नादान मोहब्बत का नतीजा

उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के थाना छत्ता की गली कचहरी घाट में रामअवतार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुका था, मंझली के लिए लड़का ढूंढ रहा था. सब से छोटी शिल्पी हाईस्कूल में पढ़ रही थी.

शिल्पी की उम्र  भले ही कम थी, पर उस की शोखी और चंचलता से रामअवतार और उस की पत्नी चिंतित रहते थे. पतिपत्नी उसे समझाते रहते थे, पर 15 साल की शिल्पी कभीकभी बेबाक हो जाती थी. इस के बावजूद रामअवतार ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन की यह बेटी एक दिन ऐसा काम करेगी कि वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

कचहरी घाट से कुछ दूरी पर जिमखाना गली है. वहीं रहता था शब्बीर. उस का बेटा था इरफान, जो एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. इरफान के अलावा शब्बीर के 2 बेटे और थे.

शिल्पी जिमखाना हो कर ही स्कूल आतीजाती थी. वह जब स्कूल जाती तो इरफान अकसर उसे गली में मिल जाता. आतेजाते दोनों की निगाहें टकरातीं तो इरफान के चेहरे पर चमक सी आ जाती. इस से शिल्पी को लगने लगा कि इरफान शायद उसी के लिए गली में खड़ा रहता है.

शिल्पी का सोचना सही भी था. दरअसल शिल्पी इरफान को अच्छी लगने लगी थी. यही वजह थी, वह उसे देखने के लिए गली में खड़ा रहता था. कुछ दिनों बाद वह शिल्पी से बात करने का बहाना तलाशने लगा. इस के लिए वह कभीकभी उस के पीछेपीछे कालोनी के गेट तक चला जाता, पर उस से बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता. जब उसे लगा कि इस तरह काम नहीं चलेगा तो एक दिन उस के सामने जा कर उस ने कहा, ‘‘मैं कोई गुंडालफंगा नहीं हूं. मैं तुम्हारा पीछा किसी गलत नीयत से नहीं करता. मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

CRIME

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ शिल्पी ने पूछा.

‘‘बात सिर्फ इतनी है कि मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूं.’’ इरफान ने कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम से दोस्ती नहीं करना चाहती. मम्मीपापा कहते हैं कि लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं.’’ शिल्पी ने कहा और मुसकरा कर आगे बढ़ गई.

इरफान उस की मुसकराहट का मतलब समझ गया. हिम्मत कर के उस ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है, तुम सोचसमझ लेना. मैं तुम्हें सोचने का समय दे रहा हूं.’’

‘‘कोई देख लेगा.’’ कह कर शिल्पी ने अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई. किसी लड़के ने उसे पहली बार ऐसे छुआ था. उस के शरीर में बिजली सी दौड़ गई थी. शिल्पी उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां आसानी से फिसलने का डर रहता है. इरफान पहला लड़का था, जिस ने उस से दोस्ती की बात कही थी, पर मांबाप और समाज का डर आड़े आ रहा था.

इरफान के बारे में शिल्पी ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. बस इतना जानती थी कि वह जिमखाना गली में रहता है. उसे उस का नाम भी पता नहीं था. धीरेधीरे इरफान ने उस के दिल में जगह बना ली. मिलने पर इरफान उस से थोड़ीबहुत बात भी कर लेता. पर उसे प्यार के इजहार का मौका नहीं मिल रहा था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘चलो, ताजमहल देखने चलते हैं. वहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

शिल्पी ने हां कर दी तो दोनों औटो से ताजमहल पहुंच गए. वहां शिल्पी को जब पता चला कि उस का नाम इरफान है तो उस ने कहा, ‘‘ओह तो तुम मुसलमान हो?’’

‘‘हां, मुसलमान हूं तो क्या हुआ? क्या मुसलमान प्यार नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, ठीकठाक कमाता भी हूं. और मैं वादा करता हूं कि जीवन भर तुम्हारा बनकर रहूंगा. तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.’’

इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी.

मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.

बेटी के बारे में सुन कर रामअवतार के कान खड़े हो गए. दोपहर में जब वह घर पहुंचा तो पता चला कि शिल्पी अभी तक घर नहीं आई है. पत्नी ने बताया कि वह रोज देर से आती है. कहती है कि एक्स्ट्रा क्लास चल रही है.

रामअवतार दुकान पर लौट गया. कुछ देर बाद पत्नी का फोन आया कि शिल्पी आ गई है तो वह घर आ गया. उस ने शिल्पी से पूछताछ की तो उस ने कहा कि वह किसी लड़के से नहीं मिलती. छुट्टी के बाद मैडम क्लास लेती हैं. इसलिए देर हो जाती है.

रामअवतार जानता था कि शिल्पी झूठ बोल रही है. वह खुद उसे पकड़ना चाहता था, इसलिए उस ने उस से कुछ नहीं कहा. कुछ दिनों तक शिल्पी से कोई टोकाटाकी नहीं हुई तो वह निश्ंिचत हो गई. वह इरफान के साथ घूमनेफिरने लगी. फिर एक दिन रामअवतार ने उसे इरफान के साथ देख लिया. उस ने शिल्पी को डांटाफटकारा ही नहीं, उस का स्कूल जाना भी बंद करा दिया.

बंदिश लगने से शिल्पी का प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया. वह उस से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी, जिस से उसे अपने ही घर वाले दुश्मन नजर आने लगे. अब घर उसे कैदखाना लगने लगा था. उस का मन कर रहा था कि किसी तरह वह इस चारदीवारी को तोड़ कर अपने प्रेमी के पास चली जाए. एक दिन उसे वह मौका मिला तो वह इरफान के साथ भाग गई.

हिंदू लड़की को मुसलमान लड़का भगा कर ले गया था. इस बात पर इलाके में तनाव फैल गया. थाना छत्ता में 28 अगस्त, 2010 को रामअवतार की तरफ से शिल्पी को भगाने वाले इरफान के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया. इस के बाद पुलिस सक्रिय हो गई. जल्दी ही पुलिस ने दोनों को ढूंढ निकाला. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया. चूंकि शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए अदालत ने उसे उस के पिता को सौंप दिया और इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी के जेल जाने से शिल्पी बहुत दुखी थी. वह अपने पिता के खिलाफ खड़ी हो गई. मांबाप और रिश्तेदारों ने शिल्पी को लाख समझाने की कोशिश की, पर उस के दिलोदिमाग से इरफान नहीं निकला. शिल्पी की उम्र भले ही कमसिन थी, पर उस की मोहब्बत तूफानी थी. जबकि समाज और कानून की नजर में उस की मोहब्बत बेमानी थी, क्योंकि वह नाबालिग थी.

इरफान 3 महीने बाद जेल से बाहर आ गया. उस के जेल से बाहर आने पर शिल्पी बहुत खुश हुई. दोनों के बीच चोरीछिपे मोबाइल से बातचीत होने लगी. शिल्पी पर नजरों का सख्त पहरा था. उसे घर से निकलने की इजाजत नहीं थी. वह अपने प्रेमी से मिलने के लिए छटपटा रही थी, पर रामअवतार और उस की पत्नी माया सतर्क थे.

शिल्पी और इरफान साथसाथ रहने का मन बना चुके थे. मांबाप की लाख निगरानी के बावजूद एक दिन रात में शिल्पी प्रेमी के पास पहुंच गई. इरफान इस बार उसे ले कर इलाहाबाद चला गया. इरफान ने लव मैरिज के लिए हाईकोर्ट के वकीलों से बात की, लेकिन शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए कोई मदद नहीं कर सका.

इस के बाद इरफान ने एक काजी की मदद से शिल्पी से निकाह कर लिया. शिल्पी दोबारा घर से भागी थी. इस बार किसी ने विरोध नहीं किया, पर रामअवतार परेशान था. वह मदद के लिए पुलिस के पास पहुंचा तो पुलिस ने इरफान के घर वालों पर दबाव डाला. करीब एक महीने बाद इरफान शिल्पी के साथ वापस आ गया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, शिल्पी अभी भी नाबालिग थी, लेकिन इस बार उस ने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया. तब अदालत ने उसे नारी निकेतन तो इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी युगल को कानून ने एक बार फिर जुदा कर दिया. लेकिन उन की मोहब्बत जुनूनी हो गई थी. शिल्पी अब अपने बालिग होने का इंतजार कर रही थी. इस से तय हो गया कि बाहर आने के बाद दोनों साथसाथ रहेंगे. तब साथ रहने का उन के पास कानूनी अधिकार होगा.

14 महीने बाद जब शिल्पी नारी निकेतन से बाहर आई, तब तक इरफान भी जेल से छूट चुका था. हालांकि नारी निकेतन के दरवाजे पर शिल्पी के मांबाप मौजूद थे, लेकिन शिल्पी ने साफ कहा कि वह अपने शौहर के साथ जाएगी. बेबस मांबाप देखते ही रह गए और बेटी प्रेमी के साथ चली गई. क्योंकि अब वह बालिग थी और अपनी मरजी की मालिक थी.

मांबाप के प्रति उस के मन में प्यार नहीं, नफरत थी. जिन के कारण उसे नारी निकेतन में रहना पड़ा तो प्रेमी को जेल में. शिल्पी जब नहीं मानी तो मांबाप ने भी उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. अब वह इस दर्द को भूलना चाहते थे कि बेटी ने समाज में उन्हें कितना जलील किया था.

शिल्पी ने अपनी दुनिया प्रेमी के साथ बसा ली थी. उस ने कभी भी नहीं जानना चाहा कि उस के कारण मांबाप का क्या हाल हुआ. किस तरह से वो अपनी तारतार हुई इज्जत के साथ जी रहे थे.

धीरेधीरे प्यार का नशा उतरने लगा और शिल्पी को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन वह पिता के घर पहुंच गई. मां का दिल पिघल गया, उस ने उसे गले से लगा लिया. उस दिन के बाद शिल्पी चोरीछिपे पिता के घर जाने लगी.

CRIME

इरफान का काफी पैसा पुलिसकचहरी और इधरउधर की भागदौड़ में खर्च हो गया था. उस ने फिर से जूता फैक्ट्री में काम शुरू कर दिया था, लेकिन शिल्पी की ख्वाहिशें बढ़ रही थीं. उस का खयाल था कि शादी के बाद शौहर उसे एक रंगीन दुनिया में ले जाएगा, पर उस ने महसूस किया कि जिंदगी उतनी रंगीन नहीं है, जैसा कि उस ने सोचा था. उस की चाहतों की उड़ान बहुत ऊंची थी. उसे लग रहा था कि इरफान ने जो खुशियां देने का वादा किया था, वह पूरा नहीं कर पा रहा है.

एक दिन उस ने इरफान से कहा, ‘‘जब तक तुम प्रेमी थे, तब तक मोहब्बत से लबरेज थे. लेकिन अब जब शौहर हो गए हो तो लगता है कि तुम्हारी मोहब्बत भी ठंडी पड़ गई है.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारी मोहब्बत में मैं 2-2 बार जेल गया हूं. पुलिस के जुल्म सहे हैं. अब तुम मुझे ही ताने दे रही हो.’’ इरफान ने कहा.

‘‘मैं भी तो तुम्हारी खातिर नारी निकेतन में रही. मांबाप का घर छोड़ा, आज भी उन की उपेक्षा सह रही हूं.’’ शिल्पी ने तुनक कर कहा.

इसी तरह के छोटेछोटे झगड़ों में एक दिन इरफान ने उसे 2 तमाचे जड़ दिए तो शिल्पी हैरान रह गई पहले तो वह कहता था कि उसे फूलों की तरह रखेगा, उस ने उस पर हाथ उठा दिया. उस ने कहा कि अगर उसे पता होता कि उस की मोहब्बत इतनी कमजोर होगी तो वह उसे कभी स्वीकार न करती.

शिल्पी को लगा कि उस ने गलती कर दी है. लेकिन अब उसे जिंदगी इरफान के साथ ही गुजारनी थी. आखिर हिम्मत कर के वह मायके गई और रोरो कर मां को अपना दुख सुनाया. उस ने कहा कि इरफान पर काफी कर्जा हो गया, जिस से वह तनाव में रहता है. मां ने बेटी का दुख सुना और उसे माफ भी कर दिया. लेकिन जब रामअवतार को पता चला कि बेटी घर आई थी तो वह गुस्से से भर उठा. उस ने पत्नी से साफ कह दिया कि जिस आदमी को उस ने दामाद माना ही नहीं, वह उस की मदद कतई नहीं कर सकता.

घर में अब आए दिन झगड़े होने लगे थे. ससुराल में शिल्पी का कोई हमदर्द नहीं था. मायके वाले भी नहीं अपनाएंगे, शिल्पी यह भी जानती थी. वह तनाव में रहने लगी. उसे लगने लगा कि जिंदगी कैद के सिवाय कुछ नहीं है.

इरफान की समझ में आ गया कि मोहब्बत का खेल बहुत हो चुका है. उसे जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए पैसे की जरूरत थी, जिस के लिए मेहनत जरूरी थी. बेटी ने भले ही परिवार को दर्द दिया था, पर ममता मरी नहीं थी. मांबाप बेटी के लिए परेशान थे, पर वह उसे अपनाना नहीं चाहते थे.

12 दिसंबर, 2016 को रामअवतार को किसी ने फोन कर के बताया कि शिल्पी को मार दिया गया है. बेटी की मौत की खबर से रामअवतार सदमे में आ गया. उस ने तुरंत माया को यह खबर सुनाई और पत्नी के साथ शब्बीर के घर पहुंच गया, जहां मकान की ऊपरी मंजिल पर बेटी का शव पलंग पर पड़ा था. उस के गले पर जो निशान थे, उस से साफ लग रहा था कि उसे गला घोंट कर मारा गया है. बेटी की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

पुलिस को भी खबर मिल गई थी. थाना छत्ता के थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह मय फोर्स के घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने रामअवतार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि करीब सवा महीने पहले बेटी को फोन कर के बताया था कि इरफान उसे मारतापीटता है और मायके से पैसा लाने को कहता है.

बेटी ने परिवार को बड़ा जख्म दिया था, इस कारण वह बेटी से नाराज था. इसलिए उस समय उसने उस से ज्यादा बात नहीं की थी. वह यह नहीं जानता था कि इरफान उसे जान से ही मार डालेगा.

इरफान और उस के घर वाले फरार हो चुके थे. पुलिस ने रामअवतार और मोहल्ले वालों की मौजूदगी में घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

रामअवतार की तरफ से थाना छत्ता में शब्बीर और उस के बेटों इरफान, जमीर, फुरकान व शाहनवाज के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि शिल्पी की मौत दम घुटने से हुई थी. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि यह हत्या का मामला था. पुलिस अब आरोपियों के पीछे लग गई. पुलिस ने आरोपियों के कई ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन कोई भी हाथ नहीं लगा.

घटना के हफ्ते भर बाद शब्बीर पुलिस की गिरफ्त में आ गया. इस के बाद धीरेधीरे सभी आरोपी पकड़े गए. शब्बीर ने बताया था कि उस ने बहू को नहीं मारा. अगर उसे कोई परेशानी होती तो वह बेटे का विवाह हिंदू लड़की से न होने देता. उस ने उसे सम्मान के साथ घर में रहने की जगह दी.

शब्बीर के अनुसार शिल्पी की मौत में उस का कोई हाथ नहीं है. इरफान शिल्पी के साथ ऊपर के कमरे में रहता था. जबकि अन्य लोग नीचे रहते थे. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज कराई गई थी, इसलिए पुलिस ने उस का बयान ले कर उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी को जेल भेज दिया.

सिर्फ इरफान पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस ने उस की भी सरगर्मी से तलाश शुरू की तो जून, 2017 में उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन उस ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया. उस का कहना था कि वह शिल्पी से मोहब्बत करता था. शिल्पी को खुश रखने के लिए वह मेहनत कर के पैसा कमा रहा था. उस ने खुद ही फांसी लगा कर जान दी है.

इरफान भी जेल चला गया. शिल्पी मोहब्बत में इस कदर बागी हुई कि अपनों के मानसम्मान की भी परवाह नहीं की, पर उस को यह नहीं मालूम था कि समाज के नियमों को तोड़ने वालों को समाज माफ नहीं करता.

रामअवतार भले बेटी से नाराज था, पर अपनी गुमराह बेटी को उस की मौत के बाद माफ कर चुका है, अब वह बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है. वह नादान बेटी को गुमराह करने वालों को माफ नहीं करना चाहता बल्कि उन्हें सजा दिलाना चाहता है.

जिस्म की आग में मां बेटी ने खेला खूनी खेल

8 नवंबर, 2016 को किसी ने राजस्थान के बाड़मेर जिले के थाना पचपदरा पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि मंडापुरा साजियाली फांटा के पास सड़क किनारे झाडि़यों में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जयकिशन सोनी पुलिस टीम के साथ सूचना में बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां बबूल की झाडि़यों में 25-26 साल के एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के गले में रस्सी का फंदा लगा था. इस से यही लग रहा था कि उस की हत्या रस्सी से गला घोंट कर की गई थी. लाश के पास किसी आदमी के पैरों के निशान के साथ मोटरसाइकिल के टायरों के भी निशान थे.

पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, पर मृतक को कोई भी पहचान नहीं सका. थानाप्रभारी ने अज्ञात युवक की लाश मिलने की सूचना बाड़मेर के एसपी डा. गगनदीप सिंगला और बालोतरा के एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू को भी दे दी थी.

कुछ ही देर में एसपी और एडिशनल एसपी भी मौके पर पहुंच गए. लाश का निरीक्षण कर उन्होंने भी वहां मौजूद लोगों से बात की. इस के बाद दोनों पुलिस अधिकारी थानाप्रभारी जयकिशन सोनी को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए बालोतरा के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सलाहमशविरा कर के लाश के फोटो वाट्सएप ग्रुप में शेयर कर लोगों से शिनाख्त की अपील की. पुलिस की यह तरकीब काम कर गई और किसी ने उस की शिनाख्त कर दी. उस का नाम गोमाराम था और वह थाना धोरीमन्ना के गांव कोठाला के रहने वाले गुमानाराम का बेटा था.

जयकिशन सोनी ने गुमानाराम को बुलवाया तो उन्होंने बालोतरा अस्पताल जा कर लाश देखी और उस की शिनाख्त अपने बेटे गोमाराम के रूप में कर दी. शिनाख्त हो गई तो पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों को सौंप दी गई. घर वालों ने पुलिस को बताया कि गोमाराम की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. इस से मामला और पेचीदा हो गया. पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी.

एसपी डा. गगनदीप सिंगला ने इस केस को सुलझाने के लिए 2 पुलिस टीमें बनाई. पहली टीम में थाना नागाणा के थानाप्रभारी देवीचंद ढाका, एसपी (स्पेशल टीम) कार्यालय से भूपेंद्र सिंह तथा ओमप्रकाश और दूसरी टीम में कल्याणपुर के थानाप्रभारी चंद्र सिंह व उन के थाने के तेजतर्रार सिपाहियों को शामिल किया.

दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू कर रहे थे. पुलिस ने मृतक के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि बाटाड़ू गांव का एक लड़का मृतक के साथ आताजाता रहता था. 2 महीने पहले वह गांव लुखू स्थित मृतक की ससुराल भी गया था.

उस युवक की पहचान गंगाराम निवासी दुर्गाणियों का तला, थाना लुंदाड़ा गिड़ा, के रूप में हुई. पुलिस ने 13 नवंबर, 2016 को उसे जोधपुर से धर दबोचा. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो सारा सच सामने आ गया.

उस ने बताया कि गोमाराम की हत्या में उस की पत्नी वीरो और सास जीतो भी शामिल थीं. पुलिस ने 14 नवंबर की सुबह उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से पूछताछ के बाद गोमाराम की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान का बाड़मेर जिला जाट बाहुल्य है. यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेतीकिसानी है. पहले राजस्थान में बालविवाह का प्रचलन था. दादादादी अथवा नानानानी की मौत होने पर मौसर (मृत्युभोज) की कड़ाही पर नन्हें बच्चों का बालविवाह करने की परंपरा थी.

अक्षय तृतीया को भी हजारों की संख्या में बालविवाह किए जाते थे. इसी जिले के गांव कोठाला के रहने वाले गोमाराम का भी 15-16 साल पहले लुखू गांव के श्रवणराम चौधरी की बेटी के साथ बालविवाह हुआ था. उस समय वीरो की उम्र 4 साल थी, जबकि गोमाराम 10 साल का था.

घर वालों ने गुड्डेगुडि़यों के खेल की तरह छोटी सी उम्र में इन दोनों की शादी कर दी थी. इस से पहले गोमाराम की शादी अपनी ही बिरादरी की एक लड़की के साथ हो गई थी, पर गौना होने से पहले ही उस की बीवी टांके में डूब कर मर गई थी. राजस्थान में अंडरग्राउंड बने पानी के टैंक को टांका कहते हैं.

वक्त के साथ गोमाराम और वीरो जवान हो गए. दोनों ने घर वालों से सुन रखा था कि उन की बचपन में ही शादी हो चुकी है. गोमाराम ने स्कूली पढ़ाई के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, जबकि वीरो जब 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तभी उस का गौना गोमाराम से कर दिया गया था.

वीरो ने अपने वैवाहिक जीवन को ले कर कई रंगीन ख्वाब देखे थे, मगर गौने के बाद जब गोमराम से उस का सामना हुआ तो उस के ख्वाब टूट गए. किसी सुंदरस्वस्थ युवक के बजाय उस का पति दुबलापतला और शराबी था. चूंकि उस के साथ उस की शादी हो चुकी थी, इसलिए निभाना उस की मजबूरी थी.

गोमाराम हर समय शराब के नशे में डूबा रहता था. पत्नी से जैसे उसे कोई लगाव ही नहीं था. वह तो केवल शराब को अपनी जरूरत समझता था. नईनवेली दुलहन का दुखसुख पूछना तो दूर, वह उस से रात में भी बात नहीं करता था. शराब पी कर वह बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क जाता था.

गौने के कुछ दिनों बाद ससुराल से वीरो जब मायके आई तो उस ने अपना दुखड़ा अपनी मां जीयो से कह सुनाया. उस ने साफसाफ कहा कि ऐसे शराबी के साथ वह जिंदगी कैसे गुजारेगी. बेटी की व्यथा सुन कर जीयो को भी महसूस हुआ कि बचपन में गोमाराम के साथ बेटी की शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी.

मां ने उसे दिलासा दी कि वक्त के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा. गौने के बाद वीरो स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों में ससुराल गई. मगर पति की शराब की आदत में कोई सुधार नहीं आया. गौने के डेढ़ साल तक वह ससुराल में रही. उस ने अपने प्यार से पति का दिल जीतना चाहा, पर पति पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

वीरो ने मायके आ कर मां को सारी बातें बताईं तो बेटी का दुख देख कर जीयो को बड़ा झटका लगा. गोमाराम जोधपुर शहर की एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. उस के साथ गंगाराम और उस का भाई चूनाराम भी काम करते थे. तीनों आपस में अच्छे दोस्त थे.

गोमाराम अपनी ज्यादातर कमाई शराब पर उड़ा देता था. वहीं गंगाराम और चूनाराम शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. वे अपनी तनख्वाह बचा कर रखते थे.  गोमाराम की बीवी वीरो पिछले 6 महीने से मायके में थी. गोमाराम कभीकभी उस से फोन पर बातें कर लेता था. वह उस से आने को कहती तो वह पैसे न होने का बहना कर देता. उस के पास पैसे होते भी कहां से, क्योंकि वह सारे पैसे शराब में उड़ा देता था.

एक बार पैसे न होने पर गोमाराम ने अपना मोबाइल चूनाराम को बेच दिया. चूनाराम ने वह मोबाइल अपने भाई गंगाराम को दे दिया. वीरो को यह बात पता नहीं थी, इसलिए जब उस ने पति को फोन किया तो फोन गंगाराम ने रिसीव किया. वीरो ने पूछा, ‘‘कैसे हो?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. तुम कैसी हो?’’ गंगा ने पूछा.

उस की आवाज सुन कर वीरो चौंकी, क्योंकि एक तो वह आवाज उस के पति की नहीं थी, दूसरे पति ने कभी उस से इतनी तमीज से बात नहीं की थी. उस ने कहा, ‘‘यह नंबर तो गोमाराम का है, आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं गोमाराम का दोस्त गंगाराम बोल रह हूं. उन का फोन मैं ने ले लिया है. आप इसी नंबर पर फोन करना, मैं गोमा से बात करा दूंगा.’’

‘‘बात क्या करनी है, उन्हें तो शराब पीने से ही फुरसत नहीं है. उन के लिए कोई मरे या जिए, उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है.’’ वीरो ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘आप सही कह रही हैं, उसे सचमुच किसी की परवाह नहीं है. आप को मायके गए कितने दिन हो गए, मिलने तक नहीं जाता. पता नहीं कैसा आदमी है. दिनरात शराब में मस्त रहता है.’’

‘‘बिलकुल सही कह रहे हैं आप.’’ वीरों ने लंबी सांस ले कर कहा.

इस बातचीत से गंगाराम समझ गया कि वीरो अपने पति से खुश नहीं है. इसलिए जब भी वीरो उस से बात करती, वह उस से बड़ी तहजीब से बातें करता.

गंगाराम की यही आदत वीरो को भा गई. वह अकसर उस से मोबाइल पर बातें करने लगी. उसे गंगारम ने बताया कि उस का बचपन में बालविवाह हुआ था. वीरो जब भी गंगाराम से बातें करती, उसे अपनेपन का अहसास होता.

थोड़े दिनों तक फोन पर होने वाली बातों से दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. वीरों ने अपनी मां जीयो को भी गंगाराम के बारे में बता दिया. जीयो ने भी गंगाराम से बात की. उसे भी गंगाराम का व्यवहार सही लगा. इस के बाद जीयो ने गंगाराम से कहा कि गोमाराम के साथ उस की बेटी खुश नहीं है. अगर वीरो का उस से तलाक हो जाए तो नाताप्रथा के तहत वह बेटी का ब्याह उस के साथ कर देगी.

इस बात से गंगाराम का दिल बागबाग हो उठा. वीरो ने भी गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम का दोस्त है, उसे तलाक के लिए मनाए. एक दिन गोमा जब शराब के नशे में धुत था तो गंगाराम ने उस से कहा, ‘‘तुम वीरो का जीवन क्यों बरबाद कर रहे हो. उसे तलाक दे दो.’’

‘‘तलाक… मैं उसे इस जनम में तो तलाक नहीं दूंगा. वह अपने आप को बहुत सुंदर और होशियार समझती है. मुझे शराबी, निकम्मा और न जाने क्याक्या कहती है. इसलिए जीते जी मैं उसे तलाक नहीं दे सकता. वह शादीशुदा हो कर भी विधवा की तरह जीती रहे. बस मैं यही चाहता हूं?’’ गोमाराम ने कहा.

गंगाराम ने यह बात जब वीरो को बताई तो उस ने अपनी मां से बात की. इस के बाद उन्होंने गंगाराम को अपने गांव लुखू बुलाया. यह 2 महीने पहले की बात है. गंगाराम अपनी प्रेमिका वीरो से मिलने लुखू पहुंच गया. वहां पर गंगाराम और वीरो ने एकदूसरे को देखा.

दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. बस फिर क्या था, मांबेटी ने गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम से वीरो का तलाक करवा दे. अगर वह तलाक के लिए राजी न हो तो उसे रास्ते से हटा दे. गंगाराम को भी उन की बात पसंद आ गई.

गंगाराम गोमाराम को रास्ते से हटाने का मौका तलाशने लगा. वीरो और उस की मां की गंगाराम से अकसर मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. दोनों उसे उकसाती रहती थीं कि जल्द से जल्द गोमाराम का पत्ता साफ करे. गंगाराम भी इसी धुन में था, मगर मौका नहीं मिल रहा था.

गोमाराम ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की बीवी और सास उस की हत्या का तानाबाना बुन रही हैं. वह तो अपनी मस्ती में मस्त था. आखिर 7 नवंबर, 2016 को गंगाराम को उस समय मौका मिल गया, जब दिन में ही गोमाराम उसे शराब के नशे में धुत मिल गया. इस मौके को भला वह हाथ से क्यों जाने देता.

उस ने रात होने का इंतजार किया. रात करीब 8 बजे गंगाराम ने अपनी मोटरसाइकिल पर गोमाराम को बिठाया और गांव चलने को कहा. गोमाराम उस मना नहीं कर सका. बालोतरा रोड पर मोटरसाइकिल पहुंची तो रास्ते में भांडू गांव के ठेके से गंगाराम ने शराब की बोतल खरीद कर गोमाराम को दी. एक जगह बैठ कर वह उसे पी गया. इस के बाद दोनों ने कल्याणपुर के एक ढाबे पर खाना खाया.

गंगाराम को लग रहा था कि गोमाराम अभी भी होश में है. उस ने पचपदरा में जोधपुर रोड पर उसे फिर शराब पिलाई. इस से उसे गहरा नशा हो गया. मोटरसाइकिल के पीछे बैठ कर वह लहराने लगा. गंगाराम इसी मौके की ताक में था. वह गोमा को मोटरसाइकिल से उतार कर बबूल की झाडि़यों के बीच ले गया और वहीं उस का गला दबा कर मार डाला. लाश को वहीं पड़ी छोड़ कर वह मोटरसाइकिल से जोधपुर चला गया.

गंगाराम ने गोमाराम की हत्या करने की बात वीरो तथा जीयो को बता दी थी. वीरो खुश थी कि अब गंगाराम से वह नाता के तहत ब्याह कर लेगी. गंगाराम भी यही सोच रहा था. मगर पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेरते हुए 5 दिनों में इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 16 नवंबर, 2016 को तीनों को पचपदरा की कोर्ट में पेश किया, जहां से वीरो और जीयो को केंद्रीय कारागार जोधपुर और गंगाराम को बालोतरा जेल भेज दिया गया. क्योंकि बालोतरा जेल में महिलाओं को रखने की जगह नहीं है. इस मामले में भी वही हुआ, जो ऐसे मामलों में होता है. थानाप्रभारी जयकिशन सोनी इस मामले की जांच कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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