मध्य प्रदेश के भोपाल से विदिशा जाते समय रास्ते में सलामतपुर नाम का कसबा पड़ता है. यहां के ठेके पर अंगरेजी और देशी दोनों तरह की शराब बिकती है. इस ठेके के मैनेजर की मानें, तो त्योहारों पर शराब की बिक्री 3-4 गुना बढ़ जाती है.

सलामतपुर के हाट यानी साप्ताहिक बाजार में आसपास के तकरीबन 20-25 गांवों से जो लोग खरीदारी करने आते हैं, उन की लिस्ट में शराब भी लिखी होती है. जो लोग नहीं पीते, वे भी त्योहारों के दिनों में शराब ले जाते हैं. इन दिनों में फसल बिक रही होती है, इसलिए किसानों की जेब के साथसाथ गला भी तर रहता है.

दरअसल, गांवकसबों में भी त्योहार मनाने का चलन बदल रहा है. शराब इस का जरूरी हिस्सा बन चुकी है. बड़े शहरों के बड़े लोग शहर से दूर फार्महाउसों पर दारू और मुरगा पार्टी करते हैं, तो गांवकसबों में खुले खेत में या किसी टूटीफूटी इमारत में शराब छलक रही होती है. खाने में मुरगा आम है और जो लोग शाकाहारी होते हैं, उन के लिए दालबाटीचूरमा का इंतजाम रहता है.

भोपाल से 35 किलोमीटर दूर बेरासिया के एक नौजवान होटल मालिक पप्पू कुशवाह का कहना है कि लोग दीवाली की रात 10 बजे तक घरों और दुकानों का पूजापाठ निबटा कर तयशुदा जगह पर इकट्ठा होते हैं और फिर जीप या मोटरसाइकिलों से पिकनिक स्पौट के लिए निकल पड़ते हैं. वहां सूरज निकलने तक दावत उड़ती है और लोग बिना किसी झिझक के शराब पीते हैं.

जुए के शौकीन ताश के पत्ते ले कर फड़ जमा लेते हैं, जिस में हजारों रुपए यहां से वहां हो जाते हैं. जुए के दौरान सिगरेट, बीड़ी और तंबाकू का सेवन बेहद आम है यानी नशा एक नहीं, बल्कि 3-4 आइटमों का किया जाता है.

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