पति की हत्या करने वाली पत्नी की खुली पोल

Crime News in Hindi: कभीकभी कोई रात आदमी के लिए इतनी भारी हो जाती है कि उसे काटना मुश्किल हो जाता है. जयलक्ष्मी गुरव (Jai laxmi Gurav) के लिए भी वह रात ऐसी ही थी. उस पूरी रात वह पलभर के लिए भी नहीं सो सकी थी. कभी वह बिस्तर पर करवटें बदलती तो कभी उठ कर कमरे में टहलने लगती. उस के मन में बेचैनी थी तो आंखों में भय था. एकएक पल उसे एकएक साल के बराबर लग रहा था. किसी अनहोनी की आशंका से उस का दिल कांप उठता था. सवेरा होते ही जयलक्ष्मी बेटे के पास पहुंची और उसे झकझोर कर उठाते हुए बोली, ‘‘तुम यहां आराम से सो रहे हो और तुम्हारे पापा रात से गायब हैं. वह रात में गए तो अभी तक लौट कर नहीं आए हैं. वह घर से गए थे तो उन के पास काफी पैसे थे, इसलिए मुझे डर लग रहा है कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई?’’

जयलक्ष्मी बेटे को जगा कर यह सब कह रही थी तो उस की बातें सुन कर उस की ननद भी जाग गई, जो बेटे के पास ही सोई थी. वह भी घबरा कर उठ गई. आंखें मलते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, भैया कहां गए थे, जो अभी तक नहीं आए. लगता है, तुम रात में सोई भी नहीं हो?’’

‘‘मैं सोती कैसे, उन की चिंता में नींद ही नहीं आई. उन्हीं के इंतजार में जागती रही. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है.’’ कह कर जयलक्ष्मी रोने लगी.

बेटा उठा और पिता की तलाश में जगहजगह फोन करने लगा. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. उस के पिता विजय कुमार गुरव के बारे में भले पता नहीं चला, लेकिन उन के गायब होने की जानकारी उन के सभी नातेरिश्तेदारों को हो गई. इस का नतीजा यह निकला कि ज्यादातर लोग उन के घर आ गए और सभी उन की तलाश में लग गए.

जब सभी को पता चला विजय कुमार के गायब होने के बारे में

विजय कुमार गुरव के गायब होने की खबर मोहल्ले में भी फैल गई थी. मोहल्ले वाले भी मदद के लिए आ गए थे. हर कोई इस बात को ले कर परेशान था कि आखिर विजय कुमार कहां चले गए? इसी के साथ इस बात की भी चिंता सता रही थी कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. क्योंकि वह घर से गए थे तो उन के पास कुछ पैसे भी थे. किसी ने उन पैसों के लिए उन के साथ कुछ गलत न कर दिया हो.

38 साल के विजय कुमार महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले की तहसील सावंतवाड़ी के गांव भड़गांव के रहने वाले थे. उन का भरापूरा शिक्षित और संपन्न परिवार था. सीधेसादे और मिलनसार स्वभाव के विजय कुमार गडहिंग्लज के एक कालेज में अध्यापक थे. अध्यापक होने के नाते समाज में उन का काफी मानसम्मान था. गांव में उन का बहुत बड़ा मकान और काफी खेती की जमीन थी. लेकिन नौकरी की वजह से उन्होंने गडहिंग्लज में जमीन खरीद कर काफी बड़ा मकान बनवा कर उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे.

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विजय कुमार के परिवार में पत्नी जयलक्ष्मी के अलावा एक बेटा था. पत्नी और बेटे के अलावा उन की एक मंदबुद्धि बहन भी उन्हीं के साथ रहती थी. मंदबुद्धि होने की वजह से उस की शादी नहीं हुई थी. बाकी का परिवार गांव में रहता था. विजय कुमार को सामाजिक कार्यों में तो रुचि थी ही, वह तबला और हारमोनियम बहुत अच्छी बजाते थे. इसी वजह से उन की भजनकीर्तन की अपनी एक मंडली थी. उन की यह मंडली गानेबजाने भी जाती थी.

दिन कालेज और रात गानेबजाने के कार्यक्रम में कटने की वजह से वह घरपरिवार को बहुत कम समय दे पाते थे. उन की कमाई ठीकठाक थी, इसलिए घर में सुखसुविधा का हर साधन मौजूद था. आनेजाने के लिए मोटरसाइकिलों के अलावा एक मारुति ओमनी वैन भी थी.

इस तरह के आदमी के अचानक गायब होने से घर वाले तो परेशान थे ही, नातेरिश्तेदारों के अलावा जानपहचान वाले भी परेशान थे. सभी उन की तलाश में लगे थे. काफी प्रयास के बाद भी जब उन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो सभी ने एकराय हो कर कहा कि अब इस मामले में पुलिस की मदद लेनी चाहिए.

इस के बाद विजय कुमार का बेटा कुछ लोगों के साथ थाना गडहिंग्लज पहुंचा और थानाप्रभारी को पिता के गायब होने की जानकारी दे कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. यह 7 नवंबर, 2017 की बात है.

पुलिस ने भी अपने हिसाब से विजय कुमार की तलाश शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की इस कोशिश का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला. पुलिस ने लापता अध्यापक विजय कुमार की पत्नी जयलक्ष्मी से भी विस्तार से पूछताछ की.

पत्नी ने क्या बताया पुलिस को

जयलक्ष्मी ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार रोज की तरह उस दिन कालेज बंद होने के बाद 7 बजे के आसपास वह घर आए तो नाश्तापानी कर के कमरे में बैठ कर पैसे गिनने लगे. वे पैसे शायद फीस के थे, जिन्हें अगले दिन कालेज में जमा कराने थे. पैसे गिन कर उन्होंने पैंट की जेब में वापस रख दिए और लेट की टीवी देखने लगे.

रात का खाना खा कर साढ़े 11 बजे के करीब विजय कुमार पत्नी के साथ सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. जयलक्ष्मी ने सवालिया निगाहों से पति की ओर देखा तो उन्होंने कहा, ‘‘देखता हूं, कौन है?’’

विजय कुमार ने दरवाजा खोला तो शायद दस्तक देने वाला विजय कुमार का कोई परिचित था, इसलिए वह बाहर निकल गए. थोड़ी देर बाद अंदर आए और कपड़े पहनने लगे तो जयलक्ष्मी ने पूछा, ‘‘कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, थोड़ा काम है. जल्दी ही लौट आऊंगा.’’ कह कर वह बाहर जाने लगे तो जयलक्ष्मी ने क हा, ‘‘गाड़ी की चाबी तो ले लो?’’

‘‘चाबी की जरूरत नहीं है. उन्हीं की गाड़ी से जा रहा हूं.’’ कह कर विजय कुमार चले गए. वह वही कपड़े पहन कर गए थे, जिस में पैसे रखे थे. इस तरह थोड़ी देर के लिए कह कर गए विजय कुमार गुरव लौट कर नहीं आए.

पुलिस ने विजय कुमार के बारे में पता करने के लिए अपने सारे हथकंडे अपना लिए, पर उन की कोई जानकारी नहीं मिली. 3 दिन बीत जाने के बाद भी थाना पुलिस कुछ नहीं कर पाई तो घर वाले कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर एसएसपी दयानंद गवस और एसपी दीक्षित कुमार गेडाम से मिले. इस का नतीजा यह निकला कि थाना पुलिस पर दबाव तो पड़ा ही, इस मामले की जांच में सीआईडी के इंसपेक्टर सुनील धनावड़े को भी लगा दिया गया.

जब सीआईडी के इंसपेक्टर को सौंपी गई जांच

सुनील धनावड़े जांच की भूमिका बना रहे थे कि 11 नवंबर, 2017 को सावंतवाड़ी अंबोली स्थित सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर एक लाश मिलने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही एसपी दीक्षित कुमार गेडाम, एसएसपी दयानंद गवस इंसपेक्टर सुनील धनावड़े पुलिस बल के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी.

यह पिकनिक पौइंट बहुत अच्छी जगह है, इसलिए यहां घूमने वालों की भीड़ लगी रहती है. यहां ऊंचीऊंची पहाड़ियां और हजारों फुट गहरी खाइयां हैं. किसी तरह की अनहोनी न हो, इस के लिए पहाडि़यों पर सुरक्षा के लिए लोहे की रेलिंग लगाई गई है.

दरअसल, यहां घूमने आए किसी आदमी ने रेलिंग के पास खून के धब्बे देखे तो उस ने यह बात एक दुकानदार को बताई. दुकानदार ने यह बात चौकीदार दशरथ कदम को बताई. उस ने उस जगह का निरीक्षण किया और मामले की जानकारी थाना पुलिस को दे दी.

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पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल के निरीक्षण में सैकड़ों फुट गहरी खाई में एक शव को पड़ा देखा. शव बिस्तर में लिपटा था. वहीं से थोड़ी दूरी पर एक लोहे की रौड पड़ी थी, जिस में खून लगा था. इस से पुलिस को लगा कि हत्या उसी रौड से की गई है. पुलिस ने ध्यान से घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां से कुछ दूरी पर कार के टायर के निशान दिखाई दिए.

इस से साफ हो गया कि लाश को कहीं बाहर से ला कर यहां फेंका गया था. पुलिस ने रौड और बिस्तर को कब्जे में ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

सीआईडी इंसपेक्टर सुनील धनावड़े विजय कुमार गुरव की गुमशुदगी की जांच कर रहे थे, इसलिए उन्होंने लाश की शिनाख्त के लिए जयलक्ष्मी को सूचना दे कर अस्पताल बुला लिया.

लाश तो मिली पर नहीं हो सकी पुख्ता शिनाख्त

लाश की स्थिति ऐसी थी कि उस की शिनाख्त आसान नहीं थी. फिर भी कदकाठी से अंदाजा लगाया गया कि वह लाश विजय कुमार गुरव की हो सकती है. चूंकि उन के घर वालों ने संदेह व्यक्त किया था, इसलिए पुलिस ने लाश की पुख्ता शिनाख्त के लिए डीएनए का सहारा लिया. जिस बिस्तर में शव लिपटा था, उसे जयलक्ष्मी को दिखाया गया तो उस ने उसे अपना मानने से इनकार कर दिया.

भले ही लाश की पुख्ता शिनाख्त नहीं हुई थी, लेकिन पुलिस उसे विजय कुमार की ही लाश मान कर जांच में जुट गई. जिस तरह मृतक की हत्या हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या प्रेमसंबंधों में हुई है. पुलिस ने विजय कुमार और उन की पत्नी जयलक्ष्मी के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि विजय कुमार और जयलक्ष्मी के बीच संबंध सामान्य नहीं थे.

इस की वजह यह थी कि जयलक्ष्मी का चरित्र संदिग्ध था, जिसे ले कर अकसर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ करता था. जयलक्ष्मी का सामने वाले मकान में रहने वाले सुरेश चोथे से प्रेमसंबंध था, इसलिए घर वालों का मानना था कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ हो सकता है.

यह जानकारी मिलने के बाद सुनील धनावड़े समझ गए कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे उन की पत्नी जयलक्ष्मी और उस के प्रेमी सुरेश का हाथ है. उन्होंने जयलक्ष्मी से एक बार फिर पूछताछ की. वह उस की बातों से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन कोई ठोस सबूत न होने की वजह से वह उसे गिरफ्तार नहीं कर सके. उन्होंने सुरेश चोथे को भी थाने बुला कर पूछताछ की. उस ने भी खुद को निर्दोष बताया. उस के भी जवाब से वह संतुष्ट नहीं थे, इस के बावजूद उन्होंने उसे जाने दिया.

उन्हें डीएनए रिपोर्ट का इंतजार था, क्योंकि उस से निश्चित हो जाता कि वह लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस डीएनए रिपोर्ट का इंतजार कर ही रही थी कि पुलिस की सरगर्मी देख कर जयलक्ष्मी अपने सारे गहने और घर में रखी नकदी ले कर सुरेश चोथे के साथ भाग गई. दोनों के इस तरह घर छोड़ कर भाग जाने से पुलिस को शक ही नहीं, बल्कि पूरा यकीन हो गया कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है.

शक के दायरे में आई पत्नी और उस का प्रेमी

पुलिस सुरेश चोथे और जयलक्ष्मी की तलाश में जुट गई. पुलिस उन की तलाश में जगहजगह छापे तो मार ही रही थी, उन के फोन भी सर्विलांस पर लगा दिए थे. इस से कभी उन के दिल्ली में होने का पता चलता तो कभी कोलकाता में. गुजरात और महाराष्ट्र के शहरों की भी उन की लोकेशन मिली थी. इस तरह लोकेशन मिलने की वजह से पुलिस कई टीमों में बंट कर उन का पीछा करती रही थी.

आखिर पुलिस ने मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर जयलक्ष्मी और सुरेश को मुंबई के लोअर परेल लोकल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना गडहिंग्लज लाया गया, जहां एसएसपी दयानंद गवस की उपस्थिति में पूछताछ शुरू हुई. अब तक डीएनए रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस से साफ हो गया था कि सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर खाई में मिली लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस के पास सारे सबूत थे, इसलिए जयलक्ष्मी और सुरेश ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों के बताए अनुसार, विजय कुमार की हत्या की कहानी इस प्रकार थी.

कैसे हुआ जयलक्ष्मी और सुरेश में प्यार

34 साल का सुरेश चोथे विजय कुमार गुरव के घर के ठीक सामने रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चों के अलावा मातापिता, एक बड़ा भाई और भाभी थी. वह गांव की पंचसंस्था में मैनेजर के रूप में काम करता था. घर में पत्नी होने के बावजूद वह जब भी जयलक्ष्मी को देखता, उस के मन में उसे पाने की चाहत जाग उठती.

37 साल की जयलक्ष्मी थी ही ऐसी. वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही वाचाल और मिलनसार भी थी. उस से बातचीत कर के हर कोई खुश हो जाता था, इस की वजह यह थी कि वह खुल कर बातें करती थी. ऐसे में हर कोई उस की ओर आकर्षित हो जाता था. पड़ोसी होने के नाते सुरेश से उस की अकसर बातचीत होती रहती थी.

बातचीत करतेकरते ही वह उस का दीवाना बन गया था. जयलक्ष्मी का बेटा 18 साल का था, लेकिन उस के रूपयौवन में जरा भी कमी नहीं आई थी. शरीर का कसाव और चेहरे के निखार से वह 25 साल से ज्यादा की नहीं लगती थी. उस के इसी यौवन और नशीली आंखों के जादू में सुरेश कुछ इस तरह खोया कि अपनी पत्नी और बच्चों को भूल गया.

कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. जयलक्ष्मी तक पहुंचने की राह आखिर सुरेश ने खोज ही ली. विजय कुमार से दोस्ती कर के वह उस के घर के अंदर तक पहुंच गया था. इस के बाद धीरेधीरे उस ने जयलक्ष्मी से करीबी बना ली. भाभी का रिश्ता बना कर वह उस से हंसीमजाक करने लगा. हंसीमजाक में जयलक्ष्मी के रूपसौंदर्य की तारीफ करतेकरते उस ने उसे अपनी ओर इस तरह आकर्षित किया कि उस ने उसे अपना सब कुछ सौंप दिया.

विजय कुमार गुरव दिन भर नौकरी पर रहते और रात में गानेबजाने की वजह से अकसर बाहर ही रहते थे. इसी का फायदा जयलक्ष्मी और सुरेश उठा रहे थे. जयलक्ष्मी को अपनी बांहों में पा कर जहां सुरेश के मन की मुराद पूरी हो गई थी, वहीं जयलक्ष्मी भी खुश थी. दोनों विजय कुमार की अनुपस्थिति में मिलते थे, इसलिए उन्हें पता नहीं चल पाता था.

लेकिन आसपास वालों ने विजय कुमार के घर में न रहने पर सुरेश को अकसर उस के घर आतेजाते देखा तो उन्हें शंका हुई. उन्होंने विजय कुमार को यह बात बता कर शंका जाहिर की तो विजय कुमार हैरान रह गए. उन्हें तो पत्नी और पड़ोसी होने के नाते सुरेश पर पूरा भरोसा था.

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इस तरह दोनों विजय कुमार के भरोसे का खून कर रहे थे. उन्होंने पत्नी और सुरेश से इस विषय पर बात की तो दोनों कसमें खाने लगे. उन का कहना था कि उन के आपस में संबंध खराब करने के लिए लोग ऐसा कह रहे हैं.

भले ही जयलक्ष्मी और सुरेश ने कसमें खा कर सफाई दी थी, लेकिन विजय कुमार जानते थे कि बिना आग के धुआं नहीं उठ सकता. लोग उन से झूठ क्यों बोलेंगे? सच्चाई का पता लगाने के लिए वह पत्नी और सुरेश पर नजर रखने लगे. इस से जयलक्ष्मी और सुरेश को मिलने में परेशानी होने लगी, जिस से दोनों बौखला उठे. इस के अलावा सुरेश को ले कर विजय कुमार अकसर जयलक्ष्मी की पिटाई भी करने लगे थे.

इस तरह बनी विजय कुमार की हत्या की हत्या की योजना

इस से जयलक्ष्मी तो परेशान थी ही, प्रेमिका की पिटाई से सुरेश भी दुखी था. वह प्रेमिका की पिटाई सहन नहीं कर पा रहा था. जयलक्ष्मी की पिटाई की बात सुन कर उस का खून खौल उठता था. प्रेमी के इस व्यवहार से जयलक्ष्मी ने एक खतरनाक योजना बना डाली. उस में सुरेश ने उस का हर तरह से साथ देने का वादा किया.

योजना के अनुसार, घटना वाले दिन जयलक्ष्मी ने खाने में नींद की गोलियां मिला कर पति, ननद और बेटे को खिला दीं, जिस से सभी गहरी नींद सो गए. रात एक बजे के करीब सुरेश ने धीरे से दरवाजा खटखटाया तो जयलक्ष्मी ने दरवाजा खोल दिया. सुरेश लोहे की रौड ले कर आया था. उसी रौड से उस ने पूरी ताकत से विजय कुमार के सिर पर वार किया. उसी एक वार में उस का सिर फट गया और उस की मौत हो गई.

विजय कुमार की हत्या कर के लाश को दोनों ने बिस्तर में लपेट दिया. इस के बाद जयलक्ष्मी ने लाश को अपनी मारुति वैन में रख कर उसे सुरेश से सावंतवाड़ी के अंबोली सावलेसाद पिकनिक पौइंट की गहरी खाइयों में फेंक आने को कहा.

सुरेश लाश को ठिकाने लगाने चला गया तो जयलक्ष्मी कमरे की सफाई में लग गई. उस के बाद सुरेश लौटा तो जयलक्ष्मी ने वैन की भी ठीक से सफाई कर दी. इस के बाद उस ने विजय कुमार की गुमशुदगी की झूठी कहानी गढ़ डाली. लेकिन उस की झूठी कहानी जल्दी ही सब के सामने आ गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयलक्ष्मी के कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया तो दीवारों पर भी खून के दाग नजर आए. पुलिस ने उन के नमूने उठवा लिए. इस तरह साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाई ने ही छीन लिया बहन का सुहाग

मध्य महाराष्ट्र की कृष्णा नदी की सहायक नदियों के किनारे निचली पहाड़ियों की लंबी शृंखला है. इन की घाटियों में बसे बीड शहर की अपनी एक अलग पहचान है. पहले यह शहर चंपावती के नाम से जाना जाता था. बीड में अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतें हैं. इस के अलावा यहां शैक्षणिक संस्थान और कालेज भी हैं, जहां आसपास के शहरों से हजारों लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते हैं.

घटना 19 दिसंबर, 2018 की है. उस समय शाम के यही कोई पौने 6 बजे का समय था. बीड के जानेमाने आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में सेमेस्टर परीक्षा का अंतिम पेपर चल रहा था, हजारों की संख्या में युवकयुवतियां परीक्षा दे रहे थे. इन्हीं में भाग्यश्री और सुमित वाघमारे भी थे. ये दोनों पतिपत्नी थे.

निर्धारित समय पर जब पेपर खत्म हुआ तो अन्य छात्रछात्राओं के साथ ये दोनों भी कालेज से बाहर आ गए. इन दोनों के चेहरों पर खुशी की चमक थी. मतलब उन का पेपर काफी अच्छा हुआ था, जिस की खुशी वह अपने सहपाठियों में बांट रहे थे.

लेकिन कौन जानता था कि उन के खिले चेहरों की खुशी सिर्फ कुछ देर की मेहमान है. परीक्षा के परिणाम आने के पहले ही उन की जिंदगी में जो परिणाम आने वाला था. वह काफी भयानक था. 15-20 मिनट अपने सहपाठियों से मिलनेजुलने के बाद दोनों पार्किंग में पहुंचे, जहां उन की स्कूटी खड़ी थी.

सुमित वाघमारे ने पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाली और दोनों उस पर बैठ कर घर जाने के लिए निकल गए. 10 मिनट में वह नालवाड़ी रोड गांधीनगर चौक पर पहुंच गए. तभी उन की स्कूटी के सामने अचानक एक मारुति कार आ कर रुकी. उस वक्त सड़क कालेज के सैकड़ों छात्रों और भीड़भाड़ से भरी थी. मारुति कार उन की स्कूटी के सामने कुछ इस तरह आ कर रुकी थी कि वे दोनों रोड पर गिरतेगिरते बचे थे. इस के पहले कि वे संभल कर कुछ कहते, कार से 2 युवक निकल कर बाहर आ गए.

उन्हें देख कर भाग्यश्री और सुमित वाघमारे के होश उड़ गए. क्योंकि उन में से एकभाग्यश्री का भाई बालाजी लांडगे और दूसरा उस का दोस्त संकेत था. उन के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.

बालाजी लांडगे सुमित को खा जाने वाली नजरों से घूरे जा रहा था. भाग्यश्री अपने भाई के गुस्से को समझ रही थी. संभावना को देखते हुए भाग्यश्री अपने पति की रक्षा के लिए झट से पति के सामने आ खड़ी हुई. इस के बावजूद भी बालाजी लांडगे ने बहन को धक्का दे कर सुमित के सामने से हटाया और अपने दोस्त संकेत वाघ की तरफ इशारा कर के सुमित को पकड़ने के लिए कहा.

संकेत ने सुमित का कौलर पकड़ लिया. यह देख बालाजी बोला, ‘‘क्यों बे, मैं ने कहा था न कि मेरी बहन से दूर रहना, नहीं तो नतीजा बुरा होगा. लेकिन मेरी बातों का तुझ पर कोई असर नहीं हुआ. इस की सजा तुझे जरूर मिलेगी.’’

गुस्से में चाकू बना तलवार

इस के पहले कि सुमित कुछ कहता या संभल पाता, बालाजी लांडगे ने अपनी जेब से चाकू निकाला और सुमित पर हमला कर दिया. पति पर हमला होता देख भाग्यश्री चीखते हुए बोली, ‘‘भैया, सुमित को छोड़ दो. उस की कोई गलती नहीं है. सजा देनी है तो मुझे दो. मैं ने उसे प्यार और शादी के लिए मजबूर किया था. तुम्हें मेरी कसम है भैया. दया करो, बहन पर.’’

‘‘कैसी बहन, मेरी बहन तो उसी दिन मर गई थी, जब घर से भाग कर तूने इस से शादी की थी. जानती है तेरी इस करतूत से समाज और बिरादरी में हमारी कितनी बदनामी हुई. तूने परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा. लेकिन मैं भी इसे नहीं छोड़ूंगा.’’ वह बोला.

अगले ही पल बालाजी लांडगे ने चाकू सुमित वाघमारे के पेट में उतार दिया. इस हमले से सुमित वाघमारे की मार्मिक चीख निकली और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. इस के बाद भी बालाजी लांडगे का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह सुमित वाघमारे पर तब तक वार करता रहा, जब तक कि उस की मौत न हो गई.

इस दौरान भाग्यश्री रहम की भीख मांगती रही. पति की जान बचाने के लिए वह मदद के लिए चीखतीचिल्लाती रही. लेकिन उस की सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया. सुमित वाघमारे की हत्या करने के बाद बालाजी और उस का दोस्त संकेत दोनों वहां से चले गए.

अचानक घटी इस घटना को जिस ने भी देखा, स्तब्ध रह गया. शहर के बीचोबीच भीड़भाड़ भरे इलाके में घटी इस घटना से पूरे बीड शहर में सनसनी फैल गई. भाग्यश्री पति के शरीर से लिपट कर बुरी तरह चीखचिल्ला कर लोगों से सहायता मांग रही थी कि उस के पति को अस्पताल ले जाने में मदद करें. लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया.

काफी हाथपैर जोड़ने के बाद आखिरकार एक आटो वाले को दया आई और वह सुमित वाघमारे को अपने आटो से जिला अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने सुमित को मृत घोषित कर दिया.

यह सुन कर भाग्यश्री अस्पताल में ही फिर से रोने लगी. अस्पताल स्टाफ ने उसे सांत्वना दी. पुलिस केस था, लिहाजा अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. भाग्यश्री ने अस्पताल से ही सुमित के घर वालों को फोन कर के उस की हत्या की खबर दे दी थी.

अस्पताल पहुंचे थाना विलपेठ के पीआई ने भाग्यश्री से बात की तो उस ने बता दिया कि उस के पति की हत्या उस के सगे भाई बालाजी लांडगे और उस के दोस्त संकेत ने की है. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

कुछ ही देर में बीड शहर के एसपी जी. श्रीधर, एडीशनल एसपी वैभव कलुबर्मे, डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर, पीआई घनश्याम पालवदे, एपीआई दिलीप तेजनकर, अमोल धंस, पंकज उदावत के साथ अस्पताल आ गए. उन्होंने मृतक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के शरीर पर तेज धार वाले हथियार के कई वार थे.

अस्पताल से पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई फिर से अस्पताल गए. उन्होंने सुमित की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

औनरकिलिंग के चक्कर में हुई हत्या

भाग्यश्री ने अपने भाई बालाजी लांडगे और संकेत वाघ के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाने के बाद पुलिस को बताया कि जब से उस ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज की थी, तब से उस के परिवार वाले अकसर सुमित को धमकियां देते आ रहे थे, जिस की उन्होंने करीब एक महीने पहले शिवाजी नगर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी. लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो बालाजी के हौसले बुलंद हो गए.

पुलिस को मामला औनरकिलिंग का लग रहा था. दिनदहाड़े हत्या होने की खबर जब शहर में फैली तो एसपी जी. श्रीधर ने लोगों को भरोसा दिया कि हत्यारों को जल्द पकड़ लिया जाएगा. उन्होंने उसी समय इस केस की जांच पुलिस डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर को सौंप दी.

खिरडकर ने जांच का जिम्मा लेते ही स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच की कई टीमें बना कर तेजी से जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सब से पहले शहर की नाकेबंदी कर के अभियुक्तों के बारे में अलर्ट जारी कर दिया.

घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो इस बात की पुष्टि हो गई कि वारदात को बालाजी लांडगे और संकेत वाघ ने ही अंजाम दिया था. लिहाजा पुलिस ने दोनों के फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही मुखबिरों को भी सजग कर दिया. लेकिन 3 दिनों तक पुलिस और क्राइम ब्रांच को कोई सफलता नहीं मिली.

जांच के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि सुमित वाघमारे की हत्या में बालाजी लांडगे के दोस्त कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बालाजी और उस का दोस्त संकेत फरार हो चुके थे. लिहाजा पुलिस टीम ने दबिश दे कर कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर को गिरफ्तार कर लिया.

कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर ने क्राइम ब्रांच को बताया कि बालाजी लांडगे और संकेत वाघ पुणे होते हुए औरंगाबाद में एक मंत्री के घर गए हैं. यह सूचना मिलते ही क्राइम ब्रांच की टीम पुणे में उस मंत्री के घर पहुंच गई. पता चला कि टीम के आने के कुछ घंटे पहले ही दोनों वहां से अमरावती के लिए निकल गए थे.

आरोपी अमरावती शहर से बाहर न जा सकें, इस के लिए एसपी जी. श्रीधर ने अमरावती के पुलिस कमिश्नर से अभियुक्तों की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा. तब पुलिस कमिश्नर ने अमरावती शहर की पुलिस के साथ जीआरपी को भी सतर्क कर दिया. जीआरपी ने बालाजी लांडगे और संकेत वाघ को अमरावती के बडनेरा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उन्होंने दोनों अभियुक्त क्राइम ब्रांच की जांच टीम को सौंप दिए.

क्राइम ब्रांच औफिस में बालाजी लांडगे से पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना गुनाह स्वीकार करते हुए अपनी बहन के सुहाग की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

25 वर्षीय सुमित वाघमारे महत्त्वाकांक्षी युवक था. मूलरूप से बीड तालखेड़ा, तालुका मांजल, गांव हमुनगोवा का रहने वाला था. उस के पिता शिवाजी वाघमारे गांव के जानेमाने किसान थे. गांव में उन की काफी प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटी और बेटा सुमित वाघमारे थे.

शिवाजी वाघमारे उसे उच्चशिक्षा दिला कर कामयाब इंसान बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सुमित का एडमिशन बीड शहर के आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में करवाया. उस के रहने की व्यवस्था उन्होंने बीड शहर में ही रहने वाली अपनी साली के यहां कर दी थी. अपनी मौसी के घर रह कर सुमित इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा.

इसी कालेज से भाग्यश्री लांडगे भी इंजीनियरिंग कर रही थी. दोनों एक ही कक्षा में थे, जिस से उन की अच्छी दोस्ती हो गई. उन की दोस्ती प्यार तक कब पहुंच गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वे एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हों.

पहले दोस्ती, फिर प्यार, बाद में शादी समय धीरधीरे सरक रहा था. कालेज की पढ़ाई और परीक्षा में सिर्फ 6 महीने रह गए थे. दोनों ने फाइनल परीक्षा के बाद शादी करने का फैसला किया था, लेकिन इस के पहले ही भाग्यश्री के परिवार वालों को उस के और सुमित के बीच चल रहे प्यार की जानकारी हो गई, जिसे जान कर वे सन्न रह गए. उन्होंने भाग्यश्री के लिए जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरते हुए नजर आया.

मामला काफी नाजुक था. भाग्यश्री का फैसला उन की मानमर्यादा के खिलाफ था. लेकिन भाग्यश्री सुमित वाघमारे के प्यार में अंधी हो चुकी थी. फिर भी उन्होंने मौका देख कर भाग्यश्री को समझाने की काफी कोशिश की. उस के भाई बालाजी लांडगे को तो सुमित जरा भी पसंद नहीं था.

वह न तो उन की बराबरी का था और न ही उन की बिरादरी का. उस ने भाग्यश्री को न केवल डांटाफटकारा बल्कि बुरे अंजाम की चेतावनी भी दी. साथ ही यह भी कहा कि अगर उस ने अपनी राह और रवैया नहीं बदला तो उस का कालेज जाना बंद करा देगा.

घर और परिवार का माहौल बिगड़ते देख भाग्यश्री समझ गई कि घर वाले उस की शादी में जरूर व्यवधान डालेंगे. इसलिए किसी भी नतीजे की परवाह किए बगैर कालेज की परीक्षा के 3 महीने पहले उस ने अपने प्रेमी सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज कर ली. इतना ही नहीं, कुछ दिनों के लिए वह पति सुमित के साथ भूमिगत हो गई.

भाग्यश्री के अचानक गायब हो जाने के बाद उस के घर वालों की काफी बदनामी हुई. इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि उस ने सुमित से शादी कर ली है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. जब वे नहीं मिले तो सुमित वाघमारे को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने शिवाजी नगर थाने में सुमित के खिलाफ भाग्यश्री के अपहरण की शिकायत दर्ज करा दी.

पुलिस ने मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी काररवाई शुरू कर दी. इसी बीच भाग्यश्री को पता चल गया कि पुलिस उन्हें तलाश रही है. लिहाजा अपनी शादी के एक महीने बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे दोनों पुलिस के सामने हाजिर हो गए. दोनों ने अपने बालिग होने और शादी करने का प्रमाणपत्र पुलिस को दे दिया. साथ ही अपनी सुरक्षा की भी गुहार लगाई.

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने भाग्यश्री के परिवार वालों को समझा दिया कि दोनों बालिग हैं, इसलिए उन की शादी कानूनन वैध है. इसलिए उन्हें किसी भी तरह तंग न किया जाए. अगर भाग्यश्री या उस के पति ने थाने में अपनी सुरक्षा आदि को ले कर कोई शिकायत की तो पुलिस को काररवाई करनी पड़ेगी.

लेकिन पुलिस की चेतावनी के बाद भी भाग्यश्री के परिवार वालों का रवैया नहीं बदला. उन के अंदर प्रतिशोध की चिंगारी सुलगती रही. भाग्यश्री के भाई बालाजी लांडगे ने भाग्यश्री और सुमित वाघमारे को घटना के एक महीने पहले सबक सिखाने की धमकी दी थी, जिस की शिकायत उन्होंने थाने में भी की थी.

प्रेमी युगल की शिकायतके बावजूद कुछ नहीं हुआ

पुलिस में की गई इस शिकायत का भी बालाजी पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपने परिवार की बेइज्जती पर भाग्यश्री को सबक सिखाना चाहता था. इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार की, जिस में उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ, कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर की मदद ली. उन्हें उन का काम समझा कर वह मौके की तलाश में रहने लगा था.

19 दिसंबर, 2018 को कृष्णा क्षीरसागर ने बालाजी लांडगे को बताया कि भाग्यश्री और सुमित वाघमारे अपनी परीक्षा देने के लिए कालेज आएंगे. खबर पाते ही बालाजी लांडगे अपनी योजना की तैयारी में लग गया. उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ को उस की कार के साथ लिया और कालेज के पास आ कर परीक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगा.

परीक्षा खत्म होने के बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे जब अपनी स्कूटी से कालेज से घर के लिए निकले तो बालाजी लांडगे ने उन का रास्ता रोक लिया और देखते ही देखते बहन के सिंदूर को रक्त के कफन में लपेट दिया.

सुमित वाघमारे की हत्या के बाद संकेत वाघ और बालाजी लांडगे ने कार ले जा कर मित्रनगर छोड़ दी. वहां से वह गजानंद क्षीरसागर की स्कूटी से वाडा रेलवे स्टेशन गए, वहां से वे पुणे, औरंगाबाद और अमरावती पहुंचे, जहां वे रेलवे पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे.

चारों गिरफ्तार अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद बीड क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उन्हें विलपेठ पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

25 दिसंबर की वह काली रात और एक अनोखी हत्या

Crime News in Hindi: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के जिले चांपा जांजगीर के पंतोरा थाने के तहत बन रहे नए भारत माला रोड (Bharat Mala Road) पर छाता जंगल के पास 25 दिसंबर, 2023 की रात एक हत्या हुई. हत्यारे ने बड़ी सोचीसमझी चालाकी के साथ अपनेआप को छिपाना चाहा और अगर पुलिस (Police) इस मामले में थोड़ी सी भी कोताही करती, तो हत्यारा बच कर निकल सकता था, मगर ऐसा हो न पाया. दरअसल, बुधवार, 27 दिसंबर, 2023 को एक खबर सुर्खियां में थी कि एक आटोरिकशा चालक(Autorikshaw Driver) के सिर को पत्थर से कुचल कर उस की हत्या कर दी गई है. मगर जब पुलिस ने जांचपड़ताल की, तो इस हत्या के मामले में नया मोड़ आ गया.

पुलिस जिसे मरा हुआ समझ रही थी वही जिंदा निकला और हत्या का आरोपी भी वही पाया. जांच में यह भी पाया गया कि आटोरिकशा चालक ने ही किसी सवारी की हत्या कर उसे अपने कपड़े पहना दिए और खुद की हत्या बताने और पुलिस को भरमाने की शातिर चाल चली. मजेदार बात यह है कि उस आटोरिकशा चालक के परिवार वालों ने उस की शिनाख्त भी कर ली थी.

आप को पूरी घटना तफसील से बताते हैं. गांव ढेका, जिला बिलासपुर का रहने वाला 36 साल का शंकर शास्त्री, जिस के पिता का नाम जगजीवन है, बिलासपुर में आटोरिकशा चलाता था. सोमवार, 25 दिसंबर की सुबह वह अपने घर से आटोरिकशा नंबर सीजी 10 एई 9477 ले कर निकला था. रात के तकरीबन 8 बजे वह बिलासपुर रेलवेस्टेशन से आटोरिकशा ले कर निकला, लेकिन घर वापस नहीं पहुंचा. परिवार के लोगों द्वारा कई बार फोन लगाने पर भी उस ने फोन नहीं उठाया.

मंगलवार, 26 दिसंबर, 2023 की सुबह कोरबापंतोरा रोड पर छाता जंगल के पास भारत माला रोड पर खून से लथपथ एक लाश लोगों ने देखी. उस का सिर कुचला हुआ था. वहीं एक आटोरिकशा भी रोड पर पलटा हुआ था.

सूचना मिलने पर पंतोरा चौकी प्रभारी दिलीप सिंह और पुलिस टीम मौके पर पहुंची. घटनास्थल पर डौग स्कवायड और साथ ही बिलासपुर से फौरैंसिंक ऐक्सपर्ट की टीम भी बुलाई गई.

घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया. पुलिस को मौके से शराब की बोतल और मूंगफली भी पड़ी हुई मिली. इस से लगा कि शराब पीने के दौरान हुए झगड़े के बाद यह हत्या की गई होगी.

सूचना मिलने पर शंकर शास्त्री के परिवार वाले भी वहां पहुंच गए और मारे गए की पहचान आटोरिकशा चालक के रूप में की गई और लाश उस के परिवार वालों को सौंप दी गई.

पर जब पुलिस की जांचपड़ताल शुरू हुई, तो मामले ने नया मोड़ ले लिया. पुलिस ने मोबाइल डिटेल निकाली और सीसी फुटेज खंगाले, तो पता चला कि मारे गए शख्स के अलावा और एक आदमी का मोबाइल एकसाथ घटनास्थल पर बंद हुआ था.

पुलिस ने दोनों मोबाइल नंबरों की डिटेल निकाली, तो आटोरिकशा चालक का मोबाइल कुछ समय के लिए चालू मिला. पुलिस ने लोकेशन ट्रेस कर के उसे कोरबा से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने पूछताछ की तो उस ने खुद को सवारी बताया और आटोरिकशा चालक की हत्या करना बताया, जबकि वह खुद आटोरिकशा चालक था. पहचान छिपाने के लिए उस ने अपना मुंडन भी करा लिया था.

अब इस मामले ने नया मोड़ ले लिया है. जिसे पुलिस मरा हुआ समझ रही थी, वही कातिल निकला. बहरहाल, पुलिस ने आटोरिकशा चालक को गिरफ्तार कर लिया है. जब पुलिस ने उस से पूछताछ की, तो उस ने बताया कि वह अपराध पर लिखी गई किताबें पढ़ता था और उन्हीं से सीख ले कर उस ने यह अपराध करने के बाद खुद को बचाने की चाल चली थी. पर नाकाम रहा.

3,000 के लिए कर दी हत्या

Crime News in Hindi: 12 दिसंबर, 2024 को उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के खुर्जा टाउन में एक शख्स नवाब ने 22 साल के समीर की इतनी बेदर्दी से हत्या कर दी कि देखने वालों की आंखें फटी रह गईं. समीर टैक्सी चला कर परिवार का भरणपोषण करता था. कुछ दिनों पहले उस ने नवाब से 3,000 रुपए उधार लिए थे, जिसे उस ने वापस भी कर दिया था, जबकि नवाब उस से और 3,000 रुपए मांग रहा था. इसी पर विवाद के बाद नवाब ने कुछ दिनों पहले समीर की पिटाई भी की थी.

12 दिसंबर, 2023 को दोपहर में समीर अपने घर के बाहर गली में खड़ा था, तभी आरोपी नवाब चाकू ले कर आया और समीर के साथ गालीगलौज शुरू कर दिया. विरोध करने पर उस ने समीर की गरदन और पेट पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए, जिस से उस की गरदन का अगला भाग पूरी तरह से कट गया.

हमला इतना खौफनाक था कि समीर की आंतें तक उस के पेट से बाहर निकल आई थीं. वह लहूलुहान हो कर गिर पड़ा था.

भीड़ इकट्ठी होती देख आरोपी नवाब चाकू लहराता हुआ भाग निकला. समीर को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उसे मरा हुआ ऐलान कर दिया गया.

ऐसी ही कुछ और वारदातों पर नजर डालते हैं : उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 10 दिसंबर, 2023 को 68 साला एक औरत से जब उस के बेटे ने कुछ रुपए उधार मांगे, तो औरत ने पैसे देने से इनकार कर दिया. गुस्से में बौखलाए लड़के ने अपनी ही मां की फावड़े से हत्या कर दी.

इस से 2 दिन पहले यानी 8 दिसंबर, 2023 को 22 साल के एक नौजवान ने महाराष्ट्र के नवी मुंबई के सानपाड़ा में तड़के एक चौकीदार की माचिस की तीली देने से इनकार करने पर हत्या कर दी.

चौकीदार ने माचिस उधार देने से इनकार किया, तो 22 साल के लड़के शेख ने एक बड़ा पत्थर उठाया और पीड़ित के सिर पर दे मारा.

इसी तरह की पिछले साल की एक वारदात है, जब उत्तर प्रदेश के बिजनौर में उधार नहीं देने पर एक नौजवान ने दुकानदार यशपाल की पीटपीट कर हत्या कर दी थी. यशपाल सिंह की एक छोटी सी परचून की दुकान थी. इसी गांव का जितेंद्र दुकान से सामान खरीदने के लिए पहुंचा.

जितेंद्र ने दुकानदार यशपाल से उधार सामान मांगा, तो यशपाल ने देने से मना कर दिया. फिर यशपाल ने जितेंद्र से उधार के 30 रुपए वापस देने को भी कहा.

इसी बात पर यशपाल और जितेंद्र में झगड़ा हो गया. गुस्साए जितेंद्र ने अपने परिवार के लोगों के साथ मिल कर  दुकानदार को पीटपीट कर मौत के घाट उतार दिया. बीचबचाव करने आई दुकानदार की पत्नी को भी गंभीर रूप से घायल कर दिया.

देशभर में आएदिन हो रही ऐसी वारदातें साबित करती हैं कि आज के समय में लोगों की सहने की ताकत इतनी कम हो गई है और वे गुस्से में इतने बौखला जाते हैं कि आगेपीछे सोचे बिना मामूली सी बात पर जिंदगी लेनेदेने को तैयार हो जाते हैं.

उन्हें लगता है कि सामने वाले ने बात नहीं मानी, तो उसे जान से मार दो. खासकर, अगर सामने वाला कोई कमजोर शख्स हो, तो उस पर जानलेवा हमला करने में वे बिलकुल भी नहीं हिचकते.

खौफनाक अंजाम

मगर सोचिए, इस का अंजाम क्या होता है? एक इनसान अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता है. उस का पूरा परिवार भी टूट जाता है.

ऐसी खौफनाक वारदात को अंजाम देने वाला आरोपी भी नहीं बचता. वह जिंदगीभर कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने या जेल की हवा खाने को मजबूर हो जाता है.

कुछ लोग जिंदगीभर पुलिस और लोगों से बचते फिरते हैं. उन की जिंदगी का सुकून छिन जाता है और वे एक मुजरिम की तरह जिल्लतभरी जिंदगी जीते हैं.

गुस्से पर रखें काबू

क्या यह बेहतर नहीं होगा कि इनसान अपने गुस्से पर काबू रखना सीखे. जराजरा सी बातों को तूल देने और अपना आपा खोने के बजाय सामने वाले की परेशानी को समझे. बेवजह की बहसबाजी या झगड़े में न पड़े.

जिंदगी खूबसूरत है, इनसान इसे अपने हाथों बरबाद न करे. साथ ही, पैसों के मामले में लेनदेन करने से बचे. न किसी को उधार दें, न किसी से उधार लें, क्योंकि पैसे रिश्तों को तोड़ने और जिंदगी तबाह करने की अकसर बड़ी वजह साबित होते हैं.

एक क्राइम ऐसा भी, क्यों निकले मजबूर डोर के कच्चे रिश्ते

Crime News in Hindi: उत्तर प्रदेश (Uttarpradesh) के गोरखपुर (Gorakhpur) जिले का एक गांव है उमरपुर. यह गांव थाना चिलुआताल के अंतर्गत आता है. गांव के बाहर आम का एक बड़ा बाग स्थित है. 21 नवंबर, 2018 को करीब 10 बजे गांव के ही विकास, राजन और अमन नाम के लड़के इस बाग में खेलने के लिए गए थे. वहां पहुंच कर वे अपने खेल की दुनिया में रम गए थे. खेल के दौरान ही राजन चिल्लाता दौड़ता हुआ विकास और अमन के पास जा पहुंचा. उसे चिल्लाता देख दोनों परेशान हो गए. तभी विकास ने उस से पूछा, ‘‘अबे तू चिल्ला क्यों रहा है? वहां झाड़ी में क्या कोई भूत देख लिया जो चीख रहा है और तेरे माथे पर पसीना आ गया.’’

‘‘भूत नहीं, वहां झाड़ियों में एक लड़की की लाश पड़ी है.’’ लंबी सांसें भरता हुआ राजन बोला, ‘‘तुम्हें मेरी बातों पर यकीन न हो रहा हो तो आओ मेरे साथ, तुम्हें भी दिखाता हूं.’’ कह कर राजन झाड़ी की ओर बढ़ा तो उत्सुकतावश उस के दोस्त भी उस के पीछेपीछे चल दिए.

जब वह झाडि़यों के पास पहुंचे तो वास्तव में वहां एक लड़की की लाश पड़ी थी. लाश देख कर वे अपना खेल खेलना भूल गए और सभी सिर पर पैर रखे चिल्लाते हुए गांव की ओर भागे.

गांव पहुंच कर उन्होंने इस की सूचना गांव वालों को दी. बच्चों की सूचना पर गांव के कई लोग लाश देखने के लिए आम के बाग में पहुंच गए. थोड़ी देर में वहां तमाशबीनों का मजमा जमा हो गया. सूचना पा कर गांव का चौकीदार आफताब आलम भी मौके पर पहुंच गया था.

लड़की की लाश देख कर चौकीदार आफताब आलम ने सूचना चिलुआताल के थानाप्रभारी अरुण पवार को फोन द्वारा दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण पवार मय फोर्स उमरपुर में घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश की दशा देख कर वह दंग रह गए. हत्यारों ने मृतका को 5 गोलियां मारी थीं. कनपटी और सीने में एकएक और पेट में 3 गोलियां मार कर उस की हत्या की थी. शरीर पर कई जगह नुकीले हथियार से गोदे जाने के निशान भी थे. खून भी सूख कर पपड़ी के रूप में जम गया था.

लाश से थोड़ी दूर पर कारतूस के 2 खोखे भी पड़े मिले. पुलिस ने वह कब्जे में ले लिए. मौके से कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से शव की पहचान हो सके. शव की शिनाख्त के लिए थानाप्रभारी पवार ने मौके पर जुटे ग्रामीणों से पूछताछ की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

इस का मतलब साफ था कि मृतका चिलुआताल की रहने वाली नहीं थी. यानी वह कहीं और की रहने वाली थी. थानाप्रभारी ने घटना की सूचना सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे, एसपी (उत्तरी) अरविंद कुमार पांडेय और एसएसपी डा. सुनील गुप्ता को भी दे दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद सभी अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल की छानबीन कर वहां मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछताछ की लेकिन मौजूद लोगों ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए बीआरडी मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेज दी. थाने लौट कर उन्होंने चौकीदार आफताब आलम की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और विवेचना शुरू कर दी.

थानाप्रभारी इस बात पर गौर कर रहे थे कि मासूम सी दिखने वाली युवती की भला किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी, जो उसे 5 गोलियां मार कर मौत के घाट उतार दिया.

हत्यारे का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उस ने किसी नुकीली चीज से उस पर अनगिनत वार कर के अपनी भड़ास निकाली. इस से साफ पता चल रहा था कि हत्यारा मृतका से काफी खुन्नस खाया हुआ था. पुलिस को मामला प्रेम संबंधों का लग रहा था.

अगले दिन एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानाप्रभारी अरुण पवार को अपने औफिस बुला कर हत्या के इस केस के बारे में चर्चा की और जल्द से जल्द केस का खुलासा करने के निर्देश दिए.

घटना को एक सप्ताह बीत गया लेकिन न तो मृतका की शिनाख्त हो पाई थी और न ही किसी थाने में इस उम्र की किसी लड़की की गुमशुदगी दर्ज होने की सूचना मिली. जबकि मृतका की शिनाख्त के लिए जिले के सभी 26 थानों को मृतका का फोटो भेज दिया गया था. जांच टीम के लिए यह मामला काफी पेचीदा होता जा रहा था. तब थानाप्रभारी ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

7 दिनों बाद यानी 4 दिसंबर, 2018 को प्रमिला और सरिता नाम की 2 सगी बहनें थानाप्रभारी अरुण पवार से मिलीं. उन्होंने बताया कि उन की छोटी बहन 15 वर्षीय रागिनी जो गुलरिहा थाने के शिवपुर सहबाजगंज में रहती है. 20 नवंबर, 2018 की शाम को घर से साइकिल ले कर निकली थी, वह अभी तक घर नहीं लौटी है. मांबाप ने कई दिनों तक रागिनी को इधरउधर तलाशा. लेकिन जब कहीं पता नहीं चला तो वह चुप हो कर बैठ गए. उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह कहां चली गई और किस हाल में है. भाई सिकंदर पाल भी रागिनी को तलाशने में कोई रुचि नहीं ले रहा. वह भी चुपी साधे बैठा है.

यह बात दोनों बहनों प्रमिला और सरिता को बड़ी अजीब लगी कि जिस की सयानी बेटी घर से लापता हो जाए, वह बाप हाथ पर हाथ धरे भला कैसे बैठा रह सकता है. कहीं न कहीं कोई पेंच जरूर है. तब से दोनों बहनों ने अपने स्तर से रागिनी की तलाश शुरू कर दी. उन्हें जब पता लगा कि उमरपुर गांव के आम के एक बाग में एक सप्ताह पहले पुलिस ने एक लड़की की लाश बरामद की थी, तो वे यहां चली आईं.

थानाप्रभारी ने अपने फोन में मौजूद उस लाश की फोटो और कपड़े दिखाए तो दोनों बहनों ने वह पहचानते हुए बताया कि यह फोटो और कपड़े उन की बहन रागिनी के हैं. लाश की शिनाख्त होने के बाद प्रमिला और सरिता ने बताया कि रागिनी की हत्या के पीछे उसे अपने घर वालों पर शक है. उन्होंने कहा कि उस के मांबाप और भाई सिकंदर पाल से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

प्रमिला और सरिता के बयानों को आधार बना कर पुलिस टीम ने 5 दिसंबर, 2018 को शिवपुर सहबाजगंज गांव में स्थित पारसनाथ पाल के घर पर सुबहसुबह दबिश दी. संयोग से उस समय घर पर पारसनाथ पाल, उस की पत्नी और बेटा सिकंदर पाल तीनों मिल गए. पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

पुलिस ने तीनों से अलगअलग पूछताछ की तो पारसनाथ पाल ने कहा, ‘‘हां साहब, रागिनी मेरी ही बेटी थी. लेकिन उस ने हमें समाजबिरादरी में कहीं जीने लायक नहीं छोड़ा था. उस के कारण लोग हम पर थूथू कर रहे थे. लेकिन उस की हत्या मैं ने नहीं की है. उसे मेरे बेटे सिकंदर पाल ने अपने किसी दोस्त के साथ मिल कर मार डाला है.’’

इस के बाद एसओ अरुण पवार ने सिकंदर पाल से पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि रागिनी की हत्या में उस के मांबाप की कोई भूमिका नहीं थी.

उस ने अपने दोस्त कामदेव सिंह निवासी व्यासनगर जंगल के साथ मिल कर उसे ठिकाने लगाया था. उस के बाद पुलिस ने व्यासनगर जंगल स्थित कामदेव के घर दबिश दी. कामदेव घर पर नहीं मिला. वह घटना के बाद से ही फरार चल रहा था. 2 दिनों के अथक प्रयास के बाद पुलिस ने उसे शाहपुर से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. सिकंदर पाल और कामदेव से की गई पूछताछ के बाद रागिनी पाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

रागिनी पाल मूलरूप से गोरखपुर के गुलरिहा इलाके की शिवपुर सहबाजगंज की रहने वाली थी. उस के पिता पारसनाथ पाल एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. पारसनाथ के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा सिकंदर था. अपनी सामर्थ्य के अनुसार उस ने सभी बच्चों को पढ़ाया. समय बीतने के साथ जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादी करता गया. बड़ी बेटियों प्रमिला और सरिता के उस ने हाथ पीले कर दिए थे. सब से छोटी बेटी रागिनी अभी पढ़ रही थी.

उसी दौरान उस के पांव बहक गए. गांव के ही राकेश नाम के युवक के साथ उस के अवैध संबंध हो गए थे, जिस की चर्चा पूरे गांव में थी. किसी तरह यह खबर रागिनी की मां निर्मला के कानों में पड़ी तो उस ने इस की जानकारी अपने पति पारसनाथ को दी.

इतना सुनते ही पारसनाथ बोला, ‘‘क्या बक रही हो, तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है न?’’
‘‘मैं बिलकुल ठीक कह रही हूं.’’ निर्मला ने कहा.

‘‘तो तुम ने इस बारे में रागिनी से पूछा या नहीं?’’

‘‘नहीं, अभी तो नहीं. सयानी बेटी है, पूछने पर कहीं कुछ कर न बैठे, इसलिए चुप थी.’’

‘‘ऐसे चुप्पी साधे ही बैठे रहना, कहीं ऐसा न हो कि बेटी मुंह पर कालिख पोत कर फुर्र हो जाए.’’ पारसनाथ पत्नी निर्मला पर गुस्से से चिल्लाया, ‘‘क्या अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा?’’

‘‘नहीं, तुम अभी उस से कुछ नहीं कहना. मैं उस से बात कर के समझाती हूं.’’ निर्मला ने कहा.

इत्तफाक से अगले दिन रागिनी स्कूल नहीं गई थी. पति भी अपनी ड्यूटी जा चुके थे. तभी निर्मला ने अप्रत्यक्ष रूप से रागिनी से बात शुरू की, ‘‘पढ़ाई कैसी चल रही है बेटा?’’

‘‘ठीक, एकदम फर्स्ट क्लास. क्यों मां, क्या बात है जो आज मेरी पढ़ाई के बारे में पूछ रही हो.’’ रागिनी ने मां से पूछा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही पूछ रही थी. अच्छा बेटा, मैं तुम से एक बात पूछती हूं क्या सच बताओगी?’’ निर्मला ने कहा.

‘‘हां मां, पूछो, क्या पूछना चाहती हो?’’ रागिनी ने उत्तर दिया.

‘‘तुम कल किस लड़के के साथ घूम रही थी?’’ निर्मला ने पूछा तो रागिनी के चेहरे का रंग उड़ गया. वह एकदम से सकपका गई.

‘‘किसी भी लड़के के साथ नहीं. यह तुम क्या कह रही हो?’’ रागिनी हकलाते हुए बोली, ‘‘लगता है किसी ने तुम्हें गलत जानकारी दी है. यह बात सरासर झूठी है.’’ रागिनी नजरें चुराते हुए बोली, ‘‘क्या मां, तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘मुझे तुम पर पूरा भरोसा है बेटा. तुम ऐसीवैसी हरकत नहीं कर सकती, जिस से तुम्हारे मांबाप की जगहंसाई हो.’’ निर्मला ने समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, इज्जतआबरू और मानमर्यादा एक औरत के कीमती गहने हैं. बेटा, यदि कोई बात हो तो मुझे खुल कर बता दो. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ रागिनी विश्वास दिलाते हुए बोली. बेटी के इतना कहने पर मां निर्मला उस के कमरे से चली गई.

मां के कमरे से जाने के बाद रागिनी इस बात से हैरान थी कि मां को सच्चाई का पता कैसे चल गया. उसे किस ने बताया होगा? वह इस बात से भी डर रही थी कि पापा और भाई को जब इस बारे में पता चलेगा तो घर में कयामत ही आ जाएगी.

जब से पत्नी ने पारसनाथ को बेटी के बारे में बताया था, वह परेशान हो गया था. अत: वह भी बेटी के बारे में उड़ रही खबर की सच्चाई पता लगाने में जुट गया. उसे पता चला कि पड़ोस के राकेश से रागिनी का काफी दिनों से चक्कर चल रहा है. यह जानकारी रागिनी के भाई सिकंदर को भी हो चुकी थी.

बहन के बारे में सुन कर उस का तो खून खौल उठा. उस ने रागिनी को समझाया कि वह अपनी हरकतों से बाज आ जाए, समाज बिरादरी में बहुत बदनामी हो रही है. नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है. रागिनी ने किसी तरह भाई सिकंदर को विश्वास दिलाया कि कोई उसे बदनाम करने के लिए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहा है.

बात घटना से एक साल पहले की है. एक दिन अचानक रागिनी घर से गायब हो गई. जवान बेटी के अचानक गायब होने से घर वाले परेशान हो गए. बेटी को तलाशते हुए वह उस के प्रेमी राकेश के घर पहुंच गए तो पता चला कि राकेश भी उसी दिन से घर से गायब है.

फिर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रागिनी राकेश के साथ ही भाग गई है. चूंकि मामला नाबालिग बेटी का था, इसलिए बदनामी को देखते हुए पारसनाथ ने पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई.

पारसनाथ अपने बेटे सिकंदर के साथ मिल कर बेटी को अपने स्तर से तलाशते रहा. आखिर अपने स्रोतों से उन दोनों ने रागिनी को ढूंढ ही लिया. वह राकेश के साथ ही थी. घर ला कर सिकंदर ने रागिनी पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया था. कमरे में बंद कर के उस ने उस की डंडे से पिटाई शुरू कर दी. लेकिन पिता ने उसे बचा लिया था. तब सिकंदर ने बहन को हिदायत दी कि अगर आइंदा राकेश से मिलने की कोशिश की या उस के बारे में सोचा भी तो जान से हाथ धो बैठेगी. इस के बाद से घर वालों की उस पर नजरें जमी रहतीं.

कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा. घर वालों का रागिनी से धीरेधीरे ध्यान हटने लगा था. फिर मौका देख कर रागिनी अपने प्रेमी राकेश से मिलने लगी. उस ने राकेश से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वह उसे यहां से कहीं दूर ले चले, जहां हमारे सिवाय कोई और न हो. राकेश ने उसे भरोसा दिया कि वह परेशान न हो, जल्द ही वह कोई बीच का रास्ता निकाल लेगा.

रागिनी इस बात से पूरी तरह मुतमईन थी कि अब तो घर वाले भी उस की ओर से बेपरवाह हो चुके हैं. लिहाजा वह पहले की तरह ही चोरीछिपे प्रेमी राकेश से मिलने लगी. यह रागिनी की सब से बड़ी भूल थी. उसे यह पता नहीं था कि घर वाले केवल दिखावे के तौर पर उस की तरफ से बेपरवाह हुए थे. लेकिन उन की नजरें हर घड़ी उसी पर जमी रहती थीं.

सिकंदर को पता चल गया था रागिनी फिर से राकेश से मिलने लगी है. इस बार सिकंदर ने रागिनी को राकेश के साथ बतियाते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया था. फिर क्या था, वह उसे वहीं से पकड़ कर घर ले आया और उस की खूब पिटाई की. इस बार पारसनाथ ने बेटे को पिटाई करने से नहीं रोका, बल्कि उस ने बेटी को सुधारने के लिए बेटे को पूरी आजादी दे दी थी.

पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. डांट या मार का रागिनी पर अब कोई असर नहीं होता. रागिनी की करतूतों से घर वालों की इज्जत तारतार हो रही थी. बहन के चलते परिवार की हो रही बदनामी को देख सिकंदर भी ऊब गया, इसलिए उस ने रागिनी की हत्या करने की ठान ली. इस बाबत उस के मांबाप में से किसी को कुछ भी नहीं बताया.

सिकंदर का एक जिगरी दोस्त था कामदेव सिंह. वह शाहपुर थानाक्षेत्र के व्यासनगर जंगल में रहता था. उस पर कई आपराधिक केस भी चल रहे थे. सिकंदर जानता था यह काम कामदेव आसानी से कर सकता है. दोस्त होने के नाते वह उस की बात कभी नहीं टालेगा. वैसे सिकंदर खुद भी इस काम को अकेला कर सकता था लेकिन वह खून के मजबूत रिश्तों की डोर से बंधा हुआ था. ऐसा करते हुए उस के हाथ कांप सकते थे.

सिकंदर ने कामदेव को रागिनी की करतूतें बता कर उसे रास्ते से हटाने की बात कही तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. दोनों ने दीपावली के दिन रागिनी की हत्या करने की योजना बना ली ताकि पटाखों के शोर में रागिनी की मौत की आवाज दब कर रह जाए.

लेकिन दोनों को दीपावली के दिन किसी वजह से यह मौका नहीं मिला. तब कामदेव ने सिकंदर को भरोसा दिया कि वह अकेला ही इस काम को अंजाम दे देगा. 20 नवंबर, 2018 की शाम रागिनी घर से साइकिल से कहीं जा रही थी. घर से थोड़ी दूर पर रास्ते में उसे कामदेव मिल गया.

कामदेव ने रागिनी को अपनी बातों में उलझा लिया और उसे प्रेमी राकेश से मिलाने की बात कह कर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. घंटों तक वह उसे इधरउधर घुमाता रहा. रागिनी के कुछ भी पूछने पर वह गोलमोल उत्तर दे कर उसे बहलाता रहा. रात करीब 10 बजे वह उसे चिलुआताल थाने से कुछ दूर उमरपुर गांव के बाग की ओर ले गया. तब तक चारों ओर गहरा सन्नाटा पसर गया था.

उस ने मोटरसाइकिल बाग में रोक दी और वे दोनों बाइक से नीचे उतर गए. रागिनी ने उस से फिर पूछा कि राकेश कहां है? तो कामदेव ने कहा, ‘‘बस कुछ देर और ठहर जाओ. वह आता ही होगा.’’ इतना कहते ही कामदेव ने कमर में खोंसा हुआ पिस्टल निकाला. पिस्टल देख कर रागिनी के होश उड़ गए.

अब वह समझ गई कि कामदेव ने उस के साथ बड़ा धोखा किया है. वह कुछ कह पाती, उस से पहले ही कामदेव ने उस के शरीर में पिस्टल से 5 गोलियां उतार दीं. गोलियां लगते ही रागिनी ने मौके पर दम तोड़ दिया. कहीं वह जीवित न रह जाए, इसलिए कामदेव ने साथ लाए पेचकस से उस के शरीर को गोद डाला.
उसे ठिकाने लगा कर वह वहां से इत्मीनान से घर चला गया. फिर सिकंदर को फोन कर के काम हो जाने की जानकारी दे दी. जिस पिस्टल से उस ने रागिनी की हत्या की थी, वह उस ने अपने कमरे की अलमारी में छिपा दी.

अगले दिन सिकंदर ने अफवाह फैला दी कि रागिनी फिर से अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई. 2 दिनों बाद पारसनाथ को सच्चाई का पता चल गया था. सच जान कर उस ने चुप्पी साध ली थी लेकिन उस की दोनों बेटियों ने राज से परदा उठा कर उन्हें बेनकाब कर दिया. नहीं तो सिकंदर और कामदेव ने मिल कर जो खतरनाक योजना बनाई थी, शायद पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाती.

मामले का खुलासा हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने पारसनाथ और उस की पत्नी को बेकसूर मानते हुए घर भेज दिया. पुलिस ने अभियुक्त सिकंदर और उस के दोस्त कामदेव को गिरफ्तार कर लिया. 7 दिसंबर, 2018 को एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को केस के खुलासे की जानकारी दी. दोनों हत्याभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित॒॒

चाहिए थी नौकरी, बेटे ने करवा दिया कांड

Crime News in Hindi: बेरोजगारी कैसे भयावह स्वरूप धारण करके लोगों से अनेक तरह के अपराध कराती है, यह तो फिल्मों से लेकर मीडिया की सुर्खियों में आता ही रहता है. मगर क्या कोई बेरोजगार बेटा अपने पिता की सरकारी नौकरी पाने के चक्कर में उसकी हत्या करा सकता है. ऐसा शायद आपने कभी नहीं सुना होगा, मगर जीवन पर बेरोजगारी (Unepmloyment) की भयावहता का ऐसा भूत सवार हुआ कि अपने साले और दोस्त को ही अपने बाप की हत्या की सुपारी दे कर उसने सरकारी नौकरी कर रहे अपने पिता की हत्या करवा दी. यह सनसनीखेज घटनाक्रम छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के आदिवासी अंचल जिला जशपुर (Jashpur) में में घटित हुआ है. यह हत्याकांड (Murder) प्रदर्शित करता है कि “नौकरी” के कारण रिश्ते नाते किस तरह तार तार होते चले जा रहे हैं. प्रस्तुत है एक विशेष रिपोर्ट-

सेवानिवृत्ति के 3 दिन पहले!!

जी हां! वह जब जब स्वयं को बेरोजगार,असहाय महसूस कर रहा था तब बेचैन हो जाता. उसे अपना जीवन अंधकारमय प्रतीत हो रहा था. अंततः उसने बहुत सोचकर, एक घृणित अपराध करने की साजिश रच ली.

अपने ही पिता की निर्ममता से हत्या कराने चौंका देने वाला यह पूरा मामला जशपुर जिले के सन्ना पुलिस थाना क्षेत्र का है. दरअसल यहां के निवासी महावीर राम लोहार स्थानीय सरकारी अस्पताल में स्वीपर के पद पर पदस्थ था. उम्रदराज महावीर अपनी हत्या के तीन दिन बाद सेवानिवृत्त होने वाले थे.

लेकिन उसका बेरोजगार बेटा जीवन के दिमाग मे एक ही फितूर चल रहा था. नौकरी से रिटायर होकर चैन सुकून की जिंदगी का सपना संजो रहे महावीर को इस बात का कतई आभास नही था कि उसकी नौकरी की लालच में उसका ही जाया पुत्र उसके ही खून का प्यासा बन बैठा है. कई दिनों से योजना बनाते बनाते अंततः उसने अपने पिता की हत्या को अंजाम दे दिया.

आरोपी जीवन ने अपने साले बिहरोर राम और मार्शल राम को अपनी बाप की हत्या की सुपारी दे दी. इसी बीच बीते 27 अक्टूबर2019 को महावीर अपने मवेशियों को चराने पास के जंगल में गया था. वह शाम को जब वापिस लौट रहा था तभी बिहरोर और मार्शल ने धारदार हथियार से महावीर की निर्ममता से हत्या कर दी और मौके से फरार हो गए. मृतक की हत्या की सूचना बड़े बेटे आनंदराम ने पुलिस को दी.

सनसनीखेज खुलासा

सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची और यह माना कि प्रथम दृष्टया ही मामला हत्या का है. पुलिस ने मृतक का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया और जांच तेज कर दी .पुलिस ने जब अपने सूत्रों को सक्रिय किया तब पता चला कि मृतक तीन दिन पश्चात ही सेवानिवृत्त होने वाला था. इसके बाद पुलिस ने जब शक के आधार पर बेटे जीवन से कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गया और उसने सारा सच
पुलिस को बता दिया .

उसने हत्या करवाना स्वीकार करते हुए बताया कि वह बेरोजगार है और पिता की नौकरी पाना चाहता था. इसी मकसद से उसने अपने बाप की हत्या करायी थी.मामले का खुलासा करते हुए सन्ना पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर अपराध क्रमांक 62/19 धारा 302,34 आईपीसी के तहत न्यायिक रिमांड में जेल भेज दिया.

राजस्थान में दलित सरपंच का किया हुक्कापानी बंद, एक पैर पर किया खड़ा

देश के ‘अमृत महोत्सव’ समय में किस तरह जातिवाद का जहर लोगों के मन में भरा हुआ है, यह राजस्थान के नागौर जिले में दिखा. यहां के खींवसर इलाके की दांतीणा ग्राम पंचायत में गांव की अलगअलग जातियों के पंचों (दबंगों) ने पंचायत परिसर में पंचायत बुला कर गांव के दलित सरपंच श्रवण राम मेघवाल का हुक्कापानी बंद करने का फरमान सुना दिया.

दबंग इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने सरपंच श्रवण राम मेघवाल को हाथ जुड़वा कर एक पैर पर खड़े रखा और उन पर 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है. यह पंचायत 9 दिसंबर, 2023 को हुई थी. अगर इस घटना का वीडियो सामने न आया होता, तो किसी को कानोंकान खबर तक न होती. पीड़ित सरपंच श्रवण राम मेघवाल ने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराते हुए बताया कि उन के परिवार का गांव में रहना मुश्किल हो गया है.

सरपंच श्रवण राम मेघवाल ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने उन्हें फोन पर कहा कि आप वर्तमान सरपंच हो. आप के भाई मूलाराम ने जीतू सिंह की हत्या की है. इस वजह से आप के खिलाफ पंचायत में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा. आप को और आप के परिवार को गांवसमाज से बहिष्कृत करेंगे और हुक्कापानी बंद करेंगे. हम पंच जो फैसला करेंगे, वही मानना होगा.

इस के उलट सरपंच श्रवण राम मेघवाल ने कहा कि उन का जीतू सिंह की हत्या से कोई लेनादेना नहीं है. अगर उन का भाई मूलाराम कुसूरवार है, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था और कोर्ट सजा देगा.

याद रहे कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले के ही बगधरी गांव में मोहनदास करमचंद गांधी के जन्मदिन पर 2 अक्तूबर, 1959 को पहली बार पंचायती राज व्यवस्था लागू की थी और साल 2023 में अगर किसी सरपंच का जाति के आधार पर हुक्कापानी बन कर दिया जाता है, तो समझ लीजिए कि यह सामाजिक बुराई अभी भी लोगों के खून में दौड़ रही है.

एक और मामला देखिए. साल 2023 के जुलाई महीने में मध्य प्रदेश में एक दलित महिला सरपंच की बेरहमी से पिटाई करने की वारदात सामने आई थी.

हुआ यों था कि मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के कोलारस जनपद पंचायत के तहत ग्राम पंचायत पहाड़ी में अनुसूचित जाति तबके की महिला सरपंच गीता जाटव को दबंगों ने कीचड़ में पटक कर बीच रास्ते में जूतेचप्पल से पीटा था. उन्हें पूरे गांव के सामने जातिसूचक गालियां दे कर बेइज्जत किया था.

वैसे, इस के बाद 3 आरोपियों धर्मवीर यादव, रामवीर यादव और मुलायम यादव के खिलाफ मारपीट और एससीएसटी ऐक्ट में केस दर्ज कर लिया गया था.

दिक्कत यह है कि दलित समाज के पक्ष में बने कड़े कानून भी इन लोगों पर हो रहे जोरजुल्म को रोकने में नाकाम हो रहे हैं. उन्हें आज भी समाज के लिए धब्बा समझा जाता है. वे देश की आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी ‘अछूत’ कहे जाते हैं.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के साल 2020 और साल 2021 में दलितों के साथ हो रहे अपराध को ले कर बने एक डाटा के मुताबिक, एससी तबके के खिलाफ सब से ज्यादा अपराध होने वाले राज्यों की लिस्ट में पहले नंबर पर मध्य प्रदेश था, जबकि साल 2019 में दलितों के साथ सब से ज्यादा अपराध किए जाने वाले राज्यों की लिस्ट में पहले नंबर पर राजस्थान था.

‘सब का साथ सब का विकास’ नारे को उछालने वाली भाजपाई केंद्र सरकार के राज में देशभर में एससी तबके के साथ जोरजुल्म होने की वारदातें बढ़ी ही हैं. मध्य प्रदेश में साल 2021 में अनुसूचित जनजाति के साथ हुए अपराध के 2,627 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2020 की तुलना में 29.8 फीसदी ज्यादा थे.

राजस्थान में साल 2020 की तुलना में साल 2021 में 24 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. वहां एक साल में कुल 2,121 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि ओडिशा में साल 2021 में 676 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2020 की तुलना में 7.6 फीसदी ज्यादा थे.

महाराष्ट्र में साल 2021 में 628 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2020 से 7.13 फीसदी ज्यादा थे. तेलंगाना में दलितों के खिलाफ हुए अपराध के मामलों की बात करें, तो साल 2021 में 512 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2020 से 5.81 फीसदी ज्यादा थे.

ये तो कुछ राज्यों के महज 2 साल के ही आंकड़े हैं, पूरे देश में कमोबेश यही हाल है. एससी तबके को किसी काम का न समझने के पीछे धर्म और पंडेपुजारियों का बहुत बड़ा रोल है. अगर वे मंदिर में दानदक्षिणा देने लायक हैं, तो पंडेपुजारियों को पसंद आते हैं, वरना तो वे हिंदू ही नहीं माने जाते हैं.

दलित औरतों को तो और ज्यादा जिल्लत सहनी पड़ती है. उन्हें तो अपनी इज्जत तक बचानी भारी पड़ जाती है या यों कहें कि दबंगों द्वारा उन की इज्जत से खेल कर इस समाज को उस की ‘औकात’ बताई जाती है.

पर असलियत में अगर कोई समाज किसी खास तबके को नीचा समझ कर उसे सताता है, उस की इज्जत से खेलता है, उस के काम करने की काबिलीयत को सिरे से नकार देता है, तो वह अपना ही नुकसान करता है.

यह अपने शरीर को खुद पीड़ा देने के समान है, क्योंकि अगर निचलों का जन्म ब्रह्मा के पैरों से हुआ है, तो जान लीजिए कि यही पैर समाज के मजबूती से खड़े रहने की बुनियाद होते हैं. बिना पैरों के तो कोई भी इनसान लुंज ही कहलाएगा न?

लिहाजा, सरकार को दलितों पर जोरजुल्म करने वालों को देश का दुश्मन मानना चाहिए और अपने इस कमेरे तबके को ऊंचा उठाने के लिए हर लिहाज से कोशिश करनी चाहिए.

एक अनूठी खूनी साजिश

Crime News in Hindi: 6 भाईबहनों में गोपाल सेजाणी सब से छोटा था. कुछ समय पहले एक दुर्घटना में उस के पिता की मौत के बाद मां ने दूसरी शादी कर ली थी. बच्चों को छोड़ कर वह दूसरे पति के साथ कहीं और जा कर रहने लगी थी. बच्चे अकेले पड़ गए तो उन की देखभाल के लिए उन के मौसा हरसुख पटेल आगे आए. उन्होंने बच्चों को सहारा दिया. उस समय गोपाल की उम्र यही कोई 11 साल थी. हरसुख अपने बच्चों की तरह उन की भी देखभाल कर रहे थे. सब ठीकठाक चल रहा था, लेकिन 8 फरवरी, 2017 को एक अनहोनी घट गई. शाम को हरसुख अपने स्कूटर पर गोपाल को बिठा कर गांव की तरफ आ रहे थे. उन का दोस्त महादेव भी उन के साथ था.

गांव के बाहर उन की मुलाकात नितेश मंड से हो गई. वह एनआरआई था, जो स्थाई रूप से लंदन में रहता था. उन दिनों वह भारत आया हुआ था. हरसुख को रोक कर वह उन से बातें करने लगा. उन्हें बातचीत करते हुए कुछ ही मिनट हुए होंगे कि मोटरसाइकिल से 2 लड़के आए और पास खड़े गोपाल को उठा कर भागने लगे.

नितेश ने उन का विरोध किया. जबकि हरसुख ने जान पर खेल कर गोपाल को बचाने की कोशिश की. लेकिन दोनों लड़कों के पास हथियार थे, जिस की वजह से वह उन का मुकाबला नहीं कर सके. वे लड़के हरसुख को घायल कर गोपाल को अपने साथ ले जाने में सफल हो गए. शोरशराबा सुन कर वहां काफी लोग इकट्ठा हो गए थे. हरसुख गंभीर रूप से घायल थे, इसलिए उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया.

सूचना पा कर थानाप्रभारी ए.वी. टिल्वा पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए. मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी ने मुख्य मार्गों की नाकेबंदी करवा दी. वह भी अपहर्त्ताओं को तलाशने लगे, पर उन का पता नहीं चल सका.

अगले दिन औटोचालक श्यामण अपने औटो से केशोड़ हाईवे से गुजर रहा था, तभी उस की निगाह अचानक एक गड्ढे की तरफ चली गई. उस गड्ढे में उसे एक छोटा लड़का जख्मी हालत में पड़ा दिखाई दिया. श्यामण ने औटो रोक कर देखा तो वह खून से लथपथ था. उस की सांस अभी चल रही थी. श्यामण उसे अपने औटो से केशोड़ अस्पताल ले गया.

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डाक्टरों ने बच्चे को बचाने की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन उस की मौत हो गई. अस्पताल प्रशासन द्वारा इस की सूचना पुलिस को दी गई तो थानाप्रभारी ए.वी. टिल्वा हरसुख को साथ ले कर केशोड़ अस्पताल पहुंच गए. हरसुख ने उस की शिनाख्त गोपाल सेजाणी के रूप में कर दी.

चलती सड़क पर सरेराह एक बच्चे के इस तरह अपहृत हो जाने से लोगों में डर बैठ गया था. जब उस की मौत की बात सामने आई तो मामला और उछल गया. पुलिस ने इस मामले को भादंवि की धारा 361 के तहत दर्ज कर लिया. बाद में इस में भादंवि की धाराएं 364 और 302 और जोड़ दी गईं. जूनागढ़ के एसपी निलेश जिगाडि़या ने इस सनसनीखेज मामले की जांच के लिए एक स्पैशल टीम गठित कर दी थी.

हरसुख पटेल ने अपनी शिकायत में किसी को आरोपी नहीं बनाया था और न ही किसी पर शंका जाहिर की थी. एसपी जिगाडि़या ने उन से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की. उन्होंने सीधेसीधे बताया कि साजिश रच कर गोपाल का अपहरण कर के उस की हत्या की गई है. अपहरण फिरौती के लिए नहीं, बल्कि किसी अन्य मकसद से किया गया है. इस के पीछे नितेश मंड के अलावा एनआरआई आरती का हाथ है.

एसपी ने आरती के बारे में पूछा तो हरसुख पटेल ने उन्हें आरती के बारे में विस्तार से बता दिया. 53 वर्षीया आरती लोकनाथ धार बरसों पहले भारत से लंदन गई थी और वहीं बस गई थी. कभीकभी वह भारत भी आती रहती थी. उन्होंने लंदन में अपना एक अपार्टमेंट बनवा लिया था, जिस में कई किराएदार रहते थे. उन्हीं में एक नितेश मंड भी था. नितेश से आरती की खासी बनती थी.

मूलरूप से नितेश पंजाब का रहने वाला था, लंदन जाने से पहले वह गुजरात में जा कर कारोबार करने लगा था. गुजरात के कई लोग उस के संपर्क में थे. उन्हीं में हरसुख पटेल भी थे. वह जूनागढ़ के पास मालियाहाटिन गांव में रहते थे. नितेश का भी वहां पर एक मकान था.

नितेश मंड से हरसुख की जानपहचान थी. करीब एक साल पहले की बात है. एक दिन नितेश हरसुख के पास आया. इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने कहा, ‘‘हरसुख भाई, बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

‘‘हां, कहो.’’ हरसुख ने सहज भाव से कहा.

‘‘आप ने अपनी साली के बच्चों की जो जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी है, यह बहुत बड़ी बात है.’’ नितेश ने कहा.

‘‘पता नहीं यह बड़ी बात है या छोटी, पर इतना जरूर जानता हूं कि मैं अपना फर्ज पूरा कर रहा हूं. एक तरह से वे भी मेरे ही बच्चे हैं.’’

‘‘यह तो आप की महानता है हरसुख भाई, वरना आज के महंगाई के जमाने में अपने परिवार की गुजर करना ही मुश्किल हो रहा है, ऐसे में आप… इस बारे में मेरा मन आप की मदद करने को कर रहा है.’’

‘‘कैसी मदद?’’ हरसुख पटेल ने हैरानी से पूछा.

‘‘कुछ ऐसी मदद, जिस से आप के कंधे का बोझ थोड़ा हलका हो जाए और आप के सब से छोटे भांजे गोपाल का भविष्य भी संवर जाए.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं, जो कुछ कहना चाहते हो, खुल कर कहो.’’ हरसुख ने नितेश के चेहरे को सवालिया नजरों से देखते हुए कहा.

‘‘ऐसा है हरसुख भाई, लंदन में जहां मैं रहता हूं, उस अपार्टमेंट की मालकिन एक सज्जन महिला हैं. वह मूलरूप से हिंदुस्तानी हैं. उन के पास बहुत कुछ है. इसलिए वह सब की मदद करती रहती हैं. वह बहुत ही नेकदिल औरत हैं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. लेकिन उन के बारे में आप मुझे क्यों बता रहे हैं?’’ हरसुख ने पूछा.

‘‘मैं उन के बारे में इसलिए बता रहा हूं क्योंकि इतनी भलाई का काम करने के बावजूद उन्हें संतान सुख नहीं मिला. एक बच्चे की मां कहलाने को तरसती हैं वह. मैं चाहता हूं कि…’’

‘‘…यानी कि मैं अपना गोपाल उन के हवाले कर दूं.’’ हरसुख ने नितेश की बात बीच में ही काट कर कहा.

‘‘अरे नहीं भाई, ऐसा नहीं है. उन्हें औलाद पैदा नहीं हुई तो इस का मतलब यह नहीं है कि वह किसी का बच्चा छीनना चाहती हैं.’’

‘‘तो क्या चाहती हैं वह?’’

‘‘दरअसल, वह एक भारतीय बच्चा कानून के अनुसार गोद लेना चाहती हैं. मैं सोचता हूं कि अगर आप के छोटे भांजे को उन का दत्तक पुत्र बना दिया जाए तो उस की जिंदगी बन जाएगी. आप इस बारे में सोच लीजिए.’’ नितेश ने कहा.

हरसुख सचमुच सोचने लगे. आखिर उन्होंने नितेश से कह दिया कि वह इस बारे में उसे कल बताएंगे. भांजे के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए हरसुख ने नितेश का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. इस के बाद नितेश एडौप्शन पेपर तैयार कराने लगा. उस ने आरती को भी भारत आने के लिए फोन कर दिया था. आरती भी लंदन से हिंदुस्तान आ गई.

हरसुख को हर तरह से आश्वस्त कर आरती ने बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी कर ली. उस के बाद हरसुख को समझाया कि वह बच्चे का पासपोर्ट बनवा कर रखें, जल्दी ही वीजा लगवा कर वह उसे अपने पास लंदन बुला लेगी. इस के बाद वह लंदन चली गई. नितेश भी उस के साथ चला गया था. यह सन 2015 की बात है.

हरसुख ने एसपी निलेश जिगाडि़या को बताया कि इस के बाद उन लोगों ने गोपाल के नाम से लंदन में ही जीवन बीमा करवा लिया था. इंडियन करेंसी के मुताबिक उस पौलिसी की वैल्यू एक करोड़ रुपए से भी ज्यादा थी. बीमा कराने के बाद वह उस से बच्चे का पासपोर्ट जल्द बनवाने को कहते रहे. लेकिन काफी कोशिश के बाद भी बच्चे का पासपोर्ट नहीं बन सका, जिस से वह लंदन नहीं जा सका.

हरसुख की बात सुन कर एसपी सारा माजरा समझ गए. नितेश को संदेह के आधार पर हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. इस पूछताछ में एनआरआई होने के नाते वह पुलिस को ही धमकाने लगा. पुलिस उस की धमकी में नहीं आई. उस से जब सख्ती से पूछताछ की गई तो तो उस ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए.

उस ने गोपाल की हत्या कराने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने 13 फरवरी, 2017 को उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर के 6 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि में उस से सघन पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने पुलिस को गोपाल की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह एक अनोखी अपराध कथा थी—

लंदन में आरती धार के अपार्टमेंट में किराए पर रहते हुए नितेश मंड उस से काफी घुलमिल गया था. उम्र में अच्छाखासा अंतर होने की वजह से दोनों के बीच मांबेटे जैसा रिश्ता कायम हो गया था. दोनों आपस में सुखदुख भी साझा करने लगे थे.

एक दिन बातें करतेकरते दोनों ने अपनीअपनी आर्थिक परेशानियां बयान कर दीं. नितेश के पास जहां ढंग की नौकरी नहीं थी, वहीं आरती का कहना था कि भले ही उस ने ठीकठाक प्रौपर्टी बना ली थी, लेकिन उस के ऊपर बहुत कर्ज चढ़ गया था. वह कर्ज उतार पाना उस के लिए कठिन हो रहा था. लेनदार कंपनियां उसे परेशान कर रही थीं.

एक दिन सुबह दोनों बैठे चाय पी रहे थे, तभी अपनीअपनी परेशानियों का रोना रोने लगे. रोना रोतेरोते वे योजना बनाने लगे कि किस तरह एक ही झटके में मोटे पैसों का जुगाड़ किया जाए. इस बारे में बात करते हुए दोनों ने कई मुद्दों पर विचार किया.

आखिर नितेश ने एक तरकीब सुझाते हुए आरती को सुझाव दिया कि किसी गरीब बच्चे को गोद ले कर उस का मोटा लाइफ इंश्योरेंस करवा दिया जाए. कुछ दिनों बाद उस बच्चे की हत्या कर के इंश्योरेंस का क्लेम ले लिया जाएगा.

आरती को बात जंच गई. यह भी तय हो गया कि गोद लेने वाला बच्चा हिंदुस्तानी हो. लेकिन मोटा बीमा करवाने को प्रीमियम अदा करने के लिए उस के पास ज्यादा पैसा नहीं था. जब बीमा करोड़ रुपए से अधिक का होगा तो जाहिर है, उस का प्रीमियम भी बड़ा होगा. इसलिए आरती ने कहा कि उस के पास प्रीमियम देने के पैसे नहीं हैं.

नितेश ने कहा कि भारत में बच्चे को तलाश करने का काम वह भारत के ही रहने वाले अपने एक दोस्त पर छोड़ देता है. इस काम को वह जल्दी पूरा कर देगा. उसे भी इस योजना में शामिल कर लिया जाएगा. बीमा का प्रीमियम तीनों मिल कर बराबरबराबर अदा कर देंगे. बच्चे को लंदन ला कर कुछ दिनों तक उस का खूब ध्यान रखेंगे, ताकि किसी को पर शक न हो. उस के बाद बच्चे की रहस्यमय तरीके से हत्या कर इंश्योरेंस का क्लेम ले लिया जाएगा.

आरती ने खुश हो कर हामी भर दी. इस के बाद नितेश ने अपना काम करना शुरू कर दिया. उस ने अपने दोस्त कंवलजीत सिंह रायजादा से बात की तो उस ने योजना में शामिल होने की हामी भर दी. 28 वर्षीय कंवलजीत सिंह जूनागढ़ के कस्बा मालिया का रहने वाला था.

कंवलजीत किसी बच्चे की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस ने मालियाहाटिना के रहने वाले हरसुख पटेल के भांजे गोपाल सेजाणी के बारे में जानकारी हासिल कर ली. उस ने यह बात फोन द्वारा नितेश को बताते हुए कहा कि अगर वह या आरती भारत आ कर गोद लेने वाले बच्चे गोपाल के मौसा से बात कर लें तो काम हो सकता है. नितेश ने ऐसा ही किया. पहले वह भारत आया और हरसुख से बात की. बाद में बात फाइनल हो गई तो आरती भी भारत आ गई.

दोनों ने गोपाल सेजाणी को गोद लेने की काररवाई पूरी कर ली. इस के बाद आरती और नितेश लंदन चले गए. वहां उन्होंने गोपाल का भारतीय मुद्रा के हिसाब से 1.30 करोड़ रुपए का जीवन बीमा करवा दिया. इस के लिए बीमा कंपनी को 13 लाख का प्रीमियम देना पड़ा, जो आरती, नितेश और कंवलजीत ने मिल कर दिया.

गोपाल को लंदन ले जा कर मौत के घाट उतारने का काम पहले ही साल में कर दिया जाना था. लेकिन पासपोर्ट न बन पाने की वजह से उसे लंदन नहीं ले जाया जा सका. देखतेदेखते एक साल का समय निकल गया. इस बीच बीमा कंपनी का 13 लाख का आगामी प्रीमियम ड्यू हो गया. इस बार इन लोगों को यह रकम अदा करने में काफी परेशानी हुई.

इस के बाद तय किया गया कि आगामी प्रीमियम ड्यू होने से पहले ही गोपाल का काम तमाम कर दिया जाए. वह लंदन नहीं आ पाता तो इंडिया में इस की व्यवस्था की जाए. इस की जिम्मेदारी कंवलजीत को सौंपी गई. कंवलजीत अकेला काम को अंजाम नहीं दे सकता था, इसलिए उस ने एक बदमाश से बात की.

नितेश भी लंदन से इंडिया आ गया. योजना बना कर कंवलजीत और उस के साथी ने 8 फरवरी, 2017 को गोपाल का अपहरण कर के उसे चाकुओं से गोद डाला. अगले दिन अस्पताल में उस की मौत हो गई.

नितेश मंड के बाद पुलिस ने गोपाल की हत्या के आरोप में कंवलजीत को भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन उस का साथी फरार हो गया था. अभी तक आरती को डिपोर्ट नहीं किया जा सका है.

कथा तैयार होने तक जूनागढ़ पुलिस ने नितेश और कंवलजीत के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया था. केस के अन्य वांछित आरोपियों के गिरफ्तार होने पर सप्लीमेंट चालान तैयार कर के अदालत में दाखिल कर दिया जाएगा.

वह मोबाइल ऐप पर चलाती थी जिस्म का कारोबार

Crime News in Hindi: धारा 370 हटने और स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में लगी दिल्ली में हाई अलर्ट था.पुलिस चाकचौबंद और मुस्तैद थी. 14 अगस्त को दिल्ली महिला आयोग की हेल्पलाइन पर एक महिला की घबराई सी आवाज आई,”हमारी सहायता कीजिए, हम कहीं के नहीं रहेंगे.मेरी 20 साल की बेटी घर से गायब है…” महिला आयोग की टीम तुरंत हरकत में आई और उस महिला की तहरीर पर कृष्णा नगर थाने में मामला दर्ज कराया गया.चूंकि दिल्ली में हाई अलर्ट था और पुलिस प्रशासन कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती थी लिहाजा कृष्णा नगर थाने की एक टीम लङकी के घर गई तो वहां उस की छोटी बहन ने पूछताछ में बताया कि उस की बहन की एक दोस्त है, जो ‘कुछ’ जानती है पर बता नहीं रही.पुलिस की टीम तुरंत उस लङकी से मिली. पहले तो उस ने कुछ भी बताने से इनकार किया पर पुलिस के समझानेबुझाने पर उस ने राज पर से परदा हटाया तो पुलिस भी सन्न रह गई.

लड़की ने क्या बताया

उस लड़की ने बताया,”नंद नगरी में एक औनलाइन सैक्स रैकेट चल रहा है, जहां तकरीबन 20-22 लङकियों से जिस्मफरोशी का काम कराया जाता है ” उस ने बताया,”वह तकरीबन 2-3 सप्ताह वहां थी और उस से सोशल मीडिया पर रात 10 से सुबह 6 बजे तक वीडियो कौल करवाई जाती थी”

पुलिस ने बिछाया जाल

पूछताछ के बाद हरकत में आई पुलिस ने तुरंत जाल बिछा दिया.तफ्तीश के बाद जो खुलासा हुआ उस  से पुलिस वाले भी एकबारगी चक्कर खा गए. सैक्स रैकेट एक घर में चलाया जा रहा था, जिसे अंजाम दे रही थी एक महिला.उस के इस काम में साथ दे रहा था उस का पति असगर जो जरूरतमंद अथवा जल्दी पैसा कमाने और ऐश की जिंदगी जीना चाहने वाली लङकियों को अपने जाल में फांसता था.

मोबाइल ऐप्स पर चलाते थे धंधा

धंधा तेज चले इस के लिए यह दंपति मोबाइल फोन पर ऐप्स भी रजिस्टर्ड करवा रखा था.इस ऐप के माध्यम से ग्राहक उन से संपर्क करते थे और फिर चलता था सैक्स और जिस्म की नुमाइश का खेल.

पकड़ में आए आरोपी

पुलिस ने आरोपियों की पहचान 27 वर्षीय नजमा, उस का पति असगर (30) व कमर रजा (30) के तौर पर की. पुलिस ने इन के पास से कई मोबाइल और सिमकार्ड भी बरामद किए हैं.

आरोपियों ने पुलिसिया दबिश और पूछताछ में बताया कि जिस्म की चाहत लिए ग्राहकों को ऐप्स के द्वारा ही लड़कियों की तसवीरें दिखाई जाती थीं.जिस की बोली अधिक होती उसे वैसी ही लङकी का साथ मिलता था.

दिनरात के इस धंधे में ग्राहकों को न्यूड वीडियो कौल भी करवाई जाती थी, जिस का समय होता था रात के 10 बजे से सुबह के 6 बजे तक.इस दौरान लङकी अपने ग्राहक की डिमांड पर न सिर्फ अश्लील बातें करती थी, पूरी तरह न्यूड भी हो जाती थीय

आरोपी अब हिरासत में

अब सभी आरोपियों पर पुलिस ने धाराएं लगा कर जेल भेज दिया है. पर सवाल यह उठता है कि पुलिस तफ्तीश में जिस राज पर से परदा हटा वह हैरान करने वाला जरूर है, क्योंकि इस धंधे में शामिल ज्यादातर लड़कियां तकरीबन 20-22 साल की उम्र की थीं.अगर इन के पास पैसों की दिक्कत थी तो फिर उन के पास कीमती स्मार्ट फोन और महंगे सामान कहां से आए, यह जाननेसमझने की जिम्मेदारी उन के अभिभावकों पर भी थी.

औरतों के साथ घिनौनी वारदात जारी, वजह है हैरतअंगेज

Crime News in Hindi: इस वारदात को अंजाम देने में गांव के वार्ड सदस्य और सरपंच भी शामिल थे. मांबेटी ने स्थानीय थाने में मामला दर्ज कराया जहां वार्ड पार्षद मोहम्मद खुर्शीद, सरपंच मोहम्मद अंसारी, मोहम्मद शकील, मोहम्मद इश्तेखार, मोहम्मद शमशुल हक, मोहम्मद कलीम के साथसाथ दशरथ ठाकुर को मुलजिम बनाया गया. वैसे, पुलिस सुपरिंटैंडैंट मानवजीत सिंह ढिल्लों के मुताबिक मोहम्मद शकील और दशरथ ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया था. महिला आयोग (Women’s Commission) की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा (Dilmani Mishra) ने उस इलाके का दौरा किया. और वे पीड़िता से मिल कर उस की हरमुमकिन मदद करने और इंसाफ दिलाने की कोशिश कर रही हैं. केंद्रीय महिला आयोग को भी इस मामले की जानकारी दी गई है. डीएम राजीव रोशन ने इस वारदात की निंदा करते हुए कहा है कि यह घिनौना अपराध है. कुसूरवारों को बख्शा नहीं जाएगा. हर हाल में कड़ी कार्यवाही होगी.

पत्थरदिल होते लोग

इस तरह की वारदातें जब कहीं होती हैं तो अच्छेखासे जागरूक लोग भी चुप्पी साध लेते हैं. अगर लोकल लोग इस का विरोध करते तो शायद इस तरह की वारदात नहीं घटती. अगर दबंगों का मनोबल इसी तरह बढ़ता गया तो वह दिन दूर नहीं जब निहायत कमजोर लोगों की जिंदगी हमआप जैसों की चुप्पी की वजह से दूभर हो जाएगी.

आज हमारे समाज में इतनी गिरावट आती जा रही है कि किसी औरत को नंगा कर के घुमाना, उस के साथ छेड़छाड़ करना और रेप तक करते हुए उस का वीडियो वायरल करना आम बात हो गई है.

समाज को धार्मिक और संस्कारी बनाने का ठेका लेने वाले साधुसंन्यासी और मौलाना इन वारदातों पर चुप्पी साधे रहते हैं. अभी हाल के दिनों में वैशाली, आरा, रोहतास, जहानाबाद, कैमूर, मधुबनी, गया और नालंदा में औरतों को नंगा कर के सरेआम सड़कोंगलियों में घुमाए, पीटे और सताए जाने की कई वारदातें हो चुकी हैं और यह सिलसिला जारी है. अगर हम हाल के कुछ सालों की वारदातें देखें तो वर्तमान समाज की नंगी तसवीरें हमारे सामने दिखाई पड़ती हैं:

* 20 अगस्त, 2018. बिहार के आरा जिले के बिहियां इलाके में एक नौजवान की हत्या में शामिल होने के शक में उग्र भीड़ ने एक औरत को नंगा कर के उसे पीटते हुए सरेआम पूरे बाजार में घुमाया.

* 17 अगस्त, 2017. उत्तर प्रदेश के इटावा में दबंगों ने औरतों को पीटते हुए नंगा किया.

* 9 अगस्त, 2017. महाराष्ट्र में एक औरत को नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत की गलती यह थी कि उस ने एक प्रेमी जोड़े को आपस में मिलाने का काम किया था.

* 22 अप्रैल, 2017. एक पिता ने प्रेम करने के एवज में अपनी ही बेटी को नंगा कर के घुमाया.

* 1 मई, 2014. बैतूल के चुनाहजुरि गांव में एक औरत के बाल मूंड़ कर उसे नंगा कर के पीटते हुए पूरे गांव में घुमाया. उस औरत का गुनाह यह था कि उस की छोटी बहन ने दूसरी जाति के लड़के के साथ शादी कर ली थी.

* 19 दिसंबर, 2010. पश्चिम बंगाल में एक औरत को पंचायत के फैसले के मुताबिक उस की पिटाई करते हुए नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत पर आरोप था कि उस का किसी के साथ नाजायज रिश्ता था.

* खड़गपुर के पास मथकथ गांव में एक औरत को नाजायज रिश्ता बनाने के आरोप में उस की नंगा कर के पिटाई की गई.

इन वारदातों में ज्यादातर नौजवान शामिल रहते हैं जो औरतों के साथ बदतमीजी करने से ले कर उन के बेहूदा वीडियो बनाने तक में शामिल होते हैं. हमारे समाज के इन नौजवानों को क्या हो गया है जो ये अपने गुरु और अपने मातापिता की इज्जत तक का थोड़ा सा भी खयाल नहीं रखते हैं? मातापिता भी इस में बराबर के कुसूरवार हैं जो लड़कियों को तो बातबात पर तमीज सिखाते रहते हैं, लेकिन लड़कों को नहीं.

क्या यह सब बढ़ती धार्मिक  पाखंडीबाजी का नतीजा नहीं है जिस के मुताबिक औरतों को पैर की जूती माना गया है? राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2012 से 2015 तक औरतों के विरुद्ध अपराधों की तादाद में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. दुष्कर्म के मामले में मध्य प्रदेश 4,391, महाराष्ट्र 4,144, राजस्थान 3,644, उत्तर प्रदेश 3,025, ओडिशा 2,251, दिल्ली 2,199, असम 1,733, छत्तीसगढ़ 1,560, केरल 1,256, पश्चिम बंगाल 1,129 के आंकड़े चौंकाते हैं. निश्चित रूप से यह एक सभ्य समाज की तसवीर तो नहीं हो सकती.

सवाल यह है कि धर्म, नैतिकता और शर्मिंदगी क्या सिर्फ लड़कियों के लिए है? जन्म से ले कर मरने तक किसी औरत के अपने मातापिता, पति और बेटे के अधीन ही जिंदगी बिताने की परंपरा आज भी सदियों से चली आ रही है.

यह ठीक है कि अब लड़कियों की जिंदगी में बदलाव आया है. आज वे भी हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं, लेकिन आज भी उन के साथ दोयम दर्जे का ही बरताव होता है. जब एक लड़की के साथ बलात्कार की वारदात होती है तो परिवार और समाज द्वारा इज्जत के नाम पर उस की चर्चा और मुकदमा तक नहीं किया जाता है, जिस की वजह से बलात्कारी का मनोबल बढ़ जाता है.

इस से दुनियाभर में हमारे देश की कैसी इमेज बन रही है, क्या हमारे नेताओं को इस पर चिंता करने की जरूरत महसूस नहीं होती है? भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है और ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन क्या हम 8 साल की मासूम बच्ची के साथ रेप कर के विश्व गुरु बन जाएंगे या रेप के बाद विचारधारा और धर्म पर राजनीति कर के?

जिस देश में स्कूलों और कालेजों में टीचरों की घोर कमी हो, अस्पतालों के हालात देख कर ही लोग बीमार दिखने लगते हों, बेरोजगारों की एक लंबी भीड़ हो और क्वालिटी ऐजुकेशन के नाम पर खिचड़ी खिला कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता हो, क्या हम ऐसे माहौल में विश्व गुरु बनने के हकदार हैं?

जिस देश में वोट पाने के लिए नेता हेट स्पीच देने में वर्ल्ड रिकौर्ड बना चुके हों, जिस देश के नेता धर्म के नाम पर अपनी राजनीति चमकाते हों और जरूरत पड़ने पर धर्म के नाम पर नौजवानों की बलि चढ़ा देते हों, क्या ऐसी करतूतों से भारत की छवि विश्व जगत में खराब नहीं हुई है?

भारत में हो रही बलात्कार की वारदातें, चौकचौराहे पर गुस्साई भीड़ द्वारा लगातार की जा रही हत्याएं व सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों द्वारा प्रैस कौंफ्रैंस कर के लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगाना, क्या संचार क्रांति के इस दौर में हमारे देश के लिए इस सब पर सोचविचार करने का यह सही समय नहीं है? कई देशों ने अपने नागरिकों को अकेले भारत आने के बारे में चेतावनी देना शुरू कर दिया है.

भीड़ आखिर इतनी अराजक क्यों हो रही है? कानून को हाथ में लेने के लिए उसे कौन बोल या उकसा रहा है? शक के आधार पर या पंचायत के फैसले पर किसी औरत को नंगा कर के उस को पीटा जाना किसी लिहाज से जायज नहीं है, क्योंकि सरकार के तथाकथित समर्थकों को सोशल मीडिया पर मांबहन की गालियां देने का जो लाइसैंस दिया गया है वह अब सड़कों पर अपना असली रंग दिखाने लगा है.

यह सब इस देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है. ऐसी वारदातों में कभीकभार ऐसी औरतें भी निशाने पर ले ली जाती हैं, जिन का कोई कुसूर नहीं होता है. वे ऐसे लोगों के गुस्से की भेंट चढ़ जाती हैं, जो उन्हें जानते तक नहीं हैं. औरत को देवी का रूप बताने और उस की पूजा का ढोंग करने वाले इस देश के लोगों का यही चरित्र है.

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