैट में रहना पड़ रहा है.’’ किशोर उदास स्वर में बोला तो रिया सन्न रह गई थी.

‘‘ऐसा नहीं है बेटे. तुम्हारे पुराने स्कूल में ढंग से पढ़ाई नहीं होती थी इसीलिए उसे बदलना पड़ा,’’ रिया ने समझाना चाहा था. पर अपने स्वर पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था. बच्चे छोटे अवश्य हैं पर उन्हें बातों में उलझाना बच्चों का खेल नहीं था.

कुछ ही देर में बच्चे अपना गृहकार्य समाप्त कर खापी कर सो गए थे पर रिया राजीव की प्रतीक्षा में बैठे हुए ऊंघने लगी थी.

रात के 11 बज गए तो उस ने मोबाइल उठा कर राजीव से संपर्क करने का प्रयत्न किया था. घर से रूठ कर गए हैं तो मनाना तो पड़ेगा ही. पर नंबर मिलाते ही खाने की मेज पर रखा राजीव का फोन बजने लगा था.

‘‘तो महाशय फोन यहीं छोड़ गए हैं. इतना गैरजिम्मेदार तो राजीव कभी नहीं थे. क्या बेरोजगारी मनुष्य के व्यक्तित्व को इस तरह बदल देती है? कब तक आंखें पसारे बैठी रहे वह राजीव के लिए. कल आफिस भी जाना है.’’ इसी ऊहापोह में कब उस की आंख लग गई थी, पता ही नहीं चला था.

दीवार घड़ी में 12 घंटों का स्वर सुन कर वह चौंक कर उठ बैठी थी. घबरा कर उस ने राजीव के मित्रों से संपर्क साधा था.

‘‘कौन? रमोला?’’ रिया ने राजीव के मित्र संतोष के यहां फोन किया तो फोन उस की पत्नी रमोला ने उठाया था.

‘‘हां, रिया, कहो कैसी हो?’’

‘‘सौरी, रमोला, इतनी रात गए तुम्हें तकलीफ दी पर शाम 6 बजे के गए राजीव अभी तक घर नहीं लौटे हैं. तुम्हारे यहां आए थे क्या?’’

‘‘कैसी तकलीफ रिया, आज तो लगता है सारी रात आंखों में ही कटेगी. राजीव आए थे यहां. राजीव और संतोष ने साथ चाय पी. गपशप चल रही थी कि मनोज की पत्नी का फोन आ गया कि मनोज ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. दोनों साथ ही मनोज के यहां गए हैं. पर उन्हें तुम्हें फोन तो करना चाहिए था.’’

‘‘राजीव अपना मोबाइल घर ही भूल गए हैं. पर मनोज जैसा व्यक्ति ऐसा कदम भी उठा सकता है मैं तो सोच भी नहीं सकती थी. हुआ क्या था?’’

‘‘पता नहीं, संतोष का फोन आया था कि मनोज और उस की पत्नी में सब्जी लाने को ले कर तीखी झड़प हुई थी. उस के बाद वह तो पास के ही स्टोर में सब्जी लेने चली गई और मनोज ने यह कांड कर डाला,’’ रमोला ने बताया था.

‘‘हाय राम, इतनी सी बात पर जान दे दी.’’

‘‘बात इतनी सी कहां है रिया. ये लोग तो आकाश से सीधे जमीन पर गिरे हैं. छोटी सी बात भी इन्हें तीर की तरह लगती है.’’

‘‘पर इन्होंने एकदूसरे को सहारा देने के लिए संगठन बनाया हुआ है.’’

‘‘कैसा संगठन और कैसा सहारा? जब अपनी ही समस्या नहीं सुलझती तो दूसरों की क्या सुलझाएंगे.’’ रमोला लगभग रो ही पड़ी थी.

‘‘संतोष भैया फिर भी तकदीर वाले हैं कि शीघ्र ही दूसरी नौकरी मिल गई.’’ रिया के शब्द रमोला को तीर की तरह चुभे थे.

‘‘तुम से क्या छिपाना रिया, संतोष के चाचाजी की फैक्टरी है. पहले से एकतिहाई वेतन पर दिनरात जुटे रहते हैं.’’

‘‘ऐसा समय भी देखना पड़ेगा कभी सोचा न था,’’ रिया ने फोन रख दिया था.

रिया की चिंता की सीमा न थी. इतनी सी बात पर मनोज ने यह क्या कर डाला. अपनी पत्नी और बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा. रिया पूरी रात सो नहीं सकी थी. उस के और राजीव के बीच भी तो आएदिन झगड़े होते रहते हैं. वह तो दिन भर आफिस में रहती है और राजीव अकेला घर में. उस से आगे तो वह सोच भी नहीं सकी और फफक कर रो पड़ी थी.

बहन का सुहाग: भाग 2- चंचल रिया की चालाकी

दोनों में नजदीकियां बढ़ गई थीं. राजवीर सिंह का रुतबा विश्वविद्यालय में काफी बढ़ चुका था और निहारिका को भी यह अच्छा लगने लगा था कि एक लड़का जो संपन्न भी है, सुंदर भी और विश्वविद्यालय में उस की अच्छीखासी धाक भी है, वह स्वयं उस के आगेपीछे रहता है.

थोड़ा समय और बीता तो राजवीर ने निहारिका से अपने मन की बात कह डाली, ‘‘देखो निहारिका, अब तक तुम मेरे बारे में सबकुछ जान चुकी हो… मेरे घर वालों से भी तुम मिल चुकी हो… मेरा घर, मेरा बैंक बैलेंस, यहां तक कि मेरी पसंदनापसंद को भी तुम बखूबी जानती हो…

“और आज मैं तुम से कहना चाहता हूं कि मैं तुम से शादी करना चाहता हूं और मैं यह भी जानता हूं कि तुम इनकार नहीं कर पाओगी.”

बदले में निहारिका सिर्फ मुसकरा कर रह गई थी.

‘‘और हां, तुम अपने मम्मीपापा की चिंता मत करो. मैं उन से भी बात कर लूंगा,‘‘ इतना कह कर राजवीर सिंह ने निहारिका के होंठों को चूमने की कोशिश की, पर निहारिका ने हर बार की तरह इस बार भी यह कह कर टाल दिया कि ये सब शादी से पहले करना अच्छा नहीं लगता.

राजवीर सिंह ने खुद ही निहारिका के घर वालों से बात की. वह एक पैसे वाले घर से ताल्लुक रखता था, जबकि निहारिका एक सामान्य घर से.
निहारिका के मम्मीपापा को भला इतने अच्छे रिश्ते से क्या आपत्ति होती और इस से पहले भी वे निहारिका के मुंह से कई बार राजवीर के लिए तारीफ सुन चुके थे. ऐसे में उन्हें रिश्ते को न कहने की कोई वजह नहीं मिली.

ग्रेजुएशन करते ही निहारिका की शादी राजवीर सिंह से तय हो गई.

और शादी ऐसी आलीशान ढंग से हुई, जिस की चर्चा लोग महीनों तक करते रहे थे. इलाके के लोगों ने इतनी शानदार दावत कभी नहीं खाई थी. बरात में ऊंट, घोड़े और हाथी तक आए थे.

शादी के बाद निहारिका के सपनों को पंख लग गए थे. इतना अच्छा घर, सासससुर और इतना अच्छा पति मिलेगा, इस की कल्पना भी उस ने नहीं की थी.

‘‘राजवीर… जा, बहू को मंदिर ले जा और कहीं घुमा भी ले आना,‘‘ राजवीर को आवाज लगाते हुए उस की मां ने कहा.

राजवीर और निहारिका साथ घूमतेफिरते और अपने जीवन के मजे ले रहे थे. रात में वे दोनों एकदूसरे की बांहों में सोए रहते.

सैक्स के मामले में राजवीर किसी भूखे भेड़िए की तरह हो जाता था. वह निहारिका को ब्लू फिल्में दिखाता और वैसा ही करने के लिए उस पर दबाव डालता.

निहारिका को ये सब पसंद नहीं था. राजवीर के बहुत कहने पर भी वह ब्लू फिल्मों के सीन को उस के साथ नहीं कर पाती थी. कई बार तो निहारिका को ऐसा करते समय उबकाई सी आने लगती.

ये राजवीर का एक नया और अलग रूप था, जिस से निहारिका पहली बार परिचित हो रही थी.

अपनी इस समस्या के लिए निहारिका ने इंटरनैट का सहारा लिया और पाया कि कुछ पुरुषों में पोर्न देखने और वैसा ही करने की कुछ अधिक प्रवत्ति होती है और यह बिलकुल ही सहज है.

निहारिका ने सोचा कि अभी नईनई शादी हुई है, इसलिए  अधिक उत्साहित है. थोड़ा समय बीतेगा, तो वह मेरी भावनाओं को भी समझेगा, पर बेचारी निहारिका को क्या पता था कि ऐसा कभी नहीं होने वाला था.

शादी के 5 महीने बीत चुके थे. निहारिका की छोटी बहन रिया अपने पापा आनंद रंजन के साथ निहारिका से मिलने आई थी. पापा आनंद रंजन तो अपनी बेटी निहारिका से मिल कर चले गए, पर रिया निहारिका के पास ही रुक गई थी.

राजवीर सिंह ने निहारिका के पापा आनंद रंजन को बताया कि वे सब आगरा जाने का प्लान बना रहे हैं और इस में रिया भी साथ रहेगी, तो निहारिका को भी अच्छा लगेगा.

निहारिका के पापा आनंद रंजन को कोई आपत्ति नहीं हुई.

रिया के आने के बाद तो राजवीर के चेहरे पर चमक और भी बढ़ गई थी, बढ़ती भी क्यों नहीं, दोनों का रिश्ता ही कुछ ऐसा था. अब तो दोनों में खूब चुहलबाजियां होतीं. अपने जीजा को छेड़ने का कोई भी मौका रिया अपने हाथ से जाने नहीं देती थी.

वैसे भी रिया को हमेशा से ही लड़कों के साथ उठनाबैठना, खानापीना अच्छा लगता था और अब जीजा के रूप में उसे ये सब करने के लिए एक अच्छा साथी मिल गया था.

एक रात की बात है, जब खाने के बाद रिया अपने कमरे में सोने के लिए चली गई तो उसे याद आया कि उस के मोबाइल का पावर बैंक तो जीजाजी के कमरे में ही रह गया है. अभी ज्यादा देर नहीं हुई थी, इसलिए वह अपना पावर बैंक लेने जीजाजी के कमरे के पास गई और दरवाजे के पास आ कर अचानक ही ठिठक गई. दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था और अंदर का नजारा देख रिया रोमांचित हुए बिना न रह सकी. कमरे में जीजाजी निहारिका के अधरों का पान कर रहे थे और निहारिका भी हलकेफुलके प्रतिरोध के बाद उन का साथ दे रही थी और उन के हाथ जीजाजी के सिर के बालों में घूम रहे थे.

किसी जोड़े को इस तरह प्रेमावस्था में लिप्त देखना रिया के लिए पहला अवसर था. युवावस्था में कदम रख चुकी रिया भी उत्तेजित हो उठी थी और ऐसा नजारा उसे अच्छा भी लग रहा था और मन में देख लिए जाने का डर भी था, इसलिए वह तुरंत ही अपने कमरे में लौट आई.

कमरे में आ कर रिया ने सोने की बहुत कोशिश की, पर नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. वह बारबार करवट बदलती थी, पर उस की आंखों में दीदी और जीजाजी का आलिंगनबद्ध नजारा याद आ रहा था. मन ही मन वह अपनी शादी के लिए राजवीर सिंह जैसे गठीले बदन वाले बांके के ख्वाब देखने लगी.

किसी तरह सुबह हुई, तो सब से पहले जीजाजी उस के कमरे में आए और चहकते हुए बोले, ‘‘हैप्पी बर्थ डे रिया.‘‘

‘‘ओह… अरे जीजाजी, आप को मेरा बर्थडे कैसे पता… जरूर निहारिका  दीदी ने बताया होगा.’’

‘‘अरे नहीं भाई… तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की का बर्थडे हम कैसे भूल सकते हैं?‘‘ राजवीर की आंखों में शरारत तैर रही थी.

‘‘ओह… तो आप ने मुझ से पहले ही बाजी मार ली, रिया को हैप्पी बर्थडे विश कर के…‘‘ निहारिका ने कहा.

‘‘हां… हां… भाई, क्यों नहीं… तुम से ज्यादा हक है मेरा… आखिर जीजा हूं मैं इस का,‘‘ हंसते हुए राजवीर बोला.

कमरे में एकसाथ तीनों के हंसने की आवाजें गूंजने लगीं.

शाम को एक बड़े होटल में केक काट कर रिया का जन्मदिन मनाया गया. बहुत बड़ी पार्टी दी थी राजवीर ने और राजनीतिक पार्टी के कई बड़े नेताओं को भी इसी बहाने पार्टी में बुलाया था.

रिया आज बहुत खूबसूरत लग रही थी. कई बार रिया को राजवीर सिंह के साथ खड़ा देख लोगों ने उसे ही मिसेज राजवीर समझ लिया और जबजब कोई रिया को मिसेज राजवीर कह कर संबोधित करता तो एक शर्म की लाली उस के चेहरे पर दौड़ जाती.

आहत- भाग 2: एक स्वार्थी का प्रेम

बहुत तड़के ही शालिनी उठ कर नहाने चली गई. अभी वह ड्रैसिंगटेबल के पास पहुंची ही थी कि सौरभ ने उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी.

‘‘अरे छोड़ो न, क्या करते हो? रात भर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ शालिनी कसमसाई.

‘‘मैं तुम्हें जितना ज्यादा प्यार करता हूं, उतना ही और ज्यादा करने का मन करता है.’’

‘‘अच्छा… तो अगर मैं आज कुछ मांगूं तो दोगे?’’

‘‘जान मांगलो, पर अभी मुझे प्यार करने से न रोको.’’

‘‘उफ, इतनी बेचैनी… अच्छा सुनो मैं ने नौकरी करने का निर्णय लिया है.’’

‘‘अरे, मैं तो खुद ही कह चुका हूं तुम्हें… घर बैठ कर बोर होने से तो अच्छा ही है… अच्छा समझ गया. तुम चाहती हो मैं तुम्हारी नौकरी के लिए किसी से बात करूं.’’

‘‘नहीं… मुझे नौकरी मिल गई है.’’

‘‘मिल गई, कहां?’’

‘‘विमल ने मुझे अपने औफिस में काम करने का औफर दिया और मैं ने स्वीकार लिया.’’

सौरभ समझ गया था विरोध बेकार है. शालिनी उस से पूछ नहीं रही थी, उसे अपना निर्णय बता रही थी. सौरभ ने गले लगा कर शालिनी को बधाई दी और उस के बाद एक बार फिर दोनों एकदूसरे में समा गए.

शालिनी ने विमल के औफिस में काम करना शुरू कर दिया था. औफिस के काम से दोनों को कई बार शहर से बाहर भी जाना पड़ता था, परंतु सौरभ को कभी उन पर शक नहीं हुआ, क्योंकि शक करने जैसा कुछ था ही नहीं.

विमल के हर टूअर में उस की पत्नी रमा उस के साथ जाती थी. शालिनी तो अकसर

सौरभ से विमल और रमा के प्रेम की चर्चा भी करती थी. ऐसे ही एक टूअर पर विमल और रमा के साथ शालिनी भी गई. वैसे तो यह एक

औफिशियल टूअर था पर मनाली की खूबसूरती ने उन का मन मोह लिया. तय हुआ अभी तीनों ही जाएंगे. सौरभ बाद में उन के साथ शामिल होने वाला था.

मीटिंग के बाद विमल और शालिनी लौट रहे थे. विमल को ड्राइविंग पसंद थी, इसलिए अकसर वह गाड़ी खुद ही चलाता था. अचानक एक सुनसान जगह पर उस ने गाड़ी रोक दी.

‘‘क्या हुआ विमल, गाड़ी खराब हो गई क्या?’’

‘‘गाड़ी नहीं मेरी नियत खराब हो गई है और उस का कारण तुम हो शालिनी.’’

‘‘मैं… वह भला कैसे?’’ शालिनी ने मासूमियत का नाटक करते हुए पूछा.

‘‘तुम इतनी खूबसूरत हो तो तुम्हारे प्यार करने की अदा भी तो उतनी ही खूबसूरत होगी न?’’ कह विमल ने शालिनी का हाथ पकड़ लिया.

‘‘मुझे अपने करीब आने दो… इस में हम दोनों का ही फायदा है.’’

‘‘तुम पागल हो गए हो विमल?’’ शालिनी ने हाथ छुड़ाने का नाटक भर किया.

‘‘नहीं शालिनी अभी पागल तो नहीं हुआ, लेकिन यदि तुम्हें पा न सका तो जरूर हो जाऊंगा.’’

‘‘न बाबा न, किसी को पागल करने का दोष मैं अपने ऊपर क्यों लूं?’’

‘‘तो फिर अपने इन अधरों को…’’ बात अधूरी छोड़ विमल शालिनी को अपनी बांहों में लेने की कोशिश करने लगा.

‘‘अरेअरे… रुक भी जाओ. इतनी जल्दी क्या है? पहले यह तो तय हो जाए इस में मेरा फायदा क्या है?’’

‘‘तुम जो चाहो… मैं तो तुम्हारा गुलाम हूं.’’

शालिनी समझ गई थी, लोहा गरम है और यही उस पर चोट करने का सही वक्त है. अत: बोली, ‘‘मुझे नए प्रोजैक्ट का हैड बना दो विमल. बोलो क्या इतना कर पाओगे मेरे लिए?’’

‘‘बस, समझो बना दिया.’’

‘‘मुझे गलत मत समझना विमल, परंतु मैं ऐसे ही तुम्हारी बात पर भरोसा…’’

‘‘ऐसा है तो फिर यह लो,’’ कह उसी समय उसी के सामने औफिस में फोन कर शालिनी की इच्छा को अमलीजामा पहना दिया.

जब शालिनी के मन की बात हो गई तो फिर विमल के मन की बात कैसे अधूरी रहती.

उस दिन के बाद विमल और शालिनी और करीब आते गए. दोनों एकसाथ घूमते, खातेपीते और रात भर खूब मस्ती करते. रमा होटल के कमरे में अकेली पड़ी रही, पर उस ने विमल से कभी भी कुछ नहीं पूछा.

2 हफ्ते बाद वे लोग दिल्ली लौट आए थे. सौरभ को औफिस से छुट्टी नहीं मिल पाई थी, इसलिए उस का मनाली का टूअर कैंसिल हो गया था. इसी बात को बहाना बना कर शालिनी ने सौरभ से झूठी नाराजगी का ढोंग भी रचाया था.

‘‘वहां विमल और रमा एकसाथ घूमते… मैं अकेली होटल में कमरे में करवटें बदलती रह जाती.’’

सौरभ बेचारा मिन्नतें करता रह जाता और फिर शालिनी को मनाने के लिए उस की पसंद के महंगेमहंगे उपहार ला कर देता रहता… फिर भी शालिनी यदाकदा उस बात को उठा ही देती थी.

मनाली से लौट कर शालिनी के रंगढंग और तेवर लगातार बदल रहे थे.

अब तो वह अकसर घर देर से लौटने लगी और कई बार तो उस के मुंह से शराब की गंध भी आ रही होती.

शालिनी अकसर खाना भी बाहर खा कर आती थी. कुक सौरभ का खाना बना कर चला जाता था. जब वह घर लौटती उस के बेतरतीब कपड़े, बिगड़ा मेकअप भी खामोश जबान से उस की चुगली करते थे. मगर सौरभ ने तो जैसे अपनी आंखें मूंद ली थी. उसे तो यही लगता था कि वह शालिनी को समय नहीं दे पा रहा. इसीलिए वह उस से दूर हो रही.

एक दिन शालिनी ने उसे बताया विमल और रमा घूमने आगरा जा रहे हैं और उन से भी साथ चलने को कह रहे हैं. सौरभ को इस बार भी छुट्टी मिलने में परेशानी हो रही थी. उस के कई बार समझाने पर शालिनी विमल और रमा के साथ चली गई. सब कुछ शालिनी के मनमुताबिक ही हो रहा था, फिर भी उस ने अपनी बातों से सौरभ को अपराधबोध से भर दिया था.

गाड़ी में आगे की सीट पर विमल की बगल में बैठी शालिनी सौरभ की बेवकूफी पर काफी देर तक ठहाका लगाती रही थी.

‘‘अब बस भी करो शालिनी डार्लिंग… बेचारा सौरभ… हाहाहा’’

‘‘चलो छोड़ दिया. तुम यह बताओ तुम्हें गाड़ी से जाने की क्या सूझी?’’

‘‘दिल्ली और आगरा के बीच की दूरी है ही कितनी और वैसे भी लौंग ड्राइव में रोमांस का अपना मजा है मेरी जान,’’ और फिर दोनों एकसाथ हंस पड़े थे. रमा पीछे की सीट पर बैठी उन की इस बेहयाई की मूक दर्शक बनी रही.

सौरभ को छुट्टी अगले दिन ही मिल गई थी, परंतु वह शालिनी को सरप्राइज देना चाहता था. इसलिए शालिनी को बिन बताए ही आगरा पहुंच गया.

अधूरी प्यास – भाग 2: नव्या पर लगा हवस का चसका

‘‘वाह रे नव्या, तेरी तो लौटरी लग गई. विपुल सर के घर… डाउट क्लियर… मौजां ही मौजां…’’ सुहानी ने नव्या को छेड़ा. नव्या ने भी उसे आंख मार दी.स्कूल के बाद नव्या धड़कते दिल से गेट के बाहर निकली. कुछ दूर चलने पर ही विपुल सर की कार दिखाई दी. नव्या कार के नजदीक पहुंची, तो सर ने आगे का गेट खोल दिया. नव्या तुरंत गाड़ी में बैठ गई.‘‘तुम रिलैक्स हो न नव्या?’’ विपुल सर ने पूछा.‘‘जी सर…’’

नव्या ने बैग पीछे रखते हुए कहा.‘‘सो स्वीट,’’

विपुल सर ने कहा और उस की जांघों को सहला दिया. नव्या का शरीर कंपकंपा गया.‘‘मैं तुम्हें बहुत दिनों से नोटिस कर रहा था,’’ विपुल सर ने कहा.‘‘क्या सर?’’

नव्या ने डर के लहजे में पूछा.‘‘क्या तुम नहीं जानती?’’ विपुल सर ने सवाल किया.

‘‘जी सर, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं,’’ नव्या ने दिल खोला.

‘‘अच्छा… कितना अच्छा लगता हूं?’’ विपुल सर ने बात को आगे बढ़ाया.

‘‘सब से अच्छे, इतने अच्छे, इतने अच्छे कि ऐसा लगता है कि…’’

नव्या ने बात अधूरी छोड़ दी.‘‘कितने अच्छे, अब बता भी दो.

यहां तो कोई नहीं हम दोनों के अलावा,’’ विपुल सर ने सुलगती आग को हवा देना शुरू किया.‘‘सर…’’

कह कर नव्या ने उन की जांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. विपुल सर ने नव्या का हाथ कस कर पकड़ लिया और कहा, ‘‘तुम्हारी बेचैनी मैं समझ रहा हूं. सब्र करो, बस घर पहुंचने ही वाले हैं, फिर तुम्हारे इस प्यारे से शरीर को बहुत प्यार करूंगा.’’

‘‘ओह सर, आई लव यू सर…’’ कहते हुए नव्या ने उन के गालों को चूम लिया.गाड़ी पार्क कर के विपुल सर नव्या को घर के भीतर ले आए.

दरवाजा बंद कर दिया और पलटते ही नव्या को बांहों में भर कर उस के होंठों को अपने होंठों में भर लिया. नव्या तो पहले ही बेकाबू हो चुकी थी. उसे तो बस आज अपने शरीर की भूख मिटानी थी, जो उसे भीतर ही भीतर खा रही थी. विपुल सर ने नव्या को गोद में उठा लिया और बैडरूम में ले जा कर बिस्तर पर लिटा दिया. नव्या बदहवास हो रही थी. उस ने विपुल सर को पकड़ कर अपने शरीर पर गिरा लिया और बेतहाशा चूमने लगी. विपुल सर के हाथ उस के उभारों पर थे, जिन्हें वह कस कर भींच रहे थे. नव्या को एक मीठामीठा दर्द हो रहा था. उस की सिसकारियां निकलने लगीं.

विपुल सर को तो कोरा बदन मिला था, सो वे भी उस का पूरा मजा लेना चाहते थे. उन्होंने नव्या की कमीज उतार दी. उस के बेदाग, गदराए उभार देखते ही वे पूरी तरह बहक गए. नव्या के अंगों से खेलते हुए उन्होंने कुछ ही देर में उस के सारे कपड़े उतार दिए.नव्या ने उन्हें कस कर पकड़ रखा था मानो वह तो यही चाहती थी. कुछ ही देर में नव्या की सिसकारियों से कमरा गूंज उठा.

नव्या का कुंआरापन भंग हो चुका था, लेकिन नव्या इस से बेफिक्र सैक्स के सागर में गोते लगा रही थी.थोड़ी देर में सबकुछ शांत हो गया.

नव्या कपड़े पहनने लगी. हालांकि, उसे बड़ा दर्द हो रहा था. विपुल सर ने जल्दी से दूसरी चादर बिछा दी और बोले, ‘‘नव्या, तुम ठीक हो न?’’‘‘जी सर.’’‘‘तो फिर अब क्या इरादा है?’’

‘‘क्या मतलब सर?’’‘‘अब दोबारा कब?’’‘‘जब आप कहें…’’‘‘कल?’’

‘‘आप की वाइफ…’’‘‘वह हफ्तेभर के लिए गई है.’’

‘‘फिर तो ठीक है.’’

‘‘चलो, तुम्हें बस स्टौप तक छोड़ दूं…’’

विपुल सर ने नव्या को सीने से कस कर लगाते हुए कहा.‘‘लव यू सर.’’‘‘लव यू टू, माय स्वीटी…’’ कहते हुए विपुल सर ने उस के होंठों को चूम लिया, फिर उसे बस स्टौप तक छोड़ आए.नव्या घर पहुंची, पर सैक्स से अभी उस का मन नहीं भरा था. उस का बस चलता तो वह घर आती ही नहीं. विपुल सर की वाइफ के न होने का वह भरपूर फायदा उठाना चाहती थी.‘‘बहुत थकी हुई लग रही है तू, ऐक्स्ट्रा क्लास के बारे में तू ने सुबह तो कुछ नहीं बताया था…’’ मम्मी ने कहा.‘‘मम्मी, ऐक्स्ट्रा क्लास अचानक ही अनाउंस हो गई.

अब रोज रहेगी. मैं रोज ही देर से आऊंगी,’’ नव्या ने लगे हाथ आगे का रास्ता साफ कर लिया.अगला पूरा हफ्ता नव्या और विपुल सर ने सैक्स का भरपूर मजा लिया.‘‘नव्या, कल मेरी वाइफ वापस आ रही है.’’‘‘ओह सर, फिर अब क्या करेंगे?’’‘‘यही मैं भी सोच रहा हूं.’’‘‘सर, कोई रास्ता तो निकालना होगा, अब तो मैं…’’‘‘जानता हूं, मेरी भी वही हालत है.’’‘‘तो फिर कुछ करिए न.’’

‘‘एक रास्ता है, अगर तुम तैयार हो जाओ तो…’’‘‘कौन सा रास्ता?’’‘‘मेरा एक दोस्त है. उस की वाइफ डिलीवरी के लिए मायके गई हुई है एक महीने के लिए, उस के घर इंतजाम हो सकता है, लेकिन…’’‘‘लेकिन, क्या सर?’’‘‘अब देखो नव्या, हम किसी से मदद लेना चाहते हैं, तो उसे कुछ देना भी होगा.’’‘‘क्या देना होगा?’’ नव्या ने बात समझते हुए कहा.‘‘कभीकभी वह भी तुम्हारे साथ…’’‘‘हां तो नो प्रौब्लम सर. आप के साथ के लिए इतना सैक्रिफाइस तो कर ही सकती हूं.’’‘‘तो फिर कल से गिरीश के घर.’’‘‘ओके सर,’’ दरअसल, नव्या को अब सैक्स का चसका लग चुका था.

उसे एक से ज्यादा मर्दों से संबंध बनाने से कोई परहेज नहीं था और इन शादीशुदा मर्दों को मुंह का जायका बदलने के लिए गरम और कम उम्र की चिडि़या मिल गई थी.अब तो नव्या का हर रोज सैक्स करने का सिलसिला चल निकला. स्कूल से अब कालेज में आ गई थी वह. अपनी अदाओं से नित नए मुरगे फंसाने का हुनर भी आ गया था.‘‘नव्या सुन, आज रोहित आ रहा है, उस की मीटिंग है यहां, शायद 2-4 दिन रुके. रमा बोल रही थी कि वह होटल में रुक जाएगा, लेकिन मैं ने कहा कि मौसी का घर होते हुए होटल में क्यों रुके, इसलिए मैं ने उसे यहीं बुला लिया है. ‘‘तू अपना कमरा उसे सोने के लिए दे देना.

तू मेरे साथ सो जाना. पापा बैठक में सोफे पर सो जाएंगे. ठीक है न?’’ तनुजा ने नव्या से कहा.‘‘अरे यार मम्मी, आप भी न…’’‘‘क्या आप भी, मौसेरा भाई है वह तेरा. 1-2 दिन एडजस्ट नहीं कर सकती क्या?’’‘‘ठीक है बाबा, कर लूंगी एडजस्ट.’’अगले दिन सुबह ही रोहित आ गया. काफी समय के बाद नव्या और रोहित मिले थे.‘‘और कैसी है रे तू छुटंकी?’’ रोहित ने हंसते हुए कहा.‘‘अब मैं छुटंकी कहां हूं, देख कितनी बड़ी हो गई…’’ नव्या ने तनते हुए कहा.‘‘हां, वह तो है,’’ रोहित ने उस के शरीर पर निगाह डालते हुए कहा. उस की नजरें नव्या के अंगों के उतारचढ़ाव से हटने को राजी नहीं थीं. बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू करते हुए वह बोला, ‘‘और बताओ, आजकल क्या चल रहा है?’’

‘‘सब एकदम बढि़या चल रहा है. तुम सुनाओ, कैसी मीटिंग है तुम्हारी?’’ नव्या ने हिलते हुए कहा.‘‘औफिशियल है. खाली समय में तुम जबलपुर घुमा देना. घुमाओगी या नहीं?’’ रोहित ने नव्या की आंखों में गहरे झांकते हुए कहा.‘‘बिलकुल घुमाएंगे जबलपुर, बदले में क्या दोगे?’’ नव्या ने पूछा.‘‘क्या चाहिए बोलो तो, जो बोलोगी मिल जाएगा,’’ रोहित ने आंख मारते हुए कहा.‘‘अरे, क्या लेनेदेने की बातें हो रही हैं… चल बेटा रोहित, फ्रैश हो ले. मैं नाश्ता लगाती हूं.

नव्या, जरा रोहित को अपना रूम तो दिखा दो,’’ तनुजा ने आ कर कहा.‘‘ओके मम्मी. चलो रोहित, आज से मेरा रूम तुम्हारा है, ऐश करो,’’ नव्या ने हंसते हुए कहा और रोहित को अपने कमरे तक ले आई.‘‘वैलकम इन माय रूम…’’‘‘थैंक्स डियर,’’ कह कर रोहित ने शेकहैंड की मुद्रा में हाथ बढ़ाया.‘‘मोस्ट वैलकम,’’ कह कर नव्या ने अपना हाथ उस के हाथ में दिया, जिसे रोहित ने चूम लिया. नव्या ने मुसकराते हुए उस की इस हरकत का स्वागत किया.नव्या रोहित के इरादे समझ चुकी थी.

उस के लिए तो यह एक बेहतरीन मौका था, घर में ही रात को रंगीन बनाने का.रोहित नाश्ता कर के मीटिंग अटैंड करने चला गया. नव्या भी कालेज चली गई. यह उस का बीए का दूसरा साल था, जहां उस की खुली जिंदगी जीने की चाहत को पंख मिल चुके थे. सैक्स संबंध, ऐयाशी, अमीर मर्दों से महंगे गिफ्ट्स लेना… सबकुछ बड़े मजे से चल रहा था.

शाम को रोहित घर पहुंचा. उस के दिमाग में भी कुछ चल रहा था. नव्या मौसेरी बहन थी, लेकिन उस की दावत देती आंखों ने रोहित का विवेक खत्म कर दिया था. उसे तो बस नव्या का भरा हुआ कसा तन चुंबक की तरह खींच रहा था.‘‘बेटा, कैसी रही तुम्हारी मीटिंग?’’ तनुजा ने पूछा.‘‘बढि़या रही मौसी,’’ रोहित बोला.‘‘चलो, हाथमुंह धो कर रिलैक्स हो जाओ,’’ तनुजा ने कहा.‘‘जी मौसी, नव्या कहां है?’’ रोहित ने पूछा.‘‘वह फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में गई है.

आती ही होगी,’’ तनुजा ने बताया.‘‘ओके मौसी, मैं फ्रैश हो कर आता हूं,’’ कह कर रोहित कमरे में चला गया.थोड़ी ही देर में नव्या भी आ गई, ‘‘और जनाब, कैसी रही आप की आज की मीटिंग?’’‘‘बढि़या रही, तुम्हें बहुत ज्यादा मिस कर रहा था.’’‘‘मुझे? वाह…’’‘‘हां नव्या, मैं तुम्हें बहुत मिस कर रहा था. क्या जादू है तुम में, जब से देखा है बस…’’‘‘बस क्या?’’ नव्या इतराते हुए बोली.

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