वो भूली दास्तां : बारिश में मिले दो अजनबी

कभीकभी जिंदगी में कुछ घटनाएं ऐसी भी घटती हैं, जो अपनेआप में अजीब होती हैं. ऐसा ही वाकिआ एक बार मेरे साथ घटा था, जब मैं दिल्ली से हैदराबाद जा रहा था. उस दिन बारिश हो रही थी, जिस की वजह से मुझे एयरपोर्ट पहुंचने में 10 मिनट की देरी हो गई थी और काउंटर बंद हो चुका था.

आज पूरे 2 साल बाद जब मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा और बारिश को उसी दिन की तरह मदमस्त बरसते देखा, तो अचानक से वह भूला हुआ किस्सा न जाने कैसे मेरे जेहन में ताजा हो गया.

मैं खुद हैरान था, क्योंकि पिछले 2 सालों में शायद ही मैं ने इस किस्से को कभी याद किया होगा.

एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर होने के चलते काम की जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा हैं कि कब सुबह से शाम और शाम से रात हो जाती है, इस का हिसाब रखने की फुरसत नहीं मिलती. यहां तक कि मैं इनसान हूं रोबोट नहीं, यह भी खुद को याद दिलाना पड़ता है.

लेकिन आज हवाईजहाज से उतरते ही उस दिन की एकएक बात आंखों के सामने ऐसे आ गई, जैसे किसी ने मेरी जिंदगी को पीछे कर उस दिन के उसी वक्त पर आ कर रोक दिया हो.

चैकआउट करने के बाद भी मैं एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकला या यों कहें कि मैं जा ही नहीं पाया और वहीं उसी जगह पर जा कर बैठ गया, जहां 2 साल पहले बैठा था.

मेरी नजरें भीड़ में उसे ही तलाशने लगीं, यह जानते हुए भी कि यह सिर्फ मेरा पागलपन है. मेन गेट की तरफ देखतेदेखते मैं हर एक बात फिर से याद करने लगा.

टिकट काउंटर बंद होने की वजह से उस दिन मेरे टिकट को 6 घंटे बाद वाली फ्लाइट में ट्रांसफर कर दिया गया था. मेरा उसी दिन हैदराबाद पहुंचना बहुत जरूरी था. कोई और औप्शन मौजूद न होने की वजह से मैं वहीं इंतजार करने लगा.

बारिश इतनी तेज थी कि कहीं बाहर भी नहीं जा सकता था. बोर्डिंग पास था नहीं, तो अंदर जाने की भी इजाजत नहीं थी और बाहर ज्यादा कुछ था नहीं देखने को, तो मैं अपने आईपैड पर किताब पढ़ने लगा.

अभी 5 मिनट ही बीते होंगे कि एक लड़की मेन गेट से भागती हुई आई और सीधा टिकट काउंटर पर आ कर रुकी. उस की सांसें बहुत जोरों से चल रही थीं. उसे देख कर लग रहा था कि वह बहुत दूर से भागती हुई आ रही है, शायद बारिश से बचने के लिए. लेकिन अगर ऐसा ही था तो भी उस की कोशिश कहीं से भी कामयाब होती नजर नहीं आ रही थी. वह सिर से पैर तक भीगी हुई थी.

यों तो देखने में वह बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस के बाल कमर से 2 इंच नीचे तक पहुंच रहे थे और बड़ीबड़ी आंखें उस के सांवले रंग को संवारते हुए उस की शख्सीयत को आकर्षक बना रही थीं.

तेज बारिश की वजह से उस लड़की की फ्लाइट लेट हो गई थी और वह भी मेरी तरह मायूस हो कर सामने वाली कुरसी पर आ कर बैठ गई. मैं कब किताब छोड़ उसे पढ़ने लगा था, इस का एहसास मुझे तब हुआ, जब मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी.

ठीक उसी वक्त उस ने मेरी तरफ देखा और तब तक मैं भी उसे ही देख रहा था. उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. मैं सकपका गया और उस पल की नजर से बचते हुए फोन को उठा लिया.

फोन मेरी मंगेतर का था. मैं अभी उसे अपनी फ्लाइट मिस होने की कहानी बता ही रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने बैठी उस लड़की पर फिर से पड़ी. वह थोड़ी घबराई हुई सी लग रही थी. वह बारबार अपने मोबाइल फोन पर कुछ चैक करती, तो कभी अपने बैग में.

मैं जल्दीजल्दी फोन पर बात खत्म कर उसे देखने लगा. उस ने भी मेरी ओर देखा और इशारे में खीज कर पूछा कि क्या बात है?

मैं ने अपनी हरकत पर शर्मिंदा होते हुए उसे इशारे में ही जवाब दिया कि कुछ नहीं.

उस के बाद वह उठ कर टहलने लगी. मैं ने फिर से अपनी किताब पढ़ने में ध्यान लगाने की कोशिश की, पर न चाहते हुए भी मेरा मन उस को पढ़ना चाहता था. पता नहीं, उस लड़की के बारे में जानने की इच्छा हो रही थी.

कुछ मिनट ही बीते होंगे कि वह लड़की मेरे पास आई और बोली, ‘सुनिए, क्या आप कुछ देर मेरे बैग का ध्यान रखेंगे? मैं अभी 5 मिनट में चेंज कर के वापस आ जाऊंगी.’

‘जी जरूर. आप जाइए, मैं ध्यान रख लूंगा,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘थैंक यू. सिर्फ 5 मिनट… इस से ज्यादा टाइम नहीं लूंगी आप का,’ यह कह कर वह बिना मेरे जवाब का इंतजार किए वाशरूम की ओर चली गई.

10-15 मिनट बीतने के बाद भी जब वह नहीं आई, तो मुझे उस की चिंता होने लगी. सोचा जा कर देख आऊं, पर यह सोच कर कि कहीं वह मुझे गलत न समझ ले. मैं रुक गया. वैसे भी मैं जानता ही कितना था उसे. और 10 मिनट बीते. पर वह नहीं आई.

अब मुझे सच में घबराहट होनेल लगी थी कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया. वैसे, वह थोड़ी बेचैन सी लग रही थी. मैं उसे देखने जाने के लिए उठने ही वाला था कि वह मुझे सामने से आती हुई नजर आई.

उसे देख कर मेरी जान में जान आई. वह ब्लैक जींस और ह्वाइट टौप में बहुत अच्छी लग रही थी. उस के खुले बाल, जो शायद उस ने सुखाने के लिए खोले थे, किसी को भी उस की तरफ खींचने के लिए काफी थे.

वह अपना बैग उठाते हुए एक फीकी सी हंसी के साथ मुझ से बोली, ‘सौरी, मुझे कुछ ज्यादा ही टाइम लग गया. थैंक यू सो मच.’

मैं ने उस की तरफ देखा. उस की आंखें लाल लग रही थीं, जैसे रोने के बाद हो जाती हैं. आंखों की उदासी छिपाने के लिए उस ने मेकअप का सहारा लिया था, लेकिन उस की आंखों पर बेतरतीबी से लगा काजल बता रहा था कि उसे लगाते वक्त वह अपने आपे में नहीं थी. शायद उस समय भी वह रो रही हो.

यह सोच कर पता नहीं क्यों मुझे दर्द हुआ. मैं जानने को और ज्यादा बेचैन हो गया कि आखिर बात क्या है.

मैं ने अपनी उलझन को छिपाते हुए उस से सिर्फ इतना कहा, ‘यू आर वैलकम’.

कुछ देर बाद देखा तो वह अपने बैग में कुछ ढूंढ़ रही थी और उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. शायद उसे अपना रूमाल नहीं मिल रहा था.

उस के पास जा कर मैं ने अपना रूमाल उस के सामने कर दिया. उस ने बिना मेरी तरफ देखे मुझ से रूमाल लिया और उस में अपना चेहरा छिपा कर जोरजोर से रोने लगी.

वह कुरसी पर बैठी थी. मैं उस के सामने खड़ा था. उसे रोते देख जैसे ही मैं ने उस के कंधे पर हाथ रखा, वह मुझ से चिपक गई और जोरजोर से रोने लगी. मैं ने भी उसे रोने दिया और वे कुछ पल खामोश अफसानों की तरह गुजर गए.

कुछ देर बाद जब उस के आंसू थमे, तो उस ने खुद को मुझ से अलग कर लिया, लेकिन कुछ बोली नहीं. मैं ने उसे पीने को पानी दिया, जो उस ने बिना किसी झिझक के ले लिया.

फिर मैं ने हिम्मत कर के उस से सवाल किया, ‘अगर आप को बुरा न लगे, तो एक सवाल पूछं?’

उस ने हां में अपना सिर हिला कर अपनी सहमति दी.

‘आप की परेशानी का सबब पूछ सकता हूं? सब ठीक है न?’ मैं ने डरतेडरते पूछा.

‘सब सोचते हैं कि मैं ने गलत किया, पर कोई यह समझाने की कोशिश नहीं करता कि मैं ने वह क्यों किया?’ यह कहतेकहते उस की आंखों में फिर से आंसू आ गए.

‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम से गलती हुई, फिर चाहे उस के पीछे की वजह कोई भी रही हो?’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा.

‘मुझे नहीं पता कि क्या सही है और क्या गलत. बस, जो मन में आया वह किया?’ यह कह कर वह मुझ से अपनी नजरें चुराने लगी.

‘अगर खुद जब समझ न आए, तो किसी ऐसे बंदे से बात कर लेनी चाहिए, जो आप को नहीं जानता हो, क्योंकि वह आप को बिना जज किए समझाने की कोशिश करेगा?’ मैं ने भी हलकी मुसकराहट के साथ कहा.

‘तुम भी यही कहोगे कि मैं ने गलत किया?’

‘नहीं, मैं यह समझाने की कोशिश करूंगा कि तुम ने जो किया, वह क्यों किया?’

मेरे ऐसा कहते ही उस की नजरें मेरे चेहरे पर आ कर ठहर गईं. उन में शक तो नहीं था, पर उलझन के बादलजरूर थे कि क्या इस आदमी पर यकीन किया जा सकता है? फिर उस ने अपनी नजरें हटा लीं और कुछ पल सोचने के बाद फिर मुझे देखा.

मैं समझ गया कि मैं ने उस का यकीन जीत लिया है. फिर उस ने अपनी परेशानी की वजह बतानी शुरू की.

दरअसल, वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में बड़ी अफसर थी. वहां उस के 2 खास दोस्त थे रवीश और अमित. रवीश से वह प्यार करती थी. तीनों एकसाथ बहुत मजे करते. साथ ही, आउटस्टेशन ट्रिप पर भी जाते. वे दोनों इस का बहुत खयाल रखते थे.

एक दिन उस ने रवीश से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस ने कभी उसे दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं माना.

रवीश ने उसे यह भी बताया कि अमित उस से बहुत प्यार करता है और उसे उस के बारे में एक बार सोच लेना चाहिए.

उसे लगता था कि रवीश अमित की वजह से उस के प्यार को स्वीकार नहीं कर रहा, क्योंकि रवीश और अमित में बहुत गहरी दोस्ती थी. वह अमित से जा कर लड़ पड़ी कि उस की वजह से ही रवीश ने उसे ठुकरा दिया है और साथ में यह भी इलजाम लगाया कि कैसा दोस्त है वह, अपने ही दोस्त की गर्लफ्रैंड पर नजर रखे हुए है.

इस बात पर अमित को गुस्सा आ गया और उस के मुंह से गाली निकल गई. बात इतनी बढ़ गई कि वह किसी और के कहने पर, जो इन तीनों की दोस्ती से जला करता था, उस ने अमित के औफिस में शिकायत कर दी कि उस ने मुझे परेशान किया. इस वजह से अमित की नौकरी भी खतरे में पड़ गई.

इस बात से रवीश बहुत नाराज हुआ और अपनी दोस्ती तोड़ ली. यह बात उस से सही नहीं गई और वह शहर से कुछ दिन दूर चले जाने का मन बना लेती है, जिस की वजह से वह आज यहां है.

यह सब बता कर उस ने मुझ से पूछा, ‘अब बताओ, मैं ने क्या गलत किया?’

‘गलत तो अमित और रवीश भी नहीं थे. वह थे क्या?’ मैं ने उस के सवाल के बदले सवाल किया.

‘लेकिन, रवीश मुझ से प्यार करता था. जिस तरह से वह मेरी केयर करता था और हर रात पार्टी के बाद मुझे महफूज घर पहुंचाता था, उस से तो यही लगता था कि वह भी मेरी तरह प्यार में है.’

‘क्या उस ने कभी तुम से कहा कि वह तुम से प्यार करता है?’

‘नहीं.’

‘क्या उस ने कभी अकेले में तुम से बाहर चलने को कहा?’

‘नहीं. पर उस की हर हरकत से मुझे यही लगता था कि वह मुझे प्यार करता है.’

‘ऐसा तुम्हें लगता था. वह सिर्फ तुम्हें अच्छा दोस्त समझ कर तुम्हारा खयाल रखता था.’

‘मुझे पता था कि तुम भी मुझे ही गलत कहोगे,’ उस ने थोड़ा गुस्से से बोला.

‘नहीं, मैं सिर्फ यही कह रहा हूं कि अकसर हम से भूल हो जाती है यह समझाने में कि जिसे हम प्यार कह रहे हैं, वो असल में दोस्ती है, क्योंकि प्यार और दोस्ती में ज्यादा फर्क नहीं होता.’

‘लेकिन, उस की न की वजह अमित भी तो सकता है न?’

‘हो सकता है, लेकिन तुम ने यह जानने की कोशिश ही कहां की. अच्छा, यह बताओ कि तुम ने अमित की शिकायत क्यों की?’

‘उस ने मुझे गाली दी थी.’

‘क्या सिर्फ यही वजह थी? तुम ने सिर्फ एक गाली की वजह से अपने दोस्त का कैरियर दांव पर लगा दिया?’

‘मुझे नहीं पता था कि बात इतनी बढ़ जाएगी. मैं सिर्फ उस से माफी मंगवाना चाहती थी?

‘बस, इतनी सी ही बात थी?’ मैं ने उस की आंखों में झांक कर पूछा.

‘नहीं, मैं अमित को हर्ट कर के रवीश से बदला लेना चाहती थी, क्योंकि उस की वजह से ही रवीश ने मुझे इनकार किया था.’

‘क्या तुम सचमुच रवीश से प्यार करती हो?’

मेरे इस सवाल से वह चिढ़ गई और गुस्से में खड़ी हो गई.

‘यह कैसा सवाल है? हां, मैं उस से प्यार करती हूं, तभी तो उस के यह कहने पर कि मैं उस के प्यार के तो क्या दोस्ती के भी लायक नहीं. यह सुन कर मुझे बहुत हर्ट हुआ और मैं घर क्या अपना शहर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘पर जिस समय तुम ने रवीश से अपना बदला लेने की सोची, प्यार तो तुम्हारा उसी वक्त खत्म हो गया था, प्यार में सिर्फ प्यार किया जाता है, बदले नहीं लिए जाते और वह दोनों तो तुम्हारे सब से अच्छे दोस्त थे?’

मेरी बात सुन कर वह सोचती हुई फिर से कुरसी पर बैठ गई. कुछ देर तक तो हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. कुछ देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी और बोली, ‘मुझ में क्या कमी थी, जो उसे मुझ से प्यार नहीं हुआ?’ और यह कहतेकहते वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

‘हर बार इनकार करने की वजह किसी कमी का होना नहीं होता. हमारे लाख चाहने पर भी हम खुद को किसी से प्यार करने के लिए मना नहीं सकते. अगर ऐसा होता तो रवीश जरूर ऐसा करता,’ मैं ने भी उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘सब मुझे बुरा समझाते हैं,’ उस ने बच्चे की तरह रोते हुए कहा.

‘नहीं, तुम बुरी नहीं हो. बस टाइम थोड़ा खराब है. तुम अपनी शिकायत वापस क्यों नहीं ले लेतीं?’

‘इस से मेरी औफिस में बहुत बदनामी होगी. कोई भी मुझ से बात तक नहीं करेगा?’

‘हो सकता है कि ऐसा करने से तुम अपनी दोस्ती को बचा लो और क्या पता, रवीश तुम से सचमुच प्यार करता हो और वह तुम्हें माफ कर के अपने प्यार का इजहार कर दे,’ मैं ने उस का मूड ठीक करने के लिए हंसते हुए कहा.

यह सुन कर वह हंस पड़ी. बातों ही बातों में वक्त कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. मेरी फ्लाइट जाने में अभी 2 घंटे बाकी थे और उस की में एक घंटा.

मैं ने उस से कहा, ‘बहुत भूख लगी है. मैं कुछ खाने को लाता हूं,’ कह कर मैं वहां से चला गया.

थोड़ी देर बाद मैं जब वापस आया, तो वह वहां नहीं थी. लेकिन मेरी सीट पर मेरे बैग के नीचे एक लैटर था, जो उस ने लिखा था:

‘डियर,

‘आज तुम ने मुझे दूसरी गलती करने से बचा लिया, नहीं तो मैं सबकुछ छोड़ कर चली जाती और फिर कभी कुछ ठीक नहीं हो पाता. अब मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. तुम अजनबी नहीं होते, तो शायद मैं कभी तुम्हारी बात नहीं सुनती और मुझे अपनी गलती का कभी एहसास नहीं होता. अजनबी ही रहो, इसलिए अपनी पहचान बताए बिना जा रही हूं. शुक्रिया, सहीगलत का फर्क समझाने के लिए. जिंदगी ने चाहा, तो फिर कभी तुम से मुलाकात होगी.’

मैं खत पढ़ कर मुसकरा दिया. कितना अजीब था यह सब. हम ने घंटों बातें कीं, लेकिन एकदूसरे का नाम तक नहीं पूछा. उस ने भी मुझ अजनबी को अपने दिल का पूरा हाल बता दिया. बात करते हुए ऐसा कुछ लगा ही नहीं कि हम एकदूसरे को नहीं जानते और मैं बर्गर खाते हुए यही सोचने लगा कि वह वापस जा कर करेगी क्या?

फोन की घंटी ने मुझे मेरे अतीत से जगाया. मैं अपना बैग उठा कर एयरपोर्ट से बाहर निकल गया. लेकिन निकलने से पहले मैं ने एक बार फिर चारों तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह मुझे नजर आ जाए. मुझे लगा कि शायद जिंदगी चाहती हो मेरी उस से फिर मुलाकात हो. यह सोच कर मैं पागलपन पर खुद ही हंस दिया और अपने रास्ते निकल पड़ा.

अच्छा ही हुआ, जो उस दिन हम ने अपने फोन नंबर ऐक्सचेंज नहीं किए और एकदूसरे का नाम नहीं पूछा. एकदूसरे को जान जाते, तो वह याद आम हो जाती या वह याद ही नहीं रहती.

अकसर ऐसा होता है कि हम जब किसी को अच्छी तरह जानने लगते हैं, तो वो लोग याद आना बंद हो जाते हैं. कुछ रिश्ते अजनबी भी तो रहने चाहिए, बिना कोई नाम के.

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सिसकता शैशव : अमान का अबोध बचपन- भाग 2

शाम को पिताजी उसे माल रोड पर घुमाने ले गए. छोटे घोड़े पर चढ़ा कर घुमाया और बहुत प्यार किया, फिर वहीं बैंच पर बैठ कर उसे खूब समझाते रहे, ‘‘बेटा, तुम्हारी मां वही कहानी वाली राक्षसी है जो बच्चों का खून पी जाती है, हाथपैर तोड़ कर मार डालती है, इसलिए तो हम लोगों ने उसे घर से निकाल दिया है. उस दिन वह स्कूल से जब तुम्हें उड़ा कर ले गई थी, तब हम सब परेशान हो गए थे. इसलिए वह यदि आए भी तो कभी भूल कर भी उस के साथ मत जाना. ऊपर से देखने में वह सुंदर लगती है, पर अकेले में राक्षसी बन जाती है.’’

अमान डर से कांपने लगा. बोला, ‘‘पिताजी, मैं अब कभी उन के साथ नहीं जाऊंगा.’’

दूसरे दिन सवेरे 8 बजे ही पिताजी उसे बड़े से गेट वाले जेलखाने जैसे होस्टल में छोड़ कर चले गए. वह रोता, चिल्लाता हुआ उन के पीछेपीछे भागा. परंतु एक मोटे दरबान ने उसे जोर से पकड़ लिया और अंदर खींच कर ले गया. वहां एक बूढ़ी औरत बैठी थी. उस ने उसे गोदी में बैठा कर प्यार से चुप कराया, बहुत सारे बच्चों को बुला कर मिलाया, ‘‘देखो, तुम्हारे इतने सारे साथी हैं. इन के साथ रहो, अब इसी को अपना घर समझो, मातापिता नहीं हैं तो क्या हुआ, हम यहां तुम्हारी देखभाल करने को हैं न.’’

अमान चुप हो गया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. फिर उसे उस का बिस्तर दिखाया गया, सारा सामान अटैची से निकाल कर एक छोटी सी अलमारी में रख दिया गया. उसी कमरे में और बहुत सारे बैड पासपास लगे थे. बहुत सारे उसी की उम्र के बच्चे स्कूल जाने को तैयार हो रहे थे. उसे भी एक आया ने मदद कर तैयार कर दिया.

फिर घंटी बजी तो सभी बच्चे एक तरफ जाने लगे. एक बच्चे ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, नाश्ते की घंटी बजी है.’’

अमान यंत्रवत चला गया, पर उस से एक कौर भी न निगला गया. उसे दादी का प्यार से कहानी सुनाना, खाना खिलाना याद आ रहा था. उसे पिता से घृणा हो गई क्योंकि वे उसे जबरदस्ती, धोखे से यहां छोड़ कर चले गए. वह सोचने लगा कि कोई उसे प्यार नहीं करता. दादी ने भी न तो रोका और न ही पिताजी को समझाया.

वह ऊपर से मशीन की तरह सब काम समय से कर रहा था पर उस के दिल पर तो मानो पहाड़ जैसा बोझ पड़ा हुआ था. लाचार था वह, कई दिनों तक गुमसुम रहा. चुपचाप रात में सुबकता रहा. फिर धीरेधीरे इस जीवन की आदत सी पड़ गई. कई बच्चों से जानपहचान और कइयों से दोस्ती भी हो गई. वह भी उन्हीं की तरह खाने और पढ़ने लग गया. धीरेधीरे उसे वहां अच्छा लगने लगा. वह कुछ अधिक समझदार भी होने लगा.

इसी प्रकार 1 वर्ष बीत गया. वह अब घर को भूलने सा लगा था. पिता की याद भी धुंधली पड़ रही थी कि एक दिन अचानक ही पिं्रसिपल साहब ने उसे अपने औफिस में बुलाया. वहां 2 पुलिस वाले बैठे थे, एक महिला पुलिस वाली तथा दूसरा बड़ी मूंछों वाला मोटा सा पुलिस का आदमी. उन्हें देखते ही अमान भय से कांपने लगा कि उस ने तो कोई चोरी नहीं की, फिर क्यों पुलिस पकड़ने आ गई है.

कुछ खट्टा कुछ मीठा: वीर के स्वभाव में कैसे बदलाव आया?

फोन की घंटी लगातार बज रही थी. सब्जी के पकने से पहले ही उस ने तुरंत आंच बंद कर दी और मन ही मन सोचा कि इस समय किस का फोन हो सकता है. रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो ममा,’’ उधर मिनी थी.

मिनी का इस समय फोन? सोच उस ने पूछा, ‘‘तू अभी तक औफिस नहीं गई?’’

‘‘बस जा रही हूं. सोचा जाने से पहले आप को फोन कर लूं,’’ मिनी का उत्तर था.

‘‘कोई खास बात?’’ उस ने जानना चाहा.

‘‘नहीं, वैसे ही. आप ठीक हैं न?’’ मिनी ने पूछा.

‘‘लो, मुझे क्या हुआ है? भलीचंगी हूं,’’ उस ने हैरान हो कर कहा.

‘‘आप ने फोन देर से उठाया न, इसलिए पूछ रही हूं,’’ मिनी बोली.

‘‘मैं किचन में काम कर रही थी,’’ उस ने कहा.

‘‘और सुनाइए कैसा चल रहा है?’’ मिनी ने बात बढ़ाई.

‘‘सब ठीक है,’’ उस ने उत्तर दिया, पर मन ही मन सोच रही थी कि मिनी को क्या हो गया है. एक तो सुबहसुबह औफिस टाइम पर फोन और उस पर इतने इतमीनान से बात कर रही है. कुछ बात तो जरूर है.

‘‘ममा, पापा का अभी फोन आया था,’’ मिनी बोली.

‘‘पापा का फोन? पर क्यों?’’ सुन कर वह हैरान थी.

‘‘कह रहे थे मैं आप से बात कर लूं. 3-4 दिन से आप का मूड कुछ उखड़ाउखड़ा है,’’ मिनी ने संकोच से कहा.

अच्छा तो यह बात है, उस ने मन ही मन सोचा और फिर बोली, ‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा थक जाती हूं. अच्छा तू अब औफिस जा वरना लेट हो जाएगी.’’

‘‘आप अपना ध्यान रखा करो,’’ कह कर मिनी ने फोन काट दिया.

वह सब समझ गई . पिछले हफ्ते की बात है. वीर टीवी देख रहे थे. उस ने कहा, ‘‘आज दोपहर को आनंदजी के घर चोरी हो गई है.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘आनंदजी की पत्नी बस मार्केट तक ही गई थीं. घंटे भर बाद आ कर देखा तो सारा घर अस्तव्यस्त था. चोर शायद पिछली दीवार फांद कर आए थे. आप सुन रहे हैं न?’’ उस ने टीवी की आवाज कम करते हुए पूछा.

‘‘हांहां सब सुन रहा हूं. आनंदजी के घर चोरी हो गई है. चोर सारा घर अस्तव्यस्त कर गए हैं. वे बाहर की दीवार फांद कर आए थे वगैरहवगैरह. तुम औरतें बात को कितना खींचती हैं… खत्म ही नहीं करतीं,’’ कहते हुए उन्होंने टीवी की आवाज फिर ऊंची कर दी.

सुन कर वह हक्कीबक्की रह गई. दिनदहाड़े कालोनी में चोरी हो जाना क्या छोटीमोटी है? फिर आदमी क्या कम बोलते हैं? वह मन ही मन बड़बड़ा रही थी.

उस दिन से उस के भी तेवर बदल गए. अब वह हर बात का उत्तर हां या न में देती. सिर्फ मतलब की बात करती. एक तरह से अबोला ही चल रहा था. तभी वीर ने मिनी को फोन किया था. उस का मन फिर अशांत हो गया, ‘जब अपना मन होता तो घंटों बात करेंगे और न हो तो जरूरी बात पूछने पर भी खीज उठेंगे. बोलो तो बुरे न बोलो तो बुरे यह कोई बात हुई. पहले बच्चे पास थे तो उन में व्यस्त रहती थी. उन से बात कर के हलकी हो जाती थी, पर अब…अब,’ सोचसोच कर मन भड़क रहा था.

उसे याद आया. इसी तरह ठीक इसी तरह एक दिन रात को लेटते समय उस ने कहा,  ‘‘आज मंजू का फोन आया था, कह रही थी…’’

‘‘अरे भई सोने दो. सुबह उठ कर बात करेंगे,’’ कह कर वीर ने करवट बदल ली.

बहुत बुरा लगा कि अपने घर में ही बात करने के लिए समय तय करना पड़ता है, पर चुपचाप पड़ी रही. सुबह वाक पर मंजू मिल गई. उस ने तपाक से मुबारकबाद दी.

‘‘किस बात की मुबारकबाद दी जा रही है. कोई हमें भी तो बताए,’’ वीर ने पूछा.

‘’पिंकू का मैडिकल में चयन हो गया है. मैं ने फोन किया तो था,’’ मंजू तुरंत बोली.

‘‘पिंकू के दाखिले की बात मुझे क्यों नहीं बताई?’’ घर आ कर उन्होंने पूछा.

‘‘रात आप को बता रही थी पर आप…’’

उस की बात को बीच ही में काट कर वीर बोल उठे,  ‘‘चलो कोई बात नही. शाम को उन के घर जा कर बधाई दे आएंगे,’’ आवाज में मिसरी घुली थी.

शाम को मंजू के घर जाने के लिए तैयार हो रही थी. एकाएक याद आया कुछ दिन पहले शैलेंद्र की शादी की वर्षगांठ थी.

‘‘जल्दी से तैयार हो जाओ, हम हमेशा लेट हो जाते हैं,’’ वीर ने आदेश दिया था.

‘‘मैं तो तैयार हूं.’’

‘‘क्या कहा? तुम यह ड्रैस पहन कर जाओगी…और कोई अच्छी ड्रैस नहीं है तुम्हारे पास? अच्छे कपड़े नहीं हैं तो नए सिलवा लो,’’ वीर की प्रतिक्रिया थी.

उस ने तुरंत उन की पसंद की साड़ी निकाल कर पहन ली.

‘‘हां? अब बनी न बात,’’ आंखों में प्रशंसा के भाव थे.

अपनी तारीफ सुनना कौन नहीं चाहता. इसीलिए  तो भी उस दिन उस ने 2-3 साडि़यां निकाल कर पूछ लिया, ‘‘इन में से कौन सी पहनूं?’’

‘‘कोई भी पहन लो. मुझ से क्यों पूछती हो?’’ वीर ने रूखे स्वर में उत्तर दिया.

कहते हैं मन पर काबू रखना चाहिए, पर वह क्या करे? यादें थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं. उस पर मिनी के फोन ने आग में घी का काम किया था. कड़ी से कड़ी जुड़ती जा रही थी. मंजू और वह एक दिन घूमने गईं. रास्ते में मंजू शगुन के लिफाफे खरीदने लगी. उस ने भी एक पैकेट ले लिया. सोचा 1-2 ले जाऊंगी तो वीर बोलेंगे कि जब खरीदने ही लगी थी तो पूरा पैकेट ले लेती.

उस के हाथ में पैकेट देखते ही वीर पूछ बैठे, ‘‘कितने में दिया.’’

‘‘30 में.’’

इतना महंगा? पूरा पैकेट लेने की क्या जरूरत थी? 1-2 ले लेती. कलपरसों हम मेन मार्केट जाने वाले हैं.’’

सुनते ही याद आया. ठीक इसी तरह एक दिन वह लक्स की एक टिक्की ले रही थी.

‘‘बस 1?’’ वीर ने टोका.

‘‘हां, बाकी मेन मार्केट से ले आएंगे,’’ वह बोली.

‘‘तुम क्यों हर वक्त पैसों के बारे में सोचती रहती हो. पूरा पैकेट ले लो. मेन मार्केट पता नहीं कब जाना हो,’’ उन का जवाब था.

वह समझ नही पा रही थी कि वह कहां गलत है और कहां सही या क्या वह हमेशा ही गलत होती है. यादों की सिलसिला बाकायदा चालू था. आज उस पर नैगेटिव विचार हावी होते जा रहे थे. पिछली बार मायके जाने पर भाभी ने पनीर के गरमगरम परांठे बना कर खिलाए थे. वीर तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे. सुनसुन कर वह ईर्ष्या से जली जा रही थी. परांठे वाकई स्वादिष्ठ थे. पर जो भी हो, कोई भी औरत अपने पति के मुुंह से किसी दूसरी औरत की प्रशंसा नहीं सुन सकती. फिर यहां तो मामला ननदभाभी का था. उस ने भी घर आ कर खूब मिर्चमसाला डाल कर खस्ताखस्ता परांठे बना डाले. पर यह क्या पहला टुकड़ा मुंह में डालते ही वीर बोल उठे,  ‘‘अरे भई, कमाल करती हो? इतना स्पाइसी… उस पर लगता है घी भी थोक में लगाया है.’’

सुन कर वह जलभुन गई. दूसरे बनाएं तो क्रिस्पी, वह बनाए तो स्पाइसी…पर कर क्या सकती थी. मन मार कर रह गई. कहते हैं न कि एक चुप सौ सुख.

मन का भटकाव कम ही नहीं हो रहा था. याद आया. उस के 2-4 दिन इधरउधर होने पर जनाब उदास हो जाते थे. बातबात में अपनी तनहाई का एहसास दिलाते, पर पिछली बार मां के बीमार होने पर 15 दिनों के लिए जाना पड़ा. आ कर उस ने रोमांचित होते हुए पूछा, ‘‘रात को बड़ा अकेलापन लगता होगा?’’

‘‘अकेलापन कैसा? टीवी देखतेदेखते कब नींद आ जाती थी, पता ही नहीं चलता था.’’

वाह रे मैन ईगो सोचसोच कर माथा भन्ना उठा सिर भी भारी हो गया. अब चाय की ललक उठ रही थी. फ्रिज में देखा, दूध बहुत कम था. अत: चाय पी कर घड़ी पर निगाह डाली, वीर लंच पर आने में समय था. पर दुकान पर पहुंची ही थी कि फोन बज उठा, ‘‘इतनी दोपहर में कहां चली गई हो? मैं घर के बाहर खड़ा हूं. मेरे पास चाबी भी नहीं है,’’ वीर एक ही सांस में सब बोल गए. आवाज से चिंता झलक रही थी.

‘‘घर में दूध नहीं था. दूध लेने आई हूं.’’

‘‘इतनी भरी दोपहर में? मुझे फोन कर दिया होता, मैं लेता आता.’’

उस के मन में आया कह दे कि फोन करने पर पैसे नहीं कटते क्या? पर नहीं जबान को लगाम लगाई .

‘‘ बोली सोचा सैर भी हो जाएगी.’’

‘‘इतनी गरमी में सैर?’’ बड़े ही कोमल स्वर में उत्तर आया.

आवाज का रूखापन पता नहीं कहां गायब हो गया था. मन के एक कोने से आवाज आई कह दे कि मार्च ही तो चल रहा है. कौन सी आग बरस रही है पर नहीं बिलकुल नहीं दिमाग बोला रबड़ को उतना ही खींचना चाहिए जिस से वह टूटे नहीं.

रहना तो एक ही छत के नीचे है न. वैसे भी अब यह सब सुनने की आदत सी हो गई है. फिर इन छोटीछोटी बातों को तूल देने की क्या जरूरत है? उस ने अपने उबलते हुए मन को समझाया और चुपचाप सुनती रही.

‘‘तुम सुन रही हो न मैं क्या कह रहा हूं?’’

‘‘हां सुन रही हूं.’’

‘‘ठीक है, तुम वहीं ठहरो. मैं गाड़ी ले कर आता हूं. सैर शाम को कर लेंगे,’’ शहद घुली आवाज में उत्तर आया.

‘‘ठीक है,’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

‘‘इतनी मिठास. इतने मीठे की तो वह आदी नहीं है. नहीं, ज्यादा मीठा सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, यह सोच कर वह स्वयं ही खिलखिला कर हंस पड़ी मन का सारा बोझ उतर चुका था. वह पूरी तरह हलकी हो चुकी थी.

बिमला महाजन

वह फांकी वाली : सुनसान गलियों की प्रेम कहानी

वह एक उमस भरी दोपहर थी. नरेंद्र बैठक में कूलर चला कर लेटा हुआ था. इस समय गलियों में लोगों का आनाजाना काफी कम हो जाता था और कभीकभार तो गलियां सुनसान भी हो जाती थीं.

उस दिन भी गलियां सुनसान थीं. तभी गली से एक फेरी वाली गुजरते हुए आवाज लगा रही थी, ‘‘फांकी ले लो फांकी…’’

जैसे ही आवाज नरेंद्र की बैठक के नजदीक आई तो उसे वह आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. वह जल्दी से चारपाई से उठा और गली की तरफ लपका. तब तक वह फेरी वाली थोड़ा आगे निकल गई थी.

नरेंद्र ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘लच्छो, ऐ लच्छो, सुन तो.’’

उस फेरी वाली ने मुड़ कर देखा तो नरेंद्र ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया. वह फेरी वाली फांकी और मुलतानी मिट्टी बेचने के लिए उस के पास आई और बोली, ‘‘जी बाबूजी, फांकी लोगे या मुलतानी मिट्टी?’’

नरेंद्र ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. दोबारा जब उस लड़की ने पूछा, ‘‘क्या लोगे बाबूजी?’’ तब उस की तंद्रा टूटी.

नरेंद्र ने पूछा, ‘‘तुम लच्छो को जानती हो, वह भी यही काम करती है?’’

उस लड़की ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लच्छो मेरी मां है.’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘वह कहां रहती है?’’

उस लड़की ने कहा, ‘‘वह यहीं मेरे साथ रहती है. आप के गांव के स्कूल के पास ही हमारा डेरा है. हम वहीं रहते हैं. आज मां पास वाले गांव में फेरी लगाने गई है.’’

नरेंद्र ने उस लड़की को बैठक में बिठाया, ठंडा पानी पिलाया और उस से कहा कि कल वह अपनी मां को साथ ले कर आए. तब उन का सामान भी खरीदेंगे और बातचीत भी करेंगे.

अगले दिन वे मांबेटी फेरी लगाते हुए नरेंद्र के घर पहुंचीं. उस ने दोनों को बैठक में बिठाया, चायपानी पिलाया. इस के बाद नरेंद्र ने लच्छो से पूछा, ‘‘क्या हालचाल है तुम्हारा?’’

लच्छो ने कहा, ‘‘तुम देख ही रहे हो. जैसी हूं बस ऐसी ही हूं. तुम सुनाओ?’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. अभी 2 साल पहले रिटायर हुआ हूं. 2 बेटे हैं. दोनों सर्विस करते हैं. बेटीदामाद भी भी सर्विस में हैं.

‘‘पत्नी छोटे बेटे के पास चंडीगढ़ गई है. मैं यहां इस घर की देखभाल करने के लिए. तुम अपने परिवार के बारे में बताओ,’’ नरेंद्र ने कहा.

लच्छो बोली, ‘‘तुम से बाबा की नानुकर के बाद हमारी जात में एक लड़का देख कर बाबा ने मेरी शादी करा दी थी. पति तो क्या था, नशे ने उस को खत्म कर रखा था.

‘‘यह मेरी एकलौती बेटी है सन्नो. इस के जन्म के 2 साल बाद ही इस के पिता की मौत हो गई थी. तब से ले कर आज तक अपनी किस्मत को मैं इस फांकी की टोकरी के साथ ढो रही हूं.’’

उन दोनों के जाने के बाद नरेंद्र यादों में खो गया. बात उन दिनों की थी जब वह ग्राम सचिव था. उस की पोस्टिंग राजस्थानहरियाणा के एक बौर्डर के गांव में थी. वह वहीं गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहता था.

वह कमरा गली के ऊपर था. उस के आगे 4-5 फुट चौड़ा व 8-10 फुट लंबा एक चबूतरा बना हुआ था. उस चबूतरे पर गली के लोग ताश खेलते रहते थे. दोपहर में फेरी वाले वहां बैठ कर आराम करते थे यानी चबूतरे पर रात तक चहलपहल बनी रहती थी.

राजस्थान से फांकी, मुलतानी मिट्टी, जीरा, लहसुन व दूसरी चीजें बेचने वाले वहां बहुत आते थे. कड़तुंबा, काला नमक, जीरा वगैरह के मिश्रण से वे लोग फांकी तैयार करते थे जो पेटदर्द, गैस, बदहजमी जैसी बीमारियों के लिए इनसानों व पशुओं के लिए बेहद गुणकारी साबित होती है.

उस दिन भी गरमी की दोपहर थी. फेरी वाली गांव में फेरी लगा कर कमरे के बाहर चबूतरे पर आ कर आराम कर रही थी. उस ने किवाड़ की सांकल खड़काई. नरेंद्र ने दरवाजा खोल कर देखा कि 18-20 साल की एक लड़की राजस्थानी लिबास में चबूतरे पर बैठी थी.

नरेंद्र ने पूछा था, ‘क्या बात है?’

उस ने मुसकरा कर कहा था, ‘बाबूजी, प्यास लगी है. पानी है तो दे देना.’

नरेंद्र ने मटके से उस को पानी पिलाया था. पानी पी कर वह कुछ देर वहीं बैठी रही. नरेंद्र उस के गठीले बदन के उभारों को देखता रहा. वह लड़की उसे बहुत खूबसूरत लगी थी.

नरेंद्र ने उस से पूछ लिया, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’

उस ने कहा था, ‘लच्छो.’

‘तुम लोग रहते कहां हो?’ नरेंद्र के यह पूछने पर उस ने कहा था, ‘बाबूजी,  हम खानाबदोश हैं. घूमघूम कर अपनी गुजरबसर करते हैं. अब कई दिनों से यहीं गांव के बाहर डेरा है. पता नहीं, कब तक यहां रह पाएंगे,’ समय बिताने के बहाने नरेंद्र लच्छो के साथ काफी देर तक बातें करता रहा था.

अगले दिन फिर लच्छो चबूतरे पर आ गई. वे फिर बातचीत में मसरूफ हो गए. धीरेधीरे बातें मुलाकातों में बदलने लगीं. लच्छो ने बाहर चबूतरे से कमरे के अंदर की चारपाई तक का सफर पूरा कर लिया था.

दोपहर के वीरानेपन का उन दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था. अब तो उन का एकदूसरे के बिना दिल ही नहीं लगता था.

नरेंद्र अभी तक कुंआरा था और लच्छो भी. वह कभीकभार लच्छो के साथ बाहर घूमने चला जाता था. लच्छो उसे प्यारी लगने लगी थी. वह उस से दूर नहीं होना चाहता था. उधर लच्छो की भी यही हालत थी.

लच्छो ने अपने मातापिता से रिश्ते के बारे में बात की. वे लगातार समाज की दुहाई देते रहे और टस से मस नहीं हुए. गांव के सरपंच से भी दबाव बनाने को कहा.

सरपंच ने उन को बहुत समझाया और लच्छो का रिश्ता नरेंद्र के साथ करने की बात कही लेकिन लच्छो के पिताजी नहीं माने. ज्यादा दबाव देने पर वे अपने डेरे को वहां से उठा कर रातोंरात कहीं चले गए.

नरेंद्र पागलों की तरह मोटरसाइकिल ले कर उन्हें एक गांव से दूसरे गांव ढूंढ़ता रहा लेकिन वे नहीं मिले.

नरेंद्र की भूखप्यास सब मर गई. सरपंच ने बहुत समझाया, लेकिन कोई फायदा नहीं. बस हर समय लच्छो की ही तसवीर उन की आंखों के सामने छाई रहती. सरपंच ने हालत भांपते हुए नरेंद्र की बदली दूसरी जगह करा दी और उस के पिताजी को बुला कर सबकुछ बता दिया.

पिताजी नरेंद्र को गांव ले आए. वहां गांव के साथियों के साथ बातचीत कर के लच्छो से ध्यान हटा तो उन की सेहत में सुधार होने लगा. पिताजी ने मौका देख कर उस का रिश्ता तय कर दिया और कुछ समय बाद शादी भी करा दी.

पत्नी के आने के बाद लच्छो का बचाखुचा नशा भी काफूर हो गया था. फिर बच्चे हुए तो उन की परवरिश में वह ऐसा उलझा कि कुछ भी याद नहीं रहा.

आज 35 साल बाद सन्नो की आवाज ने, उस के रंगरूप ने नरेंद्र के मन में एक बार फिर लच्छो की याद ताजा कर दी.

आज लच्छो से मिल कर नरेंद्र ने आंखोंआंखों में कितने गिलेशिकवे किए.  लच्छो व सन्नो चलने लगीं तो नरेंद्र ने कुछ रुपए लच्छो की मुट्ठी में टोकरी उठाते वक्त दबा दिए और जातेजाते ताकीद भी कर दी कि कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो बेधड़क आ कर ले जाना या बता देना, वह चीज तुम तक पहुंच जाएगी.

लच्छो का भी दिल भर आया था. आवाज निकल नहीं पा रही थी. उस ने उसी प्यारभरी नजर से देखा, जैसे वह पहले देखा करती थी. उस की आंखें भर आई थीं. उस ने जैसे ही हां में सिर हिलाया, नरेंद्र की आंखों से भी आंसू बह निकले. वह अपने पहले की जिंदगी को दूर जाता देख रहा था और वह जा रही थी.

नो प्रौब्लम : रितिका के साथ राघव ने क्या किया..

‘‘प्लीज राघव, मैं अब सोने जा रही हूं. बाहर काफी ठंड है. बाद में बात करते हैं,’’ रितिका ने राघव को समझाया.

सचमुच रितिका को ठंड लग गई थी. पूरा दिन औफिस में खटने के बाद कमरे में मोबाइल पर बात करना तक संभव नहीं था. कारण, वह पीजी में रहती थी. एक कमरा 3 युवतियां शेयर करती थीं. वह तो पीजी की मालकिन अच्छी थीं जो ज्यादा परेशान नहीं करती थीं वरना रितिका इस से पहले 3 पीजी बदल चुकी थी.

राघव को उस की परेशानी का भान था पर फिर भी वह उसे बिलकुल नहीं समझता था. रितिका ने राघव को कई बार दबे स्वर में विवाह के लिए कहना शुरू कर दिया था परंतु वह बड़ी सफाई से बात घुमा देता था.

रितिका डेढ़ साल पहले करनाल से दिल्ली नौकरी करने आई थी. रहने के लिए रितिका ने एक पीजी फाइनल किया. जहां उस की रूममेट रिंपी थी जो पंजाब से थी. कमरा भी ठीक था. नई नौकरी में रितिका ने खूब मेहनत की.

रितिका तो दिन भर औफिस में रहती थी, पर रिंपी के पास कोई काम नहीं था. सो वह दिन भर पीजी में ही रहती थी. कभीकभी बाहर जाती तो देर रात ही वापस आती. ऐसे में रितिका चुपके से उस के लिए दरवाजा खोल देती.

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. अब रिंपी ने अपने दोस्तों से रितिका को भी मिलवाना शुरू कर दिया था. राघव से भी रिंपी के जरिए ही मुलाकात हुई. तीनों शौपिंग करते, लेटनाइट डिनर और डिस्क में जाते.

पीजी मालकिन ने अचानक दोनों युवतियों को लेटनाइट आते देख लिया. उस ने कुछ कहा तो रितिका ने पीजी मालकिन से झगड़ा कर दिया. उस दिन उस ने शराब पी रखी थी.

फिर क्या था, रितिका को पीजी छोड़ना पड़ा. उस के बाद रितिका ने 2 पीजी और बदले. रिंपी भी पंजाब वापस चली गई थी. उस के मातापिता ने उस का रिश्ता पक्का कर दिया था.

आज शाम को रितिका को राघव के साथ बाहर जाना था. राघव ने फोन पर कई बार उस से कहा था कि अपनी फ्रैंड्स को भी साथ में लाए.

फ्री की शराब और डिनर के लिए शाइना तैयार हो गई. शाइना को देख कर राघव बहुत खुश हुआ. बेहद खूबसूरत शाइना को देख कर राघव रितिका को बिलकुल भूल ही गया.

कार का दरवाजा भी शाइना के लिए राघव ने ही खोला. डिनर और शराब भी शाइना की पसंद की हीमंगवाई गई, लेकिन इस से रितिका को अपना तिरस्कार लगा और रितिका की आंखों में आंसू आ गए.

पीजी आ कर रितिका पूरी रात रोती रही. अगले दिन इतवार था. राघव ने रितिका को एक फोन भी नहींकिया. तभी रात को शाइना रितिका के पास आ कर कहने लगी, ‘‘प्लीज रितिका, तुम अपने बौयफ्रैंड को समझा लो. देखो, कितनी मिस्ड कौल पड़ी हैं. मैं अपनी लाइफ में तुम्हारे स्टुपिड राघव की वजह से कोई प्रौब्लम नहीं चाहती. मेरा बंदा वैसे ही बहुत पजैसिव है मेरे लिए.’’

रितिका को बहुत बुरा लग रहा था. उस ने शाइना को सुझाव दिया कि वह राघव को ब्लौक कर दे. अब राघव ने रितिका को फोन किया. पहले तो उस ने फोन नहीं उठाया, फिर राघव का मैसेज पढ़ा, ‘‘डार्लिंग, तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें अपने मम्मीपापा से मिलवाना चाहता हूं.’’

बस, रितिका तुरंत पिघल गई. उस ने पीजी में सभी लड़कियों को सुनासुना कर आगे का मैसेज पढ़ा.

‘‘मैं तुम्हें जैलेस यानी जलाना चाहता था. तुम्हें छोड़ कर मैं किसी लड़की की तरफ नजर भी नहीं डालता. आई लव यू सो मच.’’

रितिका ने गुलाबी रंग का सूट और हलकी ज्वैलरी पहनी. हलके मेकअप में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. उसे देखते ही राघव बौखला गया, ‘‘यह क्या है. ये सब पहन कर चलोगी मेरे साथ. जाओ, चेंज कर के आओ.’’

‘‘पर तुम अपने पेरैंट्स से मिलवाने वाले थे न,’’ रितिका हैरानी से बोली.

‘‘ओह हां, मेरी मां मौडर्न हैं. आज अचानक मम्मीपापा किसी रिश्तेदार को देखने अस्पताल गए हैं,’’ राघवको गुस्सा आ रहा था.

रितिका ने ड्रैस चेंज कर ली. राघव ने बहलाफुसला कर रितिका को समझा दिया था. फिर एक दिन रितिका के पापा ने उसे फोन कर के बताया कि उन्होंने रितिका के लिए लड़का पसंद कर लिया है.

उस ने राघव को फौरन अपने मम्मीपापा से मिलवाने को कहा. राघव ने उसे फिर से फुसला कर चुप कराना चाहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा यूरोप गए हैं. 2 महीने बाद ही लौटेंगे.’’

‘‘ठीक है, तो मेरे पापा से मिल लो,’’ इस पर राघव बिना कोई जवाब दिए रितिका को कल मिलने की बात कह कर चला गया.

रितिका बेहद परेशान थी. राघव के साथ वह सारी हदें पार कर चुकी थी. पीजी में रहना तो उस की मजबूरी थी. राघव ने एक छोटे से फ्लैट का इंतजाम किया हुआ था. वहीं रितिका और राघव अपना समय बिताते थे.

उस ने रिंपी को फोन किया. राघव के बरताव के बारे में सबकुछ बताया. रिंपी भी दोस्त न हो कर ऐसे बात कर रही थी मानो अजनबी हो, ‘‘देखो रितिका, मुझे नहीं पता तुम क्या कह रही हो. राघव तो शादीशुदा है. वह तुम से कैसे शादी कर सकता है.’’

‘‘तुम ने मुझे ऐसे लड़के के साथ क्यों फंसाया,’’ रितिका ने रोना शुरू कर दिया था.

‘‘उस के पैसे से तुम घूमीफिरी, ऐश किया और इलजाम मुझ पर. मुझे आगे से फोन मत करना,’’ रिंपी ने टका सा जवाब दे कर फोन काट दिया, ‘‘और हां, पापा की मरजी से शादी कर लो. अरेंज मैरिज सब से अच्छी होती है. पापा भी खुश और तुम भी खुश. नो प्रौब्लम एट औल.’’

रितिका भी दोचार दिन रोनेधोने के बाद संभल गई. फोन कर के मम्मीपापा को पूछने लगी कि घर कब आना है. इस जमाने में दिल्ली जैसे महानगर में भी पापा की मरजी से शादी करने वाली लड़की पा कर मातापिता निहाल हो गए थे. रितिका ने भी अपनी प्रौब्लम सुलझा ली थी.

एहसास सच्ची मुहब्बत का

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घडि़यां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ समझ नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझी नहीं विवेक, तुम क्या समझते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना समझता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

लेखिका- तबस्सुम बानो

निम्मो: क्या मनोज को मिला उसका प्यार

बिशना ठाकुर के पास बहुत से मवेशी थे. उन की रखवाली बीरू करता था. वह तब बच्चा ही था. उस की मां ‘बडे़ घर’ यानी बिशना ठाकुर की हवेली में काम करती थीं. बीरू हमेशा घास पर सुस्त पड़ा आकाश में मंडराते कौओं को गिनता रहता था.

खेत जोतने के बाद खाना खाने के लिए मनोज घर नहीं जा पाता था कि कहीं मौका पा कर बैल सारी खेती साफ न कर डालें. अगर वे ठाकुर के खेतों में घुस जाते तो डांटफटकार सुननी पड़ती थी, इसीलिए मनोज की मां जब खेतों की रखवाली करने जाने लगतीं, तो रास्ते में उसे भात दे जाती थीं. उधर बीरू के लिए भी बड़े प्यार से कटोरदान में खाना आता था. वे दोनों साथ बैठ कर खाते थे. उसे उस कटोरदान का बड़ा घमंड था.

बीरू के लिए खाना बड़े घर की नौकरानी निम्मो लाती थी. उस घर में वह कहां से और कैसे आई, यह कोई नहीं जानता था. मनोज को यकीन था कि उसे तनख्वाह नहीं मिलती थी, बल्कि सिर्फ खाना और कपड़ा मिलता था. वह तब छोटी ही थी. उस की उम्र 13 या 14 साल रही होगी. तब मनोज 15 या 16 बरस का था.

निम्मो सांवली थी, पर थी खूबसूरत. उस की देह सुडौल और गठी हुई थी. मनोज को देखते ही निम्मो पता नहीं क्यों नाकभौं सिकोड़ लेती थी. मनोज के भात के साथ सब्जी नहीं होती थी. अचार भी बेस्वाद सा ही होता था. शायद वह इसीलिए चिढ़ती थी या फिर इसलिए कि मनोज ठाकुर के खेतों में बैल चराता था. लेकिन निम्मो उसे बहुत अच्छी लगती थी.

मनोज ने तो कई बार उस से बात करने की कोशिश की, लेकिन बदले में उसे सिर्फ झिड़कियां ही सुनने को मिलीं. बीरू को सिर्फ खाने से मतलब होता था. वह कभी निम्मो की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता था.

एक दिन निम्मो ने बीरू के हिस्से में से थोड़ा सा अचार मनोज को भी दे दिया. अचार बहुत जायकेदार था. यह बात उस ने निम्मो से भी कही. उस के बाद वह हमेशा मनोज के लिए भी अचार के 1-2 टुकड़े ले आती थी. कई बार उस ने मनोज को थोड़ी सब्जी भी दी. अब वह झिड़कती तो नहीं थी, लेकिन बातें अभी भी नहीं हो पाती थीं.

निम्मो मनोज को अब बहुत ही प्यारी लगने लगी थी. उस ने कई बार उस के पास बैठ कर बातें करने की कोशिश की, पर वह ऐसे दूर भगा देती, मानो वह अछूत हो. दरअसल, मनोज उसे ही अछूत समझता था.

एक दिन बीरू खाना खा रहा था. निम्मो ने घास काटी और गट्ठर बांधा. फिर कटोरदान धो कर घर जाने की तैयारी करने लगी. वह चाहती थी कि मनोज घास का गट्ठर उस के सिर पर रखवा दे. वह बोली, ‘‘यह बीरू से तो उठेगा नहीं.’’

मनोज ने गट्ठर उस के सिर पर रखवा दिया. तब उसे पता चला कि वह बहुत ही हलका था. उसे उठाने के लिए किसी की मदद की जरूरत नहीं थी.

वे दोनों आमनेसामने खड़े थे. सिर पर गट्ठर रखवाते हुए मनोज के हाथ निम्मो की छातियों से टकरा गए. उसे झुरझुरी सी महसूस हुई. सारा शरीर गरम हो गया और दिल जैसे आसमान में उड़ने लगा.

निम्मो मुंह फेर कर ऐसे भागी, जैसे वह बहुत जल्दी में हो. मनोज उसे देखता ही रह गया. बीरू तब भी आसमान में मंडराते हुए कौए गिन रहा था.

इस घटना के बाद मनोज निम्मो को और भी ज्यादा चाहने लगा. जायकेदार अचार में से एक हिस्सा उसे मिलता रहता था. अब तो सब्जी भी रोजाना मिलने लगी. बीरू इस बात से चिढ़ता था, लेकिन छोटा होने की वजह से एतराज नहीं कर पाता था.

निम्मो ने अब रोजाना घास ले जाना शुरू कर दिया. उस का गट्ठर हर रोज भारी होता जा रहा था. मनोज निम्मो के जिस्म के सुडौल हिस्सों की बनावट पहचानने लगा था.

इस बीच मनोज निम्मो को पागलपन की हद तक चाहने लगा था. बिशना ठाकुर को मदद की जरूरत होती तो वह खुशी से चला जाता, ताकि निम्मो के साथ काम कर सके. वह घास के गट्ठर उठाने में हमेशा उस की मदद करता.

इस दौरान निम्मो से मनोज की बात नहीं हो पाई, क्योंकि खेतों में काम करने वाली औरतें उसे नफरत भरी निगाहों से देखती थीं. मनोज यह सब ताड़ जाता और लोगों की मौजूदगी में निम्मो भी ऐसा दिखावा करती, जैसे उस से बहुत नफरत करती हो. तब वह परेशान हो जाता. समझ नहीं पाता कि क्या करे.

फसल कटने के बाद निम्मो से मुलाकात नहीं हो पाई थी. मनोज बेचैनी से इंतजार करने लगा कि कब सर्दियां आएं और उसे पशुओं की रखवाली का मौका मिले.

उन्हीं दिनों बिशना ठाकुर की पत्नी बीमार हो गईं, इसलिए निम्मो के लिए घर के तमाम काम बढ़ गए. उस ने घास काटना बंद कर दिया. एक दिन वह बीरू को खाना पहुंचाने आई, तो उस के साथ एक और लड़की भी थी.

उस दिन निम्मो ने घास काटी और मनोज ने हमेशा की तरह गट्ठर उठाने में उस की मदद की. वह बोली, ‘‘आज से मेरी जगह यह लड़की खाना लाया करेगी.’’

मनोज के घर की माली हालत अच्छी नहीं थी. पिताजी अब भी कर्ज में डूबे हुए थे. सारी कमाई तो ब्याज में चली जाती थी. जरूरी कामों के लिए फिर कर्ज लेना पड़ता था. जिंदगी में बड़ी कड़वाहट आ चुकी थी.

उन्हीं दिनों गांव के कुछ लड़के कोलकाता चले गए थे. वे छुट्टी ले कर घर आते तो सारे गांव में उन का रोब पड़ता था. आखिरकार एक दिन मनोज भी अपने ही गांव के एक लड़के तिलक के साथ कोलकाता चला गया. वहां जा कर वह एक कारखाने में मजदूरी करने लगा.

मनोज के दोस्त छुट्टियों में घर जाते, लेकिन वह नहीं जाता था मानो इस काम के लिए उस के पास पैसे ही न हों. पिताजी चिट्ठियों में पैसों के लिए तकाजा करते, तो वह उन को मनीऔर्डर भेज दिया करता.

तकरीबन 3 साल बाद कारखाने की नौकरी छोड़ कर मनोज ने पान और सिगरेटबीड़ी की छोटी सी दुकान खोल ली. देखते ही देखते अच्छी आमदनी होने लगी. वह हर महीने अपने पिताजी को मनीऔर्डर भेजता रहता था. इस दौरान निम्मो के बारे में उसे कोई खबर नहीं मिली. वह अब उस से मिलने के लिए बेताब रहने लगा था.

इसी तड़प ने मनोज को गांव जाने के लिए मजबूर कर दिया. वहां पहुंचते ही उस ने सब से पहले निम्मो का पता लगाया. मालूम हुआ कि बिशना ठाकुर की बीवी को मरे 2 साल हो चुके हैं और उस घर में अब निम्मो का रोब चलता है. खेतों में काम करना तो दूर, वह उन दिनों घर से बहुत ही कम बाहर निकलती थी. अब वह कपड़े भी शानदार पहनती थी. नौकरचाकर उस से कांपते थे.

पिताजी के मना करने पर भी मनोज बिशना ठाकुर से मिलने बड़े घर गया. वहां पर न तो निम्मो दिखाई पड़ी और न ही उस के बारे में किसी से पूछा ही. बीरू ने भी कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. मनोज ने इधरउधर की कुछ बातें पूछीं, पर वह टाल गया.

मनोज बहुत बेचैन रहा. बड़े तालाब के किनारे सब्जियों का खेत था. एक दिन वहां से गुजरते वक्त मनोज ने देखा कि निम्मो कोई सब्जी तोड़ रही है. उस की जवानी और गदराए बदन को देख कर वह सिहर उठा. एकटक उस की तरफ देखता रहा. समझ में नहीं आ रहा था कि उस से क्या कहे. आखिर में हिम्मत कर के उसे अपने पास बुला ही लिया.

निम्मो ने मुड़ कर मनोज की तरफ देखा, लेकिन उस के चेहरे पर जरा भी परेशानी नहीं थी.

‘‘निम्मो, मैं कोलकाता से कुछ दिनों के लिए आया हूं. मैं ने ठाकुर का सारा कर्ज चुका दिया है,’’ मनोज ने मुसकराते हुए कहा.

निम्मो खामोश ही रही. मनोज की बात को जैसे उस ने सुना ही न हो.

अचानक मनोज पूछ बैठा, ‘‘क्या हम… शादी कर सकते हैं?’’

‘‘नहीं…’’ वह उसे घूरते हुए बोली.

‘‘क्यों?’’

निम्मो ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हें नहीं चाहती. अगर तुम ने ठाकुर का कर्ज चुका दिया है, तो कौन सा एहसान किया है… वैसे, कोलकाता में मजदूरी ही तो करते हो…’’

‘‘नहीं निम्मो,’’ मनोज ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘पिछले साल मैं ने पानसिगरेट की दुकान खोल ली थी. अब मैं काफी पैसे कमा लेता हूं.’’

मनोज ने अपने उजले कपड़ों और घड़ी की ओर निगाह डालते हुए अकड़ कर कहा, ‘‘तुम्हें पहले वाले और अब के मनोज में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा? मैं तुम्हें पलकों पर बिठाऊंगा.’’

‘‘बसबस… अब ज्यादा शेखी बघारने की जरूरत नहीं,’’ निम्मो ने नफरतभरी नजरों से मनोज की ओर देखा, ‘‘पान की दुकान खोल लेने से कोई धन्ना सेठ तो नहीं बन गए. मैं भी अब पहले वाली निम्मो नहीं रही… ठाकुर की हवेली की मालकिन हूं.

‘‘फेरे नहीं लिए तो क्या हुआ… ठाकुर तो अब दिनरात मेरे तलवे चाटता है. जहांजहां तक उस का दबदबा है, वहांवहां पर अब मेरी हुकूमत चलती है.

‘‘जितना तुम महीने में कमाते हो, उतना तो मैं बिंदी, पाउडर और क्रीम पर ही खर्च कर देती हूं,’’ निम्मो ने होंठों को सिकोड़ते हुए ताना कसा, ‘‘अरे कंगले, यहां मैं लाखों की मालकिन हूं… नौकरचाकर मुझे ‘सेठानी’ कहते हैं. मुझ से ब्याह करने के सपने अब भूल कर भी मत देखना… अपनी औकात मत भूल,’’ निम्मो गुस्से से पैर पटकते हुए हवेली की ओर चली गई.

मनोज डबडबाई आंखों से उसे जाते हुए देखता रहा. घर लौटते समय इस मतलबी दुनिया की सचाई उस की आंखों के आगे घूमने लगी, ‘इस दुनिया में पैसा ही सबकुछ है. पैसे के बिना आदमी की औकात दो कौड़ी की भी नहीं होती.’

गांव अब मनोज को काटने को दौड़ रहा था. वह मायूस रहने लगा. मां के आंसुओं की परवाह किए बगैर वह इस वादे के साथ कोलकाता लौट गया कि उसे अब उसे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना है.

अब मनोज सुबह 8 बजे से ले कर रात 10-11 बजे तक दुकान खुली रखता, खूब मेहनत करता. नजदीक ही एक सिनेमाहाल बन जाने की वजह से वह दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा. एक छोकरा भी मदद के लिए रख लिया. लेकिन गांव से सैकड़ों मील दूर कोलकाता में रहते हुए भी वह निम्मो को भुला नहीं पाया.

तकरीबन ढाई साल बाद मनोज फिर गांव गया. वह निम्मो से मिलने के लिए बेचैन था. शाम को उस के पैर बड़े घर की ओर बढ़ चले थे. थोड़ा आगे जाने पर उसे अपना पुराना दोस्त चमन मिल गया.

बातों ही बातों में मनोज ने चमन से निम्मो के बारे में पूछा, तो उस ने एक जोरदार ठहाका लगाया, ‘‘अरे, उस की मत पूछ… खुद को मालकिन और सेठानी समझने लगी थी, पर ठाकुर के मरते ही वह अपनी औकात पर आ गई…’’

‘‘क्या ठाकुर चल बसे…?’’ मनोज ने चौंक कर पूछा.

‘‘अरे, तुम्हें मालूम नहीं,’’ चमन हैरानी से बोला, ‘‘3-4 महीने पहले ही तो उन की मौत हुई थी. जैसे ही ठाकुर ने आंखें मूंदी, उन के बेटों ने उस बेहया को जूते मारमार कर हवेली से बाहर निकाल दिया.’’

‘‘तो निम्मो अब कहां रहती है?’’ मनोज ने जल्दी से पूछा.

‘‘अरे भैया, रहना कहां है… अपने सूबेदार जैमल सिंह दयालु आदमी हैं. उन्होंने उसे एक छोटी सी कोठरी रहने को दे रखी है. उन्हीं के खेतों में मजदूरी करती है और घर में सूबेदारनी की सेवाटहल करती रहती है… बड़ी चली थी मालकिन बनने…’’ कह कर चमन खिलखिलाता हुआ आगे बढ़ गया.

मनोज चंद पलों के लिए तो हक्काबक्का वहीं खड़ा रहा. अंधेरा घिर आया था. वह थके कदमों से घर की ओर चल पड़ा. खाना भी उस ने बेमन से खाया. रात को एक पल के लिए भी उसे नींद नहीं आई. सुबह जल्दी से नहाधो कर वह सूबेदार जैमल सिंह के घर की ओर चल पड़ा. बाहर का दरवाजा भीतर से बंद था. खटखटाने के थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला.

अचानक निम्मो को बेचारगी की हालत में देख मनोज हैरान रह गया. वह एकदम सूख कर कांटा हो गई थी. चेहरे पर जैसे कालिख पोत दी गई थी.

मनोज कुछ कह पाता, इस से पहले ही वह धीरे से बोली, ‘‘तुम… कोलकाता से कब आए?’’

‘‘सूबेदारजी घर पर हैं?’’ मनोज ने धीरे से पूछा.

‘‘नहीं… घर में इस वक्त मैं अकेली ही हूं… सभी लोग पास के गांव में एक ब्याह में गए हैं.’’

‘‘चलो, यह भी अच्छा हुआ निम्मो, मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं… अंदर आने को नहीं कहोगी?’’

‘‘मुझे से मिलने…? खैर, आओ,’’ कह कर निम्मो अंदर की ओर मुड़ गई.

मनोज उस के पीछेपीछे आंगन में जा कर चारपाई पर बैठ गया. निम्मो जमीन पर बिछी बोरी पर बैठ गई.

‘‘निम्मो, मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है… और, वैसे भी हमें यहां अकेले… यानी मैं और तुम… लोग बेकार में बातें बनाएंगे…’’

‘‘मैं बहुत बदनाम हो चुकी हूं… मैं… बस एक जिंदा लाश बन कर रह गई हूं,’’ डबडबाई आंखों से वह बोली, ‘‘खैर, यह बताओ, मुझ से क्या काम है?’’

‘‘ढाई साल पहले मैं ने तुम्हारे सामने शादी की बात रखी थी, मगर तब की बात और थी. मुझे चमन ने सबकुछ बता दिया है. जो हुआ उसे भूल जाओ… मैं आज भी तुम्हारे लिए तड़प रहा हूं… मुझे तुम्हारी जरूरत है निम्मो, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘क्या…? सबकुछ जानने के बाद भी…?’’ निम्मो ने मनोज को घूरते हुए कहा, ‘‘तुम सचमुच पागल हो. यहां गांव के लोग मुझे धंधेवाली, रखैल… और न जाने क्याक्या कहते रहते हैं… और तुम मुझ से ब्याह करोगे? यह दुनिया बहुत जालिम है. फिर मैं ने तो हमेशा तुम्हारी बेइज्जती ही की है… तुम्हें दुत्कारा है…’’

‘‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहता. मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मेरे घर वाले, जातिबिरादरी और गांव वाले मुझे ऐसा कदम उठाने की कभी भी इजाजत नहीं देंगे… लेकिन मैं हर हालत में तुम से ही ब्याह करूंगा.’’

मनोज पलभर रुक कर आगे बोला, ‘‘मैं मांबाप से कोलकाता जल्दी लौटने का कोई बहाना बना लूंगा… तुम आज से ठीक 3 दिन बाद… यानी इतवार की सुबह मुझे स्टेशन पर मिलना. गाड़ी

7 बजे यहां पहुंचती है… सोमवार की सुबहसुबह हम कोलकाता पहुंच जाएंगे, जहां हम ब्याह करेंगे और अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे… अब इनकार मत करना.’’

‘‘यकीन रखो, मैं जरूर आऊंगी. तुम स्टेशन पर मेरा इंतजार करना,’’ निम्मो ने हौले से कहा.

इतवार की सुबह 6 बजे ही मनोज रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया था. अभी चारों ओर अंधेरा ही था. वह बेसब्री से निम्मो का इंतजार करने लगा.

धीरेधीरे अंधेरा छंटने लगा था. लेकिन मनोज दुख, चिंता और नाकामियों के अंधेरे में घिरता चला जा रहा था. घड़ी में समय देखा. 7 बजने में 10 मिनट बाकी थे. उस की उम्मीदों पर काली छाया फैलने लगी थी कि अचानक निम्मो को आते हुए देख कर वह उस की ओर दौड़ा.

निम्मो के पास पहुंच कर मनोज ने हांफते हुए कहा, ‘‘निम्मो, गाड़ी आने ही वाली है… मैं टिकट ले कर आता हूं. हमें होशियार रहना होगा… कहीं कोई जानपहचान वाला न मिल जाए… बेकार में मुसीबत खड़ी हो जाएगी.

‘‘मैं तुम्हें इशारा करूंगा. तुम जनाना डब्बे में चढ़ जाना. अगले स्टेशन पर मैं तुम्हें अपने डब्बे में ले आऊंगा.’’

‘‘ठीक है,’’ निम्मो ने इधरउधर देखते हुए डरी हुई आवाज में कहा.

मनोज फौरन टिकट ले कर प्लेटफार्म पर आ खड़ा हुआ. जल्दी ही गाड़ी आ गई. वह निम्मो के करीब पहुंच गया और इशारे से उसे जनाना डब्बे में चढ़ा कर दरवाजे पर ही खड़ा हो गया. तभी गार्ड ने सीटी बजाई और हरी झंडी दिखाई.

धीरेधीरे गाड़ी सरकने लगी. मनोज खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गया. सुबह की ठंडी हवा के झोंकों के संग मनोज को यों महसूस हुआ, जैसे वह किसी उड़नखटोले पर सवार हो कर ऊंचे, नीले आसमान में घने बादलों में तैरता हुआ उड़ा चला जा रहा है. उस उड़नखटोले में वह अकेला नहीं था, उस की निम्मो भी उस के साथ थी.

नई शुरुआत: सुमन क्यों जलने लगी थी बॉयफ्रेंड राजीव से

सुमन और राजीव दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों बीएससी फाइनल में होने के बावजूद अलगअलग सैक्शन में पढ़ रहे थे. उन दोनों की पहली मुलाकात एक लाइब्रेरी में हुई थी. राजीव ने अपनी तरफ से नोट्स देने में सुमन की पूरी मदद की थी. यह बात सुमन को छू गई थी. राजीव वैसे भी लड़कियों से दूर ही रहता था. स्वभाव से शर्मीले राजीव को सुमन का सलीके से रहना पसंद आ गया था.

‘‘राजीव सुनो, क्या तुम मुझे एक कप चाय पिला सकते हो? मेरा सिरदर्द से फटा जा रहा है,’’ असल में सिर दर्द का तो बहाना था, सुमन राजीव के साथ कुछ देर रहना चाहती थी.

‘‘वैसे, मैं चाय नहीं पीता, लेकिन चलो तुम्हारे साथ पी लूंगा,’’ राजीव कहते हुए थोड़ा झेंप सा गया, तो सुमन मुसकरा दी. कालेज की कैंटीन की बैंच पर बैठ कर राजीव ने 2 कप चाय और्डर कर दी. सुमन बातचीत का सिलसिला शुरू करने की कोशिश करने लगी, ‘‘तुम्हारे, मेरा मतलब है कि आप के घर में और कौनकौन है?’’

‘‘जी, मेरा एक बड़ा भाई है और मांबाबूजी,’’ राजीव ने नजरें झुका कर जवाब दिया.

‘यह लड़का कहीं पिछले जन्म में लड़की तो नहीं था?’ राजीव की झिझक और शराफत देख कर सुमन सोचने लगी.

‘‘जी, आप ने मुझ से कुछ कहा?’’ राजीव ने सवाल किया, तो वह कुछ अचकचा सी गई.

‘‘बिलकुल नहीं जनाब, आप से नहीं कहूंगी तो क्या इस कैंटीन की छत से कहूंगी?’’ सुमन बोली.

इतने में बैरा चाय ले आया. राजीव ने कालेज के दूसरे लड़कों की तरह न तो बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया और न ही कोई ऐसीवैसी हरकत करने की कोशिश की.

‘‘चलो चलें, पीरियड का समय हो गया है शायद,’’ अपनी चाय खत्म करते हुए राजीव बोला, तो मजबूरी में सुमन को भी अपनी चाय जल्दीजल्दी पीनी पड़ी.

इस मीटिंग के बाद न राजीव ने कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही सुमन को राजीव से बात करने का मौका मिला.

‘‘तू ने तीर तो बिलकुल सही निशाने पर लगाया है राजीव. सुमन की एक झलक पाने के लिए लड़के लाइन लगाए खड़े रहते हैं, पर उस ने केवल तुझे घास डाली है,’’ राजीव की क्लास के दोस्त उसे छेड़ते.

‘‘तुम जैसा समझ रहे हो, वैसा कुछ नहीं है. उस ने मुझ से नोट्स मांगे थे और मैं ने दे दिए. बस, इस से ज्यादा कुछ भी नहीं,’’ राजीव झल्ला कर कहता.

‘‘तुम ने न जाने उस लल्लू कबूतर में ऐसा क्या देखा है जानेमन? एक नजर हम पर भी डाल दो. न जाने कब से लाइन लगा कर खड़े हैं तुम्हारे दीदार के लिए,’’ राजीव के साथ सुमन को देख कर दूसरे लड़कों के सीने पर भी सांप लोट जाता.

‘‘राजीव, चलो न कहीं घूम आते हैं. वैसे भी आज गुप्ता सर का पीरियड नहीं होने वाला है, क्योंकि वे आउट औफ स्टेशन हैं,’’ एक दिन सुमन ने राजीव को अपने पास बुला कर कहा.

‘‘पीरियड खाली है तो चलो लाइब्रेरी में चलते हैं, वहीं बैठ कर कुछ समय का सही इस्तेमाल करते हैं,’’ राजीव ने घमूने जाने के अरमान पर पानी फेरते हुए कहा, तो सुमन ने इसे अपनी हेठी समझ और पैर पटकते हुए राजीव को अकेला छोड़ कर चली गई.

सुमन को राजीव द्वारा इस तरह साफ इनकार करना बिलकुल पसंद नहीं आया. अपने साथ हुई इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए वह तड़प उठी.

बहुत जल्दी ही सुमन को राजीव से अपनी बेइज्जती का बदला लेने का मौका भी मिल गया. एक दिन जब राजीव लाइब्रेरी से निकल कर अपनी क्लास की तरफ जा रहा था, तभी उस का ध्यान कहीं और होने के चलते वह एक लड़की नीलम से टकरा गया.

अचानक लगी इस टक्कर से नीलम खुद को संभाल न पाई और जमीन पर गिर गई. हालांकि उन दोनों ने ‘आई एम सौरी’ कह कर इस घटना को तूल नहीं दिया, पर सुमन ने बात का बतंगड़ बना कर हंगामा मचा दिया.

देखते ही देखते लड़कों की भीड़ वहां जमा हो गई और उन्होंने राजीव का कौलर पकड़ कर उसे नीलम से माफी मांगने के लिए मजबूर कर दिया.

राजीव को अपराधी की तरह खड़ा देख कर लड़कियों को बहुत मजा आ रहा था. बेचारा राजीव क्या करता, उसे कान पकड़ कर न केवल

माफी मांगनी पड़ी, बल्कि इतने सारे छात्रों के सामने जलील भी होना पड़ा.

सुमन को यह सब देख कर बहुत अच्छा लग रहा था, क्योंकि उस ने अपनी बेइज्जती का बदला जो राजीव से ले लिया था.

इस घटना को कई दिन बीत गए. राजीव हमेशा अपने काम से काम रखता था. यही बात सुमन को चुभ जाती थी और उसे रिएक्ट करने के लिए मजबूर कर देती थी.

दरअसल, सुमन यह चाहती थी कि राजीव उस के आसपास मंडराए और उस की जीहुजूरी करे. उसे ऐसा ही बौयफ्रैंड चाहिए था, जो उस के नखरे सह सके.

कुछ ही दिनों में छात्र संघ के चुनाव होने जा रहे थे. राजीव के दोस्त चाहते थे कि वह छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़े. राजीव ऐसा नहीं चाहता था, पर दोस्तों के दबाव में उसे राजी होना ही पड़ा. उस का मुकाबला मोहित से था.

मोहित दबंग किस्म का हुल्लड़बाज लड़का था, जो किसी भी तरह अध्यक्ष पद पर काबिज होना चाहता था. लड़कों को अपने पक्ष में करने के लिए उस ने पैसा पानी की तरह बहाना शुरू कर दिया था, जबकि राजीव के पास लगाने के लिए ज्यादा पैसा नहीं था.

सुमन भी बढ़चढ़ कर मोहित के पक्ष में वोटिंग कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही थी. राजीव को दब्बू, नकारा और कबूतर साबित करने के लिए उस ने झूठीसच्ची कहानियां भी छात्रों को सुनाईं, ताकि वह हार जाए और एक बार फिर उस के कलेजे को ठंडक पहुंचे.

चुनाव नतीजे आए, तो सब ने दांतों तले उंगली दबा ली. राजीव जीत गया था. सुमन के सारे अरमान हवा हो गए. जीत की खुशी में दोस्तों ने राजीव को अपने कंधे पर उठा लिया और गुलाल उड़ाते हुए कालेज का चक्कर लगाने लगे.

‘‘जीत मुबारक हो राजीव. मुझे पता था कि तुम ही यह चुनाव जीतोगे,’’ सुमन ने रस्मीतौर पर राजीव को बधाई देते हुए कहा, तो उस ने हाथ जोड़ दिए.

राजीव के रवैए से सुमन समझ गई कि वह उस की असलियत को जान चुका है, इसलिए उस ने अब राजीव के बारे में सोचना बंद कर दिया था. उसे अब राजीव से कोई मतलब नहीं रह गया था.

इधर सुमन के घर वाले भी अब उस का रिश्ता पक्का करना चाहते थे. उन्होंने कई लड़के सुमन को दिखाए भी, पर उन में से कोई भी उसे नहीं जंच रहा था. उधर राजीव अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर के अच्छी नौकरी पर लग चुका था. एक तरह से सुमन उसे भुला ही चुकी थी.

‘‘सुमन, जल्दी से तैयार हो जाओ. लड़के वाले तुम्हें देखने आ रहे हैं. उन के आने का समय हो गया है,’’ एक शाम जब सुमन दोपहर में सो कर उठी, तो उस की मम्मी ने आ कर बताया.

सुमन अब एक तरह से लड़कों के आ कर देखे जाने से उकता चुकी थी. उसे अब इन बातों में इंटरैस्ट कम होता जा रहा था.

‘‘कौन है वह? और क्या करता है?’’ खुद को आईने में देखते हुए सुमन ने अपनी मां से पूछा, तो उन्होंने बताया कि लड़का अच्छी पोस्ट पर है और अच्छे खानदान से है.

खैर, सुमन को तो यह सब झेलने की आदत हो चुकी थी. बाहर कार का हौर्न बजा तो घर वाले सतर्क हो गए. सुमन ने भी एक बार अपने मेकअप और ड्रैस को अच्छे से देख कर सही कर लिया.

अब सुमन को चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में जाना था. जैसे ही वह ट्रे ले कर वहां पहुंची, उस की नजर उसे देखने आए लड़के पर गई. उसे देखते ही वह बुरी तरह से चौंक गई और चाय की ट्रे उस के हाथ से गिरतेगिरते बची.

‘‘राजीव. तुम…?’’ दोनों शब्द उस के होंठों में फंस कर रह गए थे.

राजीव ने अपनी आदत के मुताबिक खड़े हो कर पहले हाथ जोड़े और फिर उसे हैलो कहा. उस का अंदाज बिलकुल नपातुला था.

बातों ही बातों में सुमन को पता चला कि राजीव एक अच्छी फर्म में मैनेजर हो चुका है और अच्छीखासी तनख्वाह पा रहा है.

‘‘सुमनजी, क्या आप को लगता है कि मैं आप का लाइफ पार्टनर बनने के काबिल हूं? अगर आप का दिल इस बात की गवाही देता हो तो ही आप हां करना, वरना साफ इनकार कर देना.’’

एकांत में जब राजीव ने सुमन से बड़े ही अदब के साथ पूछा, तो सुमन जैसे शर्म के मारे जमीन में गड़े जा रही थी. उसे लगा, जैसे राजीव ने उस से अपनी सारी बेइज्जती का बदला इस एक सवाल से ले लिया हो.

‘‘यह सवाल तो मुझे आप से करना चाहिए था. मेरी इतनी गलतियों को माफ करने के बाद भी अगर आप मुझे अपनाने के बारे में सोच रहे हैं, तो यह आप की महानता है. मैं आप की गुनाहगार हूं, आप जो चाहे सजा मुझे दे सकते हैं,’’ सुमन के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘अरे, आप तो रोने लगीं. माफी चाहता हूं कि मेरी वजह से आप का दिल दुखा. शादीब्याह कोई गुड्डेगुडि़या का खेल नहीं होता. मैं नहीं चाहता कि पुरानी यादें हमारी नई जिंदगी की शुरुआत में रोड़ा अटकाएं, इसलिए जो भी फैसला करो, सोचसमझ कर ही करना,’’ कह कर राजीव जाने को तैयार हुआ, तो सुमन उस के पैरों में गिर पड़ी.

‘‘यह आपआप क्या लगा रखी है राजीव? तुम्हारी बीवी बन कर मैं अपने सारे पापों का पछतावा करना चाहती हूं. क्या तुम मुझे यह मौका दोगे?’’

‘‘सोचेंगे…’’ उस समय बस इतना ही कह कर राजीव वापस ड्राइंगरूम में चला गया और अपनी मां के कान में कुछ फुसफुसा दिया.

‘‘भई, मेरे बेटे और हमें तो लड़की पसंद है. अगर सुमन को कोई एतराज न हो, तो आप दोनों की शादी तय कर दीजिए,’’ राजीव की मम्मी के कहे ये शब्द सुमन के कानों में मिश्री की तरह घुलते जा रहे थे. उस के मन की घबराहट अब धीरेधीरे खत्म होती जा रही थी.

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