उस रात: कहां गायब हो गए राकेश और सलोनी

राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.

सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’

‘‘नमस्ते…’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’

‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.

कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं… कहीं गई हैं क्या?’’

‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’

‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’

‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.

‘‘सुनो सलोनी…’’

‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.

राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.

सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.

राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.

राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.

सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.

सलोनी को पता भी न चला कि कब राकेश उस के प्रति खिंच गया था.

एक दिन तो राकेश ने उस से कह दिया था, ‘सलोनी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी आंखें देख कर मुझे नशा हो जाता है. दिल करता है कि हर समय तुम्हें अपने साथ रखूं.’

‘मुझे अपने साथ रखोगे तो बबीता दीदी को कब टाइम दोगे?’

‘उसे तो कई साल से टाइम दे रहा हूं. तुम मेरी जिंदगी में देर से आई हो. अगर पहले आती तो अपना बना लेता.’

‘बहुत अच्छे सपने देखते हो आप…’

‘मैं इस सपने को सच करना चाहता हूं.’

‘कैसे?’

‘यही तो समझ में नहीं आ रहा है अभी.’

इस के बाद सलोनी भी राकेश की ओर खिंचती चली गई. वह देखती थी कि राकेश की बहुत बड़ी कोठियां हैं. 2 कारें हैं. धनदौलत की कमी नहीं है. बबीता तो सीधीसादी है. वह घर में ही रहना ज्यादा पसंद करती है. अगर वह बबीता की जगह पर होती तो राकेश के साथ खूब घूमतीफिरती और ऐश करती.

राकेश जब चंडीगढ़ जाता तो सलोनी के साथ कभीकभी राजन को भी साथ ले जाता था. जब राजन साथ होता तो वे केवल घूमतेफिरते व खरीदारी करते थे.

जब कभी राकेश अकेली सलोनी को ले कर चंडीगढ़ जाता तो वे दोनों किसी छोटे होटल में कुछ घंटे के लिए रुकते थे. वहां राकेश उस से जिस्मानी रिश्ता बनाता था. इस के बाद सलोनी को कुछ खरीदारी कराता और शाम तक वे वापस लौट आते.

बबीता व राकेश के बीच कई बार सलोनी को ले कर बहस हुई, झगड़ा हुआ, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. राकेश व सलोनी उसी तरह मिलते रहे.

एक दिन बबीता ने सलोनी को फोन कर दिया था, ‘सलोनी, तुझे शर्म नहीं आती जो अपनी बहन का घर उजाड़ रही है. कभी भी चंडीगढ़ चली जाती है घूमने के लिए.’

‘मैं अपने जीजा की साली हूं. साली आधी घरवाली होती है. आधी घरवाली जीजा के साथ नहीं जाएगी तो फिर किस के साथ जाएगी?’

‘आधी नहीं तू तो पूरी घरवाली बनने की सोच रही है.’

‘दीदी, मेरी ऐसी किस्मत कहां? और हां, मैं जीजाजी को बुलाने नहीं जाती, वे ही आते हैं मेरे पास. तुम उन को रोक लो न,’ सलोनी ने कहा था.

सलोनी की मां भी यह सब जानती थीं. पर वे मना नहीं करती थीं क्योंकि राकेश सलोनी पर खूब रुपए खर्च कर रहा था.

सलोनी कमरे में चाय व खाने का कुछ सामान ले कर लौटी.

चाय पीते हुए राकेश ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ जा रहा हूं. एक पार्टी से बात करनी है. मैं ने सोचा कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलूं.’’

‘‘आप ने फोन भी नहीं किया अपने आने का.’’

‘‘मैं ने सोचा था कि आज फोन न कर के तुम्हें सरप्राइज दूंगा.’’

‘‘तो मिल गया न सरप्राइज. मां भी नहीं हैं. सूना घर छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं मामीजी के आने का इंतजार कर लेता हूं. मुझे कौन सी जल्दी है. तुम जरा मामीजी को फोन मिलाओ.’’

सलोनी ने फोन मिलाया. घंटी तो जाती रही, पर कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘पता नहीं, मां फोन क्यों नहीं उठा रही?हैं,’’ सलोनी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं. मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा. अब चंडीगढ़ तुम्हारे बिना जाने को मन नहीं करता. अगर तुम आज न जा पाई तो 2 दिन बाद चलेंगे,’’ राकेश ने सलोनी की ओर देखते हुए कहा.

कुछ देर बाद सलोनी की मां आ गईं. वे राकेश को देख कर बहुत खुश हुईं और बोलीं, ‘‘और क्या हाल है बेटा? बच्चे कैसे हैं? बबीता कैसी है? कभी उसे भी साथ ले आया करो.’’

‘‘वह तो कहीं आनाजाना ही पसंद नहीं करती मामीजी.’’

‘‘पता नहीं, कैसी आदत है बबीता की,’’ कह कर मामी ने मुंह बिचकाया.

‘‘मामीजी, मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं. सलोनी को भी साथ ले जा रहा हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा. शाम को जल्दी आ जाना. सलोनी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है कि मेरे जीजाजी बहुत अच्छे हैं. वे मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.’’

‘‘सलोनी भी तो किसी से कम नहीं है,’’ राकेश ने मुसकरा कर कहा.

कुछ देर बाद राकेश सलोनी के साथ चंडीगढ़ पहुंच गया. एक होटल में कुछ घंटे मस्ती करने के बाद वे रोज गार्डन और उस के बाद झील पहुंच गए.

‘‘शाम हो चुकी है. वापस नहीं चलना है क्या?’’ सलोनी ने झील के किनारे बैठे हुए कहा.

‘‘जाने का मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘क्या सारी रात यहीं बैठे रहोगे?’’

‘‘सलोनी के साथ तो मैं कहीं भी सारी उम्र रह सकता हूं.’’

‘‘बबीता दीदी से यह सब कह कर देखना.’

‘‘उस का नाम ले कर क्यों मजा खराब करती हो. सोचता हूं कि मैं हमेशा के लिए उसे रास्ते से हटवा दूं. दूसरा रास्ता है कि उस से तलाक ले लूं. उस के बाद हम दोनों खूब मजे की जिंदगी जिएंगे,’’ राकेश ने सलोनी का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर कहा.

‘‘पहला रास्ता तो बहुत खतरनाक है. पुलिस को पता चल जाएगा और हम मजे करने के बजाय जेल में चक्की पीसेंगे.

‘‘बबीता से तलाक ले कर पीछा छुड़ा लो. वैसे भी वह तुम्हारे जैसे इनसान के गले में मरा हुआ सांप है,’’ सलोनी ने कहा.

अब सलोनी मन ही मन खुश हो रही थी कि बबीता से तलाक हो जाने पर राकेश उसे अपनी पत्नी बना लेगा. वह कोठी, कार और जायदाद की मालकिन बन कर खूब ऐश करेगी.

एक रैस्टोरैंट से खाना खा कर जब राकेश व सलोनी कार से चले तो रात के 8 बज रहे थे. राकेश ने बबीता व सलोनी की मां को मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि वे 2 घंटे में पहुंच रहे हैं.

रात के 12 बज गए. राकेश व सलोनी घर नहीं पहुंचे तो मां को चिंता हुई. मां ने सलोनी के मोबाइल फोन का नंबर मिलाया. ‘फोन पहुंच से बाहर है’ सुनाई दिया. राकेश का नंबर मिलाया तब भी यही सुनाई दिया.

कुछ देर बाद बबीता का फोन आया, ‘‘मामीजी, राकेश अभी तक चंडीगढ़ से नहीं लौटे हैं. वे आप के पास सलोनी के साथ आए हैं क्या? उन दोनों का फोन भी नहीं लग रहा है. मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही?है.’’

‘‘घबराहट तो मुझे भी हो रही है बबीता. चंडीगढ़ से यहां आने में 2 घंटे भी नहीं लगते. सोचती हूं कि कहीं जाम में न फंस गए हों, क्योंकि आजकल पता नहीं कब जाम लग जाए. हो सकता है कि वे कुछ देर बाद आ जाएं,’’ मामी ने कहा.

‘पता नहीं क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कुछ अनहोनी न हो गई हो.’

‘‘डर मत बबीता, सब ठीक ही होगा,’’ मामी ने कहा जबकि उन का दिल भी बैठा जा रहा था.

पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पर राकेश व सलोनी वापस घर नहीं लौटे.

सुबह पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कल दोपहर सलोनी और राकेश चंडीगढ़ गए थे. रात लौटने की सूचना दे कर भी नहीं लौटे. उन का कुछ पता नहीं चल रहा है.

बबीता व मामी के साथ 3-4 पड़ोसी थाने पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया, ‘‘रात चंडीगढ़ से यहां तक कोई हादसा नहीं हुआ है. यह भी हो सकता है कि वे दोनों कहीं और चले गए हों.

‘‘खैर, मामले की जांच की जाएगी. आप को कोई बात पता चले या कोई फोन आए तो हमें जरूर सूचना देना.’’

वे सभी थाने से लौट आए.

दिन बीतते चले गए, पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चल सका.

जितने मुंह उतनी बातें. वे दोनों तो एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते थे. वे तो चंडीगढ़ मजे करने के लिए जाते थे. राकेश का बस चलता तो सलोनी को दूसरी पत्नी बना कर घर में ही रख लेता. सलोनी तो उस की रखैल बनने को भी तैयार थी. सलोनी की मां ने तो आंखें मूंद ली थीं, क्योंकि घर में माल जो आ रहा था. नहीं तो वे अब तक सलोनी की शादी न करा देतीं.

2 महीने बीत जाने के बाद भी जब राकेश व सलोनी का कुछ पता नहीं चला तो सभी ने यह समझ लिया कि वे दोनों किसी दूसरे शहर में जा कर पतिपत्नी की तरह रह रहे होंगे. अब वे यहां कभी नहीं आएंगे.

एक साल बाद…

उस इलाके की 2 लेन की सड़क को चौड़ा कर के 4 लेन के बनाए जाने का प्रदेश सरकार की ओर से आदेश आया तो बहुत तेजी से काम शुरू हो गया.

2 साल बाद…

एक दिन सड़क किनारे मशीन द्वारा जमीन की खुदाई करने का काम चल रहा था तो अचानक मशीन में कुछ फंस गया. देखा तो वह एक सफेद रंग की कार थी जिस का सिर्फ ढांचा ही रह गया था. उस कार में 2 नरकंकाल भी थे. कार की नंबर प्लेट बिलकुल साफसाफ पढ़ी जा रही थी.

देखने वालों की भीड़ लग गई. पुलिस को पता चला तो पुलिस इंस्पैक्टर व कुछ पुलिस वाले भी वहां पहुंच गए. कार की प्लेट का नंबर पढ़ा तो पता चला कि वह कार राकेश की थी. वे 2 नरकंकाल राकेश व सलोनी के थे. बबीता, सलोनी की मां व भाई भी वहां पहुंच गए. वे तीनों रो रहे थे.

पुलिस इंस्पैक्टर के मुताबिक, उस रात राकेश व सलोनी कार से लौट रहे होंगे. पहले उस जगह सड़क के किनारे बहुत दूर तक दलदल थी. हो सकता है कि कार चलाते समय नींद में या किसी को बचाते हुए या किसी दूसरी वजह से उन की कार इस दलदल में जा गिरी. सुबह तक कार दलदल में पूरी तरह समा गई. किसी को पता भी नहीं चला. धीरेधीरे यह दलदल सूख गया. उन दोनों की कार में ही मौत हो गई.

अगर सड़क न बनती तो किसी को कभी पता भी न चलता कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. दोनों के परिवारों को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद कभी वे लौट कर आ जाएं. पर अब सभी को असलियत का पता चल गया है कि वे दोनों लौट कर घर क्यों नहीं आए.

अब बबीता व सलोनी की मां के सामने सब्र करने के अलावा कुछ नहीं बचा था.

शादी की उम्र : शाहिदा ने क्यों फोड़े दिल के छाले

शाहिदा ने मोबाइल फोन पर फेसबुक में झांका कि कुछ नया तो नहीं और फिर कुलसुम को दिखाया कि वह अपनी डीपी में कैसी लग रही है. इस के बाद वह बोली, ‘‘हां कुलसुम, कल जो लड़का तुम्हें मैट्रीमोनियल साइट के मारफत मिला था और उस के घर वाले आए थे, उस में क्या हुआ?’’

‘‘और तो सब ठीक है शाहिदा आंटी,’’ कुलसुम बोली, ‘‘जरा एक अड़चन है.’’

‘‘कैसी अड़चन?’’ कुलसुम ने मोबाइल बंद किया और फिर गला साफ करते हुए बोली, ‘‘आंटी, यों तो लड़का खातेपीते घर का है, हैल्दी भी है और एमएनसी में नौकरी भी है, लेकिन…’’

कुलसुम कुछ कहतेकहते रुक गई, तो शाहिदा ने ही बात आगे बढ़ाई, ‘‘क्या चालचलन ठीक नहीं है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. लड़का बहुत शरीफ है. पर एक तो पापा का हाथ तंग है और लड़का तलाकशुदा है. पहली से उस का 3-4 साल का बच्चा भी है. कस्टडी तो मां के पास है, पर हर हफ्ते एक रात के लिए आता है, इसलिए जरा हिचकिचाहट हो रही है.’’

इस बार शाहिदा उठी और खिड़की के बाहर खड़ी हो कर कुछ सोचने लगी. फिर आ कर बोली, ‘‘देखो कुलसुम, तुम पैसों की परवाह मत करो. पापा को कहो कि जितनी रकम चाहिए, मुझ से ले लें. धीरेधीरे अदा कर देना. और तलाकशुदा जैसी जरा सी बात के लिए अच्छे लड़के को मत ठुकराओ. बच्चे को एक और मां का प्यार दे कर अपने पति का दिल जीतो.’’

कुलसुम ने शाहिदा की ओर देखा और बोली, ‘‘शाहिदा आंटी, एक सवाल पूछूं?’’

शाहिदा ने एक सवालिया निगाह से देखा, तो कुलसुम ने कहा, ‘‘माफ करें, मेरा सवाल आप की निजी जिंदगी से जुड़ा है. आप किसी भी लड़की की शादी कराने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं, रुपएपैसों की मदद भी करती हैं. मेरी कई सहेलियों के साथ आप ने ऐसा किया है. लेकिन मालदार और अच्छी नौकरी के बावजूद भी आप कुंआरी रह गईं, ऐसा क्यों हुआ?’’

अचानक अधेड़ उम्र की शाहिदा की आंखें छलछला आईं. कुलसुम को लगा कि शायद उस ने यह सब पूछ कर अच्छा नहीं किया. वह उठते हुए बोली, ‘‘आंटी माफ करना, शायद मैं कुछ गलत पूछ गई. आप का दिल दुखाने का मेरा इरादा कतई नहीं था.’’

‘‘नहींनहीं, बैठो कुलसुम. मैं आज तुम्हें सबकुछ बताऊंगी,’’ शाहिदा एक टिशू से आंखें पोंछती हुई बोलीं, ‘‘मैं अपने अमीर मांबाप की एकलौती लड़की थी. लाड़प्यार से पलने की वजह से और अमीर घराना होने से थोड़ा गुमान मुझ में भी आ गया था.

‘‘जब मैं 15 साल की हुई, तो मैं ने पाया कि चौकीदार का जवान लड़का, जो देखने में भलाचंगा था, मेरी तरफ खिंचने लगा था और एक दिन मौका पा कर उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था, ‘शाहिदा, मैं आप को दिलोजान से चाहता हूं. मैं आप के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’

‘‘मैं ने फुरती से अपना हाथ छुड़ा कर एक चांटा उस के गाल पर मारा और कहा, ‘तो डूब मर चुल्लू भर पानी में. अपनी औकात देखी है. हमारे टुकड़ों पर पलने वाला हम पर ही डोरे डाल रहा है.’

‘‘वह बेचारा फिर कभी दिखाई नहीं दिया. अपनी जिंदगी में आए प्यार के इस पाले इजहार को मैं बिलकुल भूल गई. जब मैं 19 साल की हुई, तो रिश्ते के एक चाचा ने अपने बेटे से मेरा निकाह करने की बात चलाई. उन के बेटे में कोई कमी नहीं थी. हां, यह बात जरूर थी कि वे हमारी बराबरी के नहीं थे. फिर लड़का मामूली किरानी था. मुझ पर उन दिनों एमबीए करने का भूत सवार था.

‘‘उन की बात सुन कर अम्मी भी भड़क उठी थीं, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की. कम से कम अपनी औकात तो देखी होती. फिर आप के साहबजादे करते क्या हैं, किरानीगीरी. मेरी बेटी के 12वीं में 95 परसैंट मार्क्स आए थे. वैसे भी, ऐसी हैसियत के तो हमारे यहां नौकरचाकर हैं. जितनी तनख्वाह आप के बेटे को मिलती होगी, उतने की तो आज भी शाहिदा एक पोशाक पहन कर फाड़ डालती है. अगर अच्छी नौकरी मिल गई तो न जाने क्या होगा.’

‘‘वे लोग मुंह लटकाए वापस चले गए. अम्मी की बातें मुझे बहुत अच्छी लगी थीं. मैं ने मन में सोचा कि अच्छा फटकारा. चले आए थे मुंह उठा कर.

‘‘तीसरी बार एक अच्छे घर से रिश्ता आया. उस समय मैं 25 साल की हो चुकी थी. लड़के वाले हमारी टक्कर के तो न थे, लेकिन फिर भी अच्छे पैसे वाले थे. लड़का भी ठीक था. पर एक सरकारी कंपनी में इंजीनियर था. उस के पिता का कहना था कि हम बरात में बाजा नहीं लाएंगे. शोरशराबों से क्या होता है? वे समाज सुधारक थे और शादीब्याह सीधी तरह करने वाले थे.

‘‘इस बार मेरे अब्बा भड़क गए थे, ‘अमा लड़की ब्याहने आना चाहते हो या मातमपुर्सी करने. दुनिया के लोग बेवकूफ हैं, जो इतनी धूमधाम से शादियां करते हैं?’

‘‘मैं भी एक ग्रेट इंडियन वैडिंग चाहती थी, जिस में खूब धूमधड़ाम हो.

‘‘बहरहाल, बात बनी नहीं और वह रिश्ता भी इनकार कर दिया गया. अगला रिश्ता भी इनकार कर दिया गया. यह रिश्ता भी एक अच्छे घराने से आया था. लड़के ने मुझ से कहा कि पापा को कहो कि कोई सामान न दें. मेरी बचत, उस की बचत और दहेज के सामान की बचत से 1 करोड़ हो जाएंगे और वह स्टार्टअप शुरू करेगा. हम बराबर के पार्टनर तो होंगे ही.

‘‘अम्मी ने गाल फुलाते हुए कहा, ‘क्या हमारे पैसों की और बेटी के पैसों की उम्मीद पर ही हाथ पर हाथ धरे अभी तक लड़का बैठा हुआ है?’

‘‘इस तरह वह रिश्ता भी न हो सका. मैं अब तक एक एमएनसी में अच्छा कमाने लगी थी. मेरी खुद की चाहत अच्छे पढ़ेलिखे लड़के की होने लगी.

‘‘मेरी उम्र के 28वें साल में मौका आया. एक सांवले लड़के ने मुझे प्रपोज किया. वह एक दूसरी कंपनी में डायरैक्टर के पद पर था. वह न तो काला ही था, न साउथ इंडियनों की तरह. न मुझे पसंद था और न घर वालों को. मन ही मन मैं उसे काला बंदर कह कर हंस दी थी.

‘‘हालांकि उम्र के इस दौर में मुझे सोचना चाहिए था कि आखिर किसी न किसी को तो हमसफर बना ही लेना चाहिए. लड़की की उम्र निकल जाए तो फिर सबकुछ हाथ से निकल जाता है. और बेशुमार दौलत भी उम्र वापस नहीं ला सकती. पर, मैं अपने मांबाप की लाड़ली अपनी नौकरी और दौलत के नशे में चूर इस पर गहराई से न सोच सकी.

‘‘उम्र के 30वें साल में एक से शादी की बात चली. उस में कहीं कोई कमी न थी. लड़का डिप्टी कलक्टर था. हम कई बार मिले. एक बार रात भी बिताई. उस रात देखा कि लड़के वाले करीबकरीब हमारी टक्कर के थे. पर लड़का जरा सा लंगड़ाता था.

‘‘अम्मी को बताया तो उन्होंने कहा, ‘भई, पैसा और रसूख तो आताजाता रहता?है. लेकिन कम से कम लड़का तो ऐसा हो, जिस के साथ लड़की घूमफिर सके.’

‘‘मुझे भी लगा कि कहीं टांग में कैंसर वगैरह न हो. जब सहेलियों को बताया तो वे बोलीं, ‘चल कर ले न तैमूर लंग से शादी. अरे, उसे कहो कहीं लंगड़ीलूली लड़की देखे.’

‘‘फिर कई और रिश्ते आए. पर किसी में मुझे कमी आई, किसी में अम्मी को कमी नजर आई, तो किसी में मेरी सहेलियों को. मेरी सब सहेलियां शादीशुदा हो चुकी थीं और उन के खाविंद मुझ पर मरते थे. शायद वे लड़कियां चाहती थीं कि मेरी शादी ही न हो. फिर लड़के मिलने कम हो गए. मैं उम्र की 34वीं मंजिल पार कर गई.

‘‘उम्र का यह वह ढलान था, जब लड़की को शादी कर लेनी चाहिए. पर दौलत के नशे में मैं ने कुछ न सोचा. उम्र के इस मोड़ पर मैं भी एक मर्द साथी की कमी महसूस कर रही थी और मैं ने तय कर लिया था कि अब किसी भी रिश्ते के आने पर, चाहे वह आम आमदनी वाले का ही क्यों न हो, मैं टांग नहीं अड़ाऊंगी. 2-3 से मेलजोल भी हुआ, पर रात को पता लगा कि वे तो सब शादीशुदा हैं या आधेअधूरे.

‘‘मैं 36 साल की थी, तब एक रिश्ता आया. लड़का तलाकशुदा था. उस की घरवाली भाग गई थी. 2 बच्चे थे. मैं ने इस बार सोच लिया था कि तलाकशुदा है तो क्या हुआ? बच्चे हैं तो क्या हुआ? मैं सब संभाल लूंगी.

‘‘औरत की समझदारी से ही गृहस्थी चलती है. मैं भी बच्चों को प्यार दूंगी. घर को खुशहाल बना दूंगी. पर बात मुझ तक आने का मौका ही नहीं मिला. अम्मीजान तो मुंहफट थीं ही, सो रिश्ते लाने वाले के मुंह पर ही कह मारा, ‘तलाकशुदा है तो कहीं बेवा या तलाकशुदा को तलाशो. हमारी लड़की में कोई कमी थोड़े ही है, जो सैकंडहैंड के मत्थे मढ़ दें.’

‘‘और बस यही आखिरी रिश्ता था. फिर कोई रिश्ता नहीं आया. कुछ ही दिनों में मांबाप ढेर सी दौलत छोड़ कर मर गए. मैं नौकरी में आगे बढ़ती गई, पर मैं एक मर्द साथी के लिए बेचैन हो उठी थी. जो मिलते थे, केवल 2-4 रात बिताते. एक मिला, पर रात को बिस्तर पर हैवान होने लगा. मैं रात को सिर्फ नाइटी में उस के घर से निकल कर भागी थी.

‘‘आखिर एक दिन हिम्मत कर के अपने बूढ़े चौकीदार से पूछा, ‘बाबा, आप का लड़का था न रमजानी. कहां है वह?’

‘‘बूढ़े चौकीदार ने मुसकरा कर कहा, ‘बेटी, वह मुंबई में गोदी में मजदूरी करता है. अचानक उस की याद कैसे आ गई.’ ‘‘मैं ने अपनी आंखें बचाते हुए कहा, ‘यों ही पूछा था. शादी तो अब कर ही ली होगी.’

‘‘बूढ़ा चौकीदार हंसा और बोला, ‘शादी… अब तो उस के बच्चे भी शादी लायक हो गए हैं.’

‘‘फिर मुझे पता चला कि उन सभी लड़कों की शादियां हो चुकी हैं, जिन के लिए मेरे साथ तार जुड़ने आए थे. और अब सभी बालबच्चों में घिर कर जिंदगी गुजार रहे हैं. और मैं अपने और अपने मांबाप की झूठी शान की वजह से उन मंजिलों को पार कर गई थी, जो एक बार छूट जाने के बाद फिर कभी नहीं मिलती.

‘‘मैं इस इंतजार में रही कि अब जो भी रिश्ता आएगा, उसे फौरन मंजूर कर लूंगी, पर फिर कोई रिश्ता नहीं आया और मैं रिश्ते के इंतजार में उम्र को पीछे छोड़ने लगी.

‘‘अब आईने में खड़ी अपनेआप को देखती हूं कि मेरे सिर के बाल सफेद हो रहे हैं. चेहरा भी कुछ ढीला पड़ रहा है. मैं समझ गई हूं कि अब किसी रिश्ते का इंतजार बेकार है. एक औरत के रूप में मैं वह सबकुछ खो चुकी थी, जो उम्र के एक खास पड़ाव तक ही रहता है. बस, फिर मैं अपने अकेलेपन में कैद हो कर रह गई.’’

अपनी कहानी सुना कर शाहिदा ने अपनी आंखों को टिशू से एक बार फिर साफ किया. उन्होंने अब चाय का ठंडा होता कप उठाया. थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद वे बोलीं,

‘‘कुलसुम, औरत बिना मर्द के बिलकुल बेजान है. मैं नहीं चाहती कि मेरी तरह कोई और लड़की वह सुख झेले, जो मैं झेल रही हूं. तुम फौरन जा कर अम्मीअब्बा को मेरे पास भेज दो. मैं उन्हें समझाऊंगी.’’

कुलसुम ने अपनी अम्मीअब्बा को शाहिदा के पास भेजा. शाहिदा ने उन्हें तलाकशुदा के साथ शादी करने के लिए राजी कर लिया. कुलसुम की शादी में शाहिदा ने उधार की रकम तो दी ही, अपनी तरफ से बहुतकुछ खर्च भी किया. कुलसुम को विदा करा कर जब वे अपने घर आई, तो उन्हें ऐसा लगा मानो उन की ही शादी हो गई है.

काली सोच : क्या शुभा खुद को माफ कर पाई

अंधविश्वास, पुरातनपंथी और कट्टरवादी सोच ने न जाने कितनों का घर उजाड़ा है. शुभा की आंखों पर भी न जाने क्यों इन्हीं सब का परदा पड़ा हुआ था, जिस का परिणाम इतना भयावह होगा, इस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?

बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुस्कुरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’

मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?

कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?

हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिड़िया अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?

‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.

उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आईर् थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.

‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’

‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’

‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.

‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.

‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.

‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.

‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.

‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’

‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.

‘मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया. तुम्हें इतना ही पसंद है तो कहीं से मुझे जहर ला दो. अपने जीतेजी तो मैं यह अनर्थ नहीं होने दूंगी. अरे, रिश्तेदार हैं, समाज है उन्हें क्या मुंह दिखाएंगे. दस लोग दस तरह के सवाल पूछेंगे, क्या जवाब देंगे उन्हें हम?’

मैं ने कहा तो सुशांत चुप हो गए. उस दिन मैं ने मानसी को ध्यान से देखा. वाकई मेरी गुडि़या विवाहयोग्य हो गई थी. लिहाजा, मैं ने पुरोहित को बुलावा भेजा.

‘बिटिया की कुंडली में तो घोर मंगल योग है बहूरानी. पतिसुख से यह वंचित रहेगी. पुरोहित के मुख से यह सुन कर मेरा मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. मैं मध्यवर्गीय धर्मभीरू परिवार से थी और लड़की के मंगला होने के परिणाम से पूरी तरह परिचित थी. मैं ने लगभग पुरोहित के पैर पकड़ लिए, ‘कोई उपाय बताइए पुरोहितजी. पूजापाठ, यज्ञहवन, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. मुझे कैसे भी इस मंगल दोष से छुटकारा दिलाइए.’

‘शांत हो जाइए बहूरानी. मेरे होते हुए आप को परेशान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है,’ उन्होंने रसगुल्ले को मुंह में दबाते हुए कहा, ‘ऐसा कीजिए, पहले तो बिटिया का नाम मानसी के बजाय प्रिया रख दीजिए.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी. इस उम्र में नाम बदलने के लिए न तो बिटिया तैयार होगी न उस के पापा. वे कुंडली मिलान के लिए भी तैयार नहीं थे.’

‘तैयार तो बहूरानी राजा दशरथ भी नहीं थे राम वनवास के लिए.’ पंडितजी ने घोर दार्शनिक अंदाज में मुझे त्रियाहट का महत्त्व समझाया व दक्षिणा ले कर चलते बने.

‘आज से तुम्हारा नाम मानसी के बजाय प्रिया रहेगा,’ रात के खाने पर मैं ने बेटी को अपना फैसला सुना दिया.

‘लेकिन क्यों मां, इस नाम में क्या बुराई है?’

‘वह सब मैं नहीं जानती बेटा, पर मैं जो कुछ भी कर रही हूं तुम्हारे भले के लिए ही कर रही हूं. प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो.’

उस ने मुझे कितना समझा, कितना नहीं, यह तो मैं नहीं जानती पर मेरी बात का विरोध नहीं किया.

हर नए रिश्ते के साथ मैं उसे हिदायतों का पुलिंदा पकड़ा देती.

‘सुनो बेटा, लड़के की लंबाई थोड़ा कम है, इसलिए फ्लैटस्लीपर ही पहनना.’

‘लेकिन मां फ्लैटस्लीपर तो मुझ पर जंचते नहीं हैं.’

‘देखो प्रिया, यह लड़का 6 फुट का है. इसलिए पैंसिलहील पहनना.’

‘लेकिन मम्मी मैं पैंसिलहील पहन कर तो चल ही नहीं सकती. इस से मेरे टखनों में दर्द होता है.’

‘प्रिया, मौसी के साथ पार्लर हो आना. शाम को कुछ लोग मिलने आ रहे हैं.’

‘मैं नहीं जाऊंगी. मुझे मेकअप पसंद नहीं है.’

‘बस, एक बार तुम्हारी शादी हो जाए, फिर करती रहना अपने मन की.’

मैं सुबकने लगती तो प्रिया हथियार डाल देती.

पर मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जातीं जब लड़के वाले ‘फोन से खबर करेंगे’, कहते हुए चले जाते या फिर दहेज में मोटी रकम की मांग करते, जिसे पूरा करना किसी मध्यवर्गीय परिवार के वश की बात नहीं थी.

‘ऐसा कीजिए बहूरानी, शनिवार की सुबह 3 बजे बिटिया से पीपल के फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइए,’ पंडितजी ने दूसरी युक्ति सुझाई.

‘तुम्हें यह क्या होता जा रहा है मां, मैं ये जाहिलों वाले काम बिलकुल नहीं करूंगी,’ प्रिया गुस्से से भुनभुनाई, ‘पीपल के फेरे लगाने से कहीं रिश्ते बनते हैं.’

‘सच ही तो है, शादियां यदि पीपल के फेरे लगाने से तय होतीं तो सारी विवाहयोग्य लड़कियां पीपल के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आतीं,’ सुशांत ने भी हां में हां मिलाई.

‘चलो, माना कि नहीं होती पर हमें यह सब करने में हर्ज ही क्या है?’

‘हर्ज है शुभा, इस से लड़कियों का मनोबल गिरता है. उन का आत्मसम्मान आहत होता है. बारबार लड़के वालों द्वारा नकारे जाने पर उन में हीनभावना घर कर जाती है. तुम ये सब समझना क्यों नहीं चाहतीं. मानसी को पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दो. उसे जो बनना है वह बन जाने दो. फिर शादी भी हो जाएगी,’ सुशांत ने मुझे समझाने की कोशिश की.

‘तब तक सारे अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे, फिर सुनते रहना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने.’

‘रिश्तेदारों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे. उन की बातों से डर कर क्या हम बेटी की खुशियों, उस के सपनों का गला घोंट दें.’

‘तुम कहना क्या चाहते हो, मैं क्या इस की दुश्मन हूं. अरे, लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़लिख जाएं, उन्हें आखिर पराए घर ही जाना होता है. घरपरिवार और बच्चे संभालने ही होते हैं और इन सब कामों की एक उम्र होती है. उम्र निकलने के बाद यही काम बोझ लगने लगते हैं.’

‘तो हमतुम मिल कर संभाल लेंगे न इन की गृहस्थी.’

‘संभालेंगे तो तब न जब ब्याह होगा इस का. लड़के वाले तो मंगला सुनते ही भाग खड़े होते हैं.’

हमारी बहस अभी और चलती अगर सुशांत ने मानसी की डबडबाई आंखों को देख न लिया होता.

सुशांत ने ही बीच का रास्ता निकाला था. वे कहीं से पीपल का बोनसाई का पौधा ले आए थे, जिस से मेरी बात भी रह जाए और प्रिया को घर से बाहर भी न जाना पड़े.

साल गुजरते जा रहे थे. मानसी की कालेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी.

घर में एक अदृश्य तनाव अब हर समय पसरा रहता. जिस घर में पहले प्रिया की शरारतों व खिलखिलाहटों की धूप भरी रहती, वहीं अब सर्द खामोशी थी.

सभी अपनाअपना काम करते, लेकिन यंत्रवत. रिश्तों की गर्माहट पता नहीं कहां खो गईर् थी.

हम मांबेटी की बातें जो कभी खत्म ही नहीं होती थीं, अब हां…हूं…तक ही सिमट गई थीं.

जीवन फिर पुराने ढर्रे पर लौटने लगा था कि तभी एक रिश्ता आया. कुलीन ब्राह्मण परिवार का आईएएस लड़का दहेजमुक्त विवाह करना चाहता था. अंधा क्या चाहे, दो आंखें.

हम ने झटपट बात आगे बढ़ाई. और एक दिन उन लोगों ने मानसी को देख कर पसंद भी कर लिया. सबकुछ इतना अचानक हुआ था कि मुझे लगने लगा कि यह सब पुरोहितजी के बताए उपायोें के फलस्वरूप हो रहा है.

हंसीखुशी के बीच हम शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे कि पुरोहित दोबारा आए, ‘जयकारा हो बहूरानी.’

‘सबकुछ आप के आशीर्वाद से ही तो हो रहा है पुरोहितजी,’ मैं ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा.

‘इसीलिए विवाह का मुहूर्त निकालते समय आप ने हमें याद भी नहीं किया,’ वे नाराजगी दिखाते हुए बोले.

‘दरअसल, लड़के वालों का इस में विश्वास ही नहीं है, वे नास्तिक हैं. उन लोगों ने तो विवाह की तिथि भी लड़के की छुट्टियों के अनुसार रखी है, न कि कुंडली और मुहूर्त के अनुसार,’ मैं ने अपनी सफाई दी.

‘न हो लड़के वालों को विश्वास, आप को तो है न?’ पंडित ने छूटते ही पूछा.

‘लड़के वालों की नास्तिकता का परिणाम तो आप की बेटी को ही भुगतना पड़ेगा. यह मंगल दोष किसी को नहीं छोड़ता.’

‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’ जैसेतैसे मेरे मुंह से निकला. पुरोहितजी की बात से शादी की खुशी जैसे काफूर गई थी.

‘कुछ कीजिए पुरोहितजी, कुछ कीजिए. अब तक तो आप ही मेरी नैया पार लगाते आ रहे हैं,’ मैं गिड़गिड़ाई.

‘वह तो है बहूरानी, लेकिन इस बार रास्ता थोड़ा कठिन है,’ पुरोहित ने पान की गिलौरी मुंह में डालते हुए कहा.

‘बताइए तो महाराज, बिटिया की खुशी के लिए तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं,’ मैं ने डबडबाई आंखों से कहा.

‘हर बेटी को आप जैसी मां मिले,’ कहते हुए उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, फिर मेरे कान के पास मुंह ले जा कर जो कुछ कहा उसे सुन कर तो मैं सन्न रह गई.

‘यह क्या कह रहे हैं आप? कहीं बकरे या कुत्ते से भी कोई मां अपनी बेटी की शादी कर सकती है.’

‘सोच लीजिए बहूरानी, मंगल दोष निवारण के लिए बस यही एक उपाय है. वैसे भी यह शादी तो प्रतीकात्मक होगी और आप की बेटी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए ही होगी.’

‘लेकिन पुरोहितजी, बिटिया के पापा भी तो कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन की सलाह के बिना…’

‘अब लेकिनवेकिन छोडि़ए बहूरानी. ऐसे काम गोपनीय तरीके से ही किए जाते हैं. अच्छा ही है जो यजमान घर पर नहीं हैं.

‘आप कल सुबह 8 बजे फेरों की तैयारी कीजिए. जमाई बाबू (बकरा) को मेरे साथी पुरोहित लेते आएंगे और बिटिया को मेरे घर की महिलाएं संभाल लेंगी.

‘और हां, 50 हजार रुपयों की भी व्यवस्था रखिएगा. ये लोग दूसरों से तो 80 हजार रुपए लेते हैं, पर आप के लिए 50 हजार रुपए पर बात तय की है.’ मैं ने कहते हुए पुरोहितजी चले गए.

अगली सुबह 7 बजे तक पुरोहित अपनी मंडली के साथ पधार चुके थे.

पुरोहिताइन के समझाने पर प्रिया बिना विरोध किए तैयार होने चली गई तो मैं ने राहत की सांस ली और बाकी कार्य निबटाने लगी.

‘मुहूर्त बीता जा रहा है बहूरानी, कन्या को बुलाइए.’ पुरोहितजी की आवाज पर मुझे ध्यान आया कि प्रिया तो अब तक तैयार हो कर आई ही नहीं.

‘प्रिया, प्रिया,’ मैं ने आवाज दी, लेकिन कोई जवाब न पा कर मैं ने उस के कमरे का दरवाजा बजाया, फिर भी कोई जवाब नहीं मिला तो मेरा मन अनजानी आशंका से कांप उठा.

‘सुनिए, कोई है? पुरोहितजी, पंडितजी, अरे, कोई मेरी मदद करो. मानसी, मानसी, दरवाजा खोल बेटा.’ लेकिन मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मेरे हितैषी होने का दावा करने वाले पुरोहित बजाय मेरी मदद करने के, अपने दलबल के साथ नौदोग्यारह हो गए थे.

हां, आवाज सुन कर पड़ोसी जरूर आ गए थे. किसी तरह उन की मदद से मैं ने कमरे का दरवाजा तोड़ा.

अंदर का भयावह दृश्य किसी की भी कंपा देने के लिए काफी था. मानसी ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस की रगों से बहता खून पूरे फर्श पर फैल चुका था और वह खुद एक कोने में अचेत पड़ी थी. मेरे ऊलजलूल फैसलों से बचने का वह यह रास्ता निकालेगी, यह मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

पड़ोसियों ने ही किसी तरह हमें अस्पताल तक पहुंचाया और सुशांत को खबर की.

ऐसी बातें छिपाने से भी नहीं छिपतीं. अगली ही सुबह मानसी के ससुराल वालों ने यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि ऐसे रूढि़वादी परिवार से रिश्ता जोड़ना उन के आदर्शों के खिलाफ है.

‘‘यह सब मेरी वजह से हुआ है,’’ सुशांत से कहते हुए मैं फफक पड़ी.

‘‘नहीं शुभा, यह तुम्हारी वजह से नहीं, तुम्हारी धर्मभीरुता और अंधविश्वास की वजह से हुआ.’’

‘‘ये पंडेपुरोहित तो तुम जैसे लोगों की ताक में ही रहते हैं. जरा सा डराया, ग्रहनक्षत्रों का डर दिखाया और तुम फंस गईं जाल में. लेकिन यह समय इन बातों का नहीं. अभी तो बस यही कामना करो कि हमारी बेटी ठीक हो जाए,’’ कहते हुए सुशांत की आंखें भर आईं.

‘बधाई हो, मानसी अब खतरे से बाहर है,’ डा. रोहित ने आईसीयू से बाहर आते हुए कहा.

‘रोहित, विनोद का बेटा है, मानसी के लिए जिस का रिश्ता मैं ने महज विजातीय होने के कारण ठुकरा दिया था, इसी अस्पताल में डाक्टर है और पिछले 48  घंटों से मानसी को बचाने की खूब कोशिश कर रहा है. किसी अप्राप्य को प्राप्त कर लेने की खुशी मुझे उस के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही है. ऐसे समय में उस ने मानसी को अपना खून भी दिया है.

‘क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि रोहित सिर्फ व सिर्फ मेरी बेटी मानसी के लिए ही बना है?

‘मैं भी बुद्धू हूं. मैं ने पहले बहुत गलतियां की हैं. अब और नहीं करूंगी,’ यह सब वह सोच रही थी.

रोहित थोड़ी दूरी पर नर्स को कुछ दवाएं लाने को कह रहा था. उस ने हिम्मत जुटा कर रोहित से आहिस्ता से कहा, ‘‘मानसी ने तो मुझे माफ कर दिया, पर क्या तुम व तुम्हारे परिवार वाले मुझे माफ कर पाएंगे.’’

‘कैसी बातें करती हैं आंटी आप, आप तो मेरी मां जैसी है.’ रोहित ने मेरे जुड़े हुए हाथों को थाम लिया था.

आज उन की भरीपूरी गृहस्थी है. रोहित के परिवार व मेरी बेटी मानसी ने भी मुझे माफ कर दिया है. लेकिन क्या मैं कभी खुद को माफ कर पाऊंगी. शायद कभी नहीं.

इन अंधविश्वासों के चंगुल में फंसने वाली मैं अकेली नहीं हूं. ऐसी घटनाएं हर वर्ग व हर समाज में होती रहती हैं. मैं आत्मग्लानि के दलदल में आकंठ डूब चुकी थी और अपने को बेटी का जीवन बिगाड़ने के लिए कोस रही थी.

चाल : फहीम ने सिखाया हैदर को सबक

कौफी हाउस के बाहर हैदर को देख कर फहीम के चेहरे की रंगत उड़ गई थी. हैदर ने भी उसे देख लिया था. इसलिए उस के पास जा कर बोला, ‘‘हैलो फहीम, बहुत दिनों बाद दिखाई दिए.’’

‘‘अरे हैदर तुम..?’’ फहीम ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘अगर और ज्यादा दिनों बाद मिलते तो ज्यादा अच्छा होता.’’

‘‘दोस्त से इस तरह नहीं कहा जाता भाई फहीम.’’ हैदर ने कहा तो जवाब में फहीम बोला, ‘‘तुम कभी मेरे दोस्त नहीं रहे हैदर. तुम यह बात जानते भी हो.’’

‘‘अब मिल गए हो तो चलो एकएक कौफी पी लेते हैं.’’ हैदर ने कहा.

‘‘नहीं,’’ फहीम ने कहा, ‘‘मैं कौफी पी चुका हूं. अब घर जा रहा हूं.’’

कह कर फहीम ने आगे बढ़ना चाहा तो हैदर ने उस का रास्ता रोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा न कि अंदर चल कर मेरे साथ भी एक कप कौफी पी लो. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो बाद में तुम्हें बहुत अफसोस होगा.’’

फहीम अपने होंठ काटने लगा. उसे मालूम था कि हैदर की इस धमकी का क्या मतलब है. फहीम हैदर को देख कर ही समझ गया था कि अब यह गड़े मुर्दे उखाड़ने बैठ जाएगा. हैदर हमेशा उस के लिए बुरी खबर ही लाता था. इसीलिए उस ने उकताए स्वर में कहा, ‘‘ठीक है, चलो अंदर.’’

दोनों अंदर जा कर कोने की मेज पर आमनेसामने बैठ कर कौफी पी रहे थे. फहीम ने उकताते हुए कहा, ‘‘अब बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

हैदर ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘अब मैं ने सुलतान ज्वैलर के यहां की नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘सुलतान आखिर असलियत जान ही गया.’’ फहीम ने इधरउधर देखते हुए कहा.

हैदर का चेहरा लाल हो गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरी उस के साथ निभी नहीं.’’

फहीम को हैदर की इस बात पर किसी तरह का कोई शक नहीं हुआ. ज्वैलरी स्टोर के मालिक सुलतान अहमद अपने नौकरों के चालचलन के बारे में बहुत सख्त मिजाज था. ज्वैलरी स्टोर में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी के बारे में शक होता नहीं था कि वह उस कर्मचारी को तुरंत हटा देता था.

फहीम ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर में 5 सालों तक नौकरी की थी. सुलतान अहमद को जब पता चला था कि फहीम कभीकभी रेस के घोड़ों पर दांव लगाता है और जुआ खेलता है तो उस ने उसे तुरंत नौकरी से निकाल दिया था.

‘‘तुम्हारे नौकरी से निकाले जाने का मुझ से क्या संबंध है?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर ने उस की इस बात का कोई जवाब न देते हुए बात को दूसरी तरफ मोड़ दिया, ‘‘आज मैं अपनी कुछ पुरानी चीजों को देख रहा था तो जानते हो अचानक उस में मेरे हाथ एक चीज लग गई. तुम्हारी वह पुरानी तसवीर, जिसे ‘इवनिंग टाइम्स’ अखबार के एक रिपोर्टर ने उस समय खींची थी, जब पुलिस ने ‘पैराडाइज’ में छापा मारा था. उस तस्वीर में तुम्हें पुलिस की गाड़ी में बैठते हुए दिखाया गया था.’’

फहीम के चेहरे का रंग लाल पड़ गया. उस ने रुखाई से कहा, ‘‘मुझे वह तस्वीर याद है. तुम ने वह तस्वीर अपने शराबी रिपोर्टर दोस्त से प्राप्त की थी और उस के बदले मुझ से 2 लाख रुपए वसूलने की कोशिश की थी. लेकिन जब मैं ने तुम्हें रुपए नहीं दिए तो तुम ने सुलतान अहमद से मेरी चुगली कर दी थी. तब मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था. मैं ने पिछले 4 सालों से घोड़ों पर कोई रकम भी नहीं लगाई है. अब मेरी शादी भी हो चुकी है और मेरे पास अपनी रकम को खर्च करने के कई दूसरे तरीके भी हैं.’’

‘‘बिलकुल… बिलकुल,’’ हैदर ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘और अब तुम्हारी नौकरी भी बहुत बढि़या है बैंक में.’’

यह सुन कर फहीम के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘तुम क्या समझ रहे हो कि मेरी तुम से यहां हुई मुलाकात इत्तफाक है?’’ हैदर ने भेडि़ए की तरह दांत निकालते हुए कहा.

फहीम ने तीखी नजरों से हैदर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ये चूहेबिल्ली का खेल खत्म करो. यह बताओ कि तुम चाहते क्या हो?’’

हैदर ने बेयरे की ओर देखते हुए धीमे स्वर में कहा, ‘‘बात यह है फहीम कि सुलतान अहमद के पास बिना तराशे हीरों की लाट आने वाली है. उन की शिनाख्त नहीं हो सकती और उन की कीमत करोड़ों रुपए में है.’’

यह सुन कर फहीम के जबड़े कस गए. उस ने गुर्राते हुए कहा, ‘‘तो तुम उन्हें चोरी करना चाहते हो और चाहते हो कि मैं तुम्हारी इस काम में मदद करूं?’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो फहीम,’’ हैदर ने चेहरे पर कुटिलता ला कर कहा, ‘‘लेकिन यह काम केवल तुम करोगे.’’

फहीम उस का चेहरा देखता रह गया.

‘‘तुम्हें याद होगा कि सुलतान अहमद अपनी तिजोरी के ताले का कंबीनेशन नंबर हर महीने बदल देता है और हमेशा उस नंबर को भूल जाता है. जब तुम जहां रहे तुम उस के उस ताले को खोल देते थे. तुम्हें उस तिजोरी को खोलने में महारत हासिल है, इसलिए…’’

‘‘इसलिए तुम चाहते हो कि मैं सुलतान ज्वैलरी स्टोर में घुस कर उस की तिजोरी खोलूं और उन बिना तराशे हीरों को निकाल कर तुम्हें दे दूं?’’ फहीम ने चिढ़ कर कहा.

‘‘इतनी ऊंची आवाज में बात मत करो,’’ हैदर ने आंख निकाल कर कहा, ‘‘यही तो असल हकीकत है. तुम वे हीरे ला कर मुझे सौंप दो और वह तस्वीर, निगेटिव सहित मुझ से ले लो. अगर तुम इस काम के लिए इनकार करोगे तो मैं वह तस्वीर तुम्हारे बौस को डाक से भेज दूंगा.’’

पलभर के लिए फहीम की आंखों में खून उतर आया. वह भी हैदर से कम नहीं था. उस ने दोनों हाथों की मुटिठयां भींच लीं. उस का मन हुआ कि वह घूंसों से हैदर के चेहरे को लहूलुहान कर दे, लेकिन इस समय जज्बाती होना ठीक नहीं था. उस ने खुद पर काबू पाया. क्योंकि अगर हैदर ने वह तसवीर बैंक में भेज दी तो उस की नौकरी तुरंत चली जाएगी.

फहीम को उस कर्ज के बारे में याद आया, जो उस ने मकान के लिए लिया था. उसे अपनी बीवी की याद आई, जो अगले महीने उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. अगर उस की बैंक की नौकरी छूट गई तो सब बरबाद हो जाएगा. हैदर बहुत कमीना आदमी था. उस ने फहीम को अब भी ढूंढ़ निकाला था. अगर उस ने किसी दूसरी जगह नौकरी कर ली तो यह वहां भी पहुंच जाएगा. ऐसी स्थिति में हैदर को हमेशा के लिए खत्म करना ही ठीक रहेगा.

‘‘तुम सचमुच मुझे वह तसवीर और उस की निगेटिव दे दोगे?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर की आंखें चमक उठीं. उस ने कहा, ‘‘जिस समय तुम मुझे वे हीरे दोगे, उसी समय मैं दोनों चीजें तुम्हारे हवाले कर दूंगा. यह मेरा वादा है.’’

फहीम ने विवश हो कर हैदर की बात मान ली. हैदर अपने घर में बैठा फहीम का इंतजार कर रहा था. उस के यहां फहीम पहुंचा तो रात के 3 बज रहे थे. उस के आते ही उस ने पूछा ‘‘तुम हीरे ले आए?’’

फहीम ने अपने ओवरकोट की जेब से मखमली चमड़े की एक थैली निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘वह तसवीर और उस की निगेटिव?’’

हैदर ने अपने कोट की जेब से एक लिफाफा निकाल कर फहीम के हवाले करते हुए हीरे की थैली उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘एक मिनट…’’ फहीम ने कहा. इस के बाद लिफाफे में मौजूद तसवीर और निगेटिव निकाल कर बारीकी से निरीक्षण करने लगा. संतुष्ट हो कर सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, ये रहे तुम्हारे हीरे.’’

हैदर ने हीरों की थैली मेज से उठा ली. फहीम ने जेब से सिगरेट लाइटर निकाला और खटके से उस का शोला औन कर के तसवीर और निगेटिव में आग लगा दी. उन्हें फर्श पर गिरा कर जलते हुए देखता रहा.

अचानक उस के कानों में हैदर की हैरानी भरी आवाज पड़ी, ‘‘अरे, ये तो साधारण हीरे हैं.’’

फहीम ने तसवीर और निगेटिव की राख को जूतों से रगड़ते हुए कहा, ‘‘हां, मैं ने इन्हें एक साधारण सी दुकान से खरीदे हैं.’’

यह सुन कर हैदर फहीम की ओर बढ़ा और क्रोध से बोला, ‘‘यू डबल क्रौसर! तुम समझते हो कि इस तरह तुम बच निकलोगे. कल सुबह मैं तुम्हारे बौस के पास बैंक जाऊंगा और उसे सब कुछ बता दूंगा.’’

हैदर की इस धमकी से साफ हो गया था कि उस के पास तसवीर की अन्य कापियां नहीं थीं. फहीम दिल ही दिल में खुश हो कर बोला, ‘‘हैदर, कल सुबह तुम इस शहर से मीलों दूर होगे या फिर जेल की सलाखों के पीछे पाए जाओगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ हैदर सिटपिटा गया.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को रस्सी से बांध दिया है. छेनी की मदद से तिजोरी पर इस तरह के निशान लगा दिए हैं, जैसे किसी ने उसे खोलने की कोशिश की हो. लेकिन खोलने में सफल न हुआ हो. ऐसे में सुलतान अहमद की समझ में आ जाएगा कि यह हरकत तुम्हारी है.

‘‘इस के लिए मैं ने तिजोरी के पास एक विजीटिंग कार्ड गिरा दिया है, जिस पर तुम्हारा नाम और पता छपा है. वह कार्ड कल रात ही मैं ने छपवाया था. अगर तुम्हारा ख्याल है कि तुम सुलतान अहमद को इस बात से कायल कर सकते हो कि तिजोरी को तोड़ने की कोशिश के दौरान वह कार्ड तुम्हारे पास से वहां नहीं गिरा तो फिर तुम इस शहर रहने की हिम्मत कर सकते हो.

‘‘लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो बेहतर यही होगा कि तुम अभी इस शहर से भाग जाने की तैयारी कर लो. मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को ज्यादा मजबूती से नहीं बांधा था. वह अब तक स्वयं को रस्सी से खोलने में कामयाब हो गया होगा.’’

हैदर कुछ क्षणों तक फहीम को पागलों की तरह घूरता रहा. इस के बाद वह अलमारी की तरफ लपका और अपने कपड़े तथा अन्य जरूरी सामान ब्रीफकेस में रख कर तेजी से सीढि़यों की ओर बढ़ गया.

फहीम इत्मीनान से टहलता हुआ हैदर के घर से बाहर निकला. बाहर आ कर बड़बड़ाया, ‘मेरा ख्याल है कि अब हैदर कभी इस शहर में लौट कर नहीं आएगा. हां, कुछ समय बाद वह यह जरूर सोच सकता है कि मैं वास्तव में सुलतान ज्वैलरी स्टोर में गया भी था या नहीं? लेकिन अब उस में इतनी हिम्मत नहीं रही कि वह वापस आ कर हकीकत का पता करे. फिलहाल मेरी यह चाल कामयाब रही. मैं ने उसे जो बता दिया, उस ने उसे सच मान लिया.’

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 4

चाची को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें मत करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम?ा जाता है, पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को हिम्मत बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिन गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं, 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची की ऐसी हालत देख पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी.

पायल ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया.

चाची के बाल बिखरे हुए और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु?ो बताओ कि क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो गया है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं.

वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु?ा पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया.

‘‘मैं तो पहले से ही अधमरी थी, अब इन लोगों ने तो मु?ो पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया?’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है.

‘‘उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. आप को पता है न, खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? अब तू ही मु?ो सम?ा सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो?ा कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी.

किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इस के बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से बोली, ‘‘अंकलजी, मु?ो आप से कुछ बात करनी है. वैसे तो मु?ो इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए, पर मु?ो लगा कि आप की बात और कोई तो सम?ोगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में वह किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है मु?ा से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते हैं?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी

तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ कि क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर ?ाक?ोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची ?ां?ालाते हुए बोलीं, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम?ाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया है तो आप उस किराएदार से शादी कर लो तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंचीं. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह रही है तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी, जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी ये सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 3

पायल की बातों पर चाची कुछ भावुक होते हुए बोलीं, ‘‘जब मैं बाहर छत पर खड़ी होती हूं तो वह किराएदार मेरा हालचाल पूछने लगता है, मैं भी उस को कुछ जवाब दे देती हूं. पर गांव के ये लोग भी पता नहीं क्यों मेरी हर बात का बतंगड़ बना देते हैं…’’

चाची एक लंबी सांस लेती हुई बोलीं, ‘‘अच्छा… पायल तू ही बता, इस में मेरी क्या गलती है?’’

चाचा को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें न करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम झा जाता है. पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को ढांढस बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिनों गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची को ऐसी हालत देख कर पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी. उस ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया. चाची के बाल बिखरे और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख कर चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु झे बताओ क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो रहा है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं. वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु झ पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया. मैं तो पहले से ही अधमरी थी अब इन लोगों ने तो मु झे पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भ्ी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया.’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है. उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. पता है खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची फफक कर रोते हुए बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? तू ही मु झे सम झ सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो झ कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी. किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इसके बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘अंकलजी. आप से मु झे कुछ बात करनी है. वैसे तो मु झे इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए. पर मु झे लगा कि आप की बात और कोई तो सम झेगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है तुम्हें मु झ से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते है?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई, उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ आप क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर  झक झोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची  झुं झलाते हुए बोली, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम झाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया तो आप उस किराएदार से शादी कर लो. तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंची. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी. जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी यह सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों के बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

सुख की गारंटी : एक हकीकत

एक दिन काफी लंबे समय बाद अनु ने महक को फोन किया और बोली, “महक, जब तुम दिल्ली आना तो मुझ से मिलने जरूर आना.”

“हां, मिलते हैं, कितना लंबा समय गुजर गया है. मुलाकात ही नहीं हुई है हमारी.”

कुछ ही दिनों बाद मैं अकेली ही दिल्ली जा रही थी. अनु से बात करने के बाद पुरानी यादें, पुराने दिन याद आने लगे. मैं ने तय किया कि कुछ समय पुराने मित्रों से मिल कर उन पलों को फिर से जिया जाए. दोस्तों के साथ बिताए पल, यादें जीवन की नीरसता को कुछ कम करते हैं.

शादी के बाद जीवन बहुत बदल गया व बचपन के दिन, यादें व बहुत कुछ पीछे छूट गया था. मन पर जमी हुई समय की धूल साफ होने लगी…

कितने सुहाने दिन थे. न किसी बात की चिंता न फिक्र. दोस्तों के साथ हंसीठिठोली और भविष्य के सतरंगी सपने लिए, बचपन की मासूम पलों को पीछे छोड़ कर हम भी समय की घुड़दौड़ में शामिल हो गए थे. अनु और मैं ने अपने जीवन के सुखदुख एकसाथ साझा किए थे. उस से मिलने के लिए दिल बेकरार  था.

मैं दिल्ली पहुंचने का इंतजार कर रही थी. दिल्ली पहुंचते ही  मैं ने सब से पहले अनु को फोन किया. वह स्कूल में पढ़ाती है. नौकरी में समय निकालना भी मुश्किल भरा काम है.

“अनु मै आ गई हूं… बताओ कब मिलोगी तुम? तुम घर ही आ जाओ, आराम से बैठैंगे. सब से मिलना भी हो जाएगा…”

“नहीं यार, घर पर नही मिलेंगे, न तुम्हारे घर न ही मेरे घर. शाम को 3 बजे मिलते हैं. मैं स्कूल समाप्त होने के बाद सीधे वहीं आती हूं, कौफी हाउस, अपने वही पुराने रैस्टोरेंट में…”

“ठीक है शाम को मिलते हैं.“

आज दिल में न जाने क्यों अजीब सी बैचेनी हो रही थी. इतने वर्षों में हम मशीनी जीवन जीते संवादहीन हो गए थे. अपने लिए जीना भूल गए थे.   जीवन एक परिधि में सिमट गया था. एक भूलभूलैया जहां खुद को भूलने की कवायत शुरू हो गई थी. जीवन सिर्फ ससुराल, पति व बच्चों में सिमट कर रह गया था. सब को खुश रखने की कवायत में मैं खुद को भूल बैठी थी. लेकिन यह परम सत्य है कि सब को खुश रखना नामुमकिन सा होता है.

दुनिया गोल है, कहते हैं न एक न एक दिन चक्र पूरा हो ही जाता है. इसी चक्र में आज बिछडे साथी मिल रहे थे. घर से बाहर औपचारिकताओं से परे. अपने लिए हम अपनी आजादी को तलाशने का प्रयत्न करते हैं. अपने लिए पलों को एक सुख की अनुभूति होती है.

मैं समझ गई कि आज हमारे बीच कहने सुनने के लिए बहुत कुछ होगा. सालों से मौन की यह दीवार अब ढहने वाली है.

नियत समय पर मैं वहां पहुंच गई. शीघ्र ही अनु भी आ गई. वही प्यारी सी मुसकान, चेहरे पर गंभीरता के भाव, पर हां शरीर थोडा सा भर गया था, लेकिन आवाज में वही खनक थी. आंखे पहले की तरह प्रश्नों को तलाशती हुई नजर आईं, जैसे पहले सपनों को तलाशती थीं.

समय ने अपने अनुभव की लकीरें चेहरे पर खींच दी थीं. वह देखते ही गले मिली तो मौन की जमी हुई बर्फ स्वत: ही पिघलने लगी…

“कैसी हो अनु, कितने वर्षों बाद तुम्हें  देखा है. यार तुम तो बिलकुल भी नहीं बदलीं…”

“कहां यार, मोटी हो गई हूं… तुम बताओ कैसी हो? तुम्हारी जिंदगी तो मजे में गुजर रही है, तुम जीवन में कितनी सफल हो गई हो… चलो आराम से बैठते हैं…”

आज वर्षो बाद भी हमें संवादहीनता का एहसास नहीं हुआ… बात जैसे वहीं से शुरू हो गई, जहां खत्म हुई थी. अब हम रैस्टोरेंट में अपने लिए कोना तलाश रहे थे, जहां हमारे संवादों में किसी की दखलंदाजी न हो. इंसानी फितरत होती है कि वह भीड़ में भी अपना कोना तलाश लेता है. कोना जहां आप सब से दुबक कर बैठे हों, जैसेकि आसपास बैठी 4 निगाहें भी उस अदृश्य दीवार को भेद न सकें. वैसे यह सब मन का भ्रमजाल ही है.

अाखिरकार हमें कोना मिल ही गया. रैस्टोरेंट के उपरी भाग में कोने की खाली मेज जैसे हमारा ही इंतजार कर रही थी. यह कोना दिल को सुकून दे रहा था. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद अनु सीधे मुद्दे पर आ गई. बोली,”और सुनाओ कैसी हो, जीवन में बहुत कुछ हासिल कर लिया है. आज इतना बड़ा मुकाम, पति, बच्चे सब मनमाफिक मिल गए तुम्हें. मुझे बहुत खुशी है…”

यह सुनते ही महक की आंखो में दर्द की लहर चुपके से आ कर गुजर गई व पलकों के कोर कुछ नम से हो गए. पर मुसकान का बनावटीपन कायम रखने की चेष्टा में चेहरे के मिश्रित हावभाव कुछ अनकही कहानी बयां कर रही थी.

“बस अनु सब ठीक है. अपने अकेलेपन से लड़ते हुए सफर को तय कर रही हूं, जीवन  में बहुत उतारचढाव देखें हैं. तुम तो खुश हो न? नौकरी करती हो, अच्छा कमा रही हो, अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी रही हो… सबकुछ अपनी पंसद का मिला है और क्या सुख चाहिए? मैं तो बस यों ही समय काटने के लिए लिखनेपढ़ने लगी,” मैं ने बात को घुमा कर उस का हाल जानने की कोशिश करनी चाही.

“मै भी बढ़िया हूं. जीवन कट रहा है. मैं पहले भी अकेली थी, आज भी अकेली हूं.  हम साथ जरूर हैं पर कितनी अलग राहें हैं जैसे नदी के 2 किनारे…

“यथार्थ की पथरीली जमीन बहुत कठोर है. पर जीना पडता है… इसलिए मैं ने खुद को काम में डूबो दिया है…”

“क्या हुआ, ऐसे क्यों बोल रही हो? तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है क्या?”

“नहीं यार, पूरा जीवन बीत जाए तो भी हम एकदूसरे को समझ नहीं  सकेंगे. कितने वैचारिक मतभेद हैं, शादी का चार्म, प्रेम पता नही कहां 1 साल ही खत्म हो गया. अब पछतावा होता है. सच है, इंसान प्यार में अंधा हो जाता है.”

“हां, सही कहा. सब एक ही नाव पर सवार होते हैं पर परिवार के लिए जीना पड़ता है.”

“हां, तुम्हारी बात सही है, पर यह समझौते अंतहीन होते हैं, जिन्हें निभाने में जिंदगी का ही अंत हो जाता है.  तुम्हें तो शायद कुदरत से यह सब मिला है पर मैं ने तो अपने पैरों पर खुद कुल्हाडी मारी है. प्रेमविवाह जो किया है.

“सब ने मना किया था कि यह शादी मत करो, पर अाज समझ में आया कि मेरा फैसला गलत था. यार,  विनय का व्यवहार समझ से परे है. रिश्ता टूटने की कगार पर है. उस के पास मेरे लिए समय ही नहीं है या फिर वह देना नहीं चाहता… याद नहीं कब दोपल सुकून से बैठै हों. हर बात में अलगाव वाली स्थिति होती है.”

“अनु सब को मनचाहा जीवनसाथी नहीं मिलता.  जिंदगी उतनी आसान नहीं होती, जितना हम सोचते हैं. सुख अपरिभाषित है. रिश्ते निभाना इतना भी अासान नहीं है. हर रिश्ता आप से समय व त्याग मांगता है. पति के लिए जैसे पत्नी उन की संपत्ति होती है जिस पर जितनी चाहे मरजी चला लो. हम पहले मातापिता की मरजी से जीते थे, अब पति की मरजी से जीते हैं. शादी समझौते का दूसरा नाम ही है, हां कभीकभी मुझे भी गुस्सा आता है तो मां से शिकायत कर देती हूं पर अब मैं ने स्थिति को स्वीकार करना सीख लिया है. अब दुख नहीं होता. तुम भी हौंसला रखो, सब ठीक हो जाएगा.”

“नहीं महक, अब उम्मीद बाकी नहीं है. शादी करो तो मुश्किल, न करो तो भी मुश्किल. सब को शादी ही अंतिम पडाव क्यों लगता है? मैं ने भी समझौता कर लिया है कि रोनेधोने से समस्या हल नहीं होगी.

“अनु, तुम्हारे पास तो कला का हुनर है उसे और निखारो. अपने शौक पूरे करो. एक ही बिंदू पर खड़ी रहोगी तो घुटन होने लगेगी.

“एक बात बताओ कि एक आदमी किसी के सुख का पैमाना कैसे हो सकता है? अरैंज्ड मैरिज में पगपग पर असहमति होती है, यहां हर रिश्ता आग की दहलीज पर खड़ा होता है, हरकोई आप से संतुष्ट नहीं होता.”

“महक बात तो तुम्हारी सही है, पर विवाह में कोई एक व्यक्ति, किसी दूसरे के जीने का मापदंड कैसे तय कर सकता है? समय बदल गया है, कानून में भी दंड का प्रावधान है. हमें अपने अधिकारों के लिए सजग रहना चाहिए. कब तक अपनी इच्छाओं का गला घोटें… यहां तो भावनाओं का भी रेप हो जाता है, जहां बिना अपनी मरजी के आप वेदना से गुजरते रहो और कोई इस की परवाह भी न करे.”

“अनु, जब विवाह किया है तो निभाना भी पङेगा. क्या हमें मातापिता, बच्चे, पङोसी हमेशा मनचाहे ही मिलते हैं?  क्या सब जगह आप तालमेल नहीं  बैठाते? तो फिर पतिपत्नी के रिश्ते में वैचारिक मदभेद होना लाजिमी है.  हाथ की सारी उंगलिया भी एकसमान नहीं होतीं, तो 2 लिंग कैसे समान हो सकते हैं?

“इन मैरिज रेप इज इनविजिवल, सो रिलैक्स ऐंड ऐंजौय. मुंह सूजा कर रहने में कोई मजा नहीं है. दोनों पक्षों को थोड़ाथोङा झुकना पडता है. किसी ने कहा है न कि यह आग का दरिया है और डूब कर जाना है, तो विवाह में धूप व छांव के मोड़ मिलते रहते हैं.“

“हां, महक तुम शायद सही हो. कितना सहज सोचती हो. अब मुझे भी लगता है कि हमें फिर से एकदूसरे को मौका देना चाहिए. धूपछांव तो आतीजाती रहती हैं…”

“अनु देख यार, जब हम किसी को उस की कमी के साथ स्वीकार करते हैं तो पीडा का एहसास नहीं होता. सकारात्मक सोच कर अब आगे बढ़, परिवार को पूर्ण करो, यही जीवन है…”

विषय किसी उत्कर्षनिष्कर्ष तक पहुंचती कि तभी वेटर आ गया और दोनों चुप हो गईं.

“मैडम, आप को कुछ और चाहिए?” कहने के साथ ही मेज पर रखे खाली कपप्लेटें समेटने लगा. उन के हावभाव से लग रहा था कि खाली बैठे ग्राहक जल्दी से अपनी जगह छोङे.

“हम ने बातोंबातों में पहले ही चाय के कप पी कर खाली कर दिए.”

“हां, 2 कप कौफी के साथ बिल ले कर आना,”अनु के कहा.

“अनु, समय का भान नहीं हुआ कि 2 घंटे कैसे बीत गए. सच में गरमगरम कौफी की जरूरत महसूस हो रही है.”

मन में यही भाव था कि काश वक्त हमारे लिए ठहर जाए. पर ऐसा होता नहीं है. वर्षो बाद मिलीं सहेलियों के लिए बातों का बाजार खत्म करना भी मुश्किल भरा काम है. गरमगरम कौफी हलक में उतरने के बाद मस्तिष्क को राहत महसूस हो रही थी. मन की भड़ास विषय की गरमी, कौफी की गरम चुसकियों के साथ विलिन होने लगी. बातों का रूख बदल गया.

आज दोनों शांत मन से अदृश्य उदासी व पीड़ा के बंधन को मुक्त कर के चुपचाप यहीं छोड रही थीं.

मन में कडवाहट का बीज  जैसे मरने लगा. महक घर जाते हुए सोच रही थी कि प्रेमविवाह में भी मतभेद हो सकते हैं तो अरैंज्ड मैरिज में पगपग पर इम्तिहान है. एकदूसरे को समझने में जीवन गुजर जाता है. हर दिन नया होता है. जब आशा नहीं रखेंगे तो  वेदना नामक शराब से स्वत: मुक्ति मिल जाएगी.

अनु से बात करके मैं यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि हर शादीशुदा कपल परेशानी से गुजरता है. शादी के कुछ दिनों बाद जब प्यार का खुमार उतर जाता है तो धरातल की उबड़खाबड़ जमीन उन्हें चैन की नींद सोने नहीं देती है. फिर वहीं से शुरू हो जाता है आरोप प्रत्यारोपों का दौर. क्यों हम अपने हर सुखदुख की गारंटी अपने साथी को समझते हैं? हर पल मजाक उड़ाना व उन में खोट निकालना प्यार की परिभाषा को बदल देता है. जरा सा नजरिया बदलने की देर है .

सामाजिक बंधन को क्यों न हंस कर जिया जाए. पलों को गुनगुनाया जाए? एक पुरुष या एक स्त्री किसी के सुख की गांरटी का कारण कैसे बन सकते हैं? हां, सुख तलाश सकते हैं और बंधन निभाने में ही समझदारी है.

आज मैं ने भी अपने मन में जीवनसाथी के प्रति पल रही कसक को वहीं छोड़ दिया, तो मन का मौसम सुहाना लगने लगा. घर वापसी सुखद थी. शादी का बंधन मजबूरी नहीं प्यार का बंधन बन सकता है, बस सोच बदलने की देर है.

कुछ दिनों बाद अनु का फोन आया, “शुक्रिया महक, तुम्हारे कारण मेरा जीवन अब महकने लगा है. हम दोनों ने नई शुरुआत कर दी है. आपसी तालमेल निभाना सीख लिया है. अब मेरे आंगन में बेला के फूल महक रहे हैं. सुख की गांरटी एकदूसरे के पास है.” दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

अपना अपना नजरिया : शुभी का क्यों था ऐसा बरताव – भाग 3

‘‘तुम्हारे पापा हर सुखदुख में तुम्हारी बूआ के काम आते हैं न. मां की एक आवाज पर भागे चले जाते हैं लेकिन जब उन की पत्नी अस्पताल में पड़ी थी तब कौन आया था उन के काम? क्या दादी या बूआ आई थीं यहां. मुझे किस ने संभाला था? कौन था मेरे पास?”

‘‘रिश्तों के होते हुए भी क्या कभी तुम ने हमारे परिवार को सुखदुख बांटते देखा है? उम्मीद करना मनुष्य की सब से बड़ी कमजोरी है, अजय. वही सुखी है जिस ने कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं की. जीवन की लड़ाई हमेशा अकेले ही लड़नी पड़ती है और सुखदुख में काम आता है हमारा चरित्र, हमारा व्यवहार. किसी के बन जाओ या किसी को अपना बना लो.

‘‘मैं 15 दिन अस्पताल में रही… कौन हमारा खानापीना देखता रहा, क्या तुम नहीं जानते? हमारा आसपड़ोस, तुम्हारे पापा के मित्र, मेरी सहेलियां. तुम्हारे दोस्त ने तो मुझे खून भी दिया था. जो लोग हमारे काम आए क्या वे हमारे सगेसंबंधी थे? बोलो?

‘‘भाईबहन के न होने से तुम्हारा दिल छोटा कैसे रह जाएगा? रिश्तों के होते हुए हमारा कौन सा काम हो गया जो तुम्हारा नहीं होगा. किसी की तरफ प्यार भरा ईमानदार हाथ बढ़ा कर देखना अजय, वही तुम्हारा हो जाएगा. प्यार बांटोगे तो प्यार मिलेगा.’’

‘‘मुझे एक भाई चाहिए, मां,’’ रोने लगा अजय.

‘‘जिन के भाई हैं क्या उन का झगड़ा नहीं देखा तुम ने? क्या वे सुखी हैं? हर घर का आज यही झगड़ा है… भाई ही भाई को सहना नहीं चाहता. किस मृगतृष्णा में हो… कल अगर तुम्हारा भाई तुम्हारा साथ छोड़ कर चला जाएगा तो तुम्हें अकेले ही तो जीना होगा…अगर हमारी संपत्ति को ले कर ही तुम्हारा भाई तुम से झगड़ा करेगा तब कहां जाएगी रिश्तेदारी, अपनापन जिस के लिए आज तुम रो रहे हो?

‘‘अजय, तुम्हारी अपनी संतान होगी, अपनी पत्नी, अपना घर. तब तुम अपने बच्चों के लिए करोगे या भाई के लिए? तुम से 20 साल छोटा भाई तुम्हारे लिए संतान के बराबर होगा. दोनों के बीच पिस जाओगे, जिस तरह तुम्हारे पापा पिसते हैं, मां की बिना वजह की दुत्कार भी सहते हैं और बहन के ताने भी सहते हैं…अच्छा पुत्र, अच्छा भाई बनने का पूरा प्रयास करते हैं तुम्हारे पापा फिर भी उन्हें खुश नहीं कर सके. उन का दोष सिर्फ इतना है कि उन्हें अपनी पत्नी, अपने बच्चे से भी प्यार है, जो उन की मांबहन के गले नहीं उतरता.

‘‘कल यही सब तुम्हारे साथ भी होगा. जरूरत से ज्यादा प्यार भी इनसान को संकुचित और स्वार्थी बना देता है. तुम्हारी दादी और बूआ का तुम्हारे पापा के साथ हद से ज्यादा प्यार ही सारी पीड़ा की जड़ है और यह सब आज हर तीसरे घर में होता है, सदा से होता आया है. जिस दिन पराया खून प्यारा लगने लगेगा उसी दिन सारे संताप समाप्त हो पाएंगे.

‘‘शायद तुम्हारी पत्नी का खून मुझे पानी जैसा न लगे…शायद मेरी बहू की पीड़ा पर मेरी भी नसें टूटने लगें… शायद वह मुझे तुम से भी ज्यादा प्यारी लगने लगे. इसी शायद के सहारे तो मैं ने अपनी एक ही संतान रखने का निर्णय लिया था ताकि मेरी ममता इतनी स्वार्थी न हो जाए कि बहू को ही नकार दे. मैं अपनी बेटी के सामने अपनी बहू का अपमान कभी न कर पाऊं इसीलिए तो बेटी को जन्म नहीं दिया…क्या तुम मेरे इस प्रयास को नकार दोगे, अजय?’’

आंखें फाड़ कर अजय मेरा मुंह देखने लगा था. उस के पापा भी पता नहीं कब चले आए थे और चुपचाप मेरी बातें सुन कर मेरा चेहरा देख रहे थे.

‘‘जीवन इसी का नाम है, अजय. वे घर भी हैं जहां बहुएं दिनरात बुजुर्गों का अपमान करती हैं और एक हमारा घर है जहां पहले दिन से मेरी सास मेरा अपमान कर रही हैं, जहां बेटी के तो सभी शगुन मनाए जाते हैं और बहू का मानसम्मान घर की नौकरानी से भी कम. बेटी का साम्राज्य घर के चप्पेचप्पे पर है और बहू 22 साल बाद भी अपनी नहीं हो सकी.’’

आवेश में पता नहीं क्याक्या निकल गया मेरे मुंह से. अजय के पापा चुप थे. अजय भी चुप था. मैं नहीं जानती वह क्या सोच रहा है. उस की सोच कुछ ही शब्दों से बदल गई होगी ऐसी उम्मीद भी नहीं की जा सकती लेकिन यह सत्य मेरी समझ में अवश्य आ गया है कि जीवन को नापने का सब का अपनाअपना फीता होता है. जरूरी नहीं किसी के पैमाने में मेरा सच या मेरा झूठ पूरी तरह फिट बैठ जाए.

मैं ने अपने जीवन को उसी फीते से नापा है जो फीता मेरे अपनों ने मुझे दिया है. मैं यह भी नहीं कह सकती कि अगर मेरी कोई बेटी होती तो मैं बहू को उस के सामने सदा अपमानित ही करती. हो सकता है मैं दोनों रिश्तों में एक उचित तालमेल बिठा लेती. हो सकता है मैं यह सत्य पहले से ही समझ जाती कि मेरा बुढ़ापा इसी पराए खून के साथ कटने वाला है, इसलिए प्यार पाने के लिए मुझे प्यार और सम्मान देना भी पड़ेगा.

हो सकता है मैं एक अच्छी सास बन कर बहू को अपने घर और अपने मन में एक प्यारा सा मीठा सा कोना दे देती. हो सकता है मैं बेटी का स्थान बेटी को देती और बहू का लाड़प्यार बहू को. होने को तो ऐसा बहुत कुछ हो सकता था लेकिन जो वास्तव में हुआ वह यह कि मैं ने अपनी दूसरी संतान कभी नहीं चाही, क्योंकि रिश्तों की भीड़ में रह कर भी अकेला रहना कितना तकलीफदेह है यह मुझ से बेहतर कौन समझ सकता है जिस ने ताउम्र रिश्तों को जिया नहीं सिर्फ ढोया है. खून के रिश्ते सिर्फ दाहसंस्कार करने के काम ही नहीं आते जीतेजी भी जलाते हैं.

तो बुरा क्या है अगर मनुष्य खून के रिश्तों से आजाद अकेला रहे, प्यार करे, प्यार बांटे. किसी को अपना बनाए, किसी का बने. बिना किसी पर कोई अधिकार जमाए सिर्फ दोस्त ही बनाए, ऐसे दोस्त जिन से कभी कोई बंटवारा नहीं होता. जिन से कभी अधिकार का रोना नहीं रोया जाता, जो कभी दिल नहीं जलाते, जिन के प्यार और अपनत्व की चाह में जीवन एक मृगतृष्णा नहीं बन जाता.

‘‘तुम्हारे पापा हर सुखदुख में तुम्हारी बूआ के काम आते हैं न. मां की एक आवाज पर भागे चले जाते हैं लेकिन जब उन की पत्नी अस्पताल में पड़ी थी तब कौन आया था उन के काम?

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जिंदगी की उजली भोर- भाग 2

सीमा ने जो कल बताया कि समीर किसी खूबसूरत औरत के साथ खुशीखुशी शौपिंग कर रहा था, मुंबई के बजाय बड़ौदा में था, उस का सारा सुखचैन एक डर में बदल गया कि कहीं समीर उस खूबसूरत औरत के चक्कर में तो नहीं पड़ गया है. उसे यकीन न था कि समीर जैसा चाहने वाला शौहर ऐसा कर सकता है. सीमा ने उसे समझाया था, अभी कुछ न कहे जब तक परदा रहता है, मर्द घबराता है. बात खुलते ही वह शेर बन जाता है.

समीर दूसरे दिन लौट आया. वही प्यार, वही अपनापन. रूना का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह परेशान हो गया. रूना ने सिरदर्द का बहाना बना कर टाला. रूना बारीकी से समीर की हरकतें देखती पर कहीं कोई बदलाव नहीं. उसे लगता कि समीर की चाहत उजली चांदनी की तरह पाक है, पर ये अंदेशे? बहरहाल, यों ही 1 माह गुजर गया.

एक दिन रात में पता नहीं किस वजह से रूना की आंख खुल गई. समीर बिस्तर पर न था. बालकनी में आहट महसूस हुई. वह चुपचाप परदे के पीछे खड़ी हो गई. वह मोबाइल पर बातें कर रहा था, इधर रूना के कानों में जैसे पिघला सीसा उतर रहा था, ‘आप परेशान न हों, मैं हर हाल में आप के साथ हूं. आप कतई परेशान न हों, यह मेरी जिम्मेदारी है. आप बेहिचक आगे बढ़ें, एक खूबसूरत भविष्य आप की राह देख रहा है. मैं हर अड़चन दूर करूंगा.’

इस से आगे रूना से सुना नहीं गया. वह लौटी और बिस्तर पर औंधेमुंह जा पड़ी. तकिए में मुंह छिपा कर वह बेआवाज घंटों रोती रही. आखिरी वाक्य ने तो उस का विश्वास ही हिला दिया. समीर ने कहा था, ‘परसों मैं होटल पैरामाउंट में आप से मिलता हूं. वहीं हम आगे की सारी बातें तय कर लेंगे.’

यह जिंदगी का कैसा मोड़ था? हर तरफ अंधेरा और बरबादी. अब क्या होगा? वह लौट कर चाचा के पास भी नहीं जा सकती. न ही इतनी पढ़ीलिखी थी कि वह नौकरी कर लेती और न ही इतनी बहादुर कि अकेले जिंदगी गुजार लेती. उस का हर रास्ता एक अंधी गली की तरह बंद था.

सुबह वह तेज बुखार से तय रही थी. समीर ने परेशान हो कर छुट्टी के लिए औफिस फोन किया.  उसे डाक्टर के पास ले गया. दिनभर उस की खिदमत करता रहा. बुखार कम होने पर समीर ने खिचड़ी बना कर उसे खिलाई. उस की चाहत व फिक्र देख कर रूना खुश हो गई पर रात की बात याद आते ही उस का दिल डूबने लगता.

दूसरे दिन तबीयत ठीक थी. समीर औफिस चला गया. शाम होने से पहले उस ने एक फैसला कर लिया, घुटघुट कर मरने से बेहतर है सच सामने आ जाए, इस पार या उस पार. अगर दुख  को उस की आखिरी हद तक जा कर झेला जाए तो तकलीफ का एहसास कम हो जाता है. डर के साए में जीने से मौत बेहतर है.

उस दिन समीर औफिस से जल्दी आ गया. चाय वगैरह पी कर, फ्रैश हुआ. वह बाहर जाने को निकलने लगा तो रूना तन कर उस के सामने खड़ी हो गई. उस की आंखों में निश्चय की ऐसी चमक थी कि समीर की निगाहें झुक गईं, ‘‘समीर, मैं आप के साथ चलूंगी उन से मिलने,’’ उस के शब्द चट्टान की मजबूती लिए हुए थे, ‘‘मैं कोई बहाना नहीं सुनूंगी,’’ उस ने आगे कहा.

समीर को अंदाजा हो गया, आंधी अब नहीं रोकी जा सकती. शायद, उस के बाद सुकून हो जाए. समीर ने निर्णयात्मक लहजे में कहा, ‘‘चलो.’’

रास्ता खामोशी से कटा. दोनों अपनीअपनी सोचों में गुम थे. होटल पहुंच कर कैबिन में दाखिल हुए. सामने एक खूबसूरत औरत, एक बच्ची को गोद में लिए बैठी थी. रूना के दिल की धड़कनें इतनी बढ़ गईं कि  उसे लगा, दिल सीना फाड़ कर बाहर आ जाएगा, गला बुरी तरह सूख रहा था. रूना को साथ देख कर उस के चेहरे पर घबराहट झलक उठी. समीर ने स्थिर स्वर में कहा, ‘‘रोशनी, इन से मिलो. ये हैं रूना, मेरी बीवी. और रूना, ये हैं रोशनी, मेरी मां.’’

रूना को सारी दुनिया घूमती हुई लगी. रोशनी ने आगे बढ़ कर उस के सिर पर हाथ रखा. रूना शर्म और पछतावे से गली जा रही थी. कौफी आतेआते उस ने अपनेआप को संभाल लिया. बच्ची बड़े मजे से समीर की गोद में बैठी थी. समीर ने अदब से पूछा, ‘‘आप कब जाना

चाहती हैं?’’

‘‘परसों सुबह.’’

‘‘कल शाम मैं और रूना आ कर बच्ची को अपने साथ ले जाएंगे,’’ समीर ने कहा.

वापसी का सफर दोनों ने खामोशी से तय किया. रूना संतुष्ट थी कि उस ने समीर पर कोई गलत इल्जाम नहीं लगाया था. अगर उस ने इस बात का बतंगड़ बनाया होता तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाती.

घर पहुंच कर समीर ने उस का हाथ थामा और धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘रूना, मैं

बेहद खुश हूं कि तुम ने मुझे गलत नहीं समझा. मैं खुद बड़ी उलझन में था. अपने बड़ों के ऐब खोलना बड़ी हिम्मत का काम है. मैं चाह कर भी तुम्हें बता नहीं सका. करीब 4 साल पहले, पापा ने रोशनी को किसी प्रोग्राम में गाते सुना था. धीरेधीरे उन के रिश्ते गहराने लगे. उस वक्त मैं अहमदाबाद में एमबीए कर रहा था.

‘‘मेरी अम्मी हार्टपेशैंट थीं. अकसर ही बीमार रहतीं. पापा खुद को अकेला महसूस करते. घर का सारा काम हमारा पुराना नौकर बाबू ही करता. ऐसे में पापा की रोशनी से मुलाकात, फिर गहरे रिश्ते बने. रोशनी अकेली थी. रिश्तों और प्यार को तरसी हुई लड़की थी. बात शादी पर जा कर खत्म हुई. अम्मी एकदम से टूट गईं. वैसे पापा ने रोशनी को अलग घर में रखा था. लेकिन दुख को दूरी और दरवाजे कहां रोक पाते हैं.

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