हम बेवफा न थे : निदा की कशमकश

‘‘अरे, आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? सब लोग वहां आप दोनों के इंतजार में खड़े हैं,’’ हमशां ने अपने भैया और होने वाली भाभी को एक कोने में खड़े देख कर पूछा.

‘‘बस कुछ नहीं, ऐसे ही…’’ हमशां की होने वाली भाभी बोलीं.

‘‘पर भैया, आप तो ऐसे छिपने वाले नहीं थे…’’ हमशां ने हंसते हुए पूछा.

‘काश हमशां, तुम जान पातीं कि मैं आज कितना उदास हूं, मगर मैं चाह कर भी तुम्हें नहीं बता सकता,’ इतना सोच कर हमशां का भाई अख्तर लोगों के स्वागत के लिए दरवाजे पर आ कर खड़ा हो गया.

तभी अख्तर की नजर सामने से आती निदा पर पड़ी जो पहले कभी उसी की मंगेतर थी. वह उसे लाख भुलाने के बावजूद भी भूल नहीं पाया था.

‘‘हैलो अंकल, कैसे हैं आप?’’ निदा ने अख्तर के अब्बू से पूछा.

‘‘बेटी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ अख्तर के अब्बू ने प्यार से जवाब दिया.

‘‘हैलो अख्तर, मंगनी मुबारक हो. और कितनी बार मंगनी करने की कसम खा रखी है?’’ निदा ने सवाल दागा.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मैं तो कुछ नहीं जानता कि हमारी मंगनी क्यों टूटी. पता नहीं, तुम्हारे घर वालों को मुझ में क्या बुराई नजर आई,’’ अख्तर ने जवाब दिया.

‘‘बस मिस्टर अख्तर, आप जैसे लोग ही दुनिया को धोखा देते फिरते हैं और हमारे जैसे लोग धोखा खाते रहते हैं,’’ इतना कह कर निदा गुस्से में वहां से चली गई.

सामने स्टेज पर मंगनी की तैयारी पूरे जोरशोर से हो रही थी. सब लोग एकदूसरे से बातें करते नजर आ रहे थे. तभी निदा ने हमशां को देखा, जो उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही थी.

‘‘निदा, आप आ गईं. मैं तो सोच रही थी कि आप भी उन लड़कियों जैसी होंगी, जो मंगनी टूटने के बाद रिश्ता तोड़ लेती हैं,’’ हमशां बोली.

‘‘हमशां, मैं उन में से नहीं हूं. यह सब तो हालात की वजह से हुआ?है…’’ निदा उदास हो कर बोली, ‘‘क्या मैं जान सकती हूं कि वह लड़की कौन है जो तुम लोगों को पसंद आई है?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. वह देखो, सामने स्टेज की तरफ सुनहरे रंग का लहंगा पहने हुए खड़ी है,’’ हमशां ने अपनी होने वाली भाभी की ओर इशारा करते हुए बताया.

‘‘अच्छा, तो यही वह लड़की है जो तुम लोगों की अगली शिकार है,’’ निदा ने कोसने वाले अंदाज में कहा.

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं. इस में भैया की कोई गलती नहीं है. वह तो आज भी नहीं जानते कि हम लोगों की तरफ से मंगनी तोड़ी गई है,’’ हमशां ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘मगर, तुम तो बता सकती थीं. तुम ने क्यों नहीं बताया? आखिर तुम भी तो इसी घर की हो,’’ इतना कह कर निदा वहां से दूसरी तरफ खड़े लोगों की तरफ बढ़ने लगी.

निदा की बातें हमशां को बुरी तरह कचोट गईं.

‘‘प्लीज निदा, आप हम लोगों को गलत न समझें. बस, मम्मी चाहती थीं कि भैया की शादी उन की सहेली की बेटी से ही हो,’’ निदा को रोकते हुए हमशां ने सफाई पेश की.

‘‘और तुम लोग मान गए. एक लड़की की जिंदगी बरबाद कर के अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे हो,’’ निदा गुस्से से बोली.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं?है. मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मम्मी की कसम के आगे हम सब मजबूर थे वरना मंगनी कभी भी न टूटने देते,’’ कह कर हमशां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘देखो हमशां, अब पुरानी बातों को भूल जाओ. पर अफसोस तो उम्रभर रहेगा कि इनसानों की पहचान करना आजकल के लोग भूल चुके हैं,’’ इतना कह कर निदा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई.

‘‘निदा, इन से मिलो. ये मेरी होने वाली बहू के मम्मीपापा हैं. यह इन की छोटी बेटी है, जो मैडिकल की पढ़ाई कर रही है,’’ अख्तर की अम्मी ने निदा को अपने नए रिश्तेदारों से मिलवाया.

निदा सोचने लगी कि लोग तो रिश्ता टूटने पर नफरत करते हैं, लेकिन मैं उन में से नहीं हूं. अमीरों के लिए दौलत ही सबकुछ है. मगर मैं दौलत की इज्जत नहीं करती, बल्कि इनसानों की इज्जत करना मुझे अपने घर वालों ने सिखाया है.

‘‘निदा, आप भैया को माफ कर दें, प्लीज,’’ हमशां उस के पास आ कर फिर मिन्नत भरे लहजे में बोली.

‘‘हमशां, कैसी बातें करती हो? अब जब मुझे पता चल गया है कि इस में तुम्हारे भैया की कोई गलती नहीं है तो माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता,’’ निदा ने हंस कर उस के गाल पर एक हलकी सी चपत लगाई.

कुछ देर ठहर कर निदा फिर बोली, ‘‘हमशां, तुम्हारी मम्मी ने मुझ से रिश्ता तोड़ कर बहुत बड़ी गलती की. काश, मैं भी अमीर घर से होती तो यह रिश्ता चंद सिक्कों के लिए न टूटता.’’

‘‘मुझे मालूम है कि आप नाराज हैं. मम्मी ने आप से मंगनी तो तोड़ दी, पर उन्हें भी हमेशा अफसोस रहेगा कि उन्होंने दौलत के लिए अपने बेटे की खुशियों का खून कर दिया,’’ हमशां ने संजीदगी से कहा.

‘‘बेटा, आप लोग यहां क्यों खड़े हैं? चलो, सब लोग इंतजार कर रहे हैं. निदा, तुम भी चलो,’’ अख्तर के अब्बू खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘मुझे यहां इतना प्यार मिलता है, फिर भी दिल में एक टीस सी उठती है कि इन्होंने मुझे ठुकराया है. पर दिल में नफरत से कहीं ज्यादा मुहब्बत का असर है, जो चाह कर भी नहीं मिटा सकती,’ निदा सोच रही थी.

‘‘निदा, आप को बुरा नहीं लग रहा कि भैया किसी और से शादी कर रहे हैं?’’ हमशां ने मासूमियत से पूछा.

‘‘नहीं हमशां, मुझे क्यों बुरा लगने लगा. अगर आदमी का दिल साफ और पाक हो, तो वह एक अच्छा दोस्त भी तो बन सकता है,’’ निदा उमड़ते आंसुओं को रोकना चाहती थी, मगर कोशिश करने पर भी वह ऐसा कर नहीं सकी और आखिरकार उस की आंखें भर आईं.

‘‘भैया, आप निदा से वादा करें कि आप दोनों जिंदगी के किसी भी मोड़ पर दोस्ती का दामन नहीं छोड़ेंगे,’’ हमशां ने इतना कह कर निदा का हाथ अपने भैया के हाथ में थमा दिया और दोनों के अच्छे दोस्त बने रहने की दुआ करने लगी.

‘‘माफ कीजिएगा, अब हम एकदूसरे के दोस्त बन गए हैं और दोस्ती में कोई परदा नहीं, इसलिए आप मुझे बेवफा न समझें तो बेहतर होगा,’’ अख्तर ने कहा.

‘‘अच्छा, आप लोग मेरे बिना दोस्ती कैसे कर सकते हैं. मैं तीसरी दोस्त हूं,’’ अख्तर की मंगेतर निदा से बोली.

निदा उस लड़की को देखती रह गई और सोचने लगी कि कितनी अच्छी लड़की है. वैसे भी इस सब में इस की कोई गलती भी नहीं है.

‘‘आंटी, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं. प्लीज, इनकार न कीजिएगा,’’ निदा ने कहा.

‘‘तुम मुझ को शर्मिंदा तो नहीं कर रही हो?’’ अख्तर की अम्मी ने पलट कर पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं एक दोस्त होने के नाते अपने दोस्त की बहन को अपने भाई के लिए मांग रही हूं,’’ इतना कह कर निदा ने हमशां को गले से लगा लिया.

‘‘निदा, आप हम से बदला लेना चाहती हैं. आप भी मम्मी की तरह रिश्ता जोड़ कर फिर तोड़ लीजिएगा ताकि मैं भी दुनिया वालों की नजर में बदनाम हो जाऊं,’’ हमशां रोते हुए बोली.

‘‘अरी पगली, मैं तो तेरे भैया की दोस्त हूं, दुख और सुख में साथ देना दोस्तों का फर्ज होता है, न कि उन से बदला लेना,’’ निदा ने कहा.

‘‘नहीं, मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है,’’ अख्तर की अम्मी ने जिद्दी लहजे में कहा. तभी अख्तर के अब्बू आ गए.

‘‘क्या बात है? किस का रिश्ता नहीं होने देंगी आप?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘अंकल, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं.’’

‘‘तो देर किस बात की है. ले जाओ. तुम्हारी अमानत है, तुम्हें सौंप देता हूं.’’

‘‘निदा, आप अब भी सोच लें, मुझे बरबाद होने से आप ही बचा सकती हैं,’’ हमशां ने रोते हुए कहा.

‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो. मैं तो तुम्हें दिल से कबूल कर रही हूं, जबान से नहीं, जो बदल जाऊंगी,’’ निदा खुशी से चहकी.

‘‘हमशां, निदा ठीक कह रही हैं. तुम खुशीखुशी मान जाओ. यह कोई जरूरी नहीं कि हम लोगों ने उस के साथ गलत बरताव किया तो वह भी ऐसी ही गलती दोहराए,’’ अख्तर हमशां को समझाते हुए कहने लगा.

‘‘अगर वह भी हमारे जैसी बन जाएगी, तब हम में और उस में क्या फर्क रहेगा,’’ इतना कह कर अख्तर ने हमशां का हाथ निदा के भाई के हाथों में दे दिया.

‘‘निदा, हम यह नहीं जानते कि कौन बेवफा था, लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि हम बेवफा न थे,’’ अख्तर नजर झकाए हुए बोला.

‘‘भैया, आप बेवफा न थे तो फिर कौन बेवफा था?’’ हमशां शिकायती लहजे में बोली. उस की नजर जब अपने भैया पर पड़ी तो देख कर दंग रह गई. उस का भाई रो रहा था.

‘‘भैया, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप को गलत समझ,’’ हमशां अख्तर के गले लग कर रोने लगी.

सच है कि इनसान को हालात के आगे झुकना पड़ता है. अपनों के लिए बेवफा भी बनना पड़ता है.

आशियाना: क्या सुजाता और सुजल का सपना हुआ सच?

बगीचे के बाहर वाली रेलिंग के सहारे पानीपुरी से ले कर बड़ापाव तक तमाम तरह के ठेले और गाडि़यां लगी रहती थीं, जो बड़ी सड़क का एक किनारा था. यहां बेशुमार गाड़ियों का आनाजाना और लालपीले सिगनल जगमगाते रहते थे.

अपार्टमैंट के भीतर कुछ दुकानें, औफिस और रिहाइशी फ्लैट थे. वर्माजी यहां एक फ्लैट में अकेले रहते थे. वे एक बैंक में मैनेजर थे. उन के लिए संतोष की बात यह थी कि उन का बैंक भी इसी कैंपस में था, इसलिए उन्हें दूसरों की तरह लोकल ट्रेन में धक्के नहीं खाने पड़ते थे.

सालभर पहले वर्माजी की पोस्टिंग यहां हुई थी. यहां की बैंकिंग थोड़ी अलग थी. गांवकसबों में लोन मांगने वालों की पूरी वंशावली का पता आसानी से लग जाता था.

यहां हालात उलट थे. कर्जदार के बारे में पता लगाना टेढ़ी खीर थी. जाली दस्तावेज का डर अलग. नौकरी को खतरा न हो, इसलिए वर्माजी कर्ज देते वक्त जांचपड़ताल कर फूंकफूंक कर कदम रखते थे.

नौकरी और नियमों की ईमानदारी के चलते अकसर उन्हें यहांवहां की खाक छाननी पड़ती थी. हफ्तेभर की थकान के बाद रविवार को अखबार, कौफी मग, और उन की बालकनी में लटका चिडि़यों का घोंसला और सामने पड़ने वाला बगीचा उन में ताजगी भर देता था.

उसी बगीचे में चकवाचकवी का एक जोड़ा था सुजल और सुजाता का. दोनों पास ही गिरगांव चौपाटी की एक कंपनी में काम करते थे. सुजल तो अपने पूरे परिवार के साथ भीमनगर की किसी चाल में रहता था. सुजाता वापी से 7-8 साल पहले यहां पढ़ाई करने आई थी. तभी से कांदिवाली के एक फ्लैट में रहती थी.

पहली बार उन दोनों का परिचय भी इसी कंपनी में इंटरव्यू के दिन ही हुआ था. दोनों सैक्शनों में 1-1 पद था. इंटरव्यू  के बाद वेटिंग रूम में सुजल ने पूछा था, ‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं? कौन से ग्रुप में इंटरव्यू है?’

‘जी, मेरा नाम सुजाता है. मेरा बी गु्रप है.’

‘अच्छा. दोनों एक गु्रप में नहीं हैं. मैं टैक्निकल विंग में हूं.’

‘हम सहयोगी हो सकते हैं. मतलब, बातचीत कर के अपना तनाव कम कर सकते हैं.’

‘हां, एकदूसरे को पसीना पोंछने की सलाह तो दे ही सकते हैं.’

यह सुनते ही सुजाता के चेहरे पर एक मुसकराहट थिरक गई.

आखिरकार शाम 5 बजे लिस्ट लग गई. लिस्ट के मुताबिक सुजाता और सुजल को नौकरी मिल गई थी. सुजल ने हाथ आगे बढ़ाया तो सुजाता ने भी गरमजोशी से हाथ मिला कर इस खुशखबरी का इजहार किया.

पहले परिचय में पता चल गया था कि सुजाता गुजराती परिवार से थी और सुजल मराठी परिवार से.

सैक्शन भले ही अलग थे, पर रास्ते दोनों के एक ही थे. सुबह तो दोनों अलगअलग जगहों से औफिस पहुंचते, पर शाम को लौटते वक्त एकसाथ लोकल ट्रेन से आते.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. हफ्तेभर की थकान दूर करने रविवार की शाम इसी बगीचे में गुजारते. फिर रात को किसी रैस्टोरैंट में साथ खाते और फिर अपनेअपने घर चले जाते.

एक दिन सुजल ने सुजाता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. सुजाता ने सुजल से कहा कि पहले एक फ्लैट खरीदने के बारे में सोचना चाहिए.

यह सुनते ही सुजल के मन में मरीन ड्राइव की रोशनी तैर गई. उस ने जल्दी ही हाउसिंग लोन की फाइल वर्माजी के बैंक में लगा दी.

पहली नजर में सारे कागजात सही लग रहे थे. दोनों की तनख्वाह भी अच्छी थी. अगले दिन वर्माजी उन के औफिस में जांच करने गए.

सिक्योरिटी वाले ने पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘मिस्टर ऐंड मिसेज सुजल क्या यहां नौकरी करते हैं?’’

गार्ड हंसा और बोला, ‘‘अरे साहब, अभी दोनों की शादी नहीं हुई है. शायद जल्दी ही हो जाए.’’

यह सुन कर वर्माजी उलटे पैर लौट आए. तय दिन पर दोनों ही लोन के बारे में जानने पहुंचे.

वर्माजी बोले, ‘‘आप ने इनकम जोड़ कर दिखाई है, जबकि आप तो अभी पतिपत्नी नहीं हैं.’’

‘‘सर, हमारी सगाई हो चुकी है. 2 महीने बाद शादी है, तब तक फ्लैट का काम हो जाएगा,’’ सुजल ने कहा.

यह सुन कर वर्माजी बोले, ‘‘आप के पास आज की तारीख में 2 रास्ते हैं. अभी एक छोटा फ्लैट ले लो. अगर बड़ा फ्लैट चाहिए तो शादी के बाद आओ.’’

सुजल ने उन से कहा, ‘‘हम दोनों अंतर्जातीय विवाह कर रहे हैं. परिवार वाले इस विवाह के लिए सहमत तो हो गए हैं, पर शर्त यह है कि हम पारंपरिक रूप से विवाह करें. आप चाहें तो हमारे परिवारों से मिल कर जांच लें.’’

यह सुन कर वर्माजी बोले, ‘‘मिस्टर सुजल, इस सीट पर बैठ कर हम सिर्फ कागजात देखते हैं, भावुकता में फैसला नहीं ले सकते. जिस दिन सारे कागजात पूरे हो जाएं, आप आ जाएं.’’

सुजल ने पूछा, ‘‘सर, माफ करना, पर एक सवाल है. बड़ी रकम डकार कर फरार होने वाले बड़े लोगों के क्या बैंक ने कागजात देखे?’’

‘‘यह सब मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है,’’ वर्माजी बोले.

वे दोनों चुपचाप बैंक से बाहर आ गए.

उस रात वर्माजी को नींद नहीं आई. पता नहीं, वे क्यों उन की बातों से परेशान थे. रविवार को भी वे बेचैन रहे. सोमवार को बैंक जाते ही उन्होंने सुजल से शाम को बैंक में मिलने को कहा.

सुजल और सुजाता के पहुंचते ही वर्माजी ने कहा, ‘‘इस समस्या का एक समाधान है.

कल ही तुम दोनों कोर्ट मैरिज कर परसों चैक ले जाओ. परंपरागत शादी बाद में करते रहना.

कोर्ट मैरिज का प्रमाणपत्र बैंक को दिखाना है.’’

यह सुनते ही उन दोनों ने वर्माजी को धन्यवाद दिया और चहचहाते हुए बाहर आ गए.

पुड़िया : राहुल और सुमन का अनचाहा गिफ्ट

लगातार बज रही मोबाइल फोन की घंटी से राहुल जाग गया था, लेकिन तब तक फोन कट चुका था. उस ने मोबाइल देखा, तो सुमन की 12 मिस्ड काल थीं.

अभी पिछली रात ही तो वे दोनों काफी देर तक फोन पर औनलाइन थे, जब सुमन ने कहा था, ‘मैं आखिरी बार पूछ रहीं हूं. अब मेरे पास कोई और रास्ता नहीं है सिवा खुदकुशी कर लेने के या घर छोड़ कर कहीं अनजान जगह जाने के…’

कम शब्दों में ही बहुतकुछ समझा और समझाया जा रहा था. फोन रखने के काफी देर बाद भी राहुल को नींद नहीं आई थी. न जाने कब उस की अभी एक घंटे पहले ही आंख लग गई थी. उस ने सुमन को कोई ऐसीवैसी हरकत न करने को कितना समझाया था, तो क्या सुमन ने सचमुच…

राहुल यह सोच कर ही घबरा उठा था. उस ने नंबर डायल कर दिया. दूसरी तरफ सुमन थी, ‘राहुल, मैं अभी तुम्हारे पास आ रही हूं, सबकुछ छोड़ कर. हम किसी नई अनजान जगह पर चले जाएंगे, जहां हमें कोई भी नहीं जानतापहचानता होगा और वहीं जा कर अपनी एक नई जिंदगी शुरू करेंगे.’

राहुल अवाक सा रह गया. उस के मुंह से बस इतना ही निकला, ‘‘नहीं सुमन, हम ऐसा नहीं कर सकते.’’

सुमन ने सुबकते हुए कहा, ‘राहुल, तो इतने साल से तुम मुझे प्यार नहीं करते थे? तुम मुझे सिर्फ अपनी जिस्मानी भूख शांत करने की खुराक समझते रहे. अपना सबकुछ तो तुम्हें दे दिया है. बस एक जान बची है, वह भी दे देती हूं.’

राहुल ने भी रोते हुए कहा, ‘‘नहीं सुमन, मैं ने तुम से सच्चा प्यार किया है, जो हमेशा ही जस का तस बना रहेगा. लेकिन, तुम इस कदर पागलों जैसी न बात करो और न ही ऐसे खयाल पालो. मैं तुम्हें थोड़ी देर में बताता हूं.’’

फोन रखने के बाद राहुल अपने बिस्तर पर निढाल हो गया. उस का सिर लग रहा था मानो फट जाएगा. उस के सामने सबकुछ किसी फिल्म की तरह चलने लगा…

इंटर की कैमिस्ट्री कोचिंग की क्लास में सुमन उस की बैचमेट थी. अल्हड़ सी सुमन एक औसत रंगरूप की लड़की थी. न जाने नोट्स के लेनदेन के बीच या किसी न्यूमैरिकल की गुत्थी सुलझाते हुए कब दोनों के दिल उलझ गए, पता ही नहीं चला.

सबकुछ नौर्मल चल रहा था कि अचानक बोर्ड के इम्तिहान की घोषणा के साथ ही कोचिंग क्लासेस बंद हो गईं और दोनों ने एकदूसरे की अहमियत अपने लिए महसूस की.

इस के बाद उन दोनों ने फोन पर बातें शुरू कर दी थीं, लेकिन अपने भविष्य को ले कर भी वे सजग थे. यही वजह थी कि उन्होंने इंटर का इम्तिहान अच्छे नंबरों से पास किया था.

सुमन ने वहीं अपने शहर के महिला डिगरी कालेज में दाखिला लिया और राहुल ने यूनिवर्सिटी से अपनी आगे की पढ़ाई करने का फैसला लिया. दोनों में सब्र था, एकदूसरे पर अटूट भरोसा था, फिर भी कभीकभार वे दोनों 2-4 दिन में चोरीछिपे मिल लिया करते थे.

अब तो दोनों ने एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू कर दिया था. राहुल सुमन के मम्मीपापा से अच्छी तरह घुलमिल चुका था, तो सुमन भी राहुल की मां और बहन निकिता की अच्छी दोस्त बन चुकी थी.

निकिता की शादी के लिए वर की तलाश की जा रही थी, जिस को ले कर दोनों के बीच खूब हंसीमजाक भी चलता रहता था.

कभीकभी ऐसा भी होता था कि घर वाले कहीं बाहर गए हों तो ऐसे में सुमन और राहुल का प्रोग्राम बन जाता था. दोनों समझदार थे. कभी जिस्मानी ताल्लुक का न खयाल आया, न कोशिश की गई किसी तरफ से, मगर वह कहते हैं न कि इस उम्र में इतना उतावलापन होता है कि सबकुछ जान लेने की जल्दी रहती है.

ऐसे ही कोई दिन था, जब उखड़ीउखड़ी सांसों के साथ सुमन राहुल से मिली थी. उस के उठते उभार और सूखे होंठ देख कर राहुल को लगा कि वह प्यासी है और राहुल के होंठ उस के होंठों से जा मिले. इस के बाद तो वह सबकुछ हो गया, जिसे शादी के पहले गलत माना जाता है.

बात आईगई हो गई. जहां राहुल को इस का पछतावा था, वहीं सुमन को सबकुछ सौंपने का सुख महसूस हो रहा था.

आजकल राहुल बहुत सुकून में था, क्योंकि उस की बहन निकिता की

शादी तय हो चुकी थी और लड़का ओएनजीसी में एक अच्छे पद पर था. शादी चूंकि रिश्तेदारी में ही तय हुई थी, इसलिए दहेज का ज्यादा दबाव भी नहीं था.

तभी ‘भैया’ की पुकार सुन कर राहुल का ध्यान भंग हुआ. निकिता चाय का प्याला हाथ में लिए सामने खड़ी थी. इस उलाहने के साथ कि महाराज आजकल बहरे होते जा रहे हैं, मेरे जाने के बाद इन का न जाने क्या होगा.

आमतौर पर राहुल इस का जवाब पलट के दे ही देता था, मगर उस ने कुछ भी नहीं कहा. चाय रखी हुई थी. वह फिर से अपने खयालों में खो गया.

अभी पिछले हफ्ते की ही तो बात है, जब सुमन ने बहुत घबरा कर राहुल से तुरंत मिलने को कहा था. इस खास हिदायत के साथ कि घर के अलावा कहीं दूसरी जगह पर.

सुमन से जब राहुल मिला, तो सुमन बहुत घबराई हुई थी. उस का गला

रुंधा हुआ, मगर उस की आवाज में एक भरोसा था.

सुमन ने बताया कि उस का प्रेग्नेंसी किट से टैस्ट पौजिटिव आया है. इतना सुन कर राहुल को मानो सदमा सा लगा था, फिर भी खुद को संभालते हुए उस ने कहा था, ‘‘घबराओ मत. एक बार फिर से चैक कर लो.’’

दोबारा जांच करने पर भी वही नतीजा आने पर सुमन के सब्र का बांध टूट गया. तब उस ने कहा था, ‘‘राहुल, तुम मुझ से शादी कर लो.’’

‘‘नहीं, ऐसा अभी मैं कैसे कर सकता हूं? अगले महीने ही तो निकिता की शादी है,’’ राहुल बोला.

‘‘मगर, फिर मैं क्या करूं? कहां जाऊं?’’ कह कर सुमन फिर से सुबकने लगी.

राहुल बोला, ‘‘क्या बताऊं, मेरा दिमाग कुछ भी काम नहीं कर रहा.’’

‘‘हां, तुम्हारे दिमाग को वह सब काम तो खूब बढि़या से करने को आता है,’’ सुमन ने ताना मारा. उन दोनों के बीच की बातचीत बेनतीजा निकली.

राहुल ने सुमन का पिछले कई दिनों के बाद कल रात को फोन रिसीव किया था. उसे लगने लगा कि दिमाग की नसें फट जाएंगी, तो वह उस सोच से उबरने की सोचने लगा. जितना वह उसे भूलना चाहता था, उतना ही उस में उलझता जा रहा था.

तभी राहुल को रेलवे स्टेशन के पास वाली पुलिया के नीचे का वह तंबू याद आया, जिस का संचालक कोई चिलमबाज था और खुद को खानदानी हकीम बताता था.

राहुल को मानो किसी काली अंधेरी गुफा के भीतर से सूरज की कोई किरण दिखाई दे गई. वह दिमागी तौर पर अचानक ही बहुत हलकाफुलका महसूस करने लगा था. तुरंत ही वह वहां से समस्या बता कर एक पुडि़या लिए हुए सुमन के घर पहुंच गया.

औपचारिक बातचीत और चाय की चुसकियां लेते हुए राहुल ने वह पुडि़या सुमन के हाथों में पकड़ा दी और इशारेइशारे में उस के सेवन के लिए भी उसे समझा दिया.

पढ़ीलिखी सुमन के दिमाग में कई बार ऐसे किसी झोलाछाप से ली हुई दवा के इस्तेमाल न करने और दिल में समाज और परिवार के लोगों को ले कर ऊहापोह मचती रही, पर आखिरकार समाज का डर ही जीता और सुमन ने उस पुडि़या का चूरन पानी में घोल कर पी लिया.

रात होतेहोते सुमन को खून आना शुरू हो गया. पहलेपहल तो इस पीड़ा के बीच भी सुमन मन ही मन खुश हुई कि दवा सही काम कर गई, मगर समय बीतने के साथ खून रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था और वह अपने कमरे में ही बेहोश हो गई.

उधर राहुल मानो सारी समस्या से बाहर आ चुका था. हालांकि रहरह कर उसे सुमन का खयाल आ ही जाता था. उधर सुमन की मां ने जब बहुत देर तक सुमन की आहट महसूस नहीं की, तो उन्होंने उस के कमरे में जा कर देखा. वहां का सीन देखते ही उन के होश उड़ गए.

सुमन को अस्पताल में भरती कराया गया, जहां डाक्टरों ने सबकुछ साफ कर दिया. अगले दिन सुबह के 10 बजे राहुल का फोन सुमन के नंबर पर आया और सुमन के पिता ने बात की.

सुमन के बारे में सुनते ही राहुल को मानो चक्कर आ गया. सुमन के पिता बहुत सुलझे हुए और समझदार इनसान थे. उन्होंने कोई आक्रामक तेवर नहीं दिखाया था, न ही वे राहुल या सुमन को दोष दे रहे थे. हां, उन के स्वर में चिंता जरूर छिपी थी, जैसा कि लाजिमी भी था. उन के इस बरताव ने राहुल को पछतावा महसूस करने पर मजबूर कर दिया.

राहुल ने अपने पिता से आज औफिस न जाने के लिए कहा और उन को साथ ले कर अस्पताल चला गया. सुमन और राहुल के पिता ने हालात को भांपते हुए यह फैसला किया कि राहुल और सुमन की शादी भी निकिता के ब्याह मंडप में ही कर दी जाएगी.

हवस का नतीजा : मुग्धा का पति कैसा था

मुग्धा का बदन बुखार से तप रहा था. ऊपर से रसोई की जिम्मेदारी. किसी तरह सब्जी चलाए जा रही थी तभी उस का देवर राज वहां पानी पीने आया. उस ने मुग्धा के हावभाव देखे तो उस के माथे पर हाथ रखा और बोला, ‘‘भाभी, आप को तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां…’’ मुग्धा ने कमजोर आवाज में कहा, ‘‘सुबह कुछ नहीं था. दोपहर से अचानक…’’

‘‘भैया को बताया?’’

‘‘नहीं, वे तो परसों आने ही वाले हैं वैसे भी… बेकार परेशान होंगे. आज तो रात हो ही गई… बस कल की बात है.’’

‘‘अरे, लेकिन…’’ राज की फिक्र कम नहीं हुई थी. मगर मुग्धा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मामूली बुखार ही तो है. तुम जा कर पढ़ाई करो, खाना बनते ही बुला लूंगी.’’

‘‘खाना बनते ही बुला लूंगी…’’ मुग्धा की नकल उतार कर चिढ़ाते हुए राज ने उस के हाथ से बेलन छीना और बोला, ‘‘लाइए, मैं बना देता हूं. आप जा कर आराम कीजिए.’’

‘‘न… न… लेट गई तो मैं और बीमार हो जाऊंगी,’’ मुग्धा बैठने वालियों में से नहीं थी. वह बोली, ‘‘हम दोनों मिल कर बना लेते हैं,’’ और वे दोनों मिल कर खाना बनाने लगे.

मुग्धा का पति विनय कंपनी के किसी काम से 3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ था. वह कर्मचारी तो कोई बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन बौस का भरोसेमंद था. सो, किसी भी काम के लिए वे उसे ही भेजते थे.

मुग्धा का 21 साल का देवर राज प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. विनय जैसा प्यार करने वाला पति पा कर मुग्धा भी खुश रहती थी. कुछ पति की तनख्वाह और कुछ वह खुद जो निजी स्कूल में पढ़ाती, दोनों से मिला कर घर का खर्च अच्छे से निकल आता. सासससुर गांव में रहते थे. देवर राज अपनी पढ़ाई के चलते उन के साथ ही रहता था.

जिंदगी में कमी थी तो बस यही कि खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 10 सालों के बाद भी उन के कोई औलाद नहीं थी. अब मुग्धा 35 साल की हो चुकी थी. अपनी हमउम्र बाकी टीचरों को उन के बच्चों के साथ देखती तो न चाहते हुए भी उसे रोना आ ही जाता. वह अपनी डायरी के पन्ने इसी पीड़ा से रंगती जाती.

रोटियां बन चुकी थीं. राज ने उसे कुरसी पर बैठने को बोला और सामान समेटने लगा. मुग्धा ने सिर पीछे की ओर टिकाया और आंखें बंद कर लीं. वातावरण एकदम शांत था. तभी वहां वही तूफान फिर से गरजने लगा जिस का शोर मुग्धा आज तक नहीं भांप पाई थी.

राज की गरदन धीरे से मुग्धा की ओर घूम चुकी थी. वह कनखियों से मुग्धा की फिटिंग वाली समीज में कैद उस के उभारों को देखने लगा था. मुग्धा की सांसों के साथ जैसेजैसे वे ऊपरनीचे होते, वैसेवैसे राज के अंदर का शैतान जागता जाता.

‘‘हो गया सब काम…?’’ बरतनों की आवाज बंद जान कर मुग्धा ने अचानक पूछते हुए अपनी आंखें खोल दीं.

राज हकबका गया और बोला, ‘‘हां भाभी, बस हो ही गया…’’ कह कर राज ने जल्दीजल्दी बाकी काम निबटाया और खाने की चीजों को उठा कर मेज पर ले गया.

मुग्धा ने मुश्किल से 2 रोटियां खाईं, वह भी राज की जिद पर. वह जबरदस्ती सब्जी उस की प्लेट में डाल दे रहा था. खाने के बाद मुग्धा सोने जाने लगी तो राज बोला, ‘‘भाभी, 15 मिनट के लिए आगे वाले कमरे में बैठिए न… मैं आप के लिए दवा ले आता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, रातभर में उतर जाएगा…’’ मुग्धा ने मना किया लेकिन राज कहां मानने वाला था.

‘‘मैं पास वाले कैमिस्ट से ही दवा ले कर आ रहा हूं भाभी… जहां से आप मंगाती हैं हमेशा… दरवाजा बंद कर लीजिए… मैं अभी आया…’’ कहता हुआ वह निकल गया.

मुग्धा ने दरवाजा बंद किया और सोफे पर पैर ऊपर कर के बैठ गई.

राज ने तय कर लिया था कि आज तो वह अपने मन की कर के ही रहेगा. इस बीच कैमिस्ट की दुकान आ गई.

‘‘क्या बात है राज बाबू?’’ कैमिस्ट ने राज को खोया सा देखा तो पूछा. राज का ध्यान वापस दुकान पर आया.

‘‘दवा चाहिए थी,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अबे तो यहां क्या मिठाई मिलती है?’’ कैमिस्ट उसे छेड़ते हुए बोला. वह उस का पुराना दोस्त था.

राज मुसकरा उठा और कहा, ‘‘अरे, जल्दी दे न…’’

‘‘जल्दी दे न…’’ बड़बड़ाते हुए कैमिस्ट ने हैरत से उस की ओर देखा, ‘‘कौन सी दवा चाहिए, यह तो बता?’’

राज को याद आया कि उस ने तो सचमुच कोई दवा मांगी ही नहीं है. उस ने ऐसे ही बोल दिया, ‘‘भाभी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है. जरा नींद की गोली देना.’’

‘नींद की गोली बुखार के लिए…’ सोचते हुए कैमिस्ट ने उसे देखा. वह खुद भी मुग्धा के हुस्न का दीवाना था. हमेशा उस के बारे में चटकारे लेले कर बातें किया करता था. उस ने राज के मन की बात ताड़ ली. ऐसी बातों का उसे बहुत अनुभव जो था. उस ने नींद की गोली के साथ बुखार की भी दवा दे दी.

राज ने लिफाफा जेब में रखा और तेजी से वापस चलने को हुआ कि तभी कैमिस्ट चिल्लाया, ‘‘अरे भाई, खुराक तो सुन ले.’’

राज को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह काउंटर पर आया. कैमिस्ट ने उसे डोज बताई और आंख मारते हुए बोला, ‘‘यह नींद वाली एक से ज्यादा मत देना… टाइट चीज है…’’

‘‘अबे, क्या बकवास कर रहा है,’’ राज के मन का डर उस की जबान से बोल पड़ा. उस की तो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली हालत हो गई. वह जाने लगा.

कैमिस्ट पीछे से कह रहा था, ‘‘अगली बार हम को भी याद रखना दोस्त…’’

राज उस को अनसुना करता हुआ आगे बढ़ गया. घर लौटने पर डोर बैल बजाते ही मुग्धा ने दरवाजा खोल दिया और बोली, ‘‘यहीं बैठी थी लगातार…’’

‘‘जी भाभी, आइए अंदर चलिए…’’ राज ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा.

मुग्धा अपने कमरे में आ कर लेट गई. राज ने उसे पहले बुखार की दवा दी. मुग्धा दवा ले कर सोने के लिए लेटने लगी तो राज ने उसे रोका, ‘‘भाभी, अभी एक दवा बाकी है…’’

‘‘कितनी सारी ले आए भैया?’’ मुग्धा ने थकी आवाज में बोला और बाम ले कर माथे पर लगाने लगी.

‘‘भाभी दीजिए, मैं लगा देता हूं,’’ कह कर राज ने उस से बाम की डब्बी ले ली और उस के माथे पर मलने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने मुग्धा को नींद वाली गोली भी खिला दी और लिटा दिया.

राज उस का माथा दबाता रहा. थोड़ी देर बाद उस ने पुष्टि करने के लिए मुग्धा को आवाज दी. ‘‘भाभी सो गईं क्या?’’

कोई जवाब नहीं मिला. राज ने उस के चेहरे को हिलाडुला कर भी देख लिया. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह समझ गया कि रास्ता साफ हो चुका है.

राज की कनपटियों में खून तेजी से दौड़ने लगा. वह बत्ती जलती ही छोड़ मुग्धा के ऊपर आ गया. मर्यादा के आवरण प्याज के छिलकों की तरह उतरते चले गए. कमरे में आए भूचाल से मेज पर रखी विनयमुग्धा की तसवीर गिर कर टूट गई.

सबकुछ शांत होने पर राज थक

कर चूरचूर हो कर मुग्धा के बगल में लेट गया.

‘‘बस अब बुखार उतर जाएगा भाभीजी… इतना पसीना जो निकलवा दिया मैं ने आप का,’’ राज बेशर्मी से बड़बड़ाया और मुग्धा की कुछ तसवीरें खींचने के बाद उसे कपड़े पहना दिए.

मुग्धा अब तक धीमेधीमे कराह रही थी. राज पलंग से उतरा और खुद भी कपड़े पहनने लगा. तभी उस की नजर आधी खुली दराज पर गई. भूल से मुग्धा अपनी डायरी उसी में छोड़ी हुई थी. राज ने उसे निकाला और कपड़े पहनतेपहनते उस के पन्ने पलटने लगा.

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में मुग्धा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

राज की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया और जोरजोर से रोने लगा, फिर भाग कर मुग्धा के पैरों को पकड़ कर अपना माथा उस से रगड़ते हुए रोने लगा, ‘‘भाभी, मु?ो माफ कर दो… यह क्या हो गया

मु?ा से.’’

अचानक राज का ध्यान मुग्धा के बिखरे बालों पर गया. उस ने जल्दी से जमीन पर गिरी उस की हेयर क्लिप उठाई और मुग्धा का सिर अपनी गोद

में रख कर बालों को संवारने लगा. वह किसी मशीन की तरह सबकुछ कर

रहा था. हेयर क्लिप अच्छे से उस के बालों में लगा कर राज उठा और घर से निकल गया.

अगली सुबह तकरीबन 8 बजे मुग्धा की आंखें खुलीं. उस का सिर अभी तक भारी था. घर में भीड़ लग चुकी थी.

एक आदमी ने आखिरकार बोल ही दिया, ‘‘देवरभाभी के रिश्ते पर भरोसा करना ही पागलपन है…’’

मुग्धा के सिर में जैसे करंट लगा. वह सवालिया नजरों से उसे देखने लगी. तभी इलाके के पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रवेश किया और बताया, ‘‘आप के देवर राज की लाश पास वाली नदी से मिली है. उस ने रात को खुदकुशी कर ली…’’

मुग्धा का कलेजा मुंह को आने लगा. वह हड़बड़ा कर पलंग से उठी लेकिन लड़खड़ा कर गिर गई.

एक महिला सिपाही ने राज के मोबाइल फोन में कैद मुग्धा की कल रात वाली तसवीरें उसे दिखाईं और कड़क कर पूछा, ‘‘कल रंगरलियां मनातेमनाते ऐसा क्या कह दिया लड़के से तू ने जो उस ने अपनी जान दे दी?’’

तसवीरें देख कर मुग्धा हैरान रह गई. अपनी शारीरिक हालत से उसे ऐसी ही किसी घटना का शक तो हो रहा था लेकिन दिल अब तक मानने को तैयार नहीं था. वह फूटफूट कर रोने लगी.

इंस्पैक्टर ने उस महिला सिपाही को अभी कुछ न पूछने का इशारा किया और बाकी औपचारिकताएं पूरी कर वहां से चला गया. धीरेधीरे औरतों की भीड़ भी छंटती गई.

विनय का फोन आया था कि वह आ रहा?है, घबराए नहीं, लेकिन मुग्धा बस सुनती रही. उस की सूनी आंखों के सामने राज का बचपन चल रहा था. जब वह नईनई इस घर में आई थी.

दोपहर तक विनय लौट आया और भागते हुए मुग्धा के पास कमरे में पहुंचा. वह जड़वत अभी भी पलंग पर बैठी शून्य में ताक रही थी. विनय ने उस के कंधे पर हाथ रखा लेकिन मुग्धा का शरीर एक ओर लुढ़क गया.

‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’ चीखता हुआ विनय उसे ?ाक?ोरे जा रहा था, पर मुग्धा कभी न जागने वाली नींद में सो चुकी थी.

काश, तुम भाभी होती

पुनीत पटना इंजीनियरिंग कालेज में प्रीफाइनल ईयर में पढ़ रहा था. उस का भाई प्रेम इंजीनियरिंग कर 2 साल पहले अमेरिका नौकरी करने गया था. उस के पिता सरकारी नौकरी में थे. वह साइकिल से ही कालेज जाया करता था. एक दिन जाड़े के मौसम में वह कालेज जा रहा था. उस दिन उस का एग्जाम था. अचानक उस की साइकिल की चेन टूट गई. ठंड में इतनी सुबह कोई साइकिल रिपेयर की दुकान भी नहीं खुली थी और न ही कोई अन्य सवारी जल्दी मिलने की उम्मीद थी. उस के पास समय  भी बहुत कम बचा था. कालेज अभी  3 किलोमीटर दूर था. वह परेशान रोड पर खड़ा था. तभी एक लड़की स्कूटी से आई और बोली, ‘‘मे आई हैल्प यू?’’

पुनीत ने अपनी परेशानी का कारण बताया. लड़की स्कूटी पर बैठ गई और पुनीत से बोली ‘‘आप साइकिल पर बैठ जाएं और मेरे कंधे को पकड़ लें. बिना पैडल किए मेरे साथ कुछ दूर चलें. मेरा कालेज आधा किलोमीटर पर है. उस के बाद मैं आप को इंजीनियरिंग कालेज तक छोड़ दूंगी.’’

थोड़ी दूर पर मगध महिला कालेज के गेट पर उस ने दरबान को साइकिल रिपेयर करवाने के लिए बोल कर पुनीत से कहा, ‘‘आप मेरी स्कूटी पर बैठ जाएं, मैं आप को ड्रौप कर देती हूं. कालेज से लौटते वक्त अपनी साइकिल दरबान से ले लेना. हां, उसे रिपेयर के पैसे देना न भूलना.’’

उस लड़की ने पुनीत को कालेज ड्रौप कर दिया. पुनीत ने कहा ‘‘थैंक्स, मिस… क्या नाम…?’’

लड़की बिना कुछ बोले चली गई. कुछ दिनों बाद पुनीत कालेज से लौटते समय सोडा फाउंटेशन रैस्टोरैंट में एक किनारे टेबल पर बैठा था. पुनीत लौन में जिस टेबल पर बैठा था उस पर सिर्फ 2 कुरसियां ही थीं. दूसरी कुरसी खाली थी. बाकी सारी टेबलें भरी थीं.

वह अपना सिर झुकाए कौफी सिप कर रहा था कि एक लड़की की आवाज उस के कानों में पहुंची, ‘‘मे आई सिट हियर?’’ उस ने सिर उठा कर लड़की को देखा तो वह स्कूटी वाली लड़की थी. उस ने कहा, ‘‘श्योर, बैठो… सौरी बैठिए. इट्स माय प्लेजर. उस दिन आप का नाम नहीं पूछ सका था.’’

वह बोली, ‘‘मैं वनिता और फाइनल ईयर एमए में हूं.’’

‘‘और मैं पुनीत, थर्ड ईयर बीटेक में हूं.’’

दोनों में कुछ फौर्मल बातें हुईं. पुनीत बोला, ‘‘मैं रीजेंट में इवनिंग शो देखने जा रहा था. अभी शो शुरू होने में थोड़ा टाइम बाकी था, तो इधर आ गया.’’

वनिता ने अपना बिल पे किया और वह बाय कह कर चली गई. पुनीत ने वनिता का बिल पे करना चाहा था पर उस ने मना कर दिया.

इधर पुनीत के भाई प्रेम की शादी उस के पिता ने एक लड़की से तय कर रखी थी. बस, प्रेम की हां की देरी थी. उन्होंने लड़की की विधवा मां को वचन भी दे रखा था. पर प्रेम अमेरिका में पटना की ही किसी पिछड़ी जाति की लड़की से प्यार कर रहा था बल्कि कुछ दिनों से साथ रह भी रहा था. उस लड़की से अपनी शादी की इच्छा जताते हुए प्रेम ने मातापिता से अनुरोध किया था.

प्रेम के मातापिता दोनों बहुत पुराने विचारों के थे और खासकर पिता बहुत जिद्दी व कड़े स्वभाव के थे. उन्होंने दोनों बेटों को साफसाफ बोल रखा था कि वे बेटों की शादी अपनी मरजी से अच्छी स्वजातीय लड़की से ही करेंगे. उन्होंने प्रेम को भी बता दिया था कि यह रिश्ता मानना ही होगा वरना मातापिता के श्राद्ध के बाद जो करना हो करे.

मातापिता के दबाव में प्रेम ने टालने की नीयत से उन से कहा कि वे पुनीत को लड़की देखने को भेज दें, उसे पसंद आए तो सोच कर बताऊंगा. इधर प्रेम ने पुनीत को सचाई बता दी थी.

पुनीत की मां ने उस से कहा, ‘‘जा बेटे, अपने भैया की दुलहनिया देख कर आओ.’’

पुनीत मातापिता के बताए पते पर होने वाली भाभी को देखने गया. पुनीत ने उसे महल्ले में पहुंचने पर घर की सही लोकेशन पूछने के लिए दिए गए नंबर पर फोन किया. फोन एक लड़की ने उठाया और निर्देश देते हुए कहा, ‘‘मैं बालकनी में खड़ी रहूंगी, आप बाईं तरफ सीधे आगे आएं.’’

वनिता ने उस लड़की से परिचय कराते हुए कहा, यह मेरी सहेली कुमुद…

पुनीत उस पते पर पहुंचा तो बालकनी में वनिता को देख कर चकित हुआ. वनिता ने उसे अंदर आने को कहा. वहां 2 प्रौढ़ महिलाओं के साथ वनिता एक और लड़की के साथ बैठी हुई थी. वनिता ने उस लड़की से परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह मेरी सहेली कुमुद, यह उस की मां और उस किनारे में मेरी मां.’’ दोनों की माताएं उन लोगों को बातें करने के लिए बोल कर चली गईं.

वनिता पुनीत से बोली, ‘‘कुमुद मैट्रिक तक मेरे ही स्कूल में पढ़ी है. मुझ से एक साल सीनियर थी. हमारे पड़ोस में ही रहती थी. इस के पिता अब नहीं रहे. इस की मां कुमुद की शादी को ले कर काफी चिंतित हैं.’’

पुनीत बोला ‘‘क्यों?’’

‘‘कुमुद ही आप के भाई की गर्लफ्रैंड है. कुछ महीनों से अमेरिका में वे साथ ही रह रहे हैं. दोनों में फिजिकल रिलेशनशिप भी चल रहा है. वैसे, आप के मातापिता मुझ से रिश्ता करना चाहते हैं. पर मैं कुमुद की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं करूंगी. कुमुद को मैं अपनी बहन समझती हूं. मैं प्रेम और कुमुद के बीच रोड़ा नहीं बन सकती हूं. आप अपने पेरैंट्स को समझाएं कि अपनी जिद छोड़ दें वरना प्रेम, कुमुद और मेरी तीनों की जिंदगी तबाह हो जाएगी.’’

पुनीत कुछ पल खामोश था. फिर बोला, ‘‘मैं किसी को दुखी नहीं देखना चाहता हूं. घर जा कर बात करता हूं. डोंट वरी. मुझ से जो बन पड़ेगा, अवश्य करूंगा. मैं आप को फोन करूंगा.’’

पुनीत के जाने के बाद कुमुद ने वनिता से कहा, ‘‘तुम्हें अगर प्रेम पसंद है तो तुम्हारे लिए मैं प्रेम से रिलेशन ब्रेक कर सकती हूं.’’

‘‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. मां मेरे लिए जरूरत से ज्यादा चिंतित है. वैसे भी, प्रेम तुम्हारे अलावा किसी और के साथ रिलेशन में होता तो भी मेरे लिए उस से शादी की बात सोचना भी असंभव थी.’’

‘‘मैं एक बात कहूं?’’

‘‘हां, श्योर.’’

‘‘पुनीत बहुत अच्छा लड़का है. अगर तेरा किसी और से चक्कर नहीं चल रहा है तो तू उस से शादी कर ले.’’

‘‘क्या बात करती हो? मैं मास्टर्स कर रही हूं और वह तो अभी बीटैक थर्ड ईयर में है.’’

‘‘पगली, तुम्हें पता नहीं है कि उस का कैंपस सलैक्शन भी हो गया है. और प्रेम बोल रहा था कि पुनीत सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है. कंपीट कर गया तो समझ तेरी लौटरी लग जाएगी, नहीं तो इंजीनियर है ही.’’

‘‘फिर भी, तुम क्या समझती हो मैं जा कर उसे प्रपोज करूं?’’

‘‘नहीं, मैं अभी प्रेम की मां को फोन पर इस प्रपोजल के लिए बोल देती हूं. घर आ कर पुनीत ने मातापिता को विस्तार से समझाया. उस ने कहा, ‘‘भैया चाहते तो अमेरिका में ही कोर्ट मैरिज कर लेते, तो उस स्थिति में आप क्या कर लेते. भैया ने आप का सम्मान करते हुए आप से अनुमति मांगी है. मैं ने उस लड़की को देखा है, कुमुद नाम है उस का. काफी अच्छी लड़की है. वह भी आई हुई है. आजकल वयस्क जोड़ों को जातपांत और धर्म शादी करने से नहीं रोक सकते. आप 3 लोगों की खुशियां क्यों छीनना चाहते हैं?’’

मां ने कहा, ‘‘तुम मुझे कुमुद से मिलवाओ, फिर मैं पापा को समझाने की कोशिश करूंगी.’’

‘‘वह तो कल सुबह मुंबई की फ्लाइट से जा रही है. वहीं से अमेरिका चली जाएगी.’’

फिर पुनीत और मां दोनों जा कर कुमुद से मिले. मांबेटे दोनों ने मिल कर पिताजी को काफी समझाया. तब उन्होंने कहा, ‘‘मुझे समाज में शर्मिंदा होना पड़ेगा. वनिता की बूढ़ी विधवा मां को वचन दे चुका हूं. रिश्तेदारी में भी इस बारे में काफी लोगों को बता चुका हूं.’’

उसी समय अमेरिका से प्रेम ने मां से फोन पर कुछ बात की. मां ने कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे लिए वनिता की मां को बोल रखा था. वनिता में तुम्हें क्या खराबी नजर आती है. वैसे भी कुमुद तो पिछड़ी जाति की है. तेरे पापा को समझाना बहुत मुश्किल है.’’

प्रेम ने कहा, ‘‘आप लोगों ने पहले मुझे वनिता के बारे में कभी नहीं बताया था. वनिता को मैं ने देखा जरूर है पर मेरे मन में उस से शादी की बात कभी नहीं थी. और जहां तक कुमुद की जाति का सवाल है तो आप लोग दकियानूसी विचारों को छोड़ दें. अमेरिका, यूरोप और अन्य उन्नत देशों में आदमी की पहचान उस की योग्यता से है, न कि धर्म या जाति से. यह उन की उन्नति का मुख्य कारण है. और हां, अगर मैं शादी करूंगा तो कुमुद से ही वरना शादी नहीं करूंगा,’’ इतना बोल कर प्रेम ने फोन काट दिया.

उस की मां ने पुनीत से पूछा ‘‘यह वनिता कैसी लड़की है रे?’’

‘‘मां, वह बहुत अच्छी लड़की है. पढ़नेलिखने और देखने में भी. मैं उस से  2 बार पहले भी मिल चुका हूं.’’

फिर उस के मातापिता दोनों ने आपस में कुछ देर अकेले में बात कर पुनीत से कहा, ‘‘अब इस समस्या का हल तुम्हारे हाथ में है.’’

‘‘मैं भला इस में क्या कर सकता हूं?’’

‘‘कुमुद को हम बड़ी बहू स्वीकार कर लेंगे. पर तुम्हें भी हमारी इज्जत रखनी होगी. वनिता तेरी पत्नी बनेगी.’’

‘‘अभी तो मुझे पढ़ना है. वैसे वह एमए फाइनल में है मां. हो सकता है उम्र में मुझ से बड़ी हो.’’

‘‘लव मैरिज में सीनियरजूनियर या उम्र का खयाल तुम लोग आजकल कहां करते हो. और क्या पता कुमुद प्रेम से बड़ी हो? मैं वनिता की मां को फोन करती हूं. अगर थोड़ी बड़ी भी हुई तो क्या बुराई है इस में,’’ इतना बोल कर उस ने वनिता की मां से फोन पर कुछ बात की.

पुनीत गंभीर हो कर कुछ सोचने लगा था. थोड़ी देर बाद मां ने कहा, ‘‘पुनीत, तुम वनिता से बात कर लो. मैं ने उस की मां  को कहा कि कल शाम तुम दोनों रैस्टोरैंट में मिलोगे.’’ पुनीत और वनिता दोनों अगली शाम को उसी रैस्टोरैंट में मिले. पुनीत बोला, ‘‘मां ने अजब उलझन में डाल दिया है. मैं क्या करूं? आप को ठीक लग रहा है?’’

वनिता बोली, ‘‘मुझे तो कुछ बुरा नहीं दिखता इस में? हां, ज्यादा अहमियत आप की पसंद की है. मैं आप की पसंदनापसंद के बारे में नहीं जानती हूं.’’

‘‘आप तो हर तरह से अच्छी हैं, आप को कोई नापसंद कर ही नहीं सकता. फिर भी मुझे कुछ देर सोचने दें.’’

‘‘हां, वैसे दोनों में किसी को जल्दी भी नहीं है. पर मुझे कुमुद की चिंता है. वैसे हम दोनों के परिवार और कुमुद के परिवार सभी की भलाई इसी में है, और हां, मां बोल रही थी कि मैं पढ़ाई में आप से सीनियर हूं.’’

पुनीत चुपचाप सिर झुकाए बैठा था. तो वनिता बोली, ‘‘मैं अगर सीनियर लगती हूं तो इस साल एग्जाम ड्रौप कर दूंगी. मंजूर?’’

पुनीत हंसते हुए बोला, ‘‘नहीं, आप ऐसा कुछ नहीं करें. आप अपना पीजी इसी साल करें.’’

‘‘एक शर्त पर.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘अभी इसी वक्त से हम लोग आप कहना छोड़ कर एकदूसरे को तुम कहेंगे.’’

‘‘आप भी… सौरी तुम भी न…. पर मेरी भी एक शर्त है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘शादी पढ़ाई पूरी होने के बाद ही होगी, भले सगाई अभी हो जाए.’’

‘‘मंजूर है. फोन पर रोज बात करनी होगी और वीकैंड में यहीं मिला करेंगे.’’

‘‘एग्रीड.’’

दोनों एकसाथ हंस पड़े. अगले पल वे वहां से निकल कर एकदूसरे का हाथ पकड़े सड़क पार कर सामने फैले गांधी मैदान में टहलने लगे.

पुनीत बोला, ‘‘पर मुझे एक बात का अफसोस रह गया. मैं तो घाटे में रहा.’’

‘‘कौन सी बात?’’ वनिता ने पूछा.

‘‘अगर भैया की शादी तुम से और मेरी शादी किसी और लड़की से होती तो मैं विनविन सिचुएशन में होता न.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम मेरी भाभी होतीं, तो मेरे दोनों हाथों में लड्डू होते.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पत्नी पर तो हंड्रेड परसैंट हक रहता ही और अगर तुम मेरी भाभी होतीं तो देवर के नाते भाभी से छेड़छाड़ करने और मजाक करने का हक बोनस में बनता ही था.’’

‘यू नौटी बौय,’ बोल कर वनिता उस के कान खींचने लगी.

बिन फेरे हम तेरे: क्यों शादी के बाद भी अकेली रह गई नीतू

कहने और सुनने में कुछ अजीब लगता है, लेकिन यह भी एक सच्चा रिश्ता है, दिल का रिश्ता है. जब दिल से दिल जुड़ जाता है, तो चाहे हम साथसाथ न रहें, लेकिन हमें एकदूसरे की फिक्र होती है, एकदूसरे के प्रति लगाव होता है, इसी को प्यार कहा जाता है.

नीतू और सोहन का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है. उन्होंने शादी नहीं की और न ही साथसाथ रहते हैं, लेकिन एकदूसरे की फिक्र रहती है उन्हें, एकदूसरे का खयाल रखते हैं वे.

नीतू और सोहन को आज 20 साल हो गए हैं इस रिश्ते को निभाते हुए. कभी उन्होंने मर्यादा को नहीं तोड़ा है. दुखसुख में हमेशा एकदूसरे के साथ रहे. आज समाज भी उन को इज्जत की नजर से देखता है, क्योंकि सब जान गए हैं कि इन का रिश्ता तन का नहीं, मन का है. इन का रिश्ता दिखावा नहीं, बल्कि सच्चा है.

नीतू एक साधारण परिवार से थी. वह ज्यादा पढ़ीलिखी भी नहीं थी. बड़ी 2 बहनों की शादी हो गई थी. एक भाई भी था सूरज.

सूरज चाहता था कि पहले नीतू की शादी हो जाए, तब वह करेगा. हालांकि, वह नीतू से बड़ा था. अच्छा घरबार देख कर नीतू की शादी कर दी गई.

सूरज का एक बचपन का दोस्त था सोहन. सूरज के घर अकसर उस का आनाजाना होता था. वह नीतू को पसंद करता था और वह भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी, लेकिन किसी में कहने की हिम्मत नहीं थी, क्योंकि सोहन उन की जाति का नहीं था और वे जानते थे कि उन की शादी नहीं हो सकती है. इस बात को न ही घर वाले और न ही गांव वाले स्वीकार करेंगे.

नीतू की ससुराल वालों का असली चेहरा तब नजर आया, जब वह शादी के बाद पग फेरे के लिए नहीं आ पाई, लेकिन जब वह कुछ दिनों के बाद आई, तो उस के चेहरे पर चोटों के निशान

देख कर उस के परिवार वाले दंग रह गए. नीतू ने बताया कि उन्होंने पैसों की  मांग की है.

इस तरह अकसर 10-15 दिनों के बाद नीतू अपनी ससुराल से मार खा कर आती और पैसे ले जाती.

सोहन का अकसर नीतू के गांव किसी न किसी काम से चक्कर लग जाता था. उसे नीतू की मार और पैसों के बारे में भी सब पता लग गया था.

सोहन ने सूरज से बहुत बार कहा, ‘‘सूरज, नीतू को घर वापस ले आ. वे लोग किसी दिन उसे मार देंगे. ऐसे लालची लोगों से क्या रिश्ता रखना…’’

लेकिन सूरज और उस का परिवार नहीं मानते थे. सूरज कहता, ‘‘गांव वाले क्या कहेंगे कि शादीशुदा लड़की को घर में बैठा लिया. तुम्हें तो पता है कि यहां गांव में ऐसा नहीं होता है.’’

एक दिन सोहन जब नीतू के गांव किसी काम से गया, तो न जाने उस के मन में क्यों बेचैनी हो रही थी. वह नीतू के घर चला गया. पहले भी वह सूरज के साथ कभीकभी चला जाता था उस के घर. जब वह वहां पहुंचा, तो वहां का मंजर देख कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

नीतू के तन के कपडे़ चीथड़े बन चुके थे और चोट लगने की वजह से उस के माथे से खून बह रहा था, लेकिन अभी भी उसे मारा जा रहा था और वह गिड़गिड़ा कर बारबार एक बात कह रही थी, ‘‘मेरा भाई इतने पैसे कहां से लाएगा.’’

‘‘हमें नहीं पता… जहां मरजी से लाओ… हमें तो पैसे चाहिए, वरना अपने घर वापस चली जाओ. हम ने कोई धर्मशाला नहीं खोल रखी है, जो तुम्हें खिलाते रहें…’’ उस की सास चिल्लाई.

सोहन यह मंजर देख कर बौखला गया और नीतू को अपने साथ ले आया. जब नीतू घर पहुंची और सोहन ने सारा किस्सा सूरज को बताया, लेकिन सूरज फिर से वही बात दोहराने लगा, ‘‘हम नीतू को इस घर में नहीं रख सकते. इस की अब शादी हो गई है. इस का जीनामरना अब वहीं पर है. जैसे लाए हो, वैसे ही इसे वापस छोड़ आओ.’’

सोहन नहीं माना और नीतू भी वापस उस नरक में नहीं जाना चाहती थी. सोहन ने नीतू से कहा, ‘‘मेरी अब शादी हो गई है, इसलिए अब हम शादी तो नहीं कर सकते, लेकिन मैं तुम्हें उस नरक में भी वापस नहीं जाने दूंगा.

‘‘शहर में मेरा एक दोस्त है. मैं तुम्हें उस के घर कुछ समय के लिए छोड़ दूंगा और थाने जा कर हम तेरी ससुराल वालों के खिलाफ केस भी करेंगे. तुझे उस से तलाक दिलवा कर तेरी दोबारा शादी करा दूंगा.’’

लेकिन नीतू अब दोबारा शादी नहीं करना चाहती थी. उस का मन तो अभी भी सोहन में बसा हुआ था. वह उसी की यादों के सहारे जिंदगी बिताना चाहती थी.

सोहन नीतू को शहर ले आया और अपने दोस्त के घर ठहरा दिया. उस का दोस्त सबइंस्पैक्टर था. उस के परिवार ने नीतू का बहुत खयाल रखा और उस की हर मुमकिन मदद भी की. नीतू को तलाक दिलवाया और उसे सिलाई का कोर्स भी करवाया.

सोहन ने उसे सिलाई मशीन खरीद कर दे दी, ताकि वह अपना खर्चा खुद उठा सके और किसी पर बोझ न बने. नीतू की खैरियत जानने के लिए वह समयसमय पर शहर आता रहता है. दुखसुख में भी वह हमेशा उस की मदद करता है.

नीतू अपने इस बेनाम रिश्ते से बंधी, बिन फेरों की बिन ब्याही दुलहन की तरह अपनी जिंदगी काट रही है, लेकिन वह खुश है अपने इस रिश्ते से. उन का यह पावन रिश्ता है. कोई कसमें नहीं, कोई वादे नहीं, फिर भी वे एकदूजे के हैं.

निशि डाक: अंधेरी रात में किसने भूपेश को पुकारा

आज खेत से लौटने में रात हो गई थी. भूपेश ने इस बार अपने खेत में गेहूं की फसल बोई थी. आवारा जानवरों से फसल को उजड़ने से बचाना था, सो रातरातभर जाग कर रखवाली करनी पड़ती थी. बाड़ लगाने का भी कोई ज्यादा फायदा नहीं था, क्योंकि आवारा पशु उसे भी काट डालते थे. आज तो खेत में पानी भी लगाना था, सो भूपेश को लौटने में बहुत रात हो गई थी.

अगलबगल के खेतों वाले बाकी साथी भी चले गए थे. भूपेश को रात में अकेले ही लौटना पड़ा. घर पर मां इंतजार कर रही थी. रात सायंसायं कर रही थी. खेतोंखेतों होता हुआ भूपेश चला आ रहा था. पीपल, नीम, आम, बबूल के पेड़ों की छाया ऐसी लग रही थी जैसे प्रेतात्माएं आ कर खड़ी हो गई हों. बीचबीच में किसी पक्षी की आवाज सन्नाटे को चीर जाती थी. ‘ऐसी गहरी काली रात में ही अकेले आदमी को प्रेतात्माएं घेरने की कोशिश करती हैं. वे अकसर खूबसूरत औरत का वेश बना कर आती हैं और बड़ी ही मीठी आवाज में बुलाती हैं…

‘अम्मां कहती हैं कि अंधियारी रात में अगर कोई औरत मीठी आवाज में बुलाए तो पीछे मुड़ कर मत देखो, बस सीधे चलते चले जाओ.  ‘प्रेतात्मा 2 बार ही पुकारती है और अगर मुड़ कर देखो भी तो तीसरी आवाज पर मुड़ो, क्योंकि प्रेतात्मा तो  2 बार ही आवाज दे सकती है…’

अम्मां की इस सीख को याद करता हुआ भूपेश चला जा रहा था. नहर की मेंड़ के किनारे झाड़झंखाड़, मूंज और झरबेरी की झाड़ियां उगी हुई थीं. इन जगहों पर सांपबिच्छू, कीड़ेमकोड़े भी रहते थे.  भूपेश के मोबाइल फोन में टौर्च थी, जिस से वह रास्ता देखता जा रहा था. उस की भी बैटरी डिस्चार्ज हो जाने का खतरा था. अपने डर को काबू में करते हुए वह जल्दीजल्दी कदम बढ़ा रहा था.

‘‘क्या आप राजपुर गांव तक जा रहे हैं?’’ पीछे से एक मधुर आवाज आई. राजपुर भूपेश के गांव का ही नाम था. यह सुन कर उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं और चाल तेज हो गई. भूपेश को लगा कि निशि डाक यानी रात की आत्मा उसे आवाज दे रही है. अगर वह उस के चंगुल में फंस गया, तो निशि डाक उसे बंधक बना लेगी, उस के अंदर घुस जाएगी और फिर वह आत्मा का गुलाम बन जाएगा.

‘‘क्या आप राजपुर गांव तक जा रहे हैं?’’ फिर वही मधुर आवाज आई. ‘2 बार आवाज आ गई है. पीछे मुड़ कर नहीं देखना है…’ दिल की तेज धड़कनों के साथ भूपेश चलता जा  रहा था.  तीसरी बार फिर वही आवाज गूंजी, ‘‘क्या आप राजपुर गांव जा रहे हैं?’’

‘आत्मा तो बस 2 बार आवाज देती है. इस ने तीसरी बार भी आवाज दी है, तो इस का मतलब यह आत्मा नहीं है…’ भूपेश ने सोचा और डरतेडरते सिर घुमाया और टौर्च की रोशनी में देखा कि यह तो उसी के गांव की एक लड़की गौरी है… गांव के पंडितजी की बेटी. शहर जाती है. बीए की पढ़ाई कर रही है.

‘‘गौरी, तुम इतनी रात को कहां से आ रही हो?’’ डरी हुई आवाज में भूपेश ने पूछा. अभी उस का अपने डर और घबराहट पर काबू नहीं हुआ था. ‘‘आज मैं कालेज से देर में छूट पाई थी और फिर बस भी देर से मिली, इसी के चलते देर हो गई,’’ गौरी ने बताया. रास्ता तकरीबन कट ही चुका था.

भूपेश और गौरी हंसतेबतियाते घर आ गए थे. भूपेश और गौरी दोनों तकरीबन हमउम्र थे. बचपन में वे एक ही स्कूल में पढ़े थे. साथ खेले, लड़ेझगड़े थे, उन के बीच प्यार का बीज पिछली रात की आत्मा ने बो दिया था. भूपेश के पिता खेतीकिसानी करने वाले एक मेहनती इनसान थे. सामाजिक रूढि़यों और व्यवस्था के मुताबिक वे निचली जाति के कहे जाते थे. गौरी ब्राह्मण परिवार से थी. उस के पिता पंडित गंगाधर शास्त्री पीढि़यों से चला आ रहा पंडिताई का धंधा करते थे. आसपास के गांवों में भी उन का अच्छाखासा सम्मान था.

ग्रेजुएशन कर रहा भूपेश पढ़ाई के साथसाथ पिता की खेतीबारी में भी अपना पूरा योगदान देता था. वह बहुत मेहनती था. कुछ बन कर मातापिता को सुख देना चाहता था. छोटे भाई और बहन को भी पढ़ने और आगे बढ़ने का मौका मिले, यह उस की दिली तमन्ना थी.

‘‘कुछ पढ़तीलिखती भी हो या बस ऐसे ही मौजमस्ती करने जाती हो कालेज में?’’ एक दिन भूपेश ने गौरी को छेड़ा.  ‘‘अरे, अगर मैं फेल हो गई, तो पिताजी डिगरी भी पूरी नहीं करने देंगे… घर पर बिठा देंगे,’’ गौरी ने कहा, ‘‘और तुम्हारा क्या इरादा है… आगे क्या करोगे?’’ ‘‘ग्रेजुएशन की डिगरी ले कर फिर सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करूंगा. अम्मांबाबूजी को कुछ बन कर दिखाना है. उन्होंने बहुत दुख उठाए हैं मेरे लिए,’’ भूपेश ने कहा.

कुछ समय के बाद भूपेश का रिजल्ट आ गया था. वह फर्स्ट डिवीजन में पास हो गया था और आगे की तैयारी के लिए इलाहाबाद जाने की सोच रहा था.  जब से गौरी को यह बात पता लगी थी, उस की भूखप्यास गायब हो गई थी.  ‘न जाने कब लौटेगा अब वह… तब तक तो पिता और भाई मेरा ब्याह कहीं और करवा देंगे…’ यही सब सोच कर गौरी को घबराहट होती थी.

‘‘तुम इलाहाबाद चले गए, तो पीछे से मेरे घर वाले मेरी शादी करा ही देंगे. वैसे भी मेरे पिता और भाई हमारी शादी को कभी राजी नहीं होंगे,’’ गौरी ने कहा. ‘‘तुम बस अपनी शादी मत होने देना. जब मैं अच्छी नौकरी पा लूंगा, फिर तुम्हारा हाथ मांगूंगा. तब तुम्हारे पिता मना नहीं कर पाएंगे,’’ भूपेश गौरी को दिलासा दे रहा था.

गौरी गांव में ही रह गई और भूपेश इलाहाबाद चला गया. गौरी को आज भी याद थी उस के बचपन की वह घटना, जब गांव के ही रूपेंद्र ठाकुर के परिवार ने अपने ही घर की बेटी को मार कर फांसी पर लटका दिया था, क्योंकि वह गांव के ही एक पासी लड़के से इस कदर दिल लगा बैठी थी कि उस के साथ भाग जाने को भी तैयार हो गई थी.  यह पता चलने पर उस के पिता और भाइयों ने ही उस का गला घोंट कर उसे फंदे से लटका दिया था और पुलिस को घूस दे कर मामला रफादफा करवा  दिया था. वह पासी लड़का और उस का पूरा परिवार ठाकुरों के डर से जान बचा कर गांव छोड़ कर भाग गया था और शहर में मजदूरी करने लगा था.

3 साल बीत गए थे. गौरी ने बीए कर लिया था. उस के लिए वर की तलाश जोरों पर थी. इस बीच भूपेश 1-2 दिन के लिए घर आता और चला जाता. उस ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा रखा था. परिवार वालों पर पैसे का बोझ न पड़े, इसलिए वह शहर में ट्यूशन पढ़ा कर अपने खर्चे पूरे करता था.

‘‘लो पंडितजी, मिठाई खाओ…’’ एक दिन भूपेश के पिता सारे गांव में लड्डू बांट रहे थे. खुशी उन के चेहरे से छलक रही थी.

‘‘क्या खुशखबरी है भूपेश के बापू?’’ पंडित गंगाधर शास्त्री ने हंस  कर पूछा.

‘‘भूपेश को डिगरी कालेज में पढ़ाने की नौकरी मिल गई है. शुरू में ही 60,000 रुपए महीना मिलेंगे. अपने गांव का पहला लड़का है, जो इतनी बड़ी पोस्ट पर पहुंचा है. अखबार में भी खबर छपी है,’’ बेटे की कामयाबी ने पिता की छाती गर्व से चौड़ी कर दी थी.

यह सुन कर पंडित गंगाधर शास्त्री के मन में जलन ने जन्म ले लिया. दिल से आह सी निकली. पर फिर मन ने यह भी माना कि भूपेश है भी मेहनती और लगनशील, इसीलिए इस मुकाम तक पहुंचा है, वरना उन के दोनों बेटों में से तो एक भी इंटर भी सही से पास नहीं कर पाया था. दोनों को मजबूरन अपने पंडिताई के धंधे में ही उतारना पड़ा था. गौरी ने भी यह खबर सुनी, तो उस के दिल में खुशी की एक लहर दौड़ गई. अब इंतजार था कि कब भूपेश घर वापस आएगा.

भविष्य क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, पर उम्मीद की एक लौ तो जली ही थी. आखिर वह दिन आ ही गया. भूपेश घर आया, तो उस के परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. भूपेश अब गौरी के पिता से अपने रिश्ते की बात करने को बेताब था.

‘‘नमस्कार बाबूजी,’’ कहते हुए भूपेश ने पंडित गंगाधर शास्त्री के पैर छुए.

‘‘अरे, आओ भूपेश. बहुत अच्छी नौकरी लग गई है तुम्हारी. सारे गांव का नाम रोशन कर दिया तुम ने तो.’’ ‘‘सब आप के आशीर्वाद का ही फल है बाबूजी,’’ भूपेश ने कहा.

‘‘बहुत बढ़िया. ऐसे ही तरक्की करो जीवन में,’’ इस बार उन का आशीर्वाद दिल से निकला था.

‘‘बाबूजी, एक बात कहनी है आप से,’’ डरतेडरते भूपेश किसी तरह बोल पाया.

‘‘हां, बोलो बेटा… इस में पूछने की क्या बात है,’’ पंडितजी ने कहा.

‘‘अगर आप को मंजूर हो, तो मैं गौरी का हाथ आप से मांगना चाहता हूं. मैं उसे जीवन में कभी कोई दुख नहीं दूंगा,’’ भूपेश किसी तरह बोल पाया. सुनते ही पंडितजी सन्न रह गए. कुछ बोल न फूटे. उन्हें अंदाजा तो था कि गौरी और भूपेश में अच्छी बोलचाल है, पर वे दोनों शादी करना चाहते हैं, उन्होंने इतना नहीं सोचा था. पंडित गंगाधर शास्त्री की चुप्पी को उन की नाराजगी जान कर भूपेश चुपचाप वहां से चला गया. सब कशमकश में थे.

गौरी के दोनों भाई गुस्से से आगबबूला हो रहे थे. ‘‘उस हरामखोर की इतनी हिम्मत… नौकरी लग गई तो अपनी औकात भूल गया… हम से बराबरी करने लगा…’’ बड़ा बेटा कह रहा था.

‘‘आप कहो तो अभी हाथपैर तोड़ कर फेंक आएं…’’ छोटा बेटा हां में हां मिला रहा था. पंडितजी ने उन्हें शांत रहने को कहा. दोनों समझ नहीं पा रहे थे कि पिताजी को क्या हो गया है. एक नीची जाति के लड़के की इतनी हिम्मत कि ब्राह्मणों की बेटी का हाथ मांगे. वे दोनों अपनी बहन को भी कोस रहे थे.

पंडितजी ऊहापोह में थे. ब्राह्मण थे, पर वे एक पढ़ेलिखे और प्रैक्टिकल इनसान भी थे. वे भूपेश की पढ़ाईलिखाई, उस की कामयाबी से खुश थे और उन की बेटी उस के साथ सुखी रहेगी, इस का भी उन्हें यकीन था.  उन की आंखों पर धर्मांधता का परदा नहीं चढ़ा था. उन के दोनों बेटे, जो फुजूल के तेवर दिखा रहे थे, उस का उन्हें एहसास था. उन्होंने भूपेश को अपने पिता के साथ खेतों में मेहनत करते, पीठ पर भारी वजन लादे हुए अनाज ढोते हुए और पढ़ाई करते हुए देखा था.

दिन बीत रहे थे. भूपेश के जाने का दिन आ गया था. जाते समय वह हिम्मत जुटा कर पंडित गंगाधर शास्त्री के पैर छूने गया. ‘‘जा रहा हूं बाबूजी,’’ कह कर वह पंडितजी के पैर छूने के लिए झुका. ‘‘जाओ बेटा, अपना काम मन लगा कर करना. शिक्षा देना एक महान और पवित्र काम है. कभी अपने कर्तव्य से मुंह मत मोड़ना,’’ पंडितजी ने अपना आशीर्वाद दिया और आगे कहा,

‘‘तुम्हारी और गौरी की शादी की बात हम तुम्हारे मातापिता के साथ मिल कर तय कर लेंगे.’’ यह सुन कर भूपेश खुश हो गया था. सब मुरझाए फूल खिल गए थे. खेतों में सरसों फूल रही थी. वसंत आ गया था. निशि डाक यानी रात की आत्मा से शुरू हुई कहानी अपने मुकाम पर पहुंच गई थी.

दिल हथेली पर : अमित कैसे हारा मेनका पर दिल

अमित और मेनका चुपचाप बैठे हुए कुछ सोच रहे थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए.

तभी कालबेल बजी. मेनका ने दरवाजा खोला. सामने नरेन को देख चेहरे पर मुसकराहट लाते हुए वह बोली, ‘‘अरे जीजाजी आप… आइए.’’

‘‘नमस्कार. मैं इधर से जा रहा था तो सोचा कि आज आप लोगों से मिलता चलूं,’’ नरेन ने कमरे में आते हुए कहा.

अमित ने कहा, ‘‘आओ नरेन, कैसे हो? अल्पना कैसी है?’’

नरेन ने उन दोनों के चेहरे पर फैली चिंता की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘हम दोनों तो ठीक हैं, पर मैं देख रहा हूं कि आप किसी उलझन में हैं.’’

‘‘ठीक कहते हो तुम…’’ अमित बोला, ‘‘तुम तो जानते ही हो नरेन कि मेनका मां बनने वाली है. दिल्ली से बहन कुसुम को आना था, पर आज ही उस का फोन आया कि उस को पीलिया हो गया है. वह आ नहीं सकेगी. सोच रहे हैं कि किसी नर्स का इंतजाम कर लें.’’

‘‘नर्स क्यों? हमें भूल गए हो क्या? आप जब कहेंगे अल्पना अपनी दीदी की सेवा में आ जाएगी,’’ नरेन ने कहा.

‘‘यह ठीक रहेगा,’’ मेनका बोली.

अमित को अपनी शादी की एक घटना याद हो आई. 4 साल पहले किसी शादी में एक खूबसूरत लड़की उस से हंसहंस कर बहुत मजाक कर रही थी. वह सभी लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी.

अमित की नजर भी बारबार उस लड़की पर चली जाती थी. पता चला कि वह अल्पना है, मेनका की मौसेरी बहन.

अब अमित ने अल्पना के आने के बारे में सुना तो वह बहुत खुश हुआ.

मेनका को ठीक समय पर बच्चा हुआ. नर्सिंग होम में उस ने एक बेटे को जन्म दिया.

4 दिन बाद मेनका को नर्सिंग होम से छुट्टी मिल गई.

शाम को नरेन घर आया तो परेशान व चिंतित सा था. उसे देखते ही अमित ने पूछा, ‘‘क्या बात है नरेन, कुछ परेशान से लग रहे हो?’’

‘‘हां, मुझे मुंबई जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बौस ने हैड औफिस के कई सारे जरूरी काम बता दिए हैं.’’

‘‘वहां कितने दिन लग जाएंगे?’’

‘‘10 दिन. आज ही सीट रिजर्व करा कर आ रहा हूं. 2 दिन बाद जाना है. अब अल्पना यहीं अपनी दीदी की सेवा में रहेगी,’’ नरेन ने कहा.

मेनका बोल उठी, ‘‘अल्पना मेरी पूरी सेवा कर रही है. यह देखने में जितनी खूबसूरत है, इस के काम तो इस से भी ज्यादा खूबसूरत हैं.’’

‘‘बस दीदी, बस. इतनी तारीफ न करो कि खुशी के मारे मेरे हाथपैर ही फूल जाएं और मैं कुछ भी काम न कर सकूं,’’ कह कर अल्पना हंस दी.

2 दिन बाद नरेन मुंबई चला गया.

अगले दिन शाम को अमित दफ्तर से घर लौटा तो अल्पना सोफे पर बैठी कुछ सोच रही थी. मेनका दूसरे कमरे में थी.

अमित ने पूछा, ‘‘क्या सोच रही हो अल्पना?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ अल्पना ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘नरेन के मुंबई जाने से तुम्हारा मन नहीं लग रहा?है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. वे जिस कंपनी में काम करते हैं, वहां बाहर जाना होता रहता है.’’

‘‘जैसे साली आधी घरवाली होती है वैसे ही जीजा भी आधा घरवाला होता है. मैं हूं न. मुझ से काम नहीं चलेगा क्या?’’ अमित ने अल्पना की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘अगर जीजाओं से काम चल जाता तो सालियां शादी ही क्यों करतीं?’’ कहते हुए अल्पना हंस दी. 5-6 दिन इसी तरह हंसीमजाक में बीत गए.

एक रात अमित बिस्तर पर बैठा हुआ अपने मोबाइल फोन पर टाइमपास कर रहा था. जब आंखें थकने लगीं तो वह बिस्तर पर लेट गया.

तभी अमित ने आंगन में अल्पना को बाथरूम की तरफ जाते देखा. वह मन ही मन बहुत खुश हुआ.

जब अल्पना लौटी तो अमित ने धीरे से पुकारा.

अल्पना ने कमरे में आते ही पूछा, ‘‘अभी तक आप सोए नहीं जीजाजी?’’

‘‘नींद ही नहीं आ रही है. मेनका सो गई है क्या?’’

‘‘और क्या वे भी आप की तरह करवटें बदलेंगी?’’

‘‘मुझे नींद क्यों नहीं आ रही है?’’

‘‘मन में होगा कुछ.’’

‘‘बता दूं मन की बात?’’

‘‘बताओ या रहने दो, पर अभी आप को एक महीना और करवटें बदलनी पड़ेंगी.’’

‘‘बैठो न जरा,’’ कहते हुए अमित ने अल्पना की कलाई पकड़ ली.

‘‘छोडि़ए, दीदी जाग रही हैं.’’

अमित ने घबरा कर एकदम कलाई छोड़ दी.

‘‘डर गए न? डरपोक कहीं के,’’ मुसकराते हुए अल्पना चली गई.

सुबह दफ्तर जाने से पहले अमित मेनका के पास बैठा हुआ कुछ बातें कर रहा था. मुन्ना बराबर में सो रहा था.

तभी अल्पना कमरे में आई और अमित की ओर देखते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप तो बहुत बेशर्म हैं.’’

यह सुनते ही अमित के चेहरे का रंग उड़ गया. दिल की धड़कनें बढ़ गईं. वह दबी आवाज में बोला, ‘‘क्यों?’’

‘‘आप ने अभी तक मुन्ने के आने की खुशी में दावत तो क्या, मुंह भी मीठा नहीं कराया.’’

अमित ने राहत की सांस ली. वह बोला, ‘‘सौरी, आज आप की यह शिकायत भी दूर हो जाएगी.’’

शाम को अमित दफ्तर से लौटा तो उस के हाथ में मिठाई का डब्बा था. वह सीधा रसोई में पहुंचा. अल्पना सब्जी बनाने की तैयारी कर रही थी.

अमित ने डब्बा खोल कर अल्पना के सामने करते हुए कहा, ‘‘लो साली साहिबा, मुंह मीठा करो और अपनी शिकायत दूर करो.’’

मिठाई का एक टुकड़ा उठा कर खाते हुए अल्पना ने कहा, ‘‘मिठाई अच्छी है, लेकिन इस मिठाई से यह न सम?ा लेना कि साली की दावत हो गई है.’’

‘‘नहीं अल्पना, बिलकुल नहीं. दावत चाहे जैसी और कभी भी ले सकती हो. कहो तो आज ही चलें किसी होटल में. एक कमरा भी बुक करा लूंगा. दावत तो सारी रात चलेगी न.’’

‘‘दावत देना चाहते हो या वसूलना चाहते हो?’’ कह कर अल्पना हंस पड़ी.

अमित से कोई जवाब न बन पड़ा. वह चुपचाप देखता रह गया.

एक सुबह अमित देर तक सो रहा था. कमरे में घुसते ही अल्पना ने कहा, ‘‘उठिए साहब, 8 बज गए हैं. आज छुट्टी है क्या?’’

‘‘रात 2 बजे तक तो मुझे नींद ही नहीं आई.’’

‘‘दीदी को याद करते रहे थे क्या?’’

‘‘मेनका को नहीं तुम्हें. अल्पना, रातभर मैं तुम्हारे साथ सपने में पता नहीं कहांकहां घूमता रहा.’’

‘‘उठो… ये बातें फिर कभी कर लेना. फिर कहोगे दफ्तर जाने में देर हो रही है.’’

‘‘अच्छा यह बताओ कि नरेन की वापसी कब तक है?’’

‘‘कह रहे थे कि काम बढ़ गया है. शायद 4-5 दिन और लग जाएं. अभी कुछ पक्का नहीं है. वे कह रहे थे कि हवाईजहाज से दिल्ली तक पहुंच जाऊंगा, उस के बाद ट्रेन से यहां तक आ जाऊंगा.’’

‘‘अल्पना, तुम मुझे बहुत तड़पा रही हो. मेरे गले लग कर किसी रात को यह तड़प दूर कर दो न.’’

‘‘बसबस जीजाजी, रात की बातें रात को कर लेना. अब उठो और दफ्तर जाने की तैयारी करो. मैं नाश्ता तैयार कर रही हूं,’’ अल्पना ने कहा और रसोई की ओर चली गई.

एक शाम दफ्तर से लौटते समय अमित ने नींद की गोलियां खरीद लीं. आज की रात वह किसी बहाने से मेनका को 2 गोलियां खिला देगा. अल्पना को भी पता नहीं चलने देगा. जब मेनका गहरी नींद में सो जाएगी तो वह अल्पना को अपनी बना लेगा.

अमित खुश हो कर घर पहुंचा तो देखा कि अल्पना मेनका के पास बैठी हुई थी.

‘‘अभी नरेन का फोन आया है. वह ट्रेन से आ रहा है. ट्रेन एक घंटे बाद स्टेशन पर पहुंच जाएगी. उस का मोबाइल फोन दिल्ली स्टेशन पर कहीं गिर गया. उस ने किसी और के मोबाइल फोन से यह बताया है. तुम उसे लाने स्टेशन चले जाना. वह मेन गेट के बाहर मिलेगा,’’ मेनका ने कहा.

अमित को जरा भी अच्छा नहीं लगा कि नरेन आ रहा है. आज की रात तो वह अल्पना को अपनी बनाने जा रहा था. उसे लगा कि नरेन नहीं बल्कि उस के रास्ते का पत्थर आ रहा है.

अमित ने अल्पना की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ठीक?है, मैं नरेन को लेने स्टेशन चला जाऊंगा. वैसे, तुम्हारे मन में लड्डू फूट रहे होंगे कि इतने दिनों बाद साजन घर लौट रहे हैं.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ अल्पना बोली.

‘‘पर, नरेन को कल फोन तो करना चाहिए था.’’

‘‘कह रहे थे कि अचानक पहुंच कर सरप्राइज देंगे,’’ अल्पना ने कहा.

अमित उदास मन से स्टेशन पहुंचा. नरेन को देख वह जबरदस्ती मुसकराया और मोटरसाइकिल पर बिठा कर चल दिया.

रास्ते में नरेन मुंबई की बातें बता रहा था, पर अमित केवल ‘हांहूं’ कर रहा था. उस का मूड खराब हो चुका था.

भीड़ भरे बाजार में एक शराबी बीच सड़क पर नाच रहा था. वह अमित की मोटरसाइकिल से टकराताटकराता बचा. अमित ने मोटरसाइकिल रोक दी और शराबी के साथ झगड़ने लगा.

शराबी ने अमित पर हाथ उठाना चाहा तो नरेन ने उसे एक थप्पड़ मार दिया. शराबी ने जेब से चाकू निकाला और नरेन पर वार किया. नरेन बच तो गया, पर चाकू से उस का हाथ थोड़ा जख्मी हो गया.

यह देख कर वह शराबी वहां से भाग निकला.

पास ही के एक नर्सिंग होम से मरहमपट्टी करा कर लौटते हुए अमित ने नरेन से कहा, ‘‘मेरी वजह से तुम्हें यह चोट लग गई है.’’

नरेन बोला, ‘‘कोई बात नहीं भाई साहब. मैं आप को अपना बड़ा भाई मानता हूं. मैं तो उन लोगों में से हूं जो किसी को अपना बना कर जान दे देते हैं. उन की पीठ में छुरा नहीं घोंपते.

‘‘शरीर के घाव तो भर जाते हैं भाई साहब, पर दिल के घाव हमेशा रिसते रहते हैं.’’

नरेन की यह बात सुन कर अमित सन्न रह गया. वह तो हवस की गहरी खाई में गिरने के लिए आंखें मूंदे चला जा रहा था. नरेन का हक छीनने जा रहा था. उस से धोखा करने जा रहा था. उस का मन पछतावे से भर उठा.

दोनों घर पहुंचे तो नरेन के हाथ में पट्टी देख कर मेनका व अल्पना दोनों घबरा गईं. अमित ने पूरी घटना बता दी.

कुछ देर बाद अमित रसोई में चला गया. अल्पना खाना बना रही थी.

नरेन मेनका के पास बैठा बात कर रहा था.

अमित को देखते ही अल्पना ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप तो बातोंबातों में फिसल ही गए. क्या सारे मर्द आप की तरह होते हैं?’’

‘‘क्या मतलब…?’’

‘‘लगता है दिल हथेली पर लिए घूमते हो कि कोई मिले तो उसे दे दिया जाए. आप को तो दफ्तर में कोई भी बेवकूफ बना सकती है. हो सकता है कि कोई बना भी रही हो.

‘‘आप ने तो मेरे हंसीमजाक को कुछ और ही समझ लिया. इस रिश्ते में तो मजाक चलता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि… अब आप यह बताइए कि मैं आप को जीजाजी कहूं या मजनूं?’’

‘‘अल्पना, तुम मेनका से कुछ मत कहना,’’ अमित ने कहा.

‘‘मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी पर आप तो बहुत डरपोक हैं,’’ कह कर अल्पना मुसकरा उठी.

अमित चुपचाप रसोईघर से बाहर निकल गया.

अलविदा काकुल : रिश्ते की तपिश एकदूसरे के लिए प्यार

पेरिस का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा चार्ल्स डि गाल, चारों तरफ चहलपहल, शोरशराबा, विभिन्न परिधानों में सजीसंवरी युवतियां, तरहतरह के इत्रों से महकता वातावरण…

काकुल पेरिस छोड़ कर हमेशाहमेशा के लिए अपने शहर इसलामाबाद वापस जा रही थी. लेकिन अपने वतन, अपने शहर, अपने घर जाने की कोई खुशी उस के चेहरे पर नहीं थी. चुपचाप, गुमसुम, अपने में सिमटी, मेरे किसी सवाल से बचती हुई सी. पर मैं तो कुछ पूछना ही नहीं चाहता था, शायद माहौल ही इस की इजाजत नहीं दे रहा था. हां, काकुल से थोड़ा ऊंचा उठ कर उसे सांत्वना देना चाहता था. शायद उस का अपराधबोध कुछ कम हो. पर मैं ऐसा कर न पाया. बस, ऐसा लगा कि दोनों तरफ भावनाओं का समंदर अपने आरोह पर है. हम दोनों ही कमजोर बांधों से उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे.

तभी काकुल की फ्लाइट की घोषणा हुई. वह डबडबाई आंखों से धीरे से हाथ दबा कर चली गई. काकुल चली गई.

2 वर्षों पहले हुई जानपहचान की ऐसी परिणति दोनों को ही स्वीकार नहीं थी. हंगरी के लेखक अर्नेस्ट हेंमिग्वे ने लिखा है कि ‘कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जैसे बरसात के दिनों में रुके हुए पानी में कागज की नावें तैराना.’ ये नावें तैरती तो हैं, पर बहुत दूर तक और बहुत देर तक नहीं. शायद हमारा रिश्ता ऐसी ही एक किश्ती जैसा था.

टैक्निकल ट्रेनिंग के लिए मैं दिल्ली से फ्रांस आया तो यहीं का हो कर रह गया. दिलोदिमाग में कुछ वक्त यह जद्दोजेहद जरूर रही कि अपनी सरकार ने मुझे उच्चशिक्षा के लिए भेजा था. सो, मेरा फर्ज है कि अपने देश लौटूं और देश को कुछ दूं. लेकिन स्वार्थ का पर्वत ज्यादा बड़ा निकला और देशप्रेम छोटा. लिहाजा, यहीं नौकरी कर ली.

शुरू में बहुत दिक्कतें आईं. अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने वाले फ्रैंच समुदाय में किसी का भी टिकना बहुत कठिन है. बस, एक जिद थी, एक दीवानगी थी कि इसी समुदाय में अपना लोहा मनवाना है. जैसा लोकप्रिय मैं अपनी जनकपुरी में था, वैसा ही कुछ यहां भी होना चाहिए.

पहली बात यह समझ आई कि अंगरेजी से फ्रैंच समुदाय वैसे ही भड़कता है जैसे लाल रंग से सांड़. सो, मैं ने फ्रैंच भाषा पर मेहनत शुरू की. फ्रैंच समुदाय में अपनी भाषा, अपने देश, अपने भोजन व सुंदरता के लिए ऐसी शिद्दत से चाहत है कि आप अंगरेजी में किसी से पता भी पूछेंगे तो जवाब यही मिलेगा, ‘फ्रांस में हो तो फ्रैंच बोलो.’

पेरिस की तेज रफ्तार जिंदगी को किसी लेखक ने केवल 3 शब्दों में कहा है, ‘काम करना, सोना, यात्रा करना.’ यह बात पहले सुनी थी, यकीन यहीं देख कर आया. मैं कुछकुछ इसी जिंदगी के सांचे में ढल रहा था, तभी काकुल मिली.

काकुल से मिलना भी बस ऐसे था जैसे ‘यों ही कोई मिल गया था सरेराह चलतेचलते.’ हुआ ऐसा कि मैं एक रैस्तरां में बैठा कुछ खापी रहा था और धीमे स्वर में गुलाम अली की गजल ‘चुपकेचुपके रातदिन…’ गुनगुना रहा था. कौफी के 3 गिलास खाली हुए और मेरा गुनगुनाना गाने में तबदील हो गया. मेज पर उंगलियां भी तबले की थाप देने लगी थीं. पूरा आलाप ले कर जैसे ही मैं ‘दोपहर… की धूप में…’ तक पहुंचा, अचानक एक लड़की मेरे सामने आ कर झटके से बैठी और पूछा, ‘वू जेत पाकी?’

‘नो, आई एम इंडियन.’

‘आप बहुत अच्छा गाते हैं, पर इस रैस्तरां को अपना बाथरूम तो मत समझिए’.

‘ओह, माफ कीजिएगा,’ मैं बुरी तरह झेंप गया.

काकुल से दोस्ती हो गई, रोज  मिलनेजुलने का सिलसिला शुरू हुआ. वह इसलामाबाद, पाकिस्तान से थी. पिताजी का अपना व्यापार था. जब उन्होंने काकुल की अम्मी को तलाक दिया तो वह नाराज हो कर पेरिस में अपनी आंटी के पास आ गई और तब से यहीं थी. वह एक होटल में रिसैप्शनिस्ट का काम देखती थी.

ज्यादातर सप्ताहांत, मैं काकुल के साथ ही बिताने लगा. वह बहुत से सवाल पूछती, जैसे ‘आप जिंदगी के बारे में क्या सोचते हैं?’

‘हम बचपन में सांपसीढ़ी खेल खेलते थे, मेरे खयाल से जिंदगी भी बिलकुल वैसी है…कहां सीढ़ी है और कहां सांप, यही इस जीवन का रहस्य है और यही रोमांच है,’ मैं ने अपना फलसफा बताया.

‘आप के इस खेल में मैं क्या हूं, सांप या सीढ़ी?’ बड़ी सादगी से काकुल ने पूछा.

‘मैं ने कहा न, यही तो रहस्य है.’

मैं ने लोगों को व्यायाम सिखाना शुरू किया. मेरा काम चल निकला. मुझे यश मिलना शुरू हुआ. मैं ज्यादा व्यस्त होता गया. काकुल से मिलना बस सप्ताहांत पर ही हो पाता था.

कम मिलने की वजह से हम आपस में ज्यादा नजदीक हुए. एक इतवार को स्टीमर पर सैर करते हुए काकुल ने कहा, ‘मैं आप को आई एल कहा करूं?’

‘भई, यह ‘आई एल’ क्या बला है?’ मैं ने अचकचा कर पूछा.

‘आई एल, यानी इमरती लाल, इमरती हमें बहुत पसंद है. बस यों जानिए, हमारी जान है, और आप भी…’ सांझ के आकाश की सारी लालिमा काकुल के कपोलों में समा गई थी.

‘एक बात पूछूं, क्या पापामम्मी को काकुल मंजूर होगी?’ उस ने पूछा.

मैं ने पहली बार गौर किया कि मेरे पापामम्मी को अंकल, आंटी कहना वह कभी का छोड़ चुकी है. मुझे भी नाम से बुलाए उसे शायद अरसा हो गया था.

‘काकुल, अगर बेटे को मंजूर, तो मम्मीपापा को भी मंजूर,’ मैं ने जवाब दिया.

काकुल ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और अपनी आंखें बंद कर लीं. शायद बंद आंखों से वह एक सजीसंवरी दुलहन और उस का दूल्हा देख रही थी. इस से पहले उस ने कभी मुझ से शादी की इच्छा जाहिर नहीं की थी. बस, ऐसा लगा, जैसे काकुल दबेपांव चुपके से बिना दरवाजा खटखटाए मेरे घर में दाखिल हो गई हो.

मैं ज्यादा व्यस्त होता गया, सुबह नौकरी और शाम को एक ट्रेनिंग क्लास. पर दिन में काकुल से फोन पर बात जरूर होती. अब मैं आने वाले दिनों के बारे में ज्यादा गंभीरता से सोचता कि इस रिश्ते के बारे में मेरे पापामम्मी और उस के पापा, कैसी प्रतिक्रया जाहिर करेंगे. हम एकदूसरे से निभा तो पाएंगे? कहीं यह प्रयोग असफल तो नहीं होगा? ऐसे ढेर सारे सवाल मुझे घेरे रहते.

एक दिन काकुल ने फोन कर के बताया कि उस के अब्बा के दोस्त का बेटा जावेद, कुछ दिनों के लिए पेरिस आया हुआ है. हम कुछ दिनों के लिए आपस में मिल नहीं पाएंगे. इस का उसे बहुत रंज रहेगा, ऐसा उस ने कहा.

धीरेधीरे काकुल ने फोन करना कम कर दिया. कभी मैं फोन करता तो काकुल से बात कम होती, वह जावेदपुराण ज्यादा बांच रही होती. जैसे, जावेद बहुत रईस है, कई देशों में उस का कारोबार फैला हुआ है. अगर जावेद को बैंक से पैसे निकालने हों तो उसे बैंक जाने की कोई जरूरत नहीं. मैनेजर उसे पैसे देने आता है. उस की सैक्रेटरी बहुत खूबसूरत है. उस का इसलामाबाद में खूब रसूख है. वह कई सियासी पार्टियों को चंदा देता है. जावेद का जिस से भी निकाह होगा, उस का समय ही अच्छा होगा.

मुझे बहुत हैरानी हुई काकुल को जावेद के रंग में रंगी देख कर. मैं ने फोन करना बंद कर दिया.

जैसे बर्फ का टुकड़ा धीरेधीरे पिघल कर पानी में तबदील हो जाता है, उसी तरह मेरा और काकुल का रिश्ता भी धीरेधीरे अपनी गरमी खो चुका था. रिश्ते की तपिश एकदूसरे के लिए प्यार, एक घर बसाने का सपना, एकदूसरे को खूब सारी खुशियां देने का अरमान, सब खत्म हो चुका था.

इस अग्निकुंड में अंतिम आहुति तब पड़ी जब काकुल ने फोन पर बताया कि उस के अब्बा उस का और जावेद का निकाह करना चाहते हैं. मैं ने मुबारकबाद दी और रिसीवर रख दिया.

कई महीने गुजर गए. शुरूशुरू में काकुल की बहुत याद आती थी, फिर धीरेधीरे उस के बिना रहने की आदत पड़ गई. एक दिन वह अचानक मेरे अपार्टमैंट में आई. गुमसुम, उदास, कहीं दूर कुछ तलाशती सी आंखें, उलझे हुए बाल, पीली होती हुई रंगत…मैं उसे कहीं और देखता तो शायद पहचान न पाता. उसे बैठाया, फ्रिज से एक कोल्ड ड्रिंक निकाल कर, फिर जावेद और उस के बारे में पूछा.

‘जावेद एक धोखेबाज इंसान था, वह दिवालिया था और उस ने आस्ट्रेलिया में निकाह भी कर रखा था. समय रहते अब्बा को पता चल गया और मैं इस जिल्लत से बच गई,’ काकुल ने जवाब दिया.

‘ओह,’ मैं ने धीमे से सहानुभूतिवश गरदन हिलाई. चंद क्षणों के बाद सहज भाव से पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘मैं आज शाम की फ्लाइट से वापस इसलामाबाद जा रही हूं. मुझे विदा करने एअरपोर्ट पर आप आ पाएंगे तो बहुत अच्छा लगेगा.’

‘मैं जरूर आऊंगा.’

शायद वह चाहती थी कि मैं उसे रोक लूं. मेरे दिल के किसी कोने में कहीं वह अब भी मौजूद थी. मैं ने खुद अपनेआप को टटोला, अपनेआप से पूछा तो जवाब पाया कि हम 2 नदी के किनारों की तरह हैं, जिन पर कोई पुल नहीं है. अब कुछ ऐसा बाकी नहीं है जिसे जिंदा रखने की कोशिश की जाए.

अलविदा…काकुल…अलविदा…

गैस की कालाबाजारी: प्यार की अनोखी जोड़ी

उत्तराखंड के काफी खूबरसूरत लैंसडाउन इलाके में बहुत से सैलानी आते हैं. वहां का मौसम है ही इतना खुशनुमा कि शहरी लोगों को अपनी तरफ खींच ही लेता है. इसी के चलते वहां बहुत से छोटेबड़े होटल, ढाबे और रैस्टोरैंट बन गए हैं. अब तो रिजौर्ट भी खूब दिखने लगे हैं.

इसी लैंसडाउन इलाके में बनी एक गैस एजेंसी से जुड़े दर्जनों गांवों में लोग आज भी वहां गैस की गाड़ी का इंतजार कर रहे थे. वजह, काफी समय से चैलूसैंण गांव के अलावा पाली, शीला, सुराड़ी, धुरा, सिलोगी, बाघों, अमलेशा और रिंगालपानी जैसे बहुत से गांवों में घरेलू गैस नहीं पहुंच पा रही थी.

‘‘अरे, यहां जमा हो कर क्या होगा. गैस एजेंसी का मालिक कालाबाजारी का शातिर खिलाड़ी है. वह घरेलू गैस को तिकड़मबाजी से होटल, ढाबे और रैस्टोरैंट वालों को बेच देता है और भारी मुनाफा कमाता है,’’ सिलोगी गांव के पान सिंह ने कहा.

‘‘केंद्र की मोदी सरकार कितना भी दावा कर ले कि ‘न खाएंगे और न खाने देंगे’, पर कालाबाजारी हद पर है और नेताओं की नाक के नीचे सब गोरखधंधा हो रहा है,’’ सुराड़ी के नरेंद्र सिंह ने कहा और गुस्से में सड़क पर ही थूक दिया.

पाली गांव के दर्शन कुमार ने दबी जबान में कहा, ‘‘शहर में पैट्रोमैक्स (छोटे गैस सिलैंडर) में गैस रिफिल का धंधा भी जोरों पर चल रहा है. शहर में गैस की सप्लाई सामान्य हो या फिर कितनी भी किल्लत चल रही हो, लेकिन पैट्रोमैक्स में आसानी से गैस मिल जाती है.

‘‘इन पैट्रोमैक्सों में 100 रुपए किलो गैस बेची जाती है. साफ है कि 450 रुपए का गैस सिलैंडर रिफिल कर के 1,600 रुपए में बिक रहा है. आखिर इन को कहां से सिलैंडर मिल रहे हैं?’’

धुरा गांव के संदीप सिंह ने नया ही बम फोड़ा, ‘‘हरिद्वार की खबर नहीं सुनी क्या तुम लोगों ने… वहां तो उज्ज्वला योजना में ही फर्जीवाड़ा सामने आया है. लोग फर्जी दस्तावेज लगा कर मुफ्त कनैक्शन और सब्सिडी पा रहे हैं. इन में ऐसे लोग

भी शामिल हैं, जिन के पास अपनी कार है. खुद को गरीब दिखा कर हम जैसों के पेट पर लात मारते हैं.’’

‘‘हां, मैं ने भी यह खबर पढ़ी थी. हरिद्वार जिले में डेढ़ लाख ऐसे कनैक्शनों की जांच हो रही है. पुष्पक गैस एजेंसी के मैनेजर राकेश सिंह के मुताबिक, कई उपभोक्ताओं की मौत हो चुकी है, फिर भी कनैक्शन से सप्लाई और सब्सिडी जारी हो

रही है,’’ चैलूसैंण गांव के हिम्मत सिंह ने बताया.

‘‘सरकार धार्मिक जगहों को तो संवार रही है, सड़कें और सुरंगें बनाने के दावे कर रही है, पर पहाड़ की गरीब जनता की सुध नहीं ले रही है. हमारे गांव के गांव खाली हो रहे हैं, पर सरकार चाहती है कि रिजौर्ट में अमीर लोग खूब आते रहें.

‘‘अरे, जब उन की सेवा करने के लिए पहाड़ी लोग ही नहीं बचेंगे, तो वे क्या खाक हमारी वादियों का मजा ले पाएंगे. एक मैगी बनाने वाले को भी सस्ता सिलैंडर चाहिए, लेकिन इस कालाबाजारी ने सब बेड़ा गर्क कर के रख दिया है,’’ पास खड़े मैगी बनाने वाले पवन राजपूत ने अपना दर्द बयां किया.

इन सब लोगों में 23 साल का प्रेम रावत भी शामिल था, जो अमलेशा गांव में रहता था. यह गांव पौड़ीगढ़वाल जिले के जयहरीखाल ब्लौक और लैंसडाउन तहसील में था, जो अमकटाला ग्राम पंचायत के तहत आता था. इस गांव का भौगोलिक क्षेत्रफल 114.41 हैक्टेयर था.

ऐसा बताया जाता है कि अमलेशा गांव की कुल आबादी 151 थी, जिस में 44 परिवार शामिल थे. प्रेम रावत का परिवार भी उन में से एक था. घर कच्चा था और रोजगार की कमी. खेती से मुश्किल से गुजारा होता था और बीए करने के बावजूद प्रेम रावत को उत्तराखंड में ही कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिल पा रही थी. वह अपने दोस्तों की तरह दिल्ली के होटलों में बरतन घिस कर अपनी जिंदगी को नरक नहीं बनाना चाहता था.

प्रेम रावत भी घरेलू गैस सिलैंडर पाने की आस में गैस एजेंसी आया था, पर नतीजा वही ढाक के तीन पात. प्रदेश में ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ शुरू होने के बाद घरघर गैस सिलैंडर तो पहुंच गए हैं, लेकिन पर्वतीय इलाकों में अब भी सिलैंडर रिफिल कराने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था या कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. ऊपर से कालाबाजारी कोढ़ पर खाज साबित हो रही थी.

प्रेम रावत को आज भी खाली हाथ लौटना पड़ रहा था. उसे अपनी मां कटोरी देवी की याद आ गई, जिस की धुएं की वजह से फेफड़े और आंखें कमजोर हो गई थीं. पिता श्याम सिंह रावत की आमदनी से किसी तरह घर का खर्च चलता था. कमाई के आधे से ज्यादा रुपए लकड़ीचूल्हा में खर्च हो जाते थे.

प्रेम अभी गांव की बस का इंतजार कर ही रहा था कि उसे अपने ही गांव की ज्योति नयाल आती दिखी. वह 22 साल की जवान लड़की थी. दुबलीपतली, पर बहुत गोरी और खूबसूरत. प्रेम उस के रूप का दीवाना था.

ज्योति अपने पिता के साथ खेतीबारी में हाथ बंटाती थी और उस ने अपने घर में एक बड़े कमरे में मशरूम की खेती भी कर रखी थी. उस के उगाए मशरूम लोकल होटल में सप्लाई होते थे.

प्रेम और ज्योति बस का इंतजार करने लगे. आज प्रेम सोच रहा था कि वह ज्योति से अपने दिल की बात कह देगा, पर उसे शक था कि क्या ज्योति एक बेरोजगार के प्यार को अपना लेगी?

‘‘बड़े दिनों में नजर आई. कहां रहती हो आजकल? कोई खैरखबर नहीं,’’ प्रेम ने पूछा.

ज्योति ने एक नजर उसे देखा और बोली, ‘‘सारी खैरखबर मैं ही लूं? तुम भी तो फोन कर सकते थे. अभी मैं मशरूम सप्लाई कर के आ रही हूं.

‘‘लैंसडाउन में आज भी गैस कंपनी के आगे लोगों की भीड़ जमा थी. गांव वालों को घरेलू गैस चूल्हे की सप्लाई नहीं हो रही है. बड़ी दिक्कत होने लगी है. तुम तो जानते ही हो कि जंगल से जलावन लकड़ी लाने में औरतों को कितना खतरा रहता है,’’ ज्योति ने कहा.

‘‘पिछले साल के दिसंबर महीने की ही तो खबर है, जब लैंसडाउन वन प्रभाग के दुगड्डा रेंज के तहत टाटरी गांव में भालू के हमले से एक औरत गंभीर रूप से घायल हो गई थी.

‘‘खबर में बताया गया था कि टाटरी गांव की कुसुम देवी जंगल में चारा लेने गई थी कि तभी भालू ने उस पर हमला बोल दिया. वह तो भला हो कि कुसुम देवी ने दरांती से भालू पर जोरदार हमला किया और अपनी जान बचा ली, वरना कुछ भी हो सकता था,’’ प्रेम ने ज्योति के डर को खबर का जामा पहना दिया.

ज्योति का मूड खराब हो गया. बस भी तो नहीं आ रही थी. इतने में उन्हीं के गांव का राम सिंह वहां आ गया, जो एक होटल में कुक था. वह गढ़वाली खाना बनाने में माहिर था.

राम सिंह को देख प्रेम ने कहा, ‘‘इन लोगों के चलते घरेलू गैस की कालाबाजारी होती है. हमारे हिस्से के सिलैंडर ये लोग हड़प लेते हैं.’’

यह सुन कर राम सिंह चिढ़ गया और प्रेम का गरीबान पकड़ लिया और डपट कर बोला, ‘‘इतना ही दर्द हो रहा है तो गैस एजेंसी फूंक दो न. वे लोग ही कालाबाजारी करते हैं. अगर किसी को घरबैठे सिलैंडर मिल जाए, तो कोई पागल ही होगा जो मना करेगा.’’

ज्योति ने चिल्लाते हुए कहा, ‘‘छोड़ इसे. नौकरी के नशे में इतने भी मत उड़ो कि आसापास का कुछ भी न दिखे. अपनी ताकत खाना बनाने के लिए बचा कर रखो. घर पर भी रसोई बनानी होगी.’’

राम सिंह ने प्रेम को तो छोड़ दिया, पर ज्योति को घूरते हुए बोला, ‘‘सब सम?ाता हूं कि तुम दोनों में क्या खिचड़ी पक रही है. पूरे पहाड़ पर गूंज रही तेरी और प्रेम की लवस्टोरी.’’

‘‘तो तेरे पेट में क्यों दर्द हो रहा है? लगता है, आज होटल में देशी दारू नहीं मिली, जो मरोड़ उठ रही है,’’ ज्योति ने खरीखरी सुना दी.

राम सिंह गुस्से में पैर पटकता हुआ चला गया. प्रेम को अंदाजा नहीं था कि राम सिंह इस तरह की बात बोल देगा. वह डर गया. उसे लगा कि ज्योति को बुरा लगा होगा. वह चुप ही रहा.

इतने में बस आ गई. ज्योति बोली, ‘‘चलना है कि नहीं या यहीं बुत बने खड़े रहोगे?’’

प्रेम बस में चढ़ गया. ज्यादा भीड़ नहीं थी. उन्हें सीट मिल गई. दोपहर के 3 बजे थे. वे शाम तक घर पहुंच जाते. ड्राइवर ने गढ़वाली गाना ‘मेरी प्यारी सुशीला’ बजा रखा था.

सीट पर बैठते ही ज्योति ने प्रेम के कंधे पर सिर टिका दिया और अपनी आंखें बंद कर लीं. प्रेम की बांछें खिल गईं. उस ने ज्योति का हाथ पकड़ लिया. ज्योति आंखें बंद किए ही मुसकरा दी. इस के बाद पता ही नहीं चला कि कब उन का गांव आ गया.

ज्योति से विदा ले कर प्रेम अपने घर पहुंचा. मां रसोई में दालभात पका रही थीं. वहां नया भरा गैस चूल्हा देख कर प्रेम हैरत में पड़ गया.

‘‘यह नया चूल्हा कौन लाया?’’ प्रेम ने अपनी मां से पूछा.

‘‘तेरे पिताजी. बस, दलाल को 300 रुपए ऊपर से दिए. बोले कि कब तक लकड़ी के धुएं में अपनी आंखें फोड़ती रहेगी.

‘‘बेटा, अब जल्दी से कोई नौकरी देख कर ब्याह कर ले और मेरे लिए कमेरी बहू ले आ. अब मैं थक चुकी हूं अकेले काम करतेकरते,’’ इतना कह कर मां चूल्हे में फूंकनी से आंच तेज करने लगीं.

प्रेम छत पर चला गया. उसे ज्योति की याद आ गई. उस ने मन ही मन राम सिंह का शुक्रिया अदा किया, जिस ने आज ऐसा सच बोला, जो घरेलू गैस की कालाबाजारी से ज्यादा बड़ा था, पर उतना घिनौना नहीं. इस सच ने तो ज्योति और प्रेम को और नजदीक ला दिया था.

छत से तारों को देखता हुआ प्रेम नई जिंदगी के सपनों में खो गया. पड़ोस के घर पर रेडियो में वही गढ़वाली गाना ‘मेरी प्यारी सुशीला’ बज रहा था.

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