जब चढ़ा प्यार का नशा : नाजायज संबंधों की राह

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी के भलस्वा गांव के रहने वाले सोहताश की बेटी की शादी थी. उन के यहां शादी में एक रस्म के अनुसार, लड़की की मां को सुबहसुबह कई घरों से पानी लाना होता है. रस्म के अनुसार पानी लाने के लिए सोहताश की पत्नी कुसुम सुबह साढ़े 5 बजे के करीब घर से निकलीं. यह 20 जून, 2017 की बात है.

पानी लेने के लिए कुसुम पड़ोस में रहने वाली नारायणी देवी के यहां पहुंचीं. नारायणी देवी उन की रिश्तेदार भी थीं. नारायणी के घर का दरवाजा खुला था, इसलिए वह उस की बहू मीनाक्षी को आवाज देते हुए सीधे अंदर चली गईं. वह जैसे ही ड्राइंगरूम में पहुंची, उन्हें नारायणी का 40 साल का बेटा अनूप फर्श पर पड़ा दिखाई दिया. उस का गला कटा हुआ था. फर्श पर खून फैला था. वहीं बैड पर नारायणी लेटी थी, उस का भी गला कटा हुआ था.

दोनों को उस हालत में देख कर कुसुम पानी लेना भूल कर चीखती हुई घर से बाहर आ गईं, उस की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए. उस ने आंखों देखी बात उन्हें बताई तो कुछ लोग नारायणी के घर के अंदर पहुंचे. नारायणी और उस का बेटा अनूप लहूलुहान हालत में पड़े मिले.

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अनूप की पत्नी मीनाक्षी, उस की 17 साल की बेटी कनिका, 15 साल का बेटा रजत बैडरूम में बेहोश पड़े थे. दूसरे कमरे में नारायणी की छोटी बहू अंजू और उस की 12 साल की बेटी भी बेहोश पड़ी थी. नारायणी का छोटा बेटा राज सिंह बालकनी में बिछे पलंग पर बेहोश पड़ा था.

मामला गंभीर था, इसलिए पहले तो घटना की सूचना पुलिस को दी गई. उस के बाद सभी को जहांगीरपुरी में ही स्थित बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया. सूचना मिलते ही एएसआई अंशु एक सिपाही के साथ मौके पर पहुंच गए थे. वहां उन्हें पता चला कि सभी को बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया है तो सिपाही को वहां छोड़ कर वह अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों से बात करने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी थानाप्रभारी महावीर सिंह को दे दी.

घटना की सूचना डीसीपी मिलिंद डुंबरे को दे कर थानाप्रभारी महावीर सिंह भी घटनास्थल पर जा पहुंचे. उस इलाके के एसीपी प्रशांत गौतम उस दिन छुट्टी पर थे, इसलिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे के निर्देश पर मौडल टाउन इलाके के एसीपी हुकमाराम घटनास्थल पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया गया था. पुलिस ने अनूप के घर का निरीक्षण किया तो वहां पर खून के धब्बों के अलावा कुछ नहीं मिला. घर का सारा सामान अपनीअपनी जगह व्यवस्थित रखा था, जिस से लूट की संभावना नजर नहीं आ रही थी.

कुसुम ने पुलिस को बताया कि जब वह अनूप के यहां गई तो दरवाजे खुले थे. पुलिस ने दरवाजों को चैक किया तो ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से लगता कि घर में कोई जबरदस्ती घुसा हो. घटनास्थल का निरीक्षण कर पुलिस अधिकारी जगजीवनराम अस्पताल पहुंचे. डाक्टरों ने बताया कि अनूप और उस की मां के गले किसी तेजधार वाले हथियार से काटे गए थे. इस के बावजूद उन की सांसें चल रही थीं. परिवार के बाकी लोग बेहोश थे, जिन में से 2-3 लोगों की हालत ठीक नहीं थी.

कनिका, रजत और राज सिंह की बेटी की हालत सामान्य हुई तो डाक्टरों ने उन्हें छुट्टी दे दी. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रात उन्होंने कढ़ी खाई थी. खाने के बाद उन्हें ऐसी नींद आई कि उन्हें अस्पताल में ही होश आया.

इस से पुलिस अधिकारियों को शक हुआ कि किसी ने सभी के खाने में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया था. अब सवाल यह था कि ऐसा किस ने किया था? अब तक राज सिंह को भी होश आ चुका था. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि खाना खाने के बाद उसे गहरी नींद आ गई थी. यह सब किस ने किया, उसे भी नहीं पता.

पुलिस को राज सिंह पर ही शक हो रहा था कि करोड़ों की संपत्ति के लिए यह सब उस ने तो नहीं किया? पुलिस ने उस से खूब घुमाफिरा कर पूछताछ की, लेकिन उस से काम की कोई बात सामने नहीं आई.

मामले के खुलासे के लिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे ने थानाप्रभारी महावीर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में अतिरिक्त थानाप्रभारी राधेश्याम, एसआई देवीलाल, महिला एसआई सुमेधा, एएसआई अंशु, महिला सिपाही गीता आदि को शामिल किया गया.

नारायणी और उस के बेटे अनूप की हालत स्थिर बनी हुई थी. अंजू और उस की जेठानी मीनाक्षी अभी तक पूरी तरह होश में नहीं आई थीं. पुलिस ने राज सिंह को छोड़ तो दिया था, पर घूमफिर कर पुलिस को उसी पर शक हो रहा था. उस के और उस के भाई अनूप सिंह के पास 2-2 मोबाइल फोन थे.

शक दूर करने के लिए पुलिस ने दोनों भाइयों के मोबाइल फोनों की कालडिटेल्स निकलवाई. इस से भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. अनूप का एक भाई अशोक गुड़गांव में रहता था. उस का वहां ट्रांसपोर्ट का काम था. पुलिस ने उस से भी बात की. वह भी हैरान था कि आखिर ऐसा कौन आदमी है, जो उस के भाई और मां को मारना चाहता था?

21 जून को मीनाक्षी को अस्पताल से छुट्टी मिली तो एसआई सुमेधा कांस्टेबल गीता के साथ उस से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गईं. पूछताछ में उस ने बताया कि सभी लोगों को खाना खिला कर वह भी खा कर सो गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं. पुलिस को मीनाक्षी से भी कोई सुराग नहीं मिला.

अस्पताल में अब राज सिंह की पत्नी अंजू, अनूप और उस की मां नारायणी ही बचे थे. अंजू से अस्पताल में पूछताछ की गई तो उस ने भी कहा कि खाना खाने के कुछ देर बाद ही उसे भी गहरी नींद आ गई थी.

जब घर वालों से काम की कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा मुखबिरों को लगा दिया. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. पुलिस को मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि अनूप की पत्नी मीनाक्षी के अब्दुल से अवैध संबंध थे. अब्दुल का भलस्वा गांव में जिम था, वह उस में ट्रेनर था. पुलिस ने अब्दुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह जहांगीरपुरी के सी ब्लौक में रहता था.

पुलिस 21 जून को अब्दुल के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. उस की पत्नी ने बताया कि वह कहीं गए हुए हैं. वह कहां गया है, इस बारे में पत्नी कुछ नहीं बता पाई. अब्दुल पुलिस के शक के दायरे में आ गया. थानाप्रभारी ने अब्दुल के घर की निगरानी के लिए सादे कपड़ों में एक सिपाही को लगा दिया. 21 जून की शाम को जैसे ही अब्दुल घर आया, पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

थाने पहुंचते ही अब्दुल बुरी तरह घबरा गया. उस से अनूप के घर हुई घटना के बारे में पूछा गया तो उस ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि उस के मीनाक्षी से नजदीकी संबंध थे और उसी के कहने पर मीनाक्षी ने ही यह सब किया था. इस तरह केस का खुलासा हो गया.

इस के बाद एसआई देवीलाल महिला एसआई सुमेधा और सिपाही गीता को ले कर मीनाक्षी के यहां पहुंचे. उन के साथ अब्दुल भी था. मीनाक्षी ने जैसे ही अब्दुल को पुलिस हिरासत में देखा, एकदम से घबरा गई. पुलिस ने उस की घबराहट को भांप लिया. एसआई सुमेधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे और अब्दुल के बीच क्या रिश्ता है?’’

‘‘रिश्ता…कैसा रिश्ता? यह जिम चलाता है और मैं इस के जिम में एक्सरसाइज करने जाती थी.’’ मीनाक्षी ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘मैडम, तुम भले ही झूठ बोलो, लेकिन हमें तुम्हारे संबंधों की पूरी जानकारी मिल चुकी है. इतना ही नहीं, तुम ने अब्दुल को जितने भी व्हाट्सऐप मैसेज भेजे थे, हम ने उन्हें पढ़ लिए हैं. तुम्हारी अब्दुल से वाट्सऐप के जरिए जो बातचीत होती थी, उस से हमें सारी सच्चाई का पता चल गया है. फिर भी वह सच्चाई हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’

सुमेधा का इतना कहना था कि मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली, ‘‘मैडम, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही यह सब किया है. आप मुझे बचा लीजिए.’’

इस के बाद पुलिस ने मीनाक्षी को हिरासत में लिया. उसे थाने ला कर अब्दुल और उस से पूछताछ की गई तो इस घटना के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह अविवेक में घातक कदम उठाने वालों की आंखें खोल देने वाली थी.

उत्तर पश्चिमी दिल्ली के थाना जहांगीरपुरी के अंतर्गत आता है भलस्वा गांव. इसी गांव में नारायणी देवी अपने 2 बेटों, अनूप और राज सिंह के परिवार के साथ रहती थीं. गांव में उन की करोड़ों रुपए की संपत्ति थी. उस का एक बेटा और था अशोक, जो गुड़गांव में ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था. वह अपने परिवार के साथ गुड़गांव में ही रहता था. करीब 20 साल पहले अनूप की शादी गुड़गांव के बादशाहपुर की रहने वाली मीनाक्षी से हुई थी. उस से उसे 2 बच्चे हुए. बेटी कनिका और बेटा रजत. अनूप भलस्वा गांव में ही ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था.

नारायणी देवी के साथ रहने वाला छोटा बेटा राज सिंह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी में फलों का आढ़ती था. उस के परिवार में पत्नी अंजू के अलावा एक 12 साल की बेटी थी. नारायणी देवी के गांव में कई मकान हैं, जिन में से एक मकान में अनूप अपने परिवार के साथ रहता था तो दूसरे में नारायणी देवी छोटे बेटे के साथ रहती थीं.

तीनों भाइयों के बिजनैस अच्छे चल रहे थे. सभी साधनसंपन्न थे. अपने हंसतेखेलते परिवार को देख कर नारायणी खुश रहती थीं. कभीकभी इंसान समय के बहाव में ऐसा कदम उठा लेता है, जो उसी के लिए नहीं, उस के पूरे परिवार के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है. नारायणी की बहू मीनाक्षी ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठा लिया था.

सन 2014 की बात है. घर के रोजाना के काम निपटाने के बाद मीनाक्षी टीवी देखने बैठ जाती थी. मीनाक्षी खूबसूरत ही नहीं, आकर्षक फिगर वाली भी थी. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद भी उस ने खुद को अच्छी तरह मेंटेन कर रखा था. वह 34 साल की हो चुकी थी, लेकिन इतनी उम्र की दिखती नहीं थी. इस के बावजूद उस के मन में आया कि अगर वह जिम जा कर एक्सरसाइज करे तो उस की फिगर और आकर्षक बन सकती है.

बस, फिर क्या था, उस ने जिम जाने की ठान ली. उस के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे. अनूप रोजाना समय से अपने ट्रांसपोर्ट के औफिस चला जाता था. इसलिए घर पर कोई ज्यादा काम नहीं होता था. मीनाक्षी के पड़ोस में ही अब्दुल ने बौडी फ्लैक्स नाम से जिम खोला था. मीनाक्षी ने सोचा कि अगर पति अनुमति दे देते हैं तो वह इसी जिम में जाना शुरू कर देगी. इस बारे में उस ने अनूप से बात की तो उस ने अनुमति दे दी.

मीनाक्षी अब्दुल के जिम जाने लगी. वहां अब्दुल ही जिम का ट्रेनर था. वह मीनाक्षी को फिट रखने वाली एक्सरसाइज सिखाने लगा. अब्दुल एक व्यवहारकुशल युवक था. चूंकि मीनाक्षी पड़ोस में ही रहती थी, इसलिए अब्दुल उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

मीनाक्षी अब्दुल से कुछ ऐसा प्रभावित हुई कि उस का झुकाव उस की ओर होने लगा. फिर तो दोनों की चाहत प्यार में बदल गई. 24 वर्षीय अब्दुल एक बेटी का पिता था, जबकि उस से 10 साल बड़ी मीनाक्षी भी 2 बच्चों की मां थी. पर प्यार के आवेग में दोनों ही अपनी घरगृहस्थी भूल गए. उन का प्यार दिनोंदिन गहराने लगा.

मीनाक्षी जिम में काफी देर तक रुकने लगी. उस के घर वाले यही समझते थे कि वह जिम में एक्सरसाइज करती है. उन्हें क्या पता था कि जिम में वह दूसरी ही एक्सरसाइज करने लगी थी. नाजायज संबंधों की राह काफी फिसलन भरी होती है, जिस का भी कदम इस राह पर पड़ जाता है, वह फिसलता ही जाता है. मीनाक्षी और अब्दुल ने इस राह पर कदम रखने से पहले इस बात पर गौर नहीं किया कि अपनेअपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात कर के वह जिस राह पर चलने जा रहे हैं, उस का अंजाम क्या होगा?

बहरहाल, चोरीछिपे उन के प्यार का यह खेल चलता रहा. दोढाई साल तक दोनों अपने घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर इसी तरह मिलते रहे. पर इस तरह की बातें लाख छिपाने के बावजूद छिपी नहीं रहतीं. जिम के आसपास रहने वालों को शक हो गया.

अनूप गांव का इज्जतदार आदमी था. किसी तरह उसे पत्नी के इस गलत काम की जानकारी हो गई. उस ने तुरंत मीनाक्षी के जिम जाने पर पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी के मायके वालों को फोन कर के अपने यहां बुला कर उन से मीनाक्षी की करतूतें बताईं. इस पर घर वालों ने मीनाक्षी को डांटते हुए अपनी घरगृहस्थी की तरफ ध्यान देने को कहा. यह बात घटना से 3-4 महीने पहले की है.

नारायणी की दोनों बहुओं मीनाक्षी और अंजू के पास मोबाइल फोन नहीं थे. केवल घर के पुरुषों के पास ही मोबाइल फोन थे. लेकिन अब्दुल ने अपनी प्रेमिका मीनाक्षी को सिमकार्ड के साथ एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिसे वह अपने घर वालों से छिपा कर रखती थी. उस का उपयोग वह केवल अब्दुल से बात करने के लिए करती थी. बातों के अलावा वह उस से वाट्सऐप पर भी चैटिंग करती थी. पति ने जब उस के जिम जाने पर रोक लगा दी तो वह फोन द्वारा अपने प्रेमी के संपर्क में बनी रही.

एक तो मीनाक्षी का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया था, दूसरे पति ने जो उस के मायके वालों से उस की शिकायत कर दी थी, वह उसे बुरी लगी थी. अब प्रेमी के सामने उसे सारे रिश्तेनाते बेकार लगने लगे थे. पति अब उसे सब से बड़ा दुश्मन नजर आने लगा था. उस ने अब्दुल से बात कर के पति नाम के रोड़े को रास्ते से हटाने की बात की. इस पर अब्दुल ने कहा कि वह उसे नींद की गोलियां ला कर दे देगा. किसी भी तरह वह उसे 10 गोलियां खिला देगी तो इतने में उस का काम तमाम हो जाएगा.

एक दिन अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 10 गोलियां ला कर दे दीं. मीनाक्षी ने रात के खाने में पति को 10 गोलियां मिला कर दे दीं. रात में अनूप की तबीयत खराब हो गई तो उस के बच्चे परेशान हो गए. उन्होंने रात में ही दूसरे मकान में रहने वाले चाचा राज सिंह को फोन कर दिया. वह उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां अनूप को बचा लिया गया. पति के बच जाने से मीनाक्षी को बड़ा अफसोस हुआ.

इस के कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने पति को ठिकाने लगाने के लिए एक बार फिर नींद की 10 गोलियां खिला दीं. इस बार भी उस की तबीयत खराब हुई तो घर वाले उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां वह फिर बच गया.

मीनाक्षी की फोन पर लगातार अब्दुल से बातें होती रहती थीं. प्रेमी के आगे पति उसे फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. वह उस से जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहती थी. उसी बीच अनूप की मां नारायणी को भी जानकारी हो गई कि बड़ी बहू मीनाक्षी की हरकतें अभी बंद नहीं हुई हैं. अभी भी उस का अपने यार से याराना चल रहा है.

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अनूप तो अपने समय पर औफिस चला जाता था. उस के जाने के बाद पत्नी क्या करती है, इस की उसे जानकारी नहीं मिलती थी. उस के घर से कुछ दूर ही मकान नंबर 74 में छोटा भाई राज सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. मां भी वहीं रहती थी. कुछ सोचसमझ कर अनूप पत्नी और बच्चों को ले कर राज सिंह के यहां चला गया. मकान बड़ा था, पहली मंजिल पर सभी लोग रहने लगे. यह घटना से 10 दिन पहले की बात है. उसी मकान में ग्राउंड फ्लोर पर अनूप का ट्रांसपोर्ट का औफिस था.

इस मकान में आने के बाद मीनाक्षी की स्थिति पिंजड़े में बंद पंछी जैसी हो गई. नीचे उस का पति बैठा रहता था, ऊपर उस की सास और देवरानी रहती थी. अब मीनाक्षी को प्रेमी से फोन पर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता था. अब वह इस पिंजड़े को तोड़ने के लिए बेताब हो उठी. ऐसी हालत में क्या किया जाए, उस की समझ में नहीं आ रहा था?

एक दिन मौका मिला तो मीनाक्षी ने अब्दुल से कह दिया कि अब वह इस घर में एक पल नहीं रह सकती. इस के लिए उसे कोई न कोई इंतजाम जल्द ही करना होगा. अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 90 गोलियां ला कर दे दीं. इस के अलावा उस ने जहांगीरपुरी में अपने पड़ोसी से एक छुरा भी ला कर दे दिया. तेजधार वाला वह छुरा जानवर की खाल उतारने में प्रयोग होता था. अब्दुल ने उस से कह दिया कि इन में से 50-60 गोलियां शाम के खाने में मिला कर पूरे परिवार को खिला देगी. गोलियां खिलाने के बाद आगे क्या करना है, वह फोन कर के पूछ लेगी.

अब्दुल के प्यार में अंधी मीनाक्षी अपने हंसतेखेलते परिवार को बरबाद करने की साजिश रचने लगी. वह उस दिन का इंतजार करने लगी, जब घर के सभी लोग एक साथ रात का खाना घर में खाएं. नारायणी के पड़ोस में रहने वाली उन की रिश्तेदार कुसुम की बेटी की शादी थी. शादी की वजह से उन के घर वाले वाले भी खाना कुसुम के यहां खा रहे थे. मीनाक्षी अपनी योजना को अंजाम देने के लिए बेचैन थी, पर उसे मौका नहीं मिल रहा था.

इत्तफाक से 19 जून, 2017 की शाम को उसे मौका मिल गया. उस शाम उस ने कढ़ी बनाई और उस में नींद की 60 गोलियां पीस कर मिला दीं. मीनाक्षी के दोनों बच्चे कढ़ी कम पसंद करते थे, इसलिए उन्होंने कम खाई. बाकी लोगों ने जम कर खाना खाया. देवरानी अंजू ने तो स्वादस्वाद में कढ़ी पी भी ली. चूंकि मीनाक्षी को अपना काम करना था, इसलिए उस ने कढ़ी के बजाय दूध से रोटी खाई.

खाना खाने के बाद सभी पर नींद की गोलियों का असर होने लगा. राज सिंह सोने के लिए बालकनी में बिछे पलंग पर लेट गया, क्योंकि वह वहीं सोता था. अनूप और उस की मां नारायणी ड्राइंगरूम में जा कर सो गए. उस के दोनों बच्चे बैडरूम में चले गए. राज सिंह की पत्नी अंजू अपनी 12 साल की बेटी के साथ अपने बैडरूम में चली गई.

सभी सो गए तो मीनाक्षी ने आधी रात के बाद अब्दुल को फोन किया. अब्दुल ने पूछा, ‘‘तुम्हें किसकिस को निपटाना है?’’

‘‘बुढि़या और अनूप को, क्योंकि इन्हीं दोनों ने मुझे चारदीवारी में कैद कर रखा है.’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम उन्हें हिला कर देखो, उन में से कोई हरकत तो नहीं कर रहा?’’ अब्दुल ने कहा.

मीनाक्षी ने सभी को गौर से देखा. राज सिंह शराब पीता था, ऊपर से गोलियों का असर होने पर वह गहरी नींद में चला गया था. उस ने गौर किया कि उस की सास नारायणी और पति अनूप गहरी नींद में नहीं हैं. इस के अलावा बाकी सभी को होश नहीं था. मीनाक्षी ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा, ‘‘तुम नींद की 10 गोलियां थोड़े से पानी में घोल कर सास और पति के मुंह में सावधानी से चम्मच से डाल दो.’’

मीनाक्षी ने ऐसा ही किया. सास तो मुंह खोल कर सो रही थी, इसलिए उस के मुंह में आसानी से गोलियों का घोल चला गया. पति को पिलाने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई, लेकिन उस ने उसे भी पिला दिया.

आधे घंटे बाद वे दोनों भी पूरी तरह बेहोश हो गए. मीनाक्षी ने फिर अब्दुल को फोन किया. तब अब्दुल ने सलाह दी कि वह अपनी देवरानी के कपड़े पहन ले, ताकि खून लगे तो उस के कपड़ों में लगे. देवरानी के कपड़े पहन कर मीनाक्षी ने अब्दुल द्वारा दिया छुरा निकाला और नारायणी का गला रेत दिया. इस के बाद पति का गला रेत दिया.

इस से पहले मीनाक्षी ने मेहंदी लगाने वाले दस्ताने हाथों में पहन लिए थे. दोनों का गला रेत कर उस ने अब्दुल को बता दिया. इस के बाद अब्दुल ने कहा कि वह खून सने कपड़े उतार कर अपने कपड़े पहन ले और कढ़ी के सारे बरतन साफ कर के रख दे, ताकि सबूत न मिले.

बरतन धोने के बाद मीनाक्षी ने अब्दुल को फिर फोन किया तो उस ने कहा कि वह उन दोनों को एक बार फिर से देख ले कि काम हुआ या नहीं? मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची तो उसे उस का पति बैठा हुआ मिला. उसे बैठा देख कर वह घबरा गई. उस ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा कि वह दोबारा जा कर गला काट दे नहीं तो समस्या खड़ी हो सकती है.

छुरा ले कर मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची. अनूप बैठा जरूर था, लेकिन उसे होश नहीं था. मीनाक्षी ने एक बार फिर उस की गरदन रेत दी. इस के बाद अनूप बैड से फर्श पर गिर गया. मीनाक्षी ने सोचा कि अब तो वह निश्चित ही मर गया होगा.

अपने प्रेमी की सलाह पर उस ने अपना मोबाइल और सिम तोड़ कर कूड़े में फेंक दिया. जिस छुरे से उस ने दोनों का गला काटा था, उसे और दोनों दस्ताने एक पौलीथिन में भर कर सामने बहने वाले नाले में फेंक आई. इस के बाद नींद की जो 10 गोलियां उस के पास बची थीं, उन्हें पानी में घोल कर पी ली और बच्चों के पास जा कर सो गई.

मीनाक्षी और अब्दुल से पूछताछ कर के पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 307, 328, 452, 120बी के तहत गिरफ्तार कर 22 जून, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार की कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में अन्य सबूत जुटा कर पुलिस ने उन्हें फिर से न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

मीनाक्षी ने अपनी सास और पति को जान से मारने की पूरी कोशिश की थी, पर डाक्टरों ने उन्हें बचा लिया है. कथा लिखे जाने जाने तक दोनों का अस्पताल में इलाज चल रहा था.

मीनाक्षी के मायके वाले काफी धनाढ्य हैं. उन्होंने उस की शादी भी धनाढ्य परिवार में की थी. ससुराल में उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. खातापीता परिवार होते हुए भी उस ने देहरी लांघी. उधर अब्दुल भी पत्नी और एक बेटी की अपनी गृहस्थी में हंसीखुशी से रह रहा था. उस का बिजनैस भी ठीक चल रहा था. पर खुद की उम्र से 10 साल बड़ी उम्र की महिला के चक्कर में पड़ कर अपनी गृहस्थी बरबाद कर डाली.

बहरहाल, गलती दोनों ने की है, इसलिए दोनों ही जेल पहुंच गए हैं. निश्चित है कि दोनों को अपने किए की सजा मिलेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बदतर जिंदगी जीने को मजबूर ‘बाल मजदूर’

इन बच्चों की उम्र 14 साल से कम  है, लेकिन रोजाना इन्हें अकसर 14 घंटे से ज्यादा हाड़तोड़ मशक्कत करनी पड़ती है. कहने को तो ये बाल मजदूर हैं, लेकिन अपनी उम्र और कूवत से बढ़चढ़ कर बालिगों से कहीं ज्यादा मेहनत करते हैं. सुबहसवेरे जब आमतौर पर लोग सो कर उठते हैं, तब तक ये बच्चे रूखीसूखी रोटी का पुलिंदा बगल में दबाए अपनी काम की जगह पर मौजूद हो चुके होते हैं, फिर 15-16 घंटे की मेहनत के बाद थकान से चूर रात को घर लौट कर बिस्तर पर लेटते हैं, तो दूसरे दिन ही नींद खुलती है. यही जिंदगी है इन नन्हे कामगारों की. इतनी मेहनत के बावजूद ये मजदूर महीने के आखिर में पाते हैं महज कुछ सौ रुपए, पर इस से ज्यादा इन्हें मालिकों से मिलता है जोरजुल्म. अपनी बुनियादी जरूरतों से दूर ये बच्चे नाजुक उम्र में ही भयानक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीड़ी उद्योग के बाल मजदूर नाक की बीमारी, उनींदापन, निकोटिन के जहर से पैदा होने वाली बीमारी, सिरदर्द, अंधेपन वगैरह के शिकार हो जाते हैं, वहीं कालीन उद्योग के बच्चे लगातार धूल और रेशों में रह कर फेफड़ों की बीमारी से घिर जाते हैं.

पटाका और माचिस उद्योग के बाल मजदूर सांस की परेशानी, दम घुटना, थकावट, मांसपेशियां बेकार हो जाने जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इसी तरह ताला उद्योग में तेजाब से जलना, दमा, सांस का रुक जाना, टीबी, भयंकर सिरदर्द होना आम बात है. खदानों में काम करने वाले बच्चों की आंखों, फेफड़ों व चमड़ी की बीमारियों का तोहफा मिलता है, तो कांच उद्योग में काम कर रहे बाल मजदूर आग उगलती भट्ठियों के नजदीक हर समय कईकई घंटे तीनों ओर से गरम कांच से घिरे रह कर कैंसर, टीबी और मानसिक विकलांगता जैसी बीमारियां पाल लेते हैं. इसी तरह मध्य प्रदेश के मंदसौर इलाके के स्लेट उद्योग में काम करने वाले बच्चे वहां स्लेट, पैंसिल बनाने के लिए खान से स्लेटी रंग की लगातार उड़ती धूल में रह कर फेफड़ों और सांस की तरहतरह की गंभीर बीमारियों से घिर जाते हैं. गुब्बारा उद्योग में काम करने वाले बच्चों की हालत तो और भी ज्यादा खतरनाक है. वे नन्ही उम्र में ही दिल की बीमारी, निमोनिया और सांस की बीमारी की जकड़ में आ जाते हैं.

इतना ही नहीं, ढाबों में काम कर रहे या घरेलू बाल मजदूर नशीली चीजों के सेवन के आदी तो हो ही जाते हैं, शारीरिक और यौन शोषण, ज्यादा काम और दूसरी तरह से भी वे खूब सताए जाते हैं. गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक, खेतखलिहानों, अलगअलग लघु व कुटीर उद्योगों, पत्थर खदानों, ढाबों और घरेलू कामों में तकरीबन 10 करोड़ बच्चे मजदूर बने हुए हैं. यह आलम तो तब है, जब कई लैवलों पर कई सालों से बाल मजदूर उन्मूलन के लिए कायदेकानूनों की झड़ी लगा दी गई है. आज भी नए कानून बनाने व बाल मजदूरी लगाने की कोशिश जारी है. फिर आखिर क्या वजह है कि बाल मजदूरी में कमी आने के बजाय लगातार इजाफा ही हो रहा है?

मिसाल के तौर पर, ‘बाल दिवस’ यानी बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू के जन्मदिन के मौके पर जगहजगह सैमिनार, भाषणबाजी और न जाने क्याक्या होता है, पर इन सब से अनजान चाचा नेहरू के 10 करोड़ लाड़ले उस समय रोटी की जुगाड़ में न जाने क्याक्या, सह रह होते हैं. कुछ लोग बच्चों को मजदूर बनाने में उन से काम कराने वालों का भी बहुत बड़ा हाथ मानते हैं. ऐसे लोगों का लालच यही होता है कि बाल मजदूरी सस्ती पड़ती है. छोटेछोटे कुटीर उद्योग जहां जगह की कमी होती है, इसीलिए बच्चों को काम पर रखा जाता है, क्योंकि वे जगह कम घेरते हैं, जिस से ज्यादा से ज्यादा बच्चे वहां ज्यादा से ज्यादा काम कर सकते हैं. ये बच्चे पूरी तरह से असंगठित होते हैं, जिस से अपने शोषण के खिलाफ मालिक के सामने आवाज नहीं उठा सकते. दूसरी ओर, मालिकों को इन्हें रखने की मजबूरी यह होती है कि कुछ काम ऐसे होते हैं, जिन्हें केवल बच्चे ही पूरी सफाई से कर सकते हैं.

मसलन, कालीन उद्योग में कालीन बनाते समय जगहजगह गांठ लगाने की जरूरत पड़ती है. सफाई से गांठ लगाने के लिए उंगलियों का पतला होना जरूरी है, इसीलिए इस उद्योग में बच्चों को अहमियत दी जाती है. इसी तरह माचिस उद्योग में बाल मजदूर लगे होने से माचिसों की बनाने की लागत कम आती है. कम लागत के चलते विदेशी माचिसों से होड़ लेने में दिक्कत नहीं आ रही है. फिर भी बाल मजदूरी कराने वाले मालिकों और बाल मजदूरी के पक्ष में चाहे जो भी दलीलें पेश की जाएं, सचाई तो यही है कि बाल मजदूरी से कई और तरह की सामाजिक दिक्कतें बढ़ी हैं. यह सच है कि गरीबी के चलते बच्चे मजदूरी के लिए मजबूर हैं, पर इस से पैदा होने वाली समस्याएं कहीं ज्यादा गंभीर हैं. चूंकि कुछ इलाको में केवल बच्चों को ही काम पर रखा जाता है, इसलिए उन के मांबाप अकसर बेरोजगार ही होेते हैं.

दूसरी ओर, 15 साल से बड़ा होते ही इन बच्चों को काम से हटा दिया जाता है, इसलिए मांबाप यह मान कर चलते हैं कि ज्यादा बच्चे होने से आमदनी बराबर बनी रहेगी, क्योंकि बड़े बच्चे के काम से हटते ही छोटा संभाल लेगा, फिर उस के बाद उस से छोटा और फिर उस से छोटा. इस सिलसिले को जारी रखने के लिए बच्चों की तादाद ज्यादा रखना मजबूरी बन जाती है. यह सोच आबादी की समस्या को गंभीर बना रही है. पर इन सब में सब से ज्यादा चिंताजनक पहलू तो सेहत ही है, क्योंकि पैसे की कमी में ये बाल मजदूर न तो ठीक से इलाज करा पाते हैं और न ही ठीक से खानेपीने का बैलैंस बनाए रख पाते हैं, इसलिए ये बच्चे जवानी आतेआते गंभीर बीमारियों के शिकार हो कर कदमकदम पर कतराकतरा मौत का इंतजार करते हैं. यकीनन, आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं, लेकिन जहां के एकतिहाई बच्चे बचपन की बुनियादी सुविधाओं से अलग हो कर मेहनतमजदूरी में रातदिन एक कर रहे हैं व कम उम्र में ही भयानक बीमारियों से घिर जाते हैं, भविष्य में उन की जगह कहां होगी? क्या बीमार बच्चों के नाजुक कंधों पर तैयार की जा रही भविष्य के विकास की बुनियाद मजबूत हो पाएगी? कब इन्हें इन का हक मिल पाएगा? इन सवालों के जवाब भारत के नीति बनाने वालों के पास भी नहीं है.

100 करोड़ की फिरौती का फंडा

22 जुलाई, 2017 की शाम को फिरोजाबाद के राजातालाब आर्किड ग्रीन के रहने वाले संजीव गुप्ता की पत्नी सारिका गुप्ता 2-3 लोगों के साथ टुंडला कोतवाली पहुंची तो कोतवाली प्रभारी अरुण कुमार सिंह हैरान ही नहीं हुए, बल्कि उन्हें किसी अनहोनी की आशंका भी हुई. क्योंकि वह सारिका गुप्ता को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. उस के पति संजीव गुप्ता शहर के जानेमाने व्यवसायी थे.

सारिका गुप्ता सीधे अरुण कुमार सिंह के पास पहुंची थी. उन्होंने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने के लिए कह कर आने की वजह पूछी तो उस ने जो बताया, सुन कर वह दंग ही नहीं रह गए, बल्कि परेशान भी हो उठे. उस ने बताया था कि साढ़े 5 बजे के करीब उस के पति संजीव गुप्ता अपने होटल सागर रत्ना से अपनी मीटिंग खत्म कर के सीधे घर आने वाले थे.

लेकिन अब तक वह न घर पहुंचे हैं और न ही उन का फोन मिल रहा है. जब भी उन्हें फोन किया जाता है, फोन बंद बताता है. इतना सब बता कर उस ने आशंका भी व्यक्त की कि कहीं उन का अपहरण तो नहीं हो गया है.

बहरहाल, अरुण कुमार सिंह ने सारिका से तहरीर ले कर उसे आश्वासन दिया कि पुलिस जल्दी ही उस के पति को ढूंढ निकालेगी. जबकि वह जानते थे कि यह काम इतना आसान नहीं है.

संजीव गुप्ता शहर का जानामाना नाम था. फिरोजाबाद शहर के राजातालाब इलाके की आर्किड ग्रीन में उस की शानदार कोठी थी, जहां कई महंगी कारें खड़ी रहती थीं. शहर के होटल सागर रत्ना में ही नहीं, कई स्कूलों में भी उस की हिस्सेदारी थी. इस के अलावा वह ब्याज पर पैसा उठाने के साथसाथ करोड़ों की कमेटी और सोसायटी चलाता था, जिस में शहर के ही नहीं, आसपास के शहरों के भी बड़ेबड़े लोग शेयर डालते थे.

ऐसे आदमी का गायब होना पुलिस के लिए परेशानी ही थी. पैसे वाला आदमी था, उस का अपहरण भी हो सकता था, इसलिए अरुण कुमार सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. अपहरण की आशंका को ध्यान में रख कर तुरंत शहर की नाकाबंदी कराते हुए शहर भर की पुलिस को सतर्क कर दिया गया.

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रात भर पुलिस अपने हिसाब से संजीव गुप्ता की तलाश करती रही, लेकिन कुछ पता नहीं कर पाई. अगले दिन यानी 23 जुलाई को सारिका गुप्ता एक बार फिर कोतवाली पहुंची और शक के आधार पर नीता पांडेय, उस के पति प्रदीप पांडेय और अमित गुप्ता तथा कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ अपराध क्रमांक 641/2017 पर भादंवि की धारा 364ए, 506, 120बी के तहत नामजद मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन्होंने पुलिस को अपने मोबाइल में 2 मैसेज भी दिखाए, जो उन के पति के ही फोन से आए थे. उन संदेशों में उन से संजीव गुप्ता की रिहाई के लिए सौ करोड़ की फिरौती मांगी गई थी. फिरौती न देने पर संजीव गुप्ता को मौत के घाट उतारने की धमकी दी गई थी.

यह मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने संजीव गुप्ता के दोनों मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगवा दिए, साथ ही सुरक्षा की गरज से संजीव की कोठी पर पुलिस बल तैनात कर दिया गया. एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने पुलिस की कई टीमें बना कर संजीव की तलाश में लगा दिया. इस के साथ एसटीएफ की भी एक टीम बना कर इस मामले में लगा दी गई थी.

पुलिस ने संजीव के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर अलीगढ़, दिल्ली, नोएडा, चंडीगढ़, जम्मूकश्मीर तक उस की खोज की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. उस के मोबाइल का स्विच औफ रहता था, बस थोड़ी देर के लिए औन होता था. उसी के हिसाब से जो लोकेशन मिलती थी, पुलिस वहां पहुंच जाती थी.

24 जुलाई को सारिका के मोबाइल पर एक बार फिर संदेश आया कि कोठी पर पुलिस क्यों तैनात है, पुलिस को वहां से हटवाओ. सारिका ने यह संदेश पुलिस अधिकारियों को दिखाया तो कुछ पुलिस वालों को वहां से हटा दिया गया, लेकिन पूरी तरह से पुलिस नहीं हटाई गई.

संजीव गुप्ता को गायब हुए 3 दिन हो चुके थे. यह घटना शहर में चर्चा का विषय बनी हुई थी. ज्यादातर लोगों का कहना था कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ, बल्कि वह खुद ही कहीं छिपा बैठा है. दूसरी ओर संजीव की पत्नी और भांजे विप्लव गुप्ता ने संजीव के अपहरण का आरोप नीता पांडेय पर लगाया ही नहीं था, बल्कि शक के आधार पर मुकदमा भी दर्ज करा दिया था.

नीता का पति प्रदीप पांडेय समाज कल्याण विभाग में वरिष्ठ लिपिक था. भाजपा का जिला संगठन ब्राह्मण समाज ही नहीं, सरकारी कर्मचारी भी प्रदीप पांडेय और नीता पांडेय के साथ थे. इसलिए पुलिस नीता पांडेय, उस के पति प्रदीप पांडेय और अनिल गुप्ता के खिलाफ कोई काररवाई नहीं कर पा रही थी.

पुलिस द्वारा की गई जांच के अनुसार, नीता पांडेय का आरओ और बोतलबंद पानी का व्यवसाय था. उन्होंने सन 2015 में संजीव गुप्ता से 15 लाख रुपए ब्याज पर लिए थे, जिस का ब्याज पहले ही काट कर संजीव ने उसे 10 लाख 80 हजार रुपए दिए थे. इस के बाद जबरदस्ती उस से 25 लाख रुपए की कमेटी डलवाई थी. बाद में ब्याज जोड़ कर वह उस से 60 लाख रुपए मांगने लगा था.

नीता ने इतना रुपया देने से मना किया तो संजीव जबरदस्ती वसूल करने की कोशिश करने लगा. मजबूर हो कर नीता ने 1 जुलाई, 2017 को भादंवि की धारा 406, 452, 504, 506 एवं 6 के तहत संजीव, दीपक और विप्लव गुप्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था. जबकि दोनों के बीच झगड़ा अप्रैल से ही चल रहा था.

यह मामला सुर्खियों में तब आया, जब नीता पांडेय ने जिलाधिकारी से संजीव गुप्ता द्वारा धमकी देने की शिकायत के साथ ब्याज पर पैसे उठाने की शिकायत कर दी थी. जिलाधिकारी ने एसपी (सिटी) और एसडीएम को इस मामले को सुलझाने का आदेश दिया था. लेकिन बुलाने पर भी संजीव समझौते के लिए नहीं आया.

धीरेधीरे नीता पांडेय और संजीव गुप्ता का विवाद इतना बढ़ गया कि यह प्रदेश के डीजीपी और मुख्यमंत्री तक पहुंच गया. ऐसे में कुछ और लोग नीता के साथ आ गए थे, जिन्हें कमेटी का अपना पैसा डूबता नजर आ रहा था. संजीव गुप्ता शहर का बड़ा आदमी ही नहीं, रसूख वाला भी था. उस के सामने हर किसी के आने की हिम्मत नहीं थी.

सपा सरकार के समय उस का अलग ही रुतबा था. लेकिन सत्ता बदलते ही उस का रुतबा जाता रहा. उस की कमेटी और सोसायटी का व्यवसाय शहर ही नहीं, अन्य शहरों तक फैला था, जिस की वजह से लगभग रोज ही होटल में पार्टियां होती रहती थीं, जिस में बड़ेबड़े लोग शामिल होते थे.

इसी संजीव गुप्ता की वापसी के लिए 100 करोड़ की फिरौती मांगी जा रही थी. यह हैरान करने वाली बात थी. पुलिस को भी इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. 22 जुलाई की शाम को संजीव गायब हुआ था और 23 जुलाई की रात एक बज कर 40 मिनट पर 100 करोड़ की फिरौती का संदेश उस की पत्नी के फोन पर वाट्सऐप द्वारा आ गया था. यह भी संदेह पैदा करने वाली बात थी.

100 करोड़ की फिरौती की वजह से ही यह मामला राजधानी लखनऊ तक पहुंच गया था. विधान परिषद में भी मामला उठाया गया गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सख्त आदेश था कि इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाया जाए, इसीलिए इस मामले को सुलझाने में पुलिस जीजान से जुटी थी.

इसी का नतीजा था कि पुलिस को अपने सूत्रों से पता चला कि संजीव गुप्ता की कार अलीगढ़ के गभाना में खड़ी है. उस का मोबाइल फोन औन तो होता था, पर बहुत थोड़ी देर के लिए. फिर भी उस की जो लोकेशन मिलती थी, पुलिस उसी ओर भागती थी. अब तक की भागदौड़ से पुलिस को लगने लगा था कि यह अपहरण का मामला नहीं है. यह योजना बना कर किया गया अपहरण का नाटक है.

पुलिस ने नीता पांडेय से पूछताछ की तो उस ने कहा कि अगर सारिका गुप्ता को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. लेकिन पुलिस ऐसा करने से कतरा रही थी, क्योंकि ऐसा करने पर उस पर अंगुली उठ सकती थी. जबकि पुलिस पर इस मामले को सुलझाने का काफी दबाव था. अधिकारी भी मामले को सुलझाने में लगी टीमों पर दबाव बनाए हुए थे.

पुलिस ने संजीव के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि उस पर कमेटी और सोसायटी मैंबरों का करोड़ों का कर्ज था. पैसे वाले लोगों ने अपना चोरी का पैसा उस की कमेटी में लगा रखा था. उन्हें जब लगा कि उन का पैसा डूबने वाला है तो परेशान हो कर वे अपना पैसा उस से वापस मांगने लगे थे, जबकि उस के पास लौटाने के लिए पैसा नहीं था. उस ने कमेटी और सोसायटी का पैसा अपनी अय्याशी और शानोशौकत में उड़ा दिया था.

पुलिस जांच में एक आदमी ने बताया कि उस ने संजीव को 23 जुलाई को फिरोजाबाद में देखा था. इस से पुलिस को लगा कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ है. वह अपहरण का नाटक कर रहा है. वह देश छोड़ कर भाग न जाए, पुलिस ने उस का पासपोर्ट जब्त कर लिया था.

पुलिस ने शहर के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो सारी पोल खुल गई. संजीव अपनी कार में अकेला ही नजर आ रहा था. गभाना में जहां उस की कार मिली थी, वहां एक पंक्चर बनाने वाले ने भी बताया था कि इस कार से एक ही आदमी उतरा था और कार लौक कर के वह चला गया था.

आखिर 28 जुलाई को एसटीएफ की टीम ने नाटकीय ढंग से संजीव गुप्ता को पानीपत के होटल स्वर्ण महल से बरामद कर लिया और फिरोजाबाद ला कर 29 जुलाई की सुबह एसएसपी अजय कुमार पांडेय के सामने पेश कर दिया. इस तरह संजीव गुप्ता की सकुशल बरामदगी से पुलिस ने राहत की सांस ली.

पुलिस की मेहनत तो सफल हो गई थी, पर उस की अपहरण की कहानी पर किसी को विश्वास नहीं था. संजीव गुप्ता ने कहा कि एसटीएफ और एसएसपी साहब ने उसे बचा लिया. अपनी बात कहते हुए वह कभी रोने लगता था तो कभी हंसने लगता था. उस के बताए अनुसार, जब वह मीटिंग खत्म कर के होटल सागर रत्ना से निकला और बाहर खड़ी कार में बैठा तो पीछे छिप कर बैठे एक युवक ने उस की पीठ पर पिस्टल सटा कर चुपचाप गाड़ी चलाते रहने को कहा.

रास्ते में 2-3 लोग और बैठ गए. उन्होंने उस का फोन ले कर उस की पत्नी को 100 करोड़ की फिरौती का संदेश भेजा. लेकिन वह अपनी इस बात पर टिका नहीं रह सका. बारबार बयान बदलता रहा. पुलिस को पहले से ही उस पर शक था, बयान बदलने से शक और बढ़ गया. इस के बावजूद पुलिस तय नहीं कर पा रही थी कि उस के साथ क्या किया जाए? अब तक उस की मदद के लिए तमाम लोग आ गए थे.

पुलिस के पास अभी संजीव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं थे, इसलिए सबूतों के अभाव में पुलिस ने उस के खिलाफ कोई काररवाई न करते हुए उसे उस के घर वालों के हवाले कर दिया. पुलिस की यह हरकत लोगों को नागवार गुजरी, क्योंकि सभी जानते थे कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ था. उस ने खुद ही अपने अपहरण का नाटक किया था.

सब से ज्यादा विरोध तो नीता पांडेय ने किया. उस ने संजीव से जान का खतरा बताते हुए उसे जेल भेजने की गुहार लगाई. संजीव को पुलिस ने घर भेज दिया तो वही नहीं, उस के घर वाले भी खुश थे कि उन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया. लेकिन पुलिस की स्थिति संदिग्ध होने लगी थी, इसलिए पुलिस अभी चुप नहीं बैठी थी.

अगले दिन आईजी मथुरा अशोक जैन फिरोजाबाद आए तो स्थिति बदलने लगी. पुलिस को होटल सागर रत्ना के गार्ड ने बताया था कि उस दिन संजीव गुप्ता ने उस होटल में कोई मीटिंग नहीं की थी. एक आदमी ने बताया था कि संजीव उस दिन अकेला ही कार में था. होटल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में भी संजीव अकेला ही कार में दिखाई दिया था.

एसटीएफ टीम ने उस कार को भी ढूंढ निकाला, जिस में संजीव जम्मू में अकेला घूमता रहा था. 22 जुलाई यानी संजीव के लापता होने वाले दिन उस की लोकेशन एटा, अलीगढ़ की मिली थी. 24 जुलाई को वह जम्मू में था. एसटीएफ टीम जब वहां होटल में पहुंची तो वह वहां से निकल चुका था. इस तरह के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने उस के खिलाफ काररवाई करने का मन बना लिया.

अब तक संजीव गुप्ता और सारिका गुप्ता की स्थिति काफी बदल चुकी थी. जो लोग उन की मदद के लिए खड़े रहते थे, अब उन्होंने दूरियां बना ली थीं. लोगों ने उन के नंबर ब्लौक कर दिए थे. लोग इस अपहरण के ड्रामे से हैरान थे, इसलिए लोग अब किसी तरह के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते थे.

31 जुलाई की शाम को इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह संजीव गुप्ता की कोठी पर पहुंचे और संजीव गुप्ता तथा सारिका गुप्ता से अलगअलग पूछताछ की. संजीव और उस के घर वालों ने तो समझा था कि सब ठीक हो गया है, पुलिस को उन्होंने गुमराह कर दिया है, पर ऐसा नहीं था.

1 अगस्त, 2017 को पुलिस ने संजीव गुप्ता, सारिका गुप्ता, उस के भांजे विप्लव गुप्ता तथा सारिका के भाई सागर गुप्ता को हिरासत में ले कर थाने ले आई. अधिकारियों के सामने जब इन से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई तो पुलिस की सख्ती के आगे सभी टूट गए और उन की जुबान खुल गई. संजीव को जब सीसीटीवी कैमरों की फुटेज दिखाई गई तो वह फूटफूट कर रोने लगा.

संजीव ने पुलिस को सारी कहानी सचसच बता दी. उस ने बताया कि लेनदारों तथा नीता पांडेय से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपनी पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर के साथ मिल कर अपने अपहरण की योजना बनाई थी. नीता पांडेय और उस के पति को फंसा कर वह विदेश भाग जाना चाहता था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने संजीव के बयानों के आधार पर सारिका, विप्लव और सागर के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 469, 471, 500, 507, 120बी, 34, 182, 186 और 187 के तहत मुकदमा दर्ज कर चारों को जेल भेज दिया. इस पूछताछ में संजीव गुप्ता ने जो बताया, उस के अनुसार, कहानी कुछ इस प्रकार थी.

संजीव गुप्ता बड़ेबड़े सपने देखने वाला नौजवान था. फर्श पर रह कर वह अर्श छूना चाहता था. कभी शहर की एक तंग गली में उस का चूडि़यों का छोटा सा गोदाम था. लेकिन वह रंगबिरंगी चूडि़यों के बीच जिंदगी के गोलगोल रंगीन सपने बुन रहा था. वह सपने ही नहीं देख रहा था, बल्कि धीरेधीरे उन सपनों को हकीकत का जामा भी पहनाने लगा था. पर इस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने फिरोजाबाद ही नहीं, आगरा, मथुरा के बड़ेबड़े व्यापारियों से संपर्क बनाए और कमेटी और किटी का काम शुरू किया. लोग उस की कमेटी और किटी में बड़ीबड़ी रकम लगाने लगे. इसी पैसे को वह ब्याज पर उठाने लगा. बाजार में उस का लाखों रुपए ब्याज पर उठ गया. मजे की बात यह थी कि वह ब्याज के रुपए काट कर लोगों को रुपए उधार देता था.

समय पर किस्त न आने से संजीव अलग से ब्याज लेता था. धीरेधीरे वह बड़ा आदमी बनने लगा. पैसा आया तो वह अन्य धंधों में पैसे लगाने लगा. कमेटी में जो लोग पैसा डालते थे, वह दो नंबर का था. संजीव का सारा काम भी 2 नंबर का होता था, इसलिए हर कोई एकदूसरे की चोरी छिपाए रहा. पैसा आया तो संजीव गुप्ता के खर्चे बढ़ने लगे.

लोगों के पैसों से संजीव ने प्रौपर्टी तो बनाई ही, बड़ीबड़ी कारें भी खरीदीं. लेकिन बाद में लोग अपने पैसे मांगने लगे. अब उसे घाटा भी होने लगा था, जिस से लोगों को अपना पैसा डूबता नजर आया. फिर तो वह उस पर पैसा लौटाने के लिए दबाव डालने लगे. लोगों के दबाव से परेशान संजीव गुप्ता नीता पांडेय से 60 लाख रुपए मांगने लगा तो परेशान हो कर नीता ने उस पर मुकदमा कर दिया.

संजीव अब परेशान रहने लगा था. इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए उस ने एक योजना बनाई, जिस में उस ने पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर गुप्ता को शामिल किया. अगर संजीव की योजना सफल हो गई होती तो नीता पांडेय और उस के पति प्रदीप पांडेय जेल में होते और वह विदेश में मौज कर रहा होता.

योजना के अनुसार, संजीव ने सारिका की बहन के बेटे विप्लव गुप्ता तथा साले सागर को फिरोजाबाद बुला लिया. सागर सीए भी था और वकील भी. संजीव ने सागर को अपने ऊपर सूदखोरी के चल रहे मुकदमे की पैरवी के लिए बुलाया था, लेकिन आने पर अपने अपहरण की पटकथा लिखवा डाली.

सारिका किटी पार्टियों की शान मानी जाती थी. कमेटी और किटी में रुपए डालने के लिए सदस्यों को पटाने का काम वही करती थी. कमेटी चलाने की जिम्मेदारी भी उसी की थी. पति के अपहरण के इस ड्रामे में मुख्य भूमिका उसी की थी.

संजीव ने अपने अपहरण का तानाबाना काफी मजबूती से बुना था, पर पुलिस की मुस्तैदी और दूरदर्शिता के कारण उस का ड्रामा सफल नहीं हुआ. पत्रकारों के सामने संजीव, सारिका, विप्लव और सागर को पेश कर के एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने बताया कि संजीव अपनी कार को ऐसे रास्तों से अलीगढ़ गया, जिन पर कोई टोलनाका नहीं था.

इसी वजह से वह सीसीटीवी कैमरों की नजर में नहीं आ सका. अलीगढ़ के गभाना टोल प्लाजा के पहले ही उस ने अपनी कार हाईवे के किनारे खड़ी कर के लौक कर दी और बस से दिल्ली के आईएसबीटी बसअड्डे पहुंचा. वहां से चंडीगढ़, मोहाली होते हुए 24 जुलाई को वह जम्मू पहुंच गया.

वहां से वह मनाली गया और 25 से 27 जुलाई तक वहीं रहा. वह रोहतांग भी गया, जहां से मनाली आ गया. मनाली से देहरादून होते हुए 28 जुलाई को वह पानीपत आया, जहां स्वर्ण होटल पहुंचा और योजना के अनुसार अपने अपहरण की कहानी होटल के कर्मचारियों को सुनाई.

दूसरी ओर सारिका ने कई बार सूटकेस ले कर कोठी से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन पुलिस के पहरे की वजह से वह जा नहीं सकी. यह भी उस का एक ड्रामा था. अगर वह निकल जाती तो लोगों से कहा जाता कि सौ करोड़ की फिरौती दे कर वह पति को छुड़ा कर लाई है.

संजीव एक तीर से कई निशाने साधना चाहता था. अपहरण की आड़ में नीता पांडेय और उस के पति को जेल भिजवा कर उन से छुटकारा पाना चाहता था. सौ करोड़ की फिरौती दे कर आने के नाम पर वह कमेटी के कर्ज से छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि लोगों को उस से सहानुभूति हो जाती.

पर सच्चाई सामने आ जाने से संजीव की योजना पर पानी फिर गया. इस की वजह थी ज्यादा लालच. उस ने सौ करोड़ की जो फिरौती की बात की थी, उस पर किसी ने विश्वास नहीं किया.  जिन धाराओं में संजीव और सारिका को जेल भेजा गया है, उन का जेल से बाहर आना मुश्किल है. शानदार कोठी में रहने वाले पता नहीं कब तक जेल की कोठरी में रहेंगे.

संजीव के वकील ने उन की जमानत के लिए अदालत में अरजी लगा कर जमानत की काफी कोशिश की, लेकिन सरकारी वकील की दलीलें सुन कर न्यायाधीश श्री पी.के. सिंह ने जमानत की अरजी खारिज कर दी. एसटीएफ ने जिस तरह इस मामले का खुलासा किया, किसी को उम्मीद नहीं थी. उन की इस काररवाई से खुश हो कर एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने उन्हें प्रशस्तिपत्र के साथ 15 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह का तबादला हो गया है. उन की जगह पर नए कोतवाली प्रभारी भानुप्रताप सिंह आए हैं. वह संजीव गुप्ता और उस के साथियों को रिमांड पर ले कर एक बार फिर पूछताछ करना चाहते हैं.

दर्द में डूबी जिंदगी, न प्यार मिला न पति

21 अक्तूबर, 2016 की रात साढ़े 10 बजे के करीब अभिनव पांडेय ससुराल पहुंचा तो नशा अधिक होने की वजह से उस के कदम डगमगा रहे थे. पति की हालत देख कर नेहा का पारा चढ़ गया. ससुर घनश्याम शुक्ला को भी दामाद की यह हरकत अच्छी नहीं लगी, इसलिए वह उठ कर दूसरे कमरे में चले गए. अभिनव ने नेहा से साथ चलने को कहा तो उस ने उस के साथ जाने से मना कर दिया. अभिनव नशे में तो था ही, उसे भी तैश आ गया. गुस्से में वह नेहा से मारपीट करने लगा. पहले तो घनश्याम शुक्ला ने बेटी को बचाने का प्रयास किया, लेकिन जब वह उसे नहीं छुड़ा पाए तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी.

थोड़ी ही देर में मोटरसाइकिल से 2 पुलिस वाले उन के घर आ गए और पत्नी के साथ मारपीट करने के आरोप में अभिनव को हिरासत में ले लिया. अभिनव को पता था कि उस के ससुर घनश्याम शुक्ला ने फोन कर के पुलिस वालों को बुलाया है. वह वैसे भी दुखी और परेशान था, क्योंकि उन्हीं की वजह से नेहा ससुराल नहीं जा रही थी. पुलिस को देख कर उस का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने आगेपीछे की चिंता किए बगैर अपना लाइसेंसी रिवौल्वर निकाला और पुलिस के सामने ही घनश्याम शुक्ला के सीने में 2 गोलियां उतार दीं. गोली लगते ही घनश्याम शुक्ला जमीन पर गिर पड़े. उन्हें अस्पताल ले जाया जाता, उस के पहले ही उन की मौत हो गई.

इस के बाद अभिनव नेहा की ओर बढ़ा, लेकिन तब तक पुलिस वालों ने उसे पकड़ कर उस का रिवौल्वर कब्जे में ले लिया था. कंट्रोल रूम की सूचना पर आए सिपाहियों ने घटना की सूचना थाना कैंट के थानाप्रभारी बृजेश कुमार वर्मा को दी तो थोड़ी ही देर में वह भी सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. अभिनव को गिरफ्तार कर लिया गया था. थाने आ कर थाना कैंट पुलिस ने नेहा की तहरीर पर घनश्याम शुक्ला की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अभिनव को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अभिनव द्वारा दिए गए बयान एवं नेहा ने पुलिस को अपनी जो आपबीती सुनाई, उस के अनुसार नेहा की जो दर्दभरी कहानी सामने आई, वह सचमुच द्रवित करने वाली थी.

37 वर्षीया नेहा उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले घनश्याम शुक्ला की दूसरे नंबर की बेटी थी. जनरल कंसल्टेंट का काम करने वाले घनश्याम शुक्ला की पत्नी कुसुम शुक्ला भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की एजेंट थीं. शहर में घनश्याम शुक्ला की गिनती रईसों में होती थी. पतिपत्नी खुले विचारों के थे, शायद इसी का असर था कि उन की बड़ी बेटी नम्रता ने रुस्तमपुर निवासी विष्णु तिवारी से प्रेम विवाह कर लिया था. विष्णु तिवारी उन्हीं की जाति का था, इसलिए शुक्ला दंपति ने इस रिश्ते को स्वीकार कर बेटीदामाद को आशीर्वाद दे दिया था.

उस समय नेहा 8वीं में पढ़ रही थी. लेकिन जब उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के जीजा विष्णु तिवारी का दिल उस पर आ गया. जीजासाली का रिश्ता तो वैसे भी हंसीमजाक का होता है, इसलिए विष्णु तिवारी इस रिश्ते का फायदा उठाते हुए नेहा से हंसीमजाक के बहाने छेड़छाड़ करने लगा.

जीजा के मन में क्या है, उस की हरकतों से नेहा को जल्दी ही इस का अंदाजा हो गया. जीजा की नीयत का अंदाजा होते ही वह होशियार हो गई. विष्णु तिवारी ने पहले तो राजीखुशी से नेहा को अपनी बनाने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि नेहा राजीखुशी से उस के वश में आने वाली नहीं है तो नेहा को घर में अकेली पा कर उस ने जबरदस्ती करने की भी कोशिश की. लेकिन नेहा ने जीजा को अपने मकसद में कामयाब नहीं होने दिया. उस ने खुद को किसी तरह बचा लिया.

विष्णु तिवारी की हरकतों से परेशान हो कर नेहा ने आत्महत्या करने की कोशिश की. क्योंकि वह जानती थी कि उस की बातों पर घर में कोई विश्वास नहीं करेगा. नेहा फांसी का फंदा गले में डाल पाती, संयोग से कुसुम आ गईं और उन्होंने उसे बचा कर आश्वासन दिया कि वह विष्णु तिवारी को रोकेगी. पर शायद उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, क्योंकि इस के बाद भी वह नेहा से पहले की ही तरह छेड़छाड़ करता रहा.

तंग आ कर नेहा ने जीजा की शिकायत बहन से कर दी. लेकिन बहन ने भी पति को कुछ कहने के बजाय उसे ही डांटा और भविष्य में पति के चरित्र पर कीचड़ न उछालने की हिदायत भी दी. इस के बाद नेहा विष्णु तिवारी से बच कर रहने लगी.

जिन दिनों नेहा बीए कर रही थी, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात विष्णु तिवारी के भांजे अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी से हुई. दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. अभिनव नेहा के घर भी आनेजाने लगा. उसे नेहा के घर आनेजाने में कोई दिक्कत न हो, इस के लिए उस ने नेहा के भाई कपिल उर्फ मोहित से दोस्ती कर ली.

अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी कैंट थाना के बेतियाहाता मोहल्ले में अपनी मां और छोटे भाई उत्कर्ष के साथ रहता था. विष्णु तिवारी के रिश्ते से अभिनव नेहा का भांजा लगता था, लेकिन प्यार रिश्तेनाते कहां देखता है. बोंटी भी रिश्तेनाते भूल कर नेहा के प्रेम में डूब गया था.

अभिनव नेहा से शादी करना चाहता था, लेकिन इस के लिए नेहा के मातापिता से बात करना जरूरी था. उसे लगा कि अगर वह मामा से कहे तो शायद बात बन जाए. उस ने नेहा से अपने प्रेम की बात बता कर विष्णु तिवारी से मदद मांगी तो मदद करने के बजाय वह भड़क उठा. उस ने अभिनव को हद में रहने की हिदायत दी.

पर अभिनव ने तो नेहा से प्रेम किया था, इसलिए मामा की धमकी की चिंता किए बगैर अपने प्रेम के बारे में मां को बता कर उन्हें नेहा का हाथ मांगने के लिए उस के घर जाने को कहा. अभिनव की मां नेहा का रिश्ता मांगने घनश्याम शुक्ला के घर जातीं, उस के पहले ही विष्णु तिवारी ने सासससुर से अभिनव और नेहा के प्रेम के बारे में नमकमिर्च लगा कर बता कर उन्हें भड़का दिया.

इस का नतीजा यह निकला कि अभिनव की मां नेहा का रिश्ता मांगने आईं तो कुसुम ने उन्हें जलील कर के खाली हाथ लौटा दिया. इस की एक वजह यह भी थी कि कुसुम ने नेहा के लिए एलआईसी के मुंबई के एग्जीक्यूटिव डाइरेक्टर राधेमोहन पांडेय के बेटे मनीष कुमार पांडेय को पसंद कर रखा था.

मनीष लखनऊ सचिवालय में दलाली कर के अच्छी कमाई कर रहा था. कुसुम ने जल्दी से मनीष से नेहा का विवाह कर दिया. नेहा मनीष की दुलहन बन कर ससुराल चली गई. ससुराल में कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन कुछ दिनों बाद ससुराल वालों की असलियत सामने आ गई. वे मायके से दहेज लाने के लिए नेहा को परेशान करने लगे.

नेहा को परेशान करने की एक वजह यह भी थी कि विष्णु तिवारी ने नेहा से बदला लेने के लिए अभिनव से उस के संबंधों की बात मनीष को बता दी थी. इस के अलावा अभिनव नेहा की ससुराल फोन कर के उस से बातचीत किया करता था. नेहा को परेशान करने वाली बात घनश्याम और कुसुम को पता चली तो लखनऊ जा कर वे उसे गोरखपुर ले आए.

मायके में ही नेहा ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम मौलि रखा गया. मौलि के पैदा होने की सूचना घनश्याम शुक्ला ने नेहा की ससुराल वालों को भी दी थी, लेकिन वहां से कोई नहीं आया था. धीरेधीरे एक साल बीत गया. जब ससुराल से नेहा को लेने कोई नहीं आया तो अगस्त, 2004 में उस ने गोरखपुर के महिला थाना में भादंवि की धाराओं 498ए, 323, 342, 313 व 3/4 के तहत ससुराल वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

संकट की इस घड़ी में अभिनव ने नेहा का हर तरह से साथ दिया. परिणामस्वरूप उन का प्यार एक बार फिर से जाग उठा. इस की जानकारी विष्णु तिवारी को हुई तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा. उस ने साली का साथ देने के बजाय मनीष का साथ दिया और नेहा पर मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव डालने लगा. इस की एक वजह यह भी थी कि वह मनीष के साथ मिल कर ठेकेदारी करने लगा था.

चूंकि अभिनव हर तरह से नेहा का साथ दे रहा था, इसलिए 25 नवंबर, 2005 को उसे सबक सिखाने के लिए विष्णु तिवारी कुछ लोगों के साथ उस के घर जा पहुंचा. संयोग से उस समय अभिनव घर पर नहीं था. बाद में उस ने विष्णु तिवारी के खिलाफ थाना कैंट में भादंवि की धारा 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कराया.

अभिनव द्वारा मुकदमा दर्ज कराने के बाद कुसुम नेहा से नाराज हो गईं. बेटी से नाराज होने के बाद उस की मदद करने वाले अभिनव के खिलाफ उन्होंने 16 फरवरी, 2006 को थाना कैंट में ही भादंवि की धाराओं 498ए, 506, 328, 352, 307 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन का कहना था कि 15 फरवरी को अभिनव ने जान से मारने के लिए उन पर हमला किया था. उस समय नेहा ने विष्णु तिवारी और मनीष की वजह से जहर खा लिया था, जिस की वजह से वह अस्पताल में भरती थी. दरअसल विष्णु तिवारी ने रिवौल्वर की नोक पर मनीष के सामने ही उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. तब अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने घर में रखा जहर खा लिया था.

17 फरवरी, 2006 को अस्पताल में पत्रकारों के सामने अभिनव पांडेय ने ऐलान किया कि वह नेहा और उस की बेटी को अपनाने को तैयार है. इस के अगले दिन 18 फरवरी को अस्पताल में ही नेहा पर जानलेवा हमला हुआ. अगले दिन 19 फरवरी को अभिनव नेहा को एंबुलैंस से एसएसपी दीपेश जुनेजा के आवास पर ले गया, जहां उस ने उन्हें पूरी बात बताई.

इस के बाद एसएसपी के आदेश पर थाना कैंट में विष्णु तिवारी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 323, 354, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ, जिस की जांच बेतियाहाता चौकीप्रभारी मनोज पटेल को सौंपी गई. मनोज पटेल ने जांच में सारे आरोप सत्य पाए. लेकिन वह उसे गिरफ्तार कर पाते, उस के पहले ही उस ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टे ले लिया.

अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद नेहा अभिनव के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. चूंकि नेहा का अभी मनीष से तलाक हुआ नहीं था, इसलिए वह अभिनव से शादी नहीं कर सकती थी. आखिर घनश्याम शुक्ला ने कोशिश कर के किसी तरह नेहा को मनीष से आजादी दिला दी.

मनीष से छुटकारा मिलने के बाद नेहा ने अभिनव पांडेय से मंदिर में शादी कर ली. नेहा को अभिनव से भी 2 बेटियां पैदा हुईं. रियल एस्टेट कंपनी में मैनेजर की नौकरी करने वाले अभिनव ने शादी के बाद नौकरी छोड़ दी और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने लगा. इस धंधे से उस ने खूब कमाई की, लेकिन उसी बीच वह शराब पीने लगा. नेहा को अभिनव का शराब पीना अच्छा नहीं लगता था. वह उसे रोकती तो अभिनव उस से मारपीट करता. जब अभिनव नेहा को ज्यादा परेशान करने लगा तो उस ने मांबाप से की शिकायत की. घनश्याम शुक्ला ने अभिनव को समझाया कि वह पत्नी को सलीके से रखे. ससुर की यह बात उसे काफी बुरी लगी. इस के बाद नेहा के प्रति उस का व्यवहार और खराब हो गया. दुर्भाग्य से उसी बीच नेहा की मां कुसुम की अचानक मौत हो गई. कुसुम की मौत की बाद घनश्याम शुक्ला अकेले पड़ गए. नेहा पिता को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए अभिनव से बात कर के वह बच्चों को ले कर मायके चली आई. अभिनव जबतब शराब पी कर ससुराल आता और लड़ाईझगड़ा कर के नेहा से मारपीट करता. घनश्याम शुक्ला उसे समझाते, पर उस की तो आदत पड़ चुकी थी. वह भला कैसे सुधरता.

उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था. लेकिन उस दिन नशे में अभिनव ने जो किया, उस की तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. आखिर नशे में उस ने अपना घर ही नहीं, जिंदगी भी बरबाद कर ली.

पूछताछ के बाद पुलिस ने अभिनव को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अभिनव के जेल जाने के बाद उस के घर वाले नेहा पर मुकदमा वापस लेने का दबाव डाल रहे हैं, जिस की वजह से नेहा बच्चों को ले कर छिप कर रह रही है. कथा लिखे जाने तक अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी की जमानत नहीं हुई थी. थाना कैंट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी अभिनव पांडेय के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर न्यायालय में दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं.

प्रगति मैदान सुरंग : 15 सैकंड में लाखों की लूट

मोदी सरकार के नए और भव्य संसद भवन से प्रगति मैदान सुरंग की दूरी बहुत ज्यादा नहीं है. दिल्ली के रिंग रोड, मथुरा रोड और भैरों मार्ग का ट्रैफिक आसान बनाने के लिए इस सुरंग को लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाया गया है.

920 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत वाली तकरीबन डेढ़ किलोमीटर लंबी इस सुरंग को बनाने में 4 साल लग गए थे, जिस का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून, 2022 में अपने हाथों से किया था.

पर ‘डबल इंजन’ सरकार की कामयाबियों का हल्ला मचाने वालों को कहां पता था कि एक साल बाद कुछ अपराधी महज 15 सैकंड में इसी नईनवेली सुरंग में लाखों रुपए की चोरी को अंजाम दे देंगे.

दिन था 24 जून, 2023 का. दोपहर के ढाई बजे थे. चांदनी चौक की ओमिया ऐंटरप्राइजेज में एक डिलिवरी एजेंट रुपयों से भरा बैग ले कर लालकिला चौक से पेमेंट करने गुरुग्राम जा रहा था. उस के साथ एक और मुलाजिम भी था. जैसे ही वे इस सुरंग में गाड़ी से दाखिल हुए कि तभी लूट की वारदात हो गई.

पीडि़तों ने तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन में आ कर इस वारदात के संबंध में एक लिखित शिकायत दर्ज कराई थी. इस के बाद पुलिस ने जानकारी देते हुए बताया, ‘उन्होंने (पीडि़तों) लालकिला से एक ओला कैब किराए पर ली और जब कैब सुरंग में दाखिल हुई, तो 2 मोटरसाइकिलों पर 4 लोगों ने उन की गाड़ी को रोका और बंदूक की नोक पर 2 लाख रुपए से भरा बैग लूट लिया.’

चूंकि यह मामला देश की सब से बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के बेहद नजदीक हुआ था, तो पुलिस पर इसे सुलझाने का बहुत ज्यादा दबाव था. पुलिस ने मुस्तैदी भी दिखाई और इस मामले में अब तक 7 लोगों उस्मान अली उर्फ कल्लू, इरफान, सुमित उर्फ आकाश, अनुज मिश्रा उर्फ सैंकी, कुलदीप उर्फ लंगड़, प्रदीप उर्फ सोनू, अमित उर्फ बाला को गिरफ्तार किया है.

शुरुआती जांच में सामने आया है कि आरोपियों ने इस लूट को अंजाम देने से पहले वीरवार और शुक्रवार को इलाके की रेकी की थी. इस के बाद शनिवार को लूट को अंजाम दिया था.

पुलिस के मुताबिक, उस्मान अली और प्रदीप इस वारदात के मास्टरमाइंड हैं. उस्मान अली को चांदनी चौक इलाके में नकदी की आवाजाही के बारे में जानकारी थी, क्योंकि वह वहां कई सालों तक एक ईकौमर्स कंपनी में कूरियर बौय के तौर पर काम कर चुका था.

उस्मान अली ने कई बैकों से कर्ज ले रखा था और वह क्रिकेट की सट्टेबाजी में भी पैसा हार गया था. उस ने अपना कर्ज चुकाने के लिए इस लूट की साजिश रची थी.

उस्मान अली को जानकारी थी कि चांदनी चौक में कैश ट्रांजैक्शन दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक होता है. ऐसे में उस ने टारगेट की पहचान कर उस की रेकी शुरू की. शनिवार को उस्मान अली ने अपने साथियों को बताया था कि हरियाणा नंबर की टैक्सी में नकदी ले जाई जा रही है.

अनुज मिश्रा जल बोर्ड में कौंट्रैक्ट पर मेकैनिक है, जबकि कुलदीप सब्जी बेचता है और उसी ने लूट के लिए पिस्टल और गोलियों का इंतजाम कराया था. इरफान हज्जाम है और वह अपने चचेरे भाई उस्मान के जरीए दूसरे आरोपियों से मिला था. सुमित भी सब्जी बेचता है.

पुलिस के मुताबिक, प्रदीप फिरौती के एक मामले में 8 साल तक न्यायिक हिरासत में रह चुका है. वह 2 साल पहले ही जेल से रिहा हुआ है. अमित प्रदीप के जरीए ही उस्मान अली से मिला था.

उस्मान अली के बुराड़ी के फ्लैट पर इस लूट कांड की साजिश रची गई. कुलदीप पर पहले से झपटमारी और डकैती के 16 मामले दर्ज हैं, वहीं अनुज मिश्रा पर 5 केस दर्ज हैं, जबकि प्रदीप 37 आपराधिक मामलों में शामिल रहा है.

पुलिस में दर्ज की गई रिपोर्ट में 2 लाख रुपए की लूट का जिक्र किया गया है, पर यह बात भी उठ रही है कि लूट तो 50 लाख रुपए की हुई थी. पुलिस ने आरोपियों से तकरीबन 5 लाख रुपए भी बरामद किए थे. अपराध बढ़े हैं राजधानी में आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में साल 2019 में लूट के 1,956 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2020 में यही मामले बढ़ कर 1,963 हो गए थे. साल 2021 में राजधानी में दिनदहाड़े लूटने के 2,333 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि साल 2022 के सिर्फ 15 जुलाई तक 1,221 मामले दर्ज किए जा चुके थे.

अगर प्रगति मैदान सुरंग कांड के इन आरोपियों पर नजर डालें, तो उस्मान अली कुरियर बौय का काम करता था. अनुज मिश्रा मेकैनिक था, तो इरफान हज्जाम, जबकि सुमित और कुलदीप सब्जी बेचते थे. ये सातों शातिर थे, पर कहीं न कहीं ऐसे अपराधों की जड़ में बेरोजगारी होती है. उसी की वजह से भटक कर नौजवान तबका जुर्म की राह पर चला जाता है.

पिछले कुछ सालों में और कोरोना के कहर के बाद लोगों का रोजगार छूटा है या फिर बहुतों को कोई काम मिला ही नहीं है. ऊंची पढ़ाई वाले भी एक अदद नौकरी की तलाश में जूते घिसते नजर आते हैं. फिर दिल्ली जैसे शहर में प्रवासियों का आनाजाना लगा रहता है. उन में से जो ढंग का काम पा लेते हैं, वे तो दिल्ली में जमे रहते हैं, बहुत से किसी अपराध को अंजाम दे कर भाग जाते हैं.

दिल्ली में बढ़ती आबादी, नौजवान तबके में नशे की लत और पुलिस के अपराधियों के प्रति कमजोर रवैए से भी जुर्म की दर में इजाफा हुआ है.

स्ट्रीट जस्टिस : सजा देने का नया तरीका

पंजाब में पिछले लंबे अरसे से नशा भारी परेशानी का सबब बना हुआ है. इस बार सूबे में कांग्रेस की सरकार बनने के पीछे का मुख्य कारण भी यही था. क्योंकि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पंजाब से नशे को समूल खत्म करने का वादा किया था.

17 मार्च, 2017 को पंजाब राजभवन में प्रदेश के 26वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते समय कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की इस घोषणा को एक बार फिर से दोहराया था कि आने वाले एक महीने में उन की सरकार पंजाब से नशे का नामोनिशान मिटा देगी.

इस के बाद जल्दी ही एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू की अगुवाई में एक स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया, जिस में करीब 2 दर्जन आईपीएस और पीपीएस अधिकारियों के अलावा अन्य अफसरों को शामिल किया गया. इन का काम युद्धस्तर पर काररवाई कर के नशा कारोबारियों को काबू कर के पंजाब से ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह मिटाना था.

एसटीएफ को मुखबिरों से इस तरह की जानकारी मिलती रहती थी कि पंजाब में ड्रग्स के धंधे के पीछे न केवल एक बड़ा माफिया काम कर रहा है, बल्कि कई बड़े कारोबारी और पुलिसकर्मी भी इस काम में लगे हैं. बीते 3 सालों में पंजाब पुलिस के ही 61 कर्मचारी नशे का धंधा करने के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इन में इंटेलीजेंस के कर्मचारियों के अलावा होमगार्ड के जवान, सिपाही, हवलदार और डीएसपी जैसे अधिकारी तक शामिल थे.

लेकिन मुख्यमंत्री के आदेश पर बनी हाईप्रोफाइल एसटीएफ के हत्थे अभी तक कोई भी नशा कारोबारी नहीं चढ़ा. थाना पुलिस द्वारा नशे के छोटेमोटे धंधेबाजों को नशे की थोड़ीबहुत खेप के साथ अलगअलग जगहों से धरपकड़ जरूर चल रही थी. पर एसटीएफ का कोई कारनामा अभी सामने नहीं आया.

crime

शायद ये लोग छोटी मछलियों के बजाय किसी बड़े मगरमच्छ पर जाल फेंकने की फिराक में थे. जो भी हो, आम लोग इस बुरी लत से परेशान थे. पुलिस पर से भी लोगों का विश्वास उठता जा रहा था. बड़ेबड़े कथित ड्रग स्मगलर अदालत से बाइज्जत बरी हो रहे थे. इस समस्या का कोई सीधा समाधान नजर नहीं आ रहा था. जबकि नशे की चपेट में आ कर घर के घर बरबाद हो रहे थे.

बरसों पहले पंजाब में पनपे आतंकवाद पर जब काबू पाना मुश्किल हो गया था तो लोगों ने अपने दम पर आतंकियों से लोहा ले कर उन्हें धराशाई करना शुरू कर दिया था. इस का बहुत ही अच्छा परिणाम भी सामने आया था. जागरूक एवं दिलेर किस्म के लोगों द्वारा उठाए गए इस कदम ने आतंकवाद के ताबूत में आखिरी कील का काम किया था.

अब नशे के मुद्दे पर भी तमाम लोगों की सोच इसी तरह की बनने लगी थी. यहां हम जिस युवक का जिक्र कर रहे हैं, उस का नाम विनोद कुमार उर्फ सोनू अरोड़ा था. उस पर नशे का कारोबार करने का आरोप था.

बताया जाता है कि बठिंडा के कस्बा तलवंडी साबो और आसपास के इलाकों में नशा सप्लाई कर के उस ने तमाम युवकों को नशे की लत लगा दी थी. इन इलाकों के लोग उस से बहुत परेशान थे और उसे समझासमझा कर थक चुके थे. उस पर किसी के कहने का कोई असर नहीं हो रहा था. धमकाने पर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.

पास ही के गांव भागीवांदर के लोग तो उस से बेहद खफा थे. वहां के कई आदमी उस के खिलाफ शिकायतें ले कर पुलिस के पास गए थे. पुलिस उस के खिलाफ केस दर्ज कर भी लेती थी, लेकिन वह अदालत से जमानत पर छूट जाता था. नशा तस्करी के 5 केस उस पर दर्ज थे.

विनोद कई बार जेल जा चुका था, लेकिन जमानत पर छूटते ही फिर से इस गलीज धंधे में लग जाता था. 22 मई, 2017 को पुलिस ने उस के पिता विजय कुमार पर भी स्मैक का केस दर्ज किया था, जिस के बाद से वह मौडर्न जेल, गोबिंदपुरा में बंद था.

8 जून, 2017 की बात है. सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. विनोद अपनी मोटरसाइकिल पर तलवंडी साबो से अपने गांव लेलेवाल जा रहा था. इस गांव में जाने के लिए मुख्य सड़क से लिंक रोड मुड़ती है. विनोद उसी लिंक रोड पर पहुंचा था कि स्कौर्पियो गाड़ी व टै्रक्टर ट्रौली पर सवार दर्जनों लोगों ने पास आ कर उसे चारों तरफ से घेर लिया. उन के पास पिस्तौलें, लोहे की मोटीमोटी छड़ें, हैंडपंप के हत्थे और गंडासे वगैरह थे.

अनहोनी को भांप कर विनोद फिल्मी अंदाज से बचताबचाता लेलेवाल की ओर भागा. पीछा कर रहे लोग उधर भी उस का पीछा करते रहे. उस समय उस की मोटरसाइकिल की रफ्तार बहुत तेज थी, जिस की वजह से वह अपने घर पहुंच गया. लेकिन मोटरसाइकिल से उतर कर विनोद घर के भीतर घुस पाता, उस के पहले ही लोगों ने उसे पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया. इस के बाद उसे स्कौर्पियो में डाल कर गांव भागीवांदर ले गए.

वहां खुले रास्ते पर लिटा कर पहले तो उन्होंने उस की जम कर बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी. उस के बाद गंडासे से उस का एक हाथ और दोनों पैर काट दिए. यह सब करते समय कई लोगों ने इस घटना की वीडियो बना कर इस चेतावनी के साथ सोशल मीडिया पर डाल दिया कि आगे से जो भी नशे के धंधे में लिप्त पाया जाएगा, उस का ऐसा ही हश्र होगा. क्योंकि पंजाब से नशा मिटाने का अब और कोई रास्ता नहीं बचा है.

इस बीच जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद उन लोगों से दया की भीख मांगता रहा, लेकिन किसी को उस पर दया नहीं आई. लोग उस पर फब्तियां कस रहे थे कि अब वह अपने उन आकाओं को क्यों नहीं बुलाता, जिन के साथ मिल कर ड्रग्स का धंधा कर के उन की नौजवान पीढ़ी को नशे के अग्निकुंड में झोंक रहा था.

विनोद पर तरस खाना तो दूर की बात, पूरा गांव यही चाह रहा था कि वह तिलतिल कर के मौत के आगोश में समाए और उस के इस लोमहर्षक अंत का नजारा वे लोग भी देखें, जो नशे के हक में हैं. जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद शायद कुछ देर बाद वहीं दम तोड़ भी देता, लेकिन किसी तरह बात पुलिस तक पहुंच गई.

पुलिस की एक टीम ने मौके पर पहुंच कर बिना देर किए एंबुलेंस बुला कर जल्दी से जल्दी विनोद को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की. लेकिन लोगों के भारी विरोध के चलते पुलिस को इस काम में एक घंटे का समय लग गया. इस बीच विनोद के शरीर से लगातार खून बहता रहा. हालांकि उस हालत में भी वह पुलिस वालों को घटना के बारे में बताता रहा, जिसे एएसआई गुरमेज सिंह दर्ज करते रहे.

ठीक एक घंटे बाद एंबुलेंस विनोद को ले कर तलवंडी साबो के सरकारी अस्पताल के लिए रवाना हुई तो लोगों का समूह उस के पहुंचने से पहले ही वहां पहुंच कर अस्पताल के मुख्य गेट को घेर कर खड़ा हो गया. यहां भी एंबुलेंस का घेराव कर के विनोद को अस्पताल के भीतर नहीं जाने दिया गया. लोगों ने एंबुलेंस को लगातार 3 घंटे तक घेरे रखा.

काफी मशक्कत के बाद पुलिस किसी तरह विनोद को फरीदकोट के सरकारी मैडिकल कालेज एवं अस्पताल ले जाने में सफल हो पाई. लेकिन तब तक विनोद ने दम तोड़ दिया था. एएसआई गुरमेज सिंह के पास उस का बयान दर्ज था. उसी बयान को तहरीर के रूप में ले कर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अगली सुबह पुलिस मामले की जांच के लिए गांव भागीवांदर पहुंची तो वहां अजीब नजारा सामने आया. 4 हजार की आबादी वाले इस गांव के तमाम लोग इस अपराध की स्वीकृति के साथ आत्मसमर्पण को तैयार थे कि ड्रग सप्लायर विनोद का कत्ल उन सब ने मिल कर किया था.

उन लोगों में बुजुर्ग, जवान, पुरुषमहिलाओं के अलावा किशोर और छोटेछोटे बच्चे तक शामिल थे. सभी अपनी गिरफ्तारी देने को तो तैयार थे. उन का कहना था कि एक ड्रग सप्लायर को इस तरह मारने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है. आगे भी इस इलाके में नशा बेचने वाले का यही हश्र होगा.

स्थिति को देखते हुए पुलिस के लिए गांव के किसी शख्स से पूछताछ करना तो दूर की बात, मामले की जांच तक करना मुश्किल हो गया. इस के बाद पुलिस ने गांव लेलेवाल पहुंच कर विनोद के परिवार वालों से संपर्क किया. वे सभी अपने घर में दुबके बैठे थे. हालांकि पुलिस वालों पर उन्होंने अपनी भड़ास खूब निकाली. उन लोगों को डर था कि कहीं उन पर भी जानलेवा हमला न हो जाए.

उन लोगों की आशंका जायज थी. लिहाजा उन के घर पर पुलिस का सशस्त्र दस्ता तैनात कर दिया गया. उसी दिन फरीदकोट मैडिकल कालेज में डाक्टरों के एक पैनल ने विनोद की लाश का पोस्टमार्टम कर के उसे पुलिस वालों को सौंप दिया.

पुलिस ने लाश लेने का संदेश विनोद के घर वालों तक पहुंचा दिया, लेकिन उन लोगों ने यह कह कर शव लेने से इनकार कर दिया कि पुलिस उन्हें न्याय दिलाने की जरा भी कोशिश नहीं कर रही है.

एएसआई गुरमेज सिंह को दिए अपने बयान में विनोद ने उस पर हमला करने वालों के नाम स्पष्ट बताए थे. वे अच्छीखासी संख्या में इकट्ठा हो कर आए थे. उन के पास मारक हथियार भी थे. जबकि पुलिस ने केवल धारा 302 (हत्या) का मुकदमा अज्ञात हमलावरों के खिलाफ दर्ज किया था और अब इस लोमहर्षक हत्याकांड के असली मुजरिमों को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है.

पुलिस ने इस बारे में समझाने की कोशिश की तो वे भड़क उठे थे. बाद में उन का कहना था कि समुद्र में रह कर मगरमच्छों से बैर न रखने वाले मुहावरे का हवाला दे कर पुलिस ने उन्हें कथित आरोपियों से समझौता कर लेने की सलाह दी थी. विनोद की 3 बहनों बबली, वीरपाल और अमनदीप कौर ने पहले तो रोरो कर आसमान सिर पर उठाया, उस के बाद पंखों से लटक कर आत्महत्या करने की कोशिश भी की.

पुलिस ने तत्काल एक्शन लेते हुए उन की यह कोशिश नाकाम कर दी. पर यह मामला घर वालों की ओर से कुछ ज्यादा ही गंभीर होने लगा था. अब तक तमाम लोग उन की हिमायत में भी आ गए थे और पुलिस के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे थे.

उन का कहना था कि किसी को इस तरह सरेआम मार दिया गया तो पुलिस को हत्यारों के दबाव में न आ कर अपनी काररवाई करनी चाहिए. कायदे से मुकदमा दर्ज कर के वांछित अभियुक्तों को नामजद कर उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए. इस तरह तो दबंग लोग कानून को धता दिखा कर कुछ भी मनमानी करने लगेंगे.

मामला बढ़ता देख आखिर बठिंडा के एसपी (हैडक्वार्टर) भूपेंद्र सिंह और ड्यूटी मजिस्ट्रैट के रूप में रामपुराफुल के एसडीएम-1 सुभाष चंदर खटके विनोद के घर वालों से मिले. बातचीत करने के साथसाथ इन अधिकारियों ने उन के बयान भी दर्ज किए, साथ ही भरोसा भी दिया कि इस मामले में दूसरी एफआईआर दर्ज कर घटना के जिम्मेदार लोगों को नामजद करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर के उन पर बाकायदा मुकदमा चलाया जाएगा.

इस भरोसे के बाद शांत हो कर उन लोगों ने विनोद का शव ले तो लिया, लेकिन एक शर्त भी रख दी. शर्त यह थी कि नई एफआईआर दर्ज करने के बाद जब तक पुलिस उन्हें उस की अधिकृत प्रति नहीं दे देगी, तब तक वे विनोद का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे.

यह शर्त भी मान ली गई. उसी दिन विनोद के भाई कुलदीप अरोड़ा के बयान के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धाराओं 364/341/186/120बी/148 एवं 149 के तहत नई एफआईआर दर्ज कर के उस में 13 लोगों को नामजद किया.

वे 13 लोग थे, गांव की सरपंच चरणजीत कौर, अमरिंदर सिंह राजू, भिंदर सिंह, पूर्ण सिंह, बड़ा सिंह, दर्शन सिंह, मनदीप कौर, गुरप्रीत सिंह, जगदेव सिंह, निम्मा सिंह, हरपाल सिंह, सीरा सिंह और गुरसेवक सिंह. ये सभी लोग गांव भागीवांदर के रहने वाले थे. इन के अलावा पुलिस ने दर्जन भर अज्ञात लोगों के इस कांड में शामिल होने का जिक्र किया था.

मामला दर्ज होने के बाद एफआईआर की प्रति शिकायतकर्ता कुलदीप अरोड़ा को दे दी गई. इस के बाद 10 जून की शाम तलवंडी साबो की लेलेवाल रोड पर स्थित श्मशान घाट में भारी पुलिस सुरक्षा के बीच विनोद का अंतिम संस्कार कर दिया गया. बेटे के अंतिम दर्शन के लिए विनोद के पिता विजय अरोड़ा को भी पुलिस सुरक्षा में गोबिंदपुरा मौडर्न जेल से वहां लाया गया था.

इलाके में पुलिस की गश्त लगातार जारी थी. दरअसल, इस घटनाक्रम का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से यह मामला पूरी दुनिया में फैल गया था. कोई इस कदम को सराह रहा था तो कोई इसे पंजाब में कानूनव्यवस्था की नाकामी बता रहा था.

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस हत्याकांड के लिए पंजाब की मौजूदा कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया. मीडिया में अपना बयान जारी करते हुए उन्होंने खुलासा किया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री बनने पर शपथ लेते समय पंजाब से एक महीने के भीतर नशे को पूरी तरह खत्म करने का वादा किया था, लेकिन ऐसा कर पाने में वह पूरी तरह नाकाम रहे हैं.

यही वजह थी कि भागीवांदर में नशा बेचने वाले 25 साल के युवक का लोगों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया. पुलिस ने गांव वालों की शिकायत पर ड्रग तस्करों के खिलाफ समय रहते सख्त एवं व्यापक काररवाई की होती तो नशे से बरबाद हो रहे युवकों के घर वालों को इस तरह कानून अपने हाथों में लेने की नौबत न आती. राजनेताओं को उतने ही वादे करने चाहिए, जो व्यावहारिक रूप से निभाए जा सकें.

यहां यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि इस घटना के बाद पंजाब की एसटीएफ की टीम ने तेजी से नशा तस्करों को पकड़ने में अपनी अहम भूमिका निभानी शुरू कर दी है. इन में पुरुष, महिलाएं सभी तरह के लोग हैं. इन से करोड़ों का नशीला पदार्थ भी बरामद किया गया है.

यों तो यह एक लंबी सूची बनती जा रही है, लेकिन इस समय सब से चर्चित मामला पुलिस इंसपेक्टर इंदरजीत सिंह का है. उन पर आरोप है कि नशा तस्करों को पकड़तेपकड़ते वह खुद ही ड्रग्स डौन बन गए.

खाकी वर्दी पहन कर और सीने पर गैलेंट्री अवार्ड का तमगा लगा कर वह समानांतर ड्रग्स किंग बन गए. लंबे पुलिस रिमांड पर ले कर एसटीएफ उन से सघन एवं व्यापक पूछताछ कर रही है. एसटीएफ प्रमुख का दावा है कि वर्दी वाले इस गुंडे से गहन पूछताछ के बाद पंजाब के ड्रग तस्करी में एक नया अविश्वसनीय, लेकिन बौलीवुड की फिल्मों सरीखा रोचक अध्याय जुड़ने वाला है.

आगे खतरा यह भी है कि स्ट्रीट जस्टिस के नाम पर लोग खाकी कौलर वाले इस कथित अपराधी को अदालत में ही घेर कर मार न दें. नशा तस्करों को घेर कर लोगों द्वारा मार डालने के कुछ अन्य अपुष्ट समाचार भी प्रकाश में आए हैं. इन में 18 जून, 2017 को पटियाला के कस्बा समाना में शराब तस्कर सतनाम सिंह को पीटपीट कर मौत के घाट उतारने व उस के साथी को बुरी तरह घायल करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हो चुकी है.

थाना सदर समाना के थानाप्रभारी हरमनप्रीत सिंह चीमा के बताए अनुसार, 17 जून, 2017 की रात 10 बजे 2 व्यक्ति अपनी स्विफ्ट कार से देशी शराब की 30 पेटियां ले कर पंजाब की सीमा में दाखिल हुए थे. गांव रामनगर के पास पहले से खड़े कुछ लोगों ने उन्हें रुकने का इशारा किया. न रुकने पर उन लोगों ने अपनी स्कौर्पियो से पीछा कर कार को टक्कर मार कर खाईं में पलट दी.

शराब की तमाम पेटियां इधरउधर बिखर गईं. कार में सवार दोनों लोग घायल हो कर बाहर आ गिरे तो उन लोगों ने लोहे की छड़ों और लाठियों से उन की जम कर पिटाई कर दी और भाग गए. सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची. बुरी तरह घायल काका सिंह के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल एवं कत्ल के इरादे वगैरह की धाराओं पर एफआईआर दर्ज की गई. काका सिंह का साथी सतनाम सिंह इस मामले में मारा गया, जिस के घर वालों ने अस्पताल में हंगामा किया तो मामले में 5 लोगों हरदीप सिंह, सरबजीत सिंह, परगट सिंह, मंगतराम और अशोक सिंगला को नामजद किया गया.

बहरहाल, विनोद उर्फ सोनू अरोड़ा के मामले में जहां उस के घर वाले अभियुक्तों की गिरफ्तारी को ले कर धरना दिए बैठे हैं, वहीं भागीवांदर गांव के लोगों का कहना है कि गिरफ्तारी होगी तो पूरे गांव की होगी, वरना 13 लोगों को गिरफ्तार करने पुलिस भूल कर भी गांव में न आए.

सरपंच चरणजीत कौर के बताए अनुसार, गांव की 3 पीढि़यों को नशे की दलदल में धकेलने वाले विनोद उर्फ सोनू और उस के साथियों ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा था. गांव के नौजवानों को नशा सप्लाई करने के साथ उन्हें इस धंधे में शामिल कर उन का जीवन तबाह कर रहा था. पुलिस भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर रही थी.

समय रहते अगर गांव वालों की शिकायत पर पुलिस ने ठीक से कारवाई की होती तो शायद ऐसा कदम उठाने की नौबत न आती. दोनों पक्षों की ओर से रोजरोज मिलने वाली चेतावनियों के बीच पुलिस वाले खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं. ऐसे में अभी तक नामजद अभियुक्तों में से किसी एक की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई है.

धर्म की आड़ में छिपाते थे दरिंदगी

यूपी, बिहार, हरियाणा और राजस्थान में संगीन वारदातों को अंजाम देने वाले एक्सल गैंग के चार वहशी दरिंदों को कानून का डर भले ही न हो. लेकिन भगवान में आस्था का ड्रामा यह बखूबी करते थे.

इन दरिंदों ने पुलिस पूछताछ में बताया कि साल के 365 दिनों में से 20 दिन गुनाहों की दुनिया से दूर रह कर सात्विक जीवन जीने का ढोंग करते थे. यही कारण है कि यह चारों दरिंदें नवरात्रों में कन्या का पूजन करना नहीं भूलते थे. लूट में अच्छा माल मिलने हर देवी पर बलि चढ़ाते थे. लूट में भगवान का हिस्सा भी निकाल कर रखते थे. यह लोग जो पैसा लूट का बचता था उससे साल में दो बार कन्या पूजन करते थे.

एक्सल गैंग के सदस्यों ने पुलिस पूछताछ में बताया कि वह वारदातों को अंजाम देने से पूर्व और बाद में भगवान का धन्यवाद करना नहीं भूलते थे. नवरात्रों में यह गैंग वारदातों को अंजाम नहीं देता था. इसके साथ मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करते थे. धमरु ने बताया कि एक एक बार नवरात्रों में उसके एक साथी ने होटल में मुर्गे का आर्डर दिया था. जिसे नवरात्र का हवाला देते हुए उस ऑर्डर को रद्द कर दिया था.

हरियाणा के दरोगा को धमकी

तेरह सितंबर को जब गुरुग्रामपुलिस ने हाईवे पर रेप-लूट करने वाले एक्सल गैंग को पकड़ा था तो सबसे पहले यूपी पुलिस और एसटीएफ को खबर की थी. गैंग का पर्दाफाश करने वाले दरोगा को यूपी पुलिस ने दो टूक जवाब दिया था कि वह दरोगा है और वही बनकर रहे, ज्यादा आगे न बढ़े.

यूपी पुलिस से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला तो हरियाणा पुलिस ने पूरे मामले को सीबीआई के संज्ञान में डाला. इसके बाद ही पूरे प्रकरण का खुलासा हो सका.

हरियाणा के बिलासपुर क्राइम ब्रांच के प्रभारी सुरेंद्र सिंह और खेड़की दौला एसएचओ यशवंत सिंह की टीम ने एक साल की कड़ी मेहनत के बाद 13 सितंबर को एक्सल गैंग के सात गुर्गे गिरफ्तार किए थे. यूपी में एक्सल गैंग द्वारा किए गए बड़े मामलों की जानकारी देते हुए यूपी पुलिस को गुरुग्राम आकर आरोपियों से पूछताछ करने का न्योता दिया.

क्राइम सीन बताने पर भरोसा

यूपी पुलिस के रिस्पांस नहीं देने पर हरियाणा पुलिस के आला अधिकारियों ने पूरा मामला सीबीआई के संज्ञान में डाला. सीबीआई टीम ने गुड़गांव पहुंचकर आरोपियों से पूछताछ की. आरोपियों ने दोनों वारदातों का क्राइम ऑफ सीन सीबीआई को विस्तार से बताया.

जब सड़कों पर उतरते हैं बड़े घरों के लाडले

सेक्टर-8 की सेंट्रल रोड से होते हुए वर्णिका कुंडू सेक्टर-7 के पेट्रोल पंप के पास पहुंची तो उस के किसी दोस्त का फोन आ गया. कार को सड़क किनारे रोक कर वह फोन सुनने लगी. तभी उस ने देखा कि एक एसयूवी (स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल) पीछे आ कर रुकी और उस में से 2 युवक उतर कर उस की कार की ओर बढ़ने लगे. सफेद रंग की यह एसयूवी गाड़ी तभी से उस का पीछा कर रही थी, जब वह सेक्टर-8 से निकली थी. तब उस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था.

उस रोज शुक्रवार था और तारीख थी 4 अगस्त, 2017. देर रात सवा 12 बजे वर्णिका अपनी कार से सेक्टर-8 की मार्केट से पंचकूला स्थित अपने घर जा रही थी. हरियाणा का यह शहर चंडीगढ़ से एकदम सटा है. उस जगह से घर पहुंचने में उसे 10-15 मिनट से ज्यादा का वक्त नहीं लगना था.

पहले भी वह करीबकरीब रोजाना चंडीगढ़ से पंचकूला इसी तरह अकेली जाती थी, वक्त भी यही होता था. चंडीगढ़ उसे हर तरह से सुरक्षित लगता था. लेकिन उस रात पीछे आने वाले युवकों का अलग सा अंदाज देख कर उस के मन में अनहोनी की आशंका हुई. उस ने फोन बंद कर के वहां से कार दौड़ा दी.

कार को वहां से भगाते समय उस ने फ्रंट मिरर में देखा कि उन लड़कों ने भी जल्दी से अपनी एसयूवी में बैठ कर उस की कार के पीछे दौड़ा दी. उन्हें देख कर साफ पता चल रहा था कि उन्हें एक अकेली लड़की को देख कर परेशान करने में बहुत मजा आ रहा था. वे बारबार हौर्न बजाते हुए डिपर का भी इस्तेमाल करते रहे. वर्णिका को एक बारगी लगा कि वे उस की कार में टक्कर मारेंगे. उन के हावभाव से शराब पिए होने की आशंका भी लग रही थी. साथ ही वे गलत इशारे भी कर रहे थे.

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नीली शर्ट वाले लड़के की बदमाशी

पूरी तरह चौकन्नी हो कर अपनी कर को तेज रफ्तार से भगाते हुए वर्णिका सेक्टर-26 स्थित सेंट जौन स्कूल के पास उस जगह पहुंच गई, जहां न्योन लाइट्स की काफी रोशनी थी. उसे लगा कि अगर लड़कों की नीयत ठीक न हुई तो भी वे भरपूर रोशनी में उस के साथ कोई शरारत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे. वर्णिका ने सोचा कि वहां रुक कर उसे अपने घर वालों को सारी स्थिति बता देनी चाहिए ताकि वे लोग उसे लेने वहां आ जाएं.

लेकिन उन लड़कों को जैसे किसी तरह का कोई डर नहीं था. वर्णिका के किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले ही उन्होंने भरपूर रोशनी में भी अपनी गाड़ी वर्णिका की कार के आगे लगा कर उसे रुकने को मजबूर कर दिया.

उन के इस कृत्य से वर्णिका बुरी तरह घबरा गई, मगर उस ने धैर्य नहीं छोड़ा. लगातार हौर्न बजाते हुए उस ने कार को रिवर्स गीयर में डाला और वहां से भागने को हुई. तभी एसयूवी में से नीली टीशर्ट पहने एक युवक उतर कर अजीब तरह से हाथपैर हिलाते हुए उस की कार के पास आ पहुंचा.

उस ने जैसे ही कार को रोकने की कोशिश की, वर्णिका ने कार रोकने के बजाए उल्टी दिशा में भगा दी और ट्रैफिक लाइट पर पहुंच कर दाईं ओर मोड़ने की कोशिश की. तभी यूएसवी उस के पास से तेजी से निकल कर घूमी और आगे आ कर उस का रास्ता रोक लिया.

वर्णिका ने होशियारी से काम लिया और कार सेक्टर-26 की ओर घुमा कर मध्यमार्ग पर ले जाने की कोशिश की. उसे यकीन था कि अगर उस की कार मध्यमार्ग पर पहुंच गई तो वह पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगी. लेकिन यहां भी लड़कों की गाड़ी ने फिर से उस का रास्ता रोक लिया.

इस बार भी पहले वाले लड़के ने अपनी गाड़ी से उतर कर उसे कार रोकने का इशारा किया और वर्णिका की ओर भागा. वर्णिका ने अपनी कार फिर से रिवर्स गीयर में डाल कर उल्टी दिशा में दौड़ा दी. जैसेतैसे वह मध्यमार्ग पर पहुंचने में सफल हो गई. यहां से उस ने गीयर बदल कर अपनी कार पंचकूला जाने वाले रास्ते पर दौड़ा दी.

इसी बीच वर्णिका ने 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) को फोन कर के इस मामले की जानकारी देते हुए मदद मांगी. पुलिस ने उस की सही लोकेशन पूछी और जल्दी पहुंचने का आश्वासन दिया. इस के बाद कुछ दूर तक एसयूवी नजर नहीं आई. वर्णिका को लगा कि लड़कों ने उसे फोन करते देख लिया होगा और वे समझ गए होंगे कि उस ने पुलिस को फोन कर दिया है.

अपनी समझ के मुताबिक वर्णिका यह सोच कर आश्वस्त हो गई कि उस का पीछा करने वाले लड़कों ने डर कर रास्ता बदल दिया होगा और पीछे मुड़ गए होंगे, अब एसयूवी उस के पीछे नहीं आएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मिनट भर का अंतराल भी नहीं हुआ था कि वह गाड़ी तेज रफ्तार से वर्णिका की कार के पीछे आती नजर आई.

उस वक्त वर्णिका करीब 6 किलोमीटर लंबी सीधी रोड पर थी. इस पूरे रास्ते भर एसयूवी निरंतर उस का पीछा करती रही. कार में सवार लड़के उसे रोकने की पूरी कोशिश कर रहे थे. यह स्थिति देख वर्णिका को अपना हौंसला पस्त होता नजर आने लगा था. उसे पुलिस का बेसब्री से इंतजार था.

वर्णिका का डर

वह सोच रही थी कि अगर वक्त रहते पुलिस ने आ कर उन लड़कों को काबू न किया और वह उन के हत्थे चढ़ गई तो पता नहीं उस का क्या होगा? इस में कोई शक नहीं था कि उस का पीछा करने वाले शोहदे थे. उन के इरादे खतरनाक भी हो सकते थे, दिमाग में उमडतीघुमड़ती इस तरह की बातें वर्णिका को परेशान करने लगी थीं. फिर अभी यह भी स्पष्ट नहीं था कि वे लोग इस तरह उस के पीछे क्यों पड़ गए थे.

जो भी था, निरंतर 5 किलोमीटर तक वर्णिका ने अपनी कार पूरी रफ्तार से भगाई. उस का पीछा करती एसयूवी भी उसी रफ्तार से उसे फौलो करती हुई उस तक पहुंचने का प्रयास कर रही थी.

घिर गई वर्णिका

पंचकूला-चंडीगढ़ को जोड़ने वाला हाऊसिंग बोर्ड चौक ज्यादा दूर नहीं रहा था. मगर वहां तक पहुंचने से पहले ही लड़कों ने अपनी गाड़ी और भी तेज रफ्तार से भगाते हुए वर्णिका की कार को घेर कर रोक लिया. इस बार भी पहले वाला युवक दौड़ता हुआ वर्णिका की कार के पास आया और उस की कर की खिड़की खोलने का प्रयास करने लगा. दरवाजे का हैंडिल मजबूती से पकड़ कर वह बारबार इस तरह झटक रहा था जैसे उसे तोड़ कर ही मानेगा.

वर्णिका के पास इस के अलावा बचाव का अन्य कोई रास्ता नहीं था कि निरंतर हौर्न बजाती गाड़ी को फिर से रिवर्स गीयर में डाल कर वहां से निकलने का प्रयास करे. उस ने ऐसा ही किया भी.

लेकिन यह सड़क सुनसान नहीं थी. उस वक्त भी वाहनों की अच्छीखासी आवाजाही जारी थी. जरा सी देर में वहां काफी वाहन एकत्र हो गए, जिस की वजह से रास्ता अवरुद्ध हो गया. वर्णिका की कार के साथसाथ लड़कों की एसयूवी भी घिर गई. लोगों को स्थिति मालूम नहीं थी. वे अपने वाहनों से निकल कर इन लोगों को बुराभला कहते हुए अपनी गाडि़यां वहां से हटाने को कहने लगे. अगर ऐसा हो जाता तो वर्णिका निश्चित रूप से उन लड़कों के हत्थे चढ़ जाती.

अभी कुछ ही पल गुजरे थे कि सायरन बजाती पीसीआर वैन वहां आ पहुंची. इस में से उतरे पुलिसकर्मियों ने दोनों युवकों को उन की एसयूवी समेत काबू कर के थाना ईस्ट पहुंचा दिया. थाने में वर्णिका से लिखित शिकायत ले कर उसे घर जाने दिया गया.

वर्णिका वरिंदर सिंह कुंडू की बेटी थी. वरिंदर सिंह कुंडू हरियाणा में 1986 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. कुंडू साहब के बारे में मशहूर है कि अपने पद पर रहते हुए उन्होंने अपना काम पूरी ईमानदारी और कुशलता से किया और वह कभी किसी के दबाव में नहीं आए. अन्याय तो वह कभी सहन नहीं करते थे. पीडि़त व्यक्ति को न्याय दिलवाने के लिए वह बड़े से बड़े शख्स से भी टकराने को तैयार हो जाते थे.

शायद यही वजह थी कि वह अब तक 30 तबादलों का दंश झेल चुके थे, जबकि उन्हें नौकरी में आए अभी कुल  31 बरस भी नहीं हुए थे. इन दिनों वह हरियाणा सरकार के एडीशनल चीफ सेक्रेटरी के पद पर तैनात थे.

कुंडू साहब के परिवार में उन की धर्मपत्नी सुचेता कुंडू के अलावा 2 बेटियां हैं, वर्णिका एवं सत्विका. सत्विका को मार्शल आर्ट सीखने का शौक था. इस संबंध मे उस ने एक सेंटर ज्वाइन किया तो देखते ही देखते उस का पूरा परिवार ही मार्शल आर्ट सीखने लगा.

कालांतर में कुंडू साहब इस फील्ड में सेकेंड डिग्री ब्लैकबेल्ट होल्डर बन गए. उन की बेटी वर्णिका ताईक्वांडो की प्रथम श्रेणी ब्लैकबेल्ट हासिल कर चुकी थी. सुचेता पंचकूला के बालनिकेतन व बाल सदन में रहने वाले बच्चों को मार्शल आर्ट का नि:शुल्क प्रशिक्षण देती थीं. वर्तमान में पी.एस. कूंडू ताईक्वांडो फेडरेशन औफ इंडिया के अध्यक्ष हैं.

स्कूली दिनों से ही वर्णिका को गीतसंगीत का शौक था. उस का सपना था कि बड़ी हो कर वह संगीतकार बने. ग्रैजुएशन की डिग्री हासिल करने के बाद उस ने अपना एक डीजे (डिस्को जौकी) खोल लिया. बाद में वह अन्य जगहों पर भी परफौर्म करने लगी. इस क्षेत्र में वह काफी लोकप्रिय होती जा रही थी. उस का अगला लक्ष्य मुंबई था.

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चंडीगढ़ के सेक्टर-26 में एक बार है स्विस सिटी पब, जहां उस की परफोर्मेंस बहुत पसंद की जाती है. यहां से फारिग होने में उसे अकसर रात 12 बज जाया करते थे. लेकिन रात में यहां से घर के लिए अकेले निकलने में उसे कभी कोई परेशानी नहीं हुई थी. उस की नजर में चंडीगढ़ लड़कियों के लिए पूरी तरह सुरक्षित शहर था.

लेकिन 4 अगस्त, 2017 की आधी रात में उस की यह खुशफहमी तब निराशा में बदल गई, जब उसे अकेली देख 2 शोहदों ने गुंडागर्दी कर के उस की कार रोकने की कोशिश की थी. यह वर्णिका की बहादुरी भरी होशियारी ही थी कि वह उन के हत्थे चढ़ने से बच गई थी और पुलिस उन्हें उन की गाड़ी समेत थाना ले गई थी.

वर्णिका ने पिता को बताया

बदहवासी की सी स्थिति में घर पहुंच कर वर्णिका ने अपने साथ घटी इस घटना के बारे में परिवार के सदस्यों को बताया तो उस के पिता वरिंदर सिंह कुंडू उसे साथ ले कर उसी वक्त थाना सेक्टर-26 के लिए निकल गए. उन्होंने अपने एक परिचित वकील को भी फोन कर के थाने पहुंचने को कह दिया था, ताकि पुलिस इस मामले में कोई ढिलाई न बरत सके.

इस बात का अनुमान तो सहज ही लगाया जा सकता था कि जिन लड़कों ने बिना किसी खौफ के इतनी गुंडागर्दी दिखाई थी, वे कोई छोटेमोटे अपराधी नहीं हो सकते थे. कुंडू साहब ने सोचा कि पुलिस ने अगर उन के खिलाफ काररवाई नहीं की तो उन के हौसले और बुलंद हो सकते हैं.

थाने पहुंच कर पता चला कि दोनों लड़के कोई अपराधी न हो कर बड़े घरों के लाडले थे. इन में से एक था हरियाणा भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला का बेटा विकास और दूसरा उस का दोस्त आशीष. पुलिस ने दोनों के खिलाफ छेड़छाड़ और रास्ता रोकने की कोशिश के अलावा मोटर व्हीकल एक्ट के तहत मामला दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था, मगर इन धाराओं के तहत उन्हें थाने से ही जमानत पर छोड़ा जा सकता था.

अभी तक न तो पुलिस वालों को मालूम था और न ही उन दोनों लड़कों को कि इस मामले में शिकायतकर्ता हरियाणा के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी की बेटी थी. बाद में जब यह परिचय सामने आया तो पुलिस वालों के पैरों तले की जमीन तो सरकी ही, दोनों आरोपी भी वर्णिका को बहन कहते हुए उस के व उस के पिता के सामने गिड़गिड़ा कर माफी मांगने लगे.

इस के बाद वी.एस. कुंडू के पास क्षेत्र के नेताओं के फोन आने लगे. सभी उन पर दबाव डाल कर इस मामले में समझौता करने को कह रहे थे. पुलिस पर भी दबाव था कि समझौता नहीं हो पाया तो जितनी धाराएं लगाई गई हैं, उन से आगे मत बढ़ना और लड़कों को थाने से ही जमानत दे कर घर भेज देना.

फेसबुक की पोस्ट रंग लाई

थाने में अभी यह सब चल ही रहा था कि वर्णिका ने एक ओर बैठ कर अपने स्मार्टफोन के माध्यम से फेसबुक एकाउंट पर इस घटना के खुलासे की पोस्ट डालते हुए अंत में अपना दर्द इस तरह से उजागर कर दिया ‘मुझे नहीं मालूम था कि मेरे साथ क्या हो सकता था. आरोपी मेरा रेप कर के मेरी हत्या भी कर सकते थे. चंडीगढ़ पुलिस द्वारा तुरंत एक्शन लिए जाने के कारण मैं आरोपियों की शिकार नहीं बनी. मगर हर लड़की मेरे जैसी लकी नहीं हो सकती.’

इस के बाद वर्णिका ने चंडीगढ़ पुलिस को दिल से धन्यवाद भी दिया.

लेकिन फिलहाल मामला ज्यों का त्यों रहा. पुलिस ने दोनों लड़कों का मेडिकल करवाया, जिस में उन के शराब पीने की पुष्टि हुई. सीआरपीसी की धारा 164 के तहत ड्यूटी मजिस्टे्रेट के सामने वर्णिका के बयान भी दर्ज करवाए गए. लेकिन इस के बाद 5 अगस्त को दोपहर बाद करीब 4 बजे दोनों आरोेपियों को थाने से जमानत पर छोड़ दिया गया.

यह देख हरियाणा की पूरी अफसरशाही वर्णिका के साथ आ खड़ी हुई. इन अधिकारियों ने मामला देश के प्रधानमंत्री तक पहुंचाने की तैयारी कर ली थी. सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को ले कर अलग बहस छिड़ गई, जिस में देश भर के आईएएस अधिकारी रुचि लेते हुए अपनी टिप्पणी करने लगे.

देखतेदेखते इस मामले पर राजनीति की रंगत भी चढ़ने लगी. विरोधी पार्टियों द्वारा बराला से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगा जाने लगा. चंडीगढ़ पुलिस की पहले ही से किरकिरी हो रही थी. जमानती धाराओं में केस दर्ज कर अभियुक्तों को थाने से ही जमानत देने पर सवाल उठ रहे थे. कानून विशेषज्ञों का कहना था कि इस केस में किडनैपिंग के प्रयास की धारा 365, 511 लगनी चाहिए थी.

आखिर, चडीगढ़ का यह हाईप्रोफाइल मामला प्रधानमंत्री के नोटिस में भी आ गया, जिन्होंने इस घटना पर बेहद नाराजगी जाहिर की. प्रधानमंत्री मोदी के कहने पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने मामले का संज्ञान लेते हुए सुभाष बराला को दिल्ली तलब कर लिया. उन्होंने शाह के सामने जहां अपना पक्ष रखा.

बराला को भाजपा का अभयदान

दूसरी ओर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने अपना बयान जारी करते हुए कहा कि सुभाष बराला का इस प्रकरण से कोई लेनादेना नहीं है. यह मामला चंडीगढ़ पुलिस का है, जिस में हरियाणा सरकार का कोई दखल नहीं है. इसी बीच किरण बेदी का यह बयान कई सवाल खडे़ कर गया कि पुलिस को बिना इंटरोगेशन के अपराधियों को बेल नहीं देनी चाहिए थी.

7 अगस्त को इस प्रकरण पर रोष प्रकट करने के लिए चंडीगढ़ की लड़कियों ने हाथों में बैनर ले कर मुख्य सड़कों पर प्रदर्शन किया. इन बैनर्स पर लिखा था, ‘शेम फौर चंडीगढ़’ और ‘वी डिजर्व टू बी सेफ औन रोड्स’ (हमें सड़कों पर सुरक्षा का अधिकार चाहिए) वगैरह.

अब तक की पुलिस काररवाई में यही बात सामने आ रही थी कि सीसीटीवी कैमरों को खंगालते हुए केस में कानून की अन्य किसी धारा के जोड़ने अथवा न जोड़ने पर लीगल राय ली जा रही है. 7 अगस्त को घटना का सीन भी रिक्रिएट करवाया गया. मगर पुलिस का एक्शन अभी तक वहीं का वहीं था.

देखतेदेखते यह मुद्दा न केवल गरमा गया, बल्कि घरघर की चर्चा भी बन गया. शहर के अनेक जिम्मेवार लोग लौजिक के साथ अपनीअपनी राय देने लगे. चंडीगढ़ के सीनियर एडवोकेट ए.एस. सुखीजा ने केस को ले कर अपना तर्क देते हुए कहा कि इंसान झूठ बोल सकता है, लेकिन हालातों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता. जिस वक्त यह घटना घटी, लड़की न केवल तनाव में थी बल्कि एक तरह का जबरदस्त मानसिक आघात भी झेल रही थी.

ऐसे में उस की कार गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो सकती थी, जिस में उस की जान भी जा सकती थी. उसे अपनी इज्जत खोने का खतरा नजर आ रहा था, ऐसी स्थिति में वह आत्महत्या का प्रयास भी कर सकती थी.

‘आप बात कर रहे हैं अपहरण के प्रयास का केस दर्ज करने की, मेरी नजर में यह हत्या के प्रयास का मामला है. पुलिस को इसे इस तरह हलकेपन से कतई नहीं लेना चाहिए.’ एडवोकेट सुखीजा का कहना था.

राजनीतिक पैंतरा

मामला उछलते और अपना दामन दागदार होते देख सुभाष बराला ने इस प्रकरण को लेकर 8 अगस्त को पहली दफा अपना बयान दिया कि इस केस को प्रभावित करने के लिए वह किसी भी तरह से अपने राजनैतिक प्रभाव का इस्तेमाल नहीं कर रहे. वर्णिका कुंडू केस में उन के बेटे विकास के खिलाफ जो भी जरूरी कदम हैं, वो उठाए जाने चाहिए. बीजेपी बेटियों की स्वतंत्रता की बात करती है और वर्णिका उन की बेटी जैसी है.

दूसरी ओर मामला ठंडा पड़ता दिखाई नहीं दे रहा था. इस मुद्दे पर चंडीगढ़ में तो रोजाना रोष प्रदर्शन हो ही रहे थे, 9 अगस्त को रोहतक की कुंडू खाप ने वर्णिका के समर्थन में रोहतक-जींद रोड पर कई घंटे का जाम लगाया.

कई साल पहले हरियाणा के तत्कालीन डीजीपी एसपीएस राठौर के मामले में रुचिका के हक में आवाज उठा कर उसे इंसाफ दिलवाने वाले आनंद प्रकाश व उन की पत्नी मधु आनंद ने भी वर्णिका को इंसाफ दिलवाने में उस का साथ देने की घोषणा कर दी. कई जगह सुभाष बराला का पुतला जलाने की भी घटनाएं हुईं.

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपना बयान जारी करते हुए साफ कह डाला कि केंद्र सरकार के इशारे पर इस मामले को रफादफा करने की कोशिश हो रही है.

9 अगस्त को सुभाष बराला ने इस प्रकरण पर बात करने के लिए एक संवाददाता सम्मेलन का आयोजन कर के पत्रकारों को बुलवाया. प्रैस कान्फ्रैंस शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट गुजरे होंगे कि सुभाष बराला को किसी का फोन आ गया. उन्होंने फोन क्या सुना कि बिना पत्रकारों से कुछ कहे वहां से चले गए.

बाद में मालूम पड़ा कि मिनिस्ट्री औफ होम अफेयर्स से यूनियन होम सेके्रटरी राजीव महर्षि के दखल के बाद चंडीगढ़ पुलिस ने विकास बराला व उस के साथी पर दर्ज एफआईआर में किडनैपिंग की कोशिश की धारा 365, 511 का समावेश कर दिया है. साथ ही पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के सेक्टर-26 स्थित ईस्ट थाना की हवालात में बंद कर दिया है. इसी सब की सूचना सुभाष बराला को मिली थी.

सामने आई करतूत

इस दफा पुलिस ने दोनों अभियुक्तों का 2 दिन का कस्टडी रिमांड ले कर उन से व्यापक पूछताछ की. विकास बराला कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई कर रहा था और उस का दोस्त आशीष इसी साल अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका था. दोनों का संबंध प्रभावशाली घरों से था और इन की आपस में बनती भी खूब थी.

भले ही इन युवकों पर गैरजमानती धाराएं लगा कर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के अदालत से इन का कस्टडी रिमांड ले लिया था, मगर पावर का नशा जैसे अभी भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था. पुलिस की पूछताछ में अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को नकारते हुए दोनों ने बयान दिया कि विकास बराला को एलांते मौल से अपने जूते बदलवाने थे, जिस के लिए वह अपने दोस्त आशीष को साथ ले गया था.

बकौल विकास बराला, उन दोनों ने सेक्टर-8 की मार्केट की एक वाइन शौप से बीयर ले कर कार में बैठ कर 1-1 बोतल पी थी.

वर्णिका कुंडू को पहले से जानने की बाबत पूछने पर दोनों ने कहा कि वे उसे नहीं जानते और न ही उन लोगों ने उस का पीछा कर के उसे रोकने की कोशिश की थी. लेकिन इस बात को दोनों ने माना कि सेक्टर-7 में उन्होंने वर्णिका जैसी कार पर एक अकेली लड़की को जाते देखा था.

‘सीसीटीवी में साफ दिख रहा था कि तुम लोगों की गाड़ी वर्णिका की कार के पीछे जा रही है.’ पूछे जाने पर विकास बराला का जवाब था कि उन की गाड़ी भी हाउसिंग बोर्ड की तरफ गई थी. लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि वे लोग उस का पीछा कर रहे थे. फिर उन्होंने उस के साथ ऐसी कोई आपराधिक वारदात तो की नहीं थी.

‘मुझे और मेरे दोस्त को यूं ही बलि का बकरा बना लिया गया है. हम ने अपराध जैसा कुछ नहीं किया.’ विकास बराला ने कहा.

आधी रात में पुलिस ने इन दोनों को साथ ले जा कर क्राइम सीन दोहराया. इस से सारी असलियत सामने आ गई. थोड़ी सख्ती से की गई पूछताछ में दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने इस केस में विकास बराला को मुख्य अभियुक्त और उस के दोस्त आशीष को सह अभियुक्त बनाया.

मुंह खोलना पड़ा

पुलिस की व्यापक पूछताछ में जो कुछ विकास बराला ने बताया, वह कुछ इस तरह से था—‘दरअसल किडनैपिंग हमारा मकसद किसी भी हाल में नहीं था. हम लोग अपनी गाड़ी में बैठे बीयर पी रहे थे. इतने में एक कार हमारे पास आ कर हल्की सी स्लो हो गई और उस में बैठी लड़की ने हमारी तरफ देखा.’

आशीष ने कहा, ‘लड़की देख कर गई है, गाड़ी उस के पीछे लगाओ. मैं ने गाड़ी उस कार के पीछे लगा दी. दरअसल, हम सिर्फ लड़की की शक्ल देखना चाहते थे. जानना चाहते थे कि वह जानपहचान की तो नहीं है. लड़की घबरा गई और नशे में हमें भी पता नहीं चला कि अखिर क्या हो रहा है. इस के बाद हम कभी लड़की की कार के आगे अपनी गाड़ी लगाते रहे और कभी पीछे. लड़की घबरा गई थी और नशे में होने की वजह से हमें इस का इल्म नहीं था.’

कस्टडी रिमांड की अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने विकास और आशीष को ड्यूटी मजिस्ट्रेट गौरव दत्ता की कोर्ट पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में बुडै़ल जेल भेज दिया गया.

28 अगस्त को दोनों अभियुक्तों की ओर से एसीजेएम बलजिंदर पाल सिंह की अदालत में जमानत की अर्जी लगाई गई. 29 अगस्त को सक्षम दंडाधिकारी ने इस टिप्पणी के साथ उन की जमानत याचिका खारिज कर दी कि उस रात इन लोगों का व्यवहार बीस्ट इन लस्ट सरीखा था.

8 सितंबर को इन की ओर से जमानत की अर्जी एडिशनल सैशन जज रजनीश कुमार शर्मा की अदालत में लगाई गई. 12 सितंबर को विद्वान एडीजे ने भी अपनी इस टिप्पणी के साथ इन अभियुक्तों को जमानत देने से इनकार कर दिया कि दोनों की हरकतें रोडसाइड रोमियो सरीखी सामने आई है.

ठीक इसी रोज एक और बात हुई. वी.एस. कुंडू पर फिर से तबादले की गाज गिरी. उन्हें एक अहम विभाग से हटा कर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में नियुक्त कर दिया गया. 14 सितंबर को वर्णिका की जिंदगी फिर से डीजे ट्रैक पर आ गई, मतलब वह अपने काम पर लौट आई थी.

दूसरी ओर चंडीगढ़ पुलिस ने 21 सितंबर, 2017 को विकास बराला व आशीष के खिलाफ 40 गवाहों की सूची के साथ 300 पेज का चालान अदालत में पेश कर दिया था. यह चालान भादंवि की धारा 341, 354डी, 365, 511 और 34 के अलावा 185 मोटर वेहिकल एक्ट के तहत दाखिल किया गया.

बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है जब राजनीति से जुड़े बड़े घरों के ये लाडले अपनी करतूत की वह से सलाखों के पीछे पहुंचे हैं. कतिपय उदारहण काबिलेगौर है, बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी व उन के बाहुबली बेटे व एमएलए अमनमणि त्रिपाठी दोनों ही पत्नी की हत्या के मामले में फंसे. अमरमणि जहां अपनी पत्नी की हत्या के मामले में फंसे. वहीं अमनमणि पर भी अपनी पत्नी सारा सिंह की हत्या का मुकदमा चल रहा है.

उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव का बेटा विकास यादव नीतिश कटारा की हत्या के मामले में सजा काट रहा है. तूणमूल कांग्रेस के नेता एस.डी. सोहराब के बेटे सांबिया सोहराब पर हिट एंड रन केस में वायुसेना अधिकारी अभिमन्यु गौड़ की हत्या का आरोप लगा था.

चश्मदीदों के मुताबिक सांबिया ने शराब के नशे में अपनी औडी कार उस समय उक्त वायुसेना अधिकारी अभिमन्यु गौड़ पर चढ़ा दी थी, जब वह गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा ले रहे थे.

हरियाणा जनचेतना पार्टी के फाउंडर एवं कांग्रेस के पूर्व दिग्गज नेता विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा को मौडल जेसिका लाल हत्याकांड में उम्रकैद की सजा मिली थी.

स्थानीय स्तर पर कथित बड़े घरों के लाडलों की दबंगई के इस कदर मामले होते रहते हैं कि गिनती करना मुश्किल है. चिंता का विषय यही है कि क्या कभी इन की मानसिकता में बदलाव आएगा.

पैसों के लालच में बुझ गई ‘रोशनी’

11 नवंबर, 2016 की बात है. रामदुरेश के मंझले बेटे पवन कुमार की 4 दिनों बाद शादी थी. घर में शादी की तैयारियां जोरों पर चल रही थीं. चूंकि वह मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे, इसलिए वहां से भी उन के तमाम रिश्तेदार आ चुके थे. पवन का बड़ा भाई रंजन राजेश, जो दुबई में नौकरी करता था, वह भी आ चुका था. दोपहर के करीब 3 बजे रामदुरेश अपनी दोनों पोतियों, रिधिमा और रौशनी को स्टालर पर बैठा कर सड़क पर घुमा रहे थे. उन्हें आए अभी 10 मिनट हुए होंगे कि मोटरसाइकिल से आए 3 युवकों ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था, इसलिए रामदुरेश उन्हें पहचान नहीं सके.

मोटरसाइकिल से आए युवकों में से 2 नीचे उतरे और रामदुरेश को धक्का मार कर गिरा दिया. उन के गिरते ही वे युवक स्टालर से 2 साल की रौशनी को उठा कर फगवाड़ा की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी में हुआ था कि रामदुरेश कुछ सोचसमझ ही नहीं पाए. जब तक वह उठ कर खड़े हुए, मोटरसाइकिल सवार काफी दूर जा चुके थे. वह मोटरसाइकिल का नंबर भी नहीं देख पाए.

रामदुरेश ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठा हो गए. घर वाले भी बाहर आ गए. उन्होंने उन से युवकों का पीछा करने को कहा. कई लोग मोटरसाइकिलों से फगवाड़ा की ओर गए, लेकिन किसी को वे युवक दिखाई नहीं दिए. रामदुरेश काफी घबराए हुए थे. उन्हें पानी पिलाया गया. जब वह कुछ सामान्य हुए तो उन्होंने पूरी घटना कह सुनाई

घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम और थाना बहराम पुलिस को फोन द्वारा दी गई. अपहरण की सूचना मिलते ही थाना बहराम के थानाप्रभारी सुरेश चांद दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दिनदहाड़े बच्ची के अपहरण की बात सुन कर सभी हैरान थे. कुछ ही देर में डीएसपी बगां हरविंदर सिंह, डीएसपी (आई) राजपाल सिंह, सीआईए प्रभारी सुखजीत सिंह, थाना सदर बगां के थानाप्रभारी रमनदीप सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. आधे घंटे बाद एसएसपी नवीन सिंगला भी आ गए थे.

रामदुरेश ने पुलिस अधिकारियों को अपनी पोती रौशनी के अपरहण की बात बता दी. एसएसपी नवीन सिंगला के निर्देश पर 2 जिलों कपूरथला और नवांशहर की पुलिस अपहृत बच्ची की तलाश में जुट गई. थानाप्रभारी सुरेश चांद ने रामदुरेश के बयान के आधार पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ रौशनी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

सुरेश चांद ने रामदुरेश और उन के परिवार वालों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन का किसी से कोई लेनादेना या झगड़ा आदि नहीं था. सभी अपने काम से काम रखते थे.

उन्होंने यह भी बताया कि 4 दिनों बाद उन के यहां लड़के की शादी है. उस का पहला रिश्ता 3 महीने पहले फगवाड़ा के एक परिवार में तय हुआ था, जो बाद में किन्हीं कारणों से उन्होंने तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने के बाद उन लोगों ने खूब झगड़ा किया था और देख लेने की धमकी दी थी.

रामदुरेश ने जिन लोगों पर शक जाहिर किया था, सुरेश चांद ने उन लोगों को थाने बुला कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें वे लोग बेकसूर लगे. उन का इस वारदात से कोई लेनादेना नहीं था.

डीएसपी हरविंदर सिंह के आदेश पर इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों को खंगाला गया. घटनास्थल के निकट एक कैमरा लगा था, जो काफी समय से खराब था. अन्य जगहों पर लगे कैमरों से भी कोई सुराग नहीं मिला. दोनों जिलों की पुलिस टीमें बच्ची की तलाश में जुटी थीं. लेकिन देर रात तक कोई सुराग नहीं मिला.

रामदुरेश के घर में जो खुशी का माहौल था, वह उदासी में बदल चुका था. रौशनी की मां नेहा का रोरो कर बुरा हाल था.

अगले दिन अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि बच्ची उस के कब्जे में है और अगर बच्ची चाहिए तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. रामदुरेश ने यह बात पुलिस को बता दी. अपहर्त्ताओं के फोन नंबर से पुलिस को उन के पास तक पहुंचने की राह मिल गई थी.

पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन पता की तो पता चला कि वह नंबर कस्बे के ही एक दुकानदार का था. उस की मोबाइल फोन की दुकान थी. दुकानदार ने बताया कि लगभग 2 महीने पहले यह सिम उस की दुकान से चोरी हो गया था. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस की दुकान पर किनकिन लोगों का ज्यादा आनाजाना है और किन लोगों से उस का दोस्ताना व्यवहार है तो उस ने 8 लोगों के नाम बताए.

उन लोगों के नामपते ले कर पुलिस ने उन के बारे में पता किया तो उन में से 5 युवक तो मिल गए, 3 फरार मिले. पुलिस का सीधा शक उन 3 फरार युवकों पर गया. अगले दिन पुलिस ने शहर के सभी छोटेबड़े रास्तों की नाकेबंदी कर दी, साथ ही अपहर्त्ताओं के फोन का भी इंतजार था, पर फोन नहीं आया.

थाना सदर बगां प्रभारी रमनदीप सिंह पौइंट फराला के नाके पर मौजूद थे. उन्होंने गांव मुन्ना की ओर से एक मोटरसाइकिल पर 3 युवकों को आते देखा. लेकिन पुलिस को देख कर उन युवकों ने मोटरसाइकिल वापस घुमा दी थी. रमनदीप सिंह ने बोलेरो जीप से उन का पीछा किया. कुछ दूरी पर ही ओवरटेक कर के उन्हें दबोच लिया गया. तीनों का हुलिया रामदुरेश द्वारा बताए गए अपहर्त्ताओं के हुलिए से मिल रहा था, इसलिए पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

उन्होंने अपने नाम गोयल कुमार उर्फ गोरी, हरमन कुमार उर्फ हैप्पी तथा रिशी बताए. रिशी कुमार जिला होशियारपुर के गांव टोडरपुर का रहने वाला था, जबकि गोयल और हरमन रामदुरेश के ही गांव खोथड़ा के रहने वाले थे. तीनों से जब रौशनी के अपहरण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि रौशनी का अपहरण उन्होंने ही किया था, लेकिन अब वह जीवित नहीं है. उन्होंने उस की हत्या कर लाश जला दी थी.

यह खबर जब रामदुरेश के घर वालों तक पहुंची तो उन के यहां कोहराम मच गया. जब यह खबर पूरे शहर में फैली तो अपहर्त्ताओं को देखने के लिए थाने के बाहर भीड़ लग गई. लोग अपहर्त्ताओं को अपने हवाले करने की मांग करने लगे, ताकि वे उन्हें खुद सजा दे सकें.

तीनों अपहर्त्ताओं की उम्र 18 से 20 साल थी. थाने पर जनता का जमावड़ा और आक्रोश देख कर अतिरिक्त पुलिस बल बुलाना पड़ा. एसएसपी नवीन सिंगला ने आ कर लोगों को समझाया कि कानून के अनुसार दोषियों को सजा दी जाएगी, तब कहीं जा कर भीड़ शांत हुई.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अभियुक्तों की निशानदेही पर होशियारपुर के गांव नडालो के पास से गुजरती ड्रेन के नजदीक एक खेत से ड्यूटी मजिस्ट्रैट भूपिंदर सिंह, तहसीलदार गढ़शंकर और एसएसपी नवीन सिंगला की मौजूदगी में रौशनी की अधजली लाश बरामद कर ली.

जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए बगां के सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया. चूंकि शव बुरी तरह से जला हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम में तकनीकी दिक्कतें आने के अंदेशों के चलते वहां के डाक्टरों ने अमृतसर के मैडिकल कालेज में पोस्टमार्टम कराने का सुझाव दिया.

इस के बाद डीसी के आदेश पर शव को अमृतसर मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. पुलिस ने भी एफआईआर में भादंवि की धारा 364 को 364ए, 302, 34, 129 जोड़ दिया. आरोपियों से पूछताछ में रौशनी के अपहरण व हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह उन की विकृत मानसिकता और शार्टकट से करोड़पति बनने का नतीजा थी.

रिशी, हैप्पी और गौरी बचपन से ही शातिर और महत्त्वाकांक्षी किस्म के युवक थे. पढ़ाई के दौरान ही वे आवारागर्दी करने लगे थे, जिस से ज्यादा पढ़ नहीं सके. उन के गांव के तमाम युवक विदेशों में रह कर अच्छी कमाई कर रहे थे, जिस से वे भी विदेश जाना चाहते थे, पर पैसे न होने के कारण जा नहीं पा रहे थे. मजबूर हो कर वे घर पर रह कर ही आसानी से मोटी कमाई करने का उपाय खोजने लगे.

गौरी और हैप्पी की ननिहाल रिशी के गांव टोडरपुर में थी, जिस से उन का वहां आनाजाना होता रहता था. इसी वजह से उन की रिशी से दोस्ती भी हो गई थी.

खोथड़ा गांव में ही रामदुरेश का परिवार रहता था. वैसे तो रामदुरेश मूलत: छपरा, बिहार के रहने वाले थे, पर लगभग 35 सालों से वह यहीं रह रहे थे. वह फगवाड़ा की जेसीटी कपड़ा मिल में नौकरी करते थे. उन के 3 बेटे थे, रंजन राजेश, पवन कुमार और पमा कुमार.

रामदुरेश जिस इलाके में रहते थे, वहां शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिस घर का कोई आदमी विदेश में न हो. किसी तरह रामदुरेश ने भी अपने बड़े बेटे राजेश को सन 2005 में दुबई भिजवा दिया था. राजेश की दुबई में नौकरी लगने के बाद रामदुरेश की काया पलट हो गई थी. बेटे द्वारा दुबई से भेजे पैसों से उन्होंने खोथड़ा के सैफर्न एनक्लेव में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई थी. सन 2010 में उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

राजेश 2 बेटियों का पिता बना, जिस में बड़ी बेटी रिधिमा 4 साल की और छोटी रौशनी 2 साल की थी. सन 2014 के अंत में रामदुरेश नौकरी से रिटायर हुए तो उन्हें काफी पैसा मिला. इसी बीच उन का मंझला बेटा पवन भी शादी लायक हो गया.

उन्होंने उस का रिश्ता फगवाड़ा की ही एक लड़की से तय कर दिया, पर किसी वजह से वह रिश्ता टूट गया तो बाद में दूसरी जगह उस का रिश्ता तय हो गया. 16 नवंबर, 2016 को शादी का दिन भी तय कर दिया गया था.

हैप्पी, रिशी और गौरी रामदुरेश की हैसियत जानते थे. उन्हें पता था कि उन का बड़ा बेटा दुबई से मोटी रकम भेजता है, साथ ही यह भी उम्मीद थी कि उन्हें रिटायरमेंट पर भी अच्छा पैसा मिला होगा. यही सब सोच कर उन्होंने उन के घर लूट की योजना बना डाली.

चूंकि रामदुरेश के बेटे पवन की शादी के कुछ ही दिन बचे थे. घर पर तमाम मेहमान जुट गए थे. उधर हैप्पी, रिशी और गौरी योजनानुसार लूट की घटना को अंजाम देने के लिए रैकी कर रहे थे.

कोठी पर रिश्तेदारों की भीड़भाड़ देख कर उन्हें लूट करना रिस्की लगा, इसलिए उन्होंने योजना बदल दी. रिशी ने उन के परिवार से किसी बच्चे का अपहरण करने की सलाह दी. उस की सलाह हैप्पी और गौरी को पसंद आ गई. फिरौती की रकम मांगने के लिए उन्होंने सिम का इंतजाम भी कर लिया, जो उन में से किसी के नाम पर नहीं था.

वह सिमकार्ड उन्होंने मेहली के ललित जुनेजा से साढ़े 3 सौ रुपए में खरीदा था. ललित जुनेजा की फोन एसेसरीज की दुकान थी. वह चोरी के फोन खरीदनेबेचने का भी काम करता था. ललित ने किसी से चोरी का एक मोबाइल खरीदा था, उस के अंदर जो सिमकार्ड निकला था, वही उस ने हैप्पी को बेच दिया था.

रामदुरेश के घर की रैकी करते हुए तीनों उन की पोती का अपहरण करने का मौका तलाशते रहे. इसी चक्कर में वे 11 नवंबर, 2016 को दोपहर 3 बजे उन की कोठी की तरफ आए थे. उन्होंने रामदुरेश को अपनी दोनों पोतियों के साथ देखा तो उन्हें धक्का दे कर वे उन की 2 साल की पोती रौशनी का अपहरण कर ले गए.

उस बच्ची को ले कर वे टोडरपुर पहुंचे और वहां एक खेत में छिप कर बैठ गए. बीचबीच में रिशी अपने घर और बाजार जा कर खानेपीने की चीजें लाता रहा. वहीं खेत से ही उन्होंने रामदुरेश को फिरौती के लिए फोन किया.

भूख की वजह से रौशनी जोरजोर रोने लगी. तीनों ने उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की, पर वह चुप नहीं हुई. आसपास के खेतों में काम करने वालों ने खेत में बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो उन्हें संदेह हुआ. लोग उधर आने लगे तो वे बच्ची को ले कर दूसरे खेत में पहुंचे. वहां भी हालात वही रहे. वह लगातार रोए जा रही थी.

बच्ची की वजह से वे पकड़े जा सकते थे, इसलिए उन्होंने रौशनी का गला दबा दिया. कुछ ही पलों में उस मासूम ने दम तोड़ दिया. इस के बाद उन्होंने उस की लाश पर पराली डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लगाने के बाद सभी टोडरपुर में बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या किया जाए. अंत में वे मोटरसाइकिल से यह देखने अपने गांव की ओर जा रहे थे कि रामदुरेश और पुलिस इस मामले में क्या कर रही है. पर उन्होंने नाके पर पुलिस देखी तो वहीं से मोटरसाइकिल मोड़ कर भागे, तभी पुलिस ने पीछा कर के उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इन की निशानदेही पर पुलिस ने चोरी का सिम बेचने वाले ललित जुनेजा को भी गिरफ्तार कर लिया था. रिमांड अवधि खत्म होने के बाद 14 नवंबर, 2016 को थानाप्रभारी सुरेश चांद ने इस हत्याकांड से जुड़े तीनों अभियुक्तों, गोयल उर्फ गौरी, हेमंत उर्फ हैप्पी और रिशी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. केस की जांच थानाप्रभारी सुरेश चांद कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम के 11 टुकड़े : पति और सास ससुर ने की बहू की हत्या

6 मई, 2017 की बात है. दिन के यही कोई 9 बज रहे थे. नवी मुंबई के उपनगर रबाले के शिलफाटा रोड स्थित एमआईडीसी के बीच से बहने वाले नाले पर एक सुनसान जगह पर काफी लोग इकट्ठा थे. इस की वजह यह थी कि नाले की घनी झाडि़यों के बीच प्लास्टिक का एक बैग पड़ा था. उस में एक मानव धड़ भर कर फेंका गया था. उस का सिर, दोनों हाथ और पैर गायब थे.

यह हत्या का मामला था. इसलिए किसी जागरूक नागरिक ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.

चूंकि घटनास्थल नवी मुंबई के थाना एमआईडीसी के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने चार्जरूम में ड्यूटी पर तैनात सहायक इंसपेक्टर अमर जगदाले को बुला कर डायरी बनवाई और तुरंत सहायक इंसपेक्टर प्रमोद जाधव, अमर जगदाले और कुछ सिपाहियों को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने वहां एकत्र भीड़ को हटा कर उस प्लास्टिक के बैग को झाडि़यों से बाहर निकलवाया. बैग में भरा धड़ बाहर निकलवाया गया. वह धड़ किसी महिला का था. हत्या के बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस का सिर और हाथपैर काट कर केवल धड़ वहां फेंका गया था. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर चंद्रकांत काटकर ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने डीएनए जांच के लिए सैंपल सुरक्षित करवा लिया था.

मृतका के बाकी अंग न मिलने से पुलिस समझ गई कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी होशियार और शातिर था. खुद को बचाने के लिए उस ने सबूतों को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

धड़ के साथ ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. धड़ के निरीक्षण में पुलिस को उस की बची बांह पर सिर्फ गणेश भगवान का एक टैटू दिखाई दिया था. इस से यह तो स्पष्ट हो गया था कि मृतका हिंदू थी, लेकिन सिर्फ एक टैटू से शिनाख्त होना संभव नहीं था. फिर भी पुलिस को उम्मीद की एक किरण तो मिल ही गई थी.

घटनास्थल की काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी थाने लौटे और सहायकों के साथ बैठ कर विचारविमर्श के बाद इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी इंसपेक्टर प्रमोद जाधव को सौंप दी थी.

मामले की जांच की जिम्मेदारी मिलते ही प्रमोद जाधव ने तुरंत मुंबई और उस के आसपास के सभी छोटेबड़े थानों को वायरलैस संदेश भिजवा कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी थाने में किसी महिला की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. इसी के साथ उन्होंने मृतका की बाजू पर बने गणेश भगवान के टैटू को हाईलाइट करते हुए महानगर के सभी प्रमुख दैनिक अखबारों में फोटो छपवा कर उस धड़ की शिनाख्त की अपील की.

अखबार में छपी इस अपील का पुलिस को फायदा यह मिला कि धड़ की शिनाख्त हो गई. वह धड़ प्रियंका गुरव का था. उस की गुमशुदगी मुंबई के पौश इलाके के थाना वरली में दर्ज थी. ठाणे के डोंबिवली कल्याण की रहने वाली कविता दूधे और उन के भाई गणेश दूधे ने उस धड़ को अपनी छोटी बहन प्रियंका का धड़ बताया था.

अखबार में खबर छपने के अगले दिन सवेरे कविता दूधे अपने भाई गणेश दूधे के साथ थाना एमआईडीसी पहुंची और चंद्रकांत काटकर से मिल कर बांह पर बने गणेश भगवान के टैटू से आशंका व्यक्त की थी कि वह धड़ उन की बहन प्रियंका का हो सकता है. क्योंकि 5 मई, 2017 से वह गायब है.

ससुराल वालों के अनुसार, वह सुबह किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई थी. कविता ने बरामद धड़ देखने की इच्छा जाहिर की, क्योंकि वह उस टैटू को पहचान सकती थी. प्रियंका ने अपनी बांह पर वह टैटू उसी के सामने बनवाया था.

चंद्रकांत काटकर ने कविता और गणेश को धड़ दिखाने के लिए इंसपेक्टर प्रमोद जाधव के साथ अस्पताल के मोर्चरी भिजवा दिया. धड़ देखते ही कविता और गणेश फूटफूट कर रो पड़े थे. इस से साफ हो गया था कि वह धड़ प्रियंका का ही था. इस तरह धड़ की शिनाख्त हो गई तो जांच आगे बढ़ाने का रास्ता मिल गया.अब पुलिस को यह पता लगाना था कि प्रियंका की हत्या क्यों और किस ने की? पूछताछ में प्रियंका की बहन कविता और भाई गणेश ने बताया था कि प्रियंका ने वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी के सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ रहने वाले सिद्धेश गुरव से 30 अप्रैल, 2017 को प्रेम विवाह किया था.

भाईबहन ने प्रियंका को इस विवाह से मना किया था. इस की वजह यह थी कि न सिद्धेश उस से विवाह करना चाहता था और न ही उस के घर वाले चाहते थे कि सिद्धेश प्रियंका से विवाह करे. आखिर वही हुआ, जिस की उन्हें आशंका थी. प्रियंका के हाथों की मेहंदी का रंग फीका होता, उस से पहले ही उस की जिंदगी का रंग फीका हो गया.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के पति सिद्धेश और उस के घर वालों को थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने भी वही सब बताया, जो कविता और गणेश बता चुके थे. उन का कहना था कि 5 मई की सुबह इंटरव्यू के लिए गई प्रियंका रात को भी घर लौट कर नहीं आई तो उन्हें चिंता हुई. सभी पूरी रात उस की तलाश करते रहे. जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने अगले दिन यानी 6 मई को थाना वर्ली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

थाना एमआईडीसी पुलिस तो इस मामले की जांच कर ही रही थी, क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी भी इस मामले की जांच कर रहे थे. प्रियंका की ससुराल वालों ने जो बयान दिया था, उस में उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था. जब उन्होंने प्रियंका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई तो उन्हें पूरी दाल ही काली नजर आई.

ससुराल वालों ने जिस दिन प्रियंका के बाहर जाने की बात बताई थी, मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उस दिन पूरे दिन प्रियंका घर पर ही थी. वह घर से बाहर गई ही नहीं थी. इस के अलावा किसी संपन्न परिपवार की बहू विवाह के मात्र 5 दिनों बाद ही नौकरी के लिए किसी कंपनी में इंटरव्यू देने जाएगी, यह भी विश्वास करने वाली बात नहीं थी. उस समय तो वह पति के साथ खुशियां मनाएगी.

मामला संदिग्ध लग रहा था. लेकिन परिवार सम्मनित था, इसलिए उन पर हाथ डालने से पहले इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने अधिकारियों से राय ली. अधिकारियों ने आदेश दे दिया तो वह प्रियंका के पति सिद्धेश, ससुर मनोहर गुरव और मां माधुरी गुरव को क्राइम ब्रांच के औफिस ले आए.

सभी से अलगअलग पूछताछ की गई तो आखिर में प्रियंका की हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि इन्हीं लोगों ने प्रियंका की हत्या की थी. इस पूछताछ में प्रियंका की हत्या से ले कर उस की लाश को ठिकाने लगाने तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

25 वर्षीय सिद्धेश गुरव का परिवार मुंबई से सटे ठाणे के उपनगर कल्याण बासिंद में रहता था. उस के पिता का नाम मनोहर गुरव और मां का माधुरी गुरव था. परिवार छोटा और सुखी था. मनोहर गुरव सरकारी नौकरी में थे. रहने के लिए सरकारी आवास मिला था. सिद्धेश गुरव उन का एकलौता बेटा था, जिसे पढ़ालिखा कर वह सीए बनाना चाहते थे.

सिद्धेश पढ़ाईलिखाई में तो ठीकठाक था ही, महत्त्वाकांक्षी भी था. वह सीए तो नहीं बन सका, लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही उसे मुंबई के विक्रोली स्थित टीसीएस कंपनी में उसे अच्छी नौकरी मिल गई थी. बेटे को नौकरी मिलते ही मनोहर गुरव का भी प्रमोशन हो गया था. इस के बाद उन्हें रहने के लिए मुंबई के वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी कालोनी में बढि़या सरकारी आवास मिल गया. इस के बाद वह अपना बासिंद का घर छोड़ कर वर्ली स्थित सरकारी आवास में रहने आ गए.

22 साल की प्रियंका सिद्धेश के साथ ही पढ़ती थी. खूबसूरत प्रियंका की पहले सिद्धेश से दोस्ती हुई, उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. आकर्षक शक्लसूरत और शांत स्वभाव का सिद्धेश प्रियंका को भा गया था. ऐसा ही कुछ सिद्धेश के साथ भी था.

प्रियंका अपनी बड़ी बहन कविता दूधे, भाई गणेश दूधे और बूढ़ी मां के साथ कल्याण के उपनगर दिवा गांव में रहती थी. पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी थी. मां ने किसी तरह दोनों बेटियों और बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था. कविता सयानी हुई तो मां की सारी जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली. उस ने प्रियंका और भाई को पढ़ाया-लिखाया, जबकि वह खुद ज्यादा पढ़लिख नहीं पाई थी. लेकिन वह प्रियंका और गणेश को पढ़ालिखा कर उन्हें अच्छी जिंदगी देने का सपना जरूर देख रही थी.

प्रियंका और सिद्धेश की प्रेमकहानी की शुरुआत 3 साल पहले सन 2014 में हुई थी. उस समय डोंबिवली कालेज में दोनों एक साथ पढ़ रहे थे. दोनों में प्यार हुआ तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खाई गईं. इस के बाद दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए.

लेकिन जब सिद्धेश को नौकरी मिल गई और उस के पिता का प्रमोशन हो गया तो वह परिवार के साथ वर्ली रहने चला गया. इस के बाद कुछ दिनों तक तो वह प्रियंका से मिलता रहा और शादी करने की बात करता रहा, लेकिन धीरेधीरे उस ने प्रियंका से मिलनाजुलना कम कर दिया.

इस के बाद वह सिर्फ फोन पर ही प्रियंका से बातें कर के रह जाता था. प्रियंका जब भी उस से मिलने की बात करती, कोई न कोई बहाना बना कर वह टाल देता था. वह शादी की बात करती तो कहता कि अभी शादी की इतनी जल्दी क्या है, जब समय आएगा, शादी भी कर लेंगे.

अचानक प्रियंका को जो जानकारी मिली, उस से उस का सारा अस्तित्व ही हिल उठा. उसे कहीं से पता चला कि सिद्धेश के जीवन में कोई और लड़की आ गई है, जिस में उस के मांबाप की भी सहमति है. इस से वह परेशान हो उठी. जब इस बात की जानकारी उस के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि ऐसे में उस का सिद्धेश से विवाह करना ठीक नहीं है.

लेकिन प्रियंका ने तो ठान लिया था कि वह विवाह सिद्धेश से ही करेगी. क्योंकि वह मर्यादाओं की सारी सीमाएं तोड़ चुकी थी, इसलिए उस ने अपने घर वालों की बात भी नहीं मानी.

निश्चय कर के एक दिन प्रियंका सिद्धेश से मिली और विवाह के बारे में पूछा. सिद्धेश ने यह कह कर टालना चाहा कि वह उस के मांबाप को पसंद नहीं है, इसलिए वह उस से शादी नहीं कर सकता. इस पर प्रियंका ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मांबाप पसंद नहीं करते तो न करें, तुम तो मुझे पसंद करते हो. शादी के बाद हम मांबाप को राजी कर लेंगे.’’

प्रियंका की इस बात का सिद्धेश के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ देर तक चुप बैठा वह सोचता रहा, उस के बाद बोला, ‘‘मैं मजबूर हूं. मैं अपने मांबाप के खिलाफ नहीं जा सकता. तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘तुम मुझे भूल सकते हो, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम ने मुझे खिलौना समझ रखा है क्या कि जब तक मन में आया खेला और जब मन भर गया तो फेंक दिया? शादी का वादा कर के मेरे मन और तन से खेलते रहे. देखा जाए तो एक तरह से मेरा यौनशोषण करते रहे. अब तुम्हें कोई दूसरी लड़की मिल गई है तो मुझ से पीछा छुड़ा रहे हो. अगर तुम ने शादी नहीं की तो मैं तुम्हारे खिलाफ शादी का झांसा दे कर यौनशोषण का मुकदमा दर्ज कराऊंगी.’’

प्रियंका की इस धमकी से सिद्धेश और उस के घर वाले घबरा गए. समाज और नातेरिश्तेदारों में बदनामी से बचने के लिए सिद्धेश ने प्रियंका से शादी कर ली. इस में घर वालों ने भी रजामंदी दे दी. इस तरह सिद्धेश और प्रियंका ने प्रेम विवाह कर लिया.

सिद्धेश ने विवाह तो कर लिया, लेकिन यह एक तरह की जबरदस्ती की शादी थी. इसलिए प्रियंका को ससुराल में जो प्यार और सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. सम्मान देने की कौन कहे, उस के पति और सासससुर तो किसी तरह उस से पीछा छुड़ाने की सोच रहे थे.

इस के लिए सिद्धेश और उस के मांबाप ने साजिश रच कर 4-5 मई, 2017 की रात प्रियंका जब गहरी नींद में सो रही थी, तब सिद्धेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर उसे हमेशा के लिए सुला दिया.

प्रियंका की हत्या के बाद जब उस की लाश को ठिकाने लगाने की बात आई तो सिद्धेश और उस के मांबाप ने डोंबिवली के रहने वाले अपने परिचित अपराधी प्रवृत्ति के दुर्गेश कुमार पटवा से संपर्क किया. प्रियंका की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक लाख रुपए मांगे.

सौदा तय हो गया तो दुर्गेश ने मदद के लिए डोंबिवली के ही रहने वाले अपने मित्र विशाल सोनी को सैंट्रो कार सहित बुला लिया. विशाल के आने पर दुर्गेश ने प्रियंका की लाश को बाथरूम में ले जा कर उस के 11 टुकड़े किए. लाश के टुकड़े करने के लिए हथियार वे अपने साथ लाए थे.

लाश के टुकड़ों को अलगअलग प्लास्टिक के बैग में अच्छी तरह से पैक कर विशाल ने उन्हें कार में रखा और 5-6 मई, 2017 की रात धड़ को रबाले के नाले में तो सिर को ले जा कर शाहपुर के जंगल में फेंका. कमर के नीचे के हिस्से और हाथों को अमरनाथ-बदलापुर रोड के बीच स्थित खारीगांव की खाड़ी में ले जा कर पैट्रोल डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लग गई तो 6 मई को सिद्धेश अपने मांबाप के साथ थाना वर्ली पहुंचा और प्रियंका की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने तो सोचा था कि सब ठीक हो गया है, लेकिन 3 दिनों बाद ही सब गड़बड़ हो गया, जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने पूछताछ के लिए उन्हें अपने औफिस बुला लिया. मामले का खुलासा होने के बाद उन्होंने सभी को थाना एमआईडीसी पुलिस के हवाले कर दिया.

सिद्धेश, उस के पिता मनोहर तथा मां माधुरी से पूछताछ कर मामले की जांच कर रहे प्रमोद जाधव ने 12 मई, 2017 को दुर्गेश पटवा को डोंबिवली से तो 14 मई को विशाल सोनी को भी उस के घर से सैंट्रो कार सहित गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने प्रियंका के सिर तथा बाकी अंगों की राख बरामद कर ली थी.

सबूत जुटा कर पुलिस ने सिद्धेश गुरव, उस के पिता मनोहर गुरव, मां माधुरी गुरव, दुर्गेश कुमार पटवा और विशाल सोनी को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

  • कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
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