रंगीनियत: प्यार और रंजिश की दास्तान

और खींच इसे बे, अभी मरा नहीं है… इस की स्कूटी फंस गई है. खींच इसे जब तक मर न जाए,’’ अमजद के यह कहते ही सुहैल ने ट्रक को और तेज रफ्तार से आगे बढ़ाया. वह तकरीबन 200 मीटर तक स्कूटी को खींचता हुआ आगे ले गया, फिर उस ने ट्रक को तेज रफ्तार से रुड़की रोड पर आगे बढ़ा दिया. उन्होंने समझ लिया था कि स्कूटी वाला आदमी अब बच नहीं पाएगा.यह कांड रात के 10 बजे के आसपास हरिद्वार में हुआ था. जिस आदमी को सड़क पर ट्रक से घसीटा गया था, वह लहूलुहान हो गया था.

उस की खाल उधड़ सी गई थी. हड्डीपसली टूटफूट गई थीं, पर उस की सांसें अभी भी बाकी थीं.अगर उस आदमी को समय से अस्पताल न ले जाया जाता तो उस की मौत तय थी. भला हो उस आदमी का, जिस ने पुलिस और कानून के डर से ऊपर उस घायल आदमी की जिंदगी की कीमत को ज्यादा समझा. उस ने 2-3 लोगों की मदद से उस घायल आदमी को अपनी कार में डाला और जल्दी से पास के अस्पताल में ले गया.डाक्टर सुमनदीप घायल आदमी की हालत देख कर समझ गए कि अगर लिखतपढ़त में समय गंवाया तो उस आदमी का बचना मुश्किल है.

वे तुरंत उसे आईसीयू में ले गए और दूसरे डाक्टरों और नर्सों की मदद से उस का आपरेशन किया. बड़ी मुश्किल से वे उस की जान बचा पाए.उधर पुलिस ने ट्रक ड्राइवर सुहैल और उस के क्लीनर अमजद को लक्सर कसबे से पकड़ लिया था. वे दोनों पुलिस को चकमा देने के लिए रुड़की के बजाय लक्सर की तरफ चले गए थे, लेकिन पुलिस के आगे उन की एक न चली.

कुछ देर नानुकर करने के बाद सुहैल और अमजद ने अपना अपराध कबूल कर लिया. ‘थर्ड डिगरी’ का इस्तेमाल करने पर शकील का नाम भी उगल दिया, जिस ने उन्हें उस आदमी को कुचलने के लिए डेढ़ लाख रुपए दिए थे.‘थर्ड डिगरी’ के नाम से अच्छेअच्छे शातिर अपराधी कांप जाते हैं, क्योंकि इस में कैदी या मुलजिम को जुर्म कबूल करवाने के लिए कई तरह के कठोर तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे बेंत से लगातार जोर से मारना, भूखाप्यासा रखना, सोने न देना या मलमूत्र त्याग करने से रोक देना वगैरह.

जब पुलिस ने शकील के हाथ मरोड़े, तो एक नई कहानी उभर कर सामने आई. उसे अमनदीप नाम के एक आदमी ने अस्पताल में भरती घायल अभिनव के कत्ल के लिए 3 लाख रुपए दिए थे.एक कड़ी से दूसरी कड़ी जुड़ती जा रही थी और कहानी में नएनए मोड़ आते जा रहे थे, लेकिन पुलिस को तो कहानी की तह तक जाना था. उसे असली अपराधी चाहिए था.

अमनदीप भी बहुत होशियारी दिखा रहा था, लेकिन पुलिस की मार के आगे उस ने सब सच उगल दिया. जो कहानी उस ने सुनाई, वह आपसी रिश्तों को शर्मसार करने वाली थी.अमनदीप और अभिनव लंगोटिया यार थे. अमनदीप दोनेपत्तल का कारोबारी था.

हरिद्वार में दोनेपत्तल की डिमांड काफी है, इसलिए उस का कारोबार अच्छाखासा फलफूल रहा था. अभिनव भी कई बार उस से दोनेपत्तल खरीदा करता था. धीरेधीरे दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे.अमनदीप अभी कुंआरा था, हृष्टपुष्ट था, नौजवान और खूबसूरत था.

अभिनव के यहां उस का खूब आनाजाना था, लेकिन अमनदीप में एक अच्छे आदमी के सभी गुण मौजूद थे. वह भला मानस था, चरित्रवान था, भरोसेमंद था. दोनों दोस्त एकदूसरे पर पूरा भरोसा करते थे, इसलिए दोनों की दोस्ती खूब फब रही थी.अभिनव की शादी हुए 12 साल गुजर चुके थे. उस का 10 साल का बेटा मोहन और 7 साल की बेटी मोहिनी थी. उस का परिवार सुखी परिवार था.

पत्नी रीना खूबसूरत भी थी और अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने वाली थी.लेकिन रीना को न जाने कहां से सोशल मीडिया पर सैक्सी और ब्लू फिल्मों के वीडियो देखने का चसका लग गया. यहीं से उस का मन बदलने लगा. चैन की जिंदगी जीने वाली बेचैन रहने लगी.

सैक्स की डिमांड कुछ ज्यादा ही करने लगी. अभिनव अपनी पत्नी के इस बदलाव को देख कर हैरान था, लेकिन खुश भी था. अब वह उस को ज्यादा शारीरिक सुख दे रही थी, वह भी अलगअलग पोज दे कर.लेकिन रीना यहीं नहीं रुकी. रंगीनियत का शैतान उस पर हावी हो गया. वह हरदम उस को और ज्यादा रंगीनियत के लिए उकसा रहा था.

वह उस से बारबार कहता, ‘जिंदगी में गैरमर्द से प्यार नहीं किया तो कुछ नहीं किया.’रीना का मन भी कहता कि इस में गलत ही क्या है. जिंदगी के सूखे को खत्म किया जाए, उस में रंगीनियत और रोमांस का रंग उड़ेला जाए, पर रोमांस किस से किया जाए? आसान शिकार कौन? पास का शिकार कौन?

रीना की निगाहें अमनदीप पर टिक गईं.रीना एक दिन जानबूझ कर घर आए अमनदीप से टकराई और शरमाने का ढोंग करने लगी. अमनदीप ने इसे बड़े ही आम तरीके से लिया, लेकिन अपने घर जा कर रीना भाभी से टकराने का सीन बारबार उस की आंखों के सामने आने लगा.

किसी भी बीज को खाद, पानी और धूप ठीक से मिल जाए तो उसे पनपने में देर नहीं लगती. जमीन उपजाऊ थी. प्यार का बीज फूटा तो तेजी से बढ़ा. कुछ ही दिनों में इश्क का यह पौधा फलफूल से लदने लगा.अभिनव शुरुआत में हर चीज से अनजान था. उसे जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि उस के घर में उस के अपने ही आग लगाने में लगे हैं, लेकिन कहावत है इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. एक दिन रीना और अमनदीप रंगे हाथ पकड़े गए. अमनदीप भाग निकला.

अभिनव ने रीना को खूब खरीखोटी सुनाई.इस के बाद तो आएदिन पतिपत्नी और वो का झगड़ा घर में होने लगा. रीना तो अमनदीप की हवस में इस कदर पागल हुई कि वह चाह कर भी उसे छोड़ नहीं पा रही थी. अमनदीप उम्र में कम था, वह तो रीना के प्यार और हवस में उस का गुलाम बन गया.अभिनव तो रीना को अब कांटे की तरह चुभने लगा था. अभिनव मानसिक रूप से बुरी तरह से परेशान था. उस के सोचनेसमझने की ताकत जवाब देने लगी थी.

मर्द के बरदाश्त की एक सीमा होती है. एक दिन वह सीमा टूट गई. रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर अभिनव ने रीना को बुरी तरह से पीट डाला.रीना ने सोचा कि अभिनव नाम का यह कांटा अब बड़ा और तीखा हो गया है. चुभने भी कुछ तेज लगा है.

अब इसे निकाल फेंकना चाहिए. एक दिन रीना अमनदीप से मिली और उस से कहा, ‘‘अमनदीप, अब और नहीं सहा जाता. बताओ, तुम मुझ से शादी करने के लिए तैयार हो कि नहीं?’’‘‘लेकिन, यह कैसे मुमकिन है भाभी?’’ अमनदीप कुछ हिचकिचाया.‘‘मुमकिन है. अगर तुम मुझे अपनाना चाहते हो तो रास्ते के रोड़े को तुम्हें हटाना होगा. फिर, मैं भी तुम्हारी और मेरी सारी प्रोपर्टी भी तुम्हारी.’’अमनदीप बिजनैस को भी अच्छे से समझता था. उसे लगा कि सौदा फायदे ही फायदे का है.

खूबसूरत औरत और इतनी प्रोपर्टी… जिंदगी आराम से गुजरेगी.इश्क, हवस और पैसा तीनों ने मिल कर रीना और अमनदीप की अक्ल को मार दिया था. अमनदीप का संबंध अपराधी सोच के शकील से था. अनाड़ी इनसान कहीं भी सिर मुंड़ा बैठता है. शकील ने अभिनव की जान लेने के लिए 5 लाख रुपए मांगे और 3 लाख में सौदा पट गया.

शकील जानता  था, यह अभी भी फायदे का सौदा है.शकील शातिर था. वह किसी की जान लेने में कभी सीधे शामिल नहीं होता था. उसे कानून के फंदे में सीधे फंसने का डर बना रहता था. वह जानता था कि कत्ल किसी और से कराया जाए तो ज्यादा से ज्यादा हत्या की साजिश में शामिल होने का केस बनता है. वह यह भी बखूबी जानता था कि अगर वह पकड़ा भी गया तो आसानी से जमानत पर बाहर आ जाएगा और फिर लंबा मुकदमा और तारीख पर तारीख.

ऐसे न जाने कितने मुकदमे शकील पर चल रहे थे. वह कानून की कमजोरी जानता था कि इन मुकदमों का फैसला उस की इस जिंदगी में नहीं होना है. पेशकार से ले कर वकील और जज सब उस की नजर में बिकाऊ थे, इसलिए बेखौफ अपराध करते जाओ, मुकदमे चलते रहेंगे, मुकदमों का क्या?शायद इसीलिए शकील ने अपने 2 पिट्ठुओं को अभिनव की जान लेने के लिए तैयार किया. उन दोनों को डेढ़ लाख रुपए देने का वादा किया. आधा पैसा उस ने पहले ही दे दिया.

वे इसे ऐक्सीडैंट केस बनाना चाहते थे, लेकिन कहानी की परत दर परत खुलने से वे फंसते चले गए.अभिनव कई हफ्ते अस्पताल में रहा, लेकिन रीना गिरफ्तार होने से पहले एक बार भी उसे अस्पताल में देखने के लिए नहीं गई. अभिनव की बहन और बहनोई ही नगीना से आ कर उस की देखभाल करते रहे. ठीक होने के बाद भी वह कभी अपने घर नहीं गया. उस ने अपनी दुकान संभाली और पास में ही किराए के मकान में रहने लगा. उस के बच्चे भी उस से मिलना नहीं चाहते थे.

अभिनव ने पहले ही अपनी प्रोपर्टी रीना के नाम कर दी थी. उसे कभी इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उस की पत्नी कभी ऐसा कदम भी उठा सकती है.अमनदीप और रीना की गिरफ्तारी हुई. दोनों जल्दी ही जमानत पर बाहर आ गए. मुकदमा चला, सजा हुई, लेकिन 2 साल जेल में रह कर दोनों बाहर आ गए. अभिनव से तलाक लेने में रीना को कोई दिक्कत ही नहीं हुई. अभिनव रीना और उस के बच्चों के साथ उसी मकान में सुकून भरी जिंदगी बिताने लगा. उसे गंगा के शांत घाट ज्यादा अच्छे लगने लगे थे. वह घाटों पर घूमता हुआ सोचता कि गंगा का बहता पानी कभी वापस नहीं आता.

सोनचिरैया : जब अधेड़ से ब्याही गई एक कमसिन

ठाकुर भवानी प्रसाद अपने रुतबे के लिए आसपास के कई गांवों में जाने जाते थे. 6 फुट लंबा कद और चौड़े कंधे वाले ठाकुर भवानी प्रसाद के बदन पर सफेद रंग का कुरताधोती खूब फबता था. उन के शरीर का साथ देती हुई उन की रोबदार आवाज और मजबूत भुजाएं उन्हें पहलवान जैसा बलशाली दिखाती थीं.

गांव वाले ठाकुर भवानी प्रसाद को आदर भाव से ‘बाऊजी’ कह कर बुलाते और बहुत इज्जत देते थे, क्योंकि उन्हें मेहमाननवाजी का बहुत शौक था. उन के घर पर चायनाश्ते के दौर चलते ही रहते थे.

बाऊजी आत्मा और परमात्मा पर खूब प्रवचन देते थे. यह अलग बात है कि जब आज से 20 साल पहले उन की पहली पत्नी सुधा की मौत हुई थी, तब वे दहाड़ मार कर रोए थे.

वैसे, वे औरत की खूबसूरती के बहुत गहरे पारखी थे. अभी पहली पत्नी की मौत का ठीक से एक साल भी पूरा नहीं हुआ था कि बाऊजी दूसरी पत्नी सोमवती ब्याह लाए थे और सोमवती के आते ही मानो उन पर जवानी फिर से लौट आई थी. उन का चेहरा पत्नी द्वारा की गई सेवा से गुलाबी हो चला था.

पहली पत्नी सुधा अपने पीछे

2 लड़कियां छोड़ कर मरी थी. बड़ी लड़की गीता जवान हुई, तो बाऊजी ने उस की शादी खूब धूमधाम से कर दी थी. हालांकि उस समय उन के दामादजी नवीन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाई ही कर रहे थे, पर पंडितजी ने लड़के का ऊंचा कुल और परिवार की हैसियत देख कर शादी करा दी थी.

पहली लड़की तो किनारे लग गई थी. ठाकुर भवानी प्रसाद अब जल्दी से जल्दी अपनी दूसरी लड़की रीता की शादी निबटाना चाहते थे, पर रीता के लिए भी लड़का कुलीन होना चाहिए था, भले ही उस का रंगरूप कैसा भी हो.

बताने वालों ने एक से एक रिश्ते बताए, पर वे सब बाऊजी को बराबरी के नहीं लगे. कहीं पैसे की कमी थी, तो कहीं कुल की.

‘‘भाई, रंगरूप का क्या है, आज है तो कल ढल गया… पर कुल की इज्जत तो हमेशा के लिए रहती है और हमें दूसरों से बेहतर बनाती है,’’ कुछ ऐसा मानना था बाऊजी का.

रीता की शादी कुलीन लड़के से हो, इस के लिए बाऊजी ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया और उन की मेहनत भी रंग ले आई. आखिरकार एक मनचाहा लड़का मिल ही गया.

22 साल की रीता के लिए 45 साल का अधेड़ मिल गया था. चेहरे पर थोड़े से चेचक के हलके दाग और पेट निकला हुआ, पर बहुत ऊंचे कुल का. बाऊजी तो बस इसी बात से फूले नहीं समाते थे.

उस अधेड़ का नाम संतोष था, जो एक ट्रस्ट के पुस्तकालय में काम करता था. हालांकि उस के घर में पुरखों का बनाया हुआ बहुतकुछ था और खानेपहनने की कोई कमी न थी, फिर भी संतोष ने हाथ में एक नौकरी पकड़ना उचित समझा था.

रीता की शादी तो एक कुलीन घर में हो गई थी, पर वहां का माहौल उसे बहुत अजीब सा लग रहा था. दोगुनी उम्र का पति, घर में पूजापाठ और साफसफाई का सनक की हद तक माहौल था.

ससुर मर चुके थे, केवल सास ही थी. संतोष और उस की मां में खूब बनती थी और उन दोनों मांबेटे ने कई नियम बनाए हुए थे, कई व्रत ले रखे थे.

सुबह 4 बजे से ही उन के घर के मंदिर की साफसफाई का कार्यक्रम शुरू हो जाता था. रीता के लिए इतनी जल्दी जागना कभी आसान काम नहीं रहा था. उसे अपनेआप को ससुराल में ढालने में बहुत मुश्किल हो रही थी. इस माहौल में बहुत जल्दी ही उस का दम घुटने लगा था.

रीता की ससुराल में सफाई, नियम और व्रत का इतना ध्यान रखा जाता था कि जब भी रीता को माहवारी होती तो संतोष उसे अपने बिस्तर को भी नहीं छूने देता था और महज एक चादर लपेट कर उसे जमीन पर सोना पड़ता था.

संतोष अपनेआप में ही मगन रहता था और रात में प्यार की बात करने के बजाय जल्द ही खर्राटे भरने लगता था. रीता का समय बस घर का काम करने में ही बीतता रहता था.

थकाहारा सा संतोष बातबात में संस्कृत के शब्द तो बोलता था, पर जिंदगी के मजे से दूर भागता था. इसी वजह से वह रीता से दूरी बना कर रखता था. संतोष को न तो अपनी पत्नी से कोई लगाव था और न ही उस के मन में बच्चे पैदा करने की इच्छा नजर आती थी.

धीरेधीरे रीता भी अपने पति का रूखा और ठंडापन समझ गई थी और इसी तरह 5 साल गुजर गए. संतोष पूरे 50 साल का हो गया था और रीता 27 साल की.

एक दिन रीता बाथरूम से बाहर निकली, तो दरवाजे पर किसी अनजान ने आवाज दी. वह गीले बालों के साथ ही दरवाजा खोलने चली गई. सामने एक लड़का खड़ा था, जिस ने अपनी साइकिल पर एक बड़ी सी पोटली बांध रखी थी.

रीता की बड़ीबड़ी आंखों में सवाल तैर रहे थे और उस नौजवान ने उन सवालों को अच्छी तरह से पढ़ लिया था. बिना कुछ कहे उस ने हरे केले के पत्तों को लपेट कर बनाई गई एक पुडि़या रीता की तरफ बढ़ा दी.

‘‘पर, हमारे यहां तो फूल देने के लिए चंद्रिका काका आते हैं…’’ रीता बोली.

‘‘जी, मैं उन का बेटा तिलक हूं. वे बीमार हैं, इसलिए नहीं आ पाए हैं,’’ उस नौजवान ने कहा.

रीता ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो तिलक की उंगलियां उस के हाथों को छू गईं. रीता को पराए मर्द का अहसास किसी ताजा बयार की तरह महसूस हुआ था, पर अगले ही पल उस ने अपने बालों को झटक कर मन से इस भाव को तुरंत निकाल दिया था.

अगले दिन जैसे ही दरवाजे पर तिलक की आहट हुई, रीता दरवाजा खोलते हुए बोल पड़ी, ‘‘क्या बात है, कल सारे फूल मुरझाए हुए थे?’’

तिलक अचानक रीता के इस शिकायती लहजे से चौंक गया था.

‘‘जी, वैसे फूल तो ताजा थे, पर गरमी के चलते थोड़ा सा असर आ गया होगा. कल मैं ताजा फूल ले आऊंगा. फिलहाल तो यह कमल का फूल है. एक ही था, आप के लिए ले आया,’’ तिलक ने कहा.

रीता ने कमल का फूल ले लिया. अंदर आ कर उस की खुशबू को महसूस करने की कोशिश की, पर नाकाम ही रही. खुशबू न थी, पर कमल कितना सुंदर था और उस पर पड़ी हुई पानी की बूंदें मोतियों के समान लग रही

थीं. रीता ने उस कमल को अपने कमरे में ला कर बिस्तर के सिरहाने रख दिया.

इतने साल तक गोद हरी न होने पर सास ने रीता को ले जा कर माहिर डाक्टर से जांच कराई. डाक्टर ने बताया कि रीता की तो सब रिपोर्ट ठीक हैं, हो सकता है कि इन के पति में कुछ कमी हो, इसलिए बेहतर होगा कि वह भी अपनी जांच करवा ले.

रात को जब संतोष बिस्तर पर आया, तो रीता उस से अपने मन की बात कह बैठी, ‘‘मैं तो कहती हूं कि आप को भी किसी डाक्टर से जांच करा लेनी चाहिए.’’

‘‘बच्चे नहीं हुए, तो इस का मतलब यह नहीं है कि मुझ में कोई कमी है… और फिर इस शहर में बहुत सारे लोगों से मेरी जानपहचान है. अगर मैं किसी डाक्टर से मिलूंगा तो मेरी बदनामी नहीं होगी क्या?’’ संतोष की धीरेधीरे आवाज तेज हो उठी थी, ‘‘तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मुझ में कुछ कमी है… आज मैं तुम्हें अपनी मर्दानगी दिखाता हूं,’’ चीख रहा था संतोष और चीखते हुए उस ने रीता को लातघूंसों से बहुत मारा.

रीता सिसकती रही और सोचती रही कि अगर औरत को पीटना ही मर्दानगी है, तब तो नामर्द होना कई गुना बेहतर है.

3 लोगों के इस घर में रीता को अकेलापन खाने लगा था. संतोष काम पर चला जाता, सास अपने मंदिर और पूजापाठ में मगन रहती, बेचारी रीता से बात करने वाला कोई न बचता. ऐसे में तिलक बाहर से आने वाला एकमात्र ऐसा इनसान था, जिस से रीता बातें कर सकती थी और इसीलिए रीता को तिलक के आने का इंतजार रहता था.

अगले दिन तिलक आया, तो सीधा घर के आंगन में संगमरमर के पत्थर पर बैठ गया. रीता रसोईघर में थी. वह तिलक को आया देख कर चौंक गई और अपनी साड़ी को सही करते हुए बाहर आई और बोली, ‘‘अरे तिलक, तुम आ गए…’’ रीता की आवाज में खुशी की चहक थी.

तिलक ने फूलों की पुडि़या आगे बढ़ाई, तो उस की नजर रीता के हाथ पर बने नीले निशान पर पड़ी. उस ने इस की वजह पूछी.

‘‘सोनचिरैया… पिंजरा…’’ रीता हंस कर बात को टाल गई, ‘‘यह तुम्हारे हाथ में क्या है, जो तुम छिपा रहे हो?’’

‘‘यह वेणी है. बालों में लगाने के लिए,’’ तिलक बोला.

‘‘लाओ, इसे मुझे दे दो. मैं सजाऊंगी इसे अपने बालों में,’’ कह कर रीता ने वेणी ले ली और बालों में लगाने के लिए अपने कमरे में चली गई.

वेणी के सिंगार से रीता की खूबसूरती कई गुना बढ़ गई थी. तिलक की निगाहें यह बात महसूस कर रही थीं और उस की जबान ने भी यह बात रीता को महसूस करा दी थी.

‘‘इस वेणी को लगा कर आप बहुत सुंदर लग रही हैं,’’ तिलक ने शरमाते

हुए कहा.

शादी के इतने साल बाद भी कभी संतोष ने रीता को प्यारभरी नजरों से नहीं देखा था. उस के रूप की कभी तारीफ तक नहीं की थी, पर आज इस लड़के से अपनी सुंदरता की तारीफ सुन कर रीता का मन खुश हो उठा. उस की नसनस में रोमांच भर उठा.

रीता कुछ भी कह न सकी. वह भाग कर अपने कमरे मे लगे आईने के सामने खड़ी हो कर खुद को निहारने लगी.

‘क्या है यह? क्या मुझे तिलक से प्यार हो गया है? और फिर वह वेणी क्यों लाया? मेरे लिए ही तो न… नहीं, मैं तो ब्याहता हूं… किसी दूसरे से प्यार नहीं कर सकती… पर ऐसी शादी का भी क्या फायदा, जो सिर्फ पैसे और खानदान की झूठी शान को बनाए रखने के लिए कर दी गई हो और वह भी दोगुनी उम्र के एक अधेड़ के साथ?’ रीता ने अपने विचारों को झटक दिया था और जा कर काम में लग गई.

तिलक जा चुका था. रीता ने अपने कमरे में जा कर देखा, तो वह कमल का फूल मुरझाया हुआ पड़ा था.

‘‘कोई बात नहीं, कल तिलक आएगा तो और कमल मंगवा लूंगी,’’ रीता उस मुरझाए कमल को देखते हुए बुदबुदा रही थी.

अगले दिन सास पूजा में लीन थी कि तिलक आया और सीधा आंगन में आ कर उसी संगमरमर के पत्थर पर बैठ गया और फूल की पुडि़या निकालने के लिए झोली जमीन पर रख दी.

तिलक को देख कर रीता के चेहरे पर  मुसकराहट दौड़ गई और वह आगे बढ़ चली. इतने में रीता की सास की नजर भी आंगन में बैठे तिलक पर पड़ी और वह गुस्से से भर गई.

जब तिलक चला गया, तो सास रीता पर बिफर पड़ी, ‘‘इस माली के लड़के को घर के अंदर आने की क्या जरूरत पड़ गई… इसे बाहर खड़े हो कर ही फूल दे देने चाहिए. अब यह आंगन और चबूतरा सब अछूत हो गया. अब तुम

ही यहां की सफाई करो,’’ सास चिल्ला रही थी.

सास की बात सुन कर रीता ने सिर झुका कर आंगन की धुलाई शुरू कर दी.

‘‘माली फूल चुन कर ला दे तो इन्हें कोई परेशानी नहीं, कुछ भी अछूत नहीं… और वही माली आंगन में आ कर बैठ गया, तो आंगन ही अछूत हो गया… कितनी अजीब बात है,’’ रीता को इस रूढि़वाद पर कुढ़न हो रही थी.

अगले 2 दिनों तक तिलक नहीं आया. रीता परेशान होने लगी, ‘लगता है, उस ने मेरी सास की कड़वी बातें सुन ली होंगी. क्या सोचेगा तिलक? कहीं वह बीमार तो नहीं हो गया? क्या मैं तिलक को फिर कभी देख नहीं पाऊंगी?’ अपनेआप से ही कई सवाल और कई जवाब… रीता का सिर भारी होने लगा.

संतोष के बाहर जाने के बाद रीता बिस्तर पर लेट गई और उस की आंख लग गई. वह सपने में खो गई… यह तिलक ही तो है, जो उसे अपनी बांहों में उठाए हुए है… उस के होंठों पर अपने होंठ रखे हुए है, उस के साथ सैक्स कर रहा है और रीता भी तो तिलक का पूरा साथ दे रही है…

जब रीता अपने चरमसुख पर पहुंची, तो एक झटके के साथ उस की नींद टूट गई. उस का रोमरोम रोमांचित हो रहा था

‘यह कैसा सपना… और यह कैसा प्यार, जिसे मैं बारबार जीना चाहूंगी… पर तिलक का इस तरह मेरे सपने में आना?’ और फिर खुद ही सारे सवालों का जवाब उस ने दे दिया, ‘तो इस में गलत क्या है? अगर मुझे तिलक से प्यार है… इस कुलीन खानदान और मेरे पति ने मुझे दिया ही क्या है… शरीर का सुख तो दूर की बात, वह तो मन का सुख भी न दे सका, उलटा मारनापीटना…

‘मायके वाले भी समर्पण कर के गुजारा करने की बात ही कहते हैं. ऐसे में मुझे किसी और से प्यार हो गया तो क्या? पर उस प्यार का नतीजा क्या होगा?’

‘‘प्यार खुद अपना रास्ता खोज लेगा,’’ रीता ने अपनेआप से कहा और रसोईघर में चली गई.

तिलक के आने की आहट हुई. रीता आज पहले से ही तैयार थी. दरवाजे

पर जा कर फूलों की पुडि़या ली और बोली, ‘‘क्या इस सोनचिरैया को आजाद करा सकोगे?’’

तिलक ऐसा सवाल सुन कर चौंक जरूर गया, पर रीता की हालत उस से छिपी न थी.

‘‘सोनचिरैया इस गरीब और अछूत के साथ कैसे जिएगी?’’ तिलक ने पूछा.

‘‘प्यार की चाह सोनेचांदी और खानदान को चाट लेने से नहीं मिट जाती,’’ रीता ने कहा.

इस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे की आंखों में ही बहुतकुछ पढ़ लिया और तिलक ने कांपते हाथ से अपना मोबाइल नंबर रीता की तरफ बढ़ा दिया.

अगले दिन से चंद्रिका फूल लाने लगा था. दिनों के बीतने के साथसाथ तिलक और रीता के बीच मोबाइल फोन पर बातें लंबी होती जा रही थीं.

रीता ने अपनी हालत और पति के बारे में तिलक को सबकुछ बता दिया और एक ऐसा समय भी आया, जब

27 साल की ठकुराइन एक 25 साल के माली के लड़के के साथ सबकुछ छोड़ कर भाग जाने को मजबूर हो गई.

रीता रात में दबे पैर उठी, एक नजर अपने पति पर डाली और बुदबुदाई, ‘‘हो सकता है कि सभ्य समाज मेरे इस कदम को कलंकिनी का नाम दे, पर कोई बात नहीं. जाति और कुल की बातें करने वालों ने ही मुझे यह कदम उठाने पर मजबूर किया है,’’ और बिना कोई पैसे या गहने लिए ही वह घर से बाहर निकल आई और उस दिशा में चल दी, जहां तिलक उस का इंतजार कर रहा था.

सुबह 4 बजे से सास पूजापाठ में बिजी हो गई. संतोष अब भी खर्राटे भर कर बेसुध सो रहा था, जबकि सोनचिरैया खुले आसमान में उड़ान भर रही थी.

अनजाना डर: आजादी के पहले

रामलाल की झोपड़ी जला दी गई. किन लोगों ने जलाई, यह सभी को मालूम था, मगर पूरे गांव में एक डर था.

पिछले साल गांव में सरपंच पद का चुनाव हुआ था. वहां राजपूतों का दबदबा था. राजपूतों के बाद ब्राह्मण और दलित तबके की तादाद ज्यादा थी.

8 हजार की आबादी वाले इस गांव को टैलीविजन और अखबार ने जागरूक बना दिया था.

आजादी के पहले इस गांव में ठाकुरों का रजवाड़ा था. ठाकुर रामशेर सिंह की बड़ी हवेली थी. उन का दबदबा था. एक तरह से उन का राज पूरे गांव में था.

ठाकुर रामशेर सिंह की मौत के बाद उन के बड़े बेटे आजाद सिंह ठाकुर बने. उन की मौत के बाद उन के बड़े बेटे रतन सिंह की ताजपोशी हुई.

आजादी के बाद राजनीति बहुत बदल चुकी थी. आजाद सिंह शहर में रहते थे, जब कि उन के छोटे भाई मदन सिंह गांव में.

हवेली में जो रौनक पहले रहा करती थी, अब वह खत्म हो गई थी. लोग मदन सिंह का मजाक उड़ाया करते थे, मगर गांव के लोग आज भी आजाद सिंह का सम्मान किया करते थे.

ऐसे में वे मदन सिंह के लिए सरपंच पद के चुनाव का टिकट ले आए. मदन सिंह की इच्छा थी कि आजाद सिंह ही चुनाव लड़ें, इसलिए पूरा गांव अखाड़ा बन गया. हर कोई उन्हें हराने के मूड था.

मगर आजाद सिंह की इज्जत का सवाल था. वे खुद जानते थे कि मदन सिंह की गांव में कोई पूछपरख नहीं है, इसलिए हार तय है. लिहाजा, चुनाव की बागडोर आजाद सिंह को संभालनी पड़ी.

उस दिन ठाकुर आजाद सिंह पहली बार प्रचारकों के साथ रामलाल की ?ोंपड़ी के बाहर पड़ी खाट पर थकान उतारने बैठ गए. तब रामलाल हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘नंगी खाट पर मत बैठिए. इस पर कुछ बिछवा दूं.’’

‘‘रामलाल, शहर की कोठी में गद्दों पर बैठतेबैठते यह शरीर आलसी हो गया. नंगी खाट का मजा भी लेने दो भाई,’’ आजाद सिंह बोले.

‘‘मेरी खुशकिस्मती है कि आप हमारी ?ोंपड़ी में आए…’’ हाथ जोड़ते हुए रामलाल बोला, ‘‘और कोई सेवा?’’

‘‘मु?ो कोई सेवा नहीं चाहिए…’’ आजाद सिंह बोले, ‘‘तुम्हें पता है कि मेरा छोटा भाई मदन सिंह सरपंच का चुनाव लड़ रहा है. तुम लोग वोट दे कर उसे ही जिताना.’’

‘‘मगर…’’

‘‘मगरवगर कुछ नहीं…’’ आजाद सिंह बोले, ‘‘मु?ो पता है कि मेरा भाई शराब पीता है. गांव में बदनाम भी है, मगर आप सब देख लेना…’’

‘‘आप तो राजा हैं…’’ रामलाल बोला, ‘‘हम तो आप को ही वोट देंगे हुजूर.’’

‘‘तुम तो दोगे ही, मु?ो सारी बस्ती के वोट मिलने चाहिए.’’

‘‘ठीक है हुजूर.’’

‘‘मेरे भाई को पंचायत में बैठाओ, फिर मैं दिल्ली से पैसा दिलाऊंगा.’’

‘‘हुजूर, आप पर तो बस्ती के लोगों को पूरा भरोसा है,’’ रामलाल बोला.

‘‘बस, रामलाल तू ने यह कह दिया, तो मु?ो भाई की जीत का पूरा भरोसा है. रामलाल, हमें प्यास लगी है, पानी दोे.’’

जब आजाद सिंह ने यह बात कही, तब रामलाल संकोच में पड़ गया. उसे चुप देख कर आजाद सिंह बोले, ‘‘अरे रामलाल, क्या सोच रहे हो? हमें पानी नहीं दोगे?’’

‘‘हुजूर, आप हमारे घर का पानी पी लेंगे?’’

‘‘क्यों, क्या हम इनसान नहीं हैं?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर. ऊंची जाति वाले हमें छूना तक नहीं चाहते हैं.’’

‘‘अरे भई, अब तो छुआछूत खत्म हो गई. आज हम तेरे हाथ का पानी पीएंगे… लाओ पानी, गला सूखा जा रहा है.’’

‘‘यों तो हम आप को पानी पिला देंगे हुजूर, मगर गांव वाले अभी भी छुआछूत मानते हैं. हमें इसी बात का डर है.’’

‘‘मैं इसी गांव से छुआछूत मिटाने का संकल्प लेता हूं…’’ ठाकुर आजाद सिंह ने सारी बस्ती, जो खाट के आसपास इकट्ठा थी, को यह बात सुना कर कही.

तब रामलाल ?ोंपड़ी के भीतर गया और एक लोटा पानी ले आया.

ठाकुर आजाद सिंह पानी पी कर बोले, ‘‘रामलाल, आज मटके का पानी पी कर काफी सुकून मिला.’’

ठाकुर आजाद सिंह का पैतरा काम कर गया. ठाकुर मदन सिंह चुनाव जीत गए. धीरेधीरे समय बीतने लगा. चुनाव का जोश ठंडा पड़ गया.

ठाकुर मदन सिंह पहले से ज्यादा शराब पीने लगे थे. वे दलितों की बस्ती की मांबेटियों को गलत नजर से देखने लगे थे.

इस का नतीजा यह हुआ कि गांव में फिर से छुआछूत पनपने लगी.

एक दिन रामलाल की घरवाली चंपा को गुस्सा आ गया. कोई ऊंची जाति की औरत मटका रखे, उस के पहले ही चंपा ने अपना मटका रख दिया.

ऊंची जाति की वह औरत गुस्से से बोली, ‘‘चल उठा अपना मटका, पहले मैं पानी भरूंगी?’’

‘‘पहले मैं पानी भरूंगी,’’ चंपा भी गुस्से से बोली.

‘‘ज्यादा आंखें मत दिखा. हटा अपना मटका,’’ उस औरत ने कहा.

‘‘क्यों हटाऊं… मेरा नंबर है?’’ चंपा ने भी जिद की.

‘‘नंबर गया भाड़ में…’’ वह औरत रोब से बोली, ‘‘जब तक हम पानी न भर लें, तब तक तुम्हें हैंडपंप छूना भी नहीं चाहिए. सम?ा?’’

‘‘क्यों छूना नहीं चाहिए?’’ चंपा उसी अंदाज में बोली, ‘‘ठाकुर साहब ने हमारे घर का पानी पीया है.’’

‘‘ठाकुर साहब को तुम लोगों से वोट लेने थे, इसलिए उन्होंने तुम्हारे घर का पानी पी लिया और अपना धर्म खराब कर लिया. क्या हम भी अपना धर्म खराब कर लें,’’ उस औरत ने कहा.

‘‘धरमकरम की बातें तो तुम लोगों ने बनाई हैं. जब तक चुनाव नहीं हुए, तब तक तो तुम बिना छुआछूत पानी भरवा दिया करती थीं. अब तुम्हारे मन में खोट आ गया. हमें तुम अब अछूत सम?ाने लगे,’’ चंपा ने जब यह बात कही, तब वहां खड़ी सभी ऊंची जाति की औरतें आगबबूला हो उठीं.

उस औरत का नाम रूपकुंवर था. वह ठाकुर मदन सिंह की करीबी थी.

रूपकुंवर बोली, ‘‘तू तमीज से बात कर. हम ने कह दिया न कि पहले हम सभी पानी भरेंगी.’’

‘‘मैं भी देखती हूं कि तुम सब पहले पानी कैसे भरती हो? पहले मैं पानी भरूंगी…’’ चंपा बोली.

‘‘अपनी जबान बंद रख…’’ तीसरी औरत बोली, ‘‘तु?ो हुकुम चलाना है, तो जा कर ठाकुर साहब की कोठी पर चला.

‘‘अरे, तेरे खानदान ने कभी सिर उठाने की हिम्मत नहीं की और तू हमारे सिर पर चढ़ी जा रही है. उठा मटका, नहीं तो फेंक दूंगी.’’

‘‘किसी में हिम्मत है, तो फेंक कर दिखाए,’’ चंपा बोली.

रूपकुंवर को ताव आ गया. उस ने चंपा का मटका उठा कर फेंक दिया. चूंकि मटका मिट्टी का था, इसलिए टूट गया.

मौका देख कर चंपा बस्ती में भाग गई, मगर वह रूपकुंवर का सिर जरूर फोड़ गई.

उस दिन हैंडपंप की इस घटना ने कुहराम मचा दिया.

रूपकुंवर का पति शमशेर सिंह रामलाल की ?ोंपड़ी के बाहर चिल्लाते हुए बोला, ‘‘रामलाल बाहर निकल… अभी बताता हूं.’’

तब भीतर से रामलाल आया और बोला, ‘‘क्या हुआ हुजूर?’’

‘‘हुआ मेरा सिर… कहां गई तेरी जोरू? निकाल उसे बाहर.’’

‘‘आखिर चंपा ने क्या किया है?’’

‘‘अरे, जैसे तु?ो पता ही नहीं… निकाल बाहर, उसे बताता हूं.’’

‘‘चल, मैं आ गई बाहर…’’ चंपा  बोली, ‘‘क्या करेगा तू?’’

‘‘ऐ चंपा, तू भीतर जा,’’ उसे ?ोंपड़ी के अंदर धकेलते हुए रामलाल बोला.

‘‘क्यों जाऊं भीतर…’’ रामलाल की ?िड़की के बावजूद भी चंपा का गुस्सा कम न हुआ.

‘‘तू सुनती है कि नहीं,’’ रामलाल बोला.

‘‘वह शराबी मदन सिंह सरपंच बन गया, तो इन सब को ऊंची जाति का घमंड चढ़ गया. अरे, वह जीता तो हमारे ही वोटों से है,’’ चंपा का गुस्सा बढ़ गया, ‘‘अब बोल, चुप क्यों हो गया. बड़ी दादागीरी दिखा रहा था एक मर्द हो कर औरत पर.

‘‘अपनी जोरू को सम?ा ले रामलाल,’’ शायद चंपा की बात सुन कर शमशेर सिंह का नशा उतर गया था.

‘‘अरे जाजा, ऐसी धमकी देने वाले बहुत देखे हैं,’’ जब चंपा ने कहा, तब गुस्से से शमशेर सिंह वहां से चला गया.

‘‘ऐ चंपा, तू ने जो किया, अच्छा नहीं किया,’’ रामलाल ने गुस्से से कहा.

‘‘अरे, क्या अच्छा नहीं किया. अगर डर कर बैठ गए न, तब ये लोग हमें दबोच लेंगे,’’ कह कर चंपा ?ोंपड़ी के भीतर चली गई.

इस घटना के ठीक तीसरे दिन रामलाल की ?ोंपड़ी में आग लगा दी गई. किस ने आग लगाई, सभी जानते थे, मगर किसी अनजाने डर से अपना मुंह नहीं खोल रहे थे.

 

मौडर्न सिंड्रेला: मनाली ने लगाया रिश्तों पर दांव

आज मयंक ने मनाली को खूब शौपिंग करवाई थी. मनाली काफी खुश लग रही थी. उसे खुश देख कर मयंक भी अच्छा महसूस कर रहा था. वैसे वह बड़ा फ्लर्ट था, पर मनाली के लिए वह बिलकुल बदल गया था. मनाली से पहले भी उस की कई गर्लफ्रैंड्स रह चुकी थीं, पर जैसी फीलिंग उस के मन में मनाली के प्रति थी वैसी पहले किसी के लिए नहीं रही.

‘‘चलो, तुम्हें घर ड्रौप कर दूं,’’ मयंक ने कहते ही मनाली के लिए कार का दरवाजा खोल दिया.

‘‘नहीं मयंक, मुझे निमिशा दीदी का कुछ काम करना है इसलिए आप चले जाइए. मैं घर चली जाऊंगी,’’ प्यार से मुसकराते हुए मनाली निकल गई. फिर उस ने फोन कर के कोको स्टूडियो में पता किया कि कोको सर आए हैं कि नहीं. उसे आज हर हाल में फोटोशूट करवाना था. कैब बुक कर के वह कोको स्टूडियो पहुंच गई. तभी उसे याद आया, ‘आज तो ईशा मैम की क्लास है. उन की क्लास मिस करना बड़ी बात थी. वे क्लास बंक करने वाले स्टूडैंट्स को प्रैक्टिकल में बहुत कम नंबर देती थीं. तुरंत कीर्ति को फोन कर रोनी आवाज में दुखड़ा रोया, ‘‘प्लीज मेरी हाजिरी लगवा देना. चाची और निमिशा दीदी ने सुबह से जीना हराम कर रखा है.’’

‘‘ओह, तुम परेशान मत हो,’’ कीर्ति उसे दुखी नहीं देख सकती थी. वह समझती थी कि चाचाचाची मनाली को बहुत तंग करते हैं. तभी कोको सर भी आ गए. मौडलिंग की दुनिया में काफी नाम कमाया था उन्होंने. हां, थोड़े सनकी जरूर थे पर मौलिक, कल्पनाशील लोग ज्यादातर ऐसे होते ही हैं. कोको सर ने मनाली को ध्यान से देखा और उस पर बरस पड़े, ‘‘तुम्हें वजन कम करने की जरूरत है. मैं ने पहले भी तुम्हें बताया था. आज तुम्हारा फोटोशूट नहीं हो सकेगा.’’‘‘बुरा हो इस मयंक का और कालेज के अन्य दोस्तों का. जबतब जबरदस्ती कुछ न कुछ खिलाते रहते हैं,’’ मनाली आगबबूला हो कर स्टूडियो से बड़बड़ाती हुई निकली. घर पहुंची तो चाची ने चुपचाप खाना परोस दिया. चाची उस से ज्यादा बातचीत नहीं करती थीं पर उस का खयाल अवश्य रखती थीं.

उस ने खाने की प्लेट की तरफ देखा तक नहीं, क्योंकि अब उस पर डाइटिंग का भूत सवार हो चुका था. रात का खाना भी उस ने नहीं खाया तो चाचाचाची को चिंता हुई. वैसे भी वह चाचा की लाड़ली थी. वे उसे अपने तीनों बच्चों की तरह ही प्यार करते थे. मनाली के मातापिता का तलाक हो गया था. उस की मां ने एक एनआरआई डाक्टर के साथ दूसरी शादी कर ली थी और अमेरिका में ही सैटल हो गई थीं. वहीं पिता कैंसर के मरीज थे. मनाली जब 8 वर्ष की थी तभी उन की मृत्यु हो गई थी. कुछ समय बूआ के पास रहने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसे चंडीगढ़ चाचाचाची के पास भेजा गया. पढ़ाईलिखाई में मनाली का मन कम ही लगता था जबकि चाचा के तीनों बच्चे पढ़ने में बहुत अच्छे थे. चाची उसे भी पढ़ने को कहतीं पर मनाली पर उस का कम ही असर होता था. इंटर में गिरतेपड़ते पास हुई तो चाचा उस के अंक देख कर चकराए. ‘‘किस कालेज में दाखिला मिलेगा?’’

इस का हल भी मनाली ने सोच लिया था. वह चाचा को आते देख कर किसी न किसी काम में जुट जाती. यह देख कर चाचा चाची पर खूब नाराज होते. उस के कम अंक आने का जिम्मेदार चाचा ने चाची और बड़ी बेटी निमिशा को मान लिया था. खैर, जैसेतैसे चाचा ने मनाली का ऐडमिशन अच्छे कालेज में करा दिया था. कालेज में भी मनाली ने सब को चाची और निमिशा के अत्याचारों के बारे में बता कर सहानुभूति अर्जित कर ली थी. चाचा की छोटी बेटी अनीशा की मनाली के साथ अच्छी बनती थी. अनीशा थोड़ी बेवकूफ थी और अकसर मनाली की बातों में आ जाती थी. दोनों बाहर जातीं और देर होने पर मनाली अनीशा को आगे कर देती. बेचारी को चाचाचाची से डांट खानी पड़ती. चाची मनाली की चालाकियां खूब समझती थीं पर अनीशा मनाली का साथ छोड़ने को तैयार न थी. उस का लैपटौप, फोन, मेकअप का सामान मनाली खूब इस्तेमाल करती थी.

एक दिन अनीशा ने उसे बताया कि वह एक लड़के को पसंद करती है. पापा के दोस्त का बेटा है. उस की पार्टी में ही मुलाकात हुई थी. अनीशा ने मनाली को मयंक से मिलवाया. मयंक बहुत हैंडसम था और अमीर बाप की इकलौती संतान. मनाली ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह कैसे भी मयंक को हासिल कर के रहेगी. ‘‘देखो मयंक, मैं कहना तो नहीं चाहती पर अनीशा को साइकोसिस की बीमारी है.’’ मनाली ने भोली सी सूरत बना कर कहा.

‘‘क्या?’’ मयंक तो हैरान रह गया था.

‘‘प्लीज, तुम यह बात अनीशा और उस की फैमिली से मत कहना. तुम्हें तो पता ही है न उस घर में मेरी क्या हैसियत है.’’

मयंक मनाली की बातों में आ गया. और उस ने अनीशा के प्रति अपना नजरिया बदल लिया. उधर अनीशा को मयंक का व्यवहार कुछ अलग लगने लगा. उस के फोन उठाने भी उस ने बंद कर दिए. अनीशा ने मनाली को इस बारे में बताया तो उस ने आंखें मटकाते हुए समझाया, ‘‘मयंक को मैं ने एक नामी मौडल के साथ देखा है. वह उस की गर्लफ्रैंड है. तुम उसे भूल जाओ.’’ मनाली को तसल्ली हो गई कि अनीशा के भी अंक इस बार कम ही आएंगे. अच्छा हो, दोनों ही डांट खाएं. एक दिन चाचा के बेटे मनीष ने उसे कालेज टाइम में मयंक के साथ घूमते देख लिया. घर आ कर चाचाचाची के सामने मनाली की पोल खुली. ‘‘मैं तो मयंक की खबर लेने गई थी कि उस ने अनीशा का दिल दुखाया,’’ सुबकते हुए मनाली ने कारण बताया. बात बनाना उसे खूब आता था. घर वालों को अनीशा की उदासी का कारण भी पता चला. अनीशा मनाली से नाराज होने के बजाय उस से लिपट गई, ‘‘इस घर में एक तुम ही हो, जिसे मेरी फिक्र है.’’ खैर, कड़ी मेहनत के बाद मनाली ने वजन घटा ही लिया. फोटोशूट भी हो गया और चोरीछिपे एक दो असाइनमैंट भी मिल गए.

एक दिन मयंक से उस ने साफसाफ पूछा, ‘‘मयंक, मैं चाचाचाची के पास रहते हुए तंग आ चुकी हूं. मुंबई में मेरी मौसी रहती हैं. क्या, तुम कुछ समय के लिए मेरी मदद कर सकते हो?’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं. मैं तुम्हारे रहने का बंदोबस्त कर देता हूं. तुम बस मुझे बताओ कि तुम्हें कितनी रकम चाहिए,’’ मयंक सोच रहा था कि मनाली मुंबई जा कर मौसी के पास रह कर अपनी पढ़ाई करना चाहती है. उस ने ढेर सारी रकम और एटीएम कार्ड मनाली को दिया और निश्चित तारीख का टिकट भी पकड़ा दिया. चाचाचाची से कालेज ट्रिप का बहाना बना कर मुंबई जाने का रास्ता मनाली ने खोज लिया था. ‘वापसी शायद अब कभी न हो,’ सोच कर मंदमंद मुसकराती मौडर्न सिंड्रेला मुंबई की उड़ान भर चुकी थी. उसे खुद पर और उस से भी ज्यादा लोगों की बेवकूफी पर भरोसा था कि वह जो चाहेगी वह पा ही लेगी.

खुली हवा: मां के लिए प्रेम का प्यार

‘आंखें बंद करो न मां…’’ इतना कह कर प्रेम ने अपने हाथों से अपनी मां की आंखों को ढक लिया.‘‘अरे, क्या कर रहा है? इस उम्र में भी शरारतें सूझती रहती हैं तुझे मेरे साथ,’’ मां ने नाटकीय गुस्से में उसे फटकारा.‘‘कुछ नहीं कर रहा. बस, गेट तक चलो,’’ प्रेम ने कहा.वे दोनों दरवाजे तक पहुंचे, तो प्रेम ने हलके से मां की आंखों को अपने हाथों के ढक्कन से आजाद कर दिया.

मां ने आंखें खोलीं, तो सामने स्कूटी खड़ी थी, एकदम नई और चमचमाती.‘‘अच्छा, तो यह तमाशा था… कब लाया? बताया भी नहीं? वैसे, इस की जरूरत क्या थी? घर में 2 बाइक हैं तो सही. नौकरी क्या मिली, हो गई जनाब की फुजूलखर्ची शुरू,’’ मां हमेशा की तरह सब एक सांस में बोल गईं.‘

‘अरे, ठहरो मेरी डियर ऐक्सप्रैस. यह मैं अपने लिए नहीं लाया,’’ प्रेम बोला.‘‘तो किस के लिए लाया है?’’ मां ने गहरी भेदी नजर से सवाल किया.‘‘आप के लिए…’’ बोलते हुए प्रेम ने मां का चेहरा अपने हाथों में थाम लिया.‘‘मेरे लिए…? मुझे क्या जरूरत थी?’’ मां ने हैरान हो कर पूछा.‘‘जरूरत क्यों नहीं… पापा काम में बिजी रहते हैं और अब मुझे भी नौकरी मिल गई है. घर में ऐसे कितने काम होते हैं, जिन्हें पूरा होने के लिए तुम्हें हमारा रविवार तक इंतजार करना पड़ता है.

अब तुम हम पर डिपैंड नहीं रहोगी,’’ प्रेम ने कहा.‘‘तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या प्रेम? यह शहर नहीं, बल्कि गांव है बेटा. लोग हंसेंगे मुझ पर. कहेंगे बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम… ‘‘और फिर मैं कौन सा नौकरी करती हूं, जो यह स्कूटी लिए घूमूं,’’ मां ने अपनी चिंता जाहिर की.‘‘मां, आप को लोगों से क्या लेनादेना. भागदौड़ कर के जो आप इतना थक जाती हो, लोग आते हैं क्या देखभाल करने? ‘‘मेरी प्यारी मां, यही तो उम्र है इन सुविधाओं का हाथ पकड़ने की. जवानी में तो इनसान दौड़दौड़ कर भी काम कर लेता है, लेकिन अब कर सकती हो क्या?’’‘‘लेकिन बेटा, इस उम्र में…’’ मां ने चिंता जाहिर की.मां की बात पूरी होने से पहले ही प्रेम ने अपनी उंगली मां के होंठों पर रख दी और कहा, ‘‘चुप. कोई उम्रवुम्र नहीं. 50 की ही तो हो और बोल ऐसे रही हो जैसे 100 साल की हो,’’ कह कर प्रेम हंस दिया.‘‘तू समझ नहीं रहा.

गांव में लोग हंसेंगे कि इसे इस उम्र में क्या सूझी.’’‘‘कोई कुछ भी समझे, तुम बस वह समझो जो मैं कह रहा हूं,’’ कह कर प्रेम अपनी मां का हाथ पकड़ कर स्कूटी तक ले गया और बोला, ‘‘बैठो…’’मां हिचकिचाईं, तो प्रेम ने प्यार से उन्हें स्कूटी पर जबरदस्ती बैठा दिया और खुद पीछे बैठ गया.‘‘देखो, ऐसे करते हैं स्टार्ट… ध्यान से सीखना,’’ प्रेम बोला.मां भीतर से खुश भी थीं और बेचैन भी.

बेचैनी समाज की बनी रूढि़यों से थी और खुशी जिस बेटे को जन्म से ले कर आज तक सिखाया, वह आज उस का शिक्षक था.स्कूटी स्टार्ट कर के प्रेम अपनी मां को समझाता जा रहा था और मां बड़े ध्यान से सब समझ रही थीं. लोगों की नजरें खुद पर पड़ती देख कर वे हिचकिचा जातीं, लेकिन बेटे का जोश उन्हें और उमंग से भर देता.उल्लास की लहर पर सवार मां खुद को खुली हवा में आजाद महसूस कर रही थीं.

उन्हें याद आया कि बचपन में वे चिडि़या बन कर उड़ जाना चाहती थीं. आज लगा जैसे वह ख्वाब पूरा हो गया है. वे उड़ ही तो रही थीं एक ताजा हवा में चिडि़या की तरह चहकते हुए.

वहम : जब बुधिया को भूत ने जकड़ा

बुधिया और बलुवा पक्के दोस्त थे. बुधिया भूतप्रेत पर यकीन करता था, जबकि बलुवा उन्हें मन का वहम मानता था. एक बार उन की बछिया जंगल में खो गई, जिसे ढूंढ़ने में रात हो गई. इसी बीच बुधिया को किसी भूत ने पकड़ लिया. आगे क्या हुआ?

बुद्धि चंद्र जोशी… गांव के लोग अकसर उसे बुधिया कह कर बुलाते थे. वह ठेठ रूढि़वादी पहाड़ी पंडित परिवार से था. सवेरे स्कूल जाने से पहले आधा बालटी पानी से स्नान, एक घंटा पूजापाठ, फिर आधी फुट लंबी चुटिया में सहेज कर गांठ लगाना, रोली और चंदन से ललाट को सजाना  उस के रोजमर्रा के काम थे.

बेशक कपड़े मैले पहन ले, पर बुधिया ने नहाना कभी नहीं छोड़ा, फिर चाहे गरमी हो या सर्दी. उसे पढ़ाई में मेहनत से ज्यादा भाग्य और जीवन में लौकिक से परलौकिक संसार पर ज्यादा भरोसा था. वह हमेशा भूतप्रेत, आत्मापरमात्मा और तंत्रमंत्र की ही बातें किया करता था और ऐसी ही कथाकहानियों को पढ़ा भी करता था.

बलुवा यानी बाली राम आर्या बुधिया का जिगरी दोस्त था, लेकिन आचारविचार में एकदम उलट. न पूजापाठ, न रोलीचंदन और न ही वह चुटिया रखता था. हर बात पर सवाल करना उस के स्वभाव में शुमार था. जब तक तर्क से संतुष्ट नहीं हो जाता था, तब तक वह किसी बात को नहीं मानता था.

वे दोनों गांव के पास के स्कूल में 11वीं क्लास में पढ़ते थे. बुधिया ने आर्ट्स, तो बलुवा ने साइंस ली थी. वे दोनों साथसाथ स्कूल जाते थे.

उन दोनों में अकसर भूतप्रेत के बारे में बहस होती रहती थी. बलुवा कहता था कि भूतप्रेत नाम की कोई चीज नहीं होती, बस सिर्फ मन का वहम है, पर बुधिया मानने को तैयार नहीं था और कहता, ‘‘तू बड़ा नास्तिक बनता है. जब भूतप्रेत का साया तुझ पर पड़ेगा, तब तेरी अक्ल ठिकाने आएगी.’’

इस पर बलुवा कहता, ‘‘भूतप्रेत की कहानियां पढ़पढ़ कर तू हमेशा उन की ही कल्पना करता है, जिस से तेरे अंदर उन का डर बैठ गया है.’’

तब बुधिया शेखी बघारता, ‘‘एक न एक दिन तुझे भी भूत के दर्शन करा दूंगा, तब तू सच मानेगा,’’ फिर वह गांव के कई लोगों के नाम गिनाता जैसे रमूली, सरला, किशन, महेश जिन्हें भूत लग गया था और जो बाद में तांत्रिक के भूत भागने से ठीक हुए थे.

पहाड़ों में दिसंबर में छमाही के इम्तिहान के बाद स्कूल में छुट्टियां पड़ जाती हैं. छुट्टियों में उन दोनों का काम होता था जंगल में गाय चराना.

वे दोनों अपनीअपनी गाय ले कर दूर जंगल में निकल जाते. दिनभर खेलतेकूदते रहते और शाम को गाय ले कर घर वापस आ जाते. जंगल में बाघतेंदुए का आतंक भी बना रहता था, इसलिए घर आते समय जानवरों की गिनती की जाती थी कि पूरे हैं या नहीं.

एक दिन जब बुधिया जानवरों की गिनती कर रहा था तो एक बछिया नहीं दिखी. चूंकि एक बछिया कम थी, घर कैसे जाया जाए. घर पर डांट जो पड़ेगी.

जाड़ों में दिन छोटे होते हैं, तो अंधेरा जल्दी पसरने लगता है. दोनों ने फैसला लिया कि जल्दी से जल्दी बछिया को ढूंढ़ा जाए, नहीं तो रात हो जाएगी. दोनों बछिया को ढूंढ़ने अलगअलग दिशाओं में निकाल गए, ताकि काम जल्दी हो जाए.

एक पहाड़ी के इस तरफ तो दूसरा पहाड़ी के दूसरी तरफ चला गया.

तय हुआ कि जिसे भी बछिया पहले

मिल जाएगी, वह दूसरे को आवाज दे कर बताएगा.

बछिया ढूंढ़तेढूंढ़ते वे दोनों काफी

दूर निकाल गए. रात भी धीरेधीरे

गहराने लगी. अचानक जोरजोर से चीखने की आवाज आने लगी, ‘‘भूत… भूत… बचाओ बचाओ… इस ने मुझे पकड़ लिया.’’

बलुवा रुक कर आवाज पहचानने की कोशिश करने लगा. यह बुधिया के चीखने की आवाज थी. बलुवा ने सोचा कि बुधिया डरपोक है. ऐसे ही रात में कोई जंगली जानवर की आहट को भूत समझ कर चिल्ला रहा होगा.

बलुआ ने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘बुधिया, डर मत. तू किसी जंगली जानवर को भूत समझ कर डर गया होगा. भूतप्रेत कुछ नहीं होते. सब तेरे मन का वहम है.’’

बुधिया फिर गला फाड़फाड़ कर चिल्लाने लगा, ‘‘नहीं, यह सचमुच का भूत है. इस के बड़ेबड़े दांत, सींग और नाखून हैं. इस के पैर भी उलटे हैं. यह मुझे खा जाएगा. जल्दी आ कर मुझे बचा ले.’’

बलुवा भी अब थोड़ा सहम सा गया और सोचने लगा, ‘बुधिया इतने विश्वास से कह रहा है कि उसे भूत ने पकड़ लिया है, तो जरूर कोई बात होगी.’

रात की बात थी. बलुवा ने घने अंधेरे जंगल में अकेले जाना ठीक नहीं समझा. लिहाजा, वह वापस गांव की ओर आ गया. जंगल से सटे घरों से 4 लोगों को इकट्ठा कर के उस ओर को चला, जहां से बुधिया की आवाज आ रही थी. सब के हाथों में मशालें थीं.

बुधिया का चीखतेचीखते गला भी बैठ चुका था. अब चीखने की आवाज भी रुंधी हुई दबीदबी सी आ रही थी.

उन पांचों में सब से सयाना पंडित धनीराम था, पर सब से ज्यादा वही डरा हुआ था. उस ने बताया कि इस जंगल में लकड़ी के तस्करों ने एक फौरैस्ट गार्ड की हत्या कर दी थी. जरूर उस भूत ने ही बुधिया को पकड़ा होगा.

यह सुन कर बलुवा ने कहा, ‘‘क्या बात कर रहे हो पंडितजी. अगर वह भूत बन गया तो बाघ ने तो यहां सैकड़ों जानवर मारे होंगे. तब सब को भूत

बन जाना चाहिए. क्यों हम सब को डरा रहे हो…’’

‘‘डरा नहीं रहा हूं बलुवा. चल, अब तू अपनी आंखों से देखेगा भूत की पकड़…’’ धनीराम ने डराने के लहजे

से कहा.

अब वे लोग करीबकरीब बुधिया के नजदीक पहुंच चुके थे. बुधिया का गला चिल्लातेचिल्लाते तकरीबन बैठ चुका था. वह रुंधे गले से धीरेधीरे चीख रहा था, ‘‘बचाओ… बचाओ…भूत से मुझे छुड़ाओ… नहीं तो वह मुझे खा जाएगा.’’

बलुवा दिलासा देते हुए बोला, ‘‘डर  मत बुधिया. मैं गांव से लोगों को ले कर आया हूं. तुझे कुछ नहीं होगा.’’

पहाड़ों में मौसम का कुछ भरोसा नहीं होता. कुछ ही मिनटों में वहां बादल घिर आते हैं और बारिश होने लगती है. ऐसा ही आज भी हुआ. जैसे ही वे लोग बुधिया के पास पहुंचे, तेज बारिश होने लगी. सब की मशालें बुझ गईं.

तेज बारिश और चारों ओर घना अंधेरा. किसी को कुछ नजर नहीं आ रहा था. बस, बुधिया की रुकीरुकी चीखने की आवाज सुनाई पड़ रही थी.

बलुवा आवाज की दिशा में धीरेधीरे आगे बढ़ने लगा और बुधिया से बोला, ‘‘ला, अपना हाथ मुझे दे…’’ बलुवा ने  बुधिया का हाथ पकड़ कर जोर से खींचा, पर बुधिया निकल नहीं पा रहा था. अब तो बलुवा को भी शक होने लगा था कि कहीं बुधिया को सचमुच तो भूत ने नहीं पकड़ लिया है.

बलुवा ने कुछ घबराई हुई आवाज में साथ आए राम सिंह से कहा, ‘‘देखो तो भाई, आप की जेब में माचिस पड़ी होगी. उस से थोड़ा चीड़ के नुकीले पत्ते जला कर उजाला करो. देखें, आखिर बुधिया को किस ने पकड़ा है…’’

अब तक बारिश भी थम चुकी थी. राम सिंह ने आसपास से कुछ पत्ते इकट्ठा कर के जलाए. उजाले में जोकुछ देखा उस से सब की हंसी छूट गई.

बुधिया घबराते हुए बोला, ‘‘इधर मेरी जान जा रही है और तुम लोग हंस रहे हो.’’

जवाब में राम सिंह ने हंसते हुए कहा, ‘‘बुधिया, पीछे मुड़ कर तो देख तुझे भी अपनी बेवकूफी पर हंसी आ जाएगी.’’

बुधिया ने पीछे मुड़ कर देखा तो उस के पाजामा के दाहिने पैर की मोहरी एक खूंटे में फंस हुई थी. वह ज्योंज्यों ज्यादा जोर लगाता, घबराहट में और भी फंसता जाता. वह बहुत डर गया था. उस के डर ने कहानियों और टैलीविजन पर देखे भूत की शक्ल ले ली थी.

बड़ेबड़े दांत, लंबेलंबे नाखून, सींग और उलटे पैर. जंगली जानवरों की अजीबोगरीब आवाजें उस के डर को और भी बढ़ा रही थीं. डर के मारे उस की सोचने की ताकत जीरो हो गई थी. वह एक मामूली खूंटे से भी अपनेआप को नहीं छुड़ा पा रहा था.

बलुवा ने फिर बुधिया को समझाते हुए कहा, ‘‘देख, मैं कहता था न कि भूतप्रेत कुछ नहीं होते. हमारे मन का डर ही भूत को जन्म देता है.’’

पर बुधिया कहां मानने वाला था.

वह फिर भी कह रहा था, ‘‘नहीं यार, कुछ तो था. शायद उजाला देख कर भाग गया होगा.’’

बलुवा बुधिया को उस के घर तक छोड़ आया. घर वाले बछिया नहीं, बल्कि बुधिया कि चिंता कर रहे थे कि वह अब तक घर क्यों नहीं पहुंचा.

घर पहुंच कर बुधिया ने सारी बातें बताईं. बछिया तो अपनेआप बहुत पहले ही घर पहुंच चुकी थी.

जड़ों की छुट्टियां अब खत्म हो चुकी थीं. आज तकरीबन 4 महीने के बाद फिर से वे दोनों गपें मारते हुए

स्कूल जा रहे थे. रास्ते में एक सुनसान पहाड़ी नाले के पास ‘छपछप’ की आवाज सुनाई दी.

बुधिया ने डर के मारे बलुवा का हाथ कस के पकड़ लिया और कांपती आवाज में बोला, ‘‘देख, वह ‘छपछप’ की आवाज करते हुए भूत आ रहा है.’’

बलुवा जोर का ठहाका लगा कर हंसते हुए बोला, ‘‘हां, उस दिन वाले जंगल के भूत का अब इधर ट्रांसफर हो गया है. वह तुझ से मिलने आया है.’’

तभी झाड़ी से एक जंगली मुरगी फड़फड़ाते हुए भागी. बलुवा हंसते हुए बोला, ‘‘देख, तेरा भूत वह जा रहा है. जा, जा कर पकड़ ले.’’

आम रास्ता नहीं : क्या था उस रास्ते का राज

सुरेश शहर की धान मंडी में गेहूं की बोरियां बेच कर लौट रहा था. अभी उसे कई चौराहे व छोटीबड़ी सड़कें पार कर के अपने गांव पहुंचना था.

वह मंडी रोड से सीधा दिल्ली रोड पर आ गया था. यहां से परली तरफ उस के गांव को जाने वाली सड़क थी. इन दोनों के बीच की जगह में एक शानदार सरकारी इमारत थी. इस इमारत के चारों ओर घास से लदा हराभरा मैदान और चारदीवारी थी.

चारदीवारी के छोर पर बड़ा सा लोहे का गेट था, जहां एक चौकीदार खड़ा था. इस गेट से अंदर हो कर दूसरे गेट से बाहर गांव की ओर जाने वाली सड़क पर निकला जा सकता था.

यह आम रास्ता नहीं था, लेकिन छोटा जरूर था. लिहाजा, सुरेश ने डेढ़ मील पैदल न चल कर इमारत से हो कर जाने वाले रास्ते से ही गुजरना ठीक समझा.

सुरेश गेट के पास जा कर थोड़ी देर तक खड़ा देखता रहा. 2 औरतें और 4 आदमी एकएक कर के निकल गए थे. उन में से 3 ने तो चौकीदार के हाथ में कुछ दिया था और 3 को चौकीदार ने सलाम ठोंका था.

सुरेश भी मौका देख कर अंदर घुसने लगा तो चौकीदार की रोबदार और कड़क आवाज गूंजी, ‘‘ऐ रुको.’’

वह ठिठक कर वहीं खड़ा हो गया.

चौकीदार अपने बेंत को जोर से खटखटाता हुआ उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘क्या बात है, बिना इजाजत लिए अंदर कैसे जा रहे हो?’’

‘‘इधर से उधर जाना था,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘इस बिल्डिंग से हो कर? क्या तुम ने बोर्ड नहीं पढ़ा कि बिना इजाजत अंदर जाना मना है,’’ चौकीदार बोला.

‘‘हां, जा तो रहा था, पर बोर्ड नहीं पढ़ा,’’ सुरेश ने जवाब दिया.

‘‘अंदर किस से मिलना है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘किसी से भी नहीं,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘किसी से भी नहीं मिलना तो क्या इसे आम रास्ता समझ रखा है?’’ चौकीदार ने कड़क लहजे में पूछा.

‘‘हां,’’ सुरेश बोला.

‘‘क्या उस पार आगरा रोड पर जाना है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘हां जी, आप ने बिलकुल ठीक समझा.’’

‘‘पर, कानूनन तुम इधर से नहीं जा सकते, क्योंकि यहां घुसना भी जुर्म?है,’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘लेकिन, गैरकानूनन तो जा सकता हूं न?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘ऐ, मेरे सामने गैरकानूनी बात करता है. पता है कि मैं कौन हूं? ऐसी बातें मुझे कतई पसंद नहीं हैं,’’ चौकीदार कानून झाड़ने लगा.

‘‘क्या इस देश में सबकुछ कानून के मुताबिक चलता है? क्या यहां गैरकानूनी कुछ नहीं होता?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘फालतू बकवास कर के क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हो?’’ चौकीदार ने चिढ़ते हुए कहा.

‘‘मैं इस बात को बखूबी जानता हूं, पर आप मुझे अभी उस तरफ जाने दीजिए, वरना मेरी आखिरी बस निकल जाएगी,’’ सुरेश ने खुशामद की.

‘‘कहा न, यह आम रास्ता नहीं है.’’

‘‘तो क्या यह खास रास्ता है, खास लोगों के लिए?’’

‘‘हां, तू ऐसा ही समझ ले.’’

‘‘तो फिर आप मुझे भी कुछ देर के लिए खास आदमी मान लीजिए. इस में आप का क्या जाता है?’’

‘‘कैसे मान लूं…’’ चौकीदार कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारा इस शहर में कोई कोठीबंगला है या फिर तुम किसी ऊंचे घराने से वास्ता रखते हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तुम किसी पार्टी के सदस्य हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी क्लब के मैंबर हो, प्रैस क्लब, जिमखाना क्लब, किसी के भी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी भ्रष्टाचार के मामले में तुम्हारा नाम कभी उछला है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी एमपी, एमएलए, सीएम, कैबिनेट मिनिस्टर से कोई पहुंच रखते हो?’’

‘‘मुझे तो इस शहर में कोई नहीं जानता, सिवा धान मंडी के मुनीमों के,’’ सुरेश ने बताया.

‘‘क्या तुम्हें बौडीगार्ड मिले हुए हैं?’’

‘‘मिले होते तो क्या अकेला यहां मक्खी मारने के लिए खड़ा होता?’’

‘‘माफिया से सांठगांठ है?’’

‘‘जी, वह भी नहीं है.’’

‘‘किसी का खून किया है या फिर कभी जेल गए हो?’’

‘‘क्या मैं आप को शक्ल से खूनी लगता हूं?’’

‘‘शक्ल से तो तुम मासूम लगते हो, लेकिन खूनी के चेहरे पर नहीं लिखा होता कि उस ने खून किया है.’’

‘‘आप सही कह रहे हैं, लेकिन मैं ने कोई खून नहीं किया.’’

‘‘क्या तुम्हारे पास काला पैसा है?’’

‘‘काला क्या, जो सफेद भी है वह भी थोड़ा सा है.’’

‘‘तो फिर तुम खास आदमी नहीं हो सकते. मैं तुम्हें खास आदमी मान कर खास आदमियों की इज्जत धूल में नहीं मिलाऊंगा,’’ चौकीदार ने कहा.

‘‘तो क्या खास आदमी ऐसे लोग होते हैं?’’

‘‘हां, बिलकुल ऐसे ही होते हैं.’’

तभी अचानक चौकीदार को खयाल आया कि वह एक बेहद मामूली आदमी के हर सवाल का जवाब दिए जा रहा?है, जैसे बहुत फुरसत में हो. वह खामोश हो गया.

‘‘आप कुछ खास लोगों के बारे में बता रहे थे न,’’ चौकीदार को अचानक चुप हुआ देख कर सुरेश ने कहा.

‘‘हां बता तो रहा था, लेकिन यह जरूरी नहीं कि मैं सारी बातें बताऊं.’’

‘‘अजी, आप तो नाराज हो गए. चलिए, बातें खत्म करते हैं. अब मुझे इधर से निकलने दीजिए.’’

‘‘बिलकुल नहीं. तुम इतनी जिद क्यों कर रहे हो?’’

‘‘मैं जल्दी घर नहीं पहुंचा तो बीवीबच्चे चिंता करेंगे. मुझे कई जरूरी काम भी निबटाने हैं.’’

‘‘इस मुल्क में जितने गैरजरूरी लोग हैं, उन्हें ही जरूरी काम होते हैं.’’

‘‘आप अब हद से आगे बढ़ रहे?हैं,’’ सुरेश गुस्से से बोला.

‘‘मेरी हद क्या है, यह तुम तय करोगे?’’ चौकीदार भी सख्त लहजे में बोला.

कुछ पलों तक सुरेश सख्त नजरों से उसे देखता रहा, फिर चौकीदार बोला, ‘‘तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं इस समय ड्यूटी पर हूं. यहां की सिक्योरिटी का जिम्मा भी मेरा है. तुम्हें शायद पता नहीं, इस बिल्डिंग में बड़े लोगों की मीटिंग चल रही?है. उन की सिक्योरिटी की जिम्मेदारी भी मेरी ही है.’’

‘‘किस मुद्दे को ले कर मीटिंग चल रही है?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘मीटिंग के लिए किसी मुद्दे की जरूरत नहीं होती’’

‘‘बिना मुद्दों के मीटिंग?’’ सुरेश ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘इस राजधानी में एक करोड़ लोग रहते हैं. मुद्दे भी एक करोड़ ही समझो. यहां मुद्दों की क्या कमी है?’’

‘‘फिर भी, कुछ तो मुद्दा होगा.’’

‘‘हां, फिलहाल चायनाश्ते के साथ मीटिंग इस मुद्दे पर हो रही है कि अगले हफ्ते किस मुद्दे को ले कर मीटिंग की जाए.’’

इसी बीच सामने से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया. उस ने गेट में घुसने की कोशिश की.

उसे घुसता देख कर चौकीदार कड़क लहजे में बोला, ‘‘ऐ रुको, यह आम रास्ता नहीं है.’’

उस आदमी ने जेब में से 10 रुपए का सिक्का निकाला. उसे अपने हथेली में फंसाते हुए चौकीदार के पास अपने हाथ को ले कर बोला, ‘‘कैसे हो दोस्त?’’

चौकीदार मुसकराया. उस ने अपना हाथ बढ़ा कर आदमी के हाथ से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अच्छा हूं दोस्त, बहुत दिनों बाद मिले हो.’’

इस बीच 10 रुपए का वह सिक्का चौकीदार की हथेली में चला गया था. फिर लोहे का गेट पूरा खुला और खास रास्ता, खास आदमी के लिए खुल गया. इधर 10 रुपए का सिक्का चौकीदार की जेब में पहुंच गया था.

अब सुरेश की समझ में सारी बात आ गई थी. उस ने जेब में हाथ डाल कर 5 रुपए का सिक्का निकाला. सिक्का अपने हाथ में रख कर चौकीदार की ओर बढ़ाने लगा कि तभी चौकीदार बोला, ‘‘अब क्यों शर्मिंदा करते हो यार. अब तुम जाओ. देखो, मैं ने तुम्हारे लिए गेट खोल रखा है. यह आम रास्ता तो नहीं है, फिर भी अब तुम मेरे खास हो.’’

सुरेश ने चौकीदार की तरफ देखा. वह काफी शर्मिंदा सा लग रहा था. पर यही तो उस की ऊपरी कमाई थी, जो खास रास्ते से गुजरने वाले खास लोगों से उसे मिलती थी.

सुरेश उस का शुक्रिया अदा कर के अपने रास्ते की ओर निकल गया.

चालाक लड़की : राजेश की फूटी किस्मत

‘‘कौन सी गाड़ी का टिकट कट रहा है साहब?’’ एक सुरीली आवाज ने राजेश का ध्यान खींचा. बगल में एक खूबसूरत लड़की को देख कर वह जैसे सबकुछ भूल चुका.

‘‘मैं आप से ही पूछ रही हूं साहब… कौन सी गाड़ी आ रही है?’’

‘‘जी… जी, ‘महामाया ऐक्सप्रैस’, डोंगरपुर से नागिरी जाने वाली.’’

‘‘आप कौन सी क्लास का टिकटले रहे हो? मेरा मतलब, मेरे लिए भी एक टिकट कटा दोगे तो आप की बड़ी मेहरबानी होगी. कहां जा रहे हैं आप?’’

‘‘रौधा सिटी.’’

‘‘तब तो और भी अच्छी बात है. मुझे भी रौधा सिटी ही जाना है,’’ कह कर उस लड़की ने अपने बैग से नोटों की गड्डी निकाल कर 100-100 के 2 नोट राजेश के हाथ में थमा दिए.

‘‘माफ करना… मैं कब से टिकट लेने की कोशिश कर रही हूं, पर भीड़ इतनी ज्यादा है…’’ रुपए की गड्डी बैग में रखते हुए वह लड़की बोली.

‘‘कोई बात नहीं. आप आराम से सामने वाली बैंच पर बैठ जाइए.’’

जब ट्रेन आई तो राजेश अपने डब्बे में चादर बिछा कर एक सीट पर बैठ गया. वह जैसे उस लड़की के विचारों में खो गया. काश, वह लड़की उसी के पास आ कर बैठती…

‘‘अरे, आप…’’ थोड़ी ही देर बाद वह लड़की उसी डब्बे में आ कर राजेश से बोली.

‘‘आप को एतराज न हो, तो आप की बिछाई चादर पर…’’

‘‘जी बैठिए. जब हम और आप एक ही शहर जा रहे हैं, तो एतराज कैसा?’’ राजेश बोला.

वह लड़की राजेश की बिछाई चादर पर बैठ गई. थोड़ी देर बाद वह अपने हैंडबैग की चेन खोलने लगी. कभी इस पौकेट की चेन तो कभी दूसरे पौकेट की चेन खोलती और बंद करती. वह बारबार बैग टटोल रही थी. वह बहुत परेशान लग रही थी.

राजेश से रहा न गया, तो पूछ ही लिया, ‘‘क्या हो गया? लगता है कि कुछ…’’

‘‘मेरे रुपए का बंडल…’’ उस लड़की ने बैग टटोलते हुए कहा.

‘‘कितने रुपए थे?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘2,000 रुपए थे,’’ मामूली सी बात समझ कर लड़की ने लापरवाही से कहा.

‘‘लगता है, किसी ने हाथ साफ कर दिया. आप के साथ और कोई नहीं है क्या?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘छोड़ो, शहर तो पहुंच जाऊंगी. कोई नहीं है तो आप तो हो ही? मुझे घर तक छोड़ देना. घर पर आप को टैक्सी का किराया वापस कर दूंगी.’’

‘‘कोई बात नहीं.’’

तेज रफ्तार से ट्रेन चली जा रही थी. वह लड़की राजेश से सट कर बैठ गई. लड़की की छुअन पा कर राजेश को जैसे बिजली का झटका लगा. उस के बदन की खुशबू से वह मदहोश हो रहा था.

‘‘आप रौधा सिटी के कौन से महल्ले में रहती हैं?’’

‘‘पटेल चौक में… और आप?’’ जवाब देने के बाद लड़की ने पूछा, ‘‘किसी सरकारी नौकरी में?’’

‘‘जी, मैं स्वास्थ्य विभाग में ट्यूटर हूं.’’

इसी बीच ट्रेन रुकी. वह लड़की राजेश से टकराई.

राजेश को मानो फिर बिजली का करंट लगा. शायद कोई स्टेशन आया था. राजेश गाड़ी से उतर कर चायबिसकुट और फल ले कर अपनी सीट पर बैठ गया.

‘‘लीजिए, नाश्ता कीजिए. और यह रही आप की चाय की प्याली.’’

‘‘आप नाहक ही तकलीफ कर रहे हैं,’’ लड़की ने कहा.

‘‘किस बात की तकलीफ. मौके पर साथ देना तो हर इनसान का फर्ज है.’’

‘‘मैं यह सबकुछ कब अदा करूंगी? आप जैसे का साथ पा कर कौन खुश नहीं होगा…’’ वह लड़की बोली.

‘‘छोड़ो. आप यों ही मेरी तारीफ कर रही हैं,’’ राजेश ने कहा.

‘‘नहींनहीं, मैं सच कह रही हूं, पर आप ने अभी तक अपना परिचय तो दिया ही नहीं?’’

‘‘मैं एमपीईबी में इंजीनियर हूं. मेरा नाम राजेश है.’’

‘‘पर, आप ने भी तो अभी तक अपना नाम नहीं बताया?’’ राजेश ने अपना परिचय देने के बाद पूछा.

‘‘आप ने नाम पूछा ही कब?

लो, अब बताए देती हूं. मुझे कुमुदिनी कहते हैं.’’

‘‘नाम के साथ कुदरत ने बनाया भी वैसा ही है. जहां खिलेंगी, वहां सारा माहौल महक जाएगा,’’ राजेश ने कहा.

‘‘आप कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हो,’’ राजेश की आंखों में झांकते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘वैसे, मेरे खयाल में कुमुदिनी रात में ही तो ज्यादा महकती है,’’ राजेश ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आप ने सही कहा. पर अभी खुशबू लेने वाला है ही कहां,’’ कुमुदिनी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वह बहुत खुशनसीब होगा, जो ऐसे खूबसूरत फूल को पाएगा.’’

‘‘सभी लोग फूलों की इज्जत थोड़े ही न करते हैं. कुछ लोग उन्हें मसल कर फेंक देते हैं.

‘‘हम जैसे बदनसीबों की किस्मत में कहां? काश…’’

‘‘किस्मत अपने हाथ से बनती है राजेश साहब. जो किस्मत को कोसता है, वह तो हार जाता है,’’ कुमुदिनी बोली.

थोड़ी ही देर बाद गाड़ी रुक गई.

‘‘अपना शहर आ गया. चलो उठो, मैं आप को आप के घर तक पहुंचा दूं,’’ राजेश बोला.

कुमुदिनी अपने पर्स को खोल कर कुछ टटोल रही थी.

‘‘क्यों, क्या हो गया?’’

‘‘अरे यार, घर की चाबी लाना तो मैं भूल ही गई. मेरे मातापिता के पास ही चाबी का गुच्छा रह गया. उफ, जब मुसीबत आती है, तो हर तरफ से आती है,’’ खीजते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘आप के मातापिता कब लौट रहे हैं घर?’’

‘‘परसों शाम तक.’’

‘‘अगर आप को एतराज न हो, तो अपना घर आप के लिए खुला है कुमुदिनीजी.’’

‘‘एतराज तो कोई नहीं, पर आप का तो पहले ही इतना ज्यादा अहसान हो गया है मुझ पर कि…’’

‘‘आप तो मुझे शर्मिंदा कर रही हैं. परसों शाम को मैं आप को आप के घर छोड़ दूंगा.’’ कुमुदिनी ने कोई जवाब नहीं दिया.

राजेश ने कहा, ‘‘लगता है, आप फिर कुछ सोच रही हैं?’’

‘‘कहीं आप के मातापिता या आप की श्रीमतीजी?’’

‘‘मातापिता तो कब के चल बसे. श्रीमतीजी भी अपनी बहन की शादी में मायके गई हैं. उन्हें ही छोड़ कर लौटा हूं, और फिर यह सब रहेंगे भी तो आप को क्या…

‘‘नहींनहीं, मैं अपने लिए नहीं सोच रही, मैं तो आप के लिए ही परेशान हूं.’’

‘‘किसी का मुसीबत में साथ देना कोई गुनाह तो नहीं. चलो, मैं आप को कोई कष्ट नहीं दूंगा, बल्कि मुझे आप की सेवा करने का मौका मिल जाएगा.’’

‘‘ठीक है, पर परसों मेरे साथ घर तक छोड़ने चलना होगा?’’

‘‘वादा रहा.’’

ट्रेन से उतर कर राजेश और कुमुदिनी टैक्सी से घर आए. राजेश के दिल में तो लड्डू फूट रहे थे. वह अपनी कामयाबी पर बहुत खुश था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी ज्यादा खूबसूरत लड़की उस के सूने घर में चलने के लिए तैयार हो जाएगी.

राजेश का आलीशान बंगला देख कुमुदिनी हैरान रह गई. दरबान ने बंगले का गेट खोला और नमस्ते की. नौकर ने राजेश की अटैची टैक्सी से निकाल कर बंगले में रखी.

‘‘मैडम, यह है अपनी कुटिया. आप के आने से हमारी कुटिया भी पवित्र हो जाएगी,’’ राजेश ने कुमुदिनी से कहा.

‘‘बहुत ही खूबसूरत बंगला बनाया है. कितनी भाग्यशाली हैं इस बंगले की मालकिन?’’

‘‘छोड़ो, इधर बाथरूम है. आप फ्रैश जाओ. मैं आप के लिए कपड़े लाता हूं,’’ कह कर राजेश दूसरे कमरे में जा कर एक बड़ी सी कपड़ों की अटैची ले आया. अटैची खोली तो उस में कपड़े तो कम थे, सोनेचांदी के गहने व नोटों की गड्डियां भरी पड़ी थीं.

‘‘नहींनहीं, यह अटैची मैं भूल से ले आया. कपड़े वाली अटैची इसी तरह की है,’’ और राजेश तुरंत अटैची बंद कर उसे रख कर दूसरी अटैची ले आया.

‘‘यह लो अपनी पसंद के कपड़े… मेरा मतलब, साड़ीब्लाउज या सूट निकाल लो. इस में रखे सभी कपड़े नए हैं.’’

‘‘पसंद तो आप की रहेगी,’’ तिरछी नजरों से कुछ मुसकरा कर कुमुदिनी ने कहा.

‘‘यह नीली ड्रैस बहुत ज्यादा फबेगी आप पर. यह रही मेरी पसंद.’’

वह ड्रैस ले कर कुमुदिनी बाथरूम में चली गई. तब तक राजेश भी अपने बाथरूम में नहा कर ड्राइंगरूम में आ कर कुमुदिनी का इंतजार करने लगा.

कुमुदिनी जब तक वहां आई, तब तक नौकर चायनाश्ता टेबल पर रख कर चला गया.

दोनों ने नाश्ता किया. राजेश ने पूछा, ‘‘खाने में क्या चलेगा?’’

‘‘आप तो मेहमानों की पसंद का खाना खिलाना चाहते हो. मैं ने कहा न आप की पसंद.’’

‘‘मैं तो आलराउंडर हूं. फिर भी?’’

‘‘वह सबकुछ तो ठीक है, पर मैं आप के बारे में कुछ…’’

‘‘क्या? साफसाफ कहो.’’

‘‘आप के नौकरचाकर श्रीमतीजी को जरूरत बता सकते हैं. मेरे चलते आप के घर में पंगा खड़ा हो, मुझे गवारा नहीं.’’

‘‘आप चाहो तो मैं परसों तक नौकरों को छुट्टी पर भेज देता हूं, पर मेरी एक शर्त है.’’

‘‘कौन सी शर्त?’’

‘‘खाना आप को बनाना पड़ेगा.’’

‘‘हां, मुझे मंजूर है, पर आप के घर में कोई पंगा न हो.’’

‘‘पहले यह तो बताओ खाने में…’’ राजेश ने पूछा.

‘‘आप जो खिलाओगे, मैं खा लूंगी,’’ आंखों में झांक कर कुमुदिनी ने कहा.

राजेश ने एक नौकर से चिकन और शराब मंगवाई और बाद में सभी नौकरों को छुट्टी पर भेज दिया. तब तक रात के 9 बज चुके थे.

‘‘आप ने तो…’’ शराब से भरे जाम को देखते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘जब मेरी पसंद की बात है तो साथ तो देना ही पड़ेगा,’’ राजेश ने जाम आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘मैं ने आज तक इसे छुआ भी नहीं है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं चलेगी. मैं अगर अपने हाथ से पिला दूं तो…?’’ और राजेश ने जबरदस्ती कुमुदिनी के होंठों से जाम लगा दिया.

‘‘काश, आप के जैसा जीवनसाथी मुझे मिला होता तो मैं कितनी खुदकिस्मत होती,’’ आंखों में आंखें डाल कर कुमुदिनी ने कहा.

‘‘यही तो मैं सोच रहा हूं. काश, आप की तरह घर मालकिन रहती तो सारा घर महक जाता.’’

‘‘अब मेरी बारी है. यह लो, मैं अपने हाथों से आप को पिलाऊंगी,’’ कह कर कुमुदिनी ने दूसरा रखा हुआ जाम राजेश के होंठों से लगा दिया.

शराब पीने के बाद राजेश से रहा न गया और उस ने कुमुदिनी के गुलाबी होंठों को चूम लिया.

‘‘आप तो मेहमान की बहुत ज्यादा खातिरदारी करते हो,’’ मुसकराते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘बहुत ही मधुर फूल है कुमुदिनी का. जी चाहता है, भौंरा बन कर सारा रस पी लूं,’’ राजेश ने कुमुदिनी को अपने आगोश में लेते हुए कहा.

‘‘आप ने ही तो यह कहा था कि कुमुदिनी रात में सारे माहौल को महका देती है.’’

‘‘मैं ने सच ही तो कहा था. लो, एक जाम और पीएंगे,’’ गिलास देते हुए राजेश ने कहा.

‘‘कहीं जाम होंठ से टकराते हुए टूट न जाए राजेश साहब.’’

‘‘कैसी बात करती हो कुमुदिनी. यह बंदा कुमुदिनी की मधुर खुशबू में मदहोश हो गया है. यह सब तुम्हारा है कुमुदिनी,’’ जाम टकराते हुए राजेश ने कहा और एक ही सांस में शराब पी गया.

कुमुदिनी ने अपना गिलास राजेश के होंठों से लगाते हुए कहा, ‘‘इस शराब को अपने होंठों से छू कर और भी ज्यादा नशीली बना दो राजेश बाबू, ताकि यह रात आप के ही नशे में मदहोश हो कर बीते.’’

नशे में धुत्त राजेश ने कुमुदिनी को बांहों में भर कर प्यार किया. कुमुदिनी भी अपना सबकुछ उस पर लुटा चुकी थी. राजेश पलंग पर सो गया.

थोड़ी देर में कुमुदिनी उठी और अपने पर्स से एक छोटी सी शीशी निकाल राजेश को सुंघाई. शीशी में क्लोरोफौर्म था. इस के बाद कुमुदिनी ने किसी को फोन किया.

राजेश जब सुबह उठा, उस समय 8 बजे थे. राजेश के बिस्तर पर कुमुदिनी की साड़ी पड़ी थी. साड़ी को देख उसे रात की सारी बातें याद हो आईं. उस ने जोर से पुकारा, ‘‘ऐ कुमुदिनी.’’

बाथरूम से नल के तेजी से चलने की आवाज आ रही थी. राजेश ने दोबारा आवाज लगाई, ‘‘कुमुदिनी, हो गया नहाना. बाहर निकलो.’’

पर, कुमुदिनी की कोई आवाज नहीं आई. तब राजेश ने बाथरूम का दरवाजा धकेला, तो उसे कुमुदिनी नहीं दिखी.

वह घर के अंदर गया. सारा सामान इधरउधर पड़ा था. रुपएपैसे व जेवर वाला सूटकेस, घर की कीमती चीजें गायब थीं. राजेश को समझाते देर नहीं लगी. उस के मुंह से निकला, ‘‘चालाक लड़की…’’

News Kahani: हनी ट्रैप का चक्रव्यूह

दिलशाद गार्डन के एक गंदे से फ्लैट में रहने वाली 26 साल की सीमा अच्छी देह की मालकिन थी. वह दिल्ली में बड़े सपने ले कर आई थी और हाल ही में उस ने कुछ ऐसा काम कर दिया था कि उस के वारेन्यारे होने में ज्यादा समय नहीं बचा था.

सीमा आज सुबह से ही बड़ी चहक रही थी. हरे रंग की चुस्त बनियान और हलके भूरे रंग की शौर्ट से उस की भरपूर जवानी बाहर आने को बेताब थी. उस ने अंगड़ाई लेते हुए पहले एक कप ब्लैक कौफी बनाई और फिर सुबह का अखबार ले कर सोफे पर ‘धम्म’ से बैठ गई. यह सोफे पर उस की पसंदीदा जगह थी, जहां उस के हमेशा बैठे रहने से कुशन पर गड्ढा सा बन गया था.

सीमा ने कौफी की चुसकी लेते हुए अखबार पलटा, तो एक खबर पर उस की निगाहें जम गईं. जब खबर पढ़ी, तो सीमा की सांसें तेज हो गईं. अचानक से उसे पसीना आ गया. हाथपैर ठंडे पड़ गए. सारी खुशी पलभर में काफूर हो गई.

खबर दिल्ली की थी और सीमा का दिल दहलाने के लिए काफी थी. हुआ यों था :

पश्चिमी दिल्ली के राजौरी गार्डन में बने ‘बर्गर किंग’ के आउटलेट में मंगलवार, 18 जून, 2024 की रात हुए एक शूटआउट में ?ाज्जर, हरियाणा के अमन जून की हत्या कर दी गई थी. पुलिस वालों का कहना है कि अमन की हत्या गैंगवार में हुई है.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, अमन जून की अशोक प्रधान गैंग से नजदीकियां थीं. इस मामले में विदेश में बैठे गैंगस्टर हिमांशु भाऊ ने सोशल मीडिया पर राजौरी गार्डन शूटआउट की जिम्मेदारी ली है. भाऊ ने इंस्टाग्राम की एक पोस्ट में दावा किया है कि नवीन बाली (तिहाड़ में बंद) के साथ वह खुद राजौरी गार्डन की हत्या की जिम्मेदारी लेता है.

भाऊ का आरोप है कि अमन जून ने उस के करीबी शक्तिदादा की हत्या के दौरान मुखबिरी की थी. मंगलवार को राजौरी गार्डन में इसी का बदला लिया गया है. भाऊ ने धमकी दी है कि अब शक्ति दादा की हत्या में शामिल दूसरे लोगों का भी नंबर आने वाला है.

सूत्रों का यह भी कहना है कि गैंगस्टर नीरज बवानिया, नवीन बाली और हिमांशु भाऊ एकसाथ मिल कर लौरैंस गैंग के खिलाफ खुद को दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मजबूत करने में जुटे हैं. वहीं, गैंगस्टर अशोक प्रधान लौरैंस के साथ काम करता है. अशोक प्रधान से अमन जून की नजदीकी थी.

ऐसे में पुलिस को शक है कि नवीन बाली और हिमांशु भाऊ गैंग ने नीरज बवानिया के इशारे पर मंगलवार रात अमन जून की हत्या कर दी. इस की वजह यह है कि अक्तूबर, 2020 में नीरज बवानिया के मौसरे भाई शक्ति दादा की हरियाणा के ?ाज्जर जिले के छाछी गांव में हत्या कर दी गई थी. नीरज बवानिया को शक था कि अमन ने इस में मुखबिरी की थी.

सीमा के होश गुम कर देने वाली खबर तो आगे थी. वजह, सीमा अब तक जिस काम को पैसे कमाने का जरीया समझ रही थी, वह तो एक ऐसा चक्रव्यूह था, जिसे भेदना उस के बस की बात नहीं थी.

खबर में आगे लिखा था कि पुलिस ने मौका ए वारदात से सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले हैं. इस में 2 शूटर और एक लड़की नजर आ रहे हैं. पुलिस सूत्रों का कहना है कि अमन को हनी ट्रैप कर वहां बुलाया गया था. वह लड़की मैट्रो से वारदात वाली जगह पर पहुंची थी.

वारदात के बाद पुलिस को अमन जून के पास से एक डीटीसी बस का टिकट, गमछा और एक मोबाइल चार्जर मिला था, पर मोबाइल और पर्स नहीं मिला था. पुलिस को शक है कि अमन जून के साथ रही वह लड़की पर्स और मोबाइल ले कर फरार हुई है.

गैंगस्टर हिमांशु भाऊ विदेश में बैठा है. उस के खिलाफ इंटरपोल ने रैड कौर्नर नोटिस भी जारी किया हुआ है. एक महीने पहले पश्चिमी दिल्ली इलाके में ही भाऊ ने फ्यूजन कार पर अपने शूटरों के जरीए रंगदारी के लिए गोलियां चलवाई थीं. बाद में स्पैशल सैल ने एक शूटर को मुठभेड़ के दौरान मार गिराया था. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हिमांशु भाऊ गैंग पर मकोका के तहत केस भी दर्ज किया है.

पुलिस के मुताबिक, शूटरों ने अमन जून पर तकरीबन 40 गोलियां चलाईं. मौके से पुलिस को 30 कारतूस के खोल बरामद हुए. गैंगस्टर हिमांशु भाऊ ने सोशल मीडिया पर पोस्ट में कहा भी था कि 14 के बदले 40 गोलियां दी हैं.

बताया जा रहा है कि 24 साल की उस लड़की का नाम अनु है, जिसे डौन बनने की चाहत गैंगस्टर हिमांशु भाऊ के करीब ले आई. हिमांशु को अनु पर काफी भरोसा था, इसीलिए उस ने इस टास्क की जिम्मेदारी अनु को दी.

दिल्ली के राजौरी गार्डन के ‘बर्गर किंग’ में हुए हत्याकांड की परतें जैसेजैसे खुलती जा रही हैं, वैसेवैसे इस लेडी डौन और इस की हकीकत सामने आती जा रही है. बताया जा रहा है कि अनु ने अमन जून को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर रैस्टोरैंट बुलाया और 40 गोलियां मरवा कर उसे मौत के घाट उतार दिया, फिर बड़े आराम से फरार हो गई.

इतनी खबर पढ़ कर सीमा के तो तोते उड़ गए. उसे आज सम?ा आया कि समीर ने उसे मनोज से क्यों मिलवाया था. अभी एक महीने पहले की तो बात है. सीमा की समीर से नईनई दोस्ती हुई थी. उस ने खुद को प्राइवेट जासूस बताया था और मनोज नाम के एक रईसजादे से मेलजोल बढ़ाने के एवज में एक लाख रुपए देने का वादा किया था. सीमा को 50,000 रुपए मिल भी चुके थे, क्योंकि वह मनोज से एक होटल में मीटिंग कर भी चुकी थी.

यह मीटिंग बड़ी रसभरी थी. दरअसल, मनोज को नईनई लड़कियों के साथ सोने का चसका था. वह समीर और सीमा के ?ांसे में आ गया था. वैसे, समीर ने सीमा को यह कह रखा था कि वह दूसरी मीटिंग में एक छिपे हुए कैमरे से अपने और मनोज की बिस्तरबाजी के फोटो और वीडियो बना कर उसे दे देगी, ताकि वह मनोज की बीवी को उस की असलियत बता कर तलाक दिलवा दे.

उस दिन सोमवार की रात थी, जब सीमा मनोज के साथ होटल में गई थी. कमरे में वे दोनों अकेले थे. मनोज ने शराब पीते हुए उस से कहा था, ‘‘तुम मु?ो पहली ही नजर में पसंद आ गई हो. आज रात को बड़ा मजा आएगा.’’

सीमा मनोज की सब बातें सुन रही थी और गौर से देख रही थी कि किस एंगल से और कहां पर कैमरा फिट किया जाए कि बैड पर होने वाली हर हरकत अच्छी तरह से रिकौर्ड हो जाए.

उस ने मनोज का पैग बनाते हुए पूछा था, ‘‘क्या आप मु?ा से दोबारा भी मिलेंगे?’’

इस पर मनोज ने सीमा को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा था, ‘‘यह तो आज की रात पता चल जाएगा कि हमें दोबारा मिलना है या नहीं.’’

इधर मनोज शराब पी रहा था, उधर सीमा लाल रंग की नाइटी में उस के सामने खड़ी थी. मनोज ने उसे देखा और एकदम उतावला हो गया. उस रात सीमा ने मनोज को भरपूर देह सुख दिया.

इसी बीच मनोज ने सीमा को यह भी बताया कि वह अमीर बाप का एकलौता बेटा है और गलत संगत में पड़ कर कुछ लोगों का दुश्मन बन चुका है. पर तब सीमा को लगा था कि मनोज अपनी शादी की बात छिपा कर उस से दोबारा मिलने का बहाना ढूंढ़ रहा है.

पर आज अखबार की खबर पढ़ कर सीमा को सम?ा आ गया कि समीर ने किसी और इरादे से उसे फंसा कर हनी ट्रैप की तरह इस्तेमाल किया है. वह यह सोच कर घबरा गई कि अगर आज रात को मनोज और उस की मुलाकात के बीच कोई कांड हो गया और गलती से गोली उसे लग गई तो… अगर गोली नहीं भी लगी, पर अगर वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई तो? वह सम?ा गई थी कि दाल में कुछ काला है.

सीमा को कुछ सम?ा नहीं आ रहा था. उस ने समीर को फोन किया और दुखी लहजे में बोली, ‘‘समीर, मेरी तबीयत खराब है. मैं आज रात को मनोज के पास नहीं जा पाऊंगी.’’

‘‘अब हम लोग पीछे नहीं हट सकते. मनोज के खिलाफ एक बार सुबूत मिल जाए, फिर हमारा काम बन जाएगा. तुम्हें तुम्हारे 50,000 रुपए के साथसाथ इनाम भी मिलेगा, जिसे तुम जिंदगीभर नहीं भूल पाओगी.’’

यह सुनते ही सीमा के कान खड़े हो गए. उस ने आव देखा न ताव, अपने कपड़े और पैसे एक सूटकेस में भरे और वहां से भाग निकलने की सोची.

पर सुनीता अभी बाहर की गैलरी में ही पहुंची थी कि उस ने 2 लोगों को वहां खड़े पाया. वे तो समीर के आदमी थे. मतलब, उस पर भी नजर रखी जा रही थी.

सीमा दोबारा अपने घर में जा घुसी. उस ने सूटकेस पटका और बिस्तर पर बैठ गई. उसे सम?ा आ गया था कि वह हनी ट्रैप के लिए इस्तेमाल की जा रही है और आज उस की जिंदगी की सब से काली रात होने वाली है, उस की ठंडी हो चुकी ब्लैक कौफी की तरह.

शक्ति के सपने : क्या पूरे हो सके

हरियाणा के पलवल इलाके में पलाबढ़ा शक्ति बेहद चंचल और चालाक था. बचपन से ही वह पढ़ाई में तो नहीं, पर दिमाग से बाकी काम बनाने में बहुत तेज था. मिसाल के तौर पर सामाजिक समारोह में दरीगद्दे कैसे लगाने हैं, कौन सा हलवाई बढि़या है, किस जगह पर थोक में आतिशबाजी वाजिब दाम पर मिलेगी जैसी बहुत सी बातों का वह बचपन से ही जानकार था.

शुद्ध खानपान और कर्मठ दिनचर्या ने शक्ति का डीलडौल भी मजबूत बना दिया था. उस की 2 बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी और जैसे ही वह 18 साल का हुआ, परिवार वाले उस का भी ब्याह करने के लिए जोर देने लग गए थे. मगर शक्ति के मन में कुछ और ही था. वह अभी शादी के लिए तैयार नहीं था.

दिल्ली में शक्ति के मामा रहते थे. उन की मदद से शक्ति ने वहां के एक कालेज में अपना दाखिला करा लिया. वह शादी करने के दबाव से छुटकारा पाना चाहता था और बाहर पढ़ने को मिला, तो काफी हद तक कामयाब भी रहा.

शक्ति 3-4 महीने बाद कुछ दिन के लिए घर जाता और फिर पढ़ाई का बहाना कर के अपने होस्टल वापस लौट आता. कालेज की जिंदगी उसे खूब रास आने लगी थी. सब चिंताओं और जिम्मेदारियों से परे और यारदोस्तों से हंसीमजाक के साथ वह नएनए अनुभव ले रहा था. शहर का चकाचौंध भरा माहौल उसे सुकून दे रहा था.

शक्ति के डीलडौल और बोलने के हरियाणवी स्टाइल ने उसे जल्दी ही कालेज का एक जानापहचाना चेहरा बना दिया, मगर ज्यादातर लड़कियां जरूर उस से बचती थीं, क्योंकि अपने देहातीपन से वह गुंडा सा लगता था.

पहला साल इसी मस्तीमजाक में गुजर गया. पास होने लायक नंबर लाने में शक्ति को ज्यादा मेहनत नहीं लगी. 3 सहपाठियों को छोड़ कर बाकी सभी छात्र दूसरे साल में ऐंट्री पाने में कामयाब हो गए थे.

एक महीने की छुट्टी पर जाने से पहले सब छात्रों ने मिल कर एक पार्टी रखी. इस पार्टी में शक्ति ने भी पहली बार बीयर के अलावा रम और वोदका का स्वाद चखा था. उस के बाद खुमारी में जब उस ने खुल कर एक जोश वाला हरियाणवी लोकगीत गाया, तो सुनने वाले मस्त हो गए.

शक्ति के लिए देर तक तालियां बजती रहीं. अब उस से कन्नी काटने वाली लड़कियां भी हाथ मिला कर बधाई दे रही थीं, पर सविता का हाथ मिलाने का अंदाज सब से अलग था. उस की आंखों का गहरापन, गालों की लाली और दोनों हाथों से उस की हथेली को जोर से जकड़ना साफ संकेत दे रहे थे कि वह उस के मोहपाश मे बंध चुकी है.

इस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे का फोन नंबर ले लिया था. महीनेभर की छुट्टियों में एक दिन भी ऐसा नहीं बीता कि दोनों के बीच बातचीत न हुई हो. न ही छुट्टी का ऐसा कोई दिन बीता, जिस में शादी को ले कर चर्चा न हुई हो.

कालेज का दूसरा साल शुरू होते ही शक्ति होस्टल पहुंचने वाले छात्रों में सब से पहले था. 2 दिन के बाद सविता भी वहां आ गई. वह शक्ति के लिए अपने हाथों से बना क्रोशिया आसन तोहफे में लाई थी.

शक्ति को बड़ा अजीब सा लगा. वह तो उस के लिए कुछ लाया नहीं था. घर से लाया घी का डब्बा उस ने सविता को पकड़ा दिया. सविता को शक्ति के इस भोलेपन पर बहुत हंसी आई, पर वह उस के भीतर खुद के लिए पनप चुके प्यार को अच्छी तरह महसूस कर पा रही थी. उस का जी चाहा कि वह कस कर उस के होंठों को चूम ले, पर लोकलाज ने ऐसा करने से रोक दिया.

शक्ति को अभी एक और नए अनुभव से रूबरू होना था. उसे कालेज का महासचिव चुनने की तैयारी कर ली गई थी. बाकी पदों के लिए तो चुनाव हुए, पर उस के सामने कोई खड़ा नहीं हुआ. इस अनुभव ने शक्ति को उम्र से ज्यादा बड़ा कर दिया. अब उसे इज्जत भी मिलती और बुराई भी होती.

शक्ति अब राजनीति को गंभीरता से लेने लग गया. बड़े नेताओं से मिलने का मौका वह कभी न चूकता. दिल्ली में होने का फायदा उसे मिलता गया और नैशनल लैवल के नेताओं से उस की मुलाकात बढ़ती गई. वह राजनीति को तेजी से समझाता जा रहा था.

तीसरे साल में शक्ति को सीधे यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बना दिया गया. जिस दिन उस का चयन हुआ, उसी दिन सविता उस से अकेले मिलने आई.

शक्ति बहुत खुश था, पर सविता उदास थी. वजह जान कर उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. सविता उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. इस नाजुक मोड़ पर यह खबर किसी एटम बम से कम नहीं थी. विरोधी उम्मीदवार को अगर पता चलता तो गरमागरम अफवाह फैला कर उसे जीतने का आसान मौका मिल सकता था.

शक्ति ने कुछ खास दोस्तों के साथ जा कर मंदिर में सविता से शादी कर ली. शादी के वक्त शक्ति को पता चला कि सविता तो निचली जाति की है. उस ने कभी पूछा नहीं और सविता ने बताया भी नहीं. प्यार तो इनसान का इनसान से हुआ था. जाति को जानना प्यार के लिए बिलकुल जरूरी नहीं था, पर घर वालों को तो इस की सूचना दे कर उन की रजामंदी लेना जरूरी था.

सविता को तो अपने घर वालों को राजी कर लेने का पूरा भरोसा था, पर शक्ति को नहीं. उस ने यह जिम्मेदारी अपने मामा के कंधों पर सौंप दी और खुद चुनाव प्रचार में बिजी हो गया.

यूनिवर्सिटी के 5 कालेजों में एक महीने तक जम कर किए प्रचार का नतीजा भी सुखद आया. 1,000 से भी ज्यादा वोटों से शक्ति जीता था. उस का भाषण और बोलने का चुटीला अंदाज छात्रों को खूब भा रहा था, पर इस खुशी के आलम में शक्ति के घर पर मातम पसर गया था. मामा ने उस के अध्यक्ष बनने और शादी करने की खबर एकसाथ परिवार वालों को दी थी.

शक्ति की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया था. उस की बहनों ने मोरचा संभाला और परिवार वालों को समझाया, फिर शक्ति और सविता को घर बुलाया गया. घर पर नाराजगी कम तो हुई थी, पर खत्म नहीं. एक ही दिन में सब से मिल कर वे दोनों दिल्ली लौट आए.

हफ्तेभर बाद वे दोनों सविता के मातापिता के घर भी गए. एक गांव में सविता के पिता अपने 2 बेटों के साथ दरी और छोटे कालीन बनाने का काम करते थे. घर पर ग्राहक सीधे ही कालीन खरीदने आते थे. यह इस बात का सुबूत था कि उन का काम बहुत अच्छा था.

उन का घर छोटा था, पर शक्ति के लिए उन सब का स्नेह बहुत गहरा और एकदम खरा था. दिनभर के लिए रुकने की सोच कर आया शक्ति सब के कहने पर 2 दिन खुशीखुशी वहीं रुका. अब तक शादी के नाम से भागने वाले शक्ति को शादी के बाद यह मेहमाननवाजी मजा दे रही थी.

सविता के साथ लौटते समय शक्ति सोच रहा था कि वह राजनीति करने के काबिल है. अपनी सोच और बातों से लोगों को प्रभावित करने की उस में काबिलीयत भी है और जुनून भी.

शक्ति ने सविता को अपने मन की बात बताई, तो वह भी उस से सहमत थी. वह बोली, ‘‘तुम अपना पूरा ध्यान राजनीति को दो.’’

सविता जागरूक थी. वह शक्ति की बाधा नहीं, बल्कि ताकत बनना चाहती थी. सविता चाहती थी कि शक्ति खुद को और मजबूत कर के एक मुकाम हासिल करने की दिल से कोशिश करे. वह जानती थी कि अपने बच्चे के 2 साल का होने तक वह अपनी एमए की डिगरी पा लेगी. उस के बाद वह घर के लिए जरूरी खर्च उठाने लायक हो जाएगी, तब तक वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ा लेगी.

रात हो चली थी. अपने कमरे में लौटते हुए खिड़की से बाहर दिखाई दे रहे आसमान की ओर उन दोनों ने एकसाथ निहारा. स्याह आसमान में बहुत से तारे टिमटिमा रहे थे, पर एक तारा ऐसा था, जिस की चमक कुछ ज्यादा थी. शायद अगला सूरज बनने का ख्वाब उस तारे के मन में भी मजबूती से पनप रहा था.

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