मानसून स्पेशल : सोने की चिड़िया- भाग-3

‘‘पूछ रही हो तो सुन भी लो. तुम दिन भर गुलछर्रे उड़ाओ और हम तुम्हारी बिटिया को संभालें, यह हम से नहीं होगा.’’

‘‘आप को लगता है कि मैं गुलछर्रे उड़ा कर आ रही हूं? टीना आप से नहीं संभलती यह तो आप ने कभी कहा नहीं. आप कहें तो स्कूल के बाद के्रच में डाल दूंगी,’’ सुहासिनी सीधेसपाट स्वर में बोली थी.

‘‘तो डाल दो न. मना किस ने किया है. अब अम्मां की सेवा करने की नहीं करवाने की उम्र है,’’ बड़े भैया चाय पीते हुए बोले थे और बड़ी भाभी हंस दी थीं.

‘‘मुझे भी एक प्याली चाय दे दो, बहुत थक गई हूं,’’ सुहासिनी ने बात का रुख मोड़ना चाहा था.

‘‘बना लो न बीबी रानी. आज मैं भी बहुत थक गई हूं. वैसे तुम थीं कहां अब तक? आफिस तो 5 बजे बंद होता है और अब तो 7 बजने वाले हैं.’’

‘‘मानसी मिल गई थी, उस से बातें करने में देर हो गई.’’

‘‘मानसी कौन?’’ बड़ी भाभी पूछ बैठी थीं.

‘‘अरे, वही मन्नो, इस की छोटी ननद. वह क्या लेने आई थी तुझ से?’’ मां बिफर उठी थीं.

‘‘कुछ लेने नहीं आई थी. मैं ने ही उसे मौल में देखा था. बेचारी आरोहण के साड़ी कार्नर में सेल्सगर्ल क ा काम करती है.’’

‘‘मां, आप नहीं जानतीं, वहां तो अलग ही खिचड़ी पक रही है. हम ने फ्लैट के लिए केवल 10 लाख मांगे तो मना कर दिया. वहां जाने कितने लुटा कर आई है,’’ अब बड़े भैया भी क्रोध में आ गए थे.

‘‘ठीक है. मेरा पैसा है, जैसे और जहां चाहूंगी खर्च करूंगी,’’ सुहासिनी ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया था.

‘‘फिर यहां क्यों पड़ी हो? वहीं जा कर रहो जहां पैसा लुटा रही हो.’’

‘‘भैया…’’ सुहासिनी इतने जोर से चीखी थी कि घर में हलचल सी मच गई थी.

‘‘चीखोचिल्लाओ मत. माना कि तुम बहुत धनी हो. पर घर में रहना है तो नियमकायदे से रहना होगा. नहीं तो जहां सींग समाएं वहां जाने को स्वतंत्र हो तुम,’’ बड़े भैया अपना निर्णय सुना कर भीतर अपने कमरे में चले गए. सुहासिनी पत्थर की मूर्ति बनी वहीं बैठी रही थी.

तभी अंदर से टीना के रोने की आवाज आई.

‘‘टीना कहां है?’’ सुहासिनी के मुख से अनायास ही निकला था.

‘‘अंदर सो रही है. थोड़ी चोट लग गई है. बड़ी जिद्दी हो गई है. बारबार सीढि़यां चढ़उतर रही थी कि फिसल गई. सिर और चेहरे पर चोट आई है,’’ मां ने अपेक्षाकृत सौम्य स्वर में कहा था.

सुहासिनी लपक कर कमरे में गई और टीना को गोद में उठा लिया. टीना उस के कंधे से लग कर देर तक सिसकती रही थी. सुहासिनी चुपचाप अपने आंसू पीती रही थी.

कुछ ही देर में माथे पर किसी स्पर्श का अनुभव कर वह पलटी थी. मां बड़े प्यार से उस के माथे और कनपटी पर मालिश कर रही थीं.

‘‘भैया की बात का बुरा मान गई क्या बेटी?’’

‘‘नहीं मां, तकदीर ने जो खेल मेरे साथ खेला है उस में भलाबुरा मानने को बचा ही क्या है?’’

‘‘मां हूं तेरी, इतना भी नहीं समझूंगी क्या? इसीलिए तो तुझे यहां ले आई थी. आंखों के सामने रहेगी तो संतोष रहेगा कि सबकुछ ठीकठाक है. सब तुझे बरगलाने का प्रयत्न करेंगे पर तू विचलित मत होना, थकहार कर सब चुप हो जाएंगे.’’

‘‘पर मां, वहां से इस तरह आना कुछ ठीक नहीं हुआ. आप को पता है क्या पीयूष के पिता को पक्षाघात हुआ है…परिवार मुसीबत में है. उन्हें मेरी आवश्यकता है.’’

‘‘कुत्ते की दुम को चाहे कितने दिनों तक दबा कर रखो निक ालने पर टेढ़ी ही रहेगी. तू ने वहां जाने की ठान ली है तो जा पर थोड़े ही दिनों बाद रोतीगिड़गिड़ाती हुई मत आना,’’ मां पुन: क्रोधित हो उठी थीं.

सुहासिनी ने टीना की देखभाल के लिए छुट्टी ले ली थी पर घर में अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी मानो सुहासिनी से कोई अपराध हो गया हो.

एक सप्ताह बाद सुहासिनी प्रतिदिन की भांति तैयार हो कर आई थी. उस की सहेली शिखा भी आ गई थी.

‘‘आज टीना भी स्कूल जा रही है क्या?’’ मां ने पूछा था.

‘‘नहीं मां, आज हम दोनों पीयूष के घर जा रहे हैं, अपने घर. मां, हो सके तो मुझे क्षमा कर देना. उन लोगों को इस समय मेरी आवश्यकता है,’’ सुहासिनी ने घर में सभी के गले मिल कर विदा ली थी और बाहर खड़ी टैक्सी में जा बैठी थी. सुहासिनी की मां जहां खड़ी थीं वहीं सिर पकड़ कर बैठ गई थीं.

‘‘देखो मां, तुम्हारी सोने की चिडि़या तो फुर्र हो गई. क्यों दुखी होती हो. पराया धन ही तो था. पराए घर चला गया,’’ व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोल कर भैया ने ठहाका लगाया था जिस की कसैली प्रतिध्वनि देर तक दीवारों से टकरा कर गूंजती रही थी.

Monsoon Special: छोटे छोटे सुख दुख- भाग 1

राशि हाथों का सामान संभालती हुई तेजी से बिल्डिंग के अंदर घुस कर लिफ्ट की तरफ बढ़ी. लिफ्ट का दरवाजा खुला था. जल्दी से अंदर प्रवेश कर चौथी मंजिल का बटन दबा दिया. अब उस ने ध्यान दिया तो उस के पड़ोसी तीसरी मंजिल पर रहने वाले रोनितजी तना हुआ चेहरा लिए खड़े थे. राशि ने हलके से मुसकराने की कोशिश की यह सोच कर कि अगर रोनितजी के चेहरे पर कुछ सहज भाव दिखे तो वह दुआसलाम कर सकती है पर रोनितजी का तना चेहरा तना ही रहा.

कैसेकैसे लोग होते हैं इस दुनिया में… मिनटों की बात घंटों, घंटों की बात दिनों, दिनों की बात महीनों और महीनों की सालों… यहां तक कि पूरी जिंदगी याद रखते हैं, राशि मन ही मन बड़बड़ाई. रोनित तीसरी मंजिल पर बाहर निकल गए. अपने फ्लैट पर जा कर राशि ने बैल बजाई.

‘‘बहुत देर कर दी… मोबाइल भी नहीं उठा रही थी… मुझे बहुत चिंता हो रही थी,’’ सुमित राशि को देखते ही बोला. ‘‘उफ, अंदर तो आने दो… कितनी गरमी है बाहर… सड़क के शोर में मोबाइल की आवाज सुनाई नहीं दी होगी,’’ कह वह अंदर आ गई. सुमित उस के लिए पानी ले आया. अक्तूबर का महीना खत्म होने को था पर गरमी अभी भी जारी थी. राशि ने पंखा चला दिया और सुस्ताने बैठ गई.

‘‘पता है, अभी लिफ्ट में रोनितजी मिल गए… लगता है इन लोगों का गुस्सा तो जिंदगीभर खत्म नहीं होगा… मनीषा भी पता नहीं आए दिन क्या कह कर भरमाती रहती है अपने पति को… बात खत्म होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है,’’ राशि कुछकुछ हताश सी बोली. ‘‘छोड़ो न उन को…’’ सुमित उसे शब्दों से दिलासा देते हुए बोला, ‘‘मैं तो पहले ही सोसाइटी के फ्लैट्स में आने के पक्ष में नहीं था… अपना इंडीपैंडैंट घर चाहता था… फ्लैट्स में न फर्श अपनी न छत… कुछ भी गड़बड़ होती है तो ऊपरनीचे वालों के साथ मुश्किल हो जाती है… पर तुम्हें ही शौक था फ्लैट लेने का कि वहां साथ हो जाता है… मिलजुल कर तीजत्योहार मन जाते हैं…’’ ‘‘गलत भी तो नहीं कहा था… और लोग तो ठीक ही हैं… पर अपने निकट पड़ोसी ही ऐसे निकलेंगे सोचा नहीं था.’’ राशि हंसमुख स्वभाव की खुशमिजाज महिला थी. छोटेछोटे 2 बच्चे स्कूल में पढ़ते थे. अनामिका अपार्टमैंट नामक इस बिल्डिंग में 1 साल पहले ही उन्होंने फ्लैट खरीदा था. 4 मंजिला इस बिल्डिंग में कुल मिला कर 16 फ्लैट्स थे.

उन की सोसाइटी की एक समिति बनी हुई थी, जिस में हर तीजत्योहार या नया साल आने पर परिवार को कुछ रुपए जमा करने पड़ते थे. मिलजुल कर त्योहार मनता, डिनर होता अच्छा लगता था. कभी कपल्स के प्रोग्राम होते तो कभी सिर्फ लेडीज के. तीज, करवाचौथ या वूमंस डे पर लेडीज मिल कर प्रोग्राम कर लेतीं. 16 परिवारों में 2-3 परिवारों को छोड़ कर बाकी सब परिवार समझदार व मिलजुल कर रहने वाले थे. अलगअलग एजग्रुप के होने के बावजूद कभी किसी के बीच कोई खास दिक्कत नहीं आई.

जब 1 साल पहले उन्होंने यह फ्लैट खरीदा था तो सामने के फ्लैट में रहने वाली शिवानी ने उसे आगाह किया था कि तुम्हारे नीचे के फ्लैट में रहने वाली मनीषा से जरा बच कर चलना, बहुत ही सैंसिटिव नेचर की है. जराजरा सी बात पर बुरा मान कर मुंह फुला कर बैठ जाती है… अब ऐसा भी कहीं होता है, सब के साथ रह कर तो थोड़ाबहुत हंसीमजाक चलता ही है… छोटीछोटी बातें तो होती रहती हैं. नजरअंदाज करना आना चाहिए… पर मनीषा का स्वभाव ही निराला है… कोई ऐसा नहीं है, जिस से उस की नाराजगी न हुई हो. राशि ने यह बात जब सुमित को बताई, तो वह ठठा कर हंस पड़ा था, ‘‘हो गई न तेरीमेरी उस की बात शुरू… टिपिकल औरतों वाली बात… इन सब चक्करों में ज्यादा मत उलझना… तुम्हारा लेखन कार्य बाधित होगा… बस हैलो सब से रखो. खिचड़ी किसी के साथ मत पकाओ…’’ धीरेधीरे राशि की सब से जानपहचान होने लगी. मनीषा से शुरू में तो उसे कोई परेशानी नहीं महसूस हुई. वैसे भी वह किसी के व्यक्तिगत जीवन से अधिक लेनादेना नहीं रखती थी.

इसलिए उस की अधिकतर लोगों से पट जाती थी. उस ने ध्यान दिया कि मनीषा, रजनी व संजना की आपस में खूब बनती थी. संजना राशि के ऊपर वाले फ्लैट में रहती थी और रजनी शिवानी के नीचे वाले फ्लैट में यानी सारा कबाड़ मेरे आसपास ही इकट्ठा है. राशि मन ही मन हंसी. मनीषा, संजना व रजनी ये तीनों महिलाएं अपने असहयोगी स्वभाव के लिए पूरे अनामिका अपार्टमैंट में बदनाम थीं और जानेअनजाने उन के पति भी. राशि को अभी कुछ ही महीने हुए थे यहां आए हुए. एक दिन सुबह दूधवाले के घंटी बजाने पर उस ने दरवाजा खोला तो ठीक दरवाजे पर कुत्ते ने पौटी की हुई थी. सुबहसुबह पौटी देख कर दिमाग भन्ना गया. दूध ले कर वह अंदर चली गई. उस दिन सफाई वाली से मिन्नत कर के अलग से पैसे दे कर उस ने पौटी साफ करवा दी. लेकिन उस के बाद यह रोज ही होने लगा. एक दिन राशि ने तैश में आ कर सामने शिवानी के फ्लैट की घंटी बजा दी.

शिवानी बाहर आ गई.  ‘‘शिवानी, यह कुत्ता किस ने पाल रखा है… रोज मेरे दरवाजे पर पौटी कर जाता है… मैं परेशान हो गई हूं.’’ जवाब में शिवानी के होंठों पर रहस्यमय मुसकराहट उभर आई. बोली, ‘‘मनीषा ने पाल रखा है… छोड़ देती है उसे सुबह बाहर… फिर यह नहीं देखती कि नीचे गया या ऊपर… आजकल ऊपर आने की आदत पड़ गई होगी… मैं भी परेशान हो गई थी इस बात से… कुछ बोलो तो बुरा मान जाती है…’’ कुछ सोच कर राशि नीचे उतरी और मनीषा के फ्लैट की घंटी दबा दी. दरवाजा खुलने तक वह अपने चेहरे पर शांत मुसकराहट ले आई थी. मनीषा ने दरवाजा खोला, तो राशि ने कहा, ‘‘हैलो मनीषा…’’ ‘‘अरे राशि तुम… आओआओ बैठो…’’ ‘‘नहीं इस समय मैं बैठने नहीं आई हूं… बस एक छोटी सी समस्या थी… दरअसल, तुम्हारा डौगी रोज ऊपर जा कर मेरे दरवाजे के सामने पौटी कर देता है… मुझे रोज सफाई करवानी पड़ती है… बहुत दिक्कत होती है… मैं सोच रही थी, अगर तुम उसे चेन से बांध कर सड़क पर ले जाओ तो मेरी परेशानी खत्म हो जाएगी और डौगी को भी अच्छी आदत पड़ जाएगी.’’ सुनते ही मनीषा का चेहरा गुस्से से तन गया, ‘‘राशि तुम तो ऐसे बोल रही हो जैसे तुम ने उसे खुद पौटी करते देखा हो… बिल्डिंग का गेट खुला रहता है हर वक्त. दरबान भी ध्यान नहीं रखता है… आसपास के अपार्टमैंट वाले भी अपनाअपना कुत्ता खुला छोड़ देते हैं सड़क पर… पता नहीं कौन आ कर जाता होगा.’’ मनीषा की ऊंची होती आवाज से राशि संकोच से गड़ गई कि आसपास के फ्लैट्स के दरवाजे न खुलने लग जाएं. ‘‘हो सकता है मनीषा,’’ कह कर वह बात खत्म कर लौट गई.

पर उस के बाद उस के दरवाजे पर कुत्ते की पौटी बंद हो गई. इस के बाद वह जब भी मनीषा से टकराई, मनीषा ने सीधे मुंह बात नहीं की. उस का व्यवहार देख कर राशि सोच में पड़ गई कि आखिर उस की गलती क्या है. शायद शिवानी सही कहती है. उस दिन राशि सुबह उठी तो फ्लश जाम हो गया. फ्लश से पानी नीचे नहीं जा पा रहा था और ऊपर के फ्लैट से फ्लश हो कर पानी नीचे न जा पाने के कारण नाली में भर कर उन के पौट से बाहर निकलने को हो रहा था.

मानसून स्पेशल: एकांत कमजोर पल- भाग 2

बड़ी बेगम जानती थीं इस का गुस्सा निकलना अच्छा है. उन्होंने बहस नहीं की.

बोलीं, ‘‘ठीक है तुम को लगता है तुम अकेली ही अच्छी परवरिश कर सकती हो तो ठीक है, पर मैं चाहती हूं कि तुम तलाक की अर्जी 6 महीने बाद दो. कुछ वक्त दो फिर जो तुम्हारा फैसला होगा मैं मानूंगी.’’

‘‘नो वे अम्मी मैं 6 दिन भी न दूं. जबजब मुझे याद आता है साहिल और बाई… घिन आती है उस के नाम से. कोई इतना गिर सकता है?’’

बड़ी बेगम ने दुनिया देखी थी. अपने पति को बहुतों के साथ देखा था. उन्होंने अपने अनुभव का निचोड़ बताया, ‘‘वह एक वक्ती हरकत थी. उस का कोई अफेयर नहीं था. जब एक औरत और एक मर्द अकेले हों तो दोनों के बीच तनहाई में एक कमजोर पल आ सकता है.’’

मैं भी तो औफिस में अकेली मर्दों के साथ घंटों काम करती हूं. मेरे साथ तो कभी ऐसा नहीं हुआ. आत्मसंयम और मर्यादा ही इंसान होने की पहचान हैं वरना जानवर और आदमी में क्या फर्क है?’’

‘‘मैं ने अब तक तुम से कुछ नहीं कहा पर बहुत सोच कर तुम से समय देने को कह रही हूं. आगे तुम्हारी जो मरजी.’’

‘‘ठीक है आप कहतीं हैं तो मान लेती हूं पर मेरे फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’’

सनोबर यह सोच कर मान गई कि उसे भी तो कुछ काम निबटाने हैं. प्रौपर्टी के पेपर अपने नाम करवाना और सेविंग्स में नौमिनी बदलना आदि. फिर अभी औफिस का भी प्रैशर है. रात को रोज की तरह साहिल ने फोन किया तो सनोबर ने उठा लिया.

साहिल खुशी और अचंभे के मिलेजुले स्वर में बोला, ‘‘सनोबर मुझे माफ कर दो, वापस आ जाओ.’’

सनोबर ने तटस्थ स्वर में कहा, ‘‘मुझे तुम से मिलना है.’’

साहिल बोला, ‘‘हां, हां… जब कहो.’’

सनोबर बोली, ‘‘कल औफिस के बाद घर पर.’’ और फोन रख दिया.

औफिस के बाद सनोबर घर पहुंची. साहिल उस की प्रतिक्षा कर रहा था. घर भी उस ने कुछ ठीक किया था. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने झिड़क दिया और दूर बैठ गई.

‘‘साहिल मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहती. शांति से सब तय करना चाहती हूं. मेरातुम्हारा जौइंट अकाउंट बंद करना है. इंश्योरैंस पौलिसीज में नौमिनी हटाना है. इस फ्लैट में तुम्हारा जो पैसा लगा वह तुम ले लो. मैं इसे अपने नाम करवाना चाहती हूं. मुझे तुम से कोई पैसा नहीं चाहिए, मैं काजी के यहां खुला (औरत की ओर से निकाह तोड़ना) की अर्जी देने जा रही हूं.’’

थोड़ी देर के लिए साहिल चुप रहा फिर बोला, ‘‘सनोबर, मेरा जो कुछ है सब तुम्हारा और हमारी बेटी का है. तुम सब ले लो मुझे मेरी सनोबर दे दो. मुझे एक बार माफ कर दो. मेरी गलती की इतनी बड़ी सजा न दो. अगर तुम मेरी जिंदगी में नहीं तो मैं यह जिंदगी ही खत्म कर दूंगा,’’ सनोबर जानती थी साहिल भावुक है पर इतना ज्यादा है यह नहीं जानती थी. वह उठ कर चली गई.

अब बस औफिस जाने और मन लगा कर काम करने में और बेटी के साथ उस का समय बीतने लगा. बड़ी बेगम के कहने पर और बेटी की जिद पर वह राजी हुई कि साहिल सप्ताह में एक बार बेटी से मिल सकता है. उसे बाहर ले जा सकता है. वह नहीं चाहती थी कि उस की बेटी को उस के पिता की असलियत पता चले. इस आयु में यदि उसे पिता के घिनौने कारनामे का पता चलेगा तो वह जाने क्या प्रतिक्रिया करे. साहिल सप्ताह में 2 घंटे के लिए बेटी को घुमाने ले जाता, गिफ्ट दिलाता और सनोबर की पसंद का भी कुछ बेटी के साथ भेजता पर सनोबर आंख उठा कर भी न देखती.

तभी सनोबर की पदोन्नति हुई साथ ही मुख्यालय में तबादला भी. सनोबर को न चाह कर भी दिल्ली जाना पड़ा. बेटी को नानी के पास छोड़ना पड़ा. स्कूल का सैशन समाप्त होने में अभी 2 महीने थे. बड़ी बेगम ने आश्वासन दिया, ‘‘मैं संभाल लूंगी तुम जाओ मगर हर वीकैंड पर आ जाना.’’

मुख्यालय में उस के कुछ पूर्व साथी भी थे, सब ने स्वागत किया. एक प्रोजैक्ट में उस को समीर के साथ रखा गया. समीर भी सनोबर का पुराना साथी था और उस पर फिदा भी था.

समीर और सनोबर साथसाथ काम करते हुए काफी समय एकदूसरे के साथ बिताते. सनोबर ने साहिल और अपने बारे में समीर को नहीं बताया. जिस प्रोजैकट पर दोनों काम कर रहे थे उस में क्लाइंट की लोकेशन पर भी जाना होता था. दोनों साथसाथ जाते, होटल में रहते और काम पूरा कर के आते. घंटों अकेले एकसाथ काम करते. आज भी दोनों सुबह की फ्लाइट से गए थे. दिन भर काम कर के रात को होटल पहुंचे. समीर बोला, ‘‘फ्रैश हो लो फिर खाना खाने नीचे डाइनिंगरूम में चलते हैं.’’

सनोबर बोली, ‘‘तुम जाओ. मैं अपने रूम में ही कुछ मंगवा लूंगी.’’

समीर बोला, ‘‘ठीक है मेरा भी कुछ और्डर कर देना, साथ ही खा लेंगे.’’

सनोबर को समीर चाहता भी था, उस का आदर भी करता था. सनोबर के हैड औफिस आने के बाद समीर ने कभी अपने पुराने प्यार को प्रकट नहीं किया. वह अपनी पत्नी और बच्चों में खुश था.

समीर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना आने की प्रतीक्षा में दोनों काम से जुड़ी बातें ही करते रहे. समीर की पत्नी का फोन भी आया. समीर की और उस की पत्नी की बातों से लग रहा था दोनों सुखी व संतुष्ट हैं.

समीर ने साहिल के बारे में पूछा तो सनोबर बात टाल गई. फिर खाना आया, दोनों खाना खातेखाते पुराने दिनों की बातें करने लगे.

समीर ने सनोबर से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात बताओ यदि तुम साहिल से शादी न करतीं तो क्या मुझ से शादी करतीं?’’

सनोबर झिझकी फिर बोली, ‘‘शायद हां.’’

समीर ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘‘अरे पहले बताती तो मैं उस को गोली मार देता,’’ बात आईगई हो गई. दोनों ने खाना खाया फिर समीर अपने कमरे में चला गया.

सनोबर सोचने लगी समीर अच्छा दोस्त हैं. फिर जाने क्यों साहिल याद आ गया. वह काफी थकी थी. कुछ ही देर में सो गई. अगले दिन भी दोनों बहुत व्यस्त रहे.

‘‘आज भी खाना कमरे में मंगवाते हैं ठीक है?’’ समीर ने पूछा तो सनोबर बोली, ‘‘हां, ठीक है.’’

फिर समीर फ्रैश हो कर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना और्डर कर के दोनों बातें करने लगे. सनोबर को खाते समय खाना सरक गया वह खांसने लगी. समीर ने उसे जल्दी से पानी निकाल कर दिया. पानी पी कर ठीक हुई. खाने के बाद समीर ने चाय बना कर सनोबर की दी तो दोनों का हाथ एकदूसरे से टकराया. दोनों चुपचाप धीरेधीरे चाय पीने लगे.

एक अजीब सा सन्नाटा छा गया. दोनों पासपास बैठे थे. एक अजीब सी चाह सनोबर ने अपने मन में महसूस की जैसे वह समीर के सीने से लग के रोना चाहती हो. फिर उस ने देखा समीर की निगाहें भी उस के ऊपर टिकी हैं. शायद वह भी सनोबर को अपनी बांहों में जकड़ना चाहता है. तभी उसे लगा कहीं यही वह एकांत कमजोर पल तो नहीं है जिस के बारे में अम्मी कह रही थी. वह संभल गई और उठ कर इधरउधर कुछ रखनेउठाने लगी. समीर से बोली, ‘‘अच्छा, कल मिलते हैं.’’

समीर भी उठते हुए बोला, ‘‘हां देर हो गई, गुड नाईट.’’

अगले दिन दोनों वापस आ गए. सनोबर अपनी अम्मी के पास चली गई. अम्मी उसे बताने लगीं कि उस की बेटी खाने में नखरा करती है. साहिल बेटी का बहुत ध्यान रखता है. अपने साथ ले जाता है, बराबर फोन करता है. अम्मी साहिल की प्रशंसा किए जा रही थीं.

सनोबर ने साहिल को फोन किया, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं अभी.’’ वह साहिल से मिलने चल पड़ी. साहिल पलकें बिछाए उस की राह ताक रहा था. घर लगता था साहिल ने ही साफ किया था. बैडरूम पर नजर गई तो बदलाबदला लग रहा था. साहिल बहुत प्यार से बोला, ‘‘अब तो वापस आ जाओ, मुझे माफ कर दो.’’

सनोबर एकांत कमजोर पल क्या होता है यह जान चुकी थी. उस ने साहिल को माफ कर दिया. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ा और दोनों एकदूसरे के बहुत पास आ गए.

 

एक और परिणीता

तंत्र मंत्र का खेला

Monsoon Special: छोटे छोटे सुख दुख- भाग 2

वह और सुमित परेशान हो गए. नीचे जा कर उस ने मनीषा को अपनी परेशानी बताई व सुमित ने ऊपर वाले फ्लैट में जा कर संजना के पति से फिलहाल उस वाले बाथरूम को इस्तेमाल न करने की प्रार्थना की. पर मनीषा, जो पहले से ही नाराज चल रही थी, सुनते ही भड़क गई. ‘‘हमारे यहां तो कोई दिक्कत नहीं…तुम्हारे यहां है, तुम जानो.’’  ‘‘मैं यह नहीं कह रही मनीषा कि तुम्हारे कारण दिक्कत है… समस्या तो कहीं बीच  में है… प्लंबर को बुलाने जा रहे हैं सुमित… पर थोड़ी दिक्कत तुम्हें भी होगी… प्लंबर यहां भी आएगा… देखेगा कि आखिर दिक्कत कहां है…’’ ‘‘मुझे तो आज बाहर जाना है… घर पर नहीं हूं.’’ ‘‘उफ, तो ऐसा करो तुम मुझे चाबी दे जाना… मैं खुद यहां पर खड़ी हो कर काम करवा लूंगी.’’ ‘‘अरे ऐसे कैसे चाबी दे दूं… पता नहीं कौन प्लंबर है… हर ऐरेगैरे नत्थु खैरे को घर में घुसा दो,’’ मनीषा बड़बड़ाने लगी. ‘‘देखो मनीषा, प्लंबर को दिखाना तो पड़ेगा… यह परेशानी भुगती तो नहीं जा सकती… ठीक तो करवानी ही पड़ेगी,’’ कह कर राशि ऊपर आ गई. उस दिन मनीषा के पति रोनित ने बात संभाल ली. प्लंबर आया. मनीषा के फ्लैट से ही उसे पाइप की प्रौबलम ठीक करनी पड़ी.

लेकिन मनीषा का राशि से उखड़ा मूड और भी उखड़ गया. शिवानी के नीचे वाले फ्लैट में रहने वाली रजनी भी कुछ कम नहीं थी. शिवानी तो इन तीनों से कई बार उलझ भी पड़ती, फिर ठीक भी हो जाती. पर राशि के बस का नहीं था ये सब कि कभी झगड़ा कर पीठ पीछे बुराइयां करो और फिर साथ बैठ कर कौफी पी लो. छोटीछोटी बातों पर किसी से झगड़ा करना नहीं आता था. एक दिन कूड़े वाला राशि की कूड़े की थैली उठा कर ले गया और रजनी के दरवाजे के सामने रख कर भूल गया.

रजनी ने शोर मचा दिया, ‘‘न जाने किस बदतमीज ने रख दिया यहां कूड़ा… शर्म नहीं आती… अनपढ़गंवार कहीं के…’’ बाहर शोर सुन कर राशि भी बाहर निकल आई. राशि दरवाजे पर रखी अपनी कूड़े की थैली तुरंत पहचान गई. जल्दी से नीचे उतर कर उस ने थैली उठा ली, ‘‘सौरी रजनी… लगता है कूड़ेवाला भूल से छोड़ गया,’’ पर रजनी के चेहरे के भाव व पहले सुने गए शब्द उसे अंदर तक अपमानित कर गए थे. अपार्टमैंट में होने वाले होली, दीवाली, नए साल, क्रिसमस के प्रोग्राम राशि को भी अच्छे लगते, खुशी देते पर ये छोटीछोटी परेशानियां उसे अंदर तक आहत कर देतीं.

सुमित राशि को समझाता, ‘‘मैं तो सोसाइटी के फ्लैट में आना ही नहीं चाहता था पर अब आ गए हैं तो सब के स्वभाव को झेलने की आदत बना लो… शिवानी भी तो यहीं रह रही है… इतना सैंसिटिव होने की जरूरत नहीं है. सब की अपनी फितरत होती है… कोई हमारी तरह का नहीं हो सकता… जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार कर लो… और क्या कर सकते हैं…’’ ‘‘पर फिर भी सुमित… आतेजाते ऐसे तनाव भरे चेहरे देख कर अच्छा नहीं लगता… थोड़े दिन ठीक रहती हैं ये तीनों, फिर लड़ पड़ती हैं किसी न किसी बात पर… अब फ्लैट्स इतने जुड़े होते हैं कि किसी से बिना मतलब रखे भी नहीं रहा जा सकता.’’

‘‘जैसे उस से रहा जाता है वैसे ही तुम भी रहो… तुम हर बात की परवाह क्यों करती हो. कुछ न कुछ प्रौबलम तो सब जगह होगी.’’ ऐसे ही छोटेछोटे सुखदुख के बीच जिंदगी बीत रही थी. राशि को भी धीरेधीरे 1 साल रहते होने को आ गया था. सुमित का प्रमोशन हुआ तो उस ने 16 परिवारों से सिर्फ 16 लेडीज को चाय पर बुला लिया. सब आईं सिवा मनीषा, रजनी व संजना के. बाकी सब ने कारण पूछा तो राशि को कारण ठीक से पता हो तो बताए. इतने छोटेछोटे भी कोई कारण होते हैं न्योता ठुकराने के. शिवानी को इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता था.

जब वे तीनों ठीक रहतीं तो वह भी अच्छे से बात कर लेती, जब नहीं रहतीं तो वह भी खुद मुंह पलट कर चली जाती. ‘‘लगता है, रजनी के घर आजकल मेहमान आए हैं. काफी चहलपहल रहती है,’’ एक दिन सुबह चाय पीती हुई राशि सुमित से कह रही थी कि तभी 3-4 बार जल्दीजल्दी घंटी बज उठी. ‘‘इतनी सुबह ऐसी घंटी कौन बजा रहा है,’’ हड़बड़ाहट में दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े. रजनी की कामवाली खड़ी थी, ‘‘भाभीजी, जल्दी नीचे चलिए रजनी भाभी के ससुरजी गुजर गए.’’ ‘‘ससुरजी गुजर गए… उन के सासससुर आए हुए थे क्या?’’ ‘‘हां, जल्दी चलिए… रात में उन की तबीयत खराब हुई… भैया अस्पताल ले कर गए थे… सुबह गुजर गए. घर में सिर्फ भाभीजी और उन की सास हैं…भैया अभी अस्पताल में ही हैं.’’ सुमित और राशि हड़बड़ाहट में सीढि़यां उतर गए.

अंदर दोनों सासबहू विलाप कर रही थीं. राशि दोनों को सांत्वना देने लगी. थोड़ी देर में पार्थिव शरीर घर आ गया. फ्लैट रिश्तेदारों व जानपहचान वालों से भरने लगा. राशि ने रजनी के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी सहर्ष अपने ऊपर ले ली. वह उन्हें अपने घर ले आई. जितनी मदद कर सकती थी उस ने सारे पूर्वाग्रह भूल कर उन की 13 दिन तक की.  13वीं हो गई. इस मुसीबत के वक्त राशि का सहयोग रजनी के दिल को छू  गया. अब वह संजना व मनीषा की परवाह करे बगैर राशि से ठीक से रिश्ता रखने लगी. संजना से राशि का आमनासामना तब भी कम होता था पर मनीषा से अकसर हो जाता था. इसलिए मनीषा का दुर्व्यवहार उसे बहुत अखरता था. संजना का बेटा मयंक और मनीषा की बेटी खुशी एक ही स्कूल में पढ़ते व एक ही रिकशे से स्कूल आतेजाते थे.

उस दिन सुमित की छुट्टी होने के कारण राशि और सुमित मार्केट से लौट रहे थे तो रास्ते में सड़क में भीड़ देख कर वे भी रुक गए. ‘‘क्या हुआ? उन्होंने एक राहगीर से पूछा.’’ ‘‘ऐक्सीडैंट हुआ है… एक रिकशे को कार ने टक्कर मार दी… 2 बच्चे बैठे थे रिकशे में…’’ ‘‘उफ, बच्चे तो ठीक हैं.’’ ‘‘चोटें आई हैं काफी.’’ सुमित उतर कर देखने चला गया. घायल मयंक व खुशी सड़क पर बैठे रो रहे थे. रिकशे वाले व कार चालक के बीच लड़ाई हो रही थी.

 

मानसून स्पेशल: एकांत कमजोर पल- भाग 3

औफिस के काम से सनोबर 2 दिनों के लिए बाहर गई थी. आज उसे रात को आना था पर उस का काम सुबह ही हो गया तो वह दिन में ही फ्लाइट से आ गई. इस समय बेटी स्कूल में होगी, पति औफिस में और बाई तो 5 बजे आएगी. वह अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर आई तो देखा लाईट जल रही है. बैडरूम

से कुछ आवाज आई तो वह दबे पैर बैडरूम तक गई तो देख कर अवाक रह गई. साहिल और बाई एक साथ…

वह वापस ड्राइंगरूम में आ गई. साहिल दौड़ता हुआ आया और बाई दबे पैर खिसक ली.

साहिल सनोबर को सफाई देने लगा, ‘‘मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था. मेरी तबीयत खराब थी तो वह सिर दबाने लगी और मैं बहक गया. उस ने भी मना नहीं किया.’’

वह और भी जाने क्याक्या कहता रहा. सनोबर बुत बनी बैठी रही. वह माफी मांगता रहा.

सनोबर धीरे से उठी और अपने और अपनी बच्ची के कुछ कपड़े बैग में डालने लगी. बच्ची आई तो उसे ले कर अपनी अम्मी के पास चली गई. साहिल उसे रोकता रहा, माफी मांगता रहा पर सनोबर को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

घर आ कर मां से सारी बात बताई और फफक कर रो पड़ी, ‘‘साहिल ने मुझे धोखा दिया. अब मैं उस के साथ नहीं रह सकती.’’

बड़ी बेगम का दिल रो पड़ा. वर्षों पहले जिस आग में उन का घर जला था आज उन की बेटी के घर पर उस की आंच आ गई.

निकाह में शर्तें रखने से भी क्या हुआ? सब मर्द एकजैसे होते हैं, जब जिसे मौका मिल जाए कोई नहीं चूकता.

बड़ी बेगम ने बेटी को संभाला, ‘‘बेटी मैं तुम्हारा दुख समझ सकती हूं. तुम सो जाओ.’’ और उस का सिर अपनी गोद में रख कर सहलाने लगीं.

दूसरे दिन जब सनोबर औफिस गई और बच्ची स्कूल तो साहिल आया. जानता था बड़ी बेगम अकेली होगी. नौकरानी ने बैठाया. बड़ी बेगम को सलाम कर के बैठ गया. धीरे से बोला, ‘‘खालाजान, मुझ से बड़ी गलती हो गई. मैं एक कमजोर पल में बहक गया था. मुझ से गलती हो गई. मैं कसम खाता हूं अब कभी ऐसा नहीं होगा. मुझे माफ कर दीजिए, सनोबर से माफ करवा दीजिए,’’ इतना सब वह एक सांस में ही कह गया था.

बड़ी बेगम चुप रहीं. उन को बहुत दुख था और गुस्सा भी. साहिल की बातों और आंखों में शर्मिंदगी और पछतावा था. वे धीरे से बोलीं, ‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती, जैसा सनोबर चाहे.’’

‘‘खालाजान मेरा घर टूट जाएगा, मेरी बेटी मेरे बारे में क्या सोचेगी? मैं सनोबर के बिना जी नहीं सकता.’’

बड़ी बेगम कुछ न कह सकीं.

शाम को जब सनोबर औफिस से आई तो बड़ी बेगम ने बताया कि साहिल आया था और माफी मांग रहा था.

सनोबर ने गुस्सा किया, ‘‘आप ने उसे आने क्यों दिया? हमारा कोई रिश्ता नहीं उस से. मैं तलाक लूंगी.’’

बड़ी बेगम को याद आया जब वकील साहब दूसरी बीवी ले आए थे तो वे भी मायके जाना चाहती थीं पर उन का न तो कोई सहारा था न वे अपने पैरों पर खड़ी थीं. आज सनोबर अपने पैरों पर खडी है. अपने फैसले खुद ले सकती है. फिर सोचने कि लगीं तलाक से इस मासूम बच्ची का क्या होगा? मां या बाप किसी एक से कट जाएगी. अगर दोनों ने दूसरी शादी कर ली तो इस का क्या होगा? वे अंदर ही अंदर डर गईर्ं. अपने बेटे को सनोबर और साहिल के बारे में बताया तो वह दूसरे दिन ही आ गया. दोनों बहनभाई की एक ही राय थी कि तलाक ले लिया जाए. साहिल रोज फोन करता, मैसेज भेजता पर सनोबर जवाब न देती.

साहिल बड़ी बेगम से मिन्नतें करता, ‘‘खालाजान, आप सब ठीक कर सकती हैं. एक बार मुझे माफ कर दीजिए और सनोबर से भी माफ करवा दीजिए. मैं अपनी गलती के लिए बहुत शर्मिंदा हूं.’’

एक दिन सनोबर औफिस से अपने फ्लैट पर कुछ सामान लेने गई तो उस ने देखा घर बिखरा है. किचन में भी कुछ बाहर का खाना पड़ा है. वह समझ गई बाई नहीं आ रही है. घर में हर तरफ लिखा था, ‘आई एम सौरी, वापस आ जाओ सनोबर.’ सनोबर को लगा साहिल 40 साल का नहीं, कोई नवयुवक हो और उसे मना रहा हो.

धीरेधीरे कई कोशिशों के बाद साहिल ने बड़ी बेगम को विश्वास दिला दिया कि यह एक कमजोर पल की भूल थी. उस ने पहले कभी कोई बेवफाई नहीं की. बड़ी बेगम ने सोचा यह तो सच है कि साहिल से भूल हो गई, अपनी गलती पर उसे शर्मिंदगी भी है, माफी भी मांग रहा है. प्रश्न बच्ची का भी है. वह दोनों में से किसी एक से छिन जाएगी. तो क्या इसे एक अवसर देना चाहिए?

बड़ी बेगम ने साहिल को बताया कि सनोबर तलाक लेने की तैयारी कर रही है. यह सुनते ही साहिल दौड़ादौड़ा आया, ‘‘खालाजान, अगर सनोबर ने तलाक की अर्जी डाली तो मैं मर जाऊंगा, मुझे एक मौका दीजिए और बच्चों की तरह रोने लगा.’’

बड़ी बेगम को दया आने लगी बोलीं, ‘‘तुम रो मत मैं आज बात करूंगी.’’

सनोबर बोली, ‘‘औफकोर्स अम्मी.’’

बड़ी बेगम ने भूमिका बांधी, ‘‘जब तुम्हारे अब्बू दूसरी बीवी ले आए थे तो मैं भी उन्हें छोड़ना चाहती थी पर सामने तुम दोनों बच्चे थे.’’

‘‘आप की बात अलग थी मैं खुद को और अपनी बच्ची को संभाल सकती हूं. उस की गलती की सजा उसे मिलना ही चाहिए, सनोबर बोली.’’

‘‘उस की गलती की सजा उस के साथसाथ तुम्हारी बेटी को भी मिलेगी या तो उस का बाप छिनेगा या मां और अगर तुम दोनों ने दूसरी शादी कर ली तो इस का क्या होगा?’’

‘‘अम्मी एक शादी से दिल नहीं भरा जो दूसरी करूंगी? रह गया पिता तो ऐसे पिता के होने से ना होना भला,’’ सनोबर के मन की सारी कड़वाहट होंठों पर आ गई.

Monsoon Special: जरूरी हैं दूरियां, पास आने के लिए

हमें तुम से प्यार कितना : भाग 2

दूसरे दिन शाम को मधु आलोक के घर पहुंची. आलोक की मां ने उस का स्वागत मुसकराते हुए किया और कहा, ‘आओ मधु, तुम्हारे बारे में मुझे आलोक बता चुका है.’ मधु ड्राइंगरूम में सोफे पर आलोक की मां के साथ बैठ गई.

अंशु भी आवाज सुन कर वहां आ गया.

‘आंटी को पहली बार देखा है. कौन हैं, क्या आप दिल्ली में ही रहती हैं?’ अंशू ने पूछा.

‘हां, मैं दिल्ली में ही रहती हूं, मेरा नाम मधु है. अगर तुम्हें अच्छा लगेगा तो मैं तुम से मिलने आया करूंगी,’ अंशू की ओर निहारते हुए बड़े प्यार से मधु ने उस से कहा, ‘तुम अपने बारे में बताओ, कौन से गेम खेलते हो, किस क्लास में पढ़ते हो?’

शरमाते हुए अंशू ने कहा, ‘मैं क्लास थर्ड में पढ़ता हूं. नाम तो आप जानते ही हो. घर में दादादादी हैं, पापा हैं.’ उस की आंखें आंसुओं से भर आई थीं. उस ने आगे कहा, ‘आंटी, मैं मम्मी की फोटो आप को दिखाऊंगा. मेरी मां का नाम सुहानी था जो….’ आगे वह नहीं बोल पाया.

अंशू को मधु ने गले लगा लिया, ‘बेटा, ऐसा मत कहो, मां जहां भी हैं वे तुम्हारे हर काम को ऊपर से देखती हैं. वे हमेशा तुम्हारे आसपास ही कहीं होती हैं. मैं तुम्हें बहुत प्यार करूंगी. तुम्हारी अच्छी दोस्त बन कर रोज तुम्हारे पास आया करूंगी, ढेर सारी चौकलेट, गिफ्ट और गेम्स ला कर तुम्हें दूंगी. बस, तुम रोना नहीं. मुझे तुम्हारी स्वीट स्माइल चाहिए. बोलो, दोगे न?’ एक बार फिर मधु ने अंशू को गले से लगा लिया. आलोक की मम्मी ने चाय बना ली थी. चाय पीने के बाद मधु वापस अपने घर चली गई.

आलोक की मां ने उसे मधु के बारे में बताते हुए कहा, ‘मुझे मधु बहुत अच्छी लगी. अंशू से बातचीत करते समय मुझे उस की आंखों में मां की ममता साफ दिखाई दी.’ इस के जवाब में आलोक ने मां को सुझाव दिया, ‘अभी कुछ दिन हमें इंतजार करना चाहिए. मधु को अंशू से मेलजोल बढ़ाने का मौका देना चाहिए ताकि यह पता चले कि वह मधु को स्वीकार कर लेगा.’

इस के बाद मधु ने स्कूटी पर अंशू के पास जानाआना शुरू कर दिया. वह अच्छाखासा समय उस के साथ बिताती थी. कभी कैरम खेलती थी तो कभी उस के साथ अंत्याक्षरी खेलती थी. उस की पसंद की खाने की चीजें पैक करवा कर उस के लिए ले जाती तो कभी उसे मूवी दिखाने ले जाती थी. एक महीने में अंशू मधु के साथ इतना घुलमिल गया कि उस ने आलोक से कहा, ‘पापा, आप आंटी को घर ले आओ, वे हमारे घर में रहेंगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

मधु और आलोक का विवाह हो गया. विवाह की धूमधाम में अंशू ने हर लमहे को एंजौय किया, जो निराशा और मायूसी पहले उस के चेहरे पर दिखती थी, वह अब मधुर मुसकान में बदल गई थी. वह इतना खुश था कि उस ने सुहानी की तुलना मधु से करनी बंद कर दी. सुहानी की फोटो भी शैल्फ से हटा कर अपनी किताबों वाली अलमारी में कहीं छिपा कर रख दी. आलोक ने महसूस किया जिद्दी अंशू अब खुद को नए माहौल में ढाल रहा था.

मधु ने आलोक का संबोधन तुम से आप में बदल दिया. उस ने आलोक से कहा, ‘‘तुम्हें अंशू के सामने तुम कह कर बुलाना ठीक नहीं लगेगा, इसलिए मैं आज से तुम्हें आप के संबोधन से बुलाऊंगी.’’ अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘हम अपने प्यार और रोमांस की बातें फिलहाल भविष्य के लिए टाल देंगे. पहले अंशू के बचपन को संवारने में जीजान से लग जाएंगे. वह अपनी क्लास में फर्स्ट पोजिशन में आता है, इंटैलीजैंट है. जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि अब वह मानसिक तौर पर मुझे मां के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर चुका है, तब हम हनीमून के लिए किसी अच्छे स्थान पर जाएंगे.’’

यह सुन कर आलोक को अपनी हमसफर मधु पर गर्व महसूस हो रहा था. खुश हो कर उस ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया. वे दोनों शादी के बाद दिल्ली के एक रैस्तरां में कैंडिललाइट में डिनर ले रहे थे. घर लौटते समय उन्होंने कनाट प्लेस से अंशू की पसंद की पेस्ट्री पैक करवा ली थी.

वे दोनों आश्चर्यचकित थे जब वापसी पर अंशू ने मधु से कहा, ‘‘मम्मा, आप ने देर कर दी, मैं कब से आप का इंतजार कर रहा था.’’

मधु ने पेस्ट्री का पैकेट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘अंशु, यह लो तुम्हारी पसंद की पेस्ट्री. तुम्हें यह बहुत अच्छी लगेगी.’’ अंशू की खुशी उस के चेहरे पर फैल गई.

अंशू चौथी कक्षा बहुत अच्छे अंकों के साथ पास कर चुका था. मधु की मां की ममता अपने शिखर पर थी. उस ने अपने बगीचे में अंशू की पसंद के फूलों के पौधे माली से कह कर लगवा दिए थे. जैसेजैसे ये पौधे फलफूल रहे थे, मधु को लगता था वह भी माली की तरह अपने क्यूट से बेटे की देखरेख कर रही है. आत्मसंतुष्टि क्या होती है, उस ने पहली बार महसूस किया.

शाम के समय जब आलोक घर आता था तो अंशू उस का फूलों के गुलदस्ते से स्वागत करता था. मधु का ध्यान अंशू की पढ़ाई के साथ उस की हर गतिविधि पर था. उस ने उसे तैयार किया कि वह स्कूल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले. अंशू के स्टडीरूम में शैल्फ पर कई ट्रौफियां उस ने सजा कर रख ली थीं. सब खुशियों के होते हुए पिछले 2-3 साल अंशू ने अपना बर्थडे यह कह कर मनाने नहीं दिया कि ऐसे मौके पर उसे सुहानी मां की याद आ जाती है.

दूसरे के बच्चे को पालना कितना मुश्किल होता है, यह महसूस करते हुए उस ने तय किया कि कभी वह अंशू को सुहानी मां के साथ बिताए लमहों के बारे में हतोत्साहित नहीं करेगी. अंशू का विकास वह सामान्य परिस्थिति में करना चाहती थी. जैसेजैसे उस का शोध कार्य प्रगति पर था उसे अभिप्रेरणा मिलती रही कि सब्र के साथ हर बाधा को पार कर वह अंशू के समुचित विकास के काम में विजेता के रूप में उभरे. उसे उम्मीद थी कि जितना वह इस मिशन में कामयाब होगी, उतना ही उसे आलोक और सासससुर का प्यार मिलेगा. दोनों के रिश्ते की बुनियाद दोस्ती थी. प्यार और रोमांस के लिए भविष्य में समय उपलब्ध था.

आलोक मधु की अब तक भूमिका से इतना खुश था कि उस की इच्छा हुई किसी रैस्तरां में शाम को कुछ समय उस के साथ बिताए. कनाट प्लेस की एक ज्वैलरी शौप से उस की पसंद के कुछ जेवर खरीद कर उसे गिफ्ट करते हुए उस ने कहा, ‘‘मधु, वैसे तो तुम्हारे पास काफी गहने हैं लेकिन मैरिज एनिवर्सरी न मना पाने के कारण हम कोई खास खुशी तो मना नहीं पाते हैं, यह गिफ्ट तुम यही समझ कर रख लो कि आज हम ने अपने विवाह की वर्षगांठ मना ली है. मम्मीपापा को इस के विषय में बता सकती हो. हम धूमधाम से तभी एनिवर्सरी मनाएंगे जब अंशू अपना जन्मदिन खुशी के साथ दोस्तों को बुला कर मनाना शुरू कर देगा.’’

रैस्तरां में उन दोनों की बातचीत बड़ी प्यारभरी हुई. डिनर के बाद जब वे रैस्तरां से बाहर निकले तो आलोक ने मधु का हाथ अपने हाथ में ले कर उस का स्पर्श महसूस करते हुए कहा, ‘‘मधु, मैं इंतजार में हूं कि कब हम लोग हनीमून के लिए किसी हिलस्टेशन पर जाएंगे. जब ऐसा तुम भी महसूस करो, मुझे बता देना. हम लोग इसी बहाने अंशू को भी साथ ले चल कर घुमा लाएंगे.’’

Monsoon Special: छोटे छोटे सुख दुख- भाग 3

‘‘तुम यहां झगड़ा करने लगे हो… बच्चों के कितनी चोटें लगी हैं… तुम से यह नहीं दिख रहा. इन्हें पहले तुरंत अस्पताल ले जाओ,’’ सुमित रिकशे वाले पर बरस पड़ा.  रिकशे वाला उसे पहचानता था. बोला, ‘‘साहब, मेरा रिकशा तो पूरी तरह टूट गया… जब तक भरपाई नहीं होगी तब तक नहीं छोड़ूंगा इन को.’’ ‘‘चाहे बच्चों का नुकसान हो जाए,’’ सुमित दहाड़ते हुए बोला, ‘‘मैं बच्चों को अस्पताल ले कर जा रहा हूं,’’ कह वह बच्चों को अपने साथ कार तक ले आया. बच्चों को इस हाल में देख कर राशि भी घबरा गई, ‘‘यह क्या हुआ?’’ ‘‘ऐक्सीडैंट हो गया… बच्चे इस समय स्कूल से लौट रहे होंगे,’’ सुमित बोला, ‘‘तुम मनीषा व संजना को फोन कर दो. मैं कार मोड़ कर इन्हें अस्पताल ले जाता हूं. उन्हें वहीं आने के लिए कह दो,’’ और फिर सुमित बच्चों को अस्पताल ले गया. जब तक दोनों बच्चों के मातापिता अस्पताल पहुंचे तब तक मयंक के सिर पर टांके और खुशी के हाथ में प्लास्टर चढ़ चुका था. संजना व मनीषा और उन के पतियों के कृतज्ञन चेहरे बिना कहे भी बहुत कुछ कह रहे थे.

‘‘अभी तो स्थिति कुछ ऐसी बन गई है कि तुम्हारी तीनों सहेलियों के मुंह से फिलहाल बोल नहीं फूटेंगे…’’ सुमित हंस कर राशि की खिंचाई करते हुए बोला, ‘‘फिलहाल कुछ दिन तक तो बहुत मिठास घोल कर बातें करने वाली हैं तीनों… कम से कम जब तक बच्चे ठीक नहीं हो जाते.’’ ‘‘हां, यह तो है. थोड़े दिन की टैंशन खत्म, राशि हंसने लगी.’’ आजकल सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है. शिवानी, संजना, मनीषा, राशि चारों नीचे टहलती हुई मिल जातीं तो बढि़या बातें होतीं. चारों में हंसीमजाक होती, चुहलबाजी भी होती. राशि को अच्छा लग रहा था कि चलो अब सब अच्छा रहेगा. 2 महीने गुजर गए. एक दिन सुबह राशि ने दूध लेने के लिए दरवाजा खोला तो दरवाजे के बीचोंबीच कुत्ते की पौटी पड़ी थी, उफ, राशि मन ही मन भड़क गई कि फिर वही… अब कुछ कहेगी तो मनीषा फिर भड़क जाएगी और नहीं कहती है तो रोज पौटी साफ करनी पड़ेगी. दूसरे दिन सुबह थोड़ा जल्दी उठ कर राशि ने दरवाजा खोल दिया और ऐसे बैठ गई कि यदि कुत्ता पौटी करने आए तो उसे दिखाई दे.

थोड़ी देर में मनीषा का कुत्ता सचमुच आ गया. राशि ने जोर से डांट कर भगा दिया.  इसी बीच दूध वाला भी आ गया. दूध वाले से बोली, ‘‘भैया, जरा नीचे की घंटी बजा कर बता देना कि आप का डौगी फिर यहां दरवाजे के आगे पौटी करने लगा है.’’ दूसरे दिन राशि नीचे टहल रही थी, तो मनीषा ने उसे देख कर फिर मुंह फेर लिया. ‘उफ, अब संजना और रजनी भी यही करेंगी.’

वह मन ही मन बड़बड़ाई. फिर उस ने भी तय कर लिया कि वह भी किसी की परवाह नहीं करेगी और फिर मुंह पलट टहलने दूसरी तरफ चली गई. रात को सुमित से बोली, ‘‘तुम ठीक कहते थे… मुझे भी यहां रहना अच्छा नहीं लग रहा… यह फ्लैट बेच कर कहीं इंडीपैंडैंट घर देखो.’’   सुमित ने थोड़ी देर उस के चेहरे को निहारा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, कल  ही बात करता हूं किसी प्रौपर्टी डीलर से.’’ सुमित के गालब्लैडर में पथरी थी. काफी समय से डाक्टर उसे औपरेशन के लिए कह रहे थे. पर आजकल करतेकरते सुमित टाल रहा था. लेकिन इस बार जब उसे दोबारा से दर्द हुआ तो डाक्टर ने उसे औपरेशन कराने की सख्त हिदायत दे डाली. आखिर सुमित औपरेशन के लिए तैयार हो गया. औपरेशन की डेट फिक्स कर उस ने औफिस से छुट्टी ले ली.

राशि के दोनों बच्चे बहुत छोटे तो नहीं थे, पर उन के खानेपीने की समस्या तो थी ही. औपरेशन के विषय में उस ने सिर्फ शिवानी को ही बताया था, पर यह खबर जंगल में आग की तरह पूरे अपार्टमैंट में फैल गई. सुमित औपरेशन के लिए अस्पताल में ऐडमिट हुआ तो सारा ‘अनामिका अपार्टमैंट’ जैसे वहीं आ गया. सुमित का औपरेशन ठीकठाक हो गया. अस्पताल में कहां से उस के लिए खाना पहुंच रहा है, कहां से सूप, दलिया, खिचड़ी पहुंच रही है, उस के बच्चे कहां खाना खा रहे हैं, बच्चे स्कूल कैसे जा रहे हैं, उन को टिफिन कौन बना कर दे रहा है, घर में काम करने वाली से काम कौन करवा रहा है ये सब सोचने की राशि को फुरसत नहीं थी. बस सारे काम हो रहे थे.

शिवानी के साथ रजनी, संजना, मनीषा बढ़चढ़ कर सब कुछ कर रही थीं. कहीं से नहीं लग रहा था कि वे कभी नाराज भी होती होंगी. सुमित घर आ गया और फिर ठीक हो कर औफिस भी जाने लगा. लेकिन राशि की सोच इस बीच रास्ता बदल चुकी थी. कहीं नहीं जाना है उसे यहां से. यहीं रहेगी. अजीब सा दिल जुड़ गया है इन सब के साथ… छोटेछोटे सुखदुख हैं सब के साथ रहने में… सब जगह कुछ न कुछ होंगे… चलता है. उस ने सोचा सुमित को आज ही न करना पड़ेगा. शिवानी का तरीका सही है, सब के साथ भी और सब से अलग भी सोच कर राशि मुसकरा पड़ी.

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