एक और परिणीता : भाग 1

चपरासी तो इसलिए खुश हैं कि बाबुओं की तीमारदारी से उन्हें अब कुछ राहत मिलेगी. मेकैनिक खुश हैं कि शिवेन दत्त तकनीकी जानकारी रखते हैं और उन का चयन योग्यता के आधार पर हुआ है, किसी की सिफारिश से नहीं.

दूर संचार विभाग के मैनेजर पद पर आंखें तो बहुत से लोग गड़ाए बैठे थे मगर इन में से एक भी तकनीकी जानकारी नहीं रखता था और विभाग को ऐसे इंजीनियर की तलाश थी जो आज के तेज रफ्तार संचार माध्यमों का सही ढंग से संचालन कर सके. इसीलिए चयन कार्यक्रम में पूरी तरह से पारदर्शिता बरती गई.

दूर संचार विभाग में काम करने वाली महिलाओं का अपना एक संगठन भी था जिस की अध्यक्ष स्वर्णा कपूर थी. वह बोलती कम पर लिखती अधिक थी. आएदिन किसी न किसी पुरुषकर्मी की शिकायत लिख कर वह अधिकारी के पास भेजती रहती थी और पुरुषकर्मी अपना शिकायतीपत्र पी.ए. को कुछ दे कर हथिया लेते थे. कहने का मतलब यह कि स्वर्णा कपूर किसी का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकी.

नई झाड़ू जरा जोरदार सफाई करती है. इस कहावत को ध्यान में रखते हुए सभी पुरुषकर्मी कुछ अधिक चौकन्ने हो गए थे.

शिवेन दत्त ने स्वर्णा कपूर को पहली बार तब देखा जब वह लंबी छुट्टी मांगने उन के पास आई. साड़ी का पल्लू शौल की तरह लपेटे वह किसी मूर्ति की तरह मेज के पास जा खड़ी हुई. शिवेन दत्त खामोशी की उस मूर्ति को देखते ही हतप्रभ रह गए.

स्वर्णा पलकें झुकाए दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘अगर आप छुट्टी मंजूर नहीं करेंगे तो मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूंगी, क्योंकि मैं कभी छुट्टी नहीं लेती हूं.’’

शिवेन दत्त जैसे जाग पड़े, ‘‘तो फिर आज क्यों? और वह भी इतनी लंबी छुट्टी ली जा रही है?’’

‘‘एम.ए. फाइनल की परीक्षा देनी है मुझे.’’

शाम को काम खत्म कर शिवेन जाने लगे तो अपने पी.ए. से पूछ बैठे, ‘‘कब से हैं मिसेज कपूर यहां?’’

‘‘5 बरस तो हो ही गए हैं. पर सर, आप इन्हें मिसेज नहीं मिस कहिए.’’

‘‘शटअप,’’ शिवेन ने डांट दिया.

बचपन में मैनिंजाइटिस होने से स्वर्णा का मुंह टेढ़ा हो गया और जवानी में वह हताश व कुंठित थी, क्योंकि दोनों छोटी बहनों की शादी हो चुकी थी.

स्वर्णा को सितार सिखाने वाली महिला, जिसे पति की जगह दूर संचार विभाग में नौकरी मिली थी, ने स्वर्णा को दूर संचार विभाग में काम करने का रास्ता दिखाया और वह टेलीफोन आपरेटर बन गई.

शिवेन का अपने विभाग पर ऐसा दबदबा कायम हुआ कि हर बात में निंदा करने वाले भी अब उन की बात मानने लगे. यही नहीं, उन्होंने अपनी मेजकुरसी हाल में ही एक ओर लगवा ली ताकि सब को उन के होने का एहसास बना रहे. उन से खार खाने वाले अधेड़ उम्र के सहकर्मी भी उन के विनम्र स्वभाव से दब गए.

3 महीने पलक झपकते ही निकल गए. स्वर्णा जब लौट कर दफ्तर आई तो किसी पुराने मनचले ने फब्ती कसी, ‘‘डिगरी पर डिगरी लिए जाओ, बरात नहीं आने वाली.’’

इस फब्ती से प्रथम श्रेणी में डिगरी हासिल करने का गर्व व खुशी मटियामेट हो गई. स्वर्णा ने एक बार फिर अपने आंसू पी लिए.

शिवेन के पी.ए. ने जा कर जब यह छिछोरा व्यंग्य उन्हें सुनाया तो वह भी तिलमिला पड़े पर वह जानते थे कि स्वर्णा उन से कहने नहीं आएगी.

अगली बार वह स्वर्णा के सामने से गुजरे तो अनायास रुक गए और एक अभिभावक की तरह उन्होंने नम्र स्वर में पूछा, ‘‘पास हो गईं?’’

‘‘जी,’’ स्वर्णा ने गरदन नीची किए ही उत्तर दिया.

‘‘मिठाई नहीं खिलाओगी?’’

‘‘जी, पापाजी से कह दूंगी.’’

अगले दिन स्वर्णा मिठाई का कटोरदान ले कर शिवेन की मेज के सामने जा खड़ी हुई तो वह कुछ झेंप से गए.

‘‘अरे, आप…मैं ने तो यों ही कह दिया था.’’

‘‘मैं ने खुद बनाए हैं,’’ स्वर्णा उत्साह से बोली.

शिवेन ने 1 लड्डू उठा लिया और कहा कि बाकी लड्डुओं को अपने सहकर्मियों में बांट दो.

इस के कुछ दिन बाद ही सरकारी आदेश आया कि रात की ड्यूटी के लिए कुछ टेलीफोन आपरेटर रखे जाएंगे जिन्हें तनख्वाह के अलावा अलग से भत्ता मिलेगा. मौजूदा कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाएगी. स्वर्णा ने रात की शिफ्ट में काम करने का मन बनाया तो मिसेज ठाकुर भी उस के साथ हो लीं. तय हुआ कि रात को आते समय दफ्तर के ही सरकारी चौकीदार को कुछ रुपए महीना दे देंगी ताकि वह उन को घर तक छोड़ जाया करेगा. यह सबकुछ इतना गोपनीय ढंग से हुआ कि विभाग में किसी को पता ही नहीं चला.

Monsoon Special: वह पूनम की रात

तंत्र मंत्र का खेला – भाग 1 : बाबा के जाल से निकल पाए सुजाता और शैलेश

‘‘यह क्या है शैलेश? तुम्हें मना किया था न कि अगली बार लेट होने पर क्लास में एंट्री नहीं मिलेगी,’’ प्रोफैसर महेंद्र सिंह गुस्से से चीख उठे.

‘‘सौरी सर, आज आखिरी दिन था मजार में हाजिरी लगाने का, आज 40 दिन पूरे हो गए हैं, कल से मैं समय से पहले ही हाजिरी दर्ज करा लूंगा.’’

‘‘यह क्या मजार का चक्कर लगाते रहते हो? इतना पढ़नेलिखने के बाद भी अंधविश्वासी बने हो,’’ प्रोफैसर ने व्यंग्य किया.

‘‘सर, ऐसा न कहिए,’’ एक छात्र बोल उठा. ‘‘सर, आप को रेलवे स्टेशन पर बनी मजार की ताकत का अंदाजा नहीं है,’’ दूसरे छात्र ने हां में हां मिलाई. ‘‘सर, आप ने देखा नहीं, मजार 2 प्लेटफौर्म्स के बीच में बनी है, तीसरे, चौथे, 5वें प्लेटफौर्म्स जगह छोड़ कर बनाए गए हैं,’’ एक कोने से आवाज आई.

‘‘सर, अंगरेजों के जमाने से ही इस मजार का बहुत नाम है, 40 दिनों की नियम से हाजिरी लगाने पर हर मनोकामना पूरी हो जाती है,’’ किसी छात्र ने ज्ञान बघारा.

आज भौतिकी की क्लास में मजार का पूरा इतिहासभूगोल ही चर्चा का विषय बना रहा. प्रोफैसर भी इस वार्त्तालाप को सुनते रहे.

महेंद्र सिंह का पूरा छात्रजीवन व नौकरी के शुरू के वर्ष भोपाल में बीते हैं. पिछले वर्ष उन्हें इस छोटे से जिले से प्रोफैसर का औफर आया तो वे अपनी पत्नी को ले कर इस कसबेनुमा जिले परसिया में चले आए, जहां सुविधा व स्वास्थ्य के मूलभूत साधन भी उपलब्ध नहीं हैं. इस कसबे को जिले में बदलने के 5 वर्ष ही हुए हैं, इसलिए विकास के नाम पर तहसील, जिला अस्पताल व सड़कों का विस्तार कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है.

सरकारी अस्पताल में जरूरी उपकरण और विशेषज्ञ डाक्टर्स की कमी बनी हुई है. बेतरतीब तरीकों से बने मकानों के बीच में, कहींकहीं सड़कें बन गई हैं तो सीवर और नाली का अभी कोईर् अतापता नहीं है.

आसपास के गांवों के समर्थ लोग इस शहर में मकान बना कर रहने तो लगे हैं पर मानसिकता और आचरण से वे

अभी भी गंवई विचारधारा से जुड़े हैं. केवल 3 से 4 किलोमीटर के दायरे में इस कसबेनुमा शहर की हद सिमट कर रह गई है. इस दायरे से बाहर नदी है, जंगल हैं और हैं शुद्ध प्राकृतिक हवा के संग हरेभरे खेतखलिहान के नजारे. जो भी बैंक, तहसील व दूसरे विभागों से ट्रांसफर हो कर, दूरदराज से यहां आते हैं, वे अच्छे बाजार, संचार साधनों की असुविधा, यातायात के साधनों की कमी से उकता कर जल्दी ही इस जगह से भाग जाना चाहते हैं.

नए खुले आईटीआई में महेंद्र सिंह को उन के अनुभव के आधार पर प्रोफैसर के पद का औफर मिला, तो वे मना न कर सके और भोपाल के अपने संयुक्त परिवार को छोड़ कर अपनी पत्नी को साथ लिए यहां चले आए. पत्नी सुजाता बेहद आधुनिक व उच्च शिक्षित है, इसीलिए कभीकभार वह भी कालेज में गैस्ट फैकल्टी बन क्लास लेने आ जाती.

सुजाता जब भी कालेज में आती, छात्रों की बांछें खिल जातीं. वैसे तो यह कोएड इंस्टिट्यूट है किंतु लड़कियों की संख्या उंगलियों में गिनी जा सकती है. लड़कियां साधारण ढंग से तैयार हो कर कालेज आती हैं. फैशन से उन का दूरदूर तक कोई नाता नहीं हैं. बस, बालों की खजूरी चोटी या पफ उठा बाल बना भर लेने से उन का शौक पूरा हो जाता है.

नीले कुरते और सफेद सलवारदुपट्टा डाले 18 से 20 वर्षीया सहपाठिनों के सामने 35 वर्षीया सुजाता भारी पड़ती. नाभि दिखने वाली साड़ी, खुले और करीने से कटे बाल, गहरी लिपस्टिक से सजे होंठ और आंखों में गहरा काजल सजाए वह जब भी क्लास लेने आती, लड़कों में मैम को प्रभावित करने की होड़ मच जाती. वे उसे फिल्मी हीरोइन से कम न समझते.

महेंद्र सिंह अपने साथी शिक्षकों के बीच गर्व से गरदन अकड़ा कर घूमते, मानो चुनौती सी देते हों कि मेरी बीवी से बढ़ कर तुम्हारी बीवियां हैं क्या. साथी शिक्षक पीठ पीछे सुजाता और महेंद्र का मजाक बनाते, मगर उन के सामने उन की जोड़ी की तारीफ में कसीदे काढ़ते.

उस दिन महेंद्र जब घर लौटे तो चाय पीते हुए, दिनभर की चर्चा में मजार का जिक्र करना न भूले. यह सुनते ही निसंतान सुजाता की आंखें एक आस से चमक उठीं कि हो सकता है कि इसीलिए ही समय उसे यहां परसिया खींच लाया है.

सुजाता जितनी वेशभूषा से  आधुनिक थी उतनी ही धार्मिक  थी. आएदिन घर में महिलाओं को बुला कर धार्मिक कार्यक्रम करवाना उस की दिनचर्या में शामिल था. इसी वजह से वह अपने महल्ले वालों में काफी लोकप्रिय हो गईर् थी.

आसपास के मकानों में ज्यादातर नजदीकी गांव से आ कर बसने वाले परिवार थे. वे दोचार सालों के भीतर ही परसिया में अपने छोटेबड़े बच्चों को पढ़ाने के लिए घर बना कर रहने आ गए थे. उन में से कुछ पंडित, कुछ पटेल तो एकदो राठौर परिवार थे.

Monsoon Special: जरूरी हैं दूरियां, पास आने के लिए -भाग 1

फ्लाइट बैंगलुरु पहुंचने ही वाली थी, विहान पूरे रास्ते किसी कठिन फैसले को लेने में उलझा हुआ था, इसी बीच मोबाइल पर आते उस नंबर को भी वह लगातार इग्नोर करता रहा.

अब नहीं सींच सकता था वो प्यार के उस पौधे को, उस का मुरझा जाना ही बेहतर है. इसलिए जितना मुमकिन हो सका, उस ने मिशिका को अपनी फोन मैमोरी से रिमूव कर दिया. मुमकिन नहीं था यादों को मिटाना, नहीं तो आज वो उसे दिल की मैमोरी से भी डिलीट कर देता सदा के लिए.

‘‘सदा के लिए… नहींनहीं… हमेशा के लिए नहीं, मैं मिशी को एक मौका और दूंगा,‘‘ विहान मिशी के दूर होने के खयाल से ही डर गया.

‘‘शायद, ये दूरियां ही हमें पास ले आएं,‘‘ बस यही सोच कर उस ने मिशी की लास्ट फोटो भी डिलीट कर दी.

इधर मिशिका परेशान हो गई थी, 5 दिन से विहान से कोई कौंटेक्ट नहीं हुआ था.

‘‘हैलो दी, विहान से बात हुई क्या? उस का ना मोबाइल फोन लग रहा है और ना ही कोई मैसेज पहुंच रहा है. औफिस में एक दिक्कत आ गई है. जरूरी बात करनी है,‘‘ मिशी बिना रुके बोलती गई.

‘‘नहीं, मेरी कोई बात नहीं हुई, और दिक्कत को खुद ही सुलटाना सीखो,‘‘ पूजा ने इतना कह कर फोन काट दिया.

मिशी को दी का ये रवैया अच्छा नहीं लगा, पर वह बेपरवाह सी तो हमेशा से ही थीं तो उस ने दी की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

मिशिका (मिशी) मुंबई में एक कंपनी में जौब करती है. उस की बड़ी बहन है पूजा, जो अपने मौमडैड के साथ रहते हुए कालेज में पढ़ाती है. विहान ने अभी बैंगलुरु में नई मल्टीनेशनल कंपनी ज्वाइन की है, उस की बहन संजना अभी स्टडी कर रही है. मिशी और विहान के परिवारों में बड़ा प्रेम है. वे पड़ोसी थे. विहान का घर मिशी के घर से कुछ ही दूरी पर था. दो परिवार होते हुए भी वे एक परिवार जैसे ही थे. चारों बच्चे साथसाथ बड़े हुए.

गुजरते दिनों के साथ मिशी की बेपरवाही कम होने लगी थी. विहान से बात न हुए आज पूरे 3 महीने बीत गए थे. मिशी को खालीपन लगने लगा था. बचपन से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था. जब पास थे तो वे दिन में कितनी ही बार मिलते थे, और जब जौब के कारण दूर हुए तो फोन और चैट का हिसाब लगाना भी आसान काम न था.

2-3 महीने गुजरने के बाद मिशी को विहान की बहुत याद सताने लगी थी. वह जब भी घर पर फोन करती, तो मम्मीपापा, दीदी सभी से विहान के बारे में पूछती, आंटीअंकल से बात होती, तब भी… जवाब एक ही मिलता…वह तो ठीक है, पर तुम दोनों की बात नहीं हुई, ये कैसे मुमकिन है. अकसर जब मिशी कहती कि महीनों से बात नहीं हुई, तो सब झूठ ही समझते थे.

दशहरा आ रहा था, मिशी जितनी खुश घर जाने को थी, उस से कहीं ज्यादा खुश यह सोच कर थी कि अब विहान से मुलाकात होगी. इन छुट्टियों में वह भी तो आएगा.

‘‘बहुत झगड़ा करूंगी, पूछूंगी उस से, ये क्या बचपना है, अच्छी खबर लूंगी, क्या समझता है अपनेआप को… ऐसे कोई करता है क्या?‘‘ ऐसे ही अनगिनत बातों को दिल में समेटे वह घर पहुंची. त्योहार की रौनक मिशी की उदासी कम ना कर सकी. छुट्टियां खत्म हो गईं. वापसी का समय आ गया, पर नहीं आया तो वह, जिस का मिशी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों घरों की दूरियां नापते मिशी को दिल की दूरियों का अहसास होने लगा था. अब इंतजार के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं था.

मिशी दीवाली की शाम ही घर पहुंच पाई थी. लक्ष्मी पूजन के बाद डिनर की तैयारियां चल रही थीं. त्योहारों पर दोनों फैमिली साथ ही समय बिताती गपशप, मस्ती, खाना, सब खूब ऐंजौय करते थे.

आज विहान की फैमिली आने वाली थी. मिशी खुशी से झूम उठी थी. आज तो विहान से बात हो ही जाएगी. पर उस रात जो हुआ उस का मिशी को अंदाजा भी नहीं था. दोनों परिवारों ने सहमति से पूजा और विहान का रिश्ता तय कर दिया. मिशी को छोड़ सभी बहुत खुश थे.

 

हमें तुम से प्यार कितना : भाग 3

मधु को यह बात कभीकभी परेशान करती थी कि अंशू कभी नहीं चाहेगा कि वह एक बच्चे को जन्म दे और वह बच्चा अंशू की ईर्ष्या का पात्र बन जाए. उस ने सोच रखा था कि वह उचित समय पर आलोक से इस विषय पर बात करेगी. वैसे, अंशू ने उसे इतना आदर और प्यार दिया जिस ने उसे भरपूर मां की ममता और सुख का एहसास करा दिया.

दोनों के बीच जो स्नेह और ममता का रिश्ता बन गया था वह बहुत मजबूत था. मधु को लगा, अंशू उसे पूरी तरह मां के रूप में मान चुका है और अगले वर्ष अपना बर्थडे बहुत धूमधाम से मनाना चाहेगा. वह बहुत खुश हुई जब अंशू ने उस से कहा, ‘‘मम्मा, सब बच्चे अपना बर्थडे दोस्तों के साथ हर साल मनाते हैं. मैं भी अपने क्लासमेट के साथ इस साल बर्थडे मनाना चाहता हूं.’’

फिर क्या था, आलोक और मधु ने घर पर ही उस का बर्थडे मनाने का इंतजाम कर दिया. ढेर सारे व्यंजन, डांस के फोटोशूट और केक के साथ बड़ी धूमधाम से उस का बर्थडे मनाया गया.

अंशू का लालनपालन मधु ने उस की हर भावना के क्षणों में अपने को मनोचिकित्सक मान कर किया जिस के सकारात्मक परिणाम ने हमेशा उसे हौसला दिया.

शादी के 6-7 साल पलक झपकते ही मधु के अंशू के साथ इस तरह गुजरे कि वह वैवाहिक जीवन के हर सुख की हकदार बन गई. मां बनने का हर सुख उसे महसूस हो चुका था.  अंशू के नैराश्य और मां की कमी की स्थिति से बाहर आने का श्रेय घर के हर सदस्य को था.

मधु ने आलोक को पति के रूप में स्वीकार करते समय यह सोचा था, आलोक अपनी पत्नी सुहानी को खोने के बाद उसे अपने घर में सम्मान और प्यारभरी जिंदगी जरूर दे सकेगा. उसे अंशू की मां के रूप में उस की सख्त जरूरत है. पहली नजर में, उस से मिलने पर उसे अपने सारे सपने साकार होते हुए जान पड़े. तभी तो उस ने ‘आई लव यू’ कहने के स्थान पर खुश हो कर उस से कहा था, ‘आलोक, तुम हर तरह से मेरे जीवनसाथी बनने के काबिल हो.’ तब वह उस के शादीशुदा होने के बैकग्राउंड से बिलकुल अनभिज्ञ थी.

7 वर्षों बाद, एक दिन जब अंशू स्कूल से घर लौटा तो उस के हाथ में एक बैग था. वह बहुत खुश दिखाई दे रहा था. मधु मां को उस ने गले लगा लिया और बताया, ‘‘मम्मा, मैं क्लास में फर्स्ट आया हूं. कई ऐक्टिविटीज में मुझे ट्रौफियां मिली हैं. पिं्रसिपल सर कह रहे थे यह सब मुझे अच्छी मां के कारण ही मिला है.’’ थोड़ी देर चुप रहने के पश्चात वह भावुक हो गया, बोला, ‘‘मम्मा, मैं एक बार सुहानी मां की फोटो, जो मैं ने छिपा कर रख ली थी, उसे देख लूं.’’

मधु ने कहा, ‘‘हां, क्यों नहीं, ले आओ. हम सब उस फोटो को देखेंगे.’’ मधु की आंखों से आंसू छलक पड़े थे. भावुक हो कर उस ने कहा, ‘‘अंशू, मैं ने कहा था न, तुम्हारी मां सुहानी हर समय तुम्हारे आसपास होती हैं.  अब तुम कभी उदास मत होना. सुहानी मां भी यही चाहती हैं तुम हमेशा खुश रहो.’’

उस रात आलोक ने मधु को अपनी बांहों में ले कर जीभर प्यार किया. इन भावुकताभरे लमहों में मधु ने आलोक को अपना फैसला सुनाते हुए अपील की, ‘‘आलोक, इतना आसान नहीं था मेरे लिए अब तक का सफर तय करना. तुम्हारा साथ मिला तो यह सफर आसान हो गया. मुझ से वादा करोगे कि कमजोर से कमजोर क्षणों में तुम मुझे मां बनाने की कोशिश नहीं करोगे. अंशू से मुझे पूरा मातृत्व सुख हासिल हो चुका है. मैं उस के प्रतिद्वंद्वी के रूप में कोई और संतान पैदा नहीं करना चाहती.’’

एक और परिणीता : भाग 2

स्वर्णा को अपनी जगह न देख कर शिवेन ने पूछताछ की तो पता चला कि स्वर्णा और मिसेज ठाकुर ने शाम की शिफ्ट ली है. उस रात जब दोनों ड्यूटी खत्म कर बाहर निकलीं तो जहां उन का रिकशा और चपरासी खड़ा होता था वहां शिवेन अपनी जीप ले कर खुद खड़े थे. दोनों को जीप में बैठने का आदेश दिया और खुद चालक की सीट पर बैठ कर जीप चलाने लगे. पहले स्वर्णा को उस के घर छोड़ा फिर मिसेज ठाकुर जब अकेली रह गईं तो उन्हें आड़े हाथों लिया.

अपनी सफाई में मिसेज ठाकुर ने सारा सच उगल दिया.

‘‘सर, आप समझने की कोशिश कीजिए. दफ्तर के लोगों ने स्वर्णा का जीना दूभर कर दिया था. कौन क्या कहता है आप को शायद इस का आभास नहीं है.’’

‘‘एक कुंआरी लड़की का रात को बाहर अकेले काम पर जाना क्या ठीक है?’’

‘‘नहीं, मगर यहां उसे कोई छेड़ता तो नहीं है. रामदेवजी बाप की तरह उसे स्नेह देते हैं. मैं उस के साथ हूं. रिकशे वाले को मैं पिछले 15 साल से जानती हूं.’’

‘‘अच्छा, आप लोगों को रात के समय घर छोड़ने के लिए कल से आरिफ रोज जीप ले कर आएगा,’’ शिवेन बोले, ‘‘कुछ ही दिनों में मैं आप लोगों के लिए एक वैन का इंतजाम करा दूंगा.’’

कभीकभी शिवेन विभाग में दौरा करने आते तो स्वर्णा से हालचाल पूछ लेते. धीरेधीरे शिवेन स्वर्णा से इधरउधर की भी बातें करने लगे. मसलन, कौनकौन से लेखक तुम्हें पसंद हैं, कहांकहां घूमी हो, क्याक्या तुम्हारी अभिरुचि है.

स्वर्णा उत्तर देने में झिझकती. मिसेज ठाकुर ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘मित्रता बुरी नहीं होती. बातचीत से आत्मविश्वास पनपता है.’’

एक दिन रामदेव ने कहा, ‘‘बेटी, शिवेन को तुम्हारी बड़ी चिंता रहती है,’’ और उस पर गहरी नजर डाल दी.

स्वर्णा संभल गई. अगली बार जब शिवेन उस के पास बैठ कर शहर में लगी फिल्मों की बात करने लगे तो वह झुंझला कर बोली, ‘‘सर, मेरे पास इतना समय नहीं है कि फिल्में देखती फिरूं.’’

उस की इस बेरुखी से शिवेन शर्मिदा हो चुपचाप वहां से हट गए.

स्वर्णा का मन फिर काम में नहीं लगा. अनमनी सी सोचने लगी कि सब तो उस के चेहरे का इतिहास पूछते हैं, फिर सहानुभूति जताते हैं और उस के अंदर की वेदना को जगा कर अपना मनोरंजन करते हैं. लेकिन इस व्यक्ति ने कभी भी उस से वह सबकुछ नहीं पूछा जो और लोग पूछते हैं.

शिवेन फिर दिखाई नहीं दिए. अगर आते भी थे तो रामदेव से औपचारिक पूछताछ कर के चले जाते थे.

उधर स्वर्णा की बेचैनी बढ़ने लगी. हर रोज उस की आंखें बारबार दरवाजे की ओर उठ जातीं. इतने सरल, स्वच्छ इनसान पर उस ने यह कैसा वार किया. क्या बुरा था. दो बातें ही तो वह करते थे. हंसनामुसकराना जुर्म है क्या. वह तो उस के संग हंसते थे न कि उस पर.

अपने ही अंतर्द्वंद्व में उलझी स्वर्णा को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो एक दिन बिना किसी को कुछ बताए उस ने एक छोटा सा पत्र लिख कर डाक द्वारा शिवेन को भिजवा दिया.

कई दिनों तक कोई उत्तर नहीं आया. फिर एक पत्र उस के घर के पते पर सरकारी लिफाफे में आया जिस में उसे एक नए पद के साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था.

दिल्ली से आए 3 उच्च अधिकारियों ने उस का साक्षात्कार लिया और वह सहायक प्रबंधक के रूप में चुन ली गई.

शिवेन के सामने वाले कमरे में अब उस की मेज लगा दी गई थी. उसे प्रबंधन व नियंत्रण की सारी जानकारी शिवेन स्वयं देने लगे. वह एक चतुर शिष्या की तरह सब ग्रहण करती गई.

ऊपर से भले ही सबकुछ शांत था पर अंदर ही अंदर इस नई नियुक्ति को ले कर दफ्तर में काफी उथलपुथल थी. आतेजाते किसी ने वही पुराना राग छेड़ दिया, ‘‘यार, नया न सही, 4 बच्चों वाला ही सही.’’

स्वर्णा तिलमिला कर रह गई. घर आने के बाद रोरो कर उस ने अपनी आंखें सुजा लीं.

दशहरे पर शिवेन ने 15 दिन की छुट्टी ली तो उन की गैरमौजूदगी में स्वर्णा बिना किसी सहायता के विभाग सुचारु रूप से चलाती रही.

इसी दौरान एक दिन घर पर शिवेन का फोन आया. दफ्तर के बाबत औपचारिक बातें करने के बाद उसे बाजार की एक बड़ी दुकान के बाहर मिलने को कहा. स्वर्णा ने घर में किसी को कुछ नहीं बताया और मिलने चली गई.

शिवेन ने उस की पसंद से अपनी मां और बहन के लिए कपड़ों की खरीदारी की. फिर दोनों एक रेस्तरां में बैठ कर इधरउधर की बातें करते रहे.

बातों के सिलसिले में ही स्वर्णा पूछ बैठी, ‘‘बच्चों के लिए कुछ नहीं लिया आप ने?’’

‘‘नहीं,’’ शिवेन एकदम खिलखिला कर हंस दिए और बोले, ‘‘किस के बच्चे? मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है.’’

स्वर्णा अविश्वास से बोली, ‘‘दफ्तर में तो सब कहते हैं कि आप 4 बच्चों के बाप हैं.’’

‘‘स्वर्णा, मेरी उम्र 36 साल हो गई है पर मैं कुंआरा हूं. अगर एक 30 साल की स्त्री कुंआरी हो तो लोग कहते हैं कि किसी ने उसे पसंद नहीं किया. मगर एक पुरुष अविवाहित रहे तो जानती हो लोग उस के विषय में क्या सोचते हैं…मैं शादीशुदा हूं यही भ्रम बना रहे तो अच्छा है.’’

शिवेन ने अपना हृदय खोल कर रख दिया था और स्वर्णा जीवन में पहली बार किसी की राजदार बनी थी.

2 दिन बाद शिवेन ने स्वर्णा को अपने साथ सिनेमा देखने के लिए आमंत्रित किया. इस बार भी वह घर से बहाना बना कर शिवेन के साथ चली गई. यद्यपि इस तरह घर वालों से झूठ बोल कर जाने पर उस के मन ने उसे धिक्कारा था मगर इस खतरे में बाजी जीत जाने का स्वाद भी था.

कोई उसे भी चाह रहा था, यह एहसास होते ही उस के सपने अंगड़ाई लेने लगे थे. वह सुबह उठती तो अपनी उनींदी मुसकान उसे समेटनी पड़ती. कहीं कोई कुछ पूछ न ले.

 

Monsoon Special: जरूरी हैं दूरियां, पास आने के लिए -भाग 3

मिशी की आंखें उस लड़की को ढूंढ़ रही थीं, जिसे मिलवाने के लिए विहान उसे यहां ले कर आया था.

‘‘नाराज हो कर चली गई वह,‘‘ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.

‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?‘‘ मिशी ने पूछा.

‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की अगर देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,‘‘ विहान ने पूरे नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘मैं ने… मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,‘‘ मिशी सकपका कर बोली.

‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.‘‘

यह सुन कर उस ने अपनी नजरें झुका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी, फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.‘‘

‘‘अच्छा बाबा… नहीं लिखा,‘‘ विहान ने मुसकरा कर कहा.

मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि ये हो क्या रहा है…

‘‘और… और वह लड़की, जिस से मिलवाने के लिए तुम मुझे यहां ले कर आए थे. सच बताओ ना विहान…‘‘

‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा. नजरें मिलते ही मिशी भी नजरें चुराने लगी.

‘‘मिशी, मत छुपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो.’’

मिशी की जबान खामोश थी, पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था, पर वह ये सब मिशी से जानना चाहता था.

मिशी कुछ देर चुप रही. दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही, ऐसा ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया. कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी.’’
इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी…
‘‘मिशी… आज भी चुप रहोगी… बह जाने दो अपने जज्बातों को… जो भी दिल में है कहो… तुम नहीं जानती कि मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है…

‘‘मिशी बताओ… प्यार करती हो मुझ से…’’

मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के इमोशंस उस की आंखों में साफ नजर आ रहे थे… होंठ कंपकंपा रहे थे…
‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना, सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,‘‘ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.

विहान ने उस के आंसू पोंछे और मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया… मैं ने वर्षों किया है… जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरी हो… वह मैं ने आज तक सही है…

‘‘मिशी, तुम मेरे लिए तब से खास हो, जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था, तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते.
‘‘पर मिशी, वह मैं ही होता था… हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए ये सब करता था… तुम कभी जान ही नहीं पाई,‘‘ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.

‘‘जानती हो… जब हम साथ पढ़ाई करते थे, तब भी मैं टौपिक समझ ना आने के बहाने से देर तक बैठा रहता, तुम मुझे बारबार समझाती, पर मैं नादान बना बैठा रहता सिर्फ तुम्हारा साथ पाने की चाह में…

‘‘जब छुट्टियों में बच्चे बाहर अलगअलग ऐक्टिविटी करते, तब भी मैं तुम्हारी पसंद के हिसाब से काम करता था, ताकि तुम्हारा साथ रहे.’’

‘‘विहान… तुम,’’ मिशी ने अचरज से कहा.

‘‘अभी तुम बस सुनो… मुझे और मेरे दिल की आवाज को… याद है मिशी, जब हम 12जी में थे, तुम मुझे कहती.. क्यों विहान गर्लफ्रैंड नहीं बनाई.. मेरी तो सब सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं.. मंर पूछता तो तुम्हारा भी है… तुम हंस देती… हट पागल, मुझे तो पढ़ाई करनी है… फिर मस्त जौब… पर, विहान तुम्हारी गर्लफ्रैंड होनी चाहिए…’’ इतना कह कर तुम मुझे अपनी कुछ सहेलियों की खूबियां गिनवाने लगतीं. मेरा मन करता कि तुम्हें झकझोर कर कहूं कि तुम हो तो… पर नहीं कह सका.

‘‘और तुम्हें जो अपने हर बर्थडे पर जिस सरप्राइज का सब से ज्यादा इंतजार होता है … वो देने वाला मैं ही था… बचपन में जब तुम्हारी फेवरेट टौफी तुम्हारे पंेसिल बौक्स में मिलती, तो तुम बेहद खुश हुई थीं…

‘‘अगली बार भी जब मैं ने तुम को सरप्राइज किया, तब तुम ने कहा था, ‘‘विहान, पता नहीं कौन है… मौमडैड, दी या मेरी कोई फ्रैंड, पर मेरी इच्छा है कि मुझे हमेशा ये सरप्राइज गिफ्ट मिले. तुम ने सब के नाम लिए, पर मेरा नहीं,‘‘ कहतेकहते विहान की आवाज लड़खड़ा सी गई, फिर भर आए गले को साफ कर वह आगे बोला, ‘‘तब से हर बार मैं ये करता गया… पहले पेंसिल बौक्स था, फिर बैग… फिर तुम्हारा पर्स… और अब कुरियर.‘‘

सच जान कर मिशी जैसे सुन्न हो गई… वह हर बात विहान से शेयर करती थी. पर, कभी ये नहीं सोचा था कि विहान भी तो वह शख्स हो सकता है. उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

रात गहरा चुकी थी, चांद… स्याह रात के माथे पर बिंदी बन कर चमक रहा था. तेज हवा और लहरों के शोर में मिशी के जोर से धड़कते दिल की आवाज भी मिल रही थी. विहान आज वर्षों से छुपे प्रेम की परतें खोल रहा था.

वह आगे बोला, ‘‘मिशी, उस दिन तो जैसे मैं हार गया था, जब मैं ने तुम से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है… मैं ने बहुत हिम्मत कर के अपने प्यार का इजहार करने के लिए यह प्लान बनाया था… मैं ने धड़कते दिल से कहा… दिखाऊं फोटो… तो तुम ने झट से मेरा मोबाइल छीना… और जैसे ही फोटो देखा, तुम्हार रिएक्शन देख कर मैं ठगा सा रह गया… लगा, यहां मेरा कुछ नहीं होने वाला… पगली से प्यार कर बैठा.’’

इतना कह कर उस ने मिशी से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें याद है, उस दिन तुम ने क्या किया था?‘‘

‘‘हां… हां, तुम्हारे मोबाइल में मुझे अपना फोटो दिखा, तो मैं ने कहा… कब लिया ये फोटो… बहुत प्यारा है…‘‘ और मैं उस पिक में खो गई, सोशल मीडिया पर शेयर करने लगी. तुम्हारी गर्लफ्रैंड वाली बात तो मेरे दिमाग से गायब ही हो गई थी.
‘‘जी मैडम… जी… मैं तुम्हारी लाइफ में इस हद तक जुड़ा रहा कि तुम मुझे कभी अलग से फील कर ही नहीं पाई.’’
‘‘ऐसा कितनी बार हुआ, पर तुम अपनेआप में थी, अपने सपनों में, किसी और बात के लिए शायद तुम्हारे पास टाइम ही नहीं था, यहां तक कि अपने जज्बातों को समझने के लिए भी नही…‘‘ विहान कहता जा रहा था.
मिशी जोर से अपनी मुट्ठियाँ भींचती हुई अपनी बेवकूफियों का हिसाब लगा रही थी.

इस तरह विहान ना जाने कितनी छोटीबड़ी बातें बताता रहा और मिशी सिर झुकाए सुनती रही..

मिशी का गला रुंध गया… विहान इतना प्यार कोई किसी से कैसे कर सकता है…. और तब तो बिलकुल नहीं… जब उसे कोई समझने वाला ही ना हो… कितना कुछ दबा रखा है तुम ने…. मेरे साथ की छोटी से छोटी बातें कितनी सिद्दत से सहेज कर रखी हैं तुम ने ‘‘

‘‘अरे… पागल.. रोते नहीं… और ये किस ने कहा कि तुम मुझे समझती नहीं थी… मैं तो हमेशा तुम्हारा सब से करीबी रहा… इसलिए प्यार का अहसास कहीं गुम हो गया था.‘‘

‘‘और इस हकीकत को सामने लाने के लिए…. मैं ने खुद को तुम से दूर करने का फैसला किया… कई बार दूरियां नजदीकियों के लिए बहुत जरूरी हो जाती हैं. मुझे लगा कि मेरा प्यार सच्चा होगा, तो तुम तक मेरी ‘सदा‘ जरूर पहुंचेगी, नहीं तो मुझे आगे बढ़ना होगा… तुम को छोड़ कर.‘‘
‘‘मैं कितनी मतलबी थी…’’
‘‘ना बाबा… ना, तुम बहुत प्यारी हो, तब भी थीं और अब भी हो.’’

मिशी के रोते चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई… वह धीरे से विहान के कंधे पर अपना सिर टिकाने को बढ़ ही रही थी कि अचानक उसे कुछ याद आया… वह एकदम उठ खड़ी हुई…

‘‘क्या हुआ… मिशी?’’

‘‘ये सब गलत है…’’

‘‘क्यों गलत है?’’

‘‘तुम और पूजा दी…?’’

‘‘मैं और पूजा…’’ कह कर विहान हंस पड़ा.

‘‘तुम हंस क्यों रहे हो?’’

‘‘मिशी, मेरी प्यारी मिशी….. मुझे जैसे ही पूजा और मेरी शादी की बात पता चली, तो मैं पूजा से मिला और तुम्हारे बारे में बताया…’’ सुन कर पूजा भी खुश हुई. उस का कहना था कि विहान हो या कोई और उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता…. मम्मीपापा जहां चाहेंगे, वह खुशीखुशी वहां शादी कर लेगी… फिर हम दोनों ने सारी बात घर पर बता दी… किसी को कोई दिक्कत नहीं है… अब इंतजार है तो तुम्हारे जवाब का…

इतना सुनते ही मिशी को तो जैसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई… अब ना कोई शिकायत बची थी… ना सवाल…

‘‘बोलो मिशी… मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूं,‘‘ विहान ने बेचैनी से कहा.

‘‘मेरे चेहरे पर बिखरी खुशी देखने के बाद भी तुम को जवाब चाहिए,‘‘ मिशी ने नजरें झुका कर बड़े ही भोलेपन से कहा.

‘‘नहीं मिशी, जवाब तो मुझे उसी दिन मिल गया था.. जब मैं तुम्हारे घर आया था. पहले वाली मिशी होती तो बोलबोल कर, सवाल पूछपूछ कर… झगड़ा कर के मुझे भूखा ही भगा देती…’’ कह कर विहान जोर से हंस पड़ा.

‘‘अच्छा… मैं इतनी बकबक करती हूं,‘‘मिशी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘हां… पर, न तुम झगड़ीं और न ही कुछ बोलीं… बस, देखती रही मुझे… ख्वाब बुनती रहीं… मेरे वजूद को महसूस करती रही… उसी दिन मैं समझ गया था कि जिस मिशी को पाने के लिए मैं ने उसे खोने का गम सहा, ये वही है… मेरी मिशी… सिर्फ मेरी मिशी,‘‘ विहान ने मिशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

मिशी ने भी विहान का हाथ जोर से थाम लिया, हमेशा के लिए. वे हाथों में हाथ लिए चल दिए… जिंदगी के नए सफर पर साथसाथ… कभी जुदा ना होने के लिए… आसमां, चांदतारे और चांदनी के प्रेम में सराबोर लहलहाता समुद्र उन के प्रेम के साक्षी बन गए थे…

कहीं दूर से हवा में संगीत की धुन उन के प्रेम की दास्तां बयां कर रही थी,
‘‘हमसफर… मेरे हमसफर,
हमें साथ चलना है उम्रभर…’’

तंत्र मंत्र का खेला – भाग 2 : बाबा के जाल से निकल पाए सुजाता और शैलेश

कुछ परिवारों की महिलाएं अंगूठाछाप हैं तो कुछ 10वीं या 12वीं तक पढ़ी हैं किंतु इस के बाद विवाह हो जाने के कारण वे आगे न पढ़ सकीं. अभी तक यहां 16-17 वर्ष में शादी और 20-21 वर्ष में गौना कर देने का चलन रहा है.

ऐसे परिवारों के बीच सुजाता को कार्यक्रम करवाने के लिए इन महिलाओं से बढ़ कर कौन मिलता. ये महिलाएं, जो गांव में दिनभर किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहती थीं, यहां परसिया में घर से बाहर, कुरसियां डाले, दिनभर गाउन पहन कर बतियाती रहतीं. गाउन पहनना उन के लिए आधुनिकता की निशानी है. बस, इतना ही फैशन करना आता है इन को.

सुजाता का शुरू में तो यहां बिलकुल मन नहीं लगता था मगर धीरेधीरे उस ने अपनेआप को साथी महिलाओं के साथ सामूहिक कार्यक्रम में व्यस्त कर लिया. उसे रहरह कर भोपाल याद आता. वहां की चमचमाती सड़कों की लौंग ड्राइव, किट्टी पार्टी, बड़े ताल का नजारा, क्लब और अपनी आधुनिक सखियों का साथ.

शादी के 10 वर्षों बाद सारी शारीरिक जांचों के परिणामों से उसे मालूम हो गया था कि वह कभी मां नहीं बन सकती. वह अपने खाली समय को किसी न किसी तरह व्यस्त रखती ताकि खाली दिमाग में कोई खुराफात न पैदा हो जाए.

जहां भोपाल में वह किट्टी, क्लब और सोशल वर्क में बिजी थी वहीं यहां के माहौल में वह पूरी तरह रम गई थी. हां, मगर नियम से, वह यहां के एकलौते ब्यूटीपार्लर में जाना न भूलती. यहां की ब्यूटीशियन से ज्यादा तो उसे ब्यूटी नौलेज थी, इसीलिए उसे भी वह तरहतरह के ब्यूटी टिप्स देती रहती.

ब्यूटीशियन रमा जबलपुर में अपनी मौसी के घर रह कर,  6 महीने का कोर्स कर के परसिया में अपना पार्लर खोल कर बैठ गई थी. यहां युवतियां थ्रेडिंग और फेशियल खूब करवाती थीं. उस का पार्लर चल निकला. परंतु सुजाता के आने के बाद रमा को वैक्ंिसग, मैनीक्योर, पैडिक्योर, हेयर कटिंग के नए तरीके जानने को मिले. वह सुजाता को देखते ही खिल उठती और सोचती, कितनी उच्चशिक्षित है मगर स्वभाव उतना ही सरल है.

इधर, सुजाता का मन मजार के चक्कर लगाने को मचलने लगा. वह सोचती सारे वैज्ञानिक तरीके अपना कर देख ही लिए हैं, कोई परिणाम नहीं मिला. अब इस मजार के चक्कर लगा कर भी देख लेती हूं. जब इस विषय में महेंद्र की राय लेनी चाही तो उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया, शायद उन्होंने भी सुजाता की आंखों में आशा की चमक को देख लिया था. महेंद्र से कोई भी जवाब न पा कर सुजाता सोच में पड़ गई. उस ने अपने पड़ोसियों से इस विषय में बात करने का मन बना लिया.

दूसरे दिन हमेशा की तरह दोपहर में जब सारी महिलाएं अपने चबूतरे पर या प्लास्टिक की कुरसियां डाल कर गपों में मशगूल हो गईं, सुजाता ने मजार का जिक्र छेड़ दिया. फिर क्या था, सभी के पास तर्क निकल आए कि मजार इतनी महत्त्वपूर्ण क्यों है? सभी सवर्र्ण और पिछड़े वर्ग के परिवारों की महिलाओं में वैसे तो पूजापाठ के नियमों में बहुत अंतर था मगर मजार के विषय में वे सभी एकमत थीं.

लगेहाथ महिलाओं ने सुजाता की दुखती रग पर हाथ रखते हुए उसे भी संतान की मनौती मांगने के लिए 40 दिन मजार का फेरा लगाने का सुझाव दे ही दिया. कुछ का तो कहना था कि 40 दिन पूरे होने से पहले ही उस की गोद हरी हो जाएगी. जितने मुंह उतनी बातें सुन कर सुजाता ने तय कर लिया कि वह कल सुबह से ही मजार जाने लगेगी. महेंद्र उस के इस फैसले से खुश तो नहीं हुआ, किंतु उस ने उसे उस के विश्वास के साथ फैसला लेने को स्वतंत्र कर दिया.

मजार का रास्ता रेलवे स्टेशन के ओवरब्रिज से गुजर कर 2 प्लेटफौर्म्स के बाद है. छोटा सा  स्टेशन होने के कारण, बहुत ही कम यात्रीगाड़ी के फेरे लगते हैं. दिनभर पास के अंचल से कोयला खदानों का कोयला लाद कर गुजरने वाली मालगाडि़यों का ही तांता लगा रहता है, जो ज्यादातर तीसरे प्लेटफौर्म से गुजरती हैं.

दूसरे और तीसरे प्लेटफौर्म के बीच में ही मजार है, जिसे चारों तरफ से घेर कर ओवरब्रिज की सीडि़यों से जोड़ दिया गया है. जिस से लोगों की मजार में आवाजाही से रेलवे स्टेशन के सुरक्षा प्रबंधन पर कोई असर नहीं पड़ता. लोगों का आनाजाना एक ओर से लगा ही रहता.

जब से यह जगह जिले में परिवर्तित हुई है तब से भीड़ बढ़ने लगी और एक बाबा की मौजूदगी भी. वह हफ्ते में 3 दिन मजार में, शेष 4 दिन स्टेशन के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे बैठा मिलता. कोई कहता कि बाबा मुसलिम है तो कोई उस के हिंदू होने का दावा करता. मगर बाबा से जाति पूछने की हिम्मत किसी में नहीं थी. बाबा से लोग अपनी परेशानियां जरूर बताते जिन्हें वह अपने तरीके से हल करने के उपाय बताता.

बाबा बड़ा होशियार था, वह शाकाहारियों को नारियल तोड़ने तो मांसाहारियों को काला मुरगा काट कर चढ़ाने का उपाय बताता. लोगों के बुलावे पर उन के घर जा कर भी झाड़फूंक करता. जो लोग उस के उपाय करवाने के बाद मनमांगी मुराद पा जाते, वे खुश हो उस के मुरीद हो जाते. लेकिन जो लोग सारे उपाय अपना कर भी खाली हाथ रह जाते, वे अपने को ही दोषी मान कर चुप रहते. इसीलिए, बाबा का धंधा अच्छा चल निकला.

सुजाता सुबह के समय जब घर से निकली उस समय जाड़े के मौसम के कारण कोहरा छाया हुआ था. वह तेज कदमों से स्टेशन की ओर निकल गई. उस के घर और स्टेशन के बीच एक किलोमीटर का ही फासला तो था.

अभी मजार में अगरबत्ती सुलगा कर पलटी ही थी कि बाबा से सामना हो गया. उस ने प्रणाम करने को झुकना चाहा पर उस की मंशा भांप कर बाबा दो कदम पीछे हट गया. मेरे नहीं, इस के पैर पकड़ो, वह जो इस में समाया है. उस ने उंगली से मजार की तरफ इशारा करते हुए कहा, जिस मंशा से यहां आई हो, वह जरूर पूरी होगी. बस, अपने मन में कोई शंका न रखना.

आखिर क्या कमी थी- भाग 1 : क्यों विजय की पत्नी ने किया उसका जीना हराम

‘‘मेरा जीना हराम कर दिया है मेरी पत्नी ने. उठतेबैठते, सोतेजागते एक ही रट कि मेरा बाहर की औरतों से संबंध है. घर के बाहर गया नहीं कि चीखनाचिल्लाना शुरू. क्या करूं मैं? उसे न बच्चों की शर्म है न महल्ले वालों की. नौकरचाकर सामने रहते हैं और वह अनापशनाप बकने लगती है,’’ विजय की बातें सुन कर मैं अवाक् रह गया. नीरा भाभी भला ऐसा क्यों करने लगीं. पढ़ीलिखी समझदार हैं. जब मेरी शादी हुई थी तब भाभी ने बड़ी बहन की तरह सारा काम संभाला था. अपनी बहन सी लगने वाली भाभी पर उस के पति विजय का आरोप मैं कैसे सह लेता.

‘‘ऐसा कैसे हो गया एकाएक?’’

झुंझला पड़ा था विजय, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘पता क्यों नहीं, तुम्हारी पत्नी है… कुछ तो ऐसा होगा ही जिस की वजह से वे ऐसा व्यवहार कर रही हैं वरना दिमाग खराब है क्या उन का?’’

‘‘हां, यही लगता है मुझे भी,’’ बदबुदाया विजय.

‘‘क्या कह रहे हो तुम, होश में हो न. जिस औरत ने तुम्हारे साथ 15 साल की खुशहाल गृहस्थी काटी है, तुम्हारे हर सुखदुख में तुम्हारा साथ दिया, एकाएक उस का व्यवहार क्यों बदल गया है, तुम्हें पता नहीं और उस पर यह दावा कि उस का दिमाग खराब हो गया है?’’

‘‘दिमाग ही तो खराब है जो मुझ पर शक करती है. क्या यह सही दिमाग की निशानी है?’’

‘‘तुम ने कुछ ऐसा किया है क्या जो भाभी को तुम पर शक करने का मौका मिला? आखिर इस शक की कोई तो वजह होगी.’’

‘‘मुझे तो लगता है उसी का किसी के साथ संबंध है,’’ विजय बोला, ‘‘जो खुद गलत करता है वही सामने वाले पर आरोप लगाता है…’’

चटाक की आवाज के साथ मेरा हाथ विजय के गाल पर पड़ा. ऐसा लगा विश्वास और निष्ठा का सुंदर भवन मेरे सामने भरभरा कर गिर गया. धूलमिट्टी उड़ कर कुछ मेरे कपड़ों पर पड़ी और कुछ मेरी आंखों में भी. किसी ने मानो मेरी जीभ ही खींच ली. क्या विजय की आंखों की शर्म इतनी मर गई है कि मेरे सामने भाभी को चरित्रहीन कहते उसे लज्जा नहीं आई.

मर्द तो सदा ही अपनी मर्दानगी प्रमाणित करता आया है यहांवहां मुंह मार कर, कम से कम अपनी पत्नी का मान- सम्मान तो वह इस तरह न उछालता. क्या समझूं मैं? विजय के इस व्यवहार पर कैसे अपनी सोच का निर्धारण करूं? हद होती है हर बात की.

अवाक् था विजय. उस ने भी कहां सोचा होगा कि मैं नीरा भाभी का पक्ष ले कर उसी पर हाथ उठा बैठूंगा.

‘‘मुझे लगता है तुम ही कहीं भटक गए हो और अपनी किसी करतूत पर परदा डाल रहे हो. शायद तुम्हीं नहीं चाहते कि नीरा भाभी तुम्हारे साथ रहें और इसलिए उन्हें अपमानित कर अपने जीवन से निकालना चाहते हो. कहीं तो कुछ है…’’

‘‘वही कुछ तो मैं भी समझाना चाह रहा हूं तुम्हें…कहीं तो कुछ है जिस की आड़ ले कर वह मेरा अपमान कर रही है. मैं तो कहीं मुंह दिखाने के लायक भी नहीं रहा. अब तो बच्चों के सामने भी आंख उठाते हुए मुझे शर्म आती है.’’

विजय का रोनापीटना, चीखना- चिल्लाना सब सत्य था लेकिन भाभी का चरित्र खोटा है मैं इसे भी कैसे मान लूं, ‘‘बच्चों पर क्या असर होगा तुम्हारे झगड़ों का, सोचा है कभी तुम ने…’’

‘‘वही सब तो तुम से पूछना चाहता हूं कि नीरा के इस पागलपन की वजह से मेरे घर का भविष्य क्या होगा?’’

विजय की पीड़ा कहींकहीं मुझे भेदने लगी. कहीं सचमुच कुछ है तो नहीं, ‘‘तुम दोनों के आपसी संबंध कैसे हैं?’

 

आखिर क्या कमी थी

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