‘प्यार के परिणाम के बारे में सोच कर प्यार नहीं किया जाता. तुम मुझे अच्छे लगते हो, तुम्हारे बारे में सोचते हुए मेरा दिल धड़कने लगता है, तुम्हारी आवाज मेरे कानों में मधुर संगीत घोलती है, तुम से मिलने के लिए मेरा मन बेचैन रहता है. बस, मैं समझती हूं, यही प्यार है,’’ उस ने अपना दायां हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और बाएं हाथ से मेरा सीना सहलाने लगी.
मैं सिकुड़ता हुआ बोला, ‘‘हां, प्यार तो यही है, लेकिन मैं अभी इस मामले में गंभीर नहीं हूं.’’
‘‘कोईर् बात नहीं, जब रोजरोज मुझ से मिलोगे तो एक दिन तुम को भी मुझ से प्यार हो जाएगा. मैं जानती हूं, तुम मुझे नापसंद नहीं करते,’’ वह मेरे साथ जबरदस्ती कर रही थी.
क्या पता, शायद एक दिन मुझे भी निधि से प्यार हो जाए. निधि को अपने ऊपर विश्वास था, लेकिन मुझे अपने ऊपर नहीं… फिर भी समय बलवान होता है. एकदो साल में क्या होगा, कौन क्या कह सकता है?
इसी तरह एक साल बीत गया. निधि से हर सप्ताह मुलाकात होती. उस के प्यार की शिद्दत से मैं भी पिघलने लगा था और दोनों चुंबक की तरह एकदूसरे को अपनी तरफ खींच रहे थे. इस में कोई शक नहीं कि निधि के प्यार में तड़प और कसमसाहट थी. मेरे मन में चोर था और मैं दुविधा में था कि मैं इस संबंध को लंबे अरसे तक खींच पाऊंगा या नहीं, क्योंकि भविष्य के प्रति मैं आश्वस्त नहीं था.
एक साल बाद हमारे डिग्री कोर्स समाप्त हो गए. परीक्षा के बाद फिर से गरमी की छुट्टियां. मैं अपने शहर आ गया. छुट्टियों में निधि से रोज मिलना होता, लेकिन इस बार अपने घर आ कर मैं कुछ बेचैन सा रहने लगा था. पता नहीं, वह क्या चीज थी, मैं समझ ही नहीं पा रहा था. ऐसा लगता था, जैसे मेरे जीवन में किसी चीज का अभाव था. वह क्या चीज थी, लाख सोचने के बावजूद मैं समझ नहीं पा रहा था. निधि से मिलता तो कुछ पल के लिए मेरी बेचैनी दूर हो जाती, लेकिन घर आते ही लगता मैं किसी भयानक वीराने में आ फंसा हूं और वहां से निकलने का कोई रास्ता मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा.
ये भी पढ़ें- बड़बोला: कैसे हुई विपुल की बहन की शादी
अचानक एक दिन मुझे अपनी बेचैनी का कारण समझ में आ गया. उस दिन मैं जल्दी घर लौटा था. मां आंगन में अमिता की मां के साथ बैठी बातें कर रही थीं. अमिता की मां को देखते ही मेरा दिल अनायास ही धड़क उठा, जैसे मैं ने बरसों पूर्व बिछड़े अपने किसी आत्मीय को देख लिया हो. मुझे तुरंत अमिता की याद आई, उस का भोला मुखड़ा याद आया. उस के चेहरे की स्निग्धता, मधुर सौंदर्य, बड़ीबड़ी मुसकराती आंखें और होंठों को दबा कर मुसकराना सभी कुछ याद आया. मेरा दिल और तेजी से धड़क उठा. मेरे पैर जैसे वहीं जकड़ कर रह गए. मैं ने कातर भाव से अमिता की मां को देखा और उन्हें नमस्कार करते हुए कहा, ‘‘चाची, आजकल आप दिखाई नहीं पड़ती हैं?’’ वास्तव में मैं पूछना चाहता था कि आजकल अमिता दिखाई नहीं पड़ती.
मुझे अपनी बेचैनी का कारण पता चल गया था, लेकिन मैं उस का निवारण नहीं कर सकता था. अमिता की मां ने कहा, ‘‘अरे, बेटा, मैं तो लगभग रोज ही आती हूं. तुम ही घर पर नहीं रहते.’’
मैं शर्मिंदा हो गया और झेंप कर दूसरी तरफ देखने लगा. मेरी मां मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘लगता है, यह तुम्हारे बहाने अमिता के बारे में पूछ रहा है. उस से इस बार मिला कहां है?’’ मां मेरे दिल की बात समझ गई थीं.
अमिता की मां भी हंस पड़ीं, ‘‘तो सीधा बोलो न बेटा, मैं तो उस से रोज कहती हूं, लेकिन पता नहीं उसे क्या हो गया है कि कहीं जाने का नाम ही नहीं लेती. पिछले एक साल से बस पढ़ाई, सोना और कालेज… कहती है, अंतिम वर्ष है, ठीक से पढ़ाई करेगी तभी तो अच्छे नंबरों से पास होगी.’’
‘‘लेकिन अब तो परीक्षा समाप्त हो गई है,’’ मेरी मां कह रही थीं. मैं धीरेधीरे अपने कमरे की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन उन की बातें मुझे पीछे की तरफ खींच रही थीं. दिल चाहता था कि रुक कर उन की बातें सुनूं और अमिता के बारे में जानूं, पर संकोच और लाजवश मैं आगे बढ़ता जा रहा था. कोई क्या कहेगा कि मैं अमिता के प्रति दीवाना था…
‘‘हां, परंतु अब भी वह किताबों में ही खोई रहती है,’’ अमिता की मां बता रही थीं.
आगे की बातें मैं नहीं सुन सका. मेरे मन में तड़ाक से कुछ टूट गया. मैं जानता था कि अमिता मेरे घर क्यों नहीं आ रही थी. उस दिन की मेरी बात, जब वह मेरे कमरे में मिठाई देने के बहाने आई थी, उस के दिल में उतर गई थी और आज तक उसे गांठ बांध कर रखा था. मुझे नहीं पता था कि वह इतनी जिद्दी और स्वाभिमानी लड़की है. बचपन में तो वह ऐसी नहीं थी.
ये भी पढ़ें- सौदा इश्क का: क्या दीपक और बाती अलग हुए?
अब मैं फोन पर निधि से बात करता तो खयालों में अमिता रहती, उस का मासूम और सुंदर चेहरा मेरे आगे नाचता रहता और मुझे लगता मैं निधि से नहीं अमिता से बातें कर रहा हूं. मुझे उस का इंतजार रहने लगा, लेकिन मैं जानता था कि अब अमिता मेरे घर कभी नहीं आएगी. एक साल हो गया था, आज तक वह नहीं आई तो अब क्या आएगी? उसे क्या पता कि मैं अब उस का इंतजार करने लगा था. मेरी बेबसी और बेचैनी का उसे कभी पता नहीं चल सकता था. मुझे ही कुछ करना पड़ेगा वरना एक अनवरत जलने वाली आग में मैं जल कर मिट जाऊंगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा.



