‘‘लेकिन अर्चिता के पिता फौजी से इस की शादी नहीं करना चाहते.’’
‘‘डोंट वरी सर, सिविल में भी फौजी किस्म के बहुत लड़के हैं. मैं सब ठीक कर दूंगा.’’
लगभग 12 बजे हम लोग वहां से निकले तो उन्होंने रास्ते में केयूर से पूछा, ‘‘यार, क्या नाम है तुम्हारा? भूल गया.’’
‘‘केयूर.’’
‘‘हां, केयूर, कहो तो बात करूं? लड़की के बारे में क्या खयाल है?’’
‘‘नहीं अंकल, ऐसी कोई बात नहीं है?’’
‘‘अरे, बेवकूफ, हाथ पकड़ ले, नहीं तो जिंदगी भर मेरी तरह पछताएगा.’’
‘‘आप की तरह?’’
‘‘हां, ऐसी परी जिंदगी में दोबारा नहीं मिलती.’’
केयूर शरमा गया, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है अंकल, केवल मामूली सी जानपहचान है.’’
‘‘मैं आंखें देख कर दिल की आवाज सुन लेता हूं बरखुरदार. जिंदगी भर फौज में लेफ्टराइट किया है और इश्क किया है, इस के अलावा कुछ नहीं,’’ फिर कर्नल सिंह गुनगुनाने लगे, ‘चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल. इक तू ही धनवान है गोरी, बाकी सब कंगाल.’
कर्नल सिंह की बातों और शायरी के बीच रास्ता कैसे कट गया पता ही नहीं चला. पता तो तब चला जब कार अपनी मंजिल पर पहुंच कर रुकी.
कर्नल साहब का घर छोटा था लेकिन बहुत ही आरामदेह और साफ- सुथरा था. घर के आगेपीछे 2 छोटेछोटे लौन थे. अंदर 2 बड़ेबड़े बेडरूम थे. ऊपरी मंजिल में भी कुछ निर्माण हुआ था जो अधूरा पड़ा था. कर्नल साहब की पत्नी बरामदे में बैठी अखबार पढ़ रही थीं. हम लोग भी वहीं बैठ गए.
आंटी चाय ले आईं. चाय पी कर कर्नल साहब ने अपना मकान और लौन हमें दिखाया. आंटी किचन में चली गईं. उन के लौन में मैं ने एक खास बात मार्क की कि वहां फूल का एक भी पौधा नहीं था. सामने वाले छोटे लौन के बीच में गोल्फ के लिए एक ‘होल’ था जिस में वह ‘पट’ की प्रैक्टिस करते थे.
मैं ने उत्सुकतावश पूछा, ‘‘अंकल, जाड़े की शुरुआत है, लेकिन आप के लौन में फूल का एक भी पौधा नहीं है. क्या आप को फूलों का शौक नहीं है?’’
कर्नल साहब ने संक्षिप्त जवाब दिया, ‘‘पहले था, अब नहीं है.’’
मैं ने उत्सुकतावश पूछा कि अंकल, आप ने आर्मी क्यों छोड़ दी? आप तो मेजर जनरल या लेफ्टिनेंट जनरल हो जाते.
कर्नल साहब ने कहा, ‘‘क्या करता? घर के बहुत सारे झंझट थे. मातापिता की मौत हो गई. 2 बेटियों की शादी करनी थी. वाइफ यहां अकेली पड़ गई,’’ फिर उन्होंने सरगोशी के अंदाज से कहा, ‘‘थोड़ा चेस्ट पेन भी होने लगा था. आर्मी में हर साल मेडिकल चेकअप होता है न? वेरी थारो.’’
‘‘अब फ्री हैं. दोनों बेटियों की शादी कर दी. दोनों अमेरिका में हैं. हम दोनों यहां अकेले हैं. नौकरचाकर का भी झंझट नहीं है. केवल सुबह एक पार्टटाइम सरर्वेंट आती है.’’
केयूर ने अचानक पूछा, ‘‘अंकल, फौजी अफसर हो कर आप को शायरी में इतना शौक कैसे है?’’
कर्नल साहब ने जोरदार ठहाका लगाया, ‘‘तुम सिविलियंस को गलतफहमी है कि फौजी केवल लेफ्टराइट करते हैं और दारू पीते हैं. फौजी शेरओशायरी, साहित्य के बहुत शौकीन होते हैं. मैं जब 5वीं बटालियन में तैनात था तो हमारी ब्रिगेड के मेजर पंजाबी थे, जिन्हें शायरी का बहुत शौक था. मेस में शाम को एकदो पैग व्हिस्की अंदर गई नहीं कि उन्होंने शायरी शुरू कर दी. 3-4 पेग पीने के बाद तो वह घंटों, शेर, गजल, नज्म सुनाते रहते थे और अंत में वह एक ही नज्म पढ़ते थे, ‘फिर कब आओगे बीमार हो कर?’
आंटी आईं तो अचानक कर्नल साहब ने कहा, ‘‘जानती हो केतकी, इस की जो गर्लफ्रेंड है, शी इज वंडरफुल. इन की शादी करा दो, वरना जे.एन.यू. में एडमिशन हो जाने के बाद उस के पीछे लड़कों की लाइन लग जाएगी. बाद में पछताओगे बरखुरदार,’’ उन्होंने केयूर की ओर इशारा किया.
केयूर शरमा कर बोला, ‘‘नहीं आंटी, ऐसी कोई बात नहीं है, अंकल तो यों ही…’’
आंटी ने मुसकरा कर कर्नल साहब की पीठ पर एक चपत लगाई, ‘‘ये तो रोज पछताते हैं.’’
‘‘अरे, केतकी, तुम अर्चिता को देखना. शी विल बीट आल द फिल्म स्टार्स. अगर 30 साल पहले मुझे मिली होती तो मैं दौड़ कर उस से शादी कर लेता.’’
‘‘30 साल पहले तो वह पैदा ही नहीं हुई थी जनाब,’’ आंटी ने हंसते हुए कहा.
कर्नल साहब ने लंबी सांस ली, ‘‘न जाने खूबसूरत लड़कियां हमेशा देर से क्यों पैदा होती हैं.’’
‘‘अरे, बाबा, तुम लोगों को खाना नहीं खाना है? मैं तो चली, मुझे महिला क्लब की मीटिंग में जाना है. खाना खा कर थोड़ा आराम करूंगी फिर 3 बजे जाऊंगी. 5 बजे तक वापस आ जाऊंगी.’’
‘‘चलिए, हम लोग भी नहा लेते हैं,’’ और आंटी के साथ हम अंदर आ गए.
कर्नल साहब लौन में बैठ कर अखबार पढ़ने लगे. मैं उन के बाथरूम में चला गया. केयूर ड्राइंगरूम से लगे गेस्ट बाथरूम में चला गया. नहा कर हम निकले तो आंटी ने डाइनिंग स्पेस की ओर इशारा किया, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं तुरंत लंच लगाती हूं.’’
लंच खाते समय आंटी ने कर्नल साहब से कहा, ‘‘तुम अपनी चाभी ले लो. हो सकता है मुझे आने में देर हो जाए. तुम्हें भी तो क्लब जाना है न?’’
आंटी ने हम से कहा, ‘‘तुम दोनों बगल वाले मेरे रूम में आराम करो. सब ठीकठाक कर दिया है. कहीं बाहर जाना है तो मैं अपनी ‘स्पेयर की’ दे देती हूं.’’
केयूर ने उठते हुए कहा, ‘‘आंटी, मुझे कनाट प्लेस जाना है. सोचता हूं इंटरव्यू की जगह देख आऊं. दिल्ली दूसरी बार आया हूं, 1-2 परिचितों से मिलना भी है. मैं 7 बजे तक आऊंगा.’’
कर्नल साहब ने ठहाका लगाया, ‘‘अरे, मैडम, अपनी जवानी भूल गई. क्या नाम है उस का? अ…… हां, अर्चिता, उस से भी तो मिलने जाना है. साफसाफ कैसे कहे बेचारा?’’
मैं भी उठते हुए बोला, ‘‘आंटी मैं भी एम्स तक जाऊंगा. कुछ दोस्तों से मिलना है. मैं भी 7 बजे तक आ जाऊंगा.’’
‘‘ओ.के. ब्यौज इंज्वाय योर सेल्फ. लेकिन 7 बजे तक जरूर आ जाना. वी विल हैव ड्रिंक्स टूगेदर, सेलीबे्रट करना है.’’