नया खिलौना : जब खेल बना श्रुति का प्यार

आज श्रुति की खुशी का ठिकाना न था. स्कूल से आते समय उस लड़के ने मुसकरा कर उसे फ्लाइंग किस जो दी थी. 16 साल की श्रुति के दिल की धड़कनें बेकाबू हो उठी थीं. वह पल ठहर सा गया था. वैसे उस लड़के के साथ श्रुति की नजरें काफी दिनों पहले ही चार हो चुकी थीं. आतेजाते वह उसे निहारा करता. श्रुति को भी ऊंचे और मजबूत कदकाठी का करीब 18 साल का वह लड़का पहली नजर में भा गया था. लड़का श्रुति के घर से कुछ दूर मेन रोड पर बाइक सर्विसिंग सैंटर में काम करता था.

श्रुति की एक सहेली उस लड़के को जानती थी. उसी सहेली ने बताया था कि जतिन नाम का एक लड़का अपने घर का इकलौता बेटा है और 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद कुछ घरेलू परेशानियों के कारण काम करने लग गया है.

घर में सब के होने के बावजूद श्रुति बारबार बरामदे में आ कर खड़ी हो जाती ताकि उस लड़के को एक नजर फिर से देख सके. श्रुति के दिल की यह हालत करीब 2 महीने से थी पर  आज इस प्रेम की गाड़ी को रफ्तार मिली जब उस लड़के ने उस से साफ तौर पर अपनी चाहत जाहिर की.

अब श्रुति का ध्यान पढ़ाई में जरा सा भी नहीं लग रहा था. उस की नजरों के आगे बारबार वही चेहरा घूम जाता. हाथ में मोबाइल थामे वह लगातार यही सोच रही थी कि उस लड़के का मोबाइल नंबर कैसे हासिल करे.

बहन की उलझन भाई ने तुरंत भांप ली. श्रुति को भी तो कोई राजदार चाहिए ही था. उस ने अपने मन की हर बात खुद से 2 साल छोटे भाई गुड्डू से कह दी. भाई ने भी अपना फर्ज अच्छी तरह निभाते हुए झट श्रुति का फोन नंबर एक कागज पर लिखा और उस लड़के के पास पहुंच गया.

‘यह क्या है?’ उस के सवाल पूछने पर गुड्डू ने बड़ी तेजी से जवाब दिया, ‘खुद समझ जाओ.’

कागज थमा कर वह घर चला आया और श्रुति मोबाइल हाथ में ले कर बड़ी बेचैनी से कौल का इंतजार करने लगी. मोबाइल की घंटी बजते ही वह दौड़ कर छत पर चली जाती ताकि अकेले में उस से बातें कर सके. मगर नंबर दिए हुए 3 घंटे बीत गए, पर उस लड़के की कोई कौल नहीं आई.

उदास सी श्रुति छत पर टहलती रही. उस की निगाहें लगातार उस लड़के पर टिकी थीं जो अपने काम में मशगूल था. थक कर वह किचन में मम्मी का हाथ बंटाने लगी कि मोबाइल पर छोटी सी रिंग हुई. श्रुति फोन के पास तक पहुंचती तब तक मोबाइल खामोश हो चुका था. गुस्से में  वह फोन पटकने ही वाली थी कि फिर उसी नंबर से कौल आई. पक्का वही होगा, सोचती हुई वह कूदती हुई छत पर पहुंच गई. अपनी बढ़ी धड़कनों पर काबू करते हुए हौले से ‘हैलो’ कहा तो उधर से ‘आई लव यू’ सुन कर उस का चेहरा एकदम से खिल उठा.

‘‘मैं भी आप को बहुत पसंद करती हूं. मुझे आप की हाइट बहुत अच्छी लगती है,’’ श्रुति ने चहक कर कहा.

‘‘बस हाइट और कुछ नहीं,’’ कह कर जतिन हंसने लगा. श्रुति शरमा गई फिर तुनक कर बोली, ‘‘फोन करने में इतनी देर क्यों लगाई?’’

‘‘अच्छा, इतना इंतजार था मेरी कौल का?’’ वह भी मजे ले कर बातें करने लगा.

श्रुति और जतिन देर तक बातें करते रहे. रात में श्रुति ने फिर से उसे कौल लगा दी. अब तो यह रोज की कहानी हो गई. श्रुति जब तक दिन में 10 बार उस से बातें नहीं कर लेती, उस का दिल नहीं भरता. एग्जाम आने वाले थे पर श्रुति का ध्यान पढ़ाई में कहां लग रहा था. वह तो खयालों की दुनिया में उड़ रही थी.

अकसर वह जतिन से मिलने जाती. जतिन श्रुति को चौकलेट्स और शृंगार का सामान ला कर देता तो वह फूली नहीं समाती. उस से बातें करते समय वह सबकुछ भूल जाती. ठीक उसी प्रकार जैसे बचपन में अपने खिलौने से खेलते हुए दुनिया भूल जाती थी.

उस लड़के का प्यार एक तरह से श्रुति के लिए खिलौने जैसा लुभावना था जिसे वह दुनिया से छिपा कर रखना चाहती थी. उसे डर था कि कहीं किसी को पता लग गया तो वह प्यार उस से छीन लिया जाएगा. पापा से वह खासतौर पर डरती थी. पापा ने एक बार गुस्से में उस का सब से पहला खिलौना तोड़ दिया था. तब से वह उन से खौफजदा रहने लगी थी. अपनी जिंदगी में जतिन की मौजूदगी की भनक तक नहीं लगने देना चाहती थी.

और फिर वही हुआ जिस का डर था. उस का 9वीं कक्षा का फाइनल रिजल्ट अच्छा नहीं आया. पापा ने रिजल्ट देखा तो बौखला गए. चिल्ला कर बोले, ‘‘बंद करो इस की पढ़ाईलिखाई. बहुत पढ़ लिया इस ने. अब शादी कर देंगे.’’

श्रुति सहम गई. कहीं यह खिलौना भी पापा छीन न लें. यह सोच कर रोने लगी. अब वह 10वीं कक्षा में आ गई थी. फाइनल एग्जाम में किसी भी तरह उसे अच्छे नंबर लाने थे. वह मन लगा कर पढ़ने लगी ताकि एग्जाम तक उस की परफौर्मैंस सुधर जाए. इधर जतिन भी दूसरी जौब करने लगा था. अब वह श्रुति को हर समय नजर नहीं आ सकता था. वह कभीकभार ही मिलने आ पाता. श्रुति भी उस से कम से कम बातें करती. एग्जाम में वह अच्छे नंबर ले कर पास हो गई. समय धीरेधीरे बीतता गया और अब श्रुति उस लड़के से बातचीत भी बंद कर चुकी थी. देखतेदेखते वह 12वीं की भी परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर गई. अच्छे अंकों से पास करने से उसे अच्छे कालेज में दाखिला भी मिल गया.

कालेज के पहले दिन वह बहुत अच्छे से तैयार हुई. कुछ दिनों पहले ही बालों में रिबौंडिंग भी करा चुकी थी. जींस और टीशर्ट के साथ डैनिम की जैकेट और खुले बालों में काफी स्मार्ट लग रही थी. उस ने खुद को मिरर में निहारा और इतराती हुई सहेली के साथ निकल पड़ी.

कालेज गेट के पास अचानक वह सामने से आते एक लड़के से टकरा गई. सौरी कहते हुए उस लड़के ने श्रुति के हाथ से गिरा हैंडबैग उसे थमाया और एकटक उसे निहारने लगा. श्रुति का दिल तेजी से धड़कने लगा. बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाला वह लड़का श्रुति को पहली नजर में भा गया था. वह दूर तक पलटपलट कर उस लड़के को देखती रही.

कालेज में पूरे दिन श्रुति की नजरें उसी लड़के को ढूंढ़ती रहीं. लंच में वह कैंटीन में दिखा तो श्रुति मुसकरा उठी. वह लड़का भी हैलो कहता हुआ उस के पास आ गया. दोनों ने देर तक बातें कीं और एकदूसरे का फोन नंबर भी ले लिया. घर जा कर भी उन के बीच बातें होती रहीं. कालेज के पहले दिन हुई दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई.

श्रुति के पास जब से आकाश नाम का यह नया खिलौना आया वह पुराना खिलौना यानी जतिन को भूल गई. अब कभी जतिन उसे फोन कर बात करने की कोशिश भी करता तो वह उसे इग्नोर कर देती, क्योंकि वह अपना सारा समय अब अपने बिलकुल नए और आकर्षक खिलौने यानी आकाश के साथ जो बिताना चाहती थी.

 

पीछा करता डर : पीठ में छुरा भाग-5

युवती ने एक ही बार में गिलास खाली कर दिया. पीने के बाद तीनों ने साथसाथ खाना खाया. खाना खातेखाते तीनों ही नशे में डूब चुके थे. खाना खाने के बाद भानु नंदन की ओर देख कर उठते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू फौर ड्रिंक्स एंड डिनर. अब चलता हूं.’’

‘‘फोटो तो डिलीट कर दो. तुम ने वादा किया था.’’ नंदन माथुर ने कहा, तो भानु कोट की जेब में डाथ डालते हुए बोला, ‘‘हां, वादा तो किया था. वादा निभाने में भी मुझे कोई एतराज नहीं है.’’ भानु जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘लो, ये लो मोबाइल ही रख लो. तुम कोई गैर थोड़े ही हो. सुबह ले लूंगा.’’

नंदन ने मोबाइल लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो भानु ने हाथ पीछे खींच लिया. वह युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘दोस्त, मुझे फोटोग्राफी का बड़ा शौक है. अब एक क्लाइमेक्स सीन और बनाना है. उस के बाद मोबाइल तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘कौन सा सीन?’’

‘‘तुम दोनों एक बार गले लग जाओ.’’

‘‘ब्लैकमेल करना चाहते हो हमें’’ नंदन माथुर ने कहा, तो भानु बोला, ‘‘ब्लैकमेल ही करना होता तो इस सब की जरूरत नहीं थी. काफी सबूत जुटा लिए मैं ने नंदन माथुर को नंगा करने के लिए. तुम लोग हकीकत में एंजौय कर रहे हो और मैं केवल उस की एक झलक देखना चाहता हूं. चलो दोस्त, दोनों आलिंगनबद्ध हो जाओ. उस के बाद मैं इस कमरे की घुटन में एक पल भी नहीं रूकूंगा.’’

नंदन माथुर और युवती नशे में थे और भानु को किसी तरह टालना चाहते थे. अत: उसे खुश करने के लिए एकदूसरे की बाहों में सिमट गए. जब वे दोनों एकदूसरे की बांहों में सिमटे थे, तभी भानु ने तड़ातड़़ उन के 2-3 शौट खींच लिए.

फोटो खींचने के बाद भानु ने मोबाइल जेब में डाला और हाथ हिला कर दरवाजे की ओर बढ़ते हुए बोला, ‘‘गुड नाइट फ्रैंडस, सुबह चाय पर मुलाकात होगी.’’

‘‘भानु,’’ नंदन गुस्से में चीखे, ‘‘ये क्या बद्तमीजी है. तुम ने फोटो डिलीट करने की बात की थी. हम ने तुम्हारी हर बात मानी, अब मोबाइल दो मुझे.’’

भानु ने पीछे मुड कर नंदन की ओर देखा और मुस्कराते हुए व्यंग्य में बोला, ‘‘पता नहीं इतना बड़ा बिजनैस कैसे चलाते हो! अक्ल तो खाक की भी नहीं है तुम्हारे अंदर. जरा सोचो, जिस कैमरे में इतनी कीमती फोटो हों, उसे मैं तुम्हें मुफ्त में क्यों दूंगा.’’

‘‘ये बात पहले ही तय हो चुकी थी. तुम ने खुद ही वादा किया था.’’

भानु वापस लौट कर नंदन के पास आया और उस के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘दोस्त, यह मामला रुपएपैसे या बिजनैस का नहीं है. ऐसे धंधों में वादा खिलाफी आम बात है. बड़ी सीधी सी बात है, इस हाथ लो, इस हाथ दो. मेरा खयाल रखोगे तो मैं मोबाइल तुम्हारे हाथ में थमा दूंगा.’’

‘‘और क्या चाहिए तुम्हें?’’ नंदन ने गुस्से में पूछा, तो भानु युवती की ओर देख कर मुस्कराते हुए बोला, ‘‘ये…क्या नाम है इस का? ओह, आईसी, जान का जंजाल. आज की रात तुम्हारी जान के जंजाल को अपनी जान का जंजाल बनाना चाहता हूं. बोलो, हां या न?’’

‘‘भानु.’’ नंदन गुस्से में चीखे तो भानु सहज स्वर में बोला, ‘‘गुस्सा सेहत के लिए हानिकारक तो होता ही है नंदन! कभीकभी इज्जत के लिए भी दुखदाई बन जाता है. ठंडे दिमाग से सोचो, इस मोबाइल में तुम्हारी और इस लड़की की जिंदगी की हकीकत कैद है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो यह हकीकत यहीं दफन हो जाएगी और नहीं मानी तो यही हकीकत सजधज कर मेरठ की सड़कों पर भरतनाट्यम करेगी.’’

‘‘यह ठीक नहीं है भानु.’’ नंदन माथुर हथियार डालते हुए परेशान हो कर बोले, ‘‘किसी की इज्जत से इस तरह खेलना ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं इज्जत से कहां खेल रहा हूं. मैं तो सिर्फ अपना हक मांग रहा हूं.’’ भानु युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘बंद कमरे में तुम एक जवान लड़की के साथ ऐश कर सकते हो, तो क्या मैं नहीं कर सकता? मैं तो उम्र में भी तुम से साल 2 साल छोटा ही हूं.’’

‘‘ये लड़की कालगर्ल नहीं है भानु. मेरी…’’

‘‘तुम्हारी प्रेमिका है,’’ भानु नंदन का वाक्य पूरा करते हुए व्यंग्य से बोला, ‘‘दो बच्चों के बाप और चालीस साला आदमी की चौबीस साला कोई प्रेमिका भी हो सकती है, यह आज पहली बार पता चला. यह भी आज पहली बार जाना कि कोई शादीशुदा लड़की अधेड़ उम्र के अपने प्रेमी के लिए मायके जाने के नाम पर पति को धोखा दे कर ऐश करने के लिए मेरठ से दिल्ली आ सकती है.’’

पलभर रूक कर भानु युवती की बगल में खड़ा होते हुए बोला, ‘‘जो लड़की मानमर्यादा और पति को छोड अपने से डेढ़ गुनी उम्र वाले मर्द की बांहों में सिमट सकती है, वह कालगर्ल से कम नहीं होती.

तुम्हें क्या फर्क पड़ता है, जैसा तुम्हारा पति, वैसा ही नंदन और वैसा ही मैं. इज्जत का जरा भी खयाल है तो हां कर दो.’’

नंदन समझ चुके थे कि बाजी भानु के हाथों में है. अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्हें मोबाइल हासिल करना जरूरी लगा. सोच विचार कर उन्होंने लड़की से बात की. युवती भी जान चुकी थी कि इज्जत बचाने का एक ही विकल्प है कि वह भानु के साथ जाए. उस ने हां कर दी, तो नंदन भानु से बोले, ‘‘मोबाइल दो, सुजाता तुम्हारे कमरे में जा रही है.’’

भानु ने इस बार कोइ नानुकुर नहीं की. सुजाता का हाथ थामते हुए उस ने जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन की ओर बढ़ा दिया. जातेजाते वह नंदन की ओर देख कर बोला, ‘‘दोस्त बुरा मत मानना. इस पर दिल आ गया था, इसलिए इतना प्रपंच करना पड़ा. 2 घंटे बाद इसे वापस भेज दूंगा. सोना नहीं, इंतजार करना.’’

भानु सुजाता के साथ कमरे से बाहर निकल गया. नंदन मोबाइल हाथ में थामे खड़े रह गए. मोबाइल गौर से देखा तो याद आया, भानु पिछले महीने विदेशी टुअर से लौटा था तो एक जैसे 2 मोबाइल ले कर आया था, एक अपने लिए, एक उन के लिए. लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया था. देखा, उस मोबाइल में उन का और सुजाता का कोई फोटो नहीं था. इस का मतलब भानु ने उन्हें दूसरा मोबाइल थमा दिया था.

हालांकि भानु ने कमरा नंबर बताया था. पर उन्हें भरोसा नहीं था कि उस ने सच बोला होगा. रात में तमाशा करना उन्हें वैसे भी ठीक नहीं लगा. वह बेड पर जा लेटे, लेकिन नशे के बावजूद वह सो नहीं सके. 2 घंटे बाद जब सुजाता वापस लौटी, तो वह जाग रहे थे. सुजाता नशे में भी थी और थकी हुई भी वह आते ही सो गई, लेकिन नंदन माथुर रातभर नहीं सो सके.

सुबह 7 बजे जब डोर बेल बजी तब भी नंदन जाग रहे थे. उन्होंने दरवाजा खोला, तो भानु को सामने खड़े पाया. वह कुछ कहते इस से पहले ही भानु बोला, ‘‘मैं जा रहा हूं. मेरा मोबाइल लौटा दो.’’

‘‘मैं ने तोड़ कर डस्टबिन में डाल दिया तुम्हारा मोबाइल. कहो तो ला दूं.’’ नंदन ने गुस्से में कहा, तो भानु ने मुस्कराते हुए जेब में हाथ डाल कर वैसा ही मोबाइल निकाल कर दिखाते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं दोस्त, वो तुम्हारा ही था. मेरा मोबाइल तो मेरे पास है और उस में फोटो और रिकौर्डिंग दोनों हैं.’’

भानु अपनी बात कह कर आगे बढ़ गया नंदन मूक खड़े उसे जाते देखते रह गए.

अगले दिन शाम को भानु ने नंदन को पीनेपिलाने के लिए अपनी कंपनी में बुलाया तो वह डर की वजह से इनकार नहीं कर सके. दोनों आमनेसामने बैठे. हमेशा की तरह बातचीत कुछ नहीं.

एकएक पैग पीने के बाद भानु ने जेब से मोबाइल निकाल कर नंदन के सामने रखते हुए कहा, ‘‘मुंह मत बना, ले खुद सब कुछ डिलीट कर दे. तू दोस्त है मेरा. तेरी इज्जत मेरी इज्जत. तू सुजाता को छुपा रहा था, इसलिए ऐसा करना पड़ा. मैं ने तो हमेशा हिस्सा बांटा है तुम से.’’

शिकस्त-भाग 4: शाफिया-रेहान के रिश्ते में दरार क्यों आने लगी

2 दिनों बाद मैं वक्त पर तैयार हो कर बाहर निकली. रेहान को लैटर मिल चुका था. उन्होंने कार का दरवाजा खोला. मैं ने कहा, ‘रेहान, जब रास्ते अलग हो रहे हैं तो फिर साथ जाने का कोई मतलब नहीं है. आप जाइए, मेरी टैक्सी आ रही है, मैं कोर्ट पहुंच जाऊंगी.’

कोर्ट में जज ने हम दोनों की बात ध्यान से सुनी. ‘खुला’ की वजह मेरे मुंह से जान कर जज ने हिकारतभरी नजर रेहान पर डाली और कहा, ‘रेहान साहब, जो कुछ आप कह रहे हैं वह ठीक नहीं है. 11-12 साल की खुशगवार जिंदगी को एक गलत ख्वाहिश के पीछे बरबाद कर रहे हैं. मैं आप दोनों को सोचने के लिए एक हफ्ते का टाइम देता हूं. दूसरी पेशी पर फैसला हो जाएगा.’ रेहान ने सिर झुका लिया.

कोर्ट से आ कर मैं ने टेबल पर बेहतरीन खाना लगाया जो मैं पका कर गई थी. मैं बच्चों से बातें करती रही, फिर गेस्टरूम में आई. पूरे वक्त हमारे बीच खामोशी रही. आबी कुछ कहना चाहती, तो मैं वहां से हट जाती. हफ्ताभर मैं एक से बढ़ कर एक मजेदार खाने बना कर खिलाती रही. रेहान के चेहरे पर फिक्र की लकीरें गहरी हो रही थीं. आखिरी दिन मुझे रोक कर बोले, ‘शाफी, मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’ रेहान ठहरे हुए गंभीर लहजे मेें आगे बोले, ‘देखो शाफी, हमारा इतना दिनों का साथ है, मैं तुम्हें तनहा नहीं छोड़ना चाहता. तुम गेस्टरूम में रहो या मैं अलग घर का इंतजाम करवा दूंगा. बच्चों पर मेरा हक है पर तुम चाहो तो अपने साथ रखना. पर हम लोगों से दूर मत जाओ, करीब रहो.’

मैं ने दिल में सोचा, बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर डाल कर तुम दोनों ऐश करो. मैं ने गंभीर लहजे में कहा, ‘रेहान, मैं पहले भी कह चुकी हूं, मुझे आप के किसी एहसान की जरूरत नहीं है. और मैं आप का हक भी नहीं छीनना चाहती. आप के बच्चे आप के पास रहेंगे क्योंकि मैं उन्हें वह ऐशोआराम नहीं दे सकती जो आप के पास मिलेगा. मैं सिर्फ आप के घर, आप की जिंदगी से दूर हो जाऊंगी. मैं क्या करूंगी, कहां रहूंगी, इस की आप फिक्र न करें. यह मेरा सिरदर्द है.’

बेइंतहा ताज्जुब से सब मेरा चेहरा देख रहे थे जिस पर कोई जज्बात न थे, एकदम सपाट व बेजान. बेटा असद बोल उठा, ‘मम्मी, आप के जाने के बाद अच्छेअच्छे खाने कौन बनाएगा?’ असद भी बाप की तरह मतलबी था. उसे खाने की पड़ी थी, मां की परवा न थी. मैं ने कहा, ‘आप की नई मां बनाएगी और खिलाएगी.’ शीरी फौरन बोल पड़ी, ‘पर मम्मी, उन्हें तो कुछ पकाना नहीं आता है.’

मैं ने कहा, ‘तुम्हारे पापा की मोहब्बत में सब सीख जाएगी.’ असद को फिर परेशानी हुई. वह भी बाप की तरह लापरवाह और कामचोर था, आज तक अपने कपड़े उठा कर न रखे थे, न प्रैस किए थे, न अलमारी जमाई थी, न कमरा साफ किया था. सारे काम मैं ही करती थी. वह कह उठा, ‘मम्मी, हमारे सब काम कौन करेगा?’

‘तुम्हारी नई मम्मी करेगी. वह सब संभाल लेगी. वह संभालने में ऐक्सपर्ट है, जैसे आप के पापा को संभाल लिया.’

आज मुझे कोई लिहाज नहीं रहा था. दोनों के चेहरे शर्म से झुके हुए थे. फिर मैं ने बच्चों से कहा, ‘आप दोनों जैसी जिंदगी जीने के आदी हो वह आप के पापा ही बरदाश्त कर सकते हैं, मैं नहीं. पर आप दोनों जब चाहो, मुझ से मिलने आ सकते हो.’

दूसरे दिन सुबह ही सोहा कार ले कर आ गई. उसे देख कर मुझे एक साहस मिल गया. फोन पर रोज बात होती थी. हम दोनों साथ ही कोर्ट गए. आधा घंटे समझाइश व नसीहत के बाद खुला मंजूर हो गया. ज्यादा वक्त इसलिए नहीं लगा क्योंकि दोनों पक्ष पूरी तरह सहमत थे. और रहीम साहब भी कोशिश में साथ थे.

मैं ने घर पहुंच कर रेहान को मुबारकबाद दी. मैं ने अपना सामान पहले ही तैयार कर लिया था. सामान ले कर नीचे उतरी. जेवर के 2 डब्बे रेहान को देते हुए कहा, ‘ये दोनों सैट आप की तरफ से मिले थे. आप की नईर् बीवी को देने के काम आएंगे. आप रखिए, आप का दिया सब छोड़ कर जा रही हूं. मां की तरफ से मिली चीजें ले ली हैं. आप से एक गुजारिश है, अगर किसी मोड़ पर हम मिल जाएं तो मुझे आवाज मत देना.’ मैं ने बच्चों को प्यार किया, गले लगाया, दिल अंदर से बिलख रहा था पर मैं पत्थर बनी रही. आबी आगे बढ़ी. मैं ने उसे नजरअंदाज किया और सोहा के साथ बाहर आ गई.

उन लोगों के सामने एक आंसू आंख से गिरने न दिया, यह मेरी आन और खुद्दारी की हार होती. मैं सोहा के कंधे पर सिर रख बिलख पड़ी. सोहा ने कहा, ‘शाफी, आज जीभर कर रो लो. इस के बाद उस बेवफा इंसान के लिए मैं तुम्हें एक आंसू नहीं बहाने दूंगी.’

सोहा के शौहर राहिल बेहद नेक इंसान थे. उन की मां ने मुझे सगी मां की तरह अपनी आगोश में समेट लिया. उन्हीं के कमरे में मुझे सुकून मिलता. सोहा व उस का बेटा भी खूब खयाल रखते. मोहब्बत और अपनेपन के साए में 4 महीने गुजर गए. राहिल मेरी नौकरी और घर की तलाश में लगे रहे. रकम तो मेरे पास काफी थी. चाचा ने अम्मी का घर बेच कर आधी रकम मेरे खाते में डाल दी थी. सोहा की मल्टीस्टोरी बिल्ंिडग में मुझे सैकंड फ्लोर पर एक अच्छा फ्लैट मिल गया. मैं उस में शिफ्ट हो गई. मेरी कौन्वैंट की पढ़ाई काम आई. मुझे एक अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में जौब मिल गई. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. धीरेधीरे जख्म भरने लगे. सोहा की फैमिली का बड़ा साथ था. अम्मा काफी वक्त मेरे पास बितातीं. मुझे एक अच्छी औरत काम के लिए मिल गई. मैं ने उसे घर में रख लिया.

उस दिन छुट्टी थी. मैं बूआ के साथ काम में लगी थी कि डोरबैल बजी. दरवाजा खोला. राहिल के साथ रेहान खड़े थे. मैं हैरान रह गई. अंदर आने को कहा. राहिल रेहान को छोड़ कर लौट गए. मैं ने रेहान को देखा. 2 साल में काफी फर्क आ गया था. चेहरे पर थकान, उम्र व बेजारी साफ झलक रही थी. कुछ बाल उड़ गए थे. बूआ पानी ले आईं. रेहान टूटे लहजे में बोले, ‘शाफी, मैं अपने किए पर बेहद शर्मिंदा हूं. मुझे अपने गलत काम की खूब सजा मिल रही है. बस, मुझे अब माफ कर दो.’

‘क्यों, ऐसा क्या हो गया. आप ने बड़े शौक से, बड़े अरमान से आबी से शादी की थी.’

‘हां, की थी. भूल थी मेरी, अब पछता रहा हूं. आबी बेहद फूहड़, कामचोर और निकम्मी है. काम से तो उस की जान जाती है. कुछ कहो तो कहती है ‘मैं तो पहले से ऐसी हूं तभी तो आप ने मुझ से इश्क किया. सुघड़, सलीकेमंद और घर संभालने वाली तो शाफी आपा थीं. आप ने उन्हें छोड़ कर मुझे क्यों अपनाया? आप तो मेरे ऐब जानते थे. शाफी आपा के सामने आप ही मुझे काम करने से रोकते थे. आप ही मेरे नाजनखरों और अदाओं पर फिदा थे.’

‘शाफी, जब तुम बेहतरीन खाने खिलाती थीं, घर संभालती थीं, सब की खिदमत करती थीं, इश्क एक शगल की तरह लगता. सारी जरूरतें पूरी होते हुए एक नखरीली महबूबा किसे बुरी लगती है? आज ये तल्ख हकीकत खुली कि तुम्हारे बिना घर जहन्नुम है. सारे काम नौकरों के भरोसे हैं. ज्यादातर होटल से खाना आता है. हम ने अपने ऐश की खातिर बच्चों को भी खूब सिर चढ़ाया. अब बेहद बदतमीज हो गए. बहुत ज्यादा मुंहफट. पूरे वक्त आबी से झगड़े होते रहते हैं. मुझे भी काम करने की आदत न थी. जब चीजें तैयार नहीं मिलतीं तो गुस्सा आता है. फिर आबी से लड़ाई हो जाती है. वह भी बराबरी से जबान चलाती है. चीखतीचिल्लाती है. शाफी, जिंदगी अजाब बन गई है. तुम मुझ पर रहम करो. मैं आबी को तलाक दे दूंगा. तुम मेरी जिंदगी में वापस आ जाओ. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’

मुझे यह एहसास था कि ऐसा होगा. आबी मेरी बहन थी, मैं उस के सारे ऐबों से वाकिफ थी. मैं ने सोचा था कालेज करने के बाद उसे घर के काम की बाकायदा ट्रेनिंग दूंगी. उस के पहले ही उस ने सब तहसनहस कर दिया. मैं ने रेहान की तरफ देखा. वह बेहद थका, टूटा हुआ इंसान लग रहा था.

मैं ने कहा, ‘रेहान, अब यह मुमकिन नहीं. आप से खुला लेने के बाद, आप का बेवफा रूप देखने के बाद मेरे दिल में आप के लिए जरा सी मोहब्बत नहीं है, न ही कोई इज्जत है.

‘मैं किसी कीमत पर आप की जिंदगी में दोबारा नहीं आ सकती. बच्चे एक बार रहीम चाचा के साथ मिलने आए थे. उन्हें मिलने भेज देना, मेहरबानी होगी. आप को अब आने की जरूरत नहीं है.’

नम आखें, झुके कंधे और लड़खड़ाते कदमों से रेहान लौट गए. अपने किए गए गुनाह के अजाब उन्हें ही समेटने थे. उन की बरबाद जिंदगी की खबरें मिलती रहती थीं. बच्चे आ कर मुझ से मिल जाते थे. रेहान को वापस गए भी 7-8 साल हो गए.

मैं 3 दिन पहले सोहा के भाई की बेटी की शादी में उस के साथ गई थी. वह वहीं रुक गई, मैं वहां से लौट रही थी कि आज बरसों बाद आबी को देखा. उसी ट्रेन के उसी कोच में वह भी सफर कर रही थी. उसे देख कर दुख हुआ पर मेरी उस से मिलने या बात करने की जरा भी ख्वाहिश न थी. जब मैं अपने स्टेशन पर उतरी, वह दूसरे गेट पर खड़ी मुझे देख रही थी. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. इन आंसुओं को पोंछने का हक वह मुझ से छीन चुकी थी.

तेजतर्रार तिजोरी : रघुवीर ने अपनी बेटी का नाम तिजोरी क्यों रखा – भाग 4

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : तिजोरी एक तेजतर्रार और होशियार लड़की थी. वह अपने पिता के काम में हाथ बंटाती और भाई के साथ गुल्लीडंडा खेलती. गांव में बिजली महकमे का काम चल रहा था. कौंट्रैक्टर सुनील को तिजोरी भा गई और वह उस के साथ नजदीकियां बढ़ाने लगा. उस के इर्दगिर्द रहने लगा. अब पढि़ए आगे…

पानी की बोतलें ले कर तिजोरी के बारे में ही सोचते हुए जब सुनील श्रीकांत के पास पहुंचा, तब तक हाथों में डंडा लिए और गुल्ली  को रखते हुए तिजोरी भी वहां पहुंच गई. वहां एक के ऊपर एक 9 खंभों की ऊंचाई की कुल 19 लाइनें थीं.

हाथ में लिए डंडे से तिजोरी ने ऊंचाई पर रखे खंभों को गिना, फिर चौड़ाई की लाइनों को गिन कर मन ही मन 19 को 9 से गुणा कर के बता दिया… कुल खंभे 171 हैं.

सुनील ने रजिस्टर से मिलान किया. स्टौक रजिस्टर भी अब तक आए खंभों की तादाद इतनी ही दिखा रहा था.

सुनील और श्रीकांत हैरानी से एकदूसरे का मुंह ताकने लगे, तभी तिजोरी सुनील से बोली, ‘‘चल रहे हो गुल्लीडंडा खेलने?’’

अपने भरोसेमंद शादीशुदा असिस्टैंट श्रीकांत को जरूरी निर्देश दे कर सुनील तिजोरी के पीछेपीछे उस खाली खेत तक आ गया, जहां महेश बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था.

सुनील को देख कर महेश भी पहचान गया. महेश के पास पहुंच कर तिजोरी बोली, ‘‘तुझे अगर प्यास लगी है, तो यह ले चाबी और गोदाम का शटर खोल कर पानी पी कर आ जा, फिर हम तीनों गुल्लीडंडा खेलेंगे.’’

‘‘नहीं, मुझे अभी प्यास नहीं लगी है. चलो, खेलते हैं. मैं ने यह छोटा सा गड्ढा खोद कर अंडाकार गुच्ची बना दी है, लेकिन पहला नंबर मेरा रहेगा.’’

‘‘ठीक है, तू ही शुरू कर,’’ तिजोरी बोली. फिर उस ने गुच्ची से कोई  5 मीटर की दूरी पर खड़े हो कर सुनील को समझाया, ‘‘महेश उस गुच्ची के ऊपर गुल्ली रख कर फिर उस के नीचे डंडा फंसा कर हमारी तरफ उछालेगा.

‘‘उस की कोशिश यही रहेगी कि हम से ज्यादा से ज्यादा दूर तक गुल्ली जाए और उसे कैच कर के भी न पकड़ा जा सके. तुम एक बार ट्रायल देख लो. महेश गुल्ली उछालेगा और मैं उसे कैच करने की कोशिश करूंगी.’’

फिर तिजोरी महेश के सामने 5 मीटर की दूरी पर खड़ी हो गई. महेश ने गुच्ची के ऊपर रखी गुल्ली तिजोरी के सिर के ऊपर से उछाल कर दूर फेंकना चाही, पर कैच पकड़ने में माहिर तिजोरी ने अपनी जगह पर खड़ेखड़े अपने सिर के ऊपर से जाती हुई गुल्ली को उछल कर ऐसा कैच पकड़ा, जो उतना आसान नहीं था.

कैच पकड़ने के साथ ही तिजोरी चिल्लाई, ‘‘आउट…’’

लेकिन साइड में खड़े सुनील की नजरें तो तिजोरी के उछलने, फिर नीचे जमीन तक पहुंचने के बीच फ्रौक के घेर के हवा द्वारा ऊपर उठ जाने के चलते नीचे पहनी कच्छी की तरफ चली गई थी. साथ ही, उस के उभारों के उछाल ने भी सुनील को पागल कर दिया.

लेकिन तिजोरी इन सब बातों से अनजान सुनील से बोली, ‘‘अब खेल शुरू. इस बार मेरी जगह पर खड़े हो कर तुम्हें गुल्ली को अपने से दूर जाने से बचाना है. मैं तुम से एक मीटर पीछे खड़ी होऊंगी, ताकि तुम से गुल्ली न पकड़ी जा सके तो मैं पकड़ कर महेश को आउट कर सकूं और तुम्हारा नंबर आ जाए… ठीक?’’

सुनील अपनी सांसों और तेजी से धड़कने लग गए दिल को काबू करता हुआ सामने खड़ा हो गया. उस की नजरों से तिजोरी के हवा में उछलने वाला सीन हट नहीं पा रहा था. उस पर अजीब सी हवस सवार होने लगी थी.

तभी तिजोरी पीछे से चिल्लाई, ‘‘स्टार्ट.’’

आवाज सुनते ही महेश ने गुल्ली उछाली और चूंकि सुनील का ध्यान कहीं और था, इसलिए अपनी तरफ उछल कर आती गुल्ली से जब तक वह खुद को बचाता, गुल्ली आ कर सीधी उस की दाईं आंख पर जोर से टकराई.

सुनील उस आंख पर हाथ रखता हुआ जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय, मेरी आंख गई,’’ कह कर वह खेत की मिट्टी में गिरने लगा, तो पीछे खड़ी तिजोरी ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया और उस का सिर अपनी गोद में ले कर वहीं खेत में बैठ गई.

तिजोरी ने गौर किया कि सुनील की आंख के पास से खून तेजी से बह रहा है. आसपास काम करते मजदूर भी वहां आ गए. उन में से एक मजदूर बोल पड़ा, ‘‘कहीं आंख की पुतली में तो चोट नहीं लगी है? तिजोरी बिटिया, इसे तुरंत आंखों के अस्पताल ले जाओ.’’

सुनील की आंखों से खून लगातार बह रहा था. कुछ देर चीखने के बाद सुनील एकदम सा निढ़ाल हो गया. उसे यह सुकून था कि इस समय उस का सिर तिजोरी की गोद में था और उस की एक हथेली उस के बालों को सहला रही थी.

तिजोरी ने महेश को श्रीकांत के पास यह सूचना देने के लिए भेजा और एक ट्रैक्टर चलाने वाले मजदूर को आदेश दे कर खेत में खड़े ट्रैक्टर में ट्रौली लगवा कर उस में पुआल का गद्दा बिछवा कर सुनील को ले कर अस्पताल आ गई.

यह अच्छी बात थी कि उस गांव में आंखों का अस्पताल था, जिस में एक अनुभवी डाक्टर तैनात था. तिजोरी की मां के मोतियाबिंद का आपरेशन उसी डाक्टर ने किया था.

तिजोरी ने सुनील को वहां दाखिल कराया और डाक्टर से आंख में चोट लगने की वजह बताते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, इस की आंख को कुछ हो गया, तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘तू चिंता न कर. मुझे चैक तो करने दे,’’ कह कर डाक्टर ने स्टै्रचर पर लेटे सुनील को अपने जांच कमरे में ले कर नर्स से दरवाजा बंद करने को कह दिया.

तिजोरी घबरा तो नहीं रही थी, पर लगातार वह अपने दिल में सुनील की आंख में गंभीर चोट न निकलने की दुआ कर रही थी. महेश के साथ श्रीकांत भी वहां पहुंच गया था.

अस्पताल के गलियारे में इधर से उधर टहलते हुए तिजोरी लगातार वहां लगी बड़े अक्षरों वाली घड़ी को देखे जा रही थी. तकरीबन 50 मिनट के बाद डाक्टर ने बाहर आ कर बताया, ‘‘बेटी, बड़ी गनीमत रही कि गुल्ली भोंहों के ऊपर लगी. थोड़ी सी भी नीचे लगी होती, तो आंख की रोशनी जा सकती थी.’’

पीछा करता डर : पीठ में छुरा भाग-4

नंदन का हाथ फिर भी आगे नहीं बढ़ा तो भानु अपना गिलास मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘यकीन मानो, तुम्हें डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं है. ये सब तो मजाक था. फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन जब तक मैं हूं, मेरे साथ इंजौय करो. मैं 2 पैग पी कर चला जाऊंगा. लेकिन ये 2 पैग मैं ने तुम दोनों के साथ पीने का वादा किया है.’’

नंदन समझ गए, भानु यूं मानने वाला नहीं है. मजबूरी थी, सो उन्होंने गिलास उठा लिया. युवती और नंदन दोनों ही आधे घंटे से भयानक तनाव में थे. उन्होंने गिलास हाथ में उठाए तो खाली होते देर न लगी. एक पैग ह्विस्की गले से नीचे उतरी, तो उन के चेहरों पर तनाव की रेखाएं कुछ कम हुईं.

उन दोनों के गिलास खाली देख भानु ने भी अपना गिलास खाली किया और तीनों के लिए एकएक पैग और बनाया. नंदन और उस युवती ने यह सोच कर दूसरे पैग भी जल्दी ही खाली कर दिए कि उन की देखादेखी वह भी जल्दी से गिलास खाली कर के चला जाएगा. लेकिन भानु ने दूसरा पैग पीने में कोई जल्दी नहीं की. वह चिकन खाते हुए आराम से सिप करता रहा.

खानेपीने के इस दौर में उन तीनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी. बीच में कुछ बोलता भी था, तो केवल भानु. नंदन और युवती के गिलास खाली देख भानु ने उन के गिलासों में ह्विस्की डालनी शुरू की, तो नंदन ने चौंकते हुए कहा, ‘‘ये क्या कर रहे हो भानु?’’

‘‘पैग बना रहा हूं. अपने लिए नहीं, तुम दोनों के लिए,’’ भानु मुस्कराते हुए बोला, ‘‘तुम्हें मेरा साथ देना है न…मेरे दो पैग तक. यही तो तय हुआ है.’’

नंदन भानु की चालाकी समझ गए. गलती उन की ही थी, जो उसे जल्दी भगाने के चक्कर में जल्दी से दोनों पैग चढ़ा गए. उन्होंने मन ही मन फैसला किया कि अब धीरेधीरे सिप करेेंगे. उन्होंने ही नहीं, युवती ने भी इस पर अमल किया. लेकिन भानु के बारबार अनुरोध पर जब उन दोनों ने गिलास हाथों में उठाए तो भानु ने गजब की फुर्ती से मोबाइल निकाला और वे लोग कुछ समझ पाते, इस से पहले ही दोनों का साथसाथ पीते हुए एक स्नैप ले लिया.

उस वक्त तक नंदन पर नशा हावी हो चुका था. वह गिलास मेज पर रख कर खड़े होते हुए गुस्से में बोले, ‘‘भानु, मैं मार डालूंगा तुम्हें. तुम ब्लैकमेल करना चाहते हो मुझे.’’

भानु ने भी अपना गिलास मेज पर रख दिया और मोबाइल जेब में डाल कर खड़े होते हुए शांत स्वर में बोला, ‘‘बात दोस्ती की चल रही थी और तुम दुश्मनी पर उतरने लगे. क्या इस के पहले तुम ने मेरे साथ कभी शराब नहीं पी? हर दूसरे तीसरे दिन तो… और हां, हिम्मत है, मुझे मार डालने की? जो आदमी अपनी प्रेयसी के साथ अपने शहर, अपने घर में ऐश करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता, वह किसी को क्या मारेगा.

‘‘तुम में अगर गैरत होती, तो इस खूबसूरत छलावे की जगह अपनी पत्नी और बच्चें के बीच होते. हिम्मत होती तो इसे ले कर अपने शहर से अस्सी किलोमीटर दूर यहां न आए होते. बहुत हो चुका. चुपचाप बैठो और अपना गिलास खाली करो.’’

नंदन को गुस्सा आया जरूर था, पर अपनी स्थिति का खयाल आते ही काफूर हो गया. वह हारे जुआरी की तरह बैठ गए और एक ही बार में गिलास खाली कर दिया. उन के खाली गिलास में ह्विस्की डालते हुए भानु युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘तुम लोग मुझे बिल्कुल गलत समझ रहे हो. मैं पहले ही बता चुका हूं कि मैं तुम्हें ब्लैकमेल नहीं करूंगा, बल्कि तुम लोगों के साथ एंजौय करना चाहता हूं. वह भी सिर्फ दो पैग तक.’’

‘‘तो फिर ये फोटोबाजी की क्या जरूरत है? ’’ नंदन ने तुनक कर पूछा, तो भानु उन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘मैं ने कह तो दिया, जाने से पहले फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन बात वही है कि जिसे अपने आप पर भरोसा न हो, वह दूसरों पर क्या भरोसा करेगा.’’

भानु ने नंदन के गिलास में थोड़ा पानी डाला, थोड़ा सोड़ा. इस के बाद उस ने एक ही झटके में अपना गिलास खाली किया और एक पैग ह्विस्की डाल कर उस में भी थोड़ा सोड़ा और पानी डाल लिया. वह उस का तीसरा पैग था, जो उस ने एक ही बार में खाली कर दिया.

भानु का गिलास खाली होते ही, नंदन माथुर शांत भाव से बोले, ‘‘भानु, तुम 2 नहीं, 3 पैग ह्विस्की पी चुके हो. वादा पूरा हो चुका. अब तुम अपने कमरे में जाओ. बाकी जो बात करनी हो, सुबह कर लेना.’’

‘‘बिल्कुल ठीक कहा तुम ने दोस्त,’’ भानु ने जान बूझ कर शराबियों वाले अंदाज में कहा, ‘‘वाकई अब मुझे जाना चाहिए. नशा भी काफी हो चुका है. लेकिन एक समस्या है. बातोंबातों में मैं दो की जगह 3 पैग पी गया और 3 सैद्धांतिक रूप से ठीक नहीं होते. देखो न, हम 3 हैं, इसलिए बीचबीच में तनाव और लड़ाईझगड़े की स्थिति बन जाती है. 2 या 4 होते, तो ऐसा कतई नहीं होता. मैं नहीं चाहता कि तुम लोगों के साथ बिताया डेढ़ घंटे का समय कोई गंभीर स्थिति पैदा कर दे, इसलिए मेरा एक पैग और पीना जरूरी है.’’

भानु की इस बात के जवाब में न नंदन कुछ बोले, न युवती. भानु ने नंदन की ओर देख कर कहा, ‘‘सवा दस बजे हैं. ऐसा करो, रूम सर्विस को खाने के लिए बोल दो. साढ़े दस के बाद खाना नहीं मिलेगा. तुम लोगों के साथ 2 चपाती खा कर अपने कमरे में चला जाऊंगा.’’

भानु ने नंदन के कमरे में बैठ कर अपने दिमाग से जिस तरह जाल बुना था, उस में वह पूरी तरह फंस चुके थे. वह जानते थे कि भानु इतनी आसानी से नहीं टलेगा. अत: उन्होंने रूम सर्विस को फोन कर के खाने का आर्डर दे दिया.

पौने ग्यारह बजे जब वेटर खाना ले कर आया तो भानु, नंदन और युवती तीनों ही अपनेअपने गिलास खाली कर चुके थे. डोरबेल की आवज सुनते ही युवती अपना गिलास मेज के नीचे रख कर बेड पर जा लेटी.

नंदन और भानु के गिलास अभी भी मेज के ऊपर ही रखे थे. नंदन की जगह भानु ने ही दरवाजा खोला. वेटर ने अंदर आ कर मेज से खाली गिलास और प्लेटें हटाईं और मेज की साफसफाई कर के खाना लगा दिया.

जब वेटर अपना काम कर चुका तो भानु ने अपने कोट की अंदरवाली जेब में हाथ डाल कर 100 रुपए का नोट निकाला और वेटर को थमाते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू फौर गुड सर्विस. खाना खा कर हम अपने कमरे में चले जाएंगे. साहब को डिस्टर्ब नहीं करना, बर्तन सुबह उठा लेना.’’

‘‘यस सर.’’ कहते हुए वेटर चला गया. वेटर के जाते ही भानु ने स्वयं उठ कर दरवाजा बंद कर दिया. दरवाजा बंद करने के बाद भानु बेड पर लेटी लड़की के पास पहुंचा और उस की बांह पकड़ कर उठाते हुए बोला,

‘‘उठो डियर जान के जंजाल. अभी एक

पैग भी पीना है और खाना भी खाना है.’’

‘‘मुझे सोने दो, नींद आ रही है.’’ युवती ने भानु का हाथ झटकते हुए कहा, तो भानु हलके से उस की बांह मरोड़ते हुए बोला, ‘‘बनो मत, मैं सब जानता हूं, तुम कितने नशे में हो. मैं ने तुम्हारे गिलास में जान बूझ कर चारचार बूंद ह्विस्की डाली थी. इतनी ह्विस्की से तुम जैसी लड़की को कभी नशा नहीं हो सकता.’’

युवती कुनमुनाते हुए उठी और मेज पर आ कर बैठ गई. नशे में धुत नंदन माथुर चुपचाप बैठे थे. भानु ने युवती के लिए बड़ा सा एक पैग बनाया और उस के हाथ में थमाते हुए बोला, ‘‘ये पियो और खाना खा कर सो जाओ. इस के बाद मैं भी अपने कमरे में चला जाऊंगा.’’

प्यार के राही : हवस भरे रिश्ते

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शिकस्त-भाग 3: शाफिया-रेहान के रिश्ते में दरार क्यों आने लगी

सोहा चली गई और मुझे जैसे जलते अंगारों पर छोड़ गई. न मैं रो रही थी न बहुत गमजदा थी. बस, एक गुस्सा था, यकीन टूटने की तकलीफ थी. 2-3 दिन मैं बड़ी खामोशी व होशियारी से सारा खेल देखती रही. मुझे सोहा की बात पर यकीन आने लगा. चौथे दिन रेहान ने बताया कि वे 2 दिनों के लिए औफिस के काम से बाहर जा रहे हैं. उन के जाने के बाद आबी खामोश सी थी.

वह ज्यादातर अपने ही कमरे में बंद रही. दूसरे दिन आबी कालेज, बच्चे स्कूल चले गए. मैं ने रेहान के औफिस के सीनियर कलीग रहीम साहब को फोन किया. वे मेरे ससुर के रिश्ते के भाई थे. शादी के बाद 2-3 बार मिलने आए थे. बहुत ही नेक इंसान हैं. मैं ने कहा, ‘आप से कुछ काम है, जरा घर आ जाइए.’ एक घंटे बाद वे मेरे सामने बैठे थे.

मैं ने सारे लिहाज छोड़ कर कहा, ‘चाचा, मैं रेहान को ले कर परेशान हूं. मुझे लगता है रेहान की कहीं और इन्वौल्वमैंट है. आप साथ रहते हैं, आप को कुछ पता होगा?’ रहीम साहब कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले, ‘बेटी, मैं खुद असमंजस में था कि तुम्हें बताऊं या नहीं. अच्छा हुआ, तुम ने ही पूछ लिया. एक बड़ी खूबसूरत, नाजुक सी लड़की रेहान से मिलने औफिस आती है.

फिर दोनों साथ चले जाते हैं. कई बार उन दोनों को रैस्टोरैंट और सिनेमाहौल में देखा है. मैं ने बहुत सोचा रेहान को टोक दूं पर अब वह मुझ से पहले जैसे संबंध नहीं रखता, इसलिए मैं खामोश रहा.’ मैं ने रहीम साहब से कहा, ‘आप मुझ से मिले हैं, यह बात रेहान को न बताना.’ वे लौट गए. अब शक यकीन में बदल गया.

रेहान के लौटने पर मैं ने उन से कुछ नहीं कहा. मैं बहुत सोचसमझ कर कोई कदम उठाना चाहती थी. एक तरफ खाई थी तो दूसरी तरफ कुआं. मैं ने अपने व्यवहार में कोई फर्क नहीं आने दिया बल्कि पहले से ज्यादा अच्छे खाने बना कर खिलाती, खूब खयाल रखती. उस दिन छुट्टी थी, सभी घर पर थे.

शाम को मैं अपनी दोस्त की शादी की एनिवर्सरी का कह कर घर से निकल गई और कह दिया खाना खा कर लेट आऊंगी. वह मुझे छुड़वा देगी. वह हमारी कालोनी में ही रहती है.

मैं कुछ देर अपनी सहेली के पास बैठ कर वापसी के लिए निकल गई. अंधेरा फैल रहा था. निकलने से पहले मैं ड्राइंगरूम व बैडरूम की खिड़कियां थोड़ी खुली छोड़ आई थी. दबेपांव मैं गार्डन में दाखिल हुई. धीमेधीमे चल कर ड्राइंगरूम की खिड़की के पास गई. दोनों बच्चे जोरशोर से गेम खेल रहे थे. बैडरूम की तरफ गई, अंदर झांका, आबी बैड से टेक लगाए बैठी थी, रेहान उस की गोद में सिर रखे लेटे थे. वह उन के बालों से खेल रही थी और मीठी आवाज में कह रही थी, ‘रेहान, अब इस तरह रहना मुश्किल है. हम कब तक छिपछिप कर मिलते रहेंगे. अब तुम्हें फाइनल डिसीजन लेना होगा.’

रेहान ने उसे दिलासा दिया, ‘मैं खुद यही सोच रहा हूं. मैं तुम से दूर नहीं रह सकता. एकएक पल भारी है. मैं जल्द ही कुछ करता हूं.’

मुझे लगा जैसे पिघला हुआ सीसा किसी ने मेरे कानों में उड़ेल दिया है. इतने सालों की मोहब्बत, खिदमत, वफादारी सब बेकार गई. मैं रेहान के 2 बच्चों की मां थी. आबी मेरी जान से प्यारी बहन थी. रिश्तों ने यह कैसा फरेब किया था? सब पर हवस ने कालिख मल दी थी. कुछ देर मैं बाहर ही टहलती रही, खुद को समझाती रही. सबकुछ खो देने का एहसास जानलेवा था.

मैं ने घंटी बजाई. रेहान ने दरवाजा खोला. मुझे देख कर हड़बड़ा गए, ‘अरे, तुम तो देर से आने वाली थीं न.’ मैं ने उन की आंखों में देखते हुए कहा, ‘सिर में तेज दर्द हो रहा था, इसलिए जल्दी आ गई.’ आबी भी परेशान हो गई. मैं ने कुछ जाहिर नहीं किया. एक कप दूध पी कर लेट गई.

दिन गुजर रहे थे. मैं ने खामोशी ओढ़ ली. फिर एक दिन रात के खाने के बाद जब सब टीवी देख रहे थे, मैं ने टीवी बंद कर दिया और रेहान से कहा, ‘रेहान, तुम ने रिश्तों को शर्मसार किया है. मैं ने कभी सोचा भी न था आप मेरी बेटी जैसी बहन के इश्क में पागल हो जाएंगे. एक पल को आप को अपने बच्चे, अपने खानदान का खयाल नहीं आया. आप को यह तो मालूम होगा कि बीवी के जिंदा रहते हुए उस की बहन से निकाह हराम है. आप आबिया से शादी कैसे कर सकते हैं?’

दोनों बदहवास से मुंह खोले मुझे देख रहे थे. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि मैं इस तरह एकदम सीधा वार करूंगी.

‘बोलिए, आप का निकाह आबिया से कैसे जायज होगा?’

आबिया ने जवाब दिया, ‘जब रेहान आप को तलाक दे देंगे तो निकाह जायज होगा?’

मेरी मांजाई कितने आराम से मुझे मेरी बरबादी की खबर दे रही थी. मैं ने उसे कोई जवाब नहीं दिया. रेहान से मैं ने कहा, ‘आप मुझे तलाक नहीं देंगे.’ रेहान परेशान से लहजे में बोले, ‘शाफी, मैं तुम्हें तलाक नहीं देना चाहता पर तलाक के बिना शादी हो ही नहीं सकती. मैं मजबूर हूं. तलाक के बाद भी मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा. तुम अलग ऊपर गेस्टरूम में रहना, खर्चा पूरा मिलेगा. तुम फिक्र न करो.’

मैं ने तीखे लहजे में कहा, ‘रेहान, मुझे तुम्हारी हमदर्दी की जरूरत नहीं है. तुम को तलाक देने की भी जरूरत नहीं है. मैं कोर्ट में खुला (जब औरत खुद शौहर से अलग होना चाहती है और खर्चा व मेहर मांगने का हक नहीं रहता) की अर्जी दे चुकी हूं. आप के औफिस लैटर आ चुका होगा. 2 दिनों बाद पहली पेशी है. आप को कोर्ट चलना होगा.’

आबी और रेहान के चेहरे सफेद पड़ गए. उन लोगों ने सोचा भी नहीं होगा कि मैं इतना बड़ा कदम इतनी जल्दी उठा लूंगी. मैं ने बच्चों की तरफ देखा. दोनों कुछ परेशान से थे. मैं वहां से उठ कर ऊपर आ गई. घर में सन्नाटा पसर गया.

हवस की मारी : रेशमा और विजय की कहानी – भाग 3

‘‘मेरे पिता मेरी मां को बहुत प्यार करते थे. मां की अचानक मौत से वे इतने दुखी हुए कि उन्होंने खूब शराब पीनी शुरू कर दी. मैं बड़ी होने लगी थी, मुझ में अच्छेबुरे की समझ भी आने लगी थी.

‘‘पिता ने एक के बाद एक 4 शादियां कर डालीं. पहली 2 बीवियों को वे अपने दोस्तों को सौंपते रहे, जिस से तंग आ कर उन्होंने नदी में डूब कर जिंदगी खत्म कर ली.

‘‘तीसरी से शादी रचा कर उस के साथ भी वही बुरा काम वे करते रहे. उस ने बहुत समझाया, पर पिता नहीं माने. ‘‘एक दिन उस ने भी अपने मायके में जा कर खुदकुशी कर ली.

‘‘मेरे पिता पर उन की खुदकुशी करने का कोई असर नहीं पड़ा. पैसे के बल पर उन के खिलाफ कोई केस नहीं बन पाया.

‘‘चौथी औरत इतनी खूबसूरत थी कि अपने प्रेमभाव से मेरे पिता को वश में करते हुए उन की बुरी आदतें कई महीने तक छुड़ा दीं. तब मैं 15 साल की उम्र पार कर चुकी थी.

‘‘चौथी मां भी मुझे अपनी सगी बेटी की तरह प्यार करती थी. 3 साल तक वह मुझे पालती रही, लेकिन उसे कोई ऐसी खतरनाक बीमारी लगी कि मर गई.

‘‘मेरे जल्लाद पिता फिर से शराब पीने लगे, बाजारू औरतों को घर में बुला कर ऐयाशी करने लगे. मैं अकसर देखती, तो आंखें बंद कर लेती.

‘‘उन के दोस्त भी अकसर घर पर आ कर शराब पीते और औरतों से ऐश करते. उन की गिद्ध जैसी नजरें मुझे भी देखतीं, मानो मौका पाते ही वे मुझे भी नहीं छोड़ेंगे.

‘‘मैं उन से दूर रहती थी. उन से बचने के लिए अकसर रात को अपनी सहेलियों के यहां सो जाती थी.

‘‘एक दिन मेरे पिता नशे में चूर किसी नाचगाने वाली के यहां से लौटे थे. उन की निगाह मुझ पर पड़ी. मैं मैक्सी पहने सो रही थी. शायद मेरा कपड़ा कुछ ज्यादा ही ऊपर तक खिसक गया था.

‘‘नशे में चूर वे अपने खून की ममता भूल गए और मेरे पलंग पर आ बैठे. छेड़ते हुए मेरे जिस्म को सहलाने लगे.

‘‘मेरी नींद खुली, तो वे बोले, ‘लेटी रहो. बिलकुल अपनी मां की सूरत पाई है तुम ने, कोई फर्क नहीं. उस की याद आ गई, तो तुम्हें गौर से देखने लगा.’

‘‘उस के बाद मैं ने बहुत हाथपैर पटके, पर वे नहीं माने. उन्होंने मुझे अपनी हवस का शिकार बना डाला. मैं बहुत रोई, लेकिन उन पर कोई असर नहीं पड़ा.

‘‘उस दिन के बाद से वे अकसर मेरे साथ वही कुकर्म करते रहे. मैं उन के खिलाफ किस से क्या फरियाद करती. 2 बार खुदकुशी करने की कोशिश की, पर बचा ली गई.’’

इतना कह कर रेशमा रोने लगी. विजय चाहता था कि उस के रो लेने से उस का मन शांत हो जाएगा. सालों की आग जो दिल में छिपाए उसे तपा रही थी, आंसू बन कर निकल जाएगी.

‘‘मेरी शादी आप के यहां इसलिए खूब दहेज दे कर कर दी गई, जिस से सब का मुंह बंद रहेगा. मुझे शादी के चौथे दिन बाद उस पिता ने बुलवा लिया. उस का पाप मेरी कोख में पलने लगा था. अगर उजागर हो जाता, तो उस की बदनामी होती. मेरा पेट गिरवा दिया गया.

डेढ़ महीने बाद ठीक हुई, तो मुझ फिर यहां पटका गया, ताकि जिंदगीभर उस कलंक को छिपा कर रखूं. ‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे इस पाप की छाया आप जैसे अच्छे इनसान पर पड़े. आप मुझे दासी समझ कर यहां पड़ी रहने दीजिए.

‘‘अगर आप ने मुझे घर से निकाल दिया, तो मेरे पिता आप को और आप के घर वालों पर मुकदमा चला कर परेशान कर डालेंगे. आप चुपचाप दूसरी शादी कर लें, मेरे पिता आप लोगों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाएंगे. जब मैं चुप रहूंगी, तो कोई कोर्ट मेरे पिता की आवाज नहीं सुनेगा,’’

इतना कह कर रेशमा विजय के पैरों पर गिर पड़ी. ‘‘तुम ने अपनी आपबीती बता कर अपने मन को हलका कर लिया. समझ लो कि तुम्हारे साथ अनजाने में जो हुआ, वह एक डरावना सपना था.

‘‘मैं तुम्हारे दर्द को महसूस करता हूं. उठो, रेशमा उठो, तुम ने कोई पाप नहीं किया. तुम्हारी जगह मेरे दिल में है. तुम्हारी चुनरी का दाग मिट गया. ‘‘आज से तुम्हारी जिंदगी का नया सवेरा शुरू हुआ, जो अंत तक सुखी रखेगा,’’ कहते हुए विजय ने उसे उठाया, उस की आंखें पोंछीं और सीने से लगा लिया.

रेशमा भी विजय का प्यार पा कर निहाल हो गई.

बेरुखी : पति को क्यों दिया ऐश्वर्या ने धोखा – भाग 3

अब इंसपेक्टर शर्मा को गार्ड से उस की शिनाख्त करानी थी. वह गार्ड को अपनी कार में बैठा कर उसी जगह खड़े हो गए, जहां एक दिन पहले ऐश्वर्या कार पर सवार हुई थी. थोड़ी देर में वह कार आई तो गार्ड ने सलीम की पहचान कर दी. अगले दिन इंसपेक्टर शर्मा ऐश्वर्या के फ्लैट पर पहुंचे. जब उन्होंने उस से सलीम के बारे में पूछा तो वह सकते में आ गई. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘सलीम मेरा भाई है.’’

‘‘कहां रहता है?’’

‘‘भदोही में.’’ ऐश्वर्या ने कहा.

ऐश्वर्या इस बात की सूचना सलीम को दे सकती थी, इसलिए इंसपेक्टर शर्मा ने पहले ही अपनी एक टीम वहां भेज दी थी. वह ऐश्वर्या के घर से सीधे निकले और सलीम के घर की ओर चल पड़े. पता उन के पास था ही. भदोही पहुंच कर उस की आलीशान कोठी देख कर वह दंग रह गए. उन्होंने गार्ड से सलीम के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह तो औफिस में है. पता ले कर इंसपेक्टर औफिस पहुंचे तो वहां वह मिल गया. उन्होंने सीधे पूछा, ‘‘रुखसाना उर्फ ऐश्वर्या से आप का क्या संबंध है?’’

‘‘रुखसाना मेरे यहां रिसैप्शनिस्ट थी. 2 साल मेरे यहां काम करने के बाद उस ने किसी नरेश नाम के व्यक्ति से कोर्टमैरिज कर ली थी.’’

‘‘शादी के बाद वह कहां गई?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘थोड़ा कोशिश कीजिए, शायद याद आ जाए.’’

‘‘वह मेरे लिए एक कर्मचारी से ज्यादा कुछ नहीं थी, इसलिए मैं उस के बारे में पता कर के क्या करूंगा?’’ कह कर सलीम ने पल्ला झाड़ना चाहा. तभी एक कर्मचारी ने अंदर आ कर उस के सामने एक पर्ची रख दी. पर्ची पढ़ कर सलीम ने कहा, ‘‘माफ कीजिए इंसपेक्टर साहब, एक जरूरी काम आ गया है, मैं अभी आता हूं.’’

कर्मचारी से चाय लाने को कह कर सलीम बाहर आया. इंसपेक्टर ने उस कंप्यूटर की स्क्रीन अपनी ओर मोड़ ली, जो सीसीटीवी कैमरे से जुड़ा था. स्क्रीन पर ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना का चेहरा दिख रहा था. हालांकि वह बुरके में थी, लेकिन अंदर आ कर उस ने चेहरा खोल लिया था. उसे देख कर इंसपेक्टर शर्मा हैरान रह गए. उन्हें पक्का यकीन हो गया कि नरेश की हत्या के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है.

ऐश्वर्या ने पूछा, ‘‘इंसपेक्टर तो नहीं आया था?’’

‘‘वह अंदर बैठा है.’’ सलीम ने कहा, ‘‘उसे यहां का पता कैसे मिला?’’

‘‘मैं ने बताया है. उस से तुम्हें अपना भाई बताया है.’’

‘‘बेवकूफ, तुम ने तो सारा खेल बिगाड़ दिया.’’ सलीम फुसफुसाते हुए चीखा.

‘‘मैं ने कैसे खेल बिगाड़ दिया?’’

‘‘तुम्हें यह कहने की क्या जरूरत थी कि मैं तुम्हारा भाई हूं.’’

‘‘और क्या कहती?’’

‘‘मैं ने उसे सचसच बता दिया है कि तुम मेरे यहां रिसैप्शनिस्ट थी.’’

‘‘अब क्या होगा?’’ ऐश्वर्या बेचैनी से बोली.

‘‘अब जो भी होगा, हम दोनों झेलेंगे. फिलहाल तुम जिस तरह आई हो, वैसे ही लौट जाओ.’’ सलीम ने कहा और औफिस में आ कर बैठ गया. उस के बैठते ही इंसपेक्टर शर्मा ने कहा, ‘‘आप रुखसाना को पहचान तो सकते हैं? इस के लिए आप को मेरे साथ वाराणसी चलना होगा.’’

‘‘मेरे पास समय नहीं है.’’

‘‘समय निकालना होगा.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने घुड़का तो वह साथ चल पड़ा. पहले तो वह कहता रहा कि वह रुखसाना के बारे में कुछ नहीं जानता. लेकिन जब इंसपेक्टर शर्मा ने कहा कि उन के पास इस बात के सबूत हैं कि उस का रुखसाना उर्फ ऐश्वर्या से अवैध संबंध था तो वह सन्न रह गया.

थाने पहुंच कर इंसपेक्टर शर्मा ने ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना, सलीम और गार्ड को आमनेसामने किया तो सारा रहस्य उजागर हो गया. गार्ड ने सलीम की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यही साहब अकसर ऐश्वर्या मैडम से मिलने देर शाम को आया करते थे.’’

अब सिवाय अपना अपराध स्वीकार करने के उन दोनों के पास कोई उपाय नहीं बचा था. सलीम और ऐश्वर्या फंस चुके थे. अब इंसपेक्टर शर्मा यह जानना चाहते थे कि ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना ने सलीम के साथ मिल कर नरेश की हत्या क्यों की थी?

पूछताछ शुरू हुई तो रुखसाना ने सिसकते हुए कहा, ‘‘सलीम के यहां नौकरी करते हुए उन से मेरे नाजायज संबंध बन गए थे. मैं इन से निकाह करना चाहती थी, लेकिन इन्होंने मना कर दिया. यह मुझे बीवी नहीं, रखैल बना कर रखना चाहते थे, जो मुझे मंजूर नहीं था. इन की बेवफाई से मैं हताश हो उठी. तभी नरेश से मेरी मुलाकात हुई. फिर मैं ने उन्हें पाने में देर नहीं की.’’

‘‘आप ने नरेश को धोखा क्यों दिया, जबकि उस ने तुम्हारे लिए अपने खून के रिश्ते तक को छोड़ दिया था?’’

‘‘वह सुबह निकलते थे तो देर रात को ही घर आते थे. उन पर काम का बोझ इतना अधिक था कि आते ही खापी कर सो जाते थे. जबकि मैं चाहती थी कि वह मुझे समय दें, मुझ से बातें करें, घुमानेफिराने ले जाएं. लेकिन उन्हें अपने काम के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था, जिस से मैं चिढ़ जाती थी.’’

‘‘वह तुम्हारी हर सुखसुविधा का खयाल रखते थे, क्या यह कम था?’’

‘‘एक औरत को सिर्फ सुखसुविधा ही नहीं चाहिए. उस की और भी ख्वाहिशें होती हैं. अगर उन के पास मेरे लिए समय नहीं था तो वह मुझ से शादी ही न करते.’’ सिसकते हुए ऐश्वर्या ने कहा.

‘‘इस का मतलब यह तो नहीं कि किसी और से संबंध बना लिया जाए.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने कहा, ‘‘चलो संबंध बना लिया, ठीक था, लेकिन नरेश को मार क्यों दिया?’’

‘‘नरेश की बेरुखी की वजह से मैं ने सलीम से दोबारा जुड़ने का मन बनाया. इत्तफाक से उसी बीच एक मौल में मेरी मुलाकात सलीम से हो गई. यह खरीदारी करने आए थे. इन्होंने मुझ से फोन नंबर मांगा तो मैं ने दे दिया. उस के बाद बातचीत तो होने ही लगी, मिलनाजुलना भी शुरू हो गया. सलीम मेरी हर ख्वाहिश पूरी करते थे. यह अकसर देर शाम को मेरे घर आते और सुबह जल्दी चले जाते.’’

‘‘तुम्हारे पति ऐतराज नहीं करते थे?’’

‘‘मैं उन्हें रात की कौफी में ज्यादा मात्रा में नींद की गोलियां मिला कर दे देती थी, जिस से वह गहरी नींद सो जाते थे. एक रात उन की नींद खुल गई. मुझे अपने पास न पा कर जब वह उठे तो दूसरे कमरे में लाइट जलती देख कर वहां आ गए. सलीम को मेरे साथ देख कर वह कुछ पूछते, उस के पहले ही हम दोनों ने उन्हें कस कर पकड़ लिया. सलीम ने उन के हाथ पकड़ लिए तो मैं ने उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद जमीन पर गिरा कर सलीम तब तक उन का गला दबाए रहा, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. उस के बाद रात में लाश को ले जा कर कुएं में डाल दिया.’’

पूछताछ के बाद इंसपेक्टर शर्मा ने ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना और सलीम को वाराणसी की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. इन दोनों का क्या होगा, यह तो समय बताएगा, पर नरेश को तो ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना की खूबसूरती पर मरमिटने की सजा मिल गई. आज की नई पीढ़ी सीरत पर नहीं, सूरत पर मर रही है, जिस का वह खामियाजा भी भुगत रही है.

तेजतर्रार तिजोरी : रघुवीर ने अपनी बेटी का नाम तिजोरी क्यों रखा – भाग 3

सुनील उस आंख पर हाथ रखता हुआ जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय, मेरी आंख गई,’’ कह कर वह खेत की मिट्टी में गिरने लगा, तो पीछे खड़ी तिजोरी ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया और उस का सिर अपनी गोद में ले कर वहीं खेत में बैठ गई.

तिजोरी ने गौर किया कि सुनील की आंख के पास से खून तेजी से बह रहा है. आसपास काम करते मजदूर भी वहां आ गए. उन में से एक मजदूर बोल पड़ा, ‘‘कहीं आंख की पुतली में तो चोट नहीं लगी है? तिजोरी बिटिया, इसे तुरंत आंखों के अस्पताल ले जाओ.’’

सुनील की आंखों से खून लगातार बहा जा रहा था. कुछ देर चीखने के बाद सुनील एकदम सा निढाल हो गया. उसे यह सुकून था कि इस समय उस का सिर तिजोरी की गोद में था और उस की एक हथेली उस के बालों को सहला रही थी.

तिजोरी ने महेश को श्रीकांत के पास यह सूचना देने के लिए भेजा और एक ट्रैक्टर चलाने वाले मजदूर को आदेश दे कर खेत में खड़े ट्रैक्टर में ट्रौली लगवा कर उस में पुआल का गद्दा बिछवा कर सुनील को ले कर अस्पताल आ गई.

यह अच्छी बात थी कि उस गांव में आंखों का अस्पताल था, जिस में एक अनुभवी डाक्टर तैनात था. तिजोरी की मां के मोतियाबिंद का आपरेशन उसी डाक्टर ने किया था.

तिजोरी ने सुनील को वहां दाखिल कराया और डाक्टर से आंख में चोट लगने की वजह बताते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, इस की आंख को कुछ हो गया, तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘तू चिंता न कर, मुझे चैक तो करने दे,’’ कह कर डाक्टर ने स्टै्रचर पर लेटे सुनील को अपने जांच कमरे में ले कर नर्स से दरवाजा बंद करने को कह दिया.

तिजोरी घबरा तो नहीं रही थी, पर लगातार वह अपने दिल में सुनील की आंख में गंभीर चोट न निकलने की दुआ कर रही थी. महेश के साथ श्रीकांत भी वहां पहुंच गया था.

अस्पताल के गलियारे में इधर से उधर टहलते हुए तिजोरी लगातार वहां लगी बड़े अक्षरों वाली घड़ी को देखे जा रही थी. तकरीबन 50 मिनट के बाद डाक्टर ने बाहर आ कर बताया, ‘‘बेटी, बड़ी गनीमत रही कि गुल्ली भोंहों के ऊपर लगी. थोड़ी सी भी नीचे लगी होती, तो आंख की रोशनी जा सकती थी.’’

‘‘डाक्टर साहब, क्या मैं सुनील से मिल सकती हूं?’’

‘‘हां, ड्रैसिंग कंप्लीट कर के नर्स बाहर आ जाए तो तुम अकेली जा सकती हो. पेशेंट के पास अभी ज्यादा लोगों का होना ठीक नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

नर्स के बाहर आते ही तिजोरी लपक कर अंदर पहुंची. सुनील की चोट वाली आंख की ड्रैसिंग के बाद पट्टी से ढक दिया गया था, दूसरी आंख खुली थी.

तिजोरी सुनील के पास पहुंची. उस ने अपनी दोनों हथेलियों में बहुत हौले से सुनील का चेहरा लिया और बोली, ‘‘बहुत तकलीफ हो रही है न. सारा कुसूर मेरा है. न मैं तुम्हें गुल्लीडंडा खिलाने ले जाती और न तुम्हें चोट लगती.’’

तिजोरी को उदास देख कर सुनील अपने गालों पर रखे उस के हाथ पर अपनी हथेलियां रखता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है तिजोरी, मैं ही उस समय असावधान था. तुम्हारे बारे में सोचने लगा था… इतने अच्छे स्वभाव की लड़की मैं ने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी,’’ कहतेकहते सुनील चुप हो गया.

तिजोरी समझ गई और बोली, ‘‘चुप क्यों हो गए… मन में आई हुई बात कह देनी चाहिए…’’

‘‘लेकिन, न जाने क्यों मुझे डर लग रहा है. मेरी बात सुन कर कहीं तुम नाराज न हो जाओ.’’

‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं होती. मुझे कोई बात बुरी लगती है, तो तुरंत कह देती हूं. तुम बताओ कि क्या कहना चाह रहे हो.’’

‘‘दरअसल, मैं ही तुम को चाहने लगा हूं और चाहता हूं कि तुम से ही शादी करूं.’’

तिजोरी ने सुनील के गालों से अपने हाथ हटा लिए और उठ कर खड़े होते हुए बोली, ‘‘मुझ से शादी करने के लिए अभी तुम्हें 2 साल और इंतजार करना होगा. ठीक होने के बाद तुम्हें मेरे पिताजी से मिलना होगा.’’

इतना कह कर तिजोरी बाहर चली आई. श्रीकांत और महेश तो वहां इंतजार कर ही रहे थे, लेकिन अपने पिता को उन के पास देख कर वह चौंक पड़ी. उन के पास पहुंच कर वह सीने से लिपट पड़ी, ‘‘आप को कैसे पता चला?’’

‘‘मेरे खेतों में कोई घटना घटे, और मुझे पता न चले, ऐसा कभी हुआ है? मैं तो बस उस लड़के को देखने चला आया और अंदर भी आ रहा था, पर तुम दोनों की बातें सुन कर रुक गया. अब तू यह बता कि तू क्या चाहती है?’’

‘‘मैं ने तो उस से कह दिया है कि…’’ तिजोरी अपनी बात पूरी नहीं कर पाई थी कि रघुवीर यादव ने बात पूरी की…  ‘‘2 साल और इंतजार करना होगा.’’

अपने पिता के मुंह से अपने ही कहे शब्द सुन कर तिजोरी के चेहरे पर शर्म के भाव उमड़ आए और उस ने अपने पिता की चौड़ी छाती में अपना चेहरा छिपा लिया.

रघुवीर यादव अपनी बेटी की पीठ थपथपाने के बाद उस के बालों पर हाथ फेरने लगे. उन्होंने अपनी जेब से 10,000 रुपए निकाल कर श्रीकांत को दिए और बोले, ‘‘बेटा, यह सुनील के इलाज के लिए रख लो. कम पड़ें तो खेत में काम कर रहे किसी मजदूर से कह देना. खबर मिलते ही मैं और रुपए पहुंचा दूंगा,’’ इतना कह कर वे तिजोरी और महेश को ले कर घर की तरफ बढ़ गए.

अगले दिन तिजोरी अपने भाई महेश रोज की तरह के साथ खेत पर गई. आज उस का मन खेत पर नहीं लग रहा था. पानी पीने के लिए वह गोदाम की तरफ गई, तो उस ने किनारे जा कर बिजली महकमे के स्टोर की तरफ झांका.

तभी सामने वाली सड़क पर एक मोटरसाइकिल रुकी. उस पर बैठा लड़का सिर पर गमछा लपेटे और आंखों में चश्मा लगाए था. तिजोरी को देखते ही उस ने मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे ही हाथ हिलाया, पर तिजोरी ने कोई जवाब नहीं दिया. वह उसे पहचानने की कोशिश करने लगी, पर दूरी होने के चलते पहचान न सकी.

तभी जब स्टोर में काम करते श्रीकांत की नजर तिजोरी पर पड़ी, तो श्रीकांत उसे वहां खड़ा देख उस के करीब चल कर जैसे ही आया, वह बाइक सवार अपनी बाइक स्टार्ट कर के चला गया.

तिजोरी के करीब आ कर श्रीकांत बोला, ‘‘हैलो तिजोरी, कैसी हो?’’

उस बाइक सवार को ले कर तिजोरी अपने दिमाग पर जोर देते हुए उसे पहचानने की कोशिश रही थी, लेकिन श्रीकांत की आवाज सुन कर वहां से ध्यान हटाती हुई बोली, ‘‘मैं ठीक हूं. यहां से खाली हो कर तुम्हारे बौस को देखने अस्पताल जाऊंगी. वैसे, कैसी तबीयत है उन की?’’

‘‘आज शाम तक उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी. डाक्टर का कहना है कि चूंकि आंख के बाहर का घाव है, इसलिए वे एक आंख पर पट्टी बांधे काम कर सकते हैं. मैं शाम को उन्हें ले कर सरकारी गैस्ट हाउस में आ जाऊंगा.’’

‘‘लेकिन, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जब वे पूरी तरह से ठीक हो जाएं, तब काम करना शुरू करें?’’

‘‘चोट गंभीर होती तो वैसे भी वे काम नहीं कर पाते, पर जब डाक्टर कह रहा है कि चिंता की कोई बात नहीं, तो दौड़भाग का काम मैं देख लूंगा और इस स्टोर को वे संभाल लेंगे. फिर हमें समय से ही काम पूरा कर के देना है, तभी अगला कौंट्रैक्ट मिलेगा.’’

‘‘ठीक है, मुझे कल भी खेत पर आना ही है. यहीं पर कल उस से मिल लूंगी. तुम्हें अगर प्यास लग रही हो, तो मैं फ्रिज से पानी की बोतलें निकाल कर देती जाऊं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. कल मिलूंगी,’’ कह कर तिजोरी उस खेत की तरफ चली गई जहां बालियों से गेहूं और भूसा अलग कर के बोरियों में भरा जा रहा था.

अगले दिन पिताजी के हिसाबकिताब का बराबर मिलान करने के चलते तिजोरी को देर होने लगी. जैसे ही हिसाब मिला, तो वह उसे फेयर कर के लिखने का काम महेश को सौंप कर अकेले ही खेत की तरफ आ गई.

चूंकि तिजोरी तेज चलती हुई आई थी और उसे प्यास भी लग रही थी, इसलिए उस ने सोचा कि पहले गोदाम में जा कर घड़े से पानी पी ले और फिर सुनील का हालचाल लेने चली जाएगी.

तिजोरी ने गोदाम के शटर के दोनों ताले खोले और अंदर घुस कर घड़े की तरफ बढ़ ही रही थी कि अचानक शटर गिरने की आवाज सुन कर वह पलटी. कल जो बाइक पर सवार लड़का था, उसे वह पहचान गई, फिर उस के बढ़ते कदमों के साथ इरादे भांपते हुए वह बोली, ‘‘ओह तो तुम शंभू हो. मुझे लग रहा है कि उस दिन मैं ने तुम्हारी नीयत को सही पहचान लिया था… लगता है, उसी दिन से तुम मेरी फिराक में हो.’’

‘‘ऐसा है तिजोरी, शंभू जिसे चाहता है, उसे अपना बना कर ही रहता है. उस दिन तो मैं तुम्हें देखते ही पागल हो गया था. आज मौका मिल ही गया. अब तुम्हारे सामने 2 ही रास्ते हैं… या तो सीधी तरह मेरी बांहों में आ जाओ, नहीं तो…’’ कह कर वे उसे पकड़ने के लिए लपका.

तिजोरी ने गोदाम के ऊपर बने रोशनदानों की ओर देखा और ऊपर मुंह कर के पूरी ताकत से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

तिजोरी को चिल्लाता देख शंभू तकरीबन छलांग लगाता उस तक पहुंच गया. तिजोरी की एक बांह उस की हथेली में आई, लेकिन तिजोरी सावधान थी, इसलिए पकड़ मजबूत होने से पहले उस ने अपने को छुड़ा कर शटर की तरफ ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाते हुए दौड़ लगानी चाही, पर इस बार शंभू ने उसे तकरीबन जकड़ लिया.

तभी शटर के तेजी से उठने की आवाज आई. जैसे ही शंभू का ध्यान शटर खुलने पर एक आंख में पट्टी बांधे इनसान की तरफ गया, तिजोरी ने उस की नाक पर एक झन्नाटेदार घूंसा जड़ दिया. और जब तक शंभू संभलता, सुनील ने उसे फिर संभलने का मौका नहीं दिया. अपनी आंख की चोट की परवाह न करते हुए उस ने अपने घूंसों की जोरदार चोटों से उस का जबड़ा तोड़ डाला.

तभी हालात की गंभीरता को देखते हुए श्रीकांत के भी आ जाने से शंभू ने भाग जाना चाहा, पर शटर के बाहर खेतिहर मजदूरों की भीड़ के साथ रघुवीर यादव को खड़ा देख कर सुनील की पीठ से चिपकी तिजोरी अपने पिता की तरफ दौड़ पड़ी.

उस को सांत्वना देते हुए रघुवीर यादव बोले, ‘‘2 साल तू इंतजार करने को राजी है, तो मैं इतना तो कर ही सकता हूं कि तेरी शादी सुनील से पक्की कर दूं…’’

उन्होंने सुनील को अपने पास बुला कर उसे भी अपने सीने से लगा लिया.

खेतिहर मजदूर शंभू को पकड़ कर कहीं दूर ले जा रहे थे.

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