कम्मो डार्लिंग – भाग 1 : इच्छाओं के भंवरजाल में कमली

‘‘नीतेश…’’ जानीपहचानी आवाज सुन कर नीतेश के कदम जहां के तहां रुक गए. उस ने पीछे घूम कर देखा, तो हैरत से उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

‘‘क्या हुआ नीतेश? मुझे यहां देख कर हैरानी हो रही है? अच्छा, यह बताओ कि तुम मुंबई कब आए?’’ उस ने नीतेश से एकसाथ कई सवाल किए, लेकिन नीतेश ने उस के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप आगे बढ़ गया. वह भी उस के साथसाथ आगे बढ़ गई.

कुछ दूर नीतेश के साथ चलते हुए उस ने झिझकते हुए कहा, ‘‘नीतेश, मैं काफी अरसे से दिल पर भारी बोझ ले कर जी रही हूं. कई बार सोचा भी कि तुम से मिलूं और मन की बात कह कर दिल का बोझ हलका कर लूं, मगर… ‘‘आज हम मिल ही गए हैं, तो क्यों न तुम से दिल की बात कह कर मन हलका कर लूं.’’

‘‘नीतेश, मैं पास ही में रहती हूं. तुम्हें कोई एतराज न हो, तो हम वहां थोड़ी देर बैठ कर बात कर लें?’’ नीतेश के पैर वहीं ठिठक गए. उस ने ध्यान से उस के चेहरे को देखा. उस के चेहरे पर गुजारिश के भाव थे, जो नीतेश की चुप्पी को देख कर निराशा में बदल रहे थे.

‘‘नीतेश, अगर तुम्हारी इच्छा नहीं है, तो रहने दो,’’ उस ने मायूस होते हुए कहा. नीतेश ने उस के मन के दर्द को महसूस करते हुए धीरे से कहा, ‘‘कहां है तुम्हारा घर?’’

‘‘उधर, उस चाल में,’’ उस ने सामने की तरफ इशारा कर के कहा. ‘‘लेकिन मैं ज्यादा देर तक तुम्हारे साथ रुक नहीं पाऊंगा. जो कहना हो जल्दी कह देना.’’

उस ने ‘हां’ में गरदन हिला दी. ‘‘ठीक है, चलो,’’ कह कर नीतेश उस के साथ चल दिया.

नीतेश का साथ पा कर उस को जो खुशी हो रही थी, उसे कोई भी महसूस कर सकता था. खुशी से उस के चेहरे की लाली ऐसे चमकने लगी, मानो सालों से बंजर पड़ी जमीन पर अचानक हरीभरी फसल लहलहाने लगी हो. उस के रूखे और उदास चेहरे पर एकदम ताजगी आ गई. थोड़ी दूर चलने के बाद वह चाल में बने छोटे से घर के सामने आ कर रुकी और दरवाजे पर लटके ताले को खोल कर नीतेश को अंदर ले गई.

‘‘नीतेश, तुम यहां बैठो, मैं अभी आई,’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चली गई. जमीन पर बिछे बिस्तर पर बैठा नीतेश उस छोटे से कमरे की एकएक चीज को ध्यान से देखने लगा. तभी उस की नजर सामने मेज पर रखे एक फोटो फ्रेम पर जा कर अटक गई, जिस में नीतेश के साथ उस का फोटो जड़ा हुआ था. वह फोटो उस ने अपनी शादी के एक महीने बाद कसबे की नुमाइश में खिंचवाया था, अपनी मां के कहने पर.

मां ने तब उस से कहा था, ‘बेटा, तेरी नईनई शादी हुई है, जा, कमली को नुमाइश घुमा ला. और हां, नुमाइश में कमली के साथ एक फोटो जरूर खिंचवा लेना. पुराना फोटो देख कर गुजरे समय की यादें ताजा हो जाती हैं.’ मां की बात याद आते ही नीतेश का मन भर आया. एक तो पिता की अचानक मौत का दुख, दूसरे नौकरी के लिए उस का गाजियाबाद चले जाना, मां को अंदर ही अंदर दीमक की तरह चाटने लगा था. नतीजतन, वे धीरेधीरे बिस्तर पर आ गईं.

नीतेश ने कई बार मां को अपने साथ शहर ले जा कर किसी अच्छे डाक्टर से उन का इलाज करवाने को भी कहा, लेकिन वे गांव से हिलने के लिए भी राजी नहीं हुईं. वह तो शुक्र हो उस के पड़ोस में रहने वाली कमली का, जो मां की तीमारदारी कर दिया करती थी. कमली कोई खास पढ़ीलिखी नहीं थी. गांव के ही स्कूल से उस ने 6 जमात पढ़ाई की थी, पर थी बहुत समझदार. शायद इसीलिए वह उस की मां के मन को भा गई और उन्होंने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया था, यह बात मां ने नीतेश को तब बताई थी, जब वह एक दिन उन से मिलने गांव आया था.

घर का चिराग: भाग 1- क्या बेटे और बेटी का फर्क समझ पाई नीता

केशव बाबू सठिया गए हैं. क्या सचमुच…वे तो अभी पचास के भी नहीं हुए, फिर भी उन की बीवी ऐसा क्यों कहती है कि वे सठिया गए हैं. उन्होंने तो ऐसा कोई कार्य नहीं किया. बस, बीवी की बात का हलका सा विरोध किया था. सच तो यह है कि वे जीवनभर अपनी पत्नी का विरोध नहीं कर पाए. उस के खिलाफ कभी कुछ कह नहीं पाए और बीवी अपनी मनमानी करती रही. दरअसल, उन की बीवी नीता उन पत्नियों में से थी जो धार्मिक होती हैं. रातदिन पूजापाठ में व्यस्त रहती हैं, पति को सबकुछ मानती हैं, परंतु पति का कहना कभी नहीं मानतीं. ऐसी पत्नियां मनमाने ढंग से अपने पतियों से हर काम करवा लेती हैं.

केशव बाबू उन व्यक्तियों में से थे जो हर बात को सरल और सहज तरीके से लेते हैं. किसी बात का पुरजोर तरीके से विरोध नहीं कर पाते. कई बार वे दूसरों के जोर देने पर गलत बात को भी सही मान लेते हैं. वे बावजह और बेवजह दोनों परिस्थितियों में झगड़ों से बचते रहते हैं. उन की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर नीता हमेशा उन के ऊपर हावी रहती है. आज भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं हुई थी. बेटे विप्लव की पढ़ाई और भविष्य को ले कर पतिपत्नी के बीच चर्चा हो रही थी. उन का बेटा एमसीए कर के घर में बैठा हुआ था. 3 साल हो गए थे. अभी तक उस का कहीं प्लेसमैंट नहीं हुआ था. दरअसल, केशव बाबू उस के एमसीए करने के पक्ष में नहीं थे. वह पढ़ाई में बहुत साधारण था. बीसीए के लिए भी कई लाख रुपए दे कर मैनेजमैंट कोटे से उस का ऐडमिशन करवाया था. इस के पक्ष में भी वे नहीं थे क्योंकि वे जानते थे कि बीसीए करने के बाद भी वह अच्छी पोजीशन नहीं ला पाएगा. इस स्थिति में उस का कैंपस सेलैक्शन असंभव था और हुआ भी यही, बीसीए में उस के बहुत कम मार्क्स आए थे. फिर भी जिद कर के उस ने एमसीए में ऐडमिशन ले लिया था. इस पूरे मामले में मांबेटे एकसाथ थे और केशव बाबू अकेले.

केशव बाबू ने केवल इतना कहा था, ‘‘इतनी कम मैरिट में किसी अच्छी कंपनी में तुम्हारे लिए नौकरी मिलना असंभव है. क्यों न तुम कंपीटिशन की तैयारी करो और छोटीमोटी नौकरी कर लो.’’इसी बात पर नीता भड़क गई थी. तीखे स्वर में बोली थी, ‘‘आप तो सठिया गए हैं. कैसी बेतुकी बात कर रहे हैं. एमसीए करने के बाद बेटा क्या छोटीमोटी सरकारी नौकरी करेगा? आप की अभी 10 साल की नौकरी बाकी है. बेटा कोई बूढ़ा नहीं हुआ जा रहा है और न हम भूखों मर रहे हैं. न हो तो बेटे को कोई और कोर्स करवा देते हैं. ज्यादा डिगरियां होंगी तो नौकरी मिलने में आसानी होगी.’’

केशव बाबू ने एक लाचार नजर नीता पर डाली और फिर बेटे की तरफ देखा. वह एक कोने में चुपचाप खड़ा इस तरह उन दोनों की बातें सुन रहा था, जैसे उस से संबंधित कोई बात नहीं हो रही थी. परंतु जब उन्होंने ध्यान से देखा तो बेटे के चेहरे पर एक कुटिल मुसकान विराजमान थी, जैसे कह रहा था, ‘आप लोग मेरे लिए लड़ते रहिए. पैसा बरबाद करते रहिए, परंतु करूंगा मैं वही जो मेरा मन करेगा.’ केशव बाबू को अपने बेटे की इस कुटिलता पर बड़ा गुस्सा आया. परंतु वे अच्छी तरह जानते थे कि उन के गुस्से की आग पर नीता के तर्कहीन पानी के छींटे पड़ते ही वे बर्फ की तरह ठंडे पड़ जाएंगे. तब उन्हें प्यार की गरमी देने वाला कोई नहीं होगा. वे रातभर इस तरह करवटें बदलते रहेंगे जैसे किसी ने उन के बिस्तर पर तपती रेत के साथसाथ कांटे भी बिछा दिए हों.हारे हुए जुआरी की तरह अंतिम चाल चलते हुए केशव बाबू ने कहा, ‘‘नौकरी बुद्धि से मिलती है, बहुत सी डिगरियों से नहीं और उस के लिए एक ही डिगरी काफी होती है. सोच लो, हमारी एक बेटी भी है. वह इस से ज्यादा बुद्धिमान और पढ़ने में तेज है. अपने जीवन की सारी कमाई बुढ़ापे तक इस की पढ़ाई पर खर्च करते रहेंगे, तो बेटी के लिए क्या बचेगा? उस की शादी के लिए भी बचत करनी है.’’

केशव बाबू की इतनी सरल और सत्य बात भी नीता को नागवार गुजरी और वह फिर से भड़क उठी, ‘‘आप को समझाने से कोई फायदा नहीं. आप सचमुच सठिया गए हैं. बेटी की शादी में बहुत सारा दहेज दे कर क्या करेंगे? सादी सी शादी कर देंगे.’’

‘‘परंतु क्या उस की पढ़ाई पर खर्चा नहीं होगा?’’

नीता की बुद्धि बहुत ओछी थी, ‘‘उस को बहुत ज्यादा पढ़ालिखा कर अपना पैसा क्यों बरबाद करें. वह कौन सा हमारे घर में बैठी रहेगी और हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगी? लड़का हमारा वंश आगे बढ़ा कर हमारा नाम रोशन करेगा.’’ अपनी पत्नी की ओछी सोच पर केशव बाबू फिर तरस खा कर रह गए. इस के सिवा और कर भी क्या सकते थे. उन के सीधे स्वभाव का फायदा उठा कर नीता हमेशा उन पर हावी होती रही थी. अगर वे कभी अपनी आवाज ऊंची करते, तो उस की आवाज उन से भी ऊंची हो जाती. वह चीखनाचिल्लाना शुरू कर देती. इसी बात से वे डरते थे कि महल्ले वाले कहीं यह न समझ लें कि वे पत्नी के साथ मारपीट जैसा घटिया कृत्य करते हैं. सो, वे चुप हो जाते, फिर भी नीता का बड़बड़ाना जारी रहता. तब वे उठ कर बाहर चले जाते, सड़क पर टहलते या पार्क में जा कर बैठ जाते.केशव बाबू को बेटी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. वह पढ़ने में तेज थी. चिंता थी तो बस बेटे को ले कर, वह पढ़ने में न तो जहीन था, न बहुत ज्यादा अंक ही परीक्षा में ला पाता था. लेदे कर केवल डिगरी ही उस के हाथ में आती थी, परंतु केवल डिगरी से ही अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती थी. पता नहीं, आगे चल कर क्या करेगा?

इस बार भी नीता के आगे केशव बाबू की नहीं चली और बेटे ने एमबीए में ऐडमिशन ले लिया. इस के लिए भी उन्हें कई लाख रुपए खर्च करने पड़े. अब कई साल तक बेटा निश्ंिचत हो कर बाप के पैसे को लुटाता हुआ ऐश कर सकता था. न उसे पढ़ाई की चिंता करनी थी, न नौकरी की. बटी ने इंटर कर लिया तो एक बार फिर घर में हंगामा हुआ. वह 90 प्रतिशत अंक ले कर उत्तीर्ण हुई थी और बीटैक करना चाहती थी. केशव बाबू उस के पक्ष में थे, परंतु नीता नहीं चाहती थी. बोली, ‘‘जरा दिमाग से काम लो. एक साल बाद बेटी 18 की हो जाएगी. फिर उस की शादी कर देंगे. बीटैक कराने में हम पैसा क्यों बरबाद करें. ज्यादा पढ़ेगी तो विवाह भी ज्यादा पढ़ेलिखे लड़के के साथ करना पड़ेगा. उसी हिसाब से विवाह में भी पैसा ज्यादा खर्च होगा. हम क्यों अपना पैसा बरबाद करें. उस का पति चाहेगा तो उसे आगे पढ़ाएगा, वरना घर में बैठेगी.’’ केशव बाबू हैरत से नीता की ओर देखते हुए बोले, ‘‘तुम खुद पढ़ीलिखी हो और बेटी के बारे में इस तरह की बातें कर रही हो. आज नारी के लिए शिक्षा का महत्त्व कितना बढ़ चुका है, यह तुम नहीं जानती?’’

‘‘जानती हूं, बीए कर के मुझे क्या मिला? कौनसी नौकरी कर रही हूं. बीटैक कर के बेटी भी क्या कर लेगी. शादी कर के बच्चे पैदा करेगी, उन्हें पालपोस कर बड़ा करेगी, घर संभालेगी और बैठीबैठी मोटी होगी, बस. इस के अलावा लड़कियां क्या करती हैं, बताओ?’’ ‘‘जो लड़कियां नौकरी कर रही हैं और ऊंचेऊंचे पदों पर बैठी हैं, वे भी किसी की बेटियां, पत्नियां और मां होंगी. उन के घर वाले अगर इसी तरह सोचते, तो आज कोई भी नारी घर के बाहर जा कर नौकरी नहीं कर रही होती. वे नौकरियां कर रही हैं और देश, समाज व परिवार के विकास में योगदान दे रही हैं,’’ केशव बाबू जोर दे कर बोले.

अहम की मारी – भाग 1: शशि की लापरवाही

शशि ने बबलू की ओर देखा. उस का चेहरा कितना भोला मालूम होता है. बहुत ही प्यारा बच्चा है. हर मांबाप को अपने बच्चे प्यारे ही लगते हैं. बबलू गोराचिट्टा बच्चा था, जिस को देख कर सभी का उसे प्यार करने को मन होता. फिर शशि तो उस की मां थी. सारे दिन उस की शरारतें देख कर खुश होती. बबलू को पा कर तो उसे ऐसा लगता कि बस, अब और कुछ नहीं चाहिए. बबलू से बड़ी 7-8 साल की बेटी नीलू भी कम प्यारी नहीं थी. दोनों बच्चों को जान से भी ज्यादा चाहने वाली शशि उन के प्रति लापरवाह कैसे हो गई?

आज तो हद हो गई. सुबह जब वह आटो पर बैठने लगी तो बबलू उस के पांवों से लिपट गया. प्यार से मनाने पर नहीं माना तो शशि ने उसे डांटा. देर तो हो ही रही थी, उस ने आव देखा न ताव, उस के गाल पर एक चांटा जड़ दिया. चांटा कुछ जोर से पड़ गया था, उंगलियों के निशान गाल पर उभर आए थे. उस के रोने की आवाज सुन कर उस के दादाजी बाहर आ गए और बबलू को गोद में ले कर मनाने लगे. सास ने जो आंखें तरेर कर शशि की ओर देखा तो वह सहम गई. आटो में बैठते हुए ससुरजी की आवाज सुनाई दी, ‘‘जब करते नहीं बनता तो क्यों करती है नौकरी. यहां क्या खाने के लाले पड़ रहे हैं?’’

स्कूल में उस दिन किसी काम में मन नहीं लगा. इच्छा तो हो रही थी छुट्टी ले कर घर जाए पर अभी नौकरी लगे दोढाई महीने ही हुए थे. प्रधान अध्यापिका वैसे भी कहती रहती थीं, ‘‘भई, नौकरी तो बच्चों वाली को करनी ही नहीं चाहिए. रहेंगी स्कूल में और ध्यान रहेगा पप्पू, लल्ली में,’’ यह कह कर वे एक तिरस्कारपूर्ण हंसी हंसतीं. वे खुद 45 वर्ष की आयु में भी कुंआरी थीं. स्कूल का समय समाप्त होते ही शशि आटो के लिए ऐसे दौड़ी कि सामने से आती हुई प्रधान अध्यापिका व अन्य 2 अध्यापिकाओं को अभिवादन करना तक भूल गई. आटो में आ कर बैठने के बाद उसे इस बात का खयाल आया. दोनों अध्यापिकाओं की प्रधान अध्यापिका के साथ बनती भी अच्छी थी, और वे उस से वरिष्ठ भी थीं. खैर, जो भी हुआ अब क्या हो सकता था.

आटो वाले से उतावलापन दिखाते हुए कहा, ‘‘जल्दी चलो.’’

कुछ दूर जा कर आटो वाले ने पूछा, ‘‘साहब क्या करते हैं?’’

‘‘बहुत बड़े वकील हैं,’’ शशि ने सगर्व कहा.

आटो वाले ने मुंह से कुछ नहीं कहा, सिर्फ एक हलकी सी मुसकान के साथ पीछे मुड़ कर उसे देख लिया. उस की इस मुसकान से उसे सुबह की घटना फिर याद आ गई. जैसेजैसे घर करीब आता गया, शशि का संकोच बढ़ता गया. सासससुर से कैसे आंख मिलाए. सुबह तो पति अजय घर पर नहीं थे, पर अब अजय को भी मालूम हो गया होगा. बच्चों को वे कितना चाहते हैं. जहां तक हो सके वे प्यार से ही उन्हें समझाते हैं. बच्चे भी अपने पिता से बहुत हिलेमिले थे. घर के आगे आटो रुका. बबलू रोज की तरह दौड़ कर नहीं आया. नीलू भी सिर्फ एक बार झांक कर भीतर चली गई. अंदर जा कर उस ने धीरे से बबलू को आवाज दी. वह दूर से ही बोला, ‘‘अम नहीं आते. आप मालती हैं. आप से अमाली कुट्टी हो गई.’’

शशि वैसे ही बिस्तर पर पड़ गई. रोतेरोते उस के सिर में दर्द होने लगा. वह चुपचाप वैसे ही आंख बंद किए पड़ी रही. किसी ने बत्ती जलाई. सास ही थीं. उस के करीब आ कर बोलीं, ‘‘चलो बहू, हाथमुंह धो कर कुछ खापी लो.’’ सास की हमदर्दी अच्छी भी लगी और साथ ही शर्म भी आई. रात का खानपीना खत्म हुआ तो सब बिस्तर पर चले गए थे. अजय खाना खा कर दूसरे कमरे में चला गया, जरूरी केस देखने. शशि को उन का बाहर जाना भी उस दिन राहत ही दे रहा था. बबलू करवट बदलते हुए नींद  में कुछ बड़बड़ाया. शशि ने उस को चादर ओढ़ाई, फिर नीलू की ओर देखा. आज नीलू भी उस से घर आने के बाद ज्यादा बोली नहीं. और दिनों तो स्कूल की छोटी से छोटी बात बताती, तरहतरह के प्रश्न पूछती रहती. साथ में खाना खाने की जिद करती. फिर सोते समय जब तक एकाध कहानी न सुन ले, उसे नींद न आती. पर आज शशि को लग रहा था, मानो बच्चे पराए, उस से दूर हो रहे थे. ढाई साल के बच्चे  में अपनापराया की क्या समझ हो सकती है. वह तो मां को ही सबकुछ समझता है. मां भी तो उस से बिछुड़ कर कहां रहना चाहती है.

वह दिन भी कितना बुरा था जब वह पहली बार इंदु से मिली थी, शशि सोचने लगी…

कैसी सजीधजी थी इंदु, बातबात पर उस का हंसना. शशि को उस दिन वह जीवन से परिपूर्ण, एकदम जीवंत लगी. अजय और मनोज साथ ही पढ़े थे. आजकल मनोज उसी शहर में ला कालेज में लैक्चरार से तरक्की पा कर प्रोफैसर बन गया था. उस दिन रास्ते में जो मुलाकात हुई तो मनोज ने अजय व शशि को अपने घर आने का निमंत्रण दिया. वहां जाने पर शशि भौचक्की सी रह गई. ड्राइंगरूम था या कोई म्यूजियम. महंगी क्रौकरी में नाश्ता आया.

अच्छी नईनई डिशेज. शशि तो नाश्ते के दौरान कुछ अधिक न बोली, पर इंदु चहकती रही. शायद भौतिक सुख से परिपूर्ण होने पर आदमी वाचाल हो जाता है. इंदु किसी काम से अंदर चली गई. अजय और मनोज बीते दिनों की यादों में खोए हुए थे. शशि सोचने लगी, उस का पति भी वकालत में इतना तो कमा ही लेता है जिस से आराम से रहा जा सके. खानेपहनने को है, बच्चों को घीदूध की कमी नहीं. बचत भी ठीक है. सुखशांति से भरापूरा परिवार है. पर मनोज के यहां की रौनक देख कर उसे अपना रहनसहन बड़ा तुच्छ लगा.

इंदु की आवाज से शशि इतनी बुरी तरह चौंकी कि अजय और मनोज दोनों उस की ओर देखने लगे. मनोज ने कहा, ‘शायद भाभी को घर में छोड़े हुए बच्चों की याद आ रही है. भाभी, इतना मोह भी ठीक नहीं. अब देखिए, हमारी श्रीमतीजी को, लेदे के एक तो लाल है, सो उस को भी छात्रावास में भेज दिया. मुश्किल से 8-10 साल का है. कहती हैं, ‘वहां शुरू से रहेगा तो तहजीब सीख लेगा.’ भाभी, आप ही बताइए, क्या घर पर बच्चे शिष्टाचार नहीं सीखते हैं?’ मनोज शायद आगे भी कुछ कहता पर इंदु शशि का हाथ पकड़ कर यह कहते हुए अंदर ले गई, ‘अजी, इन की तो यह आदत है. कोई भी आए तो शुरू हो जाते हैं. भई, हम को तो ऐसी भावुकता पसंद नहीं. आदमी को व्यावहारिक होना चाहिए.’

सच्चा रिश्ता: साहिल ने कैसे दिखाई हिम्मत

साहिल आज काफी मसरूफ था. सुबह से उठ कर वह जयपुर जाने की तैयारी में लगा था. उस की अम्मी उस के काम में हाथ बंटा रही थीं और समझा रही थीं, ‘‘बेटे, दूर का मामला है, अपना खयाल रखना और खाना ठीक समय पर खा लिया करना.’’ साहिल अपनी अम्मी की बातें सुन कर मुसकराता और कहता, ‘‘हां अम्मी, मैं अपना पूरा खयाल रखूंगा और खाना भी ठीक समय पर खा लिया करूंगा. वैसे भी अम्मी अब मैं बड़ा हो गया हूं और मुझे अपना खयाल रखना आता है.’’

साहिल को इंटरव्यू देने जयपुर जाना था. उस के दिल में जयपुर घूमने की चाहत थी, इसलिए वह 10-15 दिन जयपुर में रहना चाहता था. सारा सामान पैक कर के साहिल अपनी अम्मी से विदा ले कर चल पड़ा.

अम्मी ने साहिल को ले कर बहुत सारे ख्वाब देखे थे. जब साहिल 8 साल का था, तब उस के अब्बा बब्बन मियां का इंतकाल हो गया था. साहिल की अम्मी पर तो जैसे बिजली गिर गई थी. उन के दिल में जीने की कोई तमन्ना ही नहीं थी, लेकिन साहिल को देख कर वे ऐसा न कर सकीं. अम्मी ने साहिल की अच्छी परवरिश को ही अपना मकसद बना लिया था. इसी वजह से साहिल को कभी अपने अब्बा की कमी महसूस नहीं हुई थी. तभी तो साहिल ने अपनी अम्मी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए एमए कर लिया था और अब वह नौकरी के सिलसिले में इंटरव्यू देने जयपुर जा रहा था.

साहिल को विदा कर के उस की अम्मी घर का दरवाजा बंद कर घर के कामों में मसरूफ हो गईं. उधर साहिल भी अपने शहर के बस स्टैंड पर पहुंच गया. जयपुर जाने वाली बस आई, तो साहिल ने बस में चढ़ कर टिकट लिया और एक सीट पर बैठ गया.

साहिल की आंखों से उस का शहर ओझल हो रहा था, पर उस की आंखों में अम्मी का चेहरा रहरह कर सामने

आ रहा था. अम्मी ने साहिल को काफी मेहनत से पढ़ायालिखाया था, इसलिए साहिल ने भी इंटरव्यू के लिए बहुत अच्छी तैयारी की थी. बस के चलतेचलते रात हो गई थी. ज्यादातर सवारियां सो रही थीं. जो मुसाफिर बचे थे, वे ऊंघ रहे थे.

रात के अंधेरे को रोशनी से चीरती हुई बस आगे बढ़ी जा रही थी. एक जगह जंगल में रास्ता बंद था. सड़क पर पत्थर रखे थे. ड्राइवर ने बस रोक दी. तभी 2-3 बार फायरिंग हुई और बस में कुछ लुटेरे घुस आए. इस अचानक हुए हमले से सभी मुसाफिर घबरा गए और जान बचाते हुए अपना सारा पैसा उन्हें देने लगे.

एक लड़की रोरो कर उन से दया की भीख मांगने लगी. वह बारबार कह रही थी, ‘‘मेरे पास थोड़े से रुपयों के अलावा कुछ नहीं है.’’ मगर उन जालिमों पर उस की मासूम आवाज का कुछ असर नहीं हुआ. उन में से एक लुटेरा, जो दूसरे सभी लुटेरों का सरदार लग रहा था, एक लुटेरे से बोला, ‘‘अरे ओ कृष्ण, बहुत बतिया रही है यह लड़की. अरे, इस के पास देने को कुछ नहीं है, तो उठा ले ससुरी को और ले चलो अड्डे पर.’’

इतना सुनते ही एक लुटेरे ने उस लड़की को उठा लिया और जबरदस्ती उसे अपने साथ ले जाने लगा. वह डरी हुई लड़की ‘बचाओबचाओ’ चिल्ला रही थी, पर किसी मुसाफिर में उसे बचाने की हिम्मत न हुई.

साहिल भी चुप बैठा था, पर उस के दिल के अंदर से आवाज आई, ‘साहिल, तुम्हें इस लड़की को उन लुटेरों से छुड़ाना है.’ यही सोच कर साहिल अपनी सीट से उठा और लुटेरों को ललकारते हुए बोला, ‘‘अरे बदमाशो, लड़की को छोड़ दो, वरना अच्छा नहीं होगा.’’

इतना सुनते ही उन में से 2-3 लुटेरे साहिल पर टूट पड़े. वह भी उन से भिड़ गया और लड़की को जैसे ही छुड़ाने लगा, तो दूसरे लुटेरे ने गोली चला दी. गोली साहिल की बाईं टांग में लगी. साहिल की हिम्मत देख कर दूसरे कई मुसाफिर भी लुटेरों को मारने दौड़े. कई लोगों को एकसाथ आता देख लुटेरे भाग खड़े हुए, पर तब तक साहिल की टांग से काफी खून बह चुका था. लिहाजा, वह बेहोश हो गया.

ड्राइवर ने बस तेजी से चला कर जल्दी से साहिल को एक अस्पताल में पहुंचा दिया. सभी मुसाफिर तो साहिल को भरती करा कर चले गए, पर वह लड़की वहीं रुक गई. डाक्टर ने जल्दी ही साहिल की मरहमपट्टी कर दी.

कुछ देर बाद जब साहिल को होश आया, तो सामने वही लड़की खड़ी थी. साहिल को होश में आता देख कर वह लड़की बहुत खुश हुई.

साहिल ने उसे देख राहत की सांस ली कि लड़की बच गई. पर अचानक इंटरव्यू का ध्यान आते ही उस के मुंह से निकला, ‘‘अब मैं जयपुर नहीं पहुंच सकता. मेरे इंटरव्यू का क्या होगा?’’ लड़की उस की बात सुन कर बोली, ‘‘क्या आप जयपुर में इंटरव्यू देने जा रहे थे? मेरी वजह से आप की ये हालत हो गई. मैं आप से माफी चाहती हूं. मुझे माफ कर दीजिए.’’

‘‘अरे नहीं, यह आप क्या कह रही हैं? आप ने मेरी बात का गलत मतलब निकाल लिया. अगर मैं आप को बचाने न आता, तो पता नहीं मैं अपनेआप को माफ कर भी पाता या नहीं. खैर, छोडि़ए यह सब. अच्छा, यह बताइए कि आप यहां क्यों रुक गईं? मुझे लगता है कि सभी मुसाफिर चले गए हैं.’’ लड़की ने कहा, ‘‘जी हां, सभी मुसाफिर रात को ही चले गए थे. आप के पास भी तो किसी को होना चाहिए था. अपनी जान की परवाह किए बिना आप ने मेरी जान बचाई. ऐसे में मेरा फर्ज बनता था कि मैं आप के पास रुकूं. मैं आप की हमेशा एहसानमंद रहूंगी.’’

‘‘यह तो मेरा फर्ज था, जो मैं ने पूरा किया. अच्छा, यह बताइए कि आप कल जयपुर जा रही थीं या कहीं और…?’’

इतना सुनते ही लड़की की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आप ने मेरी जान बचाई है, इसलिए मैं आप से कुछ नहीं छिपाऊंगी. मेरा नाम आरती?है. मेरे पैदा होने के कुछ साल बाद ही पिताजी चल बसे थे. मां ने ही मुझे पाला है. ‘‘मेरे ताऊजी मां को तंग करते थे. हमारे हिस्से की जमीन पर उन्होंने कब्जा कर लिया. उन्होंने मेरी मां से धोखे में कोरे कागज पर अंगूठा लगवा लिया और हमारी जमीन उन के नाम हो गई.

‘‘एक महीने पहले मां भी मुझे छोड़ कर चल बसीं. मेरे ताऊजी मुझे बहुत तंग करते थे. उन के इस रवैए से तंग आ कर मैं भाग निकली और उसी बस में आ कर बैठ गई, जो बस जयपुर जा रही थी. ‘‘मैं ने 12वीं तक की पढ़ाई की है. सोचा था कि कहीं जा कर नौकरी कर लूंगी,’’ यह कह कर आरती चुप हो गई.

साहिल को आरती की कहानी सुन कर अफसोस हुआ. कुछ देर बाद आरती बोली, ‘‘अब आप को होश आ गया है, 2-4 दिन में आप बिलकुल ठीक हो जाएंगे. अच्छा तो अब मैं चलती हूं.’’

साहिल ने कहा, ‘‘पर कहां जाएंगी आप? अभी तो आप ने बताया कि अब आप का न कोई घर है, न ठिकाना. ऐसे में आप अकेली लड़की. बड़े शहर में नौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता. ‘‘वैसे, मेरा नाम साहिल है. मजहब से मैं मुसलमान हूं, पर अगर आप हमारे घर मेरी छोटी बहन बन कर रहें, तो मुझे बहुत खुशी होगी.’’

‘‘लेकिन, आप तो मुसलमान हैं?’’ आरती ने कहा. साहिल ने कहा, ‘‘मुसलमान होने के नाते ही मेरा यह फर्ज बनता है कि मैं किसी बेसहारा लड़की की मदद करूं. मुझे हिंदू बहन बनाने में कोई परहेज नहीं, अगर आप तैयार हों, तो…’’

आरती ने साहिल के पैर पकड़ लिए, ‘‘भैया, आप सचमुच महान हैं.’’ ‘‘अरे आरती, यह सब छोड़ो, अब हम अपने घर चलेंगे. अम्मी तो तुम्हें देख कर बहुत खुश होंगी.’’

एक हफ्ते बाद साहिल ठीक हो गया. डाक्टर ने उसे छुट्टी दे दी. साहिल आरती को ले कर अपने घर पहुंचा. दरवाजा खटखटाते हुए उस ने आवाज लगाई, तो उस की अम्मी ने दरवाजा खोला.

साहिल को देख कर वे चौंकीं, ‘‘अरे साहिल, सब खैरियत तो है न? तू इतनी जल्दी कैसे आ गया? तू तो 15 दिन के लिए जयपुर गया था. क्या बात है?’’ ‘‘अरे अम्मी, अंदर तो आने दो.’’

‘‘हांहां, अंदर आ.’’ साहिल जैसे ही लंगड़ाते हुए अंदर आया, तो उस की अम्मी को और धक्का लगा, ‘‘अरे साहिल, तू लंगड़ा क्यों रहा है? जल्दी बता.’’

साहिल ने कहा, ‘‘सब बताता हूं, अम्मी. पहले मैं तुम्हें एक मेहमान से मिलवाता हूं,’’ कह कर साहिल ने आरती को आवाज दी. आरती दबीसहमी सी अंदर आई.

खूबसूरत लड़की को देख कर साहिल की अम्मी का दिल खुश हो गया, पर अगले ही पल अपने को संभालते हुए वे बोलीं, ‘‘साहिल, ये कौन है? कहीं तू ने… ‘‘अरे नहीं, अम्मी. आप गलत समझ रही हैं.’’

अपनी अम्मी से साहिल ने जयपुर सफर की सारी बातें बता दीं. सबकुछ सुन कर साहिल की अम्मी बोलीं, ‘‘बेटा, तू ने यह अच्छा किया. अरे, नौकरी तो फिर कहीं न कहीं मिल ही जाएगी, पर इतनी खूबसूरत बहन तुझे फिर न मिलती. बेटी आरती, आज से यह घर तुम्हारा ही है.’’

इतना सुनते ही आरती साहिल की अम्मी के पैरों में गिर पड़ी. ‘‘अरे बेटी, यह क्या कर रही हो. तुम्हारी जगह मेरे दिल में बन गई. अब तुम मेरी बेटी हो,’’ इतना कह कर अम्मी ने आरती को गले से लगा लिया.

साहिल एक ओर खड़ा मुसकरा रहा था. अब साहिल के घर में बहन की कमी पूरी हो गई थी. आरती को भी अपना घर मिल गया था. उस की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए थे.

विस्मृत होता अतीत – भाग 1: शादी से पहले क्या हुआ था विभा के साथ

काफीदिनों के बाद अपना फेसबुक पेज अपडेट कर ही रही थी कि चैंटिंग विंडो पर ‘हाई’ शब्द ब्लिंक हुआ. पहले तो मैं ने ध्यान नहीं दिया, मगर बारबार ब्लिंक होने पर देखा तो कोई महोदय चैट करने को आतुर दिखाई दे रहे थे. निश्चित ही मेरी फ्रैंड्स लिस्ट में से यह कोई व्यक्ति था. उस से बात करने से पहले मैं ने उस का प्रोफाइल टटोला. नाम कौशल था. मैं ने चैट करने से परहेज किया, क्योंकि मैं चैट करने में रुचि नहीं रखती, पर यह तो कोई ढीठ बंदा था.

थोड़ी देर बाद उस ने मैसेज भेजा, ‘हाऊ आर यू मैम…?’ अब मुझे भी लगा कि जवाब न देना शिष्टाचार के विरुद्ध होगा. अत: अनमने ढंग से ‘हाई, फाइन’ लिखा. मेरी कोशिश यही थी कि उसे चैट के लिए हतोत्साहित किया जाए. मैं ने स्वयं को व्यस्त दिखाने की कोशिश की. फिर से मैसेज उभरा, ‘लगता है मैम बिजी हैं…?’ मेरे संक्षिप्त जवाब ‘हां’ से उस ने फिर मैसेज भेजा, ‘ओके… मैम. सम अदर टाइम.’ मैं ने भी ‘ओह’ लिख कर चैन की सांस ली ही थी कि डोरबैल बजी. घड़ी में देखा तो शाम के 6 बज रहे थे. लगता है राजीव औफिस से लौट आए थे.

जैसे ही दरवाजा खोला, ‘‘और क्या चल रहा है मैडम…?’’ राजीव ने कहा. उन्हें जब मुझे चिढ़ाना होता है तो वे इस शब्द का इस्तेमाल

करते हैं. वे जानते हैं कि मैं मैडम शब्द से बहुत चिढ़ती हूं.

‘‘कोई खास बात नहीं, बस नैट पर सर्फिंग कर रही थी…’’ मैं ने थोड़ा चिढ़ कर ही जवाब दिया. राजीव मुसकराए. मैं उन की इसी मुसकराहट पर फिदा थी. मेरा गुस्सा एकदम गायब हो चुका था. राजीव जानते थे कि मेरे गुस्से को कैसे कम किया जा सकता है. इसलिए वे मुझे चिढ़ाने के बाद अकसर अपनी जानलेवा मुसकराहट से काम लिया करते थे.

‘‘अच्छा यार, अदरक वाली चाय तो पिलाओ… और इस रिमझिम बारिश में गरमगरम पकौड़े हो जाएं तो अपना दिन… अरे नहीं शाम बन जाएगी…’’ उन की फ्लर्टिंग पर मुझे हंसी आ गई. बाहर वास्तव में बारिश हो रही थी. घर के अंदर होने से मेरा ध्यान ही नहीं गया था. मैं जल्दी से चाय और पकौड़े बनाने लगी और राजीव फ्रैश होने चले गए. उन्होंने हम दोनों की पसंदीदा जगह यानी बालकनी में चाय पीने की फरमाइश की. चाय पीतेपीते वे बड़े खुशगवार मूड में दिखे.

मुझ से रहा नहीं गया, ‘‘क्या बात है जनाब… बड़े मूड में लग रहे हैं…’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘अरे वाह कैसे जाना…,’’ वे थोड़ा हैरत से बोले.

‘‘आप की बैटरहाफ हूं. 15 सालों में इतना भी नहीं जानूंगी…?’’ थोड़ा इतराते हुए मैं ने कहा.

‘‘हां, बात तो तुम्हारी ठीक है,’’ वे थोड़ा गंभीर हो कर बोले.

कुछ देर हम दोनों चुपचाप चाय और पकौड़े का स्वाद लेते रहे. राजीव थोड़ी देर बाद मेरी ओर देख कर शरारत में मुसकराए और मैं उन का मंतव्य समझ गई.

‘‘कोई शरारत नहीं जनाब…,’’ मैं ने शरमाते हुए कहा. फिर हम घर के इंटीरियर के बारे में बात करने लगे. पूरा घर अस्तव्यस्त पड़ा था. इस नए फ्लैट में हम हाल ही में शिफ्ट हुए थे. घर का फाइनल टचअप बाकी था. राजीव और बच्चों में इसी बात को ले कर तकरार चल रही थी कि किस कमरे में कौन सा पेंट करवाया जाए. इसी बीच बेटा शुभांग और बेटी शिवानी भी आ गए. जिन्होंने जिद की तो राजीव उन्हें ले कर बाजार चले गए. मैं ने बहुत रोका कि पानी बरस रहा है पर बच्चों के उत्साह के आगे उन्हें सब फीका लगा. उन्होंने कार गैराज से निकाली और मुझे भी साथ चलने को कहा, पर मैं अस्तव्यस्त पड़े घर को ठीक करने की सोच कर रुक गई.

काम निबटा कर जैसे ही फ्री हुई तो लैपटौप पर निगाह गई तो सोचा कि क्यों न कुछ सर्फिंग हो जाए. अब जब इंटरनैट खोला तो खुद को फेसबुक ओपन करने से रोक नहीं पाई. अभी कुछ टाइप कर ही रही थी कि कौशल महोदय ‘हाई और हैलो’ के साथ हाजिर नजर आए. कुछ खास काम तो था नहीं और सोचा राजीव और बच्चे न जाने कितनी देर में आएंगे, तो इन्हीं कौशलजी से थोड़ी देर चैट कर लिया जाए.

मैं ने भी उसे हैलो किया और चैट करना शुरू किया तो उस ने अचानक मुझ से सवाल किया, ‘क्या आप तितली हैं…?’ मैं असमंजस में पड़ गई कि भला यह क्या सवाल हुआ…? उस ने मेरा ध्यान मेरी प्रोफाइल पिक्चर की ओर दिलवाया. इस बात पर मैं ने कभी ध्यान ही नहीं दिया था. मुझे वह इमेज अच्छी लगी थी तो मैं ने उसे डाल दिया था. जब उस ने इसी बात को एक बार और पूछा तो मैं चिढ़ सी गई और बहाना बना कर लौगआउट कर लिया. मुझे गुस्सा भी आ रहा था कि इस बंदे को अपनी फ्रैंड्स लिस्ट से डिलीट कर दूं. अगली बार ऐसा ही करूंगी सोच कर मैं उठ गई और रात के खाने की तैयारी में जुट गई.

आने वाले कई दिनों तक हम घर की साजसज्जा में लगे रहे. घर के इंटीरियर का काम लगभग पूरा हो चुका था. आज घर पूरी तरह से सज चुका था और अब ऐसा लग रहा था कि मानों कंधों पर से कोई बोझ उतर गया हो. चूंकि बच्चे और राजीव घर पर नहीं थे तो थोड़ा रिलैक्स होने के लिए सोचा क्यों न नैट खोल कर बैठूं. अपना मेल चैक कर रही थी तो कुछ खास नहीं था सिवाय एरमा के मेल के.

उस ने मेल किया था कि उसे उसे नई जौब मिल गई है और वह लौसएंजिल्स शिफ्ट हो रही थी. उस ने बताया कि वह कंपनी की तरफ से बहुत जल्दी इंडिया भी आएगी. मैं ने उसे बधाई दी और उसे अपने घर आ कर ठहरने का न्योता भी दिया. एरमा मेरी फेसबुक फ्रैंड थी. मेल चैक करने के बाद एक बार फिर फेसबुक ओपन किया तो देखा तो मैसेजेस का ढेर लगा पड़ा था. मुझे आज तक इतने मैसेज कभी भी नहीं आए थे. जब खोला 7-8 मैसेज तो कौशल महोदय के थे. ‘हाई, कैसे हैं आप…?’, ‘नाराज हैं क्या…?’, ‘आप फेसबुक पर नहीं आ रहीं…’ इत्यादिइत्यादि. ये सब देख कर मेरा मूड खराब हो गया.

 

Mother’s Day Special- प्रश्नों के घेरे में मां: भाग 1

अरु भाभी और शशांक भैया के चेहरे के उठतेगिरते भावों को पढ़तेपढ़ते मैं सोच रही थी कि बंद मुट्ठी में रेत की तरह जब सबकुछ फिसल जाता है तब क्यों इनसान चेतता है?

बीच में ही बात काटते हुए शशांक बोल पडे़ थे, ‘नहीं डाक्टर अवस्थी, ऐसा नहीं कि हम लोग निधि को प्यार नहीं करते या हमेशा उसे मारतेपीटते ही रहते हैं. समस्या तो यह है कि निधि बहुत गंदी बातें सीख रही है.’

नन्ही निधि का छोटा सा बचपन मेरी आंखों के सामने कौंध उठा. घटनाएं चलचित्र की तरह आंखों के परदे पर आजा रही थीं.

उस दिन तेज बरसात हो रही थी. ओले भी गिर रहे थे. पड़ोस के मकान से जोरजोर से आती आवाजें सुन कर मेरा दिल दहल उठा. शशांक कह रहे थे, ‘बदमिजाज लड़की, साफसाफ बता, क्या चाहती है तू? क्या इस नन्ही सी जान की जान लेना चाहती है. छोटी बहन आई है यह नहीं कि खुद को सीनियर समझ कर उस की देखभाल करे. हर समय मारपीट पर ही उतारू रहती है.’

कमरे में गूंजती बेरहम आवाजें बाहर तक सुनाई पड़ रही थीं. निधि की कराह के साथ पूरे वेग से फूटती रुलाई को साफसाफ सुना जा सकता था.

‘पापा प्लीज, मुझे मत मारो. ऐसा मैं ने किया क्या है?’

‘पूरा का पूरा रोटी का टुकड़ा सीमा के मुंह में ठूंस दिया और पूछती है किया क्या है? देखा नहीं कैसे आंखें फट गई थीं उस बेचारी की?’

‘पापा, मैं ने सोचा सब ने नाश्ता कर लिया है. गुड्डी भूखी होगी,’ रोंआसी आवाज में अंदर की ताकत बटोरते हुए निधि ने सफाई सी दी.

‘एक माह की बच्ची रोटी खाएगी, अरी, अक्ल की दुश्मन, वह तो सिर्फ मां का दूध पीती है,’ आंखें तरेरते हुए शशांक बिफर उठे और एक थप्पड़ निधि के गाल पर जड़ दिया.

उस घर में जब से सीमा का जन्म हुआ था. ऐसा अकसर होने लगा था और वह बेचारी पिट जाती थी.

निधि का आर्तनाद सुन कर मैं सोचती कि ये कैसे मांबाप हैं जो इतना भी नहीं समझ पाते कि ऐसा क्रूर और कठोर व्यवहार बच्चे की कोमल भावनाओं को समाप्त करता चला जाएगा.

निधि बचपन से ही मेरे घर आया करती थी. जिस दिन अरु अस्पताल से सीमा को ले कर घर आई, वह बेहद खुश थी. दादी की मदद ले कर अपने नन्हेनन्हे हाथों से उस ने पूरे कमरे में रंगबिरंगे खिलौने सजा दिए.

सीमा का नामकरण संस्कार संपन्न हुआ. मेहमान अपनेअपने घर चले गए थे. परिवार के लोग बैठक में जमा हो कर गपशप में मशगूल थे. निधि भी सब के बीच बैठी हुई थी. अचानक अपनी गोलगोल आंखें मटका कर बालसुलभ उत्सुकता से उस ने मां की तरफ देख कर पूछ लिया, ‘मां, मेरा भी नामकरण ऐसे ही हुआ था?’

‘ऊं हूं,’ चिढ़ाने के लिए उस ने कहा, ‘तुम्हें तो मैं फुटपाथ से उठा कर लाई थी.’

निधि को विश्वास नहीं हुआ तो दोबारा प्रश्न किया, ‘सच, मम्मी?’

अरु ने निधि की बात को सुनी- अनसुनी कर सीमा के नैपीज और फीडर उठाए और अपने कमरे में चली गई.

अगले दिन 10 बजे तक जब निधि सो कर नहीं उठी, तब अरु का ध्यान बेटी की तरफ गया. उस ने जा कर देखा तो पता चला कि तेज बुखार से निधि का पूरा शरीर तप रहा था. आंखों के डोरे लाल थे. कपोलों पर सूखे आंसुओं की परत जमा थी. अरु ने पुचकार कर पूछा, ‘तबीयत खराब है या किसी ने कुछ कहा है?’

निधि ने मां की किसी भी बात का उत्तर नहीं दिया.

निधि का बुखार तो ठीक हो गया पर अब वह हर समय गुमसुम सी बैठी रहती थी. घर में वह न तो किसी से कुछ कहती, न ज्यादा बात ही करती थी. अपने कमरे में पड़ीपड़ी घंटों किताब के पन्ने पलटती रहती. घर के सभी सदस्य यही समझते कि निधि पहले से ज्यादा मन लगा कर पढ़ने लगी है.

एक दिन सीमा को तेज बुखार चढ़ गया. दादी और शशांक दोनों घर पर नहीं थे. अरु समझ नहीं पा रही थी कि सीमा को ले कर कैसे डाक्टर के पास जाए. तभी निधि स्कूल से आ गई. उसे भी हरारत के साथ खांसीजुकाम था. अरु सीमा को निधि के हवाले कर डाक्टर के पास दवाई लेने चली गई. वापस लौटी तो सीमा के लिए ढेर सारी दवाइयां और टानिक थे पर उस में निधि के लिए कोई दवा नहीं थी.

शाम को शशांक और दादी लौट आए. कोई सीमा की पेशानी पर हाथ रखता, कोई गोदी में ले कर पुचकारता. मां पानी की पट्टियां सीमा के माथे पर रखती जा रही थीं पर किसी ने निधि की ओर ध्यान नहीं दिया.

शाम को सीमा थोड़ी ठीक हुई तो अरु उसे गोद में ले कर बालकनी में आ गई. मैं भी कुछ पड़ोसिनों के साथ अपनी बालकनी में बैठी थी. अचानक निधि ने एक छोटा सा पत्थर उठा कर नीचे फेंक दिया तो प्रतिक्रिया में अरु जोर से चिल्लाई, ‘निधि, चल इधर, वहां क्या देख रही है? छत से पत्थर क्यों फेंका?’

अरु की तेज आवाज सुन कर मेरे साथ बैठी एक पड़ोसिन ने कहा, ‘रहने दीजिए भाभीजी, बच्चा है.’

‘ऐसे ही तो बच्चे बिगड़ते हैं. यदि अभी से नहीं रोका तो सिर पर चढ़ कर बोलेगी,’ अरु की आवाज में चिड़- चिड़ापन साफ झलक रहा था.

मैं निधि के बारे में सोचने लगी थी कि उसे भी तो सीमा की तरह बुखार था. उस का भी तो मन कर रहा होगा कोई उसे पुचकारे, उस की तबीयत के बारे में पूछे. क्योंकि सीमा के जन्म से पहले उस के शरीर पर लगी छोटी सी खरोंच भी पूरे परिवार को चिंता में डाल देती थी. लेकिन इस समय सभी सीमा की तबीयत को ले कर चिंतित थे और निधि को अपने घर वालों की उपेक्षा बरदाश्त नहीं हो पा रही थी.

अम्मा- भाग 1: आखिर अम्मा वृद्धाश्रम में क्यों रहना चाहती थी

सब से बड़ी बात-बड़ों की जिंदगी का अनुभव कितनी समस्याओं को सुलझा देता है. लेकिन आज अम्मां वृद्धाश्रम में थीं. क्या वृद्धाश्रम से वापस घर आना उन्हें मंजूर हुआ? आफिस से फोन कर अजय ने नीरा को बताया कि मैं  आनंदधाम जा रहा हूं, तो उस के मन में विचारों की बाढ़ सी आ गई. आनंदधाम यानी वृद्धाश्रम. शहर के एक कोने में स्थित है यह आश्रम. यहां ऐसे बेसहारा, लाचार वृद्धों को शरण मिलती है जिन की देखभाल करने वाला अपना इस संसार में कोई नहीं होता. रोजमर्रा की सारी सुविधाएं यहां प्रदान तो की जाती हैं पर बदले में मोटी रकम भी वसूली जाती है.

बिना किसी पूर्व सूचना के क्यों जा रहा है अजय आनंदधाम? जरूर कोई गंभीर बात होगी.

यह सोच कर नीरा कार में बैठी और अजय के दफ्तर पहुंच गई. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, सब खैरियत तो है?’’

‘‘नीरा, अम्मां, पिछले 1 साल से आनंदधाम में रह रही हैं. आश्रम से महंतजी का फोन आया था. गुसलखाने में फिसल कर गिर पड़ी हैं.’’

अजय की आवाज के भारीपन से ही नीरा ने अंदाजा लगा लिया था कि अम्मां के अलगाव से मन में दबीढकी भावनाएं इस पल जीवंत हो उठी हैं.

‘‘हम चलते हैं, अजय. सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘अच्छा होगा मां को यदि किसी विशेषज्ञ को दिखाएं.’’

‘‘ठीक है, रुपए बैंक से निकलवा कर चलते हैं. पता नहीं कब कितने की जरूरत पड़ जाए,’’ सांत्वना के स्वर में नीरा ने कहा तो अजय को तसल्ली हुई.

‘‘मैं तो इस घटना को सुनने के बाद इतना परेशान हो गया था कि रुपयों का मुझे खयाल ही नहीं आया. प्राइवेट अस्पताल में रुपए की तो जरूरत पड़ेगी ही.’’

कुछ ही समय में नीरा रुपए ले कर आ गई. कार स्टार्ट करते ही पत्नी की बगल में बैठे अजय की यादों में 1 साल पहले का वह दृश्य सजीव हो उठा जब तिर्यक कुटिल दृष्टि से नीरा ने अम्मां को इतना अपमानित किया था कि वह चुपचाप अपना सामान बांध कर घर से चली गई थीं.

जातेजाते भी अम्मां की तीक्ष्ण दृष्टि नीरा पर टिक गई थी.

‘अजय, मेरी जिंदगी बची ही कितनी  है? मेरे लिए तू अपनी गृहस्थी में दरार मत डाल,’ अम्मां की गंभीर आवाज और अभिजात दर्पमंडित व्यक्तित्व की छाप वह आज तक अपने मानसपटल से कहां मिटा पाया था.

‘जाना तो अम्मां सभी को है… और रही दरार की बात, तो वह तो कब की पड़ चुकी है. अब कहीं वह दरार खाई में न बदल जाए. यह सोच लीजिए,’ अम्मां के सधे हुए आग्रह को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई नीरा बोली. वह तो इसी इंतजार में बैठी थी कि कब अम्मां घर छोडे़ं और उसे संपूर्ण सफलता हासिल हो.

कहीं अजय की भावुकता अम्मां के पैरों में पुत्र प्रेम की बेडि़यां डाल कर उन्हें रोक न ले, इस बात का डर था नीरा को इसलिए भी वह और अधिक तल्ख हो गई थी.

अगले ही दिन अजय ने फोन पर कुटिल हंसी की खनक में डूबी और बुलंद आवाज की गहराई में उभरते दंभ की झलक के साथ नीरा को किसी से बात करते सुना:

‘जिंदगी भर अब पास न फटकने देने का इंतजाम कर लिया है. कुशलक्षेम पूछना तो दूर, अजय श्राद्ध तक नहीं करेगा अम्मां का.’

उस दिन पत्नी के शब्दों ने अजय को झकझोर कर रख दिया था. समझ ही नहीं पाया कि यह क्या हो गया. पर जब आंखों से परदा हटा तो उस ने निर्णय लिया कि किसी भी हाल में अम्मां को जाने नहीं देगा. रोया, गिड़गिड़ाया, हाथ जोडे़, पैर छुए, पर अम्मां रुकी नहीं थीं. दयनीय बनना उन की फितरत में नहीं था. स्वाभिमानी शुरू से ही थीं.

अम्मां के जाने के बाद उन के तकिए के नीचे से एक लिफाफा मिला था. लिखा था, ‘इनसान क्यों अपनेआप को परिवार की माला में पिरोता है? इसीलिए न कि परिवार का हर संबंधी एकदूसरे के लिए सुखदुख का साथी बने. लेकिन जब वक्त और रिश्तों के खिंचाव से परिवार की डोर टूटने लगे तो अकेले मोती की तरह इधरउधर डोलने या अपने इर्दगिर्द बने सन्नाटे में दुबक जाने के बजाय वहां से हट जाना बेहतर होता है.

‘हमेशा के लिए नहीं, कुछ समय के लिए ही जा रही हूं पर यह समय, कुछ दिन, कुछ महीने या फिर कुछ सालों का भी हो सकता है. दिल से दिल के तार जुड़े होते हैं और ये तार जब झंकृत होते हैं तो पता चल जाता है कि हमें किसी ने याद किया है. जिस पल हमें ऐसा महसूस होगा, हम जरूर मिलेंगे, अम्मां.’

तेज बारिश हो रही थी. गाड़ी से बाहर देखने की कोशिश में अजय ने अपना चेहरा खिड़की के शीशे से सटा दिया. बाहर खिड़की के कांच पर गिर रही एकएक बूंद धीरेधीरे एकसाथ मिल कर पूरे कांच को ढक देती थी. जरा सा कांच पोंछने पर अजय को हर बार एक चेहरा दिखाई देता था. ढेर सारा वात्सल्य समेटे, झुर्रियों भरा वह चेहरा, जिस ने उसे प्यार दिया, 9 माह अपनी कोख में रखा, अपने रक्तमांस से सींचा, आंचल की छांव दी. उस का स्वास्थ्य, उस की पढ़ाई, उस की खुशी, अम्मां की पूरी दुनिया ही अजय के इर्दगिर्द सिमटी थी.

जिन प्रतिकूल परिस्थितियों में नीरा और अजय विवाह सूत्र में बंधे थे उन हालात में नीरा को परिवार का अंश बनने के लिए अम्मां को न जाने कितना संघर्ष करना पड़ा था.

लाखों रुपए के दहेज का प्रस्ताव ले कर, कई संपन्न परिवारों से अजय के लिए रिश्ते आए थे, पर अम्मां ने बेटे की पसंद को ही सर्वोपरि माना. अम्मां यही दोहराती रहीं कि गरीब घर की लड़की अधिक संवेदनशील होगी. घर का वातावरण सुखमय बनाएगी, अच्छी पत्नी और सुघड़ बहू साबित होगी.

पासपड़ोस के अनुभवों, किस्से- कहानियों को सुन कर अजय ने यही निष्कर्ष निकाला था कि बहू के आते ही घर का वातावरण बदल जाता है. अजय का मन किसी अज्ञात आशंका से घिरा है, अम्मां यह समझ गई थीं. बड़ी ही समझदारी से उन्होंने अजय को समझाया था :

‘बेटा, लोग हमेशा बहुओं को ही दोषी ठहराते हैं, पर मेरी समझ में ऐसा होता नहीं है. घर में जब भी कोई नया सामान आता है तो पुराने सामान को हटना ही पड़ता है. नया पत्ता तभी शाख पर लगता है जब पुराना उखड़ता है. जब भी किसी पौधे को एक जगह से उखाड़ कर दूसरी जगह आरोपित किया जाता है तो वह तभी पुष्पित, पल्लवित होता है जब उसे पर्याप्त मात्रा में खादपानी मिलता है. सामंजस्य, समझौता, समर्पण, दोनों ही पक्षों की तरफ से होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता, तो परिवार बिखरता है.’

अजय आश्वस्त हो गया. अम्मां ने नीरा को प्यार और अपनत्व से और नीरा ने उन्हें सम्मान और कर्तव्यनिष्ठा से अपना लिया. बहू में उन की आत्मा बसती थी. उसे सजतेसंवरते देख अम्मां मुग्धभाव से हिलोरें लेतीं. नीरा की कमियों को कोई गिनवाता तो चट से मोर्चा संभाल लेतीं.

‘मेरी अपर्णा को ही क्या आता था. पर धीरेधीरे जिम्मेदारियों के बोझ तले, सबकुछ सीखती चली गई.’

1 वर्ष बीततेबीतते अजय जुड़वां बेटों का बाप बन गया. अम्मां के चेहरे पर भारी संतोष की आभा झलक उठी. इसी दिन के लिए ही तो वह जैसे जी रही थीं. अस्पताल के कौरीडोर में नर्सों, डाक्टरों से बातचीत करतीं अम्मां को देख कर कौन कह सकता था कि वह घर से बाहर कभी निकली ही नहीं.

लवकुश नाम रखा उन्होंने अपने पोतों का. 40 दिन तक उन्होंने नीरा को बिस्तर से उठने नहीं दिया. अपर्णा को भी बुलवा भेजा. ननदभौजाई गप्पें मारतीं, अम्मां चौका संभालतीं.

‘अब तो महीना होने को आया. मेरी सास तो 21 दिन बाद ही घर की बागडोर मुझे संभालने को कह कर खुद आराम करती हैं,’ अम्मां की भागदौड़ से परेशान अपर्णा ने कहा तो अम्मां ने बुरा सा मुंह बनाया.

‘तेरी ससुराल में होता होगा. थोड़ा-बहुत काम करने से शरीर में जंग नहीं लगता.’

‘थोड़ाबहुत?’ अपर्णा ने आश्चर्य मिश्रित स्वर में पूछा था.

‘संयुक्त परिवार की यही  तो परिभाषा है. जरूरत पड़ने पर एकदूसरे के काम आओ. कच्चा शरीर है. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो जिंदगी भर का रोना.’

सवा महीना बीत गया. अपर्णा अपनी ससुराल लौट रही थी. अम्मांबाबूजी हमेशा भरपूर नेग देते थे. और इस बार तो लवकुश भी आ गए थे. अपर्णा ने मनुहार की. ‘2 दिन बाद तो मैं चली जाऊंगी. अम्मां, एक बार बाजार तो मेरे साथ चलो.’

‘ऐसा कर, अजय दफ्तर के लिए निकले तो दोनों ननदभावज उस के साथ ही निकल जाओ. जो जी चाहे, खरीद लो. पेमेंट बाबूजी कर देंगे.’

‘आप के साथ जाने का मन है, अम्मां. एक दिन भाभी संभाल लेंगी,’ अपर्णा ने मचल कर कहा तो अम्मां की आंखें नम हो आई थीं.

‘फिर कभी सही. तेरे जाने की तैयारी भी तो करनी है.’

बयार बदलाव की- भाग 1 : नीला की खुशियों को किसकी नजर लग गई थी

रमन लिफ्ट से बाहर निकला, पार्किंग से गाड़ी निकाली और घर की तरफ चल दिया. वह इस समय काफी उल?ान में था. रात को 8 बजने वाले थे. वह साढ़े 8 बजे तक औफिस से घर पहुंच जाता था. घर पर नीला उस का बेसब्री से इंतजार कर रही होगी. पर उस का इस समय घर जाने का बिलकुल भी मन नहीं हो रहा था. कुछ सोच कर उस ने आगे से यूटर्न लिया और कार दूसरी सड़क पर डाल दी. थोड़ी देर बाद उस ने एक खुली जगह पर कार खड़ी की और पैदल ही समुद्र की तरफ चल दिया.

यह समुद्र का थोड़ा सूना सा किनारा था. किनारा बड़े बड़े पत्थरों से अटा पड़ा था. वह एक पत्थर पर बैठ गया और हिलोरें मारते समुद्र को एकटक निहारने लगा. समुद्र की लहरें किनारे तक आतीं और जो कुछ अपने साथ बहा कर लातीं वह सब किनारे पर पटक कर वापस लौट जातीं. वह बहुत देर तक उन मचलती लहरों को देखता रहा.

देखतेदेखते वह अपने ही खयालों में डूबने लगा. वह दुखी हो, ऐसा नहीं था. पर बहुत ही पसोपेश में था. उस के पिता का फोन आया आज औफिस में. उस के मातापिता अगले हफ्ते एक महीने के लिए उस के पास आने वाले थे. मातापिता के आने की उसे खुशी थी. वह हृदय से चाहता था कि उस के मातापिता उस के पास आएं. पर अपने विवाह के एक साल पूरा होने के बावजूद वह एक बार भी उन्हें अपने पास आने के लिए नहीं कह पाया. कारण कुछ खास भी नहीं था. न उस के मातापिता अशिक्षित या गंवार थे. न उस की पत्नी नीला कर्कश या तेज स्वभाव की थी. फिर भी वह सम?ा नहीं पा रहा था कि उस के मातापिता आधुनिकता के रंग में रंगी उस की पत्नी को किस तरह से लेंगे. यह बात सिर्फ नीला की ही नहीं, बल्कि उस की पूरी पीढ़ी की है. नीला दिल्ली में विवाह से पहले नौकरी करती थी. विवाह के बाद नौकरी छोड़ कर उस के साथ मुंबई आ गईर् थी. यहां वह दूसरी नौकरी के लिए कोशिश कर रही थी.

नीला हर तरह से अच्छी लड़की थी. कोमल स्वभाव, अच्छे विचारों व प्यार करने वाली लड़की थी. उस के मातापिता के आने से वह खुश ही होगी. लेकिन उस के संस्कारी मातापिता, खासकर उस की मम्मी, नीला की आदतों, उस के रहनसहन के तरीकों को किस तरह से लेंगे, वह सम?ा नहीं पा रहा था.

विवाह के बाद वह चंडीगढ़ अपने मातापिता के पास थोड़ेथोड़े दिनों के लिए 2 बार ही गया था. मम्मी और नीला की अधिकतर बातें फोन से ही होती थीं. मम्मी उस के स्वभाव की बहुत तारीफ करती थीं. नीला भी अपनी सास का बहुत आदर करती थी और उन को पसंद करती थी. पर यह एक महीने का सान्निध्य कहीं उन के बीच की आत्मीयता को खत्म न कर दे, वह इसी उधेड़बुन में था.

नीला देर से सो कर उठती थी. उस के औफिस जाने तक भी कभी वह उठ जाती, कभी सोई रहती थी. नाश्ते में वह सिर्फ दूध व कौर्नफ्लैक्स लेता था. इसलिए वह खुद ही खा कर नीला को दरवाजा बंद करने को कह कर औफिस चला जाता था. उसे मालूम था, नीला की नौकरी लगते ही उस की दिनचर्या बदल जाएगी. फिर उसे जल्दी उठना ही पड़ेगा. अभी शादी को समय ही कितना हुआ है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. वह सारे दिन फ्लैट में अकेली रहती है. सुबह से उठ कर क्या करेगी.

खाना बनाना भी उसे बहुत ज्यादा नहीं आता था, मतलब का ही आता था. हालांकि एक साल में वह काफी कुछ सीख गई थी पर अभी तक उन का खाना अकसर बाहर ही होता था. मम्मीपापा के आने से काम भी बढ़ेगा. नीला इतना काम कहां संभाल पाएगी और मम्मी से अपने घर का पूरा काम संभालने की उम्मीद करना गलत था. वे नीला की सहायता करें, यह तो ठीक लगता है पर… फिर कपड़े तो नीला उस के मातापिता के सामने कितने भी शालीन पहनने की कोशिश करे, उस के बावजूद उस के मातापिता को उस का पहनावा नागवार गुजर सकता है.

मम्मी की पीढ़ी ने अपने पति की बहुत देखभाल की है. हाथ में सबकुछ उपलब्ध कराया है. औफिस जाते पति की हर जरूरत के लिए उस के पीछेपीछे घूमती पत्नी की पीढ़ी वाली उस की मम्मी क्या आज की पत्नी का तौरतरीका बरदाश्त कर पाएंगी, वह सम?ा नहीं पा रहा था. नीला से अगर थोड़े दिन अपना रवैया बदलने को कहता है तो नीला उस के मातापिता के बारे में क्या सोचेगी. उन दोनों के रिश्ते औपचारिक हो जाएंगे. यह रिश्ता एकदो दिन का तो है नहीं. उस के मातापिता तो अब उस के पास आतेजाते रहेंगे.

यही सब सोच कर वह अजीब सी उधेड़बुन में था. अंधकार घना हो गया था. समुद्र की लहरें किनारे पर सिर पटकपटक कर उसे उस के विचारों से बाहर लाने का असफल प्रयास कर रही थीं. उस ने घड़ी पर नजर डाली. 10 बजने वाले थे. तभी मोबाइल बज उठा. नीला थी.

‘‘हैलो, कहां हो? अभी औफिस से नहीं निकले क्या? कितनी बार फोन किया, उठा क्यों नहीं रहे थे, ड्राइव कर रहे हो क्या?’’ नीला चिंतित स्वर में कई सवाल कर बैठी. ‘‘हां, ड्राइव कर रहा था. बस, पहुंच ही रहा हूं,’’ उस ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और उठ कर कार की तरफ चला गया.

घर पहुंच कर भी वह गुमसुम ही रहा. नीला आदत के अनुसार चुहलबाजी कर रही थी. अपनी भोलीभाली बातों से उसे रि?ाने का प्रयास कर रही थी. पर उस की चुप्पी टूट ही नहीं रही थी. ‘‘क्या बात है रमन, आज कुछ अपसैट हो. सब ठीक तो है न?’’ वह उस के घने बालों में उंगलियां फेरती हुई उस की बगल में बैठ गई. उस ने नीला की तरफ देखा. नीला मीठे स्वभाव की सरल लड़की थी. इसलिए वह उसे बहुत प्यार करता था. उस की आदतों की कोई कमी उसे नहीं अखरती थी. फिर वह देखता कि नीला ही नहीं, उस के हमउम्र दोस्तों की बीवियां भी लगभग नीला जैसी ही हैं. यह पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल भिन्न है.

वह प्यार से नीला को बांहों में कसता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कोई खास बात नहीं, बल्कि एक अच्छी बात है, चंडीगढ़ से मम्मीपापा आ रहे हैं एक महीने के लिए हमारे पास.’’

सुन कर नीला खुशी से उछल पड़ी, ‘‘अरे वाह, यह तो बहुत अच्छी खबर है. एक महीने के लिए मैं भी अकेले रहने की बोरियत से बच जाऊंगी. मम्मीपापा के साथ बहुत मजा आएगा. कब आ  रहे हैं?’’‘‘अगले हफ्ते की फ्लाइट है.’’

‘‘तो इतनी देर बाद क्यों बता रहे हो? आज तो देर हो गई. कल जल्दी आना, बहुत सारी चीजें खरीदनी हैं.’’ ‘‘हां, हां, तुम लिस्ट तैयार रखना. मैं जल्दी आ जाऊंगा. फिर चलेंगे.’’ मम्मीपापा के आने के नाम से नीला खुश व उत्साहित थी. उसे तो मम्मीपापा के साथ चंडीगढ़ वाली मस्ती करनी थी. इस से अधिक वह कुछ नहीं सोच पा रही थी. रमन उस के उत्साह को मुसकराते हुए देख रहा था.

चंडीगढ़ में तो सबकुछ हाथ में मिलता है. मम्मी की तैयारियां पहले से ही अपने बच्चों के लिए इतनी संपूर्ण रहती हैं कि उन्हें बीच में परेशान नहीं होना पड़ता. खानेपीने की चीजों से फ्रिज भर देती हैं. इस के अलावा काम करने वाले भी घर के पुराने नौकर हैं, तो नीला को चम्मच हिलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है और न उस से थोड़े दिनों के लिए कोई ऐसी उम्मीद रखता है. उस ने खुद कुछ किया तो किया, नहीं किया तो नहीं किया. अपने प्यारे स्वभाव के कारण वह मम्मीपापा की इतनी लाड़ली है कि वे उसे पलकों पर बिठा कर रखते हैं.

नीला अपनी रौ में ढेर सारी प्लानिंग कर रही थी. रमन कुछ कह कर या उसे कुछ सम?ा कर उस की खुशी में विघ्न नहीं डालना चाहता था. इसलिए उस ने मन ही मन सोचा, जो होगा देखा जाएगा. ‘‘अब बातें ही करती रहोगी या कुछ खाने को भी दोगी. कुछ बनाया भी है या बाहर से और्डर करूं?’’ वह हंसता हुआ नीला को छेड़ता हुआ बोला.

‘‘आज तो मैं ने पास्ता बनाया है.’’ ‘‘पास्ता बनाया है? अरे, कुछ रोटीसब्जी बना देतीं. यह सब रोजरोज मु?ा से नहीं खाया जाता.’’ ‘‘पर मु?ा से रोटी अच्छी नहीं बनती है,’’ नीला मायूसी से बोली. ‘‘कोई बात नहीं,’’ वह उस के गालों को प्यार से सहलाता हुआ बोला, ‘‘अभी बाहर से और्डर कर देता हूं. मम्मी आएंगी तो इस बार तुम रोटी बनाना जरूर सीख लेना.’’

‘‘ठीक है, सीख लूंगी.’’ एक हफ्ते बाद उस के मातापिता आ गए. उन की दिल्ली से फ्लाइट थी. फ्लाइट शाम की थी. वह औफिस से जल्दी नहीं निकल पाया. नीला ही उन्हें एयरपोर्ट लेने चली गई. उस ने औफिस से मम्मीपापा से फोन पर बात कर ली. उस के मातापिता पहली बार उस के पास आए थे, इसलिए वह बहुत संतुष्टि का अनुभव कर रहा था.

मोबाइल पर फिल्म : हथकंडेबाज प्रेमी

ऐसे टुकुरटुकुर क्या देख रहा है?’’ अपना दुपट्टा संभालते हुए धन्नो ने जैसे ही पूछा, तो एक पल के लिए सूरज सकपका गया.

‘‘तुझे देख रहा हूं. सच में क्या मस्त लग रही है तू,’’ तुरंत संभलते हुए सूरज ने जवाब दिया. धन्नो के बदन से उस की नजरें हट ही नहीं रही थीं.

‘‘चल हट, मुझे जाने दे. न खुद काम करता है और न ही मुझे काम करने देता है…’’ मुंह बनाते हुए धन्नो वहां से निकल गई.

सूरज अब भी उसे देख रहा था. वह धन्नो के पूरे बदन का मुआयना कर चुका था.

‘‘एक बार यह मिल जाए, तो मजा आ जाए…’’ सूरज के मुंह से निकला.

सूरज की अकसर धन्नो से टक्कर हो ही जाती थी. कभी रास्ते में, तो कभी खेतखलिहान में. दोनों में बातें भी होतीं. लेकिन सूरज की नीयत एक ही रहती… बस एक बार धन्नो राजी हो जाए,

फिर तो…

धन्नो को पाने के लिए सूरज हर तरह के हथकंडे अपनाने को तैयार था.

‘‘तू कुछ कामधंधा क्यों नहीं करता?’’ एक दोपहर धन्नो ने सूरज से पूछा.

‘‘बस, तू हां कर दे. तेरे साथ घर बसाने की सोच रहा हूं,’’ सूरज ने बात छेड़ी, तो धन्नो मचल उठी.

‘‘तू सच कह रहा है,’’ धन्नो ने खुशी में उछलते हुए सूरज के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

सूरज को तो जैसे करंट मार गया. वह भी मौका खोना नहीं चाहता था. उस ने झट से उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘सच धन्नो, मैं तुम्हें अपनी घरवाली बनाना चाहता हूं. तू तो जानती है कि मेरा बाप सरपंच है. नौकरी चाहूं, तो आज ही मिल जाएगी.’’

सूरज ने भरोसा दिया, तो धन्नो पूछ बैठी, ‘‘तो नौकरी क्यों नहीं करते? फिर मेरे मामा से मेरा हाथ मांग लेना. कोई मना नहीं करेगा.’’

सूरज ने हां में सिर हिलाया. धन्नो उस के इतना करीब थी कि वह अपनी सुधबुध खोने लगा.

‘‘यहां कोई नहीं है. आराम से लेट कर बातें करते हैं,’’ सूरज ने इधरउधर देखते हुए कहा.

‘‘मैं सब जानती हूं. तुम्हारे दिमाग का क्या भरोसा, कुछ गड़बड़ कर बैठे तो…’’ धन्नो ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘ब्याह से पहले यह सब ठीक नहीं… मरद जात का क्या भरोसा?’’ इतना कहते हुए वह तीर की मानिंद निकल गई. जातेजाते उस ने सूरज के हाथ को कस कर दबा दिया था. सूरज इसे इशारा समझने लगा.

‘‘फिर निकल गई…’’ सूरज को गुस्सा आ गया. उसे पूरा भरोसा था कि आज उस की मुराद पूरी होगी. लेकिन धन्नो उसे गच्चा दे कर निकल गई.

अब तो सूरज के दिलोदिमाग पर धन्नो का नशा बोलने लगा. कभी उस का कसा हुआ बदन, तो कभी उस की हंसी उसे पागल किए जा रही थी. वैसे तो वह सपने में कई बार धन्नो को पा चुका था, लेकिन हकीकत में उस की यह हसरत अभी बाकी थी.

सरपंच मोहन सिंह का बेटा होने के चलते सूरज के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. सो, उस ने एक कीमती मोबाइल फोन खरीदा और उस में खूब ब्लू फिल्में भरवा दीं. उन्हें देखदेख कर धन्नो के साथ वैसे ही करने के ख्वाब देखने लगा.

‘‘अरे, तू इतने दिन कहां था?’’ धन्नो ने पूछा. उस दिन हैंडपंप के पास पानी भरते समय दोनों की मुलाकात हो गई.

‘‘मैं नौकरी ढूंढ़ रहा था. अब नौकरी मिल गई है. अगले हफ्ते से ड्यूटी पर जाना है,’’ सूरज ने कुछ सोच कर कहा, ‘‘अब तो ब्याह के लिए हां कर दे.’’

‘‘वाह… वाह,’’ नौकरी की बात सुनते ही धन्नो उस से लिपट गई. सूरज की भावनाएं उफान मारने लगीं. उस ने तुरंत उसे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘हां कर दे. और कितना तरसाएगी,’’ सूरज ने उस की आंखों में आंखें डाल

कर पूछा.

‘‘तू गले में माला डाल दे… मांग भर दे, फिर जो चाहे करना.’’

सूरज उसे मनाने की जीतोड़ कोशिश करने लगा.

‘‘अरे वाह, इतना बड़ा मोबाइल फोन,’’ मोबाइल फोन पर नजर पड़ते ही धन्नो के मुंह से निकला, ‘‘क्या इस में सिनेमा है? गानेवाने हैं?’’

‘‘बहुत सिनेमा हैं. तू देखेगी, तो चल उस झोंपड़े में चलते हैं. जितना सिनेमा देखना है, देख लेना,’’ सूरज धन्नो के मांसल बदन को देखते हुए बोला, तो

वह उस के काले मन के इरादे नहीं भांप सकी.

धन्नो राजी हो गई. सूरज ने पहले तो उसे कुछ हिंदी फिल्मों के गाने दिखाए, फिर अपने मनसूबों को पूरा करने के लिए ब्लू फिल्में दिखाने लगा.

‘‘ये कितनी गंदी फिल्में हैं. मुझे नहीं देखनी,’’ धन्नो मुंह फेरते हुए बोली.

‘‘अरे सुन तो… अब अपने मरद से क्या शरमाना? मैं तुम से शादी करूंगा, तो ये सब तो करना ही होगा न, नहीं तो हमारे बच्चे कैसे होंगे?’’ उसे अपनी बाजुओं में भरते हुए सूरज बोला.

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन शादी करोगे न? नहीं तो मामा मेरी चमड़ी उतार देगा,’’ नरम पड़ते हुए धन्नो बोली.

‘‘मैं कसम खाता हूं. अब जल्दी से घरवाली की तरह बन जा और चुपचाप सबकुछ उतार कर लेट जा,’’ इतना कहते हुए सूरज अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा. उस के भरोसे में बंधी धन्नो विरोध न कर सकी.

‘‘तू सच में बहुत मस्त है…’’ आधा घंटे बाद सूरज बोला, ‘‘किसी को कुछ मत बताना. ले, यह दवा खा ले. कोई शक नहीं करेगा.’’

‘‘लेकिन, मेरे मामा से कब बात करोगे?’’ धन्नो ने पूछा, तो सूरज की आंखें गुस्से से लाल हो गईं.

‘‘देख, मजा मत खराब कर. मुझे एक बार चाहिए था. अब यह सब भूल जा. तेरा रास्ता अलग, मेरा अलग,’’ जातेजाते सूरज ने कहा, तो धन्नो पर जैसे बिजली टूट गई.

अब धन्नो गुमसुम सी रहने लगी. किसी बात में उस का मन ही नहीं लगता.

‘‘अरे, तेरे कपड़े पर ये खून के दाग कैसे?’’ एक दिन मामी ने पूछा, तो धन्नो को जैसे सांप सूंघ गया. ‘‘पिछले हफ्ते ही तेरा मासिक हुआ था, फिर…’’

धन्नो फूटफूट कर रोने लगी. सारी बातें सुन कर मामी का चेहरा सफेद पड़ गया. बात सरपंच मोहन सिंह के पास पहुंची. पंचायत बैठी.

मोहन सिंह के कड़क तेवर को सभी जानते थे. उस के लिए किसी को उठवाना कोई बड़ी बात नहीं थी.

‘‘तो तुम्हारा कहना है कि सूरज ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है?’’ सरपंच के आदमी ने धन्नो से पूछा.

‘‘नहीं, सूरज ने कहा था कि वह मुझ से ब्याह करेगा, इसलिए पहले…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ने ऐसा कोई वादा नहीं किया था…’’ सूरज ने बीच में टोका, ‘‘यह झूठ बोल रही है.’’

‘‘मैं भी तुम से शादी करूंगा, तो क्या तू मेरे साथ भी सोएगी,’’ एक मोटे से आदमी ने चुटकी ली.

‘‘तू है ही धंधेवाली…’’ भीड़ से एक आवाज आई.

‘‘चुप करो,’’ मोहन सिंह अपनी कुरसी से उठा, तो वहां खामोशी छा गई. वह सीधा धन्नो के पास पहुंचा.

‘‘ऐ छोकरी, क्या सच में मेरे सूरज ने तुझ से घर बसाने का वादा किया था?’’ उस ने धन्नो से जानना चाहा.

मोहन सिंह के सामने अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती थी, लेकिन न जाने क्यों धन्नो न तो डरी और न ही उस की जबान लड़खड़ाई.

‘‘हां, उस ने मुझे घरवाली बनाने की कसम खाई थी, तभी तो मैं राजी…’’ यह सुनते ही सरपंच का सिर झुक गया. भीड़ अब भी शांत थी.

‘‘बापू, तू इस की बातों में न आ…’’ सूरज धन्नो को मारने के लिए दौड़ा.

‘‘चुप रह. शर्म नहीं आती अपनी घरवाली के बारे में ऐसी बातें करते हुए. खबरदार, अब धन्नो के बारे में कोई एक शब्द कहा तो… यह हमारे घर की बहू है. अब सभी जाओ. अगले लगन में हम सूरज और धन्नो का ब्याह रचाएंगे.’’

धन्नो मोहन सिंह के पैरों पर गिर पड़ी. उस के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘बापू, तुम ने मुझे बचा लिया.’’

अंधा मोड़ : प्यार का दलदल

‘‘सौरभ, ऐसे कब तक चलेगा?’’

‘‘तुम्हारा क्या मतलब है माधवी?’’

‘‘मेरा मतलब यह है कि सौरभ…’’ माधवी ने एक पल रुक कर कहा, ‘‘अब हम ऐसे कब तक छिपछिप कर मिला करेंगे?’’

‘‘जब तक तुम्हारा और मेरा सच्चा प्यार है…’’ समझाते हुए सौरभ बोला, ‘‘फिर तुम क्यों घबराती हो?’’

‘‘मैं घबराती तो नहीं हूं सौरभ, मगर इतना कहती हूं कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए,’’ माधवी ने जब यह प्रस्ताव रखा, तब सौरभ सोचने पर मजबूर हो गया.

हां, सौरभ ने माधवी से प्यार किया है, शादी भी करना चाहता है, मगर इस के लिए उस ने अपना मन अभी तक नहीं बनाया है. उस के इरादे कुछ और ही हैं, जो वह माधवी को बताना नहीं चाहता है. उस ने माधवी को अपने प्रेमजाल में पूरी तरह से फांस लिया है. अब मौके का इंतजार कर रहा है.

उसे चुप देख कर माधवी फिर बोली, ‘‘क्या सोच रहे हो सौरभ?’’

‘‘सोच रहा हूं कि हमें अब शादी कर लेनी चाहिए.’’

‘‘बताओ, कब करें शादी?’’

‘‘तुम तो जानती हो माधवी, मेरे मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. अंकल ने मुझे पालापोसा और पढ़ाया, इसलिए वे जैसे ही अपनी सहमति देंगे, हम शादी कर लेंगे.’’

‘‘मगर, डैडी मेरी शादी के लिए जल्दी कर रहे हैं…’’ समझाते हुए माधवी बोली, ‘‘मैं टालती जा रही हूं. आखिर कब तक टालूंगी?’’

‘‘बस माधवी, अंकल हां कर दें, तो हम फौरन शादी कर लेंगे.’’

‘‘पता नहीं, तुम्हारे अंकल न जाने कब हां करेंगे.’’

‘‘जब हम ने इतने दिन निकाल दिए, थोड़े दिन और निकाल लो. मुझे पक्का यकीन है कि अंकल जल्दी ही हमारी शादी की सहमति देंगे,’’ कह कर सौरभ ने विश्वास जताया, मगर माधवी को उस के इस विश्वास पर यकीन नहीं हुआ.

यह विश्वास तो सौरभ उसे पिछले 6-7 महीनों से दे रहा है, मगर हर बार ढाक के तीन पात साबित होते हैं. आखिर लड़की होने के नाते वह कब तक सब्र रखे.

माधवी जरा नाराजगी से बोली, ‘‘नहीं सौरभ, तुम ने मुझ से प्यार किया है और मैं प्यार में धोखा नहीं खाना चाहती हूं. आज मैं अपना फैसला सुनना चाहती हूं कि तुम मुझ से शादी करोगे या नहीं?’’

‘‘देखो माधवी, मैं ने तो तुम से उतना ही प्यार किया है, जितना कि तुम ने मुझ से किया है…’’ समझाते हुए सौरभ बोला, ‘‘मगर, तुम मेरे हालात को क्यों नहीं समझ रही हो.’’

‘‘मगर मेरे हालात को तुम क्यों नहीं समझ रहे हो सौरभ. तुम लड़के हो, मैं एक लड़की हूं. मुझ पर मांबाप का कितना दबाव है, यह तुम नहीं समझोगे…’’

एक बार फिर माधवी समझाते हुए बोली, ‘‘कितना परेशान कर रहे हैं वे शादी के लिए, यह तुम नहीं समझोगे.’’

‘‘अपने पिता को जोर दे कर क्यों नहीं कह देती हो कि मैं ने शादी के लिए लड़का देख लिया है,’’ सौरभ बोला.

‘‘बस यही तो मैं नहीं कर सकती हूं सौरभ. तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हो?’’

‘‘और तुम मेरे हालात को समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रही हो…’’ सौरभ जरा नाराजगी से बोला.

माधवी ने भी उसी नाराजगी में जवाब दिया, ‘‘ठीक है, तुम लड़के हो कर डरपोक बन कर रहते हो, तो मैंतो लड़की हूं. फिर भी मैं तुम्हारे फैसले का इंतजार करूंगी,’’ कह कर माधवी चली गई.

सौरभ भी उसे जाते हुए देखता रहा. दोनों का प्यार कब परवान चढ़ा, यह उन को अच्छी तरह पता है.

वैसे, सौरभ एक बिगड़ा हुआ नौजवान था, जबकि माधवी गरीब परिवार की लड़की. वह अपने माता पिता की एकलौती बेटी थी. उस से 2 छोटे भाई जरूर थे.

माधवी अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. जब लड़की जवान हो जाती है, तब हर मातापिता के लिए चिंता की बात हो जाती है. माधवी के लिए लड़के की तलाश जारी थी. कुछ लड़के मिले, मगर वे दहेज के लालची मिले.

माधवी के पिता रघुनाथ इतना ज्यादा दहेज नहीं दे सकते थे. वे चाहते थे कि माधवी का साधारण घर में ब्याह कर दें, जहां वह सुख से रह सके. मगर ऐसा लड़का उन्हें कई सालों तक नहीं मिला.

माधवी सौरभ से शादी करना चाहती थी. वह बिना सोचेसमझे उसे अपना दिल दे बैठी थी. इन 6-7 महीनों में वह सौरभ के बहुत करीब आई, मगर उसे समझ नहीं पाई. उस ने उस पर प्यार भी खूब जताया. जरूरत की चीजें भी उसे खरीद कर दीं, मगर इस की हवा अपने मांबाप तक को नहीं लगने दी. इस के लिए उस ने 2-3 ट्यूशनें भी कर रखी थीं, ताकि मांबाप को यह एहसास हो कि वह ट्यूशन के पैसों से चीजें खरीद कर ला रही है.

जब भी सौरभ का फोन आता, वह फौरन उस से मिलने चली जाती. तब घंटों बातें करती.

शादी के बाद क्याक्या करना है, सपनों के महल बनाती, मगर कभीकभी वह यह भी सोचती कि यह सब फिल्मों में होता है, असली जिंदगी में यह सब नहीं चलता है. मगर जब भी वह उस से शादी की बात करती, वह अंकल का बहाना बना कर टाल देता. आखिर ये अंकल थे कौन? इस का जवाब उस के पास नहीं था.

तभी माधवी को एहसास हुआ कि कोई उस के पीछेपीछे बहुत देर से चला आ रहा है. उस ने पीछे मुड़ कर देखा, तो एक बूढ़ा आदमी था.

माधवी ने ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर गुस्से से बोली, ‘‘आप मेरे पीछेपीछे क्यों चल रहे हैं?’’

‘‘मैं जानना चाहता हूं बेटी, जिस लड़के को तुम ने छोड़ा है, उस के बारे में क्या जानती हो?’’ उस बूढ़े ने यह सवाल पूछ कर चौंका दिया.

माधवी पलभर के लिए यह सोचती रही, ‘यह आदमी कौन है? और यह सवाल क्यों पूछ रहा है?’

कुछ देर तक माधवी कुछ जवाब नहीं दे सकी. तब उस बूढ़े ने फिर पूछा, ‘‘तुम ने जवाब नहीं दिया बेटी.’’

‘‘मगर, आप यह क्यों पूछना चाहते हैं बाबा?’’

‘‘इसलिए बेटी कि तुम्हारी जिंदगी बरबाद न हो जाए.’’

‘‘क्या मतलब है आप का? वह मेरा प्रेमी है और जल्दी ही हम शादी करने जा रहे हैं.’’

‘‘बेटी, मैं ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं, आड़ में रह कर…’’ वह बूढ़ा आदमी जरा खुल कर बोला, ‘‘जैसे ही तुम वहां से चली थीं, तभी से मैं तुम्हारे पीछेपीछे चला आ रहा हूं.

‘‘बेटी, जिस लड़के से तुम शादी करना चाहती हो, वह ठीक नहीं है.’’

‘‘यह आप कैसे कह सकते हैं?’’

‘‘क्योंकि मैं उस का बाप हूं.’’

‘‘इस बुढ़ापे में झूठ बोलते हुए आप को शर्म नहीं आती? क्यों हमारे प्यार के बीच दुश्मन बन कर खड़े हो गए,’’ झल्ला पड़ी माधवी.

‘‘मुझे तो सौरभ ने बताया है कि उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए. एक अंकल ने उन्हें पालापोसा और आप उस के बाप बन कर कहां से टपक पड़े?’’ माधवी गुस्से से बोली.

‘‘तुझे कैसे यकीन दिलाऊं बेटी…’’ उस बूढ़े की बात में दर्द था. वह आगे बोला, ‘‘मगर, मैं सच कह रहा हूं बेटी, सौरभ मेरा नालायक बेटा है, जिसे मैं ने अपनी जमीनजायदाद से भी कानूनन अलग कर दिया है.

‘‘वह तुम से शादी नहीं करेगा बेटी, बल्कि शादी के नाम पर तुम्हें कहीं ले जा कर किसी कोठे पर बेच देगा. सारे गैरकानूनी धंधे वह करता है. अफीम की तस्करी में वह जेल की हवा भी खा चुका है. तुम से प्यार का नाटक कर के तुम्हारे पिता को ब्लेकमैल करेगा.

‘‘जिसे तुम प्यार समझ रही हो, वह धोखा है. छोड़ दे उस नालायक का साथ. वहीं शादी कर बेटी, जहां तेरे पिता चाहते हैं.

‘‘एक बार फिर हाथ जोड़ कर कह रहा हूं कि बेटी, छोड़ दे उसे. मैं तुझे बरबादी के रास्ते से बचाना चाहता हूं.’’

इतना कह कर वह बूढ़ा रो पड़ा. माधवी को लगा कि कहीं बूढ़ा नाटक तो नहीं कर रहा है.

इतने में वह बूढ़ा आगे बोला, ‘‘बेटी, तुझे विश्वास न हो, तो घर जा कर सारे सुबूत मैं दिखा सकता हूं.’’

‘‘आप मेरे पिता समान हैं बाबा, झूठ नहीं बोलेंगे. मगर…’’ कह कर माधवी पलभर के लिए रुकी, तो वह बूढ़ा बोला, ‘‘मगर बेटी, न तुम मुझे जानती हो और न मैं तुम्हें जानता हूं. मगर जब मैं ने तुम को अपने नालायक बेटे के साथ देखा, तब मैं ने तुम्हें उस के चंगुल से छुड़ाने का सोच लिया. तभी से मैं ने तुम्हारे घर आने की योजना बनाई थी, ताकि तुम्हारे मांबाप को सारी हकीकत बता सकूं.

‘‘मेरा विश्वास करो, कहीं ऐसा न हो कि तुम प्यार में धोखा खा जाओ. मैं ने इसलिए पूछा था कि जिस लड़के से तुम प्यार करती हो, उसे अच्छी तरह परख लिया होगा. मगर तुम ने उस का केवल बाहरी रूप देखा है, भीतरी रूप तुम नहीं समझ सकी.’’

‘‘आप झूठ तो नहीं बोल रहे हैं बाबा? शायद आप मुझे अपनी बहू नहीं बनाना चाहते हैं. आप को भी दहेज वाली बहू चाहिए, इसलिए आप भी

मेरे और सौरभ के बीच दीवार खड़ी करना चाहते हैं,’’ माधवी ने यह सवाल पूछा.

‘‘तू अच्छे घराने की है. मैं तेरी जिंदगी बचाना चाहता हूं. मेरी बात पर यकीन कर बेटी. जिस के प्यार के जाल में तू उलझी हुई है, वह शिकारी एक दिन तुझे बेच देगा.’’

बाबा ने माधवी को बड़ी दुविधा में डाल दिया था. वे उसे सौरभ के अंधे प्रेमजाल से क्यों निकालना चाहते हैं? वह किसी अनजान आदमी की बातों को क्यों मान ले? उसे चुप देख कर बाबा फिर बोले, ‘‘क्या सोच रही हो बेटी?’’

‘‘मैं आप पर कैसे यकीन कर लूं कि आप सच कह रहे हैं. यह आप का नाटक भी तो हो सकता है?’’ एक बार माधवी फिर बोली, ‘‘मैं सौरभ का दिल नहीं तोड़ सकती हूं. इसलिए अगर आप मेरे पीछे आएंगे, तो मैं पुलिस में शिकायत कर दूंगी.’’

इतना कह कर बुरा सा मुंह बना कर माधवी चली गई. बूढ़ा चुपचाप वहीं खड़ा रह गया. कुछ दिनों बाद सौरभ ने माधवी को ऐसी जगह बुलाया, जहां से वे भाग कर किसी मंदिर में शादी करेंगे. वह भी अपनी तैयारी से तय जगह पर पहुंच गई. वहां सौरभ किसी दूसरे लड़के के साथ बात करता हुआ दिखाई दे रहा था. वह चुपचाप आड़ में रह कर सब सुनने लगी.

वह लड़का सौरभ से कह रहा था, ‘‘माधवी अभी तक नहीं आई.’’

‘‘वह अभी आने वाली है. अरे, इन 6-7 महीनों में मैं ने उस से प्यार कर के विश्वास जीता है. अब तो वह आंखें मूंद कर मुझे चाहती है. शादी के बहाने उसे ले जा कर चंपाबाई के कोठे पर बेच आऊंगा.’’

‘‘ठीक है, तुम अपनी योजना में कामयाब रहो,’’ कह कर वह लड़का दीवार फांद कर कूद गया. सौरभ बेचैनी से माधवी का इंतजार करने लगा. अब माधवी सौरभ की सचाई जान चुकी थी. इस समय उसे बाबा का चेहरा याद आ रहा था. बाबा ने जो कुछ कहा था, सच था. अब सौरभ के प्रति उसे नफरत हो गई.

सौरभ बेचैनी से टहल रहा था, मगर वह उस से नजर बचा कर बाहर निकल गई. वह सचमुच आज अंधे मोड़ से निकल गई थी.

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