चौकलेट चाचा: आखिर क्यों फूटा रूपल का गुस्सा?

रूपल के पति का तबादला दिल्ली हो गया था. बड़े शहर में जाने के नाम से ही वह तो खिल गई थी. नया शहर, नया घर, नए तरीके का रहनसहन. बड़ी अच्छी जगह के अपार्टमैंट में फ्लैट दिया था कंपनी ने. नीचे बहुत बड़ा एवं सुंदर पार्क था, जिस में शाम के समय ज्यादातर महिलाएं अपने बच्चों को ले कर आ जातीं. बच्चे वहीं खेल लेते और महिलाएं भी हवा व बातों का आनंद लेतीं. हरीभरी घास में रंगबिरंगे कपड़े पहने बच्चे बड़े ही अच्छे लगते. रूपल ने भी सोसाइटी के रहनसहन को जल्दी ही अपना लिया और शाम के समय अपनी डेढ़ वर्षीय बेटी को पार्क में ले कर जाने लगी. एक दिन उस ने देखा कि एक बुजुर्ग के पार्क में आते ही सभी बच्चे दौड़ कर उन के पास पहुंच गए और चौकलेट चाचा, चौकलेट चाचा कह कर उन से चौकलेट लेने लगे. सभी बच्चों को चौकलेट दे वे रूपल के पास भी आए और उस से भी बातें करने लगे. फिर रूपल व उस की बेटी को भी 1-1 चौकलेट दी. पहले तो रूपल ने झिझकते हुए चौकलेट लेने से इनकार कर दिया, किंतु जब चौकलेट चाचा ने कहा कि बच्चों के चेहरे पर खुशी देख उन्हें बहुत अच्छा लगता है, तो उस ने व उस की बेटी ने चौकलेट ले ली.

पूरे अपार्टमैंट के लोग उन्हें चौकलेट चाचा के नाम से पुकारते, इसलिए अब रूपल की बेटी भी उन्हें चौकलेट चाचा कहने लगी और उन से रोज चौकलेट लेने लगी. वह भी और बच्चों की तरह उन्हें देख कर दौड़ पड़ती. ऐसा करतेकरते 6 माह बीत गए. अब तो रूपल की अपार्टमैंट में सहेलियां भी बन गई थीं. एक दिन उस की एक सहेली ने जिस की 10 वर्षीय बेटी थी, उस से पूछा, ‘‘क्या तुम चौकलेट चाचा को जानती हो?’’

रूपल ने कहा, ‘‘हां बहुत अच्छे इंसान हैं. सारे बच्चों को बहुत प्यार करते हैं.’’ उस की सहेली ने कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि चौकलेट के बदले लड़कियों को अपने गालों पर किस करने के लिए बोलते हैं.’’

रूपल बोली, ‘‘ऐसा तो नहीं देखा.’’

सहेली ने आगाह करते हुए कहा, ‘‘तुम थोड़ा ध्यान देना इस बार जब वे पार्क में आएं.’’

रूपल ने जवाब में ‘हां’ कह दिया. अगले ही दिन जब रूपल अपनी बेटी को ले कर पार्क गई तो उस ने देखा कि चौकलेट चाचा वहां बैठे थे. उस की बेटी दौड़ कर उन के पास गई और उन के गालों पर किस कर दिया. रूपल तो यह देखते ही सन्न रह गई. वह तो समझ ही न पाई कि कब व कैसे चौकलेट चाचा ने उस की बेटी को किस करने के लिए ट्रेंड कर दिया था. वह चौकलेट के लालच में उन्हें किस करने लगी थी. अब जब भी वह पार्क में जाती तो चौकलेट चाचा को देखते ही सतर्क हो जाती और हर बार उन्हें मना करती कि वे उस की बेटी को चौकलेट न दें. वह यह भी देखती कि चौकलेट चाचा अन्य लड़कियों को गले लगाते एवं कुछ की छाती व पीठ पर भी मौका पाते ही हाथ फिरा देते. यह सब देख उसे घबराहट होने लगी थी और वह स्तब्ध रह जाती थी कि चौकलेट चाचा कैसे सब लड़कियों को ट्रेनिंग दे रहे थे और उन की मासूमियत और अपने बुजुर्ग होने का फायदा उठा रहे थे.

उस ने अपने पति को भी यह बात बताई, तो जब कभी वह अपने पति व बेटी के साथ पार्क जाती और चौकलेट चाचा को देखती तो उस के पति यह कह देते कि उन की बेटी को डाक्टर ने चौकलेट खाने के लिए मना किया है, इसलिए वे उसे न दें. पर चौकलेट चाचा तो उसे चौकलेट दिए बिना मानते ही नहीं थे. दोनों पतिपत्नी ने उन्हें कई बार समझाया, पर वे किसी न किसी तरह उन की बेटी को चौकलेट दे ही देते. अब रूपल चौकलेट चाचा को देखते ही अपनी बेटी को उन के सामने से हटा ले जाती, लेकिन चौकलेट चाचा तो अपार्टमैंट में सब जगह घूमते और उस की बेटी को चौकलेट दे ही देते. बदले में उस की बेटी उन्हें बिना बोले ही किस कर देती. अब रूपल मन ही मन डरने लगी थी कि इस तरह तो उस की बेटी चौकलेट या किसी अन्य वस्तु के लिए किसी के भी पीछे चल देगी. और वह इतनी बड़ी भी न थी कि वह उसे समझा सके. इस तरह तो कोई भी उस की बेटी को बहलाफुसला सकता है. उस ने फैसला कर लिया कि अब वह चौकलेट चाचा को मनमानी नहीं करने देगी.

अगले दिन जब चौकलेट चाचा अपने अन्य बुजुर्ग मित्रों के साथ पार्क में आए और जैसे ही उस की बेटी को चौकलेट देने लगे, वह चीख कर बोली, ‘‘मैं आप को कितनी बार बोलूं कि आप मेरी बेटी को चौकलेट न दें.’’ इस बार चौकलेट चाचा रूपल का मूड समझ गए. उन के मित्र तो इतना सुन कर वहां से नदारद हो गए. चौकलेट चाचा भी बिना कुछ बोले वहां से खिसक लिए. किसी बुजुर्ग से इस तरह व्यवहार करना रूपल को अच्छा न लगा, इसलिए वह पार्क में अकेले ही चुपचाप बैठ गई. तभी वे सभी महिलाएं जो आसपास थीं और यह सब होते देख रही थीं, उस के पास आईं. उन में से एक बोली, ‘‘हां, तुम ने ठीक किया. हम सभी चौकलेट चाचा की इन हरकतों से बहुत परेशान हैं. ये तो लिफ्ट में आतीजाती महिलाओं को भी किसी न किसी बहाने स्पर्श करना चाहते हैं. मगर इन की उम्र का लिहाज करते हुए महिलाएं कुछ बोल नहीं पातीं.’’ उस के इतना कहने पर सब एकएक कर अपनेअपने किस्से बताने लगीं. अब रूपल को समझ में आ गया था कि चौकलेट चाचा की हरकतों को कोई भी पसंद नहीं कर रहा था, लेकिन कहते हैं न कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे, इसीलिए सभी चुप थीं.

उस दिन वह गहरी सोच में पड़ गई कि क्या यही है हमारा सभ्य समाज, जहां लोग अपनी उम्र की आड़ में या फिर लोगों द्वारा किए गए लिहाज का फायदा उठाते हुए मनमानी या यों कहिए कि बदतमीजी करते हैं? और तो और मासूम बच्चों को भी नहीं छोड़ते. अब उसे अपने किए पर कोई पछतावा न था और अपने उठाए कदम की वजह से वह अपार्टमैंट की सभी महिलाओं की अच्छी सहेली बन गई थी. उस के द्वारा की गई पहल पर सब उसे बधाइयां  दे रहे थे.

रूहानी इलाज : रेशमा को कैसे मिला जिस्मानी सुख

‘‘नहीं…नहीं,’’ चीखते हुए रेशमा अचानक उठ बैठी, तो उस का पति विवेक भी हड़बड़ा कर उठ बैठा और पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘वही डरावना सपना…’’ कहते हुए रेशमा विवेक से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘घबराओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ विवेक रेशमा को हिम्मत देते हुए बोला, ‘‘शाम को जब मैं दफ्तर से लौटूंगा, तब तुम्हें डाक्टर को दिखा दूंगा.’’

विवेक और रेशमा की शादी को 2 साल हो गए थे, पर रेशमा को अभी तक जिस्मानी सुख नहीं मिल पाया था. वह इस बारे में न तो किसी से कह सकती थी और न इस से नजात पा सकती थी. बस, मन ही मन घुटती रहती थी.

विवेक रात को दफ्तर से वापस आता, तो थकामांदा उस के साथ सोता. फिर पलभर के छूने के बाद करवट बदल लेता और रेशमा जिस्मानी सुख को तरसती रह जाती. ऐसे में बच्चा पैदा होने की बात तो वह सोच भी नहीं सकती थी.

विवेक के दफ्तर जाने के बाद रेशमा की पड़ोसन सीमा उस से मिलने आई और हालचाल पूछा.

बातोंबातों में रेशमा ने सीमा को अपने सपनों के बारे में बता दिया.

सीमा बोली, ‘‘घबरा मत. सब ठीक हो जाएगा. यहीं नजदीक में ही एक तांत्रिक पहलवान हैं. वे तंत्र विद्या से रूहानी इलाज करते हैं. उन्होंने कइयों को ठीक किया है. तू भी चलना, अगर मुझ पर भरोसा है तो.’’

‘‘नहीं सीमा, आज शाम विवेक मुझे डाक्टर के पास ले जाने वाले हैं,’’ रेशमा ने कहा, तो सीमा बोली, ‘‘छोड़ न डाक्टर का चक्कर. पहले मोटी फीस लेगा, फिर ढेर सारे टैस्ट लिख देगा और ज्यादा से ज्यादा नींद आने या तनाव भगाने की दवा दे देगा. तुझ पर तो किसी प्रेत का साया लगता है. ये बीमारियां ठीक करना डाक्टरों के बस की बात नहीं. आगे तेरी मरजी.’’

सीमा की बात रेशमा पर असर कर गई. उसे लगा कि तांत्रिक को दिखाने में हर्ज ही क्या है. कुछ सोच कर उस ने हामी भर दी और विवेक को मोबाइल फोन मिला कर सब सच बता दिया.

सीमा और रेशमा तांत्रिक पहलवान के पास पहुंचीं. वहां बाहर ही बड़ा सा बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था, ‘यहां हर बीमारी का शर्तिया रूहानी इलाज किया जाता है’.

उन्होंने तांत्रिक से मिलने की इच्छा जताई, तो वहां बैठे तांत्रिक के अर्दली ने उन्हें बाहर बैठा दिया और बोला, ‘‘अभी पहलवान पूजा सिद्ध कर रहे हैं.’’

फिर वह बड़ी देर तक उन से बातें करता रहा और उन के मर्ज के बारे में  भी पूछा.

थोड़ी देर बाद अर्दली पहलवान से इजाजत लेने अंदर गया.

तभी एक और औरत आ कर उन के पास बैठ गई और इन से मर्ज पूछा. साथ ही बताया कि पहलवान बहुत अच्छा इलाज करते हैं.

रेशमा ने उस औरत को सारा मर्ज बता दिया और पहलवान के बारे में जान कर उस का भरोसा और बढ़ गया.

इतने में अर्दली आया और बोला, ‘‘चलिए, आप को बुलाया है.’’

अंदर एक मोटीमोटी आंखों वाला लंबाचौड़ा आदमी माथे पर पटका बांधे बैठा था. कमरे में दीवारों पर तंत्रमंत्र लिखे कई पोस्टर लगे थे. चारों ओर धूपबत्ती का धुआं फैला था. वहां सिर्फ जीरो वाट का एक लाल बल्ब रोशनी फैलाता माहौल को और डरावना बना रहा था.

वह आदमी मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा था. उस ने बात करतेकरते इन्हें बैठने का इशारा किया. फिर बात खत्म कर इन की ओर मुखातिब हुआ, तो रेशमा ने कुछ दबी सी जबान में अपनी बात कही.

रेशमा की दास्तां सुन कर पहलवान तांत्रिक बोला, ‘‘तुम्हें डरावने सपने आते हैं. पति की कमजोरी का खमियाजा भुगत रही हो और न किसी से कह सकती हो और न सह सकती हो. अभी तक कोई बच्चा भी नहीं है… सब के ताने सहने पड़ते हैं…’’

रेशमा हैरान थी कि तांत्रिक यह सब बिना बताए कैसे जानता है. लेकिन उसे वह पहुंचा हुआ तांत्रिक लगा व इस से उस पर रेशमा का भरोसा बढ़ गया.

फिर वह उन से बोला, ‘‘लगता है कि किसी बुरी आत्मा की छाया है तुम पर, जिस ने तुम्हारे दिमाग पर कब्जा कर रखा है. इस का इलाज हो जाएगा, लेकिन जैसा मैं कहूं वैसा करना होगा. 4-5 बार झाड़फूंक के लिए बुलाऊंगा. नतीजा खुद तुम्हारे सामने आ जाएगा.’’

रेशमा को उस के रूहानी इलाज पर भरोसा हो गया था, इसलिए वह रूहानी इलाज के लिए तैयार हो गई और फीस के बारे में पूछा.

इस पर तांत्रिक बोला, ‘‘अपनी मरजी से कुछ भी दे देना. मनमांगी फीस तो हम तब लेंगे, जब काम हो जाएगा. हमें पैसों का कोई लालच नहीं है,’’ कहते हुए तांत्रिक ने नजर से नजर मिला कर रेशमा की ओर देखा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर रेशमा ने इलाज के लिए हामी भरी, तो सीमा को बाहर भेज कर तांत्रिक ने कमरा बंद कर लिया.

तांत्रिक ने रेशमा को भभूत लिपटा एक लड्डू दिया और वहीं खा कर जाने को कहता हुआ बोला, ‘‘2 दिन बाद फिर आना. पूरी विधि से झाड़फूंक कर दूंगा. असर तो आज से ही पता चल जाएगा तुम्हें.’’

घर पहुंच कर रेशमा को कुछ हलकापन महसूस हो रहा था. उसे लग रहा था कि इस रूहानी इलाज का उस पर असर जरूर होगा. वह चिंतामुक्त हो बिस्तर पर पसर गई. कब आंख लगी, उसे पता ही न चला. आंख खुली तब, जब विवेक ने दरवाजा खटखटाया.

‘ओह, आज कितने अरसे बाद इतनी गहरी नींद आई है. शायद यह रूहानी इलाज का ही असर है,’ रेशमा ने सोचा और दरवाजा खोला.

चाय पीते समय रेशमा ने विवेक को तांत्रिक की बात बता दी. रेशमा को तरोताजा देख कर विवेक को भी यकीन हो गया कि इस इलाज का असर होगा. लेकिन चुटकी लेता हुआ वह बोला, ‘‘कहीं तांत्रिक ने नींद की दवा तो नहीं डाल दी थी लड्डू में, जो घोड़े बेच कर सोई थी?’’

2 दिन बाद रेशमा को फिर तांत्रिक पहलवान के पास जाना था. उस ने फोन कर के पहलवान से मिलने का समय ले लिया और तय समय पर पहुंच गई.

तांत्रिक ने पहले की झाड़फूंक का असर पूछा, तो रेशमा ने बता दिया कि फर्क लग रहा है.

तांत्रिक की घूरती निगाहें अब रेशमा के उभारों का मुआयना कर रही थीं. जीरो वाट के बल्ब की लाल रोशनी में धूपबत्ती के धुएं और बंद कमरे में तांत्रिक ने एक बार फिर रेशमा की झाड़फूंक की और उस से करीबी बनाने लगा.

फिर उस ने रेशमा को भभूत लिपटा लड्डू खाने को दिया, जिसे खाने पर वह बेहोश सी होने लगी.

असर होते देख तांत्रिक पहलवान ने रेशमा को अपनी बांहों में जकड़ लिया. अब तांत्रिक को मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. उस ने रेशमा के अंगों के साथ खुल कर खेलना शुरू कर दिया.

मनमुताबिक भोगविलास के बाद तांत्रिक पहलवान ने रेशमा को घर भेज दिया. घर आ कर रेशमा बिस्तर पर पड़ गई.

उसे तांत्रिक की इस हरकत का पता चल गया था, लेकिन उस ने जिस्मानी सुख का सुकून भी पाया था, जिसे वह खोना नहीं चाहती थी.

अगली बार रेशमा तांत्रिक के पास गई, तो खुला दरवाजा देख बिना इजाजत अंदर जा पहुंची. अंदर का नजारा देख कर वह दंग रह गई. अंदर तांत्रिक उसी औरत की बांहों में बांहें डाले बैठा था, जिसे उस ने पहले दिन वहां देखा था और सारा मर्ज बताया था.

रेशमा समझ गई कि यह तांत्रिक की ही जानकार है और इसी ने मरीज बन कर सब जान लिया और फोन पर तांत्रिक को बताया था, तभी तो तांत्रिक फोन पर बात करता मिला और हमारे बारे में सब सचसच बता पाया.

रेशमा को देखते ही वह औरत तांत्रिक से अलग हो गई और कमरे से बाहर चली गई. रेशमा भी सबकुछ जानने के बावजूद खामोश रही.

तांत्रिक ने रूहानी इलाज शुरू किया और रेशमा खुद को उस के सामने परोसती चली गई.

अब रेशमा जबतब पहलवान के पास इलाज के बहाने पहुंच जाती और देहसुख का लुत्फ उठाती.

उस दिन रेशमा की सास उन के यहां आई हुई थी. उसे जोड़ों का दर्द व बुढ़ापे की अनगिनत बीमारियां थीं, जिस के लिए विवेक ने उन्हें पहलवान के पास ले जाना चाहा था.

तभी रेशमा उबकाई करती दिखी, तो सास और खुश हो गईं. वे विवेक को बधाई देते हुए बोलीं, ‘‘सचमुच पहलवान का इलाज कारगर है, जो बहू पेट से हो गई.’’

लेकिन रेशमा के मन में हजारों शक पनपने लगे थे. उस ने किसी तरह सास को इलाज के लिए ले जाने को टरकाया व पहलवान से छुटकारे की योजना सोचने लगी.

इधर कुछ दिन से रेशमा को न पा कर पहलवान का दिल मचलने लगा था. उस ने रेशमा को फोन कर के बुलाना चाहा. रेशमा ने आनाकानी की और बताया कि इस से उन के संबंध का भेद खुलने का खतरा है. पर पहलवान की बेचैनी हद पर थी.

तांत्रिक पहलवान बोला, ‘‘अगर तुम नहीं आओगी, तो मैं तुम्हारे इस संबंध के बारे में खुद तुम्हारे पति को बता दूंगा.’’

अब रेशमा दुविधा में थी. पति को बताए तो परेशानी और न बताए तो पहलवान का डर. रेशमा को खुद को बचाना मुश्किल हो रहा था.

उधर पहलवान तांत्रिक ने दोबारा फोन कर के धमकाया, ‘अगर तुम यहां नहीं आईं, तो तुम्हारे पति को बता दूंगा.’

रातभर रेशमा बचने का उपाय सोचती रही. उसे लग रहा था, जैसे उसे पुरानी बीमारी ने फिर आ जकड़ा था. वह गहरे तनाव में थी. अचानक उस के दिमाग में कुछ आया और वह निश्चिंत हो कर सो गई.

सुबह उठी और बाहर जा कर पहलवान को फोन कर दिया कि शाम को वह उस के पास आएगी. इस से वह खुश व संतुष्ट हो गया.

साथ ही, उस ने अपने पति विवेक को विश्वास में लिया और बोली, ‘‘देखो, तुम सासू मां का इलाज पहलवान से करवाने की कह रहे थे, लेकिन मैं तुम्हें बता दूं कि वह ठीक आदमी नहीं है. मंत्र पढ़ते समय उस ने मुझे भी कई बार छूने की कोशिश की.’’

सुनते ही विवेक आगबबूला हो गया और बोला, ‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया? मैं करता हूं उस का रूहानी इलाज. आज ही उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत करता हूं.’’

रेशमा ने उसे रोका, उसे खुद को भी तो बचाना था. फिर वह बोली, ‘‘मैं आज शाम इलाज के लिए वहां जाऊंगी… अगर उस ने ऐसी कोई बात की, तो तुम्हें फोन कर दूंगी. तुम फौरन पुलिस ले कर पहुंच जाना.’’

अब रेशमा रूहानी इलाज करने वाले पहलवान तांत्रिक के पास पहुंची. रेशमा को देखते ही पहलवान खुश हो गया.

वह झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोला, ‘‘तुम समझती क्या हो खुद को? मैं जब बुलाऊं तुम्हें आना होगा, वरना मैं तुम्हारे पति को सब बता दूंगा,’’ कहते हुए उस ने दरवाजा बंद किया और रेशमा को अपनी बांहों में जकड़ने लगा. तब तक रेशमा अपने पति को मिस काल कर के संकेत दे चुकी थी.

थोड़ी ही देर में विवेक पुलिस को ले कर आ पहुंचा. पहलवान रंगे हाथों पकड़ा गया. पुलिस उस के कमरे पर ताला जड़ कर उसे साथ ले गई.

उधर रेशमा खुश थी. उस ने एक तीर से दो निशाने जो साधे थे. एक तो उस ने रूहानी इलाज के बहाने जिस्मानी भूख खत्म की, फिर तांत्रिक को पकड़वा कर खुद को उस के चंगुल से निकाल लिया था. साथ ही, पति की नजरों में भी उस ने खुद को बेदाग साबित कर लिया था.

उड़ान : कांता के सपने

‘‘मैं  ने कह दिया न कि मैं तुम्हारे उस गिरिराज से शादी नहीं करूंगी. सब कहते हैं कि वह दिखने में मुझ से छोटा लगता है. फिर वह करता भी क्या है… लोगों की गाडि़यों की साफसफाई ही न?’’ कांता ने दोटूक शब्दों में कह दिया.

‘‘उस से नहीं करेगी, तो क्या किसी नवाब से शादी करेगी? अरी, तू बिरादरी में हमारी नाक कटाने पर क्यों तुली है. तू सोचती है कि तेरे कहने से हम तय की हुई शादी तोड़ देंगे? इस भुलावे में मत रहना.

‘‘मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं शादियांसगाइयां वगैरह जोड़तीतोड़ती रहूं. अभी तो मेरे पास शादी के लिए दोदो लड़कियां और बैठी हैं,’’ पत्नी देवकी को बोलते देख कर पति मुरारी भी पास आ गया था.

कांता के छोटे भाईबहन, जो बाप की रेहड़ी के पास खड़े हो कर सुबहसुबह कुछ पैसा कमाने के जुगाड़ में प्रैस कर रहे थे, भी वहां आ गए थे.

मुरारी ने बेटी कांता को सुनाते हुए अपनी पत्नी देवकी से कहा, ‘‘कह दे अपनी छोरी से, इतना हल्ला न मचाए. ब्यूटीपार्लर में काम क्या करने लगी है, अपनेआप को हेमामालिनी समझने लगी है. ज्यादा बोलेगी, तो घर से बाहर कर दूंगा. ज्यादा चबरचबर करना मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’

मां के सामने तो कांता शायद थोड़ी देर बाद चुप भी हो जाती, पर उन दोनों की तकरार में बाप के आते ही वह गुस्से में आ गई और बोली, ‘‘अच्छा बापू, यह तुम कह रहे हो. शाम को शराब पी कर जो तमाशा तुम करते हो, वह याद नहीं है तुम्हें?

‘‘अभी कल शाम को ही तो तुम ने मुझ से शराब के लिए 20 रुपए लिए थे. तुम्हें तो अपनी शराब से ही फुरसत नहीं है. मैं अपना कमाती हूं. मुझे तो यहां पर रहते हुए भी शर्म आती है. कुछ ज्यादा पैसा मिलने लगे, तो मैं खुद ही यहां से कहीं दूर चली जाऊंगी.’’

जब से कांता ब्यूटीपार्लर में नौकरी करने जाने लगी थी, तब से उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

वैसे, गलीगली में खुल गए ब्यूटीपार्लर इन्हीं झुग्गीझोंपडि़यों की लड़कियों के बल पर ही चल रहे हैं. इन से जितना मरजी काम ले लो. ये खुश भी रहती हैं और ग्राहक की जीहुजूरी भी खूब कर लेती हैं.

कांता ब्यूटीपार्लर में पिछले 6 महीने से काम कर रही है. शुरूशुरू में वहां की मालकिन अलका मैडम ने उस से बस मसाज वगैरह का काम ही कराया था, पर अब तो वह भौंहों की कटाईछंटाई और बाल भी काट लेती है.

कांता बातूनी है और टैलीविजन पर आने वाले गानों के साथ सारासारा दिन गुनगुनाती रहती है. जब से उस की नौकरी लगी है, तब से छुट्टी वाले दिन भी वह छुट्टी नहीं करती है. जिस दिन दूसरी लड़कियां नहीं आतीं, उस दिन भी अकेली कांता के दम पर ब्यूटीपार्लर खुला रहता है.

अलका मैडम कांता से बहुत खुश हैं और वह उन की इतनी भरोसेमंद हो गई है कि वे अपना कैश बौक्स भी उसे सौंप जाती हैं.

पर आज सुबह से ही कांता का मूड खराब था. चहकने से सुबह की शुरुआत करने वाली कांता आज गुमसुम थी. ब्यूटीपार्लर पहुंच कर न तो उस ने अपने नए तरीके से बाल बनाए थे, न ही अलका मैडम से कहा था, ‘मैडम, जब तक कोई ग्राहक नहीं आता, तब तक मैं आप के बालों में मेहंदी लगा दूं या फेसियल कर दूं…’

कांता की चुप्पी को तोड़ने के लिए अलका मैडम ने ही पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ कांता?’’

1-2 बार पूछने पर कांता ने सारी रामकहानी अलका मैडम को सुना दी और लगी रोने. रोतेरोते उस ने कहा, ‘‘मैडम, आप मुझे अपने घर में क्यों नहीं रख लेतीं? बदले में मुझ से अपने घर का कुछ भी काम करा लेना. घर वालों को कुछ तो मजा चखा दूं. मैं अपने साथ जोरजबरदस्ती बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे सोचने के लिए थोड़ा सा समय तो दे. और सुन, यह मत भूलना कि मांबाप बच्चों का बुरा नहीं चाहते हैं. उन के नजरिए को भी समझने की कोशिश कर. दूसरों के कहने पर क्यों जाती है. क्या तू ने अपना मंगेतर देखा है?’’ अलका मैडम ने पूछा.

‘‘हां देखा था, अपनी सगाई वाले दिन. लेकिन मुझे उस का चेहरा जरा भी याद नहीं है.’’

अभी वे दोनों बातें कर ही रही थीं कि साफसफाई करने वाली शीला ने कहा, ‘‘बाहर कोई लड़का कांता को पूछ रहा है.

‘‘लड़का…’’ कांता चौंकी, ‘‘कहीं गिरिराज तो नहीं?’’

‘‘मैं किसी गिरिराज को नहीं पहचानती,’’ शीला ने जवाब दिया.

‘‘जो भी है, उस से कह दो कि यह औरतों का ब्यूटीपार्लर है, मैं लड़कों के बाल नहीं काटती,’’ कांता बोली.

‘‘अरे, इतनी देर में उस से मिल क्यों नहीं लेती?’’ अलका मैडम ने कहा.

कांता बाहर आई, तो उस ने देखा कि सीढि़यों पर एक खूबसूरत सा नौजवान चश्मा लगाए, जींसजैकेट पहने खड़ा था.

‘कौन है यह? शायद किसी ग्राहक के लिए मुझे लेने या समय तय करने के लिए आया हो,’ कांता ने सोचा और बोली, ‘‘आप को जोकुछ पूछना है, अंदर आ कर मैडम से पूछ लो.’’

‘‘मैं तो आप ही के पास आया हूं,’’ वह नौजवान मुसकराते हुए बोला, ‘‘कहीं बैठाओगी नहीं?’’

‘‘मैं तुम… आप को पहचानती नहीं,’’ कांता ने सकपकाते हुए कहा.

‘‘मैं गिरिराज हूं.’’

‘‘हाय…’’ कांता झेंपी, ‘‘तुम… मेरा मतलब आप यहां?’’ थोड़ी देर तक तो उस से कुछ बोला नहीं गया. पहले वह जमीन की तरफ देखती रही, फिर आंख उठा कर उस ने उस नौजवान की तरफ देखा, तो वह भी एकटक उस की ही तरफ देख रहा था.

कांता फिर झेंप गई. बातूनी होने पर भी उस से बोल नहीं फूट रहे थे, तभी बाहर का हालचाल जानने के लिए अलका मैडम भी बाहर निकलीं.

कांता की पीठ अलका मैडम की तरफ थी और वह उन के रास्ते में खड़ी थी. रास्ता रुका देख कर गिरिराज ने कांता की बांह पकड़ कर एक तरफ खींचते हुए कहा, ‘‘देखो, ये मैडम जाना चाहती हैं. तुम एक तरफ हट जाओ.’’

गिरिराज के हाथ की छुअन के रोमांच पर कांता मन ही मन खुश होते हुए भी ऊपर से गुस्सा कर बोली, ‘‘तुम मुझे हाथ लगाने वाले कौन होते हो?’’ इसी बीच अलका मैडम वापस अंदर चली गईं.

‘‘अरे, अभी तक नहीं पहचाना? मैं गिरिराज हूं, तुम्हारा गिरिराज. मां और बाबूजी कल तुम्हारे यहां शादी की तारीख तय करने के लिए गए थे.

‘‘मैं ने उन से कह दिया था कि मुझ से बिना पूछे कोई तारीख पक्की मत कर आना. सोचा था कि तुम से मिल कर ही तारीख तय करूंगा.

‘‘इसी बहाने एकदो बार मिल तो लेंगे. चलो, छुट्टी ले लो. चाहे तो शाहरुख खान की नई फिल्म देख लेंगे या फिर किसी रैस्टोरैंट में पिज्जा खिला लाऊं?’’ गिरिराज ने अपनी बात रखी.

कांता के मन में लड्डू फूट रहे थे. अच्छा हुआ कि वह सुबह गुस्से में अलका मैडम के घर रहने नहीं पहुंच गई.

‘‘मैं घर पर तो बता कर के नहीं आई हूं,’’ कांता ने नरम होते हुए कहा.

‘‘तो क्या हुआ? चोरीछिपे मिलने  का मजा ही कुछ और है. और फिर मेरे साथ चलने में तुम्हें कैसी हिचक? देखती नहीं, सब फिल्मों में हीरोहीरोइन मांबाप को बिना बताए ही घूमते हैं, गाते हैं, नाचते हैं,’’ गिरिराज बोला.

कांता ने इतरा कर बालों को पीछे फेंका और तिरछी नजर से उसे देखते हुए बोली, ‘‘मैं जरा बालों को ठीक

कर आऊं, तब तक तुम अलका मैडम से जाने की इजाजत ले लो,’’ फिर जातेजाते वह रुकते हुए बोली, ‘‘तुम… आप कुछ ठंडागरम लेंगे?’’

‘‘वैसे तो जब से आया हूं, तुम्हारे रूप को पी ही रहा हूं, फिर भी तुम जो पिला दोगी, पी लूंगा. पीने के लिए ही तो आया हूं.’’

कांता के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. नशे की सी हालत में वह लड़खड़ा कर गिरने ही वाली थी कि गिरिराज ने उसे लपक कर अपनी बांहों में समेट लिया.

उधर ब्यूटीपार्लर के टैलीविजन पर एक प्यार भरा गीत आ रहा था, ‘मुझ को अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही…’ और इधर गिरिराज कांता को संभालते हुए मानो गा रहा था, ‘आ, गले लग जा…’

जैसे ही वे दोनों अंदर पहुंचे, सबकुछ समझते हुए अलका मैडम ने उन के बोलने से पहले ही कहा, ‘‘हांहां जाओ, मौज करो. पर मुझे अपनी शादी में बुलाना मत भूलना.’’

‘‘मैडम, क्यों इतनी जल्दी आप हमें शादी की चक्की में पीस देना चाहती हैं. हमें कुछ दिन और मौजमजा कर लेने दीजिए, तब तक छुट्टी मनाने के लिए आप की इजाजत की जरूरत पड़ती रहेगी,’’ गिरिराज ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं.’’

‘‘शुक्रिया मैडम.’’

कांता देख रही थी कि वह जिसे छोटा सा समझ रही थी, वह तो पुराना अमिताभ बच्चन निकला. क्या बढि़या अंदाज में मैडम से बात कर रहा था. कांता सोच रही थी, ‘मां जो तारीख कहेंगी, उसी तारीख के लिए मैं हामी भर दूंगी. तब तक मेरा हीरो इधर आता ही रहेगा.’ गिरिराज कांता को देख रहा था और कांता गिरिराज को. हालांकि उन्होंने बाहर जाने के लिए सीढि़यों से पैर नीचे रखे थे, मगर उन्हें लग रहा था कि वे दोनों उड़ रहे हैं.

अब पछताए होत क्या : कामिनी ने आप पर आरोप क्यों लगाया

आज मंत्री पद गंवा कर दामोदर दुखी भाव से घर लौटे थे. टैलीविजन चालू करते ही वे चौंक गए. हर जगह उन्हीं की महिमा का गुणगान हो रहा था.

दामोदर के ऊपर कामिनी समेत 20 औरतों ने छेड़छाड़ करने का केस दायर किया था. प्रधानमंत्री ने सख्ती दिखाते हुए उन्हें मंत्री पद से हटा दिया. चूंकि वे वरिष्ठ मंत्री रहे हैं इसलिए उन से इस्तीफा लिया गया और अदालत के फैसले के आधार पर उन के ऊपर कार्यवाही होगी.

इस सब में प्रधानमंत्री का बयान आग में घी का काम कर रहा था, ‘मैं ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारियों का पालन करते हुए दामोदर से इस्तीफा ले कर मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया है. अदालत बिना किसी दबाव के इस मसले पर फैसला लेगी.’

‘‘बड़ा ईमानदार बनता है. सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली,’’ दामोदर गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. वे राजनीति में 50 साल यों ही नहीं गुजार चुके थे. उस में भी वे 30 साल से ज्यादा पत्रकारिता जगत में गुजार चुके थे. कामिनी को वे ही पत्रकारिता में लाए थे.

शाम को अपनी सफाई में दी गई प्रैस कौंफ्रैंस में दामोदर वहां आए पत्रकारों पर फट पड़े, ‘‘मैं खुद पत्रकार के रूप में सालों से आप के साथ रहा हूं और काम कर रहा हूं. इन आरोपों में कोई दम नहीं है, पर पत्रकार के रूप में आप सब जांच में सहयोग दें और सच को छापें.

‘‘मैं ने भी मंत्री पद से इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि न्यायपालिका में मेरा पूरा विश्वास है कि वह सही जांच करेगी. दूसरी बात यह है कि जिस दिन की बात कामिनी बता रही हैं, उस दौरान मैं प्रधानमंत्री के श्रीलंका दौरे को कवर करने वहां गया था और एक वक्त में मैं 2 जगह नहीं रह सकता.’’

‘‘फिर कामिनी ने आप पर आरोप क्यों लगाया?’’ एक पत्रकार का यह सवाल था.

‘‘आरोप तो कोई भी किसी पर लगा सकता है, मेरे इतने साल के पत्रकारिता और राजनीति के कैरियर में जब कोई गलती नहीं दिखाई दी तो मेरा सीधा चरित्र हनन कर डाला,’’ दामोदर मानो सफाई देते हुए बोले.

मीटिंग खत्म कर के वे कमरे में लौटे तो उन का कामिनी की पुरानी बातों और यादों पर ध्यान चला गया.

‘कामिनी, आप क्या लिखती हैं?’ दामोदर उस की रचनाओं और बायोडाटा को देखते हुए बोले थे.

‘कुछ नहीं बस आज से जुड़े विषयों पर छिटपुट रचनाएं लिखी हैं.’

‘अभी तुरंत कुछ लिख कर दीजिए,’ दामोदर 4 पेज देते हुए बोले थे.

कामिनी ने थोड़ी ही देर में एक ज्वलंत विषय पर रचना लिख कर दे दी थी. इस के बाद इतिहास से एमए पास कामिनी अकसर लिखती और उस की रचना छपने लगी थी.

उस दिन भी कवरेज के लिए जब दामोदर कानपुर गए थे, तो कामिनी उन के साथ थी. बारिश हो रही थी. रात के 11 बजे जब वे कमरे में पहुंचे तो दोनों भीग चुके थे.

इस के बाद दामोदर ने कामिनी के साथ होटल में छक कर मजे लूटे थे. कामिनी ने भी भरपूर सहयोग दिया था. आग में घी तब पड़ा था, जब दामोदर कामिनी के बजाय राधा से शादी कर बैठे थे.

‘इतने दिनों तक मेरा इस्तेमाल किया, फिर…’ कामिनी बिफरते हुए बोली थी.

‘फिर क्या, हम दोनों ने एकदूसरे का इस्तेमाल किया है. तुम ने मेरे नाम का और मैं ने तुम्हारा. यह दुनिया ऐसे ही कारोबार पर चलती है,’ दामोदर सपाट लहजे में बोले थे.

‘मैं आप को बदनाम कर दूंगी. आखिर उस राधा ने क्या दिया है आप को?’ कामिनी गुस्सा में बड़बड़ा रही थी.

‘तुम खुद टूट जाओगी. दूसरी बात यह कि मैं ने मंत्री की बेटी से शादी की है, तो अब सब अपनेआप मिल जाएगा,’ दामोदर सफाई देते हुए बोले थे.

फिर धीरेधीरे दोनों दूर हो गए थे. दामोदर ने सालों से कामिनी का चेहरा नहीं देखा था. इतने सालों के बाद वह न जाने कहां से टपक पड़ी थी.

अगर कामिनी ने अदालत में सुबूत पेश कर दिया तो उन्हें जेल होगी और हर्जाना भी देना पड़ेगा. सांसद की कुरसी भी छिन जाएगी.

‘क्या करूं…’ दामोदर सोच रहे थे कि उन्हें जग्गा याद आ गया. वे जग्गा के पास खुद पहुंचे थे.

‘‘आप जाइए, मैं इस का इलाज कर देता हूं. आप बस 20 औरतों के लिए 25 लाख रुपए का इंतजाम कर दें,’’ वह शराब पीता हुआ बोला.

‘‘पैसा कल तक पहुंच जाएगा. तुम काम शुरू कर दो,’’ दामोदर हामी भरते हुए बोले.

अगले दिन दोपहर के 12 बजे प्रैस कौंफ्रैंस कर उन सभी 20 औरतों ने नाम समेत माफी मांगी और आरोप वापस ले लिया.

अब तो दामोदर मंत्री पद पर दोबारा आ गए. इस मसले पर जब उन से पूछा गया तो वे ?ाट बोल उठे, ‘‘वे सब मेरी बहन जैसी हैं. मैं तो उन से कभी मिला नहीं, उन्हें जानता तक नहीं. बस राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल की गई मुहरें थीं. मुझे साजिश करने वाला चाहिए मुहरें नहीं.’’

‘‘मगर, वे सब औरतें कहां गईं?’’ एक पत्रकार ने पूछा.

‘‘यह सवाल आप उन से पूछिए जिन्होंने मुझ पर ऐसा घिनौना आरोप लगवाया है.

वह तो भला हो उन बहनों का, जिन का जमीर जाग गया और आज मैं आप के सामने हूं. मेरे सामने खुदकुशी के सिवा कोई रास्ता नहीं था,’’ घडि़याली आंसू बहाते दामोदर के इस जवाब ने सब को चुप कर दिया था.

दामोदर दोबारा सही हो गए, तो झट रात में जग्गा को फोन लगाया.

‘आप चिंता मत करो, सारा काम ठीक से हो गया है,’ जग्गा ने कहा.

‘‘फिर भी कहीं कुछ…’’ दामोदर थोड़े शंकित थे.

‘कोई अगरमगर नहीं… जग्गा पूरे पैसे ले कर आधा काम नहीं करता है.’

अब दामोदर ने चैन की सांस ली. अब वे कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, ऐसा सोच कर वे हलका महसूस करने लगे और धीरेधीरे नींद के आगोश में चले गए.

आलिया: एक होशियार लड़की

सब कहते हैं कि दुनिया बहुत ही खूबसूरत है. यहां देखने के लिए एक से एक शानदार जगहें हैं. पहाड़, नदियां, कई मौसम और हर रंगढंग के लोग. अगर कोई कुछ सीखना चाहता है तो वह इन्हीं अच्छेबुरे लोगों के बीच रह कर ही सीख सकता है. अगर कोई आगे बढ़ना चाहता है तो उसे इन्हीं लोगों के साथ ही आगे चलना होगा.

लेकिन उन लोगों का क्या, जिन्होंने यह दुनिया जी ही नहीं? ऐसे लोग जो अपने ख्वाबों में अपनी एक अलग दुनिया जीते हैं. वे किताबों, घर के बनाए उसूलों और टैलीविजन देख कर ही पूरी जिंदगी गुजार देते हैं.

ऐसे ही लोगों में से एक है आलिया. वह 12वीं क्लास में पढ़ती है. देखने में होशियार लगती है. और है भी, लेकिन उस ने अपना दिमाग सिर्फ किताब के कुछ पन्नों तक ही सिमटा रखा है. 12वीं क्लास में होने के बावजूद उस ने आज तक बाजार से अपनेआप एक पैन नहीं खरीदा है. वह छोटे बच्चों की तरह लंच बौक्स ले कर स्कूल जाती है और अपने पास 100 रुपए से ज्यादा जेबखर्च नहीं रखती है.

आलिया के पास आर्ट स्ट्रीम है और स्कूल में उस की एक ही दोस्त है हिना, जो साइंस स्ट्रीम में पढ़ती है. दोनों का एक सब्जैक्ट कौमन है, इसलिए वे दोनों उस एक सब्जैक्ट की क्लास में मिलती हैं और लंच बे्रक साथ ही गुजारती हैं.

आलिया को लगता है कि अगर कोई बच्चा 100 रुपए से ज्यादा स्कूल में लाता है तो वह बिगड़ा हुआ है. पार्टी करना, गपें मारना और किसी की खिंचाई करना गुनाह के बराबर है.

अगर कोई लड़की स्कूल में बाल खोल कर और मोटा काजल लगा कर आती है और लड़कों से बिंदास बात करती है तो वह उस के लिए बहुत मौडर्न है.

सच तो यह है कि आलिया बनना तो उन के जैसा ही चाहती है, पर चाह कर भी ऐसा बन ही नहीं पाती है. क्लास के आधे से ज्यादा बच्चों से उस ने आज तक बात नहीं की है.

एक बार रोहन ने आलिया से पूछा, ‘‘आलिया, क्या तुम हमारे साथ पार्टी में चलोगी? श्वेता अपने फार्महाउस पर पार्टी दे रही है.’’

आलिया का मन तो हुआ जाने का, पर उसे यह सब ठीक नहीं लगा. उस ने सोचा कि इतनी दूर फार्महाउस पर वह अकेली कैसे जाएगी.

‘‘नहीं, मैं नहीं आऊंगी. वह जगह बहुत दूर है,’’ आलिया बोली.

‘‘तो क्या हुआ. हम तुम्हें अपने साथ ले लेंगे. तुम कहां रहती हो, हमें जगह बता दो,’’ श्वेता ने भी साथ चलने के लिए कहा.

‘‘नहीं, मैं वहां नहीं जा पाऊंगी,’’ आलिया ने साफ लहजे में कहा.

‘‘बाय आलिया,’’ छुट्टी के वक्त रोहन ने आलिया से कहा.

आलिया सोचने लगी कि आज वह इतनी बातें क्यों कर रही है. वह रोहन की बात को अनसुना करते हुए आगे निकल गई.

रोहन को लगा कि वह बहुत घमंडी है. इस के बाद उस ने कभी आलिया से बात नहीं की.

अगले दिन आलिया को लंच ब्रेक में हिना मिली. अरे, हिना के बारे में तो बताया ही नहीं. वह आलिया की तरह भीगी बिल्ली नहीं है, बल्कि बहुत बिंदास और मस्त लड़की है. लेकिन अलग मिजाज होने के बावजूद दोस्ती हो ही जाती है. हिना की भी अपनी क्लास में ज्यादा किसी से बनती नहीं थी. इसी वजह से वे दोनों दोस्त बन गईं.

हिना को आलिया इसलिए पसंद थी, क्योंकि वह ज्यादा फालतू बात नहीं करती थी और कभी भी हिना की बात नहीं काटती थी. आलिया को कभी पता ही नहीं चलता था कि कौन किस तरह की बात कर रहा है.

बचपन से ले कर स्कूल के आखिरी साल तक आलिया सिर्फ स्कूल पढ़ने जाती है. बाकी बच्चे कैसे रहते हैं और कैसे पढ़ते हैं, इस पर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. अपनी 17 साल की जिंदगी में वह इतना कम बोली है कि शायद बात करना ही भूल गई है. उस की जिंदगी के बारे में जितना बताओ, उस से कहीं ज्यादा अजीब है.

हां, तो हम कहां थे. अगले दिन आलिया लंच ब्रेक में हिना से मिली और रोहन के बारे में बताया.

‘‘आलिया, सिर्फ ‘बाय’ कहने से कोई तुम्हें खा नहीं जाएगा. अगर बच्चे पार्टी नहीं करेंगे, तो क्या 80 साल के बूढ़े करेंगे. वैसे, कर तो वे भी सकते हैं, पर इस उम्र में पार्टी करने का ज्यादा मजा है. स्कूल में हम सब पढ़ने आते हैं, पर यों अकेले तो नहीं रह सकते हैं न. बेजान किताबों के साथ तो बिलकुल नहीं.

‘‘खुद को बदलो आलिया, इस से पहले कि वक्त हाथ से निकल जाए. क्या पता कल तुम्हें उस से काम पड़ जाए, पर अब तो वह तुम से बात भी नहीं करेगा. तू एवरेज स्टूडैंट है, पर दिनभर पढ़ती रहती है और तेरी क्लासमेट पूजा जो टौपर है, वह कितना ऐक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेती है. इतने सारे दोस्त हैं उस के.

‘‘टौपर वही होता है, जो दिमागी और जिस्मानी तौर पर मजबूत होता है. जो सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करता, बल्कि जिंदगी को भी ऐंजौय करता है.’’

‘‘अच्छा ठीक है. अब लैक्चर देना बंद कर,’’ आलिया ने कहा.

‘‘तू फेसबुक पर कब आएगी? मु?ो अपनी कजिन की शादी की पिक्स दिखानी हैं तु?ो,’’ हिना ने कहा.

‘‘मेरे यहां इंटरनैट नहीं है. फोटो बन जाएं तब दिखा देना.’’

‘‘ठीक है देवीजी, आप के लिए यह भी कर देंगे,’’ हिना ने मजाक में कहा.

लंच ब्रेक खत्म हो गया और वे दोनों अपनीअपनी क्लास में चली गईं.

‘‘मम्मी, पापा या भाई से कह कर घर में इंटरनैट लगवा दो न.’’

‘‘भाई तो तेरा बाहर ही इंटरनैट इस्तेमाल कर लेता है और पापा से बात की थी. वे कह रहे थे कि कुछ काम नहीं होगा, सिर्फ बातें ही बनाएंगे बच्चे.’’

‘‘तो आप ने पापा को बताया नहीं कि भाई तो बाहर भी इंटरनैट चला लेते हैं और मु?ो उस का कखग तक नहीं आता है. मेरे स्कूल में सारे बच्चे इंटरनैट इस्तेमाल करते हैं,’’ आलिया ने थोड़ा गुस्सा हो कर कहा.

‘‘अच्छा, अब ज्यादा उलटीसीधी जिद न कर. पता नहीं, किन जाहिलों में रह रही है. बात करने की तमीज नहीं है तु?ो. इतना चिल्लाई क्यों तू?’’ मां ने डांटते हुए कहा.

आलिया अकेले में सोचने लगी कि भाई तो बाहर भी चला जाता है. उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और वह घर में ही रहती है, फिर भी भिखारियों की तरह हर चीज मांगनी पड़ती है.

कुछ पेड़ हर तरह का मौसम सह लेते हैं और कुछ बदलते मौसम का शिकार हो जाते हैं. आलिया ऐसे ही बदलते मौसम का शिकार थी.

आलिया का परिवार सहारनपुर से है. उस की चचेरी और ममेरी बहनें हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ती हैं. 12वीं क्लास के बाद ही ज्यादातर सब की शादी हो जाती है. दिल्ली में रहने के बाद भी आलिया नहीं बदली. जब वह छोटी थी तब उस के सारे काम भाई और मम्मी ही करते थे.

वे जितना प्यार करते थे, उतनी ही उस पर पाबंदी भी रखते थे. दिल्ली में एक अच्छे स्कूल में होने की वजह

से उसे पढ़ाई का बढि़या माहौल मिला, पर स्कूल के दूसरे बच्चों के घर के माहौल में और उस के घर के माहौल में जमीनआसमान का फर्क था.

आलिया स्कूल से घर दोपहर के

3 बजे आती है, फिर खाना खाती है, ट्यूशन पढ़ती है. रात में थोड़ा टीवी देखने के बाद 10 या 11 बजे तक पढ़ कर सो जाती है. उस के घर के आसपास कोई उस का दोस्त नहीं है और उस के स्कूल का भी कोई बच्चा वहां नहीं रहता है.

कुछ दिनों के बाद स्कूल के 12वीं क्लास के बच्चों की फेयरवैल पार्टी थी. आलिया भी जाना चाहती थी, पर भाई और पापा काम की वजह से उसे ले कर नहीं गए और अकेली वह जा नहीं सकती थी. न घर वाले इस के लिए तैयार थे, न उस में इतनी हिम्मत थी.

12वीं क्लास के एग्जाम हो गए. पास होने के बाद हिना और आलिया का अलगअलग कालेज में दाखिला हो गया. आलिया की आगे की कहानी क्या है. जो हाल स्कूल का था, वही हाल कालेज का भी था. घर से कालेज और कालेज से घर. पूरे 3 साल में बस 2-3 दोस्त ही बन पाए.

बाद में आलिया ने एमबीए का एंट्रैस एग्जाम दिया, पर पापा के कहने पर बीएड में एडमिशन ले लिया. उस के पापा को प्राइवेट कंपनी में जौब तो करानी नहीं थी, इसलिए यही ठीक लगा.

बीएड के बाद आलिया का रिश्ता पक्का हो गया. नवंबर में उस की

शादी है.

एक बात तो बतानी रह गई. 12वीं क्लास के बाद उस ने अपना फेसबुक अकाउंट बना लिया था. जैसेतैसे घर पर इंटरनैट लग गया था. एक दिन उस ने फेसबुक खोला तो हिना का स्टेटस मिला कि उसे एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई है.

आलिया ने फिर हिना के फोटो देखे और दूसरे क्लासमेट के भी. सभी अपने दोस्तों के साथ किसी कैफे में तो किसी फंक्शन के फोटो डालते रहते हैं. सभी इतने खुश नजर आते हैं.

अचानक आलिया को एहसास हुआ कि सभी अपनी जिंदगी की छोटीबड़ी यादें साथ रखते हैं. सभी जितना है, उसे और अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं. स्कूल टाइम से अब तक सब कितने बदल गए हैं. कितने अच्छे लगने लगे हैं.

सभी काफी खुश लगते हैं और वह… आलिया को एहसास हुआ कि उस ने कभी जिंदगी जी ही नहीं. स्कूल या कालेज की एक भी तसवीर उस के पास नहीं है. शादी के बाद जिंदगी न जाने कौन सा रंग ले ले, पर जिसे वह अपने हिसाब से रंग सकती थी, वह सब उस ने मांबाप के डर और अकेलेपन से खो दिया.

वह दिन भी आ गया, जब आलिया की शादी हुई. हिना भी उस की शादी में आई थी. विदाई के वक्त आलिया की आंखों में शायद इस बात के आंसू थे कि वह जिस वक्त को बिना डरे खुशी से जी सकती थी, उसे किताबों के पन्नों में उल?ा कर खत्म कर दिया. जो वक्त बीत गया है, उस में कोई कमी नहीं थी, पर आने वाला वक्त उसे नापतोल कर बिताना होगा.

New Kahani: अस्पताल अग्निकांड में सपने हुए खाक

दुलारी की आस बंध गई थी. क्लिनिक के बरामदे में बैठा राम मनोहर पुरानी यादों में खो गया. वह दलित समाज का लड़का था और दुलारी ऊंची जाति की, पर गरीब घर की. उन दोनों के गांव आसपास ही थे और वे स्कूल के समय से एकदूसरे को जानते थे.

दरअसल, उन का स्कूल गांव से थोड़ा दूर था और वे दोनों साइकिल से स्कूल जाते थे. इसी आनेजाने में उन की बातचीत शुरू हुई और वे एकदूसरे को पसंद करने लगे. तब राम मनोहर 12वीं जमात में था और दुलारी 10वीं जमात में पढ़ती थी.

एक दिन स्कूल से घर जाते समय राम मनोहर ने दुलारी को कुछ दूर जा कर रोक लिया. वह बोला, ‘‘दुलारी, मैं 12वीं के बाद शहर चला जाऊंगा. वहां दिल्ली में मेरे दूर के रिश्तेदार रहते हैं. उन्होंने वहां मुझे काम दिलाने का वादा किया है.’’

दुलारी ने कहा, ‘‘तो यह सब तुम मुझे क्यों बता रहे हो? दिल्ली तो दुनिया जाती है, इस में नया क्या है?’’

‘‘नया यह है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं और अपने साथ तुम्हें भी दिल्ली रखना चाहता हूं. क्या तुम मेरे साथ दिल्ली चलोगी?’’ राम मनोहर ने पूछा.

‘‘अरे, दिल्ली जाना कोई हंसीखेल है क्या? फिर मैं तुम पर यकीन क्यों करूं? क्या पता मुझे वहां बेचबाच दो…’’ दुलारी ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम भी मुझे पसंद करती हो, पर हमारी जाति इस प्यार के बीच में आ रही है,’’ राम मनोहर ने कहा.

‘‘बात वह नहीं है. मैं जाति के झमेले में नहीं पड़ती, पर अभी हम दोनों की उम्र ही क्या है. तुम 20 के हो और मैं 18 की. किस रिश्ते से वहां रहेंगे?’’

‘‘हम अपनी शादी को एक साल तक छिपा कर रखेंगे और फिर कोर्ट से सर्टिफिकेट बनवा लेंगे,’’ राम मनोहर ने अपना प्लान बताया.

‘‘देखो, मुझे सोचने का समय दो. अभी तो कुछ समय गांव में ही रहते हैं, एकदूसरे को समझते हैं, फिर आगे की सोचेंगे,’’ दुलारी बोली और साइकिल चला कर आगे बढ़ गई.

उस दिन से राम मनोहर और दुलारी की प्रेम कहानी शुरू हुई थी. राम मनोहर ने दिल्ली जाने का जो प्लान बनाया था, वह समय के साथसाथ ठंडा पड़ता गया था, पर दुलारी ने अपने प्यार से इस रिश्ते में गरमी बनाए रखी.

एक शाम को वे दोनों खेतों में बैठे थे. दुलारी ने उस दिन टाइट सूट पहना हुआ था. उस का अंगअंग बाहर आने को मचल रहा था.

राम मनोहर ने कहा, ‘‘दुलारी, आज तो तुम कहर ढा रही हो. मेरा मन मचल रहा है…’’ इतना कह कर उस ने दुलारी को चूम लिया.

दुलारी ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें मींचे जमीन पर लेट गई. राम मनोहर

उस के ऊपर झुक गया और उसे गले लगा लिया.

दुलारी की सांसें तेज चलने लगीं. उस ने भी राम मनोहर को भींच लिया. उस दिन उन दोनों के बीच की दूरियां मिट गई थीं. फिर वे दोनों अकसर खेतों में मिलने लगे.

पर यह छिप कर मिलना ज्यादा दिन तक नहीं चला. दुलारी के घर में किसी ने बता दिया कि उन की लड़की खेतों में किसी निचली जाति के लड़के के साथ मुंह काला कर रही है.

वह दिन है और आज का दिन, राम मनोहर और दुलारी ने कभी गांव का मुंह दोबारा नहीं देखा. पर दिल्ली में कौन सा सुख ही धरा था. दुलारी कम उम्र में मां बनने वाली थी और राम मनोहर किसी अच्छी नौकरी की तलाश में भटक रहा था.

फिलहाल घर का खर्चा चलाने के लिए राम मनोहर दिल्ली की साइकिल मार्केट में बने एक गोदाम से शोरूम तक माल कंधे पर ढोने का काम करता था. इस मजदूरी के उसे 11,000 रुपए महीना मिलते थे. वे दोनों शादीपुर गांव की दड़बेनुमा कालोनी में एक कमरे के मकान में रहते थे.

लोकल झोलाछाप डाक्टर ने कहा था कि दुलारी कमजोर है, इसलिए बच्चे पर भी इस का बुरा असर पड़ रहा है. केस थोड़ा पेचीदा है, इसलिए इसे किसी बड़े अस्पताल में दिखा आओ.

राम मनोहर दिल्ली के एम्स अस्पताल में दुलारी को दिखाने ले गया. वहां पता चला कि परची बनाने की ही लंबी लाइन लगी थी. उसे महसूस हुआ कि इस से अच्छा तो डाक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दुलारी को ले जाता, पर उस ने तो एम्स का नाम सुन रखा था, तो मुंह उठाया और चल दिया एम्स.

राम मनोहर ने अपने आगे खड़े एक आदमी से इतनी भीड़ की वजह पूछी, तो वह आदमी बोला, ‘‘भाई, गरमी बहुत ज्यादा है, ऐसे में परची बनवाने के लिए लोग रात से ही नंबर लगाने के लिए लाइन में लग जाते हैं. एक घंटे के काम में पूरा दिन लग जाता है. यहां के एक चपरासी ने बताया कि एम्स के ज्यादातर सीनियर डाक्टर गरमियों की छुट्टी पर हैं. ऐसे में मरीजों को भी काफी ज्यादा दिक्कतें हो रही हैं.’’

राम मनोहर के पसीने छूटने लगे. ऐसे तो दुलारी की डिलीवरी के समय बाद ही उस का नंबर आएगा. छठा महीना जो चल रहा है. वह घर लौट आया. मैक्स जैसे बड़े अस्पताल में तो उस के बस का घुसना तक नहीं था. वहां तो बच्चा पैदा कराने का पूरा पैकेज था. इतने पैसे उस ने सपने में भी नहीं देखे थे.

तभी किसी ने बताया कि शादीपुर गांव के पास ही एक सस्ता सा क्लिनिक है, जहां किस्तों पर इलाज किया जाता है. मान लो, तकरीबन 10,000 रुपए का खर्चा है, तो पहले 5,000 रुपए जमा करा लिए जाते हैं, बाकी रकम की किस्तें बंध जाती हैं.

राम मनोहर अगले ही दिन दुलारी को उस क्लिनिक में ले गया. वह तिमंजिला क्लिनिक बड़ी सड़क से थोड़ा अंदर एक छोटी सी गली में था, जहां की लिफ्ट अकसर खराब रहती थी और सीढि़यां भी संकरी थीं. अगर लाइट न जलाओ तो दिन में भी वहां अंधेरा रहता था.

डाक्टर ने दुलारी का मुआयना किया. वह बोली, ‘‘लगता है, बच्चा 7वें महीने में ही पैदा कराना पड़ेगा. मां और बच्चा दोनों का खास खयाल रखना पड़ेगा.’’

डाक्टर ने सिजेरियन का खर्चा 25,000 रुपए बताया और 15,000 रुपए पहले जमा कराने को कहा. वैसे तो डाक्टर और ज्यादा पैसे मांग रही थी, पर राम मनोहर की माली हालत देख उस ने कुछ डिस्काउंट दे दिया.

फिर वह दिन भी आया, जब राम मनोहर बाप बना. बेटा पैदा हुआ था. पर चूंकि बच्चा कमजोर था, तो वह नर्सरी में रखा गया था. दुलारी ठीक थी. आज बच्चे के नर्सरी में होने का चौथा दिन था. डाक्टर बोल रहे थे कि कल बच्चे को उन्हें सौंप दिया जाएगा.

राम मनोहर मन ही मन अपने दिल्ली वाले रिश्तेदार का शुक्रिया अदा कर रहा था, जिस ने उस की 10,000 रुपए की मदद की थी.

राम मनोहर अपनी यादों से लौट आया. रात के 11 बज रहे थे. दुलारी अपने नवजात के कमरे के बाहर दरवाजे पर ही कुरसी लगाए बैठी थी. राम मनोहर ने बहुत बार कहा कि किसी तरह आज की रात कट जाए, फिर हमारा बच्चा तेरी गोद में ही होगा. वह कुछ दूरी पर एक बैंच पर बैठा ऊंघ रहा था.

पूरे क्लिनिक में एक मुर्दनी सी छाई थी. एक ही चपरासी था, जो दुलारी को अपनी कुरसी दे कर खुद राम मनोहर के पास जा बैठा. इस तीसरे फ्लोर पर नर्सरी में वे 4 नवजात, दुलारी, राम मनोहर और उस चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.

इसी बीच राम मनोहर की नींद टूटी. उस ने एक नजर दुलारी पर और दूसरी नजर अपने आसपास डाली. फिर वह आंखें मींचताखोलता सा पानी पीने के लिए उठा. उस की आहट से चपरासी भी उठ गया. वह बोला, ‘‘भाई, एक गिलास मेरे लिए भी पानी ले आओ.’’

राम मनोहर ने उसे पानी ला कर दिया और बोला, ‘‘अब नहीं सहा जाता. बस, किसी तरह हमारा बेटा नर्सरी से बाहर आ जाए, तो मैं पहली फुरसत में अपने गांव चला जाऊंगा. बहुत झेल ली दिल्ली. कहने को यहां गरीबों के लिए मुफ्त इलाज का ढिंढोरा पीटा जाता है, पर असलियत बड़ी काली है दोस्त.’’

चपरासी ने राम मनोहर की बात को बड़े गौर से सुना. वह खुद हाल ही में दिल्ली बड़ेबड़े सपने ले कर आया था. पर मिला क्या… बीए करने के बावजूद इस अस्पताल में चपरासी की नौकरी.

चपरासी कुछ बोल पाता, उस से पहले ही राम मनोहर ने बैंच पर बैठते हुए कहा, ‘‘विवेक विहार में हुए हादसे ने तो मुझे डरा ही दिया है.’’

‘‘विवेक विहार में क्या हुआ था?’’ उस चपरासी ने पानी पीते हुए पूछा.

‘‘नाश हुआ था, नाश. कई घरों के चिराग अस्पताल में लगी आग से झुलस गए थे. हमतुम जैसों के लिए यह अखबार में छपी छोटी सी खबर है, पर जिन मांबाप पर यह विपदा आई है, उन से पूछो कि नन्ही सी जान, जिस ने अभी ढंग से अपनी मां का दूध भी नहीं पिया है, जिस के पिता ने उसे गोद में उठा कर एक बार भी चूमा तक नहीं है, का यों दर्दनाक मौत का भागीदार बनना क्या होता है.’’

उस चपरासी का मुंह खुला का खुला रह गया. उस ने कहा, ‘‘अरे भैया, पहेलियां मत बुझाइए. मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए हैं. पूरी बात बताओ. मैं ने यह खबर नहीं पढ़ी है.’’

राम मनोहर ने कुछ सोचते हुए बताना शुरू किया, ‘‘हम सब गरीबों का खयाल रखने का दावा करने वाली दिल्ली के विवेक विहार इलाके में बने बच्चों

के एक अस्पताल में शनिवार, 25 मई, 2024 की देर रात आग लग गई थी. यह आग इतनी ज्यादा भयंकर थी कि इस हादसे में 6 नवजात की मौत हो गई थी.

‘‘दोमंजिला इमारत की पहली मंजिल पर नवजात बच्चों की देखभाल के लिए एक सैंटर बना हुआ था, जिस में उस समय कुल 12 बच्चे भरती थे. ऐसी भी खबर थी कि निचली मंजिल पर गैरकानूनी तरीके से औक्सीजन सिलैंडर भरने का काम चल रहा था.’’

यह सुन कर चपरासी की नींद काफूर हो गई. वह राम मनोहर के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘भैया, आगे क्या हुआ था?’’

राम मनोहर ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘दमकल अधिकारी ने बताया कि उन्हें रात साढ़े 11 बजे आग लगने की सूचना मिली थी. मौके पर दमकल की कुल 16 गाडि़यां पहुंची थीं, तब तक आग की लपटें ऊपर की मंजिल और पास की 2 इमारतों में भी फैल चुकी थी. नवजात बच्चों की देखभाल वाले सैंटर में जाने के लिए बाहर की तरफ से लोहे की एकमात्र घुमावदार सीढ़ी थी, उस में भी आग लग गई थी.

‘‘खबर यह थी कि उस सैंटर में भरती 12 बच्चों में से एक बच्चे की मौत आग लगने से पहले ही हो चुकी थी. कमरे में धुआं भरने के चलते बाकी 11 बच्चों की हालत गंभीर हो गई थी.

‘‘दमकल की टीम और स्थानीय लोगों ने लकड़ी की सीढि़यों पर चढ़ कर खिड़की से उन 11 बच्चों को बाहर निकाला था, पर तब तक दम घुटने से 6 बच्चों की मौत हो गई थी. उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेजा गया था. फायर सर्विस ने तकरीबन डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद आग पर पूरी तरह काबू पाया.’’

‘‘पर भैया, किसी ने तो देखा होगा कि यह आग कैसे लगी थी?’’ चपरासी ने पूछा.

राम मनोहर ने कहा, ‘‘अगर खबर पर यकीन करें, तो वहां रहने वाले एक आदमी ने बताया था, ‘हमारा घर पास

ही है. हमें रात में फोन आया कि यहां धमाके हुए हैं. मौके पर आए तो पता चला कि बिल्डिंग के सामने वैन में औक्सीजन सिलैंडर में गैस भरने का काम चल रहा था कि तभी सिलैंडर में धमाका हो गया.’

‘‘उस आदमी ने आगे बताया, ‘पहला सिलैंडर फट कर बिल्डिंग के अंदर गया, जिस से आग लग गई. आग लगते ही अस्पताल के सभी स्टाफ बच्चों को छोड़ कर भाग गए. उस के बाद एक के बाद एक 3 और सिलैंडर में धमाके हुए. हम बिल्डिंग के पीछे गए और शीशे तोड़ कर बच्चों को बाहर निकाला.’

‘‘लोकल लोगों का आरोप है कि बेबी केयर सैंटर के नीचे काफी समय से औक्सीजन भरने का काम होता था. यहां रोज बड़ी तादाद में औक्सीजन सिलैंडर लाए जाते थे. इस को ले कर पहले ही कई बार शिकायत की गई थी, पर कोई सुनवाई नहीं हुई.’’

राम मनोहर के इतना कहने पर उस काली रात का सन्नाटा और ज्यादा गहरा हो गया. दुलारी अभी गहरी नींद में लग रही थी. रात के साढ़े 12 बज रहे थे.

चपरासी ने राम मनोहर से कहा, ‘‘भैया, मेरा घर पास में ही है. अगर आप कहें तो थोड़ी देर अपनी नींद निकाल आऊं, बस आप किसी को बताना मत. मैं 4 बजे तक लौट आऊंगा.’’

राम मनोहर ने कहा, ‘‘ठीक है, वैसे भी यहां कौन आने वाला है. दिन में तो डाक्टर दिखते नहीं, फिर इस काली रात में…’’

राम मनोहर को नहीं पता था कि वह रात सच में उस के लिए काली साबित हो जाएगी. रात के 3 बज रहे थे. राम मनोहर और दुलारी गहरी नींद में सो रहे थे.

इतने में सब से निचली मंजिल में बिजली की तारों में आग लग गई. ज्यादा गरमी की वजह से आग तेजी से फैलने लगी. देखते ही देखते आग इतनी ज्यादा बढ़ गई कि धुएं का गुबार सा उठने लगा.

राम मनोहर और दुलारी को नींद में पता ही नहीं चला और वे धुएं की चपेट में आ गए. देखते ही देखते बच्चों की नर्सरी वाली वह मंजिल गैस का चैंबर बन गई.

दमकल की 12 गाडि़यों ने बड़ी मशक्कत के बाद उस आग पर काबू पाया, पर तब तक राम मनोहर, दुलारी और वे 4 नवजात बच्चे मौत के आगोश में समा गए.

कल तक बच्चों की दर्दनाक मौत का गम मनाने वाला राम मनोहर आज खुद अखबार की सुर्खियां बन गया था..

मसीहा: शांति की लगन

दोपहर का खाना खा कर लेटे ही थे कि डाकिया आ गया. कई पत्रों के बीच राजपुरा से किसी शांति नाम की महिला का एक रजिस्टर्ड पत्र 20 हजार रुपए के ड्राफ्ट के साथ था. उत्सुकतावश मैं एक ही सांस में पूरा पत्र पढ़ गई, जिस में उस महिला ने अपने कठिनाई भरे दौर में हमारे द्वारा दिए गए इन रुपयों के लिए धन्यवाद लिखा था और आज 10 सालों के बाद वे रुपए हमें लौटाए थे. वह खुद आना चाहती थी पर यह सोच कर नहीं आई कि संभवत: उस के द्वारा लौटाए जाने पर हम वह रुपए वापस न लें.

पत्र पढ़ने के बाद मैं देर तक उस महिला के बारे में सोचती रही पर ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा था.

‘‘अरे, सुमि, शांति कहीं वही लड़की तो नहीं जो बरसों पहले कुछ समय तक मुझ से पढ़ती रही थी,’’ मेरे पति अभिनव अतीत को कुरेदते हुए बोले तो एकाएक मुझे सब याद आ गया.

उन दिनों शांति अपनी मां बंती के साथ मेरे घर का काम करने आती थी. एक दिन वह अकेली ही आई. पूछने पर पता चला कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं है. 2-3 दिन बाद जब बंती फिर काम पर आई तो बहुत कमजोर दिख रही थी. जैसे ही मैं ने उस का हाल पूछा वह अपना काम छोड़ मेरे सामने बैठ कर रोने लगी. मैं हतप्रभ भी और परेशान भी कि अकारण ही उस की किस दुखती रग पर मैं ने हाथ रख दिया.

बंती ने बताया कि उस ने अब तक के अपने जीवन में दुख और अभाव ही देखे हैं. 5 बेटियां होने पर ससुराल में केवल प्रताड़ना ही मिलती रही. बड़ी 4 बेटियों की तो किसी न किसी तरह शादी कर दी है. बस, अब तो शांति को ब्याहने की ही चिंता है पर वह पढ़ना चाहती है.

बंती कुछ देर को रुकी फिर आगे बोली कि अपनी मेहनत से शांति 10वीं तक पहुंच गई है पर अब ट्यूशन की जरूरत पड़ेगी जिस के लिए उस के पास पैसा नहीं है. तब मैं ने अभिनव से इस बारे में बात की जो उसे निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गए. अपनी लगन व परिश्रम से शांति 10वीं में अच्छे नंबरों में पास हो गई. उस के बाद उस ने सिलाईकढ़ाई भी सीखी. कुछ समय बाद थोड़ा दानदहेज जोड़ कर बंती ने उस के हाथ पीले कर दिए.

अभी शांति की शादी हुए साल भर बीता था कि वह एक बेटे की मां बन गई. एक दिन जब वह अपने बच्चे सहित मुझ से मिलने आई तो उस का चेहरा देख मैं हैरान हो गई. कहां एक साल पहले का सुंदरसजीला लाल जोड़े में सिमटा खिलाखिला शांति का चेहरा और कहां यह बीमार सा दिखने वाला बुझाबुझा चेहरा.

‘क्या बात है, बंती, शांति सुखी तो है न अपने घर में?’ मैं ने सशंकित हो पूछा.

व्यथित मन से बंती बोली, ‘लड़कियों का क्या सुख और क्या दुख बीबी, जिस खूंटे से बांध दो बंधी रहती हैं बेचारी चुपचाप.’

‘फिर भी कोई बात तो होगी जो सूख कर कांटा हो गई है,’ मेरे पुन: पूछने पर बंती तो खामोश रही पर शांति ने बताया, ‘विवाह के 3-4 महीने तक तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे पति का पाशविक रूप सामने आता गया. वह जुआरी और शराबी था. हर रात नशे में धुत हो घर लौटने पर अकारण ही गालीगलौज करता, मारपीट करता और कई बार तो मुझे आधी रात को बच्चे सहित घर से बाहर धकेल देता. सासससुर भी मुझ में ही दोष खोजते हुए बुराभला कहते. मैं कईकई दिन भूखीप्यासी पड़ी रहती पर किसी को मेरी जरा भी परवा नहीं थी. अब तो मेरा जीवन नरक समान हो गया है.’

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. मानव मन भी अबूझ होता है. कभीकभी तो खून के रिश्तों को भी भीड़ समझ उन से दूर भागने की कोशिश करता है तो कभी अनाम रिश्तों को अकारण ही गले लगा उन के दुखों को अपने ऊपर ओढ़ लेता है. कुछ ऐसा ही रिश्ता शांति से जुड़ गया था मेरा.

अगले दिन जब बंती काम पर आई तो मैं उसे देर तक समझाती रही कि शांति पढ़ीलिखी है, सिलाईकढ़ाई जानती है, इसलिए वह उसे दोबारा उस के ससुराल न भेज कर उस की योग्यता के आधार पर उस से कपड़े सीने का काम करवाए. पति व ससुराल वालों के अत्याचारों से छुटकारा मिल सके मेरे इस सुझाव पर बंती ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप अपना काम समाप्त कर बोझिल कदमों से घर लौट गई.

एक सप्ताह बाद पता चला कि शांति को उस की ससुराल वाले वापस ले गए हैं. मैं कर भी क्या सकती थी, ठगी सी बैठी रह गई.

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. इस बीच मैं ने बंती से शांति के बारे में कभी कोई बात नहीं की पर एक दिन शांति के दूसरे बेटे के जन्म के बारे में जान कर मैं बंती पर बहुत बिगड़ी कि आखिर उस ने शांति को ससुराल भेजा ही क्यों? बंती अपराधबोध से पीडि़त हो बिलखती रही पर निर्धनता, एकाकीपन और अपने असुरक्षित भविष्य को ले कर वह शांति के लिए करती भी तो क्या? वह तो केवल अपनी स्थिति और सामाजिक परिवेश को ही कोस सकती थी, जहां निम्नवर्गीय परिवार की अधिकांश स्त्रियों की स्थिति पशुओं से भी गईगुजरी होती है.

पहले तो जन्म लेते ही मातापिता के घर लड़की होने के कारण दुत्कारी जाती हैं और विवाह के बाद अर्थी उठने तक ससुराल वालों के अत्याचार सहती हैं. भोग की वस्तु बनी निरंतर बच्चे जनती हैं और कीड़ेमकोड़ों की तरह हर पल रौंदी जाती हैं, फिर भी अनवरत मौन धारण किए ऐसे यातना भरे नारकीय जीवन को ही अपनी तकदीर मान जीने का नाटक करते हुए एक दिन चुपचाप मर जाती हैं.

शांति के साथ भी तो यही सब हो रहा था. ऐसी स्थिति में ही वह तीसरी बार फिर मां बनने को हुई. उसे गर्भ धारण किए अभी 7 महीने ही हुए थे कि कमजोरी और कई दूसरे कारणों के चलते उस ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया. इत्तेफाक से उन दिनों वह बंती के पास आई हुई थी. तब मैं ने शांति से परिवार नियोजन के बारे में बात की तो बुझे स्वर में उस ने कहा कि फैसला करने वाले तो उस की ससुराल वाले हैं और उन का विचार है कि संतान तो भगवान की देन है इसलिए इस पर रोक लगाना उचित नहीं है.

मेरे बारबार समझाने पर शांति ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और बच्चों के भविष्य को देखते हुए मेरी बात मान ली और आपरेशन करवा लिया. यों तो अब मैं संतुष्ट थी फिर भी शांति की हालत और बंती की आर्थिक स्थिति को देखते हुए परेशान भी थी. मेरी परेशानी को भांपते हुए मेरे पति ने सहज भाव से 20 हजार रुपए शांति को देने की बात कही ताकि पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद वह इन रुपयों से कोई छोटामोटा काम शुरू कर के अपने पैरों पर खड़ी हो सके. पति की यह बात सुन मैं कुछ पल को समस्त चिंताओं से मुक्त हो गई.

अगले ही दिन शांति को साथ ले जा कर मैं ने बैंक में उस के नाम का खाता खुलवा दिया और वह रकम उस में जमा करवा दी ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस का लाभ उठा सके.

अभी इस बात को 2-4 दिन ही बीते थे कि हमें अपनी भतीजी की शादी में हैदराबाद जाना पड़ा. 15-20 दिन बाद जब हम वापस लौटे तो मुझे शांति का ध्यान हो आया सो बंती के घर चली गई, जहां ताला पड़ा था. उस की पड़ोसिन ने शांति के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन मैं अवाक् रह गई.

हमारे हैदराबाद जाने के अगले दिन ही शांति का पति आया और उसे बच्चों सहित यह कह कर अपने घर ले गया कि वहां उसे पूरा आराम और अच्छी खुराक मिल पाएगी जिस की उसे जरूरत है. किंतु 2 दिन बाद ही यह खबर आग की तरह फैल गई कि शांति ने अपने दोनों बच्चों सहित भाखड़ा नहर में कूद कर जान दे दी है. तब से बंती का भी कुछ पता नहीं, कौन जाने करमजली जीवित भी है या मर गई.

कैसी निढाल हो गई थी मैं उस क्षण यह सब जान कर और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही थी. पर आज शांति का पत्र मिलने पर एक सुखद आश्चर्य का सैलाब मेरे हर ओर उमड़ पड़ा है. साथ ही कई प्रश्न मुझे बेचैन भी करने लगे हैं जिन का शांति से मिल कर समाधान चाहती हूं.

जब मैं ने अभिनव से अपने मन की बात कही तो मेरी बेचैनी को देखते हुए वह मेरे साथ राजपुरा चलने को तैयार हो गए. 1-2 दिन बाद जब हम पत्र में लिखे पते के अनुसार शांति के घर पहुंचे तो दरवाजा एक 12-13 साल के लड़के ने खोला और यह जान कर कि हम शांति से मिलने आए हैं, वह हमें बैठक में ले गया. अभी हम बैठे ही थे कि वह आ गई. वही सादासलोना रूप, हां, शरीर पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था. आते ही वह मेरे गले से लिपट गई. मैं कुछ देर उस की पीठ सहलाती रही, फिर भावावेश में डूब बोली, ‘‘शांति, यह कैसी बचकानी हरकत की थी तुम ने नहर में कूद कर जान देने की. अपने बच्चों के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, कोई ऐसा भी करता है क्या? बच्चे तो ठीक हैं न, उन्हें कुछ हुआ तो नहीं?’’

बच्चों के बारे में पूछने पर वह एकाएक रोने लगी. फिर भरे गले से बोली, ‘‘छुटका नहीं रहा आंटीजी, डूब कर मर गया. मुझे और सतीश को किनारे खड़े लोगों ने किसी तरह बचा लिया. आप के आने पर जिस ने दरवाजा खोला था, वह सतीश ही है.’’

इतना कह वह चुप हो गई और कुछ देर शून्य में ताकती रही. फिर उस ने अपने अतीत के सभी पृष्ठ एकएक कर के हमारे सामने खोल कर रख दिए.

उस ने बताया, ‘‘आंटीजी, एक ही शहर में रहने के कारण मेरी ससुराल वालों को जल्दी ही पता चल गया कि मैं ने परिवार नियोजन के उद्देश्य से अपना आपरेशन करवा लिया है. इस पर अंदर ही अंदर वे गुस्से से भर उठे थे पर ऊपरी सहानुभूति दिखाते हुए दुर्बल अवस्था में ही मुझे अपने साथ वापस ले गए.

‘‘घर पहुंच कर पति ने जम कर पिटाई की और सास ने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल पीठ दाग दी. मेरे चिल्लाने पर पति मेरे बाल पकड़ कर खींचते हुए कमरे में ले गया और चीखते हुए बोला, ‘तुझे बहुत पर निकल आए हैं जो तू अपनी मनमानी पर उतर आई है. ले, अब पड़ी रह दिन भर भूखीप्यासी अपने इन पिल्लों के साथ.’ इतना कह उस ने आंगन में खेल रहे दोनों बच्चों को बेरहमी से ला कर मेरे पास पटक दिया और दरवाजा बाहर से बंद कर चला गया.

‘‘तड़पती रही थी मैं दिन भर जले के दर्द से. आपरेशन के टांके कच्चे होने के कारण टूट गए थे. बच्चे भूख से बेहाल थे, पर मां हो कर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी उन के लिए. इसी तरह दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई. भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था और जीने की कोई लालसा शेष नहीं रह गई थी.

‘‘अपने उन्हीं दुर्बल क्षणों में मैं ने आत्महत्या कर लेने का निर्णय ले लिया. अभी पौ फटी ही थी कि दोनों सोते बच्चों सहित मैं कमरे की खिड़की से, जो बहुत ऊंची नहीं थी, कूद कर सड़क पर तेजी से चलने लगी. घर से नहर ज्यादा दूर नहीं थी, सो आत्महत्या को ही अंतिम विकल्प मान आंखें बंद कर बच्चों सहित उस में कूद गई. जब होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में पाया. सतीश को आक्सीजन लगी हुई थी और छुटका जीवनमुक्त हो कहीं दूर बह गया था.

‘‘डाक्टर इस घटना को पुलिस केस मान बारबार मेरे घर वालों के बारे में पूछताछ कर रहे थे. मैं इस बात से बहुत डर गई थी क्योंकि मेरे पति को यदि मेरे बारे में कुछ भी पता चल जाता तो मैं पुन: उसी नरक में धकेल दी जाती, जो मैं चाहती नहीं थी. तब मैं ने एक सहृदय

डा. अमर को अपनी आपबीती सुनाते हुए उन से मदद मांगी तो मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने इस घटना को अधिक तूल न दे कर जल्दी ही मामला रफादफा करवा दिया और मैं पुलिस के चक्करों  में पड़ने से बच गई.

‘‘अब तक डा. अमर मेरे बारे में सबकुछ जान चुके थे इसलिए वह मुझे बेटे सहित अपने घर ले गए, जहां उन की मां ने मुझे बहुत सहारा दिया. सप्ताह  भर मैं उन के घर रही. इस बीच डाक्टर साहब ने आप के द्वारा दिए उन 20 हजार रुपयों की मदद से यहां राजपुरा में हमें एक कमरा किराए पर ले कर दिया. साथ ही मेरे लिए सिलाई का सारा इंतजाम भी कर दिया. पर मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे सिले कपड़े बिकेंगे कैसे?

‘‘इस बारे में जब मैं ने डा. अमर से बात की तो उन्होंने मुझे एक गैरसरकारी संस्था के अध्यक्ष से मिलवाया जो निर्धन व निराश्रित स्त्रियों की सहायता करते थे. उन्होंने मुझे भी सहायता देने का आश्वासन दिया और मेरे द्वारा सिले कुछ वस्त्र यहां के वस्त्र विके्रताओं को दिखाए जिन्होंने मुझे फैशन के अनुसार कपड़े सिलने के कुछ सुझाव दिए.

‘‘मैं ने उन के सुझावों के मुताबिक कपड़े सिलने शुरू कर दिए जो धीरेधीरे लोकप्रिय होते गए. नतीजतन, मेरा काम दिनोंदिन बढ़ता चला गया. आज मेरे पास सिर ढकने को अपनी छत है और दो वक्त की इज्जत की रोटी भी नसीब हो जाती है.’’

इतना कह शांति हमें अपना घर दिखाने लगी. छोटा सा, सादा सा घर, किंतु मेहनत की गमक से महकता हुआ.  सिलाई वाला कमरा तो बुटीक ही लगता था, जहां उस के द्वारा सिले सुंदर डिजाइन के कपड़े टंगे थे.

हम दोनों पतिपत्नी, शांति की हिम्मत, लगन और प्रगति देख कर बेहद खुश हुए और उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त भी. शांति से बातें करते बहुत समय बीत चला था और अब दोपहर ढलने को थी इसलिए हम पटियाला वापस जाने के लिए उठ खड़े हुए. चलने से पहले अभिनव ने एक लिफाफा शांति को थमाते हुए कहा, ‘‘बेटी, ये वही रुपए हैं जो तुम ने हमें लौटाए थे. मैं अनुमान लगा सकता हूं कि किनकिन कठिनाइयों को झेलते हुए तुम ने ये रुपए जोड़े होंगे. भले ही आज तुम आत्मनिर्भर हो गई हो, फिर भी सतीश का जीवन संवारने का एक लंबा सफर तुम्हारे सामने है. उसे पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना है तुम्हें, और उस के लिए बहुत पैसा चाहिए. यह थोड़ा सा धन तुम अपने पास ही रखो, भविष्य में सतीश के काम आएगा. हां, एक बात और, इन पैसों को ले कर कभी भी अपने मन पर बोझ न रखना.’’

अभिनव की बात सुन कर शांति कुछ देर चुप बैठी रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘अंकलजी, आप ने मेरे लिए जो किया वह आज के समय में दुर्लभ है. आज मुझे आभास हुआ है कि इस संसार में यदि मेरे पति जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग हैं तो

डा. अमर और आप जैसे महान लोग भी हैं जो मसीहा बन कर आते हैं और हम निर्बल और असहाय लोगों का संबल बन उन्हें जीने की सही राह दिखाते हैं.’’

इतना कह सजल नेत्रों से हमारा आभार प्रकट करते हुए वह अभिनव के चरणों में झुक गई.     द्य

अनकही व्यथा: दामाद अशोक के बारे में सुदर्शन को क्या पता चला था

कालोनी में सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर सुदर्शन के यहां उन की पुत्री के विवाह की तैयारियां जोरों पर थीं. सुदर्शन ने 3 वर्ष पहले ही कालोनी में मकान बनवाया था और उस समय की लागत के अनुसार मकान बनवाने में केवल 1 लाख रुपए लगे थे. 4 बडे़ कमरे, बैठक, रसोईघर, हरेक कमरे से जुड़ा गुसलखाना, सामने सुंदर लान जिस में तरहतरह के फूल लगे थे और पीछे एक बड़ा आंगन था. मकान की शान- शौकत देखते ही बनती थी.

उसी सुदर्शन के मकान के सामने आज विवाह की तैयारियां जोरों पर थीं. पूरी सड़क घेर कर काफी दूर तक कनातें लगाई गई थीं. शहर की सब से नामी फर्म ने सजावट का ठेका लिया था. चांदी और सुनहरे तारों की लडि़यां, रंगबिरंगे बल्ब, सोफे और गद्दीदार कुरसियां, झाड़-फानूस, सभी से वह पूरा क्षेत्र सजा हुआ था. स्वागत द्वार के पास ही परंपरागत शहनाईवादन हो रहा था. उस के लिए भी प्रसिद्ध कलाकार बुलाए गए थे.

जब मकान बना था तब भी पड़ोस में रहने वाले प्रोफेसर बलराज को बड़ा आश्चर्य हुआ था कि इतना रुपया सुदर्शन के पास कहां से आया. उन्हीं को नहीं, अन्य लोगों को भी इस बात पर अचंभा हुआ था, लेकिन यह पूछने का साहस किसी में नहीं था. आज बलराज को सुदर्शन की पुत्री के विवाह पर की गई सजावट और शानशौकत देख कर विस्मय हो रहा था.

बलराज हजार रुपए वेतन पा कर भी कभी मकान बनवाने की कल्पना नहीं कर सके और 15  वर्षं से इस कालोनी में किराए के मकान में रह रहे थे. उन की पत्नी कभीकभी व्यंग्य में कह दिया करती थीं, ‘‘जाइए, देख ली आप की प्रोफेसरी. इस मास्टरी लाइन में रखा ही क्या है? देख लो, सामने वाले नायब तहसीलदार विजय ने कैसी शानदार कोठी बनवा ली है और उधर देखो, थानेदार जयसिंह ने नए ढंग से क्या प्यारा बंगला बनवाया है. अपने बाईं ओर सुदर्शन की कोठी तो देख ही रहे हो, दाईं तरफ वाली विकास अधिकारी रतनचंद्र की कोठी पर भी नजर डाल लो.

‘‘इन्हें क्या तन- ख्वाह मिलती है? सच तो यह है कि शायद तुम से आधे से भी कम तनख्वाह मिलतीहोगी, लेकिन देख लो, क्या ठाट हैं. सभी के बच्चे कानवेंट स्कूलों में पढ़ रहे हैं. फल और मेवों से घर भरे हुए हैं. और एक हम लोग हैं, न ढंग से खा पाते हैं और न पहन पाते हैं. वही कहावत हुई न, नाम बडे़ और दर्शन छोटे.’’

बलराज पत्नी की बातों पर अकसर झुंझलाया करते थे. किंतु वह जानते थे कि उन की पत्नी की बातों में दम है, गहरी सचाई है. वह आज तक नहीं समझा सके कि इन लोगों के पास इतना पैसा कहां से आ रहा है? कैसे वे इतना बढि़या शानशौकत भरा जीवन बिता रहे हैं? और वह ऐसा क्यों नहीं कर पाते? बलराज जैसे सीधेसादे प्रोफेसर इस प्रश्न का उत्तर खोजने पर भी नहीं ढूंढ़ पाते थे.

वह एक कालिज में भारतीय इतिहास के प्राध्यापक थे. प्राय: उन का अधिकांश समय गहरे अध्ययन और चिंतनमनन में ही बीतता था. परिवार में पत्नी के अलावा एक बड़ा पुत्र और 2 पुत्रियां थीं. पुत्र केवल बी.ए. तक ही पढ़ सका और एक फर्म में विक्रय प्रतिनिधि हो गया. उन की दोनों लड़कियों ने अवश्य एम.ए., बी.एड. कर लिया था. तीनों बच्चे बहुत सुंदर थे. लड़के का विवाह हो चुका था और एक बच्चा था.

लड़कियों के विवाह की चिंता उन्हें परेशान किए हुए थी. कई वरों को उन्होंने देख लिया था और कई वर और उन के मातापिता उन की पुत्रियों को देख चुके थे किंतु फिर भी कहीं बात तय नहीं हो पाई थी. वह काफी परेशान थे. सोचते थे कि दोनों ही लड़कियां विवाह योग्य हैं. 2-4 दिन के अंतर से दोनों का ही विवाह कर देंगे, लेकिन जब वर मिलेगा तभी तो विवाह होगा. किंतु वर कहां मिले?

उन की नजर सुदर्शन की कोठी की ओर चली गई. इस समय तक पंडाल भर चुका था. बड़ेबडे़ सेठसाहूकार अपनीअपनी कारों में आए थे. आखिर आते क्यों नहीं? सुदर्शन सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर जो था, इसीलिए शहर के व्यापारी वर्ग के सभी गण्यमान्य व्यक्ति वहां उपस्थित थे.

बलराज चौंके. ओह, वे व्यर्थ की बातें क्यों सोच रहे हैं? उन्हें भी अब सुदर्शन के यहां पहुंच जाना चाहिए. घर की महिलाएं पड़ोस में जा चुकी थीं. घर में अब उन के सिवा कोई नहीं था. वह भी जल्दी जाना चाहते थे, किंतु मन में अनजाने ही एक ऐसी अव्यक्त वेदना घर कर गई थी कि हृदय पर उन्हें एक भारी बोझ सा अनुभव हो रहा था. यह शायद अपनी पुत्रियों के विवाह तय न हो पाने के कारण था.

पटाखों और बैंडबाजों की आवाज से उन की विचारधारा टूटी. ओह, बरात आ गई. बलराज तुरंत दरवाजे पर ताला लगा कर पड़ोस में लपके.

बरात अब बिलकुल नजदीक आ चुकी थी और बैंड के शोर में ‘ट्विस्ट’ नाच अपनी चरमसीमा पर था. आगत अतिथिगण उठ कर खडे़ हो गए थे. उन में से कुछ आगे बढ़ कर नाच देखने लगे. वर का सजासजाया घोड़ा अब ‘स्वागतम्’ वाले द्वार के बिलकुल निकट आ गया था. बलराज भी अब आगे बढ़ आए थे.

परिवार की महिलाओं द्वारा अब वर का स्वागत हो रहा था. फूलों का सेहरा उठा कर वर के माथे पर तिलक किया जा रहा था. वर के मुख को देखने की उत्सुकता से बलराज ने भीड़ में सिर ऊपर उठा कर उस के मुख को देखा तो वह बुरी तरह चौंक गए. वर का मुख उन का अत्यंत जानापहचाना था.

बलराज का पूरा शरीर पसीने से भीग गया. यह सब कैसे हुआ? सचमुच यह कैसे हुआ? अशोक यहां कैसे आ गया?

लगभग 3 महीने पहले यही अशोक अपने पिता, भाई, मां तथा बहन के साथ उन की पुत्री रुचि को देखने उन के यहां आया था. उस दिन उन्होंने भी अपने आसपड़ोस के 4 आदमियों को इकट्ठा कर लिया था जिस में पड़ोस के सुदर्शन का परिवार भी सम्मिलित था.

बलराज को वह दिन अच्छी तरह याद था. अशोक अत्यंत सुंदर व सुसंस्कृत नवयुवक था. वह अच्छे पद पर था. एकाध वर्ष में स्टेट बैंक की किसी शाखा का मैनेजर बनने वाला था. उन के एक मित्र ने उस से तथा उस के परिवार से बलराज का परिचय कराया था. लड़का उन्हें बहुत पसंद आया था और उन्होंने अपनी रूपमती पुत्री रुचि का उस से विवाह कर देने का निश्चय कर लिया था.

किंतु निश्चय कर लेना एक बात है और कार्यरूप में परिणत करना दूसरी बात है. उन की हार्दिक इच्छा होने के बावजूद अशोक और रुचि का विवाह तय नहीं हो सका था. इस में सब से बडे़ बाधक अशोक के पिता थे. उन के उस समय कहे गए शब्द अब बलराज के कानों में गूंज रहे थे :

‘प्रोफेसर साहब, यह ठीक है कि आप एक बडे़ कालिज में प्रोफेसर हैं. यह भी सही है कि आप अच्छी तनख्वाह पाते हैं, लेकिन यह बताइए, आप हमें क्या दे सकते हैं? मेरा लड़का एम.ए., बी.काम. है, बैंक में बड़ा अफसर होने जा रहा है. हम ने उस की पढ़ाईलिखाई पर 40-50 हजार से ऊपर खर्च कर दिया है और अफसर बनवा दिया है, इसीलिए न कि हमें यह सब रुपया वापस मिल जाएगा.’

उन्होंने रुक कर फिर कहा, ‘यदि आप हमें 1 लाख रुपए नकद दे सकते हैं और लड़की के जेवर, कपड़ों के अलावा फ्रिज, रंगीन टेलीविजन और स्कूटर दे सकते हैं तो मिलाइए हाथ. बात अभी और इसी समय पक्की समझिए. नहीं तो हमें माफ कीजिए.’

बलराज उस मांग को सुन कर अत्यंत विचलित हो गए थे. वह मात्र एक प्रोफेसर थे जिस के पास वेतन और कुछ परीक्षाओं में परीक्षक होने से प्राप्त धन की ही आमदनी थी. वह दहेज को सदा समाज और देश के लिए अभिशाप समझते रहे, इसीलिए उन्होंने अपनी आदर्शवादिता का निर्वाह करते हुए अपने पुत्र के विवाह में कुछ नहीं लिया था.

उन्हें अपनी पुत्रवधू पसंद आ गई थी और वह प्रसन्नता के साथ उसे अपनी बहू बना कर ले आए थे. वह उस से आज भी पूर्णतया संतुष्ट थे. उन्हें कभी भी उस से या उस के परिवार से शिकायत नहीं हुई थी. वे यही सोचते थे कि जब मैं ने अपने पुत्र के विवाह में कुछ नहीं लिया तो मेरी पुत्रियों के विवाह में भी मुझ से कोई कुछ नहीं मांगेगा.

किंतु आज उन का वह स्वप्न छिन्नभिन्न हो गया, वह पराजित हो गए, उन के सम्मुख ठोस यथार्थ आ चुका था. उन्होंने बड़े निराशा भरे स्वर में अशोक के पिता से कहा था, ‘आप की मांग ऐसी है कि मुझ जैसा अध्यापक कभी पूरी नहीं कर पाएगा, कैलाशजी. एक पिता का सब से बड़ा कर्तव्य यही है कि वह अपनी संतानों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दे कर हर रूप में योग्य व समर्थ बना कर उन का जीवन व्यवस्थित कर दे. वह कर्तव्य मैं ने कर दिया है.

‘मेरी लड़की अत्यंत सुंदर होने के साथसाथ एम.ए., बी.एड. है, गृहकार्य में पूर्णतया दक्ष है. मुझे विश्वास है कि जहां भी जाएगी, वह घर उसे पा कर सुखी होगा. मैं आप को केवल एक ही भरोसा दे सकता हूं कि अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर अच्छे से अच्छा विवाह करूंगा और आप को संतोष देने का प्रयत्न करूंगा, लेकिन किसी भी चीज को देने का वादा नहीं कर सकता.’

और कैलाशजी अपने पुत्र अशोक को ले कर वापस चले गए थे. बलराज की पुत्री का विवाह तय नहीं हो पाया था. उस दिन वह बेहद निराश और मायूस रहे. उन्होंने उस दिन खाना नहीं खाया और किसी से बोले भी नहीं. जीवन में पहली बार उन्हें यथार्थ के ठोस धरातल का एहसास हुआ था. वह जान गए थे कि यह दुनिया अब उन के स्वप्नों की दुनिया नहीं रही है. यह बहुत बदल गई है, सचमुच बेहद बदल गई है.

अब वही लड़का अशोक वर के रूप में सामने खड़ा था और वह भी पड़ोसी सुदर्शन के यहां. क्या सुदर्शन ने अशोक के पिता की पूरी मांगें मान लीं? लेकिन यह कैसे हो सकता है? सुदर्शन के पास इतना रुपया कहां से आया? और उन की लड़की भी तो अत्यंत कुरूप और मात्र इंटर पास है. अशोक को तो सुंदर लड़की चाहिए थी. क्या अशोक ने उसे पसंद कर लिया?

वह अपने कंधे पर किसी के हाथ की थपथपाहट से चौंके. सड़क के उस पार की कोठी के मालिक रामेंद्र बगल में खडे़ थे. उन्होंने पसीने में भीगा अपना चेहरा उन के मुख पर टिका दिया और खोएखोए से देखते रहे.

रामेंद्र उन्हें भीड़ से अलग एक किनारे ले गए और धीरे से बोले, ‘‘मैं जानता हूं कि आप इस लड़के अशोक को देख कर बेहद चौंके हैं और शायद दुखी भी हुए हैं. मैं आप के मन की व्यथा समझ रहा हूं, प्रोफेसर साहब. बात इतनी है कि आजकल वरों की नीलामी हो रही है. जो जितनी अधिक ऊंची बोली लगाएगा वही अपनी पुत्री का विवाह कर पाएगा. सुदर्शन ने आप के यहां इस लड़के को देख लिया और उस के बाप से उसे खरीद लिया.

‘‘उधर देखिए,’’ सामने इशारा करते हुए उन्होंने फिर कहा, ‘‘इसे देने के लिए नया स्कूटर खड़ा है, फ्रिज, रंगीन टेलीविजन, स्टीरियो और टेपरिकार्डर कोने में रखे हैं. मंडप के नीचे साडि़यों और जेवरात की बहार पर भी नजर डालिए. यही सब तो इस वर के पिता को चाहिए था जो आप दे नहीं सके थे. शायद आप को यह भी पता नहीं कि सुदर्शन ने तिलक की रस्म के समय 51 हजार रुपए दिए थे और शेष अब दिए जाएंगे.’’

बलराज ने भर्राए, अटकते स्वरों में कहा, ‘‘लेकिन सुदर्शन की लड़की… वह तो बहुत बदसूरत है, ज्यादा पढ़ीलिखी भी नहीं है. क्या लड़के ने उसे पसंद कर लिया?’’

रामेंद्र व्यंग्य से मुसकराए. धीरे से बोले, ‘‘लड़के ने ही तो लड़की पसंद कर के शादी की है. लड़के को लड़की नहीं, रुपया चाहिए था. दहेज चाहिए था. वह मिल गया. एक बडे़ होटल में दावत पर इन सभी को बुलाया गया था. वहीं मोलभाव हुआ था और तुरंत वहीं तिलक की रस्म भी कर दी गई थी. तभी तो हम लोगों को पता नहीं चला. वह तो कल मेरी पत्नी को कहीं से यह सबकुछ पता चला, तब मैं जान पाया.’’

बलराज ने खोएखोए स्वर में कहा, ‘‘रामेंद्रजी, इतना सबकुछ देना मेरी सामर्थ्य के बाहर है. अब मैं क्या करूंगा. मेरी लड़कियों का विवाह कैसे होगा?’’

रामेंद्रजी ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, ‘‘मैं आप की कठिनाई समझ रहा हूं, प्रोफेसर साहब, लेकिन आज का युग तो मोलभाव का युग है, नीलामी का युग है. आप ने दुकानों में सजी हुई वस्तुओं पर कीमतें टंगी हुई देखी होंगी. बढि़या माल चाहिए, बढि़या दाम देने होंगे. वही हाल आजकल वरों का है. वर का जितना बड़ा पद होगा उसी अनुपात में आप को उस की कीमत नकद एवं सामान के रूप में देनी होगी.’’

रामेंद्रजी ने थोड़ा रुक कर, फिर सांस भर कर धीरे से कहा, ‘‘बोलिए, आप कैसा और कौन सा माल खरीदेंगे? चाहे जैसा माल खरीदिए, शर्त यही है कि कीमत आप को देनी होगी.’’

बलराज हलकी सर्दी में भी पसीने से बुरी तरह भीग चुके थे. वह एकटक असहाय दृष्टि से ठाकुर साहब को देखते रहे और फिर बिना कुछ बोले तेजी से अपने घर की ओर बढ़ गए.

बलराज कब तक निश्चेष्ट पडे़ रहे, यह उन्हें याद नहीं. उन का शरीर निश्चेष्ट अवश्य था, किंतु उन का मस्तिष्क सक्रिय था. वह अनर्गल विचारों में डूबतेउतराते रहे और उन की तंद्रा तब टूटी जब उन की पत्नी ने उन के माथे को सहलाया. फिर उस ने धीरे से पूछा, ‘‘क्या सो गए?’’

उन्होंने धीरे से नेत्र खोल कर एक क्षण अपनी पत्नी को देखा और फिर निर्निमेष उसे देखते ही रहे.

पत्नी ने घबराए स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न? आप की आंखें लाल क्यों हैं?’’

बलराज धीरे से उठ कर बैठ गए और हौले स्वर में बोले, ‘‘मैं ठीक हूं, रमा. मुझे कुछ नहीं हुआ है.’’

पलंग के पास पड़ी कुरसी पर पत्नी बैठ गई. कुछ क्षणों तक खामोशी रही, फिर रमा ने धीरे से कहा, ‘‘सुदर्शनजी रात्रिभोज के लिए आप को काफी ढूंढ़ते रहे. शायद वह लड़की के दहेज का सामान भी आप को दिखाना चाहते थे, लेकिन मैं जानती हूं कि आप क्यों चले आए. मैं तो इतना ही कहूंगी कि इस तरह दुखी होने से क्या होगा. हम अपनी विवशताओं की सीमाओं में बंधे हैं. हम अपनेआप को बेच कर भी इतना सब कुछ नहीं दे सकते.

‘‘किंतु मुझे विश्वास है कि चाहे देर से ही सही, वह समय जरूर आएगा जब कोई समझदार नौजवान इन दहेज के बंधनों को तोड़ कर हमारी बेटी को ब्याह ले जाएगा. हां, हमें तब तक प्रतीक्षा करनी होगी.’’

बलराज ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘नहीं, रमा, ऐसा विश्वास व्यर्थ है. सोने और चांदी से चमचमाते इस युग में हम सीमित साधनों वाले इनसान जिंदा नहीं रह सकते. क्या तुम्हें यह विचित्र नहीं लगता कि पड़ोसियों की कम पढ़ीलिखी, बदसूरत लड़कियां एकएक कर ब्याही जा रही हैं, क्योंकि वे अच्छा दहेज दे सकने में समर्थ हैं, इसलिए कि उन के पास रिश्वत, सरकारी माल की हेराफेरी और भ्रष्टाचार से कमाया पैसा है और हम ईमानदार लोग असहाय एवं बेबस हो कर यह सब देख रहे हैं और सह रहे हैं.

‘‘रमा, आज धन और पैसे का बोलबाला है, चांदी के जूते के सामने इनसान ने अपनी शर्महया, इज्जतआबरू, मानअपमान सभी को ताक पर रख दिया है. इनसान सरेबाजार बिक गया है. नीलाम हो गया है.’’

बलराज थोड़ी देर रुके. फिर सांस भर कर बोले, ‘‘मेरे दिल में एक ही बात की कसक है कि एक अध्यापक अपनी सीमित आय के कारण अपनी पुत्री का विवाह नहीं कर सकता क्योंकि वह एक वर की कीमत दे सकने में असमर्थ है. वर पक्ष वाले भी इसीलिए अध्यापकों के पास नहीं आते. तब समाज का यह प्रबुद्ध वर्ग कहां जाए? क्या करे? मैं जानता हूं कि इस प्रश्न का उत्तर मैं या तुम नहीं दे सकते. इस प्रश्न का तो पूरे समाज को ही उत्तर देना होगा.’’

पत्नी की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला, केवल हलकी सिसकियों की आवाज सुनाई देती रही.

पास के कमरे से कुछ और सिसकियों की आवाज सुनाई दे रही थी. ये सिसकियां उन लड़कियों की थीं जो शादी का जोड़ा पहनने की प्रतीक्षा में जाने कब से बैठी हैं और जाने कब तक बैठी रहेंगी. पता नहीं, उन के सपनों का राजकुमार कब घोड़े पर चढ़ कर उन्हें लेने आएगा.

विश्वास: क्या अंजलि अपनी बिखरती हुई गृहस्थी को समेट पाई?

फोन पर ‘हैलो’ सुनते ही अंजलि ने अपने पति राजेश की आवाज पहचान ली.

राजेश ने अपनी बेटी शिखा का हालचाल जानने के बाद तनाव भरे स्वर में पूछा, ‘‘तुम यहां कब लौट रही हो?’’

‘‘मेरा जवाब आप को मालूम है,’’ अंजलि की आवाज में दुख, शिकायत और गुस्से के मिलेजुले भाव उभरे.

‘‘तुम अपनी मूर्खता छोड़ दो.’’

‘‘आप ही मेरी भावनाओं को समझ कर सही कदम क्यों नहीं उठा लेते हो?’’

‘‘तुम्हारे दिमाग में घुसे बेबुनियाद शक का इलाज कर ने को मैं गलत कदम नहीं उठाऊंगा…अपने बिजनेस को चौपट नहीं करूंगा, अंजलि.’’

‘‘मेरा शक बेबुनियाद नहीं है. मैं जो कहती हूं, उसे सारी दुनिया सच मानती है.’’

‘‘तो तुम नहीं लौट रही हो?’’ राजेश चिढ़ कर बोला.

‘‘नहीं, जब तक…’’

‘‘तब मेरी चेतावनी भी ध्यान से सुनो, अंजलि,’’ उसे बीच में टोकते हुए राजेश की आवाज में धमकी के भाव उभरे, ‘‘मैं ज्यादा देर तक तुम्हारा इंतजार नहीं करूंगा. अगर तुम फौरन नहीं लौटीं तो…तो मैं कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे दूंगा. आखिर, इनसान की सहने की भी एक सीमा…’’

अंजलि ने फोन रख कर संबंधविच्छेद कर दिया. राजेश ने पहली बार तलाक लेने की धमकी दी थी. उस की आंखों में अपनी बेबसी को महसूस करते हुए आंसू आ गए. वह चाहती भी तो आगे राजेश से वार्तालाप न कर पाती क्योंकि उस के रुंधे गले से आवाज नहीं निकलती.

शिखा अपनी एक सहेली के घर गई हुई थी. अंजलि के मातापिता अपने कमरे में आराम कर रहे थे. अपनी चिंता, दुख और शिकायत भरी नाराजगी से प्रभावित हो कर वह बिना किसी रुकावट के कुछ देर खूब रोई.

रोने से उस का मन उदास और बोझिल हो गया. एक थकी सी गहरी आस छोड़ते हुए वह उठी और फोन के पास पहुंच कर अपनी सहेली वंदना का नंबर मिलाया.

राजेश से मिली तलाक की धमकी के बारे में जान कर वंदना ने उसे आश्वासन दिया, ‘‘तू रोनाधोना बंद कर, अंजलि. मेरे साहब घर पर ही हैं. हम दोनों घंटे भर के अंदर तुझ से मिलने आते हैं. आगे क्या करना है, इस की चर्चा आमने- सामने बैठ कर करेंगे. फिक्र मत कर, सब ठीक हो जाएगा.’’

वंदना उस के बचपन की सब से अच्छी सहेली थी. उस का व उस के पति कमल का अंजलि को बहुत सहारा था. उन दोनों के साथ अपने सुखदुख बांट कर ही पति से दूर वह मायके में रह रही थी. अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए अंजलि जो बात अपने मातापिता से नहीं कह पाती, वह इन दोनों से बेहिचक कह देती.

राजेश से फोन पर हुई बातचीत का ब्योरा अंजलि से सुन कर वंदना चिंतित हो उठी तो उस के पति कमल की आंखों में गुस्से के भाव उभरे.

‘‘अंजलि, कोई चोर कोतवाल को उलटा नहीं धमका सकता है. राजेश को तलाक की धमकी देने का कोई अधिकार नहीं है. अगर वह ऐसा करता है तो समाज उसी के नाम पर थूथू करेगा,’’ कमल ने आवेश भरे लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘मेरी समझ से हमें टकराव का रास्ता छोड़ कर राजेश से बात करनी चाहिए,’’ चिंता के मारे अपनी उंगलियां मरोड़ते हुए वंदना ने अपने मन की बात कही.

‘‘राजेश से बातचीत करने को अगर अंजलि उस के पास लौट गई तो वह अपने दोस्त की विधवा के प्रेमजाल से कभी नहीं निकलेगा. उस पर संबंध तोड़ने को दबाव बनाए रखने के लिए अंजलि का यहां रहना जरूरी है.’’

‘‘अगर राजेश ने सचमुच तलाक की अर्जी कोर्ट में दे दी तो क्या करेंगे हम? तब भी तो अंजलि

को मजबूरन वापस लौटना पडे़गा न.’’

‘‘मैं नहीं लौटूंगी,’’ अंजलि ने सख्त लहजे में उन दोनों को अपना फैसला सुनाया, ‘‘मैं 2 महीने अलग रह सकती हूं तो जिंदगी भर को भी अलग रह लूंगी. मैं जब चाहूं तब अध्यापिका की नौकरी पा सकती हूं. शिखा को पालना मेरे लिए समस्या नहीं बनेगा. एक बात मेरे सामने बिलकुल साफ है. अगर राजेश ने उस विधवा सीमा से अपने व्यक्तिगत व व्यावसायिक संबंध बिलकुल समाप्त नहीं किए तो वह मुझे खो देंगे.’’

वंदना व कमल कुछ प्रतिक्रिया दर्शाते, उस से पहले ही बाहर से किसी ने घंटी बजाई. अंजलि ने दरवाजा खोला तो सामने अपनी 16 साल की बेटी शिखा को खड़ा पाया.

‘‘वंदना आंटी और कमल अंकल आए हुए हैं. तुम उन के पास कुछ देर बैठो, तब तक मैं तुम्हारे लिए खाना लगा लाती हूं,’’ भावुकता की शिकार बनी अंजलि ने प्यार से अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘मेरा मूड नहीं है, किसी से खामखां सिर मारने का. जब भूख होगी, मैं खाना खुद ही गरम कर के खा लूंगी,’’ बड़ी रुखाई से जवाब देने के बाद साफ तौर पर चिढ़ी व नाराज सी नजर आ रही शिखा अपने कमरे में जा घुसी.

अंजलि को उस का अचानक बदला व्यवहार बिलकुल समझ में नहीं आया. उस ने परेशान अंदाज में इस की चर्चा वंदना और कमल से की.

‘‘शिखा छोटी बच्ची नहीं है,’’ वंदना की आंखों में चिंता के बादल और ज्यादा गहरा उठे, ‘‘अपने मातापिता के बीच की अनबन जरूर उस के मन की सुखशांति को प्रभावित कर रही है. उस के अच्छे भविष्य की खातिर भी हमें समस्या का समाधान जल्दी करना होगा.’’

‘‘वंदना ठीक कह रही है, अंजलि,’’ कमल ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम शिखा से अपने दिल की बात खुल कर कहो और उस के मन की बातें सहनशीलता से सुनो. मेरी समझ से हमारे जाने के बाद आज ही तुम यह काम करना. कोई समस्या आएगी तो वंदना और मैं भी उस से बात करेंगे. उस की टेंशन दूर करना हम सब की जिम्मेदारी है.’’

उन दोनों के विदा होने तक अपनी समस्या को हल करने का कोई पक्का रास्ता अंजलि के हाथ नहीं आया था. अपनी बेटी से खुल कर बात करने के  इरादे से जब उस ने शिखा के कमरे में कदम रखा, तब वह बेचैनी और चिंता का शिकार बनी हुई थी.

‘‘क्या बात है? क्यों मूड खराब है तेरा?’’ अंजलि ने कई बार ऐसे सवालों को घुमाफिरा कर पूछा, पर शिखा गुमसुम सी बनी रही.

‘‘अगर मुझे तू कुछ बताना नहीं चाहती है तो वंदना आंटी और कमल अंकल से अपने दिल की बात कह दे,’’  अंजलि की इस सलाह का शिखा पर अप्रत्याशित असर हुआ.

‘‘भाड़ में गए कमल अंकल. जिस आदमी की शक्ल से मुझे नफरत है, उस से बात करने की सलाह आज मुझे मत दें,’’  शिखा किसी ज्वालामुखी की तरह अचानक फट पड़ी.

‘‘क्यों है तुझे कमल अंकल से नफरत? अपने मन की बात मुझ से बेहिचक हो कर कह दे गुडि़या,’’ अंजलि का मन एक अनजाने से भय और चिंता का शिकार हो गया.

‘‘पापा के पास आप नहीं लौटो, इस में उस चालाक इनसान का स्वार्थ है और आप भी मूर्ख बन कर उन के जाल में फंसती जा रही हो.’’

‘‘कैसा स्वार्थ? कैसा जाल? शिखा, मेरी समझ में तेरी बात रत्ती भर नहीं आई.’’

‘‘मेरी बात तब आप की समझ में आएगी, जब खूब बदनामी हो चुकी होगी. मैं पूछती हूं कि आप क्यों बुला लेती हो उन्हें रोजरोज? क्यों जाती हो उन के घर जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं? पापा बारबार बुला रहे हैं तो क्यों नहीं लौट चलती हो वापस घर.’’

शिखा के आरोपों को समझने में अंजलि को कुछ पल लगे और तब उस ने गहरे सदमे के शिकार व्यक्ति की तरह कांपते स्वर में पूछा, ‘‘शिखा, क्या तुम ने कमल अंकल और मेरे बीच गलत तरह के संबंध होने की बात अपने मुंह से निकाली है?’’

‘‘हां, निकाली है. अगर दाल में कुछ काला न होता तो वह आप को सदा पापा के खिलाफ क्यों भड़काते? क्यों जाती हो आप उन के घर, जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं?’’

अंजलि ने शिखा के गाल पर थप्पड़ मारने के लिए उठे अपने हाथ को बड़ी कठिनाई से रोका और गहरीगहरी सांसें ले कर अपने क्रोध को कम करने के प्रयास में लग गई. दूसरी तरफ तनी हुई शिखा आंखें फाड़ कर चुनौती भरे अंदाज में उसे घूरती रहीं.

कुछ सहज हो कर अंजलि ने उस से पूछा, ‘‘वंदना के घर मेरे जाने की खबर तुम्हें उन के घर के सामने रहने वाली रितु से मिलती है न?’’

‘‘हां, रितु मुझ से झूठ नहीं बोलती है,’’ शिखा ने एकएक शब्द पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया.

‘‘यह अंदाजा उस ने या तुम ने किस आधार पर लगाया कि मैं वंदना की गैर- मौजूदगी में कमल से मिलने जाती हूं?’’

‘‘आप कल सुबह उन के घर गई थीं और परसों ही वंदना आंटी ने मेरे सामने कहा था कि वह अपनी बड़ी बहन को डाक्टर के यहां दिखाने जाएंगी, फिर आप उन के घर क्यों गईं?’’

‘‘ऐसा हुआ जरूर है, पर मुझे याद नहीं रहा था,’’ कुछ पल सोचने के बाद अंजलि ने गंभीर स्वर में जवाब दिया.

‘‘मुझे लगता है कि वह गंदा आदमी आप को फोन कर के अपने पास ऐसे मौकों पर बुलाता है और आप चली जाती हो.’’

‘‘शिखा, तुम्हें अपनी मम्मी के चरित्र पर यों कीचड़ उछालते हुए शर्म नहीं आ रही है,’’ अंजलि का अपमान के कारण चेहरा लाल हो उठा, ‘‘वंदना मेरी बहुत भरोसे की सहेली है. उस के साथ मैं कैसे विश्वासघात करूंगी? मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारे पापा बसते हैं, और कोई नहीं.’’

‘‘तब आप उन के पास लौट क्यों नहीं चलती हो? क्यों कमल अंकल के भड़काने में आ रही हो?’’ शिखा ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘बेटी, तेरे पापा के और मेरे बीच में एक औरत के कारण गहरी अनबन चल रही है, उस समस्या के हल होते ही मैं उन के पास लौट जाऊंगी,’’ शिखा को यों स्पष्टीकरण देते हुए अंजलि ने खुद को शर्म के मारे जमीन मेें गड़ता महसूस किया.

‘‘मुझे यह सब बेकार के बहाने लगते हैं. आप कमल अंकल के कारण पापा के पास लौटना नहीं चाहती हो,’’ शिखा अपनी बात पर अड़ी रही.

‘‘तुम जबरदस्त गलतफहमी का शिकार हो, शिखा. वंदना और कमल मेरे शुभचिंतक हैं. उन दोनों का बहुत सहारा है मुझे. दोस्ती के पवित्र संबंध की सीमाएं तोड़ कर कुछ गलत न मैं कर रही हूं न कमल अंकल. मेरे कहे पर विश्वास कर बेटी,’’ अंजलि बहुत भावुक हो उठी.

‘‘मेरे मन की सुखशांति की खातिर आप अंकल से और जरूरी हो तो वंदना आंटी से भी अपने संबंध पूरी तरह तोड़ लो, मम्मी. मुझे डर है कि ऐसा न करने पर आप पापा से सदा के लिए दूर हो जाओगी,’’ शिखा ने आंखों में आंसू ला कर विनती की.

‘‘तुम्हारे नासमझी भरे व्यवहार से मैं बहुत निराश हूं,’’ ऐसा कह कर अंजलि उठ कर अपने कमरे में चली आई.

इस घटना के बाद मांबेटी के संबंधों में बहुत खिंचाव आ गया. आपस में बातचीत बस, बेहद जरूरी बातों को ले कर होती. अपने दिल पर लगे घावों को दोनों नाराजगी भरी खामोशी के साथ एकदूसरे को दिखा रही थीं.

शिखा की चुप्पी व नाराजगी वंदना और कमल ने भी नोट की. अंजलि उन के किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकी. वह कैसे कहती कि शिखा ने कमल और उस के बीच नाजायज संबंध होने का शक अपने मन में बिठा रखा था.

करीब 4 दिन बाद रात को शिखा ने मां के कमरे में आ कर अपने मन की बातें कहीं.

‘‘आप अंदाजा भी नहीं लगा सकतीं कि मेरी सहेली रितु ने अन्य सहेलियों को सब बातें बता कर मेरे लिए इज्जत से सिर उठा कर चलना ही मुश्किल कर दिया है. अपनी ये सब परेशानियां मैं आप के नहीं, तो किस के सामने रखूं?’’

‘‘मुझे तुम्हारी सहेलियों से नहीं सिर्फ तुम से मतलब है, शिखा,’’ अंजलि ने शुष्क स्वर में जवाब दिया, ‘‘तुम ने मुझे चरित्रहीन क्यों मान लिया? मुझ से ज्यादा तुम्हें अपनी सहेली पर विश्वास क्यों है?’’

‘‘मम्मी, बात विश्वास करने या न करने की नहीं है. हमें समाज में मानसम्मान से रहना है तो लोगों को ऊटपटांग बातें करने का मसाला नहीं दिया जा सकता.’’

‘‘तब क्या दूसरों को खुश करने के लिए तुम अपनी मां को चरित्रहीन करार दे दोगी? उन की झूठी बातों पर विश्वास कर के अपनी मां को उस की सब से प्यारी सहेली से दूर करने की जिद पकड़ोगी?’’

‘‘मुझ पर क्या गुजर रही है, इस की आप को भी कहां चिंता है, मम्मी,’’ शिखा चिढ़ कर गुस्सा हो उठी, ‘‘मैं आप की सहेली नहीं बल्कि सहेली के चालाक पति से आप को दूर देखना चाहती हूं. अपनी बेटी की सुखशांति से ज्यादा क्या कमल अंकल के साथ जुडे़ रहना आप के लिए जरूरी है?’’

‘‘कमल अंकल मेरे लिए तुम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कैसे हो सकते हैं, शिखा? मुझे तो अफसोस और दुख इस बात का है कि मेरी बेटी को मुझ पर विश्वास नहीं रहा. मैं पूछती हूं कि तुम ही मुझ पर विश्वास क्यों नहीं कर रही हो?  अपनी सहेलियों की बकवास पर ध्यान न दे कर मेरा साथ क्यों नहीं दे रही हो? मेरे मन में खोट नहीं है, इस बात को मेरे कई बार दोहराने के बावजूद तुम ने उस पर विश्वास न कर के मेरे दिल को जितनी पीड़ा पहुंचाई है, क्या उस का तुम्हें अंदाजा है?’’ बोलते हुए अंजलि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

‘‘यों चीखचिल्ला कर आप मुझे चुप नहीं कर सकोगी,’’ गुस्से से भरी शिखा उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘चित भी मेरी और पट भी मेरी का चालाकी भरा खेल मेरे साथ न खेलो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अंजलि फौरन उलझन का शिकार बन गई.

‘‘मतलब यह कि पापा ने अपनी बिजनेस पार्टनर सीमा आंटी को ले कर आप को सफाई दे दी तब तो आप ने उन की एक नहीं सुनी और यहां भाग आईं, और जब मैं आप से कमल अंकल के साथ संबंध तोड़ लेने की मांग कर रही हूं तो किस आधार पर आप मुझे गलत और खुद को सही ठहरा रही हो?’’

अंजलि को बेटी का सवाल सुन कर तेज झटका लगा. उस ने अपना सिर झुका लिया. शिखा आगे एक भी शब्द न बोल कर अपने कमरे में लौट गई. दोनों मांबेटी ने तबीयत खराब होने का बहाना बना कर रात का खाना नहीं खाया. शिखा के नानानानी को उन दोनों के उखडे़ मूड का कारण जरा भी समझ में नहीं आया.

उस रात अंजलि बहुत देर तक नहीं सो सकी. अपने पति के साथ चल रहे मनमुटाव से जुड़ी बहुत सी यादें उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा रही थीं. शिखा द्वारा लगाए गए आरोप ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया था.

राजेश ने कभी स्वीकार नहीं किया था कि अपने दोस्त की विधवा के साथ उस के अनैतिक संबंध थे. दूसरी तरफ आफिस में काम करने वाली 2 लड़कियों और राजेश के दोस्तों की पत्नियों ने इस संबंध को समाप्त करवा देने की चेतावनी कई बार उस के कानों में डाली थी.

तब खूबसूरत सीमा को अपने पति के साथ खूब खुल कर हंसतेबोलते देख अंजलि जबरदस्त ईर्ष्या व असुरक्षा की भावना का शिकर रहने लगी.

राजेश ने उसे प्यार से व डांट कर भी खूब समझाया पर अंजलि ने साफ कह दिया, ‘मेरे मन की सुखशांति, मेरे प्यार व खुशियों की खातिर आप को सीमा से हर तरह का संबंध समाप्त कर लेना होगा.’

‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से अपनी नजरों में गिर जाऊं. मैं कुसूरवार हूं ही नहीं, तो सजा क्यों भोगूं? अपने दिवंगत दोस्त की पत्नी को मैं बेसहारा नहीं छोड़ सकता हूं. तुम्हारे बेबुनियाद शक के कारण मैं अपनी नजरों में खुद को गिराने वाला कोई कदम नहीं उठाऊंगा,’ राजेश के इस फैसले को अंजलि किसी भी तरह से नहीं बदलवा सकी.

पहले अपने पति और अब अपनी बेटी के साथ हुए टकरावों में अंजलि को बड़ी समानता नजर आई. उस ने सीमा को ले कर राजेश पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया था और शिखा ने कमल को ले कर खुद उस पर.

वह अपने को सही मानती थी, जैसे अब शिखा अपने को सही मान रही थी. वहां राजेश अपराधी के कटघरे में खड़ा हो कर सफाई देता था और आज वह अपनी बेटी को सफाई देने के लिए मजबूर थी.

अपने दिल की बात वह अच्छी तरह जानती थी. उस के मन में कमल को ले कर रत्ती भर भी गलत तरह का आकर्षण नहीं था. इस मामले में शिखा पूरी तरह गलत थी.

तब सीमा व राजेश के मामले में क्या वह खुद गलत नहीं हो सकती थी? इस सवाल से जूझते हुए अंजलि ने सारी रात करवटें बदलते हुए गुजार दी.

अगली सुबह शिखा के जागते ही अंजलि ने अपना फैसला उसे सुना दिया, ‘‘अपना सामान बैग में रख लो. नाश्ता करने के बाद हम अपने घर लौट रहे हैं.’’

‘‘ओह, मम्मी. यू आर ग्रेट. मैं बहुत खुश हूं,’’ शिखा भावुक हो कर उस से लिपट गई.

अंजलि ने उस के माथे का चुंबन लिया, पर मुंह से कुछ नहीं बोली. तब शिखा ने धीमे स्वर में उस से कहा, ‘‘गुस्से में आ कर मैं ने जो भी पिछले दिनों आप से उलटासीधा कहा है, उस के लिए मैं बेहद शर्मिंदा हूं. आप का फैसला बता रहा है कि मैं गलत थी. प्लीज मम्मा, मुझे माफ कर दीजिए.’’

अंजलि ने उसे अपने सीने से लगा लिया. मांबेटी दोनों की आंखों में आंसू भर आए. पिछले कई दिनों से बनी मानसिक पीड़ा व तनाव से दोनों पल भर में मुक्त हो गई थीं.

उस के बुलावे पर वंदना उस से मिलने घर आ गई. कमल के आफिस चले जाने के कारण अंजलि के लौटने की खबर कमल तक नहीं पहुंची.

वंदना को अंजलि ने अकेले में अपने वापस लौटने का सही कारण बताया, ‘‘पिछले दिनों अपनी बेटी शिखा के कारण राजेश और सीमा को ले कर मुझे अपनी एक गलती…एक तरह की नासमझी का एहसास हुआ है. उसी भूल को सुधारने को मैं राजेश के पास बेशर्त वापस लौट रही हूं.

‘‘सीमा के साथ उस के अनैतिक संबंध नहीं हैं, मुझे राजेश के इस कथन पर विश्वास करना चाहिए था, पर मैं और लोगों की सुनती रही और हमारे बीच प्रेम व विश्वास का संबंध कमजोर पड़ने लगा.

‘‘अगर राजेश निर्दोष हैं तो मेरा झगड़ालू रवैया उन्हें कितना गलत और दुखदायी लगता होगा. बिना कुछ अपनी आंखों से देखे, पत्नी का पति पर विश्वास न करना क्या एक तरह का विश्वासघात नहीं है?

‘‘मैं राजेश को…उन के पे्रम को खोना नहीं चाहती हूं. हो सकता है कि सीमा और उन के बीच गलत तरह के संबंध बन गए हों, पर इस कारण वह खुद भी मुझे छोड़ना नहीं चाहते. उन के दिल में सिर्फ मैं रहूं, क्या अपने इस लक्ष्य को मैं उन से लड़झगड़ कर कभी पा सकूंगी?

‘‘वापस लौट कर मुझे उन का विश्वास फिर से जीतना है. हमारे बीच प्रेम का मजबूत बंधन फिर से कायम हो कर हम दोनों के दिलों के घावों को भर देगा, इस का मुझे पूरा विश्वास है.’’

अंजलि की आंखों में दृढ़निश्चय के भावों को पढ़ कर वंदना ने उसे बडे़ प्यार से गले लगा लिया.

ऊपर तक जाएगी: ललन ने कौन सा धंधा शुरू किया

‘‘बा बूजी, मुझ से खेती न होगी. थोड़े से खेत में पूरा परिवार लगा रहे, फिर भी मुश्किल से सब का पेट भरे.

‘‘मैं यह काम नहीं करूंगा. मैं तो हरि काका के साथ मछली पकड़ूंगा,’’ कहता हुआ ललन मछली रखने की टोकरी सिर पर रख कर घर से बाहर निकल गया.

ललन के बाबा बड़बड़ाए, ‘नालायक, कभी नदी में डूब कर मर न जाए.’

‘पहाडि़यों से उतरती नदी की धारा. नदी के किनारे देवदार के पेड़, कलकल करती नदियों का मधुर संगीत… कितना अच्छा नजारा है यह,’ ललन बड़बड़ाया, ‘अभी एक धमाका होगा और ढेर सारी मछलियां मेरी टोकरी में भर जाएंगी. एक घंटे में सारी मछलियां मंडी में बेच कर घर पहुंच जाऊंगा और मोबाइल फोन पर फिल्में देखूंगा… मगर यह ओमप्रकाश कहां मर गया…’

तभी ललन ने ओमप्रकाश को ढलान पर चढ़ते देखा तो वह खुश हो गया.

ललन ने जल्दी से थैले में से कांच की एक बोतल निकाली और उस में कुछ बारूद जैसी चीज भरी. दोनों नदी के किनारे पहुंच कर एक बड़े से पत्थर पर बैठ गए और पानी में चारा डाल कर मछलियों के आने का इंतजार करने लगे.

दरअसल, दोनों बोतल बम बना कर जहां ढेर सारी मछलियां इकट्ठा होतीं, वहीं पानी में फेंक देते, जिस से तेज धमाका हो जाता और मछलियां घायल हो कर किनारे पर आ जातीं. दोनों ?ाटपट उन्हें इकट्ठा कर मंडी में बेच देते, जिस से तुरंत अच्छी आमदनी हो जाती.

‘‘जब मछलियां इकट्ठा हो जाएंगी, तो मैं इशारा कर दूंगा… तू बम फेंक देना,’’ ओमप्रकाश बोला.

हरि काका इसे कुदरत के खिलाफ मानते थे. उन्हें जाल फैला कर मछली पकड़ना पसंद था, इसीलिए ललन उन के साथ मछली पकड़ने नहीं जाता था. उसे ओमप्रकाश का तरीका पसंद था.

अभी भी इक्कादुक्का मछलियां ही चारा खाने पहुंची थीं. शायद बम वाले तरीके को मछलियों ने भांप लिया था.

नदी के किनारे एक बड़ा सा पत्थर था, जिस का एक हिस्सा पानी में डूबा हुआ था. ओमप्रकाश मछलियों के न आने से निराश हो कर पत्थर पर लेट गया और आसमान की ओर देखने लगा.

ललन थोड़ी दूरी पर दूसरे पत्थर पर खड़ा था एक बोतल बम हाथ में लिए. वह ओमप्रकाश के इशारे का इंतजार कर रहा था.

तभी ओमप्रकाश को सामने की पहाड़ी की तरफ से आता एक बाज दिखा, जिस के पंजों में कुछ दबा था.

‘‘अरे, बाज के पंजों में तो सांप है,’’ ज्यों ही बाज ओमप्रकाश के ऊपर पहुंचा, उस ने पहचान लिया. वह  चिल्लाया, ‘‘ललन, बाज के पंजों में सांप…’’

ललन ने तुरंत ऊपर निगाह उठाई तो देखा कि वह सांप बाज के पंजों से छूट कर नीचे गिर रहा था. जब तक वह कुछ सम?ा पाता, सांप ओमप्रकाश पर गिर गया और उसे डस लिया.

डर के मारे ललन की चीख निकल गई. वह संभलता, इस से पहले बोतल बम उस के हाथ से छूट कर गिर पड़ा.

तभी जोर का धमाका हुआ. ललन को उस धमाके से एक तेज झटका लगा और ललन का बायां हाथ उस के शरीर से टूट कर दूर जा गिरा.

जब होश आया तो ललन ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. बोतल बम ने उस का हाथ छीन लिया था.

ललन ने ओमप्रकाश के बारे में पूछा. पता चला कि वह सांप के डसने से मर चुका था.

ललन के घाव भरने में महीनाभर लग गया. लेकिन अपना एक हाथ और अपने दोस्त ओमप्रकाश को खोने का दुख उसे बहुत सताता था.

‘मैं कुदरत के खिलाफ काम कर रहा था, उसी की सजा है यह. हरि काका ठीक कहते थे. मैं जिंदा बच गया. मु?ो गलतियां सुधारने का मौका मिल गया. लेकिन बेचारा ओमप्रकाश…’ एक सुबह ललन यह सब सोच रहा था कि उस के बाबा उस से बोले, ‘‘ललन, घर में खाने को नहीं है. तुम्हारे इलाज में सब पैसा खर्च हो गया. अब कुछ कामधंधे की सोचो, नहीं तो एक दिन हम सब भूख से मर जाएंगे.’’

बाबा की बात से ललन को ध्यान आया कि कोई कामधंधा शुरू किया जाए, लेकिन एक हाथ से वह क्या कर सकता था?

एक दिन गांव के मुखिया से ललन को मालूम हुआ कि सरकार विकलांग लोगों को कामधंधा शुरू करने के लिए आसानी से कम ब्याज पर लोन देती है. उस ने विकलांगता का प्रमाणपत्र बनवा कर लोन के लिए अर्जी दे दी.

एक दिन बैंक से ललन को बुलावा आया. वह खुश हो गया कि उसे आज लोन मिल जाएगा और वह 2 भैंसें खरीद कर दूध बेचने का धंधा शुरू कर देगा.

‘‘लोन का 10 फीसदी मुझे पहले देना होगा तभी लोन मिलेगा,’’ बैंक मुलाजिम ने उस के कान में कहा.

‘‘यह क्या अंधेरगर्दी है, तुम लोगों को तनख्वाह नहीं मिलती क्या…’’ ललन को गुस्सा आ गया.

‘‘यहां का यही कायदा है,’’ बैंक मुलाजिम ललन को समझाने लगा, ‘‘भैया, गुस्सा क्यों करते हो? मैं कोई अकेला थोड़े ही न यह पैसा लूंगा. सब का हिस्सा बंटा होता है.’’

मायूस ललन घर की ओर लौट पड़ा.

अगले दिन ललन ने कुछ पैसों का जुगाड़ किया और कलक्टर के दफ्तर पहुंच गया.

‘‘मुझे साहब से जरूरी बात करनी है,’’ ललन ने संतरी से कहा.

संतरी ने बारी आने पर ललन को साहब के कमरे में भेज दिया.

‘‘कहो, क्या बात है?’’ कलक्टर साहब ने ललन की ओर देख कर पूछा.

ललन ने तुरंत अपने गमछे में बंधे रुपयों को निकाल कर टेबल पर रख दिया और बोला, ‘‘साहब, मैं गरीब हूं. आप अपना यह हिस्सा रख लीजिए और मेरा लोन पास कर दीजिए.’’

‘‘किस ने कहा कि मैं काम कराने के बदले पैसे लेता हूं?’’ कलक्टर ने पूछा.

ललन ने बैंक मुलाजिम की बात बताते हुए कहा, ‘‘साहब, उस ने कहा था कि पैसा ऊपर तक जाएगा. इसीलिए मैं आप का हिस्सा देने आ गया.’’

‘‘ठीक है, तुम ये पैसे उठा लो और घर जाओ. तुम्हें लोन मिल जाएगा,’’ कलक्टर ने कहा.

‘‘अच्छा साहब,’’ कह कर ललन  कमरे से बाहर निकल गया.

तीसरे दिन एक सूटबूट वाला आदमी ललन को खोजता हुआ उस के घर आया. ललन को रुपयों का पैकेट पकड़ाते हुए बोला, ‘‘ऊपर से आदेश है, लोन के रुपए सीधे तुम्हारे घर पहुंचाने का, इसीलिए मैं आया हूं. ये पैसे लो.

‘‘और हां, बैंक का कोई भी काम हो तो मुझ से मिलना. मैं बैंक मैनेजर हूं. मैं ही तुम्हारा काम कर दूंगा.’’

वह बैंक मुलाजिम, जिस ने ललन से घूस मांगी थी, अब जेल में था. ललन कुछ समझ नहीं पा रहा था कि ऊपर के लोगों ने बिना रुपए लिए उस का काम कैसे कर दिया?

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