दिल का राज: क्या सरना ने पूरी की चौधराइन की इच्छा

जानवरों का चारादाना निबटाते हुए सरना को काफी देर हो गई थी. उस ने भल्लू चौधरी की गौशाला में ताला ठोंक कर झटका दिया और मुट्ठियां बगलों में दबा लीं. एक पल को उसे बड़ा अच्छा लगा. सोचने लगा कि अब रात अपनी है. पुआल के बिछावन में पुरानी रजाई ओढ़ कर लेटेगा, तो छमिया की याद थोड़ी गरमी दे जाएगी और वह मीठी नींद सो जाएगा.सरना को छमिया के गदराए बदन की याद आती थी, पर हर समय तो छमिया उस की बांहों में हो नहीं सकती. चौधराइन ने सरना को बाहर की कोठरी की चाबी देते वक्त लकड़ी निकालने को कहा था और कहा था कि अगले दिन बेचेंगे. अच्छा यह रहा कि घर पर चौधरी नहीं थे.

चौधराइन ने दोपहर को पेट भर बढि़या खाना करा दिया था. वह भी दोनों वक्त का एक ही बार में खा गया था. खाता न तो करता भी क्या? छमिया खाना तो ठीक बनाती थी, पर बढि़या कचौड़ी, रायता, 2-2 सब्जियां और खीर उसे कहां बनानी आती थी? चौधरी ने 2 दिन पहले रतजगा किया था. उस के लिए कई दिन खाने लायक खाना बचा था. चौधरी किसी स्वामी को छोड़ने उन के आश्रम 250 किलोमीटर दूर अपनी गाड़ी में गए हुए थे. चौधरी घर में होते तो चाहे कुछ भी बनता, सरना को सूखी रोटियां और बासी साग ही मिलता. वह मन ही मन सोच रहा था कि अच्छा होता, अगर चौधरी 5-7 दिन बाहर ही रहते. सरना ने दरवाजे की कुंडी खटकाई. चौधराइन ने दरवाजा खोला. सरना को लग रहा था कि चौधराइन कुंडी खोलते वक्त गुनगुना रही थीं. चौधराइन ने उस समय टाइट ब्लाउज पहन रखा था.

सरना कुछ सोचता सा खड़ा था कि सामने खड़ी चौधराइन ने कहा, ‘‘लाओ चाबी. और हां, कुछ लकडि़यां यहां भी डाल दो. बड़ी ठंड है. मैं भी जला लूंगी. हीटर से कहां काम चलता है.’’ हमेशा स्वैटर, शौल वगैरह से लदीफदी गुडि़या को उस समय इतने कम कपड़ों में देखने की बात सरना सपने में भी नहीं सोच सकता था.

‘इन्हें इतने कपड़े पहनने के बाद भी ठंड क्यों नहीं लग रही है?’ वह सोचने लगा, ‘पर बेचारी बूढ़े साहूकार के फंदे में फंस गई. यह किसी और गरमी की तलाश में है.’

जब तक सरना लकड़ी लाया, तो पानी की बूंदाबांदी बौछार में बदल गई थी. भीगने से बचने के लिए उसे तकरीबन दौड़ना पड़ा. शुक्र था कि चौधराइन किवाड़ खोले ही खड़ी थीं.

बरामदे में लकडि़यां रख कर उस ने चेहरे और नाक का पानी पोंछते हुए हाथ एक ओर झटका. चौधराइन ने उस की ओर देखा तो हंस पड़ीं, ‘‘अरे, तुम तो अच्छेखासे भीग गए.’’‘‘पानी में जो जाएगा, वह भीगेगा ही,’’ कहते हुए सरना कुढ़ सा गया. वह सोचने लगा, ‘पैसे वालों को गरीबी का मजाक उड़ाने में शायद कुछ खास मजा आता है.’ ‘‘वह तो ठीक है, लेकिन अब तुम रात कैसे काटोगे?’’ चौधराइन ने खूंटी पर टंगे पति के एक पुराने कुरते की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह तो तुम्हारे बहुत ढीला होगा पर पहन लो. और वह रही लुंगी.’’ सरना को यह बात कुछ जंची नहीं. पर ठिठुरने के बजाय यही ठीक रहेगा, यही सोच कर उस ने कुरता उतार लिया. अब चौधराइन अंदर की ओर चली गई थीं.

लुंगी और ढीलाढाला कुरता पहनते हुए सरना को लगा कि चौधराइन उसे देख रही हैं. सरना को अजीब लग रहा था. वह सोचने लगा कि इन कपड़ों में तो वह जोकर लग रहा होगा. खैर, कौन इतनी रात में देखेगा. सरना ने आवाज दी, ‘‘किवाड़ बंद कर लीजिए, मैं जा रहा हूं. मैं ने बरामदे में लकडि़यां जला दी हैं. आप यहां बैठ कर आग सेंक सकती हैं.’’

तभी खाने की थाली लिए आती चौधराइन ने कहा, ‘‘अजीब बात है. पानी बरस रहा है, फिर भीगना है क्या? खाना खा लो, शायद तब तक पानी रुक जाए. घर में छाता भी नहीं है. चौधरी साहब छाते को अपने साथ ले गए हैं.’’ यह तो मुंहमांगी मुराद थी सरना के लिए. वह खाता जाता था और चौधराइन की खूबसूरती की दिल ही दिल में तारीफ भी करता जा रहा था. तब तक बरामदे की लकडि़यां जलने लगी थीं. उसे भी गरमी महसूस हो रही थी.

सरना को लग रहा था कि यह वाकई बड़ी नेक औरत है. इसे बूढ़े चौधरी के पल्ले बांध कर कुदरत ने इस के साथ बहुत बड़ा मजाक किया है. अब तक औलाद का मुंह तक नहीं देखा बेचारी ने… जबकि ब्याह हुए 7-8 बरस गुजर गए हैं. चौधरी ने इसीलिए किसी पोंगापंथी स्वामी को बुला कर बच्चे देने की मन्नत मांगी थी और भंडारा किया था. सरना खाना खा कर हाथमुंह धो चुका था. पर पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था. उलटे बारिश तेज होती जा रही थी. आग के पास हाथपैर सेंक कर सरना ने कहा, ‘‘अब मैं चलूंगा मालकिन.?’’

इतनी रात को अकेली चौधराइन के पास सूने घर में रुकने का सरना का मन था, पर जानता था कि पकड़ा गया तो उस का घरबार सब जला दिया जाएगा, इसीलिए उसे वहां से जाने की उतावली हो रही थी. चौधराइन ने नीचे से ऊपर तक उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘बहुत अच्छे… पानी में भीग कर बीमार पड़ने का इरादा है क्या? ठीक है, जाओ, जरूर जाओ, तुम्हारे घर में दवादारू के लिए भी बहुतेरे लोग बैठे हैं…’’ ‘‘न जाऊं तो करूं भी क्या? यहां बैठने से तो रात कटनी नहीं. कोई देखेगा तो क्या कहेगा,’’ अपने दिल की बात झिझक के साथ सरना ने कह दी.

‘‘यह घर छोटा है न… यहां ओढ़नेबिछाने को कुछ नहीं है न? अरे सरना, यह घर तो रहने वालों के लिए तरसता है. यहां कमी भी किस बात की है. दुनिया के कहनेसुनने की चिंता है? क्या मैं तुझे वैसी लगती हूं, सच कहना?’’

‘‘नहीं, आप तो बड़ी नेक और रहमदिल हैं. मैं औरतों के मामले में आप की मिसाल देता हूं. आप का अंगअंग संगमरमर का सा सफेद है, छूने पर मखमली होगा. सुंदरता की खान.

‘‘चौधरी के बुढ़ापे का जब आप से मेल करता हूं तो मन करता है कि आप के कदमों पर माथा झुका दूं. ‘‘मालकिन, छोटी सी उम्र में मैं ने भी काफी दुनिया देखी है. पहले मैं लुधियाना गया था. वहां मेरे बूढ़े लालाजी की जवान बीवी मेरे देखतेदेखते ही अपने यार के साथ चंपत हो गई थी…’’ लगता था जैसे सरना की बात बांध तोड़ कर नदी की तरह बह निकली थी. चौधराइन ने आग और तेज करते हुए सिसक कर सरना की ओर आते हुए कहा, ‘‘और क्या देखा?’’

सरना को लगा, जैसे उन के चेहरे पर कुछ और लाली आ गई है और आंखों में नशा सा छा गया है. वे बात करने में कुछकुछ अटकने सी लगी हैं. उस ने लाला और यार की कहानी 2-4 बातों में बता दी कि कैसे उस ने ही उन्हें कमरे में साथ सोते देखा था. बात करतेकरते चौधराइन इधरउधर चौकन्नी निगाहों से देखती भी जा रही थीं, मानो दीवारों के कान होने पर उन्हें यकीन होता जा रहा हो.

सरना को ऐसा लगा, जैसे उस के शरीर की उठी मछलियों पर चौधराइन की नजरें गड़ी हैं. वे बोलीं, ‘‘सरना, यही तो वहम है… दुनिया भी यही जानती है. पर, तुम सब अपने को मेरी जगह रख कर सोचो. क्या धनदौलत से जवानी के जोश को दबाया जा सकता है? सच तो यह है कि ये सब देह की भूख को और बढ़ाने वाले हैं.

‘‘कई बार सोचती हूं कि मैं एक गरीब घर में होती. शाम को मेरा आदमी काम कर के पसीने से लथपथ आता. मैं पंखे से उस को हवा करती और वह सिर्फ मेरा होता, इन बहीखातों का नहीं. घर में नन्हेमुन्ने किलकते, मैं निहाल हो जाती. ये सोनेचांदी के गहने मेरे पैरोें में बड़ी माया की जंजीरें हैं. इन से मेरा दुख बढ़ता है,’’ कह कर उन्होंने सरना पर एक निगाह डाली.

सरना चौधराइन की तेज निगाहों से सिटपिटा गया. उस ने कहा, ‘‘मालकिन, कुदरत ने ही आप को इतना दयावान बनाया है. सुख दिया है और सब से ऊपर ‘सत’ दिया है. आज के जमाने में ऐसे लोग मिलते कहां हैं?’’ ‘‘सरना, तू क्या कभी जान सकेगा मेरे मन की पीर? बचपन गरीबी में बीता. तब मैं पैसे को दुनिया का सब से बड़ा सुख समझती थी, लेकिन फिर भी उस गरीबी में कहीं न कहीं कोई मजा भी था. जो जीने की तमन्ना पैदा करता था, जिस की बदौलत होंठों पर मुसकान रहती थी. मेरी समझ में अब बीता समय ही अच्छा जान पड़ता है. ‘‘लेकिन तब तो मुझे क्या, मेरे मांबाप को भी यही वहम था कि दुनिया का सारा सुख पैसे से खरीदा जा सकता है. तभी तो मुझे चौधरी के पल्ले बांध दिया गया.

‘‘अब मैं सोचती हूं कि चौधरी ने तो पैसे से सुख जरूर खरीदा, पर मेरी खुशियां पैसे के बदले बिक गईं. क्या यह सारा पैसा गरीब से गरीब औरत को वह सुख मुझे दे सकता है, जो पति की बांह का सिरहाना लगा कर सोई जवान औरत को मिलता है? ‘‘प्यारमुहब्बत का झरना बराबर उम्र वालों में भी फूट सकता है. चौधरी तो बिस्तर पर आने से पहले ही निढाल हो जाते हैं.’’ फिर चौधराइन खुल कर बोलीं, ‘‘सरना, सच मान मेरा रोमरोम उस सुख के लिए जब पागल होता है, तो चौधरी के पैसे के हिसाब में डूब कर पता नहीं किस दुनिया में चले जाते हैं. क्या पैसे की इस प्यास का कहीं अंत भी है?

‘‘तू जो समझता है, मैं अपने ‘सत’ पर मजबूत हूं, यह तेरा भोलापन है. दरअसल, मैं अंदर से इतनी नंगी हूं कि तुझे क्या बताऊं.’’ सरना को चौधराइन की बात का कोई जवाब नहीं सूझ रहा था, तभी उसे खांसी आ गई, जिस से वह जवाबदेही से बच गया. चौधराइन इस समय उसे पैसे के जोर से खरीदी गई एक कमजोर औरत लगी, जिस के जिस्म में एक नाजुक दिल धड़क रहा है और वे पैसे के सुख के बदले अनजाने ही जिंदगी की खुशियां हार चुकी हैं. सरना को लगा कि उसे जरूर चौधराइन के काम आना चाहिए.

सरना को चुप देख कर चौधराइन बोलीं, ‘‘तुझे मैं दूध धोई लगती हूं. मेरे तन पर कोई शक नहीं कर सकता, पर दिल को तो मैं ही जानती हूं. कभीकभी दिल की प्यास आंखों में भर आती है. लेकिन इसे पढ़ने वाला कम से कम वहां तो कोई नहीं मिला.’’

सरना सन्न रह गया. जिसे वह इतना ‘साफ’ समझे बैठा है, उस के दिल में ऐसी बात होगी, उस ने ऐसा कब सोचा था? उसे बड़ा दुख हुआ. उसे लगा जैसे चौधराइन की आवाज का काम उन की आंखों ने अपने जिम्मे ले लिया है. वे आंखें एक भूचाल के आने की खबर दे रही थीं.

सरना चौधराइन के सुंदर मुखड़े को देखता रह गया, तभी बिजली जोर से चमकी और चौधराइन डर के मारे उस के बदन से चिपक गईं. सरना की आंखों में भी अनजाने ही एक चमक सी आ गई. उस ने महसूस किया, जैसे चौधराइन के जिस्म के जरीए एक आग उस के तनमन में समाती चली जा रही हो. वे दोनों घंटाभर एकदूसरे की बांहों में बरामदे में ही खोए रहे.

दरवाजे पर खटका सा हुआ. चौधराइन ने कपड़े पहन कर किवाड़ खोल दिए. चौधरी सामने खड़े थे. बदन का पानी पोंछते हुए वे बोले, ‘‘रास्ता बारिश की वजह से खराब हो गया था, इसलिए एक गाड़ी को स्वामीजी के साथ छोड़ कर आ गया हूं…

‘‘यहां तुम अकेली जो थी. मन ने कहा कि लौट चलो, सो लौट आया. तुम्हें हैरानी तो नहीं हुई इस तरह मेरे लौटने पर? यह अच्छा किया कि सरना को रोक लिया था. यह बड़ा अच्छा लड़का है. ऐसी सुनसान रात में अकेले रहना भी तो ठीक नहीं था…’’

चौधराइन अपने आदमी के इस यकीन पर हैरान रह गईं. अगर वह थोड़ी देर और कर देते तो जवानी का तूफान दोनों को पता नहीं कहां ले जाता. चौधराइन मुसकरा कर बोली, ‘‘हैरानी, वह भी आप के आने की? हैरानी तो तब होती, जब आप न आते. सरना भी रुक नहीं रहा था. कह रहा था कि चौधरी आते ही होंगे… थोड़ी देर की तो बात है. आप अकेले ही वक्त काट लीजिए. पर सच मानिए, आप के बिना सब सूनासूना लगता है.’’

घर जाते समय सरना सोच रहा था, चौधराइन के दिल का सारा बोझ जैसे उस के दिल पर आ गया है. अब उसे इस बात की चिंता थी कि अगर फिर किसी दिन चौधरी रात को घर नहीं लौटे, तो उस वक्त क्या होगा?उधर चौधराइन खुश थीं कि दिल के अंदर उठता जोशीला तूफान कम गया था. चौधरी भी खुश हुआ, जब 2 महीने बाद पता चला कि चौधराइन पेट से है. उस ने स्वामीजी को पूरे 2 लाख रुपए का चढ़ावा दिया.सरना को भी चौधराइन ने बहुतकुछ दिया, पर वह बताने की बात नहीं है. राज को राज ही रहने दें.

चोट: कैसे पूरी की उसने पत्नी की जिस्मानी जरूरत

आखिर कब तक सहन करती? कब तक बेइज्जती, जोरजुल्म सहती? इस आदमी ने, जब से मैं इस घर में शादी कर के आई हूं, डांटफटकार, उलाहनोंतानों के अलावा कुछ नहीं दिया.

शादी के शुरुआती कुछ दिन… कुछ महीने… ज्यादा हुआ, तो एक साल तक प्यार से बात की. घुमानेफिराने ले जाते. सिनेमा दिखाते, मेला, प्रदर्शनी ले जाते. मीठीमीठी प्यारभरी बातें करते. यहां तक कि अपनी मां से भी बहस कर लेते.

अगर मेरी सास मुझे छोटीछोटी बातों पर टोकतीं, तो पतिदेव अपनी मां से कह देते, ‘‘क्यों छोटीछोटी बातों पर घर की शांति भंग कर रही हो? आप की लड़की के साथ ससुराल में यही सब हो तो क्या बीतेगी आप पर? यह इस घर की बहू है, नौकरानी नहीं.

‘‘यह तो कुछ नहीं कहती, लेकिन मैं ही इसे घुमाने ले जाता हूं. पढ़ीलिखी औरत है. बदलते समय के साथ आप नहीं बदल सकतीं, तो छोटीछोटी बातों पर टोकाटाकी कर के घर में अशांति तो न फैलाएं.’’

सास को लगता होगा कि जोरू का गुलाम है बेटा. वे गुस्से में कुछ दिन तक बात न करतीं. बात करतीं तो भी इस तरह, जैसे धीरेधीरे बातों से अपना गुस्सा निकाल रही हों.

‘‘मुझे क्या करना है? तुम खूब घूमोफिरो, लेकिन हद में. आसपड़ोस के घर में भी बहुएं हैं. यह क्या बात हुई कि जब जी आया मुंह उठा कर चल दिए.

न किसी से कुछ पूछना, न बता कर जाना. आखिर घर में बड़ेबुजुर्ग भी हैं. उन के मानसम्मान का भी ध्यान रखो.’’

एक साल बाद ही पति के बरताव में बदलाव आने लगा. शायद शादी की  खुमारी अब तक उतर चुकी थी. पहले ये बहुत ही कम टोकाटाकी करते, बाद में बातबात पर टोकने लगे. मेरी कोई बात इन्हें अच्छी ही नहीं लगती. हर बात में अपनी मां की तरफदारी करते. चाहे वह बात गलत हो या सही, मैं सुनती रही.

इस बीच 2 बच्चे भी हो गए. कहने को घरगृहस्थी तो ठीकठाक चल रही थी, लेकिन जिन पति से मैं प्यार करती थी, उन के बातबात पर डांटनेटोकने से मन उदास रहने लगा.

मैं अपनी तरफ से पति का, सास का, बच्चों का, घर का पूरा खयाल रखती, फिर भी इन की बातबात पर टोकने, डांटने की आदत नहीं जाती.

एक बार मैं ने गुस्से में जरा जोर से कहा भी था, ‘‘आखिर बात क्या है? आप मुझे इस तरह से बेइज्जत क्यों करते रहते हैं?’’

इन्होंने भी झुंझला कर जवाब दिया, ‘‘मैं मर्द हूं. घर का मुखिया हूं. गलत बात पर टोकूंगा नहीं, तो क्या लाड़ करूंगा? तुम 2 बच्चों की मां बन गई हो. तुम्हें घर की जिम्मेदारी समझनी चाहिए. गलती पर डांटता हूं, तो गलती को सुधारना चाहिए. इस में बुरा मानने वाली क्या बात है?’’

‘‘मैं ऐसी कौन सी गलती करती हूं? क्या मन भर गया है मुझ से?’’

‘‘मुझे तो सब को साथ ले कर चलना है. तुम्हारा भी अब तक मन भर जाना चाहिए. प्यारमुहब्बत की उम्र बीत चुकी. अब अपने फर्ज पर ध्यान दो.’’

‘‘आखिर मैं ने फर्ज निभाने में कौन सी कमी रखी है?’’

‘‘तुम फिर बहस करने लगीं. मुझे तुम्हारी यही बात अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘आप को मेरी कौन सी बात अच्छी लगती है आजकल?’’

‘‘औरत हो, औरत की तरह रहना सीखो. घर के कामकाज देखो. अम्मां की तबीयत ठीक नहीं रहती आजकल. उन की देखभाल करो.’’

‘‘करती तो हूं.’’

‘‘करती, तो अम्मां शिकायत नहीं करतीं.’’

‘‘अम्मां की तो आदत है मेरी शिकायत करने की. एक की चार लगा कर भड़काती हैं.’’

‘‘खबरदार, जो मेरी अम्मां के बारे में कुछ कहा,’’ इन्होंने इतनी जोर से डांटा कि मैं गुस्से में अपने कमरे में आ कर रोने लगी.

बैडरूम में तो ये बड़े प्यार से बात करते हैं. हालांकि अब यह होता है कि बैडरूम में मेरे आने तक ये सो जाते हैं. मुझे घर के काम निबटातेनिबटाते ही रात के 11-12 बज जाते हैं.

अब हमारे बीच संबंध बनने में भी काफी समय होने लगा था. मसरूफियत, जिम्मेदारी, बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होता है. इस की कोई शिकायत नहीं. लेकिन आदमी दो बातें प्यार से कर ले, तो क्या बिगड़ जाएगा? लेकिन पता नहीं क्यों आजकल मुझे देख कर इन का पारा चढ़ जाता है, खासकर दूसरों के सामने.

ये दूसरों से तो अच्छी तरह बात करेंगे. अपनी अम्मां से, बच्चों से, पासपड़ोस के लोगों से, घर आए रिश्तेदारों से. दोस्तों से तो इस कदर प्यार से बातें करेंगे कि जैसे इन्हें गुस्सा आता ही न हो, मानो जबान पर चाशनी चिपक जाती हो.

लेकिन सुबह मैं थोड़ी देर से उठूं, तो चिल्लाते हैं, ‘‘तुम जल्दी नहीं उठ सकतीं. यह कोई समय है उठने का? अभी तक चाय नहीं बनी. चाय में चीनी कम है. कभी ज्यादा है. खाने में नमक नहीं है. यह सब्जी क्यों बनाई है? वही काम करती हो, जो मुझे पसंद नहीं आता. न घर में साफसफाई है, न बच्चों की तरफ ढंग से ध्यान देती हो.

‘‘अम्मां अब कितने दिनों की मेहमान हैं. कम से कम उन की देखभाल ही ठीक से कर लिया करो. तुम्हें कपड़े पहनने का सलीका नहीं आता है. तुम्हें मेहमानों से बात करने का ढंग नहीं है. तुम यह नहीं करती, तुम वह नहीं करती. तुम ऐसी हो, तुम वैसी हो. तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता.’’

मैं ने तो अब बहस करना, इन की बातों पर ध्यान देना ही छोड़ दिया. जो कहना है, कहते रहो. मेरा काम सुनना है, सुनती रहती हूं. लेकिन आखिर कब तक? अकेले में कह दें तो सुन भी लूं. चार लोगों के बीच टोकना, डांटना घोर बेइज्जती है मेरी. मेरे औरत होने की. पत्नी हूं, नौकरानी नहीं.

एक दिन इन के 2-3 दोस्त खाने पर आए. इन के कहे मुताबिक ही खाना बनाया. मैं ने अच्छे से परोसा. लेकिन दोस्तों के सामने ही इन का चिल्लाना शुरू हो गया, ‘‘जरा अपने हाथपैर तेजी से चलाओ. यह जैट युग है, बैलगाड़ी की तरह काम मत करो…’’

फिर इन्होंने चीख कर कहा, ‘‘दही कहां है?’’

‘‘अभी लाई,’’ मैं ने अपनी रुलाई रोकते हुए कहा.

इन के एक दोस्त ने कहा, ‘‘क्या दबदबा बना कर रखा है यार? मैं अगर अपनी पत्नी से इतना कह दूं, तो घर में मुसीबत खड़ी हो जाए.’’

दूसरे दोस्त ने इन की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वाकई सही माने में तुम हो असली मर्द. औरतों को ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए.’’

मैं अंदर रसोई में से सब सुन रही थी. जी तो चाहता था कि सारा सामान उठा कर फेंक दूं. इन्हें और इन के दोस्तों को जम कर लताड़ लगाऊं, लेकिन चुप ही रही. पर मैं ने भी मन ही मन तय कर लिया था कि अपनी बेइज्जती का बदला तो ले कर रहूंगी. लेकिन बहस से, चीखचिल्ला कर घर का माहौल बिगाड़ कर नहीं. इन्हें बताऊंगी कि औरत कैसे शर्मिंदा कर सकती है. कैसे हरा सकती है. कैसे तुम्हारे मर्द होने का अहंकार तोड़ सकती है.

खाना खा रहे दोस्तों के बीच मैं दही रखने गई, तभी दोनों बच्चे वहां आ गए खेलते हुए.

‘‘बाहर निकालो इन्हें कमरे से. तुम बच्चों का ध्यान नहीं रख सकतीं…’’ वे जोर से चिल्लाए.

मैं दोनों बच्चों को जबरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गई. इन के किसी दोस्त की आवाज कानों में आई, ‘‘खाना तो लजीज बना है.’’

इन्होंने मुंह बिचकाते हुए जवाब दिया, ‘‘खाना तो सुमन बनाती थी. पहले मेरी उसी से शादी होने वाली थी. सगाई तक हो गई थी उस से. कई बार मैं सुमन के घर भी गया. ऐसा स्वादिष्ठ खाना मुझे आज तक नसीब नहीं हुआ.’’

इन की सगाई टूटने की बात मुझे पता थी, लेकिन सुमन के खाने की तारीफ और मेरे खाने को सुमन के मुकाबले कमतर बताना मुझे अखर गया.

ये मर्द थे, तो मैं औरत थी. इन्हें अपने मर्द होने का घमंड था, तो मुझे क्यों न हो अपने औरत होने पर गर्व? अब इन्हें बताना जरूरी था कि औरत क्या होती है.

मर्द की सौ सुनार की और औरत की एक लुहार की कहावत को सच साबित करने का समय आ गया था. इन का यह जुमला कि मर्द बने रहने के लिए औरत को दुत्कारते रहना जरूरी है, तभी घर भी घर बना रहता है. तभी सब ठीक रहते हैं.

अम्मांजी ने इन से एक बार कहा भी था, ‘‘बेटा, मर्द को मर्द की तरह रहना चाहिए. औरत को हमेशा सिर पर चढ़ा कर नहीं रखना चाहिए. उसे डांटडपट, फटकार लगाना जरूरी है.’’

इन्होंने अम्मांजी की बातों को इस तरह स्वीकार किया कि मेरा पूरा वजूद ही बिखरने लगा.

दोनों बच्चे अकसर दादी के पास ही सोया करते थे. वे आज भी वहीं सो रहे थे. ये भी बिस्तर पर लेटेलेटे किताब पढ़ रहे थे.

आज मैं जरा जल्दी ही कमरे में पहुंच गई थी. मैं गाउन पहन कर सोती थी और कपड़े बाथरूम में ही बदलती थी. लेकिन आज मैं ने कमरे में जा कर साड़ी उतारी.

मैं ने तिरछी नजरों से इन की तरफ देखा. साड़ी बदलते ही इन का ध्यान मेरी तरफ गया. नहीं… नहीं, मेरे बदन की तरफ. पहले तो इन्होंने आदत के मुताबिक मुझे टोका, ‘‘यह जगह है क्या कपड़े बदलने की?’’

मैं ने भी कह दिया, ‘‘यहां पर आप के अलावा और कौन हैं? आप से कैसी परदादारी?’’

ये कुछ कहते, इस से पहले ही मैं ने अपने बाकी कपड़े भी उतार दिए. अब मैं छोटे कपड़ों में थी, टूपीस भी कह सकते हैं.

मैं ने पहनने के लिए गाउन उठाया. लेकिन इन के सब्र का पैमाना छलक चुका था. इन्होंने प्यार से मुझे अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘बहुत दिन हो गए तुम्हें प्यार किए हुए. आज इस रूप में देख कर सब्र नहीं होता.’’

इस के बाद कमरे में हम दोनों एक हो गए. अलग होते ही मैं मुंह बिचका कर एक तरफ मुंह फेर कर लेट गई. मैं ने कहा, ‘‘किसी वैद्यहकीम को दिखाओ. इतने सारे तो इश्तिहार आते हैं, कोई गोली ले लिया करो.’’

ये दुम दबाते पालतू कुत्ते की तरह आ र कूंकूं की आवाज में बोले, ‘‘क्यों, खुश नहीं हुईं क्या तुम? कुछ कमी रह गई क्या?’’

इन की हालत देख कर बड़ी मुश्किल से मैं ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा, ‘‘नहीं, कोई ऐसी बात नहीं है. कभीकभी होता है ऐसा.’’

इन का उदास, हताश, हारा हुआ चेहरा देख कर मुझे अपनी जीत का एहसास हुआ. एक ही वार से इन के अंदर की मर्दानगी और बाहर का मर्द दोनों मुरदा पड़े हुए थे, जैसे दुनिया के सब से तुच्छ, कमजोर इनसान हों.

उस के बाद इन की टोकाटाकी, डांटफटकार तो बंद हुई ही, साथ ही साथ मेरी तरफ जब भी ये देखते, तो ऐसा लगता कि इन के देखने में डर और शर्मिंदा का भाव हो. अकसर चोरीछिपे जिस्मानी ताकत बढ़ाने के इश्तिहार पढ़ते भी नजर आते.

खूबसूरत : जब असलम को अच्छी लगने लगी मुमताज

असलम ने धड़कते दिल के साथ दुलहन का घूंघट उठाया. घूंघट के उठते ही उस के अरमानों पर पानी फिर गया था. असलम ने फौरन घूंघट गिरा दिया. अपनी दुलहन को देख कर असलम का दिमाग भन्ना गया था. वह उसे अपने ख्वाबों की शहजादी के बजाय किसी भुतहा फिल्म की हीरोइन लग रही थी. असलम ने अपने दांत पीस लिए और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

बड़ी भाभी बरामदे में टहलते हुए अपने रोते हुए मुन्ने को चुप कराने की कोशिश कर रही थीं. असलम उन के पास चला गया.

‘‘मेरे साथ आइए भाभी,’’ असलम भाभी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हुआ क्या है?’’ भाभी उस के तेवर देख कर हैरान थीं.

‘‘पहले अंदर चलिए,’’ असलम उन का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने कमरे में ले गया.

‘‘यह दुलहन पसंद की है आप ने मेरे लिए,’’ असलम ने दुलहन का घूंघट झटके से उठा कर भाभी से पूछा.

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सूरत को अहमियत दोगे, मैं ने तो सीरत परखी थी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘आप से किस ने कह दिया कि सूरत वालों के पास सीरत नहीं होती?’’ असलम ने जलभुन कर भाभी से पूछा.

‘‘अब जैसी भी है, इसी के साथ गुजारा कर लो. इसी में सारे खानदान की भलाई है,’’ बड़ी भाभी नसीहत दे कर चलती बनीं

‘‘उठो यहां से और दफा हो जाओ,’’ असलम ने गुस्से में मुमताज से कहा.

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ मुमताज ने सहम कर पूछा. उस की आंखें भर आई थीं.

‘‘भाड़ में,’’ असलम ने झल्ला कर कहा.

मुमताज चुपचाप बैड से उतर कर सोफे पर जा कर बैठ गई. असलम ने बैड पर लेट कर चादर ओढ़ ली और सो गया. सुबह असलम की आंख देर से खुली. उस ने घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 9 बज रहे थे. मुमताज सोफे पर गठरी बनी सो रही थी.

असलम बाथरूम में घुस गया और फ्रैश हो कर कमरे से बाहर आ गया.

‘‘सुबहसुबह छैला बन कर कहां चल दिए देवरजी?’’ कमरे से बाहर निकलते ही छोटी भाभी ने टोक दिया.

‘‘दफ्तर जा रहा हूं,’’ असलम ने होंठ सिकोड़ कर कहा.

‘‘मगर, तुम ने तो 15 दिन की छुट्टी ली थी.’’

‘‘अब मुझे छुट्टी की जरूरत महसूस नहीं हो रही.’’

दफ्तर में भी सभी असलम को देख कर हैरान थे. मगर उस के गुस्सैल मिजाज को देखते हुए किसी ने उस से कुछ नहीं पूछा. शाम को असलम थकाहारा दफ्तर से घर आया तो मुमताज सजीधजी हाथ में पानी का गिलास पकड़े उस के सामने खड़ी थी.

‘‘मुझे प्यास नहीं है और तुम मेरे सामने मत आया करो,’’ असलम ने बेहद नफरत से कहा.

‘‘जी,’’ कह कर मुमताज चुपचाप सामने से हट गई.

‘‘और सुनो, तुम ने जो चेहरे पर रंगरोगन किया है, इसे फौरन धो दो. मैं पहले ही तुम से बहुत डरा हुआ हूं. मुझे और डराने की जरूरत नहीं है. हो सके तो अपना नाम भी बदल डालो. यह तुम पर सूट नहीं करता,’’ असलम ने मुमताज की बदसूरती पर ताना कसा.

मुमताज चुपचाप आंसू पीते हुए कमरे से बाहर निकल गई. इस के बाद मुमताज ने खुद को पूरी तरह से घर के कामों में मसरूफ कर लिया. वह यही कोशिश करती कि असलम और उस का सामना कम से कम हो.

दोनों भाभियों के मजे हो गए थे. उन्हें मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी. एक दिन मुमताज किचन में बैठी सब्जी काट रही थी तभी असलम ने किचन में दाखिल हो कर कहा, ‘‘ऐ सुनो.’’

‘‘जी,’’ मुमताज उसे किचन में देख कर हैरान थी.

‘‘मैं दूसरी शादी कर रहा हूं. यह तलाकनामा है, इस पर साइन कर दो,’’ असलम ने हाथ में पकड़ा हुआ कागज उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘क्या…?’’ मुमताज ने हैरत से देखा और सब्जी काटने वाली छुरी से अपना हाथ काट लिया. उस के हाथ से खून बहने लगा.

‘‘जाहिल…,’’ असलम ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शक्ल तो है ही नहीं, अक्ल भी नहीं है तुम में,’’ और उस ने मुमताज का हाथ पकड़ कर नल के नीचे कर दिया.

मुमताज आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी. असलम ने एक पल को उस की तरफ देखा. आंखों में उतर आए आंसुओं को रोकने के लिए जल्दीजल्दी पलकें झपकाती हुई वह बड़ी मासूम नजर आ रही थी.

असलम उसे गौर से देखने लगा. पहली बार वह उसे अच्छी लगी थी. वह उस का हाथ छोड़ कर अपने कमरे में चला गया. बैड पर लेट कर वह देर तक उसी के बारे में सोचता रहा, ‘आखिर इस लड़की का कुसूर क्या है? सिर्फ इतना कि यह खूबसूरत नहीं है. लेकिन इस का दिल तो खूबसूरत है.’

पहली बार असलम को अपनी गलती का एहसास हुआ था. उस ने तलाकनामा फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया.

असलम वापस किचन में चला आया. मुमताज किचन की सफाई कर रही थी.

‘‘छोड़ो यह सब और आओ मेरे साथ,’’ असलम पहली बार मुमताज से बेहद प्यार से बोला.

‘‘जी, बस जरा सा काम है,’’ मुमताज उस के बदले मिजाज को देख कर हैरान थी.

‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें नौकरों की तरह सारा दिन काम करने की,’’ असलम किचन में दाखिल होती छोटी भाभी को देख कर बोला.

असलम मुमताज की बांह पकड़ कर अपने कमरे में ले आया, ‘‘बैठो यहां,’’  उसे बैड पर बैठा कर असलम बोला और खुद उस के कदमों में बैठ गया.

‘‘मुमताज, मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मुझे तुम जो चाहे सजा दे सकती हो. मैं खूबसूरत चेहरे का तलबगार था. मगर अब मैं ने जान लिया है कि जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए खूबसूरत चेहरे की नहीं, बल्कि खूबसूरत दिल की जरूरत होती है. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘आप मेरे शौहर हैं. माफी मांग कर आप मुझे शर्मिंदा न करें. सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते,’’ मुमताज बोली.

‘‘थैंक्स मुमताज, तुम बहुत अच्छी हो,’’ असलम प्यार से बोला.

‘‘अच्छे तो आप हैं, जो मुझ जैसी बदसूरत लड़की को भी अपना रहे हैं,’’ कह कर मुमताज ने हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया और रोने लगी.

‘‘पगली, आज रोने का नहीं हंसने का दिन है. आंसुओं को अब हमेशा के लिए गुडबाय कह दो. अब मैं तुम्हें हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता हूं.

‘‘और खबरदार, जो अब कभी खुद को बदसूरत कहा. मेरी नजरों में तुम दुनिया की सब से हसीन लड़की हो,’’ ऐसा कह कर असलम ने मुमताज को अपने सीने से लगा लिया.

मुमताज सोचने लगी, ‘अंधेरी रात कितनी भी लंबी क्यों न हो, मगर उस के बाद सुबह जरूर होती है.’

कोने वाली टेबल: क्या सुमित को मिली उसकी चाहत

ठाणे में सब से बड़ा मौल है, विवियाना मौल. काफी बड़ा और सुंदर. एक से एक ब्रैंडेड शोरूम हैं. जब से यह मौल बना है, ठाणे में रहने वालों को हाई क्लास शौपिंग के लिए बांद्रा नहीं भागना पड़ता. वीकैंड में टाइम पास करने वालों की यह प्रिय जगह है. थर्डफ्लोर पर बढ़िया फ़ूड कोर्ट है. वैसे, हर फ्लोर पर बहुत ही क्लासी रैस्त्रां हैं, उन में से एक है, येलो चिल्ली. यह मशहूर सैलिब्रिटी शेफ संजीव कपूर की फ़ूडचेन का पार्ट है.

येलो चिल्ली की कोने वाली टेबल पर 30 वर्षीया लकी बहुत देर से बैठी फ्रैश लाइम वाटर पी रही है. उसे इंतज़ार है सुमित का. बस फोटो ही देखी है उस ने सुमित की. अपने घर वालों के कहने पर दोनों आज पहली बार अकेले मिल रहे हैं. सुमित अंदर आया, लकी ध्यान से सुमित को देख रही थी.

सुमित ने इधरउधर देखा, सीधा लकी के पास आ कर ‘हैलो’ बोला और अपना बैग दूसरी खाली पड़ी चेयर पर रखता हुआ बैठ गया. पूछ लिया, “आप इतने ध्यान से क्या देखने की कोशिश कर रही हैं?”

“देख रही हूं, टौल, डार्क एंड हैंडसम वाले कौन्सैप्ट पर कितना फिट बैठते हो.”

सुमित हंस पड़ा, तो क्या देखासुना-

“सब बकवास है, पता नहीं किस ने यह लाइन बना दी. लड़कियां फ़ालतू में टौल, डार्क एंड हैंडसम लड़कों की कल्पना करकर के अपना टाइम खराब करती हैं. अरे, क्या फर्क पड़ जाएगा अगर लड़का गोरा हो गया तो, या न हो लंबा? क्या करना है, सब अमिताभ बच्चन हो सकते हैं क्या? और हैंडसम होने की परिभाषा तो सब की अपनीअपनी अलग होती है न…

सुमित बहुत ही ध्यान से लकी को देखने लगा, लड़की है या तोप का गोला, किस बात पर इतनी भरी बैठी है. अभी तो आ कर बैठा ही हूं और यह तो शुरू हो गई. लकी अब मैन्यू कार्ड देखने लगी थी.

सुमित को लगा यही मौका है इसे ध्यान से देख लूं. वाइट जंप सूट में पोनीटेल बनाए, सुंदर सा चेहरा, अच्छा लग रहा था.

लकी ने कहा, “पहले और्डर दे दें? मुझे भूख लगी है, भूख के आगे मुझे कुछ नहीं सूझता. मेरा पेट भरा होना चाहिए, तभी मुझ से ठीक से बात हो पाती है.’’

सुमित ने कहा, “हां, हां, और्डर करते हैं, बताओ, क्या खाओगी?”

आप अपनी पसंद बताएं, मुझे यहां के छोलेभठूरे अच्छे लगते हैं, जब भी आती हूं, वही खाती हूं.’’

“मैं भी वही खा लूंगा.”

“क्यों, अपनी कोई पसंद नहीं आप की?”

“मैं तो सबकुछ खा लेता हूं, जो सामने दोस्त खा रहे होते हैं, मैं उस में खुश हो जाता हूं.”

“मुझे आप ने दोस्त मान लिया, पहली बार तो मिले हैं?”

सुमित चुप रहा, वेटर आया तो लकी ने कहा, “एक प्लेट छोलेभठूरे, एक प्लेट दहीकबाब, एक प्लेट पनीरटिक्का.”

वेटर के जाने के बाद सुमित ने हैरानी से कहा, “क्याक्या मंगवा लिया?”

लकी ने मुसकरा कर कहा, “मुझे बहुत सारी चीजें और्डर करना अच्छा लगता है, फिर एकदूसरे के साथ शेयर कर के ज्यादा चीजें खाई जा सकती हैं. असल में, आई एम अ बिग फूडी. नहीं तो अभी एकएक प्लेट छोलेभठूरे ही खा पाते, अब और भी चीजें खा सकते हैं. यह ठीक रहता है न.”

“लकी जी, मैं ने कभी और्डर को ले कर इतना सोचा नहीं.”

“आप कितने साल के हैं? सही वाली उम्र बताना, सर्टिफिकेट वाली नहीं.”

“30’’

“मैं भी 30. तो फिर बात करते हुए ये आप, आप, जी, लगाना बंद करें क्या? बोरिंग हो रहा है.’’

“अच्छा रहेगा.’’

“सुनो, तुम सचमुच शादी करना चाहते हो?”

“अभी नहीं, पर घर वाले बहुत जोर डाल रहे हैं.’’

“मेरे साथ भी यही प्रौब्लम है. अभी तो जौब में सेट हुई हूं, सोचा था थोड़ा घूमूंगी, फिरूंगी. मुझे नईनई जगहें देखने का बहुत शौक है. पर एक तो घर वाले और ऊपर से रिश्तेदार, चैन नहीं लेने दे रहे. और मुझे लगता है मेरी किसी से बनेगी भी नहीं, गलत बात किसी की जरा भी सहन नहीं होती, झगड़ा हो जाता है. मुझे गुस्सा भी बहुत आता है. तुम बताओ, क्यों कर रहे हो शादी? तुम तो लड़के हो, तुम्हें तो इतने फायदे हैं, कुछ भी कह सकते हो?”

“बस, मम्मीपापा ने रट लगा रखी है कि तुम शादी करो तो छोटे भाई का नंबर आए.”

“पर तुम्हारे शादी न करने की क्या वजह है?”

“बस, अभी मूड नहीं है.’’

“कोई अफेयर चल रहा है या ब्रेकअप हुआ है?”

“ब्रेकअप हुआ है.’’

“तो उस का गम मनाना चाहते हो?”

“नहीं, अब क्या गम मनाना, 2 महीने हो गए इस बात को.’’

“ब्रेकअप क्यों हुआ?”

इतने में वेटर ने खाना ला कर रखा तो लकी ने कहा, “चलो, खाने पर टूट पड़ती हूं, तुम्हारी सैड स्टोरी बाद में सुनती हूं, टैस्टी चीजों का मजा खराब नहीं करना चाहती.’’

सुमित मुसकरा दिया तो लकी ने कहा, “तुम कम बोलते हो क्या या ब्रेकअप के बाद लड़की से बात करने का कौन्फिडैंस ख़त्म हो गया?”

“हां, हो सकता है, जरा मूड कम ही होता है हंसनेबोलने का.”

“क्या बढ़िया छोले बने हैं, वाह, मजा आ गया. मेरी मम्मी भी छोले बनाती तो हैं अच्छे, पर यहां जैसे थोड़े ही बनते हैं घर पर, है न?”

“हां, अच्छा लग रहा है खाना.”

“तुम्हें पता है जब भी मैं विवियाना आती हूं, चाहे टाइम जो भी हो रहा हो, ये दहीकबाब जरूर खाती हूं. तुम नौनवेज खाते हो?”

“हां, तुम?”

“बाहर दोस्तों के साथ खाती हूं, घर वालों को नहीं पता है. तुम सिगरेट पीते हो?”

“हां, कभीकभी. तुम भी पीती हो क्या?”

“एकदो बार पी, मजा नहीं आया, फिर नहीं पी. शराब?”

“घर वालों को नहीं पता, कभीकभी किसी पार्टी में पीता हूं और फिर किसी दोस्त के घर पर ही रुक जाता हूं.”

“सुनो, एक काम करोगे, अपने घर वालों से कह देना कि मैं मिलने आई ही नहीं थी, मुझे नहीं करनी शादी अभी. अपने घर वालों से मैं निबट लूंगी. उन्हें पता चलना चाहिए कि जबरदस्ती करेंगे तो मैं किसी लड़के से मिलने जाऊंगी ही नहीं. मैं ने पहले 2 लड़कों को तो दूर से देखते ही रास्ता बदल लिया था, मिलने ही नहीं गई थी. मेरे घर वाले भी थकते नहीं मेरी बदतमीजी से.’’

“तो, आज मुझ से क्यों मिलीं?”

“बोर हो रही थी, यहां लंच का मूड हो गया.’’

“कोई बौयफ्रैंड है?”

“अभी तो नहीं है.’’

“कब था?”

“एक साल पहले.’’

“ब्रेकअप क्यों हुआ?”

“अपनी ज्यादा चलाता था, हर बात में रोकटोक करने लगा था, फिर मेरे गुस्से को झेल नहीं पाया. तुम्हें बताया न, कि मुझे बहुत गुस्सा आता है.’’

खाना हो चुका था. लकी ने वेटर को बिल लाने का इशारा किया. सुमित अपना वौलेट निकालने लगा तो लकी ने कहा, “मैं पे करूंगी.’’

“प्लीज, मुझे करने दो.’’

“क्यों?”

“मुझे अच्छा नहीं लगेगा, मुझे करने दो.’’

“नहीं, मेरा मन है.’’

“ओके, अगली बार करने दोगी?”

“हम मिल रहे हैं दोबारा?”

“तुम बताओ?’’

“मुश्किल है.’’

“अच्छा, ठीक है, जैसे तुम्हारी मरजी.’’

खाना खा कर दोनों बाहर निकले, तो लकी ने कहा, “जल्दी है जाने की?”

“नहीं, कुछ काम है?”

“बस, एक ब्लैक पैंट लेनी है ज़ारा से. ले लूं, फिर साथ ही निकलते हैं,” ग्राउंडफ्लोर तक आतेआते लकी ने पूछा, “अरे, तुम ने बताया नहीं, तुम्हारा ब्रेकअप क्यों हुआ था?”

“वह बहुत शक्की थी. किसी से भी बात करता, कहीं भी मैं जाता, बहुत सारे सवालों के साथ शक करती. फिर चैक करती कि कहीं मैं ने झूठ तो नहीं बोला. पूछताछ करती सब से. मुझे लगा, जब रिश्ते में विश्वास ही नहीं तो सब बेकार है.”

“औफिस कहां है तुम्हारा?”

“अंधेरी में.’’

“और तुम्हारा?”

“अंधेरी.’’

“अरे, वाह, कैसे जाती हो?”

“एसी बस से. तुम कैसे जाते हो?”

“कार से.”

“बढ़िया.’’

‘ज़ारा’ शोरूम में अपना बैग सुमित को पकड़ा लकी ने जल्दी से पैंट ट्राई कर के ले ली, तो सुमित ने हंसते हुए कहा-

“इतनी जल्दी ले ली? लड़कियां तो शौपिंग में बहुत टाइम लगाने के लिए मशहूर हैं?’’

“मुझे शौपिंग में टाइम खराब करना पसंद नहीं. काम की चीजें लेती हूं और निकलती हूं, ट्रायल रूम की भीड़ से तबीयत घबरा जाती है मेरी. चलो, निकलते हैं, अब. अच्छा लगा मिल कर.”

“हां, अच्छा तो लगा मुझे भी, कैसे आई हो?”

“औटो से. वैसे, मैं ने कार ले ली है, एकदो दिन में डिलीवरी होने वाली है. मैं बहुत एक्ससाइटेड हूं अपनी कार के लिए.”

“यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है. अपनी कार की एक पार्टी तो बनती है,” सुमित सचमुच बहुत खुश हुआ था सुन कर.

“पार्टी चाहिए तुम्हें कार की?’’

“तुम्हारा मन हो तो मैं दूं तुम्हें तुम्हारी कार की पार्टी? जब कार आ जाए तो तुम्हारी कार से मरीन ड्राइव चलेंगे. वहीं पिज़्ज़ा एक्सप्रैस में पिज़्ज़ा खिलाऊंगा तुम्हें? बोलो, चलोगी?”

“प्रोग्राम तो अच्छा सोच रहे हो तुम? कहीं तुम्हें मैं पसंद तो नहीं आ गई? देखो, मेरा शादी का कोई मूड नहीं है अभी.”

“अरे बाबा, मुझे भी नहीं करनी है शादी, इसलिए तुम्हारे साथ थोड़ा ठीक लग रहा है.’’

“ठीक है, लाओ फोन नंबर दो अपना, कार आने पर तुम्हें फोन करूंगी, चलेंगे घूमने. और याद रखना, अपने घर वालों को कहना कि मैं मिली ही नहीं.”

“ठीक है.’’

अपने घर से थोड़ा दूर ही सुमित की कार से उतरते हुए लकी ने कहा, “अरे, यह तो बताओ, तुम्हारा अपनी गर्लफ्रैंडफ्रेंड के साथ सैक्स भी चलता था?”

“हां, और तुम्हारा?”

“हां, चलो, बाय, मिलते हैं फिर, कार आने पर.’’

घर जा कर दोनों ने झूठ बोल दिया कि वे आपस में मिले ही नहीं, लकी डांट खाती रही, सुमित के घरवाले दूसरी लड़कियों के बारे में अपनी राय देने लगे. लकी और सुमित ने फोन नंबर होने पर भी एकदूसरे से कोई बात न की, न कोई मैसेज भेजा. जिस दिन लकी की कार आई, लकी ने सुमित को फोन किया, “मरीन ड्राइव चलना है?”

“हां, संडे को शाम 5 बजे निकलेंगे. अपना ऐड्रेस भेज रहा हूं, मुझे लेने आ जाना.’’

संडे तक का टाइम दोनों ने वैसा ही बिताया जैसा दोनों का रूटीन था. संडे शाम को सुमित वर्तक नगर की नीलकंठ सोसाइटी में अपनी बिल्डिंग के बाहर ही मिल गया, सीट बेल्ट बांधते हुए सुमित ने कहा, “कलर सुंदर है कार का, ब्लू कलर मुझे भी पसंद है. कैसा लग रहा है अपनी कार चलाना?”

“बढ़िया. मैं कार चला रही हूं, तुम्हारी मेल ईगो तो नहीं हर्ट हो रही है?”

“नहीं, आराम मिल रहा है, थक जाता हूं रोज ड्राइविंग से, आज मजे से बैठ कर जाऊंगा.’’

शाम बहुत सुंदर लगी आज दोनों को. जाने कितनी बातें होती रहीं. दोनों हैरान से एक किनारे साथ घूमते हुए बीचबीच में समुद्र की लहरें देखने के लिए खड़े हो जाते, हलकेहलके सुरमई से अंधेरे में समुद्र किनारे बनी चट्टानों के पास की दीवारों पर बैठे युवा जोड़े चहक रहे थे. कुछ एकदूसरे की कमर में हाथ डाले एकदूसरे में यों खोए थे कि जैसे किसी बात का उन पर असर नहीं. चाहे उन्हें कोई भी देख रहा हो, चाहे कोई कुछ भी सोच रहा हो. मुंबई में इन जगहों में ये सीन बहुत ही आम हैं. बाहर से आए लोग जल्दी इन सीन को हजम नहीं कर पाते. ऐसे प्रेमियों को बेशर्मों का तमगा तुरंत थमा दिया जाता है.

पिज़्ज़ा एक्सप्रैस में पिज़्ज़ा खाते हुए लकी ने कहा, “सुनो, तुम मुझे वैसे तो ठीक ही लग रहे हो, क्या कहते हो, एकदो बार और टाइम साथ बिताते हैं. दिल हां कर रहा हो, तो शादी कर ही लें क्या?”

सुमित हंसा, बोला, “इतनी जल्दी मूड चेंज हो गया?”

“हां, सोच रही हूं, कर ही लूं. साथ की लड़कियों की भी शादी हो गई है. अकेले ऐसी जगह घूमना छूटता जा रहा है. आज कई दिनों बाद ऐसे शाम बिताई, अच्छा लगा. कोई बौयफ्रैंड फिर बनाऊं, न पटे तो फिर ब्रेकअप हो. फिर मूड खराब हो, इस से अच्छा है कि तुम से शादी कर लूं, साथ घूमने वाला साथी भी मिल जाएगा. बोलो, क्या कहते हो?”

“मैं भी सोच रहा हूं कि तुम से ही कर लूं शादी. तुम कार चलाया करोगी तो मुझे भी आराम हो जाएगा. तुम शौपिंग में बोर भी नहीं करोगी. सो, तुम भी मुझे लग तो ठीक ही रही हो. ठीक है, थोड़ा और मिलते हैं, फिर कर ही लेते हैं शादी.”

दोनों जोर से हंस दिए. फिर वही हुआ जो दोनों ने बिलकुल भी नहीं सोचा था. अगले महीने ही दोनों की शादी हो गई, धूमधाम से. और दोनों अकसर विवियाना मौल में येलो चिल्ली की उसी कोने वाली टेबल पर डिनर करने जरूर जाते हैं. दोनों को ही उस कोने वाली टेबल से कुछ इश्क सा हो गया है!

नया जमाना: क्या बदल गई थी सुरभि

डरबन की चमचमाती सड़कों पर सरपट दौड़ती इम्पाला तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी. कुलवंत गाड़ी ड्राइविंग करते हिंदी फिल्म का एक गीत गुनगुनाने में मस्त थे. सुरभि उन के पास वाली सीट पर चुपचाप बैठी कनखियों से उन्हें निहारे जा रही थी. इम्पाला जब शहर के भीड़भाड़ वाले बाजार से गुजरने लगी तो सुरभि ने एक चुभती नजर कुलवंत पर डाली और बोली, ‘‘अंकल, कहीं मैडिकल की शौप नजर आए तो गाड़ी साइड में कर के रोक देना, मुझे दवा लेनी है.’’

कुलवंत के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आए. सुरभि की तरफ देख कर बोले, ‘‘क्यों, क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, तबीयत तो ठीक है.’’

‘‘फिर दवा किस के लिए लेनी है?’’

‘‘आप के लिए.’’

‘‘मेरे लिए, क्यों? मुझे क्या हुआ है? एकदम भलाचंगा तो हूं.’’

‘‘आप बड़े नादान हैं. नहीं समझेंगे. अब आप अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाना बंद कीजिए. मैडिकल शौप नजर आए तो वहां गाड़ी रोक देना. मैं 1 मिनट में वापस आ जाऊंगी.’’

कुलवंत को बात समझ में नहीं आई तो चुप्पी साध ली. उन की नजरें स्क्रीन विंडो से हो कर बाजार के दोनों तरफ दौड़ने लगीं. कुछ देर बाद एक मैडिकल शौप नजर आई, तो गाड़ी को साइड में ले कर शौप के आगे रोक दी.

‘‘लो, दवाइयों की दुकान आ गई. जल्दी से दवा ले कर आओ.’’

सुरभि ने फुरती से दरवाजा खोला और मैडिकल शौप पर पहुंच गई. कुलवंत गाड़ी में बैठेबैठे ही सुरभि को देखते रहे. उस ने क्या दवा ली, वे चाह कर भी नहीं जान पाए. सुरभि ने दवा को पर्स में डाला और पैसे दे कर फौरन वापस आ कर गाड़ी में बैठ गई. वह कुलवंत की तरफ देख कर बोली, ‘‘हो गया काम, घर चलिए.’’

कुलवंत को कुछ भी समझ में न आया. उन्होंने गाड़ी को गियर में डाला और ऐक्सिलरेटर पर दबाव बढ़ा दिया. गाड़ी अगले ही पल हवा से बातें करने लगी. ड्राइविंग करतेकरते उन्होंने सुरभि पर एक नजर डाली. न जाने क्यों आज उन्हें सुरभि में एक बदलाव सा नजर आ रहा था.

1 महीने पहले जब वे डरबन आए थे, तब की सुरभि और आज की सुरभि में जमीनआसमान का फर्क था. पिछले 2 दिनों में तो उस का हावभाव एकदम बदल सा गया था. यह सब सोचतेसोचते वे विचारों में खो गए.

कल सुबह वे धड़धड़ाते हुए स्नानघर में घुसे तो उन के पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई थी. वहां पर सुरभि पहले से ही स्नान कर रही थी. उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. कुलवंत फौरन बाहर आ गए. सुरभि की पीठ दरवाजे की तरफ थी. शायद उस ने कुलवंत को नहीं देखा था. कुलवंत की सांसें धोंकनी की तरह चलने लगीं. वे सोफे पर गिर पड़े. सोचने लगे कि अच्छा हुआ जो सुरभि को कुछ भी मालूम नहीं चला. मगर इस में गलती तो सुरभि की ही थी. सुरभि को अंदर से दरवाजा बंद करना चाहिए था.

उस घटना को गुजरे 24 घंटे से ज्यादा का समय बीत चुका था, मगर कुलवंत की आंखों में स्नानघर वाला दृश्य बारबार घूम जाता था. यौवन की दहलीज पर खड़ी सुरभि के उस रूप ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था. उन्हें खुद से ज्यादा गुस्सा सुरभि पर आ रहा था. उस ने भीतर से दरवाजा बंद क्यों नहीं किया? यह लापरवाही थी या जानबूझ कर की गई कारस्तानी. नहीं, नहीं, यह लापरवाही नहीं हो सकती, यह सब सुरभि ने जानबूझ कर किया है. अच्छा होगा कि निशांत जल्दी से वापस आ जाए.

इन विचारों के साथ वे बचपन की यादों में खो गए. कुलवंत और निशांत बचपन के मित्र थे. दोनों के घर आसपास ही थे. साथ ही खेलतेकूदते बचपन गुजरा. एक ही स्कूल में शिक्षा पाई. यूनिवर्सिटी में साथ ही दाखिला लिया. बाद में निशांत ने सीए की परीक्षा उत्तीर्ण कर के चार्टर्ड अकाउंटैंट का कार्य शुरू कर दिया.

कुलवंत ने अपने पिता का खेतीबाड़ी का काम संभाल लिया. एक दिन अच्छा रिश्ता आया तो प्रभुदयालजी ने अपने बेटे निशांत का विवाह सृजना के साथ धूमधाम से कर दिया. कुलवंत ब्याह के कार्यों में 1 महीने तक जुटा रहा. निशांत के सभी सूट उस ने अपनी पसंद से सिलवाए. बरातियों की लिस्ट बनाने से ले कर प्रीतिभोज का मेन्यू तय करने तक में उस ने प्रभुदयालजी की मदद की. लोग भी कहने लगे कि निशांत और कुलवंत दोस्त नहीं, बल्कि भाई हैं.

कुछ समय बाद कुलवंत की भी शादी हो गई. उस की शादी में निशांत तो आया, मगर उस की पत्नी सृजना नहीं आई थी. कुलवंत को बुरा लगा. उस ने अपने दोस्त को खूब खरीखोटी सुनाईं. निशांत उस दिन कुछ भी नहीं बोला. कुलवंत की हर बात को उस ने सहजता से लिया. घरगृहस्थी में बंधने के बाद दोनों अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए. कभीकभार दोनों दोस्त मिलते तो एकदूसरे से शिकवाशिकायत करने में ही समय गंवा देते. कुलवंत को कई बार लगा कि निशांत की गृहस्थी में सबकुछ ठीक नहीं है. उन्हीं दिनों खबर लगी कि निशांत के लड़की हुई है. मिठाई और उपहार दे कर दोनों पतिपत्नी वापस आ गए.

कुछ दिनों बाद एक अन्य मित्र के द्वारा मालूम पड़ा कि निशांत और सृजना की आपस में नहीं बनती. दोनों में रोज ही झगड़े होते रहते हैं. पुत्र और बहू के झगड़ों से दुखी प्रभुदयालजी की एक दिन हार्ट अटैक से मौत हो गई. उन की मौत के बाद तो निशांत और सृजना का मामला बिगड़ता ही चला गया.

मित्र के घर के बुरे समाचारों के बाद कुलवंत भी चिंतित हो उठा. एक दिन वह अपनी निशा को ले कर निशांत के घर गया. वहां दोनों को खूब समझाया. यहां कुलवंत को पहली बार लगा कि सृजना बहुत ही आक्रामक स्वभाव की थी. निशांत ने तो उन की बात को धैर्य के साथ सुना, मगर सृजना ने उन्हें दोटूक शब्दों में कह दिया, ‘देखिए, कुलवंतजी, आप अपने घर को संभालें. हमारे घर के मामलों में आप को पंचायत करने की जरूरत नहीं है.’

उस दिन कुलवंत भारी मन से वापस घर आया तो रो पड़ा था. आज उस के मित्र का घर बिखराव पर है अैर वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था. कुछ समय बाद समाचार मिला कि निशांत और सृजना में तलाक हो गया. कोर्ट के आदेश से सुरभि निशांत को मिल गई थी. एक दिन निशांत ने कुलवंत और निशा को अपने घर बुलाया और बताया कि वह सुरभि को ले कर डरबन जा रहा है. वहां एक मल्टीनैशनल कंपनी में अकाउंटैंट की नौकरी मिल गई है. उस ने कुलवंत को अपने घर की चाबी देते हुए कहा कि मकान किराए पर उठा देना या जैसा तुम्हें उचित लगे, करना. समयसमय पर सफाई जरूर करवा देना. उस समय सुरभि मात्र 8 वर्ष की थी.

वक्त की रफ्तार धीरेधीरे आगे बढ़ती रही. कुलवंत की जिंदगी में सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन एक दिन निशा ने स्तन में दर्द होने की बात बताई. डाक्टर को दिखाया तो उस ने जांच के बाद बताया कि उस को कैंसर है. बीमारी लास्ट स्टेज पर थी. कैंसर ने ऐसी जड़ें जमाईं कि निशा कभी ठीक ही नहीं हो पाई. कुलवंत को घर का चिराग दिए बिना ही निशा चल बसी. मातापिता का तो पहले ही देहांत हो गया था. वह दुनिया में अकेला हो गया. कभीकभी उस का मिलना सृजना भाभी से हो जाता था. वह अपने किए पर बहुत रोती थी. देखतेदेखते 12 वर्ष बीत गए. एक दिन निशांत ने वीजा व हवाई जहाज का टिकट भेज कर कुलवंत को डरबन बुला लिया.

मित्र के बुलावे पर वह 1 महीने पहले डरबन आया था. जब उस ने डरबन की धरती पर पांव रखा तो निशांत खुद गाड़ी ले कर एअरपोर्ट आया था. वर्षों बाद एकदूसरे को देख कर दोनों के आंसू निकल आए थे. घर पहुंचे तो सुरभि को देख कर कुलवंत का मुंह खुला का खुला रह गया. 12 वर्ष पूर्व जिस सुरभि को उस ने भारत से विदा किया था, उस में व इस सुरभि में जमीनआसमान का फर्क था. आज तो वह बिलकुल अपनी मां जैसी लग रही थी. उस के  नैननक्श बिलकुल सृजना के जैसे थे.

निशांत और सुरभि के साथ रहने से कुलवंत में जीने की तमन्ना जाग उठी थी. उन दोनों के साथ रहते 1 महीना कब बीता, पता ही नहीं चला.

2 दिन पहले निशांत को किसी जरूरी कार्य से दुबई जाना पड़ा. उस ने रवाना होते समय कुलवंत से कहा था, ‘मैं 1 हफ्ते के बाद ही आ पाऊंगा. तुम्हारी देखभाल

के लिए सुरभि को कह दिया है. कोई विशेष कार्य हो तो मोबाइल पर बता देना.’

अचानक विचारतंद्रा टूटी तो कुलवंत ने देखा कि बंगला आ गया है. उन्होंने गाड़ी पार्किंग में खड़ी की. दोनों दरवाजे के पास पहुंचे तो यह देख कर दंग रह गए कि दरवाजा खुला हुआ है. दोनों ने एकदूसरे की तरफ प्रश्नवाचक नजरों से देखा. सुरभि ने आश्चर्य से कहा, ‘‘मैं ने जाते वक्त ताला लगाया था. पीछे से यह दरवाजा किस ने खोला?’’

दोनों तेजी से दौड़ते हुए भीतर गए तो वहां के हालात देख कर भौचक्के रह गए. पूरे बंगले का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. सुरभि ने कुलवंत की तरफ देख कर कहा, ‘‘लगता है चोरों ने यहां अपना हाथ दिखा दिया है. मैं पुलिस को फोन करती हूं.’’

सूचना मिलते ही पुलिस की टीम वहां जा पहुंची. अधिकारी पूछताछ के बाद छानबीन में लग गए. लूट की रिपोर्ट लिखने के बाद पुलिस वापस लौट गई. सुरभि ने कुलवंत की तरफ देख कर कहा, ‘‘यार अंकल, यों मुंह लटकाए क्यों बैठे हो? यहां तो यह आम बात है. यह तो अच्छा हुआ हम दोनों घर पर नहीं थे, वरना लुटेरे हमें जान से मार भी सकते थे. मैं पापा को फोन कर के बता देती हूं. आप चाय तो बना कर पिला दीजिए.’’

कुलवंत सुरभि की बेतकल्लुफी पर हैरान था. वह चुपचाप उठा और रसोईघर की तरफ चल दिया. सुरभि ने मोबाइल फोन से घर में हुई लूट की बात अपने पापा को बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि चिंता की बात नहीं है. कुलवंत अंकल और वह कुशलमंगल से हैं. कुलवंत ने तब तक चाय बना ली.

रात को दोनों ने मिल कर खाना बना लिया. खाना खाते समय दोनों चुपचुप रहे. खापी कर दोनों फ्री हुए तो कुलवंत अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गए. उन्हें नींद नहीं आ रही थी. टीवी चालू कर के वे चैनल बदलने लगे. एक चैनल पर कोई संत कथा का वाचन कर रहे थे. उन्होंने मन में विचार किया कि चलो, आज कथा का ही आनंद ले लिया जाए.

इतने में सुरभि दूध का गिलास ले आई. कुलवंत को धार्मिक चैनल पर कथा सुनते देख आश्चर्यचकित हो उठी. उस ने दूध का गिलास टेबल पर रखते हुए कनखियों से कुलवंत की तरफ देखा और बोली, ‘‘वाह, आप को भी कथाओं का शौक है?’’

सुरभि की बात पर कुलवंत की  हंसी छूट गई. वे सुरभि की  तरफ देखे बगैर ही बोल पड़े, ‘‘सब अपनी रोजीरोटी के लिए दौड़ रहे हैं. अपने भारत में तो आजकल कथाकारों की बाढ़ आई हुई है. इन कथाओं में धन बरस रहा है. धर्म के नाम पर न तो लूटने वालों की कमी है और न ही लुटाने वालों की. मैं भी कभीकभी सोचता हूं कि सबकुछ छोड़ कर कथावाचक बन जाऊं. धन और शोहरत के साथ सुंदरसुंदर चेहरे वाली हसीनाओं के दर्शन का लाभ भी मिलता रहेगा.’’

‘‘अरे, रहने भी दो. हसीनाओं को देखना आप को आता ही कहां है? हां, साधु बन कर माला फेरनी हो तो बात दूसरी है.’’

कुलवंत सुरभि की बात सुन कर सन्न रह गए. वे समझ गए कि सुरभि का मूड आज बड़ा रोमांटिक है. उस की द्विअर्थी बातों में कुछ छिपा है. उन्होंने सुरभि की तरफ देख कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम जाओ यहां से, रात काफी हो गई है, मैं सोना चाहता हूं. तुम भी अब अपने कमरे में जा कर सो जाओ.’’ सुरभि अपने कमरे में चली गई. उस के चेहरे पर मदमस्त कर देने वाली मुसकान थी. कुलवंत ने दूध के गिलास की तरफ देखा. आज दूध पीने की इच्छा नहीं हो रही थी. मन में विचार किया कि निशांत जल्दी से वापस आ जाए. वे टीवी का स्विच बंद कर के सो गए. कुछ देर बाद नींद ने डेरा डालना शुरू कर दिया. अभी पूरी आंख लगी भी नहीं थी कि अचानक चौंक कर उठ बैठे. आंखें खुलीं तो देखा पलंग के पास कोई खड़ा है.

‘‘कौन है?’’ घबराहट में मुंह से निकल गया.

‘‘मैं हूं.’’

‘‘मैं कौन?’’

‘‘सुरभि.’’

‘‘इस समय यहां क्या करने आई हो?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. अपने कमरे में डर लग रहा है, मैं अकेली वहां नहीं सो सकती.’’

‘‘पागल मत बनो. जाओ, अपने कमरे में. अपनेआप नींद आ जाएगी.’’

‘‘नहीं, डर लगता है. मैं तो यहीं पर सोऊंगी.’’

‘‘समझा करो. तुम अब छोटी बच्ची नहीं रहीं.’’

‘‘इसीलिए तो यहां सोने आई हूं.’’

इतना कहते ही सुरभि कुलवंत के पास लेट गई. कुलवंत की सांसें एकाएक फूलने लगीं. वे पलंग पर एक कोने पर सरक गए. घबराहट के मारे बुरा हाल हो रहा था. उन्होंने सुरभि की तरफ देख कर कहा, ‘‘प्लीज, यह गलत है. हमारी संस्कृति इस की इजाजत नहीं देती. कम से कम हम दोनों की उम्र का फर्क तो देखो. मैं तुम्हारे पापा की उम्र का हूं.’’

सुरभि ने भी करवट बदली और कुलवंत से एकदम सट कर बोली, ‘‘मुझे बेकार की बातें मत समझाइए. आप को समझ में नहीं आता तो मैं बता देती हूं. अब जमाना बदल गया है. जो भूख लगने पर भोजन नहीं करता वह पागल है.’’

‘‘प्लीज, कहना मानो. कल तुम्हारे पापा को मालूम होगा तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगा.’’

‘‘डरिए मत, किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा. हो जाने दीजिए, जो कुछ होता है. जहां प्यार पनपता है वहां उम्र का हिसाब गौण हो जाता है. आजकल जमाना बदल गया है. प्यासी तृप्त होगी तो उस का परिणाम मिलेगा. यह व्यभिचार नहीं, उपकार होगा.’’

अचानक उस ने अपनी बंद मुट्ठी कुलवंत की तरफ बढ़ा दी.

‘‘क्या है?’’

‘‘तुम्हारी दवा. आज सुबह मैडिकल शौप से खरीदी थी.’’

इतना कहते हुए उस ने अपनी बंद मुट्ठी खोली. उस में एक ‘पैकेट’ था. यह देख कुलवंत की आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गईं. वह समझ गया कि वास्तव में जमाना बदल गया है. नए जमाने के सामने उस ने घुटने टेक दिए. अगले ही पल उस ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.

घोंसला: सारा ने क्यों किया था शादी से इंकार

साराआज खुशी से झम रही थी. खुश हो भी क्यों न पुणे की एक बहुत बड़ी फर्म में उस की नौकरी जो लग गई थी. अपनी गोलगोल आंखें घुमाते हुए वह अपनी मम्मी से बोली, ‘‘मैं कहती थी न कि मेरी उड़ान कोई नहीं रोक सकता.’’

‘‘पापा ने पढ़ने के लिए मुझे मुजफ्फरनगर से बाहर नहीं जाने दिया पर अब इतनी अच्छी नौकरी मिली है कि वह मुझे रोक नहीं सकते हैं.’’

सारा थी 23 वर्ष की खूबसूरत नवयुवती, जिंदगी से भरपूर, गोरा रंग, गोलगोल आंखें, छोटी सी नाक और गुलाबी होंठ, होंठों के बीच काला तिल सारा को और अधिक आकर्षक बना देता था. उसे खुले आकाश में उड़ने का शौक था. वह अकेले रहना चाहती थी और जीवन को अपने तरीके से जीना चाहती थी.

जब भी सारा के पापा कहते, ‘‘हमें तुम से जिंदगी का अधिक अनुभव है इसलिए हमारा कहा मानो.’’

सारा फट से कहती, ‘‘पापा मैं अपने अनुभवों से कुछ सीखना चाहती हूं.’’

सारा के पापा उसे पुणे भेजना नहीं चाहते थे पर सारा की दलीलों के आगे उन की एक न चली.

फिर सारा की मम्मी ने भी समझया, ‘‘इतनी अच्छी नौकरी है, आजकल अच्छी नौकरी वाली लड़कियों की शादी आराम से हो जाती है.

फिर सारा के पापा ने हथियार डाल दिए थे. ढेर सारी नसीहतें दे कर सारा के पापा वापस मुजफ्फरनगर आ गए थे.

सारा को शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हुई थी परंतु धीरधीरे वह पुणे की लाइफ की अभ्यस्त हो गई थी.

यहां पर मुजफ्फरनगर की तरह न टोकाटाकी थी न ही ताकाझंकी. सारा को आधुनिक कपड़े पहनने का बहुत शौक था जिसे सारा अब पूरा कर पाई थी. वह स्वच्छंद तितली की तरह जिंदगी बिता रही थी. दफ्तर में ही सारा की मुलाकात मोहित से हुई थी. मोहित का ट्रांसफर दिल्ली से पुणे हुआ था.

मोहित को सारा पहली नजर में ही भा गई थी. सारा और मोहित अकसर वीकैंड पर बाहर घूमने जाते थे. परंतु सारा को हरहाल में रात 9 बजे तक अपने होस्टल वापस जाना ही पड़ता था.

फिर एक दिन मोहित ने यों ही सारा से कहा, ‘‘सारा, तुम मेरे फ्लैट में शिफ्ट क्यों नहीं हो जाती हो. चिकचिक से छुटकारा भी मिल जाएगा और हमें यों ही हर वीकैंड पर बंजारों की तरह घूमना नहीं पड़ेगा. सब से बड़ी बात तुम्हारा होस्टल का खर्च भी बच जाएगा.’’

सारा छूटते ही बोली, ‘‘पागल हो क्या, ऐसे कैसे रह सकती हूं तुम्हारे साथ? मतलब मेरातुम्हारा रिश्ता ही क्या है?’’

मोहित बोला, ‘‘रहने दो बाबा, मैं तो भूल ही गया था कि तुम तो गांव की गंवार हो. छोटे शहर के लोगों की मानसिकता कहां बदल सकती हैं चाहे वह कितने ही आधुनिक कपड़े पहन लें.’’

सारा मोहित की बात सुन कर एकदम चुप हो गईं. अगले कुछ दिनों तक मोहित सारा से खिंचाखिंचा रहा.

एक दिन सारा ने मोहित से पूछा, ‘‘मोहित, आखिर मेरी गलती क्या हैं?’’

मोहित बोला, ‘‘तुम्हारा मुझ पर अविश्वास.’’

‘‘बात अविश्वास की नहीं है मोहित, मेरे परिवार को अगर पता चल जाएगा तो वे मेरी नौकरी भी छुड़वा देंगे.’’

‘‘तुम्हें अगर रहना है तो बताओ बाकी सब मैं हैंडल कर लूंगा.’’

घर पर पापा के मिलिटरी राज के कारण सारा का आज तक कोई बौयफ्रैंड नहीं बन पाया था, इसलिए वह यह सुनहरा मौका हाथ से नहीं छोड़ना चाहती थी. अत: 1 एक हफ्ते बाद मोहित के साथ शिफ्ट कर गई. घर पर सारा ने बोल दिया कि उस ने एक लड़की के साथ अलग से फ्लैट ले लिया है क्योंकि उसे होस्टल में बहुत असुविधा होती थी.

यह बात सुनते ही सारा के मम्मीपापा ने जाने के लिए सामान बांध लिया था. वे देखना चाहते थे कि उन की लाड़ली कैसे अकेले रहती होगी.

सारा घबरा कर मोहित से बोली, ‘‘अब क्या करेंगे?’’

मोहित हंसते हुए बोला, ‘‘अरे देखो मैं कैसा चक्कर चलाता हूं,’’

अगले रोज मोहित अपनी एक दोस्त शैली को ले कर आ गया और बोला, ‘‘तुम्हारे मम्मीपापा के सामने मैं शैली के बड़े भाई के रूप में उपस्थित रहूंगा.’’

सारा के मम्मीपापा आए और फिर मोहित के नाटक पर मोहित हो कर चले गए.

सारा के मम्मीपापा के सामने मोहित शैली के बड़े भाई के रूप में मिलने आता. सारा के मम्मीपापा को अब तसल्ली हो गई थी और वे निश्तिंत हो कर वापस अपने घर चले गए.

सारा और मोहित एकसाथ रहने लगे थे. सारा को मोहित का साथ भाता था परंतु अंदर ही अंदर उसे अपने मम्मीपापा से झठ बोलना भी कचोटता रहता था. एक दिन सारा ने मोहित से कहा, ‘‘मोहित, तुम मुझे पसंद करते हो क्या?’’

मोहित बोला, ‘‘अपनी जान से भी ज्यादा?’’

सारा बोली, ‘‘मोहित तुम और मैं क्या इस रिश्ते को नाम नहीं दे सकते हैं?’’

मोहित चिढ़ते हुए बोला,’’ यार मुझे माफ करो, मैं ने पहले ही कहा था कि हम एक दोस्त की तरह ही रहेंगे. मैं तुम पर कोई बंधन नहीं लगाना चाहता हूं और न ही तुम मुझ पर लगाया करो. और तुम यह बात क्यों भूल जाती हो कि मेरे घर पर रहने के कारण तुम्हारी कितनी बचत हो रही है और भी कई फायदे भी हैं,’’ कहते हुए मोहित ने अपनी आंख दबा दी.

सारा को मोहित का यह सस्ता मजाक बिलकुल पसंद नहीं आया. 2 दिन तक मोहित और सारा के बीच तनाव बना रहा परंतु फिर से मोहित ने हमेशा की तरह सारा को मना लिया. सारा भी अब इस नए लाइफस्टाइल की अभ्यस्त हो चुकी थी.

सारा जब मुजफ्फरनगर से पुणे आई थी तो उस के बड़ेबड़े सपने थे परंतु अब न जाने क्यों उस के सब सपने मोहित के इर्दगिर्द सिमट कर रह गए थे.

आज सारा बेहद परेशान थी. उस के पीरियड्स की डेट मिस हो गई थी. जब उस ने मोहित को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘सारा ऐसे कैसे हो सकता है हम ने तो सारे प्रीकौशंस लिए थे?’’

‘‘तुम मुझ पर शक कर रहे हो?’’

‘‘नहीं बाबा कल टैस्ट कर लेना.’’

सारा को जो डर था वही हुआ. प्रैगनैंसी किट की टैस्ट रिपोर्ट देख कर सारा के हाथपैर ठंडे पड़ गए.

मोहित उसे संभालते हुए बोला, ‘‘सारा टैंशन मत लो कल डाक्टर के पास चलेंगे.’’

अगले दिन डाक्टर के पास जा कर जब उन्होंने अपनी समस्या बताई तो डाक्टर बोली, ‘‘पहली बार अबौर्शन कराने की सलाह मैं नहीं दूंगी… आगे आप की मरजी.’’

घर आ कर सारा मोहित की खुशामद करने लगी, ‘‘मोहित, प्लीज शादी कर लेते हैं. यह हमारे प्यार की निशानी है.’’

मोहित चिढ़ते हुए बोला, ‘‘सारा, प्लीज फोर्स मत करो… यह शादी मेरे लिए शादी नहीं बल्कि एक फंदा बनेगी.’’

सारा फिर चुप हो गई थी. अगले दिन चुपचाप जब सारा तैयार हो कर जाने लगी तो मोहित भी साथ हो लिया.

रास्ते में मोहित बोला, ‘‘सारा, मुझे मालूम है तुम मुझ से गुस्सा हो पर ऐसा कुछ

जल्दबाजी में मत करो जिस से बाद में हम

दोनों को घुटन महसूस हो. देखो इस रिश्ते में

हम दोनों का फायदा ही फायदा है और शादी के लिए मैं मना कहां कर रहा हूं, पर अभी नहीं कर सकता हूं.’’

डाक्टर से सारा और मोहित ने बोल दिया था कि कुछ निजी कारणों से वे अभी बच्चा नहीं कर सकते हैं.

डाक्टर ने उन्हें अबौर्शन के लिए 2 दिन बाद आने के लिए कहा. मोहित ने जब पूरा खर्च पूछा तो डाक्टर ने कहा, ‘‘25 से 30 हजार रुपए.’’

घर आ कर मोहित ने पूरा हिसाब लगाया, ‘‘सारा तुम्हें तो 3-4 दिन बैड रैस्ट भी करना होगी जिस कारण तुम्हें लीव विदआउट पे लेनी पड़ेगी. तुम्हारा अधिक नुकसान होगी, इसलिए इस अबौर्शन का 50% खर्चा मैं उठा लूंगा.’’

सारा छत को टकटकी लगाए देख रही थी. बारबार उसे ग्लानि हो रही थी कि वह एक जीव हत्या करेगी. बारबार सारा के मन में खयाल आ रहा था कि अगर उस की और मोहित की शादी हो गई होती तो भी मोहित ऐसे ही 50% खर्चा देता. सारा ने रात में एक बार फिर मोहित से बात करने की कोशिश करी, मगर उस ने बात को वहीं समाप्त कर दिया.

मोहित बोला, ‘‘तुम्हें वैसे तो बराबरी चाहिए, मगर अब फीमेल कार्ड खेल रही हो. यह गलती दोनों की है तो 50% भुगतान कर तो रहा हूं और यह बात तुम क्यों भूल जाती हो कि तुम्हारा वैसे ही क्या खर्चा होता है. यह घर मेरा है जिस में तुम बिना किराए दिए रहती हो.’’

मोहित की बात सुन कर सारा का मन खट्टा हो गया.

जब से सारा अबौर्शन करा कर लौटी थी वह मोहित के साथ हंसतीबोलती जरूर थी, मगर उस के अंदर बहुत कुछ बदल गया था. पहले जो सारा मोहित को ले कर बहुत केयरिंग और पजैसिव थी अब उस ने मोहित से एक डिस्टैंस बना लिया था.

शुरूशुरू में तो मोहित को सारा का बदला व्यवहार अच्छा लग रहा था परंतु बाद में उसे सारा का वह अपनापन बेहद याद आने लगा.

पहले मोहित जब औफिस से घर आता था तो सारा उस के साथ ही चाय लेती थी परंतु आजकल अधिकतर वह गायब ही रहती थी.

एक दिन संडे को मोहित ने कहा, ‘‘सारा कल मैं ने अपने कुछ दोस्त लंच पर बुलाए हैं.’’

सारा लापरवाही से बोली, ‘‘तो मैं क्या

करूं, तुम्हारे दोस्त हैं तुम उन्हें लंच पर बुलाओ या डिनर पर.’’

‘‘अरे यार हम एकसाथ एक घर में रहते हैं… ऐसा क्यों बोल रही हो.’’

सारा मुसकराते हुए बोली, ‘‘बेबी, इस घोंसले की दीवारें आजाद हैं… जो जब चाहे उड़ सकता है. कोई तुम्हारी पत्नी थोड़े ही हूं जो तुम्हारे दोस्तों को ऐंटरटेन करूं.’’

मोहित मायूस होते हुए बोला, ‘‘एक दोस्त के नाते भी नहीं?’’

‘‘कल तुम्हारी इस दोस्त को अपने दोस्तों के साथ बाहर जाना है.’’

मोहित आगे कुछ नहीं बोल पाया.

सारा ने अब तक अपनी जिंदगी मोहित

के इर्दगिर्द ही सीमित कर रखी थी. जैसे ही उस

ने बाहर कदम बढ़ाए तो सारा को लगा कि वह कुएं के मेढक की तरह अब तक मोहित के

साथ बनी हुई थी. इस कुएं के बाहर तो बहुत

बड़ा समंदर है. सारा अब इस समंदर की सारी सीपियों और मोतियों को अनुभव करना

चाहती थी.

एक दिन डिनर करते हुए सारा मोहित से बोली, ‘‘मोहित, तुम्हें पता नहीं है तुम कितने अच्छे हो.’’

मोहित मन ही मन खुश हो उठा. उसे लगा कि अब सारा शायद फिर से प्यार का इकरार करेगी.

मगर सारा मोहित की आशा के विपरीत बोली, ‘‘अच्छा हुआ तुम ने शादी करने से मना कर दिया. मुझे उस समय बुरा अवश्य लगा परंतु अगर हम शादी कर लेते तो मैं इस कुएं में ही सड़ती रहती.’’

अगले माह मोहित को कंपनी के काम से बैंगलुरु जाना था. उसे न जाने क्यों अब सारा का यह स्वच्छंद व्यवहार अच्छा नहीं लगता था. उस ने मन ही मन तय कर लिया था कि अगले माह सारा के जन्मदिन पर वह उसे प्रोपोज कर देगा और फिर परिवार वालों की सहमति से अगले साल तक विवाह के बंधन में बंध जाएंगे.

बैंगलुरु पहुंचने के बाद भी मोहित ही सारा को मैसेज करता रहता था परंतु चैट पर बकबक करने वाली सारा अब बस हांहूं के मैसेज तक सीमित हो गई थी.

जब मोहित बैंगलुरु से वापस पुणे पहुंचा तो देखा सारा वहां नही थी. उस ने फोन लगाया तो सारा की चहकती आवाज आई, ‘‘अरे यार मैं गोवा में हूं, बहुत मजा आ रहा है.’’

इस से पहले कि मोहित कुछ बोलता सारा ने झट से फोन काट दिया.

3 दिन बाद जब सारा वापस आई तो मोहित बोला, ‘‘बिना बताए ही चली गईं, एक बार पूछा भी नही.’’

सारा बोली, ‘‘तुम मना कर देते क्या?’’

मोहित झेंपते हुए बोला, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था.’’

मोहित को उस के एक नजदीकी दोस्त ने बताया था कि सारा अर्पित नाम के लड़के के साथ गोवा गई थी. मोहित को यह सुन कर बुरा लगा था, मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि सारा से क्या बात करे? उस ने खुद ही अपने और सारा के बीच यह खाई बनाई थी.

मोहित सारा को दोबारा से अपने करीब लाने के लिए सारे ट्रिक्स अपना चुका था परंतु अब सारा पानी पर तेल की तरह फिसल गई थी.

अगले हफ्ते सारा का जन्मदिन था. मोहित ने मन ही मन उसे सरप्राइज देने की सोच रखी थी. तभी उस रात अचानक मोहित को तेज बुखार हो गया. सारा ने उस की खूब अच्छे से देखभाल करी. 5 दिन बाद जब मोहित पूरी तरह से ठीक हो गया तो उसे विश्वास हो गया कि सारा उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. मोहित ने सारा के लिए हीरे की अंगूठी खरीद ली. कल सारा का जन्मदिन था. मोहित शाम को जल्दी आ गया था. उस ने औनलाइन केक बुक कर रखा था.

न जाने क्यों आज उसे सारा का बेसब्री से इंतजार था.

जैसे ही सारा घर आई तो मोहित ने उस के लिए चाय बनाई. सारा ने मुसकराते हुए चाय का कप पकड़ा और कहा, ‘‘क्या इरादा है जनाब का?’’

मोहित बोला, ‘‘कल तुम्हारा जन्मदिन है, मैं तुम्हें स्पैशल फील कराना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो तुम्हें मेरे घर आ कर करना पड़ेगा.’’

‘‘तुम क्या अपने घर जा रही हो जन्मदिन पर.’’

‘‘मैं ने अपने औफिस के पास एक छोटा सा फ्लैट ले लिया है. मैं अपना जन्मदिन वहीं मनाना चाहती हूं. अब मैं अपना खर्च खुद उठाना चाहती हूं… यह निर्णय मुझे बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था.’’

मोहित बोला, ‘‘मुझे मालूम है तुम मुझ से अब तक अबौर्शन की बात से नाराज हो. यार मेरी गलती थी कि मैं ने तुम से तब शादी करने के लिए मना कर दिया था.’’

‘‘अरे नहीं तुम सही थे, मजबूरी में अगर तुम मुझ से शादी कर भी लेते तो हम दोनों हमेशा दुखी रहते.’’

‘‘सारा मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मोहित पर मैं तुम से आकर्षित थी… अगर प्यार होता तो शायद आज मैं अलग रहने का फैसला नहीं लेती.’’

सारा सामान पैक कर रही थी. मोहित के अहम को ठेस लग गई थी, इसलिए उस ने अपना आखिरी दांव खेला, ‘‘तुम्हारे नए बौयफ्रैंड को पता है कि तुम ने अबौर्शन करवाया था. अगर तुम्हारे घर वालों को यह बात पता चल जाएगी तो सोचो उन्हें कैसा लगेगा? मैं तुम पर विश्वास करता हूं, इसलिए मैं तुम से शादी करने को अभी भी तैयार हूं.’’

‘‘पर मोहित मैं तैयार नहीं हूं. बहुत अच्छा हुआ कि इस बहाने ही सही मुझे तुम्हारे विचार पता चल गए. और रही बात मेरे परिवार की, तो वे कभी नहीं चाहेंगे कि मैं तुम जैसे लंपट इंसान से विवाह करूं. मोहित तुम्हारा यह घोंसला आजादी के तिनकों से नहीं वरन स्वार्थ के तिनकों से बुना हुआ है. अगर एक दोस्त के नाते कभी मेरे घर आना चाहो तो अवश्य आ सकते हो,’’ कहते हुए सारा ने अपने नए घोंसले का पता टेबल पर रखा और एक स्वच्छंद चिडि़या की तरह खुले आकाश में विचरण करने के लिए उड़ गई.

सारा ने अब निश्चय कर लिया था कि वह अपनी मेहनत और हिम्मत के तिनकों से अपना घोंसला स्वयं बनाएगी. तिनकातिनका जोड़ कर बनाएगी अब वह अपना घोंसला… आज की नारी में हिम्मत, मेहनत और खुद पर विश्वास का हौसला.

नाइट फ्लाइट :ऋचा से बात करने में क्यों कतरा रहा था यश

मुंबई का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. अभी शाम के 5 भी  नहीं बजे थे. यश की फ्लाइट रात के 8 बजे की थी. वह लंबी यात्रा में किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था. सो, एयरपोर्ट जल्दी ही आ गया था. उस ने टैक्सी से अपना सामान उतार कर ट्रौली पर रखा. हवाईअड्डे पर काफी भीड़ थी. वह मन ही मन सोच रहा था, आजकल हवाई यात्रा करने वालों की कमी नहीं है. यश ने अपना पासपोर्ट और टिकट दिखा कर अंदर प्रवेश किया.

यश ने एयर इंडिया के काउंटर से चेकइन कर अपना बोर्डिंग पास लिया. उस ने अपने लिए किनारे वाली सीट पहले से बुक करा ली थी. उसे यात्रा के दौरान विंडो या बीच वाली सीट से निकल कर वौशरूम जाने में परेशानी होती है. उस के बाद वह सुरक्षा जांच के लिए गया. सुरक्षा जांच के बाद टर्मिनल 2 की ओर बढ़ा जहां से एयर इंडिया की उड़ान संख्या ए/314 से उसे हौंगकौंग जाना था. वहां पर वह एक किनारे कुरसी पर बैठ गया. अभी भी उस की फ्लाइट में डेढ घंटे बाकी थे. हौंगकौंग के लिए और भी उड़ानें थीं पर उस ने जानबूझ कर नाइट फ्लाइट ली ताकि रात जहाज में सो कर गुजर जाए और सारा दिन काम कर सके. उस की फ्लाइट हौंगकौंग के स्थानीय समय के अनुसार सुबह 6.45 बजे वहां लैंड करती.

थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग आ कर यश की बगल में एक सीट छोड़ कर बैठ गए. बीच की सीट पर उन्होंने अपना बैग रख दिया. देखने में वे किसान लग रहे थे. उन्होंने अपना बोर्डिंग पास यश को दिखाते हुए पंजाबी मिश्रित हिंदी में पूछा, ‘‘पुत्तर, मेरा जहाज यहीं से उड़ेगा न?’’

यश ने हां कहा और अपनी किताब पढ़ने लगा. बीचबीच में वह सामने टीवी स्क्रीन पर न्यूज देख लेता. लगभग आधे घंटे के बाद एक युवती आई. यश की बगल वाली सीट पर बुजुर्ग का बैग रखा था. लड़की ने यश से कहा, ‘‘प्लीज, आप अपना बैग हटा लेते, तो मैं यहां बैठ जाती.’’

यश ने मुसकराते हुए बुजुर्ग की ओर इशारा कर कहा, ‘‘यह बैग उन का है.’’

उस बुजुर्ग को हिंदी ठीक से नहीं आती थी. लड़की के समझाने पर उन्होंने अपना बैग नीचे रखा. तब लड़की ने यश की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में वौशरूम से आती हूं.’’

इस बार यश ने सिर उठा कर उसे देखा और मुसकराते हुए, ‘इट्स ओके’ कहा. फिर लड़की को जाते हुए देखा. लड़की खूबसूरत थी. उस की पतली कमर के ऊपर ब्लू स्कर्ट और स्कर्ट के बाहर झांकती पतली टांगें उसे अच्छी लगी थीं. ऊपर एक सफेद टौप था. उस ने हाईहील सैंडिल पहनी थी.

करीब 10 मिनट के बाद एक हाथ में स्नैक्स और दूसरे में कोक का कैन लिए वह लड़की आ रही थी. पहले स्नैक्स खाती, फिर कोक सिप करती. यश ने देखा कि उसे हाईहील पहन कर चलने में कुछ असुविधा हो रही थी. वह जैसे ही अपनी कुरसी पर बैठने जा रही थी कि थोड़ा लड़खड़ा पड़ी. उस ने अपने को तो संभाल लिया पर कोक का कैन हाथ से छूट कर यश की गोद में जा पड़ा. कुछ कोक छलक कर उस की जींस पर गिरी जिस से जींस कुछ गीली हो गई थी.

यश ने खड़े हो कर कैन उसे पकड़ाया. लड़की बुरी तरह शर्मिंदा थी, बोली, ‘‘आई एम ऐक्सट्रीमली सौरी.’’ और बैग में से कुछ टिश्यूपेपर निकाल कर उस की जींस पोंछने लगी.

यश को यह अच्छा नहीं लगा, वह बोला, ‘‘आप रहने दें, मैं खुद कर लेता हूं.’’ और उस के हाथ से टिश्यू ले कर खुद गीलापन कम करने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर बाद बोर्डिंग की घोषणा हुई. यह भी इत्तफाक ही था कि वह लड़की और बुजुर्ग दोनों यश की बगल की सीटों पर थे. बुजुर्ग को विंडो सीट और लड़की को बीच वाली सीट मिली थी.

विमान के कैप्टन ने यात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि मुंबई से हौंगकौंग तक की उड़ान करीब 8 घंटे 35 मिनट की होगी. पर लगभग 2 घंटे के बाद विमान एक घंटे के लिए दिल्ली में रुकेगा. जिन यात्रियों को हौंगकौंग जाना है, कृपया अपनी सीट पर बैठे रहें. विमान परिचारिका ने सुरक्षा नियम समझाए. बुजुर्ग यात्री पहली बार हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे. उन्हें बैल्ट बांधने में लड़की ने मदद की. उन्होंने बताया कि वे कनाडा जा रहे हैं. वे कुछ दिन हौंगकौंग में अपनी भतीजी की शादी के सिलसिले में रुकेंगे.

फिर उन्हें हौंगकौंग से वैंकुवर जाना है. उन के बेटे ने उन का ग्रीनकार्ड स्पौंसर किया है.

निश्चित समय पर विमान ने टेकऔफ किया. बातचीत का सिलसिला यश ने शुरू किया. वह लड़की से बोला, ‘‘मैं यश मेहता, सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मेरी कंपनी बैंकिंग सौफ्टवेयर बनाती है. अभी मैं एक प्रोडक्ट के सिलसिले में हौंगकौंग के बार्कले इन्वैस्टमैंट बैंक और एचएसबीसी बैंक जा रहा हूं.’’

‘‘ग्लैड टू मीट यू, मैं ऋचा शर्मा. हौंगकौंग में हमारा बिजनैस है.’’

‘‘तब तो आप अकसर वहां जाती होंगी.’’

‘‘जी नहीं, पहली बार जा रही हूं.’’

तब तक जलपान दिया गया. यश और ऋ चा ने देखा कि वे बुजुर्ग बारबार उठ कर बाथरूम जा रहे हैं जिस के चलते ऋचा को ज्यादा परेशानी हो रही थी. यश किनारे वाली सीट पर था तो वह अपने पैर बाहर की तरफ मोड़ लेता.

बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें शुगर और किडनी दोनों बीमारियां हैं. उन की एक आदत यश और ऋ चा दोनों को बुरी लगी कि विमान परिचारिका जो भी कुछ सामान अगलबगल की सीट पर देती, वे अपने लिए भी मांग बैठते.

कुछ देर बाद विमान दिल्ली हवाई अड्डे पर उतर रहा था. करीब एक घंटे के बाद विमान ने हौंगकौंग के लिए उड़ान भरी. आधे घंटे के बाद डिनर सर्व हुआ. डिनर के बाद यश सोने की तैयारी में था. तभी ऋ चा ने अपने रिमोट से परिचारिका को बुलाने के लिए कौलबैल का बटन दबाया. थोड़ी देर में वह आई. ऋचा ने उस के कान में धीरे से कुछ कहा. परिचारिका ‘श्योर मैम, मैं देखती हूं,’ बोल कर चली गई.

कुछ ही देर बाद वह लौट कर आई. उस ने एक टिश्यू में लिपटा हुआ कुछ सामान ऋचा को दिया. बुजुर्ग ने कहा, ‘‘पुत्तर, एक मुझे भी दे दो.’’

परिचारिका बोली, ‘‘सर, यह आप के काम की चीज नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे दो तो सही. मैं देख लूंगा, मेरे लिए है या नहीं.’’

ऋचा शरमा रही थी और अपनी हंसी भी नहीं छिपा पा रही थी. बारबार समझाने पर भी वे नहीं मान रहे थे. तब परिचारिका ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप को भी मासिकधर्म है क्या?’’

बुजुर्ग बोले, ‘‘छि, क्या बोलती है?’’

तब जा कर उन की समझ में बात आई. यश ने कहा, ‘‘मैं देख रहा हूं आप हर चीज अपने लिए मांग रहे हैं?’’

‘‘आते समय मेरे बेटे ने समझाया था कि शर्म नहीं करना, सब चीजें जहाज में फ्री मिलती हैं.’’

यश हंस पड़ा. इसी बीच ऋचा सैनिटरी नैपकिन ले कर वौशरूम चली गई. 10 मिनट बाद वह लौट कर अपनी सीट पर आ रही थी. बगल की सीट पर बैठा यात्री सो रहा था और उस का हैडफोन नीचे गिरा था. ऋचा का पैर हैडफोन की तार में फंस गया, ऊपर से हाईहील, पैंसिल नोक वाली सैंडिल. ऋचा गिर पड़ी और उस की स्कर्ट भी कुछ इस तरह उठ गई थी कि उस का अधोवस्त्र भी झलकने लगा. वह उठने की कोशिश कर रही थी, पर दोबारा फिसल पड़ी थी. यश ने उसे सहारा दे कर अपनी सीट पर बैठाया और खुद बीच वाली सीट पर बैठ गया.

‘‘थैंक्स अ लौट,’’ ऋ चा बोली.

‘‘इट्स ओके. पर एक बात पूछूं, बुरा न मानिए.’’

ऋचा के पूछिए बोलने पर वह बोला, ‘‘आप हाईहील में सहज नहीं लगती हैं, फिर फ्लाइट में क्यों इसे पहन कर आई हैं?’’

‘‘हाईहील के बगैर मेरी हाइट 5 फुट से भी कम हो जाती है. वैसे, मैं रैगुलर इसे यूज नहीं करती.’’

थोड़ी देर बाद ऋ चा को नींद आ गई. उस ने नींद में यश के कंधे पर अपना सिर रख दिया. यश को उस का सामीप्य अच्छा लग रहा था. कंधे पर एक खुशनुमा बोझ तो था, पर उस के बदन और बालों की खुशबू यश को रोमांचित कर रही थी. वह यथावत स्थिति में बैठा रहा. उसे डर था कि कहीं हिलनेडुलने से ऋचा की नींद न टूट जाए और वह इस आनंद से वंचित रह जाए. बीच में कभी ऋचा की नींद खुलती तो वह सीधा हो कर बैठती, पर 5 मिनट के अंदर फिर यश के कंधों पर लुढ़क जाती.

इस बीच, यश ने दोनों सीटों के बीच वाले हिस्से को उठा कर खड़ा कर दिया. कभी तो ऋ चा का सिर उस के सीने पर भी आ जाता, तब उस की नींद खुलती और सौरी बोल कर सीधी हो जाती और बोलती, ‘‘मुझ से नींद बरदाश्त नहीं होती. मैं कहीं भी जाती हूं किसी तरह अपने सोनेभर की जगह बना ही लेती हूं.’’

यश ने कहा, ‘‘आप कहें तो मैं आप के लिए कुछ और जगह बना दूं. मेरे पैर पर तकिया रख कर सो लें.’’

‘‘ओह, नोनो.’’

पर 10 मिनट के अंदर उस का सिर यश के पैर पर रखे तकिए पर आ गया. यश को भी नींद आ रही थी, पर वह अपनी नींद कुरबान करने को तैयार था, बल्कि एकाध बार तो उस का दाहिना हाथ ऋ चा के बालों पर फिसलने लगता.

देखतेदेखते लैंडिंग की भी घोषणा हुई. तब यश ने धीरे से ऋचा का सिर हिला कर कहा ‘‘उठिए, बैल्ट बांधिए. हम हौंगकौंग पहुंच रहे हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी आ गए. मुझे तो पता ही नहीं चला.’’ और फिर सीधा बैठ कर बैल्ट बांधती हुई बोली, ‘‘क्या मैं रातभर इसी तरह सोती आई? सौरी, आप को तकलीफ दी.’’

‘‘कोई बात नहीं, इट्स अ प्लेजर फौर मी. अगर सफर लंबा होता तो मुझे और खुशी होती.’’

ऋ चा मुसकरा कर रह गई. ऋ चा और यश दोनों का इमिग्रेशन और कस्टम एक ही डैस्क पर हुआ. वहीं लाइन में खड़े यश ने कहा, ‘‘आप के साथ का सफर बड़ा प्यारा रहा. क्या हम आगे भी मिल सकते हैं?’’

‘‘हां, मिलने में कोई बुराई नहीं है.’’

‘‘तो शाम को विंधम स्ट्रीट के इंडियन रैस्टोरैंट में मिलते हैं. जब हौंगकौंग आता हूं, वहां मैं अकसर डिनर करता हूं. लाजवाब स्वाद है वहां के खाने में.’’

ऋ चा हंस कर बोली, ‘‘तब तो वहां मैं जरूर मिलूंगी.’’

दोनों एयरपोर्ट से बाहर निकले. दोनों के लिए तख्तियां ले कर कार के ड्राइवर्स खड़े थे. दोनों अपनेअपने गंतव्य स्थान पर गए.

यश 2-3 घंटे होटल में आराम कर अपने काम पर चला गया. दिनभर वह शाम को ऋचा से होने वाली मुलाकात को सोच कर रोमांचित होता रहा.

यश ने शाम को उस इंडियन रैस्टोरैंट में अपने लिए टेबल बुक कर लिया था. होटल पहुंच कर वह अपने टेबल पर बैठा बारबार घड़ी देख रहा था. सोच रहा था कि ऋचा बोल कर भी क्यों नहीं आई. वह सोच ही रहा था कि तभी ऋचा एप्रन पहने सामने आ खड़ी हुई. उसे मेनू बुक देते हुए बोली, ‘‘गुड इवनिंग सर, आप खाने में क्या पसंद करेंगे?’’

यश उसे वेट्रैस की ड्रैस में देख कर घबरा गया और बोला, ‘‘तुम यहां वेट्रैस हो? यही तुम्हारा बिजनैस है?’’

‘‘रिलैक्स सर. अच्छा, आज मेरी पसंद का डिनर लें. आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

यश ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाना चाहा तो वह बोली, ‘‘मैं डिनर ले कर आती हूं. दोनों साथ बैठ कर खाएंगे.’’

यश हैरानपरेशान सा बैठा था. थोड़ी देर में वह भरपूर खाना ले कर आई और एप्रन खोल कर रख दिया. दोनों खाते रहे. यश ने 2-3 बार पूछना चाहा कि क्या वह वेट्रैस है, पर हर बार वह टाल जाती.

खाना खत्म होते ही एक युवक उन के पास आया और उस ने ऋ चा से पूछा, ‘‘कुछ और चाहिए. खाना पसंद आया तुम्हारे वीआईपी गैस्ट को?’’

यश उस युवक की ओर देखने लगा. ऋ चा बोली, ‘‘मीट माई हस्बैंड, नीलेश.’’

यश भौचक्का सा कभी ऋचा, तो कभी नीलेश को देखता रहा. थोड़ी देर बाद नीलेश बोला, ‘‘हमारी शादी 2 महीने पहले इंडिया में हुई थी. इसे मायके में कुछ दिन रुकने का मन था. मैं यहां पहले चला आया. इस होटल में मेजर शेयर हमारा है. आप ने यात्रा में ऋचा की काफी सहायता की है. वह आप की बहुत तारीफ कर रही थी. दरअसल, इस टेबल की वेट्रैस आज छुट्टी पर है. ऋ चा बोली कि उस का एक खास गैस्ट आ रहा है, वह खुद मेहमाननवाजी करेगी. और आज का डिनर हमारी तरफ से कौंप्लीमैंट्री रहा.’’

यश अभी तक इस आश्चर्यजनक वाकए से उबर नहीं सका था, वह बोला, ‘‘ऋचा, आप ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं ने कहा था कि मेरा बिजनैस है. पर जब आप ने इंडियन रैस्टोरैंट का नाम लिया तो मैं ने सोचा, क्यों न सरप्राइज दिया जाए, और आप को कुछ देर और रोमांचित होने का मौका दिया मैं ने.’’

‘‘नौट फेयर ऋचा, मुझे आप ने अपने बारे में अंधेरे में रखा.’’

ऋचा ने यश की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘वी विल रिमेन गुड फ्रैंड्स. इस होटल में जब भी चाहो, आ जाना. बिल नहीं भी देंगे तो भी चलेगा. पर हर बार मैं सर्व नहीं कर सकूंगी. होप यू डौंट माइंड.’’

नीलेश और ऋचा दोनों होटल के बाहर तक यश को छोड़ने आए.

यश ने टैक्सी ली और वापस अपने होटल आ गया. रिलैक्स हो कर सोफे पर बैठ गया. उसे एहसास हो रहा था कि हम बिना दूसरे के बारे में जाने न जाने क्याक्या सोच बैठते हैं. ऋचा को देख उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया था. गलती तो उसी की थी. मन तो बावरा होता है, लेकिन अपनी सोच पर तो हमारी खुद की पकड़ होती है. यश को अपनेआप पर हंसी आ गई. फिर लंबी सांस भर कर बोला, ‘‘नौट अगेन.’’

आशा नर्सिंग होम: क्यों वह आशा से बन गई रजनी

रजनी उदास है. पति को दिल का दौरा पड़ा हुआ है. वे आशा नर्सिंग होम के औपरेशन थिएटर में है. उन्हें सुबह बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था, इलाज किया जा रहा है. औपरेशन थिएटर का दरवाजा बंद है.

अभीअभी उन्हें अंदर ले जाया गया है. बाहर रजनी, उस की बड़ी बहन अनुपमा, युवा भांजा रोहित और जीजा प्रभाकर खड़े हैं. सभी चिंतित हैं, रजनी के पतिदेव के स्वास्थ्य की कामना कर रहे हैं.

रजनी के पति रमेश की उम्र 54 वर्ष है. उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा है. मृत्यु नाम ही कितना भयानक है कि मनुष्य, जीव-जंतु हो या प्राणी… मृत्यु से दूर भागने की कोशिश में ही रहते हैं जब तक कि उन का जीवन है, जब तक कि उन की सांसें चल रही हैं.

रजनी, स्वाभाविक है कि, सब से ज्यादा चिंतित है. उस के 2 बच्चे है. 19 वर्षीय सौम्य कालेज की पढ़ाई कर रहा है और 12 वर्षीया नेहा 8वीं कक्षा में है. दोनों पढ़ाई में व्यस्त होने की वजह से घर पर वडोदरा में ही हैं. रजनी वडोदरा में रहती है. भांजे रोहित की एंगेजमैंट के उपलक्ष्य में यहां रमेश के साथ बहन के घर कानपुर आई हुई है.

अब सोफ़े पर बैठी रजनी आंखें मूंदें है. वह सोच रही है कि इस अस्पताल का नाम ‘आशा नर्सिग होम’ है और शादी से पहले उस का नाम भी आशा था. रमेश के साथ शादी होने के बाद उस का नया नाम रजनी हो गया और आज वह अपने असल नाम को याद करती हुई यहां आशा नर्सिंग होम में है. अजीब संयोग है.

अरे, मैँ तो यहां बड़ी बहन अनुपमा के घर, कानपुर आई हुई हूं. यह मेरा मायका है. मां-बाऊजी तो अब नहीं रहे. बाऊजी का घरबार, कपड़े की दुकान… सबकुछ बेच कर बड़े अमर भैया परिवार के साथ अमेरिका में रह रहे हैं. इंजीनियर अमर भैया पहले वहां नौकरी के बहाने गए और बाद में शादी भी अपने औफिस में कार्यरत अमेरिकन लड़की से कर ली. पहले मां और बाद में बाऊजी की मृत्यु हुई और अमर भैया का मानो भारत से नाता ही टूट गया. अब रह गईं हम 2 बहनें, जो सुखदुख में एक दूजी का साथ निभा रही हैं. अनुपमा दीदी के बेटे की कल शाम एंगेजमैंट है.

“हैलो,” कहते हुए रजनी ने फोन कान से सटाया. बेटे का वडोदरा से फोन था.

“कैसे हो मम्मी? पापा का फोन स्विचऔफ आ रहा है.”

“हम कहीं बाहर हैं बेटे, बाद में बात करती हूं,” कहते हुए रजनी ने फोन बंद कर दिया. वह बच्चों को कुछ बताना नहीं चाहती थी क्योंकि वे परेशान हो सकते थे. अब वह फिर से सोचने लगी…

रमेश, दूर की रिश्ते की बूआ के बेटे, को मैं ने ही पसंद किया था. तब मैँ एमए इंग्लिश की पढ़ाई कर रही थी. रमेश इंजीनियर था और बड़ा ही हैंडसम था. सरकारी नौकरी, कार, बड़ा सा मकान… सबकुछ था उस के पास. घर में भी सभी को पसंद था.

“ननकी, तेरी तबीयत ठीक तो है? चिंता न कर. सब ठीक ही होगा. आशा नर्सिग होम यहां का बहुत जानामाना अस्पताल है, ननकी. डा. भट्ट की ख्याति दूरदूर तक है. यहां से कभी कोई पेशेंट निराश नहीं लौटता, ऐसा लौकिक है. ये ले, पानी पी ले. रमेश जी जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे. अभी खबर आ जाएगी कि खतरा टल गया है,” कहते हुए अनुपमा ने पानी का गिलास रजनी के हाथ में दिया.

रोहित वहां पड़ी हुई किसी मैगजीन के पन्ने पलट रहा था. सामने सोफ़े पर एक स्त्री गोद में आठदस महीने का बच्चा ले कर बैठी हुई थी जो सो रहा था. रजनी ने देखा कि वह बारबार पल्लू से आंखें पोंछ रही थी. उस का भी कोई अपना अस्पताल में शायद एडमिट था.

रजनी ने फिर पीछे गरदन टिकाई और आंखें मूंद लीं. ननकी नाम कितना प्यारा है. यह नाम मेरा ही है. बचपन में मां, बाबूजी, भैया… सभी तो ननकी ही बुलाते थे मुझे. आशा नाम तो स्कूल और सहेलियों के बुलाने के लिए था और आशीष, मेरा आशीष, भी तो मुझे आशा कह कर ही बुलाता था, लेकिन वह मेरा नहीं हुआ.

डाक्टर का क्या नाम बताया था दीदी ने…हां, डा. भट्ट. मेरी बचपन की सहेली विजया का किराएदार जो छत पर एक कमरा किराए पर ले कर रहता था, आशीष भट्ट नाम था उस का. वह भी मैडिकल स्टूडैंट ही तो था. तब वह एमबीबीएस के सैकंड ईयर में था. लेकिन वह तो राजकोट, गुजरात का रहने वाला था. यहां कानपुर में उस का नर्सिग होम? और इतना बड़ा विदेश से डिग्रियां ले कर आया हुआ कार्डियोलौजिस्ट?

इतने में औपरेशन थिएटर से एक नर्स बाहर आई और अनुपमा के पति से बातें करने लगी. तो रजनी ने आंखें खोलीं और उठ कर तेजी से उस के पास जा कर बोली, “सिस्टर, कैसे हैं रमेश जी? कैसी है अब उन की तबीयत?”

“सौरी बहन जी, अभी उन को होश आया नहीं है. डाक्टर साहब और हम स्टाफ कोशिश कर रहे हैं. यह इंजैक्शन उन के लिए डाक्टर साहब ने मंगवाया है,” कहती हुई नर्स वापस औपरेशन थिएटर में चली गई और फिर दरवाजा बंद हो गया. नर्स प्रभाकर जी के हाथ में एक परचा पकड़ा कर गई थी और वे तुरंत इंजैक्शन लेने वहां से बाहर की ओर चले गए.

अनुपमा अब रजनी के पास आई और उसे वापस सोफ़े पर बैठाते हुए बोली, “ननकी, हिम्मत से काम ले. डाक्टर अपनी कोशिश पूरी कर रहे हैं. देखती जा, तेरे जीजा अभी इंजैक्शन ले कर

आएंगे. मेरा मन कहता है, इंजैक्शन लग जाने के बाद रमेश जी होश में आ ही जाएंगे.”

“ऐसा ही हो दीदी,” कहते हुए रजनी ने पास बैठी अनुपमा के कंधे पर सिर रख दिया. अनुपमा का बेटा रोहित, जो वहीं पर बैठा हुआ था, के मोबाइल की रिंग बज उठी और वह ‘हैलो’ बोलता हुआ वहां से उठ कर थोड़ी दूर जा कर बात करने लगा. अब रजनी ने अनुपमा के कंधे से सिर उठाया और थोड़ी स्वस्थ हो कर पहले की तरह आंखें मूंद कर बैठी. चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने से एकएक दृश्य गुजर रहा था…

‘आशा, क्या तुम मुझ से आज शाम नानाराव पार्क में मिलने आ सकती हो?’ आशीष ने इतने प्यार से पूछा कि मैं मना न कर सकी और चली गई. आशीष ने अपने प्यार का इजहार किया. मैं ने शर्म से आंखें झुकाईं और अपने हाथ में पकड़े पर्स को कस कर दबाया. आशीष ने मेरे हाथ पर हाथ रखा और ‘आशु’ कहते हुए और नजदीक आया. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. एक पुरुष का स्पर्श तनमन में एक जादुई जोश पैदा कर रहा था. उस पहले स्पर्श का अनुभव मैं इस समय भी कर रही हूं. लेकिन क्यों?’ और रजनी ने एकदम से आंखें खोलीं.

दीदी पास नहीं थी. कहां गई होगी? शायद वाशरूम गई होगी. इतने में दीदी आती दिखाई दी और दूसरी तरफ से जीजाजी भी आते दिखाई दिए. रोहित अब भी दूर खड़ा मोबाइल पर बातें कर रहा था. शायद उस की फियांसी का फोन था. जीजाजी ने औपरेशन थिएटर के बाहर खड़े अटेंडैंट को इंजैक्शन का लिफ़ाफ़ा पकड़ाया और उस ने उसे तुरंत अंदर भिजवा दिया.

जीजाजी अब रजनी के साथ बैठे हुए थे. दूसरी तरफ दीदी बैठ गई. इस समय सभी की आंखें औपरेशन थिएटर के दरवाजे पर लगी हुई थीं. लगभग 25 मिनट के बाद दरवाजा खुला और अंदर से डाक्टर भट्ट और उन के पीछे एक डाक्टर व नर्स बाहर आए.

‘ओह, यह तो मेरा वही आशीष भट्ट है,’ देख कर रजनी सन्न रह गई और अपनी जगह पर बैठी रही. लेकिन बहन अनुपमा, प्रभाकर जी और रोहित उठ कर डाक्टर की तरफ चल दिए. उसे सब सुनाई दे रहा था जो डाक्टर भट्ट कह रहे थे.

“अब रमेश जी होश में आ गए हैं और उन की तबीयत ठीक है. अब उन्हें वार्ड में शिफ्ट किया जाएगा. वहां आप उन से मिल सकते हैं. उन की हार्टबीट नौर्मल है. परीक्षण के लिए आज रात उन्हें यहीं रहना पड़ेगा. कल सुबह 10 बजे डिस्चार्ज किया जाएगा. और हां, उन की शराब और सिगरेट की आदत छुड़वा सकते हैं, तो अच्छा रहेगा. यही वजह है उन के दिल के दौरे की,” कहते हुए डा. आशीष भट्ट के चेहरे पर स्मित हास्य था.

वही मोटापा, छोटा कद, आंखों पर मोटा चश्मा… पर ये सब आशीष के व्यक्तित्व में और ज्यादा निखार भर रहा था. अच्छा हुआ कि उन की नजर आशा उर्फ रजनी की तरफ नहीं पड़ी. वह चाहती नहीं थी कि वे उसे देखें. उस ने दूसरी तरफ मुंह घुमाया. डा. भट्ट अब लिफ्ट की ओर जा रहे थे.

“ननकी, अब तो खुश हो ले बहन. तू भी कर लेती बात डाक्टर साहब से. चलो, अब सब ठीक है…” और अनुपमा आगे भी बोलती गई.

लेकिन रजनी अपने खयालों खोई वहीं बैठी रही… आशीष से उस का मिलनाजुलना बढ़ता जा रहा था. वह सोच रही थी कि परसों अपने जन्मदिन पर घर की छोटी सी पार्टी में आशीष को आमंत्रित करूं और सब से उस का परिचय कराऊं. सब को सरप्राइज दूंगी. फिर शादी की बात चलने में देर नहीं लगेगी. मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे.

नानाराव पार्क की उसी खास बैंच पर बैठते हुए आशीष ने मिलते ही उदास स्वर में कहा, ‘आशा, मैँ आज रात की ट्रेन से राजकोट जा रहा हूं. पिताजी बीमार हैं, अस्पताल में एडमिट हैं. अभी थोड़ी देर पहले ही बूआ का फोन आया था.’

‘लेकिन आशीष, परसों मेरा बर्थडे है. उस के बाद भी तो जा सकते हो. क्या पिताजी के पास कोई और नहीं है?’ मैं ने थोड़ा जोर दे कर पूछा.

‘नहीं, वैसे मेरी माताजी, बूआ और चाचाचाची हैं, दोनों छोटे भाई भी हैं लेकिन अब मैँ कैसे रुक सकता हूं? मेरे पिताजी…’ कहते हुए आशीष का गला रुंध गया और उस ने रूमाल आंखों से लगाया.

उस के बाद हमारी कोई बातचीत नहीं हुई. घर पहुंच कर मैं ने सोचा कि आशीष को घरवालों की ज्यादा ही फिक्र है. इस के लिए मैँ कोई खास नहीं हूं. और पता नहीं, कल का भी क्या भरोसा?

आशीष ठीक 10 दिनों बाद वापस आया. बीच में एक बार उस का फोन आया लेकिन फोन पर अपने पिताजी के बारे में ही बात करता रहा. वापस आने पर उस को परीक्षा की तैयारी करनी थी. उस के पास मिलने के लिए समय नहीं था.

अब मुझे आशीष में बहुत सी कमियां नजर आने लगी थीं. उस का मोटापा, उस का छोटा कद, उस का मोटे शीशे वाला चश्मा मुझे अखर रहा था. ठीक 15 दिनों बाद वह मिला. बड़े ही प्यार से मिला. अपने ही भविष्य के बारे में ज्यादा बातें की उस ने. कार्डियोलौजी में आगे की डिग्री लेने की बात भी बताई. बीचबीच में मेरा हाथ पकड़ना, आंखों में झांकना, गाल सहलाना आदि क्रियाएं भी प्रेम से अभिभूत हो कर रहा था.

फिर जब उस ने अपनी बहन की बात की, तो मैं ने उसे रोका, कहा, ‘आशीष, अब हम यहीं रुक जाते हैं. तुम अपने घरवालों के ही बन कर रहो. उन की ही चिंता करो. तुम्हारे मन में मेरे लिए प्यार नहीं है, यह मैँ समझ गई हूं. मैँ कभी तुमारे लिए ‘खास’ थी, न बन सकूंगी.’

‘ऐसा नहीं है, आशा. मैं ने तुम से सच्चे दिल से प्यार किया है. ठंडे दिमाग से फिर से मेरे बारे में सोचो. अरे, मैं ने तो भविष्य में बनने वाले अपने नर्सिंग होम का नाम भी ‘आशा नर्सिंग होम’ रखने की सोचा है. जीवन तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, आशा.’

लेकिन मैँ वहां रुकी नहीं. मैं ने पीछे मुड़ कर उसे देखा भी नहीं. और घर चली आई.बाद में मेरे न मिलने को शायद वह अपनी हार समझ बैठा और उस ने मुझ से किनारा कर लिया. विजया ने बताया था कि वह पुणे चला गया. फिर मेरी शादी मेरी पसंद के लंबे, गोरे और चश्मा न पहनने वाले इंजीनियर रमेश से हुई, जिस ने इतने वर्षों में अपनी ज्यादातर कमाई जुआ और शेयर मार्केट में उड़ा दी और शराबसिगरेट का तो वह शुरू से ही आदी था. यह बात मैँ उस से शादी करने से पहले जान गई थी लेकिन उस के बाह्य रंगरूप पर मैँ फिदा थी.

रमेश के लिए भी मैँ ‘खास’ कभी नहीं रही. नशे में कई बार मुझ पर उस का हाथ भी उठ जाता था और साथ में गालीगलौज की बौछार करता था. हर रोज शराब पीना ही उस के लिए दिल के दौरे का कारण बना. बाहरी रूपरंग देख कर मैं ने उसे पसंद किया, जो गलत था.

आज रमेश भी भद्दी शक्लवाला और मोटा है. मोटे शीशे का चश्मा भी पहनता है. क्या मिला मुझे? हां, अपने मातापिता और परिवारजनों की चिंता करना, उन के सुखदुख के समय उन के साथ खड़े होना, जितनी बन पड़ें उतनी उन की सहायता करना…यह गुण रमेश में भी है. आशीष को तो मैं ने इसी गुण की वजह से छोड़ दिया था. कितनी नासमझ और नादान थी मैँ, इतने अच्छे गुण को मैं ने दोष समझा.

लेकिन अब रमेश जो भी है, मेरा वर्तमान है. मैँ, कुछ भी हो, उस की शराब की आदत तो छुड़वा कर ही रहूंगी. डा. आशीष भट्ट ने भी यही कहा है. मेरे लिए आज आशीष की सलाह सिरआंखों पर है. मन ही मन अपनेआप को ये सब सूचनाएं देती हुई रजनी उठी और थोड़ी दूर खड़ी अनुपमा के पास जा कर बोली-

“दीदी, मुझे जल्दी रमेश जी के पास ले चलिए, डाक्टर साहब ने मिलने की परमिशन तो दी है न, दीदी?”

रजनी ने पास खड़ी अनुपमा का हाथ पकड़ा और दोनों बहनें अब उस वार्ड की तरफ चल दीं जहां रमेश को शिफ्ट किया गया था. रजनी अब सोच रही थी कि आशीष ने उस से दिल से प्यार किया था. तभी तो उस ने गुजरात छोड़ कर यहां कानपुर में अस्पताल खोला और नाम तो उस ने पहले ही बता दिया था- ‘आशा नर्सिग होम’.

अब आशा उर्फ रजनी को डा. आशीष भट्ट से मिलने की या उस के बारे में ज्यादा जानने की जरूरत नहीं थी. आशीष ने शादी की या नहीं, उस की पत्नी क्या करती है, उस का नाम क्या… इन सब से अब वह अलिप्त रहना चाहती थी. आशीष अब उस का बीता हुआ कल था.

दूसरी शादी: कैसे एक हुई विनोद बाबू और मंजुला की राहें

साधारण कदकाठी के विनोद बाबू पहले जैसेतैसे रहते थे, लेकिन दूसरी शादी के बाद वे सलीके से कपड़े वगैरह पहनने लगे थे. वे चेहरे की बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ीमूंछ को क्लीन शेव में बदल चुके थे. उन की आंखों पर खूबसूरत फ्रेम का चश्मा भी चढ़ गया था. इतना ही नहीं, सिर के खिचड़ी बालों को भी वे समयसमय पर डाई करवाना नहीं भूलते थे.

वैसे तो विनोद बाबू की उम्र 48 के करीब पहुंच गई थी, लेकिन जब से उन की मंजुला से दूसरी शादी हुई थी, तब से वे सजसंवर कर रहने लगे थे. इस का सुखद नतीजा यह हुआ है कि वे अब 38 साल के आसपास दिखने लगे थे.

इसी साल नवरात्र के बाद अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में विनोद बाबू मंजुला से कोर्ट मैरिज कर चुके थे. तब से उन की जिंदगी में अलग ही बदलाव दिखने लगा था. पहले वे छुट्टी के बाद भी किसी बहाने देर तक अपने स्कूल में जमे रहने की कोशिश करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं था.

अभी शाम के साढ़े 4 बज रहे थे. विनोद बाबू अपनी बाइक खड़ी कर के घर में कदम रख चुके थे. वे फ्रैश होने के बाद खुद को तरोताजा महसूस करने लगे थे. मंजुला घर की छोटीमोटी चीजों को सहेजने में लगी हुई थी. बेटाबेटी ट्यूशन पढ़ने गए हुए थे.

मंजुला को अकेली देख कर विनोद बाबू ने उन्हें पकड़ कर अपनी गोद में बैठाने की कोशिश की.

मंजुला बनावटी गुस्सा जाहिर करते हुए बोली, ‘‘मम्मीजी अपने कमरे में ही हैं. आप की आवाज सुन कर इधर आ जाएंगी.’’

‘‘मैं अपनी मां को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. हम दोनों के रहते वे इस कमरे में कभी नहीं आएंगी…’’ इतना कह कर वे मंजुला को अपनी बांहों में भर कर प्यार करने लगे.

तभी सासू मां ने बहू को आवाज लगाई. मंजुला खुद को छुड़ाते हुए अपनी सासू मां के कमरे की तरफ चली गई.

सासू मां ने मंजुला से कहा, ‘‘बहू, चाय बना दो.’’

मंजुला ने हां कह दी. वैसे उन्हें पता है कि सास को शाम के समय अपने पड़ोसियों के घर आनेजाने की पुरानी आदत है. जब तक वे 2-4 लोगों से जी भर कर बातें नहीं कर लेती हैं, उन का मन ही नहीं लगता है.

मंजुला नीले रंग की साड़ी में काफी खूबसूरत लग रही थी. उस ने अपने होंठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी. लंबे और खुले बाल उस की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे.

सासू मां के कमरे से लौटने के बाद मंजुला ने विनोद बाबू से कहा, ‘‘आप स्कूल से थक कर आए हैं. थोड़ी देर आराम कर लीजिए. मैं आप के लिए भी चाय बना कर ला रही हूं.’’

मंजुला ने कुछ दिन में ही घर की रंगत ही बदल डाली थी. विनोद बाबू की पहली बीवी रजनी कैंसर के चलते गुजर गई थीं. तकरीबन 6 महीने तक कैंसर अस्पताल में भागदौड़ कर अपनी बीवी की वे समयसमय पर कीमोथैरेपी कराते रहे थे. वे इधरउधर से पैसे जुटा कर पानी की तरह बहा चुके थे, लेकिन आखिरी बार हुई कीमोथैरेपी के बाद दस्त और उलटी इतनी ज्यादा बढ़ गई थीं कि वे इन्हें अकेला छोड़ कर चली गईं.

रजनी के मौत के बाद विनोद बाबू का घर में रहना मुश्किल हो गया था. वे बेमन से अपने घर में आ पाते थे, वह भी सिर्फ अपने 10 साल के बेटे और बूढ़ी मां के लिए. पर सब्र बुरे से बुरे वक्त का सब से बड़ा मरहम होता है. कई साल गुजर गए थे. पत्नी की मौत के बाद ऐसा लगा था कि विनोद बाबू दोबारा शादी नहीं करेंगे.

जब पूरी दुनिया के साथ अपने देश में कोरोना वायरस की शुरुआत हुई, तो वह सब के लिए आफत ले कर आई थी. विनोद बाबू को कोरोना महामारी के दौरान अपने स्कूल में बने सैंटर में काम करना पड़ा था. वे दूसरे राज्यों से आए हुए लोगों की काफी मुस्तैदी से सेवा में जुटे हुए थे, लेकिन उन्हें वहां ड्यूटी करना महंगा पड़ गया था, क्योंकि वे खुद भी कोविड 19 की चपेट में आ चुके थे.

साथी टीचरों ने एंबुलैंस बुला कर विनोद बाबू को अस्पताल में भरती करवा दिया था. वे कई दिनों से अस्पताल के वार्ड में पड़े हुए थे. घर पर बेटा अर्नव था. उन का छोटा भाई अपने बीवीबच्चों के साथ अलग रह रहा था. विनोद बाबू अपनी मां और बेटे के साथ अलग रहते थे.

विनोद बाबू से 2 दिन पहले इस वार्ड में मंजुला आई थी. सांवले रंग की मंजुला देखने में काफी दुबलीपतली लग रही थी, पर खूबसूरत बहुत थी. रहरह कर उन की नजरें मंजुला की ओर चली ही जा रही थीं.

2 दिन बाद रात में विनोद बाबू की तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ने लगी थी. रात की शिफ्ट में काम करने वाले डाक्टर और नर्स ऊंघ रहे थे. उन्हें भी महामारी के चलते ज्यादा काम करना पड़ रहा था. ज्यादातर मरीज सोए हुए थे.

उस रात मंजुला की तबीयत ठीक थी, लेकिन से नींद नहीं आ रही थी. विनोद बाबू की हालत बिगड़ते देख उस से रहा नहीं गया और वह उन के पास आ गईं.

विनोद बाबू का औक्सीजन लैवल कम हो रहा था. छटपटाते देख वह उन के पास आ कर बोली, ‘‘आप पेट के बल लेट कर लंबीलंबी सांस भरने और छोड़ने की कोशिश कीजिए.’’

मंजुला विनोद बाबू की पीठ सहलाने लगी थी. इस से उन्हें राहत महसूस होने लगी थी. कुछ देर में ही उन का औक्सीजन लैवल सामान्य होने लगा था. उन्होंने मंजुला का शुक्रिया अदा किया था.

एक दिन मंजुला के बगल वाले बिस्तर की अधेड़ औरत मरीज मर गई. उस का बिस्तर अब खाली हो चुका था. वार्ड में दहशत का माहौल बन चुका था, इसीलिए मंजुला को उस रात नींद नहीं आ रही थी.

मंजुला को बेचैन देख कर विनोद बाबू से रहा नहीं गया था. आखिरकार उन्होंने मंजुला से पूछा, ‘‘अगर तुम्हें कोई परेशानी हो रही है, तो मेरे पास वाले खाली बिस्तर पर आ जाओ.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है…’’ मंजुला ने यह कह तो दिया था, पर वह उस दिन काफी डर गई थी.

विनोद बाबू के बारबार कहने पर मंजुला उन के बगल वाले खाली बिस्तर पर आ गई थी.

‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन लोग हैं?’’

‘‘मेरे घर में सास, ससुर, पति के अलावा 7 साल की एक बेटी है.’’

‘‘बेटी तो तुम्हें बहुत याद करती होगी?’’

‘‘पता नहीं याद करती होगी भी या नहीं,’’ यह कह कर मंजुला उदास हो गई थी.

‘‘परिवार वाले भी तुम्हें बहुत मिस कर रहे होंगे?’’ यह सुन कर मंजुला थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं आज तक अपनी बेटी के बाद एक बेटे को जन्म नहीं दे पाई हूं, इसलिए घर के लोग नाखुश हैं. वैसे, मेरे शरीर के अंदर कुछ ऐसी परेशानी आ गई है कि डाक्टर ने साफ कह दिया है कि अब मैं दोबारा मां नहीं बन पाऊंगी.

‘‘मेरी बेटी अपनी दादी के पास रह रही है. वे सब तो चाहते हैं कि मैं मरूं तो मेरे पति को दूसरी शादी करने का मौका मिले, ताकि उन के घर में बेटे का जन्म हो सके.’’

विनोद बाबू हैरानी से मंजुला के चेहरे की ओर देख रहे थे, इसलिए वे कुछ देर तक चुप रही, फिर बोली, ‘‘वैसे, मैं भी अब उन को शादी करने की इजाजत दे देना चाहती हूं.’’

विनोद बाबू को यह सब सुन कर झटका सा लगा था, ‘‘बेटा या बेटी पैदा करना किसी के बस में नहीं होता है. फिर भी आज भी लोग किसी औरत से कैसे उम्मीद रखने लगते हैं कि उन के मन के मुताबिक बेटा या बेटी जनमे.

‘‘21वीं सदी में भी लोगों की सोच नहीं बदल रही है, जबकि आज लड़कियां आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ रही हैं,’’ विनोद बाबू मंजुला को समझाने की कोशिश कर रहे थे.

एकदूसरे के सुखदुख बांटते हुए अस्पताल में दिन बीत रहे थे. जब मंजुला पूरी तरह से ठीक हो गई और डाक्टर ने डिस्चार्ज करने की इजाजत दे दी, तब भी उन के घर से कोई नहीं आया था.

मंजुला के पति अस्पताल में भरती कराने के बाद यह कह कर जा चुके थे, ‘तुम मर भी जाओगी, तो मैं तुम्हें यहां देखने नहीं आऊंगा.’

पति की यही नफरत भरी बातें मंजुला को घर जाने से रोक रही थीं. वैसे, वह भी अपनी सास और पति के रोजरोज के तानों से तंग आ चुकी थी. इधर विनोद बाबू उन्हें घर तक छोड़ने के लिए तैयार थे, लेकिन मंजुला ने उन से कहा, ‘‘आप जाइए. मैं बाद में घर चली जाऊंगी.’’

विनोद बाबू समझ गए तो उन से रहा नहीं गया और बोले, ‘‘चलो, मेरे घर चलो. तुम मेरे घर में पूरी तरह से सुरक्षित रहोगी. तुम्हारी भावनाओं का पूरा खयाल रखा जाएगा.’’

मंजुला जानती थी कि विनोद बाबू के साथ वह वाकई महफूज रहेगी और फिर कुछ सोचते हुए उस ने हां कह दी.

अब मंजुला विनोद बाबू के घर में रहने लगी और इस बात का पता उस के पति और परिवार वालों को चला तो उन के तेवर और सुर बदल गए थे. उन्होंने विनोद बाबू पर मंजुला को बरगलाने का आरोप लगाया था, लेकिन मंजुला अपने फैसले पर अडिग रही थी.

विनोद बाबू के परिवार की मदद से मंजुला अपने पति से तलाक लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल कर चुकी थी. तकरीबन ढाई साल तक केस चलता रहा. जब भी वह अदालत में जाती थी, विनोद बाबू की माताजी उन के साथ रहती थीं.

तकरीबन ढाई साल की भागदौड़ और सामाजिक हिकारत सहने के बाद मंजुला अपने पति से तलाक ले पाई थी. तलाक के अगले दिन यानी दशहरा के बाद अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में कोर्ट में ही मंजुला विनोद बाबू की दूसरी पत्नी बनना स्वीकार कर चुकी थी.

मंजूला को कोर्ट के आदेश के मुताबिक बेटी को भी अपने पास रखने की परमिशन मिल चुकी थी, क्योंकि बेटी भी अपनी मां के साथ ही रहना चाहती थी.

मंजुला अपने सासू मां को चाय पिला चुकी थी. सासू मां चाय पीने के बाद अपनी सहेली के घर जा चुकी थीं. अब मंजुला ट्रे में 2 कप चाय ले कर अपने कमरे में हाजिर थी.

मंजुला ने जैसे ही टेबल पर चाय की ट्रे रखी, विनोद बाबू ने उस के होंठ चूम लिए. वह भी उन के गले लग गई थी. आखिर में उस ने इशारा किया, ‘‘जनाब, चाय ठंडी हो जाएगी.’’

वे दोनों बातें करते हुए चाय पीने लगे थे. मंजुला चाय खत्म कर विनोद बाबू के बगल में आ कर लेट गई थी.

‘‘तुम्हारे साथ बातें करने में ही मेरी सारी थकान मिट जाती है,’’ विनोद बाबू मनुहार करते हुए बोले थे.

मंजुला ने अपना सिर उन के सीने पर रख दिया. सालों बाद उन्हें ऐसी खुशी मिल रही थी.

धीरज कुमार      

धोखेबाज: क्या मनोज को मिल पाया सच्चा प्यार

उस समय बाजार बंद था. सड़कें सुनसान थीं. आसमान नीला था. पेड़ हरे थे. ऐसा मौसम दिल्ली जैसे मैट्रो शहर में कभी किसी ने नहीं देखा था. खैर, ऐसे समय में मनोज को मोबाइल फोन और टैलीविजन से इश्क हो गया था. फेसबुक पर समय ज्यादा ही कट रहा था. और भला कटे भी क्यों न… कमबख्त इश्क जो हो गया था.

एक इश्क लड़की से और दूसरा इश्क मोबाइल फोन से. समझ नहीं आया कि इश्क मोबाइल फोन से हुआ था या मोबाइल वाली लड़की से. हां, शुरुआत बस औपचारिक बातचीत से हुई थी. धीरेधीरे वह भी खुलने लग गई और मनोज भी. उस की प्यारभरी बातें मनोज को अपनी तरफ खींचती चली जा रही थीं.

हां, फ्रैंड रिक्वैस्ट उस ने ही मनोज को भेजी थी. मनोज ने फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार करने से पहले उस का प्रोफाइल देखा था. फोटो उस का भारतीय लड़की के जैसा था. उस के बाल और आंखें विदेशी जैसी थीं. भूरे बाल और नीली आंखें.

उस ने अपने प्रोफाइल फोटो में नीली जींस और सफेद टीशर्ट पहन रखी थी. फोटो में देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह तकरीबन 5 फुट, 7 इंच ऊंची होगी. उम्र 30-35 साल के आसपास की होगी.

मनोज द्वारा फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार करते ही उस ने मैसेज भेजा था, ‘हैलो, गुड मौर्निंग डियर…’

‘डियर’ शब्द से संबोधित करने पर मनोज बड़ा खुश हुआ.

‘हैलो, गुड मौर्निंग…’ मनोज ने भी जवाब दिया.

फिर उस का दूसरा मैसेज आया, ‘आप कैसे हो डियर?’

‘मैं ठीक हूं. आप कैसी हैं?’

‘मैं ठीक हूं. अपने काम में बिजी हूं…’ फिर तुरंत उस ने एक लंबा खतनुमा मैसेज इंगलिश में भेज दिया, ‘मेरा नाम जेसिका छोटू दुबे है. मैं आधी भारतीय हूं  और आधी अंगरेज हूं, क्योंकि मेरी मां दिल्ली से थीं और मेरे पिता इंगलैंड से. मैं ने फेसबुक पर आप का प्रोफाइल देखा और मैं ने आप को अपना दोस्त बनाने के लिए एक मैसेज भेजने का फैसला किया, क्योंकि मैं भारत में किसी को नहीं जानती.

‘मैं अभी अगले महीने भारत की यात्रा का प्लान कर रही हूं. मैं भारत पहली बार आ रही हूं… मुझे ऐसा लगता है कि अपनी मातृभूमि में आ कर मुझे बहुत खुशी होगी…’

मनोज को इतनी इंगलिश आती थी, इसलिए उस ने जवाब दिया, ‘मैं दिल्ली में रहता हूं. दिल्ली बहुत ही खूबसूरत जगह है. यहां कई सैलानी घूमने आते हैं. मैं एक आटोमोबाइल कंपनी में मशीन औपरेटर हूं…’

‘आप मुझे अपना ह्वाट्सएप नंबर भेजें, हम ह्वाट्सएप पर और बात करते हैं…’

मनोज ने अपना ह्वाट्सएप नंबर तुरंत भेज दिया. तुरंत ही जेसिका का जवाब भी आ गया.

नंबर विदेश का ही था. अब मनोज को पूरा यकीन हो चुका था कि वह किसी विदेशी लड़की से बात कर रहा है.

फिर रात हुई और फिर सुबह. इस बीच मनोज का कई बार जेसिका से बात करने का मन हुआ, पर वह उसे औनलाइन नहीं मिली.

मगर थोड़ी देर बाद जेसिका का मैसेज मिला, ‘मैं चाहती हूं कि आप मुझे बेहतर तरीके से जानें… मैं ने शादी नहीं की… मैं लंदन में रहती हूं… मैं फिलहाल ब्रिटिश पैट्रोलियम के एक समुद्र तटीय इलाके में नर्स के रूप में काम करती हूं. मेरे कहने का मतलब है कि मैं एक नर्स हूं, लेकिन मैं 32 साल की हूं. मैं ने अपनी मां को तब खो दिया था, जब मैं 10 साल की थी.

‘मैं ने 6 महीने की छुट्टी ले ली है. मैं अगले महीने भारत की यात्रा करने की योजना बना रही हूं. यह मेरी पहली यात्रा होगी और मैं बहुत सारी मस्ती करना चाहती हूं. मैं चाहती हूं कि आप अगले मैसेज में अपने बारे में बताएं, ताकि हम एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें…’

मनोज ने भी तुरंत मैसेज किया, ‘आप ने मुझे अपने बारे में इतना कुछ बता कर यह साबित किया है कि आप दिल की साफ और नेकदिल इनसान हैं. अमूमन लोग इतनी जल्दी इतना प्यार किसी को नहीं करते. मैं आप का इंतजार करूंगा…’

इस के बाद जेसिका का कोई मैसेज नहीं आया. लेकिन अगले दिन सुबह मनोज ने जेसिका का मैसेज देखा.

‘डियर, शायद मेरी नौकरी के चलते कोई भी मर्द हमेशा घर से दूर रहने वाली लड़की के साथ नहीं रहना चाहेगा, शायद इसलिए कि जब मैं छोटी थी, तो मर्दों के साथ मेरा अनुभव अच्छा नहीं था.

‘मैं बहुत धार्मिक नहीं हूं, क्योंकि मैं नियमित रूप से प्रार्थना में शामिल नहीं होती हूं. मैं ग्रेटर लंदन में केसिंगटन स्क्वायर में रहती हूं. आप बेझिझक

मुझ से कुछ भी पूछें और मैं आप को जवाब दूंगी..’

‘‘मैं एक कंपनी में सीएनसी औपरेटर हूं. बहुत थकाऊ और बोरिंग काम है. पूरे 8 घंटे मशीन के सामने मशीन बन कर खड़ा रहता हूं. पर मेरी मजबूरी है कि मैं यह सब करता हूं. अच्छी नौकरी की तलाश में हूं. मैं यह भी जानता हूं कि ऐसे उबाऊ काम करने वाले से कोई दोस्ती नहीं करेगा.

‘हां, फिलहाल आराम फरमा रहा हूं और लौकडाउन के खुलने का इंतजार कर रहा हूं. आप के मैसेज बहुत लेट आते हैं. मुझे आप के जवाब का बेसब्री से इंतजार रहता है,’ मनोज ने जवाब दे दिया.

‘लगता है कि आप अच्छा समय बिता रहे हैं. मैं फेसबुक पर नई हूं, लेकिन मेरी उम्मीद बहुत ज्यादा है. तुम एक अच्छे और सभ्य आदमी की तरह लग रहे हो और मैं इसे थोड़ा और आगे ले जाना पसंद करूंगी. यह भारत की मेरी पहली यात्रा है और मैं इसे ले कर बहुत उत्साहित हूं. मैं अभी तक भारत में किसी को नहीं जानती हूं…’

‘आप भारत कब आ रही हैं? अब आप से मिलने का बहुत मन कर रहा है और आप के साथ बैठ कर बहुत सारी बात करने का भी. भारत बहुत बड़ा देश है. यहां घूमने की कई जगहें हैं.

‘मुझे लगता है कि आप किसी सच्चे जीवनसाथी का इंतजार कर रही हैं. मैं दुआ करता हूं कि आप को जल्द ही सच्चा जीवनसाथी मिले…’

इस मैसेज के बाद काफी लंबे समय तक जेसिका का कोई मैसेज नहीं आया. मतलब, चौथे दिन उस ने मैसेज किया, ‘जानेमन, आज तुम कैसे हो? मैं कुछ दिनों से बहुत बिजी हो गई हूं. जैसा कि मैं ने आप से पहले कहा था कि मैं अपनी बुकिंग करने में बिजी हूं और मैं 28 अक्तूबर को उड़ान भरूंगी. मैं उस समय को ले कर बहुत खुश हूं, जो हम एकसाथ बिताने जा रहे हैं.

‘मैं आज खरीदारी के लिए भी गई थी. मैं ने आप के लिए भी बहुत सी चीजें खरीदी हैं. मैं रवाना होने से पहले आप को कुरियर से वह सब सामान भेजूंगी, इसलिए मुझे अपना पूरा नाम, मोबाइल नंबर और पता भेजें, जहां आप पैकेट रिसीव करना चाहते हैं.’

‘ओह, मैं पहले इतना खुश कभी नहीं हुआ था. न जाने क्यों मैं घबरा भी रहा हूं. ठीक वैसे ही जैसे प्यार की पहली मुलाकात में लोग घबराते, शरमाते हैं. क्य तुम भी ऐसा महसूस कर रही हो? और मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है. बस तुम आ रही हो, इस से बड़ी खुशी की कोई बात नहीं.’

‘मना मत करो प्लीज. गिफ्ट तो तुम्हें लेना ही होगा जानेमन,’ इतना मैसेज लिख कर जेसिका ने मैसेज में एक चुम्मा भी भेज दिया.

मनोज खुश हुआ, पर साथ ही मैसेज किया, ‘मुझे बस एक बात का डर है. यहां कोरोना फैला हुआ है. इस वजह से यहां घूमनाफिरना बहुत ही मुश्किल है. विदेश से आने के बाद आप को भी

14 दिनों के लिए क्वारंटीन रहना होगा. दिल्ली में होटल मिलना भी मुश्किल होगा, लेकिन हम दोनों साथ रहने की कोशिश करेंगे. वैसे, मैं एक पता भेज रहा हूं…’ फिर मनोज ने अपना किराए के घर का पता जेसिका को भेज दिया.

‘मैं ने जो पैकेट भेजा है, उस में सफेद धारियों के बैग के अंदर 2,00,000 पाउंड, लैपटौप, सोने की कलाई घड़ी, डिजाइनर परफ्यूम, एप्पल आईफोन है. दूसरे बैग में मैं ने कुछ अपना सामान भी रख दिया है, ताकि जब मैं आऊं तो मेरा सामान कम हो.’

इतने सारे गिफ्ट और पैसे के बारे में जान कर मनोज को लग रहा था कि अब उस की गरीबी दूर हो जाएगी. हमेशा के लिए सड़ी सी नौकरी से उसे छुटकारा मिल जाएगा.

अपनी बात को पुख्ता करने के लिए मनोज ने जेसिका को लिखा, ‘लव, क्या तुम मुझे कुरियर की परची और पैकेट का फोटो भेज सकती हो, ताकि मुझे सामान लेने में आसानी रहे…’

‘आप मेरे लिए एक अद्भुत इनसान साबित हुए हैं. 2,00,000 पाउंड मेरे आने से पहले कार खरीदने और पंजीकरण करने में आप की मदद करने के लिए हैं.

‘मैं आने से पहले आप को कार के लिए कागजी कार्यवाही करने में सक्षम मानती हूं, तो मैं सफेद धारियों वाले बैग के अंदर अपने पासपोर्ट और इंटरनैशनल ड्राइविंग लाइसैंस की एक फोटोकौपी भी भेज रही हूं.

‘पैसे का कोई पता न लगा सके, इसलिए सामान के अंदर अच्छी तरह छिपा कर रखा है. मुझे इसे इस तरह से करना था, ताकि यह सुरक्षित रहे. जैसे ही आप कुरियर सेवा से पैकेट लेते हैं, कृपया मुझे बताएं. मैं अभी समुद्र तटीय इलाके में हूं.’

अगले दिन ही जेसिका ने मनोज को सामान का बैग और कुरियर परची का फोटो भेज दिया.

मनोज ने कुरियर की परची को ध्यान से पढ़ा था. उस में पूरा पता और लंदन का पता भी लिखा था. काला सा बड़ा बैग था. बैग के ऊपर भी कुरियर की परची चिपकी हुई थी.

अगले दिन फिर सुबह जेसिका का मैसेज मिला, ‘तुम्हें 3 दिन बाद ही बैग मिल जाएगा.’

सच में 3 दिन बाद ही एक फोन आया, ‘क्या आप मनोज बोल रहे हैं?’

‘‘जी, मैं मनोज बोल रहा हूं.’’

‘जी, आप का एक कुरियर लंदन से आया है. क्या यह कुरियर आप ही का है?’

‘‘जी, मेरा ही है.’’

‘क्या आप इस कुरियर को लेना चाहते हैं?’

‘‘जी हां, लेना चाहता हूं.’’

‘35,000 रुपए डिपौजिट करने पर यह कुरियर आप को पहुंचा दिया जाएगा.’

‘‘जी, वह क्यों?’’

‘सर, विदेश से आए कुरियर सरकारी टैक्स जमा करने के बाद ही मिलते हैं.’

यह सुनते ही मनोज को पसीना आना शुरू हो गया. इतनी बड़ी रकम उस के पास थी ही नहीं.

‘क्या आप अभी पैसे डिपौजिट कर रहे हैं? नहीं तो यह एक दिन बाद वापस चला जाएगा…’

‘‘मैं आप को बताता हूं,’’ इतना कह कर मनोज सोच में पड़ गया. सच कहें, तो उस के अकाउंट में 35,000 रुपए थे ही नहीं. अगर ये पैसे होते, तो शायद वह इन पैसों को अब तक दे देता. अमूमन जैसे लड़के प्यार के लिए कुछ भी कर देते हैं, मनोज ने ऐसा कुछ नहीं किया.

मनोज को पहली बार उसी शाम जेसिका का फोन आ गया. मनोज फोन उठाने के पहले सोच रहा था कि वह इंगलिश में बात करेगी. उस ने इंगलिश में कहा, ‘क्या तुम्हें गिफ्ट मिल गया है?’

मनोज उस की आवाज को पहली बार सुन रहा था. बहुत ही प्यारी, सुरीली, मीठी आवाज थी.

मनोज ने जवाब दिया, ‘‘मेरे पास 35,000 रुपए नहीं हैं.’’

‘कोई नहीं, तुम किसी से ले कर दे दो. बैग में बहुत पैसे हैं. इसे पाते ही तुम्हारी सारी तकलीफ दूर हो जाएगी.’

‘‘एक काम करो, तुम अभी मेरे अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर दो. मैं जा कर गिफ्ट ले लूंगा.’’

‘ओह डियर, अभी मैं समुद्र के किनारे हूं. जब मैं मैदानी इलाके में जाऊंगी, तो तुम्हें पैसे ट्रांसफर कर दूंगी. अभी तो तुम वहीं किसी से पैसे ले कर गिफ्ट ले लो. उस में बहुत सारे पैसे हैं.’

मनोज किसी भी तरह से जेसिका की बात को मान नहीं रहा था. वह हर तरह से उसे समझाने की कोशिश कर रही थी. धीरेधीरे वह गंभीर होने लगी. उस की प्यारी, मीठी, सुरीली आवाज कड़वी और भारी हो गई…

‘तुम मुझे धोखेबाज समझ रहे हो…’

‘‘नहीं… नहीं, तुम मुझे गलत समझ रही हो. मेरे मन में कोई ऐसी बात नहीं है.’’

‘तुम मुझे धोखेबाज समझ रहे हो. तुम मुझे धोखा दे रहे हो. तुम प्यार के लायक नहीं हो. मैं गिफ्ट वापस मंगा रही हूं,’ इतना कह कर जेसिका ने तुरंत फोन काट दिया.

उस दिन के बाद जेसिका का फोन कभी नहीं लगा. यहां तक कि वह फेसबुक, मैसेंजर से भी गायब हो गई थी. हां, हो सकता है कि वह नया प्यार ढूंढ़ रही हो, जिस से 35,000 रुपए मिल सकें. जो उसे धोखा न दे. अगर आप को ऐसा कोई मैसेज आए तो बताइएगा.

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