News Story In Hindi: भाषा की आड़ में सियासी जंग

News Story In Hindi: बारिश का मौसम आ गया था. पहाड़ों पर रोजाना पहाड़ खिसकने और लोगों के जाम में फंसने की खबरें आ रही थीं. दिल्ली में हुई जरा सी बारिश से सड़कों पर पानी भरा, तो दिल्ली सरकार की पोलपट्टी खुल गई.

इन सब परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए विजय ने एक शाम अनामिका को कनाट प्लेस के एक कैफे में बुलाया. शाम के 5 बज रहे थे. विजय कैफे में था, जबकि अनामिका को 6 बजे तक आना था. वह बारिश के चलते जाम में फंस गई थी.

विजय ने कहा भी था कि ओला बाइक ले लेना, पर अनामिका ने कार से आना मुनासिब सम झा, तो अब जाम की भेंट चढ़ गई थी.

कैफे बड़ा खूबसूरत था. चूंकि बारिश हो रही थी, तो वहां भीड़ भी अच्छीखासी थी. विजय के सामने की सीट पर एक साउथ इंडियन नौजवान बैठा था. उम्र होगी तकरीबन 26 साल और वह किसी अच्छी कंपनी का मुलाजिम लग रहा था. वह बैरा से टूटीफूटी हिंदी में बात कर रहा था.

विजय चूंकि हरियाणा से था, पर दिल्ली में पलाबढ़ा था, तो उस ने हरियाणवी में उस साउथ इंडियन नौजवान के मजे लेने की नीयत से पूछा, ‘‘छोरे, केरल का सै के?’’

उस साउथ इंडियन को सिर्फ केरल सम झ में आया, तो वह तिलमिला कर बोला, ‘‘मैं केरल नहीं, तमिलनाडु से आई.’’

‘आई’ सुनते ही विजय की हंसी निकल गई और वह बोला, ‘‘आ रै, तू तो छोरी लिकड़ा…’’

उस साउथ इंडियन के कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा, पर वह बोला, ‘‘मैं मलयाली नहीं, तमिल है.’’

‘‘फेर आड़े के धार लेण आया सै…’’ विजय अपनी हंसी रोकते हुए बोला.

‘‘मुझे आप की भाषा नहीं सम झ आती. मेरी हिंदी बड़ी पूअर है. वैरी लिटिल हिंदी जानती,’’ उस नौजवान ने जवाब दिया.

‘‘या हिंदी ना सै झकोई, हरियाणवी सै,’’ विजय ने फिर मजे लिए.

‘‘सर, मेरी सम झ में कुछ नहीं आती… आप क्या बोलती…’’ वह नौजवान परेशान हो कर बोला.

‘‘मैं बोलती कि तू भैंस की पूंछ सै. खाग्गड़ का खाग्गड़ हो ग्या, पर ‘बोलता’ को ‘बोलती’ बोल्लण तै बाज नी आंदा,’’ विजय ने फिर चुटकी ली.

‘‘फ्रैंड, मैं यहां कौफी पीने आई. क्या आप भी कौफी लेंगी?’’ उस नौजवान ने खी झ कर पूछा.

‘‘अरे, नहीं फ्रैंड, मैं बस मजाक कर रहा था. मेरी गर्लफ्रैंड आने वाली है. हमारी कौफी डेट है. आप भी हमें जौइन करें. मु झे बड़ी खुशी होगी,’’ विजय अब मजाक के मूड में नहीं था.

उस नौजवान को काफीकुछ सम झ में आया और वह लंबी सांस लेते हुए बोला, ‘‘आप ने तो मुझे डरा दिया था. मैं जरूर आप के साथ कौफी लेगी.’’

‘‘मेरे भाई, ‘लेगी’ नहीं ‘लूंगा’ बोलो…’’ विजय ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम विजय है और आप का क्या नाम है?’’

‘‘आप मु झे सुंदरम कह सकते हैं,’’ वह नौजवान हाथ मिलाते हुए बोला.

‘‘और मेरा नाम अनामिका है…’’ तभी पीछे खड़ी अनामिका ने अपना परिचय दिया, ‘‘और विजय, तुम क्यों इन भाई साहब के मजे ले रहे थे. बड़ी हरियाणवी निकल रही थी आज. तुम्हें किसी को उस की भाषा या बोलने के अंदाज पर जज कर के उस का मजाक नहीं बनाना चाहिए.’’

‘‘पर यार, मु झे टाइमपास करना था. सोचा कि इस की ही क्लास ले लूं,’’ विजय ने अनामिका को सफाई दी.

‘‘पर तुम यह देखो न कि हम तीनों यहां एक टेबल पर बैठे हैं, फिर भी 3 अलगअलग भाषाओं तमिल, हरियाणवी और भोजपुरी को जानते हुए कितने अपनेपन से बात या संवाद करने की कोशिश कर रहे हैं,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘यह तो सच है. अच्छा, यह बताओ कि कौन सी कौफी लोगी? और आप तमिल भाई साहब… माफ करना सुंदरम भाई साहब, कौन सी कौफी लेना पसंद करेंगे?’’ विजय बोला.

‘‘मैं फिल्टर कौफी लेगी. मु झे वही पसंद है,’’ सुंदरम ने धीरे से कहा.

‘‘पर यहां तो कौफी की कई वैराइटी हैं. आज आप कुछ नया ट्राई करो,’’ अनामिका बोली.

‘‘नया क्या?’’ सुंदरम ने पूछा, ‘‘हम तो फिल्टर कौफी ही पीते हैं.’’

‘‘ऐस्प्रैसो, कैप्पुचीनो, लैटे, अमेरिकनो, फ्लैट ह्वाइट, मोचा, फ्रैपुचीनो, मैकियाटो, कौफी क्रेमा, लुंगो…’’ अभी अनामिका ने इतना ही कहा था कि सुंदरम ने बीच में ही रोकते हुए कहा, ‘‘बस, मैं सम झ गई. जो आप को पसंद, वही मैं लेती.’’

‘‘मैं भी वही लेती,’’ विजय ने इतना कहा, तो अनामिका ने भी ठहाका लगाया. सुंदरम सम झ गया कि उस ने फिर गलत हिंदी बोली है.

अनामिका ने बैरा को बुला कर 3 कैप्पुचीनो का और्डर दिया और साथ में 3 वैज सैंडविच भी मंगाए.

‘‘जब तुम ने तमिल, हरियाणवी और भोजपुरी वाली बात कही, तो मेरे दिमाग में ‘त्रिभाषा फार्मूला’ वाला मामला याद आ गया. आजकल यह मुद्दा बहुत ज्यादा गरम है. इस पर सरकार और विपक्ष आमनेसामने है,’’ विजय ने अनामिका से कहा.

‘‘यह बड़ा पेचीदा मामला है. जब हम किसी भाषा की बात करते हैं, तो यह सोचना चाहिए कि उस के बोलने और सम झने वालों की तादाद कितनी है. अब संस्कृतनिष्ठ हिंदी की ही बात करें, तो यह आज के जमाने में किस काम की है, यह मेरी सम झ से परे है’’ अनामिका बोली.

‘‘मैं तुम्हारा मतलब नहीं सम झा?’’ विजय ने कौफी का सिप लेते हुए कहा.

‘‘राष्ट्र के उत्थान के पश्चात हम विश्वव्यापी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेंगे एवं समग्र मनुष्य जाति से निवेदन करेंगे कि सन्मार्ग पर चलना ही एकमेव उद्देश्य रहे,’’ जब अनामिका ने इतनी भारीभरकम हिंदी पेश की, तो विजय के साथसाथ सुंदरम की भी आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘अनामिका, मु झे नहीं पता था कि हिंदी का यह रूप भी है. लेकिन ऐसे मुश्किल शब्दों का क्या फायदा, जो सम झ में ही न आएं. और वैसे भी भाषा को ले कर जो झगड़ा महाराष्ट्र में चल रहा है, वह तो और भी डरा देने वाला है. सारे सियासी दल इसे भुना रहे हैं और पिस रही है बेचारी आम जनता,’’ विजय ने कहा.

‘‘तुम सही कह रहे हो. वहां तो मराठी और हिंदी वालों में इतनी ज्यादा ठन गई है कि लोग एकदूसरे से मारपीट करने लगे हैं.

‘‘बीते दिनों मराठी में बात नहीं करने पर एक फूड स्टौल मालिक को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के एक नेता अविनाश जाधव ने थप्पड़ मारा था. इस घटना के विरोध में व्यापारियों के प्रदर्शन के जवाब में ठाणे में आयोजित की जाने वाली रैली से पहले मनसे के नेता आविनाश जाधव को पुलिस ने हिरासत में ले लिया,’’ अनामिका ने बताया.

‘‘महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी भाषा विवाद पर एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने साफ किया है कि भाषा के नाम पर किसी भी तरह की गुंडागर्दी बरदाश्त नहीं की जाएगी. भाषा के आधार पर मारपीट करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी ऐक्शन लिया जाएगा,’’ विजय ने बात को आगे बढ़ाया.

‘‘मुझे ऐसा लगता है कि ‘त्रिभाषा फार्मूला’ के नाम पर भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में हिंदी के साथसाथ संस्कृत भाषा को भी थोपना चाहती है. साथ ही यह बात भी बड़ी अहम है कि जो भी लोग नई शिक्षा नीति बना रहे हैं, वे खुद अंगरेजी बोलने वाले हैं और इसी भाषा में पढ़ेलिखे हैं.

‘‘ऐसे लोग हिंदी या दूसरी तमाम भारतीय भाषाएं बोलने वालों को अपने से कमतर सम झते हैं. उन्हें तो हर उस गरीब और वंचित से दिक्कत है, जो सरकारी स्कूल में पढ़ कर आगे बढ़ने की सोच रहा है. आसान शब्दों में कहूं, तो यह दलितों को पढ़ाई से दूर रखने की साजिश है.

‘‘ऐसा ही कुछ अमेरिका में भी हो रहा है. वहां के गोरे लोग नस्ल के आधार पर दूसरों को सरकार द्वारा चलने वाले स्कूलों में पढ़ते देख ज्यादा खुश नहीं हैं. वे अपने बच्चों को उन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने भेज रहे हैं, जहां की फीस बहुत ज्यादा है. डोनाल्ड ट्रंप की सरकार आने के बाद यह नस्लीय भेद खुल कर सामने आ रहा है,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘तुम सही कह रही हो. हमारे यहां भी कुछकुछ वैसा ही माहौल बनाया जा रहा है. यहां जो भाषा का विवाद है, वहां हिंदी को प्रमोट करने की राजनीतिक चाल लगती है. जब हर जगह हिंदी पढ़ना जरूरी हो जाएगा, तब हिंदी भाषा से जुड़े रोजगार भी बढ़ेंगे और सरकारी नौकरियां भी निकालनी पड़ेंगी.

‘‘सरकारी दफ्तरों में ही देख लो. जब से अंगरेजी सरकारी दस्तावेजों का हिंदी में अनुवाद का काम शुरू हुआ है, तब से राजभाषा विभाग भी बना दिए हैं, पर वहां जो शब्दश: अनुवाद होता है, वह हिंदी किसी काम की नहीं है. लोग अंगरेजी में ही ज्यादा सहज महसूस करते हैं,’’ विजय ने अपनी बात रखी.

सुंदरम को ज्यादा तो कुछ सम झ नहीं आ रहा था, पर उस ने महाराष्ट्र वाली खबरें पढ़ी थीं और तमिलनाडु में भी इसी विवाद पर सुना था. उसे इस बात की खुशी थी कि विजय और अनामिका इस मुद्दे पर बहुत अच्छी बहस कर रहे थे.

हुआ यह है कि केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को समग्र शिक्षा योजना के तहत मिलने वाला पैसा देने से मना कर दिया है. केंद्र का कहना है कि तमिलनाडु ने नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लागू करने से इनकार कर दिया है. इसी वजह से राज्य को समग्र शिक्षा योजना का फंड नहीं दिया जा रहा है.

इस मसले पर तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर कहा था कि केंद्र सरकार ने अब तक 2,152 करोड़ रुपए जारी नहीं किए हैं. शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए इस फंड की जरूरत है.

एमके स्टालिन ने यह भी कहा था कि हिंदी सिर्फ मुखौटा है और केंद्र सरकार की असली मंशा संस्कृत थोपने की है. उन्होंने कहा कि हिंदी के चलते उत्तर भारत में अवधी, बृज जैसी कई बोलियां खत्म हो गईं.

राजस्थान का उदाहरण देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार वहां उर्दू को हटा कर संस्कृत थोपने की कोशिश कर रही है. दूसरे राज्यों में भी ऐसा होगा, इसलिए तमिलनाडु इस का विरोध कर रहा है.

‘‘किस सोच में पड़ गए सुंदरम? लगता है तुम्हें हमारी बहस सम झ नहीं आई, जो इतने चुप हो?’’ विजय ने पूछा.

‘‘मुझे अच्छा लगा. भले ही मेरी टूटीफूटी हिंदी है, पर आज इसी से मु झे आप जैसे फ्रैंड मिले हैं,’’ सुंदरम ने कहा.

‘‘अरे, एक ही मीटिंग में तुम्हारी हिंदी सुधर गई. हमारे साथ रहोगे तो हरियाणवी और भोजपुरी भी सीख जाओगे,’’ विजय ने कहा, तो वे तीनों हंसने लगे. News Story In Hindi

Story In Hindi: नाच

Story In Hindi: रोमिला को बैंक में काउंटर के पीछे बैठे और मुस्तैदी से अपना काम करते हुए जवान क्लर्क लड़केलड़कियां बड़े अच्छे लगते थे, इसलिए वह भी इन लोगों की तरह बैंक की सरकारी नौकरी ही पाना चाहती थी, पर बैंक पीओ के इम्तिहान में 2 बार नाकाम रहने के बाद से रोमिला का मनोबल बुरी तरह से टूट गया था और वह डिप्रैशन में रहने लगी.

रोमिला 25 साल की युवती थी. उस ने बीकौम करने के बाद बैंकिंग इम्तिहानों की तैयारी शुरू कर दी थी, क्योंकि आगे चल कर वह बैंकिंग में ही अपना कैरियर बनाना चाहती थी.

रोमिला को लग रहा था कि अब उसे कभी भी बैंक की सरकारी नौकरी नहीं मिल पाएगी, क्योंकि प्रतियोगी परीक्षाओं में कंपीटिशन हद से ज्यादा बढ़ गया था.

रोमिला एक ठाकुर परिवार से थी और उस के पापा निरंजन सिंह भी चाहते थे कि रोमिला जल्द से जल्द बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर ले, पर बेटी के बारबार नाकाम होने के चलते वे सरकारी नौकरी में जातिगत रिजर्वेशन के सख्त खिलाफ थे. उन्हें लगता था कि अगर पिछड़ी जाति के लड़केलड़कियों को नौकरी में रिजर्वेशन नहीं दिया जाता, तो रोमिला का चयन कब का हो जाता.

समयसमय पर निरंजन सिंह अपनी बेटी रोमिला का हौसला भी बढ़ाते रहते थे, पर इस बार रोमिला के नाकाम रहने पर उस का दुख उन से देखा नहीं गया, तो वे अपने सब से करीबी दोस्त और शहर के बड़े नामी वकील अनिल सिसौदिया के पास गए और उन से रोमिला की हालत को बताया और उपाय पूछा कि रोमिला का सरकारी नौकरी में सैलेक्शन कैसे हो? इस के लिए वे कितने भी पैसे खर्च कर सकते हैं.

अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को बताया कि सरकारी नौकरी पाना जितना मुश्किल है, उतना ही आसान भी.

अनिल सिसौदिया की इस बात पर निरंजन सिंह खी झ गए और बोले, ‘‘इतना ही आसान होता तो मेरी काबिल लड़की नौकरी पा गई होती.’’

वकील अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को बताया कि उन की बेटी अगर सवर्ण होने के नाते नौकरी नहीं पा रही है, तो उपाय बहुत आसान भी है.

‘‘क्या उपाय है?’’ निरंजन सिंह सरकारी नौकरी पाने का उपाय सुनने को बेताब हो रहे थे.

अनिल सिसौदिया ने बताया कि वे अपनी लड़की की शादी किसी दलित जाति के सीधेसादे और गरीब लड़के से कर दें, जिस से उन की बेटी का दलित जाति का सर्टिफिकेट बन जाएगा. उस सर्टिफिकेट के चलते जब बेटी को नौकरी मिल जाएगी, तो कुछ दिनों बाद उस की बेटी अपने पति पर जोरजुल्म करने का आरोप लगा कर तलाक ले ले और चुपचाप सरकारी नौकरी का मजा लेती रहे.

वकील अनिल सिसौदिया की बात सुनकर निरंजन सिंह का खून उबाल मारने लगा. उन की कनपटी लाल
हो गई.

‘‘अनिल, तुम पगला गए हो क्या… तुम मेरी बेटी को किसी निचली जाति के लड़के से ब्याहने की बात सोच भी कैसे सकते हो? यह कह कर तुम मेरी बेइज्जती कर रहे हो. इन दलित लोगों के घर में हम भला अपनी बेटी कैसे दे सकते हैं…’’ निरंजन सिंह चीख रहे थे.

वकील अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को पानी पीने को दिया और उन्हें सम झाया कि वे सिर्फ सरकारी नौकरी पाने के लिए किसी गएगुजरे, बेरोजगार और गरीब दलित जाति के लड़के से ब्याह के नाम पर कोर्टमैरिज करने को कह रहे हैं. शादी यहां से कहीं दूर जा कर होगी और आप उस बेरोजगार दलित लड़के को कोई रोजगार दिला देना या अपने पैसों के कर्ज तले दबे देना. हां, थोड़ा आत्मसमान को ठेस तो पहुंचेगी, पर फिर कुछ पाने के लिए थोड़ाबहुत सम झौता तो करना ही पड़ेगा.

निरंजन सिंह का मूड थोड़ा उखड़ा हुआ तो था, पर काफी हद तक बात उन की सम झ में आ गई थी और फिर घर जा कर उन्होंने यह बात रोमिला को बताई.

पहले तो रोमिला ने भी थोड़ी नाराजगी जताई, पर वह हर हाल में सरकारी नौकरी पाना चाहती थी, इसलिए फिर उसे यह प्रस्ताव सही लगने लगा था. एक बार वह बैंक की सरकारी नौकरी पा ले, फिर तो अपने उस दलित पति को तलाक देने में देर नहीं करेगी. इस तरह सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.

‘पर ऐसा लड़का मिलेगा कहां? और फिर हर लड़का शादी के बाद अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाना चाहेगा. ऐसे में अपनी इज्जत को बचाना एक बड़ी चुनौती होगी,’ रोमिला सोच रही थी.

‘हमारे आसपास देखने पर या फिर पिछड़ी बस्तियों में मरियल, लाचार और बेरोजगार दलित लड़का बड़ी आसानी से मिल ही जाता है,’ यह सोच कर निरंजन सिंह को भी बड़ी आसानी से एक लड़का मिल भी गया.

वह 35 साल का मनोज नाम का एक दलित विधुर था. उस के अंदर लड़कियों जैसी हरकतें ज्यादा थीं और वह गांव की नौटंकी में औरत बन कर नाचगाना करता था. मनोज की पत्नी मर चुकी थी.

निरंजन सिंह को लड़कियों जैसी हरकत वाले मनोज से शादी कर देना थोड़ा सुरक्षित महसूस हुआ था और उन्हें यह दलित इतना लाचार लगा कि वह हमेशा उन की बेटी से दब कर ही रहेगा, इसलिए निरंजन सिंह ने मनोज से उस की दोबारा शादी की बात चलाई, तो वह थोड़ा हैरत में पड़ गया.

मनोज अपनी पत्नी के मर जाने के बाद सदमे जैसी हालत में था और शराब की लत लगा बैठा था. वैसे, उस के पास खुद का पेट भरने के लिए भी पैसे तक नहीं थे. ऐसे में भला वह शादी की बात कैसे सोचता?

पर निरंजन सिंह ने गांव के प्रधान को अपनी तरफ कर लिया और अपनी बेटी को अनाथ दिखाते हुए झूठ
बोला कि वे अनाथ लड़कियों की शादी मनोज जैसे विधुर से कराते हैं, ताकि दोनों लोगों का भला हो सके.

प्रधान को निरंजन सिंह की बात में सचाई लगी और वे मनोज को दूसरी शादी के लिए राजी करने लगे. उन्होंने मनोज को भरोसा भी दिलाया कि कोर्ट में शादी करने पर उसे 50,000 रुपए भी मिलेंगे.

रुपयों की बात सुन कर मनोज को ठीक लगा और उस ने दोबारा शादी करने के लिए हां कर दी.

मनोज को शादी से कोई सरोकार नहीं था. उसे तो 50,000 रुपए का लालच था, जो शादी के बाद मिलने वाले थे और वह उन से जम कर शराब पी सकता था.

शहर में कोर्ट में मनोज और रोमिला की शादी करा दी गई. निरंजन सिंह के परिवार को इस तरह बेटी की शादी बड़ी अजीब सी लग रही थी, पर वे लोग जानते थे कि यह सब एक ड्रामा है और कुछ दिनों के बाद नौकरी मिलते ही रोमिला मनोज को लात मार कर वापस आ जाएगी.

रोमिला शादी कर के मनोज के साथ जाते समय थोड़ा घबरा रही थी कि जब मनोज उस के साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहेगा, तो वह क्या करेगी? किसी दलित के साथ रहना या फिर संबंध बनाने की बात तो उस ने सोची तक नहीं थी, पर सरकारी नौकरी के लालच में वह यह सब कर रही थी.

रोमिला को डर सता रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि मनोज उसे दबोच कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगे. अपनी सुरक्षा के लिए उस ने एक चाकू अपनी कमर में छिपा लिया था और मनोज के टूटेफूटे घर जा कर कमरे में एक ओर खड़ी हो गई, पर मनोज ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, बल्कि कमरे में जाते ही शराब के 2 पैग मार कर नींद के आगोश में चला गया.

मनोज के घर पर खाना बनाने के लिए गैस और दूसरा सामान नहीं था. एक गैस कनैक्शन और दूसरे सामान का इंतजाम रोमिला के पापा ने कर दिया था. आखिर कुछ महीने तो रोमिला को यहां काटने थे और अपना शहरी स्टाइल भी छिपा कर रखना था, ताकि लोगों को किसी तरह का शक न हो और जाति प्रमाणपत्र बनने में कोई परेशानी न हो.

कुछ और समय बीता तो रोमिला ने अपना नया जाति प्रमाणपत्र बनवा लिया और बैंक की नौकरी के लिए दलित बन कर आवेदन कर दिया, जहां पर उसे जातिगत रिजर्वेशन मिलना था.

बैंक पीओ का इंतजाम पास था, इसलिए रोमिला जीजान से पढ़ाई करने लगी. कभीकभी तो उसे खाने की सुध भी नहीं रहती थी और वैसे भी उसे इस बार तो अपनी कामयाबी की पूरी उम्मीद थी, क्योंकि उस के पास पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र भी था, पर यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था.

इम्तिहान वाले दिन रोमिला बहुत आशावादी थी, पर प्रश्नपत्र देख कर उस के होश उड़ गए थे. सभी सवाल बेहद मुश्किल थे.

रोमिला सवालों के जवाब नहीं दे पाई और उसे तुरंत आभास हो गया कि यह प्रतियोगिता वह पास नहीं कर पाएगी. और हुआ भी यही. नतीजा आने पर रोमिला का सैलेक्शन नहीं हुआ था और वह रैंकिंग में भी बहुत पीछे रह गई थी.

यह साफ हो गया था कि प्रतियोगी परीक्षा में पास होने के लिए जातिगत रिजर्वेशन से कुछ नहीं होता, बल्कि कामयाबी तो उन्हीं को मिलती है, जो इस के सही हकदार होते हैं.

उस रात अचानक मनोज को तेज बुखार आ गया. जब मनोज से रहा नहीं गया तो उस ने रोमिला को पुकारा और दवा मांगी.

जब रोमिला बुखार की गोली ले कर गई तो मनोज आंखें बंद किए लेटा हुआ था और बड़बड़ा रहा था, ‘‘रमिया… रमिया… छोड़ दो उसे. छोड़ दो रमिया को…’’

रोमिला ने मनोज को उठा कर दवा खिलाई और रमिया के बारे में पूछने लगी.

उस दिन मनोज ने अपने दिल में छिपी हुई बातों का राज उजागर किया, ‘‘रमिया मेरी पत्नी थी. हम दोनों बहुत खुश थे. रमिया लंबी, पतली देह वाली औरत थी उस की साड़ी और चोली के बीच की कमर और गहरी नाभि मु झे बहुत पसंद थी.

‘‘रमिया खाना भी बहुत अच्छा बनाती थी, पर शायद दलित जाति का होना रमिया और मेरे लिए शाप बन
गया था.

‘‘एक दिन की बात है. गांव के ठाकुर और पंडित हमारे घर आए और रमिया पर भरपूर नजर डालते हुए ठाकुर बोले, ‘सुना है तेरी घरवाली मीट बहुत अच्छा बनाती है. चल, आज हम तेरे घर में बैठ कर तेरी पत्नी के हाथ का मीट खाएंगे.’

‘‘बड़ी जाति के लोग एक दलित के घर खाना खाएंगे, यह बात बड़ी अजीब लगी थी, पर हम दोनों को भरोसा हो गया था कि हो सकता है कि बदलते समय के साथ ऊंचनीच का भेदभाव खत्म हो गया हो.

‘‘ठाकुर और पंडित ने अपने साथ लाया हुआ बकरे का मीट रमिया को दे दिया और खुद जा कर खटिया पर बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाने लगे, जबकि रमिया खुशीखुशी अपनी साड़ी को अपनी सांवली कमर में खोंस कर मीट बनाने की तैयारी करने लगी थी.

‘‘तभी ठाकुर ने हम से कहा, ‘तुम नौटंकी में नाचने वाली का रोल बड़ा अच्छा निभाए थे. जरा हम भी तो देखें कि मनोज भैया कैसे नाचे थे…’

‘‘ठाकुर के मुंह से अपने हुनर की तारीफ सुन कर हम खुश हो गए और जल्दी से कमरे में जा कर औरतों का सिंगार कर के और घाघरा और चोली ओढ़ कर आ गए और दोनों के सामने नाच दिखाने लगे और खुद गाना भी गा रहे थे.

‘‘गाते समय हमारी आवाज किसी औरत की तरह ही पतली और सुरीली लग रही थी… गाने के बोल थे, ‘हमार नाम आपन मुंह से बोलो राजाजी, चोली तंग है हमारे जरा हुक तो खोलो राजाजी…’

‘‘रसोई के अंदर रमिया को यह नौटंकी अच्छी नहीं लग रही थी, पर वह चुपचाप मीट बना रही थी. ठाकुर और पंडित की नजर तो रमिया पर थी. वे दोनों रमिया का नाच देखना चाहते थे, इसलिए हमारा नाच रुकवा कर उन्होंने रमिया से नाच दिखाने को कहा.

रमिया ने थोड़ा नानुकुर तो किया पर कुछ देर बाद सामने आ कर कमर हिला कर नाच दिखाने लगी, लेकिन उन दोनों की नीयत खराब थी और उन्होंने जबरदस्ती रमिया के साथ बारीबारी गलत काम किया.

‘‘अपने साथ हुए गलत काम के चलते ही रमिया ने नदी में कूद कर अपनी जान दे दी…’’ यह कहता हुआ मनोज रो रहा था.

रोमिला भी थोड़ा दुखी थी, पर वह कर क्या भी सकती थी. वह तो पहले ही बैंक के इम्तिहान में फेल होने से दुखी थी, क्योंकि उस के सारे प्लान और किएकराए पर पानी फिर गया था. एक दलित से शादी कर के भी उसे कामयाबी नहीं मिल पाई थी.

अगले दिन की बात है. रोमिला नहाने जा रही थी कि तभी दरवाजे पर कुंडी बजने की आवाज हुई.

मनोज ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने गांव के कुछ नई उम्र के बिगड़ैल लड़के खड़े थे. वे गिनती में 5 थे. उन लोगों ने मनोज को धक्का दिया और अंदर आ गए.

रोमिला पर भरपूर नजर डालते हुए एक लड़का बोला, ‘‘तनिक कमर लचका कर हम सब लोगों को नाच तो दिखा दे.’’

उस लड़के की बात का रोमिला ने डरते हुए विरोध किया, तो वे सब उस पर दबाव बनाने लगे और कहने लगे कि यहां तो यही रिवाज है कि दलित औरतें नाचती हैं और लोग मजा लेते हैं और तुम ने तो दलित से शादी कर ली है, इसलिए तुम हमारे सामने नाचोगी. अगर नहीं नाची तो हम सब तुम्हारा रेप करेंगे.

रेप का नाम सुन कर रोमिला सहम गई थी. उस ने सोचा कि रेप होने से अच्छा है कि वह कमर हिला कर नाच ही दे.

तभी एक लड़के ने मोबाइल पर गाना बजा दिया, ‘लहंगा तोहार बड़ा महंगा, बड़ी गरमी बा इस लहंगे मा…’

रोमिला ने अपनी भलाई सम झते हुए नाचना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस ने महसूस किया कि वे शोहदे उसे हवस भरी नजरों से घूर रहे हैं और उस का नाच देखने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है.

रोमिला सोच रही थी कि काश वह जाति प्रमाणपत्र लगा कर नौकरी पाने के चक्कर में न पड़ी होती तो यह सब नहीं करना पड़ता, क्योंकि सरकारी नौकरी मेहनत करने से मिलती है, केवल पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र से कुछ नहीं होता. Story In Hindi

Funny Story In Hindi: अंगूठे से सोचने का जमाना

Funny Story In Hindi: अब तो कैमरे के सामने रोना भी कंटैंट है और हंसना भी रील. अब यूट्यूबर सोचता है कि थंबनेल में अधनंगी लड़की का फोटो डालूं या लाल घेरे में चुडै़ल दिखाऊं? इस नए जमाने का नारा है ‘अंगूठा ही दिमाग’ है. पहले अखबार की हैडलाइन का खौफ हुआ करता था, पर अब तो थंबनेल ऐसे चीखते हैं मानो न्यूक्लियर बटन दब गया हो.

सोशल मीडिया ज्ञान का सागर नहीं, बल्कि गलतफहमियों और धोखेबाजी का महासागर बनता जा रहा है. थंबनेल व क्लिकबेट की दुनिया में ईमानदारी पुराने जमाने का रिकौर्ड प्लेयर है, जिसे अब कोई नहीं चलाता.

थंबनेल गुरुओं के यूट्यूब चैनल अब बेईमानी व झूठ के कोचिंग चैनल जैसे हो गए हैं. बस, थोड़ा चेहरा खींचिए, लाल तीर लगाइए, मुफ्त में झूठ की गुगली फेंकिए. थंबनेल अब नए दौर की ठग कला है. थंबनेल यानी किसी वीडियो या लेख की एक झलक ध्यान खींचने के लिए, जबकि क्लिकबेट एक धोखा देने वाला टाइटिल या थंबनेल, जो आप से वीडियो क्लिक करवा लेता है.

‘मोदीजी का संसद में जोरदार भाषण’ एक थंबनेल. ‘मोदीजी फफकफफक कर रो पडे़’ एक क्लिकबेट. कैसे कंटैंटवीर लोगों को लुभा व झूठ परोस कर उन के समय व डाटा को खा रहे हैं.

बेक्रिंग ‘अभीअभी परमाणु युद्ध शुरू हो गया’ पर वीडियो खोलने पर एक महाशय अपने कुत्ते को नहलाते दिख रहे हैं. इन के कंटैंट में किसी को मूव करने का दम नहीं, तो कैमरा मूव कर कर लोगों को दिखाते हैं.

थंबनेल आज का वह सिक्सर है जो जीरो रन पर आउट होने जैसा है. वहीं क्लिकबेट वह चाय है, जिस में पत्ती नहीं पर उबाल जरूर दिखता है. इस में रसगुल्ला दिखाया जाता है, पर निकलती सूखी मठरी है. खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली हालत.

थंबनेल अब दरवाजे पर रखी एक खूबसूरत जूती की तरह है, पर अंदर जाओ तो असलियत नंगे पांव मिलती है. ये लोग कैमरे से नहीं कनपटी पर क्लिकबेट रख कर वीडियो बनाने में माहिर हैं. इस में कुछ नहीं को सबकुछ की तरह बेचा जाता है.

‘देखिए, मोदीजी की आंखों में आंसू’ और पता चला कि जिस सभा में वे भाषण दे रहे थे, उस इलाके में धूलभरी आंधी चल गई थी. क्लिकबेट यानी जितना बड़ा दावा उतनी छोटी बात. दर्शक गालियां भी देते हैं, पर वीडियो देखना नहीं छोड़ते.

आजकल मुद्दे नहीं मुंह के भाव बिकते हैं. जितना टेढ़ा मुंह उतना वायरल. थंबनेल का दिमागी दीवालियापन देखिए कि फोटो भगत सिंह का लगा है और प्रचवन कोई बाबाजी दे रहे हैं. दोनों हाथों से केला खाने वाली लड़की के वीडियो का टाइटिल होगा ‘इस ने वह कर दिया जो आज तक कोई नहीं, जी हां, कोई नहीं कर पाया’.

ये आज के टैलेंटेड लोग हैं, जो बिना कंटैंट के 20 मिनट का वीडियो थंबनेल व क्लिकबेट के दम पर पेल कर लोगों के समय व चैन से खेल रहे हैं. थंबनेल और पान में कैचअप डालना एकजैसे अपराध हैं.

दूल्हे की महज फोटो देख कर रिश्ता तय करने जैसा ही है अब थंबनेल खोल कर वीडियो को देखना. अब हर वीडियो ब्रेकिंग होता है. ये ब्रेक असल में वीडियो देखने वाले को इस के सडि़यल कैंटेंट के कारण ब्रेक ही कर देते हैं. आज जो सब को पता है उसे गला फाड़फाड़ कर ऐक्सक्लूसिव कहने का चलन है.

ऐक्सपायर्ड चीजें अनूठी बना दी जाती हैं.

अब ज्यादा मेहनत पहले चेहरा बिगाड़ के डर फैलाने के काम में होती है. कंटैंट बनाने का काम बाद में बिना मेहनत के चुटकियों में कर लिया जाता है. अब लोग वीडियो से ज्यादा रिऐक्शन पर रिऐक्शन करते हैं.

जहां बिना शादी के सासबहू के बीच झगडे़ जैसी हालत है.

‘वीडियो को आखिर तक देखिए… आखिरी में होगा बड़ा खुलासा…’ खुलासे तो वह बीचबीच में किसी ब्रांड के प्रमोशन का करता ही रहता है कि यह एक अनूठा औफर आज महज एक पिज्जा की कीमत पर 2 पिज्जा… केवल पहले 50 सब्सक्राइबर्स के लिए.

आखिरी तक पहुंचने तक तो आप का डाटा भी हांफने हुए दम तोड़ देता है. ये नए जमाने के डाटा खाऊ कंटैंट भाऊ हैं. इन वीडियोज रूपी चाय में कंटैंट की चीनी खोजते रह जाओगे.

असली सक्सैस मंत्र ‘जितना झूठ उतने व्यूज’. महंगाई, बेरोजगारी, जीडीपी पर कोई बात नहीं. बात तो सैलेब्रिटी के कुत्ते ने आज क्या खाया या फलां हीरो के बेटे आज कितने साल के हो गए या इन मोहतरमा ने आज 10 लाख की ड्रैस पहनी जैसी बातें ज्यादा होती हैं. झोंपड़ी की आग की वीडियो को संसद की आग कह कर देखने का लालच दिया जाता है.

सोशल मीडिया की यह यात्रा ‘फौलो फोर फैक्ट’ से ‘फौलो फोर फाल्सहुड’ तक ले आई है. कंटैंटमेकर सम झदारी से वैसे ही दूर होता जा रहा जैसे महंगाई के सरपट भागते घोडे़ की लगाम सरकार की पकड़ से, बेरोजगारी की समस्या और उस के समाधान से दूर होती जा रही है.

थंबनेल व क्लिकबेट की दुनिया में सब से तेज भाग रहा भी पहुंचता कहीं नहीं है. अब पुराने हाथ की सफाई मुहावरे की जगह अंगूठे की सफाई कहना चाहिए .

तो दोस्तो, अगली बार जब कोई कहे कि देखिए इस वीडियो ने सब को हिला दिया, तो मान कर चलिए कि आप का पूरा डाटा हिलने वाला है. अब तो अगला वीडियो नहीं, बल्कि अगला थंबनेल देखिए, ऐसा कहना चाहिए. Funny Story In Hindi

Crime Story In Hindi: एक मौत ऐसी भी

Crime Story In Hindi: रेशमा एक गरीब परिवार की खूबसूरत लड़की थी, पर उस की चाहत हमेशा अमीरों वाली थी. महंगे मोबइल, महंगी ड्रैस और बड़ी गाडि़यों में घूमने के सपने के चक्कर में वह इतनी अंधी हो गई कि उस ने अपने इस खूबसूरत बदन को ही अमीर बनने का रास्ता बनाने का इरादा कर लिया.

रेशमा मुंबई के गोवंडी इलाके में अपने अम्मीअब्बा के साथ रहती थी. उस का बाप आटोरिकशा चला कर अपने परिवार का पेट पालता था. उस ने कड़ी मेहनत कर के रेशमा को खूब पढ़ाने का सपना संजो रखा था, इसलिए उस ने अपनी बेटी को एक अच्छे इंगलिश स्कूल में दाखिला दिलवा दिया था.

रेशमा पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. यही वजह थी कि वह हर क्लास में अव्वल आती थी.

पढ़ाईलिखाई के साथसाथ रेशमा के सपने भी बड़े ऊंचे थे. वह किसी भी कीमत पर अमीर होना चाहती थी, क्योंकि उस के स्कूल में ज्यादातर अमीर मांबाप के बच्चे पढ़ते थे, जिन्हें देख कर रेशमा के मन में भी अमीर बनने का सपना जन्म लेने लगा. वह रातदिन सोचती रहती कि आखिर पैसा कैसे कमाया जाए.

एक दिन रेशमा जब बाथरूम से नहा कर बाहर निकली और उस की नजर अपने उठे हुए उभारों पर पड़ी, तो उसे अपनेआप पर हंसी आ गई. वह यह सोचने लगी कि अमीरजादों को फंसाने वाली उस की ये ऊंची छातियां आखिर कब काम आएंगी. यही तो वह चीज है, जिस के हमेशा से सब दीवाने हैं.

रेशमा के दिमाग में फौरन एक प्लान ने जन्म लिया. उस ने टाइट टीशर्ट पहनी और स्कूल गई. स्कूल छूटने के बाद उस ने कुछ अमीर लड़को के सामने ऐसी अंगड़ाई भरी कि वे उस की तरफ देखने को मजबूर हो गए.

उन अमीर लड़कों में रिजवान भी शामिल था, जो एक बिल्डर का बेटा था.

रेशमा थी भी कमाल की. अच्छी कदकाठी और खूबसूरत गदराए बदन की मलिका होने के साथसाथ सुर्ख गाल, गुलाबी होंठ और ऊंची उठी हुई छातियां किसी को भी अपना दीवाना बनाने के लिए काफी थीं.

जब रिजवान से रहा न गया तो वह छूटते ही बोला, ‘‘क्या बात… आप तो आज कयामत ढा रही हो.’’

रेशमा ने रिजवान की इस बात का हंस कर जवाब दिया, ‘‘आप को कोई एतराज…’’

रिजवान बोला, ‘‘हमें क्या एतराज… हम तो आप के साथ एक कौफी पीने के तलबगार हैं. अगर आप की इजाजत हो तो चलें?’’

रेशमा ने कहा, ‘‘सोच लो… मेरे साथ कौफी पीने में कहीं आप की शान कम न हो जाए.’’

‘‘हमारी शान कम नहीं होगी, बल्कि बढ़ जाएगी,’’ रिजवान ने रेशमा की तारीफ करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, तो चलो फिर कहीं चलते हैं,’’ रेशमा ने कार में बैठते हुए कहा.

रिजवान रेशमा को एक महंगे कैफे में ले गया, जहां दोनों ने प्यारभरी बातें कीं और कौफी पी कर वापस आ गए. बातों ही बातों में दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

अब वे दोनों मोबाइल पर एकदूसरे से खूब देर तक बातें करते, मिलने का वादा करते, शौपिंग करते और होटलों में खातेपीते.

रेशमा अपने हुस्न की अदाओं के बल पर रिजवान को लूट रही थी, उसे क्या मालूम था कि एक दिन वह उस के प्यार में खुद पागल हो जाएगी.

2 दिन बाद रेशमा का बर्थडे था. वह रिजवान से पूछ रही थी, ‘‘तुम मेरे बर्थडे पर क्या गिफ्ट देने वाले हो?’’

रिजवान बोला, ‘‘तुम्हें जो चाहिए मैं वह गिफ्ट दूंगा, लेकिन तुम्हें मेरी एक बात माननी पड़ेगी.’’

रेशमा बोली, ‘‘मैं तो तुम्हारी हर बात मानने को तैयार हूं, बोलो तो सही.’’

‘‘मैं तुम्हारा बर्थडे तुम्हारे साथ अकेले किसी तनहा जगह पर मनाना चाहता हूं,’’ रिजवान ने मन की बात कही.

‘‘तो इस में इतना घबराने की क्या बात है. आप मु झे जहां ले चलोगे, मैं तैयार रहूंगी,’’ रेशमा ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

रेशमा के बर्थडे पर रिजवान ने एक आलीशान होटल में कमरा बुक किया और उसे अच्छी तरह सजवा दिया. इस के बाद रिजवान ने रेशमा को फोन किया और उसे बताए हुए पते पर आने को कहा.

कुछ ही देर में रेशमा वहां आ गई. रिजवान ने उसे अपनी गाड़ी में बैठाया और कुछ ही देर में वे दोनों उस होटल के कमरे में पहुंच गए, जो रिजवान ने पहले ही बुक किया हुआ था.

रेशमा जब उस कमरे में पहुंची तो वहां की सजावट देख कर वह दंग रह गई. रिजवान ने एक खूबसूरत और कीमती केक का इंतजाम पहले ही कर रखा था, जिसे देख कर रेशमा खुशी के मारे पागल हो गई.

तभी रेशमा बोली, ‘‘चलो, केक काटते हैं, मु झे घर भी जाना है.’’

‘‘केक काटने से पहले तुम्हें मेरी एक हसरत पूरी करनी पड़ेगी,’’ रिजवान ने कहा.

‘‘कैसी हसरत, मैं सम झी नहीं? और हां, मेरा गिफ्ट कहां है?’’ रेशमा ने पूछा.

रिजवान ने एक महंगा मोबाइल रेशमा को दिखाते हुए कहा, ‘‘यह है गिफ्ट, लेकिन केक काटने के बाद ही तुम्हें मिलेगा.’’

रेशमा बोली, ‘‘तो ठीक है, मैं जल्दी से केक काट देती हूं.’’

‘‘लेकिन केक काटने से पहले तुम्हें मेरी हसरत पूरी करनी पड़ेगी,’’ रिजवान ने दोबारा कहा.

‘‘अच्छा, बताओ कि तुम क्या चाहते हो?’’ रेशमा ने पूछा.

रिजवान ने एक गिफ्ट रेशमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पहले तुम इसे पहन कर दिखाओ.’’

रेशमा बोली, ‘‘अरे, इस में ऐसा क्या है, जो तुम इतने उतावले हो रहे हो?’’

रेशमा ने जैसे ही वह गिफ्ट खोला, तो उस में एक गुलाबी रंग की खूबसूरत नाइटी देख कर वह खुशी से झूम उठी और बोली, ‘‘इसे देते हुए तुम इतना घबरा क्यों रहे थे… मैं अभी इसे पहन कर आती हूं.’’

रिजवान बोला, ‘‘तुम्हें यह मेरे सामने ही पहननी पड़ेगी.’’

‘‘अरे बाबा नहीं, मु झे शर्म आती है. भला मैं अभी तुम्हारे सामने अपने कपड़े कैसे उतार सकती हूं,’’ रेशमा बोली.

रिजवान ने रूठते हुए कहा, ‘‘बस, यही प्यार है तुम्हारा… तुम मेरे सामने इसे नहीं पहन सकती…’’

रेशमा बोली, ‘‘ठीक है, नाराज मत होना. बस, तुम लाइट बंद कर दो.’’

रिजवान ने फौरन लाइट बंद कर दी.

लाइट बंद होते ही रेशमा ने अपने कपड़े उतारे. जैसे ही उस के बदन से कपड़े हटे, उस का गोरा
बदन उस अंधेरे में रोशनी की तरह चमक उठा.

रिजवान रेशमा के गोरे बदन की झलक देख कर रोमांटिक हो उठा. तभी रेशमा बोली, ‘‘लाइट जला दो, पर नाइट बल्ब.’’

लाल रंग की धीमी लाइट में भी रेशमा का गदराया बदन कयामत ढा रहा था.

उस की ऊंची उठी छातियां नाइटी से बाहर निकलने के लिए बेताब हो रही थीं.

तभी रेशमा बोली, ‘‘जल्दी से केक काटते हैं, वरना देर हो जाएगी.’’ रिजवान बोला, ‘‘ठीक है.’’

रेशमा ने केक काटा. रिजवान ने उसे बर्थडे विश किया और अपने हाथ से केक खिलाने लगा.

रेशमा ने जैसे ही रिजवान को अपने हाथ से केक खिलाया, उस ने उस की नाजुक उंगलियां प्यार से चूम लीं.

रेशमा शरमाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो.’’

रिजवान ने रेशमा को अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘मैं कितना खुशनसीब हूं, जो तुम्हारे इस गदराए बदन को छू पा रहा हूं.’’

रेशमा रिजवान की कैद से आजाद होने की झूठी कोशिश करते हुए बोली, ‘‘बस करो, मु झे छोड़ो.’’

पर रिजवान ने फौरन अपने होंठ रेशमा की गरदन पर रख दिए और चूमने लगा.

रेशमा कसमसाने लगी. तभी रिजवान उस की उठी हुई छातियों को बेतहाशा चूमने लगा.

कुछ ही देर में रेशमा पूरी तरह कामुक हो उठी और रिजवान को अपने ऊपर खींचने लगी.

रिजवान सम झ गया कि लोहा गरम है, बस अब चोट करने की जरूरत है. वह उसे बिस्तर पर ले गया और फिर दोनों की गरम सांसें और कामुक आवाजें कमरे में गूंजने लगीं. फिर वे निढाल हो कर बिस्तर पर ही पड़े रहे.

कुछ देर बाद वे दोनों उठे और अपनेअपने कपड़े पहन कर घर की ओर चल दिए.

रेशमा जैसे ही घर पहुंची, उस के अब्बा ने पूछा, ‘‘कहां थी इतनी रात तक?’’

रेशमा बोली, ‘‘अब्बा, 2 दिन बाद इम्तिहान हैं. उसी की तैयारी के लिए अपनी एक दोस्त के घर पढ़ाई कर
रही थी.’’

इधर रेशमा के अब्बा ने सब सच मान लिया, उधर रिजवान और रेशमा के बीच एक बार जिस्मानी रिश्ते बने तो फिर बनते ही चले गए. उन दोनों को जब भी मौका मिलता, तब वे अपनी जिस्मानी ख्वाहिश किसी होटल में जा कर पूरी कर लेते.

एक दिन रेशमा को पता चला कि उस की कोख में रिजवान का बच्चा पल रहा है. फिर क्या था, रेशमा ने रिजवान से शादी करने की जिद शुरू कर दी.

रिजवान एक अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद था, भला वह रेशमा से शादी कैसे कर सकता था. वह तो बस उस के बदन के मजे लूटने के इरादे से उस पर पैसा खर्च कर रहा था और प्यार का नाटक कर के उसे अपने जाल में फंसाए रखना चाहता था.

वैसे तो रेशमा भी पहले अपने खूबसूरत जिस्म और ऊंची उठी छातियों से रिजवान से पैसा लूटना चाहती थी, पर जब वे दोनों मिलने लगे, तो रेशमा रिजवान से प्यार भी करने लगी.

कई महीनों तक रेशमा के जिस्म के मजे लूटने के बाद अब रिजवान का मन उस से ऊब गया था और उस ने उस से मिलनाजुलना भी कम कर दिया था. रेशमा के पेट से होने की खबर सुन कर वह हमेशा के लिए उस से छुटकारा पा लेना चाहता था.

इस के लिए रिजवान ने एक ऐसा प्लान बना डाला, जिस ने रेशमा की जिंदगी तबाह कर दी.

हुआ यों था कि एक रात रिजवान ने रेशमा से बहुत प्यारीप्यारी बातें कीं और उसे कुर्ला में कोहिनूर बिल्डिंग के सामने बन रही नई बिल्डिंग में मिलने के लिए बुलाया.

उस नई बनने वाली बिल्डिंग की छत पर रिजवान ने रेशमा को देखते ही अपने गले से लगाया और उसके होंठों को चूमते हुए एकएक कर के उस के कपड़े उतारने लगा.

जब रेशमा बिना कपड़ों के हो गई, तो वहां पहले से ही मौजूद रिजवान के 2 दोस्त उस्मान और फरमान भी अचानक रेशमा के सामने आ गए.

रेशमा उन्हें देखते हुए अपने बदन को छिपाने की कोशिश करने लगी.

लेकिन तभी फरमान बोला, ‘‘क्या बात भाभी, रिजवान को ही मजे देती रहोगी या फिर कुछ मजा अपने इन देवरों के लिए भी बचा कर रखोगी.’’

रेशमा घबराते हुए बोली, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो… तुम्हे शर्म नहीं आती…’’

‘‘भाभी, आप को कौन सी शर्म आती है… देर रात इस सुनसान बिल्डिंग की छत पर आप बेशर्मी का ही काम कर रही हो न. कुछ मजे हमें भी लूटने दो,’’ कहते हुए उन दोनों ने रेशमा को अपनी बांहों में भर लिया.

रिजवान चुपचाप खड़ा यह तमाशा देख रहा था, तो रेशमा उस से बोली, ‘‘मु झे अपने इन बेशर्म दोस्तों
से बचाओ.’’

लेकिन रिजवान ने कहा, ‘‘रेशमा डार्लिंग, कुछ मजे इन्हें भी लेने दो. ये बेचारे भी तुम्हारे इस मखमली जिस्म के दीवाने हैं.’’

रेशमा चिल्लाई, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती… मैं तुम्हारी होने वाली बीवी हूं और मेरे पेट में तुम्हारा होने वाला बच्चा पल रहा है.’’

रिजवान ने कहा, ‘‘यह सब तुम्हारी उसी धमकी का तो नतीजा है कि आज मेरे दोस्त तुम्हारे इस खूबसूरत बदन को नोंचने वाले हैं.’’

कुछ ही देर में उस्मान और फरमान रेशमा पर टूट पड़े. वह चीखतीचिल्लाती रही, पर उस सुनसान बिल्डिंग में उस की चीखें सुनने वाला कोई मौजूद न था.

उन दोनों ने रेशमा के गदराए बदन को भूखे कुत्ते की तरह नोंचना शुरू कर दिया और उस का रेप करने के बाद मार डाला. फिर उस के मोबाइल से सिमकार्ड निकाल कर अपनेअपने रास्ते चले गए.

उधर रेशमा जब देर रात बाद भी घर न पहुंची, तो उस के अब्बा को उस की चिंता सताने लगी. सुबह होते ही उन्होंने गोवंडी पुलिस स्टेशन में रेशमा की गुमशुदगी की जानकारी दी.

पुलिस ने कई जगह नाकाबंदी कर के रेशमा की तलाश जारी रखी, पर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

रेशमा के अब्बा का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

कुछ दिन बाद पुलिस को खबर लगी कि कोहिनूर सिटी में नई बन रही एक बिल्डिंग में एक लड़की की लाश मिली है. लाश की हालत इस तरह खराब हो चुकी थी कि किसी के लिए उसे पहचानना आसान नहीं था.

पुलिस ने लाश को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम की लिए भेज दिया और कातिल का सुराग ढूंढ़ने में वहां का अच्छी तरह मुआयना करने लगी. काफी मशक्कत के बाद वहां एक टूटा हुआ सिमकार्ड मिल गया.

उस सिमकार्ड से पुलिस को यह पता चल गया कि यह सिमकार्ड रेशमा नाम की एक लड़की का है, जो गोवंडी में रहती है. यह भी पता चल गया कि 8 दिन पहले रेशमा नाम की एक लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई गई थी.

पुलिस को अब यह सम झते देर न लगी कि यह लाश रेशमा की है. पुलिस ने अपनी जांच तेज कर दी और सिमकार्ड से पता चल गया कि आखिरी फोन रिजवान को किया गया था.

पुलिस सम झ गई कि अब इस जांच को आगे बढ़ाने में रिजवान ही काम आएगा.

तब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई, जिस से यह पता चल गया कि हत्या से पहले रेशमा के साथ कई लोगों ने रेप किया था और बाद में गला घोंट कर उस की हत्या कर दी गई.

पुलिस को हैरानी तब हुई जब उसे यह पता चला कि रेशमा के पेट में 3 महीना का बच्चा भी पल रहा था.

यह बात पुलिस को हजम नहीं हो रही थी कि रेशमा के साथ रेप कर के उसे मार दिया गया तो वह 3 महीने के पेट से कैसे हो गई, जबकि अभी तक उस की शादी भी नहीं हुई थी.

अब पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाते हुए रिजवान के फोन की डिटेल निकाली और जब रेशमा की हत्या हुई उस समय की उस की लोकेशन का पता किया. पुलिस को रिजवान की लोकेशन उसी बिल्डिंग की मिली, जहां रेशमा की हत्या की गई थी. यह भी पता चल गया कि रेशमा अकसर रिजवान से फोन पर बात करती रहती थी.

पुलिस को अब यह सम झते देर न लगी कि रेशमा के पेट में रिजवान का ही बच्चा था और उस की हत्या को भी इसी ने अंजाम दिया है.

अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वे और कौन लोग थे, जिन्होंने इस हत्या को रिजवान के साथ मिल
कर अंजाम दिया और उस के साथ रेप किया.

पुलिस ने रिजवान को अपनी हिरासत में ले लिया और उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी, तो पहले यह पता चल गया कि इस हत्या में उस्मान और फरमान उस के भागीदार थे, जिन्होंने रेशमा की हत्या करने से पहले उस के साथ रेप किया था.

पुलिस की एक टीम ने कुर्ला के भारतीय नगर इलाके से उस्मान को गिरफ्तार कर लिया, पर फरमान अभी तक उन की गिरफ्त में नहीं आ पाया.

पुलिस ने जब रिजवान से हत्या की सख्ती से पूछताछ की तो रिजवान ने जो कहानी उन्हें सुनाई, उस ने सब के रोंगटे खड़े कर दिए.

रिजवान ने पुलिस को बताया कि रेशमा ने अपने हुस्न की वजह से जल्द अमीर बनने का जो सपना देख कर उसे अपने प्यार के जाल में फंसाया था, वह खुद उसी जाल में फंस गई.

रिजवान ने अपने पैसे के बलबूते पर रेशमा को महंगेमहंगे गिफ्ट दे कर उस से नाजायज रिश्ता बना लिया और उस के जिस्म के मजे लेने लगा. धीरेधीरे रेशमा उस से हकीकत में प्यार कर बैठी और अपने शरीर को रिजवान के हवाले करने लगी.

इसी बीच वह पेट से हो गई और शादी की धमकी देने लगी.

रिजवान केवल रेशमा के जिस्म को भोगना चाहता था, पर जब उस ने शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया, तो मजबूर हो कर रिजवान को अपने दोस्तों की साथ मिल कर उस की हत्या की साजिश रचनी पड़ी.

इस तरह यह एक ऐसा अनोखा कत्ल हुआ, जिस ने रेशमा की जान ले ली.

फरमान अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर था.

रेशमा के अब्बा का रोरो कर बुरा हाल था. उन्हें क्या मालूम था कि उन की एकलौती बेटी की इस तरह हत्या की जाएगी.

रिजवान और उस्मान पर हत्या और रेप जैसे अपराध का मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया और फरमान की तलाश जारी थी. Crime Story In Hindi

Family Story In Hindi: बदला जमाना

Family Story In Hindi: गांव में एक पेड़ के नीचे बैठे हरिया, गोपाल, सोमनाथ और बदरी ताश खेल रहे थे. उन के बीच दारू की खाली बोतल लुढ़की पड़ी थी.

बदरी पत्ता फेंकते हुए बोला, ‘‘हरिया, इस बार तो मैं बाजी जीतूंगा.’’

इस से पहले कि हरिया कुछ बोलता, गोपाल ने कहा, ‘‘उस्ताद, वह देख तेरी मंगेतर, सामने सिर पर पानी का घड़ा उठाए…’’

नशे की हालत में सब की नजरें उधर उठीं. रमिया सिर पर पानी का घड़ा उठाए बढ़ी चली आ रही थी.

हरिया का जवान जिस्म एक मीठी आग से जलने लगा था. अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराते हुए वह रमिया के सांचे में ढले जिस्म को इस तरह देख रहा था, जैसे कोई बच्चा मिठाई को देखता है.

हरिया ने अचानक एक पत्थर का टुकड़ा उठाया. फिर… ‘धड़ाक’ की आवाज के साथ रमिया के सिर पर रखा घड़ा फूट गया और उस के कपड़े गीले हो गए.

गुस्से से बेकाबू होते हुए रमिया हरिया और उस के दोस्तों के पास पहुंची, जो उस की हालत पर ठहाके लगा रहे थे.

अचानक रमिया का दायां हाथ घूमा और ‘चटाक’ की आवाज के साथ हरिया का बायां गाल झनझना गया.

‘‘तेरी यह हिम्मत. तू… तू… मुझ पर हाथ उठाती है, अपने होने वाले पति पर… तू…’’ कहते हुए हरिया ने रमिया की बांह मरोड़ दी.

रमिया दर्द के मारे कराह उठी. आंखों में आंसू छलछला आए. अपनी बांह छुड़ाने की कोशिश में वह नाकाम रही. उस की मजबूरी पर हंसते हुए हरिया बोला, ‘‘हाथ थामा है तेरा… इतनी आसानी से यह नहीं छूटने वाला.’’

‘‘मैं तुझे अपना पति बनाऊंगी? कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है तू ने. तुझ जैसे शराबी, जुआरी से शादी करने की बजाय मैं मरना पसंद करूंगी,’’ रमिया गुस्से से बोली.

‘‘शादी तो तेरी मुझ से ही होगी. लड़कपन में ही तेरी शादी मुझ से करा दी गई थी. बस, अब तो बरात ले कर आने की बात है. तू मेरी होगी. तेरी यह जवानी मेरी बांहों में…’’ नशे में बड़बड़ा उठा हरिया.

‘‘तुझ से शादी कर के मैं अपनी जिंदगी खराब नहीं करूंगी. मेरी जूती भी तुझ से शादी नहीं करेगी.’’

बेइज्जती की आग में हरिया झुलस उठा था. अपने साथियों के बीच उस की मंगेतर कोरा जवाब दे, इस बात ने उस के गुस्से को और भड़का दिया था, ‘‘देख लेना रमिया, तेरी शादी तो मुझ से ही होगी. आज ही बापू को तेरे घर भेजता हूं. देखता हूं, कब तक बचेगी मुझ से. तेरे सारे कसबल न निकाले तो मेरा नाम हरिया नहीं… समझी?’’

‘‘हुं…’’ रमिया पैर पटकते हुए वहां से चली गई.

रमिया बनवारी लाल की एकलौती बेटी थी. पिता ने रमिया का रिश्ता बचपन में ही अपने दोस्त किशन लाल के बेटे हरिया से कर दिया था. बनवारी ने रमिया को हायर सैकेंडरी पास करवा दी थी.

उधर हरिया पढ़लिख न सका था. बुरे दोस्तों की सोहबत और बाप के लाड़दुलार ने उसे जिद्दी, आवारा व शराबी, जुआरी बना दिया था. गांव की बहूबेटियों को छेड़ना उस के लिए मामूली सी बात थी, गांव वाले कभीकभार किशन लाल को टोकते, शिकायतें करते तो वह कहता, ‘‘जवानी का जोश है न बस, शादी हो जाएगी तो वह खुद ही सुधर जाएगा.’’

पर क्या कुत्ते की दुम कभी सीधी हुई है? सभी सोचते, हरिया नहीं सुधर सकता. पर कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. सभी हरिया और उस की चांडाल चौकड़ी से डरते थे. वे सोचते कि इस से जो ब्याह करेगी, उस की तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी.

इस बात को बनवारी भी जानता था, पर अपने पैरों पर वह खुद ही कुल्हाड़ी मार चुका था. वह रमिया का बाल विवाह कर चुका था, वह भी अपने दोस्त के बेटे से. चाह कर भी वह इस रिश्ते को तोड़ नहीं सकता था.

शाम का वक्त था. किशन लाल बनवारी के पास आया. बनवारी चेहरे पर खुशामदी मुसकान लिए बोला, ‘‘कैसे आना हुआ किशन लाल?’’

‘‘बताता हूं… बताता हूं… पहले लस्सी तो पिला.’’

बनवारी समझ गया कि आज कुछ खास बात है. उस ने रमिया को लस्सी और मिठाई लाने को कहा.

‘‘यार, तुम्हारे लिए खुशखबरी है. अब तुम्हारी सारी चिंता दूर हो जाएगी,’’ पहेली सी बुझाते हुए किशन लाल के चेहरे पर एक खास चमक थी.

‘‘कैसी चिंता? मैं समझा नहीं… जरा खुल कर बताओ कि क्या बात है?’’ बनवारी जल्दीजल्दी बोला, जबकि वह समझ गया था कि किशन लाल क्या कहना चाहता है.

‘‘अरे, बुद्धू है यार तू भी… हरिया शादी के लिए मान गया है. मैं तारीख ले कर आया हूं. बेटी की जिम्मेदारियों से अब तू बेफिक्र हो जाएगा.’’

बनवारी का चेहरा बुझ गया. हरिया की हरकतों से वह अनजान नहीं था. क्या कहे, समझ ही नहीं पा रहा था. उस के बुझे चेहरे को देख कर किशन लाल बोला, ‘‘क्या बात है, तुम्हें खुशी नहीं हुई?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ बनवारी लाल धीरे से बोला, ‘‘सोच रहा था कि रमिया इस रिश्ते के लिए…’’

किशन लाल के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘रमिया की आड़ में कहीं तुम अपनी राय तो नहीं बता रहे?’’

बनवारी लाल किशन लाल की नाराजगी को भांप गया था. वह संभलते हुए बोला, ‘‘नहींनहीं, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. मैं…’’ इस से आगे वह कुछ बोलता कि रमिया एक हाथ में लस्सी का बड़ा गिलास और एक हाथ में मिठाई की प्लेट ले कर आ गई.

‘‘नमस्ते चाचाजी,’’ रमिया ने कहा.

‘‘जीती रहो बेटी, कैसी हो?’’ आवाज को मुलायम रखते हुए किशन लाल बोला.

‘‘ठीक हूं चाचाजी.’’

‘‘लो बनवारी, बिटिया भी यहीं है… अब इसी से पूछ लेते हैं कि…?’’

बनवारी लाल अचानक घबरा गया और बोला, ‘‘क्या बेटी से यह सब पूछना अच्छा लगेगा?’’

‘‘क्यों, तुम्हीं तो कह रहे थे कि पता नहीं रमिया को यह रिश्ता पसंद है या नहीं?’’ किशन लाल ने चालाकी से बनवारी लाल की बात कह दी थी.

रमिया पलभर में ही सबकुछ समझ गई. वह अपने पिता के झुके चेहरे को देखती रह गई. फिर सोचते हुए बोली, ‘‘चाचाजी, मैं जानती हूं कि मुझे बड़ों के बीच नहीं बोलना चाहिए… पर जहां मेरी जिंदगी का फैसला होने जा रहा हो, तो मेरी राय को भी जानना चाहिए.’’

किशन लाल बोला, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘चाचाजी, शादी गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं हैं और बाल विवाह तो एकदम बेवकूफी है, ढकोसला है. आप मेरी शादी अपने बेटे से करना चाहते हैं, बाल विवाह की आड़ ले कर. मैं उस शराबी, जुआरी से शादी करने की बजाय मर जाना या कुंआरी रहना ज्यादा पसंद करूंगी.’’

‘‘अरे, तू चार जमात क्या पढ़ गई, खुद को अफलातून समझने लगी है. मानता हूं कि मेरा बेटा शराबी है, जुआरी है, पर बेटी, शादी के बाद वह सुधर भी तो सकता है.’’

‘‘और अगर वह न सुधरा तो?’’ रमिया उलट कर बोली.

‘‘तो… तो…?’’ किशन लाल को कुछ न सूझा. वह बगलें झांकने लगा.

‘‘तो आप के बेटे के साथसाथ मेरी जिंदगी भी खराब हो जाएगी,’’ रमिया बोली.

‘‘पर तुम्हारा बाल विवाह हुआ है, तुम अपने बाप के घर मेरे बेटे की अमानत हो,’’ किशन लाल ने आखिरी तीर चलाया.

‘‘बाल विवाह… हुं… एक घिसापिटा रिवाज. मैं ऐसे रिवाजों को नहीं मानती,’’ रमिया गुस्से से बोली.

‘‘देख बनवारी, अपनी बेटी को समझा, वरना बहुत बुरा होगा,’’ किशन लाल ने नीचता पर उतरते हुए धमकी दे डाली.

‘‘किशन लाल, हम वादे को निभाने के लिए पुराने रीतिरिवाजों की खातिर रमिया की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं करेंगे,’’ बनवारी लाल बोला.

‘‘बनवारी,’’ किशन लाल चीख उठा, ‘‘देख लूंगा तुम दोनों को. अगर बिरादरी से मैं ने तुम्हारा हुक्कापानी बंद न करवा दिया, तो मेरा नाम किशन लाल नहीं. देख लेना, कल पंचायत बुलाऊंगा मैं. तुम ने मेरी दोस्ती देखी है, अब दुश्मनी देखना,’’ किसी भी तरह अपनी दाल न गलते देख किशन लाल नीचता पर उतर आया था.

फिर वही हुआ, जिस का बनवारी लाल को डर था. किशन लाल ने पंचायत बुलाई.

पंचायत ने अपना फैसला किशन लाल के हक में देते हुए कहा, ‘‘बनवारी लाल को अपनी बेटी रमिया की शादी हरिया से करनी होगी. अगर वह ऐसा नहीं करता तो उस का गांव में हुक्कापानी बंद. उसे अपना फैसला 24 घंटों में पंचायत को सुनाना होगा.’’

पंचायत उठ गई थी. पर बनवारी लाल का दिल बैठ गया. ठगा सा सोचता रह गया कि क्या करे और क्या न करे?

रमिया जानती थी, पंचायत का फैसला. लेकिन अभी पंचायत को उस के फैसले का पता नहीं था. पूरा गांव नींद की आगोश में डूबा था. बाहर घना अंधेरा फैला था. ऐसे में रमिया एक छोटी सी अटैची उठाए गांव से हमेशाहमेशा के लिए दूर जा रही थी. वह अपने पिता को घुटघुट कर मरते नहीं देख सकती थी. वह यह भी जानती थी कि उस के पिता कभी यह गांव नहीं?छोड़ेंगे, इसलिए उस ने गांव छोड़ कर खुद शहर जाने का फैसला कर लिया था.

जैसतैसे रमिया स्टेशन पहुंच गई. पर कहां जाए? कुछ सूझा नहीं. जैसे ही गाड़ी आई, वह सामने वाले डब्बे में चढ़ गई. वह पहले दर्जे का डब्बा था.

एक केबिन में घुस कर रमिया एक खाली सीट पर बैठ गई. अटैची उस ने एक तरफ रखी. खुली खिड़की से बाहर फैले अंधेरे को देखने लगी. गाड़ी चल पड़ी थी. गांव पीछे छूटता जा रहा था और वह अनजानी मंजिल की ओर चल पड़ी थी. पिता के बारे में सोच कर उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.

रमिया को याद आया कि जब मां मरी थी तो पिताजी बहुत रोए थे. नन्ही रमिया को सीने से लगाए वह अकसर मां की बातें करते थे. बेटी की खातिर ही उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी. आज उन्हीं पिता को वह गांव में छोड़ आई थी, अकेला और बेसहारा.

सरला देवी उसी डब्बे में सफर कर रहीं थीं. जब से रमिया गाड़ी में चढ़ी थी, वह एकटक उस की हरकतें देख रही थीं. उन की आंखों से यह छिपा नहीं था कि लड़की घर से भागी है. काफी देर सोचने के बाद उन्होंने रमिया से पूछा, ‘‘क्या बात है बेटी, तुम रो क्यों रही हो?’’

भीगी पलकें ऊपर उठीं थीं. रमिया ने सरला देवी को पहली बार देखा. चेहरे पर तेज व चमक लिए एक अधेड़ औरत उस से अपनेपन से पूछ रही थी, ‘‘घर से भागी हो क्या?’’

रमिया चुप रही. सिर झुकाए, कुछ सोचती रही.

‘‘देखो बेटी, मुझे गलत मत समझना. मेरा नाम सरला है. ‘नारी मुक्ति संगठन,’ दिल्ली की मुखिया हूं. अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो मुझे बताओ. कहीं तुम हीरोइन बनने के चक्कर में…?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो… मैं…’’ और फिर अंदर की दुखभरी कहानी आंसुओं के संग बहती चली गई. अपनी हर बात उस ने बताई.

‘‘तुम ने ठीक किया बेटी, औरत को अपनी मरजी से फैसले लेने का हक मिलना ही चाहिए. मैं तुम्हारी मदद करूंगी. क्या तुम बालिग हो?’’ सरला देवी ने पूछा.

‘‘जी हां, मैं 19वें साल में हूं.’’

‘‘देखो बेटी, तुम्हारी अभी कोई मंजिल नहीं है. तुम हायर सैकेंडरी पास हो… तुम मेरे पास रह कर कंप्यूटर वगैरह सीख सकती हो. नर्स का कोर्स भी कर सकती हो… आगे अपनी पढ़ाई भी जारी रख सकती हो.’’

सरला देवी के शब्दों ने रमिया को राहत पहुंचाई. उसे लगा कि घर से भाग कर उस ने कोई गलती नहीं की.
सरला देवी की छत्रछाया में 5 साल पंख लगा कर कब उड़ गए, पता ही नहीं चला. इस दौरान रमिया, ‘रमा’ बन चुकी थी. उस ने बीए पास कर लिया था और नर्स का कोर्स भी कर लिया था.

इस दौरान वह अपने पिता को खो चुकी थी. बनवारी लाल ने खुदकुशी कर ली थी. यह सुन कर वह बेहद दुखी हुई थी. पर समय ने उस के इन घावों पर मरहम लगा दिया था.

अब रमा सरकारी अस्पताल में नर्स का काम करती थी. उस के साथ डाक्टर थे, प्रभाकर, बेहद सुलझे हुए, सुंदर और लायक आदमी. वह रमा को चाहने लगे थे. पर अपने प्यार की बात वह होंठों तक न ला पाए थे. इस बात को रमा भी जानती थी.

एक दिन प्रभाकर ने अपनी दिल की बात रमा को कह देने का फैसला कर लिया था. वह बोले, ‘‘रमा, शाम को क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘ठीक है, आज घूमने चलेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रमा ने हौले से कहा.

शाम को डाक्टर प्रभाकर अपनी कार में रमा के साथ घूमने निकल पड़े. एक बाग में वे काफी देर तक चहलकदमी करते रहे कि अचानक प्रभाकर बोले, ‘‘रमा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

रमा एकदम चौंक उठी, ‘‘डाक्टर साहब, आप… आप क्या कह रहे हैं? कहां आप और कहां मैं… एक मामूली सी नर्स.’’

‘‘मैं किसी नर्स से नहीं, तुम से शादी की बात कर रहा हूं,’’ मुसकरा कर प्रभाकर बोले.

‘‘लेकिन… आप मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानते. मैं कौन हूं… किस जात की हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानना चाहता. तुम एक सुंदर और सुशील लड़की हो. मेरे लिए इतना ही बहुत है. हां, यह बात और है कि शायद तुम मुझे पसंद न करती हो?’’

‘‘नहीं डाक्टर साहब, आप से जो भी लड़की शादी करेगी, उस की जिंदगी तो खुशहाल हो जाएगी.’’

‘‘तो वह लड़की तुम क्यों नहीं बन जाती?’’ प्रभाकर बोले.

‘‘एक शर्त पर… आप को मेरे बारे में जानना होगा?’’ रमा ने कहा.

‘‘ठीक है आओ, होटल में चलते हैं. तुम जो बताना चाहो, वहां बता देना. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ प्रभाकर हंस कर बोले, मानो उन्हें मंजिल मिल गई हो.

होटल में रमा ने अपनी जिंदगी की किताब प्रभाकर के सामने खोल कर रख दी.

प्रभाकर चुपचाप सुनते रहे, फिर वे बोले, ‘‘बस, तुम ने बहुत अच्छा किया. लड़कपन में की गई शादी तो एक बेहूदा रिवाज है. तुम ने जो कदम उठाया, मैं उस की कद्र करता हूं.

‘‘आज जमाना बदल चुका है. पता नहीं लोग अब भी क्यों उन्हीं घिसेपिटे, मरे, सड़े सांपों को रीतिरिवाजों का नाम दे कर गले से लिपटाए हैं… तुम ने बहुत अच्छा किया रमा. अपने लिए खुद रास्ता तलाश किया.

अब तो दुनिया की कोई ताकत मुझे तुम से शादी करने से नहीं रोक सकती, क्योंकि अब तो तुम ही मेरी दुनिया हो, मेरी जिंदगी हो.’’

जब वे होटल से बाहर निकल रहे थे, तो दोनों के हाथ एकदूसरे के हाथों में थे. Family Story In Hindi

Hindi Romantic Story: क्षमादान – अदिति और रवि के बीच कैसे पैदा हुई दरार

Hindi Romantic Story: रवि 3 महीने से दीवाली पर बोनस और प्रमोशन की आस लगाए बैठा था. 2 साल की कड़ी मेहनत, कम छुट्टियां और ओवर टाइम से उस ने अपने बौस का दिल जीत लिया था. वह अपने बौस मिस्टर राकेश का फेवरेट एंप्लोई बन चुका था. उस ने सोचा था कि इस बार दीवाली पर एक महीने की लंबी छुट्टी ले कर मम्मीपापा के साथ रहेगा. मम्मी पिछले साल से ही उस की शादी की कोशिश में जुटी थीं.

अपने साथ काम करने वाले मुकेश को कई बार वह अपनी छुट्टियों की प्लानिंग बता चुका था. उस के सारे सहकर्मियों को भरोसा था कि उसे अब की बार दीवाली पर बोनस के साथसाथ प्रमोशन भी मिलेगा. मिस्टर राकेश ने प्रमोशन की लिस्ट में रवि का नाम सब से ऊपर लिखा हुआ था और उसे वे कई बार बता भी चुके थे. हालांकि हैड औफिस से फाइनल लिस्ट आनी बाकी थी.

सप्ताह का पहला दिन था. रवि अपने सहकर्मियों को गुड मौर्निंग कहता हुआ अपने कैबिन में जा रहा था, तभी चपरासी गुड्डू रवि से बोला, ‘‘रवि साहब, आप को बौस ने बुलाया है.’’

‘‘मुझे,’’ रवि के मुंह से अचानक निकला था.

पास के कैबिन में बैठा मुकेश रवि की तरफ ही देख रहा था. उस का सवाल सुन कर वह बताने लगा, ‘‘अरे रवि, तुम्हें पता चला हमारे बौस राकेश साहब की मदर की तबीयत ज्यादा खराब है. इसलिए वे छुट्टी पर चले गए हैं.’’

‘‘अच्छा, कब तक के लिए,’’ रवि के चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलक रही थी और सहानुभूति भी. परेशानी खुद की छुट्टी को ले कर थी. वह सोच रहा था कि अगर बौस छुटट्ी पर चले गए हैं तो उस की छुट्टी की कौन मंजूरी देगा और सहानुभूति अपने बौस के लिए थी.

‘‘यार, फिलहाल तो उन्होंने एक हफ्ते की ऐप्लिकेशन दी है, लेकिन कुछ नहीं कह सकते कि वे कब तक लौटेंगे,’’ मुकेश ने बताया.

रवि के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह अपनी छुट्टियां को ले कर संशय में था. अब जब उस के बौस छुट्टी पर थे, तो उसे पता नहीं ज्यादा दिन की छुट्टी मिल सकेगी या नहीं.

मुकेश ने उस के चेहरे के भावों को भांपते हुए कहा, ‘‘तू फिक्र मत कर, तुझे छुट्टी तो मिल ही जाएगी. 2 साल से लगातार हार्डवर्क जो कर रहा है तू.’’

रवि इस पर मुसकरा दिया. फिर धीमे से बोला, ‘‘फिर यह नया बौस कौन है, जो मुझे बुला रहा है?’’

‘‘कोई नई मैडम राकेश सर की जगह टैंपरेरी अपौइंट हुई हैं. सुना है मुंबई से हैं,’’ मुकेश ने बताया और बोला, ‘‘तू मिल ले जा कर, औफिस का वर्क इंट्रोड्यूस करवाने के लिए बुलवा रही होंगी तुझे.’’

‘‘चल, फिर मैं उन से मिल कर आता हूं,’’ रवि के चेहरे पर अब थोड़ी राहत झलक रही थी.

मुकेश की इस बात से उसे राहत पहुंची थी कि 2 साल से वह हार्डवर्क कर रहा था. कंपनी के पास उस की छुट्टी कैंसिल करने की कोई वजह भी नहीं थी.

ये सब सोचतेसोचते रवि बौस के रूम का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

‘‘प्लीज, मे आई कम इन मैम,’’ रवि कैबिन के दरवाजे को आधा खोल कर धीरे से बोला.

‘‘कम इन,’’ मैडम किसी फाइल को सिर झुका कर देख रही थीं.

रवि चुपचाप उन की टेबल के सामने जा कर खड़ा हो गया.

मैडम ने अचानक अपना सिर उठाया और शायद ‘सिट डाउन, प्लीज’ कहने ही वाली थीं कि रुक गईं.

रवि भी अपनी जगह बस खड़े का खड़ा ही रह गया. उसे इस बात की बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि वह उसे आज यहां अचानक इस तरह मिलेगी. वह अदिति थी. कालेज की पुरानी दोस्त नहीं, कालेज के दिनों की रवि की एकमात्र दुश्मन. दोनों ने कभी एकदूसरे से कालेज में बात भी नहीं की थी, लेकिन उन का झगड़ा फेसबुक चैटिंग पर पहले हो चुका था.

रवि का कालेज में पहला साल था. वह पढ़ाकू किस्म का लड़का था. उन दिनों वह अदिति की तरफ आकर्षित हो गया था, लेकिन उसे उस से बात करने में न जाने क्यों बहुत ज्यादा झिझक महसूस होती थी. अदिति अच्छी होस्ट होने के साथसाथ कविताएं लिखती और सुनाती भी थी. ऐसी कई बातों ने रवि को प्रभावित कर दिया था. लेकिन रवि चुप रहने वाला लड़का था. वह अदिति से बात करना तो चाहता था, पर कर नहीं पाता था.

2 सैमेस्टर पूरे होने के बाद रवि के कालेज में कुछ दिनों के लिए छुट्टियां हो गई थीं.

तभी एकाएक उसे फेसबुक जैसे माध्यम का साथ मिल गया. उस ने इंटरनैट पर फेसबुक आईडी बना ली और अदिति को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. अदिति ने उसे ऐक्सैप्ट भी कर लिया. अब जैसे रवि को नया आसमान मिल गया था, थोड़ाबहुत जो भी लिख लिया करता था, फेसबुक पर पोस्ट करता, उस के क्लासमेट्स भी अब उसे नोटिस करने लगे थे. फिर वह एकाएक अदिति को अकसर उस की कविताओं की तारीफ लिख कर भेजा करता, उस की तसवीरों पर कमैंट कर दिया करता. बदले में अदिति भी रिप्लाई करती थी.

एक दिन उस ने अदिति की एक तसवीर देखी और उस पर उसे कुछ पंक्तियां लिखने का मन हुआ. उस दिन उस ने कमैंट में अपनी वे पंक्तियां न लिख कर अदिति की उस तसवीर को डाउनलोड कर अपनी टाइमलाइन से उन पंक्तियों के साथ अपलोड कर दिया और अदिति की टाइमलाइन पर वह तसवीर टैग के जरिए भेज दी. यह सब देखते ही अदिति ने रवि को मैसेज किया ‘अपलोड करने से पहले पूछ तो लेते.’

रवि ने रिप्लाई किया, ‘जी, सौरी. आप को बुरा लगा हो तो मैं उस तसवीर को हटा देता हूं.’

रवि फेसबुक का नौसिखिया संचालक था. उसे मालूम नहीं था कि उस फोटो को पूरी तरह से हटाने के लिए उसे डिलीट के औप्शन पर जाना होगा. उस ने सामने दिख रहे ‘रिमूव’ के औप्शन से उस तसवीर को अपने प्रोफाइल से हटा लिया और सोचने लगा कि तसवीर पूरी तरह से हट चुकी है.

थोड़ी देर बाद अदिति का फिर मैसेज आया, ‘फोटो अभी तक हटा क्यों नहीं?’

रवि तो समझ रहा था कि वह हट चुका है, इसलिए रिप्लाई किया, ‘हटा तो दिया है.’

अदिति का इस बार थोड़ा तीखा रिप्लाई आया, ‘अपने मोबाइल अपलोड में देख.’

रवि ‘मोबाइल अपलोड’ नाम की बला को उस समय जानता ही नहीं था. उस ने फिर रिप्लाई किया, ‘कहां?’

‘मोबाइल अपलोड में देख,’ अदिति का रिप्लाई अब सख्त लग रहा था.

‘ओके,’ रवि ने नपातुला जवाब दिया.

उसे हलका सा धक्का लगा था. उसे अदिति के ‘अपने अपलोड में देख’ जैसे शब्दों से ठेस पहुंची थी, क्योंकि अब तक उन दोनों की बातचीत में हर जगह ‘आप देखिए’ जैसे शब्द ही शामिल थे.

रवि ने जैसेतैसे ‘मोबाइल अपलोड’ ढूंढ़ा. अब वह उस तसवीर पर गया, लेकिन वहां भी उसे डिलीट का औप्शन नहीं दिख रहा था.

तब तक अदिति का एक और तीखा रिप्लाई आ चुका था, ‘फोटो अभी तक नहीं हटा.’

फिर एक बार अदिति ने मैसेज किया, ‘मिस्टर, क्या चल रहा है यह सब?’

रवि ने रिप्लाई किया, ‘कुछ टैक्निकल प्रौब्लम आ रही है. साइबर कैफे जा कर जल्दी ही उस मनहूस फोटो को हटाता हूं.’

रवि अब थोड़ा झुंझला सा गया था. उसे अदिति का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा था.

‘मनहूस…’ इस के आगे कुछ अपशब्द थे अदिति के रिप्लाई में.

अब रवि ने सब से पहले साइबर कैफे में एक व्यक्ति से पूछ कर उस फोटो को डिलीट किया. फिर अदिति को मैसेज किया, ‘आप का वह फोटो डिलीट हो चुका है. एक बात कहूंगा कि वह मेरी गलती थी, पर आप को यों ‘तू तड़ाक’ से तो पेश नहीं आना चाहिए.’

अब बात गरमा गई थी. धीरेधीरे रिप्लाई में भयंकर झगड़ा हो गया और फिर रवि जिस एकमात्र लड़की को अपनी क्लास में पसंद करता था, उस की फेसबुक फ्रैंड लिस्ट से बाहर हो चुका था.

आखिर में रवि ने थोड़ा सोचा और एक लंबा सौरी मैसेज भेज दिया लेकिन तब तक वह अदिति की फ्रैंड लिस्ट से बाहर हो चुका था.

छुट्टियों के बाद जब कालेज खुला, तो कालेज में बातें चल रही थीं कि रवि ने अदिति को प्रपोज किया था. रवि ने चुपचाप सब सुन लिया लेकिन इस बारे में कोई रिप्लाई नहीं किया.

वह जैसे अपनी ही नजरों में गिरता जा रहा था. अदिति ने ही शायद कालेज में यह बात फैलाई थी. फेसबुक से हुई एक गलती ने उसे संजीदा छात्रों की फेहरिस्त से बाहर कर दिया था और हर ओर कुछ महीने तक उस की हंसी उड़ाई गई थी.

एक दिन क्लास में उस के पीछे की सीट पर बैठ कर अदिति ने उस के दोस्तों के साथ मिल कर अप्रत्यक्ष रूप से रवि पर कई कटाक्ष कर दिए थे. वह उस की हंसी उड़ा रही थी, पर रवि कुछ नहीं बोला. वह अब तक खुद की ही गलती मान रहा था, लेकिन उस दिन से उस

ने अदिति से नफरत करना शुरू कर दिया था. अब अदिति को भी उस ने अपनी फ्रैंडलिस्ट से हटा दिया था और एकएक कर अदिति के दोस्त भी ब्लौक होते चले गए.

फिर न उस की अदिति से सामने कभी बात हुई और न ही फेसबुक पर, आज इतने साल बाद फिर वह उस के सामने थी और अब उस की बौस थी.

दोनों लगभग 10 मिनट तक स्तब्ध हो कर एकदूसरे को देख रहे थे. अदिति ने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा, ‘‘सिट डाउन, प्लीज.’’

रवि चुपचाप बैठ गया. 5 मिनट तक कैबिन में खामोशी छाई रही. अदिति अभी फिर से अपनी फाइल में उलझ गई थी या शायद नाटक कर रही थी.

फिर नजरें उठा कर बोली, ‘‘रवि, मुझे कल तक इस औफिस की सभी जरूरी फाइलें दे दो.’’

‘‘जी मैम,’’ रवि ने धीमे से कहा. उस की नजरें झुकी हुई थीं.

‘‘ओके, आप जा सकते हैं,’’ अदिति ने कहा, इस बार उस की नजरें भी झुकी हुई थीं.

रवि कैबिन से बाहर आ गया था लेकिन अपने अतीत से नहीं.

उस रात उसे नींद नहीं आ रही थी. गुजरे हुए कल में जो हुआ था उसे तो वह नजरअंदाज कर चुका था, लेकिन अब उस से उस की वर्तमान जिंदगी प्रभावित होती दिख रही थी.

रवि को फिक्र सता रही थी कि उस की छुट्टियां अदिति अस्वीकृत न कर दे. वह लंबे समय से छुट्टियों का इंतजार कर रहा था और अब अदिति के रहते उसे छुट्टी मिलना मुश्किल लगने लगा था. उसे लग रहा था कि अदिति उस से पुरानी दुश्मनी जरूर निकालेगी.

अगले दिन वह परेशान सा औफिस पहुंचा. चपरासी ने पिछले दिन की तरह ही उसे आज फिर बताया कि बौस यानी अदिति ने उसे कैबिन में बुलाया है.

रवि वे जरूरी फाइलें ले कर कैबिन में पहुंचा, जो उसे पिछले दिन अदिति ने छांटने को कही थीं.

‘‘मे आई कम इन मैम,’’ रवि ने औपचारिकता निभाई.

‘‘यसयस,’’ अदिति ने उस की तरफ आज पहली बार मुसकरा कर देखा था. ‘‘वे फाइल्स?’’

‘‘जी मैम, ये रहीं,’’ रवि ने फाइलों का एक ढेर अदिति की टेबल पर रख दिया.

‘‘आप को एक महीने की छुट्टी चाहिए?’’ अदिति तीखी मुसकराहट के साथ कह रही थी.

‘‘जी मैम,’’ रवि सिर नीचे किए हुए था.

‘‘इस वक्त औफिस में राकेशजी नहीं हैं, तो आप को इतनी लंबी छुट्टी

मिलना तो मुश्किल है,’’ अदिति रवि की तरफ अब गंभीरता से देखते हुए कह रही थी.

‘‘ओके, मैम. आप जैसा कहें,’’ रवि ने हलका सा सिर उठा कर कहा.

‘‘रविजी, आप हमारी कंपनी के बैस्ट एंप्लोई हैं,’’ अदिति इतना कहते हुए रुकी और फिर एक कागज हाथ में उठा कर बोली, ‘‘और आप की छुट्टी मैं भी आप से नहीं छीन सकती.’’

अदिति मुसकरा रही थी. अब रवि ने वह कागज अदिति मैम के हाथ से ले लिया और उसे पढ़ कर अब वह भी मुसकरा उठा, ‘‘थैंक्यू मैम,’’ रवि ने खुश होते हुए कहा. रवि की आंखों में कृतज्ञता झलक रही थी.

‘‘इट्स ओके रवि,’’ अदिति अब गंभीर मुद्रा में कह रही थी

कैबिन में कुछ लमहों तक खामोशी छा गई थी. अदिति ने उस खामोशी को तोड़ा, ‘‘रवि, ये ‘इट्स ओके’ तुम्हारे उस 10 साल पहले के सौरी के लिए है, जो तुम ने फेसबुक पर मैसेज किया था.’’

रवि चुपचाप खड़ा हो गया था. फिर कुछ देर बाद बोला, ‘‘दरअसल, वह मेरी नासमझी थी. मैं ने फेसबुक माध्यम को समझने में ही गलती कर दी थी. मुझे नहीं मालूम था कि किसी की तसवीर बिना पूछे अपलोड कर देना गलत है.’’

‘‘आई एम आलसो सौरी,’’ अदिति कह रही थी.

‘‘किसलिए मैम,’’ रवि जैसे अब सारी नफरत भुला चुका था.

‘‘गलती मेरी भी थी. मैं जरूरत से ज्यादा ही तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार कर रही थी. मुझे वह प्रपोज वाली बात भी नहीं उड़ानी चाहिए थी,’’ अदिति की आंखों में भी जैसे कुछ पिघल रहा था, ‘‘मैं ने तुम्हें गलत समझा था.’’

‘‘इट्स ओके मैम,’’ रवि इतना कह कर चुप हो गया था.

अदिति ने फिर चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैं चाहती तो तुम से बदला लेती. तुम्हारी छुट्टियां कैंसिल कर देती. एक बार मैं ने सोचा भी, पर…’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अदिति जैसे कोई सटीक बात ढूंढ़ कर बोली, ‘‘कल को हो सकता है तुम मेरी जगह हो और मैं तुम्हारी जगह. इस तरह नफरत से जिंदगी नहीं जी जाती.’’

कुछ देर तक फिर खामोशी छाई रही और अदिति ने फिर कहा, ‘‘उम्मीद है, तुम ने मुझे माफ कर दिया होगा.’’

‘‘औफकोर्स मैम,’’ रवि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तो कल से तुम छुट्टी पर हो,’’ अदिति ने मुसकराते हुए रवि से पूछा.

‘‘जी मैम,’’ रवि ने भी हंस कर जवाब दिया.

‘‘ओके, ऐंजौय यौर्स हौलीडेज. तुम जा सकते हो,’’ अदिति इतना कह कर आंख बंद कर अपनी कुरसी पर पीठ टेक कर बैठ गई जैसे कोई भारी बोझ कंधे से उतार दिया हो.

रवि जब बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोल रहा था, तब मुसकराते हुए अदिति ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रवि, हैप्पी दीवाली.’’

रवि भी मुसकरा दिया और बोला, ‘‘आप को भी, अदिति मैम.’’

इतना कहते हुए रवि मुसकराता हुआ बाहर आ गया. उन दोनों के बीच खड़ी कई साल पुरानी दीवारें अचानक ढह गई थीं. जिंदगी खुशियां बांट कर, उन का कारण बन कर चलती है, नफरतें पाल कर नहीं.

दीवाली के इस अवसर पर क्षमादान के दीपकों की जलती हुई लौ में रवि और अदिति के दिलों में नफरतों से भरे कुछ अंधेरे कोने रोशन हो चुके थे. Hindi Romantic Story

Romantic Story In Hindi: सौदा इश्क का – क्या दीपक और बाती अलग हुए?

Romantic Story In Hindi: रात के 11 बज चुके थे और बाती अपने बैडरूम में चहलकदमी कर रही थी. बैड पर उस का 2 साल का बेटा ऊष्मित सो रहा था. इस तरह से चहलकदमी करते हुए दीपक का इंतजार करना पिछले 6 महीनों से बाती की आदत बन चुका था. उसे पता था कि आजकल दीपक के आने का यही समय है… बाती सोच ही रही थी कि सन्नाटे को चीरती हुई डोरबैल बजी.

“आखिर यह कब तक चलेगा दीपक?” बाती ने कहा, “आज ऊष्मित को अचानक हलका बुखार आ गया था. सोचा कि तुम्हारे साथ जा कर डाक्टर को दिखा दूंगी. इसी वजह से शाम को तकरीबन साढ़े 6 बजे तुम्हें फोन लगाया था, मगर तुम्हारा फोन स्विच औफ आ रहा था.

“तब मैं ने तुम्हारे औफिस फोन लगाया तो पता चला कि तुम तो औफिस से 6 बजे ही निकल गए हो और पिछले दिनों कभी भी 6 बजे से ज्यादा नहीं रुके हो.”

“चलो अच्छा ही हुआ जो तुम्हें पता चल गया. वैसे मैं खुद ही बताने वाला था. अब हम साथ में नहीं रह सकते,” दीपक का जवाब भी नपातुला था.

“साथ में नहीं रह सकते? क्या मतलब है तुम्हारा? क्या कोई दूसरा अफेयर है तुम्हारा?” बाती की आवाज अभी भी संयमित ही थी. शायद दीपक के औफिस से सूचना मिलने के बाद वह समझ गई थी कि ऐसा ही कुछ होने वाला है.

“हां, मेरा ज्योति के साथ कालेज के दिनों से ही अफेयर है. उस की और मेरी सरकारी नौकरी भी एक ही साथ लगी थी. पर दोनों के महकमे अलगअलग थे. उस की पोस्टिंग 400 किलोमीटर दूर शहर में हो गई थी.अभी 8 महीने पहले ही उस का ट्रांसफर यहां हुआ है. कलक्टर औफिस में मीटिंग के दौरान ही उस से मुलाकात हुई थी.

“ज्योति ने अभी तक मेरे इंतजार में शादी नहीं की है. मैं उसे आज भी उतना ही चाहता हूं, जितना 5 साल पहले चाहता था,” दीपक सिर झुकाए बोल रहा था.

“मुझे इसी बात का डर था…” बाती की  आंखों में आंसू थे, मगर आवाज अभी भी कंट्रोल में थी, ”आज कम से कम तुम्हारे साथ नहीं सो सकती. प्लीज, तुम दूसरे बैडरूम में सो जाओ.”

“सौरी बाती, तुम में कोई कमी नहीं है. तुम बहुत ही अच्छी पत्नी और बेहतरीन मां हो. मगर मैं अपने पुराने प्यार को भुला नहीं सकता, वह भी तब जबकि वह मेरे लिए इंतजार कर रही हो.

“अगर मैं उस के साथ न रहूं तो यह मेरी खुदगर्जी होगी. मुझे माफ कर दो बाती,” दीपक पछतावे से भरी आवाज में बोला.

“यह तो मैं भी जानती हूं दीपक कि मुझे उस गुनाह की सजा मिली रही है जो मैं ने किया ही नहीं. लेकिन मैं खुद 21वीं सदी की एक पढ़ीलिखी औरत हूं और इस बात की भी हिमायती हूं कि हर इनसान को उस की पसंद की जिंदगी जीने का हक है. मैं तुम्हारी इस करतूत पर चीखूंगीचिल्लाऊंगी नहीं, पर मैं अपने हकों को छोड़ूंगी भी नहीं.

“मैं अकेली होती तब भी कोई बात नहीं थी, मगर अब मुझ पर ऊष्मित की जवाबदारी भी है,” बाती मजबूती के साथ यकीन भरी आवाज में बोली, “अब मुझे अकेला छोड़ दो और तुम दूसरे बैडरूम में सो जाओ,” यह कहतेकहते बाती की आंखों में आंसू आ गए.

दीपक अपराधियों की तरह सिर झुकाए दूसरे कमरे में चला गया.

“आज मैं तुम्हारा लंच बनाने की हालत में नहीं हूं. शाम को लौटते समय अपने साथ ज्योति को भी लेते आना. मैं इस बारे में तुरंत फैसला करना चाहती हूं,” अगली सुबह बाती ने औफिस जाते हुए दीपक से कहा.

“मेरी भी यही इच्छा है कि तुम दोनों आपस में रजामंदी से कोई फैसला कर लो,” दीपक भी धीमी आवाज में बोला. शायद उसे अपने अपराध  का एहसास हो रहा था.

शाम को दीपक अपने साथ ज्योति को भी ले कर आ गया. ज्योति लंबे व पतले शरीर वाली सांवली मगर आकर्षक नैननक्श की लड़की थी. उस की उम्र तकरीबन दीपक के ही बराबर थी.

“नमस्ते बातीजी, मेरा नाम ज्योति है. इस से ज्यादा मैं अपना परिचय आप के सामने दे नहीं सकती,” ज्योति अपने चेहरे पर एक जबरन ओढ़ी हुई फीकी सी मुसकान के साथ बोली. वैसे, यह सब कहते हुए ज्योति की आवाज कंपकपा रही थी, जो इस बात का सुबूत था कि उसे भी अपने अपराधी होने का एहसास है.

“शायद मैं तो खुद अपना परिचय खो चुकी हूं. पता नहीं मैं अपने आप को बाती दीपक कुमार कहूं या सिर्फ बाती  कहूं,” बाती रूखी आवाज में बोली.

“देखिए बातीजी, जोकुछ हुआ, उस के लिए हम सब सिर्फ समय को ही दोष दे सकते हैं. वैसे मैं अपनी तरफ से चाहती हूं कि हम दोनों एक ही घर में रहे. मैं हम तीनों की जिंदगी को कंट्रोल करने वाली सभी चाबियां आप को सौंपने को तैयार हूं.

“यहां तक कि मेरी और दीपक की जो तनख्वाह आती है उस पर भी सौ फीसदी आप का ही हक रहेगा. आप जैसा चाहेंगी मैं वैसा तालमेल बैठाने को तैयार हूं,” ज्योति की आवाज में मानो पछतावा झलक रहा था.

“एक औरत का सब से बड़ा हक उस का अपना पति ही होता है. मुझे यकीनी तौर पर मालूम है कि तुम मुझे मेरा यह हक देने वाली नहीं हो. रही बात साथ रहने की तो अब मैं अकेली नहीं हूं, मेरी एक जवाबदारी और भी है 2 साल के ऊष्मित के रूप में.

“अगर ऊष्मित बचपन से ही झूठ और नाइंसाफी को अपनी आंखों के सामने फलतेफूलते देखेगा तो उस के बाल मन पर गलत असर पड़ेगा. मेरा सपना है कि मैं उसे एक अच्छा नागरिक बनाऊं. ऐसे माहौल में मैं उसे संस्कारवान बनने की सीख कैसे दे पाऊंगी? बड़ा हो कर क्या वह अपने पिता को माफ कर पाएगा?

“भविष्य में तुम्हारे भी बच्चे होंगे ही. तब हकों की लड़ाई होगी. उस समय मैं खुद शायद कोई एकतरफा फैसला लूं, इसलिए अलग होना ही बेहतर होगा,” बाती ने भविष्य के सवालों के साथ जवाब दिया.

“तब तुम ही बताओ कि इस समस्या का हल कैसे होगा?” दीपक ने पूछा.

“आज जबकि ऊष्मित छोटा है और मेरी माली जरूरतें कम हैं, पर जैसेजैसे ऊष्मित बड़ा होता जाएगा, वैसेवैसे मेरी जरूरतें बढ़ती जाएंगी. मैं चाहती हूं कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर ही कोई फैसला लिया जाए,” बाती ने अपना पक्ष रखते हुए कहा.

“मैं भी बातीजी की बातों से सहमत हूं. आमतौर पर अदालतों में जो रकम तय की जाती है, वह बहुत कम होती है,” ज्योति बोली.

“ऐसा तो तभी मुमकिम है जब बाती को कोई नौकरी दिलवा दी जाए, जिस से हर साल तनख्वाह में कुछ न कुछ इजाफा होता रहे,” दीपक बोला.

“आज की कंडीशन में ऊष्मित को अकेले छोड़ कर नौकरी करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है. वैसे भी प्राइवेट नौकरी में जाने का समय तो तय होता है, मगर लौटने में कई बार घंटों की देरी हो जाती है. शादी से पहले मैं जिस कंपनी में काम करती थी, उस में कई बार मुझे 12-12 घंटे काम करना होता था,” बाती बोली.

“बातीजी ठीक कह रही हैं. प्राइवेट नौकरी में टैंशन भी बहुत ज्यादा रहती है,” ज्योति बाती की बातों से सहमत होते हुए बोली.

“लेकिन ज्योति, मैं और तुम सरकारी नौकरी में हैं और यह भी जानते हैं कि सरकारी नौकरी मिलना आज की तारीख में एक मुश्किल काम है,” दीपक की आवाज में मजबूरी झलक रही थी.

“मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं. मैं बातीजी के लिए एक निश्चित उपाय चाहती हूं,” ज्योति बोली.

“मतलब? तुम क्या कहना चाहती हो ज्योति?” दीपक ने पूछा.

“दीपक, सही कहूं तो मैं तुम्हें पाने की आस खो चुकी थी. तुम मुझे दोबारा मिले हो. मैं बातीजी की भी शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरी भावनाओं का मान रखते हुए तुम्हें मुझे सौंपने का हिम्मत से भरा फैसला लिया.

“अब मेरी बारी है कि मैं उन्हें एक बेहतरीन जिंदगी जीने के लिए रिटर्न गिफ्ट दूं, चाहे इस के लिए मुझे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े…” ज्योति की आवाज में एक मजबूती थी, “पर इस के लिए दीपक तुम्हें एक बार मरना पड़ेगा.”

“मरना पड़ेगा मतलब?” दीपक ने हैरानी से पूछा.

“यहां पर बैठेबैठे और बातीजी से बात करतेकरते मेरे दिमाग में एक योजना आई है. इस से सभी की समस्याएं सुलझ जाएंगी और किसी तरह की कोई दिक्कत भी नहीं आएगी, क्योंकि यह एक हादसा होगा और इस की गवाह एक सरकारी अफसर मतलब मैं खुद होंगी.”

“हादसा? कैसा हादसा? और अगर मैं मर ही जाऊंगा तो तुम्हारे साथ रहेगा कौन?” दीपक का हैरान होना इस बार दोगुना था. वह किसी बेवकूफ की तरह ज्योति की तरफ देखने लगा.

“देखो दीपक, चाहे हम दोनों मानें या न मानें, मगर सामाजिक नजरिए से हमारा रिश्ता गलत है और समाज में इसे आसानी से मंजूरी नहीं मिलेगी. हमें साथ रहने के लिए या तो अपना धर्म बदलना होगा या अपनी पहचान ही बदलनी होगी.

“अगर हम कानूनी झमेलों में पड़ेंगे तो कई साल निकल जाएंगे और तीनों के हाथ में कुछ नहीं आएगा,” ज्योति बोली.

“तो फिर तुम ने क्या सोचा है?” दीपक ने पूछा.

“मैं आज जिस ओहदे पर हूं, उस में मेरे एक इशारे पर मैं किसी भी आदमी को एक नई पहचान दिलवा सकती हूं. मतलब मैं किसी भी आदमी के आधारकार्ड में बदलाव करवा सकती हूं, जिस के आधार पर वह अपनी एक नई पहचान बनवा सकता है,” ज्योति ने अपनी योजना के कुछ अंशों का खुलासा किया.

“मैं अभी भी नहीं समझा,” दीपक एकटक ज्योति को देखते हुए बोला.

“बातीजी की पैसों को ले कर ही समस्या है न? हम उसी का हल कर रहे हैं. मेरी योजना यह है कि तुम और बातीजी अगले रविवार को शहर से दूर जो नहर है उस पर पिकनिक मनाने जाओ. रुकने के लिए उस जगह को चुनो जहां पर पानी का बहाव तेज हो और तुम दोनों के अलावा वहां कोई न हो.

“उसी जगह पर मस्ती करते हुए दीपक का पैर फिसल जाएगा. बहाव तेज होने के चलते दीपक दूर बह जाएगा. इस बात का खास ध्यान रखा जाए कि बातीजी दीपक की मस्ती करने वाली घटना का वीडियो बना लेंगी,” ज्योति ने योजना को समझाया.

“बहते हुए मैं जाऊंगा कहां? मुझे तो तैरना भी नहीं आता,” दीपक परेशान होते हुए बोला.

“इस के बाद इस ड्रामे का दूसरा पार्ट स्टार्ट होगा. यहां आने से पहले मैं जिस जगह पोस्टेड थी वह यहां से 400 किलोमीटर दूर है. वहां का सरकारी बंगला भी मैं ने अभी तक खाली नहीं किया है. तुम तैरना नहीं जानते हो यह बात हमारे लिए प्लस पौइंट होगी.

“15-20 फुट बहने के बाद मेरे बुलाए हुए आदमी तुम्हें बचा लेंगे और तुम्हें अपनी ही गाड़ी से उस सरकारी बंगले पर छोड़ देंगे,” ज्योति ने अपनी योजना का और खुलासा किया.

“मगर वहां पर मुझे बचाने की टीम पहुंचेगी किस के कहने पर?” दीपक ने पूछा.

“वह टीम लोकल नहीं होगी और उसी जगह से आएगी जहां पर मैं पहले पोस्टेड थी. बचाने वाली टीम और गाड़ी का इंतजाम मैं कर दूंगी. मैं खुद भी उस जगह से कुछ दूर मौजूद रहूंगी,” ज्योति योजना पर से परदा हटाते हुए बोली.

“मगर तुम्हारे वहां आने की वजह क्या होगी?” दीपक एक बार फिर हैरान था.

“अरे भई, मैं भी इनसान हूं और अपनी छुट्टी के दिन आउटिंग के लिए तो जा ही सकती हूं न? बस, उस दिन भी अपना मूड चेंज करने के लिए आउटिंग पर आ जाऊंगी और तुम्हारे पानी में बहने के बाद जब बातीजी मदद के लिए चिल्लाएंगी, तब सब से पहले मैं ही वहां पर पहुंचूंगी.

“इस तरह से मैं एक चश्मदीद गवाह का काम भी करूंगी. सरकारी अफसर की गवाही पर कोई भी सवाल नहीं उठाएगा,” ज्योति बोली.

“हांहां, अब मैं तुम्हारी योजना को समझ गया. उधर तुम्हारी गाड़ी और तुम्हारे लोग मुझे ले कर तुम्हारे उस बंगले पर जाएंगे और इधर तुम मुझे मृत घोषित करवा कर मेरी जगह बाती को मेरी जगह नौकरी और मेरे बीमे के पैसे दिलवा दोगी,” दीपक योजना समझते हुए बोला.

“एकदम सही. वहां पर तुम्हारा रहनेखाने का सारा इंतजाम होगा. यहां पर ज्यादा से ज्यादा 6 महीनों में मैं यह काम खत्म कर दूंगी. उस के बाद वापस उसी जगह पर अपना ट्रांसफर करवा लूंगी,” ‘ज्योति बोली.

“लेकिन वहां पहुंचने के बाद भी मैं रहूंगा तो दीपक ही न? मेरी पहचान अभी तक बदली नहीं है,” दीपक कुछ बेचैन होते हुए बोला.

“अभी मेरी योजना पूरी नहीं हुई है. वहां पहुंचने के बाद तुम्हें घर पर नहीं बैठना है, बल्कि तुम्हें अपना नाम बदलवाने के सिलसिले में एक शपथपत्र बनवा कर कलक्टर औफिस में देना है. इस तरह के शपथपत्र बनवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. तुम्हें अपना नाम बदल कर लौ कुमार रखना होगा.

“चूंकि नहर के तेज बहाव में बहने के बाद तुम्हारी लाश नहीं मिली होगी, इसलिए श्मशान घाट पर तुम्हारे नाम की कोई ऐंट्री नहीं होगी. मतलब तुम्हारा आधारकार्ड अलाइव रहेगा और हम उस में बदले हुए नाम का अपडेट आसानी से करवा पाएंगे,” ज्योति ने योजना का खुलासा किया.

“क्या सिर्फ कलक्टर के औफिस में शपथपत्र देने भर से नाम बदल जाता है?” दीपक ने पूछा.

“नहीं, इस की एक प्रक्रिया होती है. सब से पहले इस बारे में किसी नामी अखबार में जाहिर सूचना के जरीए नाम बदलवाने के लिए इश्तिहार छपवाना होता है, जिस में वजह देनी होती है. हम तुम्हारा नया नाम लौ कुमार रखेंगे.

“उस के बाद कलक्टर के औफिस में सभी कागजात के साथ अर्जी देनी होती है. कलक्टर की सिफारिश पर राज्य शासन इसे गजट में छापता है. एक बार गजट में नाम आने के बाद उसी नाम से बाकी कागजात में नाम आसानी से बदलवाया जा सकता है,” ज्योति ने पूरा ब्योरा दिया.

“मगर लौ कुमार नाम कुछ अटपटा नहीं होगा?” दीपक ने पूछा.

“नहीं, यह नाम बहुत सोचसमझ कर रखा गया है. अगर कभी तुम्हारा कोई पुराना जानकार मिल जाता है तो यह सफाई देने में आसानी होगी कि छात्र जीवन में दोस्तों को लौ कुमार बोलने में परेशानी होती थी, इसलिए उन्होंने लौ कुमार का पर्यायवाची दीपक कुमार तुम्हारा नाम रख दिया और वे तुम्हें इसी नाम से बुलाते हैं.

“वैसे बेहतर तो यही होगा कि तुम अपने किसी पुराने जानपहचान वाले से मिलो ही नहीं,” ज्योति की आवाज में चेतावनी और समझाइश दोनों ही थीं.

“यकीनन यह योजना तो काफी अच्छी और आकर्षक है. तुम्हारे कारण से सुरक्षित भी. इस योजना से हम सभी की समस्याएं भी हल हो रही हैं. तुम्हें तो कोई परेशानी नहीं है न बाती?”दीपक ने पूछा.

“मैं एतराज कर के करूंगी भी क्या? मेरे सामने अब सिर्फ ऊष्मित का भविष्य है. मैं यहां साफ कर देना चाहती हूं कि मुझे किसी कानूनी झमेले में मत फंसाना,” बाती की आवाज में रूखापन साफ झलक रहा था.

“वैसे तो मैं और दीपक मिल कर भी यह योजना बना सकते थे, मगर आप की जानकारी में भी सारी बातें रहें इसी वजह से यह योजना आप के सामने बनाई जा रही है, ताकि भविष्य में कोई शक न रहे,” ज्योति ने अपना रुख साफ करते हुए कहा.

“वैसे भी बाती, तुम्हें जोकुछ मिल रहा है वह तुम्हारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा है,” दीपक ज्योति की बातों से सहमत होते हुए बोला.

15 दिनों के बाद अखबारों में इस हादसे का पूरा ब्योरा छपा, साथ ही छपी ज्योति की आंखों देखी गवाही.

तकरीबन 4 महीने के बाद ज्योति की मदद से बाती को दीपक की जगह नौकरी मिल गई और बीमे का पैसा भी. लौ कुमार और ज्योति भी अपनी नई जिंदगी में बिजी हो गए. ज्योति ने लौ कुमार को भी सरकारी मदद से लोन दिलवा कर एक फैक्टरी डलवा दी. Romantic Story In Hindi

Romantic Story In Hindi: सजा – क्या सुमित के साथ अंकिता ने खत्म किया अपना रिश्ता

Romantic Story In Hindi: वेटर को कौफी लाने का और्डर देने के बाद सुमित ने अंकिता से अचानक पूछा, ‘‘मेरे साथ 3-4 दिन के लिए मनाली घूमने चलोगी?’’ ‘‘तुम पहले कभी मनाली गए हो?’’

‘‘नहीं.’’ ‘‘तो उस खूबसूरत जगह पहली बार अपनी पत्नी के साथ जाना.’’

‘‘तब तो तुम ही मेरी पत्नी बनने को राजी हो जाओ, क्योंकि मैं वहां तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूं.’’ ‘‘यार, एकदम से जज्बाती हो कर शादी करने का फैसला किसी को नहीं करना चाहिए.’’

सुमित उस का हाथ पकड़ कर उत्साहित लहजे में बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा साथ मुझे इतनी खुशी देता है कि वक्त के गुजरने का पता ही नहीं चलता. यह गारंटी मेरी रही कि हम शादी कर के बहुत खुश रहेेंगे.’’ उस के उत्साह से प्रभावित हुए बिना अंकिता संजीदा लहजे में बोली, ‘‘शादी के लिए ‘हां’ या ‘न’ करने से पहले मैं तुम्हें आज अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें बताना चाहती हूं, सुमित.’’

सुमित आत्मविश्वास से भरी आवाज में बोला, ‘‘तुम जो बताओगी, उस से मेरे फैसले पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है.’’ ‘‘फिर भी तुम मेरी बात सुनो. जब मैं 15 साल की थी, तब मेरे मम्मीपापा के बीच तलाक हो गया था. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने के कारण उन के बीच रातदिन झगड़े होते थे.

‘‘तलाक के 2 साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. ढेर सारी दौलत कमाने की इच्छुक मेरी मां ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया. आज वे इतनी अमीर हो गई हैं कि समाज की परवा किए बिना हर 2-3 साल बाद अपना प्रेमी बदल लेती हैं. हमारे जानकार लोग उन दोनों को इज्जत की नजरों से नहीं देखते हैं.’’ अंकिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए रुकी हुई है, यह देख कर सुमित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मैं मानता हूं कि हर इंसान को अपने हिसाब से अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार होना ही चाहिए. तलाक लेने के बजाय रातदिन लड़ कर अपनीअपनी जिंदगी बरबाद करने का भी तो उन दोनों के लिए कोई औचित्य नहीं था. खुश रहने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना, वह सब को स्वीकार करना चाहिए.’’

‘‘क्या तुम सचमुच ऐसी सोच रखते हो या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोल रहे हो?’’ ‘‘झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है, अंकिता.’’

‘‘गुड, तो फिर शादी की बात आगे बढ़ाते हुए कौफी पीने के बाद मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलाने ले चलती हूं.’’ ‘‘मैं उन्हें इंटरव्यू देने के लिए बिलकुल तैयार हूं,’’ सुमित बोला तो उस की आंखों में उभरे प्रसन्नता के भाव पढ़ कर अंकिता खुद को मुसकराने से नहीं रोक पाई.

आधे घंटे बाद अंकिता सुमित को ले कर अपनी मां सीमा के ब्यूटी पार्लर में पहुंच गई.

आकर्षक व्यक्तित्व वाली सीमा सुमित से गले लग कर मिली और पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से हैरान नजर आ रहे हो कि हम मांबेटी की शक्लें आपस में बहुत मिलती हैं?’’ ‘‘आप ने मेरी हैरानी का बिलकुल ठीक कारण ढूंढ़ा है,’’ सुमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘हम दोनों की अक्ल भी एक ही ढंग से काम करती है.’’ ‘‘वह कैसे?’’

‘‘हम दोनों ही ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती हैं. उन लोगों से संबंध रखना हमें बिलकुल पसंद नहीं जो हमारी जिंदगी में टैंशन पैदा करने की फिराक में रहते हों.’’ ‘‘मम्मी, अब सुमित से भी इस के बारे में कुछ पूछ लो, क्योंकि यह मुझ से शादी करना चाहता है,’’ अंकिता ने अपनी बातूनी मां को टोकना उचित समझा था.

‘‘रियली, दिस इज गुड न्यूज,’’ सीमा ने एक बार फिर सुमित को गले से लगा कर खुश रहने का आशीर्वाद दिया और फिर अपनी बेटी से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सुमित को अपने पापा से मिलवाया है?’’ ‘‘अभी नहीं.’’

सीमा मुड़ कर फौरन सुमित को समझाने लगी, ‘‘जब तुम इस के पापा से मिलो, तो उन के बेढंगे सवालों का बुरा मत मानना. उन्हें करीबी लोगों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की गंदी आदत है, क्योंकि वे समझते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई और हो ही नहीं सकता.’’ ‘‘मौम, सुमित यहां आप की शिकायतें सुनने नहीं आया है. आप उस के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं पूछ रही हैं?’’ अंकिता ने एक बार फिर अपनी मां को विषय परिवर्तन करने की सलाह दी.

‘‘ओकेओके माई डियर सुमित, मुझे तो तुम से एक ही सवाल पूछना है. क्या तुम अंकिता के लिए अच्छे और विश्वसनीय जीवनसाथी साबित होंगे?’’ ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि शादी के बाद हम बहुत खुश रहेंगे,’’ सुमित ने बेझिझक जवाब दिया.

‘‘मैं नहीं चाहती कि अंकिता मेरी तरह जीवनसाथी का चुनाव करने में गलती करे. मेरी सलाह तो यही है कि तुम दोनों शादी करने का फैसला जल्दबाजी में मत करना. एकदूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद अगर तुम दोनों शादी करने का फैसला करते हो, तो सुखी विवाहित जीवन के लिए मेरा आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर मिलेगा.’’

‘‘थैंक यू, आंटी. मैं तो बस, अंकिता की ‘हां’ का इंतजार कर रहा हूं.’’ ‘‘गुड, प्लीज डोंट माइंड, पर इस वक्त मैं जरा जल्दी में हूं. मैं ने एक खास क्लाइंट को उस का ब्राइडल मेकअप करने के लिए अपौइंटमैंट दे रखा है. तुम दोनों से फुरसत से मिलने का कार्यक्रम मैं जल्दी बनाती हूं,’’ सीमा ने बारीबारी दोनों को प्यार से गले लगाया और फिर तेज चाल से चलती हुई पार्लर के अंदरूनी हिस्से में चली गई.

बाहर आ कर सुमित सीमा से हुई मुलाकात के बारे में चर्चा करना चाहता था, पर अंकिता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘मैं लगे हाथ अपने पापा को भी तुम्हारे बारे में बताने जा रही हूं. मेरे फोन का स्पीकर औन है. हमारे बीच कैसे संबंध हैं, यह समझने के लिए तुम हमारी बातें ध्यान से सुनो, प्लीज.’’ अंकिता ने अपने पापा को सुमित का परिचय देने के बाद जब उस के साथ शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, तो उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम सुमित को कल शाम घर ले आओ.’’

‘‘जरा सोचसमझ कर हमें घर आने का न्योता दो, पापा. आप मेरी जिंदगी में दिलचस्पी ले रहे हैं, यह देख कर आप की दूसरी वाइफ नाराज तो नहीं होंगी न?’’ अंकिता के व्यंग्य से तिलमिलाए उस के पापा ने भी तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम बिलकुल अपनी मां जैसी बददिमाग हो गई हो और उसी के जैसे वाहियात लहजे में बातें भी करती हो. पिता होने के नाते मैं तुम से दूर नहीं हो सकता, वरना तुम्हारा बात करने का ढंग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘आप दूर जाने की बात मत करिए, क्योंकि आप की सैकंड वाइफ ने आप को मुझ से पहले ही बहुत दूर कर दिया है.’’ ‘‘देखो, यह चेतावनी मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं कि कल शाम तुम उस के साथ तमीज से पेश…’’

‘‘मैं कल आप के घर नहीं आ रही हूं. सुमित को किसी और दिन आप के औफिस ले आऊंगी.’’ ‘‘तुम बहुत ज्यादा जिद्दी और बददिमाग होती जा रही हो.’’

‘‘थैंक यू एेंड बाय पापा,’’ चिढ़े अंदाज में ऐसा कह कर अंकिता ने फोन काट दिया था.

अपने मूड को ठीक करने के लिए अंकिता ने पहले कुछ गहरी सांसें लीं और फिर सुमित से पूछा, ‘‘अब बताओ कि तुम्हें मेरे मातापिता कैसे लगे? क्या राय बनाई है तुम ने उन दोनों के बारे में?’’ ‘‘अंकिता, मुझे उन दोनों के बारे में कोई भी राय बनाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. तुम्हें उन से जुड़ कर रहना ही है और मैं उन के साथ हमेशा इज्जत से पेश आता रहूंगा,’’ सुमित ने उसे अपनी राय बता दी.

उस का जवाब सुन अंकिता खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो शायद दुनिया के सब से ज्यादा समझदार इंसान निकलोगे. मुझे विश्वास होने लगा है कि हम शादी कर के खुश रह सकेंगे, पर…’’ ‘‘पर क्या?’’

‘‘पर फिर भी मैं चाहूंगी कि तुम अपना फाइनल जवाब मुझे कल दो.’’ ‘‘ओके, कल कब और कहां मिलोगी?’’

‘‘करने को बहुत सी बातें होंगी, इसलिए नेहरू पार्क में मिलते हैं.’’ ‘‘ओके.’’

अगले दिन रविवार को दोनों नेहरू पार्क में मिले. सुमित की आंखों में तनाव के भाव पढ़ कर अंकिता ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यार, इतनी ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो, अपना यह फैसला बताने से तुम घबराओ मत.’’ उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए सुमित गंभीर लहजे में बोला, ‘‘कल रात को किसी लड़की ने मुझे फोन कर राजीव के बारे में बताया है.’’

‘‘यह तो उस ने अच्छा काम किया, नहीं तो आज मैं खुद ही तुम्हें उस के बारे में बताने वाली थी,’’ अंकिता ने बिना विचलित हुए जवाब दिया. ‘‘क्या तुम उस के बहुत ज्यादा करीब थी?’’

‘‘हां.’’ ‘‘तुम दोनों एकदूसरे से दूर क्यों हो गए?’’

‘‘उस का दिल मुझ से भर गया… उस के जीवन में दूसरी लड़की आ गई थी.’’ ‘‘क्या तुम उस के साथ शिमला घूमने गई थी?’’

‘‘हां.’’ ‘‘क्या तुम वहां उस के साथ एक ही कमरे में रुकी थी?’’

उस की आंखों में देखते हुए अंकिता ने दृढ़ लहजे में जवाब दिया, ‘‘रुके तो हम अलगअलग कमरों में थे, पर मैं ने 2 रातें उस के कमरे में ही गुजारी थीं.’’ उस का जवाब सुन कर सुमित को एकदम झटका लगा. अपने आंतरिक तनाव से परेशान हो वह दोनों हाथों से अपनी कनपटियां मसलने लगा.

‘‘मैं तुम से इस वक्त झूठ नहीं बोलूंगी सुमित, क्योंकि तुम से… अपने भावी जीवनसाथी से अपने अतीत को छिपा कर रखना बहुत गलत होगा.’’ ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम से शादी करना चाहता हूं, पर…पर…’’

‘‘मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि तुम्हारे मन में इस वक्त क्या चल रहा है, सुमित. अच्छा यही रहेगा कि इस मामले में तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं खुद नहीं चाहती हूं कि तुम जल्दबाजी में मुझ से शादी करने का फैसला करो.’’ बहुत दुखी और परेशान नजर आ रहे सुमित ने अपना सारा ध्यान अंकिता पर केंद्रित कर दिया.

अंकिता ने उस की आंखों में देखते हुए गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘राजीव मुझ से बहुत प्रेम करने का दम भरता था और मैं उस के ऊपर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. इसीलिए जब उस ने जोर डाला तो मैं न उस के साथ शिमला जाने से इनकार कर सकी और न ही कमरे में रात गुजारने से. ‘‘मैं ने फैसला कर रखा है कि उस धोखेबाज इंसान को न पहचान पाने की अपनी गलती के लिए घुटघुट कर जीने की सजा खुद को बिलकुल नहीं दूंगी. अब तुम ही बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?

‘‘क्या मैं आजीवन अपराधबोध का शिकार बन कर जीऊं? तुम्हारे प्रेम का जवाब प्रेम से न दूं? तुम से शादी हो जाए, तो हमेशा डरतीकांपती रहूं कि कहीं से राजीव और मेरे अतीत के नजदीकी रिश्तों के बारे में तुम्हें पता न लग जाए? ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम भावुक हो कर शादी के लिए ‘हां’ मत कहो. तुम्हें राजीव के बारे में पता है… मेरे मातापिता के तलाक, उन की जीवनशैली और उन के मेरे तनाव भरे रिश्तों की जानकारी अब तुम्हें है.

इन सब बातों को जान कर तुम्हारे मन में मेरी इज्जत कम हो गई हो या मेरी छवि बिगड़ गई हो, तो मेरे साथ सात फेरे लेने का फैसला बदल दो.’’ अंकिता की सारी बातें सुन कर सुमित जब खामोश बैठा रहा, तो अंकिता उठ कर खड़ी हो गई और बुझे स्वर में बोली, ‘‘तुम अपना फाइनल फैसला मुझे बाद में फोन कर के बता देना. अभी मैं चलती हूं.’’

पार्क के गेट की तरफ बढ़ रही अंकिता को जब सुमित ने पीछे से आवाज दे कर नहीं रोका, तो उस के तनमन में अजीब सी उदासी और मायूसी भरती चली गई थी. आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए जब वह आटोरिकशा में बैठने जा रही थी, तभी सुमित ने पीछे से आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस की फूली सांसें बता रही थीं कि वह दौड़ते हुए वहां

पहुंचा था. ‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से जिंदगी से दूर नहीं होने दूंगा, मैडम,’’ सुमित ने उस का हाथ थाम कर भावुक लहजे में अपने दिल की बात कही.

‘‘मेरे अतीत के कारण तुम हमारी शादी होने के बाद दुखी रहो, यह मेरे लिए असहनीय बात होगी. सुमित, अच्छा यही रहेगा कि हम दोस्त…’’ उस के मुंह पर हाथ रख कर सुमित ने उसे आगे बोलने से रोका और कहा, ‘‘जब तुम चलतेचलते मेरी नजरों से ओझल हो गई, तो मेरा मन एकाएक गहरी उदासी से भर गया था…वह मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने की घड़ी थी…और मैं ने फैसला कर लिया है.

‘‘मेरा फैसला है कि मुझे अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे ही साथ गुजारनी है.’’ ‘‘सुमित, भावुक हो कर जल्दबाजी में…’’

उस के कहे पर ध्यान दिए बिना बहुत खुश नजर आ रहा सुमित बोले जा रहा था, ‘‘मेरा यह अहम फैसला दिल से आया है, स्वीटहार्ट. अतीत में किसी और के साथ बने सैक्स संबंध को हमारे आज के प्यार से ज्यादा महत्त्व देने की मूढ़ता मैं नहीं दिखाऊंगा. विल यू मैरी मी?’’ ‘‘पर…’’

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ और फटाफट ‘हां’ कर दो, माई लव,’’ सुमित ने अपनी बांहें फैला दीं. ‘‘हां, माई लव,’’ खुशी से कांप रही आवाज में अपनी रजामंदी प्रकट करने के बाद अंकिता सुमित की बांहों के मजबूत घेरे में कैद हो गई. Romantic Story In Hindi

Love Story In Hindi: एक सवाल – क्यों दूर हो गए आकाश और कोमल?

Love Story In Hindi, लेखिका- Bhawna Gaur

‘‘आकाश तुम अपनी सेहत का बिलकुल खयाल नहीं रखते हो. शादी के 10 साल बाद भी रिंकू मिंकू से ज्यादा मुझे तुम्हारा खयाल रखना पड़ता है,’’ जल्दीजल्दी टिफिन तैयार करती कोमल बोले जा रही थी और आकाश फोन आने पर बदहवास सा भागने लगा.

‘‘उफ, टिफिन तो लेते जाओ,’’ कहते हुए हाथों में टिफिन पकड़े कोमल उस के पीछे लगभग दौड़ ही पड़ी.

टिफिन लेते ही आकाश की गाड़ी धुआं उड़ाती चली गई.

कोमल को अब जा कर फुरसत से चाय पीने का मौका मिला. शादी के 5 साल तक उन के कोई संतान नहीं थी. तब सुबह की चाय कोमल और आकाश हमेशा साथ पीते थे. पड़ोस में रहने वाली शीला मौसी का जिक्र छिड़ते हुए कोमल उदास हो कर जब कभी बताती कि पता है आकाश, शीला मौसी के दोनों बेटे विदेश में बस गए हैं, पर वे अकेली रहते हुए भी शान से कहती हैं कि साथ नहीं रह सकते तो क्या हुआ. कुदरत ने उन्हें 2-2 बेटे तो दिए. यह बतातेबताते जब कोमल लगभग रोआंसी सी हो जाती. तब आकाश प्यार से उस का हाथ थाम कर कहता, ‘‘डाक्टर ने कहा है न कि जल्द ही हमारे घर भी प्यारा सा बच्चा आ जाएगा. तुम बिलकुल परेशान न हो.’’

यह सुन कोमल शीघ्र ही सहज हो जाती. आकाश का अपनत्वपूर्ण स्पर्श उसे एक नए आत्मविश्वास से भर देता.

कोमल की पड़ोसिन दिव्या रेडियो आर जे की नौकरी करती थी. उस की नन्ही बेटी मिन्नी कोमल को बड़ी प्यारी लगती. एक दिन कोमल दोपहर को बालकनी में खड़ी थी. दिव्या के घर पर नजर पड़ी तो देखा नन्ही मिन्नी अपना स्कूल बैग लिए दरवाजे के बाहर बैठी है. कोमल का दिल ममता से भर आया. अत: मिन्नी को घर बुला कर कुछ स्नैक्स खाने को दिए. फिर दिव्या को फोन किया तो पता चला कि अचानक किसी मीटिंग की वजह से उसे आज आने में देर हो जाएगी. तब कोमल ने उसे मिन्नी का ध्यान रखने का आश्वासन दिया.

दिव्या जब औफिस से आई तो अपनी बेटी का ध्यान रखने के लिए कोमल का आभार व्यक्त किया.

‘‘आगे से तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. दोबारा कभी ऐसा हुआ तो मैं खुशी से मिन्नी को अपने पास बुला लूंगी.’’

कोमल के यह कहने पर दिव्या बोली, ‘‘धन्यवाद कोमल, लेकिन अब आगे से ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि मैं ने एक प्ले स्कूल में बात कर ली है. अपने स्कूल से मिन्नी सीधे वहां पहुंच जाया करेगी. फिर शाम को औफिस से लौटते हुए मैं उसे ले आया करूंगी.’’

‘‘तो तुम्हें मिन्नी का मेरे साथ रहना पसंद नहीं,’’ कोमल उदास होते हुए बोली तो दिव्या प्यार से उस के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली, ‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है कोमल. तुम जब चाहो मिन्नी को अपने साथ ले जा सकती हो. लेकिन मेरा मानना है कि अपनी जरूरतों के लिए हमें स्वयं जिम्मेदारी लेनी चाहिए. मेरे पति के 3-3 फार्महाउस हैं. उन का ज्यादातर समय उन की देखरेख में ही बीत जाता है. मैं चाहूं तो नौकरी छोड़ कर आराम से घर पर रह सकती हूं, लेकिन मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं. अपनी कमाई का जो सुख होता है मैं उसे खोना नहीं चाहती.’’

कोमल दिव्या की बातों से बड़ी प्रभावित हुई. उस के मन में भी अपनी कमाई का सुख पाने की इच्छा बलवती होने लगी. फिर उसे जल्द ही इस का मौका भी मिल गया.

दिव्या के औफिस में कोई सहकर्मी अचानक बीमार पड़ गई. दिव्या ने कोमल को अस्थाई तौर पर अपने औफिस में काम करने का प्रस्ताव दिया तो कोमल ने तुरंत स्वीकार लिया.

आत्मविश्वास से भरी कोमल की आवाज से दिव्या के बौस प्रभावित हुए. कुछ ही दिनों में कोमल की आवाज रेडियो पर लोकप्रिय होने लगी. कोमल को जल्द ही स्थाई तौर पर काम करने का प्रस्ताव मिला. वह बेहद खुश थी. आकाश से उसे प्रोत्साहन मिला तो वह रेडियो की दुनिया में अपनी पहचान बनाती चली गई. इसी बीच कोमल की खुशी का तब ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि वह मां बनने वाली है.

कोमल ने अपने परिवार को प्राथमिकता दी. जब उसे पता चला कि उसे जुड़वां बच्चे पैदा होने वाले हैं, तो विनम्रता के साथ अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया. वक्त के साथ 2 नन्हे राजकुमार उस के जीवन में आए, तो वह निहाल हो उठी.

2-2 बच्चों की एकसाथ देखभाल से कोमल थक कर चूर हो जाती. लेकिन आकाश बच्चों की देखभाल में उस की मदद करने के बजाय अपना ज्यादातर समय औफिस को देता था. वह जब कभी आकाश को अपने बच्चों की किलकारियां सुनाने की कोशिश करती, आकाश उसे उतना ही दूर भागता महसूस होता. वह जितना ज्यादा आकाश के करीब जाना चाहती आकाश उस से उतना ही दूर जाता रहा. वह समझ नहीं पाती कि जुड़वां बच्चे पैदा कर के आखिर उस ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया कि आकाश उसे अपने से दूर करना चाहता है.

धीरेधीरे कोमल समझने लगी कि आकाश को अब उस का स्पर्श पसंद नहीं आता. अब आकाश जबतब औफिस के दौरे पर रहने लगा. अपने दोनों बच्चों की परवरिश की पूरी जिम्मेदारी कोमल के कंधों पर आ पड़ी. कुछ ही दिन पहले तो उस ने अपने बच्चों का चौथा जन्मदिन मनाया था. आकाश उस दिन भी मेहमानों की तरह आखिर में आया था.

उस दिन कोमल ने कुछ लोगों को आकाश के बारे में कुछ कानाफूसी करते सुना. मगर उस ने लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन कुछ दिनों बाद एक ऐसी घटना घटी कि उस ने कोमल का नजरिया ही बदल दिया.

हुआ यह कि एक दिन अचानक दिव्या उस के लिए एक इन्विटेशन कार्ड ले कर आई. रेडियो स्टेशन के लोग पूर्व कर्मचारियों के लिए एक पार्टी रख रहे थे, जिस में कोमल भी आमंत्रित थी. आकाश औफिस के दौरे पर गया हुआ था. बच्चों को प्ले स्कूल में छोड़ कर कोमल अतिथि होटल में पार्टी में शामिल होने गई. वहां उस ने आकाश को एक लड़की के साथ जाते देखा, तो हैरान हो आकाश के पीछे भागी. उन दोनों ने रूम नं. 512 में जा कर कमरा बंद कर लिया. उस ने होटल की रिसैप्शनिस्ट से कह कर रजिस्टर में देखा तो रूम नं. 512 के आगे ‘मिस्टर ऐंड मिसेज आकाश’ लिखा नाम उसे मुंह चिढ़ा रहा था. कोमल को तो जैसे काटो तो खून नहीं. इसी बीच दिव्या उसे ढूंढ़ती हुई वहां आ कर उसे पार्टी में ले गई.

दिव्या के पुराने बौस कह रहे थे, ‘‘कोमल, तुम्हारी आवाज को लोग आज भी याद करते हैं. तुम जब चाहो वापस आ सकती हो. यू आर मोस्ट वैलकम.’’

कोमल अन्यमनस्क सी वहां बैठी थी. जैसेतैसे पार्टी से निकल कर वह घर पहुंची. घर पहुंचते ही वह फूटफूट कर रो पड़ी. उसे पलपल छले जाने का एहसास कचोटने लगा. आज पहली बार उसे अपने नारी होने पर दुख हुआ. उस ने आकाश को फोन किया पर उस का फोन बंद मिला.

आकाश अगले दिन आया. कोमल ने उस से दौरे के बारे पूछताछ की तो वह हड़बड़ा गया. कोमल ने अतिथि होटल का नाम लिया तो आकाश गुस्से में कोमल को भलाबुरा कहता हुआ घर से बाहर चला गया.

कोमल को अब समझ में आने लगा कि क्यों आकाश उस से दूर रहना चाहता है. उसे लगता था कि पिता बनने का जो गौरव वह आकाश को दे रही है उस के बाद आकाश उसे पलकों पर बैठा कर रखेगा, लेकिन आकाश ने तो उसे अपनी जिंदगी से ही निकला फेंका. उस ने आकाश से बात करने की कोशिश की, लेकिन आकाश उस की कोई बात सुनने को तैयार ही न हुआ. कोमल ने बहुत मिन्नतें कीं, अपने बच्चों की दुहाई भी दी, लड़ाईझगड़ा भी किया, लेकिन आकाश पर कोई असर न हुआ. उस ने दोटूक जवाब दिया कि वह उसे और बच्चों के खर्च देता रहेगा, लेकिन निजी जीवन में वह क्या करता है, इस से उसे मतलब नहीं होना चाहिए.

कोमल ने मायके वापस जाने की सोची, लेकिन फिर सोचने लगी कि जब उस के मासूम बच्चों पर दुनिया की जबानें तलवार की तरह बरसेंगी तो वह किसकिस का मुंह बंद करती फिरेगी. वह उदासी में डूब गई. अब दिनरात सोच में डूबी रहती. अपनेआप को इतना ज्यादा अपमानित उस ने कभी महसूस नहीं किया था.

अचानक कोमल को अपने बौस का ‘यू आर मोस्ट वैलकम’ कहा वाक्य याद आया तो वह उठ खड़ी हुई. उस ने फोन कर के फिर से औफिस आने की बौस से इजाजत मांगी, तो जवाब में यही सुनने को मिला कि ‘यू आर मोस्ट वैलकम.’

कोमल अपमान की दुनिया से निकलना चाहती थी. वह अपनी जिंदगी के फटतेबिखरते पन्नों को समेट रही थी.

दिल के किसी कोने में आज भी कोमल को यह उम्मीद है कि शायद कभी आकाश को अपनी गलती का एहसास होगा. लेकिन एक सवाल यह भी है कि क्या वह उसे माफ कर पाएगी? Love Story In Hindi

Romantic Story In Hindi: एक कागज मैला सा – क्या था उस मैले कागज का सच?

Romantic Story In Hindi, लेखक- डा. विनय वाईकर

वासंती की तबीयत आज सुबह से ही कुछ नासाज थी. न बुखार था, न जुकाम, न सिरदर्द, न जिस्म टूट रहा था, फिर भी कुछ ठीक नहीं लग रहा था. लगभग 10 बजे पति दफ्तर गए और बिटिया मेघा कालेज चली गई.

वासंती ने थोड़ा विश्राम किया, लेकिन शारीरिक परिस्थिति में कुछ परिवर्तन होते न देख उन्होंने कालेज में फोन किया और प्रिंसिपल से 1 दिन की छुट्टी मांग ली. हलका सा भोजन कर वे लेटने ही वाली थीं कि घंटी बजी. उन्होंने दरवाजा खोला. बाहर डाकिया खड़ा था. उस ने वासंती को एक मोटा सा लिफाफा दिया और दूसरे फ्लैट की ओर मुड़ गया.

वासंती ने दरवाजा बंद किया और धीमे कदमों से शयनकक्ष में आईं. लिफाफे पर उन्हीं का पता लिखा था और पीछे की ओर खत भेजने वाले ने अपना पता लिखा था :

‘हिंदी

आई सी 3480

कैप्टन अक्षय कुमार

द्वारा, 56 एपीओ’

वासंती हस्ताक्षर से अच्छी तरह परिचित थीं. अक्षरों को हलके से चूमते हुए उन्होंने अधीर हाथों से लिफाफा खोला. अंदर 3-4 मैले से मुड़े हुए पन्ने थे. पत्र काफी लंबा था. वे आराम से लेट गईं और पत्र पढ़ने लगीं.

मेरी प्यारी मां,

प्रणाम.

काफी दिनों से मेरा पत्र न आने से आप मुझ से खफा अवश्य होंगी. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि आज मेरा पत्र देखते ही आप ने उसे कलेजे से लगा कर धीरे से चूम कर कहा होगा, ‘अक्षय, मेरे बेटे…’

मां, यह लिखते समय मैं यों महसूस कर रहा हूं जैसे आप यहां मेरे पास हैं और मेरे गालों को हलके से चूम रही हैं. दरअसल, जब मैं छोटा था तो आप रोज मुझे सुलाते समय मेरे गालों को चूम कर कहा करती थीं, ‘कैसा पगला राजा बेटा है, मेरा बेटा. सो जा मुन्ने, आराम से सो… कल स्कूल जाना है…अक्षू बेटे को जल्दी उठना है…स्कूल जाना है…अब सो भी जा बेटे…’ और फिर मैं शीघ्र ही सपनों के देश में पहुंच जाता था.

दिनभर स्कूल में मस्ती, शाम को क्रिकेट और उस के बाद माहीम के तरणताल में भरपूर तैरने के बाद रात को जब मैं खाने की मेज पर बैठता तब आप मुझे डांट कर, दुलार कर किसी तरह खाना खिलाती थीं.

अरे, हां, याद आया. मां, कल मुझे सचमुच ही बहुत जल्दी उठना है. जल्दी यानी ठीक 2 बजे. हां मां, सच कह रहा हूं. सचमुच सुबह 2 बजे. काम ही कुछ ऐसा है कि उठना ही पड़ेगा. वैसे इस वक्त रात के साढ़े 10 बज रहे हैं और मुझे सो जाना चाहिए.

लेकिन मां, मुझे नींद ही नहीं आ रही है. लगभग 8 बजे से मैं करवटें बदल रहा हूं, लेकिन नींद कोसों दूर है. इस वक्त मैं बहुत उत्तेजित हूं मां, किसी से बातें करने को मन कर रहा है और यहां मैं अकेला हूं. नींद की प्रतीक्षा करते हुए, हृदय में यादों का बवंडर, अकेला, बिलकुल तनहा.

यादों के बवंडर में बचपन याद आया. आप आईं और आंखें नम हुईं. मैं उठा और अपना झोला खोला. नीचे ठूंसे हुए कुछ मैले से मुड़े हुए कागज निकाले, सिलवटें ठीक कीं, धीरे से झोले की आड़ ले कर टौर्च जलाई और लिखा, ‘मेरी प्यारी मां.’

मां, यहां पर रात को रोशनी करना मना है. अगर सावधानी न बरती जाए तो गोली चल जाती है. मां, मुझे मालूम है कि तुम्हें मैले, मुडे़ हुए कागज नहीं भाते. लेकिन क्या करूं, मजबूरी है. मां, आज आप कृपया मेरी भाषा पर न हंसें. जो भी मैं ने लिखा है, पढ़ लें. मैं आप जैसा हिंदी का प्राध्यापक तो हूं नहीं. मैं तो एक फौजी हूं, एक फौजी कप्तान. बौंबे इंजीनियर्स ग्रुप का. अक्षय कुमार, एक युवा कप्तान.

अरे हां, इस कप्तान शब्द से कुछ याद आया. 8वीं में उत्तीर्ण हो कर मैं 9वीं में दाखिल हुआ था. शाम का समय था. मैं क्रिकेट खेलने के लिए निकलने ही वाला था कि हैडमास्टरजी आ धमके.

उन्होंने मुझे रोका और आप से कहा, ‘वासंतीजी, कृपया अपने पुत्र को संभालिए, दिनभर शरारतें करता है, पढ़ता नहीं है. बहनजी, यह आप का बेटा है, एक प्राध्यापिका का बेटा, इसलिए मैं ने इस वर्ष इसे किसी तरह उत्तीर्ण किया है अन्यथा आप का लाड़ला फेल हो जाता. लेकिन अगले वर्ष मैं सहायता नहीं कर सकूंगा. क्षमा करें. आप जानें और आप का बेटा.’

यह सब सुन कर आप आगबबूला हो उठीं और मुझे डांटते हुए बोलीं, ‘अक्षय, शर्म करो, आखिर तुम क्या करना चाहते हो? नहीं पढ़ना चाहते तो मत पढ़ो. यहीं रहो और चौपाटी पर पानीपूरी की दुकान खोल लो. बेशर्म कहीं के.’ और आपे से बाहर हो कर आप ने मुझे पहली बार मारा था.

गालों पर आप की उंगलियों के निशान ले कर मैं चीखते हुए बाहर निकला था कि मुझे नहीं पढ़ना है. मुझे बंदूक चलानी है. फौज में जाना है. कप्तान बनना है.

ओह मां, ठंड के मारे लिखतेलिखते उंगलियां जाम हो गई हैं. यहां इतनी ठंड पड़ती है कि क्या बताऊं. अब इस मार्च के महीने में तो कुछ कम है लेकिन ठंड के मौसम में मुंह से शब्द बाहर निकलते ही जम कर बर्फ हो जाते हैं. मां, एक बार यहां आइए. हजार फुट की ऊंचाई पर तब आप को पता चलेगा कि ठंड किसे कहते हैं और बर्फ क्या होती है?

वैसे अब बर्फ काफी हद तक पिघल गई है. पहाड़ों के पत्थरों, दरख्तों की शाखाएं और यहांवहां हरी घास भी दिख रही है. नजदीक बहने वाली हिम नदी से पानी बहने की आवाज बर्फ की ऊपरी सतह के नीचे से आ रही है. हिम नदी पर अभी भी बर्फ की मोटी सतह है लेकिन उस के नीचे तेज बहता हुआ बर्फीला पानी है. परंतु बर्फ की ऊपरी सतह में कहींकहीं दरारें पड़ गई हैं और बर्फ पिघलने से छोटेबड़े छेद भी प्रकृति ने बना दिए हैं. दृश्य बड़ा ही मनोहारी है मां, लेकिन… लेकिन…

हिम नदी के उस छोर पर दुश्मन बैठा है. नदी का पाट बड़ा नहीं है किंतु दूसरे किनारे पर एक ऊंचा पहाड़ है. उस पर्वत के बीच से एक चोटी बाहर निकली है, तोते की चोंच जैसी. और चोंच में दुश्मन बैठा है. बिलकुल हमारे सिर पर, हमें हर क्षण घूरता हुआ. हमारी जरा सी आहट होते ही हमारी तरफ गोलियों की बौछार करता हुआ.

हमें आगे बढ़ना है. उस चोंच को तहसनहस करना है और दुश्मन का सफाया कर सामने वाली घाटी को दुश्मन के चंगुल से छुड़ा कर अपना तिरंगा वहां लहराना है. काम आसान नहीं है. हम यहां से एक गज भी आगे नहीं बढ़ सकते, दुश्मन के पास मशीनगनें तो हैं ही, शक्तिशाली तोपें भी हैं, जिन से वे हवाई जहाज को भगा सकते हैं अथवा मार गिरा सकते हैं.

परिस्थिति गंभीर है दुश्मन का सफाया करने के लिए, इस चोटी को बारूद से उड़ाने के लिए ब्रिगेड ने हमारी इंजीनियर्स कंपनी को यहां भेजा है. हम यहां लगभग 20 दिनों से बैठे हैं, लेकिन अभी तक कामयाबी हासिल नहीं हुई है. अलबत्ता, यहां आते ही हम ने कोशिश जरूर की थी.

15 दिन पहले मेरा वरिष्ठ अफसर मेजर दयाल, अपने साथ 8 जवानों को ले कर आधी रात को हिम नदी पर चल पड़ा. सब जवानों ने सफेद वरदी पहन रखी थी. जूते भी सफेद थे.

हिम नदी पूरी तरह बर्फीली थी. मेजर दयाल आधे रास्ते तक पहुंचा ही था कि ऊपर से फायरिंग शुरू हुई. सब ने बर्फ में छिप कर अपनी जान बचाई और उसी समय मेजर दयाल के अरदली सिपाही रामसिंह को फायरिंग की वजह मालूम हुई. मेजर की सफेद जरसी के गले के नीचे एक काला पट्टा था. रामसिंह ने अपनी जरसी साहब को दी और उन की खुद पहन ली. फिर दुश्मन को चकमा देने के लिए खुद एक रास्ते से और बाकी जवानों को दूसरे रास्ते से पीछे हटने को कहा. 2 घंटे बाद सब लौट आए, लेकिन सिपाही रामसिंह…

खैर, इन 20 दिनों में परिस्थिति काफी बदल गई है. बर्फ काफी पिघल गई है और हिम नदी की ऊपरी बर्फीली सतह में गड्ढे पड़ गए हैं. बर्फ की ऊपरी सतह और नीचे बहने वाले पानी के मध्य कुदरत ने काफी जगह बना दी है. इसी जगह का फायदा उठाते हुए बर्फ की सतह से नीचे, दुश्मन की नजरों से बच कर तेज बहते हुए बर्फीले पानी को चीर कर हमें दूसरे तट पर पहुंचना है, मां. पानी इतना ठंडा है कि अगर आदमी असावधानी से गिर पडे़ तो कुछ क्षणों में ही जम कर वह आइसक्रीम बन जाएगा.

लेकिन 3 दिन पहले ही हमें दिल्ली से बर्फीले पानी में तैरने के लिए विशिष्ट पोशाक मिली है. साथ में पानी में रह कर भी गीला न होने वाला गोलाबारूद, बंदूकें, टौर्च, प्लास्टिक के झोले और खाने की डब्बाबंद वस्तुएं भी मिली हैं.

मां, जिस क्षण की प्रतीक्षा हर फौजी को होती है वह क्षण आज मेरे जीवन में आया है. जिस क्षण के लिए हम फौज में भरती होते हैं, प्रशिक्षण पाते हैं, वेतन पाते हैं, वह क्षण अब मुझ से थोड़ी ही दूरी पर है. मुझे उस क्षण का बेसब्री से इंतजार है. इसी लिए मैं बहुत उत्तेजित हूं और मुझे नींद नहीं आ रही है.

आज दोपहर को इस ‘मिशन’ के लिए, जिसे हम ने ‘औपरेशन पैरट्स बीक’ नाम दिया है, मेरा चयन हुआ है.

हां, तो मां, अब थोड़ी ही देर बाद रात के ठीक 2 बजे मैं वह विशिष्ट पोशाक पहन कर हिम नदी में बनी दरार के जरिए पानी में कूदूंगा. तेज बहते हुए पानी को किसी तरह चीर कर चट्टानों, पत्थरों और बर्फ का सहारा ले कर नदी का दूसरा किनारा पकड़ूंगा और सावधानी से किसी दूसरी दरार से बाहर निकलूंगा. मेरी कमर में बंधी लंबी रस्सी का सहारा ले कर मेरे 4 जवान हथियार, गोलाबारूद और बम ले कर मेरे पास आएंगे.

उस के बाद उस चोटी के नीचे बारूद भर कर हम उसे उड़ा देंगे. संयोग से दूसरे तट पर खड़े हुए मनुष्य को दुश्मन देख नहीं सकता क्योंकि वह बिलकुल उस की नाक के नीचे होता है. दूसरा यह कि दुश्मन यह ख्वाब में भी नहीं सोच सकता कि रात के अंधेरे में हिम नदी के नीचे से तैर कर इंसान दूसरे तट पर आ सकता है.

मां, यह समूची कार्यवाही साढ़े 3-4 बजे तक हो जानी चाहिए. उस के बाद हमारी ब्रिगेड आगे बढ़ेगी और समूची घाटी पर कब्जा कर लेगी. मैं जानता हूं कि काम खतरनाक है, लेकिन फिर भी मैं कामयाबी हासिल कर के रहूंगा और इतिहास में अपना नाम सुरक्षित कर दूंगा.

याद है मां, कुछ वर्ष पूर्व हम ने मैट्रो में एक फिल्म देखी थी, ‘दि गंस औफ नेव्हरौन’, यहां भी लगभग वही परिस्थिति है. फर्क इतना है कि वहां खौलता हुआ डरावना समुद्र था और यहां बर्फीली हिम नदी और बर्फीला पानी है.

मैं जानता हूं कि मुझे यह सब नहीं लिखना चाहिए. यह सब गोपनीयता और सुरक्षा के खिलाफ है. फिर भी आज शाम से ही मैं इतना रोमांचित हूं कि किसी से कुछ कहने के लिए मन व्याकुल हो रहा है. फिर दुनिया में मां के सिवा और कौन है जो बेटे की हकीकत सुन कर उसे दिल में छिपा सकती है. हो सकता है कि इस मिशन के बाद मुझे वीरचक्र मिले. मैं चाहता हूं कि उस वक्त आप अपनी सहेलियों से और रिश्तेदारों से बड़े फख्र से कहें कि मेरे अक्षू ने ऐसा किया…वैसा किया…

आज मैं एक और अपराध कर रहा हूं, मैं यह पत्र सेना के डाकघर के माध्यम से न भेजते हुए एक सिपाही के हाथ भेज रहा हूं. यह सिपाही कल दिल्ली जा रहा है. बर्फ के प्रभाव से उस की उंगलियां गल गई हैं. दिल्ली पहुंचते ही वह इस पर टिकट लगा कर किसी लाल डब्बे में डाल देगा. हो सकता है, यह लिफाफा आप को 3 दिनों में ही मिल जाए. सेना के डाकघर से यह आप को शायद 15 दिन बाद मिले.

अरे, बाप रे. आधी रात हो गई है. थोड़ा सोना चाहिए. अच्छा मां, बाकी बातें अगले खत में लिखूंगा. सच कहता हूं, आप से बातें क्या हुईं, मन शांत हो गया है. अरे हां, अच्छा हुआ कि कुछ याद आया. मैं ने बीमा की एक किस्त शायद नहीं भरी है, पिताजी से कह कर भुगतान करवा देना.

मेरे लिए खाने की कोई चीज न भेजें, रास्ते में, दिल्ली वाले चोर सब खा जाते हैं. कोई अच्छा उपन्यास अवश्य भेजें, यहां पढ़ने के लिए सिर्फ फिल्मी पत्रिकाएं ही हैं. मेघा से कहना कि मन लगा कर पढ़ाई करे, उसे डाक्टर जो बनना है. आप दोनों अपनी तबीयत का खयाल रखें. ज्यादा दौड़धूप करने की कोई आवश्यकता नहीं है. अब मैं बड़ा हो गया हूं. फौजी कप्तान हूं. आप सब की देखभाल कर सकता हूं.

अच्छा मां, अब मैं सोता हूं. आंखें अपनेआप बंद हो रही हैं. मां, बस एक बार, सिर्फ एक बार मेरे गालों को चूम कर कहो, ‘कैसा पगला राजा बेटा है, मेरा मुन्ना…सो जा बेटे, सो जा…कल जल्दी जो उठना है.’

आप का, प्यारा अक्षय

अक्षय के पत्र के आखिरी अक्षर तो वासंती के आंसुओं में ही धुल गए. उन्होंने आंखें पोंछीं, मन शांत किया. आखिरी पंक्तियां फिर से पढ़ीं और ‘अक्षय’ शब्द को चूम कर बोलीं, ‘‘बिलकुल पगला है, मेरा राजा बेटा…’’

उसी वक्त घंटी खनकी और वासंती के मुंह से अनायास शब्द फूट पड़े, ‘‘अक्षू बेटा, रुक, मैं आ रही हूं.’’

उन्होंने दौड़ कर दरवाजा खोला. दरवाजे पर अक्षय नहीं था, लेकिन उसी की रैजीमैंट का एक युवा अफसर खड़ा था. वह वरदी पहने था. सिर पर ‘पी कैप’ थी. उस ने वासंती को सैल्यूट करते हुए धीरे से पूछा, ‘‘कैप्टन अक्षय कुमार?’’

‘‘जी हां, यह अक्षय का ही घर है.’’

‘‘आप?’’

‘‘मैं उस की मां हूं, वैसे अभी घर में कोई नहीं है. साहब दफ्तर गए हैं. मेघा कालेज में है और अक्षय तो सीमा क्षेत्र में तैनात है. तबीयत नासाज थी, इसलिए मैं रुक गई अन्यथा मैं भी कालेज गई होती. आप अंदर आइए.’’

अफसर हौले से अंदर आया. उस ने धीरे से कुछ इशारा किया. खुले दरवाजे से 2 सिपाही लोहे का एक बड़ा संदूक ले कर अंदर आए. उन्होंने उसे नीचे रखा और दोनों सावधान मुद्रा में खड़े हो गए. संदूक के बीचोबीच एक ‘पी कैप’ रखी हुई थी और उस के सामने वाले भाग पर लिखा था, ‘कैप्टन अक्षय कुमार, बौंबे इंजीनियर्स ग्रुप, इंजीनियर्स रैजीमैंट’.

‘‘यह सब क्या है?’’ वासंती ने घबरा कर पूछा, उस का दिल तेजी से धड़क रहा था.

‘‘अक्षय का सामान है,’’ अफसर धीरे से बोला.

‘‘अक्षय कहां है?’’ वासंती ने संदूक की ओर एकटक देखते हुए पूछा.

अफसर कुछ नहीं बोला. उस ने अपनी टोपी उतारी और वह जमीन ताकने लगा.

‘‘आप बोलते क्यों नहीं? अक्षय कहां है? यह सब क्या हो रहा है? अक्षय को क्या हुआ है? बोलिए, कुछ तो बोलिए?’’ वासंती ने चीख कर कहा.

अफसर ने अपनी जेब से कागज का एक छोटा सा टुकड़ा निकाला, जो मैला था और बुरी तरह मुड़ा हुआ था.

‘‘अक्षय की वरदी की ऊपरी जेब से यह टुकड़ा बरामद हुआ है, टुकड़ा गीला था, अब सूख चुका है. कृपया, आप पढ़ लें,’’ अफसर धीमी आवाज में बोला.

थरथराते हाथों से वासंती ने कागज का टुकड़ा लिया. उस मैले से मुड़े हुए कागज के टुकड़े पर केवल 3 पंक्तियां लिखी थीं:

‘अगर मैं बढ़ूं, मेरे पीछे आएं,

अगर मैं मुड़ूं, मुझे शूट करें,

अगर मैं मरूं, मुझे भूल जाएं.’ Romantic Story In Hindi

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