इस दुनिया में इतना धोखा, झूठ और बेईमानी है कि कभीकभी नकली इनसान असली और असली इनसान नकली लगने लगता है. योगेश को शहर के लोग धर्मात्मा बुलाते थे. उसे गृहस्थसंन्यासी माना जाता था यानी वह इनसान, जो सांसारिक सुविधाओं का इस्तेमाल करते हुए भी उन में रमा नहीं हुआ था.

अपने दोस्त मोहित की असमय मौत के बाद योगेश ने उस के बूढ़े मांबाप को सहारा दिया था. उस की विधवा पत्नी मोहिनी और उस के बेटे को आसरा दिया था. मोहित की बहन तमन्ना से शादी तक की थी.

मोहित के मरने के बाद मोहिनी को उस की जगह सरकारी नौकरी मिल गई थी. मोहिनी की उम्र 35 साल से ज्यादा नहीं थी और अगर वह चाहती तो दूसरी शादी कर सकती थी, ससुराल में अपने पति की जायदाद में हिस्सा ले कर वह अलग हो सकती थी. पर योगेश की ही प्रेरणा से मोहिनी ने त्याग, बलिदान और सादगी का रास्ता चुना था.

मोहिनी अपने बेटे राहुल के साथ शहर के एक मकान में रहती थी, जबकि योगेश घरजमाई बन कर उस के बाकी परिवार के साथ गांव के पुश्तैनी मकान में रहता था.

मोहित अपने जीतेजी बूढ़े बाप की आंखों का आपरेशन नहीं करा सका था, पर योगेश ने दामाद बनते ही 6 महीनों के भीतर उन की आंख का आपरेशन करा दिया था.

योगेश एक आदर्श पति और दामाद था. वह हर तरह से एक अच्छा और नेक इनसान दिखता था. मोहित का परिवार उस के एहसान तले दबा हुआ था.

योगेश भूखों को खाना खिलाता, गाय की सेवा करता और दर्जनों सामाजिक संस्थानों में स्वयंसेवक था. कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि एक धर्मात्मा की आड़ में वह कितना बड़ा शैतान था.

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