Hindi Romantic Story: ई-ग्रुप

Hindi Romantic Story: ‘‘वाह, इसे कहते हैं कि आग लेने गए थे और पैगंबरी मिल गई,’’ रवि और पूनम के लौन में अन्य दोस्तों को बैठा देख कर विकास बोला, ‘‘हम लोग तो तुम्हें दावत देने आए थे, पर अब खुद ही खा कर जाएंगे.’’

‘‘दावत तो शौक से खाइए पर हमें जो दावत देने आए थे वह कहीं हजम मत कर जाइएगा,’’ पूनम की इस बात पर सब ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘नहीं, ऐसी गलती हम कभी नहीं कर सकते. वह दावत तो हम अपनी जिंदगी का सब से अहम दिन मनाने की खुशी में कर रहे हैं यानी वह दिन जिस रोज मैं और रजनी दो से एक हुए थे,’’ विकास बोला.

‘‘ओह, तुम्हारी शादी की सालगिरह है. मुबारक हो,’’ पूनम ने रजनी का हाथ दबा कर कहा.

‘‘मुबारकबाद आज नहीं, शुक्रवार को हमारे घर आ कर देना,’’ रजनी अब अन्य लोगों की ओर मुखातिब हुईं, ‘‘वैसे, निमंत्रण देने हम आप के घर…’’

‘‘अरे, छोडि़ए भी, रजनीजी, इतनी तकलीफ और औपचारिकता की क्या जरूरत है. आप बस इतना बताइए कि कब आना है. हम सब स्वयं ही पहुंच जाएंगे,’’ रतन ने बीच में ही टोका.

‘‘शुक्रवार को शाम में 7 बजे के बाद कभी भी.’’

‘‘शुक्रवार को पार्टी देने की क्या तुक हुई? एक रोज बाद शनिवार को क्यों नहीं रखते?’’ राजन ने पूछा.

‘‘जब शादी की सालगिरह शुक्रवार की है तब दावत भी तो शुक्रवार को ही होगी,’’ विकास बोला.

‘‘सालगिरह शुक्रवार को होने दो, पार्टी शनिवार को करो,’’ रवि ने सुझाव दिया.

‘‘नहीं, यार. यह ईद पीछे टर्र अपने यहां नहीं चलता. जिस रोज सालगिरह है उसी रोज दावत होगी और आप सब को आना पड़ेगा,’’ विकास ने शब्दों पर जोर देते हुए कहा.

‘‘हां, भई, जरूर आएंगे. हम तो वैसे ही कोई पार्टी नहीं छोड़ते, यह तो तुम्हारी शादी की सालगिरह की दावत है. भला कैसे छोड़ सकते हैं,’’ राजन बोला.

‘‘पर तुम यह पार्टी किस खुशी में दे रहे हो, रवि?’’ विकास ने पूछा.

‘‘वैसे ही, बहुत रोज से राजन, रतन वगैरा से मुलाकात नहीं हुई थी, सो आज बुला लिया.’’

रजनी और विकास बहुत रोकने के बाद भी ज्यादा देर नहीं ठहरे. उन्हें और भी कई जगह निमंत्रण देने जाना था. पूनम ने बहुत रोका, ‘‘दूसरी जगह कल चले जाना.’’

‘‘नहीं, पूनम, कल, परसों दोनों दिन ही जाना पड़ेगा.’’

‘‘बहुत लोगों को बुला रहे हैं क्या?’’

‘‘हां, शादी की 10वीं सालगिरह है, सो धूमधाम से मनाएंगे,’’ विकास ने जातेजाते बताया.

‘‘जिंदादिल लोग हैं,’’ उन के जाने के बाद राजन बोला.

‘‘जिंदादिल तो हम सभी हैं. ये दोनों इस के साथ नुमाइशी भी हैं,’’ रवि हंसा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘शादी की सालगिरह इतने हल्लेगुल्ले के साथ मनाना मेरे खयाल में तो अपने प्यार की नुमाइश करना ही है. दोस्तों को बुलाने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं होती.’’

‘‘तो आप के विचार में शादी की सालगिरह नहीं मनानी चाहिए?’’ शोभा ने पूछा.

‘‘जरूर मनानी चाहिए, लेकिन अकेले में, एकदूसरे के साथ,’’ रवि पूनम की ओर आंख मार कर मुसकराया, ‘‘पार्टी के हंगामे में नहीं.’’

‘‘तभी आज तक तुम्हारी शादी की सालगिरह की दावत नहीं मिली. वैसे, तुम्हारी शादी की सालगिरह होती कब है, रवि?’’ रतन ने पूछा.

‘‘यह बिलकुल खुफिया बात है,’’ राजन हंसा, ‘‘रवि ने बता दिया तो तुम उस रोज मियांबीवी को परेशान करने आ पहुंचोगे.’’

‘‘लेकिन, यार, इंसान शादी करता ही बीवी के साथ रहने को है और हमेशा रहता भी उस के साथ ही है. फिर अगर खुशी के ऐसे चंद मौके दोस्तों के साथ मना लिए जाएं तो हर्ज ही क्या है? खुशी में चारचांद ही लग जाते हैं,’’ रतन ने कहा.

‘‘यही तो मैं कहती हूं,’’ अब तक चुप बैठी पूनम बोली.

‘‘तुम तो कहोगी ही, क्योंकि तुम भी उसी ‘ई ग्रुप’ की जो हो,’’ रवि ने व्यंग्य से कहा.

‘‘ई ग्रुप? वह क्या होता है, रवि भाई?’’ शोभा ने पूछा.

‘‘ई ग्रुप यानी एग्जिबिशन ग्रुप, अपने प्यार की नुमाइश करने वालों का जत्था. मियांबीवी को शादी की सालगिरह मना कर अपने लगाव या मुहब्बत का दिखावा करने की क्या जरूरत है? रही बात दोस्तों के साथ जश्न मनाने की, तो इस के लिए साल के तीन सौ चौंसठ दिन और हैं.’’

‘‘इस का मतलब यह है कि शादी की सालगिरह बैडरूम में अपने पलंग पर ही मनानी चाहिए,’’ राजन ने ठहाका लगा कर फब्ती कसी.

‘‘जरूरी नहीं है कि अपने घर का ही बैडरूम हो,’’ रवि ने ठहाकों की परवा किए बगैर कहा.

‘‘किसी हिल स्टेशन के शानदार होटल का बढि़या कमरा हो सकता है, किसी पहाड़ी पर पेड़ों का झुंड हो सकता है या समुद्रतट का एकांत कोना.’’

‘‘केवल हो ही सकता है या कभी हुआ भी है, क्यों, पूनम भाभी?’’ रतन ने पूछा.

‘‘कई बार या कहिए हर साल.’’

‘‘तब तो आप लोग छिपे रुस्तम निकले,’’ राजन ने ठहाका लगाते हुए कहा.

शोभा भी सब के साथ हंसी तो सही, लेकिन रवि का सख्त पड़ता चेहरा और खिसियाई हंसी उस की नजर से न बच सकी. इस से पहले कि वातावरण में तनाव आता, वह जल्दी से बोली, ‘‘भई, जब हर किसी को जीने का अंदाज जुदा होता है तो फिर शादी की सालगिरह मनाने का तरीका भी अलग ही होगा. उस के लिए बहस में क्यों पड़ा जाए. छोडि़ए इस किस्से को. और हां, राजन भैया, विकास और रजनी के आने से पहले जो आप लतीफा सुना रहे थे, वह पूरा करिए न.’’

विषय बदल गया और वातावरण से तनाव भी हट गया, लेकिन पूनम में पहले वाला उत्साह नहीं था.

कोठी के बाहर खड़ी गाडि़यों की कतारें और कोठी की सजधज देख कर यह भ्रम होता था कि वहां पर जैसे शादी की सालगिरह न हो कर असल शादी हो रही हो. उपहारों और फूलों के गुलदस्ते संभालती हुई रजनी लोगों के मुबारकबाद कहने या छेड़खानी करने पर कई बार नईनवेली दुलहन सी शरमा जाती थी.

कहकहों और ठहाकों के इस गुलजार माहौल की तुलना पूनम अपनी सालगिरह के रूमानी मगर खामोश माहौल से कर रही थी. उस रोज रवि अपनी सुहागरात को पलदरपल जीता है, ‘हां, तो ठीक इसी समय मैं ने पहली बार तुम्हें बांहों में भरा था, और तुम…तुम एक अधखिले गुलाब की तरह सिमट गई थीं और… और पूनम, फिर तुम्हारी गुलाबी साड़ी और तुम्हारे गुलाबी रंग में कोई फर्क ही नहीं रह गया था. तुम्हें याद है न, मैं ने क्या कहा था…अगर तुम यों ही गुलाबी हो जाओगी तो तुम्हारी साड़ी उतारने के बाद भी मैं इसी धोखे में…ओह, तुम तो फिर बिलकुल उसी तरह शरमा गईं, बिलकुल वैसी ही छुईमुई की तरह छोटी सी…’ और उस उन्माद में रवि भी उसी रात का मतवाला, मदहोश, उन्मत्त प्रेमी लगने लगता.

‘‘पूनम, सुन, जरा मदद करवा,’’ रजनी उस के पास आ कर बोली, ‘‘मैं अकेली किसेकिसे देखूं.’’

‘‘हां, हां, जरूर.’’ पूनम उठ खड़ी हुई और रजनी के साथ चली गई.

मेहमानों में डाक्टर शंकर को देख कर वह चौंक पड़ी. रवि डाक्टर शंकर के चहेते विद्यार्थियों में से था और इस शहर में आने के बाद वह कई बार डाक्टर शंकर को बुला चुका है, पर हमेशा ही वह उस समय किसी विशेष कार्य में व्यस्त होने का बहाना बना, फिर कभी आने का आश्वासन दे, कर रवि को टाल देते थे. पर आज विकास के यहां कैसे आ गए? विकास से तो उन के संबंध भी औपचारिक ही थे और तभी जैसे उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया.

‘‘क्यों, डाक्टर, हम से क्या नाराजगी है? हमारा निमंत्रण तो हमेशा इस बेदर्दी से ठुकराते हो कि दिल टूट कर रह जाता है. यह बताओ, विकास किस जोर पर तुम्हें खींच लाया?’’ एक गंजा आदमी डाक्टर शंकर से पूछ रहा था.

‘‘क्या बताऊं, गणपतिजी, व्यस्त तो आज भी बहुत था, लेकिन इन लोगों की शादी की सालगिरह थी. अब ऐसे खास मौके पर न आना भी तो बुरा लगता है.’’

‘‘यह बात तो है. मेरी पत्नी का भी इन लड़केलड़कियों के जमघट में आने को दिल नहीं था पर रजनी की जिद थी कि शादी की 10वीं सालगिरह पर उसे हमारा आशीर्वाद जरूर चाहिए, सो, आना पड़ा वरना मुझे भी रोटरी मीटिंग में जाना था.’’

पूनम को मेहमानों की आवभगत करते देख कर रवि उस के पास आया, ‘‘पूनम, जरा डाक्टर शंकर को आने के लिए कहो न कभी घर पर.’’

‘‘वे मेरे कहने से नहीं आने वाले.’’ पूनम अवहेलना से मुसकराई.

‘‘फिर कैसे आएंगे?’’

‘‘मेरे साथ आओ, बताती हूं.’’ पूनम ने रवि को अपने पीछेपीछे पैंट्री में आने का इशारा किया और वहां जा कर डाक्टर शंकर और गणपतिजी के बीच हुई बातचीत दोहरा दी.

‘‘तो इस का मतलब है कि वे लोग मजबूरन आए हैं. किसी को जबरदस्ती बुलाना और वह भी अपने प्यार की नुमाइश कर के, हम से नहीं होगा भई, यह सब.’’

‘‘मेरे खयाल में तो बगैर मतलब के पार्टी देने को ही आजकल लोग पैसे की नुमाइश समझते हैं,’’ पूनम कुछ तलखी से बोली.

‘‘तो आज जो कुछ हो रहा है उस में पैसे की नुमाइश नहीं है क्या? तुम्हारे पास पैसा होगा, तभी तो तुम दावत दोगी. लेकिन किसी निहायत व्यक्तिगत बात को सार्वजनिक रूप देना और फिर व्यस्त लोगों को जबरदस्ती खींच कर लाना मेरी नजर में तो ई ग्रुप की ओर से की जाने वाली अपनी प्रतिष्ठा की नुमाइश ही है. जहां तक मेरा खयाल है, विकास और रजनी में प्यार कभी रहा ही नहीं है. वे इकट्ठे महज इसीलिए रह रहे हैं कि हर साल धूमधाम से एकदूसरे की शादी की सालगिरह मना सकें,’’ कह कर रवि बाहर चला गया.

तभी रजनी अंदर आई, ‘‘कर्नल प्रसाद कोई भी तली हुई चीज नहीं खा रहे और अपने पास तकरीबन सब ही तली हुई चीजें हैं.’’

‘‘डबलरोटी है क्या?’’ पूनम ने पूछा, ‘‘अपने पास 3-4 किस्में की चटनियां हैं, पनीर है, उन के लिए 4-5 किस्मों के सैंडविच बना देते हैं.’’

‘‘डबलरोटी तो है लेकिन तेरी साड़ी गंदी हो जाएगी, पूनम. ऐसा कर, मेरा हाउसकोट पहन ले,’’ रजनी बोली, ‘‘उधर बाथरूम में टंगा होगा.’’ कह कर रजनी फिर बाहर चली गई. पूनम ने बाथरूम और बैडरूम दोनों देख लिए पर उसे हाउसकोट कहीं नजर नहीं आया. वह रजनी को ढूंढ़ते हुए बाहर आई.

‘‘भई, यह जश्न तो कुछ भी नहीं है, असली समारोह यानी सुहागरात तो मेहमानों के जाने के बाद शुरू होगी,’’ लोग रजनी और विकास को छेड़ रहे थे.

‘‘वह तो रोज की बात है, साहब,’’ विकास रजनी की कमर में हाथ डालता हुआ बोला, ‘‘अभी तो अपना हर दिन ईद और हर रात शबेरात है.’’

‘‘हमेशा ऐसा ही रहे,’’ हम तो यही चाहते हैं मिर्जा हसन अली बोले.

‘‘रजनी जैसे मिर्जा साहब की शुभकामनाओं से वह भावविह्वल हो उठी हो. पूनम उस से बगैर बोले वापस रसोईघर में लौट आई और सैंडविच बनाने लगी.

‘‘तू ने हाउसकोट नहीं पहना न?’’ रजनी कुछ देर बाद आ कर बोली.

‘‘मिला ही नहीं.’’

‘‘वाह, यह कैसे हो सकता है. मेरे साथ चल, मैं देती हूं.’’

रजनी को अतिथिकक्ष की ओर मुड़ती देख कर पूनम बोली, ‘‘मैं ने तुम लोगों के कमरे में ढूंढ़ा था.’’

‘‘लेकिन मैं आजकल इस कमरे में सोती हूं, तो यही बाथरूम इस्तेमाल करती हूं.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘विकास आजकल आधी रात तक उपन्यास पढ़ता है और मुझे रोशनी में नींद नहीं आती.’’

‘‘लेकिन आज तो तू अपने ही बैडरूम में सोएगी,’’ पूनम शरारत से बोली, ‘‘आज तो विकास उपन्यास नहीं पढ़ने वाला.’’

‘‘न पढ़े, मैं तो इतनी थक गई हूं कि मेहमानों के जाते ही टूट कर गिर पड़ूंगी.’’

‘‘विकास की बांहों में गिरना, सब थकान दूर हो जाएगी.’’

‘‘क्यों मजाक करती है, पूनम.

यह सब 10 साल पहले होता था. अब तो उलझन होती है इन सब चोचलों से.’’

पूनम ने हैरानी से रजनी की ओर देखा, ‘‘क्या बक रही है तू? कहीं तू एकदम ठंडी तो नहीं हो गई?’’

‘‘यही समझ ले. जब से विकास के उस प्रेमप्रसंग के बारे में सुना था…’’

‘‘वह तो एक मामूली बात थी, रजनी. लोगों ने बेकार में बात का बतंगड़ बना दिया था.’’

‘‘कुछ भी हो. उस के बाद विकास के नजदीक जाने की तबीयत ही नहीं होती और अब, पूनम, करना भी क्या है यह सब खेल खेल कर 2 बच्चे हो गए, अब इस सब की जरूरत ही क्या है?’’ पूनम रजनी की ओर फटीफटी आंखों से देखती हुई सोच रही थी कि रवि की ई ग्रुप की परिभाषा कितनी सही है. Hindi Romantic Story

Hindi Family Story: अबोला नहीं – बेवजह के शक ने पैदा किया तनाव

Hindi Family Story: क्यारियों में खिले फूलों के नाम जया याद ही नहीं रख पाती, जबकि अमित कितनी ही बार उन के नाम दोहरा चुका है. नाम न बता पाने पर अमित मुसकरा भर देता.

‘‘क्या करें, याद ही नहीं रहता,’’ कह कर जया लापरवाह हो जाती. उसे नहीं पता था कि ये फूलों के नाम याद न रखना भी कभी जिंदगी को इस अकेलेपन की राह पर ला खड़ा करेगा.

‘‘तुम से कुछ कहने से फायदा भी क्या है? तुम फूलों के नाम तक तो याद नहीं रख पातीं, फिर मेरी कोई और बात तुम्हें क्या याद रहेगी?’’ अमित कहता.

छोटीछोटी बातों पर दोनों में झगड़ा होने लगा था. एकदूसरे को ताने सुनाने का कोई भी मौका वे नहीं छोड़ते थे और फिर नाराज हो कर एकदूसरे से बोलना ही बंद कर देते. बारबार यही लगता कि लोग सही ही कहते हैं कि लव मैरिज सफल नहीं होती. फिर दोनों एकदूसरे पर आरोप लगाने लगते.

‘‘तुम्हीं तो मेरे पीछे पागल थे. अगर तुम मेरे साथ नहीं रहोगी, तो मैं अधूरा रह जाऊंगा, बेसहारा हो जाऊंगा. इतना सब नाटक करने की जरूरत क्या थी?’’ जया चिल्लाती.

अमित भी चीखता, ‘‘बिना सहारे की  जिंदगी तो मेरी ही थी और जो तुम कहती थीं कि मुझे हमेशा सहारा दिए रहना वह क्या था? नाटक मैं कर रहा था या तुम? एक ओर मुझे मिलने से मना करतीं और दूसरी तरफ अगर मुझे 15 मिनट की भी देरी हो जाता तो परेशान हो जाती थीं. मैं पागल था तो तुम समझदार बन कर अलग हो जाती.’’

जया खामोश हो जाती. जो कुछ अमित ने कहा था वह सही ही था. फिर भी उस पर गुस्सा भी आता. क्या अमित उस के पीछे दीवाना नहीं था? रोज सही वक्त पर आना, साथ में फूल लाना और कभीकभी उस का पसंदीदा उपहार लाना और भी न जाने क्याक्या. लेकिन आज दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे हैं, दोषारोपण कर रहे हैं. कभीकभी तो दोनों बिना खाएपिए ही सो जाते हैं. मगर इतनी किचकिच के बाद नींद किसे आ सकती है. रात का सन्नाटा और अंधेरा पिछली बातों की पूरी फिल्म दिखाने लगता.

जया सोचती, ‘अमित कितना बदल गया है. आज सारा दोष मेरा हो गया जैसे मैं ही उसे फंसाने के चक्कर में थी. अब मेरी हर बात बुरी लगती है. उस का स्वाभिमान है तो मेरा भी है. वह मर्द है तो चाहे जो करता रहे और मैं औरत हूं, तो हमेशा मैं ही दबती रहूं? अमितजी, आज की औरतें वैसी नहीं होतीं कि जो नाच नचाओगे नाचती रहेंगी. अब तो जैसा दोगे वैसा पाओगे.’

उधर अमित सोचता, ‘क्या होता जा रहा है जया को? चलो मान लिया मैं ही उस के पीछे पड़ा था, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि वह हर बात में अपनी धौंस दिखाती रहे. मेरा भी कुछ स्वाभिमान है.’

फिर भी दोनों कोई रास्ता नहीं निकाल पाते. आधी रात से भी ज्यादा बीतने तक जागते रहते हैं, पिछली और वर्तमान जिंदगी की तुलना करते हुए मन बुझता ही जाता और चारों ओर अंधेरा हो जाता. फिर रंगबिरंगी रेखाएं आनेजाने लगती हैं, फिर कुछ अस्पष्ट सी ध्वनियां, अस्पष्ट से चेहरे. शायद सपने आने लगे थे. उस में भी पुराना जीवन ही घूमफिर कर दिखता है. वही जीवन, जिस में चारों ओर प्यार ही प्यार था, मीठी बातें थीं, रूठनामनाना था, तानेउलाहने थे, लेकिन आज की तरह नहीं. आज तो लगता है जैसे दोनों एकदूसरे के दुश्मन हैं फिर नींद टूट जाती और भोर गए तक नहीं आती.

सुबह जया की आंखें खुलतीं तो सिरहाने तकिए पर एक अधखिला गुलाब रखा होता. शादी के बाद से ही यह सिलसिला चला आ रहा था. आज भी अमित अपना यह उपहार देना नहीं भूला. जया फूल को चूम कर ‘कितना प्यारा है’ सोचती.

अमित ने तकिए पर देखा, फूल नहीं था, समझ गया, जया ने अपने जूड़े में खोंस लिया होगा. उस के दिए फूल की बहुत हिफाजत करती है न.

तभी जया चाय की ट्रे लिए आ गई. उस के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. सब कुछ सामान्य लग रहा था. अमित भी सहज हो कर मुसकराया है. जया के केशों में फूल बहुत प्यारा लग रहा था. अमित चाहता था कि उसे धीरे से सहला दे, फिर रुक गया, कहीं जया नाराज न हो जाए.

अमित को मुसकराते देख जया मन ही मन बोली कि शुक्र है मूड तो सही लग रहा है.

तैयार हो कर अमित औफिस चला गया. जया सारा काम निबटा कर जैसे ही लेटने चली, फोन की घंटी बजी. जया ने फोन उठाया. अमित का सेक्रेटरी बोल रहा था, ‘‘मैडम, साहब आज आएंगे नहीं क्या?’’

जया चौंक गई, अजीब सी शंका हुई. कहीं कोई ऐक्सीडैंट… अरे नहीं, क्या सोचने लगी. संभल कर जवाब दिया, ‘‘यहां से तो समय से ही निकले थे. ऐसा करो मिस कालिया से पूछो कहीं कोई और एप्वाइंटमैंट…’’

सेक्रेटरी की आवाज आई, ‘‘मगर मिस कालिया भी तो नहीं आईं आज.’’

जया उधेड़बुन में लग गई कि अमित कहां गया होगा. सेक्रेटरी बीचबीच में सूचित करता रहा कि साहब अभी तक नहीं आए, मिस कालिया भी नहीं.

बहुत सुंदर है निधि कालिया. अपने पति से अनबन हो गई है. उस की बात तलाक तक आ पहुंची है. उसे जल्द ही तलाक मिल जाएगा. इसीलिए सब उसे मिस कालिया कहने लगे हैं. उस का बिंदास स्वभाव ही सब को उस की ओर खींचता है. कहीं अमित भी…

सेके्रटरी का फिर फोन आया कि साहब और कालिया नहीं आए.

यह सेके्रटरी बारबार कालिया का नाम क्यों ले रहा है? कहीं सचमुच अमित मिस कालिया के साथ ही तो नहीं है? सुबह की शांति व सहजता हवा हो चुकी थी.

शाम को अमित आया तो काफी खुश दिख रहा था. वह कुछ बोलना चाह रहा था, मगर जया का तमतमाया चेहरा देख कर चुप हो गया. फिर कपड़े बदल कर बाथरूम में घुस गया. अंदर से अमित के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी. जया किचन में थी. जया लपक कर फिर कमरे में आ गई. फर्श पर सिनेमा का एक टिकट गिरा हुआ था. उस के हाथ तेजी से कोट की जेबें टटोलने लगे. एक और टिकट हाथ में आ गया. जया गुस्से से कांपने लगी कि साहबजी पिक्चर देख रहे थे कालिया के साथ और अभी कुछ कहो तो मेरे ऊपर नाराज हो जाएंगे. अरे मैं ही मूर्ख थी, जो इन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई. यह तो रोज ही किसी न किसी से कहता होगा कि तुम्हारे बिना मैं बेसहारा हो जाऊंगा.

तभी अमित बाथरूम से बाहर आया. जया का चेहरा देख कर ही समझ गया कि अगर कुछ बोला तो ज्वालामुखी फूट कर ही रहेगा. अमित बिना वजह इधरउधर कुछ ढूंढ़ने लगा. जया चुपचाप ड्राइंगरूम में चली गई. धीरेधीरे गुस्सा रुलाई में बदल गया और उस ने वहीं सोफे पर लुढ़क कर रोना शुरू कर दिया.

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, फिर अब दोनों के बीच उतनी सहजता तो रह नहीं गई थी कि जा कर पूछता क्या हुआ है. वह भी बिस्तर पर आ कर लेट गया. कैसी मुश्किल थी. दोनों ही एकदूसरे के बारे में जानना चाहते थे, मगर खामोश थे. जया वहीं रोतेरोते सो गई. अमित ने जा कर देखा, मन में आया इस भोले से चेहरे को दुलार ले, उस को अपने सीने में छिपा कर उस से कहे कि जया मैं सिर्फ तेरा हूं, सिर्फ तेरा.

मगर एक अजीब से डर ने उसे रोक दिया. वहीं बैठाबैठा वह सोचता रहा, ‘कितनी मासूम लग रही है. जब गुस्से से देखती है तो उस की ओर देखने में भी डर लगने लगता है.’

तभी जया चौंक कर जग गई. अमित ने सहज भाव से पूछा, ‘‘जया, तबीयत ठीक नहीं लग रही है क्या?’’

‘‘जी नहीं, मैं बिलकुल अच्छी हूं.’’

तीर की तरह जया ड्राइंगरूम से निकल कर बैडरूम में आ कर बिस्तर पर निढाल हो गई. अमित भी आ कर बिस्तर के एक कोने में बैठ गया. सारा दिन कितनी हंसीखुशी से बीता था, लेकिन घर आते ही… फिर भी अमित ने सोच लिया कि थोड़ी सी सावधानी उन के जीवन को फिर हंसीखुशी से भर सकती है और फिर कुछ निश्चय कर वह भी करवट बदल कर सो गया.

दोनों के बीच दूरियां दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थीं, लेकिन वे इन दूरियों को कम करने की कोई कोशिश ही नहीं करते. कोशिश होती भी है तो कम होने के बजाय बढ़ती ही जाती है. यह नाराज हो कर अबोला कर लेना संबंधों के लिए कितना घातक होता है. अबोला की जगह एकदूसरे से खुल कर बात कर लेना ही सही होता है. लेकिन ऐसा हो कहां पाता है. जरा सी नोकझोंक हुई नहीं कि बातचीत बंद हो जाती है. इस मौन झगड़े में गलतफहमियां बढ़ती हैं व दूरी बढ़ती जाती है.

लगभग 20-25 दिन हो गए अमित और जया में अबोला हुए. दोनों को ही अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन पहल कौन करे. दोनों का ही स्वाभिमान आड़े आ जाता.

उस दिन रविवार था. सुबह के 9 बज रहे होंगे कि दरवाजे की घंटी बजी.

‘कौन होगा इस वक्त’, यह सोचते हुए जया ने दरवाजा खोला तो सामने मिस कालिया और सुहास खड़े थे.

‘‘मैडम नमस्ते, सर हैं क्या?’’ कालिया ने ही पूछा.

बेमन से सिर हिला कर जया ने हामी भरी ही थी कि कालिया धड़धड़ाती अंदर घुस गई, ‘‘सर, कहां हैं आप?’’ कमरे में झांकती वह पुकार रही थी.

सुहास भी उस के पीछे था. तभी अमित

ने बालकनी से आवाज दी, ‘‘हां, मैं यहां हूं. यहीं आ जाओ. जया, जरा सब के लिए चाय बना देना.’’

नाकभौं चढ़ाती जया चाय बनाने किचन में चली गई. बालकनी से अमित, सुहास और कालिया की बातें करने, हंसने की आवाजें आ रही थीं, लेकिन साफसाफ कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. जया चायबिस्कुट ले कर पहुंची तो सब चुप हो गए. किसी ने भी उसे साथ बैठने के लिए नहीं कहा. उसे ही कौन सी गरज पड़ी है. चाय की टे्र टेबल पर रख कर वह तुरंत ही लौट आई और किचन के डब्बेबरतन इधरउधर करने लगी.

मन और कान तो उन की बातों की ओर लगे थे.

थोड़ी देर बाद ही अमित किचन में आ कर बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर के लिए इन लोगों के साथ बाहर जा रहा हूं,’’ और फिर शर्ट के बटन बंद करते अमित बाहर निकल गया.

कहां जा रहा, कब लौटेगा अमित ने कुछ भी नहीं बताया. जया जलभुन गई. दोनों के बीच अबोला और बढ़ गया. इस झगड़े का अंत क्या था आखिर?

हफ्ते भर बाद फिर कालिया और सुहास आए. कालिया ने जया को दोनों कंधों से थाम लिया, ‘‘आप यहां आइए, सर के पास बैठिए. मुझे आप से कुछ कहना है.’’

बुत बनी जया को लगभग खींचती हुई वह अमित के पास ले आई और उस की बगल में बैठा दिया. फिर अपने पर्स में से एक कार्ड निकाल कर उस ने अमित और जया के चरणों में रख दिया और दोनों के चरणस्पर्श कर अपने हाथों को माथे से लगा लिया.

‘‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो, कालिया? सदा खुश रहो, सुखी रहो,’’ अमित बोला तो जया की जैसे तंद्रा भंग हो गई.

कैसा कार्ड है यह? क्या लिखा है इस में? असमंजस में पड़ी जया ने कार्ड उठा लिया. सुहास और निधि कालिया की शादी की 5वीं वर्षगांठ पर होने वाले आयोजन का वह निमंत्रणपत्र था.

निधि कालिया चहकते हुए बोली, ‘‘मैडम, यह सब सर की मेहनत और आशीर्वाद का परिणाम है. सर ने कोशिश न की होती तो आज 5वीं वर्षगांठ मनाने की जगह हम तलाक की शुरुआत कर रहे होते. हम ने लव मैरिज की थी, लेकिन सुहास के मम्मीपापा को मैं पसंद नहीं आई. मेरे मम्मीपापा भी मेरे द्वारा लड़का खुद ही पसंद कर लेने के कारण अपनेआप को छला हुआ महसूस कर रहे थे. बिना किसी कारण दोनों परिवार अपनी बहू और अपने दामाद को अपना नहीं पा रहे थे. उन्होंने हमारे छोटेमोटे झगड़ों को खूब हवा दी, उन्हें और बड़ा बनाते रहे, बजाय इस के कि वे लोग हमें समझाते, हमारी लड़ाइयों की आग में घी डालते रहे. छोटेछोटे झगड़े बढ़तेबढ़ते तलाक तक आ पहुंचे थे.

‘‘सर को जब मालूम हुआ तो उन्होंने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया ताकि हमारी शादी न टूटे. 1-2 महीने पहले उन्होंने हमें अलगअलग एक सिनेमा हाल में बुलाया और एक फिल्म के 2 टिकट हमें दे कर यह कहा कि चूंकि आप नहीं आ रहीं इसलिए वे भी फिल्म नहीं देखना चाहते. टिकटें बेकार न हों, इसलिए उन्होंने हम से फिल्म देखने का आग्रह किया. भले ही मैं और सुहास अलग होने वाले थे, लेकिन हम दोनों ही सर का बहुत आदर करते हैं, इसलिए दोनों ही मना नहीं कर पाए.

‘‘फिल्म शुरू हो चुकी थी इसलिए कुछ देर तो हमें पता नहीं चला. थोड़ी देर बाद समझ में आया कि सिनेमाहाल करीबकरीब खाली ही था. लेकिन सिनेमाहाल के उस अंधेरे में हमारा सोया प्यार जाग उठा. फिल्म तो हम ने देखी, सारे गिलेशिकवे भी दूर कर लिए. हम ने कभी एकदूसरे से अपनी शिकायतें बताई ही नहीं थीं, बस नाराज हो कर बोलना बंद कर देते थे. जितनी देर हम सिनेमाहाल में थे सर ने हमारे मम्मीपापा से बात की, उन्हें समझाया तो वे हमें लेने सिनेमाहाल तक आ गए. फिर हम सब एक जगह इकट्ठे हुए एकदूसरे की गलतफहमियां, नाराजगियां दूर कर लीं. मैं ने और सुहास ने भी अपनेअपने मम्मीपापा और सासससुर से माफी मांग ली और भरोसा दिलाया कि हम उन के द्वारा पसंद की गई बहूदामाद से भी अच्छे साबित हो कर दिखा देंगे.

‘‘उस के बाद से कोर्ट में चल रहे तलाक के मुकदमे को सुलहनामा में बदलने में सर ने बहुत मदद की. आज इन की वजह से ही हम दोनों फिर एक हो गए हैं, हमारा परिवार भी हमारे साथ है, सब से बड़ी खुशी की बात तो यही है. परसों हम अपनी शादी की 5वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाने जा रहे हैं, केवल सर के आशीर्वाद और प्रयास से ही. आप दोनों जरूर आइएगा और हमें आशीर्वाद दीजिएगा.’’

निधि की पूरी बात सुन कर जया का तो माथा ही घूमने लगा था कि कितना उलटासीधा सोचती रही वह, निधि कालिया और अमित को ले कर. लेकिन आज सारा मामला ही दूसरा निकला. कितना गलत सोच रही थी वह.

‘‘हम जरूर आएंगे. कोई काम हो तो हमें बताना,’’ अमित ने कहा तो निधि और सुहास ने झुक कर उन के पांव छू लिए और चले गए.

जया की नजरें पश्चात्ताप से झुकी थीं, लेकिन अमित मुसकरा रहा था.

‘आज भी अगर मैं नहीं बोली तो बात बिगड़ती ही जाएगी,’ सोच कर जया ने धीरे से कहा, ‘‘सौरी अमित, मुझे माफ कर दो. पिछले कितने दिनों से मैं तुम्हारे बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

अमित ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘नहीं जया, गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी है. मैं समझ रहा था कि तुम सब कुछ गलत समझ रही हो, फिर भी मैं ने तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं समझी. न बताने के पीछे एक कारण यह भी था कि पता नहीं तुम पूरी स्थिति को ठीक ढंग से समझोगी भी या नहीं. अगर मैं ने तुम्हें सारी बातें सिलसिलेवार बताई होतीं, तो यह समस्या न खड़ी होती.

‘‘दूसरे का घर बसातेबसाते मेरा अपना घर टूटने के कगार पर खड़ा हो गया था. लेकिन उन दोनों को समझातेसमझाते मुझे भी समझ में आ गया कि पतिपत्नी के बीच सारी बातें स्पष्ट होनी चाहिए. कुछ भी हो जाए, लेकिन अबोला नहीं होना चाहिए. जो भी समस्या हो, एकदूसरे से शिकायतें हों, सभी आपसी बातचीत से सुलझा लेनी चाहिए वरना बिना बोले भी बातें बिगड़ती चली जाती हैं. पहले भी हमारे छोटेमोटे झगड़े इसी अबोले के कारण विशाल होते रहे हैं. वादा करो आगे से हम ऐसा नहीं होने देंगे,’’ अमित ने कहा तो जया ने भी स्वीकृति में गरदन हिला दी. Hindi Family Story

Hindi Story: रबड़ का आदमी

Hindi Story, लेखक – प्रभात गौतम

इत्तिफाक से उस दिन हमारा आमनासामना हो गया. नरेश कालेज के दिनों में मेरा सहपाठी रह चुका था. हमारी आपस में कभी भी गहरी दोस्ती नहीं रही थी, पर आज वह इतना अपनापन दिखा रहा था, जैसे हम जन्मजन्मांतर के साथी हों. बिना मेरी बोरियत को समझे वह लगातार अपने कालेज के दिनों की घटनाएं दोहराए जा रहा था.

मैं कभी सड़क पर गुजरती कारों को देख रहा था, तो कभी आसमान पर छाए हलके बादलों को. किसी भी तरह जल्दी से जल्दी उस से छुटकारा पाने के लिए मैं ‘हां या न’ में उस का समर्थन जता देता था, जिस से वह और भी खुश हो रहा था.

‘‘अच्छा अभी तो मैं चलता हूं. फिर कभी घर आना. यहीं गांधीनगर में,’’ जैसे ही नरेश ने अपनी बात को खत्म किया, मैं ने अपने घर जाने का उतावलापन जाहिर कर दिया.

‘‘फिर कभी क्यों राजन… चलो, अभी चलते हैं. इसी बहाने भाभीजी के हाथों की चाय भी पी लेंगे,’’ नरेश तुरंत बोल पड़ा.

मुझे लगा कि मेरे द्वारा आसमान में उछाला गया कोई पत्थर मेरे ही सिर पर आ गिरा है. मुझे अपनी गलती का पछतावा होने लगा. कितना अच्छा होता मैं यहीं रुक कर कुछ देर और उस की बातें सुन लेता, जिस से मेरा रविवार का मजा खराब होने से तो बच जाता.

घर पर पहुंचने पर जो मेरा बुरा हाल होने वाला था, उस का मुझे आभास होने लगा था. मैं उस की बातों में सारे सामान की लिस्ट भूल चुका था, जो मुझे घर के लिए ले जाना था.

‘‘यार, थोड़ी मिठाई और नमकीन भी ले चल. भूख लगी है,’’ नरेश जैसे फिर बेशर्मी पर उतर आया.

मैं अंदर ही अंदर गुस्से से भर गया था और जेब में पड़े एकलौते नोट के जाने का शोक मनाते हुए मिठाई की दुकान की तरफ बढ़ रहा था.

घर के भीतर आते ही नरेश ‘धम्म’ से सोफे पर बैठ गया और दीवारों पर लगी पेंटिंग्स पर अपनी राय जाहिर करने लगा, जबकि मुझे सीधे लग रहा था कि वह इन के बारे में कुछ नहीं जानता.

कमरे में सजे गुलदस्ते, मूर्तियां नरेश ऐसे देख रहा था जैसे वह इसे पहली बार देख रहा हो. बातचीत को कुछ देर भी रोकना उसे गंवारा नहीं था. कोई न कोई बात खोज कर वह लगातार बोलता जा रहा था और नहीं तो वह कालेज के दिनों की क्लास के दोस्तों की बात ही छेड़ देता, जिसे वह कुछ ही देर पहले बता चुका था. यहां तक कि मुझे ही मेरी आदतों से अवगत कराने लगता था. मुझे उस के मुंह से शराब की हलकीहलकी बदबू भी आ रही थी.

‘‘अरे राजन, तुम तो आज बड़े उदास नजर आ रहे हो. कहीं भाभीजी से झगड़ा तो नहीं हो गया,’’ नरेश मेरी उदासी भांप कर बोल पड़ा.

मुझे अपने एकमात्र नोट के जाने का दुख सता रहा था जिसे बचाने के लिए मुझे अपनी औफिस की पार्टी छोड़नी पड़ी थी और औफिस से घर के लिए कभी किसी से, कभी किसी से लिफ्ट लेनी पड़ी थी.

‘‘नहीं… तो. मैं उदास कहां हूं. वह तो थोड़ी सी थकावट है,’’ मैं ने चेहरे पर बनावटी मुसकराहट लाने की कोशिश की.

‘‘तुम बैठो, मैं अभी तुम्हारे लिए चाय बनवा देता हूं,’’ मैं ने बात पलटने के अंदाज में कहा, जिस से मुझे उठ कर श्रीमतीजी को हालात समझाने का मौका भी मिल सके.

‘‘चाय आए तब तक तुम मिठाई ही ले आओ,’’ अब नरेश एकदम अनौपचारिकता पर उतर आया था, जो मुझे बेशर्मी लग रही थी. मन चाहा कि उसे इसी समय धक्का मार कर बाहर निकाल दूं, पर किसी तरह अपनेआप को रोका और कमरे से बाहर आ गया. हालांकि, मैं मन ही मन उसे ढेर सारी गालियां दे चुका था.

अपनी पत्नी को थोड़े में सारी बात समझा कर मैं दोबारा नरेश के सामने वाले सोफे पर बैठ गया. अब उसे हमारी बातचीत के विषय याद नहीं आ रहे थे. आसपास नजरें दौड़ा कर वह किसी अखबार या पत्रिका की तलाश में था, जिसे जानते हुए भी मैं अनजान बना हुआ था, क्योंकि मैं अखबार वगैरह मंगवाता ही नहीं था.

कुछ देर के लिए हमारे बीच चुप्पी बनी रही, जिसे तोड़ने के लिए नरेश अपने जूते हिला कर ‘खटखट’ की आवाज कर लेता था. कभी हम घूमते पंखे को देखते थे, कभी दीवारों पर टंगे कलैंडर में तारीखें पढ़ने लगते थे. जैसे ही वह मेरी तरफ देखता था, मैं अपने चेहरे पर बनावटी मुसकराहट तैरा लेता.

कुछ ही देर में चाय, मिठाई और नमकीन से सजी ट्रे के साथ मेरी पत्नी हमारे सामने थी, जिस को देखते ही नरेश ने फिर से अपनी बकबक शुरू कर दी. वह लगातार चाय, नमकीन की तारीफ कर प्लेट साफ किए जा रहा था. मेरे साथ होने वाली बातें बड़े यकीन से वह मेरी पत्नी को बताए जा रहा था, जो कभी मेरे साथ घटित ही नहीं हुई थीं. फिर भी हम दोनों चुपचाप उसे सुने जा रहे थे.

मुझे नरेश के द्वारा सुनाए जा रहे किसी भी चुटकुले पर हंस नहीं आ रही थी. कई बार तो मुझे वह एक डाकू या लुटेरा जैसा लगने लगा था, जो हमारे घर को लूटने पर आमदा है और हम उसे चुपचाप बैठे देख रहे हैं. पत्नी भी उस की बातों का औपचारिक जवाब दे कर चुप हो जाती थी.

आखिरकार सबकुछ खा पीने के बाद जब नरेश जाने के लिए उठा, तो मुझे कुछ संतोष हुआ. कदम बढ़ाते हुए मैं उसे बाहरी दरवाजे तक ले आया था, पर वह था कि कोई न कोई विषय पर नई बात शुरू कर देता था.

‘‘कितने बरसों बाद तो हम मिले हैं,’’ कह कर नरेश फिर से पत्नी की तरफ मुखातिब हो गया.

‘‘भाभीजी, आप क्या करती हैं? आप तो अच्छी पढ़ीलिखी हैं कहीं सर्विस क्यों नहीं कर लेतीं?’’ उस ने पत्नी से पूछा.

‘‘करना तो चाहती हूं, पर मिले भी तो,’’ पत्नी ने टालने के अंदाज में जवाब दिया.

‘‘तुम दिला दो इन्हें सर्विस,’’ मैं ने कुछ गुस्से से कहा.

‘‘आप की तो इंगलिश भी बहुत अच्छी लग रही है. आप बता रही थीं आप ने बीएड भी कर रखा है… कोई स्कूल जौईन करना चाहें तो आप कल ही आ जाओ. आप की नौकरी पक्की. अभी 20,000 से स्टार्ट करवा दूंगा, फिर आगे देख लेंगे. स्कूल का मालिक मेरा अच्छा जानकार है. एकदम जिगरी यार. समझो, अपना ही स्कूल है.’’

नरेश ने किसी नामी स्कूल का नाम बताया. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह इतने बड़े स्कूल के मालिक का जानकार होगा.

इस एक वाक्य से एकदम नरेश अच्छे और भले आदमी में तबदील हो गया. जैसे मेरे सामने पैंटशर्ट पहने कोई दूत खड़ा था. मैं उस के कपड़ों में लगे परफ्यूम की भीनीभीनी महक महसूस कर रहा था. उस की बातें अब हमें बड़ी अच्छी लग रही थी.

‘‘आप खाना खा कर जाते,’’ पत्नी ने भी अब उस की मेहमाननवाजी शुरू कर दी थी.

‘‘नहीं, आप ने इतना कुछ तो खिला दिया. खाना खाऊंगा आप की पहली तनख्वाह मिलने पर,’’ कह कर नरेश आगे बढ़ने लगा.

‘‘मैं तुम्हें स्कूटर पर छोड़ देता हूं,’’ मैं भी पूरी तरह नरेश की खातिरदारी पर उतर आया था. वह मना करते हुए चुपचाप आगे बढ़ गया.

…और कमरे में वापस जाते हुए मैं नरेश की तारीफ के पुल बांधे जा रहा था. Hindi Story

News Story In Hindi: भाषा की आड़ में सियासी जंग

News Story In Hindi: बारिश का मौसम आ गया था. पहाड़ों पर रोजाना पहाड़ खिसकने और लोगों के जाम में फंसने की खबरें आ रही थीं. दिल्ली में हुई जरा सी बारिश से सड़कों पर पानी भरा, तो दिल्ली सरकार की पोलपट्टी खुल गई.

इन सब परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए विजय ने एक शाम अनामिका को कनाट प्लेस के एक कैफे में बुलाया. शाम के 5 बज रहे थे. विजय कैफे में था, जबकि अनामिका को 6 बजे तक आना था. वह बारिश के चलते जाम में फंस गई थी.

विजय ने कहा भी था कि ओला बाइक ले लेना, पर अनामिका ने कार से आना मुनासिब सम झा, तो अब जाम की भेंट चढ़ गई थी.

कैफे बड़ा खूबसूरत था. चूंकि बारिश हो रही थी, तो वहां भीड़ भी अच्छीखासी थी. विजय के सामने की सीट पर एक साउथ इंडियन नौजवान बैठा था. उम्र होगी तकरीबन 26 साल और वह किसी अच्छी कंपनी का मुलाजिम लग रहा था. वह बैरा से टूटीफूटी हिंदी में बात कर रहा था.

विजय चूंकि हरियाणा से था, पर दिल्ली में पलाबढ़ा था, तो उस ने हरियाणवी में उस साउथ इंडियन नौजवान के मजे लेने की नीयत से पूछा, ‘‘छोरे, केरल का सै के?’’

उस साउथ इंडियन को सिर्फ केरल सम झ में आया, तो वह तिलमिला कर बोला, ‘‘मैं केरल नहीं, तमिलनाडु से आई.’’

‘आई’ सुनते ही विजय की हंसी निकल गई और वह बोला, ‘‘आ रै, तू तो छोरी लिकड़ा…’’

उस साउथ इंडियन के कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा, पर वह बोला, ‘‘मैं मलयाली नहीं, तमिल है.’’

‘‘फेर आड़े के धार लेण आया सै…’’ विजय अपनी हंसी रोकते हुए बोला.

‘‘मुझे आप की भाषा नहीं सम झ आती. मेरी हिंदी बड़ी पूअर है. वैरी लिटिल हिंदी जानती,’’ उस नौजवान ने जवाब दिया.

‘‘या हिंदी ना सै झकोई, हरियाणवी सै,’’ विजय ने फिर मजे लिए.

‘‘सर, मेरी सम झ में कुछ नहीं आती… आप क्या बोलती…’’ वह नौजवान परेशान हो कर बोला.

‘‘मैं बोलती कि तू भैंस की पूंछ सै. खाग्गड़ का खाग्गड़ हो ग्या, पर ‘बोलता’ को ‘बोलती’ बोल्लण तै बाज नी आंदा,’’ विजय ने फिर चुटकी ली.

‘‘फ्रैंड, मैं यहां कौफी पीने आई. क्या आप भी कौफी लेंगी?’’ उस नौजवान ने खी झ कर पूछा.

‘‘अरे, नहीं फ्रैंड, मैं बस मजाक कर रहा था. मेरी गर्लफ्रैंड आने वाली है. हमारी कौफी डेट है. आप भी हमें जौइन करें. मु झे बड़ी खुशी होगी,’’ विजय अब मजाक के मूड में नहीं था.

उस नौजवान को काफीकुछ सम झ में आया और वह लंबी सांस लेते हुए बोला, ‘‘आप ने तो मुझे डरा दिया था. मैं जरूर आप के साथ कौफी लेगी.’’

‘‘मेरे भाई, ‘लेगी’ नहीं ‘लूंगा’ बोलो…’’ विजय ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम विजय है और आप का क्या नाम है?’’

‘‘आप मु झे सुंदरम कह सकते हैं,’’ वह नौजवान हाथ मिलाते हुए बोला.

‘‘और मेरा नाम अनामिका है…’’ तभी पीछे खड़ी अनामिका ने अपना परिचय दिया, ‘‘और विजय, तुम क्यों इन भाई साहब के मजे ले रहे थे. बड़ी हरियाणवी निकल रही थी आज. तुम्हें किसी को उस की भाषा या बोलने के अंदाज पर जज कर के उस का मजाक नहीं बनाना चाहिए.’’

‘‘पर यार, मु झे टाइमपास करना था. सोचा कि इस की ही क्लास ले लूं,’’ विजय ने अनामिका को सफाई दी.

‘‘पर तुम यह देखो न कि हम तीनों यहां एक टेबल पर बैठे हैं, फिर भी 3 अलगअलग भाषाओं तमिल, हरियाणवी और भोजपुरी को जानते हुए कितने अपनेपन से बात या संवाद करने की कोशिश कर रहे हैं,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘यह तो सच है. अच्छा, यह बताओ कि कौन सी कौफी लोगी? और आप तमिल भाई साहब… माफ करना सुंदरम भाई साहब, कौन सी कौफी लेना पसंद करेंगे?’’ विजय बोला.

‘‘मैं फिल्टर कौफी लेगी. मु झे वही पसंद है,’’ सुंदरम ने धीरे से कहा.

‘‘पर यहां तो कौफी की कई वैराइटी हैं. आज आप कुछ नया ट्राई करो,’’ अनामिका बोली.

‘‘नया क्या?’’ सुंदरम ने पूछा, ‘‘हम तो फिल्टर कौफी ही पीते हैं.’’

‘‘ऐस्प्रैसो, कैप्पुचीनो, लैटे, अमेरिकनो, फ्लैट ह्वाइट, मोचा, फ्रैपुचीनो, मैकियाटो, कौफी क्रेमा, लुंगो…’’ अभी अनामिका ने इतना ही कहा था कि सुंदरम ने बीच में ही रोकते हुए कहा, ‘‘बस, मैं सम झ गई. जो आप को पसंद, वही मैं लेती.’’

‘‘मैं भी वही लेती,’’ विजय ने इतना कहा, तो अनामिका ने भी ठहाका लगाया. सुंदरम सम झ गया कि उस ने फिर गलत हिंदी बोली है.

अनामिका ने बैरा को बुला कर 3 कैप्पुचीनो का और्डर दिया और साथ में 3 वैज सैंडविच भी मंगाए.

‘‘जब तुम ने तमिल, हरियाणवी और भोजपुरी वाली बात कही, तो मेरे दिमाग में ‘त्रिभाषा फार्मूला’ वाला मामला याद आ गया. आजकल यह मुद्दा बहुत ज्यादा गरम है. इस पर सरकार और विपक्ष आमनेसामने है,’’ विजय ने अनामिका से कहा.

‘‘यह बड़ा पेचीदा मामला है. जब हम किसी भाषा की बात करते हैं, तो यह सोचना चाहिए कि उस के बोलने और सम झने वालों की तादाद कितनी है. अब संस्कृतनिष्ठ हिंदी की ही बात करें, तो यह आज के जमाने में किस काम की है, यह मेरी सम झ से परे है’’ अनामिका बोली.

‘‘मैं तुम्हारा मतलब नहीं सम झा?’’ विजय ने कौफी का सिप लेते हुए कहा.

‘‘राष्ट्र के उत्थान के पश्चात हम विश्वव्यापी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेंगे एवं समग्र मनुष्य जाति से निवेदन करेंगे कि सन्मार्ग पर चलना ही एकमेव उद्देश्य रहे,’’ जब अनामिका ने इतनी भारीभरकम हिंदी पेश की, तो विजय के साथसाथ सुंदरम की भी आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘अनामिका, मु झे नहीं पता था कि हिंदी का यह रूप भी है. लेकिन ऐसे मुश्किल शब्दों का क्या फायदा, जो सम झ में ही न आएं. और वैसे भी भाषा को ले कर जो झगड़ा महाराष्ट्र में चल रहा है, वह तो और भी डरा देने वाला है. सारे सियासी दल इसे भुना रहे हैं और पिस रही है बेचारी आम जनता,’’ विजय ने कहा.

‘‘तुम सही कह रहे हो. वहां तो मराठी और हिंदी वालों में इतनी ज्यादा ठन गई है कि लोग एकदूसरे से मारपीट करने लगे हैं.

‘‘बीते दिनों मराठी में बात नहीं करने पर एक फूड स्टौल मालिक को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के एक नेता अविनाश जाधव ने थप्पड़ मारा था. इस घटना के विरोध में व्यापारियों के प्रदर्शन के जवाब में ठाणे में आयोजित की जाने वाली रैली से पहले मनसे के नेता आविनाश जाधव को पुलिस ने हिरासत में ले लिया,’’ अनामिका ने बताया.

‘‘महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी भाषा विवाद पर एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने साफ किया है कि भाषा के नाम पर किसी भी तरह की गुंडागर्दी बरदाश्त नहीं की जाएगी. भाषा के आधार पर मारपीट करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी ऐक्शन लिया जाएगा,’’ विजय ने बात को आगे बढ़ाया.

‘‘मुझे ऐसा लगता है कि ‘त्रिभाषा फार्मूला’ के नाम पर भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में हिंदी के साथसाथ संस्कृत भाषा को भी थोपना चाहती है. साथ ही यह बात भी बड़ी अहम है कि जो भी लोग नई शिक्षा नीति बना रहे हैं, वे खुद अंगरेजी बोलने वाले हैं और इसी भाषा में पढ़ेलिखे हैं.

‘‘ऐसे लोग हिंदी या दूसरी तमाम भारतीय भाषाएं बोलने वालों को अपने से कमतर सम झते हैं. उन्हें तो हर उस गरीब और वंचित से दिक्कत है, जो सरकारी स्कूल में पढ़ कर आगे बढ़ने की सोच रहा है. आसान शब्दों में कहूं, तो यह दलितों को पढ़ाई से दूर रखने की साजिश है.

‘‘ऐसा ही कुछ अमेरिका में भी हो रहा है. वहां के गोरे लोग नस्ल के आधार पर दूसरों को सरकार द्वारा चलने वाले स्कूलों में पढ़ते देख ज्यादा खुश नहीं हैं. वे अपने बच्चों को उन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने भेज रहे हैं, जहां की फीस बहुत ज्यादा है. डोनाल्ड ट्रंप की सरकार आने के बाद यह नस्लीय भेद खुल कर सामने आ रहा है,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘तुम सही कह रही हो. हमारे यहां भी कुछकुछ वैसा ही माहौल बनाया जा रहा है. यहां जो भाषा का विवाद है, वहां हिंदी को प्रमोट करने की राजनीतिक चाल लगती है. जब हर जगह हिंदी पढ़ना जरूरी हो जाएगा, तब हिंदी भाषा से जुड़े रोजगार भी बढ़ेंगे और सरकारी नौकरियां भी निकालनी पड़ेंगी.

‘‘सरकारी दफ्तरों में ही देख लो. जब से अंगरेजी सरकारी दस्तावेजों का हिंदी में अनुवाद का काम शुरू हुआ है, तब से राजभाषा विभाग भी बना दिए हैं, पर वहां जो शब्दश: अनुवाद होता है, वह हिंदी किसी काम की नहीं है. लोग अंगरेजी में ही ज्यादा सहज महसूस करते हैं,’’ विजय ने अपनी बात रखी.

सुंदरम को ज्यादा तो कुछ सम झ नहीं आ रहा था, पर उस ने महाराष्ट्र वाली खबरें पढ़ी थीं और तमिलनाडु में भी इसी विवाद पर सुना था. उसे इस बात की खुशी थी कि विजय और अनामिका इस मुद्दे पर बहुत अच्छी बहस कर रहे थे.

हुआ यह है कि केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को समग्र शिक्षा योजना के तहत मिलने वाला पैसा देने से मना कर दिया है. केंद्र का कहना है कि तमिलनाडु ने नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लागू करने से इनकार कर दिया है. इसी वजह से राज्य को समग्र शिक्षा योजना का फंड नहीं दिया जा रहा है.

इस मसले पर तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर कहा था कि केंद्र सरकार ने अब तक 2,152 करोड़ रुपए जारी नहीं किए हैं. शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए इस फंड की जरूरत है.

एमके स्टालिन ने यह भी कहा था कि हिंदी सिर्फ मुखौटा है और केंद्र सरकार की असली मंशा संस्कृत थोपने की है. उन्होंने कहा कि हिंदी के चलते उत्तर भारत में अवधी, बृज जैसी कई बोलियां खत्म हो गईं.

राजस्थान का उदाहरण देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार वहां उर्दू को हटा कर संस्कृत थोपने की कोशिश कर रही है. दूसरे राज्यों में भी ऐसा होगा, इसलिए तमिलनाडु इस का विरोध कर रहा है.

‘‘किस सोच में पड़ गए सुंदरम? लगता है तुम्हें हमारी बहस सम झ नहीं आई, जो इतने चुप हो?’’ विजय ने पूछा.

‘‘मुझे अच्छा लगा. भले ही मेरी टूटीफूटी हिंदी है, पर आज इसी से मु झे आप जैसे फ्रैंड मिले हैं,’’ सुंदरम ने कहा.

‘‘अरे, एक ही मीटिंग में तुम्हारी हिंदी सुधर गई. हमारे साथ रहोगे तो हरियाणवी और भोजपुरी भी सीख जाओगे,’’ विजय ने कहा, तो वे तीनों हंसने लगे. News Story In Hindi

Story In Hindi: नाच

Story In Hindi: रोमिला को बैंक में काउंटर के पीछे बैठे और मुस्तैदी से अपना काम करते हुए जवान क्लर्क लड़केलड़कियां बड़े अच्छे लगते थे, इसलिए वह भी इन लोगों की तरह बैंक की सरकारी नौकरी ही पाना चाहती थी, पर बैंक पीओ के इम्तिहान में 2 बार नाकाम रहने के बाद से रोमिला का मनोबल बुरी तरह से टूट गया था और वह डिप्रैशन में रहने लगी.

रोमिला 25 साल की युवती थी. उस ने बीकौम करने के बाद बैंकिंग इम्तिहानों की तैयारी शुरू कर दी थी, क्योंकि आगे चल कर वह बैंकिंग में ही अपना कैरियर बनाना चाहती थी.

रोमिला को लग रहा था कि अब उसे कभी भी बैंक की सरकारी नौकरी नहीं मिल पाएगी, क्योंकि प्रतियोगी परीक्षाओं में कंपीटिशन हद से ज्यादा बढ़ गया था.

रोमिला एक ठाकुर परिवार से थी और उस के पापा निरंजन सिंह भी चाहते थे कि रोमिला जल्द से जल्द बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर ले, पर बेटी के बारबार नाकाम होने के चलते वे सरकारी नौकरी में जातिगत रिजर्वेशन के सख्त खिलाफ थे. उन्हें लगता था कि अगर पिछड़ी जाति के लड़केलड़कियों को नौकरी में रिजर्वेशन नहीं दिया जाता, तो रोमिला का चयन कब का हो जाता.

समयसमय पर निरंजन सिंह अपनी बेटी रोमिला का हौसला भी बढ़ाते रहते थे, पर इस बार रोमिला के नाकाम रहने पर उस का दुख उन से देखा नहीं गया, तो वे अपने सब से करीबी दोस्त और शहर के बड़े नामी वकील अनिल सिसौदिया के पास गए और उन से रोमिला की हालत को बताया और उपाय पूछा कि रोमिला का सरकारी नौकरी में सैलेक्शन कैसे हो? इस के लिए वे कितने भी पैसे खर्च कर सकते हैं.

अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को बताया कि सरकारी नौकरी पाना जितना मुश्किल है, उतना ही आसान भी.

अनिल सिसौदिया की इस बात पर निरंजन सिंह खी झ गए और बोले, ‘‘इतना ही आसान होता तो मेरी काबिल लड़की नौकरी पा गई होती.’’

वकील अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को बताया कि उन की बेटी अगर सवर्ण होने के नाते नौकरी नहीं पा रही है, तो उपाय बहुत आसान भी है.

‘‘क्या उपाय है?’’ निरंजन सिंह सरकारी नौकरी पाने का उपाय सुनने को बेताब हो रहे थे.

अनिल सिसौदिया ने बताया कि वे अपनी लड़की की शादी किसी दलित जाति के सीधेसादे और गरीब लड़के से कर दें, जिस से उन की बेटी का दलित जाति का सर्टिफिकेट बन जाएगा. उस सर्टिफिकेट के चलते जब बेटी को नौकरी मिल जाएगी, तो कुछ दिनों बाद उस की बेटी अपने पति पर जोरजुल्म करने का आरोप लगा कर तलाक ले ले और चुपचाप सरकारी नौकरी का मजा लेती रहे.

वकील अनिल सिसौदिया की बात सुनकर निरंजन सिंह का खून उबाल मारने लगा. उन की कनपटी लाल
हो गई.

‘‘अनिल, तुम पगला गए हो क्या… तुम मेरी बेटी को किसी निचली जाति के लड़के से ब्याहने की बात सोच भी कैसे सकते हो? यह कह कर तुम मेरी बेइज्जती कर रहे हो. इन दलित लोगों के घर में हम भला अपनी बेटी कैसे दे सकते हैं…’’ निरंजन सिंह चीख रहे थे.

वकील अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को पानी पीने को दिया और उन्हें सम झाया कि वे सिर्फ सरकारी नौकरी पाने के लिए किसी गएगुजरे, बेरोजगार और गरीब दलित जाति के लड़के से ब्याह के नाम पर कोर्टमैरिज करने को कह रहे हैं. शादी यहां से कहीं दूर जा कर होगी और आप उस बेरोजगार दलित लड़के को कोई रोजगार दिला देना या अपने पैसों के कर्ज तले दबे देना. हां, थोड़ा आत्मसमान को ठेस तो पहुंचेगी, पर फिर कुछ पाने के लिए थोड़ाबहुत सम झौता तो करना ही पड़ेगा.

निरंजन सिंह का मूड थोड़ा उखड़ा हुआ तो था, पर काफी हद तक बात उन की सम झ में आ गई थी और फिर घर जा कर उन्होंने यह बात रोमिला को बताई.

पहले तो रोमिला ने भी थोड़ी नाराजगी जताई, पर वह हर हाल में सरकारी नौकरी पाना चाहती थी, इसलिए फिर उसे यह प्रस्ताव सही लगने लगा था. एक बार वह बैंक की सरकारी नौकरी पा ले, फिर तो अपने उस दलित पति को तलाक देने में देर नहीं करेगी. इस तरह सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.

‘पर ऐसा लड़का मिलेगा कहां? और फिर हर लड़का शादी के बाद अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाना चाहेगा. ऐसे में अपनी इज्जत को बचाना एक बड़ी चुनौती होगी,’ रोमिला सोच रही थी.

‘हमारे आसपास देखने पर या फिर पिछड़ी बस्तियों में मरियल, लाचार और बेरोजगार दलित लड़का बड़ी आसानी से मिल ही जाता है,’ यह सोच कर निरंजन सिंह को भी बड़ी आसानी से एक लड़का मिल भी गया.

वह 35 साल का मनोज नाम का एक दलित विधुर था. उस के अंदर लड़कियों जैसी हरकतें ज्यादा थीं और वह गांव की नौटंकी में औरत बन कर नाचगाना करता था. मनोज की पत्नी मर चुकी थी.

निरंजन सिंह को लड़कियों जैसी हरकत वाले मनोज से शादी कर देना थोड़ा सुरक्षित महसूस हुआ था और उन्हें यह दलित इतना लाचार लगा कि वह हमेशा उन की बेटी से दब कर ही रहेगा, इसलिए निरंजन सिंह ने मनोज से उस की दोबारा शादी की बात चलाई, तो वह थोड़ा हैरत में पड़ गया.

मनोज अपनी पत्नी के मर जाने के बाद सदमे जैसी हालत में था और शराब की लत लगा बैठा था. वैसे, उस के पास खुद का पेट भरने के लिए भी पैसे तक नहीं थे. ऐसे में भला वह शादी की बात कैसे सोचता?

पर निरंजन सिंह ने गांव के प्रधान को अपनी तरफ कर लिया और अपनी बेटी को अनाथ दिखाते हुए झूठ
बोला कि वे अनाथ लड़कियों की शादी मनोज जैसे विधुर से कराते हैं, ताकि दोनों लोगों का भला हो सके.

प्रधान को निरंजन सिंह की बात में सचाई लगी और वे मनोज को दूसरी शादी के लिए राजी करने लगे. उन्होंने मनोज को भरोसा भी दिलाया कि कोर्ट में शादी करने पर उसे 50,000 रुपए भी मिलेंगे.

रुपयों की बात सुन कर मनोज को ठीक लगा और उस ने दोबारा शादी करने के लिए हां कर दी.

मनोज को शादी से कोई सरोकार नहीं था. उसे तो 50,000 रुपए का लालच था, जो शादी के बाद मिलने वाले थे और वह उन से जम कर शराब पी सकता था.

शहर में कोर्ट में मनोज और रोमिला की शादी करा दी गई. निरंजन सिंह के परिवार को इस तरह बेटी की शादी बड़ी अजीब सी लग रही थी, पर वे लोग जानते थे कि यह सब एक ड्रामा है और कुछ दिनों के बाद नौकरी मिलते ही रोमिला मनोज को लात मार कर वापस आ जाएगी.

रोमिला शादी कर के मनोज के साथ जाते समय थोड़ा घबरा रही थी कि जब मनोज उस के साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहेगा, तो वह क्या करेगी? किसी दलित के साथ रहना या फिर संबंध बनाने की बात तो उस ने सोची तक नहीं थी, पर सरकारी नौकरी के लालच में वह यह सब कर रही थी.

रोमिला को डर सता रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि मनोज उसे दबोच कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगे. अपनी सुरक्षा के लिए उस ने एक चाकू अपनी कमर में छिपा लिया था और मनोज के टूटेफूटे घर जा कर कमरे में एक ओर खड़ी हो गई, पर मनोज ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, बल्कि कमरे में जाते ही शराब के 2 पैग मार कर नींद के आगोश में चला गया.

मनोज के घर पर खाना बनाने के लिए गैस और दूसरा सामान नहीं था. एक गैस कनैक्शन और दूसरे सामान का इंतजाम रोमिला के पापा ने कर दिया था. आखिर कुछ महीने तो रोमिला को यहां काटने थे और अपना शहरी स्टाइल भी छिपा कर रखना था, ताकि लोगों को किसी तरह का शक न हो और जाति प्रमाणपत्र बनने में कोई परेशानी न हो.

कुछ और समय बीता तो रोमिला ने अपना नया जाति प्रमाणपत्र बनवा लिया और बैंक की नौकरी के लिए दलित बन कर आवेदन कर दिया, जहां पर उसे जातिगत रिजर्वेशन मिलना था.

बैंक पीओ का इंतजाम पास था, इसलिए रोमिला जीजान से पढ़ाई करने लगी. कभीकभी तो उसे खाने की सुध भी नहीं रहती थी और वैसे भी उसे इस बार तो अपनी कामयाबी की पूरी उम्मीद थी, क्योंकि उस के पास पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र भी था, पर यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था.

इम्तिहान वाले दिन रोमिला बहुत आशावादी थी, पर प्रश्नपत्र देख कर उस के होश उड़ गए थे. सभी सवाल बेहद मुश्किल थे.

रोमिला सवालों के जवाब नहीं दे पाई और उसे तुरंत आभास हो गया कि यह प्रतियोगिता वह पास नहीं कर पाएगी. और हुआ भी यही. नतीजा आने पर रोमिला का सैलेक्शन नहीं हुआ था और वह रैंकिंग में भी बहुत पीछे रह गई थी.

यह साफ हो गया था कि प्रतियोगी परीक्षा में पास होने के लिए जातिगत रिजर्वेशन से कुछ नहीं होता, बल्कि कामयाबी तो उन्हीं को मिलती है, जो इस के सही हकदार होते हैं.

उस रात अचानक मनोज को तेज बुखार आ गया. जब मनोज से रहा नहीं गया तो उस ने रोमिला को पुकारा और दवा मांगी.

जब रोमिला बुखार की गोली ले कर गई तो मनोज आंखें बंद किए लेटा हुआ था और बड़बड़ा रहा था, ‘‘रमिया… रमिया… छोड़ दो उसे. छोड़ दो रमिया को…’’

रोमिला ने मनोज को उठा कर दवा खिलाई और रमिया के बारे में पूछने लगी.

उस दिन मनोज ने अपने दिल में छिपी हुई बातों का राज उजागर किया, ‘‘रमिया मेरी पत्नी थी. हम दोनों बहुत खुश थे. रमिया लंबी, पतली देह वाली औरत थी उस की साड़ी और चोली के बीच की कमर और गहरी नाभि मु झे बहुत पसंद थी.

‘‘रमिया खाना भी बहुत अच्छा बनाती थी, पर शायद दलित जाति का होना रमिया और मेरे लिए शाप बन
गया था.

‘‘एक दिन की बात है. गांव के ठाकुर और पंडित हमारे घर आए और रमिया पर भरपूर नजर डालते हुए ठाकुर बोले, ‘सुना है तेरी घरवाली मीट बहुत अच्छा बनाती है. चल, आज हम तेरे घर में बैठ कर तेरी पत्नी के हाथ का मीट खाएंगे.’

‘‘बड़ी जाति के लोग एक दलित के घर खाना खाएंगे, यह बात बड़ी अजीब लगी थी, पर हम दोनों को भरोसा हो गया था कि हो सकता है कि बदलते समय के साथ ऊंचनीच का भेदभाव खत्म हो गया हो.

‘‘ठाकुर और पंडित ने अपने साथ लाया हुआ बकरे का मीट रमिया को दे दिया और खुद जा कर खटिया पर बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाने लगे, जबकि रमिया खुशीखुशी अपनी साड़ी को अपनी सांवली कमर में खोंस कर मीट बनाने की तैयारी करने लगी थी.

‘‘तभी ठाकुर ने हम से कहा, ‘तुम नौटंकी में नाचने वाली का रोल बड़ा अच्छा निभाए थे. जरा हम भी तो देखें कि मनोज भैया कैसे नाचे थे…’

‘‘ठाकुर के मुंह से अपने हुनर की तारीफ सुन कर हम खुश हो गए और जल्दी से कमरे में जा कर औरतों का सिंगार कर के और घाघरा और चोली ओढ़ कर आ गए और दोनों के सामने नाच दिखाने लगे और खुद गाना भी गा रहे थे.

‘‘गाते समय हमारी आवाज किसी औरत की तरह ही पतली और सुरीली लग रही थी… गाने के बोल थे, ‘हमार नाम आपन मुंह से बोलो राजाजी, चोली तंग है हमारे जरा हुक तो खोलो राजाजी…’

‘‘रसोई के अंदर रमिया को यह नौटंकी अच्छी नहीं लग रही थी, पर वह चुपचाप मीट बना रही थी. ठाकुर और पंडित की नजर तो रमिया पर थी. वे दोनों रमिया का नाच देखना चाहते थे, इसलिए हमारा नाच रुकवा कर उन्होंने रमिया से नाच दिखाने को कहा.

रमिया ने थोड़ा नानुकुर तो किया पर कुछ देर बाद सामने आ कर कमर हिला कर नाच दिखाने लगी, लेकिन उन दोनों की नीयत खराब थी और उन्होंने जबरदस्ती रमिया के साथ बारीबारी गलत काम किया.

‘‘अपने साथ हुए गलत काम के चलते ही रमिया ने नदी में कूद कर अपनी जान दे दी…’’ यह कहता हुआ मनोज रो रहा था.

रोमिला भी थोड़ा दुखी थी, पर वह कर क्या भी सकती थी. वह तो पहले ही बैंक के इम्तिहान में फेल होने से दुखी थी, क्योंकि उस के सारे प्लान और किएकराए पर पानी फिर गया था. एक दलित से शादी कर के भी उसे कामयाबी नहीं मिल पाई थी.

अगले दिन की बात है. रोमिला नहाने जा रही थी कि तभी दरवाजे पर कुंडी बजने की आवाज हुई.

मनोज ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने गांव के कुछ नई उम्र के बिगड़ैल लड़के खड़े थे. वे गिनती में 5 थे. उन लोगों ने मनोज को धक्का दिया और अंदर आ गए.

रोमिला पर भरपूर नजर डालते हुए एक लड़का बोला, ‘‘तनिक कमर लचका कर हम सब लोगों को नाच तो दिखा दे.’’

उस लड़के की बात का रोमिला ने डरते हुए विरोध किया, तो वे सब उस पर दबाव बनाने लगे और कहने लगे कि यहां तो यही रिवाज है कि दलित औरतें नाचती हैं और लोग मजा लेते हैं और तुम ने तो दलित से शादी कर ली है, इसलिए तुम हमारे सामने नाचोगी. अगर नहीं नाची तो हम सब तुम्हारा रेप करेंगे.

रेप का नाम सुन कर रोमिला सहम गई थी. उस ने सोचा कि रेप होने से अच्छा है कि वह कमर हिला कर नाच ही दे.

तभी एक लड़के ने मोबाइल पर गाना बजा दिया, ‘लहंगा तोहार बड़ा महंगा, बड़ी गरमी बा इस लहंगे मा…’

रोमिला ने अपनी भलाई सम झते हुए नाचना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस ने महसूस किया कि वे शोहदे उसे हवस भरी नजरों से घूर रहे हैं और उस का नाच देखने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है.

रोमिला सोच रही थी कि काश वह जाति प्रमाणपत्र लगा कर नौकरी पाने के चक्कर में न पड़ी होती तो यह सब नहीं करना पड़ता, क्योंकि सरकारी नौकरी मेहनत करने से मिलती है, केवल पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र से कुछ नहीं होता. Story In Hindi

Funny Story In Hindi: अंगूठे से सोचने का जमाना

Funny Story In Hindi: अब तो कैमरे के सामने रोना भी कंटैंट है और हंसना भी रील. अब यूट्यूबर सोचता है कि थंबनेल में अधनंगी लड़की का फोटो डालूं या लाल घेरे में चुडै़ल दिखाऊं? इस नए जमाने का नारा है ‘अंगूठा ही दिमाग’ है. पहले अखबार की हैडलाइन का खौफ हुआ करता था, पर अब तो थंबनेल ऐसे चीखते हैं मानो न्यूक्लियर बटन दब गया हो.

सोशल मीडिया ज्ञान का सागर नहीं, बल्कि गलतफहमियों और धोखेबाजी का महासागर बनता जा रहा है. थंबनेल व क्लिकबेट की दुनिया में ईमानदारी पुराने जमाने का रिकौर्ड प्लेयर है, जिसे अब कोई नहीं चलाता.

थंबनेल गुरुओं के यूट्यूब चैनल अब बेईमानी व झूठ के कोचिंग चैनल जैसे हो गए हैं. बस, थोड़ा चेहरा खींचिए, लाल तीर लगाइए, मुफ्त में झूठ की गुगली फेंकिए. थंबनेल अब नए दौर की ठग कला है. थंबनेल यानी किसी वीडियो या लेख की एक झलक ध्यान खींचने के लिए, जबकि क्लिकबेट एक धोखा देने वाला टाइटिल या थंबनेल, जो आप से वीडियो क्लिक करवा लेता है.

‘मोदीजी का संसद में जोरदार भाषण’ एक थंबनेल. ‘मोदीजी फफकफफक कर रो पडे़’ एक क्लिकबेट. कैसे कंटैंटवीर लोगों को लुभा व झूठ परोस कर उन के समय व डाटा को खा रहे हैं.

बेक्रिंग ‘अभीअभी परमाणु युद्ध शुरू हो गया’ पर वीडियो खोलने पर एक महाशय अपने कुत्ते को नहलाते दिख रहे हैं. इन के कंटैंट में किसी को मूव करने का दम नहीं, तो कैमरा मूव कर कर लोगों को दिखाते हैं.

थंबनेल आज का वह सिक्सर है जो जीरो रन पर आउट होने जैसा है. वहीं क्लिकबेट वह चाय है, जिस में पत्ती नहीं पर उबाल जरूर दिखता है. इस में रसगुल्ला दिखाया जाता है, पर निकलती सूखी मठरी है. खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली हालत.

थंबनेल अब दरवाजे पर रखी एक खूबसूरत जूती की तरह है, पर अंदर जाओ तो असलियत नंगे पांव मिलती है. ये लोग कैमरे से नहीं कनपटी पर क्लिकबेट रख कर वीडियो बनाने में माहिर हैं. इस में कुछ नहीं को सबकुछ की तरह बेचा जाता है.

‘देखिए, मोदीजी की आंखों में आंसू’ और पता चला कि जिस सभा में वे भाषण दे रहे थे, उस इलाके में धूलभरी आंधी चल गई थी. क्लिकबेट यानी जितना बड़ा दावा उतनी छोटी बात. दर्शक गालियां भी देते हैं, पर वीडियो देखना नहीं छोड़ते.

आजकल मुद्दे नहीं मुंह के भाव बिकते हैं. जितना टेढ़ा मुंह उतना वायरल. थंबनेल का दिमागी दीवालियापन देखिए कि फोटो भगत सिंह का लगा है और प्रचवन कोई बाबाजी दे रहे हैं. दोनों हाथों से केला खाने वाली लड़की के वीडियो का टाइटिल होगा ‘इस ने वह कर दिया जो आज तक कोई नहीं, जी हां, कोई नहीं कर पाया’.

ये आज के टैलेंटेड लोग हैं, जो बिना कंटैंट के 20 मिनट का वीडियो थंबनेल व क्लिकबेट के दम पर पेल कर लोगों के समय व चैन से खेल रहे हैं. थंबनेल और पान में कैचअप डालना एकजैसे अपराध हैं.

दूल्हे की महज फोटो देख कर रिश्ता तय करने जैसा ही है अब थंबनेल खोल कर वीडियो को देखना. अब हर वीडियो ब्रेकिंग होता है. ये ब्रेक असल में वीडियो देखने वाले को इस के सडि़यल कैंटेंट के कारण ब्रेक ही कर देते हैं. आज जो सब को पता है उसे गला फाड़फाड़ कर ऐक्सक्लूसिव कहने का चलन है.

ऐक्सपायर्ड चीजें अनूठी बना दी जाती हैं.

अब ज्यादा मेहनत पहले चेहरा बिगाड़ के डर फैलाने के काम में होती है. कंटैंट बनाने का काम बाद में बिना मेहनत के चुटकियों में कर लिया जाता है. अब लोग वीडियो से ज्यादा रिऐक्शन पर रिऐक्शन करते हैं.

जहां बिना शादी के सासबहू के बीच झगडे़ जैसी हालत है.

‘वीडियो को आखिर तक देखिए… आखिरी में होगा बड़ा खुलासा…’ खुलासे तो वह बीचबीच में किसी ब्रांड के प्रमोशन का करता ही रहता है कि यह एक अनूठा औफर आज महज एक पिज्जा की कीमत पर 2 पिज्जा… केवल पहले 50 सब्सक्राइबर्स के लिए.

आखिरी तक पहुंचने तक तो आप का डाटा भी हांफने हुए दम तोड़ देता है. ये नए जमाने के डाटा खाऊ कंटैंट भाऊ हैं. इन वीडियोज रूपी चाय में कंटैंट की चीनी खोजते रह जाओगे.

असली सक्सैस मंत्र ‘जितना झूठ उतने व्यूज’. महंगाई, बेरोजगारी, जीडीपी पर कोई बात नहीं. बात तो सैलेब्रिटी के कुत्ते ने आज क्या खाया या फलां हीरो के बेटे आज कितने साल के हो गए या इन मोहतरमा ने आज 10 लाख की ड्रैस पहनी जैसी बातें ज्यादा होती हैं. झोंपड़ी की आग की वीडियो को संसद की आग कह कर देखने का लालच दिया जाता है.

सोशल मीडिया की यह यात्रा ‘फौलो फोर फैक्ट’ से ‘फौलो फोर फाल्सहुड’ तक ले आई है. कंटैंटमेकर सम झदारी से वैसे ही दूर होता जा रहा जैसे महंगाई के सरपट भागते घोडे़ की लगाम सरकार की पकड़ से, बेरोजगारी की समस्या और उस के समाधान से दूर होती जा रही है.

थंबनेल व क्लिकबेट की दुनिया में सब से तेज भाग रहा भी पहुंचता कहीं नहीं है. अब पुराने हाथ की सफाई मुहावरे की जगह अंगूठे की सफाई कहना चाहिए .

तो दोस्तो, अगली बार जब कोई कहे कि देखिए इस वीडियो ने सब को हिला दिया, तो मान कर चलिए कि आप का पूरा डाटा हिलने वाला है. अब तो अगला वीडियो नहीं, बल्कि अगला थंबनेल देखिए, ऐसा कहना चाहिए. Funny Story In Hindi

Crime Story In Hindi: एक मौत ऐसी भी

Crime Story In Hindi: रेशमा एक गरीब परिवार की खूबसूरत लड़की थी, पर उस की चाहत हमेशा अमीरों वाली थी. महंगे मोबइल, महंगी ड्रैस और बड़ी गाडि़यों में घूमने के सपने के चक्कर में वह इतनी अंधी हो गई कि उस ने अपने इस खूबसूरत बदन को ही अमीर बनने का रास्ता बनाने का इरादा कर लिया.

रेशमा मुंबई के गोवंडी इलाके में अपने अम्मीअब्बा के साथ रहती थी. उस का बाप आटोरिकशा चला कर अपने परिवार का पेट पालता था. उस ने कड़ी मेहनत कर के रेशमा को खूब पढ़ाने का सपना संजो रखा था, इसलिए उस ने अपनी बेटी को एक अच्छे इंगलिश स्कूल में दाखिला दिलवा दिया था.

रेशमा पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. यही वजह थी कि वह हर क्लास में अव्वल आती थी.

पढ़ाईलिखाई के साथसाथ रेशमा के सपने भी बड़े ऊंचे थे. वह किसी भी कीमत पर अमीर होना चाहती थी, क्योंकि उस के स्कूल में ज्यादातर अमीर मांबाप के बच्चे पढ़ते थे, जिन्हें देख कर रेशमा के मन में भी अमीर बनने का सपना जन्म लेने लगा. वह रातदिन सोचती रहती कि आखिर पैसा कैसे कमाया जाए.

एक दिन रेशमा जब बाथरूम से नहा कर बाहर निकली और उस की नजर अपने उठे हुए उभारों पर पड़ी, तो उसे अपनेआप पर हंसी आ गई. वह यह सोचने लगी कि अमीरजादों को फंसाने वाली उस की ये ऊंची छातियां आखिर कब काम आएंगी. यही तो वह चीज है, जिस के हमेशा से सब दीवाने हैं.

रेशमा के दिमाग में फौरन एक प्लान ने जन्म लिया. उस ने टाइट टीशर्ट पहनी और स्कूल गई. स्कूल छूटने के बाद उस ने कुछ अमीर लड़को के सामने ऐसी अंगड़ाई भरी कि वे उस की तरफ देखने को मजबूर हो गए.

उन अमीर लड़कों में रिजवान भी शामिल था, जो एक बिल्डर का बेटा था.

रेशमा थी भी कमाल की. अच्छी कदकाठी और खूबसूरत गदराए बदन की मलिका होने के साथसाथ सुर्ख गाल, गुलाबी होंठ और ऊंची उठी हुई छातियां किसी को भी अपना दीवाना बनाने के लिए काफी थीं.

जब रिजवान से रहा न गया तो वह छूटते ही बोला, ‘‘क्या बात… आप तो आज कयामत ढा रही हो.’’

रेशमा ने रिजवान की इस बात का हंस कर जवाब दिया, ‘‘आप को कोई एतराज…’’

रिजवान बोला, ‘‘हमें क्या एतराज… हम तो आप के साथ एक कौफी पीने के तलबगार हैं. अगर आप की इजाजत हो तो चलें?’’

रेशमा ने कहा, ‘‘सोच लो… मेरे साथ कौफी पीने में कहीं आप की शान कम न हो जाए.’’

‘‘हमारी शान कम नहीं होगी, बल्कि बढ़ जाएगी,’’ रिजवान ने रेशमा की तारीफ करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, तो चलो फिर कहीं चलते हैं,’’ रेशमा ने कार में बैठते हुए कहा.

रिजवान रेशमा को एक महंगे कैफे में ले गया, जहां दोनों ने प्यारभरी बातें कीं और कौफी पी कर वापस आ गए. बातों ही बातों में दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

अब वे दोनों मोबाइल पर एकदूसरे से खूब देर तक बातें करते, मिलने का वादा करते, शौपिंग करते और होटलों में खातेपीते.

रेशमा अपने हुस्न की अदाओं के बल पर रिजवान को लूट रही थी, उसे क्या मालूम था कि एक दिन वह उस के प्यार में खुद पागल हो जाएगी.

2 दिन बाद रेशमा का बर्थडे था. वह रिजवान से पूछ रही थी, ‘‘तुम मेरे बर्थडे पर क्या गिफ्ट देने वाले हो?’’

रिजवान बोला, ‘‘तुम्हें जो चाहिए मैं वह गिफ्ट दूंगा, लेकिन तुम्हें मेरी एक बात माननी पड़ेगी.’’

रेशमा बोली, ‘‘मैं तो तुम्हारी हर बात मानने को तैयार हूं, बोलो तो सही.’’

‘‘मैं तुम्हारा बर्थडे तुम्हारे साथ अकेले किसी तनहा जगह पर मनाना चाहता हूं,’’ रिजवान ने मन की बात कही.

‘‘तो इस में इतना घबराने की क्या बात है. आप मु झे जहां ले चलोगे, मैं तैयार रहूंगी,’’ रेशमा ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

रेशमा के बर्थडे पर रिजवान ने एक आलीशान होटल में कमरा बुक किया और उसे अच्छी तरह सजवा दिया. इस के बाद रिजवान ने रेशमा को फोन किया और उसे बताए हुए पते पर आने को कहा.

कुछ ही देर में रेशमा वहां आ गई. रिजवान ने उसे अपनी गाड़ी में बैठाया और कुछ ही देर में वे दोनों उस होटल के कमरे में पहुंच गए, जो रिजवान ने पहले ही बुक किया हुआ था.

रेशमा जब उस कमरे में पहुंची तो वहां की सजावट देख कर वह दंग रह गई. रिजवान ने एक खूबसूरत और कीमती केक का इंतजाम पहले ही कर रखा था, जिसे देख कर रेशमा खुशी के मारे पागल हो गई.

तभी रेशमा बोली, ‘‘चलो, केक काटते हैं, मु झे घर भी जाना है.’’

‘‘केक काटने से पहले तुम्हें मेरी एक हसरत पूरी करनी पड़ेगी,’’ रिजवान ने कहा.

‘‘कैसी हसरत, मैं सम झी नहीं? और हां, मेरा गिफ्ट कहां है?’’ रेशमा ने पूछा.

रिजवान ने एक महंगा मोबाइल रेशमा को दिखाते हुए कहा, ‘‘यह है गिफ्ट, लेकिन केक काटने के बाद ही तुम्हें मिलेगा.’’

रेशमा बोली, ‘‘तो ठीक है, मैं जल्दी से केक काट देती हूं.’’

‘‘लेकिन केक काटने से पहले तुम्हें मेरी हसरत पूरी करनी पड़ेगी,’’ रिजवान ने दोबारा कहा.

‘‘अच्छा, बताओ कि तुम क्या चाहते हो?’’ रेशमा ने पूछा.

रिजवान ने एक गिफ्ट रेशमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पहले तुम इसे पहन कर दिखाओ.’’

रेशमा बोली, ‘‘अरे, इस में ऐसा क्या है, जो तुम इतने उतावले हो रहे हो?’’

रेशमा ने जैसे ही वह गिफ्ट खोला, तो उस में एक गुलाबी रंग की खूबसूरत नाइटी देख कर वह खुशी से झूम उठी और बोली, ‘‘इसे देते हुए तुम इतना घबरा क्यों रहे थे… मैं अभी इसे पहन कर आती हूं.’’

रिजवान बोला, ‘‘तुम्हें यह मेरे सामने ही पहननी पड़ेगी.’’

‘‘अरे बाबा नहीं, मु झे शर्म आती है. भला मैं अभी तुम्हारे सामने अपने कपड़े कैसे उतार सकती हूं,’’ रेशमा बोली.

रिजवान ने रूठते हुए कहा, ‘‘बस, यही प्यार है तुम्हारा… तुम मेरे सामने इसे नहीं पहन सकती…’’

रेशमा बोली, ‘‘ठीक है, नाराज मत होना. बस, तुम लाइट बंद कर दो.’’

रिजवान ने फौरन लाइट बंद कर दी.

लाइट बंद होते ही रेशमा ने अपने कपड़े उतारे. जैसे ही उस के बदन से कपड़े हटे, उस का गोरा
बदन उस अंधेरे में रोशनी की तरह चमक उठा.

रिजवान रेशमा के गोरे बदन की झलक देख कर रोमांटिक हो उठा. तभी रेशमा बोली, ‘‘लाइट जला दो, पर नाइट बल्ब.’’

लाल रंग की धीमी लाइट में भी रेशमा का गदराया बदन कयामत ढा रहा था.

उस की ऊंची उठी छातियां नाइटी से बाहर निकलने के लिए बेताब हो रही थीं.

तभी रेशमा बोली, ‘‘जल्दी से केक काटते हैं, वरना देर हो जाएगी.’’ रिजवान बोला, ‘‘ठीक है.’’

रेशमा ने केक काटा. रिजवान ने उसे बर्थडे विश किया और अपने हाथ से केक खिलाने लगा.

रेशमा ने जैसे ही रिजवान को अपने हाथ से केक खिलाया, उस ने उस की नाजुक उंगलियां प्यार से चूम लीं.

रेशमा शरमाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो.’’

रिजवान ने रेशमा को अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘मैं कितना खुशनसीब हूं, जो तुम्हारे इस गदराए बदन को छू पा रहा हूं.’’

रेशमा रिजवान की कैद से आजाद होने की झूठी कोशिश करते हुए बोली, ‘‘बस करो, मु झे छोड़ो.’’

पर रिजवान ने फौरन अपने होंठ रेशमा की गरदन पर रख दिए और चूमने लगा.

रेशमा कसमसाने लगी. तभी रिजवान उस की उठी हुई छातियों को बेतहाशा चूमने लगा.

कुछ ही देर में रेशमा पूरी तरह कामुक हो उठी और रिजवान को अपने ऊपर खींचने लगी.

रिजवान सम झ गया कि लोहा गरम है, बस अब चोट करने की जरूरत है. वह उसे बिस्तर पर ले गया और फिर दोनों की गरम सांसें और कामुक आवाजें कमरे में गूंजने लगीं. फिर वे निढाल हो कर बिस्तर पर ही पड़े रहे.

कुछ देर बाद वे दोनों उठे और अपनेअपने कपड़े पहन कर घर की ओर चल दिए.

रेशमा जैसे ही घर पहुंची, उस के अब्बा ने पूछा, ‘‘कहां थी इतनी रात तक?’’

रेशमा बोली, ‘‘अब्बा, 2 दिन बाद इम्तिहान हैं. उसी की तैयारी के लिए अपनी एक दोस्त के घर पढ़ाई कर
रही थी.’’

इधर रेशमा के अब्बा ने सब सच मान लिया, उधर रिजवान और रेशमा के बीच एक बार जिस्मानी रिश्ते बने तो फिर बनते ही चले गए. उन दोनों को जब भी मौका मिलता, तब वे अपनी जिस्मानी ख्वाहिश किसी होटल में जा कर पूरी कर लेते.

एक दिन रेशमा को पता चला कि उस की कोख में रिजवान का बच्चा पल रहा है. फिर क्या था, रेशमा ने रिजवान से शादी करने की जिद शुरू कर दी.

रिजवान एक अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद था, भला वह रेशमा से शादी कैसे कर सकता था. वह तो बस उस के बदन के मजे लूटने के इरादे से उस पर पैसा खर्च कर रहा था और प्यार का नाटक कर के उसे अपने जाल में फंसाए रखना चाहता था.

वैसे तो रेशमा भी पहले अपने खूबसूरत जिस्म और ऊंची उठी छातियों से रिजवान से पैसा लूटना चाहती थी, पर जब वे दोनों मिलने लगे, तो रेशमा रिजवान से प्यार भी करने लगी.

कई महीनों तक रेशमा के जिस्म के मजे लूटने के बाद अब रिजवान का मन उस से ऊब गया था और उस ने उस से मिलनाजुलना भी कम कर दिया था. रेशमा के पेट से होने की खबर सुन कर वह हमेशा के लिए उस से छुटकारा पा लेना चाहता था.

इस के लिए रिजवान ने एक ऐसा प्लान बना डाला, जिस ने रेशमा की जिंदगी तबाह कर दी.

हुआ यों था कि एक रात रिजवान ने रेशमा से बहुत प्यारीप्यारी बातें कीं और उसे कुर्ला में कोहिनूर बिल्डिंग के सामने बन रही नई बिल्डिंग में मिलने के लिए बुलाया.

उस नई बनने वाली बिल्डिंग की छत पर रिजवान ने रेशमा को देखते ही अपने गले से लगाया और उसके होंठों को चूमते हुए एकएक कर के उस के कपड़े उतारने लगा.

जब रेशमा बिना कपड़ों के हो गई, तो वहां पहले से ही मौजूद रिजवान के 2 दोस्त उस्मान और फरमान भी अचानक रेशमा के सामने आ गए.

रेशमा उन्हें देखते हुए अपने बदन को छिपाने की कोशिश करने लगी.

लेकिन तभी फरमान बोला, ‘‘क्या बात भाभी, रिजवान को ही मजे देती रहोगी या फिर कुछ मजा अपने इन देवरों के लिए भी बचा कर रखोगी.’’

रेशमा घबराते हुए बोली, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो… तुम्हे शर्म नहीं आती…’’

‘‘भाभी, आप को कौन सी शर्म आती है… देर रात इस सुनसान बिल्डिंग की छत पर आप बेशर्मी का ही काम कर रही हो न. कुछ मजे हमें भी लूटने दो,’’ कहते हुए उन दोनों ने रेशमा को अपनी बांहों में भर लिया.

रिजवान चुपचाप खड़ा यह तमाशा देख रहा था, तो रेशमा उस से बोली, ‘‘मु झे अपने इन बेशर्म दोस्तों
से बचाओ.’’

लेकिन रिजवान ने कहा, ‘‘रेशमा डार्लिंग, कुछ मजे इन्हें भी लेने दो. ये बेचारे भी तुम्हारे इस मखमली जिस्म के दीवाने हैं.’’

रेशमा चिल्लाई, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती… मैं तुम्हारी होने वाली बीवी हूं और मेरे पेट में तुम्हारा होने वाला बच्चा पल रहा है.’’

रिजवान ने कहा, ‘‘यह सब तुम्हारी उसी धमकी का तो नतीजा है कि आज मेरे दोस्त तुम्हारे इस खूबसूरत बदन को नोंचने वाले हैं.’’

कुछ ही देर में उस्मान और फरमान रेशमा पर टूट पड़े. वह चीखतीचिल्लाती रही, पर उस सुनसान बिल्डिंग में उस की चीखें सुनने वाला कोई मौजूद न था.

उन दोनों ने रेशमा के गदराए बदन को भूखे कुत्ते की तरह नोंचना शुरू कर दिया और उस का रेप करने के बाद मार डाला. फिर उस के मोबाइल से सिमकार्ड निकाल कर अपनेअपने रास्ते चले गए.

उधर रेशमा जब देर रात बाद भी घर न पहुंची, तो उस के अब्बा को उस की चिंता सताने लगी. सुबह होते ही उन्होंने गोवंडी पुलिस स्टेशन में रेशमा की गुमशुदगी की जानकारी दी.

पुलिस ने कई जगह नाकाबंदी कर के रेशमा की तलाश जारी रखी, पर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

रेशमा के अब्बा का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

कुछ दिन बाद पुलिस को खबर लगी कि कोहिनूर सिटी में नई बन रही एक बिल्डिंग में एक लड़की की लाश मिली है. लाश की हालत इस तरह खराब हो चुकी थी कि किसी के लिए उसे पहचानना आसान नहीं था.

पुलिस ने लाश को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम की लिए भेज दिया और कातिल का सुराग ढूंढ़ने में वहां का अच्छी तरह मुआयना करने लगी. काफी मशक्कत के बाद वहां एक टूटा हुआ सिमकार्ड मिल गया.

उस सिमकार्ड से पुलिस को यह पता चल गया कि यह सिमकार्ड रेशमा नाम की एक लड़की का है, जो गोवंडी में रहती है. यह भी पता चल गया कि 8 दिन पहले रेशमा नाम की एक लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई गई थी.

पुलिस को अब यह सम झते देर न लगी कि यह लाश रेशमा की है. पुलिस ने अपनी जांच तेज कर दी और सिमकार्ड से पता चल गया कि आखिरी फोन रिजवान को किया गया था.

पुलिस सम झ गई कि अब इस जांच को आगे बढ़ाने में रिजवान ही काम आएगा.

तब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई, जिस से यह पता चल गया कि हत्या से पहले रेशमा के साथ कई लोगों ने रेप किया था और बाद में गला घोंट कर उस की हत्या कर दी गई.

पुलिस को हैरानी तब हुई जब उसे यह पता चला कि रेशमा के पेट में 3 महीना का बच्चा भी पल रहा था.

यह बात पुलिस को हजम नहीं हो रही थी कि रेशमा के साथ रेप कर के उसे मार दिया गया तो वह 3 महीने के पेट से कैसे हो गई, जबकि अभी तक उस की शादी भी नहीं हुई थी.

अब पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाते हुए रिजवान के फोन की डिटेल निकाली और जब रेशमा की हत्या हुई उस समय की उस की लोकेशन का पता किया. पुलिस को रिजवान की लोकेशन उसी बिल्डिंग की मिली, जहां रेशमा की हत्या की गई थी. यह भी पता चल गया कि रेशमा अकसर रिजवान से फोन पर बात करती रहती थी.

पुलिस को अब यह सम झते देर न लगी कि रेशमा के पेट में रिजवान का ही बच्चा था और उस की हत्या को भी इसी ने अंजाम दिया है.

अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वे और कौन लोग थे, जिन्होंने इस हत्या को रिजवान के साथ मिल
कर अंजाम दिया और उस के साथ रेप किया.

पुलिस ने रिजवान को अपनी हिरासत में ले लिया और उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी, तो पहले यह पता चल गया कि इस हत्या में उस्मान और फरमान उस के भागीदार थे, जिन्होंने रेशमा की हत्या करने से पहले उस के साथ रेप किया था.

पुलिस की एक टीम ने कुर्ला के भारतीय नगर इलाके से उस्मान को गिरफ्तार कर लिया, पर फरमान अभी तक उन की गिरफ्त में नहीं आ पाया.

पुलिस ने जब रिजवान से हत्या की सख्ती से पूछताछ की तो रिजवान ने जो कहानी उन्हें सुनाई, उस ने सब के रोंगटे खड़े कर दिए.

रिजवान ने पुलिस को बताया कि रेशमा ने अपने हुस्न की वजह से जल्द अमीर बनने का जो सपना देख कर उसे अपने प्यार के जाल में फंसाया था, वह खुद उसी जाल में फंस गई.

रिजवान ने अपने पैसे के बलबूते पर रेशमा को महंगेमहंगे गिफ्ट दे कर उस से नाजायज रिश्ता बना लिया और उस के जिस्म के मजे लेने लगा. धीरेधीरे रेशमा उस से हकीकत में प्यार कर बैठी और अपने शरीर को रिजवान के हवाले करने लगी.

इसी बीच वह पेट से हो गई और शादी की धमकी देने लगी.

रिजवान केवल रेशमा के जिस्म को भोगना चाहता था, पर जब उस ने शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया, तो मजबूर हो कर रिजवान को अपने दोस्तों की साथ मिल कर उस की हत्या की साजिश रचनी पड़ी.

इस तरह यह एक ऐसा अनोखा कत्ल हुआ, जिस ने रेशमा की जान ले ली.

फरमान अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर था.

रेशमा के अब्बा का रोरो कर बुरा हाल था. उन्हें क्या मालूम था कि उन की एकलौती बेटी की इस तरह हत्या की जाएगी.

रिजवान और उस्मान पर हत्या और रेप जैसे अपराध का मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया और फरमान की तलाश जारी थी. Crime Story In Hindi

Family Story In Hindi: बदला जमाना

Family Story In Hindi: गांव में एक पेड़ के नीचे बैठे हरिया, गोपाल, सोमनाथ और बदरी ताश खेल रहे थे. उन के बीच दारू की खाली बोतल लुढ़की पड़ी थी.

बदरी पत्ता फेंकते हुए बोला, ‘‘हरिया, इस बार तो मैं बाजी जीतूंगा.’’

इस से पहले कि हरिया कुछ बोलता, गोपाल ने कहा, ‘‘उस्ताद, वह देख तेरी मंगेतर, सामने सिर पर पानी का घड़ा उठाए…’’

नशे की हालत में सब की नजरें उधर उठीं. रमिया सिर पर पानी का घड़ा उठाए बढ़ी चली आ रही थी.

हरिया का जवान जिस्म एक मीठी आग से जलने लगा था. अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराते हुए वह रमिया के सांचे में ढले जिस्म को इस तरह देख रहा था, जैसे कोई बच्चा मिठाई को देखता है.

हरिया ने अचानक एक पत्थर का टुकड़ा उठाया. फिर… ‘धड़ाक’ की आवाज के साथ रमिया के सिर पर रखा घड़ा फूट गया और उस के कपड़े गीले हो गए.

गुस्से से बेकाबू होते हुए रमिया हरिया और उस के दोस्तों के पास पहुंची, जो उस की हालत पर ठहाके लगा रहे थे.

अचानक रमिया का दायां हाथ घूमा और ‘चटाक’ की आवाज के साथ हरिया का बायां गाल झनझना गया.

‘‘तेरी यह हिम्मत. तू… तू… मुझ पर हाथ उठाती है, अपने होने वाले पति पर… तू…’’ कहते हुए हरिया ने रमिया की बांह मरोड़ दी.

रमिया दर्द के मारे कराह उठी. आंखों में आंसू छलछला आए. अपनी बांह छुड़ाने की कोशिश में वह नाकाम रही. उस की मजबूरी पर हंसते हुए हरिया बोला, ‘‘हाथ थामा है तेरा… इतनी आसानी से यह नहीं छूटने वाला.’’

‘‘मैं तुझे अपना पति बनाऊंगी? कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है तू ने. तुझ जैसे शराबी, जुआरी से शादी करने की बजाय मैं मरना पसंद करूंगी,’’ रमिया गुस्से से बोली.

‘‘शादी तो तेरी मुझ से ही होगी. लड़कपन में ही तेरी शादी मुझ से करा दी गई थी. बस, अब तो बरात ले कर आने की बात है. तू मेरी होगी. तेरी यह जवानी मेरी बांहों में…’’ नशे में बड़बड़ा उठा हरिया.

‘‘तुझ से शादी कर के मैं अपनी जिंदगी खराब नहीं करूंगी. मेरी जूती भी तुझ से शादी नहीं करेगी.’’

बेइज्जती की आग में हरिया झुलस उठा था. अपने साथियों के बीच उस की मंगेतर कोरा जवाब दे, इस बात ने उस के गुस्से को और भड़का दिया था, ‘‘देख लेना रमिया, तेरी शादी तो मुझ से ही होगी. आज ही बापू को तेरे घर भेजता हूं. देखता हूं, कब तक बचेगी मुझ से. तेरे सारे कसबल न निकाले तो मेरा नाम हरिया नहीं… समझी?’’

‘‘हुं…’’ रमिया पैर पटकते हुए वहां से चली गई.

रमिया बनवारी लाल की एकलौती बेटी थी. पिता ने रमिया का रिश्ता बचपन में ही अपने दोस्त किशन लाल के बेटे हरिया से कर दिया था. बनवारी ने रमिया को हायर सैकेंडरी पास करवा दी थी.

उधर हरिया पढ़लिख न सका था. बुरे दोस्तों की सोहबत और बाप के लाड़दुलार ने उसे जिद्दी, आवारा व शराबी, जुआरी बना दिया था. गांव की बहूबेटियों को छेड़ना उस के लिए मामूली सी बात थी, गांव वाले कभीकभार किशन लाल को टोकते, शिकायतें करते तो वह कहता, ‘‘जवानी का जोश है न बस, शादी हो जाएगी तो वह खुद ही सुधर जाएगा.’’

पर क्या कुत्ते की दुम कभी सीधी हुई है? सभी सोचते, हरिया नहीं सुधर सकता. पर कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. सभी हरिया और उस की चांडाल चौकड़ी से डरते थे. वे सोचते कि इस से जो ब्याह करेगी, उस की तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी.

इस बात को बनवारी भी जानता था, पर अपने पैरों पर वह खुद ही कुल्हाड़ी मार चुका था. वह रमिया का बाल विवाह कर चुका था, वह भी अपने दोस्त के बेटे से. चाह कर भी वह इस रिश्ते को तोड़ नहीं सकता था.

शाम का वक्त था. किशन लाल बनवारी के पास आया. बनवारी चेहरे पर खुशामदी मुसकान लिए बोला, ‘‘कैसे आना हुआ किशन लाल?’’

‘‘बताता हूं… बताता हूं… पहले लस्सी तो पिला.’’

बनवारी समझ गया कि आज कुछ खास बात है. उस ने रमिया को लस्सी और मिठाई लाने को कहा.

‘‘यार, तुम्हारे लिए खुशखबरी है. अब तुम्हारी सारी चिंता दूर हो जाएगी,’’ पहेली सी बुझाते हुए किशन लाल के चेहरे पर एक खास चमक थी.

‘‘कैसी चिंता? मैं समझा नहीं… जरा खुल कर बताओ कि क्या बात है?’’ बनवारी जल्दीजल्दी बोला, जबकि वह समझ गया था कि किशन लाल क्या कहना चाहता है.

‘‘अरे, बुद्धू है यार तू भी… हरिया शादी के लिए मान गया है. मैं तारीख ले कर आया हूं. बेटी की जिम्मेदारियों से अब तू बेफिक्र हो जाएगा.’’

बनवारी का चेहरा बुझ गया. हरिया की हरकतों से वह अनजान नहीं था. क्या कहे, समझ ही नहीं पा रहा था. उस के बुझे चेहरे को देख कर किशन लाल बोला, ‘‘क्या बात है, तुम्हें खुशी नहीं हुई?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ बनवारी लाल धीरे से बोला, ‘‘सोच रहा था कि रमिया इस रिश्ते के लिए…’’

किशन लाल के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘रमिया की आड़ में कहीं तुम अपनी राय तो नहीं बता रहे?’’

बनवारी लाल किशन लाल की नाराजगी को भांप गया था. वह संभलते हुए बोला, ‘‘नहींनहीं, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. मैं…’’ इस से आगे वह कुछ बोलता कि रमिया एक हाथ में लस्सी का बड़ा गिलास और एक हाथ में मिठाई की प्लेट ले कर आ गई.

‘‘नमस्ते चाचाजी,’’ रमिया ने कहा.

‘‘जीती रहो बेटी, कैसी हो?’’ आवाज को मुलायम रखते हुए किशन लाल बोला.

‘‘ठीक हूं चाचाजी.’’

‘‘लो बनवारी, बिटिया भी यहीं है… अब इसी से पूछ लेते हैं कि…?’’

बनवारी लाल अचानक घबरा गया और बोला, ‘‘क्या बेटी से यह सब पूछना अच्छा लगेगा?’’

‘‘क्यों, तुम्हीं तो कह रहे थे कि पता नहीं रमिया को यह रिश्ता पसंद है या नहीं?’’ किशन लाल ने चालाकी से बनवारी लाल की बात कह दी थी.

रमिया पलभर में ही सबकुछ समझ गई. वह अपने पिता के झुके चेहरे को देखती रह गई. फिर सोचते हुए बोली, ‘‘चाचाजी, मैं जानती हूं कि मुझे बड़ों के बीच नहीं बोलना चाहिए… पर जहां मेरी जिंदगी का फैसला होने जा रहा हो, तो मेरी राय को भी जानना चाहिए.’’

किशन लाल बोला, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘चाचाजी, शादी गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं हैं और बाल विवाह तो एकदम बेवकूफी है, ढकोसला है. आप मेरी शादी अपने बेटे से करना चाहते हैं, बाल विवाह की आड़ ले कर. मैं उस शराबी, जुआरी से शादी करने की बजाय मर जाना या कुंआरी रहना ज्यादा पसंद करूंगी.’’

‘‘अरे, तू चार जमात क्या पढ़ गई, खुद को अफलातून समझने लगी है. मानता हूं कि मेरा बेटा शराबी है, जुआरी है, पर बेटी, शादी के बाद वह सुधर भी तो सकता है.’’

‘‘और अगर वह न सुधरा तो?’’ रमिया उलट कर बोली.

‘‘तो… तो…?’’ किशन लाल को कुछ न सूझा. वह बगलें झांकने लगा.

‘‘तो आप के बेटे के साथसाथ मेरी जिंदगी भी खराब हो जाएगी,’’ रमिया बोली.

‘‘पर तुम्हारा बाल विवाह हुआ है, तुम अपने बाप के घर मेरे बेटे की अमानत हो,’’ किशन लाल ने आखिरी तीर चलाया.

‘‘बाल विवाह… हुं… एक घिसापिटा रिवाज. मैं ऐसे रिवाजों को नहीं मानती,’’ रमिया गुस्से से बोली.

‘‘देख बनवारी, अपनी बेटी को समझा, वरना बहुत बुरा होगा,’’ किशन लाल ने नीचता पर उतरते हुए धमकी दे डाली.

‘‘किशन लाल, हम वादे को निभाने के लिए पुराने रीतिरिवाजों की खातिर रमिया की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं करेंगे,’’ बनवारी लाल बोला.

‘‘बनवारी,’’ किशन लाल चीख उठा, ‘‘देख लूंगा तुम दोनों को. अगर बिरादरी से मैं ने तुम्हारा हुक्कापानी बंद न करवा दिया, तो मेरा नाम किशन लाल नहीं. देख लेना, कल पंचायत बुलाऊंगा मैं. तुम ने मेरी दोस्ती देखी है, अब दुश्मनी देखना,’’ किसी भी तरह अपनी दाल न गलते देख किशन लाल नीचता पर उतर आया था.

फिर वही हुआ, जिस का बनवारी लाल को डर था. किशन लाल ने पंचायत बुलाई.

पंचायत ने अपना फैसला किशन लाल के हक में देते हुए कहा, ‘‘बनवारी लाल को अपनी बेटी रमिया की शादी हरिया से करनी होगी. अगर वह ऐसा नहीं करता तो उस का गांव में हुक्कापानी बंद. उसे अपना फैसला 24 घंटों में पंचायत को सुनाना होगा.’’

पंचायत उठ गई थी. पर बनवारी लाल का दिल बैठ गया. ठगा सा सोचता रह गया कि क्या करे और क्या न करे?

रमिया जानती थी, पंचायत का फैसला. लेकिन अभी पंचायत को उस के फैसले का पता नहीं था. पूरा गांव नींद की आगोश में डूबा था. बाहर घना अंधेरा फैला था. ऐसे में रमिया एक छोटी सी अटैची उठाए गांव से हमेशाहमेशा के लिए दूर जा रही थी. वह अपने पिता को घुटघुट कर मरते नहीं देख सकती थी. वह यह भी जानती थी कि उस के पिता कभी यह गांव नहीं?छोड़ेंगे, इसलिए उस ने गांव छोड़ कर खुद शहर जाने का फैसला कर लिया था.

जैसतैसे रमिया स्टेशन पहुंच गई. पर कहां जाए? कुछ सूझा नहीं. जैसे ही गाड़ी आई, वह सामने वाले डब्बे में चढ़ गई. वह पहले दर्जे का डब्बा था.

एक केबिन में घुस कर रमिया एक खाली सीट पर बैठ गई. अटैची उस ने एक तरफ रखी. खुली खिड़की से बाहर फैले अंधेरे को देखने लगी. गाड़ी चल पड़ी थी. गांव पीछे छूटता जा रहा था और वह अनजानी मंजिल की ओर चल पड़ी थी. पिता के बारे में सोच कर उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.

रमिया को याद आया कि जब मां मरी थी तो पिताजी बहुत रोए थे. नन्ही रमिया को सीने से लगाए वह अकसर मां की बातें करते थे. बेटी की खातिर ही उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी. आज उन्हीं पिता को वह गांव में छोड़ आई थी, अकेला और बेसहारा.

सरला देवी उसी डब्बे में सफर कर रहीं थीं. जब से रमिया गाड़ी में चढ़ी थी, वह एकटक उस की हरकतें देख रही थीं. उन की आंखों से यह छिपा नहीं था कि लड़की घर से भागी है. काफी देर सोचने के बाद उन्होंने रमिया से पूछा, ‘‘क्या बात है बेटी, तुम रो क्यों रही हो?’’

भीगी पलकें ऊपर उठीं थीं. रमिया ने सरला देवी को पहली बार देखा. चेहरे पर तेज व चमक लिए एक अधेड़ औरत उस से अपनेपन से पूछ रही थी, ‘‘घर से भागी हो क्या?’’

रमिया चुप रही. सिर झुकाए, कुछ सोचती रही.

‘‘देखो बेटी, मुझे गलत मत समझना. मेरा नाम सरला है. ‘नारी मुक्ति संगठन,’ दिल्ली की मुखिया हूं. अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो मुझे बताओ. कहीं तुम हीरोइन बनने के चक्कर में…?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो… मैं…’’ और फिर अंदर की दुखभरी कहानी आंसुओं के संग बहती चली गई. अपनी हर बात उस ने बताई.

‘‘तुम ने ठीक किया बेटी, औरत को अपनी मरजी से फैसले लेने का हक मिलना ही चाहिए. मैं तुम्हारी मदद करूंगी. क्या तुम बालिग हो?’’ सरला देवी ने पूछा.

‘‘जी हां, मैं 19वें साल में हूं.’’

‘‘देखो बेटी, तुम्हारी अभी कोई मंजिल नहीं है. तुम हायर सैकेंडरी पास हो… तुम मेरे पास रह कर कंप्यूटर वगैरह सीख सकती हो. नर्स का कोर्स भी कर सकती हो… आगे अपनी पढ़ाई भी जारी रख सकती हो.’’

सरला देवी के शब्दों ने रमिया को राहत पहुंचाई. उसे लगा कि घर से भाग कर उस ने कोई गलती नहीं की.
सरला देवी की छत्रछाया में 5 साल पंख लगा कर कब उड़ गए, पता ही नहीं चला. इस दौरान रमिया, ‘रमा’ बन चुकी थी. उस ने बीए पास कर लिया था और नर्स का कोर्स भी कर लिया था.

इस दौरान वह अपने पिता को खो चुकी थी. बनवारी लाल ने खुदकुशी कर ली थी. यह सुन कर वह बेहद दुखी हुई थी. पर समय ने उस के इन घावों पर मरहम लगा दिया था.

अब रमा सरकारी अस्पताल में नर्स का काम करती थी. उस के साथ डाक्टर थे, प्रभाकर, बेहद सुलझे हुए, सुंदर और लायक आदमी. वह रमा को चाहने लगे थे. पर अपने प्यार की बात वह होंठों तक न ला पाए थे. इस बात को रमा भी जानती थी.

एक दिन प्रभाकर ने अपनी दिल की बात रमा को कह देने का फैसला कर लिया था. वह बोले, ‘‘रमा, शाम को क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘ठीक है, आज घूमने चलेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रमा ने हौले से कहा.

शाम को डाक्टर प्रभाकर अपनी कार में रमा के साथ घूमने निकल पड़े. एक बाग में वे काफी देर तक चहलकदमी करते रहे कि अचानक प्रभाकर बोले, ‘‘रमा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

रमा एकदम चौंक उठी, ‘‘डाक्टर साहब, आप… आप क्या कह रहे हैं? कहां आप और कहां मैं… एक मामूली सी नर्स.’’

‘‘मैं किसी नर्स से नहीं, तुम से शादी की बात कर रहा हूं,’’ मुसकरा कर प्रभाकर बोले.

‘‘लेकिन… आप मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानते. मैं कौन हूं… किस जात की हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानना चाहता. तुम एक सुंदर और सुशील लड़की हो. मेरे लिए इतना ही बहुत है. हां, यह बात और है कि शायद तुम मुझे पसंद न करती हो?’’

‘‘नहीं डाक्टर साहब, आप से जो भी लड़की शादी करेगी, उस की जिंदगी तो खुशहाल हो जाएगी.’’

‘‘तो वह लड़की तुम क्यों नहीं बन जाती?’’ प्रभाकर बोले.

‘‘एक शर्त पर… आप को मेरे बारे में जानना होगा?’’ रमा ने कहा.

‘‘ठीक है आओ, होटल में चलते हैं. तुम जो बताना चाहो, वहां बता देना. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ प्रभाकर हंस कर बोले, मानो उन्हें मंजिल मिल गई हो.

होटल में रमा ने अपनी जिंदगी की किताब प्रभाकर के सामने खोल कर रख दी.

प्रभाकर चुपचाप सुनते रहे, फिर वे बोले, ‘‘बस, तुम ने बहुत अच्छा किया. लड़कपन में की गई शादी तो एक बेहूदा रिवाज है. तुम ने जो कदम उठाया, मैं उस की कद्र करता हूं.

‘‘आज जमाना बदल चुका है. पता नहीं लोग अब भी क्यों उन्हीं घिसेपिटे, मरे, सड़े सांपों को रीतिरिवाजों का नाम दे कर गले से लिपटाए हैं… तुम ने बहुत अच्छा किया रमा. अपने लिए खुद रास्ता तलाश किया.

अब तो दुनिया की कोई ताकत मुझे तुम से शादी करने से नहीं रोक सकती, क्योंकि अब तो तुम ही मेरी दुनिया हो, मेरी जिंदगी हो.’’

जब वे होटल से बाहर निकल रहे थे, तो दोनों के हाथ एकदूसरे के हाथों में थे. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: किराए की कोख – सुनीता ने कैसे दी ममता को खुशी

Hindi Family Story: पूरे महल्ले में सब से खराब माली हालत महेंद्र की ही थी. इस शहर से कोसों दूर एक गांव से 2 साल पहले ही महेंद्र अपनी बीवी सुनीता और 2 बच्चों के साथ इस जगह आ कर बसा था. वह गरीबी दूर करने के लिए गांव से शहर आया था, लेकिन यहां तो उन का खानापीना भी ठीक से नहीं हो पाता था.

महेंद्र एक फैक्टरी में काम करता था और सुनीता घर पर रह कर बच्चों की देखभाल करती थी. बड़ा बेटा 5 साल से ऊपर का हो गया था, लेकिन अभी स्कूल जाना शुरू नहीं हो पाया था.

सुनीता काफी सोचती थी कि बच्चे को किसी अगलबगल के छोटे स्कूल में पढ़ने भेजने लगे, लेकिन चाह कर भी न भेज सकती थी. जिस महल्ले में सुनीता रहती थी, उस महल्ले में सब मजदूर और कामगार लोग ही रहते थे. ठीक बगल के मकान में रहने वाली एक औरत के साथ सुनीता का उठनाबैठना था.

जब उस को सुनीता की मजबूरी पता लगी, तो उस ने सुनीता को खुद भी काम करने की सलाह दे डाली. उस ने एक घर में उस के लिए काम भी ढूंढ़ दिया.

सुनीता ने जब यह बात महेंद्र को बताई, तो वह थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन सुनीता का सोचना ठीक था, इसलिए वह कुछ कह नहीं सका. सुनीता उस औरत द्वारा बताए गए घर में काम करने जाने लगी. वह काफी बड़ा घर था. घर में केवल 2 लोग ममता और रमन पतिपत्नी ही थे, जो किसी बड़ी कंपनी में काम करते थे.

दोनों का स्वभाव सुनीता के प्रति बहुत नरम था. ममता तो आएदिन सुनीता को तनख्वाह के अलावा भी कुछ न कुछ चीजें देती ही रहती थी. रमन और ममता के पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, लेकिन घर में एक भी बच्चा नहीं था.

रविवार के दिन ममता और रमन छुट्टी पर थे. काम खत्म कर सुनीता जाने को हुई, तो ममता ने उसे बुला कर अपने पास बिठा लिया. वह सुनीता से उस के परिवार के बारे में पूछती रही. सुनीता को ममता की बातों में बड़ा अपनापन लगा, तो वह अचानक ही उस से पूछ बैठी, ‘‘जीजी, आप के कोई बच्चा नहीं हुआ क्या?’’

ममता ने मुसकरा कर सुनीता की तरफ देखा और धीरे से बोली, ‘‘नहीं, लेकिन तुम यह क्यों पूछ रही हो?’’ सुनीता ने ममता की आवाज को भांप लिया था. वह बोली, ‘‘बस जीजी, ऐसे ही पूछ रही थी. घर में कोई बच्चा न हो, तो अच्छा नहीं लगता न. शायद आप को ऐसा महसूस होता हो.’’

ममता की आंखें उसी पर टिक गई थीं. वह भी शायद इस बात को शिद्दत से महसूस कर रही थी.

ममता बोली, ‘‘तुम सही कहती हो सुनीता. मैं भी इस बात को ले कर चिंता में रहती हूं, लेकिन कर भी क्या सकती हूं? मैं मां नहीं बन सकती, ऐसा डाक्टर कहते हैं…’’

यह कहतेकहते ममता का गला भर्रा गया था. सुनीता भी आगे कुछ कहने की हिम्मत न कर सकी थी. उस के पास शायद इस बात का कोई हल नहीं था.

ममता और रमन शादी से पहले एक ही कंपनी में काम करते थे, जहां दोनों में मुहब्बत हुई और उस के बाद दोनों ने शादी कर ली. कई साल तक दोनों ने बच्चा पैदा नहीं होने दिया, लेकिन बाद में ममता मां बनने के काबिल ही न रही. इस बात को ले कर दोनों परेशान थे.

सुनीता को ममता के घर काम करते हुए काफी दिन हो गए थे. ममता का मन जब भी होता, वह सुनीता को अपने पास बिठा कर बातें कर लेती थी. पर अब सुनीता ममता से बच्चा न होने या होने को ले कर कोई बात नहीं करती थी. दिन ऐसे ही गुजर रहे थे. एक दिन ममता ने सुनीता को आवाज दी और उसे साथ ले कर अपने कमरे में पहुंच गई. उस ने सुनीता को अपने पास ही बिठा लिया.

सुनीता अपनी मालकिन ममता के बराबर में बैठने से हिचकती थी, लेकिन ममता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बिठा ही लिया.

ममता ने सुनीता का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, ‘‘सुनीता, तुम से एक काम आ पड़ा है, अगर तुम कर सको तो कहूं?’’

ममता के लिए सुनीता के दिल में बहुत इज्जत थी, भला वह उस के किसी काम के लिए क्यों मना कर देती. वह बोली, ‘‘जीजी, कैसी बात करती हो? आप कहो तो सही, न करूं तो कहना.’’

ममता ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘सुनीता, डाक्टर कहता है कि मैं मां तो बन सकती हूं, लेकिन इस के लिए मुझे किसी दूसरी औरत का सहारा लेना पड़ेगा… अगर तुम चाहो, तो इस काम में मेरी मदद कर सकती हो.’’

ममता की बात सुन कर सुनीता का मुंह खुला का खुला रह गया. उस को यकीन न होता था कि ममता उस से इतने बड़े व्यभिचार के बारे में कह सकती है.

सुनीता साफ मना करते हुए बोली, ‘‘जीजी, मैं बेशक गरीब हूं, लेकिन अपने पति के होते किसी मर्द की परछाईं तक को न छुऊंगी. आप इस काम के लिए किसी और को देख लो.’’

ममता हैरत से बोली, ‘‘अरे बावली, तुम से पराया मर्द छूने को कौन कहता है… यह सब वैसा नहीं है, जैसा तुम सोच रही हो. इस में सिर्फ लेडी डाक्टर के अलावा तुम्हें कोई नहीं छुएगा. यह समझो कि तुम सिर्फ अपनी कोख में बच्चे को पालोगी, जबकि सबकुछ मैं और मेरे पति करेंगे.’’

सुनीता की समझ में कुछ न आया था. सोचा कि भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आदमी औरत को छुए भी नहीं और वह मां बन जाए.

सुनीता को हैरान देख कर ममता बोल पड़ी, ‘‘क्या सोच रही हो सुनीता? तुम चाहो तो मैं सीधे डाक्टर से भी बात करा सकती हूं. जब तुम पूरी तरह संतुष्ट हो जाओ, तब ही तैयार होना.’’

सुनीता हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘जीजी, मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूं… अगर मैं तैयार हो भी जाऊं, तो मेरे पति इस बात के लिए नहीं मानेंगे.’’

ममता हार नहीं मानना चाहती थी. आखिर उस के मन में न जाने कब से मां बनने की चाहत पल रही थी. वह बोली, ‘‘तुम इस बात की चिंता बिलकुल मत करो. मैं खुद घर आ कर तुम्हारे पति से बात करूंगी और इस काम के लिए तुम्हें इतना पैसा दूंगी कि तुम 2 साल भी काम करोगी, तब भी कमा नहीं पाओगी.’’ सुनीता यह सब तो नहीं चाहती थी, लेकिन ममता से मना करने का मन भी नहीं हो रहा था.

काम से लौटने के बाद सुनीता ने अपने पति से सारी बात कह दी. महेंद्र इस बात को सिरे से खारिज करता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं है इन लोगों की बातों में आने की. कल से काम पर भी मत जाना ऐसे लोगों के यहां. ये अमीर लोग होते ही ऐसे हैं.

‘‘मैं तो पहले ही तुम्हें मना करने वाला था, लेकिन तुम ने जिद की तो कुछ न कह सका.’’

सुनीता को ऐसा नहीं लगता था कि ममता दूसरे अमीर लोगों की तरह है. वह उस के स्वभाव को पहले भी परख चुकी थी. वह बोली, ‘‘नहीं, मैं यह बात नहीं मान सकती. ऐसी मालकिन मिलना आज के समय में बहुत मुश्किल काम है. आप उन को सब लोगों की लाइन में खड़ा मत करो.’’ महेंद्र कुछ कहता, उस से पहले ही कमरे के दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई, फिर दरवाजा बजाया गया.

सुनीता को ममता के आने का एहसास था. उस ने झट से उठ कर दरवाजा खोला, तो देखा कि सामने ममता खड़ी थी.

सुनीता के हाथपैर फूल गए, खुशी के मारे मुंह से बात न निकली, वह अभी पागलों की तरह ममता को देख ही रही थी कि ममता मुसकराते हुए बोल पड़ी, ‘‘अंदर नहीं बुलाओगी सुनीता?’’ सुनीता तो जैसे नींद से जागी थी.

वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘हांहां जीजी, आओ…’’ यह कहते हुए वह दरवाजे से एक तरफ हटी और महेंद्र से बोली, ‘‘देखोजी, अपने घर आज कौन आया है… ये जीजी हैं, जिन के घर पर मैं काम करने जाती हूं.’’

महेंद्र ने ममता को पहले कभी देखा तो नहीं था, लेकिन अमीर पहनावे और शक्लसूरत को देख कर उसे समझते देर न लगी. उस ने ममता से दुआसलाम की और उठ कर बाहर चल दिया.

ममता ने उसे जाते देखा, तो बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप कहां चल दिए? क्या मेरा आना आप को अच्छा नहीं लगा?’’

महेंद्र यह बात सुन कर हड़बड़ा गया. वह बोला, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो इसलिए जा रहा था कि आप दोनों आराम से बात कर सको.’’

ममता हंसते हुए बोली, ‘‘लेकिन भैया, मैं तो आप से ही बात करने आई हूं. आप भी हमारे साथ बैठो न.’’

महेंद्र न चाहते हुए भी बैठ गया. ममता का इतना मीठा लहजा देख वह उस का मुरीद हो गया था. उस के दिमाग में अमीरों को ले कर जो सोच थी, वह जाती रही.

सुनीता सामने खड़ी ममता को वहीं बिछी एक चारपाई पर बैठने का इशारा करते हुए बोली, ‘‘जीजी, मेरे घर में तो आप को बिठाने के लिए ठीक जगह भी नहीं, आप को आज इस चारपाई पर ही बैठना पड़ेगा.’’

ममता मुसकराते हुए बोली, ‘‘सुनीता, प्यार और आदर से बड़ा कोई सम्मान नहीं होता, फिर क्या चारपाई और क्या बैड. आज तो मैं तुम्हारे साथ जमीन पर ही बैठूंगी.’’

इतना कह कर ममता जमीन पर पड़ी एक टाट की बोरी पर ही बैठ गई.

सुनीता ने लाख कहा, लेकिन ममता चारपाई पर न बैठी. हार मान कर सुनीता और महेंद्र भी जमीन पर ही बैठ गए. सुनीता ने नजर तिरछी कर महेंद्र को देखा, फिर इशारों में बोली, ‘‘देख लो, तुम कहते थे कि हर अमीर एकजैसा होता है. अब देख लिया.’’

महेंद्र से आदमी पहचानने में गलती हुई थी. तभी ममता अचानक बोल पड़ी, ‘‘सुनीता, क्या तुम मुझे चाय नहीं पिलाओगी अपने घर की?’’

सुनीता के साथसाथ महेंद्र भी खुश हो गया. एक करोड़पति औरत गरीब के घर आ कर जमीन पर बैठ चाय पिलाने की गुजारिश कर रही थी.

सुनीता तो यह सोच कर चाय न बनाती थी कि ममता उस के घर की चाय पीना नहीं चाहेंगी. जब खुद ममता ने कहा, तो वह खुशी से पागल हो उठी, महेंद्र और सुनीता की इस वक्त ऐसी हालत थी कि ममता इन दोनों से इन की जान भी मांग लेती, तो भी ये लोग मना न करते.

चाय बनी, तो सब लोग चाय पीने लगे. इतने में सुनीता का छोटा बेटा जाग गया. ममता ने उसे देखा तो खुशी से गोद में उठा लिया और उस से बातें करने में मशगूल हो गई.

महेंद्र और सुनीता यह सब देख कर बावले हुए जा रहे थे. उन्हें ममता में एक अमीर औरत की जगह अपने घर की कोई औरत नजर आ रही थी.

थोड़ी देर बाद ममता ने बच्चे को सुनीता के हाथों में दे दिया और महेंद्र की तरफ देख कर बोली, ‘‘भैया, मैं कुछ बात करने आई थी आप से. वैसे, सुनीता ने आप को सबकुछ बता दिया होगा.

‘‘भैया, मैं आप को यकीन दिलाती हूं कि सुनीता को सिर्फ लेडी डाक्टर के अलावा कोई और नहीं छुएगा. यह इस तरह होगा, जैसे कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है और बच्चे अंडों से निकल कर फिर से कोयल के हो जाते हैं, अगर आप…’’

महेंद्र ममता की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा, ‘‘बहनजी, आप जैसा ठीक समझें वैसा करें. जब सुनीता को आप अपना समझती हैं, तो फिर मुझे किसी बात से कोई डर नहीं. इस का बुरा थोड़े ही न सोचेंगी आप.’’

ममता खुशी से उछल पड़ी. सुनीता महेंद्र को मुंह फाड़े देखे जा रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि महेंद्र इतनी जल्दी हां कह सकता है. लेकिन महेंद्र तो इस वक्त किसी और ही फिजा में घूम रहा था. कोई करोड़पति औरत उस के घर आ कर झोली फैला कर उस से कुछ मांग रही थी, फिर भला वह कैसे मना कर देता.

ममता हाथ जोड़ कर महेंद्र से बोली, ‘‘भैया, मैं आप का यह एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी,’’ यह कहते हुए ममता ने अपने मिनी बैग से नोटों की एक बड़ी सी गड्डी निकाल कर सुनीता के हाथों में पकड़ा दी और बोली, ‘‘सुनीता, ये पैसे रख लो. अभी और दूंगी. जो इस वक्त मेरे पास थे, वे मैं ले आई.’’

सुनीता ने हाथ में पकड़े नोटों की तरफ देखा और फिर महेंद्र की तरफ देखा. महेंद्र पहले से ही सुनीता के हाथ में रखे नोटों को देख रहा था.

आज से पहले इन दोनों ने कभी इतने रुपए नहीं देखे थे, लेकिन महेंद्र कम से कम ममता से रुपए नहीं लेना चाहता था, वह बोला, ‘‘बहनजी, ये रुपए हम लोग नहीं ले सकते. जब आप हमें इतना मानती हैं, तो ये रुपए किस बात के लिए?’’

ममता ने सधा हुआ जवाब दिया, ‘‘नहीं भैया, ये तो आप को लेने ही पड़ेंगे. भला कोई और यह काम करता, तो वह भी तो रुपए लेता, फिर आप को क्यों न दूं?

‘‘और ये रुपए दे कर मैं कोई एहसान थोड़े ही न कर रही हूं.’’

इस के बाद ममता वहां से चली गई. महेंद्र ने ममता के जाने के बाद रुपए गिने. पूरे एक लाख रुपए थे. महेंद्र और सुनीता दोनों ही आज ममता के अच्छे बरताव से बहुत खुश थे. ऊपर से वे एक लाख रुपए भी दे गईं. ये इतने रुपए थे कि 2 साल तक दोनों काम करते, तो भी इतना पैसा जोड़ न पाते.

दोनों के अंदर आज एक नया जोश था. अब न किसी बात से एतराज था और न किसी बात पर कोई सवाल.

जल्द ही सुनीता को ममता ने डाक्टर के पास ले जा कर सारा काम निबटवा दिया. वह सुनीता के साथ उस के पति महेंद्र को भी ले गई थी, जिस से उस के मन में कोई शक न रहे.

ममता ने अब सुनीता से घर का काम कराना बंद कर दिया था. घर के काम के लिए उस ने एक दूसरी औरत को रख लिया था. सुनीता को खाने के लिए ममता ने मेवा से ले कर हर जरूरी चीज अपने पैसों से ला कर दे दी थी. साथ ही, एक लाख रुपए और भी नकद दे दिए थे.

ममता नियमित रूप से सुनीता को देखने भी आती थी. उस ने महेंद्र और सुनीता से उस के घर चल कर रहने के लिए भी कहा था, लेकिन महेंद्र ने वहां रहने के बजाय अपने घर में ही रहना ठीक समझा.

जिस समय सुनीता अपने पेट में बच्चे को महसूस करने लगी थी, तब से न जाने क्यों उसे वह अपना लगने लगा था. वह उसे सबकुछ जानते हुए भी अपना मान बैठी थी.

जब बच्चा होने को था, तब एक हफ्ता पहले ही सुनीता को अस्पताल में भरती करा दिया गया था. जिस दिन बच्चा हुआ, उस दिन तो ममता सुनीता को छोड़ कर कहीं गई ही न थी. सुनीता को बेटा हुआ था.

ममता ने सुनीता को खुशी से चूम लिया था. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन सुनीता को मन में अजीब सा लग रहा था. उस का मन उस बच्चे को अपना मान रहा था.

अस्पताल से निकलने के बाद ममता ने सुनीता को कुछ दिन अपने पास भी रखा था. उस के बाद उस ने सुनीता को और 50 हजार रुपए भी दिए. सुनीता अपने घर आ गई, लेकिन उस का मन न लगता था. जो बच्चा उस ने अपनी कोख में 9 महीने रखा, आज वह किसी और का हो चुका था. पैसा तो मिला था, लेकिन बच्चा चला गया था.

सुनीता का मन होता था कि बच्चा फिर से उस के पास आ जाए, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता था. उस की कोख किसी और के बच्चे के लिए किराए पर जो थी. Hindi Family Story

Hindi Romantic Story: क्षमादान – अदिति और रवि के बीच कैसे पैदा हुई दरार

Hindi Romantic Story: रवि 3 महीने से दीवाली पर बोनस और प्रमोशन की आस लगाए बैठा था. 2 साल की कड़ी मेहनत, कम छुट्टियां और ओवर टाइम से उस ने अपने बौस का दिल जीत लिया था. वह अपने बौस मिस्टर राकेश का फेवरेट एंप्लोई बन चुका था. उस ने सोचा था कि इस बार दीवाली पर एक महीने की लंबी छुट्टी ले कर मम्मीपापा के साथ रहेगा. मम्मी पिछले साल से ही उस की शादी की कोशिश में जुटी थीं.

अपने साथ काम करने वाले मुकेश को कई बार वह अपनी छुट्टियों की प्लानिंग बता चुका था. उस के सारे सहकर्मियों को भरोसा था कि उसे अब की बार दीवाली पर बोनस के साथसाथ प्रमोशन भी मिलेगा. मिस्टर राकेश ने प्रमोशन की लिस्ट में रवि का नाम सब से ऊपर लिखा हुआ था और उसे वे कई बार बता भी चुके थे. हालांकि हैड औफिस से फाइनल लिस्ट आनी बाकी थी.

सप्ताह का पहला दिन था. रवि अपने सहकर्मियों को गुड मौर्निंग कहता हुआ अपने कैबिन में जा रहा था, तभी चपरासी गुड्डू रवि से बोला, ‘‘रवि साहब, आप को बौस ने बुलाया है.’’

‘‘मुझे,’’ रवि के मुंह से अचानक निकला था.

पास के कैबिन में बैठा मुकेश रवि की तरफ ही देख रहा था. उस का सवाल सुन कर वह बताने लगा, ‘‘अरे रवि, तुम्हें पता चला हमारे बौस राकेश साहब की मदर की तबीयत ज्यादा खराब है. इसलिए वे छुट्टी पर चले गए हैं.’’

‘‘अच्छा, कब तक के लिए,’’ रवि के चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलक रही थी और सहानुभूति भी. परेशानी खुद की छुट्टी को ले कर थी. वह सोच रहा था कि अगर बौस छुटट्ी पर चले गए हैं तो उस की छुट्टी की कौन मंजूरी देगा और सहानुभूति अपने बौस के लिए थी.

‘‘यार, फिलहाल तो उन्होंने एक हफ्ते की ऐप्लिकेशन दी है, लेकिन कुछ नहीं कह सकते कि वे कब तक लौटेंगे,’’ मुकेश ने बताया.

रवि के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह अपनी छुट्टियां को ले कर संशय में था. अब जब उस के बौस छुट्टी पर थे, तो उसे पता नहीं ज्यादा दिन की छुट्टी मिल सकेगी या नहीं.

मुकेश ने उस के चेहरे के भावों को भांपते हुए कहा, ‘‘तू फिक्र मत कर, तुझे छुट्टी तो मिल ही जाएगी. 2 साल से लगातार हार्डवर्क जो कर रहा है तू.’’

रवि इस पर मुसकरा दिया. फिर धीमे से बोला, ‘‘फिर यह नया बौस कौन है, जो मुझे बुला रहा है?’’

‘‘कोई नई मैडम राकेश सर की जगह टैंपरेरी अपौइंट हुई हैं. सुना है मुंबई से हैं,’’ मुकेश ने बताया और बोला, ‘‘तू मिल ले जा कर, औफिस का वर्क इंट्रोड्यूस करवाने के लिए बुलवा रही होंगी तुझे.’’

‘‘चल, फिर मैं उन से मिल कर आता हूं,’’ रवि के चेहरे पर अब थोड़ी राहत झलक रही थी.

मुकेश की इस बात से उसे राहत पहुंची थी कि 2 साल से वह हार्डवर्क कर रहा था. कंपनी के पास उस की छुट्टी कैंसिल करने की कोई वजह भी नहीं थी.

ये सब सोचतेसोचते रवि बौस के रूम का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

‘‘प्लीज, मे आई कम इन मैम,’’ रवि कैबिन के दरवाजे को आधा खोल कर धीरे से बोला.

‘‘कम इन,’’ मैडम किसी फाइल को सिर झुका कर देख रही थीं.

रवि चुपचाप उन की टेबल के सामने जा कर खड़ा हो गया.

मैडम ने अचानक अपना सिर उठाया और शायद ‘सिट डाउन, प्लीज’ कहने ही वाली थीं कि रुक गईं.

रवि भी अपनी जगह बस खड़े का खड़ा ही रह गया. उसे इस बात की बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि वह उसे आज यहां अचानक इस तरह मिलेगी. वह अदिति थी. कालेज की पुरानी दोस्त नहीं, कालेज के दिनों की रवि की एकमात्र दुश्मन. दोनों ने कभी एकदूसरे से कालेज में बात भी नहीं की थी, लेकिन उन का झगड़ा फेसबुक चैटिंग पर पहले हो चुका था.

रवि का कालेज में पहला साल था. वह पढ़ाकू किस्म का लड़का था. उन दिनों वह अदिति की तरफ आकर्षित हो गया था, लेकिन उसे उस से बात करने में न जाने क्यों बहुत ज्यादा झिझक महसूस होती थी. अदिति अच्छी होस्ट होने के साथसाथ कविताएं लिखती और सुनाती भी थी. ऐसी कई बातों ने रवि को प्रभावित कर दिया था. लेकिन रवि चुप रहने वाला लड़का था. वह अदिति से बात करना तो चाहता था, पर कर नहीं पाता था.

2 सैमेस्टर पूरे होने के बाद रवि के कालेज में कुछ दिनों के लिए छुट्टियां हो गई थीं.

तभी एकाएक उसे फेसबुक जैसे माध्यम का साथ मिल गया. उस ने इंटरनैट पर फेसबुक आईडी बना ली और अदिति को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. अदिति ने उसे ऐक्सैप्ट भी कर लिया. अब जैसे रवि को नया आसमान मिल गया था, थोड़ाबहुत जो भी लिख लिया करता था, फेसबुक पर पोस्ट करता, उस के क्लासमेट्स भी अब उसे नोटिस करने लगे थे. फिर वह एकाएक अदिति को अकसर उस की कविताओं की तारीफ लिख कर भेजा करता, उस की तसवीरों पर कमैंट कर दिया करता. बदले में अदिति भी रिप्लाई करती थी.

एक दिन उस ने अदिति की एक तसवीर देखी और उस पर उसे कुछ पंक्तियां लिखने का मन हुआ. उस दिन उस ने कमैंट में अपनी वे पंक्तियां न लिख कर अदिति की उस तसवीर को डाउनलोड कर अपनी टाइमलाइन से उन पंक्तियों के साथ अपलोड कर दिया और अदिति की टाइमलाइन पर वह तसवीर टैग के जरिए भेज दी. यह सब देखते ही अदिति ने रवि को मैसेज किया ‘अपलोड करने से पहले पूछ तो लेते.’

रवि ने रिप्लाई किया, ‘जी, सौरी. आप को बुरा लगा हो तो मैं उस तसवीर को हटा देता हूं.’

रवि फेसबुक का नौसिखिया संचालक था. उसे मालूम नहीं था कि उस फोटो को पूरी तरह से हटाने के लिए उसे डिलीट के औप्शन पर जाना होगा. उस ने सामने दिख रहे ‘रिमूव’ के औप्शन से उस तसवीर को अपने प्रोफाइल से हटा लिया और सोचने लगा कि तसवीर पूरी तरह से हट चुकी है.

थोड़ी देर बाद अदिति का फिर मैसेज आया, ‘फोटो अभी तक हटा क्यों नहीं?’

रवि तो समझ रहा था कि वह हट चुका है, इसलिए रिप्लाई किया, ‘हटा तो दिया है.’

अदिति का इस बार थोड़ा तीखा रिप्लाई आया, ‘अपने मोबाइल अपलोड में देख.’

रवि ‘मोबाइल अपलोड’ नाम की बला को उस समय जानता ही नहीं था. उस ने फिर रिप्लाई किया, ‘कहां?’

‘मोबाइल अपलोड में देख,’ अदिति का रिप्लाई अब सख्त लग रहा था.

‘ओके,’ रवि ने नपातुला जवाब दिया.

उसे हलका सा धक्का लगा था. उसे अदिति के ‘अपने अपलोड में देख’ जैसे शब्दों से ठेस पहुंची थी, क्योंकि अब तक उन दोनों की बातचीत में हर जगह ‘आप देखिए’ जैसे शब्द ही शामिल थे.

रवि ने जैसेतैसे ‘मोबाइल अपलोड’ ढूंढ़ा. अब वह उस तसवीर पर गया, लेकिन वहां भी उसे डिलीट का औप्शन नहीं दिख रहा था.

तब तक अदिति का एक और तीखा रिप्लाई आ चुका था, ‘फोटो अभी तक नहीं हटा.’

फिर एक बार अदिति ने मैसेज किया, ‘मिस्टर, क्या चल रहा है यह सब?’

रवि ने रिप्लाई किया, ‘कुछ टैक्निकल प्रौब्लम आ रही है. साइबर कैफे जा कर जल्दी ही उस मनहूस फोटो को हटाता हूं.’

रवि अब थोड़ा झुंझला सा गया था. उसे अदिति का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा था.

‘मनहूस…’ इस के आगे कुछ अपशब्द थे अदिति के रिप्लाई में.

अब रवि ने सब से पहले साइबर कैफे में एक व्यक्ति से पूछ कर उस फोटो को डिलीट किया. फिर अदिति को मैसेज किया, ‘आप का वह फोटो डिलीट हो चुका है. एक बात कहूंगा कि वह मेरी गलती थी, पर आप को यों ‘तू तड़ाक’ से तो पेश नहीं आना चाहिए.’

अब बात गरमा गई थी. धीरेधीरे रिप्लाई में भयंकर झगड़ा हो गया और फिर रवि जिस एकमात्र लड़की को अपनी क्लास में पसंद करता था, उस की फेसबुक फ्रैंड लिस्ट से बाहर हो चुका था.

आखिर में रवि ने थोड़ा सोचा और एक लंबा सौरी मैसेज भेज दिया लेकिन तब तक वह अदिति की फ्रैंड लिस्ट से बाहर हो चुका था.

छुट्टियों के बाद जब कालेज खुला, तो कालेज में बातें चल रही थीं कि रवि ने अदिति को प्रपोज किया था. रवि ने चुपचाप सब सुन लिया लेकिन इस बारे में कोई रिप्लाई नहीं किया.

वह जैसे अपनी ही नजरों में गिरता जा रहा था. अदिति ने ही शायद कालेज में यह बात फैलाई थी. फेसबुक से हुई एक गलती ने उसे संजीदा छात्रों की फेहरिस्त से बाहर कर दिया था और हर ओर कुछ महीने तक उस की हंसी उड़ाई गई थी.

एक दिन क्लास में उस के पीछे की सीट पर बैठ कर अदिति ने उस के दोस्तों के साथ मिल कर अप्रत्यक्ष रूप से रवि पर कई कटाक्ष कर दिए थे. वह उस की हंसी उड़ा रही थी, पर रवि कुछ नहीं बोला. वह अब तक खुद की ही गलती मान रहा था, लेकिन उस दिन से उस

ने अदिति से नफरत करना शुरू कर दिया था. अब अदिति को भी उस ने अपनी फ्रैंडलिस्ट से हटा दिया था और एकएक कर अदिति के दोस्त भी ब्लौक होते चले गए.

फिर न उस की अदिति से सामने कभी बात हुई और न ही फेसबुक पर, आज इतने साल बाद फिर वह उस के सामने थी और अब उस की बौस थी.

दोनों लगभग 10 मिनट तक स्तब्ध हो कर एकदूसरे को देख रहे थे. अदिति ने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा, ‘‘सिट डाउन, प्लीज.’’

रवि चुपचाप बैठ गया. 5 मिनट तक कैबिन में खामोशी छाई रही. अदिति अभी फिर से अपनी फाइल में उलझ गई थी या शायद नाटक कर रही थी.

फिर नजरें उठा कर बोली, ‘‘रवि, मुझे कल तक इस औफिस की सभी जरूरी फाइलें दे दो.’’

‘‘जी मैम,’’ रवि ने धीमे से कहा. उस की नजरें झुकी हुई थीं.

‘‘ओके, आप जा सकते हैं,’’ अदिति ने कहा, इस बार उस की नजरें भी झुकी हुई थीं.

रवि कैबिन से बाहर आ गया था लेकिन अपने अतीत से नहीं.

उस रात उसे नींद नहीं आ रही थी. गुजरे हुए कल में जो हुआ था उसे तो वह नजरअंदाज कर चुका था, लेकिन अब उस से उस की वर्तमान जिंदगी प्रभावित होती दिख रही थी.

रवि को फिक्र सता रही थी कि उस की छुट्टियां अदिति अस्वीकृत न कर दे. वह लंबे समय से छुट्टियों का इंतजार कर रहा था और अब अदिति के रहते उसे छुट्टी मिलना मुश्किल लगने लगा था. उसे लग रहा था कि अदिति उस से पुरानी दुश्मनी जरूर निकालेगी.

अगले दिन वह परेशान सा औफिस पहुंचा. चपरासी ने पिछले दिन की तरह ही उसे आज फिर बताया कि बौस यानी अदिति ने उसे कैबिन में बुलाया है.

रवि वे जरूरी फाइलें ले कर कैबिन में पहुंचा, जो उसे पिछले दिन अदिति ने छांटने को कही थीं.

‘‘मे आई कम इन मैम,’’ रवि ने औपचारिकता निभाई.

‘‘यसयस,’’ अदिति ने उस की तरफ आज पहली बार मुसकरा कर देखा था. ‘‘वे फाइल्स?’’

‘‘जी मैम, ये रहीं,’’ रवि ने फाइलों का एक ढेर अदिति की टेबल पर रख दिया.

‘‘आप को एक महीने की छुट्टी चाहिए?’’ अदिति तीखी मुसकराहट के साथ कह रही थी.

‘‘जी मैम,’’ रवि सिर नीचे किए हुए था.

‘‘इस वक्त औफिस में राकेशजी नहीं हैं, तो आप को इतनी लंबी छुट्टी

मिलना तो मुश्किल है,’’ अदिति रवि की तरफ अब गंभीरता से देखते हुए कह रही थी.

‘‘ओके, मैम. आप जैसा कहें,’’ रवि ने हलका सा सिर उठा कर कहा.

‘‘रविजी, आप हमारी कंपनी के बैस्ट एंप्लोई हैं,’’ अदिति इतना कहते हुए रुकी और फिर एक कागज हाथ में उठा कर बोली, ‘‘और आप की छुट्टी मैं भी आप से नहीं छीन सकती.’’

अदिति मुसकरा रही थी. अब रवि ने वह कागज अदिति मैम के हाथ से ले लिया और उसे पढ़ कर अब वह भी मुसकरा उठा, ‘‘थैंक्यू मैम,’’ रवि ने खुश होते हुए कहा. रवि की आंखों में कृतज्ञता झलक रही थी.

‘‘इट्स ओके रवि,’’ अदिति अब गंभीर मुद्रा में कह रही थी

कैबिन में कुछ लमहों तक खामोशी छा गई थी. अदिति ने उस खामोशी को तोड़ा, ‘‘रवि, ये ‘इट्स ओके’ तुम्हारे उस 10 साल पहले के सौरी के लिए है, जो तुम ने फेसबुक पर मैसेज किया था.’’

रवि चुपचाप खड़ा हो गया था. फिर कुछ देर बाद बोला, ‘‘दरअसल, वह मेरी नासमझी थी. मैं ने फेसबुक माध्यम को समझने में ही गलती कर दी थी. मुझे नहीं मालूम था कि किसी की तसवीर बिना पूछे अपलोड कर देना गलत है.’’

‘‘आई एम आलसो सौरी,’’ अदिति कह रही थी.

‘‘किसलिए मैम,’’ रवि जैसे अब सारी नफरत भुला चुका था.

‘‘गलती मेरी भी थी. मैं जरूरत से ज्यादा ही तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार कर रही थी. मुझे वह प्रपोज वाली बात भी नहीं उड़ानी चाहिए थी,’’ अदिति की आंखों में भी जैसे कुछ पिघल रहा था, ‘‘मैं ने तुम्हें गलत समझा था.’’

‘‘इट्स ओके मैम,’’ रवि इतना कह कर चुप हो गया था.

अदिति ने फिर चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैं चाहती तो तुम से बदला लेती. तुम्हारी छुट्टियां कैंसिल कर देती. एक बार मैं ने सोचा भी, पर…’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अदिति जैसे कोई सटीक बात ढूंढ़ कर बोली, ‘‘कल को हो सकता है तुम मेरी जगह हो और मैं तुम्हारी जगह. इस तरह नफरत से जिंदगी नहीं जी जाती.’’

कुछ देर तक फिर खामोशी छाई रही और अदिति ने फिर कहा, ‘‘उम्मीद है, तुम ने मुझे माफ कर दिया होगा.’’

‘‘औफकोर्स मैम,’’ रवि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तो कल से तुम छुट्टी पर हो,’’ अदिति ने मुसकराते हुए रवि से पूछा.

‘‘जी मैम,’’ रवि ने भी हंस कर जवाब दिया.

‘‘ओके, ऐंजौय यौर्स हौलीडेज. तुम जा सकते हो,’’ अदिति इतना कह कर आंख बंद कर अपनी कुरसी पर पीठ टेक कर बैठ गई जैसे कोई भारी बोझ कंधे से उतार दिया हो.

रवि जब बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोल रहा था, तब मुसकराते हुए अदिति ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रवि, हैप्पी दीवाली.’’

रवि भी मुसकरा दिया और बोला, ‘‘आप को भी, अदिति मैम.’’

इतना कहते हुए रवि मुसकराता हुआ बाहर आ गया. उन दोनों के बीच खड़ी कई साल पुरानी दीवारें अचानक ढह गई थीं. जिंदगी खुशियां बांट कर, उन का कारण बन कर चलती है, नफरतें पाल कर नहीं.

दीवाली के इस अवसर पर क्षमादान के दीपकों की जलती हुई लौ में रवि और अदिति के दिलों में नफरतों से भरे कुछ अंधेरे कोने रोशन हो चुके थे. Hindi Romantic Story

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