महंगा इनाम : भाग 1- क्या शालिनी को मिल पाया अपना इनाम

मैंने जासूसी उपन्यास एक ओर रख दिया और किसी नवयौवना की तरह एफएम पर ‘क्रेजी सुशांत’ का प्रोग्राम शुरू होने का इंतजार करने लगी. मुझे क्रेजी सुशांत या उस के प्रोग्राम में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मुझे तो सिर्फ उस इनाम में दिलचस्पी थी, जो वह अपने प्रोग्राम में हिस्सा लेने वाले किसी एक खुशनसीब को दिया करता था. इनाम 30 हजार रुपए था. मेरे लिए उस वक्त 30 हजार रुपए बहुत बड़ी रकम थी.

मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव थी और खुद ही अपनी बौस थी यानी मैं सैल्फ इंप्लायमेंट पर निर्भर थी. सेल्फ इंप्लायमेंट में यही सब से बड़ी खराबी है कि यह किसी भी वक्त बेरोजगारी में बदल सकता है. मेरा काम काफी दिनों से मंदा चल रहा था, बिल न जमा होने से बिजली कंपनी वाले काफी दिनों से मेरी बिजली काटने की धमकी दे रहे थे. अब आप समझ सकते हैं कि मैं क्यों बेचैनी से के्रजी सुशांत के प्रोग्राम का इंतजार कर रही थी.

अंतत: एफएम पर क्रेजी सुशांत की अजीबोगरीब आवाज उभरी. ऐसा मालूम होता था, जैसे वह नाक माइक पर रख कर बोलने का आदी था. सुशांत कह रह था, ‘क्रेजी सुशांत अपने प्रोग्राम के साथ आप की सेवा में हाजिर है. श्रोताओ, क्या मैं वास्तव में क्रेजी नहीं हूं. मेरे पागलपन का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मैं हर रोज किसी न किसी की सेवा में 30 हजार रुपए पेश करता हूं. इस के लिए आप को सिर्फ इतना करना होगा कि एक एसएमएस भेज कर अपना नाम, पता और फोन नंबर मुझे भेज दें.’

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इतना कह कर वह अपने विशिष्ट अंदाज में हंसा. उस की हंसी कुछ ऐसी थी, जैसे किसी लकड़बग्घे को हिचकियां आ रही हों. वह गधा हर एक को कितनी आसानी से इनाम मिलने की उम्मीद दिला रहा था. मैं खुद पिछले चंद हफ्तों में एक हल्की उम्मीद के सहारे उसे सैकड़ों एसएमएस भेज चुकी थी.

वह कह रहा था, ‘‘श्रोताओ, लौटरी के जरिए मैं इस हफ्ते के खुशनसीब का नाम अपने थैले से निकालूंगा.’’

मैं अपने जिस फोन पर एफएम सुन रही थी, उसे अनायास ही कान के पास कर लिया और मुट्ठियां भींच कर बड़बड़ाई, ‘‘कमीने, आज तो मेरा नाम निकाल दे.’’

वह कह रहा था, ‘‘लीजिए श्रोताओ, मैं ने नाम की पर्ची निकाल ली है. 30 हजार रुपए जीतने वाले भाग्यशाली हैं नोएडा सेक्टर-8 के रहने वाले राहुल पांडे.’’

मैं ने गुस्से में कालीन पर घूंसा रसीद किया, जिस से हवा में मिट्टी का एक छोटा सा बादल बन गया. मेरी उम्मीद भी उसी बादल में खो गई थी. क्रेजी सुशांत इनाम पाने वाले को संबोधित कर रहा था, ‘‘डियर राहुल, तुम्हें इनाम पाने का तरीका तो मालूम ही होगा.’’

पता नहीं कि राहुल को तरीका मालूम था या नहीं, लेकिन मुझे बहुत अच्छी तरह मालूम था. इनाम की घोषणा लगभग 3 बज कर 5 मिनट पर होती थी और इनाम के हकदार को ठीक 5 बजे तक रेडियो स्टेशन पहुंच कर इनाम प्राप्त करना होता था. वह रेडियो पर संक्षिप्त में अपना अनुभव व्यक्त करता या करती थी और इनाम का चैक उस के हवाले कर दिया जाता था. अगर विजेता 5 बजे तक रेडियो स्टेशन नहीं पहुंच पाता था तो सवा 5 बजे दूसरी लौटरी निकाली जाती थी और इनाम किसी और का हो जाता था.

मैं ने पहले से भी अधिक मद्धिम उम्मीद के सहारे सोचा कि शायद रास्ते में राहुल की गाड़ी का टायर पंक्चर हो जाए और वह रेडियो स्टेशन न पहुंच सके. क्या पता दूसरी लौटरी में मेरी किस्मत चमक जाए और…

अपने आप को हौसला देने के लिए मैं ने किचन में जा कर सैंडविच तैयार की और उसे खाते हुए उम्मीद के सहारे यह सोच कर मोबाइल की ओर देखने लगी कि हो सकता है, उस की घंटी बजे और दूसरी ओर से कोई क्लाइंट बोले. फिर मैं मम्मी को फोन करने के बारे में सोचने लगी. थोड़ी बहुत संभावना थी कि शायद वह मुझे इतनी रकम उधार दे दें कि खींच तान कर महीना गुजर जाए. लेकिन ऐसी जरूरत नहीं पड़ी.

मोबाइल की घंटी बजी और मैं ने बहुत धीरज और शांति से काम लेते हुए तीसरी घंटी पर काल रिसीव कर के बहुत ही सौम्य व गरिमापूर्ण अंदाज में कहा, ‘‘शालिनी इंवेस्टीगेशन एजेंसी.’’

‘‘शालिनी चौहान?’’ दूसरी ओर से पूछा गया. न जाने क्यों उस की आवाज सुन कर ही मुझे लगा कि वह आदमी जरूर दौलतमंद होगा.

‘‘जी हां, लेकिन आप मुझे केवल शालिनी भी कह सकते हैं.’’ मैं ने बहुत खुलेदिल का प्रदर्शन करते हुए कहा.

‘‘मेरा नाम अर्पित मेहता है. मुझे नकुल चौधरी ने तुम से बात करने की सलाह दी थी.’’ वह बोला.

नकुल चौधरी एक वकील था, जो कभीकभी मेहरबानी के तौर पर मेरे पास क्लाइंट भेज देता था.

‘‘मैं आप के लिए क्या कर सकती हूं मिस्टर अर्पित?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं किसी के बारे में तहकीकात कराने के लिए तुम्हारी सेवाएं हासिल करना चाहता हूं, शालिनी.’’ वह थोड़ा बेचैनी भरे स्वर में बोला, ‘‘इस संबंध में फोन पर बात करना मुनासिब नहीं होगा. मैं शाम साढ़े 5 बजे तक खाली हो जाऊंगा. क्या इस के बाद किसी समय मेरे औफिस में आने की तकलीफ कर सकती हो? मैं इस मामले में जरा जल्दी में हूं.’’

मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी? मैं ने उस के औफिस का पता पूछ कर लिख लिया. मिलने का वक्त 5 बजे तय हुआ. अब मुझे क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम में 30 हजार रुपए का इनाम न मिलने का कोई दुख नहीं था. इनाम मिलने से केस मिलना बेहतर था. केस की बात ही कुछ और थी.

5 कब बज गए, पता ही नहीं चला. उस समय तक क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम में लौटरी के जरिए इनाम का अधिकारी राहुल पांडे रेडियो स्टेशन पहुंच चुका था. चैक लेने से पहले उस ने प्रोग्राम के बारे में अपना अनुभव व्यक्त करते हुए सुशांत की हंसी भी उड़ाई थी.

मैं इस बीच तैयार हो चुकी थी. इनाम की घोषणा समाप्त होते ही मैं घर से निकली और अपनी पुरानी गाड़ी को उस की औकात से ज्यादा तेज रफ्तार से दौड़ाना शुरू कर दिया.

अर्पित मेहता का औफिस एक शानदार इमारत की तीसरी मंजिल पर था. उस का औफिस देख कर मेरे अनुमान की पुष्टि हो गई थी. अर्पित मेहता वाकई एक धनी आदमी था और उसे धन खर्च करने का तरीका भी आता था. उस की खूबसूरत सैके्रटरी ने मुझे उस के कमरे में पहुंचा दिया. उस का कमरा बहुत शानदार तरीके से सजाया गया था. वह एक बड़ी मेज के पीछे बैठा था. उस ने उठ कर मेरा स्वागत किया. वह व्यक्तित्व से ही कामयाब व्यक्ति नजर आ रहा था. उस की कनपटियों पर सफेदी झलक रही थी.

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हम ने बैठ कर रस्मी बातें कीं. उस ने कहा, ‘‘शालिनी, मैं नहीं चाहता कि मेरी बात सुन कर तुम मेरे बारे में कोई गलत राय कायम करो. इसलिए समस्या बताने से पहले मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं. मैं एक उसूल पसंद आदमी हूं. अगर मुझ से कोई गलती हो जाए तो मेरी यह कभी भी इच्छा या कोशिश नहीं होती कि मैं उस का नुकसान भुगतने से बचने की कोशिश करूं. मैं अपनी गलती का दंड अदा करने के लिए हर समय तैयार रहता हूं.’’

मैं ने सहमति में सिर हिलाया और अपने बैग से एक राइटिंग पैड और पेंसिल निकाल ली. एक क्षण रुकने के बाद वह बोला, ‘‘कुछ महीने पहले मेरी गाड़ी एक दूसरी गाड़ी से टकरा गई थी. बहुत मामूली सी दुर्घटना थी, जिस में मेरी गाड़ी को तो केवल चंद खरोंचें ही आई थीं.  यह अलग बात है कि वह खरोंच दूर कराने पर जितनी रकम खर्च हुई थी, उतने में छोटीमोटी गाड़ी आ जाती.’’

अमीर लोगों को मूल्यवान चीजें रखने की अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. मैं ठंडी सांस ले कर रह गई.

अर्पित ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘दूसरी गाड़ी में एक औरत और उस की बेटी सवार थी. उस समय तो यही लग रहा था कि दुर्घटना में उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. फिर भी मैं ने नैतिकता और कानूनपसंदी का प्रदर्शन करते हुए उन्हें अपनी गाड़ी की इंश्योरेंस पौलिसी का नंबर दे दिया, जैसा कि दुर्घटना की स्थिति में किया जाता है. दुर्घटना में कोई भी जख्मी नहीं हुआ था, इसलिए मेरा विचार था कि बात वहीं समाप्त हो जाएगी. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका. उन मांबेटी ने एक वकील की सेवाएं ले कर कुछ दिनों बाद मुझ पर सौ करोड़ रुपए के हरजाने का दावा कर दिया.’’

‘‘सौ करोड़ रुपए?’’ मेरी आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘यह तो बहुत बड़ी रकम है. वे दोनों किस हद तक शारीरिक नुकसान पहुंचने का दावा कर रही थीं?’’

‘‘मां का तो अस्पताल में रीढ़ की हड्डी की चोट का इलाज हो रहा था. यहां तक तो दावा मानने योग्य था.’’ अर्पित ठंडी सांस ले कर बोला, ‘‘लेकिन उस का कहना था कि दुर्घटना में भय के कारण उस की बेटी बोलने की शक्ति खो बैठी है. दुर्घटना के बाद से अब तक वह एक शब्द भी नहीं बोली है.’’

‘‘यह तो विचित्र बात है. डाक्टर क्या कहते हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हर एक की अलगअलग राय है,’’ अर्पित ने एक और ठंडी सांस ली, ‘‘मेरा एक दोस्त जो एक मशहूर मनोवैज्ञानिक था और 20 साल से प्रैक्टिस कर रहा था, उस का कहना था कि यह हिस्टीरियाई प्रतिक्रिया हो सकती है. लड़की जिस डाक्टर से इलाज करा रही है, उस के विचार में दुर्घटना में मस्तिष्क की वे कोशिकाएं प्रभावित हुई हैं, जो जुबान की शब्द भंडारण शक्ति को सुरक्षित रखती हैं. अर्थात उस में जुबान समझने और बोलने की योग्यता नहीं रही. वह डाक्टर अभी कुछ और टेस्ट कर रहा है.’’

‘‘आप को उस पर विश्वास नहीं है.’’ मैं ने पुष्टि करनी चाही.

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं किस पर विश्वास करूं और किस पर नहीं,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं भी इस दुर्घटना में शामिल था. मेरे सिर में दर्द तक नहीं हुआ. मुझे बात कुछ जंच नहीं रही है.’’

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‘‘आप चाहते हैं कि मैं खोजबीन करूं कि लड़की झूठमूठ तो गूंगी नहीं बन रही है?’’ मैंने पूछा.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

महंगा इनाम : भाग 2- क्या शालिनी को मिल पाया अपना इनाम

वह बेचैनी से पहलू बदलते हुए बोला, ‘‘मैं बिना किसी जांच के उन मांबेटी को धोखेबाज कहना नहीं चाहता. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वह मामले को बढ़ाचढ़ा कर पेश कर रही हों.’’

‘‘मेरे विचार में यह कुछ अधिक मुश्किल काम नहीं है,’’ मैं ने कहा, ‘‘2-4 दिनों लड़की पर नजर रखी जाए. होशियारी से उस का पीछा किया जाए तो पता चल जाएगा कि वह कहीं बोलती है या नहीं?’’

अर्पित गले को साफ करते हुए बोला, ‘‘यही तो समस्या है कि मैं तुम्हें 4 दिन तो क्या, 2 दिन का समय भी नहीं दे सकता. असल में मुझे विश्वास था कि यह मामला कोर्ट में नहीं जाएगा. इसलिए अंतिम क्षणों तक मैं ने किसी डिक्टेटिव या खोजी की तलाश शुरू नहीं की. इस बुधवार को 10 बजे अदालत में इस दावे की सुनवाई होनी है. हो सकता है पहली ही पेशी में निर्णय भी हो जाए.’’

इस का मतलब था कि मेरे पास केवल एक दिन का समय था, जिस में मुझे कोई ऐसा सबूत तलाश करना था, जिस की वजह से दावेदार अपना दावा वापस लेने पर विवश हो जाए.

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‘‘सौरी मिस्टर अर्पित, एक दिन में भला क्या हो सकता है?’’ मैं ने कहा.

‘‘इस परिस्थिति में अगर कोई समझौता हो भी जाए तो वह भी मेरे लिए जीत की तरह ही होगा,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं कह चुका हूं कि मुझे अपनी गलती की भरपाई करने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन इतनी सी बात पर मैं अपनी कुल संपत्ति का एक चौथाई उन मांबेटी को नहीं दे सकता.’’

एक बार फिर मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई. मतलब अर्पित की कुल संपत्ति का एक चौथाई 100 करोड़ था. इस का मतलब था कि अर्पित मेरे अनुमान से कहीं अधिक धनवान था. संभवत: उन मांबेटी को अंदाजा था कि वह कितना मोटा आसामी है. तभी उन्होंने ज्यादा गहराई तक दांत गड़ाने का प्रोग्राम बनाया था.

आखिर मैं ने अपनी पूरी कोशिश करने की हामी भरते हुए उसे अपनी फीस के बारे में बताया तो उस ने कहा, ‘‘मैं केवल एक ही दिन के लिए तुम्हारी सेवाएं ले रहा हूं और इस का भुगतान पेशगी दे रहा हूं. अगर तुम कोई सबूत तलाश करने में कामयाब हो गईं तो मैं सारे खर्चों के अलावा तुम्हें 5 लाख रुपए का इनाम दूंगा. अगर तुम असफल रहीं तो मेरे कानूनी सलाहकार इस मसले से अपने हिसाब से निपटेंगे.’’

बातचीत के बाद मैं लौट आई. सब से पहले मैं ने उन मांबेटी के बारे में सूचना इकट्ठी की. बेटी का नाम रूपा सरकार था और मां का नाम सुषमा सरकार. वे द्वारका के सिंगल बैडरूम के छोटे से फ्लैट में रह रही थीं. मैं ने अपनी गाड़ी एक ऐसी जगह पार्क की, जहां से मैं उन के फ्लैट पर नजर रख सकती थी.

अर्पित मुझे उन के नाम और ठिकाने से अधिक कुछ नहीं बता सका था. मैं ने अपने तौर पर जानकारियां एकत्र करने की कोशिश की तो पता चला कि सुषमा सरकार यानी मां और रूपा सरकार किसी न किसी तरह के दावे कर के माल बटोरने में लगी रहती थीं. अगर मामला केवल उस औरत का होता तो शायद मैं उसे दे दिला कर राजी करने की कोशिश करती, लेकिन मसला उस की बेटी के अजीबोगरीब और अविश्वसनीय नुकसान का था. मैं ने उस डाक्टर से बात की, जो उस का इलाज कर रहा था. ऐसा मालूम होता था कि उस ने भी मांबेटी के दावे को सही साबित करने की बात को अपनी प्रेस्टीज का मसला बना लिया था.

9 बजे तक मैं अपनी कार में बैठेबैठे न्यूजपेपर पढ़ती रही. जब थक गई तो मैं ने गाड़ी से निकल कर हाथपांव सीधे किए और बिल्डिंग के चारों ओर एक चक्कर लगाया. मांबेटी के ग्राउंड फ्लोर स्थित फ्लैट का नंबर 7 था. उस के पीछे की तरफ एक पुरानी सी मारुति कार खड़ी थी, जिस पर लगे चंद निशानों से पता चल रहा था कि हाल ही उस का मामूली एक्सीडेंट हुआ है.

फ्लैट नंबर 7 में झांकने का मेरा प्रयास सफल नहीं हो सका. खिड़कियां बंद थीं और उन पर परदे पड़े हुए थे. अंदर तेज आवाज में म्युजिक बज रहा था. अंतत: मायूस हो कर मैं दोबारा अपनी कार में जा बैठी.

आखिर 10 बजे मांबेटी फ्लैट से बाहर निकलीं और गाड़ी में बैठ कर बाजार की ओर चल दीं. उन्होंने एकदूसरे से बिलकुल भी बात नहीं की. मैं ने उचित दूरी बना कर उन का पीछा करना शुरू कर दिया.

पहले दोनों एक बहुत अच्छे डिपार्टमेंटल स्टोर पर रुकीं और अंदर जा कर आधे घंटे तक बिना किसी मकसद के घूमती रहीं. उन्होंने महंगे फर्नीचर से ले कर मंगनी की अंगूठी तक का जायजा लिया. वे यकीनन उस दौलत को खर्च करने के तरीके सोच रही थीं, जो उन के ख्याल में उन्हें छप्पर फाड़ कर मिलने वाली थी. वे एकदम साधारण जीवन व्यतीत कर रही थीं, लेकिन उन की पसंद ऊंची लगती थी.

कुछ देर की आवारागर्दी के बाद आखिरकार वे एक ब्यूटीपार्लर में जा घुसीं. वे रिसैप्शन पर रुकीं तो मैं पीछे मुडे़ बिना सुषमा की आवाज सुन रही थी. मोटी सुषमा बाल सैट कराने के लिए एक कुरसी पर जा बैठी, जबकि दुबलीपतली रूपा वेटिंग रूम में बैठ गई. मुझे कुछ उम्मीद नजर आई कि संभवत: मुझे भाग्य आजमाने का अवसर मिलने वाला है.

मैं ने रिसैप्शन पर मौजूद लड़की से अपने बाल शैंपू और सैट कराने की बात की तो उस ने बताया कि करीब 10 मिनट बाद हेयर डे्रसर फ्री हो जाएगी.

मैं वेटिंग रूम में रूपा के सामने जा बैठी. वह सच्चे प्रेमप्रसंग प्रकाशित करने वाली एक पत्रिका के पृष्ठों पर नजरें जमाए बैठी थी. मैं ने भी मेज पर पड़ी 2-3 मैगजीनें उलटपलट कर देखने के बाद साधारण लहजे में कहा, ‘‘ऐसी जगहों पर हमेशा पुरानी मैगजीनें ही पड़ी रहती हैं.’’

रूपा ने मैगजीन से नजर हटा कर मेरी तरफ देखा, लेकिन बोली कुछ नहीं. मैं ने मुसकराते हुए मित्रवत लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें शायद कोई अच्छी मैगजीन मिल गई है.’’

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उस ने इनकार में सिर हिलाया तो मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘किसी खास ब्यूटीशियन के साथ अपाइंटमेंट है क्या?’’

उस ने कोई जवाब नहीं दिया और दोबारा उसी मैगजीन पर नजरें जमा कर बैठ गई. इतने में एक ब्यूटीशियन ने फ्री हो कर मुझे बुला लिया. जब इंसान को फास्ट सर्विस की कोई खास जरूरत नहीं होती तो उसे अनचाहे ही फास्ट सर्विस मिल जाती है.

मैं कुरसी पर जा बैठी. हेयरड्रेसर ने मेरे चारों ओर काला कपड़ा लपेटा और मैं ने शैंपू के लिए सिंक पर सिर झुका लिया. जब मेरे बाल संवारे जा रहे थे तो मैं ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘मैं ने किसी इतनी नौजवान लड़की को इतना रफटफ रहते हुए नहीं देखा.’’

हेयर ड्रेसर समझ गई कि मेरा इशारा किस ओर था. वह सिर घुमा कर रूपा की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मैं इस लड़की से दोस्ताना तरीके से बात करना चाहती थी. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. एक शब्द भी नहीं बोली.’’

हेयरड्रेसर मेरी ओर झुकते हुए बोली, ‘‘दरअसल, वह बेचारी बोल नहीं सकती. 2 महीने पहले एक अमीर आदमी ने अपनी कार से इन मांबेटी की कार में टक्कर मार दी थी. तब से इस बेचारी की बोलने की शक्ति चली गई है.’’

‘‘ओह… यह तो बड़ी अफसोसजनक बात है. मुझे यह बात मालूम नहीं थी?’’ मैं ने जल्दी से कहा. इस बीच सुषमा मुझ से कुछ दूर दूसरी कुरसी पर बाल सैट कराते हुए तेज रफ्तार से ब्यूटीशियन से बातें कर रही थी. ऐसा जान पड़ता था कि जैसे उसे आसपास का कुछ पता ही नहीं था.

‘‘मां की कमर में भी चोट आई थी,’’ ब्यूटीशियन ने कहा, ‘‘ये अमीर लोग समझते हैं, जो चाहे कर गुजरें, इन्हें कोई पूछने वाला नहीं.’’

इस का मतलब था कि इन लोगों की कहानी को और लोग भी जानते थे और कुछ लोगों की हमदर्दियां भी इन के साथ थीं. मेरे बाल सैट हो चुके तो मेरे पास वहां ठहरने का कोई बहाना नहीं रहा.

मैं ब्यूटीपार्लर से निकल आई और सामने सड़क किनारे एक बैंच पर बैठ गई. सड़क लगभग सुनसान थी. मैं सुबह 5 बजे की उठी थी. नींद मेरी आंखों में उतरने की कोशिश कर रही थी. मैं ने अपना सिर बैंच की बैक से टिका कर आंखें बंद कर लीं. कुछ देर में मुझे एक अजीबोगरीब सुखद अहसास हुआ. लेकिन उस अहसास का मैं ज्यादा देर आनंद नहीं उठा सकी.

‘‘शालिनी…’’ किसी की आवाज ने मुझे चौंका दिया. मैं हड़बड़ा कर सीधी हो गई.

एक घबराया हुआ सा युवक मेरे ऊपर थोड़ा सा झुका हुआ खड़ा था. उस की आंखों में शरारत साफ झलक रही थी. मुझे सड़क किनारे की एक बैंच पर ऊंघते देख कर संभवत: वह बहुत ही खुश हो रहा था.

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मुझे केवल शालिनी के नाम से संबोधित कर के शायद उसे तसल्ली नहीं हुई थी. उस ने मेरा पूरा नाम लिया, ‘‘शालिनी चौहान…?’’ लेकिन यह मेरा शादी से पहले का नाम था. अब तो मुझे अपने पति से अलग हुए भी जमाना गुजर गया था. मैं हैरान हुए बिना न रह सकी कि यह कौन है, जो इस तरह मेरा नाम ले रहा है.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

उस की गली में : भाग 3 – हुस्न और हवस की कहानी

मास्टरनी जुलेखा उसी स्कूल में पढ़ाती थी. एक दिन वह स्कूल से निकल कर तांगे में बैठी तो घोड़ा बिदक कर भागा. विलायत अली फौरन तांगे के पीछे भागा.

कुछ दूर दौड़ कर वह उस पर चढ़ गया. तांगा एक पुलिया से टकराया और नहर में गिर गया. जुलेखा पानी के तेज बहाव में बहने लगी. बड़ी मुश्किल से विलायत ने उसे बचा कर बाहर निकाला.

इस कोशिश में उसे चोटें भी लगीं. उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. जुलेखा उस की देखरेख के लिए रोज अस्पताल जाती थी. वहीं से यह मुहब्बत शुरू हुई. इस के 4-5 महीने बाद अचानक जुलेखा ने शादी कर ली.

शादी के बाद विलायत अली पागल सा हो गया. यह भी पता चला था कि चोरी वाले दिन सेठ अहद का एक नौकर विलायत को उस के घर से बुला कर ले गया था.

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सेठ अहद ने ही उस पर चोरी का इलजाम लगाया था. थाने में लिखाई गई रिपोर्ट में सेठ अहद ने लिखवाया था कि विलायत उस के घर काम मांगने आया था. सेठ ने चोरी का जो टाइम रिपोर्ट में लिखाया था, उस वक्त वह अपने दोस्तों के साथ पान की दुकान पर था. उस वक्त सुबह के 10 बजे थे.

वक्त बहुत कम था. डीएसपी साहब के दिए टाइम में 2 घंटे बीत चुके थे. मैं ने सेठ अहद और मास्टरनी के पति नजीर से मिलने का फैसला किया.

रवाना होते समय मैं ने बलराज से पूछा, ‘‘अगर तुम्हारे दिमाग में कोई प्लान हो तो बताओ, मिल कर काम करते हैं.’’ उस ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘नवाज खां, मेरे और तुम्हारे रास्ते अलगअलग हैं. इसलिए तुम अपनी राह जाओ.’’

मैं ने पहले ही 3-4 टीमें बना कर विलायत की तलाश में भेज दी थीं. सेठ अहद की लोहे के सामान बेचने की दुकान थी. 40-45 साल का दुबलापतला आदमी था. पता चला कि वह रंगीनमिजाज था. उस ने दुकान पर एक जवान खूबसूरत लड़की रख रखी थी.

मैं ने अहद से पूछताछ की तो उस ने वही बातें बताईं, जो मुझे पहले से पता थीं. कोई काम की बात पता न चलने पर मैं ने उसे शहर न छोड़ने की हिदायत दी. उस पर नजर रखने के लिए मैं ने सादा लिबास में एक सिपाही की ड्यूटी लगा दी. इस के बाद मैं चपरासी नजीर के यहां पहुंचा.

दरवाजा उस की खूबसूरत बीवी जुलेखा ने खोला. मुझे देख कर वह सहम गई. मैं ने तेज लहजे में पूछा, ‘‘तेरा शौहर कहां है?’’

‘‘जी…जी, वह अभी औफिस से नहीं आए हैं.’’ मैं ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘देख लड़की, अगर अपनी खैर चाहती है तो विलायत अली के बारे में सब कुछ सचसच बता दे, वरना तेरा अंजाम बहुत बुरा होगा.’’ मेरी डांट से उस का चेहरा पीला पड़ गया.

वह डर गई और चेहरा हाथों से छिपा कर फूटफूट कर रो पड़ी. रोतेरोते ही बोली, ‘‘थानेदार साहब, अगर मैं ने कुछ भी बोल दिया तो वह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा. जान से मार देगा.’’

मैं गरजा, ‘‘कोई तुझे हाथ नहीं लगा सकता. यह कानूनी मामला है. हम तेरी पूरी मदद करेंगे.’’ मेरी बात पर उस के अंदर जैसे कुछ हिम्मत आई. अपनी बात कहने के लिए मुंह खोलने ही वाली थी कि तभी बाहरी दरवाजे से साइकिल का अगला पहिया अंदर आया और तेज आवाज आई, ‘‘ले साइकिल पकड़, कहां मर गई कमीनी?’’

इस आवाज पर वह डर गई. वह दरवाजे की तरफ जाने को हुई, लेकिन उस के उठने से पहले ही एक सिपाही ने आगे बढ़ कर साइकिल पकड़ ली. यह उस का पति नजीर था. अंदर का हाल देख कर वह हैरान रह गया. मुझे सलाम कर के बोला, ‘‘साहब, यह क्या हो रहा है?’’

मैं ने उस से तेज लहजे में पूछा, ‘‘कितनी तनख्वाह है तेरी?’’

‘‘जी 20 हजार रुपए.’’

‘‘क्या स्मगलिंग करता है, कहां से पैसा कमा कर इतना अच्छा घर खरीदा?’’

‘‘नहीं जनाब, कैसी बातें कर रहे हैं? मैं ईमानदार, शरीफ आदमी हूं.’’

उस ने इतना ही कहा था कि मैं ने एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर मारा. वह उछल कर साइकिल पर गिरा. उस की कमीज पकड़ कर मैं उसी कमरे में ले गया, जहां उस की बीवी बैठी थी.

बीवी के सामने हुई बेइज्जती से वह गुस्से से पगला सा गया. उस ने लपक कर सब्जी काटने वाली छुरी उठा ली और तेजी से घुमा कर मुझ पर वार कर दिया. लेकिन छुरी मेरे पेट से 2 इंच फासले से निकल गई. मैं बच गया. मैं ने लपक कर उस की कलाई थाम ली और एक लात उस के पेट पर मारी. वह धड़ाम से गिरा. इस के बाद एएसआई ने उस पर लातघूंसों की बारिश कर दी.

मुझे लगा कि जुलेखा के सिर से शौहर के डर का भूत उतर गया है तो मैं ने कहा, ‘‘देख लड़की, अब किसी से डरने की जरूरत नहीं है. बिना डर के सब कुछ बता दे.’’

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‘‘इंसपेक्टर साहब, मुझे और मेरी मां को तो कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा?’’

मैं ने उसे भरोसा दिया और मदद का वायदा किया. मैं उसे दूसरे कमरे में ले गया.

वहां उस ने बताया, ‘‘साहब, मुझ पर बड़ा जुल्म हुआ है, मुझे बुरी तरह लूटा गया है. मैं ने यह जुल्म अपनी मां की खातिर बरदाश्त किया. आज से कोई 9 महीने पहले की बात है. मैं स्कूल में पढ़ाती थी. उसी स्कूल का एक कलर्क पता नहीं मुझ से क्यों दुश्मनी रखता था.

उस की वजह से मेरी 4-5 माह की तनख्वाह रुकी हुई थी. मेरी एक सहेली ने मुझे नेताजी गनपतलाल से मिलने की सलाह दी. ‘‘मैं उस से मिलने गई. मैं ने सारी विपदा कही. वह मुझ से बहुत अच्छे से मिला और उस ने मेरा काम करवाने का वायदा किया. इसी सिलसिले में मैं उस से मिलती रही. उसी बीच उस की नीयत मुझ पर खराब हो गई.

उस ने मुझे इस तरह अपने जाल में फंसाया कि मुझे अपनी बरबादी साफ नजर आने लगी. मैं होशियार हो गई. जब उसे अंदाजा हुआ कि मैं उस के हाथ नहीं आऊंगी तो उस ने पैंतरा बदला. एक दिन उस ने कहा, ‘जुलेखा, मैं तुम से ब्याह करना चाहता हूं.’

‘‘मैं ने तुरंत इनकार कर दिया. उसे ताज्जुब हुआ कि इतने मशहूर और रईस आदमी से मैं ने शादी से इनकार कर दिया. वह गुस्से में पागल हो गया. मुझे धमकी देने लगा कि वह मुझे ऐसी सजा देगा कि मैं उम्र भर तड़पती रहूंगी. शादी से पहले नजीर उस के यहां चमचागिरी करता था.

एक बार उस ने मुझ से बेहूदा मजाक किया तो मैं ने उसी समय उसे एक थप्पड़ जड़ दिया. ‘‘इस घटना के कुछ दिनों बाद नजीर मेरी मां के पास मेरा रिश्ता मांगने पहुंचा. मां ने मेरी शादी उस के साथ करने से मना कर दिया. इस के बाद एक औरत मेरी मां के पास नजीर के लिए मेरा रिश्ता मांगने आई.

मां ने फिर इनकार कर दिया. इस के बाद दूसरी औरत रिश्ता मांगने आई. मां ने उसे भी डांट कर भगा दिया.

‘‘दूसरे दिन मेरे छोटे भाई को उस के हौस्टल से किसी ने अगवा कर लिया. जब हमें पता चला कि इस के पीछे गनपतलाल का हाथ है तो हम रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुंचे. लेकिन उस के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखी गई. हमें डराधमका कर थाने से भगा दिया गया.

उसी रात गनपतलाल की तरफ से एक खत मिला, जिस में लिखा था, ‘तुम्हारा भाई वापस हौस्टल पहुंच गया है. ध्यान रखो, अगली बार गायब होगा तो हौस्टल में नहीं, मुरदाखाने में मिलेगा.’

‘‘उस रात मैं और मेरी मां बहुत रोईं. इस के बाद बेबस और मजबूर हो कर मुझे नजीर से शादी करनी पड़ी. तब से मैं बड़ी जिल्लत के साथ जी रही हूं. मेरी मां से भी नजीर बड़ा बुरा व्यवहार करता है. पिछले दिनों उस ने उन्हें कांच का गिलास फेंक कर मारा था.’’ इतना कह कर वह सिसकने लगी. उस की दुखभरी दास्तान सुन कर मेरा भी दिल भर आया. मैं ने पूछा, ‘‘यह कुल्फी वाले विलायत का क्या किस्सा है?’’

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जुलेखा बोली, ‘‘साहब, मैं नादान बच्ची नहीं, पढ़ीलिखी समझदार हूं. विलायत से मैं ने कभी शादी के बारे में सोचा तक नहीं था, पर अब मुझे लग रहा है कि वह गनपतलाल व नजीर से बेहतर इंसान था. उस ने जान पर खेल कर मेरी जिंदगी बचाई थी.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

उस की गली में : भाग 2 – हुस्न और हवस की कहानी

यह मामला बड़े अफसरों तक पहुंच चुका था. मैं फटाफट थाने पहुंच गया. मैं सीधे उस कमरे में पहुंचा, जहां विलायत अली को सुलाया गया था. मैं ने देखा, कंबल, बिस्तर सब वैसा ही पड़ा था. कमरे की दीवार में करीब डेढ़ फुट का सुराख था.

जो सिपाही ड्यूटी पर था, उस से बात की तो उस ने बताया कि किसी वक्त उस की आंख लग गई और वह फरार हो गया. एकदम से मुझे खयाल आया कि कहीं बलराज ने ही तो नहीं मुलजिम को फरार करा दिया.

इस की वजह यह थी कि केस मेरे पास आने से उस की बेइज्जती हुई थी. थाने में 4-5 सिपाही उस के पक्के चमचे थे. मैं ने विलायत को लौकअप के बजाय अलग कमरे में सुलाया था.

जाहिर है, उस के फरार होने से मेरी ही बदनामी होनी थी. मुलजिम तो दीवार तोड़ कर जा नहीं सकता था. मुझे यकीन हो गया कि उसे भगाने में बलराज की ही साजिश थी. मैं विलायत अली के घर पहुंचा. उस के बूढ़े बाप ने दरवाजा खोला. मुझे देख कर वह कांपने लगा.

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मांबहन भी बाहर आ गईं. सभी बुरी तरह से डरे हुए थे. मां ने पूछा, ‘‘थानेदार साहब, मेरा पुत्तर तो अच्छा है न?’’

उस की बात का जवाब दिए बिना मैं ने फौरन घर की तलाशी ली. पर विलायत अली वहां नहीं था. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तेरे पुत्तर को मेरी मेहरबानी रास नहीं आई. वह थाने से फरार हो गया है. सचसच बता दे कि वह कहां छिप सकता है? इसी में उस की खैर है.’’

‘‘मुझे नहीं मालूम वह कहां है. पर मैं तुम से कुछ नहीं छिपाऊंगी. उस की पूरी कहानी बताए देती हूं. साहब मेरा बेटा विलायत स्कूल के सामने ठेली लगा कर कुल्फी बेचता था.

पता नहीं कैसे स्कूल की एक मास्टरनी सुलेखा का दिल उस पर आ गया. कुछ दिन तो यह सब चला, फिर उस मास्टरनी ने सब कुछ भुला कर किसी और से शादी कर ली.

‘‘इस से मेरे बेटे को इतनी ठेस पहुंची कि वह फकीरों की तरह मारामारा फिरने लगा. उस ने अपना कामधंधा सब छोड़ दिया. सुबह को घर से जाता तो शाम को ही घर आता.

4-5 दिन पहले पुलिस उसे चोरी के आरोप में पकड़ ले गई. साहब, मैं दावे से कह सकती हूं कि मेरा बेटा चोरी हरगिज नहीं कर सकता. मुझे तो इस में उस मास्टरनी की ही साजिश लगती है.’’

उस की बात सुन कर मैं बाहर आ गया. मेरा इरादा मास्टरनी के घर जाने का था. मास्टरनी की गली में नुक्कड़ पर पान की दुकान थी. वहीं पर मैं ने जीप रुकवा ली.

पान वाला मुझे जानता था. मैं ने उस से विलायत अली और मास्टरनी के बारे में पूछा तो उस ने मास्टरनी के बारे में मुझे ढेर सारी जानकारी दी. मैं पान वाले की दुकान पर खड़ा था, तभी मास्टरनी के घर से एक आदमी साइकिल ले कर निकला.

पता चला कि वह उस मास्टरनी का पति नजीर था, जो इनकम टैक्स विभाग में चपरासी था. उस के पीछेपीछे मास्टरनी भी दरवाजे तक आ गई. मैं देख कर हैरान रह गया कि अदने और साधारण से आदमी से खूबसूरती की मल्लिका मास्टरनी ने शादी कैसे कर ली?

और तो और, वह उम्र में भी उस से काफी बड़ा था. उस की पहली बीवी मर चुकी थी. यह मकान उस ने 4-5 महीने पहले ही लिया था. इस से पहले वह एक कमरे में किराए पर रहता था. चपरासी की नौकरी में उस ने इतना आलीशान मकान कैसे खरीद लिया, इस बात की मुझे हैरानी हो रही थी. अभी मैं सोच ही रहा था कि गनपतलाल लपक कर मेरे पास आया.

मैं उसे अच्छी तरह से जानता था. उस का अपनी पार्टी में अच्छा रसूख था. हाथ मिला कर वह मुझ से घर चलने का अनुरोध करने लगा. मैं ने उस से कहा कि मैं नजीर के बारे में मालूम करने आया था. इस पर उस ने कहा, ‘‘फिर तो आप मेरे साथ चलिए. उस के बारे में मुझ से ज्यादा कौन बता सकता है.’’

मेरा मकसद विलायत तक पहुंचना था. सोचा कि शायद गनपतलाल से ही उस के बारे में कोई जानकारी मिल जाए, इसलिए मैं उस के साथ उस की कोठी में चला गया. मेरे पूछने पर उस ने बताया, ‘‘नजीर काफी तेज बंदा है. वह मेरे पास अकसर आताजाता रहता है.

इनकम टैक्स में चपरासी है, पर उस की काफी पैठ है. शायद उस ने अभी कोई लंबा हाथ मारा है, जो कोठी खरीद ली है. खान साहब, इस की बीवी बड़ी खूबसूरत है. पता नहीं इस ने क्या चक्कर चलाया कि उस ने इस से शादी कर ली.’’ मैं ने पूछा, ‘‘आप इस की बीवी के बारे में कुछ जानते हों तो बताएं.’’

वह कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘खान साहब, मैं उस की मां को ही बुलवा लेता हूं. आप जो चाहें, उसी से पूछ लेना.’’ कह कर उस ने अपने एक आदमी को कुछ कह कर भेज दिया. करीब 10 मिनट में उस का आदमी एक बूढ़ी औरत को बुला लाया.

वह औरत डरीसहमी थी. उस के माथे पर पट्टी बंधी थी. मैं ने पूछा, ‘‘अम्मा, कल रात एक मुलजिम थाने से फरार हुआ है. मैं ने सुना है कि तुम्हारी बेटी का उस से नाम जोड़ा जाता रहा है.’’

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मेरी इस बात से उस का चेहरा उतर गया, वह दुखी हो कर बोली, ‘‘साहब, मेरी बेटी का उस से कोई ताल्लुक नहीं था, वह लड़का ही उस के पीछे पड़ा था. अब शादी के बाद वह बात भी खत्म हो गई,’’

उस की बात से मैं संतुष्ट नहीं था. इसलिए वहां से 12 बजे के करीब मैं थाने आ गया. थाने में सब के मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं. मैं डीएसपी साहब के कमरे में पहुंचा. बलराज मुंह फुलाए एक कोने में खड़ा था. डीएसपी साहब काफी गुस्से में थे. मेरे सैल्यूट के जवाब में बोले, ‘‘क्या रिपोर्ट है नवाज?’’

मैं ने कहा, ‘‘सर, सुबह से उसी कोशिश में लगा हुआ हूं, पर अभी कुछ पता नहीं चला.’’

‘‘नवाज खां, कोशिश नहीं, मुझे रिजल्ट चाहिए और मुलजिम मिलना चाहिए. तुम्हें पता नहीं कि यहां क्या हुआ? आधे घंटे पहले थाने के सामने 2 हजार आदमी जमा हो गए थे.

वे मांग कर रहे थे कि पुलिस के जुल्म से जो आदमी मरा है, उस की मौत की जिम्मेदार पुलिस है. मरने वाले की लाश हमें दो.’’ डीएसपी साहब ने गुस्से में कहा.

बलराज तीखे स्वर में बोला, ‘‘यह सब नवाज खान की नरमी की वजह से हुआ.’’

‘‘खामोश रहो,’’ मैं डीएसपी साहब की मौजूदगी में चिल्ला पड़ा, ‘‘यह मेरी नरमी की वजह से नहीं, तुम्हारी सख्ती का नतीजा है. तुम ने उसे जानवरों की तरह मारा.

तुम ने उस से पैसे वसूल किए. तुम्हारे मातहत ने उस की मांबहन को तंग किया. सिर्फ तुम्हारी वजह से वह छत से कूद कर खुदकुशी कर रहा था. गनीमत समझो कि टाहम पर पहुंच कर मैं ने उसे बचा लिया, वरना तुम्हारी तो बेल्ट उतर चुकी होती.’’ मेरा गुस्सा देख कर बलराज चुप हो गया. इस बार डीएसपी साहब नरमी से बोले, ‘‘देखो, आपस में अंगुलियां उठाने से कोई फायदा नहीं. यह हमारी इज्जत का सवाल बन गया है. कुछ सियासी लोग मामले को हवा दे रहे हैं. इस वक्त साढ़े 12 बजे हैं.

कल सुबह साढ़े 10 बजे तक मुलजिम मिल जाना चाहिए. हमारे पास 22 घंटे हैं. उसे ढूंढ़ कर लाना तुम दोनों की जिम्मेदारी है. इस बारे में जो मदद चाहिए, वह मिलेगी. एसपी साहब भी कौन्टैक्ट में हैं.’’

मैं अपने कमरे में गया. एएसआई विलायत अली के 4 दोस्तों को पकड़ लाया था, पर उन से कोई खास बात मालूम नहीं हो सकी थी. बस यही पता चला कि विलायत स्कूल के सामने कुल्फी बेचता था.

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

उस की गली में : भाग 1 – हुस्न और हवस की कहानी

बगल वाले कमरे में इंसपेक्टर बलराज एक मुलजिम की जम कर पिटाई कर रहा था. उस की पिटाई से मुलजिम जोरजोर चीख रहा था, ‘‘साहब, मैं ने कुछ नहीं किया. मुझे माफ कर दो, मैं बेकसूर हूं.’’

वह एक शहरी थाना था. वहां मेरे अलावा दूसरा इंसपेक्टर बलराज था. थाने में ही डीएसपी का भी औफिस था. इंसपेक्टर बलराज बेहद सख्त था.

गाली उस के मुंह से बातबात में निकलती थी. कई मुलजिम तो डर के मारे झूठे इलाजम को भी अपने  सिर ले लेते थे. लेकिन मुझे वह ‘बाऊजी थानेदार’ कह कर पुकारता था, लेकिन पीठ पीछे मेरा मजाक उड़ाता था.

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जिस मुलजिम की वह पिटाई कर रहा था, उस की आवाज आई, ‘‘साहब, बहुत जोर से पेशाब लगा है. मुझे जाने दीजिए.’’ पता नहीं क्यों मुलजिम की आवाज में मुझे एक अजीब सा दर्द महसूस हुआ. सर्दियों के दिन थे, शाम भी होने वाली थी.

मैं ने खिड़की पर पड़ी चिक से देखा, 2 सिपाही सहारा दे कर उस मुलजिम को छत पर बने पेशाबखाने ले जा रहे थे. उस की हालत देख कर ही लग रहा था कि उस की जम कर खातिरदारी की गई थी.

पुलिस भाषा में पिटाई को खातिरदारी कहते हैं. मैं खाली बैठा था, टहलता हुआ बाहर चला गया. अचानक मुझे छत पर धमाचौकड़ी की आवाज आती महसूस हुई.

ऊपर कौन भाग रहा है, जानने के लिए मैं छत पर चला गया. छत कोई 20 फुट ऊंची थी. ऊपर पहुंच कर मैं ने मुलजिम को मुंडेर की ओर भागते देखा. उसे पकड़ने के चक्कर में एक सिपाही गिर पड़ा था. मैं समझ गया कि मुलजिम पुलिस से छूट कर छत से नीचे छलांग लगाना चाहता है.

मैं तेजी से उस की तरफ दौड़ा. तब तक वह मुंडेर पर पांव रख चुका था, वह छलांग लगाता, उस के पहले ही मैं ने पीछे से उसे पकड़ लिया. नीचे सड़क पर लोगों का आनाजाना चालू था.

मैं उसे घसीटता हुआ पीछे ले आया. सड़क के लोग घबरा कर ऊपर देख रहे थे. वह जोरों से चीख रहा था, ‘‘मुझे छोड़ दो, मुझे मर जाने दो.’’

वह जैसे पागल हो रहा था. दोनों सिपाहियों ने मुश्किल से उसे काबू में किया. देखतेदेखते छत और सड़क पर मजमा लग गया. जैसे ही उसे नीचे लाया गया, गुस्से से पागल हो कर इंसपेक्टर बलराज उस पर टूट पड़ा. मुलजिम की मां और बहन थाने में बैठी थीं.

वे रोने लगीं. पिटतेपिटते मुलजिम बेहोश हो गया, पर बलराज के हाथ नहीं रुक रहे थे. मैं ने किसी तरह बलराज को रोका.

मुलजिम का नाम विलायत अली था. वह शहर का ही रहने वाला था. उस की मां और बहन हाथ जोड़ कर रोते हुए मुझ से कह रही थीं कि विलायत बेकसूर है. दोनों लोगों के घरों में काम कर के गुजारा करती हैं. बलराज ने उन से 5 सौ रुपए मांगे थे.

घर के जेवर, बरतन आदि बेच कर उन्होंने रुपए दे दिए थे. इस के बावजूद भी वह विलायत को नहीं छोड़ रहे. अब वह और पैसे मांग रहे हैं. वे और पैसे कहां से लाएं.

बलराज विलायत अली के खिलाफ फरारी का नया मामला दर्ज कर रहा था, जबकि 20 फुट ऊंची उस बिल्डिंग से किसी मरेकुचे आदमी का कूदना असंभव लगता था.

सही में तो जुल्म से घबरा कर खुदकुशी का मामला बनना चाहिए था. मैं सबकुछ देख और समझ रहा था. अगर मैं कुछ कहता तो बलराज और नाराज हो जाता. इसलिए मैं चुप रहा.

विलायत की मां और बहन ने जो बातें बताई थीं, उस से साफ लग रहा था कि उसे जबरदस्ती फंसाया जा रहा था. मुझे यहां आए अभी एक महीना ही हुआ था.

मैं अपने कमरे में पहुंचा तो वहां विलायत की मां बेहोश पड़ी थी, बहन रो रही थी. बहन हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘थानेदार साहब, मेरी मां और भाई को उस जालिम से बचा लीजिए. आप जहां कहेंगे, जिस के पास कहेंगे, मैं चली जाऊंगी. बस मेरे भाई पर रहम करें.’’

उस की बात सुन कर मैं चौंका. उस की बातों से लगा, उसे कोई कहीं भेजना चाहता था? वजह साफ थी, लड़की जवान थी. देखने में भी अच्छी थी. मैं ने पूछा, ‘‘किसी ने तुम से कहीं चलने को कहा था क्या?’’

‘‘हां, कल एक सिपाही ने थानेदार के घर जा कर भाई की जमानत की बात करने को कहा था.’’

‘‘क्या तुम उस के यहां गई थी, फिर क्या हुआ?’’

‘‘हां, मैं गई थी उस सिपाही के साथ. मेरी मां भी साथ थी. उस ने हमें बहुत डरायाधमकाया. इस के बाद उस सिपाही की नीयत खराब हो गई. उस ने मां को कोई फार्म लाने के लिए बाहर जाने को कहा तो मैं उस की मंशा समझ कर मां के साथ बाहर चली गई.’’

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उस की बात सुन कर मुझे उस पुलिस वाले पर बहुत गुस्सा आया. अब तक उस की बूढ़ी मां होश में आ चुकी थी. मैं ने उन दोनों को तसल्ली दी. इस के बाद मैं एक निर्णय ले कर डीएसपी साहब के पास जा कर बोला, ‘‘जनाब, विलायत का केस मैं हैंडल करना चाहता हूं.

बलराज के पास वक्त नहीं है, जिस की वजह से वह इस केस पर ठीक से ध्यान नहीं दे पा रहे हैं.’’

‘‘नवाज, यह कोई खास मामला नहीं है. उसी के पास रहने दो. ऐसा करने से आपस में खटास पैदा हो सकती है.’’

मुझे उन से इस जवाब की उम्मीद नहीं थी. मैं समझ गया कि बलराज मुझ से पहले डीएसपी साहब से मिल कर गया है. मैं कुरसी से उठ ही रहा था कि डीएसपी साहब के फोन की घंटी बज उठी.

बीच में उठ कर जाना ठीक नहीं था, इसलिए मैं बैठ गया. करीब 10 मिनट बात होती रही. डीएसपी साहब फोन पर बड़े अदब से बात कर रहे थे. बातचीत से लग रहा था कि फोन शायद एसपी या डीआईजी का था. फोन पर बात खत्म होते ही डीएसपी साहब ने चेहरे का पसीना पोंछने के बाद कहा, ‘‘नवाज खां, यह केस तुम हैंडल करो. बलराज से सारा रिकौर्ड ले लो.’’ उन्होंने कहा कि थाने की छत पर जो तमाशा हुआ, उसे देखने के लिए सड़क पर चल रहे लोग जमा हो गए थे.

ट्रैफिक जाम हो गया था. उस भीड़ में किसी मंत्री की गाड़ी थी. उस के पीछे एक जीप में प्रैस वाले थे. उन लोगों ने उस हाथापाई की फोटो खींच ली थी.

इस घटना से मंत्रीजी बेहद नाराज हो गए. उन्होंने सारा मामला खुद देखा था. इस थाने के मारपीट के पहले भी 1-2 मामले उछले थे. उन्होंने ही डीआईजी साहब से कहा है कि इस केस की सख्ती से जांच की जाए और जिस की वजह से यह सब हुआ है, उस के खिलाफ सख्ती से काररवाई की जाए.

मैं चलने लगा तो उन्होंने मुझ से इसंपेक्टर बलराज को भेजने को कहा. मैं ने बलराज को उन का मैसेज दे दिया. विलायत अली की हालत काफी खराब थी.

मैं ने करीब के क्लीनिक से डाक्टर बुला कर उसे दवा दिलवाई और हल्दी मिला दूध दे कर उसे लौकअप के बजाय कमरे में सुला कर क्वार्टर पर चला आया. उस की निगरानी के लिए एक सिपाही की ड्यूटी लगा दी थी.

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अगले दिन सवेरेसवेरे एक सिपाही ने मेरा दरवाजा खटखटाया और खबर दी कि मुलजिम विलायत अली जेल से फरार हो गया है. मैं सोच में पड़ गया. उस की हालत ऐसी नहीं थी कि वह भाग जाता. उसे काफी अंदरूनी चोटें लगी थीं.

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उस की गली में : भाग 4 – हुस्न और हवस की कहानी

उस का यह एहसान मैं कभी नहीं भूल सकती. उसे झूठे चोरी के केस में फंसाया गया है. जरूर इस के पीछे इन्हीं लोगों का हाथ होगा.’’ यह एक खास बात थी, जो मैं ने दिमाग में रख ली. विलायत अली के बारे में उसे कुछ खबर नहीं थी. मैं ने नजीर को गिरफ्तार किया और एक सिपाही को जुलेखा की हिफाजत के लिए छोड़ा. जुलेखा के भाई को भी हौस्टल से निकाल कर बहन के पास पहुंचा दिया.

नजीर को ले कर मैं थाने पहुंचा. थाने के गेट पर बहुत से सिपाही खड़े थे. सभी परेशान थे. पूछने पर एक सिपाही ने कहा, ‘‘साहब, बलराज साहब की किसी ने गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

एक पल को मेरा दिमाग सुन्न हो गया. नजीर को 2 सिपाहियों के हवाले किया और 2 सिपाहियों के साथ मौकाएवारदात के लिए रवाना हो गया. सिपाही ने मुझे बताया था कि बलराज की लाश एक बोरी में दरिया के किनारे मिली थी.

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जब मैं वहां पहुंचा तो पुलिस वाले काररवाई कर रहे थे. डीएसपी साहब भी वहीं मौजूद थे. गोली बलराज के हलक में लगी थी. जिस्म पर वर्दी मौजूद थी, पर उस की हालत से लगता था कि उस की किसी से जम कर हाथापाई हुई थी. अचानक मेरे दिमाग में एक खयाल आया. बलराज चंद घंटे पहले जब थाने से निकला था तो वह ऐसे निकला था, जैसे मुलजिम को ले कर ही आएगा. पर उस का तो कत्ल हो गया था.

डीएसपी समेत तमाम अमला ड्यूटी पर था. जैसेजैसे रात बीत रही थी, सब की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. विलायत की तलाश में भेजी गई सारी टीमें मुस्तैदी से अपने काम में लगी थीं. बलराज के कत्ल ने मामले को और संगीन बना दिया था. हमारे पास सुबह साढ़े 10 बजे तक का वक्त था.

एसपी साहब की इत्तला के मुताबिक हालात बहुत खराब थे. शहर में काफी तनाव था. खबर मिली कि सुबह को हजारों लोग जुलूस की शक्ल में थाने तक पहुंचेंगे और धरना देंगे. डर यह था कि कहीं भीड़ थाने पर हमला न कर दे.

इस खतरे को टालना जरूरी था और उस के लिए एक ही रास्ता था, विलायत अली की बरामदगी. उस वक्त रात के ढाई बजे थे. डीएसपी साहब ने मुझे अपने कमरे में बुलाया. मैं उस वक्त नजीर से पूछताछ कर रहा था. सख्ती करने के बाद उस ने बताया कि उसी के कहने पर ही गनपतलाल और सेठ अहद ने विलायत अली को चोरी के झूठे केस में फंसाया था, लेकिन उसे उस के फरार होने के बारे में कुछ पता नहीं था. जब मैं डीएसपी साहब के कमरे में पहुंचा तो वहां वह सिपाही भी मौजूद था, जिसे मैं ने सेठ अहद की कोठी पर लगाया था.

डीएसपी के कहने पर उस ने मेरे सामने अपनी रिपोर्ट दोहराई. उस ने बताया कि शाम 4 बजे बलराज सेठ अहद के घर गया था. फिर दोनों एक कार में बैठ कर कहीं चले गए थे. उस के डेढ़ घंटे बाद बलराज की लाश मिली थी. इस रिपोर्ट में खास बात यह थी कि बलराज ने ही विलायत को फरार कराया था और उस में सेठ अहद भी शामिल था.

डीएसपी से सलाह ले कर मैं सीधा सेठ अहद को गिरफ्तार करने पहुंचा. उस वक्त सुबह हो रही थी. सेठ अहद ने अपनी गिरफ्तारी पर बहुत हंगामा किया, धमकियां भी दीं. उस की कोठी की भी तलाशी ली गई, लेकिन वहां कुछ नहीं मिला. सेठ अहद के थाने पहुंचते ही गनपतलाल और अन्य लोगों के सिफारिशी फोन आने लगे. इतना ही नहीं, 3-4 कारों से कुछ रसूख वाले लोग भी आए.

एसपी साहब भी थाने पहुंच गए. रसूखदार लोग सेठ अहद को जमानत पर छोड़ने की सिफारिश कर रहे थे. एसपी साहब ने उन की बात नहीं मानी. सेठ अहद से पूछताछ जारी थी. सुबह साढ़े 8 बज रहे थे, पर उस ने कुछ नहीं बताया था.

एकाएक मेरे जेहन में बिजली कौंधी, मैं उछल पड़ा. मैं भागता हुआ एसपी साहब के पास पहुंचा. मैं ने पूछा, ‘‘सर, इस जुलूस का सरगना कौन है? इस विरोध के पीछे कौन है?’’

एसपी साहब बोले, ‘‘वैसे तो 2-4 लोग हैं, पर खास नाम नेता गनपतलाल का है.’’

मैं तुरंत 5-6 सिपाहियों व एक एएसआई को ले कर डीएसपी साहब की जीप से फौरन रवाना हो गया. मैं सीधा गनपतलाल की कोठी पर पहुंचा. उस समय गनपतलाल वहां नहीं था. कोठी की तलाशी लेने पर एक अंधेरे कमरे में विलायत मिल गया. तुरंत उसे कब्जे में ले कर कोठी से निकल आया.

ठीक डेढ़ घंटे बाद जब मैं थाने वाली सड़क पर मुड़ा तो ट्रैफिक पुलिस वाले ने बताया कि आगे रास्ता बंद है. एक बड़ा जुलूस थाने की तरफ गया है. मैं ने घड़ी देखी, 11 बजने वाले थे. मुलजिम विलायत अली मेरी जीप में 2 सिपाहियों के बीच पिछली सीट पर बैठा था.

रास्ता बदल कर मैं थाने पहुंचा. मैं ने देखा 3-4 हजार लोगों का एक बड़ा हुजूम थाने की तरफ आ रहा था. लेकिन पुलिस ने भीड़ को थाने से करीब 50 गज दूर रोक रखा था.

मैं जीप ले कर भीड़ के पास पहुंच गया. भीड़ में सब से आगे मुझे गनपतलाल नजर आया. उस के आसपास नौजवानों ने घेरा बना रखा था. वे जोरजोर से नारे लगा रहे थे. मैं ने डीएसपी साहब से मेगाफोन मांगा. उन दिनों यह नयानया आया था.

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मैं ने मेगाफोन पर गनपतलाल का नाम पुकारा. एकदम शांति छा गई. मैं ने पूछा, ‘‘गनपतलाल, आप की डिमांड क्या है?’’

गनपतलाल भड़क कर 2 कदम आगे आया. वह चीख कर बोला, ‘‘आग लगाना चाहते हैं हम इस जुल्म के गढ़ को, जहां विलायत अली जैसे बेगुनाह लोगों की जान ली जाती है.’’ मैं ने एएसआई को इशारा किया. उस ने विलायत अली को थाम कर सारे हुजूम के सामने खड़ा कर दिया.

विलायत को जीवित देख कर गनपतलाल का चेहरा एकदम सफेद पड़ा गया. उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. भीड़ में कुछ विलायत अली के रिश्तेदार भी थे. उन्होंने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया और जोर से पूछा, ‘‘विलायत अली, तुम किस की कैद में थे?’’ विलायत के एक रिश्तेदार ने मुझ से मेगाफोन ले कर जोश में कहा, ‘‘इस में पुलिस का कुसूर नहीं है. यह सारा दोष गनपतलाल का है.’’

भीड़ में मौजूद लोग आपस में खुसुरफुसुर करने लगे. मेरी नजर गनपतलाल पर ही जमी थी. अचानक वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा. पुलिस वाले तेजी से उस की ओर बढ़े.

उसे पुलिस की गाड़ी से अस्पताल भेजा गया, जहां पता चला कि उसे दिल का दौरा पड़ा था. अस्पताल में जब उसे होश आया तो उस से पूछताछ की गई. पता चला कि बलराज ने सेठ अहद और गनपतलाल के साथ मिल कर ही विलायत अली को थाने से फरार कराया था.

बलराज के साथ उन दोनों के गहरे संबंध थे. इस तरह उन लोगों ने एक तीर से 2 शिकार किए थे. बलराज को मुझ से बदला लेना था और गनपतलाल को वह आदमी मिल गया था, जिस का वह कत्ल करना चाहता था.

वह उस का कत्ल कर के नजीर की इच्छा पूरी करना चाहता था, ताकि नजीर पर उस की पकड़ मजबूत हो जाए. लेकिन हालात कुछ इस तरह बने कि लोग पुलिस का विरोध करने पर उतर आए. गनपतलाल पुलिस को बदनाम करने का मौका खोना नहीं चाहता था.

वह अपनी राजनीति की दुकान चमकाना चाहता था. उसी ने लोगों को भड़काया था कि पुलिस के जुल्म से विलायत मर गया है. विभागीय दबाव बढ़ने पर बलराज ने गनपतलाल से विलायत को छोड़ने के लिए कहा. उस ने उस की बात नहीं मानी. इसी बात पर दोनों में कहासुनी हुई, जो हाथापाई तक जा पहुंची. उसी दौरान बलराज ने रिवौल्वर निकाला. हाथापाई में बलराज से गोली चल गई, जो उसी को लगी.

जुलूस के सामने अगर विलायत को पेश नहीं किया जाता तो हालात बिगड़ सकते थे. जांच में नजीर मुलजिमों का साथी साबित हुआ. उस पर गबन का भी केस बना. अदालत में मामला चला तो उसे 7 सालों की सजा हुई.

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सेठ अहद और गनपतलाल को मौत की सजा हुई. बाद में हाईकोर्ट ने उन की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. जुलेखा ने केस लड़ कर पति से तलाक ले लिया. बाद में उस ने विलायत अली से निकाह कर लिया. विलायत ने 2 सालों में बहुत तरक्की की. वह बर्फ के एक कारखाने में हिस्सेदार है. जुलेखा उस के साथ खुश है.

नचनिया : वो हो गया नाचने वाली का दीवाना

‘‘कितना ही कीमती हो… कितना भी खूबसूरत हो… बाजार के सामान से घर सजाया जाता है, घर नहीं बसाया जाता. मौजमस्ती करो… बड़े बाप की औलाद हो… पैसा खर्च करो, मनोरंजन करो और घर आ जाओ.

‘‘मैं ने भी जवानी देखी है, इसलिए नहीं पूछता कि इतनी रात गए घर क्यों आते हो? लेकिन बाजार को घर में लाने की भूल मत करना. धर्म, समाज, जाति, अपने खानदान की इज्जत का ध्यान रखना,’’ ये शब्द एक अरबपति पिता के थे… अपने जवान बेटे के लिए. नसीहत थी. चेतावनी थी.

लेकिन पिछले एक हफ्ते से वह लगातार बाजार की उस नचनिया का नाच देखतेदेखते उस का दीवाना हो चुका था.

वह जानता था कि उस के नाच पर लोग सीटियां बजाते थे, गंदे इशारे करते थे. वह अपनी अदाओं से महफिल की रौनक बढ़ा देती थी. लोग दिल खोल कर पैसे लुटाते थे उस के नाच पर. उस के हावभाव में वह कसक थी, वह लचक थी कि लोग ‘हायहाय’ करते उस के आसपास मंडराते, नाचतेगाते और पैसे फेंकते थे.

वह अच्छी तरह से जानता था कि जवानी से भरपूर उस नचनिया का नाचनागाना पेशा था. लोग मौजमस्ती करते और लौट जाते. लौटा वह भी, लेकिन उस के दिलोदिमाग पर उस नचनिया का जादू चढ़ चुका था. वह लौटा, लेकिन अपने मन में उसे साथ ले कर. उफ, बला की खूबसूरती उस की गजब की अदाएं. लहराती जुल्फें, मस्ती भरी आंखें. गुलाब जैसे होंठ.वह बलखाती कमर, वह बाली उमर. वह दूधिया गोरापन, वह मचलती कमर. हंसती तो लगता चांद निकल आया हो.

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वह नशीला, कातिलाना संगमरमर सा तराशा जिस्म. वह चाल, वह ढाल, वह बनावट. खरा सोना भी लगे फीका. मोतियों से दांत, हीरे सी नाक, कमल से कान, वे उभार और गहराइयां. जैसे अंगूठी में नगीने जड़े हों.

अगले दिन उस ने पूछा, ‘‘कीमत क्या है तुम्हारी?’’

नचनिया ने कहा, ‘‘कीमत मेरे नाच की है. जिस्म की है. तुम महंगे खरीदार लगते हो. खरीद सकते हो मेरी रातें, मेरी जवानी. लेकिन प्यार करने लायक तुम्हारे पास दिल नहीं. और मेरे प्यार के लायक तुम नहीं. जिस्म की कीमत है, मेरे मन की नहीं. कहो, कितने समय के लिए? कितनी रातों के लिए? जब तक मन न भर जाए, रुपए फेंकते रहो और खरीदते रहो.’’

उस ने कहा, ‘‘अकेले तन का मैं क्या करूंगा? मन बेच सकती हो? चंद रातों के लिए नहीं, हमेशा के लिए?’’

नचनिया जोर से हंसते हुए बोली, ‘‘दीवाने लगते हो. घर जाओ. नशा उतर जाए, तो कल फिर आ जाना महफिल सजने पर. ज्यादा पागलपन ठीक नहीं. समाज को, धर्म के ठेकेदारों को मत उकसाओ कि हमारी रोजीरोटी बंद हो जाए. यह महफिल उजाड़ दी जाए. जाओ यहां से मजनू, मैं लैला नहीं नचनिया हूं.’’

पिता को बेटे के पागलपन का पता लगा, तो उन्होंने फिर कहा, ‘‘बेटे, मेले में सैकड़ों दुकानें हैं. वहां एक से बढ़ कर एक खूबसूरत परियां हैं. तुम तो एक ही दुकान में उलझ गए. आगे बढ़ो. और भी रंगीनियां हैं. बहारें ही बहारें हैं. बाजार जाओ. जो पसंद आए खरीदो. लेकिन बाजार में लुटना बेवकूफों का काम है.

‘‘अभी तो तुम ने दुनिया देखनी शुरू की है मेरे बेटे. एक दिल होता है हर आदमी के पास. इसे संभाल कर रखो किसी ऊंचे घराने की लड़की के लिए.’’

लेकिन बेटा क्या करे. नाम ही प्रेम था. प्रेम कर बैठा. वह नचनिया की कातिल निगाहों का शिकार हो चुका था. उस की आंखों की गहराई में प्रेम का दिल डूब चुका था. अगर दिल एक है, तो जान भी तो एक ही है और उसकी जान नचनिया के दिल में कैद हो चुकी थी.

पिता ने अपने दीवान से कहा, ‘‘जाओ, उस नचनिया की कुछ रातें खरीद कर उसे मेरे बेटे को सौंप दो. जिस्म की गरमी उतरते ही खिंचाव खत्म हो जाएगा. दीवानगी का काला साया उतर जाएगा.’’

नचनिया सेठ के फार्महाउस पर थी और प्रेम के सामने थी. तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. प्रेम ने उसे सिर से पैर तक देखा.

नचनिया उस के सीने से लग कर बोली, ‘‘रईसजादे, बुझा लो अपनी प्यास. जब तक मन न भर जाए इस खिलौने से, खेलते रहो.’’

प्रेम के जिस्म की गरमी उफान न मार सकी. नचनिया को देख कर उस की रगों का खून ठंडा पड़ चुका था.

उस ने कहा, ‘‘हे नाचने वाली, तुम ने तन को बेपरदा कर दिया है, अब रूह का भी परदा हटा दो. यह जिस्म तो रूह ने ओढ़ा हुआ है… इस जिस्म को हटा दो, ताकि उस रूह को देख सकूं.’’

नचनिया बोली, ‘‘यह पागलपन… यह दीवानगी है. तन का सौदा था, लेकिन तुम्हारा प्यार देख कर मन ही मन, मन से मन को सौसौ सलाम.

‘‘पर खता माफ सरकार, दासी अपनी औकात जानती है. आप भी हद में रहें, तो अच्छा है.’’

प्रेम ने कहा, ‘‘एक रात के लिए जिस्म पाने का नहीं है जुनून. तुम सदासदा के लिए हो सको मेरी ऐसा कोई मोल हो तो कहो?’’

नचनिया ने कहा, ‘‘मेरे शहजादे, यह इश्क मौत है. आग का दरिया पार भी कर जाते, जल कर मर जाते या बच भी जाते. पर मेरे मातापिता, जाति के लोग, सब का खाना खराब होगा. तुम्हारी दीवानगी से जीना हराम होगा.’’

प्रेम ने कहा, ‘‘क्या बाधा है प्रेम में, तुम को पाने में? तुम में खो जाने में? मैं सबकुछ छोड़ने को राजी हूं. अपनी जाति, अपना धर्म, अपना खानदान और दौलत. तुम हां तो कहो. दुनिया बहुत बड़ी है. कहीं भी बसर कर लेंगे.’’

नचनिया ने अपने कपड़े पहनते हुए कहा, ‘‘ये दौलत वाले कहीं भी तलाश कर लेंगे. मैं तन से, मन से तुम्हारी हूं, लेकिन कोई रिश्ता, कोई संबंध हम पर भारी है. मैं लैला तुम मजनू, लेकिन शादी ही क्यों? क्या लाचारी है? यह बगावत होगी. इस की शिकायत होगी. और सजा बेरहम हमारी होगी. क्यों चैनसुकून खोते हो अपना. हकीकत नहीं होता हर सपना. यह कैसी तुम्हारी खुमारी है. भूल जाओ तुम्हें कसम हमारी है.’’

अरबपति पिता को पता चला, तो उन्होंने एकांत में नचनिया को बुलवा कर कहा, ‘‘वह नादान है. नासमझ है. पर तुम तो बाजारू हो. उसे धिक्कारो. समझाओ. न माने तो बेवफाईबेहयाई दिखाओ. कीमत बोलो और अपना बाजार किसी अनजान शहर में लगाओ. अभी दाम दे रहा हूं. मान जाओ.

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‘‘दौलत और ताकत से उलझने की कोशिश करोगी, तो न तुम्हारा बाजार सजेगा, न तुम्हारा घर बचेगा… क्या तुम्हें अपने मातापिता, भाईबहन और अपने समुदाय के लोगों की जिंदगी प्यारी नहीं? क्या तुम्हें उस की जान प्यारी नहीं? कोई कानून की जंजीरों में जकड़ा होगा. कैद में रहेगा जिंदगीभर. कोई पुलिस की मुठभेड़ में मारा जाएगा. कोई गुंडेबदमाशों के कहर का शिकार होगा. क्यों बरबादी की ओर कदम बढ़ा रही हो? तुम्हारा प्रेम सत्ता और दौलत की ताकत से बड़ा तो नहीं है.

‘‘मेरा एक ही बेटा है. उस की एक खता उस की जिंदगी पर कलंक लगा देगी. अगर तुम्हें सच में उस से प्रेम

है, तो उस की जिंदगी की कसम… तुम ही कोई उपाय करो. उसे अपनेआप से दूर हटाओ. मैं जिंदगीभर तुम्हारा कर्जदार रहूंगा.’’

नचनिया ने उदास लहजे में कहा, ‘‘एकांत में यौवन से भरे जिस्म को जिस के कदमों में डाला, उस ने न पीया शबाब का प्याला. उसे तन नहीं मन चाहिए. उसे बाजार नहीं घर चाहिए.

उसे हसीन जिस्म के अंदर छिपा मन का मंदिर चाहिए. उपाय आप करें. मैं खुद रोगी हूं. मैं आप के साथ हूं प्रेम को संवारने के लिए,’’ यह कह कर नचनिया वहां से चली गई.

दौलतमंद पिता ने अपने दीवान से कहा, ‘‘बताओ कुछ ऐसा उपाय, जिस का कोई तोड़ न हो. उफनती नदी पर बांध बनाना है. एक ही झटके में दिल की डोर टूट जाए. कोई और रास्ता न बचे उस नचनिया तक पहुंचने का. उसे बेवफा, दौलत की दीवानी समझ कर वह भूल जाए प्रेमराग और नफरत के बीज उग आए प्रेम की जमीन पर.’’

दीवान ने कहा, ‘‘नौकर हूं आप का. बाकी सारे उपाय नाकाम हो सकते हैं, प्रेम की धार बहुत कंटीली होती है. सब से बड़ा पाप कर रहा हूं बता कर. नमक का हक अदा कर रहा हूं. आप उसे अपनी दासी बना लें. आप की दौलत से आप की रखैल बन कर ही प्रेम उस से मुंह मोड़ सकता है.

‘‘फिर अमीरों का रखैल रखना तो शौक रहा है. कहां किस को पता चलना है. जो चल भी जाए पता, तो आप की अमीरी में चार चांद ही लगेंगे.’’

नचनिया को बुला कर बताया गया. प्रस्ताव सुन कर उसे दौलत भरे दिमाग की नीचता पर गुस्सा भी आया. लेकिन यदि प्रेम को बचाने की यही एक शर्त है, तो उसे सब के हित के लिए स्वीकारना था. उस ने रोरो कर खुद को बारबार चुप कराया. तो वह बन गई अपने दीवाने की नाजायज मां.

प्रेम तक यह खबर पहुंची कि बाजारू थी बिक गई दौलत के लालच में. जिसे तुम्हारी प्रेमिका से पत्नी बनना था, वह रुपए की हवस में तुम्हारे पिता की रखैल बन गई.

प्रेम ने सुना, तो पहली चोट से रो पड़ा वह. पिंजरे में बंद पंछी की तरह फड़फड़ाया, लड़खड़ाया, लड़खड़ा कर गिरा और ऐसा गिरा कि संभल न सका.

वह किस से क्या कहता? क्या पिता से कहता कि मेरी प्रेमिका तुम्हारी हो गई? क्या जमाने से कहता कि पिता

ने मेरे प्रेम को अपना प्रेम बना लिया? क्या समझाता खुद को कि अब वह मेरी प्रेमिका नहीं मेरी नाजायज सौतेली मां है.

वह बोल न सका, तो बोलना बंद कर दिया उस ने. हमेशाहमेशा के लिए खुद को गूंगा बना लिया उस ने.

पिता यह सोच कर हैरान था कि जिंदगीभर पैसा कमाया औलाद की खुशी के लिए. उसी औलाद की जान छीन ली दौलत की धमक से. क्या पता दीवानगी. क्या जाने दिल की दुनिया. प्यार की अहमियत. वह दौलत को ही सबकुछ समझता रहा.

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अब दौलत की कैद में वह अरबपति पिता भटक रहा है अपने पापों का प्रायश्चित्त करते हुए हर रोज.

उठाइए और्गेज्म का आनंद

स्त्रीपुरुष संबंध में चरम आनंद को और्गेज्म कहा जाता है. स्त्रियों में यह स्थिति धीरेधीरे या देर से आती है. इसलिए कई स्त्रियों को इस के आने या होने का एहसास भी नहीं होता. सैक्सोलौजिस्ट्स यह मानते हैं कि मनुष्य देह मल्टीपल और्गेज्म वाली है जबकि स्त्री को प्रकृति ने पुरुष की तुलना में ज्यादा बार और्गेज्म पर पहुंचने की क्षमता दी है. कुपोषण, पोषणहीनता विटामिंस की कमी, सेक्स संबंधों में अनाड़ीपन या अल्पज्ञान के चलते हमारे देश में लोग मोनो और्गेज्म का ही सुख पाते हैं और उसे ही पर्याप्त समझते हैं.

सुहागरात का प्रथम मिलन

अकसर दंपती सुहागरात के दिन चरम आनंद का अनुभव नहीं कर पाते. उन्हें लगता है व्यर्थ ही इतने सपने पाले.

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एक दंपती कहता है, बहुत भयंकर रहा हमारा प्रथम मिलन. पत्नी को छूते ही पति का काम हो गया (स्खलित हो गया). पत्नी कोरी (चरमानंद का एक अंश तक नहीं) ही रह गई. अभी पतिपत्नी के बीच न कुछ बात हुई, न विचार…पति ग्लानि का शिकार हो गया. उसी को दबाने के लिए उस ने नया पैंतरा अपनाया. शादी में ससुराल में हुए स्वागत और लेनदेन में मीनमेख निकालने लगा. पत्नी भी कब तक चुप रहती. दूसरेतीसरे दिन पति सहज था पर पत्नी न हो पाई. तब पति ने सचाई पत्नी को बताई. इस सच को बता कर और अपनी कमजोरी बता कर पति ने पत्नी का मन जीत लिया. उस दिन वे दोनों मन से मिले. दरअसल, वे उसी दिन को अपनी सुहागरात का नाम देते हैं.

कई बार प्रथम रात्रि में आनंद भी संभव नहीं होता, और्गेज्म तो दूर की बात है. दरअसल, उस रात्रि में कई तरह के डर हावी रहते हैं. मिलन के लिए दोनों की मानसिकता एकजैसी हो, यह भी आवश्यक नहीं. चरमानंद तालमेल, स्नेह व सद्व्यवहार पर निर्भर करता है.

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लंबे समय बाद भी सुख

अकसर पुरुष आनंद पा ले तो स्त्रियां अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती हैं. पूछने पर कह देती हैं कि उन्हें आनंद आ गया. असल में 2 या 3 बच्चे हो जाने के बाद भी आनंद आता है. एक युवती कहती है, ‘‘संभोग करने में उसे दर्द रहता था. सहेलियों ने सलाह दी कि बच्चा पैदा होने पर यह दर्द गायब हो जाएगा. दर्द गायब हुआ पर चरमानंद तीसरे बच्चे के बाद ही आया. चरमानंद के बाद मैंने संभोग की असली स्टेज जानी जिस के बाद कुछ करने का मन नहीं करता.’’

एक स्त्री कहती है, ‘‘मुझे मेनोपौज के समय चरमानंद का पता चला. उस समय कामोत्तेजना बढ़ गई. मैं स्वयं ही इन से फरमाइश करने लगी. पहले चरमानंद आ जाता तो जीवन के लंबे अरसे तक इस का अनुभव लेते रहते.’’

कैसे पहचानें और्गेज्म

यह स्थिति चरम संतुष्टि की स्थिति है. यह अपनेआप पता लग जाती है. अकसर इस के बाद कुछ करने का मन नहीं करता. कुछ स्त्रियां आंख मीच कर निढाल भी रहती हैं.

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इस दौरान योनि में संकुचन हृदय धड़कन जैसा होने लगता है. निरंतर और्गेज्म पाते रहने से इस स्थिति पर पहुंचने का 20-30 सैकंड पहले पता लग जाता है. ऐसे में एकाग्रता बढ़ा लेना अच्छा रहता है. पुरुष भी अपनी देह पर पकड़ अनुभव करते हैं. यह स्थिति उन के लिए सफल सेक्स का बहुत बड़ा साइलैंट कम्युनिकेशन है.

और्गेज्म अपने सुख के लिए भी है. शरीर के साथ ही यह मन को भी हलका बनाता है. शरीर से निकले स्राव तनमन में रासायनिक क्रिया उपजाते हैं. मन को फुर्तीला बनाते हैं, जीवन के प्रति विश्वास जगाते हैं. जीना रुचिकर लगता है, उस में रस आता है. कभी स्खलन न हो या चरमानंद न आए तो मन बेचैन, उद्विग्न, अकारण परेशान, चिंतातुर रहता है. इसे चरमानंद पाने वाले लोग आसानी से जानसम झ सकते हैं.

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हर बार पहले जैसी अनुभूति

एक युवती कहती है कि पहला और्गेज्म उसे समझ न आया. संकुचन हुआ तो लगा पता नहीं यह क्या हो गया. इसे जानने के बाद अगली बार यह स्थिति न सिर्फ आनंददायक रही बल्कि तृप्तिदायक व संतुष्टिदायक भी रही. एक युवक कहता है, ‘‘मेरी पत्नी ने एक रात मुझे बताया कि आज मुझे नाभि तक सरसराहट महसूस हो रही है. लग रहा है मेरे भीतर घंटियां बज रही हैं.’’ मैं समझ गया, यह उस का पहला और्गेज्म है.

स्त्रियों का चरमानंद पुरुषों के चरमानंद जैसा मुखर नहीं होता कि बिना बताए उसे कोई जान ले या भांप ले. इसीलिए कई बार उस में बाधा होती है. कुछ स्त्रियों को चरमानंद से पूर्व जल्दी और ज्यादा घर्षण चाहिए. कुछ को पुरुष अंग और गहराई पर चाहिए तो किसीकिसी को सिर्फ कोराकोरा स्पर्श चाहिए.

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पुरुष करते हैं परवाह

स्त्रियों के चरमानंद की पुरुषों को बहुत परवाह रहती है. दरअसल, यह उन्हें अपनी सेक्स परफौर्मैंस की बदौलत पाई सफलता लगती है. इसलिए उन्हें सही स्थिति बताई जाए तो वे उस की परवा करते हैं, यहां तक कि अपने आनंद को स्थगित कर के भी. एक सज्जन कहते हैं कि मैं चरमानंद के नजदीक होता हूं और मेरी पत्नी कहती है, अब यह करो. यह मत करो तो मैं मान लेता हूं क्योंकि मुझे पता है, मेरी तृप्ति कैसे होती है पर उस की तृप्ति उस समय मेरे लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है.

चरमानंद से पूर्व भी आनंद आता है. अगर चरमानंद को डिले करना है तो थोड़ा ध्यान बांटा जाए. लेकिन डिले इतना न हो कि हाथ से ही निकल जाए. यह न हो कि वह पुरुष साथी स्खलित हो जाए और फिर स्त्री के योग्य होने में उसे समय लगे और तब चरमानंद हाथ न आए.

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फोरप्ले व आफ्टरप्ले दोनों स्थितियों का अपना महत्त्व है. अच्छे फोरप्ले से समय पर चरमानंद पाया जा सकता है और अच्छा आफ्टरप्ले चरमानंद को देर तक बनाए रखता है. ये भावात्मक निकटता उपजाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सेक्स को सिर्फ तन की क्रिया ही नहीं रहने देते बल्कि भावनात्मक, आंतरिक व सम्मानजनक बनाते हैं.

चरमानंद सेक्स को मुक्त मन से किए गए स्वागत का सुखद परिणाम है.ु यह स्त्रीत्व और पुरुषत्व के माने ठीक से बता देता है. एकदूसरे के लिए साथी का महत्त्व भी सम झाता है. समझदारी, समरसता से किया गया सेक्स सुख के द्वार खोलता है. यह और्गेज्म यानी चरमानंद पा कर ही अनुभव किया जा सकता है.

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Short Story : आजादी – झंडा फहराना कैसे बन गया गले की फांस

शंकर बाबू आटोरिकशा से उतर कर कारखाने की ओर जा ही रहे थे कि 2 सिपाहियों ने उन्हें घेर लिया.

एक बोला, ‘‘थाने चलो, थानेदार ने बुलाया है.’’

दूसरा बोला, ‘‘अब तक कहां थे? 3 दिनों से हम तुम्हें ढूंढ़ रहे हैं.’’

हैरानपरेशान शंकर बाबू आसपास देखने लगे. तब तक कारखाने के कुछ मुलाजिम पास आ गए और वे उन्हें ऐसे देखने लगे, मानो वे शातिर अपराधी हों.

शंकर बाबू उस कारखाने के माने हुए मजदूर नेता थे. इस लिहाज से उन्होंने सिपाहियों पर रोब जमाना चाहा, ‘‘आखिर मेरा कुसूर क्या है?’’

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‘‘थाने पहुंच कर जान लेना.’’

‘‘नहीं, बिना कुसूर जाने मैं तुम लोगों के साथ नहीं चल सकता.’’

इस पर एक सिपाही ने खास पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘‘चलते हो या लगाऊं एक…’’

यह सुनते ही शंकर बाबू का दिमाग चकरा गया. वे तुरंत सिपाहियों के साथ चलने को तैयार हो गए.

थानेदार के आगे शंकर बाबू को पेश करते हुए एक सिपाही ने कहा, ‘‘‘साहब, यही हैं शंकर बाबू. बड़ी मुश्किल से पकड़ कर लाए हैं. ये आ ही नहीं रहे थे, संभालिए जनाब.’’

इतना कह कर सिपाही ने शंकर बाबू को बेजबान जानवर की तरह थानेदार की ओर धकेल दिया.

शंकर बाबू को बहुत गुस्सा आया, मगर वे गुस्से को दबाते हुए थोड़ी तीखी आवाज में थानेदार से बोले, ‘‘मुझे क्यों पकड़ा गया है? मेरा कुसूर क्या है? मैं शहर का एक इज्जतदार आदमी आदमी हूं. मैं…’’

‘‘अरे छोड़ो इज्जतदार और बेइज्जतदार की बातें. यह बताओ कि 15 अगस्त को झंडा फहरा कर तुम कहां गुम हो गए थे? जानते हो कि कितना बड़ा राष्ट्रीय अपराध किया है तुम ने?’’

शंकर बाबू का सिर चकराने लगा, ‘‘राष्ट्रीय अपराध? क्या झंडा फहराना राष्ट्रीय अपराध है? नहींनहीं, यह तो मेरा मौलिक अधिकार है. जरूर कहीं कुछ गलतफहमी हुई है…’’ शंकर बाबू ने तनिक गुस्से में कहा, ‘‘मैं कहीं भी किसी वजह से जाऊं, क्या मुझे आप को बता कर जाना पड़ेगा? पहले साफसाफ मेरा अपराध बताइए.’’

शंकर बाबू का गुस्सा खुद पर ही भारी पड़ रहा था. थानेदार ने आंखें तरेरते हुए कहा, ‘‘अपनी आवाज नीची कर, वरना… एक तो अपराध करता है ऊपर से गरजता भी है. यानी चोरी और सीनाजोरी, वह भी मुझ से… थानेदार जालिम सिंह से? जिस से बड़ेबड़े गुंडेबदमाश थरथर कांपते हैं.’’

शायद जिंदगी में आज पहली बार शंकर बाबू का पुलिस के साथ सामना हुआ था. वे इस पुलिसिया अंदाज से सकपका गए थे. उन्होंने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘माफ कीजिए, आप को कोई गलतफहमी हुई है. मैं तो एक पढ़ालिखा इनसान हूं, मजदूरों की अगुआई करता हूं. हो सकता है कि आप को किसी और शख्स की तलाश हो.’’

थानेदार थोड़ी नीची आवाज में बोला, ‘‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. मिस्टर शंकर, आप मजदूर नेता हैं न? आप ने 15 अगस्त को अपने यूनियन के दफ्तर में एक छोटा सा जलसा किया, झंडा फहराया और चल दिए. उस दिन से आप आज नजर आए हैं. इस समय… शाम के 7 बजे हैं, जबकि झंडा परसों से लगातार लहरा रहा है और आप कह रहे हैं कि अपराध नहीं किया?’’

इतना कह कर थानेदार ने सिपाहियों की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘डाल दो इस को लौकअप में.’’

तब तक शंकर बाबू की बीवी इलाके के नेताजी को ले कर थाने पहुंच गई थी. शंकर बाबू को काटो तो खून नहीं. सिपाही मुस्तैद हो गए थे. नेताजी को समय की नजाकत समझते देर नहीं लगी. उन्होंने हलकी मुसकान फैलाते हुए थानेदार से पूछा, ‘‘आखिर माजरा क्या है थानेदार साहब?’’

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थानेदार भावुक होता हुआ बोला, ‘‘अरे साहब, इस ने राष्ट्रीय झंडे का अपमान किया है. यानी देश का, राष्ट्र का अपमान किया है. इसे इतनी भी जानकारी नहीं कि राष्ट्रीय झंडा यदि सुबह फहराया जाता है, तो शाम तक उसे नीचे उतार लिया जाता है.

‘‘इस ने अपने यूनियन के दफ्तर के सामने 15 अगस्त को झंडा फहराया था, जो अभी तक लहरा रहा है. यह भारतीय संविधान के तहत जुर्म है. कानूनी अपराध है.’’

शंकर बाबू को यह जानकारी नहीं थी. उन्होंने विनती भरी आवाज में थानेदार और नेताजी से निवेदन किया, ‘‘साहब, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मुझ से बहुत बड़ी भूल हुई है. आइंदा कभी ऐसा नहीं होगा. मुझे बचा लीजिए.’’

थानेदार ने कड़क आवाज में कहा, ‘‘हूं, रस्सी भी जल गई और ऐंठन भी चली गई.’’

नेताजी ने हालात को संभालते हुए कहा, ‘‘कानून तो अंधा होता है, मगर शंकर बाबू एक निहायत ही शरीफ आदमी हैं.’’

फिर नेताजी ने संकेत से शंकर बाबू को एक ओर ले जा कर धीरे से कहा, ‘‘भाई, यह तो राष्ट्र के अपमान का मामला है. बहुत बुरा हुआ, तुम अगर राष्ट्र धर्म निभा नहीं सकते थे, तो झंडा फहराया ही क्यों? यह तो जुर्म नहीं, घोर जुर्म है, इसलिए शेर को शेर की मांद में ही सुलट लो. चांदी के जूते से थानेदार का मुंह सिल दो.’’

शंकर बाबू को लगा कि वे आसमान से गिरे, खजूर में अटके. संभलते हुए उन्होंने लाचारी में हामी भर दी. नेताजी ने इशारे से थानेदार को अपने पास बुला लिया.

थानेदार ने नेताजी का सुझाव मान लिया और शंकर बाबू को यूनियन के दफ्तर जा कर झंडा उतारने का आदेश देते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आप के यूनियन के दफ्तर के सामने फहराया गया झंडा 15 अगस्त की शाम को ही उतार लिया गया था. जैसा नेताजी कहेंगे, वैसा ही होगा. ये हमारे नेता हैं. हम वही करते हैं, जो ये कहते हैं.’’

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शंकर बाबू को लगा कि थानेदार की कुरसी के पीछे लगी महात्मा गांधी की तसवीर कांप रही है. शर्मिंदा हो रही है कि यह सब क्या है? कानून के रक्षक और राष्ट्र के खेवनहार दोनों ही मिलजुल कर आज झंडा उतारने की फीस वसूल कर के यह कैसा राष्ट्र प्रेम बांट रहे हैं? कैसी है इन की देशभक्ति?

छद्म वेश : भाग 2 – कहानी मधुकर और रंजना की

लेखक – अर्विना

रंजना के पापा तेजी से बाहर की ओर लपके. बेटी को सकुशल देख उन की जान में जान आई.

थानेदार जोगिंदर सिंह ने सारी बात रंजना के पापा को बताई और मधुकर को भी सकुशल घर पहुंचाने के लिए कहा.

थानेदार जोगिंदर सिंह मधुकर को अपने साथ ले कर जीप में आ बैठे, ‘‘चल भई जवान तुझे भी घर पहुंचा दूं, तभी चैन की सांस लूंगा.’’

मधुकर को घर के सामने छोड़ थानेदार जोगिंदर सिंह वापस थाने चले गए.

मधुकर ने घर के अंदर आ कर इस बात की चर्चा मम्मीपापा के साथ खाना खाते हुए डाइनिंग टेबल पर विस्तार से बताई.

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मधुकर के पापा का कहना था कि बेटा, तुम ने जो भी किया उचित था. रंजना की समझदारी से तुम दोनों सकुशल घर आ गए. मधुकर रंजना जैसी लड़की तो वाकई बहू बनानेलायक है. मम्मी ने भी हां में हां मिलाई.

‘‘मधुकर, खाना खा कर रंजना को फोन कर लेना.’’ मां ने कहा.

‘‘जी मम्मी.’’

मधुकर ने खाना खाने के बाद वाशबेसिन पर हाथ धोए और वहां लटके तौलिए से हाथ पोंछ कर सीधा अपने कमरे की बालकनी में आ कर रंजना को फोन मिलाया. रिंग जा रही थी, पर फोन रिसीव नहीं किया.

मधुकर ने दोबारा फोन मिलाया ट्रिन… ट्रिन. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो, मैं रंजना की मम्मी बोल रही हूं…’’

‘‘जी, मैं… मैं मधुकर बोल रहा हूं. रंजना कैसी है?’’

‘‘बेटा, रंजना पहली बार साड़ी पहन कर एक स्त्री के रूप में तैयार हो कर गई थी और ये घटना घट गई. यह घटना उसे अंदर तक झकझोर गई है. मैं रंजना को फोन देती हूं. तुम ही बात कर लो.’’

‘‘रंजना, मैं मधुकर.‘‘

‘‘क्या हुआ रंजना? तुम ठीक तो हो ? तुम बोल क्यों नहीं रही हो?’’

‘‘मधुकर, मेरी ही गलती है कि मुझे इतना सजधज कर साड़ी पहन कर जाना ही नहीं चाहिए था.’’

‘‘देखो रंजना, एक न एक दिन तुम्हें इस रूप में आना ही था. घटनाएं तो जीवन में घटित होती रहती हैं. उन्हें कपड़ों से नहीं जोड़ा जा सकता है. संसार में सभी स्त्रियां स्त्रीयोचित परिधान में ही रहती हैं. पुरुष के छद्म वेश में कोई नहीं रहतीं. तुम तो जमाने से टक्कर लेने के लिए सक्षम हो… इसलिए संशय त्याग कर खुश रहो.’’

‘‘मधुकर, तुम ठीक कह रहे हो. मैं ही गलत सोच रही थी.’’

‘‘रंजना, मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना बनाना चाहता हूं.’’

‘‘लव यू… मधुकर.’’

‘‘लव यू टू रंजना… रात ज्यादा हो गई है. तुम आराम करो. कल मिलते हैं… गुड नाइट.’’

सुबह मधुकर घर से औफिस जाने के लिए निकल ही रहा था कि मम्मी की आवाज आई, ‘‘मधुकर सुनो, रंजना के घर चले  जाना. और हो सके तो शाम को मिलाने के लिए उसे घर ले आना.’’

‘‘ठीक है मम्मी, मैं चलता हूं,’’ मधुकर ने बाइक स्टार्ट की और निकल गया रंजना से मिलने.

रंजना के घर के आगे मधुकर बाइक पार्क कर ही रहा था कि सामने से रंजना आती दिखाई दी. साथ में उस की मां भी थी. रंजना के हाथ में पट्टी बंधी थी.

‘‘अरे रंजना, तुम्हें तो आराम करना चाहिए था.’’

‘‘मधुकर, मां के बढ़ावा देने पर लगा कि बुजदिल बन कर घर में पड़े रहने से तो अपना काम करना बेहतर है.’’

‘‘बहुत बढ़िया… गुड गर्ल.’’

‘‘आओ चलें. बैठो, तुम्हें होटल छोड़ देता हूं.’’

‘‘रंजना, मेरी मां तुम्हें याद कर रही थीं. वे कह रही थीं कि रंजना को शाम को घर लेते लाना… क्या तुम चलोगी मां से मिलने?’’

‘‘जरूर चलूंगी आंटी से मिलने. शाम 6 बजे तुम मुझे होटल से पिक कर लेना.’’

‘‘ओके रंजना, चलो तुम्हारी मंजिल आ गई.’’

बाइक से उतर कर रंजना ने मधुकर को बायबाय किया और होटल की सीढ़ियां चढ़ कर अंदर चली गई.

मधुकर बेचैनी से शाम का इंतजार कर रहा था. आज रंजना को मां से मिलवाना था.

मधुकर बारबार घड़ी की सूइयों को देख रहा था, जैसे ही घड़ी में 6 बजे वह उठ कर चल दिया, रंजना को पिक करने के लिए.

औफिस से निकल कर मधुकर होटल पहुंच कर बाइक पर बैठ कर इंतजार करने लगा. उसे एकएक पल भारी लग रहा था.

रंजना के आते ही सारी झुंझलाहट गायब हो गई और होंठों पर मुसकराहट तैर गई.

बाइक पर सवार हो कर दोनों मधुकर के घर पहुंच गए.

मधुकर ने रंजना को ड्राइंगरूम में बिठा कर कर मां को देखने अंदर गया. मां रसोई में आलू की कचौड़ी बना रही थीं.

‘‘मां, देखो कौन आया है आप से मिलने…’’ मां कावेरी जल्दीजल्दी हाथ पोछती हुई ड्राइंगरूम में पहुंचीं.

‘‘मां, ये रंजना है.’’

‘‘नमस्ते आंटीजी.’’

‘‘नमस्ते, कैसी हो  रंजना.’’

‘‘जी, मैं ठीक हूं.’’

मां कावेरी रंजना को ही निहारे जा रही थीं. सुंदर तीखे नाकनक्श की रंजना ने उन्हें इस कदर प्रभावित कर लिया था कि मन ही मन वे भावी पुत्रवधू के रूप में रंजना को देख रही थीं.

‘‘मां, तुम अपने हाथ की बनी गरमागरम कचौड़ियां नहीं खिलाओगी. मुझे तो बहुत भूख लगी है.’’

मां कावेरी वर्तमान में लौर्ट आई और बेटे की बात पर मुसकरा पड़ीं और उठ कर रसोई से प्लेट में कचौड़ी और चटनी रंजना के सामने रख कर खाने का आग्रह किया.

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रंजना प्लेट उठा कर कचौड़ी खाने लगी. कचौड़ी वाकई बहुत स्वादिष्ठ बनी थी.

‘‘आंटी, कचौड़ी बहुत स्वादिष्ठ बनी हैं,’’ रंजना ने मां की तारीफ करते हुए कहा.

मधुकर खातेखाते बीच में बोल पड़ा, ‘‘रंजना, मां के हाथ में जादू है. वे खाना बहुत ही स्वादिष्ठ बनाती हैं.’’

‘‘धत… अब इतनी भी तारीफ मत कर मधुकर.’’

नाश्ता खत्म कर रंजना ने घड़ी की तरफ देखा तो 7 बजने वाले थे. रंजना उठ कर जाने के लिए खड़ी हुई.

‘‘मधुकर बेटा, रंजना को उस के घर तक पहुंचा आओ.’’

‘‘ठीक है मां, मैं अभी आया.’’

मां कावेरी ने सहज, सरल सी लड़की को अपने घर की शोभा बनाने की ठान ली. उन्होंने मन ही मन तय किया कि कल रंजना के घर जा कर उस के मांबाप से उस का हाथ मांग लेंगी. इस के बारे में मधुकर के पापा की भी सहमति मिल गई.

सुबह ही कावेरी ने अपने आने की सूचना रंजना की मम्मी को दे दी थी.

शाम के समय कावेरी और उन के पति के आने पर रंजना की मां ने उन्हें आदरपूर्वक ड्राइंगरूम में बिठाया.

‘‘रंजना के पापा आइए, यहां आइए, देखिए मधुकर के मम्मीपापा आ गए  हैं.’’

रंजना और मधुकर के पापा के बीच राजनीतिक उठापटक के बारे में बातें करने के साथ ही कौफी की चुसकी लेते हुए इधरउधर की बातें भी हुईं.

रंजना की मम्मी मधुकर की मां कावेरी के साथ बाहर लौन में झूले पर बैठ प्रकृति का आनंद लेते हुए कौफी पी रही थीं.

मधुकर की मां कावेरी बोलीं, ‘‘शारदाजी, मैं रंजना का हाथ अपने बेटे के लिए मांग रही हूं. आप ना मत कीजिएगा.’’

‘‘कावेरीजी, आप ने तो मेरे मन की बात कह दी. मैं भी यही सोच रही थी,’’ कहते हुए रंजना की मां शारदाजी मधुकर की मां कावेरी के गले लग गईं.

‘‘कावेरीजी चलिए, इस खुशखबरी को अंदर चल कर सब के साथ सैलिब्रेट करते हैं.’’

शारदा और कावेरी ने हंसते हुए ड्राइंगरूम में प्रवेश किया तो दोनों ने चौंक कर देखा.

‘‘क्या बात है, आप लोग किस बात पर इतना हंस रही हैं?’’ रंजना के पिता महेश बोले.

‘‘महेशजी, बात ही कुछ ऐसी है. कावेरीजी ने आप को  समधी के रूप में पसंद कर लिया है.’’

‘‘क्या… कहा… समधी… एक बार फिर से कहना?’’

‘‘हां… हां… समधी. कुछ समझे.’’

‘‘ओह… अब समझ आया आप लोगों के खिलखिलाने का राज.’’

‘‘अरे, पहले बच्चों से तो पूछ कर रजामंदी ले लो,’’ मधुकर के पाप हरीश ने मुसकरा कर कहा.

रंजना के पापा महेश सामने से बच्चों को आता देख बोले, ‘‘लो, इन का नाम लिया और ये लोग हाजिर. बहुत लंबी उम्र है इन दोनों की.’’

मधुकर ने आते ही मां से चलने के लिए कहा.

‘‘बेटा, हमें तुम से कुछ बात करनी है.”

“कहिए मां, क्या कहना चाहती हैं?’’

‘‘मधुकर, रंजना को हम ने तुम्हारे लिए मांग लिया है. तुम बताओ, तुम्हारी क्या मरजी है.’’

‘‘मां, मुझे कोई ओब्जैक्शन नहीं है. रंजना से भी पूछ लो कि वे क्या चाहती हैं?’’

मां कावेरी ने रंजना से पूछा, ‘‘क्या तुम मेरी बेटी बन कर मेरे घर आओगी.’’

रंजना ने शरमा कर गरदन झुकाए हुए हां कह दी.

यह देख रंजना के पापा महेशजी चहक उठे. अब तो कावेरीजी आप मेरी समधिन हुईं.

ऐसा सुन सभी एकसाथ हंस पड़े. तभी रंजना की मां शारदा मिठाई के साथ हाजिर हो गईं.

‘‘लीजिए कावेरीजी, पहले मिठाई खाइए,’’ और झट से एक पीस मिठाई का कावेरी के मुंह में खिला दिया.

कावेरी ने भी शारदा को मिठाई खिलाई. प्लेट हरीशजी की ओर बढ़ा दी. मधुकर ने रंजना को देखा, तो उस का चेहरा सुर्ख गुलाब सा लाल हो गया था. रंजना एक नजर मधुकर पर डाल झट से अंदर भाग गई.

‘‘शारदाजी, एक अच्छा सा सुविधाजनक दिन देख शादी की तैयारी कीजिए. चलने से पहले जरा आप रंजना को बुलाइए,’’ मधुकर की मां कावेरी ने कहा.

रंजना की मां शारदा उठीं और अंदर जा कर रंजना को बुला लाईं. कावेरी ने अपने हाथ से कंगन उतार कर रंजना को पहना दिए.

रंजना ने झुक कर उन के पैर छुए.

हरीश और कावेरी मधुकर के साथ शारदाजी और महेशजी से विदा ले कर घर आ गए.

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2 महीने बाद शारदाजी के घर से आज शहनाई के स्वर गूंज रहे थे. रंजना दुलहन के रूप में सजी आईने के सामने बैठी खुद को पहचान नहीं पा रही थी. छद्म वेश हमेशा के लिए उतर चुका था.

‘‘सुनो रंजना दी…’’ रंजना की कजिन ने आवाज लगाई, ‘‘बरात आ गई…’’

रंजना मानो सपने से हकीकत में आ गई. रंजना के पैर शादी के मंडप की ओर बढ़ गए.

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