गोलियों की तड़तड़ाहट : भारी पड़ी सिरफिरे से आशिकी

Crime News in Hindi: दिल्ली (Delhi) से सटे गाजियाबाद (Gaziabad) में हिंडन नदी (Hindon River) किनारे स्थित साईं उपवन बड़ा ही रमणीक स्थल है. यहां पर साईंबाबा का प्रसिद्ध मंदिर है. 25 मार्च, 2019 सोमवार को सुबह का वक्त था. श्रद्धालुजन साईं मंदिर (Sai Temple) में आते जा रहे थे. उसी समय लाल रंग की स्कूटी से गोरे रंग की खूबसूरत युवती और एक स्मार्ट या दिखने वाला युवक वहां पहुंचे. स्कूटी को उपवन परिसर के बाहर एक ओर खड़ी कर वे दोनों मंदिर में प्रवेश कर गए. कोई 10 मिनट के बाद जब वे दोनों साईंबाबा के दर्शन कर के बाहर निकले तो उन के चेहरे खिले हुए थे. यह हसीन जोड़ा आसपास से गुजरने वाले लोगों की नजरों का आकर्षण बना हुआ था. लेकिन उन दोनों को लोगों की नजरों की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी. वे अपनी ही दुनिया में मशगूल थे.

जैसे ही दोनों बाहर निकले वह रमणीक इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. तभी वहां मौजूद लोगों को एक आदमी युवकयुवती की लाशें बिछा कर तेजी से लिंक रोड की तरफ भागता हुआ दिखाई दिया. लोगों ने देखा कि लाशें उसी नौजवान खूबसूरत जोड़े की थीं, जो अभीअभी वहां से हंसतेमुसकराते हुए मंदिर से बाहर निकला था. इसी दौरान किसी ने इस सनसनीखेज घटना की सूचना 100 नंबर पर गाजियाबाद पुलिस को दे दी.

थोड़ी ही देर में सिंहानी गेट के थानाप्रभारी जयकरण सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मंदिर परिसर के अंदर लाल सूट पहने एक युवती और एक युवक की रक्तरंजित लाशें औंधे मुंह पड़ी थीं. जयकरण सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया.

युवकयुवती के कपड़े खून से सने थे. वहां पर काफी लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. जयकरण सिंह ने उन की नब्ज टटोली, लेकिन उन की सांसें उन का साथ छोड़ चुकी थीं. उन्होंने जल्दी से क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को बुला कर घटनास्थल की फोटोग्राफी करवाई और वहां उपस्थित चश्मदीदों से इस घटना के बारे में पूछताछ करनी शुरू की.

कुछ लोगों ने बताया कि मृतक युवती और युवक कुछ ही देर पहले लाल स्कूटी से एक साथ मंदिर आए थे, जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के बाद बाहर निकल रहे थे, तभी पहले से घात लगाए हत्यारे ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

पुलिस ने जब दोनों लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की तो भीड़ ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. यह देख इंसपेक्टर जयकरण सिंह ने आरटीओ औफिस से उस लाल रंग की स्कूटी का विवरण मालूम किया, जिस से वे आए थे. आरटीओ औफिस से मृतका की शिनाख्त प्रीति उर्फ गोलू, निवासी विजय विहार (गाजियाबाद) के रूप में हुई.

तय हो गई थी शादी

पुलिस द्वारा सूचना मिलने पर थोड़ी देर में युवती के घर वाले भी रोतेबिलखते हुए घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवती की शिनाख्त के साथसाथ युवक की भी शिनाख्त कर दी. मृतक सुरेंद्र चौहान उर्फ अन्नू था. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि उन की बेटी प्रीति और सुरेंद्र चौहान बहुत जल्द परिणय सूत्र में बंधने वाले थे. सुरेंद्र के मातापिता भी इस रिश्ते के लिए राजी थे.

घटनास्थल की जांच के दौरान वहां पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के कुछ खोखे और मृतका प्रीति की लाल रंग की स्कूटी बरामद हुई, जिसे पुलिस टीम ने अपने कब्जे में ले लिया. मृतका के पिता प्रमोद कुमार से युवक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह के बारे में जानकारी मिल गई. पुलिस ने उन्हें भी इस दुखद घटना के बारे में बता दिया. इस के बाद खुशहाल सिंह भी अपने परिजनों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो चुकी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

25 मार्च को ही मृतका प्रीति के पिता प्रमोद कुमार की शिकायत पर इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा कोतवाली सिंहानी गेट में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

इस केस की आगे की तफ्तीश थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने खुद संभाली. उन्होंने इस घटना के बारे में एसपी श्लोक कुमार और सीओ सिटी धर्मेंद्र चौहान को भी अवगत करा दिया.

एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसपी श्लोक कुमार के निर्देशन और सीओ धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी जयकरण सिंह के साथ इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राजेश कुमार, एसआई श्रीनिवास गौतम, हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह, माइकल बंसल, कांस्टेबल अशोक कुमार, संजीव गुप्ता, सेगेंद्र कुमार, संदीप कुमार और गौरव कुमार को शामिल किया गया.

जांच टीम ने एक बार फिर साईं उपवन पहुंच कर वहां के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ शुरू की तो पता चला कुछ लोगों ने एक लंबी कदकाठी के आदमी को वहां से भागते हुए देखा था. वह अधेड़ उम्र का आदमी था जो कुछ दूरी तक भागने के बाद वहां खड़ी एक कार में सवार हो कर फरार हो गया था.
हालांकि मंदिर परिसर में 8 सीसीटीवी कैमरे लगे थे लेकिन दुर्भाग्यवश सभी खराब थे. मृतका के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रीति सुबह 7 बजे ड्यूटी पर जाने के लिए निकली थी. वह वसुंधरा के वनस्थली स्कूल के यूनिफार्म स्टौल पर नौकरी करती थी.

उस के काम पर चले जाने के बाद वह बुलंदशहर जाने वाली बस में सवार हो गए थे. अभी उन की बस लाल कुआं तक ही पहुंची थी कि उन्हें मोबाइल फोन पर प्रीति को गोली मारे जाने का दुखद समाचार मिला. जिसे सुनते ही वह फौरन घटनास्थल पर आ गए थे.

पिता ने बताई उधार की कहानी

प्रमोद कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह को भी कोतवाली बुला कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन के बेटे की हत्या में कल्पना नाम की औरत का हाथ हो सकता है. दरअसल, सुरेंद्र का गाजियाबाद के ही प्रताप विहार में शीशे के सामान का कारोबार था, इसी कारोबार के लिए सुरेंद्र ने कुछ समय पहले कल्पना से कुछ रुपए उधार लिए थे. कल्पना रुपए वापस करने के लिए लगातार तकादा कर रही थी.

चूंकि सुरेंद्र के पास उसे देने लायक पैसे इकट्ठे नहीं हुए थे. इसलिए वह कल्पना को कुछ दिन तक और रुकने को कह रहा था. 2 दिन पहले शनिवार के दिन भी कल्पना उन के घर पर अपने रुपए लेने आई थी, इस दौरान कल्पना ने गुस्से में आ कर सुरेंद्र को बहुत बुराभला कहा था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम इस हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाने के लिए उन तमाम पहलुओं पर विचारविमर्श करने लगी, जिस पर आगे बढ़ कर हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. इस में पहला तथ्य घटनास्थल पर मिले पौइंट 9 एमएम पिस्टल से फायर की गई गोलियों के खोखे थे. इस प्रकार के पिस्टल का इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस अधिकारी करते हैं. यह सुराग इस तथ्य की ओर इशारा कर रहा था कि हत्यारे का कोई न कोई संबंध पुलिस डिपार्टमेंट से है.

दूसरा तथ्य मृतक सुरेंद्र उर्फ अन्नू के पिता खुशहाल सिंह के अनुसार उन के बेटे को कर्ज देने वाली औरत कल्पना से जुड़ा था. तीसरा सिरा मृतका प्रीति और उस के मंगेतर सुरेंद्र की बेमेल उम्र से ताल्लुक रखता था.

दरअसल प्रेमी सुरेंद्र की उम्र अभी केवल 26 साल थी जबकि उस की प्रेमिका प्रीति की उम्र 32 साल थी. इसलिए यहां इस बात की संभावना थी कि उन के बीच उम्र का यह फासला उन के परिवार के लोगों में से किसी सदस्य को पसंद नहीं आ रहा हो और आवेश में आ कर उस ने इस घटना को अंजाम दे दिया हो.
इस के अलावा एक और भी महत्त्वपूर्ण बिंदु था, जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. प्रीति उर्फ गोलू की उम्र अधिक थी. यह भी संभव था कि उस के प्रेम संबंध पहले से किसी और युवक के साथ रहे हों. पहले प्रेमी को पता चल गया हो कि प्रीति की शादी सुरेंद्र चौहान से हो रही है. संभव था कि उस ने प्रीति को सबक सिखाने के लिए सुरेंद्र का काम तमाम कर दिया.

चूंकि वारदात के समय उस के साथ उस का मंगेतर सुरेंद्र चौहान भी था, इसलिए गुस्से से बिफरे पहले प्रेमी ने उस को भी मार डाला हो. बहरहाल इन तमाम बिंदुओं पर विचार विमर्श कर के पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के प्रयास में जुटी थी.

पुलिस टीम ने 27 मार्च को एक बार फिर दोनों के परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों तथा वारदात के वक्त साईं उपवन में मौजूद चश्मदीदों को बुला कर पूछताछ की. साथ ही प्रीति और सुरेंद्र के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की गहन जांच की.

इस जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. प्रीति के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि उन का एक रिश्तेदार दिनेश कुमार दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में एएसआई के पद पर तैनात है. उस का चौहान परिवार के घर पर काफी आनाजाना था. लेकिन जिस दिन यह दोहरा हत्याकांड हुआ उस दिन के बाद वह बुलाए जाने के बावजूद वारदात वाली जगह पर नहीं आया था. और तो और प्रीति के अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ था.

यह बात प्रमोद कुमार और उन के परिवार के सदस्यों को बहुत अटपटी लगी थी. जब पुलिस ने उन से डिटेल्स में बात की तो प्रमोद कुमार ने अपने मन की सब बातें विस्तार से बता दीं. जिन्हें सुनते ही पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस में ट्रैफिक विभाग में तैनात एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करने का मन बना लिया. चूंकि घटनास्थल पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के खाली खोखे मिले थे, जिस की वजह से भी वारदात में किसी पुलिस वाले के शामिल होने का शक था, इसलिए अब एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करना बेहद जरूरी हो गया था.

पुलिस वाला आया शक के घेरे में

थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने एएसआई दिनेश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए. आखिरकार 30 मार्च की सुबह एक मुखबिर की सूचना पर उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया. जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ शुरू की गई तो उस ने जो कुछ बताया उस से रिश्तों में उलझी एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई.

प्रमोद कुमार अपने परिवार के साथ गाजियाबाद के विजय विहार में रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. वह बड़ी बेटी के हाथ पीले कर चुके थे. दूसरी बेटी प्रीति उर्फ गोलू और उस से छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही थी. 22 वर्षीय प्रीति मिलनसार स्वभाव की थी. वह जिंदगी के हर एक पल का पूरा लुत्फ उठाने में विश्वास रखती थी.

बड़ी बेटी की शादी के एक साल बाद प्रमोद कुमार ने प्रीति के भी हाथ पीले कर देने की सोची. उन्होंने उस के लिए कई जगह रिश्ते की बात चलाई, मगर आखिर अपनी हैसियत के अनुसार मौके पर प्रीति किसी न किसी बहाने से शादी करने से इनकार कर देती थी.

प्रीति का अपनी बड़ी बहन के घर काफी आनाजाना था. अपने हंसमुख स्वभाव की वजह से वह बहन की ससुराल में भी काफी घुलमिल गई थी. उस के जीजा का जीजा दिनेश कुमार दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. दिनेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पिलखुआ का रहने वाला था. उस की पत्नी और बच्चे पिलखुआ में ही रहते थे. दिनेश जब भी रमेश के घर आता वह प्रीति से खूब बातेें करता था. बला की हसीन और दिलकश प्रीति की चुलबुली मीठी बातें सुन कर वह भावविभोर हो जाता था.

प्रीति को भी दिनेश से बातें करने में खुशी मिलती थी. वह उस समय उम्र के उस पड़ाव पर भी पहुंच गई थी, जहां एक मामूली सी चूक भविष्य के लिए नासूर बन जाती है. लेकिन इस समय प्रीति या उस की बहन सीमा ने इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

धीरेधीरे प्रीति की जिंदगी में दिनेश का दखल बढ़ने लगा. अब वह प्रीति से उस के गाजियाबाद स्थित घर पर भी मिलने आने लगा था. इतना ही नहीं जब कभी प्रीति या उस के परिवार में अधिक रुपयों की जरूरत होती वह अपनी ओर से आगे बढ़ कर उन की मदद करता था.

प्रीति के पिता प्रमोद कुमार भी दिनेश कुमार के बढ़ते अहसानों के बोझ तले इतने दब चुके थे कि दिनेश के रुपए वापस करना उन के वश के बाहर हो गया. दिनेश कुमार ये रुपए प्रीति के घर वालों को यूं ही उधार नहीं दे रहा था.

रिश्तों में सेंध

दरअसल दिनेश कुमार अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की प्रीति के ऊपर न केवल पूरी तरह से फिदा था बल्कि उस के साथ उस के शारीरिक संबंध भी स्थापित हो चुके थे. वह प्रीति को किसी न किसी बहाने से अपने साथ घुमाने ले जाता था, जहां दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

समय का पहिया अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, दिनेश कुमार सन 1994 में कांस्टेबल के पद पर दिल्ली पुलिस में भरती हुआ था. सन 2008 में उस का प्रमोशन हेड कांस्टेबल के पद पर हो गया. इस के 8 साल बाद एक बार फिर उस का प्रमोशन हुआ और वह एएसआई बन गया. इन दिनों वह ट्रैफिक विभाग में सीमापुरी सर्कल में तैनात था.

प्रीति के साथ जिस सुरेंद्र कुमार नाम के युवक की जान गई थी, वह मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. उस के पिता खुशहाल सिंह सेना में रह चुके थे. रिटायरमेंट के बाद वह अपने गांव में सेटल हो गए. 2 बेटों के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा सुधीर हरिद्वार में रहता था. वह अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुके थे और इन दिनों एक पोल्ट्री फार्म चला रहे थे.

करीब 2 साल पहले उन का छोटा बेटा सुरेंद्र कुमार उर्फ अन्नू उत्तराखंड से गाजियाबाद आ गया था और प्रताप विहार में शीशे का बिजनैस करने लगा था. 2 साल तक अथक मेहनत करने के बाद आखिर उस का काम चल निकला. इस के बाद उस ने अपने मातापिता को भी अपने पास बुला लिया था. कुछ ही महीने पहले उस की मुलाकात प्रीति उर्फ गोलू से हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

सुरेंद्र से मुलाकात होने के बाद प्रीति फोन से सुरेंद्र से अकसर बात करती रहती थी. दिन गुजरने लगे उन के प्यार का रंग गहरा होता चला गया. कुछ दिनों के बाद सुरेंद्र और प्रीति का प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी हो गए थे. शादी की बात तय हो जाने पर दोनों प्रेमी खुश हुए. हालांकि प्रीति की उम्र सुरेंद्र से करीब 6 साल ज्यादा थी मगर दोनों में से किसी को इस पर जरा भी एतराज नहीं था.

प्रीति सुरेंद्र के साथ शादी के लिए तो दिलोजान से रजामंद थी किंतु उस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि दिनेश के साथ उस के विगत कई सालों से जो प्रेमिल संबंध थे उन से निकलना आसान नहीं था.

वजह यह कि दिनेश कुमार किसी भी हालत में उस की शादी किसी और से नहीं होने देना चाहता था.
प्रीति को अपने काबू में रखने के लिए उस ने उस की हर जायजनाजायज मांगें पूरी की थीं. हाल ही में उस ने प्रीति के पिता को 3 लाख रुपए उधार भी दिए थे. एएसआई दिनेश कुमार के बयान कितने सच और कितना झूठ है यह तो पुलिस की जांच के बाद पता चलेगा. परंतु इतना तय है कि प्रीति के घर में उस का इतना दखल था कि वह बेधड़क जब चाहे तब उस के घर आ जा सकता था.

प्रीति और सुरेंद्र के बीच जब से प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था तब से प्रीति ने एएसआई दिनेश से मिलनाजुलना कम कर दिया था. पहले तो दिनेश कुमार प्रीति और सुरेंद्र के प्यार से अनजान था, लेकिन 4-5 दिन पहले जब प्रीति ने उस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया तो वह सोच में पड़ गया.

दिल्ली पुलिस में 25 सालों से नौकरी कर रहे एएसआई दिनेश कुमार को यह समझने में देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. फिर भी उस ने किसी तरह प्रीति को फोन कर के उस से बातें करने की कोशिश जारी रखी. लेकिन 2 दिन पहले प्रीति ने दिनेश कुमार के लगातार आने वाले फोन से परेशान हो कर अपने मोबाइल फोन का सिम बदल लिया.

मामला बिगड़ता देख एएसआई दिनेश कुमार समझ गया कि प्रीति किसी कारण उस से संबंध तोड़ने पर आमादा है. जिस के फलस्वरूप उस ने प्रीति को सबक सिखाने की ठान ली. 24 मार्च, 2019 को दिनेश की रात की ड्यूटी थी.

25 मार्च की सुबह अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद वह शाहदरा निवासी अपने दोस्त पिंटू शर्मा के पास गया. उस की मारुति स्विफ्ट कार पर सवार हो कर वह प्रीति के घर जा पहुंचा. कार पिंटू शर्मा चला रहा था. प्रीति के घर पहुंच कर जब उसे पता चला कि प्रीति साईं उपवन मंदिर गई है तो वह उस का पीछा करता हुआ वहां भी पहुंच गया.

अचानक की गईं दोनों की हत्याएं

उधर साईं मंदिर में दर्शन करने के बाद जैसे ही प्रीति और सुरेंद्र अपने जूतों की ओर बढ़े, तभी एएसआई दिनेश कुमार प्रीति से बातें करने के लिए आगे बढ़ा. उस ने प्रीति को अपनी ओर बुलाया मगर प्रीति ने उस की ओर देख कर अपनी नजरें फेर लीं.

यह देख दिनेश कुमार की त्यौरियां चढ़ गईं. वह आगे बढ़ा और प्रीति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगा, मगर प्रीति ने उस का हाथ झटक दिया. प्रीति की यह बात एएसआई दिनेश कुमार को बहुत बुरी लगी. तभी उस ने अपना सर्विस पिस्टल निकाला और प्रीति के ऊपर फायर कर दिए.

प्रीति को खतरे में देख कर सुरेंद्र उसे बचाने के लिए दौड़ा तो दिनेश ने उस के भी सीने में 3 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह बाहर स्विफ्ट कार में इंतजार कर रहे पिंटू शर्मा के साथ वहां से फरार हो गया.
गाजियाबाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए 5 दिनों तक दिनेश कुमार अपने रिश्तेदारों के घर छिपा रहा. दिनेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने शाहदरा से इस हत्याकांड में शामिल रहे उस के दोस्त पिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात में प्रयोग की गई एएसआई दिनेश कुमार की सर्विस पिस्टल, 3 जीवित कारतूस तथा स्विफ्ट कार भी गाजियाबाद पुलिस ने बरामद कर ली. 2 अप्रैल, 2019 को दिल्ली पुलिस ने भी एएसआई दिनेश कुमार को उस के पद से बर्खास्त कर दिया.

साइबर युग की एक दिन की जिंदगी

देर रात तक काम कर के सोया प्रदीप सुबह देर तक सोना चाहता था, क्योंकि उसे अगले दिन भी देर रात तक काम करना था. सोने के पहले दिमाग को हलका करने के लिए उस ने 2 लार्ज पैग शराब भी पी ली थी. लेकिन देर तक सोने की उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. क्योंकि सुबह तड़के ही दीवार में लगा अलार्म बजने लगा, जिस से प्रदीप की नींद टूट गई.

आंखें मलते हुए उस ने दीवार की ओर देखा. दीवार में लगी स्क्रीन चमकी और उस में एक चेहरा उभरा. वह चेहरा उस का जानापहचाना था. वह कोई और नहीं, सैवी था. पर वह कोई जीताजागता आदमी नहीं, एक सौफ्टवेयर प्रोग्राम था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘प्रदीप, उठो तुम्हें आज समय से पहले औफिस पहुंचना है. वहां तुम्हारी सख्त जरूरत है.’’

स्क्रीन से सैवी गायब होता, उस के पहले ही प्रदीप ने कहा, ‘‘एक मिनट सैवी, कहीं तुम मजाक तो नहीं कर रहे. तुम्हें तो पता है मैं ने देर रात तक काम किया है. रात में जो पी थी, अभी उस का नशा भी नहीं उतरा है. ऐसा कौन सा जरूरी काम आ गया कि मुझे समय से पहले औफिस पहुंचना है.’’

सैवी क्या कहता, सिर्फ मुसकरा कर रह गया. जमहाई लेते हुए प्रदीप उठा. वह बाथरूम में घुसा. वाश बेसिन पर लगे शीशे में मुंह देखते हुए उस ने मुंह पर पानी के छींटे मारे. इसी के साथ शीशे, टौयलेट और बेसिन में छिपे तमाम डीएनए और प्रोटीन सेंसर हरकत में आ गए. प्रदीप जो सांस छोड़ रहा था, उस की जांच करने के साथ उस के शरीर की भी जांच शुरू हो गई, जिस से उस के शरीर की किसी भी बीमारी के अणुओं के स्तर का पता चल सके.

बाथरूम से निकल कर प्रदीप ने सिर पर एक कैप रख ली, जिस के माध्यम से अब टेलीपैथी द्वारा घर को नियंत्रित किया जा सकता था. कमरे में उसे थोड़ी गरमी महसूस हुई तो पहला निर्देश कमरा थोड़ा ठंडा करने का दिया गया. प्रदीप को हलकाहलका नशा अब भी था, दूसरे ठीक से वह सो भी नहीं सका था, इसलिए उसे सुस्ती महसूस हो रही थी.

शरीर को उत्तेजित करने वाला संगीत सुनने का मन हुआ. इस के बाद नंबर आया चायनाश्ते का. अगला निर्देश रोबोटिक रसोइए के लिए था कि वह उस के लिए चाय और नाश्ता तैयार कर दे. क्योंकि तब तक रोबोट इस तरह के तैयार हो जाएंगे कि वे घर में नौकर की तरह काम करने लगेंगे.

सारा काम रोबोट करेंगे

उपरोक्त दृश्य आने वाली सदी का है, जब सारे काम इंसान नहीं नई तकनीक करेगी, कंप्यूटर के माध्यम से. यह वह जमाना होगा जब रोबोट केवल इतना ही नही करेंगे, बल्कि साथ घूमनेफिरने भी नहीं जाएंगे, बल्कि साथ में रह कर शौपिंग भी कराएंगे. मालिक की हर बात उन की समझ में आने लगेगी. यह सब वे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए कराएंगे. चारों तरफ रोबोट ही रोबोट दिखाई देंगे. एयरपोर्ट से ले कर औफिसों तक. ये पुलिस की भी भूमिका संभालेंगे और ड्राइवर की भी. दुकानों के काउंटर पर भी यही बैठे होंगे. ये इंसान की भावनाओं को भी समझेंगे. इस तरह वे एक बेहतरीन काम करने वाले ही नहीं, बेहतरीन साथी भी बन सकेंगे.

आइए, फिर प्रदीप के पास चलते हैं. चायनाश्ते का निर्देश देने के साथ ही प्रदीप ने मैग्नेटिक कार को गैराज से बाहर आ कर खड़ी होने का निर्देश दे दिया था. वह डीजल, पैट्रोल, सीएनजी या इलैक्ट्रिक से चलने वाली कार नहीं थी. चुंबकीय ऊर्जा के दौर में हजारों मील की यात्रा बिना किसी ईंधन के होगी. उस दौर में ट्रेनें, कार, लोग चुंबकीय तरंगों पर तैरेंगे. सुपर कंडक्टर टेक्नोलौजी नई सदी की प्रमुख ऊर्जा तकनीक होगी, जिस में ऊर्जा क्षय नहीं होगी.

आने वाली सदी की छोडि़ए. जर्मनी, जापान और चीन इस तकनीक में आज भी आगे हैं. मैग्लेव ट्रेनें चुंबकीय तरंगों पर तैरते हुए तेज रफ्तार से आगे दौड़ती हैं. उन की ये चुंबकीय तरंगें सुपर कंडक्टर्स के जरिए पैदा की जाती हैं. ये रफ्तार के मामले में विश्व रिकौर्ड तोड़ रही हैं. इनकी अधिकतम रफ्तार 361 मील प्रतिघंटा है. इन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है.

बहरहाल, कार को बाहर आने का निर्देश दे कर प्रदीप किचन में पहुंचा तो रोबो उस का पसंदीदा चायनाश्ता बना चुका था. प्रदीप ने झट से आंखों पर कौंटेक्ट लेंस चढ़ाया. कौंटेक्ट लेंस पहनते ही वह इंटरनेट से जुड़ गया. इंटरनेट उस की रेटीना पर क्लिक करने लगा. गरमागरमा चायनाश्ते के साथसाथ लेंस पर हेडलाइंस फ्लैश होने लगीं.

मंगल ग्रह पर बन रही कालोनी के प्रोजैक्ट को अगर जल्दी पूरा करना है तो वहां काम करने वालों को बर्फीली ठंड से बचाने के लिए धरती से और संसाधनों की व्यवस्था करनी होगी. पहली स्टारशिप जाने को तैयार है, इस के लिए चंद्रमा की सतह पर लाखों नैनोबोट्स जूपिटर छोड़ने होंगे, ताकि वे स्टारशिप की जरूरी यात्रा के लिए चुंबकीय फील्ड तैयार कर सकें.

कई सालों की मेहनत के बाद अंतरिक्ष में पर्यटकों के लिए एक बड़ा पर्यटनस्थल तैयार कर लिया गया है. अब पर्यटक मौजमस्ती के लिए वहां जा सकते हैं. अभी जो नई बीमारी फैल रही है, वैज्ञानिक उस के वायरस का पता कर रहे हैं, क्योंकि अभी इस का कोई इलाज नहीं है. वैज्ञानिक उस के जींस के कमजोर पहलुओं के बारे में पता लगा रहे हैं.

कौंटेक्ट लेंस पर इन सारी हेडलाइंस को देखने के बाद एक खबर ने प्रदीप का ध्यान आकर्षित किया.

हैडलाइन थी— दिल्ली और उस के आसपास के शहरों को बिजली सप्लाई करने वाले पावर स्टेशन में प्रौब्लम की वजह से बिजली की सप्लाई बाधित हो रही है. अगर जल्दी इस की मरम्मत नहीं की गई तो दिल्ली और उस के आसपास का इलाका अंधेरे में डूब जाएगा.

दरअसल, जिस युग की हम बात कर रहे हैं, तब तक धरती पर मौजूद वे सारे संसाधन खत्म हो चुके होंगे, जिन से अभी ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है, इसलिए तब लोग सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष से मिलने वाली ऊर्जा पर निर्भर होंगे. अंतरिक्ष में घूमते कृत्रिम उपग्रह बिजलीघर का भी काम करेंगे. बड़ी संख्या में सेटेलाइट सूर्य के विकिरण को सोख कर बिजली उत्पन्न करेंगे. हर सेटेलाइट 5 से 10 गीगावाट बिजली पैदा करने में सक्षम होगा. यह बिजली धरती पर उत्पन्न होने वाली बिजली से सस्ती होगी.

जापान अभी से स्पेस में पावर स्टेशन की संभावना देखने लगा है. मित्सुबिशी इलैक्ट्रिक और कुछ दूसरी कंपनियां इस दिशा में काम भी कर रही हैं. अंतरिक्ष में तैनात होने वाला जापान का बिजलीघर डेढ़ मील में फैला होगा. यह बिलियन वाट बिजली पैदा करेगा.

पावर स्टेशन में होने वाली गड़बड़ी की हेडलाइंस नजर आते ही प्रदीप समझ गया कि औफिस में इतनी सुबहसुबह क्यों बुलाया गया है. वह नाश्ता कर के घर से बाहर आया तो गैराज से बाहर आ कर तैरती हुई कार उस का इंतजार कर रही थी. जल्दी औफिस पहुंचने का निर्देश मिलते ही मैग्नेटिक कार, इंटरनेट, जीपीएस और सड़क में छिपे लाखों चिप्स से जुड़ गई, ताकि मौनिटर पर ट्रैफिक के बारे में जानकारी मिलती रहे.

कार चुंबकीय पट्टी वाली सड़क पर तैरने लगी. इन चुंबकीय तरंगों को सुपर कंडक्टिंग से तैयार किया गया था. कार अभी चली ही थी कि स्क्रीन पर एक बार फिर सैवी का चेहरा उभरा. उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, आप के लिए नया संदेश यह है कि आप कौन्फ्रैंस रूम में पहुंच कर सब से मिलें. इस के अलावा आप की बहन का भी एक वीडियो मैसेज है.’’

कार खुद ही आगे बढ़ती जा रही थी. अभी औफिस पहुंचने में समय था, इसलिए प्रदीप ने सोचा कि तब तक बहन का वीडियो मैसेज ही देख ले. उस ने कलाई में बंधी घड़ी का बटन दबाया. घड़ी के बटन पर बहन की तसवीर उभरी. बहन ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम्हें तो पता ही है, शनिवार को सात्विक का बर्थडे है. इस बार तुम उस के लिए नए मौडल का रोबोटिक डौगी ले आना.’’

इलेक्ट्रिसिटी का जमाना खत्म हो चुका था. चुंबकीय ऊर्जा का युग था. प्रदीप की कार के आसपास से अलगअलग बैंडविड्थ में ट्रेनें, ट्रक और कारें ऊपरनीचे और अगलबगल से गुजर रही थीं. ये ऐसी ऊर्जा थी, जिस में कार के लिए कभी ऊर्जा की जरूरत नहीं पड़ने वाली थी, जिस से धन की भी बचत हो रही थी.

प्रदीप औफिस पहुंच गया. वह एक पावर जेनरेटिंग और सप्लाई करने वाली एक बड़ी कंपनी का औफिस था. बहुत बड़ी और काफी ऊंची बिल्डिंग थी. गेट पर पहुंचते ही लेजर ने चुपचाप आंखों की पुतलियों और चेहरे से पहचान कर गेट खोल दिया.

कौन्फ्रैंस रूम आधे से ज्यादा खाली पड़ा था. कुछ सहयोगी आ कर अपनीअपनी सीट पर बैठ चुके थे. प्रदीप के कौंटेक्ट लेंस में उन लोगों की थ्री डी इमेज उभरी, जो कौन्फ्रैंस रूम में टेबल के इर्दगिर्द बैठे थे. ये लोग भले ही औफिस नहीं आ पाए थे, लेकिन होलोग्राफिक तौर पर औफिस में साथ मौजूद थे. कौंटेक्ट लेंस इन लोगों को पहचान रहा था, साथ ही उन की प्रोफाइल और बैकग्राउंड भी दिखा रहा था.

अचानक डायरेक्टर की कुरसी की जगह पर उन की तसवीर उभरी. उन्होंने कहा, ‘‘जेंटलमेन, जैसा कि आप लोगों को पता ही है कि अंतरिक्ष में स्थित अपने पावर हाउस में कुछ गड़बड़ी हो गई है. यह गंभीर मामला है. अच्छी बात यह है कि समय से इस की जानकारी मिल गई, जिस से खतरा टल गया.

दुर्भाग्य से जिस रोबो को मरम्मत की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वह नाकाम रहा. रोबोट ने हमें जो थ्री डी इमेज भेजी है, उस में गड़बड़ी साफ दिख रही है. इस से हमें गड़बड़ी का पता चल गया है. इस काम के लिए वह रोबो पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उस में इस गड़बड़ी को ठीक करने का प्रोग्राम नहीं है, इसलिए हमें वहां अनुभवी रोबोट्स भेजने होंगे.’’

काफी चर्चा के बाद मानव नियंत्रण वाले रिपेयर क्रू को वहां भेजने का निर्णय लिया गया. डायरेक्टर ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम जल्दी से जल्दी ऐसे रोबोट्स तैयार करो, जिन में ऐसे प्रोग्राम हों जो टेलीपैथिक संकेतों पर काम कर के पावर स्टेशन में हुई गड़बड़ी को ठीक कर सकें.’’

इस तरह के रोबोट प्रदीप ने पहले ही तैयार कर रखे थे, इसलिए उस ने तत्काल उन रोबोट्स  को काम पर लगा दिया. ये ऐसे रोबोट्स थे, जिन्हें रोबोटिक मानव कहा जा सकता था. उन के सिर में इलेक्ट्रोड, शरीर में अलगअलग तरह की नैनो मशीनें और चिप लगी थीं, जिस से उन की क्षमता में असीमित वृद्धि हो गई थी.

मीटिंग में कुछ परेशानी वाली बातें भी हुईं. प्रदीप को जो रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार पावर स्टेशन में जो गड़बड़ी हुई थी, वह किसी दुश्मन देश द्वारा रोबोट में वायरस भेज कर खराबी की गई थी. इसलिए काम करने वाले रोबोट ने ही गड़बड़ी कर दी थी. प्रदीप के इस खुलासे से कौन्फ्रैंस रूम में सन्नाटा पसर गया.

लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वायरस की वजह से अपने ही रोबोट ने ऐसा किया है. क्योंकि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था. फिर रोबोट एंटी वायरस से सुसज्जित था. बहरहाल, इस बात को गोपनीय रखने की हिदायत के साथ मीटिंग खत्म हुई.

थके होने के बावजूद उस दिन प्रदीप को काफी व्यस्त रहना पड़ा. पावर स्टेशन की मरम्मत के लिए रोबोट क्रू को नए सिरे से तैयार करना पड़ा. क्वांटम कंप्यूटर के जरिए बनाए सभी प्रायोगिक रोबोट्स निष्क्रिय कर दिए गए. इस के साथ ही रोबोट्स की गड़बड़ी भी ठीक कर दी गई थी. सारा काम हो गया तो प्रदीप घर लौटने की तैयारी करने लगा.

वह कार में बैठा और घर आ गया. 2 दिन से लगातार काम की वजह से प्रदीप बेहद थक गया था. घर पहुंच कर वह सोफे में धंस गया, तभी सैवी एक बार फिर दीवार की स्क्रीन पर उभरा. प्रदीप ने उस की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, डाक्टर सेन ने एक खास संदेश भेजा है.’’

डा. सेन यानी रोबो डाक्टर. सैवी के संदेश देने के बाद डा. सेन स्क्रीन पर आए. वह इतने वास्तविक लग रहे थे कि लगता ही नहीं था कि वह केवल सौफ्टवेयर प्रोग्राम है. डा. सेन ने कहा, ‘‘प्रदीप, तुम्हें परेशान करने के लिए मुझे खेद है. लेकिन कुछ ऐसा है जो तुम्हें बताना जरूरी था. पिछले साल तुम्हारी जो दुर्घटना हुई थी, वह तो तुम्हें याद ही होगी. उस दुर्घटना में तुम लगभग मर ही चुके थे. तुम्हें शायद याद नहीं कि शिमला में तुम पहाडि़यों से हजारों फुट नीचे गिर गए थे. तुम्हें बाहरी ही नहीं, काफी अंदरूनी चोटें भी आई थीं. तब तुम्हारे कपड़ों ने तुम्हें बचा लिया था.

‘‘तुम्हारे कपड़ों ने ही एंबुलैंस को फोन किया. उसी के आधार पर तुम्हारी मैडिकल हिस्ट्री अपलोड की गई थी. तब एक रोबोट अस्पताल में माइक्रो सर्जरी द्वारा तुम्हारे शरीर के बहते खून को रोका गया था. तुम्हारे पेट, लीवर और आंतें इस तरह क्षतिग्रस्त हो गई थीं कि उन्हें रिपेयर करना मुश्किल था. सौभाग्य से आर्गेनिक तौर पर तुम्हारे इन  अंगों को फिर से तैयार किया गया था. ये सारे अंग एक टिश्यू फैक्ट्री में तैयार किए गए थे. मेरे रिकौर्ड के अनुसार, तुम्हारे एक हाथ को भी बदला गया था.

‘‘आज मैं तुम्हारे इन नए अंगों को एक बार फिर चैक करना चाहता हूं. अपने एमआरआई स्कैनर को हाथ से पकड़ो और इसे पेट की ओर ले जाओ. तुम बाथरूम में जा कर सेलफोन के आकार के इस स्कैनर को अंगों के आसपास घुमाओगे तो इन अंगों की थ्री डी इमेज स्क्रीन पर दिखने लगेगी. इन अंगों की थ्री डी इमेज देख कर हम पता लगाएंगे कि तुम्हारे शरीर में कितना सुधार हुआ है. आज सुबह तुम बाथरूम गए थे तो तुम्हारे पैनक्रियाज में बढ़ते कैंसर का पता चला है.’’

कैंसर का नाम सुन कर प्रदीप तनाव से भर उठा. लेकिन यह सोच कर राहत महसूस की कि कैंसर तो अब मामूली बीमारी रह गई है.

इस वक्त हम जिस युग में हैं, उस युग में ऐसे रोबोट्स विकसित हो जाएंगे, जो जांच से ले कर सारे औपरेशन तक करेंगे. डाक्टरों को कोई बड़ा औपरेशन करना होता है तो एक ही औपरेशन में थक जाते हैं. रोबोट्स इस समस्या का निदान करेंगे. हार्ट सर्जरी के लिए बाईपास औपरेशन में सीने के बीच एक फुट लंबी जगह खोलनी पड़ती है, जिस के लिए जनरल एनेस्थीसिया की जरूरत होती है, साथ ही संक्रमण का भी डर रहता है.

औपरेशन के बाद होश में आने से ले कर स्वास्थ्य में सुधार होने तक असहनीय दर्द और तमाम मुश्किलों का सामना करना होता है. द विंची रोबोटिक सिस्टम से ये पूरी प्रक्रिया काफी छोटी और बेहतर हो जाएगी.

सन 2100 तक हर तरह के औपरेशन रोबोट संभाल लेंगे. वे हर औपरेशन के लिए प्रोग्राम किए जाएंगे. भविष्य में उन्नत कंप्यूटर आएंगे, जिस से माइक्रो औपरेशन होंगे. माइक्रो का मतलब यह है कि वे दिमाग में घुस कर नर्व सिस्टम को भी ठीक कर सकेंगे और औपरेशन भी ऐसा, जिस में चीरफाड़ की गुंजाइश एकदम खत्म हो जाएगी. यकीनन तब तक सर्जिकल औपरेशन की तसवीर पूरी तरह बदल जाएगी.

छोटे से छेद से रोबोट शरीर के अंदर प्रवेश करेगा और काम को अंजाम दे देगा. दर्द भी कम और स्वस्थ भी जल्दी. अभी नर्व फाइबर और बारीक कोशिकाओं का औपरेशन नहीं हो सकता, लेकिन तब संभव होगा. शरीर में कैमरे के तौर पर अंदर डाले जाने वाले इंडोस्कोप शायद पतले धागे से भी ज्यादा पतले होंगे. यानी औपरेशन का काम माइक्रो मशीन कहे जाने वाले रोबोट्स के हाथों में होगा.

रात में प्रदीप को अचानक भांजे का बर्थडे याद आ गया. बर्थडे पार्टी में वह होलोग्राफी इमेज के रूप में मौजूद रहेगा, लेकिन अभी वह एकदम खाली था. समय कैसे कटे, इस के लिए उस ने सैवी को याद किया. सैवी तुरंत स्क्रीन पर हाजिर हुआ. प्रदीप ने कहा, ‘‘सैवी, इस सप्ताह मैं खाली हूं. क्या तुम मेरे लिए किसी साथी की व्यवस्था कर सकते हो?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, आप की प्राथमिकताएं मेरी मेमरी में प्रोग्राम्ड हैं. मैं अभी स्क्रीन पर इंटरनेट के जरिए कुछ ऐसी ही प्रोफाइल दिखाता हूं.’’

अगले ही पल स्क्रीन पर कुछ लड़कियों की तसवीरें उभरने लगीं, जो खुद किसी साथी का साथ चाहती थीं. उन में से शिल्पी नाम की लड़की की प्रोफाइल और फोटो प्रदीप को पसंद आई. शिल्पी प्रदीप को पसंद आ गई थी. सैवी ने प्रदीप की प्रोफाइल और वीडियो भेज कर शिल्पी से पूछा कि क्या वह उस के बौस के लिए उपलब्ध है?

शाम को प्रदीप का दोस्त आ गया तो उस ने उस के साथ डिनर और क्रिकेट के मैच का मजा लिया. मैच लिविंग रूम में होलोग्राफिक इमेज के तौर पर उपलब्ध था. लगता था कि मैदान से 50 मीटर दूर स्टेडियम में बैठ कर मैच देख रहे हैं. रात में दोस्त चला गया तो सैवी की तसवीर उभरी, उस ने बताया कि शिल्पी ने उस का आमंत्रण स्वीकार कर लिया है.

सप्ताह का अंत

सप्ताह के अंत में यानी शनिवार को प्रदीप के भांजे का बर्थडे था, जिस में उसे भांजे को एक रोबोटिक डौगी गिफ्ट देना था. प्रदीप घर की स्क्रीन पर ही माल के वर्चुअल टूर पर निकला. वह कई टौय स्टोर में गया. आखिर उसे एक रोबो पसंद आ गया. उस ने टेलीपैथी के जरिए और्डर दिया. यह खरीदारी नेट के जरिए की जा रही थी, लेकिन उसे लगा कि इस से अच्छा होगा वह दुकान पर जा कर देखे और खरीदे.

दुकान पर हर तरह के रोबोट थे. हकीकत यही होगी कि उस समय रोबोट ही सब से बड़ा बिजनैस होंगे. प्रदीप स्टोर पर पहुंचा तो रोबोट क्लर्क ने उस की आगवानी की, ‘‘सर, मैं आप की क्या मदद करूं?’’

प्रदीप को लेटेस्ट रोबोट डौग का मौडल पसंद आया. इतनी ही देर में उस ने कौंटेक्ट लेंस पर लगे नेट से उस के प्राइस की तुलना दूसरे स्टोर के दामों से कर ली. उसे लगा कि मौल में पसंद किया गया रोबोट सही दामों में मिल रहा है, इसलिए डील पक्की हो गई. क्रैडिट कार्ड से कीमत अदा कर के डिलीवरी के लिए वह बहन के घर का पता दे आया.

शिल्पी से मुलाकात

अब प्रदीप खाली था. शाम को उसे शिल्पी से मिलना था. रोमांच भी था और अनजानी खुशी भी. शिल्पी के साथ किस रेस्टोरेंट में जाना है, कहां बैठना है, क्या खाना है, सब कुछ नेट की मदद से तय हो चुका था. अचानक उसे लगा कि शिल्पी को आना है तो घर में कुछ बदलाव होना चाहिए.

चूंकि घर की हर चीज प्रोग्राम्ड थी, इसलिए बदलाव के लिए सैवी से बात कर के पता लगाना था. सैवी ने तत्काल ढेर सारे डिजाइन पेश कर दिए, जिस के अनुसार घर को नया लुक दिया जा सकता था. इस के बाद सैवी ने बताया कि कौन सी कंपनी इस काम के लिए कितना समय और पैसा लेगी. एक इंजीनियरिंग कंपनी ने दावा कि महज 2 घंटे में घर को नया लुक दे देगी. कंपनी के रोबोट सारे घर को इच्छानुसार बदल देंगे.

इस नए लुक की खासियत यह थी कि इस में आप जिस दिन जिस रंग में चाहेंगे, पूरे घर के अंदर का इंटीरियर उसी रंग में दिखेगा. लुक में हलकेफुलके बदलाव भी संभव होंगे. खैर, रोबोट्स ने आ कर घंटर भर में वह सब कर दिया, जो प्रदीप चाहता था.

शिल्पी पेशे से आर्टिस्ट थी. उस की वेब डिजाइनिंग की कंपनी थी. उस के यहां थ्री डी वेब डिजाइनिंग का काम होता था. शिल्पी ने हवा में अंगुलियां चला कर एक छोटे से यंत्र को औन किया, जिस से एनिमेशन हवा की पतली सतह पर तैरने लगे.

देखने में शिल्पी 26 साल की और प्रदीप 28 साल का लग रहा था, जबकि हकीकत में दोनों की असली उम्र 58 और 62 साल थी. दवाओं और जींस ने उन की उम्र को थाम सा लिया था. दरअसल उस युग में ऐसे जींस की खोज हो चुकी होगी, जो उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को एकदम धीमी कर देंगे.

इस के बाद शिल्पी और प्रदीप ने साथ रहने का फैसला कर के शादी कर ली, जबकि उस युग में जल्दी शादी करने का फैसला कोई नहीं करेगा. शिल्पी गर्भवती हुई तो दोनों ने तय किया कि उन का बच्चा किन खासियत और खूबियों वाला होना चाहिए.

दरअसल, इस के लिए सरकार ने कुछ नियम बना रखे थे. बच्चों की पैदाइश के लिए सरकार ने स्वीकृत जींस की एक सूची बना रखी थी. उसी के तहत पैदा होने वाले बच्चों की जींस में फेरबदल कराया जा सकता था. बच्चों के पैदा होने की दर कम होती जा रही थी, क्योंकि हर कोई एकाकी जीवन जीना चाहता था.

दो बीवियों का खूनी

राजस्थान के जिला जालौर के थाना चितलवाना का एक गांव है सेसावा. इसी गांव में दीपाराम प्रजापति अपनी 2 पत्नियों के साथ रहता था. उस की पहली शादी 10 साल पहले मालूदेवी से हुई थी. माली भोलीभाली मंदबुद्धि लड़की थी. इसलिए दीनदुनिया से बेखबर वह खुद में ही मस्त रहती थी. लेकिन वह घरगृहस्थी के सभी काम कर लेती थी. भले ही वह काम धीरेधीरे करती थी.

जिस समय दीपाराम की शादी माली देवी से हुई थी, वह काफी गरीब था. वह राजमिस्त्री था. किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के गुजरबसर कर रहा था. लेकिन माली से शादी के बाद उस के दिन फिर गए. वह मकान बनाने के ठेके लेने लगा. वहां वह खुद राजमिस्त्री था. अब उस के यहां कईकई राजमिस्त्री काम करने लगे.

कुछ ही दिनों में दीपाराम लाखों में खेलने लगा. पैसे आए तो उस के शौक भी बढ़ गए. उस ने अपना बढि़या मकान बनवा लिया. कार भी खरीद ली. इस बीच माली से उसे एक बेटा पैदा हुआ, जो इस समय 7 साल का है.

मंदबुद्धि माली जो कभी दीपाराम को सुघड़ और बहुत सुंदर लगती थी, पैसा आने के बाद वह बेकार लगने लगी. इस की एक वजह यह थी कि वह सिर्फ औरत थी. वह न सजती थी न संवरती थी.

दिन भर काम में लगी रहती और रात में कहने पर उस के पास सो जाती. इस तरह धीरेधीरे माली से उस का मन उचटने लगा. वह ऐसी पत्नी चाहता था, जो उसे प्यार करे. सजसंवर कर नखरे दिखाए, उस के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए वह दूसरी शादी के बारे में सोचने लगा. उसे लगा कि दूसरी शादी के बाद ही उस की जिंदगी की नीरसता दूर हो सकती है.

दूसरी शादी का विचार आते ही वह लड़की की खोज में लग गया, जो उस के लायक हो. इस के लिए उस ने अपनी जानपहचान वालों को भी सहेज दिया. उस के किसी जानपहचान वाले ने एक ऐसी औरत के बारे में बताया जिस की 3 शादियां हो चुकी थीं. इस के बावजूद वह मांबाप के घर रह रही थी.

उस औरत का नाम था दरिया देवी उर्फ दौली. वह राजस्थान के जिला बाड़मेर के गांव सिवाना के रहने वाले पीराराम प्रजापति की बेटी थी. दौली के बारे में दीपाराम को पता चला तो वह पीराराम से उस के एक परिचित के माध्यम से मिला. उस ने वहां बताया कि उस की शादी हुई थी, लेकिन पत्नी की मोैत हो गई है. इसलिए अब वह उस की बेटी दौली से नाताप्रथा के तहत विवाह करना चाहता है. इस के लिए उस ने पीराराम को मोटी रकम का लालच दिया.

पीराराम को मोटी रकम तो मिल ही रही थी, इस के अलावा जवान बेटी से मुक्ति भी. उस ने 5 लाख रुपए ले कर दौली का नाताप्रथा के तहत दीपाराम से विवाह कर दिया. इस तरह दीपाराम से चौथा विवाह कर के उस की पत्नी बन गई. लेकिन जब वह ससुराल पहुंची तो उस की पहली पत्नी माली और उस के बेटे को देख कर उस ने सिर पर आसमान उठा लिया. क्योंकि दीपाराम ने यह झूठ बोल कर उस से शादी की थी. उस की पहली पत्नी  मर चुकी है और उस का कोई बच्चा भी नहीं है.

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इस के बाद तो यह रोज का सिलसिला बन गया. दौली दीपाराम को झूठा कहती और उस की किसी बात पर यकीन नहीं करती. दीपाराम उसे समझाता कि माली मंदबुद्धि है. नौकरानी की तरह रहती है. उसे तो मौज से रहना चाहिए. लेकिन इस पर दौली राजी नहीं थी. उस का कहना था कि वह पति का बंटवारा नहीं चाहती. उस ने यह बात अपने घर वालों से बताई तो उन्होंने पंचायत बुला ली.

पंचों की खातिरदारी में दीपाराम को लाखों रुपए खर्च करने पड़े. इस के अलावा उसे दौली के नाम से उसे 10 लाख रुपए की एफडी करानी पड़ी. इस तरह दूसरी पत्नी के चक्कर में एक बार फिर उसे लाखों रुपए खर्च करने पड़े.

पंचायत में समझौता तो करा दिया लेकिन दौली शांत नहीं हुई. वह लगभग रोज ही उस से लड़ाईझगड़ा करती. दिनभर का थकामांदा दीपाराम घर लौटता तो चायपानी पिलाने के बजाए वह उसे जलीकटी सुनाती. दीपाराम पत्नी के इस व्यवहार से काफी दुखी था. वह दौली को बहुत समझाता, लेकिन वह तो लड़ने का कोई न कोई बहाना ढूंढती रहती थी.

बहाने की कोई कमी नहीं होती थी. बहाना मिलते ही वह आसमान सिर पर उठा लेती थी. 2 बच्चों, ढाई साल के कैलाश और 8 महीने की सरिता की मां बनने के बाद भी दौली के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.

इधर दीपाराम को गुजरात के पालनपुर में मकान बनाने का ठेका मिला था. वहां वह ससुराल में रहता था. दौली उस के साथ ही थी. वह वहां भी क्लेश करती थी. दौली के इस व्यवहार से तंग आ कर उस का मन काम से उचटने लगा और पहली पत्नी माली की ओर उस का झुकाव होने लगा. इस की वजह यह थी कि माली भोलीभाली थी. उस के लिए तो सभी एक जैसे थे. पति प्यार करे तो ठीक, न करे तो भी ठीक. वह अपनी मस्ती में मस्त रहती थी. बेटे और सास की सेवा में लगी रहती थी.

नवंबर, 2017 में दौली दीपाराम के साथ सेसावा आई तो सास से खूब झगड़ा किया. दीपाराम को दौली की यह हरकत इतनी बुरी लगी कि अब वह उसे पत्नी नहीं, मुसीबत लगने लगी. यही सोच कर अब वह इस मुसीबत रूपी पत्नी से पीछा छुड़ाने के बारे में सोचने लगा, क्योंकि उस ने उस का ही नहीं, पूरे परिवार का जीना मुहाल कर दिया था.

दीपाराम अब इस बात पर विचार करने लगा कि वह दौली से कैसे पीछा छुड़ाए. वह उसे इस तरह मारना चाहता था कि लोगों को लगे कि उस की हत्या नहीं की गई, बल्कि दुर्घटना में मरी है. ऐसा होने पर पुलिस भी उस का कुछ नहीं कर पाएगी. पालनपुर में वह ऐसा करना नहीं चाहता था, इसलिए गहने बनवाने की बात कह कर वह उसे गांव ले आया.

18 दिसंबर, 2017 को वह सेसावा आ गया. चलते समय उस ने बोतल में 2 लीटर पैट्रोल भरवा लिया था. बोतल में पैट्रोल देख कर दौली को संदेह हुआ तो उस ने यह बात मायके वालों को बता दी. लेकिन घर वालों ने उस का वहम बता कर बात खारिज कर दी. क्योंकि दीपाराम ने अपने ससुर को पहले ही फोन कर के बता दिया था कि वह दौली के लिए गहने बनवाने गांव जा रहा है.

19 दिसंबर, 2017 की सुबह दीपाराम ने मां से कहा कि वह दौली के लिए थोड़े गहने बनवाने जा रहा है. हम दोनों के आने तक वह बच्चों का खयाल रखना. यह बात मंदबुद्धि माली ने सुनी तो गहने के लालच में वह भी भाग कर आई और कार का पिछला दरवाजा खोल कर बैठते हुए बोली, ‘‘मुझे भी गहने चाहिए. मैं भी साथ चलूंगी.’’

दीपाराम उसे उतार भी नहीं सकता था, दूसरे इसलिए उस ने कार आगे बढ़ा दी. दौली दीपाराम की बगल वाली सीट पर आगे बैठी थी. उस ने कार बढ़ा दी, लेकिन वह इस सोच में डूब गया कि वह अपनी योजना को कैसे अंजाम दे? वह एक बार फिर योजना बनाने लगा.

इस बार उस के दिमाग में जो योजना आई, उस के अनुसार उस ने जिस तरफ दौली बैठ गई थी, उसी ओर गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर सड़क किनारे पड़े पत्थरों से कार भिड़ा दी.

संयोग से दौली को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. उस के मन में शंका तो थी, वह कार से उतर भागी. वह समझ गई कि दीपाराम उसे मारने के लिए लाया है. वह थोड़ी दूर गई थी कि रास्ते खड़ी औरतों ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, तुम इस तरह भाग क्यों रही हो.’’

‘‘मेरा पति मुझे मारना चाहता है. इसीलिए उस ने कार पत्थरों से टकरा दी है.’’

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दीपाराम ने भाग रही दौली को पकड़ा और गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘गलती से कार टकरा गई थी. लगता है समय ठीक नहीं है. चलो, घर लौट चलते हैं.’’

दौली दीपाराम के साथ जाने को तैयार नहीं थी लेकिन, औरतों ने कहा कि औरतें 2 हैं और पति अकेला, वह कुछ नहीं कर पाएगा.  फिर यह उस का वहम है, भला उसे क्यों मारेगा. वह पति के साथ घर जाए.

इस के बाद दौली और माली पीछे वाली सीट पर बैठ गईं तो दीपाराम गांव की ओर लौट पड़ा. दीपाराम सिर्फ दौली को मारना चाहता था, लेकिन अब वह दौली के साथ माली को भी ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. उस का सोचना था कि उस के पास पैसे हैं ही, वह तीसरी शादी कर लेगा.

गांव एक किलोमीटर के लगभग रह गया तो दीपाराम ने कार रोक दी. वह फुरती से नीचे उतरा और कार को लौक कर दिया, जिस से माली और दौली उतर न सकें. पैट्रोल की बोतल उस ने अपनी सीट के पास ही रखी थी. उतरते समय उस ने बोतल हाथ में ले ली थी. बाहर आ कर उस ने बोतल का पैट्रोल कार पर उड़ेल कर आग लगा दी. कार धूधू कर जलने लगी. कार के दरवाजे लौक थे, इसलिए दौली और माली बाहर नहीं आ सकीं.

उन की चीखें तक बाहर नहीं आ सकीं और दोनों उसी में घुटघुट कर मर गईं. थोड़ी देर बाद उधर से एक मोटरसाइकिल सवार निकला तो उसे देख कर दीपाराम चीखनेचिल्लाने लगा. उस ने गांव में खबर की तो गांव वाले वहां पहुंचे. तब तक कार जल चुकी थी.

गांव वालों ने किसी तरह पानी डाल कर आग बुझाई तो पता चला कि कार के साथ दीपाराम की दोनों पत्नियां जल कर मर चुकी थीं. उस का कहना था कि गाड़ी बंद होने पर वह नीचे उतरा तो दरवाजे खुद लौक हो गए और उस के बाद आग लगने से दोनों जल कर मर गईं.

गांव वालों ने घटना की सूचना थाना चितलवाना को दी तो थानाप्रभारी तेजू सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. 2 महिलाओं की जली हुई लाशें कार में पड़ी थीं. पति सिर पीटपीट कर रो रहा था. पुलिस ने उसे सांत्वना दी. थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना एसपी विकास शर्मा एवं एसएसपी बींजाराम मीणा एवं डीएसपी फाऊलाल को दी.

थोड़ी देर में पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर आ गए. निरीक्षण में पुलिस को यह घटना संदिग्ध लगी तो दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर उन के मायके वालों को सूचना दे कर थाने बुला लिया. दौली के मायके वालों का कहना था कि यह दुर्घटना नहीं, इस में दीपाराम की कोई साजिश है तो पुलिस ने दीपाराम से सख्ती से पूछताछ की.

आखिर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि दौली के लड़नेझगड़ने से ऊब कर उस ने ऐसा किया. वह पहली पत्नी को नहीं मारना चाहता था, मगर वह भी गहनों के चक्कर में साथ आ गई और मारी गई.

दीपाराम ने अपराध स्वीकार कर लिया तो 20 दिसंबर को मालूदेवी और दौली की हत्या का मुकदमा मृतका दौली के पिता पीराराम की ओर थाना चितलवाना में दीपाराम प्रजापत के खिलाफ दर्ज करा दिया गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अब उस के तीनों बच्चों की देखभाल उस की बूढ़ी मां कर रही है.

अरबपति भाइयों ने खेला खूनी खेल

27 अप्रैल, 2018 को उत्तरपश्चिम दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में घटी एक घटना ने 6 साल पहले हुए बड़े बिजनैसमैन पोंटी चड्ढा और उन के भाई हरदीप हत्याकांड की याद ताजा कर दी. मौडल टाउन वाली घटना में जिन 2 सिख भाइयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वे भी अरबों रुपए की संपत्ति वाले बिजनैसमैन थे.

शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा भले ही अरबों रुपए की संपत्ति के मालिक थे, लेकिन प्रौपर्टी विवाद को ले कर दोनों भाइयों के बीच रंजिश की जड़ें भी बहुत गहरी हो चली थीं. जिस के चलते सन 2012 में दिल्ली के छतरपुर इलाके में उन के ही फार्महाउस में गोली मार कर दोनों भाइयों की हत्या कर दी गई थी, जिस का केस अदालत में विचाराधीन है.

हरनाम सिंह ‘तूफान’ मूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे, जो देश के विभाजन के बाद दिल्ली के मौडल टाउन पार्ट-2 में आ कर बस गए थे. उन्होंने धीरेधीरे यहीं पर अपना व्यवसाय जमाया. उन के 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. उन का खुशहाल परिवार था.

हरनाम सिंह ‘तूफान’ एक दबंग छवि वाले इंसान थे. वह लोगों के छोटेमोटे आपसी विवादों को निपटाते थे. जिस से उन के पास विवादों का फैसला कराने के लिए दूरदूर से लोग आते थे. अपनी मेहनत के बूते हरनाम सिंह ने अरबों रुपए की संपत्ति बनाई. अपने पीछे वह तीनों बेटों के लिए अरबों रुपए की संपत्ति छोड़ गए थे.

पिता की मौत के बाद भाइयों में प्रौपर्टी का बंटवारा हो गया था. बड़ा भाई सतनाम मौडल टाउन के एफ ब्लौक में रहते थे तो दोनों छोटे भाई जसपाल अनेजा और गुरजीत सिंह मौडल टाउन पार्ट-2 में ही डी-13/19 में अपने परिवारों के साथ रहते थे.

जसपाल अनेजा इस कोठी के ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और छोटे भाई गुरजीत सिंह पहली मंजिल पर. गुरजीत सिंह का मौडल टाउन के केडीएफ चौक पर ग्रेट वाल रेस्ट्रोबार नाम का एक नामी रेस्तरां था और जसपाल अनेजा का फाइनैंस का कारोबार. दोनों भाइयों की आमदनी भी अच्छी थी लेकिन उन के बीच आपस में कड़वाहट भी कम नहीं थी.

दोनों ही एकदूसरे को नीचा दिखाने और खुद को रसूखदार और दमदार दिखाने की होड़ में लगे रहते थे. जसपाल अनेजा के पास औडी के अलावा 2 अन्य लग्जरी कारें थीं, जबकि छोटे भाई गुरजीत सिंह के पास फोर्ड एंडेवर, फौर्च्युनर आदि कारें थीं. गुरजीत सिंह अपने साथ 2 शस्त्रधारी अंगरक्षक भी रखता था.

कोठी के सामने दोनों के लिए पार्किंग की जगह निर्धारित थी. इस के बावजूद उन के बीच आए दिन कार पार्किंग को ले कर झगड़ा होता रहता था. इस के अलावा प्रौपर्टी को ले कर भी उन के बीच झगड़ा चल रहा था, जिस की वजह से आए दिन दोनों भाइयों के थाना मौडल टाउन में चक्कर लगते रहते थे.

दोनों भाई थाने में एकदूसरे के खिलाफ आधा दरजन से ज्यादा केस दर्ज करा चुके थे. इस के अलावा मारपीट, जान से मारने की कोशिश करने, छेड़छाड़ आदि के भी उन्होंने 9 केस दर्ज कराए थे. दोनों ओर की महिलाओं ने भी अपने जेठ और देवर के खिलाफ छेड़छाड़ के मामले दर्ज कराए थे.

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मामला बड़े कारोबारियों के बीच का था, इसलिए पुलिस भी दोनों को समझाबुझा कर मामले को शांत करा देती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि दोनों ही छोटीछोटी बातों पर लड़ने के लिए तैयार रहते थे. हाल ही में जसपाल के बेटे कुंवर अनेजा पर गुरजीत ने कार से कुचल कर मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था.

आए दिन दोनों की शिकायत से पुलिस भी परेशान हो चुकी थी. पुलिस ने उन्हें अपनी कोठी के बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे लगवाने का सुझाव दिया था, जिस से आरोपों की सच्चाई का पता लग सके. तब दोनों भाइयों ने कोठी के हर कौर्नर को कवर करने के लिए 12 सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए थे. कोठी के एक गेट पर 7 कैमरे लगे थे तो दूसरे पर 5. इस के बावजूद भी उन का झगड़ा बंद नहीं हुआ.

27 अप्रैल, 2018 को आधी रात के करीब उन के बीच शुरू हुआ झगड़ा इस मुकाम पर जा कर खत्म हुआ, जब 3 लोगों की मौत हो गई.

दरअसल, हुआ यूं कि 27 अप्रैल की रात करीब साढ़े 12 बजे जसपाल अनेजा (52) की औडी कार कोठी के दरवाजे पर खड़ी थी. वह अपने दोस्त राजीव को छोड़ने जा रहा था. उसी वक्त गुरजीत (45) अपनी फोर्ड एंडेवर गाड़ी ले कर गेट पर पहुंचा. गुरजीत ने सख्त लहजे में जसपाल से गाड़ी हटाने को कहा.

इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. उस समय गुरजीत के दोनों अंगरक्षक विक्की और पवन भी उस के साथ थे. शोर सुन कर जसपाल की पत्नी प्रभजोत कौर और गुरजीत का बेटा गुरनूर भी कोठी से बाहर निकल आए. दोनों के बीच मारपीट शुरू हो गई.

लाठीडंडों के अलावा दोनों ओर से बोतलें भी चलीं. इसी दौरान जसपाल ने कृपाण से गुरजीत के गले पर वार कर दिया, जिस से वह वहीं लहूलुहान हो कर गिर गया. इतना ही नहीं, उस ने गुरजीत के बेटे गुरनूर के सीने व गले के पास भी कृपाण से वार किए.

उसी दौरान गुरजीत के अंगरक्षक विक्की ने पिस्टल निकाल कर जसपाल व उस की पत्नी प्रभजोत पर फायरिंग की. प्रभजोत की आंख के पास से होती हुई गोली सिर में जा घुसी, जिस से वह वहीं ढेर हो गई. गोली लगने के बाद भी जसपाल जान बचाने के लिए पड़ोसी के मकान में घुस गया और झूले पर जा कर बैठ गया. इस के बाद गुरजीत के दोनों अंगरक्षक वहां से भाग गए.

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करीब 17 मिनट तक चले इस खूनी खेल का नजारा सीसीटीवी कैमरों में भी कैद हो गया. सूचना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने सभी घायलों को अस्पताल पहुंचाया, जहां पर दोनों भाइयों जसपाल अनेजा और गुरजीत सिंह के अलावा जसपाल की पत्नी प्रभजोत कौर को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. डीसीपी असलम खान ने भी मौके का दौरा कर थाना पुलिस को आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.

पुलिस ने गुरजीत के दोनों अंगरक्षकों विक्की और पवन को गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर बुराड़ी में स्थित उन के कमरे से उन की लाइसेंसी पिस्टल भी बरामद कर ली है. उन से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें भी जेल भेज दिया.

कामुक स्त्री का बेबस पति

Crime News in Hindi: सन 2011 में निर्मला जब 30 वर्षीय संजय रजक की पत्नी बन कर घर आई थी तो वह खुशी से फूला नहीं समाया था. क्योंकि उस की पत्नी बला की खूबसूरत थी. पेशे से मजदूर संजय के सपने बड़े नहीं थे. वह तो बस एक सुकूनभरी जिंदगी जीना चाहता था, जिस में पत्नी हो, बच्चे हों और छोटे से घर में हमेशा खुशियां बनी रहें. संजय भले ही कम पढ़ालिखा था लेकिन था मेहनती. ज्यादा पैसे कमाने के लिए उस ने एक औफिस और एक स्कूल में माली का काम भी ले लिया था. आम नौजवानों की तरह सुहागरात को ले कर संजय के मन में भी रोमांच और बहुत उत्सुकताओं के साथ थोड़ी सी घबराहट भी थी. पहली रात को यादगार बनाने की अपनी हसरत को पूरा करने के लिए उस ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पहले कमरा सजाया फिर इत्र से महकाया और पत्नी निर्मला के लिए अपनी हैसियत के मुताबिक तोहफा भी लिया.

दोस्तों के मुंह से उस ने सुन रखा था कि सुहागरात के दिन जिस पति ने पत्नी को जीत लिया, वह जिंदगी भर उस की मुरीद रहती है. इस जीत लिया का मतलब संजय खूब समझता था कि सिर्फ शारीरिक तौर पर ही पत्नी को हासिल या संतुष्ट कर देना नहीं होता, बल्कि आने वाली जिंदगी को ले कर बहुत से सपने भी साथ बुनने पड़ते हैं और पत्नी की इच्छाएं भी समझनी पड़ती हैं. उस ने अब तक फिल्मों में सुहागरात देखी थी और कुछ शादीशुदा दोस्तों से उन के तजुरबे जाने थे.

इस रात को हसीन बनाने के मकसद से जब वह कमरे में पलंग पर बैठी निर्मला के पास पहुंचा तो उस की खूबसूरती देख कर दंग रह गया. लाल सुर्ख जोड़े में निर्मला वाकई गजब ढा रही थी. अपनी किस्मत पर उसे गर्व हो रहा था.

निर्मला के नजदीक बैठ कर उस ने बातचीत शुरू की और जैसे ही उसे छुआ तो निर्मला को मानो करंट सा लग गया. उस ने पहल करते हुए पति को अपनी बांहों में ले कर उसे ताबड़तोड़ तरीके से प्यार करना शुरू कर दिया.

निर्मला पति से बहुत जल्दी खुल गई थी. लड़कियां पहली रात खूब शरमाती हैं, तरहतरह के नखरे करती हैं, जैसी तमाम धारणाएं संजय के दिलोदिमाग से हट गईं और वह भी पत्नी की तपस भरी पहल में पिघल कर उस के शरीर में डूब गया.

थोड़ी देर बाद जब तूफान थमा तो संजय के चेहरे पर संतुष्टि थी लेकिन निर्मला का दिल नहीं भरा था. चूंकि निर्मला की झिझक दूर हो चुकी थी, लिहाजा उस ने दोबारा संजय को उकसाया तो वह भी अपने आप को रोक नहीं पाया. पहली ही रात एकदो बार नहीं बल्कि कई बार दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनेऔर तब तक बनते रहे जब तक संजय निढाल हो कर बिस्तर पर लुढ़क नहीं गया.

फिर तो हर रात यही होने लगा. संजय जैसे ही काम से लौट कर खापी कर बिस्तर पर पहुंचता तो निर्मला उसे अपनी तरफ घसीट कर तरहतरह से प्यार करती थी. ऐसा प्यार कि संजय निहाल हो उठता था. पत्नी खूबसूरत होने के साथसाथ सैक्सी भी हो तो जिंदगी वाकई खुशगवार हो उठती है. इस मामले में संजय खुद को लकी समझने लगा था.

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कुछ दिनों बाद ही जब निर्मला दिन में भी और सुबहसुबह भी सैक्स चाहने लगी तो संजय को अजीब लगा. अजीब इसलिए कि वह चाहे कितना भी सैक्स कर लेता, लेकिन निर्मला का जी नहीं भरता था. शादी के बाद आमतौर पर पति नईनवेली पत्नी के आगेपीछे मंडराते हैं और मनचाहे सैक्स के बाबत पत्नियों के नाजनखरे उठाते हैं. लेकिन यहां तसवीर उलट थी. संजय को पत्नी से कुछ कहना ही नहीं पड़ता था बल्कि जो लगातार करना पड़ रहा था, उस से उसे खीझ होने लगी थी.

खीझती तो निर्मला भी थी पर उस वक्त जब संजय उस की इच्छा या मांग पूरी करने में आनाकानी करता था या फिर बहाना बनाने की कोशिश करता था. ऐसी स्थिति में वह कभीकभार पति को ताने भी मारने लगी थी.

संजय को सैक्स से कोई परहेज नहीं था लेकिन वक्तबेवक्त पत्नी की सैक्स इच्छा उस की समझ के बाहर थी. फिर भी जितना उस से बन पड़ता था, वह पत्नी को खुश रखने की कोशिश करता था. उस का सोचना था कि वक्त रहते सब ठीक हो जाएगा.

पर उस का यह खयाल गलत साबित हुआ. शादी के बाद जब निर्मला गर्भवती हुई तो संजय को दोहरी खुशी हुई. पहली खुशी उस ने दोस्तों और रिश्तेदारों से साझा भी की कि वह भी बाप बनने वाला है लेकिन दूसरी उस ने अपने मन में ही रखी कि अब एकाध साल निर्मला मनमानी नहीं कर पाएगी. क्योंकि लेडी डाक्टर ने चैकअप के वक्त सैक्स को ले कर कुछ हिदायतें दी थीं, जिन में यह बात भी शामिल थी कि कोई बंदिश तो नहीं पर इस दौरान सैक्स से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए.

डाक्टर के समझाने का निर्मला पर कोई असर नहीं पड़ा था. मन मार कर और ऐहतियात बरतते हुए संजय को निर्मला की इच्छा पूरी करनी पड़ती थी. अब वह यह उम्मीद लगाने लगा था कि शायद बच्चा हो जाने के बाद निर्मला में कुछ सुधार आ जाए.

वक्त रहते निर्मला ने सुंदर बेटे को जन्म दिया तो अपनी इस नई जिम्मेदारी के प्रति संजय गंभीर हो चला था कि अब खर्चे बढ़ेंगे, कल को बेटा स्कूल भी जाएगा इसलिए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने और बचाने की कोशिश की जाए. उस ने बेटे का नाम समीर रखा.

मां बनने के बाद भी निर्मला में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि उस की फरमाइश पहले से और ज्यादा बढ़ गई थी. इधर संजय में पहले सी ताकत और जोश नहीं रहा था, इसलिए वह कभीकभार साफ मना कर देता था. इस पर निर्मला उसे मारनेनोचने लगती थी और पागलों जैसी हरकतें करने लगती थी.

संजय को इतना तो समझ आ रहा था कि निर्मला को इतनी तीव्र इच्छा कोई स्वाभाविक बात नहीं बल्कि एक असामान्यता या कोई बीमारी है पर महमंद जैसे छोटे से गांव में जहां कोई फिजिशियन भी नहीं था, वहां किसी मनोचिकित्सक के होने की कोई संभावना तक नहीं थी, जिस से संजय पत्नी की इस अजीब सी बीमारी का इलाज करा पाता.

पति काफी कुछ बरदाश्त कर लेता है पर पत्नी शादी के 4 साल बाद उस की मर्दानगी को ले कर ताने मारे तो उस का सब्र जवाब दे जाता है. यही संजय के साथ हो रहा था जो बेटे समीर का मुंह देख कर बेइज्जती के कड़वे घूंट पी जाता था. अब उस की हर मुमकिन कोशिश निर्मला से दूर रहने की होती थी, पर यह नामुमकिन काम था.

एक दिन निर्मला ने फिर से जिद की तो उस ने मन मार कर साफ कह दिया कि उस में अब इतनी ताकत नहीं है कि दिनरात यही सब करता रहे. इस बार निर्मला ने उस से नोचने या कोई पागलपन जाहिर करने के बजाय उसे सैक्स पावर बढ़ाने की दवाएं लेने की सलाह दी तो वह चौंक उठा.

निर्मला की सलाह पर वह कोई प्रतिक्रिया दे पाता, इस के पहले ही उस ने पागलों जैसी जिद पकड़ ली कि मर्दानगी और ताकत बढ़ाने वाली दवा खाओ, इस में हर्ज क्या है. हर बार की तरह इस बार भी संजय को पत्नी की जिद के आगे हथियार डालने पड़े और वह झेंपता, सकुचाता शहर से सैक्स पावर बढ़ाने वाली दवा ला कर खाने लगा.

इस उपाय से कुछ दिन ही ठीकठाक गुजरे यानी निर्मला संतुष्ट रही, लेकिन कुछ दिन बाद फिर ढीले पड़ते संजय के साथ वह पहले की तरह व्यवहार करने लगी. जिस से संजय को घर नर्क और जिंदगी बेकार लगने लगी थी. अपनी अजीबोगरीब परेशानी वह किसी से साझा भी नहीं कर सकता था. क्योंकि बात शर्म वाली होने के साथसाथ इज्जत का कचरा कराने वाली भी थी.

सैक्स के साथसाथ अब जिंदगी की गाड़ी भी हिचकोले खाते चलने लगी थी. निर्मला अपनी बीमारी के हाथों मजबूर थी, इसलिए उस ने मोहल्ले के कम उम्र के लड़कों से दोस्ती गांठनी शुरू कर दी थी. वह उन से शारीरिक संबंध बनाने लगी थी. यह भनक जब संजय को लगी तो वह तिलमिला उठा, लेकिन खामोश रहा. क्योंकि बिना सबूत पत्नी पर इलजाम लगाना कोई तुक वाली बात नहीं थी.

एक दिन निर्मला ने बड़े प्यार से संजय से कहा कि वह उस की भी नौकरी कहीं लगवा दे, जिस से घर की आमदनी बढ़े. इस पेशकश को संजय ने यह सोचते हुए मान लिया कि निर्मला काम करेगी तो व्यस्त रहेगी. इस से संभव है उस की आदतों में सुधर आए. यह सोचते हुए उस ने निर्मला की नौकरी उसी स्कूल में लगवा दी, जहां वह माली का काम करता था.

स्कूल में काम करने की निर्मला की असली मंशा भी जल्द उजागर हो गई. उस ने वहां के नौजवान चपरासियों से ले कर बस कंडक्टर और ड्राइवरों तक से शारीरिक संबंध बना लिए. ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं. इस से संजय की ही बदनामी हो रही थी, पर वह बेबस था.

एक दिन तो उस वक्त हद हो गई जब उस ने अपने ही घर में निर्मला को एक लड़के के साथ रंगरेलियां मनाते हुए देख लिया. इस पर दोनों में खूब झगड़ा हुआ और निर्मला ने उलटे थाने में जा कर पति के खिलाफ मारपीट करने की शिकायत लिख कर दे दी. इस पर पुलिस वालों ने दोनों को समझाबुझा कर वापस भेज दिया. गुस्साई निर्मला मायके चली गई.

डेढ़ साल मायके में रह कर वह वापस आई तो बिलकुल नहीं बदली थी. संजय शायद उसे वापस नहीं लाता, पर बेटे के मोह ने उसे जकड़ रखा था. वापस आ कर निर्मला फिर से किसी न किसी को घर बुला कर सैक्स की भूख शांत करने लगी.

टोकने पर अब वह पूरी बेशरमी से संजय से कहने लगी थी कि जब तुम मेरी भूख नहीं मिटा सकते तो मेरे लिए लड़कों का इंतजाम करो और नहीं कर सकते तो आंखकान बंद किए रहो.

16 फरवरी, 2018 की शाम जब संजय सब्जी ले कर घर वापस आया तो यह देख शर्म से पानीपानी हो उठा कि निर्मला एक कम उम्र बच्चे के साथ सैक्स कर रही थी. गुस्साए संजय ने उसे डांटा तो वह पूरी बेशरमी से बोली कि जब तुम से कुछ नहीं होता तो चुप रहो, मेरा जब जहां जिस से मन करेगा, करूंगी.

इस जवाब पर संजय की हालत सहज समझी जा सकती थी, जो रोजरोज पत्नी की बेजा हरकतों के चलते तिलतिल कर मर रहा था और अब तो बदनामी भी होने लगी थी. किसी भी पति के लिए यह डूब मरने वाली बात थी.

इसी रात संजय जब सोने के लिए बिस्तर पर गया तो निर्मला उस के पास आ कर उसे सैक्स के लिए उकसाने लगी. मना करने का नतीजा और निर्मला के जहर बुझे जवाब संजय को मालूम थे, इसलिए उस ने यह सोचते हुए पूरी तरह आपा खो दिया कि इस मर्दखोर औरत की वासना तो कभी शांत होने वाली नहीं है. लिहाजा क्यों न इसे ही हमेशा के लिए शांत कर दिया जाए.

संजय ने कमरे में पड़ा लोहे का डंबल उठा कर निर्मला के सिर पर दे मारा. 2-3 प्रहार में ही उस की मौत हो गई. पत्नी की लाश के पास बैठ कर उस ने न जाने क्याक्या सोचा और फिर घबरा गया. फांसी का फंदा संजय को अपनी गरदन पर लटकता हुआ दिख रहा था.

कुछ देर और सोचने के बाद उस ने भाग जाने का फैसला ले लिया और रसोई में जा कर निर्मला की कब्र खोदनी शुरू कर दी. एक घंटे में 2 फीट गहरा गड्ढा खुद गया तो उस ने लाश उस में डाल कर ऊपर से ईंटें बिछा दीं.

घर के बाहर सूरज की रोशनी देख संजय को तब एक झटका और लगा जब उस ने गहरी नींद में सोए बेटे को देखा. अब उस का क्या होगा, इस खयाल से ही उस का दिल दहल गया कि इस मासूम का क्या कुसूर जो वह मांबाप के किए की सजा भुगते.

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यह सोचते ही उस ने थाने जा कर आत्मसमर्पण करने का फैसला ले लिया और वह बेटे को गोद में उठा कर नजदीकी तोरबा थाने की तरफ चल पड़ा. अब तक निर्मला की हत्या की खबर गांव वालों को भी लग चुकी थी, इसलिए कई लोग उस के पीछेपीछे थाने की तरफ चल दिए.

हालांकि उस के किए की खबर पहले से ही थाने पहुंच चुकी थी. हुआ यूं था कि स्कूल के एक शिक्षक आकाश उपाध्याय ने संजय को फोन कर के निर्मला को काम पर जल्द भेजने के लिए कहा था.

संजय ने बेहद सर्द आवाज में आकाश उपाध्याय को बता दिया था कि उस ने निर्मला की हत्या कर दी है और वह आत्मसमर्पण करने थाने जा रहा है. इस पर आकश ने थानाप्रभारी परिवेश तिवारी को यह खबर दे दी थी. पुलिस टीम अभी संजय को गिरफ्तार करने जा ही रही थी कि संजय थाने जा पहुंचा. बेटा समीर उस की गोद में था.

पुलिस पूछताछ में संजय की कहानी सामने आई तो उसे बहुत ज्यादा गलत न मानने वालों की भी कमी नहीं थी, पर गुनाह तो उस ने किया था, जिस की सजा मिलना भी तय था.

पुलिस टीम के साथ घर आ कर उस ने निर्मला की लाश और हत्या में प्रयुक्त डंबल बरामद करवा दिया और फिर खामोशी से हवालात में समीर को अपने सीने से चिपका कर बैठ गया. जिस ने भी सुना, वह अवाक  रह गया कि ऐसा भी होता है.

जब निर्मला के मांबाप समीर को ले जाने के लिए आए तो उस ने साफ इनकार कर दिया. उस का कहना था कि निर्मला के मांबाप को सब कुछ मालूम था, इस के बाद भी वे बेटी की तरफदारी करते थे. लिहाजा अदालत के आदेश पर पुलिस ने समीर को बालगृह भेज दिया.

संजय और क्या करता इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं था. वह पत्नी को छोड़ता तो भी बदनामी होती और निर्मला अपनी बीमारी छिपाए रखने के लिए झूठी रिपोर्ट पुलिस में लिखाती रहती.

तलाक के लिए अदालत जाता तो भी परेशान रहता, क्योंकि इस बीमारी को अदालत में साबित कर पाना आसान काम नहीं था. वजह जिन के साथ निर्मला ने संबंध बनाए थे, वे तो गवाही देने अदालत आते नहीं. दूसरे हर हालत में उसे पत्नी को गुजारा भत्ता तो देना ही पड़ता. वह जहां भी रहती, वहीं किसी न किसी मर्द से संबंध बनाने से नहीं चूकती.

ऐसे परेशान पतियों की मदद कोई नहीं करता. हालांकि खुद संजय ने भी इस मुसीबत से छुटकारा पाने की कोई खास कोशिश नहीं की और इसी बेबसी ने उसे मजबूर कर दिया कि वह अपनी कामुक पत्नी की हत्या कर दे.

थाने में पुलिस वालों की बातचीत से उसे पता चला कि निर्मला वाकई एक ऐसी सैक्सी बीमारी निंफोमेनिया की मरीज थी, जिस में औरत को सैक्स संतुष्टि नहीं मिलती. यह बीमारी एक लाख महिलाओं में से किसी एक को होती है, जिस का इलाज मुमकिन है बशर्ते कोई विशेषज्ञ डाक्टर की देखरेख में हो.

जाहिर है, यह संजय के वश की बात नहीं थी और जो थी उसे उस ने अंजाम दे डाला. इस बाबत कोई शर्मिंदगी या पछतावा भी उसे नहीं था. उस की एकलौती चिंता समीर और उस का भविष्य है.

मौत बनी बीवी की बेवफाई : उत्तर प्रदेश का दिल दहला देने वाला कांड

Husband Wife Crime in Hindi : सरफराज उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)  के जनपद बुलंदशहर (Bulandshaher) के कस्बा सिकंदराबाद के मोहल्ला रिसालदारान के रहने वाले उस्मान का बेटा था. करीब 5 साल पहले उस का निकाह जिले के ही ककोड़ थाना क्षेत्र के गांव बीघेपुर की दरखशा के साथ हुआ था. शादी के बाद दरखशा के मायके वाले दिल्ली (Delhi) जा कर बस गए थे. पिछले 10 दिनों से दरखशा मायके में थी. 2 जनवरी को सरफराज उसे लेने गया था. अगले दिन वह उसे ले कर वापस आ रहा था, तभी कोई काम होने की बात कह कर सरफराज गाजियाबाद (Gaziabad) में रुक गया था. दरखशा वहां से अकेली ही घर आ गई थी.

दरखशा काफी खूबसूरत थी. उसे इस बात का गुमान भी था, इसलिए वह निकाह के बाद भी खूब बनसंवर कर रहती थी. खुश रहना उस की आदत में शुमार था, लेकिन 3 जनवरी, 2017 की शाम को उस के चेहरे पर उदासी और परेशानी झलक रही थी. इस की वजह था उस का शौहर सरफराज. न सिर्फ दरखशा, बल्कि उस के ससुर सहित घर के अन्य लोग भी परेशान थे. वजह यह थी कि सरफराज लापता हो गया था. परेशान ससुर ने दरखशा से पूछा, ‘‘बहू, घर से जाते वक्त उस ने कुछ कहा था तुम से?’’

‘‘उन्होंने कहा था कि एक घंटे बाद घर लौट आऊंगा, लेकिन पता नहीं कहां रह गए? मुझे पता होता कि वह लौट कर नहीं आएंगे तो मैं उन्हें जाने ही नहीं देती.’’ दरखशा ने उदास स्वर में जवाब दिया.

‘‘उसे तो कहीं कोई काम भी नहीं था, फिर अचानक ऐसा कौन सा काम निकल आया कि उसे रुकना पड़ गया?’’

‘‘मैं क्या बता सकती हूं. मैं तो खुद ही उन का बेसब्री से इंतजार कर रही हूं.’’

सरफराज अचानक कहां लापता हो गया, वह घर क्यों नहीं आया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. लेकिन सभी लोग दरखशा को शक की निगाहों से देख रहे थे. इस से वह और भी ज्यादा परेशान थी.

कई घंटे बीतने पर भी जब सरफराज नहीं आया तो सभी को चिंता होने लगी. सरफराज के गाजियाबाद में रुकने की बात घर वालों को दरखशा ने बताई थी. यह अलग बात थी कि कोई भी उस की बात पर भरोसा नहीं कर रहा था. इस की वजह यह थी कि सरफराज सीधासादा युवक था. उस ने घर वालों से कहा था कि वह दरखशा ले कर सीधे घर ही आएगा. गाजियाबाद में न तो उस की कोई रिश्तेदारी थी और न ही कोई काम ही हो सकता था.

दरखशा के रिश्ते भी उस से तल्खी भरे थे. तल्खी की वजह थी दरखशा के बहके कदम. उस के अपने मायके के गांव के ही एक युवक से प्रेमसंबंध थे और यह बात किसी से छिपी नहीं थी. इस बात को ले कर शौहरबीवी के बीच अकसर तकरार होती रहती थी. सरफराज के घर वालों ने अपने स्तर पर उस की खोजबीन की तो उन्हें कहीं से पता चला कि सरफराज को बीघेपुर गांव के सत्यवीर के साथ देखा गया था.

सत्यवीर ही वह युवक था, जिस के दरखशा से प्रेम संबंध थे. परेशानहाल सरफराज के घर वाले थाना ककोड़ पहुंचे और थानाप्रभारी वी.के. मिश्र से मिल कर उन्हें पूरी बात बताई. उन्होंने सरफराज की गुमशुदगी दर्ज करा कर अपना शक सत्यवीर और उस के साथियों पर जाहिर किया.

अगले दिन कुछ लोग सरफराज की गुमशुदगी को ले कर एसएसपी सोनिया सिंह से मिले तो उन्होंने इस मामले में काररवाई के निर्देश दिए. एसपी (सिटी) मान सिंह चौहान के निर्देशन में थानाप्रभारी वी.के. मिश्र इस मामले की जांच में जुट गए. पुलिस ने दरखशा से पूछताछ की तो वह शौहर के गायब होने को ले कर परेशान होने की बात कह कर सवालों के जवाब देने से बचती रही. इस से पुलिस का शक उस पर और भी बढ़ गया.

पुलिस ने सख्ती की तो दरखशा ने बताया कि सरफराज को सत्यवीर अपने 2 साथियों नितिन और रवि के साथ ले गया था. यह जान कर सभी को अनहोनी की आशंका सताने लगी. पुलिस सत्यवीर और उस के साथियों की तलाश में जुट गई.

अगले दिन यानी 5 जनवरी को पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि सत्यवीर अपने साथियों के साथ मारुति जेन कार नंबर डीएल2सीए 1537 से हसनपुर गांव की ओर आएगा.

पुलिस उस की सरगरमी से तलाश में जुटी थी. थानाप्रभारी वी.के. मिश्र ने सड़क पर नाका लगा कर अपने साथियों हैडकांस्टेबल कारेलाल, कांस्टेबल जनेश्वर दयाल, हेमंत, महिला कांस्टेबल मीनाक्षी और मुन्नी देवी के साथ चैकिंग शुरू कर दी. थोड़ी देर बाद पुलिस को बताए गए नंबर की कार आती दिखाई दी तो उन्होंने उसे रोक लिया. सूचना सटीक थी. कार में वही तीनों युवक सवार थे, जिन की पुलिस को तलाश थी. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर उन तीनों से पूछताछ शुरू हुई तो पहले तो उन्होंने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन जल्दी ही उन्होंने बता दिया कि वे लोग सरफराज की हत्या कर के उस की लाश को ठिकाने लगा चुके हैं. पुलिस ने उन की निशानदेही पर बीघेपुर गांव के जंगल में एक गड्ढे से सरफराज की लाश बरामद कर ली.

हत्या की खबर से गांव में सनसनी फैल गई. शव मिलने की सूचना पर एसडीएम कन्हई सिंह और सीओ यशवीर सिंह भी आ पहुंचे थे. पुलिस ने पंचनामा तैयार कर मृतक का शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और उस के घर वालों की तहरीर के आधार पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. सत्यवीर और उस के दोस्तों से हुई पूछताछ के बाद दरखशा को भी गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि इस साजिश में वह खुद भी शामिल थी.

पुलिस ने सभी से विस्तार से पूछताछ की तो सत्यवीर और दरखशा ने पुलिस को सरफराज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह अवैध संबंधों के फेर में पत्नी द्वारा प्रेमी के साथ षडयंत्र कर के अपने शौहर को रास्ते से हटाने की कहानी थी.

खूबसूरत दरखशा को जो भी युवक देखता, आहें भर कर रह जाता था. यह बात अलग थी कि पारिवारिक बंदिशों के चलते वह अपने अरमानों की बगिया में किसी युवक को स्थान नहीं दे सकी थी.

लेकिन आखिर ऐसा कब तक चलता. जवानी की दहलीज पर खड़ी दरखशा की जिंदगी में सत्यवीर ने प्रवेश किया. दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे. आतेजाते सत्यवीर अकसर उसे देखता रहता था.

दरखशा कोई नादान नहीं थी. उस की निगाहों की भाषा वह बखूबी समझती थी. वह कब उस के दिल में बस गया, इस का उसे पता तक नहीं चला. चाहत दोनों ओर थी. फलस्वरूप जल्दी ही दोनों चोरीछिपे मिलने लगे. उन का प्यार परवान चढ़ पाता, इसी बीच घर वालों ने दरखशा का निकाह सरफराज से कर दिया. ससुराल आ कर दरखशा ने घरगृहस्थी में मन लगाना शुरू किया, लेकिन वह सत्यवीर को पूरी तरह भूल नहीं सकी.

वक्त अपनी गति से चलता रहा. विवाह के एक साल बाद दरखशा ने एक बेटे को जन्म दिया. सरफराज के आर्थिक हालात ज्यादा अच्छे नहीं थे. दरखशा ने अपने भावी शौहर को ले कर जो सपने संजोए थे, उन पर वह खरा नहीं उतरा था. वह उस की चाहतों का भी उस ढंग से खयाल नहीं रख पाता था, जैसा वह चाहती थी.

दरखशा का मायके आनाजाना लगा रहता था. सत्यवीर उसे जब भी देखता तो देखता ही रह जाता. सत्यवीर ने दोबारा डोरे डाले तो दरखशा ने इस बार भी अपने कदम पीछे नहीं हटाए. एक दिन उस ने दरखशा को रास्ते में रोक कर पूछा, ‘‘कैसी को दरखशा?’’

‘‘बस अच्छी हूं.’’ वह आह भर कर बोली.

‘‘कभीकभी किस्मत भी कैसा मजाक करती है, इंसान जो चाहता है, वह उसे नहीं मिलता.’’

उस का इशारा समझ कर दरखशा उस की नजरों से नजरें मिला कर बोली, ‘‘लेकिन इंसान को कोशिश भी नहीं छोड़नी चाहिए. कौन जाने किस्मत कब जाग जाए.’’

दरखशा का मनमाफिक जवाब सुन कर सत्यवीर बहुत खुश हुआ. उस का हौसला बढ़ गया. इस के बाद उन के बीच फोन पर बातें और छिपछिप कर मुलाकातें होने लगीं. एक दिन दोनों एकांत में मिले तो सत्यवीर ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘मैं तुम से बेइंतहा मोहब्बत करता हूं दरखशा और तुम्हें हमेशा के लिए अपनी बनाना चाहता था, लेकिन…’’

‘‘तुम क्या जानो, मैं ने भी तुम्हें कभी भुलाया नहीं है. तुम पहले शख्स थे, जिस के लिए मेरे दिल में चाहत पैदा हुई थी. सपनों में तुम्हें ही शौहर के रूप में देखती थी.’’

दरखशा की बातें सुन कर सत्यवीर ने बाहें फैलाईं तो वह कटी डाल की तरह उन में आ गिरी. यह सब गलत था, लेकिन दरखशा पतन की उस गर्त में कदम रख चुकी थी, जिस की दलदल में कदम पड़ने पर इंसान उस के अंदर तक धंसता चला जाता है. उन के बीच एक बार अवैध संबंधों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. अपने संबंधों को उन्होंने काफी छिपा कर रखा.

दिक्कत तब आई, जब सत्यवीर ने दरखशा की ससुराल भी जाना शुरू कर दिया. इस के बाद तो उन के संबंधों को चर्चा में आते देर नहीं लगी. उड़तेउड़ते यह बात सरफराज के कानों तक भी पहुंची, लेकिन उस ने कभी इस पर विश्वास नहीं किया. एक दिन जब वह सुधबुध खो कर बांहों में समाए हुए थे तो सरफराज अचानक घर आ गया. उस ने बीवी को गैरमर्द की बांहों में देखा तो आगबबूला हो उठा.

उस ने सत्यवीर को खरीखोटी सुनाई तो वह सिर झुकाए चुपचाप निकल गया. इस के बाद उस ने दरखशा को जम कर लताड़ा, ‘‘मैं आज तक यही समझता रहा कि तुम पाकसाफ औरत हो, लेकिन मुझे पता नहीं था कि तुम इतनी नापाक हो. अपने यार के साथ न जाने कब से गुलछर्रे उड़ा रही हो.’’

दरखशा की गलती थी, इसलिए उस ने खामोश रहना ही बेहतर समझा. इस घटना के बाद दरखशा वक्ती तौर पर बदल गई, लेकिन जल्दी ही उस ने फिर से पुराना ढर्रा अख्तियार कर लिया. दरअसल वे दोनों एकदूसरे की जिस्मानी जरूरत का जरिया बन चुके थे. सत्यवीर को ले कर घर में आए दिन झगड़ा होने लगा. यह झगड़ा बढ़ता तो सरफराज उस के साथ मारपीट भी कर देता.

दिसंबर, 2016 के दूसरे सप्ताह में दोनों के बीच जम कर झगड़ा हुआ. नाराज हो कर दरखशा अपने मायके चली गई. इस दौरान वह सत्यवीर के बराबर संपर्क में रही. सत्यवीर उस से मिलने दिल्ली भी गया. तब दरखशा ने मायूसी से कहा, ‘‘तुम जानते हो सत्यवीर, मैं क्या कुछ झेल रही हूं. यह पक्का है कि अब सरफराज मुझे कभी तुम से नहीं मिलने देगा. लेकिन मैं तुम से मिले बिना रह नहीं सकती. अब तुम्हारी खातिर उस के जुल्मों से मेरी जान भी चली जाए तो मुझे परवाह नहीं.’’

सत्यवीर ने उस के होंठों पर अपनी हथेली रख कर कहा, ‘‘कैसी मनहूस बातें करती हो तुम. जान ही जाएगी तो तुम्हारी नहीं, सरफराज की जाएगी.’’

‘‘मैं खुद भी कब से यही चाहती हूं. अपने प्यार के लिए इस दीवार को आज नहीं तो कल हमें गिराना ही होगा. तड़पभरी जिंदगी मैं अब और नहीं जी सकती.’’

बस, उसी दिन सत्यवीर ने सरफराज की हत्या करने का मन बना कर कहा, ‘‘फिक्र न करो, मैं जल्दी ही कुछ करूंगा.’’

इस के बाद सत्यवीर वापस चला आया. वह जानता था कि हत्या करना उस के अकेले के वश में नहीं है. उस ने दरखशा से अपने रिश्तों की बात बता कर कस्बा जारचा निवासी अपनी बुआ के बेटे रवि और ग्राम लखनावली निवासी दोस्त नितिन से इस मुद्दे पर बात की.

सत्यवीर शातिर था. वह जानता था कि ये लोग बिना लालच के साथ नहीं देंगे, लिहाजा उस ने उन के सामने लालच का पासा फेंकते हुए कहा, ‘‘तुम लोग साथ दोगे तो तुम लोगों को भी हमेशा दरखशा के साथ मौजमस्ती कराऊंगा.’’

‘‘अगर वह नहीं मानी तो?’’ रवि ने सवाल किया.

‘‘मैं ने उस के सामने शर्त रख दी थी और वह इस के लिए खुशीखुशी तैयार है.’’

इस के बाद वे दोनों भी उस का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद उन्होंने सरफराज की हत्या की योजना बना डाली. 2 जनवरी को सरफराज दरखशा को लेने ससुराल गया तो दरखशा ने यह बात सत्यवीर को फोन से बता दी.

अगले दिन सत्यवीर रवि और नितिन को ले कर कार से दिल्ली चला गया और दरखशा के बताए स्थान पर खड़ा हो गया. सरफराज और दरखशा वहां पहुंचे तो सत्यवीर ने बताया कि वे लोग दिल्ली किसी काम से आए थे, अब वापस जा रहे हैं.

योजना के मुताबिक दरखशा ने उन्हें भी साथ ले चलने को कहा. सरफराज उन के झांसे में आ गया. रास्ते में सभी ने चाय पी. दरखशा ने चकमा दे कर सरफराज की चाय में नशीली दवा मिला दी, जिस के बाद वह कार में ही सो गया. दरखशा को सिकंदराबाद उतार कर सत्यवीर सरफराज को अपने गांव के जंगल में ले गया, जहां तीनों ने मिल कर फावड़े से गला काट कर उस की हत्या कर दी.

बेहोशी के चलते वह विरोध भी नहीं कर सका. इस के बाद उन्होंने शव को एक गड्ढे में दबा दिया और अपनेअपने घर चले गए.

उधर दरखशा ने सरफराज के गाजियाबाद में रुकने की मनगढ़ंत कहानी सुना दी. लेकिन वह अपने ही जाल में उलझ गई. शौहरबीवी के रिश्ते विश्वास के होते हैं, जब कोई इस तरह से किसी को धोखा दे तो अंजाम कभी अच्छा नहीं होता. दरखशा ने भी शौहर को धोखा दे कर पतन की दलदल में कदम न रखे होते तो ऐसी नौबत कभी न आती.

पुलिस ने चारों आरोपियों के खिलाफ लिखापढ़ी कर के न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खाकी वरदी वाले डकैत

ट्रेडिंग व्यापारी अंकित अग्रहरि लखनऊ की ओमेक्स रेजीडेंसी स्थित अपने फ्लैट नंबर 104 में बैठे चाय पी रहे थे. उन के साथ उन के सहयोगी सचिन कटारे, अश्वनि पांडेय, कुलदीप यादव, अभिषेक वर्मा, जितेंद्र तोमर, अभिषेक सिंह व शुभम गुप्ता भी थे. चाय के साथसाथ इन लोगों के बीच अपने बिजनैस के संबंध में बातचीत हो रही थी.

दरवाजे पर दस्तक हुई तो अंकित ने पूछा कौन? इस पर अपार्टमेंट के चौकीदार योगेश ने कहा, ‘‘साहब मैं चौकीदार हूं.’’

अंकित ने यह सोच कर दरवाजा खोल दिया कि चौकीदार किसी काम से आया होगा. दरवाजा खुलते ही 7 लोग चौकीदार को पीछे धकेलते हुए धड़ाधड़ फ्लैट में घुस आए. इन में से 2 लोग पुलिस की वरदी में थे. फ्लैट के अंदर आते ही उन लोगों ने अंकित व उन के साथियों पर पिस्तौल तान कर गोली मारने की धमकी देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे यहां ब्लैकमनी रखी है.’’

अंकित अग्रहरि ने इनकार किया तो वे लोग धमकाते हुए मारपीट पर उतारू हो गए. फिर उन लोगों ने खुद ही कमरे के डबलबैड और दीवान से बिस्तर हटा कर नीचे डाल दिए और बैड बौक्स व दीवान में रखे रुपए निकाल कर साथ लाए थैले और बैग में भरने लगे. अंकित और उस के साथियों ने रोकने की कोशिश की तो उन्होंने सभी की लातघूसों से जम कर पिटाई कर दी. इस से घबरा कर सारे लोग डर कर चुपचाप खड़े हो गए.

अंकित और उस के साथी समझ गए थे कि पुलिस वरदी में आए लोग बदमाश हैं और लूटपाट के इरादे से चौकीदार को मोहरा बना कर फ्लैट में घुसे हैं. इस काररवाई के दौरान उन्होंने किसी को भी मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करने दिया.

वरदी वालों के साथ आया एक व्यक्ति, जिसे वे लोग मधुकर के नाम से बुला रहे थे,रुपए से भरा थैला व बैग ले कर फ्लैट से निकल गया. इस के बाद खुद को दरोगा बताने वाले आशीष ने अहिमामऊ चौकी प्रभारी प्रेमशंकर पांडेय को फ्लैट में पिस्टल व 4 कारतूस मिलने की जानकारी दे कर वहां आने को कहा. लेकिन चौकीप्रभारी ने आरोपियों को थाने ले जाने को कहा.

यह सुन कर अंकित और उन के साथियों की जान में जान आई. वे लोग समझ गए कि उन के यहां रेड के नाम पर पुलिस ने डकैती डाली है. दरोगा पवन और आशीष सभी को बाकी रकम, पिस्टल व 4 कारतूसों के साथ थाने ले आए.

बिजनैसमैन अंकित व उस के सहयोगियों को पुलिस द्वारा पकड़ कर ले जाने की जानकारी मिलते ही ओमेक्स अपार्टमेंट में हड़कंप सा मच गया. जितने मुंह उतनी बातें. लोग कह रहे थे,‘‘अंकित छुपा रूस्तम निकला. वह व्यापार की आड़ में हथियारों की तस्करी करता था. उस के फ्लैट पर कुछ लोग हथियार लेने आए थे. सूचना मिलने पर पुलिस ने रेड डाल कर ब्लैकमनी, हथियार और हथियार खरीदने आए लोगों को पकड़ लिया.’’

बाद में पता चला कि छापा मारने वाली पुलिस टीम में लखनऊ के थाना गोसाईगंज के सब-इंस्पेक्टर पवन मिश्रा, सबइंस्पेक्टर आशीष तिवारी, मुखबिर मधुकर मिश्रा, सिपाही प्रदीप भदौरिया, ड्राइवर आनंद यादव  के अलावा 2 अन्य लोग शामिल थे. ये लोग 2 गाडिय़ां ले कर आए थे.

बिजनैसमैन अंकित अग्रहरि मूलरूप से धनपतगंज,सुल्तानपुर का रहने वाला है. उस का कोयला और मौरंग का बिजनैस है. लखनऊ में वह अपने सहयोगी के पास रह कर कारोबार करता है. लखनऊ की ओमेक्स रेजीडेंसी में उस ने किराए का फ्लैट ले रखा था. घटना के समय उस के फ्लैट में 3.38 करोड़ रुपए रखे थे. अंकित को यह रकम बांदा में अपनी खदान पर पहुंचानी थी.

पुलिसकर्मियों ने इस मामले में डकैती के साथ-साथ गुडवर्क दिखाने की भी साजिश की. उन्होंने मुखबिर मधुकर मिश्रा को लूटे गए एक करोड़ 85 लाख रुपयों सहित पहले ही भगा दिया था. जबकि लूट के बाद बाकी बची रकम एक करोड़ 53 लाख के साथ कारोबारी अंकित व उस के साथियों को पुलिस वाले थाना गोसाईगंज ले गए. वहां पकड़े गए लोगों और कालेधन पर काररवाई को ले कर विचारविमर्श होता रहा.

लुटेरे पुलिसकर्मियों ने सोशल मीडिया पर फ्लैट से 1.53 करोड़ रुपए का काला धन मिलने और पिस्टल सहित कारोबारियों के पकड़े जाने का मैसेज वायरल कर वाहवाही लूटने की कोशिश की. दोनों दरोगा पवन व आशीष अपनी करतूत में सफल हो चुके थे, लेकिन उन का झूठ ज्यादा देर नहीं टिक सका. मैसेज वायरल होने से खाकी वरदी अपने ही जाल में फंस गई.

ऐसी खुली पोल….

सूचना पा कर सीओ मोहनलालगंज राजकुमार शुक्ला भी थाना गोसाईगंज पहुंच गए. उन की व थानाप्रभारी गोसाईगंज अजय प्रकाश त्रिपाठी की मौजूदगी में रकम गिनी गई. पूरी रकम 500 और 2000 के नोटों की शक्ल में थी. बड़ी रकम देख कर उन्होंने आयकर विभाग के अफसरों को सूचना दे दी.

आयकर अधिकारी थाने पहुंचे तो अंकित ने बताया कि उन के फ्लैट में 3.38 करोड़ रुपए रखे थे, यह रकम उन्हें बांदा में अपनी खदान पर पहुंचानी थी. अंकित ने बताया,‘‘पुलिस ने रेड के दौरान एक करोड़ 85 लाख रुपए निकाल लिए थे, जिन्हें ले कर उन के साथी पहले ही वहां से चले गए.’’

फ्लैट में मौजूद अंकित के सहयोगियों में से एक व्यक्ति कैबिनेट मंत्री का करीबी था. उस व्यक्ति को थाने लाने व रुपए बरामद होने की जानकारी मिलते ही मंत्री ने पुलिस अधिकारियों को फोन किया. करीब 2 घंटे से थाने में पूछताछ कर रही पुलिस मंत्री का फोन आते ही सकते में आ गई.

दूसरी ओर आयकर अफसरों ने तत्काल बरामद रकम कब्जे में ले ली और कारोबारियों से पूछताछ में जुट गए. कालेधन का कोई साक्ष्य न मिलने से पुलिस का खेल बिगड़ गया. कारोबारी अंकित द्वारा सच्चाई बताने से पुलिस वालों द्वारा अंकित के फ्लैट में घुस कर 1.85 करोड़ रुपए लूटने के मामले में पुलिस की गरदन फंस गई.

मंत्री ने एसएसपी कलानिधि नैथानी को फोन पर नाराजगी जताई. एसएसपी को पूरी घटना का पता चला तो उन्होंने एसपी (ग्रामीण) विक्रांतवीर और सीओ (मोहनलालगंज) राजकुमार शुक्ला को जांच के लिए मौके पर भेजा. जांच में आरोप सही पाए जाने के बाद पुलिसकर्मियों की साजिश की पोल खुल गई.

एसएसपी कलानिधि नैथानी के अनुसार,फ्लैट में करोड़ों रुपए बरामद होने की सूचना पर जब उन्हें घटना के समय एसआई पवन मिश्रा के वहां होने की बात पता चली तो वह चौंके. पवन मिश्रा लंबे समय से गोसाईगंज थाने से गैरहाजिर चल रहा था. उस ने अपनी आमद पुलिस लाइन में कराई थी. उस का वहां होना चौंकाने वाली बात थी. उन्हें तभी लग गया था कि कुछ गड़बड़ी है.

एसपी (ग्रामीण) विक्रांतवीर ने जांच के दौरान 9 मार्च की सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. सीसीटीवी की फुटेज ने सारे राज खोल दिए. आरोपियों ने 10 मिनट में ही 2 बैगों में 1.85 करोड़ रुपए भर लिए थे. मुखबिर मधुकर अपार्टमेंट के नीचे गाड़ी लिए खड़ा था. फुटेज में दरोगा पवन मिश्रा उस की गाड़ी में रुपए रखवाते दिखाई दे रहा था. रुपए ले कर मधुकर वहां से चला गया था.

इस बारे में जब दरोगा पवन मिश्रा से पूछा गया कि बैग बाहर भेजने के बाद सूचना क्यों दी, पहले क्यों नहीं? तो वह कोई जवाब नहीं दे सका. उस के चेहरे का रंग उड़ गया और वह बगलें झांकने लगा.

आरोपी सिपाही प्रदीप फ्लैट में सरकारी एके47 राइफल ले कर दाखिल हुआ था, जिस से वह अंदर मौजूद लोगों पर दबाव बना सके. पुलिस ने उस से ले कर सरकारी असलहा जब्त कर लिया. एसपी (देहात) विक्रांतवीर के अनुसार,सीसीटीवी फुटेज के आधार पर 2 अन्य आरोपियों की पहचान राधाकृष्ण उपाध्याय और यशराज तिवारी के रूप में हुई.

बंदूक के दम पर हुई यह वारदात वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी. अंकित अग्रहरि की तहरीर पर गोसाईगंज थाने में इसी थाने में तैनात एसआई पवन मिश्रा, एसआई आशीष तिवारी,मुखबिर मधुकर मिश्रा व 4 अन्य के खिलाफ बंधक बना कर डकैती व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया.

एसएसपी ने दोनों दरोगाओं को निलंबित कर पूछताछ की. इस के साथ ही पुलिस फ्लैट से रुपयों का बैग ले कर निकले मुखबिर मधुकर और उस के अज्ञात सहयोगियों की सरगर्मी से तलाश में जुट गई.

फ्लैट से मिले कुल 1.53 करोड़ रुपए बक्से में रखवा कर सील करने के बाद आयकर विभाग को सौंप दिए गए. सीओ के मुताबिक नोटों की गड्डियां बैड व दीवान में छिपा कर रखी गई थीं. इतनी बड़ी मात्रा में नकदी कहां से आई,इस की जांच रेवेन्यू व इनकम टैक्स अधिकारी कर रहे हैं.

लूटपाट की पुष्टि होने के बाद एसएसपी के आदेश पर गोसाईगंज पुलिस ने एसआई पवन मिश्रा, आशीष तिवारी, सिपाही प्रदीप भदौरिया व ड्राइवर आनंद यादव को गिरफ्तार कर लिया.

एसपी (ग्रामीण) के निर्देश पर पवन व आशीष के घर पर पुलिस टीम भेजी गई. दोनों के यहां से करीब 36 लाख रुपए बरामद हुए. हालांकि इस बारे में पुलिस कुछ बोलने को तैयार नहीं थी.

अलबत्ता एसएसपी ने प्रैसवार्ता में बताया,‘‘आनंद के पास से 40 हजार व प्रदीप के घर से 2 लाख रुपए के साथ पुलिस ने घटना में इस्तेमाल इनोवा और एक अन्य कार बरामद कर ली. आनंद प्रदीप का निजी चालक है. पुलिस द्वारा लूटे गए शेष रुपए कहां गए, पता अभी तक नहीं लग सका है.’’

पुलिस की जांचपड़ताल के दौरान यह बात सामने आई कि मुखबिर मधुकर मिश्रा ने दोनों दरोगाओं पवन व आशीष को बताया था कि अंकित अग्रहरि के फ्लैट में करोड़ों रुपए की ब्लैकमनी और असलहों की खेप रखी है. इसी को आधार बना कर दोनों दरोगा, सिपाही, मुखबिर और अन्य साथियों के साथ अंकित के फ्लैट पर पहुंचे थे.

मुखबिर मधुकर गोसाईगंज थाने गया था, जहां उस ने दोनों दरोगाओं के साथ मिल कर योजना बनाई थी. थाने में ही उन्होंने यह तय किया था कि कितना रुपया दिखाया जाएगा और कितना हड़पना है. थाने में बनी योजना के बावजूद थानाप्रभारी अजय त्रिपाठी सहित अन्य पुलिस वालों को इस योजना की भनक तक नहीं लगी थी.

बिजनैसमैन अंकित के फ्लैट से .32 बोर की पिस्टल व 4 कारतूस बरामद हुए थे. ये पिस्टल किस की है, इस की जांच की जा रही है. कहीं ये पिस्टल लूटने आए दरोगा की तो नहीं है, इस संबंध में भी पुलिस जांचपड़ताल कर रही है. पिस्टल व कारतूस सील कर के मालखाने में जमा करा दिए गए.

दरोगा पवन मिश्रा और आशीष तिवारी घूसखोरी के लिए थे बदनाम…………. 

दरोगा पवन मिश्रा व आशीष तिवारी के खिलाफ घूसखोरी की पहले भी कई शिकायतें थीं. कुछ महीने पहले सीओ मोहनलालगंज के कार्यालय से दोनों की बाकायदा लिखित शिकायत उच्चाधिकारियों से की गई थी. शिकायत में कहा गया था कि पवन जमीन संबंधी मामलों में सांठगांठ कर के घूसखोरी कर रहा है.

 अपने साथ दरोगा आशीष व अन्य पुलिसकर्मियों को भी साथ मिला रखा है. अगर इस शिकायत पर संबंधित अधिकारियों ने संज्ञान ले लिया होता तो आरोपित दरोगा डकैती के बारे में सोचते भी नहीं. पूरे प्रकरण में अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है.

कोयला कारोबारी के घर डकैती की घटना से चर्चा में आए मधुकर शुक्ला के खिलाफ वजीरगंज के अलावा ट्रांस गोमती, गाजीपुर आदि के थानों में पहले से ही एफआईआर दर्ज हैं. वहीं एएसपी (क्राइम) का गनर रह चुका लालपुरवा, खैरीघाट, बहराइच निवासी सिपाही प्रदीप झांसी परिक्षेत्र में मारपीट के एक मामले में जेल भी जा चुका है.

प्रदीप ट्रक चलवाता है. निलंबित दरोगा पवन और आशीष दोनों ही प्रेमनगर,झांसी के रहने वाले हैं. वहीं पकड़ा गया चालक आनंद यादव महिपाल खेड़ा,अर्जुनगंज का रहने वाला है. गिरफ्तार दरोगा पवन, आशीष और सिपाही प्रदीप व उस के चालक आनंद को पुलिस ने 10 मार्च को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. न्यायालय ने चारों आरोपियों को न्यायायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

राजधानी के चर्चित गोसाईगंज डकैती कांड में आरोपी मधुकर मिश्रा ने 11 मार्च को कोर्ट में सरेंडर कर दिया. पुलिस को सूचना मिली थी कि मधुकर 11 मार्च को कोर्ट में सरेंडर कर सकता है. पुलिस को सादे कपड़ों में लगाया गया था. इस के बावजूद आरोपी ने स्पैशल सीजेएम-6 के न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पुलिस ने डकैती की वारदात को अंजाम दे कर खाकी वरदी को दागदार कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सस्ते मोबाइल फोन की खातिर ली महंगी जान

उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के गौर थाना इलाके का केसरई गांव. वहां के एक बाशिंदे रमेश यादव ने 30 अक्तूबर, 2016 की सुबह के तकरीबन 11 बजे थानाध्यक्ष अरविंद प्रताप सिंह को यह सूचना दी कि उस का भाई राजेश कुमार यादव हंसवर गांव में सफाई मुलाजिम था. किसी ने आज सुबह ड्यूटी जाते समय हर्दिया के प्राइमरी स्कूल के पास खड़ंजे पर उस की हत्या कर लाश वहीं फेक दी है.

हत्या की सूचना पा कर इंस्पैक्टर अरविंद प्रताप सिंह ने इस वारदात की सूचना अपने से बड़े अफसरों को दी और खुद अपने दलबल के साथ मौका ए वारदात की ओर चल दिए. वहां एक नौजवान की लाश पड़ी हुई थी और उस के सिर से काफी खून बह कर जमीन पर पड़ा हुआ था. लाश को देखने से ही लग रहा था कि मारे गए उस नौजवान के सिर पर किसी भारी चीज से वार कर उस की हत्या की है.

पुलिस ने लोगों और परिवार वालों से किसी पर हत्या का शक होने की बात पूछी, लेकिन सभी ने इनकार कर दिया. पुलिस को वहां ऐसा कोई सुबूत भी नहीं मिला, जिस से हत्या करने वाले या हत्या की वजह का पता किया जा सके.

इसी बीच परिवार के लोगों ने पुलिस को बताया कि राजेश के पास एक मोबाइल फोन भी था, जो लाश के पास बरामद नहीं हुआ. पुलिस ने परिवार वालों की सूचना के आधार पर राजेश कुमार की हत्या का मुकदमा दर्ज कर व लाश का पंचनामा कर 1 नवंबर, 2016 को ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस को राजेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट दूसरे दिन ही मिल गई थी, जिस में मौत की वजह सिर पर चोट लगना ही बताया गया था.

अभी तक पुलिस को राजेश की हत्या करने का कोई भी मकसद नजर नहीं आ रहा था, फिर भी पुलिस गायब मोबाइल फोन को आधार बना कर छानबीन करती रही.

इस दौरान गायब मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया गया था. पुलिसिया छानबीन में शक की सूई एक शख्स पर जा कर टिक गई, क्योंकि किसी ने पुलिस को यह सूचना दी थी कि राजेश का मोबाइल फोन कप्तानगंज थाना क्षेत्र के हर्दिया गांव के रवीश कुमार मिश्र के पास है.

पुलिस सतर्क हो गई. रवीश कुमार मिश्र को पकड़ने के लिए उस के गांव में दबिश दी गई और उसे मोबाइल समेत गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस की पूछताछ में रवीश पहले तो इधरउधर की बातों में उलझाता रहा, पर बाद में जब कड़ाई की गई, तो उस ने राजेश कुमार की हत्या करने की जो मामूली वजह बताई, वह उस की सनक का ही नतीजा निकला.

रवीश कुमार मिश्र ने राजेश कुमार की हत्या की जो वजह बताई, वह उस की सनक के चलते हुई थी. उस ने पुलिस को बताया कि उस का कप्तानगंज थाना क्षेत्र में दुधौरा तिलकपुर में ननिहाल है और वह अपने मामा के पास एक पालूत पिल्ले को एक हफ्ते के लिए छोड़ कर आया था.

एक हफ्ते बाद जब वह मामा के पास पिल्ला लेने पहुंचा, तो पिल्ले को न देख उस ने अपने मामा से पूछा.

मामा ने बताया कि उस के पिल्ले ने बहुत परेशान कर रखा था, इसलिए गांव में ही एक आदमी को उस की देखभाल के लिए छोड़ दिया.

इस बात से रवीश आगबबूला हो गया और वह मामा के पास न रुक कर सीधे उस आदमी के पास पहुंच गया और बिना गलती के ही उस के साथ हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई के दौरान उस का मोबाइल फोन कहीं गुम हो गया.

जब रवीश पिल्ले को ले कर अपने गांव हर्दिया आया, तो उस की बहन ने उस से अपना मोबाइल फोन मांगा.

रवीश ने मोबाइल खोजा, पर नहीं मिला. उस ने अपनी बहन से बहाना किया कि उस का मोबाइल किसी को फोन करने के लिए दिया है.  इस के बाद उस ने मोबाइल बहुत खोजा, लेकिन वह नहीं मिला.

रवीश ने घर आ कर बताया कि मोबाइल गायब हो गया है, तो उस की बहन रोने लगी. घर वाले रवीश को ताना मारने लगे.

रवीश परेशान हो कर घर से बाहर निकल गया. इसी उधेड़बुन में वह गांव से बाहर जाने वाले खड़ंजे की सड़क पर जा ही रहा था कि उसे एक आदमी मोबाइल पर बात करते हुए आता दिखाई दिया. उस को लगा कि उस आदमी का मोबाइल छीन कर वह अपनी बहन को दे सकता है. इस के बाद उस ने राजेश कुमार के पास जा कर उस का मोबाइल छीनने की कोशिश की.

अचानक हुई इस छीनाझपटी से राजेश कुछ नहीं समझ पाया और दोनों में हाथापाई होने लगी. तभी रवीश कुमार के हाथ में एक डंडा आ गया और उस ने डंडे से राजेश के सिर पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

राजेश वहीं गिर कर तड़पने लगा और जल्द ही उस की मौत हो गई. रवीश ने मोबाइल उठाया और जिस डंडे से राजेश की हत्या की थी, उसे पास के ही एक गन्ने के खेत के बीच में जा कर गाड़ दिया.

रवीश जब घर आया और उस ने वह मोबाइल फोन अपनी बहन को देने की कोशिश की, तो उस की बहन ने लेने से इनकार कर दिया. लिहाजा, उस ने वह मोबाइल अपने पास ही रख लिया.

रवीश कुमार की सनक का एक मामला 30 जुलाई, 2015 को भी सामने आया था, जब उस ने अपने घर में पड़े एक झोले पर पंजाब के भटिंडा के एक दुकानदार का मोबाइल नंबर देखा, तो उस ने उस दुकानदार को फोन कर भटिंडा रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी दे डाली.

यह धमकी सुन कर उस दुकानदार ने पंजाब पुलिस को सूचना दी, तो पंजाब पुलिस सक्रिय हो गई.

जिस मोबाइल नंबर से उस दुकानदार को रेलवे स्टेशन उड़ाने की धमकी दी थी, उस का सर्विलांस के जरीए रवीश की लोकेशन ढूंढ़ ली.

इस के बाद पंजाब पुलिस ने इस की सूचना बस्ती पुलिस को दी, जिस के बाद वहां की पुलिस भी सक्रिय हो गई और आननफानन रवीश कुमार मिश्र को गिरफ्तार कर धारा 505 के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया.

मंगेतर बना मौत का हरकारा

एक दिन पहले बारिश हो कर हटी थी, जिस से ठिठुरन में खासा इजाफा हो गया था. बादलों की वजह से सूरज सुबह से ही ओझल था. लिहाजा पूरा शहर धुंधलके की गिरफ्त में था. चंबल नदी के करीब होने के कारण शहर के स्टेशन का इलाका कुछ ज्यादा ही सर्द था. लगभग आधा दरजन छोटीमोटी बस्तियों में बंटे इस इलाके में तकरीबन 20 हजार की आबादी वाला क्षेत्र नेहरू नगर कहलाता है.

मिलीजुली बिरादरी वालों की इस बस्ती में ज्यादातर निम्नमध्य वर्ग के दिहाड़ी कामकाजी लोग रहते हैं. बस्ती के करीब से अच्छीखासी चौड़ाई में फैला एक नाला गुजरता है. इसलिए इस की तरफ से गुजरने वाला करीब एक फर्लांग का फासला कुछ संकरा हो जाता है.

इसी बस्ती की रहने वाली शाहेनूर अपनी छोटी बहन इशिका के साथ कोचिंग के लिए जा रही थी. हाथों में किताबें थामे दोनों बहनें चलतेचलते आपस में बातचीत करती जा रही थीं. जैसे ही वे नेहरू नगर बस्ती से निकलने वाले रास्ते की तरफ कदम बढ़ाने को हुईं, शाहेनूर एकाएक ठिठककर रह गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर पीछे देखा. पीछे एक बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई. क्योंकि वह उस युवक को जानती थी. शाहेनूर ने तुरंत अपनी छोटी बहन का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ‘‘जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

इशिका ने बहन को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा माजरा समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

दाढ़ीमूंछ और सख्त चेहरे वाला वह युवक साबिर था, जो शाहेनूर का मंगेतर था. पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. उस युवक को देख कर दोनों बहनों की चाल में लड़खड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर शाहेनूर ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही साबिर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए शाहेनूर का गला दबोच लिया. गले पर कसती सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए शाहेनूर ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, साबिर ने जेब में रखा मिर्च पाउडर उस के ऊपर फेंक दिया.

चीखते हुए शाहेनूर ने एक हाथ से आंखें मलने लगी और दूसरे हाथ से छोटी बहन इशिका का हाथ पकड़ने की कोशिश की. इशिका भी बहन के लिए चीखने लगी. तभी साबिर ने चाकू निकाल कर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए.

बदहवास इशिका ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. तब तक दरिंदगी पर उतारू साबिर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करता हुआ उसे छलनी कर चुका था. उस की दर्दनाक चीखों से आसपास का इलाका गूंज रहा था और उस के शरीर से फव्वारे की मानिंद छूटता खून जमीन को सुर्ख कर रहा था.

उधर से गुजरते लोगों ने यह खौफनाक नजारा देखा भी, लेकिन बीचबचाव करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. सभी मुंह फेर कर चलते बने. इशिका ने राहगीरों को मदद के लिए पुकार भी लगाई, लेकिन उस की कोशिश नाकाम रही. नतीजतन उस ने वापस अपने घर की तरफ गली में दौड़ लगा दी. घर पहुंच कर उस ने बहन पर हमले वाली बात घर वालों को बता दी.यह खबर सुन कर घर वालों की चीख निकल गई.

वे रोतेबिलखते इशिका के साथ चल दिए. करीब 5 मिनट बाद वे घटनास्थल पर पहुंच गए. शाहेनूर की खून से लथपथ लाश वहां पड़ी थी. घर वाले दहाड़ें मार कर रोने लगे. कुछ लोग वहां जमा हो चुके थे. खबर आग की तरह इलाके में फैली तो भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा.

किसी ने इस वारदात की खबर फोन द्वारा भीममंडी थाने को दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका की छोटी बहन इशिका ने सारी बात पुलिस को बता दी. इस से पुलिस को पता चल गया कि इस का हत्यारा साबिर है. घटनास्थल पर उस की मोटरसाइकिल भी खड़ी थी.

पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो गली में दूर तक खून सने पावों के निशान मिले, जो निश्चित रूप से भागते हुए साबिर के थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और खुद वहां मौजूद लोगों से बातें करने लगे. अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी अंशुमान भोमिया, एडिशनल एसपी अनंत कुमार और सीओ शिवभगवान गोदारा समेत अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद लोगों में डर बैठ गया. एसपी अंशुमान भोमिया ने सीओ शिवभगवान गोदारा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा सहित अन्य तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया.

टीम ने आरोपी साबिर की संभावित जगहों पर तलाश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली. उस के बाद मुखबिर की सूचना पर साबिर को मुरगीफार्म के पास जंगल से दबोच लिया गया. वह चंबल नदी क्षेत्र के घने जंगल में छिपने की कोशिश कर रहा था. अगर एक बार वह बीहड़ में पहुंच जाता तो उस का गिरफ्त में आना मुश्किल था.

छाबड़ा में तैनात शाहेनूर के पिता असलम खान को हादसे की खबर कर दी गई, लेकिन तब तक वह कोटा नहीं पहुंचे थे. शव इस कदर क्षतविक्षत था कि एक पल के लिए तो डाक्टर भी स्तब्ध रह गए. उन के मुंह से निकले बिना नहीं रहा कि लगता है हमलावर साइकोपेथी का शिकार था और वह अपना दिमागी संतुलन पूरी तरह खो चुका था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शाहेनूर के शरीर पर 2 दरजन से ज्यादा घाव मिले थे. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह वे घातक वार बने, जिन्होंने दाएं फेफड़े और लीवर को पंक्चर कर दिया था. चाकू के गहरे वार पीठ, सीना, हाथ सिर, मुंह और आंखों सहित हर जगह पाए गए. चाकू का हर वार 2 से 3 सेंटीमीटर चौड़ा था. डाक्टरों के मुताबिक हर वार पूरी ताकत से किया गया था.

शुरुआती पूछताछ में शाहेनूर के मामा फिरोज अहमद और मां शमीम बानो ने पुलिस को बताया कि पिछले साल अगस्त में शाहेनूर उर्फ शीनू की मंगनी साबिर हुसैन से की गई थी. साबिर फेब्रिकेशन का काम करता था. इस के बाद साबिर का उन के घर आनाजाना शुरू हो गया.

इसी दौरान उन्हें साबिर के चालचलन के बारे में कई जानकारियां मिलीं. पता चला कि साबिर न सिर्फ अव्वल दरजे का नशेड़ी है, बल्कि उस की सोहबत जरायमपेशा किस्म के लोगों से भी है. शमीम बानो ने कहा, ‘तब हम ने घर बैठ कर आपस में मशविरा कर के इस नतीजे पर पहुंचे कि साबिर से बेटी का रिश्ता कायम रखने का मतलब शाहेनूर सरीखी संजीदा लड़की का भविष्य दांव पर लगाना होगा. नतीजतन रिश्ता तोड़ना ही बेहतर समझा गया. काफी सोचनेसमझने के बाद करीब 6 महीने पहले हम ने साबिर से रिश्ता तोड़ दिया.’

साबिर असलम खान के घर आनेजाने का आदी हो चुका था और शाहेनूर से प्यार भी करने लगा था. वह शाहेनूर से शादी करना चाहता था. शमीम बानो का कहना था कि मंगनी तोड़ने से साबिर इस हद तक बौखला गया कि एक दिन वह तूफान मचाता हुआ घर पहुंच गया. उन की मौजूदगी में शाहेनूर के साथ मारपीट कर बैठा.

शाहेनूर के पिता असलम उन दिनों घर पर नहीं थे. वह छाबड़ा में अपनी नौकरी पर थे. असलम छोटीछोटी बातों पर बहुत गुस्सा करने वाले इंसान थे. बेटी की पिटाई वाली बात उन्हें इसलिए नहीं बताई गई कि वह गुस्से में आगबबूला हो कर कोई अनर्थ न कर बैठें या कहीं कोई बवाल ना मच जाए.

इस के बाद यह बात आईगई हो गई. साबिर का भी असलम के यहां आनाजाना एक तरह से बंद हो गया. पर वह अकसर शाहेनूर के घर के आसपास की गलियों में घूमता दिखाई देता था.

बाद में जब असलम को बात पता चली तो उन्होंने पुलिस में जाना इसलिए जरूरी नहीं समझा, क्योंकि खामखाह बिरादरी में बदनामी होती. शाहेनूर से दूरी बनाने के बजाय साबिर उसे फोन पर परेशान करने लगा. शाहेनृर ने यह बात घर वालों को बताई तो घर वालों ने उस से यह कह दिया कि वह साबिर से बात न करे.

साबिर की हिम्मत दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. शाहेनूर 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस ने ऐच्छिक विषय उर्दू ले रखा था, इस की वजह से वह 3 बजे के करीब एक इंस्ट्टीयूट में उर्दू की पढ़ाई करने जाती थी. साबिर जब शाहेनूर को रास्ते में परेशान करने लगा तो घर का कोई न कोई सदस्य उसे कोचिंग तक छोड़ने जाने लगा.

4 बेटियों के पिता असलम खान कोटा से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर बारां जिले के छाबड़ा कस्बे में नौकरी करते थे. वह थर्मल में बतौर तकनीशियन तैनात थे. शाहेनूर और इशिका के अलावा उन की 2 बेटियां और थीं, जो काफी छोटी थीं. नौकरी के लिहाज से असलम छाबड़ा में ही रहते थे. लेकिन हफ्तापंद्रह दिन में कोटा में अपने घर आते रहते थे.

पुलिस ने जिस वक्त चंबल के बीहड़ों से साबिर को गिरफ्तार किया था. उस की कलाइयां लहूलुहान थीं और वो नशे में धुत था. तलाशी में पुलिस ने उसकी जेब से पाउडर सरीखा जहरीला पदार्थ बरामद किया था. पूछताछ में उस ने कबूल किया कि आत्महत्या करने की कोशिश में उस ने अपनी कलाई की नसें काटने की कोशिश की थी. जहर की पुडि़या भी उस ने खुदकुशी की खातिर ही अपने पास रखी थी. लेकिन वह उसे इस्तेमाल करता, इस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

साबिर ने पुलिस को बताया कि वह पहले अपने परिवार के साथ बोरखेड़ा में रहता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से खेडली इलाके में कमरा किराएपर ले कर अकेला रह रहा था. पूछताछ के दौरान वह हर सवाल पर ठहाके मार कर हंस रहा था.

सुबह होने पर जब उस का नशा उतरा तो उस ने रोना शुरू कर दिया. शायद उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर सोमवार 12 दिसंबर को कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

13 दिसंबर को पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने शाहेनूर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का दिल तो उसी दिन टूट गया था, जिस दिन शाहेनूर से उस का रिश्ता टूटा था. वह उसे दिलोजान से चाहता था, पर उस ने मेरी मोहब्बत को तरजीह नहीं दी.

साबिर ने बताया कि उसे मारने के बाद वह खुद भी मर जाना चाहता था. इसलिए उस ने अपनी कलाई की नसें काटीं. वह जंगल में जहर खा कर मर जाता, लेकिन पुलिस ने उस की मंशा पूरी नहीं होने दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दीवाली: त्योहार पर नशा, बिगाड़े मजा

मध्य प्रदेश के भोपाल से विदिशा जाते समय रास्ते में सलामतपुर नाम का कसबा पड़ता है. यहां के ठेके पर अंगरेजी और देशी दोनों तरह की शराब बिकती है. इस ठेके के मैनेजर की मानें, तो त्योहारों पर शराब की बिक्री 3-4 गुना बढ़ जाती है.

सलामतपुर के हाट यानी साप्ताहिक बाजार में आसपास के तकरीबन 20-25 गांवों से जो लोग खरीदारी करने आते हैं, उन की लिस्ट में शराब भी लिखी होती है. जो लोग नहीं पीते, वे भी त्योहारों के दिनों में शराब ले जाते हैं. इन दिनों में फसल बिक रही होती है, इसलिए किसानों की जेब के साथसाथ गला भी तर रहता है.

दरअसल, गांवकसबों में भी त्योहार मनाने का चलन बदल रहा है. शराब इस का जरूरी हिस्सा बन चुकी है. बड़े शहरों के बड़े लोग शहर से दूर फार्महाउसों पर दारू और मुरगा पार्टी करते हैं, तो गांवकसबों में खुले खेत में या किसी टूटीफूटी इमारत में शराब छलक रही होती है. खाने में मुरगा आम है और जो लोग शाकाहारी होते हैं, उन के लिए दालबाटीचूरमा का इंतजाम रहता है.

भोपाल से 35 किलोमीटर दूर बेरासिया के एक नौजवान होटल मालिक पप्पू कुशवाह का कहना है कि लोग दीवाली की रात 10 बजे तक घरों और दुकानों का पूजापाठ निबटा कर तयशुदा जगह पर इकट्ठा होते हैं और फिर जीप या मोटरसाइकिलों से पिकनिक स्पौट के लिए निकल पड़ते हैं. वहां सूरज निकलने तक दावत उड़ती है और लोग बिना किसी झिझक के शराब पीते हैं.

जुए के शौकीन ताश के पत्ते ले कर फड़ जमा लेते हैं, जिस में हजारों रुपए यहां से वहां हो जाते हैं. जुए के दौरान सिगरेट, बीड़ी और तंबाकू का सेवन बेहद आम है यानी नशा एक नहीं, बल्कि 3-4 आइटमों का किया जाता है.

पिछले साल दीवाली पर दिल्ली में महज 2 दिन में शराब की 35 लाख बोतलें बिकी थीं, जो रोजाना की औसत बिक्री से 70 फीसदी ज्यादा थीं. आंकड़ा देख कर यह कहा जा सकता है कि दीवाली का त्योहार कहने को ही रोशनी, पटाखों और मिठाइयों के साथसाथ मिलनेजुलने और भाईचारे का रह गया है, नहीं तो इस दिन लोग छक कर शराब गटकने लगे हैं.

‘पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए’ गाने की तर्ज पर त्योहार भी अब शराब पीने का बहाना बनने लगे हैं. मिसाल अकेले दिल्ली की लें, तो इसी साल होली पर दिल्ली वालों ने रिकौर्ड 6 करोड़ रुपए की शराब पी थी और नए साल में भी शराब बिक्री के नए रिकौर्ड बने थे.

त्योहारों पर नशा क्यों

वैसे तो नशा सिवा कमजोरी, लत और ऐयाशी के कुछ नहीं है, लेकिन त्योहारों पर इस का बढ़ता चलन चिंता की बात है. होली का दूसरा नाम ही नशा हो गया है, जिस में शराब के अलावा भांग का सेवन इफरात से किया जाता है. बड़े त्योहारों में एक दीवाली ही अछूता बचा था, वह भी अब नशे की गिरफ्त में आता जा रहा है.

यह सोचना बेमानी नहीं कि कहीं यह बड़े पैमाने पर रची जा रही साजिश तो नहीं, जिस का मकसद खासतौर से निचले तबके के लोगों को खुशियों से दूर रखना और एक लत का आदी बना देना हो.

हालांकि साफतौर पर इस बात का कोई सुबूत नहीं, लेकिन याद यह भी रखा जाना चाहिए कि होली पर नशे का रिवाज बेवजह नहीं फैला होगा.

यह ठीक है कि त्योहारों के दिनों में सभी एक खास मूड में रहते हैं और 2-4 दिन खुल कर जी लेना चाहते हैं, जिस से ऊब, थकान और तनाव कम हो, लेकिन लोग भूल जाते हैं कि बड़े त्योहार एक खास मकसद लिए होते हैं कि इन दिनों लोगों में भाईचारा बढ़े, वे सबकुछ भूल कर हंसीखुशी से रहें और पुराने गिलेशिकवे भूल जाएं.

दीवाली की शुभकामनाओं के पीछे मंशा तो यही रहती है कि सभी की जिंदगी में सुख और खुशहाली आए. शुभलाभ के पीछे छिपा मतलब भी बेहद साफ होता है. इन्हीं दिनों में लोग एकदूसरे की अच्छी सेहत की भी कामना करते हैं.

पर होता उलटा है

लेकिन क्या नशे में डूबे लोग किसी का भला कर पाते हैं? इस सवाल का जवाब भी बेहद साफ है कि किसी का भला कर ही नहीं सकते. जो लोग अपनी लक्ष्मी यानी पैसे को नशे में बरबाद कर रहे हों, उन से क्या खा कर उम्मीद की जाए कि खुद इन के पास सालभर लक्ष्मी टिकी रहेगी. वह तो शराब बनाने और बेचने वालों के पास जाती रहेगी.

इसी तरह हर नशेड़ी बेहतर जानता समझता है कि नशा सेहत के लिए कितना नुकसानदेय होता है, फिर वह क्या दूसरे की अच्छी सेहत के लिए दिल से दुआ करेगा, जिसे खुद की सेहत की ही परवाह नहीं.

कुछ अच्छा या शुभ न हो, यहां तक बात दिक्कत की नहीं, लेकिन नशे में कितना और कुछ बिगड़ जाता है, यह तो कइयों को बड़ा नुकसान होने के बाद भी समझ नहीं आता.

दीवाली जैसे रंगबिंरगे रोशनी वाले त्योहार में कभीकभी जिंदगी कितनी बेरंग और स्याह हो जाती है, इस की मिसाल भी त्योहार के दिन ही उजागर होती है.

उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद के गोविंदनगर इलाके का रहने वाला 24 साला ऋषभ सक्सेना शराब पीने का आदी था. घर वाले उसे इस बाबत बहुत समझते रहते थे, लेकिन उस के कान पर जूं नहीं रेंगती थी.

पिछली दीवाली पर जब ऋषभ सक्सेना शराब पी कर आया तो घर वालों ने उसे फिर समझाया, लेकिन बजाय अपने भले की बात समझाने के ऋषभ ने गुस्से में खुदकुशी ही कर ली. इस से दीवाली की खुशियां मातम में बदल गईं.

सक्सेना परिवार तो एक साल गुजर जाने के बाद भी सदमे से उबर नहीं पा रहा है. घर वाले बहकते नौजवानों को अच्छाबुरा सम?ाना क्या इस डर से बंद कर दें कि कहीं वे खुदकुशी न कर लें? इस का जवाब किसी के पास नहीं. गलती सरासर ऋषभ सक्सेना जैसे नौजवान करते हैं और सजा घर वालों को भुगतनी पड़ती है.

इसी तरह पिछली दीवाली पर पंजाब के लुधियाना में 5 दोस्त शराब के नशे में चूर हो कर जुआ खेल रहे थे. जैसा कि होता है जीतहार को ले कर दोस्तों में झगड़ा हुआ, तो 4 दोस्तों ने 5वें दोस्त झम कुमार की हत्या कर दी.

पुलिस ने धर्मवीर मिश्रा, अनुज, अमित कुमार समेत और 2 लोगों को हत्या के आरोप में जेल भेज दिया.

ऐसे होते हैं नशे के त्योहार. जुए और शराब की लत ने 5 घरों में ऐसा अंधेरा कर दिया, जो मुद्दतों तक जगमगाने के लिए तरसता रहेगा. ऐसा हर कहीं हमारे आसपास भी हो रहा होता है कि शराबी लड़खड़ाता हुआ घर आता है, बीवीबच्चों की नशे में तबीयत से धुनाई करता है और खुद खर्राटे भर कर सोने लगता है, बीवीबच्चों की खुशियां और उमंग काफूर हो जाती हैं और वे खुशियां मना रहे दूसरे लोगों के घर की तरफ उदास आंखों से ताका करते हैं.

सभी नशेड़ी जुर्म नहीं करते, लेकिन वे अपने बीवीबच्चों के साथ हंसीखुशी से त्योहार नहीं मना पाते, जबकि घर का मुखिया होने के नाते उन्हें त्योहार का समय बीवीबच्चों के अलावा पड़ोसियों और दोस्तों के साथ गुजारना चाहिए.

यह है हल

अव्वल तो नशा कभी नहीं करना चाहिए, पर त्योहारों पर तो इन से तोबा ही कर लेनी चाहिए और त्योहार जिंदादिली से मनाना चाहिए, क्योंकि घर वाले ही आप की जान हैं. ऐसे में कोई शराब या किसी दूसरे नशे की तलब में यहांवहां भटकेगा, तो अपने घर वालों की खुशियां छीनने का गुनाहगार कहलाएगा, खासतौर से उन बच्चों का, जो दहशत में रहते हैं.

ऐसा नशा किस काम का, जिस के चलते घर के लोग त्योहार पर भी एकसाथ बैठ कर खाना न खाएं, हंसें न, मस्ती न करें, एकदूसरे को तोहफे न दें और फिर पड़ोसियों व रिश्तेदारों से त्योहार पर मिलने न जाएं.

वह परिवार ही है, जो आप का खयाल रखता है, आप को हर सहूलियत देता है, आप के सुखदुख में भागीदार होता है, आप को प्यार देता है और आप की इज्जत भी करता है. जरा सोचें और होश में सोचें कि इस सब की एवज में आप अपने परिवार को क्या दे रहे हैं?

आप दे रहे हैं लड़खड़ाते कदम, गालीगलौज और कलह तो यकीन मानिए, आप त्योहार नहीं मना रहे हैं, बल्कि उसे बरबाद कर रहे हैं. आप अपने घर वालों से उन की खुशियां और उन के हिस्से का समय छीन कर उन लोगों के साथ शेयर कर रहे हैं, जिन की नजर आप के पैसे पर है.

तो आइए इस दीवाली पर यह प्रण करें कि दीवाली समेत हम सभी त्योहार घर वालों के साथ मनाएंगे और होश में मनाएंगे. यह प्रतिज्ञा भी करें कि अब त्योहार तो क्या कभी भी कोई नशा नहीं करेंगे, क्योंकि यह बरबादी और जानलेवा बीमारियों की तरफ ले जाता है, कंगाल कर देता है.

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