हमें तुम से प्यार कितना : भाग 1

मधु के मातापिता उस के लिए काबिल वर की तलाश कर रहे थे. मधु ने फैसला किया कि यह ठीक समय है जब उसे आलोक और अंशू के बारे में उन्हें बता देना चाहिए.

‘‘पापा, मैं आप को आलोक के बारे में बताना चाहती हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं उस के घर जाती रही हूं. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सुहानी की मृत्यु कुछ वर्षों पहले हो चुकी है. उस का एक लड़का अंशू है जिसे वह बड़े प्यार से पाल रहा है. मैं आलोक को बहुत चाहती हूं.’’

मधु के कहने पर उस के पापा ने पूछा, ‘‘तुम्हें उस के शादीशुदा होने पर कोई आपत्ति नहीं है. बेशक, उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. अच्छी तरह सोच कर फैसला करना. यह सारी जिंदगी का सवाल है. कहीं ऐसा तो नहीं है तुम आलोक और अंशू पर तरस खा कर यह शादी करना चाहती हो?’’

‘‘पापा, मैं जानती हूं यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से जब हम कोशिश करते हैं तो सबकुछ संभव हो जाता है. अंशु मुझे बहुत प्यार करता है. उसे मां की सख्त जरूरत है. जब तक वह मुझे मां के रूप में अपना नहीं लेता है, मैं इंतजार करूंगी. बचपन से आप ने मुझे हर चुनौती से जूझने की शिक्षा और आजादी दी है. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह फैसला कर रही हूं.’’

मधु के यकीन दिलाने पर उस की मां ने कहा, ‘‘मैं समझ सकती हूं, अगर अंशू के लालनपालन में तुम आलोक की मदद करोगी तो उस घर में तुम्हें इज्जत और भरपूर प्यार मिलेगा. सासससुर भी तुम्हें बहुत प्यार देंगे. मैं बहुत खुश हूं तुम आलोक की पत्नी खोने का दर्द महसूस कर रही हो और अंशू को मां मिल जाएगी. ऐसे अच्छे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा, मुझे लगता है हमारी परवरिश रंग लाई है.’’

मां ने मधु को गले लगा लिया. मधु की खुशी की कोई सीमा नहीं थी. उस ने कहा, ‘‘अब आप दोनों इस रिश्ते के लिए राजी हैं तो मैं आलोक को मोबाइल पर यह खबर दे ही देती हूं खुशी की.’’

मधु आलोक के दिल्ली के रोहिणी इलाके के शेयर मार्केटिंग औफिस में उस से मिलने जाया करती थी. इस का उस से पहला परिचय तब हुआ था जब उस ने कनाट प्लेस से पश्चिम विहार के लिए लिफ्ट मांगी थी. उस ने आलोक को बताया था वह एक पब्लिशिंग हाउस में एडिटर के पद पर कार्यरत थी. लिफ्ट के समय कार में ही दोनों ने एकदूसरे को अपने विजिटिंग कार्ड दे दिए थे. मधु की खूबसूरत छवि आलोक के दिमाग पर अंकित हो गई.

जब आलोक ने अपने बारे में पूरी तरह से बताया तो उस की बातचीत में उस के शादीशुदा और पत्नी सुहानी के निधन की बात शामिल थी.

बड़े ही अच्छे लहजे में मधु ने कहा था ‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम शादीशुदा हो. मेरे मातापिता मेरे लिए वर की तलाश कर रहे हैं. मैं ने तुम्हें अपने वर के रूप में पसंद कर लिया है जो भी थोड़ीबहुत मुलाकातें हुई हैं, उन में मैं जीवन के प्रति तुम्हारी सोच से प्रभावित हूं. तुम ने मुझे यह बताया है कि तुम्हारा एकमात्र मिशन है अपने लड़के अंशू को अच्छी परवरिश देना. दादादादी द्वारा उस का लालनपालन अपनेआप में काफी नहीं जान पड़ता है. यदि हमारा विवाह हो जाता है तो यह मेरे लिए बड़ी चुनौती का काम होगा कि मैं तुम्हारी मदद उस की परवरिश में करूं. मुझे काम करने का शौक है, मैं चाहूंगी कि अपना पब्लिशिंग हाउस का काम जारी रखते हुए घर के कामकाज को सुचारु रूप से चलाऊं.

आलोक ये सब बातें ध्यान से सुन रहा था, बोला, ‘सुहानी की मृत्यु के बाद मुझे ऐसा लगा कि मेरी दुनिया अंशू के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई है. मेरा पूरा ध्यान अंशू को पालने में केंद्रित हो गया. जिंदगी के इस पड़ाव पर जब मेरी तुम से मुलाकात हुई तो मुझे एक उम्मीद दिखी कि चाहे तुम्हारा साथ विवाह के बाद एक मित्र की तरह हो या पत्नी की हैसियत से, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. अगर तुम्हारे जैसी खूबसूरत और समझदार लड़की सारे पहलुओं का जायजा ले कर मेरे घर आती है तो अंशू को मां और परिवार को एक अच्छी बहू मिल जाएगी.’

मधु ने आलोक को यकीन दिलाते हुए कहा था, ‘इस में कोई शक नहीं है कि मुझे कुंआरे लड़के भी विवाह के लिए मिल सकते हैं, लेकिन मुझे विवाह के बाद की समस्याओं से डर लगता है. इसी समाज में लड़कियां शादी के बाद जला दी जाती हैं, दहेज की बलि चढ़ा कर उन्हें तलाक दे दिया जाता है या ससुराल पसंद न आने पर लड़कियों को वापस मायके आ कर रहना पड़ जाता है. तुम से मुलाकात के बाद मुझे लगता है ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला. तुम्हारी तरह अंशू को पालने का चैलेंज मैं स्वीकार करती हूं. तुम्हारे घर आ कर अंशू से मेलजोल बढ़ाने का काम मैं बहुत जल्द शुरू करूंगी. अपनी मम्मी को यकीन में ले कर मेरे बारे में बात कर लो. एक बात और मैं बताना चाहूंगी, मैं ने एमए साइकोलौजी से कर रखा है. उस में चाइल्ड साइकोलौजी का विषय भी था.’

मानसून स्पेशल: एकांत कमजोर पल- भाग 1

वकील साहब का हंसताखेलता परिवार था. उन की पत्नी सीधीसाधी घरेलू महिला थी. वकील साहब दिलफेंक थे यह वे जानती थीं पर एक दिन सौतन ले आएंगे वह ऐसा सोचा भी नहीं था. उस दिन वे बहुत रोईं.

वकील साहब ने समझाया, ‘‘बेगम, तुम तो घर की रानी हो. इस बेचारी को एक कमरा दे दो, पड़ी रहेगी. तुम्हारे घर के काम में हाथ बटाएगी.’’

वे रोती रहीं, ‘‘मेरे होते तुम ने दूसरा निकाह क्यों किया?’’

वकील साहब बातों के धनी थे. फुसलाते हुए बोले, ‘‘बेगम, माफ कर दो. गलती हो गई. अब जो तुम कहोगी वही होगा. बस इस को घर में रहने दो.’’

बेगम का दिल कर रहा था कि अपने बच्चे लें और मायके चली जाएं. वकील साहब की सूरत कभी न देखें. पर मायके जाएं तो किस के भरोसे? पिता हैं नहीं, भाइयों पर मां ही बोझ है. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि शादी के 14 साल बाद 40 साल की उम्र में वकील साहब यह गुल खिलाएंगे. बसाबसाया घर उजड़ गया.

वकील साहब ने नीचे अपने औफिस के बगल वाले कमरे में अपनी दूसरी बीवी का सामान रखवा दिया और ऊपर अपनी बड़ी बेगम के पास आ गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं. बड़ी बेगम का दिल टूट गया. इतने जतन से पाईपाई बचा कर मकान बनवाया था. सोचा भी न था कि गृहस्थी किसी के साथ साझा करनी पड़ेगी.

दिन गुजरे, हफ्ते गुजरे. बड़ी बेगम रोधो कर चुप हो गईं. पहले वकील साहब एक दिन ऊपर खाना खाते और एक दिन नीचे. फिर धीरेधीरे ऊपर आना बंद हो गया. उन की नई बीवी में चाह इतनी बढ़ी कि वकालत पर ध्यान कम देने लगे. आमदनी घटने लगी और परिवार बढ़ने लगा. छोटी बेगम के हर साल एक बच्चा हो जाता. अत: खर्चा बड़ी बेगम को कम देने लगे.

बड़ी बेगम ने हालत से समझौता कर लिया था. हाईस्कूल पास थीं, इसलिए महल्ले के ही एक स्कूल में पढ़ाने लगीं. बच्चों की छोटीमोटी जरूरतें पूरी करतीं. शाम को घर पर ही ट्यूशन पढ़ातीं जिस से अपने बच्चों की ट्यूशन की फीस देतीं. अब उन का एक ही लक्ष्य था अपने बेटेबेटी को खूब पढ़ाना और उन्हें उन के पैरों पर खड़ा करना. पति और सौतन के साथ रहने का उन का निर्णय केवल बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए ही था. वे जानती थीं कि बच्चों के लिए मांपिता दोनों आवश्यक हैं.

अब सारे घर पर छोटी बेगम का राज था. बड़ी बेगम और उन के बच्चे एक कमरे में रहते थे जहां कभी किसी विशेष कारण से वकील साहब बुलाए जाने पर आते.

इस तरह समय बीतता गया और फिर एक दिन वकील साहब अपनी 5 बेटियों और छोटी बेगम को छोड़ कर चल बसे. छोटी बेगम ने जैसेतैसे बेटियों की शादी कर दी. मकान भी बेच दिया.

बड़ी बेगम की बेटी सनोबर की एक अच्छी कंपनी में जौब लग गई थी. देखने में सुंदर भी थी पर शादी के नाम से भड़कती थी. वह अपनी मां का अतीत देख चुकी थी अत: शादी नहीं करना चाहती थी. बड़ी बेगम के बहुत समझाने पर वह शादी के लिए राजी हो गई. साहिल अच्छा लड़का था, परिवार का ही था.

सनोबर ने शादी के लिए हां तो कर दी पर अपनी शर्तें निकाहनामे में रखने को कहा.

साहिल ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है.’’

सनोबर ने बात साफ की, ‘‘ऐसे कह देने से नहीं, निकाहनामे में लिखना होगा की मेरे रहते तुम दूसरी शादी नहीं करोगे और अगर कभी हम अलग हों और हमारे बच्चे हों तो वे मेरे साथ रहेंगे.’’

सनोबर को साहिल बचपन से जानता था. उस के दिल का डर समझता था. बोला, ‘‘सनोबर निकाहनामे में यह भी लिख देंगे और भी जो तुम कहो. अब तो मुझ से शादी करोगी?’’

सनोबर मान गई और दोनों की शादी हो गई. दोनों की अच्छी जौब, अच्छा प्लैट, एक प्यारी बेटी थी. कुल मिला कर खुशहाल जीवन था सनोबर का. शादी के 12 साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.

सनोबर का प्रमोशन होने वाला था. अत: वह औफिस पर ज्यादा ध्यान दे रही थी. घर बाई ने ही संभाल रखा था. बेटी भी बड़ी हो गईर् थी. वह अपना सब काम खुद ही कर लेती थी. सनोबर उस को भी पढ़ाने का समय नहीं दे पाती. अत: ट्यूशन लगा दिया था. सनोबर का सारा ध्यान औफिस के काम पर था. घर की ओर से वह निश्चिंत थी. बाई ने सब संभाल लिया था.

डाक्टर बेटी : शमीम कुर्सी पर बैठे हुए क्या ख्वाब देख रही थी- भाग 3

‘‘मैं कोतवाली जाता हूं. आप बेफिक्र रहिए, रजाक छूट जाएगा,’’ वसीम दूसरे कमरे की ओर बढ़ते हुए बोले, तभी वहां शमीम पहुंच गई. अमीना बेगम को देख कर वह भी चौंक पड़ी. ‘‘बहू… लगता है, तुम अभी भी मुझ से नाराज हो.’’ ‘‘यह आप ने कैसे समझ लिया अम्मी. मैं तो यह सोच रही थी कि कितने समय बाद हम ने एकदूसरे का सामना किया है और वह भी इस एहसास के साथ कि बेटे चाहें 10 हों, अगर उन में से कोई भी लायक न बन सके, तो परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है.

‘‘बेटी चाहे एक हो, अगर उस की परवरिश ठीक ढंग से हो जाए, तो वह भी अपने खानदान का नाम रोशन कर सकती है, जैसे मेरी बेटी…’’ शमीम ने फख्र से अपनी बेटी की ओर देखा. ‘‘तुम ठीक कहती हो बहू,’’ अमीना बेगम की आवाज में हार की सी बोझिलता थी, ‘‘उस समय मैं नईपुरानी पीढ़ी के फर्क को समझ न सकी थी. मुझे सोचना चाहिए था कि वसीम नए जमाने का नौजवान है. उस की सोच और उस के इरादे जरूर ही एक नए समाज की रोशनी वाले हैं. ‘‘मेरी जिद और अंधविश्वास ने अनवर का जीवन बरबाद कर दिया. अगर वसीम की तरह उस ने भी पढ़लिख कर अपना भविष्य संवारा होता और उस का भी परिवार छोटा होता तो आज वह इतनी बदहाली में न होता, न उस के बच्चे बिगड़ते.’’ शाम को वसीम आया और बोला,

‘‘अम्मी, रजाक को पुलिस ने रिहा कर दिया है. वह वापस घर चला गया है.’’ ‘‘तुम बहुत अच्छे हो बेटा…’’ अमीना बेगम बोलीं. ‘‘अम्मी, अब आप कहीं नहीं जाएंगी, यहीं रहेंगी हमारे पास.’’ ‘‘लेकिन, अनवर बीमार है. वह क्या सोचेगा?’’ ‘‘आप उस की बिलकुल भी चिंता न करें. अब हमारी नीलो अपने चाचाजान का भी इलाज करेगी और मैं उस के बच्चों का भविष्य सुधारने की कोशिश करूंगा.’’ ‘‘तुम इनसान नहीं फरिश्ते हो बेटा…’’ अमीना बेगम की आंखों में पानी भर आया. ‘‘और मैं दादीजान, मैं कैसी हूं?’’ नीलोफर शरारत से मुसकराई. ‘‘तुम तो मेरी चांद हो… 100 बेटों से बढ़ कर हो,’’ अमीना बेगम नीलोफर के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं.

Monsoon Special: छोटे छोटे सुख दुख

मानसून स्पेशल : सोने की चिड़िया- भाग-3

‘‘पूछ रही हो तो सुन भी लो. तुम दिन भर गुलछर्रे उड़ाओ और हम तुम्हारी बिटिया को संभालें, यह हम से नहीं होगा.’’

‘‘आप को लगता है कि मैं गुलछर्रे उड़ा कर आ रही हूं? टीना आप से नहीं संभलती यह तो आप ने कभी कहा नहीं. आप कहें तो स्कूल के बाद के्रच में डाल दूंगी,’’ सुहासिनी सीधेसपाट स्वर में बोली थी.

‘‘तो डाल दो न. मना किस ने किया है. अब अम्मां की सेवा करने की नहीं करवाने की उम्र है,’’ बड़े भैया चाय पीते हुए बोले थे और बड़ी भाभी हंस दी थीं.

‘‘मुझे भी एक प्याली चाय दे दो, बहुत थक गई हूं,’’ सुहासिनी ने बात का रुख मोड़ना चाहा था.

‘‘बना लो न बीबी रानी. आज मैं भी बहुत थक गई हूं. वैसे तुम थीं कहां अब तक? आफिस तो 5 बजे बंद होता है और अब तो 7 बजने वाले हैं.’’

‘‘मानसी मिल गई थी, उस से बातें करने में देर हो गई.’’

‘‘मानसी कौन?’’ बड़ी भाभी पूछ बैठी थीं.

‘‘अरे, वही मन्नो, इस की छोटी ननद. वह क्या लेने आई थी तुझ से?’’ मां बिफर उठी थीं.

‘‘कुछ लेने नहीं आई थी. मैं ने ही उसे मौल में देखा था. बेचारी आरोहण के साड़ी कार्नर में सेल्सगर्ल क ा काम करती है.’’

‘‘मां, आप नहीं जानतीं, वहां तो अलग ही खिचड़ी पक रही है. हम ने फ्लैट के लिए केवल 10 लाख मांगे तो मना कर दिया. वहां जाने कितने लुटा कर आई है,’’ अब बड़े भैया भी क्रोध में आ गए थे.

‘‘ठीक है. मेरा पैसा है, जैसे और जहां चाहूंगी खर्च करूंगी,’’ सुहासिनी ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया था.

‘‘फिर यहां क्यों पड़ी हो? वहीं जा कर रहो जहां पैसा लुटा रही हो.’’

‘‘भैया…’’ सुहासिनी इतने जोर से चीखी थी कि घर में हलचल सी मच गई थी.

‘‘चीखोचिल्लाओ मत. माना कि तुम बहुत धनी हो. पर घर में रहना है तो नियमकायदे से रहना होगा. नहीं तो जहां सींग समाएं वहां जाने को स्वतंत्र हो तुम,’’ बड़े भैया अपना निर्णय सुना कर भीतर अपने कमरे में चले गए. सुहासिनी पत्थर की मूर्ति बनी वहीं बैठी रही थी.

तभी अंदर से टीना के रोने की आवाज आई.

‘‘टीना कहां है?’’ सुहासिनी के मुख से अनायास ही निकला था.

‘‘अंदर सो रही है. थोड़ी चोट लग गई है. बड़ी जिद्दी हो गई है. बारबार सीढि़यां चढ़उतर रही थी कि फिसल गई. सिर और चेहरे पर चोट आई है,’’ मां ने अपेक्षाकृत सौम्य स्वर में कहा था.

सुहासिनी लपक कर कमरे में गई और टीना को गोद में उठा लिया. टीना उस के कंधे से लग कर देर तक सिसकती रही थी. सुहासिनी चुपचाप अपने आंसू पीती रही थी.

कुछ ही देर में माथे पर किसी स्पर्श का अनुभव कर वह पलटी थी. मां बड़े प्यार से उस के माथे और कनपटी पर मालिश कर रही थीं.

‘‘भैया की बात का बुरा मान गई क्या बेटी?’’

‘‘नहीं मां, तकदीर ने जो खेल मेरे साथ खेला है उस में भलाबुरा मानने को बचा ही क्या है?’’

‘‘मां हूं तेरी, इतना भी नहीं समझूंगी क्या? इसीलिए तो तुझे यहां ले आई थी. आंखों के सामने रहेगी तो संतोष रहेगा कि सबकुछ ठीकठाक है. सब तुझे बरगलाने का प्रयत्न करेंगे पर तू विचलित मत होना, थकहार कर सब चुप हो जाएंगे.’’

‘‘पर मां, वहां से इस तरह आना कुछ ठीक नहीं हुआ. आप को पता है क्या पीयूष के पिता को पक्षाघात हुआ है…परिवार मुसीबत में है. उन्हें मेरी आवश्यकता है.’’

‘‘कुत्ते की दुम को चाहे कितने दिनों तक दबा कर रखो निक ालने पर टेढ़ी ही रहेगी. तू ने वहां जाने की ठान ली है तो जा पर थोड़े ही दिनों बाद रोतीगिड़गिड़ाती हुई मत आना,’’ मां पुन: क्रोधित हो उठी थीं.

सुहासिनी ने टीना की देखभाल के लिए छुट्टी ले ली थी पर घर में अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी मानो सुहासिनी से कोई अपराध हो गया हो.

एक सप्ताह बाद सुहासिनी प्रतिदिन की भांति तैयार हो कर आई थी. उस की सहेली शिखा भी आ गई थी.

‘‘आज टीना भी स्कूल जा रही है क्या?’’ मां ने पूछा था.

‘‘नहीं मां, आज हम दोनों पीयूष के घर जा रहे हैं, अपने घर. मां, हो सके तो मुझे क्षमा कर देना. उन लोगों को इस समय मेरी आवश्यकता है,’’ सुहासिनी ने घर में सभी के गले मिल कर विदा ली थी और बाहर खड़ी टैक्सी में जा बैठी थी. सुहासिनी की मां जहां खड़ी थीं वहीं सिर पकड़ कर बैठ गई थीं.

‘‘देखो मां, तुम्हारी सोने की चिडि़या तो फुर्र हो गई. क्यों दुखी होती हो. पराया धन ही तो था. पराए घर चला गया,’’ व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोल कर भैया ने ठहाका लगाया था जिस की कसैली प्रतिध्वनि देर तक दीवारों से टकरा कर गूंजती रही थी.

Monsoon Special: छोटे छोटे सुख दुख- भाग 1

राशि हाथों का सामान संभालती हुई तेजी से बिल्डिंग के अंदर घुस कर लिफ्ट की तरफ बढ़ी. लिफ्ट का दरवाजा खुला था. जल्दी से अंदर प्रवेश कर चौथी मंजिल का बटन दबा दिया. अब उस ने ध्यान दिया तो उस के पड़ोसी तीसरी मंजिल पर रहने वाले रोनितजी तना हुआ चेहरा लिए खड़े थे. राशि ने हलके से मुसकराने की कोशिश की यह सोच कर कि अगर रोनितजी के चेहरे पर कुछ सहज भाव दिखे तो वह दुआसलाम कर सकती है पर रोनितजी का तना चेहरा तना ही रहा.

कैसेकैसे लोग होते हैं इस दुनिया में… मिनटों की बात घंटों, घंटों की बात दिनों, दिनों की बात महीनों और महीनों की सालों… यहां तक कि पूरी जिंदगी याद रखते हैं, राशि मन ही मन बड़बड़ाई. रोनित तीसरी मंजिल पर बाहर निकल गए. अपने फ्लैट पर जा कर राशि ने बैल बजाई.

‘‘बहुत देर कर दी… मोबाइल भी नहीं उठा रही थी… मुझे बहुत चिंता हो रही थी,’’ सुमित राशि को देखते ही बोला. ‘‘उफ, अंदर तो आने दो… कितनी गरमी है बाहर… सड़क के शोर में मोबाइल की आवाज सुनाई नहीं दी होगी,’’ कह वह अंदर आ गई. सुमित उस के लिए पानी ले आया. अक्तूबर का महीना खत्म होने को था पर गरमी अभी भी जारी थी. राशि ने पंखा चला दिया और सुस्ताने बैठ गई.

‘‘पता है, अभी लिफ्ट में रोनितजी मिल गए… लगता है इन लोगों का गुस्सा तो जिंदगीभर खत्म नहीं होगा… मनीषा भी पता नहीं आए दिन क्या कह कर भरमाती रहती है अपने पति को… बात खत्म होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है,’’ राशि कुछकुछ हताश सी बोली. ‘‘छोड़ो न उन को…’’ सुमित उसे शब्दों से दिलासा देते हुए बोला, ‘‘मैं तो पहले ही सोसाइटी के फ्लैट्स में आने के पक्ष में नहीं था… अपना इंडीपैंडैंट घर चाहता था… फ्लैट्स में न फर्श अपनी न छत… कुछ भी गड़बड़ होती है तो ऊपरनीचे वालों के साथ मुश्किल हो जाती है… पर तुम्हें ही शौक था फ्लैट लेने का कि वहां साथ हो जाता है… मिलजुल कर तीजत्योहार मन जाते हैं…’’ ‘‘गलत भी तो नहीं कहा था… और लोग तो ठीक ही हैं… पर अपने निकट पड़ोसी ही ऐसे निकलेंगे सोचा नहीं था.’’ राशि हंसमुख स्वभाव की खुशमिजाज महिला थी. छोटेछोटे 2 बच्चे स्कूल में पढ़ते थे. अनामिका अपार्टमैंट नामक इस बिल्डिंग में 1 साल पहले ही उन्होंने फ्लैट खरीदा था. 4 मंजिला इस बिल्डिंग में कुल मिला कर 16 फ्लैट्स थे.

उन की सोसाइटी की एक समिति बनी हुई थी, जिस में हर तीजत्योहार या नया साल आने पर परिवार को कुछ रुपए जमा करने पड़ते थे. मिलजुल कर त्योहार मनता, डिनर होता अच्छा लगता था. कभी कपल्स के प्रोग्राम होते तो कभी सिर्फ लेडीज के. तीज, करवाचौथ या वूमंस डे पर लेडीज मिल कर प्रोग्राम कर लेतीं. 16 परिवारों में 2-3 परिवारों को छोड़ कर बाकी सब परिवार समझदार व मिलजुल कर रहने वाले थे. अलगअलग एजग्रुप के होने के बावजूद कभी किसी के बीच कोई खास दिक्कत नहीं आई.

जब 1 साल पहले उन्होंने यह फ्लैट खरीदा था तो सामने के फ्लैट में रहने वाली शिवानी ने उसे आगाह किया था कि तुम्हारे नीचे के फ्लैट में रहने वाली मनीषा से जरा बच कर चलना, बहुत ही सैंसिटिव नेचर की है. जराजरा सी बात पर बुरा मान कर मुंह फुला कर बैठ जाती है… अब ऐसा भी कहीं होता है, सब के साथ रह कर तो थोड़ाबहुत हंसीमजाक चलता ही है… छोटीछोटी बातें तो होती रहती हैं. नजरअंदाज करना आना चाहिए… पर मनीषा का स्वभाव ही निराला है… कोई ऐसा नहीं है, जिस से उस की नाराजगी न हुई हो. राशि ने यह बात जब सुमित को बताई, तो वह ठठा कर हंस पड़ा था, ‘‘हो गई न तेरीमेरी उस की बात शुरू… टिपिकल औरतों वाली बात… इन सब चक्करों में ज्यादा मत उलझना… तुम्हारा लेखन कार्य बाधित होगा… बस हैलो सब से रखो. खिचड़ी किसी के साथ मत पकाओ…’’ धीरेधीरे राशि की सब से जानपहचान होने लगी. मनीषा से शुरू में तो उसे कोई परेशानी नहीं महसूस हुई. वैसे भी वह किसी के व्यक्तिगत जीवन से अधिक लेनादेना नहीं रखती थी.

इसलिए उस की अधिकतर लोगों से पट जाती थी. उस ने ध्यान दिया कि मनीषा, रजनी व संजना की आपस में खूब बनती थी. संजना राशि के ऊपर वाले फ्लैट में रहती थी और रजनी शिवानी के नीचे वाले फ्लैट में यानी सारा कबाड़ मेरे आसपास ही इकट्ठा है. राशि मन ही मन हंसी. मनीषा, संजना व रजनी ये तीनों महिलाएं अपने असहयोगी स्वभाव के लिए पूरे अनामिका अपार्टमैंट में बदनाम थीं और जानेअनजाने उन के पति भी. राशि को अभी कुछ ही महीने हुए थे यहां आए हुए. एक दिन सुबह दूधवाले के घंटी बजाने पर उस ने दरवाजा खोला तो ठीक दरवाजे पर कुत्ते ने पौटी की हुई थी. सुबहसुबह पौटी देख कर दिमाग भन्ना गया. दूध ले कर वह अंदर चली गई. उस दिन सफाई वाली से मिन्नत कर के अलग से पैसे दे कर उस ने पौटी साफ करवा दी. लेकिन उस के बाद यह रोज ही होने लगा. एक दिन राशि ने तैश में आ कर सामने शिवानी के फ्लैट की घंटी बजा दी.

शिवानी बाहर आ गई.  ‘‘शिवानी, यह कुत्ता किस ने पाल रखा है… रोज मेरे दरवाजे पर पौटी कर जाता है… मैं परेशान हो गई हूं.’’ जवाब में शिवानी के होंठों पर रहस्यमय मुसकराहट उभर आई. बोली, ‘‘मनीषा ने पाल रखा है… छोड़ देती है उसे सुबह बाहर… फिर यह नहीं देखती कि नीचे गया या ऊपर… आजकल ऊपर आने की आदत पड़ गई होगी… मैं भी परेशान हो गई थी इस बात से… कुछ बोलो तो बुरा मान जाती है…’’ कुछ सोच कर राशि नीचे उतरी और मनीषा के फ्लैट की घंटी दबा दी. दरवाजा खुलने तक वह अपने चेहरे पर शांत मुसकराहट ले आई थी. मनीषा ने दरवाजा खोला, तो राशि ने कहा, ‘‘हैलो मनीषा…’’ ‘‘अरे राशि तुम… आओआओ बैठो…’’ ‘‘नहीं इस समय मैं बैठने नहीं आई हूं… बस एक छोटी सी समस्या थी… दरअसल, तुम्हारा डौगी रोज ऊपर जा कर मेरे दरवाजे के सामने पौटी कर देता है… मुझे रोज सफाई करवानी पड़ती है… बहुत दिक्कत होती है… मैं सोच रही थी, अगर तुम उसे चेन से बांध कर सड़क पर ले जाओ तो मेरी परेशानी खत्म हो जाएगी और डौगी को भी अच्छी आदत पड़ जाएगी.’’ सुनते ही मनीषा का चेहरा गुस्से से तन गया, ‘‘राशि तुम तो ऐसे बोल रही हो जैसे तुम ने उसे खुद पौटी करते देखा हो… बिल्डिंग का गेट खुला रहता है हर वक्त. दरबान भी ध्यान नहीं रखता है… आसपास के अपार्टमैंट वाले भी अपनाअपना कुत्ता खुला छोड़ देते हैं सड़क पर… पता नहीं कौन आ कर जाता होगा.’’ मनीषा की ऊंची होती आवाज से राशि संकोच से गड़ गई कि आसपास के फ्लैट्स के दरवाजे न खुलने लग जाएं. ‘‘हो सकता है मनीषा,’’ कह कर वह बात खत्म कर लौट गई.

पर उस के बाद उस के दरवाजे पर कुत्ते की पौटी बंद हो गई. इस के बाद वह जब भी मनीषा से टकराई, मनीषा ने सीधे मुंह बात नहीं की. उस का व्यवहार देख कर राशि सोच में पड़ गई कि आखिर उस की गलती क्या है. शायद शिवानी सही कहती है. उस दिन राशि सुबह उठी तो फ्लश जाम हो गया. फ्लश से पानी नीचे नहीं जा पा रहा था और ऊपर के फ्लैट से फ्लश हो कर पानी नीचे न जा पाने के कारण नाली में भर कर उन के पौट से बाहर निकलने को हो रहा था.

मानसून स्पेशल: एकांत कमजोर पल- भाग 2

बड़ी बेगम जानती थीं इस का गुस्सा निकलना अच्छा है. उन्होंने बहस नहीं की.

बोलीं, ‘‘ठीक है तुम को लगता है तुम अकेली ही अच्छी परवरिश कर सकती हो तो ठीक है, पर मैं चाहती हूं कि तुम तलाक की अर्जी 6 महीने बाद दो. कुछ वक्त दो फिर जो तुम्हारा फैसला होगा मैं मानूंगी.’’

‘‘नो वे अम्मी मैं 6 दिन भी न दूं. जबजब मुझे याद आता है साहिल और बाई… घिन आती है उस के नाम से. कोई इतना गिर सकता है?’’

बड़ी बेगम ने दुनिया देखी थी. अपने पति को बहुतों के साथ देखा था. उन्होंने अपने अनुभव का निचोड़ बताया, ‘‘वह एक वक्ती हरकत थी. उस का कोई अफेयर नहीं था. जब एक औरत और एक मर्द अकेले हों तो दोनों के बीच तनहाई में एक कमजोर पल आ सकता है.’’

मैं भी तो औफिस में अकेली मर्दों के साथ घंटों काम करती हूं. मेरे साथ तो कभी ऐसा नहीं हुआ. आत्मसंयम और मर्यादा ही इंसान होने की पहचान हैं वरना जानवर और आदमी में क्या फर्क है?’’

‘‘मैं ने अब तक तुम से कुछ नहीं कहा पर बहुत सोच कर तुम से समय देने को कह रही हूं. आगे तुम्हारी जो मरजी.’’

‘‘ठीक है आप कहतीं हैं तो मान लेती हूं पर मेरे फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’’

सनोबर यह सोच कर मान गई कि उसे भी तो कुछ काम निबटाने हैं. प्रौपर्टी के पेपर अपने नाम करवाना और सेविंग्स में नौमिनी बदलना आदि. फिर अभी औफिस का भी प्रैशर है. रात को रोज की तरह साहिल ने फोन किया तो सनोबर ने उठा लिया.

साहिल खुशी और अचंभे के मिलेजुले स्वर में बोला, ‘‘सनोबर मुझे माफ कर दो, वापस आ जाओ.’’

सनोबर ने तटस्थ स्वर में कहा, ‘‘मुझे तुम से मिलना है.’’

साहिल बोला, ‘‘हां, हां… जब कहो.’’

सनोबर बोली, ‘‘कल औफिस के बाद घर पर.’’ और फोन रख दिया.

औफिस के बाद सनोबर घर पहुंची. साहिल उस की प्रतिक्षा कर रहा था. घर भी उस ने कुछ ठीक किया था. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने झिड़क दिया और दूर बैठ गई.

‘‘साहिल मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहती. शांति से सब तय करना चाहती हूं. मेरातुम्हारा जौइंट अकाउंट बंद करना है. इंश्योरैंस पौलिसीज में नौमिनी हटाना है. इस फ्लैट में तुम्हारा जो पैसा लगा वह तुम ले लो. मैं इसे अपने नाम करवाना चाहती हूं. मुझे तुम से कोई पैसा नहीं चाहिए, मैं काजी के यहां खुला (औरत की ओर से निकाह तोड़ना) की अर्जी देने जा रही हूं.’’

थोड़ी देर के लिए साहिल चुप रहा फिर बोला, ‘‘सनोबर, मेरा जो कुछ है सब तुम्हारा और हमारी बेटी का है. तुम सब ले लो मुझे मेरी सनोबर दे दो. मुझे एक बार माफ कर दो. मेरी गलती की इतनी बड़ी सजा न दो. अगर तुम मेरी जिंदगी में नहीं तो मैं यह जिंदगी ही खत्म कर दूंगा,’’ सनोबर जानती थी साहिल भावुक है पर इतना ज्यादा है यह नहीं जानती थी. वह उठ कर चली गई.

अब बस औफिस जाने और मन लगा कर काम करने में और बेटी के साथ उस का समय बीतने लगा. बड़ी बेगम के कहने पर और बेटी की जिद पर वह राजी हुई कि साहिल सप्ताह में एक बार बेटी से मिल सकता है. उसे बाहर ले जा सकता है. वह नहीं चाहती थी कि उस की बेटी को उस के पिता की असलियत पता चले. इस आयु में यदि उसे पिता के घिनौने कारनामे का पता चलेगा तो वह जाने क्या प्रतिक्रिया करे. साहिल सप्ताह में 2 घंटे के लिए बेटी को घुमाने ले जाता, गिफ्ट दिलाता और सनोबर की पसंद का भी कुछ बेटी के साथ भेजता पर सनोबर आंख उठा कर भी न देखती.

तभी सनोबर की पदोन्नति हुई साथ ही मुख्यालय में तबादला भी. सनोबर को न चाह कर भी दिल्ली जाना पड़ा. बेटी को नानी के पास छोड़ना पड़ा. स्कूल का सैशन समाप्त होने में अभी 2 महीने थे. बड़ी बेगम ने आश्वासन दिया, ‘‘मैं संभाल लूंगी तुम जाओ मगर हर वीकैंड पर आ जाना.’’

मुख्यालय में उस के कुछ पूर्व साथी भी थे, सब ने स्वागत किया. एक प्रोजैक्ट में उस को समीर के साथ रखा गया. समीर भी सनोबर का पुराना साथी था और उस पर फिदा भी था.

समीर और सनोबर साथसाथ काम करते हुए काफी समय एकदूसरे के साथ बिताते. सनोबर ने साहिल और अपने बारे में समीर को नहीं बताया. जिस प्रोजैकट पर दोनों काम कर रहे थे उस में क्लाइंट की लोकेशन पर भी जाना होता था. दोनों साथसाथ जाते, होटल में रहते और काम पूरा कर के आते. घंटों अकेले एकसाथ काम करते. आज भी दोनों सुबह की फ्लाइट से गए थे. दिन भर काम कर के रात को होटल पहुंचे. समीर बोला, ‘‘फ्रैश हो लो फिर खाना खाने नीचे डाइनिंगरूम में चलते हैं.’’

सनोबर बोली, ‘‘तुम जाओ. मैं अपने रूम में ही कुछ मंगवा लूंगी.’’

समीर बोला, ‘‘ठीक है मेरा भी कुछ और्डर कर देना, साथ ही खा लेंगे.’’

सनोबर को समीर चाहता भी था, उस का आदर भी करता था. सनोबर के हैड औफिस आने के बाद समीर ने कभी अपने पुराने प्यार को प्रकट नहीं किया. वह अपनी पत्नी और बच्चों में खुश था.

समीर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना आने की प्रतीक्षा में दोनों काम से जुड़ी बातें ही करते रहे. समीर की पत्नी का फोन भी आया. समीर की और उस की पत्नी की बातों से लग रहा था दोनों सुखी व संतुष्ट हैं.

समीर ने साहिल के बारे में पूछा तो सनोबर बात टाल गई. फिर खाना आया, दोनों खाना खातेखाते पुराने दिनों की बातें करने लगे.

समीर ने सनोबर से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात बताओ यदि तुम साहिल से शादी न करतीं तो क्या मुझ से शादी करतीं?’’

सनोबर झिझकी फिर बोली, ‘‘शायद हां.’’

समीर ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘‘अरे पहले बताती तो मैं उस को गोली मार देता,’’ बात आईगई हो गई. दोनों ने खाना खाया फिर समीर अपने कमरे में चला गया.

सनोबर सोचने लगी समीर अच्छा दोस्त हैं. फिर जाने क्यों साहिल याद आ गया. वह काफी थकी थी. कुछ ही देर में सो गई. अगले दिन भी दोनों बहुत व्यस्त रहे.

‘‘आज भी खाना कमरे में मंगवाते हैं ठीक है?’’ समीर ने पूछा तो सनोबर बोली, ‘‘हां, ठीक है.’’

फिर समीर फ्रैश हो कर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना और्डर कर के दोनों बातें करने लगे. सनोबर को खाते समय खाना सरक गया वह खांसने लगी. समीर ने उसे जल्दी से पानी निकाल कर दिया. पानी पी कर ठीक हुई. खाने के बाद समीर ने चाय बना कर सनोबर की दी तो दोनों का हाथ एकदूसरे से टकराया. दोनों चुपचाप धीरेधीरे चाय पीने लगे.

एक अजीब सा सन्नाटा छा गया. दोनों पासपास बैठे थे. एक अजीब सी चाह सनोबर ने अपने मन में महसूस की जैसे वह समीर के सीने से लग के रोना चाहती हो. फिर उस ने देखा समीर की निगाहें भी उस के ऊपर टिकी हैं. शायद वह भी सनोबर को अपनी बांहों में जकड़ना चाहता है. तभी उसे लगा कहीं यही वह एकांत कमजोर पल तो नहीं है जिस के बारे में अम्मी कह रही थी. वह संभल गई और उठ कर इधरउधर कुछ रखनेउठाने लगी. समीर से बोली, ‘‘अच्छा, कल मिलते हैं.’’

समीर भी उठते हुए बोला, ‘‘हां देर हो गई, गुड नाईट.’’

अगले दिन दोनों वापस आ गए. सनोबर अपनी अम्मी के पास चली गई. अम्मी उसे बताने लगीं कि उस की बेटी खाने में नखरा करती है. साहिल बेटी का बहुत ध्यान रखता है. अपने साथ ले जाता है, बराबर फोन करता है. अम्मी साहिल की प्रशंसा किए जा रही थीं.

सनोबर ने साहिल को फोन किया, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं अभी.’’ वह साहिल से मिलने चल पड़ी. साहिल पलकें बिछाए उस की राह ताक रहा था. घर लगता था साहिल ने ही साफ किया था. बैडरूम पर नजर गई तो बदलाबदला लग रहा था. साहिल बहुत प्यार से बोला, ‘‘अब तो वापस आ जाओ, मुझे माफ कर दो.’’

सनोबर एकांत कमजोर पल क्या होता है यह जान चुकी थी. उस ने साहिल को माफ कर दिया. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ा और दोनों एकदूसरे के बहुत पास आ गए.

 

एक और परिणीता

तंत्र मंत्र का खेला

Monsoon Special: छोटे छोटे सुख दुख- भाग 2

वह और सुमित परेशान हो गए. नीचे जा कर उस ने मनीषा को अपनी परेशानी बताई व सुमित ने ऊपर वाले फ्लैट में जा कर संजना के पति से फिलहाल उस वाले बाथरूम को इस्तेमाल न करने की प्रार्थना की. पर मनीषा, जो पहले से ही नाराज चल रही थी, सुनते ही भड़क गई. ‘‘हमारे यहां तो कोई दिक्कत नहीं…तुम्हारे यहां है, तुम जानो.’’  ‘‘मैं यह नहीं कह रही मनीषा कि तुम्हारे कारण दिक्कत है… समस्या तो कहीं बीच  में है… प्लंबर को बुलाने जा रहे हैं सुमित… पर थोड़ी दिक्कत तुम्हें भी होगी… प्लंबर यहां भी आएगा… देखेगा कि आखिर दिक्कत कहां है…’’ ‘‘मुझे तो आज बाहर जाना है… घर पर नहीं हूं.’’ ‘‘उफ, तो ऐसा करो तुम मुझे चाबी दे जाना… मैं खुद यहां पर खड़ी हो कर काम करवा लूंगी.’’ ‘‘अरे ऐसे कैसे चाबी दे दूं… पता नहीं कौन प्लंबर है… हर ऐरेगैरे नत्थु खैरे को घर में घुसा दो,’’ मनीषा बड़बड़ाने लगी. ‘‘देखो मनीषा, प्लंबर को दिखाना तो पड़ेगा… यह परेशानी भुगती तो नहीं जा सकती… ठीक तो करवानी ही पड़ेगी,’’ कह कर राशि ऊपर आ गई. उस दिन मनीषा के पति रोनित ने बात संभाल ली. प्लंबर आया. मनीषा के फ्लैट से ही उसे पाइप की प्रौबलम ठीक करनी पड़ी.

लेकिन मनीषा का राशि से उखड़ा मूड और भी उखड़ गया. शिवानी के नीचे वाले फ्लैट में रहने वाली रजनी भी कुछ कम नहीं थी. शिवानी तो इन तीनों से कई बार उलझ भी पड़ती, फिर ठीक भी हो जाती. पर राशि के बस का नहीं था ये सब कि कभी झगड़ा कर पीठ पीछे बुराइयां करो और फिर साथ बैठ कर कौफी पी लो. छोटीछोटी बातों पर किसी से झगड़ा करना नहीं आता था. एक दिन कूड़े वाला राशि की कूड़े की थैली उठा कर ले गया और रजनी के दरवाजे के सामने रख कर भूल गया.

रजनी ने शोर मचा दिया, ‘‘न जाने किस बदतमीज ने रख दिया यहां कूड़ा… शर्म नहीं आती… अनपढ़गंवार कहीं के…’’ बाहर शोर सुन कर राशि भी बाहर निकल आई. राशि दरवाजे पर रखी अपनी कूड़े की थैली तुरंत पहचान गई. जल्दी से नीचे उतर कर उस ने थैली उठा ली, ‘‘सौरी रजनी… लगता है कूड़ेवाला भूल से छोड़ गया,’’ पर रजनी के चेहरे के भाव व पहले सुने गए शब्द उसे अंदर तक अपमानित कर गए थे. अपार्टमैंट में होने वाले होली, दीवाली, नए साल, क्रिसमस के प्रोग्राम राशि को भी अच्छे लगते, खुशी देते पर ये छोटीछोटी परेशानियां उसे अंदर तक आहत कर देतीं.

सुमित राशि को समझाता, ‘‘मैं तो सोसाइटी के फ्लैट में आना ही नहीं चाहता था पर अब आ गए हैं तो सब के स्वभाव को झेलने की आदत बना लो… शिवानी भी तो यहीं रह रही है… इतना सैंसिटिव होने की जरूरत नहीं है. सब की अपनी फितरत होती है… कोई हमारी तरह का नहीं हो सकता… जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार कर लो… और क्या कर सकते हैं…’’ ‘‘पर फिर भी सुमित… आतेजाते ऐसे तनाव भरे चेहरे देख कर अच्छा नहीं लगता… थोड़े दिन ठीक रहती हैं ये तीनों, फिर लड़ पड़ती हैं किसी न किसी बात पर… अब फ्लैट्स इतने जुड़े होते हैं कि किसी से बिना मतलब रखे भी नहीं रहा जा सकता.’’

‘‘जैसे उस से रहा जाता है वैसे ही तुम भी रहो… तुम हर बात की परवाह क्यों करती हो. कुछ न कुछ प्रौबलम तो सब जगह होगी.’’ ऐसे ही छोटेछोटे सुखदुख के बीच जिंदगी बीत रही थी. राशि को भी धीरेधीरे 1 साल रहते होने को आ गया था. सुमित का प्रमोशन हुआ तो उस ने 16 परिवारों से सिर्फ 16 लेडीज को चाय पर बुला लिया. सब आईं सिवा मनीषा, रजनी व संजना के. बाकी सब ने कारण पूछा तो राशि को कारण ठीक से पता हो तो बताए. इतने छोटेछोटे भी कोई कारण होते हैं न्योता ठुकराने के. शिवानी को इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता था.

जब वे तीनों ठीक रहतीं तो वह भी अच्छे से बात कर लेती, जब नहीं रहतीं तो वह भी खुद मुंह पलट कर चली जाती. ‘‘लगता है, रजनी के घर आजकल मेहमान आए हैं. काफी चहलपहल रहती है,’’ एक दिन सुबह चाय पीती हुई राशि सुमित से कह रही थी कि तभी 3-4 बार जल्दीजल्दी घंटी बज उठी. ‘‘इतनी सुबह ऐसी घंटी कौन बजा रहा है,’’ हड़बड़ाहट में दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े. रजनी की कामवाली खड़ी थी, ‘‘भाभीजी, जल्दी नीचे चलिए रजनी भाभी के ससुरजी गुजर गए.’’ ‘‘ससुरजी गुजर गए… उन के सासससुर आए हुए थे क्या?’’ ‘‘हां, जल्दी चलिए… रात में उन की तबीयत खराब हुई… भैया अस्पताल ले कर गए थे… सुबह गुजर गए. घर में सिर्फ भाभीजी और उन की सास हैं…भैया अभी अस्पताल में ही हैं.’’ सुमित और राशि हड़बड़ाहट में सीढि़यां उतर गए.

अंदर दोनों सासबहू विलाप कर रही थीं. राशि दोनों को सांत्वना देने लगी. थोड़ी देर में पार्थिव शरीर घर आ गया. फ्लैट रिश्तेदारों व जानपहचान वालों से भरने लगा. राशि ने रजनी के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी सहर्ष अपने ऊपर ले ली. वह उन्हें अपने घर ले आई. जितनी मदद कर सकती थी उस ने सारे पूर्वाग्रह भूल कर उन की 13 दिन तक की.  13वीं हो गई. इस मुसीबत के वक्त राशि का सहयोग रजनी के दिल को छू  गया. अब वह संजना व मनीषा की परवाह करे बगैर राशि से ठीक से रिश्ता रखने लगी. संजना से राशि का आमनासामना तब भी कम होता था पर मनीषा से अकसर हो जाता था. इसलिए मनीषा का दुर्व्यवहार उसे बहुत अखरता था. संजना का बेटा मयंक और मनीषा की बेटी खुशी एक ही स्कूल में पढ़ते व एक ही रिकशे से स्कूल आतेजाते थे.

उस दिन सुमित की छुट्टी होने के कारण राशि और सुमित मार्केट से लौट रहे थे तो रास्ते में सड़क में भीड़ देख कर वे भी रुक गए. ‘‘क्या हुआ? उन्होंने एक राहगीर से पूछा.’’ ‘‘ऐक्सीडैंट हुआ है… एक रिकशे को कार ने टक्कर मार दी… 2 बच्चे बैठे थे रिकशे में…’’ ‘‘उफ, बच्चे तो ठीक हैं.’’ ‘‘चोटें आई हैं काफी.’’ सुमित उतर कर देखने चला गया. घायल मयंक व खुशी सड़क पर बैठे रो रहे थे. रिकशे वाले व कार चालक के बीच लड़ाई हो रही थी.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें