सबसे हसीन वह: भाग 2

परीक्षित थके कदमों से चलता हुआ, सीढि़यां लांघता हुआ दूसरी मंजिल के अपने कमरे में पहुंचा. एक नजर समीप खड़ी अनुजा पर डाली, पलभर को ठिठका, फिर पास पड़े सोफे पर निढाल हो बैठ गया और आंखें मूंदें पड़ा रहा.

मिनटों में ही परिवार के सारे सदस्यों का उस चौखट पर जमघट लग गया. फिर तो सब ने ही बारीबारी से इशारोंइशारों में ही पूछा था अनुजा से, ‘कुछ बका क्या?’

उस ने एक नजर परीक्षित पर डाली. वह तो सो रहा था. वह अपना सिर हिला उन सभी को बताती रही, अभी तक तो नहीं.’

एक समय ऐसा भी आया जब उस प्रागंण में मेले सा समां बंध गया था. फिर तो एकएक कर महल्ले के लोग भी आते रहे, जाते रहे थे और वह सो रहा था जम कर. शायद बेहोशी वाली नींद थी उस की.

अनुजा थक चुकी थी उन आनेजाने वालों के कारण. चौखट पर बैठी उस की सास सहारा ले कर उठती हुई बोली, ‘‘उठे तो कुछ खिलापिला देना, बहू.’’ और वे अपनी पोती की उंगली पकड़ निकल ली थीं. माहौल की गर्माहट अब आहिस्ताआहिस्ता शांत हो चुकी थी. रात भी हो चुकी थी. सब के लौट जाने पर अनुजा निरंतर उसे देखती रही थी. वह असमंजस में थी. असमंजस किस कारण से था, उसे कहां पता था.

परिवार के, महल्ले के लोगों ने भी सहानुभूति जताते कहा था, ‘बेचारे ने क्या हालत बना रखी है अपनी. जाने कहांकहां, मारामारा फिरता रहा होगा? उफ.’

आधी रात में वह जगा था. उसी समय ही वह नहाधो, फिर से जो सोया पड़ा, दूसरी सुबह जगा था. तब अनुजा सो ही कहां पाई थी. वह तो तब अपनी उल झनोंपरेशानियों को सहेजनेसमेटने में लगी हुई थी.

वह उस रात निरंतर उसे निहारती रही थी. एक तरफ जहां उस के प्रति सहानुभूति थी, वहीं दूसरी तरफ गहरा रोष भी था मन के किसी कोने में.

सहानुभूति इस कारण कि उस की प्रेमिका ने आत्महत्या जो कर ली थी और रोष इस बात पर कि वह उसे छोड़ भागा था और वह सजीसंवरी अपनी सुहागसेज पर बैठी उस के इंतजार में जागती रही थी. वह उसी रात से ही गायब था. फिर सुहागरात का सुख क्या होता है, कहां जान पाई थी वह.

उस रात उस के इंतजार में जब वह थी, उस का खिलाखिला चेहरा पूनम की चांद सरीखा दमक रहा था. पर ज्यों ही उसे उस के भाग खड़े होने की खबर मिली, मुखड़ा ग्रहण लगे चांद सा हो गया था. उस की सुर्ख मांग तब एकदम से बु झीबु झी सी दिखने लगी थी. सबकुछ ही बिखर चला था.

तब उस के भीतर एक चीत्कार पनपी थी, जिसे वह जबरन भीतर ही रोके रखे हुए थी. फिर विचारों में तब यह भी था, ‘अगर उस से मोहब्बत थी, तो मैं यहां कैसे? जब प्यार निभाने का दम ही नहीं, तो प्यार किया ही क्यों था उस से? फिर इस ने तो 2-2 जिंदगियों से खिलवाड़ किया है. क्या इस का अपराध क्षमायोग्य है? इस के कारण ही तो मु झे मानसिक यातनाएं  झेलनी पड़ी हैं. मेरा तो अस्तित्व ही अधर में लटक गया है इस विध्वंसकारी के कारण. जब इतनी ही मोहब्बत थी तो उसे ही अपना लेता. मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का हक इसे किस ने दिया?’ तब उस की सोच में

यह भी होता, ‘मैं अनब्याही तो नहीं कहीं? फिर, कहीं यह कोई बुरा सपना तो नहीं?’

दूसरे दिन भी घर में चुप्पी छाई रही थी. वह जागा था फिर से. घर वालों को तो जैसे उस के जागने का ही इंतजार था.  झटपट उस के लिए थाली परोसी गई. उस ने जैसेतैसे खाया और एक बार फिर से सो पड़ा और बस सोता ही रहा था. यह दूसरी रात थी जो अनुजा जागते  बिता रही थी. और परीक्षित रातभर जाने क्याक्या न बड़बड़ाता रहा था. बीचबीच में उस की सिसकियां भी उसे सुनाई पड़ रही थीं. उस रात भी वह अनछुई ही रही थी.

फिर जब वह जागा था, अनुजा के समीप आ कर बोला, तब उस की आवाज में पछतावे सा भाव था, ‘‘माफ करना मु झे, बहुत पीड़ा पहुंचाई मैं ने आप को.’’

‘आप को,’ शब्द जैसे उसे चुभ गया. बोली कुछ भी नहीं. पर इस एक शब्द ने तो जैसे एक बार में ही दूरियां बढ़ा दी थीं. उस के तो तनबदन में आग ही लग गई थी.

रिमझिम, जो उस का प्यार थी, इस की बरात के दिन ही उस ने आत्महत्या कर ली थी. लौटा, तो पता चला. फिर वह भाग खड़ा हुआ था.

लौटने के बाद भी अब परीक्षित या तो घर पर ही गुमसुम पड़ा रहता या फिर कहीं बाहर दिनभर भटकता रहता. फिर जब थकामांदा लौटता तो बगैर कुछ कहेसुने सो पड़ता.

ऐसे में ही उस ने उसे रिमझिम झोड़ कर उठाया और पहली बार अपनी जबान खोली थी. तब उस का स्वर अवसादभरा था, ‘‘मैं पराए घर से आई हूं. ब्याहता हूं आप की. आप ने मु झ से शादी की है, यह तो नहीं भूले होंगे आप?’’

वह निरीह नजरों से उसे देखता रहा था. बोला कुछ भी नहीं. अनुजा को उस की यह चुप्पी चुभ गई. वह फिर से बोली थी, तब उस की आवाज विकृत हो आई थी.

‘‘मैं यहां क्यों हूं? क्या मु झे लौट जाना चाहिए अपने मम्मीपापा के पास? आप ने बड़ा ही घिनौना मजाक किया है मेरे साथ. क्या आप का यह दायित्व नहीं बनता कि सबकुछ सामान्य हो जाए और आप अपना कामकाज संभाल लो. अपने दायित्व को सम झो और इस मनहूसियत को मिटा डालो?’’

चंद लमहों के लिए वह रुकी. खामोशी छाई रही. उस खामोशी को खुद ही भंग करते हुए बोली, ‘‘आप के कारण ही पूरे परिवार का मन मलिन रहा है अब तक. वह भी उस के लिए जो आप की थी भी नहीं. अब मैं हूं और मु झे आप का फैसला जानना है. अभी और अभी. मैं घुटघुट कर जी नहीं सकती. सम झे आप?’’

लेखक : केशव राम वाड़दे

सबसे हसीन वह: भाग 1

इन दिनों अनुजा की स्थिति ‘कहां फंस गई मैं’ वाली थी. कहीं ऐसा भी होता है भला? वह अपनेआप में कसमसा रही थी.

ऊपर से बर्फ का ढेला बनी बैठी थी और भीतर उस के ज्वालामुखी दहक रहा था. ‘क्या मेरे मातापिता तब अंधेबहरे थे? क्या वे इतने निष्ठुर हैं? अगर नहीं, तो बिना परखे ऐसे लड़के से क्यों बांध दिया मु झे जो किसी अन्य की खातिर मु झे छोड़ भागा है, जाने कहां? अभी तो अपनी सुहागरात तक भी नहीं हुई है. जाने कहां भटक रहा होगा. फिर, पता नहीं वह लौटेगा भी या नहीं.’

उस की विचारशृंखला में इसी तरह के सैकड़ों सवाल उमड़तेघुमड़ते रहे थे. और वह इन सवालों को  झेल भी रही थी.  झेल क्या रही थी, तड़प रही थी वह तो.

लेकिन जब उसे उस के घर से भाग जाने के कारण की जानकारी हुई, झटका लगा था उसे. उस की बाट जोहने में 15 दिन कब निकल गए. क्या बीती होगी उस पर, कोई तो पूछे उस से आ कर.

सोचतेविचारते अकसर उस की आंखें सजल हो उठतीं. नित्य 2 बूंद अश्रु उस के दामन में ढुलक भी आते और वह उन अश्रुबूंदों को देखती हुई फिर से विचारों की दुनिया में चली जाती और अपने अकेलेपन पर रोती.

अवसाद, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी से उस का हृदय तारतार हुआ जा रहा था. लगने लगा था जैसे वह अबतब में ही पागल हो जाएगी. उस के अंदर तो जैसे सांप रेंगने लगा था. लगा जैसे वह खुद को नोच ही डालेगी या फिर वह कहीं अपनी जान ही गंवा बैठेगी. वह सोचती, ‘जानती होती कि यह ऐसा कर जाएगा तो ब्याह ही न करती इस से. तब दुनिया की कोई भी ताकत मु झे मेरे निर्णय से डिगा नहीं सकती थी. पर, अब मु झे क्या करना चाहिए? क्या इस के लौट आने का इंतजार करना चाहिए? या फिर पीहर लौट जाना ही ठीक रहेगा? क्या ऐसी परिस्थिति में यह घर छोड़ना ठीक रहेगा?’

वक्त पर कोई न कोई उसे खाने की थाली पहुंचा जाता. बीचबीच में आ कर कोई न कोई हालचाल भी पूछ जाता. पूरा घर तनावग्रस्त था. मरघट सा सन्नाटा था उस चौबारे में. सन्नाटा भी ऐसा, जो भीतर तक चीर जाए. परिवार का हर सदस्य एकदूसरे से नजरें चुराता दिखता. ऐसे में वह खुद को कैसे संभाले हुए थी, वह ही जानती थी.

दुलहन के ससुराल आने के बाद अभी तो कई रस्में थीं जिन्हें उसे निभाना था. वे सारी रस्में अपने पूर्ण होने के इंतजार में मुंहबाए खड़ी भी दिखीं उसे. नईनवेली दुलहन से मिलनजुलने वालों का आएदिन तांता लग जाता है, वह भी वह जानती थी. ऐसा वह कई घरों में देख चुकी थी. पर यहां तो एकबारगी में सबकुछ ध्वस्त हो चला था. उस के सारे संजोए सपने एकाएक ही धराशायी हो चले थे. कभीकभार उस के भीतर आक्रोश की ज्वाला धधक उठती. तब वह बुदबुदाती, ‘भाड़ में जाएं सारी रस्मेंरिवाज. नहीं रहना मु झे अब यहां. आज ही अपना फैसला सुना देती हूं इन को, और अपने पीहर को चली जाती हूं. सिर्फ यही नहीं, वहां पहुंच कर अपने मांबाबूजी को भी तो खरीखोटी सुनानी है.’ ऐसे विचार उस के मन में उठते रहे थे, और वह इस बाबत खिन्न हो उठती थी.

इन दिनों उस के पास तो समय ही समय था. नित्य मंथन में व्यस्त रहती थी और फिर क्यों न हो मंथन, उस के साथ ऐसी अनूठी घटना जो घटी थी, अनसुल झी पहेली सरीखी. वह सोचती, ‘किसे सुनाऊं मैं अपनी व्यथा? कौन है जो मेरी समस्या का निराकरण कर सकता है? शायद कोईर् भी नहीं. और शायद मैं खुद भी नहीं.’

फिर मन में खयाल आता, ‘अगर परीक्षित लौट भी आया तो क्या मैं उसे अपनाऊंगी? क्या परीक्षित अपने भूल की क्षमा मांगेगा मुझ से? फिर कहीं मेरी हैसियत ही धूमिल तो नहीं हो जाएगी?’ इस तरह के अनेक सवालों से जूझ रही थी और खुद से लड़ भी रही थी अनुजा. बुदबुदाती, ‘यह कैसी शामत आन पड़ी है मु झ पर? ऐसा कैसे हो गया?’

तभी घर के अहाते से आ रही खुसुरफुसुर की आवाजों से वह सजग हो उठी और खिड़की के मुहाने तक पहुंची. देखा, परीक्षित सिर  झुकाए लड़खड़ाते कदमों से, थकामांदा सा आंगन में प्रवेश कर रहा था.

उसे लौट आया देखा सब के मुर झाए चेहरों की रंगत एकाएक बदलने लगी थी. अब उन चेहरों को देख कोई कह ही नहीं सकता था कि यहां कुछ घटित भी हुआ था. वहीं, अनुजा के मन को भी सुकून पहुंचा था. उस ने देखा, सभी अपनीअपनी जगहों पर जड़वत हो चले थे और यह भी कि ज्योंज्यों उस के कदम कमरे की ओर बढ़ने लगे. सब के सब उस के पीछे हो लिए थे. पूरी जमात थी उस के पीछे.

इस बीच परीक्षित ने अपने घर व घर के लोगों पर सरसरी निगाह डाली. कुछ ही पलों में सारा घर जाग उठा था और सभी बाहर आ कर उसे देखने लगे थे जो शर्म से छिपे पड़े थे अब तक. पूरा महल्ला भी जाग उठा था.

जेठानी की बेटी निशा पहले तो अपने चाचा तक पहुंचने के लिए कदम बढ़ाती दिखी, फिर अचानक से अपनी नई चाची को इत्तला देने के खयाल से उन के कमरे तक दौड़तीभागतीहांफती पहुंची. चाची को पहले से ही खिड़की के करीब खड़ी देख वह उन से चिपट कर खड़ी हो गई. बोली कुछ भी नहीं. वहीं, छोटा संजू दौड़ कर अपने चाचा की उंगली पकड़ उन के साथसाथ चलने लगा था.

लेखक : केशव राम वाड़दे

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी- भाग 3

देखतेदेखते 2 वर्ष बीत गए और अदिति अपनी टीचर की भूमिका में अच्छी तरह ढल गई थी. जब कभी वह सुबहसुबह दौड़ लगाती अपनी बस की तरफ तो सोसाइटी में चलतेफिरते लोग पूछ ही लेते ‘‘आप टीचर हैं क्या किसी स्कूल में?’’

पर अब अदिति मुसकरा कर बोलती, ‘‘जी, तभी तो सुबहसवेरे का सूर्य देखना का मु झे समय नहीं मिलता है.’’

स्कूल अब स्कूल नहीं है उस का दूसरा घर हो गया है. उस की परी भी उस के साथ ही स्कूल जाती है और आती है. औरों की तरह उसे परी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती है. जब उस के पढ़ाई हुए विद्यार्थी उस से मिलने आते हैं तो वह गर्व से भर उठती है. वह टीचर ही तो है, जिंदगी से भरपूर क्योंकि हर वर्ष नए विद्यार्थियों के साथ उस की उम्र साल दर साल बढ़ती नहीं घटती जाती है.

उधर अनुराग भी बहुत खुश था, परी के जन्म के समय से ही उस की प्रोमोशन  लगभग निश्चित थी पर किसी न किसी कारण से वह टलती ही जा रही थी. आज उस के हाथ में प्रोमोशन लैटर था. पूरे 20 हजार की बढ़ोतरी और औफिस की तरफ से कार भी मिल गई. इधर अदिति के साथ परी के आनेजाने से डे केयर का खर्चा भी बच रहा था.

अनुराग ने मन ही मन निश्चिय कर लिया कि इस बार विवाह की वर्षगांठ पर वह और अदिति गोवा जाएंगे. वह सबकुछ पता कर चुका था, पूरे 60 हजार में पूरा पैकेज हो रहा था. अनुराग ने घर पहुंच कर ऐलान किया कि वे आज डिनर बाहर करेंगे और वह अदिति को उस की मनपसंद शौपिंग भी कराना चाहता है.

अदिति आज बहुत दिनों बाद खिलखिला रही थी और परी भी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी. अदिति की वर्षों से एक प्योर शिफौन साड़ी की तम्मना थी. जब दुकानदार ने साड़ी दिखानी शुरू कीं, तो अदिति मूल्य सुन कर बोली, ‘‘अनुराग कहीं और से लेते हैं.’’

तब अनुराग ने अपना प्रोमोशन लैटर दिखाया और बोला, ‘‘इतना तो मैं अब कर सकता हूं.’’

डिनर के समय अनुराग अदिति का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘अदिति बस 1-2 साल की तपस्या और है, फिर मैं अपनी कंपनी में डाइरैक्टर के ओहदे पर पहुंच जाऊंगा.’’

दोनों शायद आज काफी समय बाद घोड़े बेच कर सोए थे. दोनों ने ही आज छुट्टी कर रखी थी. दोनों ही इन लमहों को जी भर कर जीना चाहते थे.

आज अदिति अनुराग से कुछ और भी बात करना चाहती थी. वह अब परी के लिए एक भाई या बहन लाना चाहती थी. इस से पहले कि वह अनुराग से इस बारे में बात करती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘जानता हूं पर इस के लिए प्यार भी जरूरी है,’’ और फिर दोनों प्यार में सराबोर हो गए.’’

1 माह पश्चात अदिति के हाथ में अपनी प्रैगनैंसी रिपोर्ट थी जो पौजिटिव थी. वे बहुत खुश थे. उस ने तय कर लिया था, इस बार वे अपने बच्चे के साथ पूरा समय बिताएगी और जब दोनों ही बच्चे थोड़े सम झदार हो जाएंगे तभी अपने काम के बारे में सोचेगी. अनुराग भी उस की बात से सहमत था. अब अनुराग भी थोड़ा निश्चित हो गया था क्योंकि अब उस की अगले वर्ष प्रोमोशन तय थी.

रविवार की ऐसी ही कुनकुनी दोपहरी में दोनों पक्षियों की तरह गुटरगूं कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उधर से अनुराग की मां घबराई सी बोल रही थीं, ‘‘अनुराग के ?झ को हार्ट अटैक आ गया है और उन्हें हौस्पिटल में एडमिट कर लिया गया है.’’

वहां पहुंच कर पता चला 20 लाख का पूरा खर्च है. अनुराग ने दफ्तर से अपनी तनख्वाह से एडवांस लिया, हिसाब लगाने पर उसे अनुमान हो गया था कि उस की पूरी तनख्वाह बस अब इन किस्तों में ही निकल जाएगी, फिर से कुछ वर्षों तक.

घर पहुंच कर जब उस ने अदिति को सारी बात से अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं अनुराग, मैं हूं न, हम मिल कर सब संभाल लेंगे.’’

हालांकि मन ही मन वह खुद भी परेशान थी. पर यह दोनों को ही सम झ आ गया था कि यही जीवन है, फिर चाहे हंस कर गुजारो या रो कर आप की मरजी है.

अनुराग अपनी मां के  साथ हौस्पिटल के गलियारे में चहलकदमी कर रहा था. अदिति को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई थी. आधे घंटे पश्चात नर्स उन के बेटे को ले कर आई. उसे हाथों में ले कर अनुराग की आंखों में आंसू आ गए.

फिर से 3 माह पश्चात अदिति अपने युवराज को घर छोड़ कर स्कूल जा रही हैं, पर आज वह घबरा नहीं रही है क्योंकि अब अनुराग के मां और पापा उन के साथ ही रह रहे हैं. उधर अदिति के मांपापा ने बच्चों की देखभाल और घर की देखरेख के लिए कुछ समय के लिए अपनी नौकरानी उन के घर भेज दी. जिंदगी बहुत आसान नहीं थी पर मुश्किल भी नहीं थी.

इस बार विवाह की वर्षगांठ पर अनुराग फिर से अदिति को गोवा ले जाना चाहता था और उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार अदिति का वह सपना पूरा कर पाएगा. रास्तों पर चलते हुए वे जीवन के इस सफर को शायद हंसतेखिलखिलाते पूरा कर ही लेंगे.

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी- भाग 2

अदिति अगले दिन कक्षा में गई और पढ़ाने लगी. आधे से ज्यादा बच्चे उसे न सुन कर अपनी बातों में ही व्यस्त थे. एकदम उसे बहुत तेज गुस्सा आया और उस ने बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया. बाहर खड़े हो कर दोनों बच्चे फील्ड में चले गए और खेलने लगे. छुट्टी की घंटी बजी, तो उस ने बैग उठाया तभी चपरासी आ कर उसे सूचना दे गया कि उन्हें प्रिंसिपल ने बुलाया है.

अदिति भुनभुनाती हुई औफिस की तरफ लपकी. प्रिंसिपल ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘अदिति तुम ने आज 2 बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया… तुम्हें मालूम है वे पूरा दिन फील्ड में खेल रहे थे. एक बच्चे को चोट भी लग गई है. कौन जिम्मेदार है इस का?’’

अदिति बोली, ‘‘मैडम, आप उन बच्चों को नहीं जानतीं कि वे कितने शैतान हैं.’’

प्रिंसिपल ठंडे स्वर में बोलीं, ‘‘अदिति बच्चे शैतान नहीं हैं, आप उन  को संभाल नहीं पाती हैं, यह कोई औफिस नहीं है… आप टीचर हैं, बच्चों की रोल मौडल, ऐसा व्यवहार इस स्कूल में मान्य नहीं है.’’

बस जा चुकी थी और वह बहुत देर तब उबेर की प्रतीक्षा में खड़ी रही. जब 4 बजे उस ने डे केयर में प्रवेश किया तो उस की संचालक ने व्यंग्य किया, ‘‘आजकल टीचर को भी लगता है कंपनी जितना ही काम रहता है.’’

अदिति बिना बोले परी को ले कर अपने घर चल पड़ी. वह जब शाम को उठी तो देखा अंधेरा घिर आया था. उस ने रसोई में देखा जूठे बरतनों का ढेर लगा था और अनुराग फोन पर अपनी मां से गप्पें मार रहा था.

उस ने चाय बनाई और लग गई काम पर. रात 10 बजे जब वह बैडरूम में घुसी तो थक कर चूर हो गई थी. उस ने अनुराग से बोला, ‘‘सुनो एक मेड रखनी होगी… मैं बहुत थक जाती हूं.’’

अनुराग बोला, ‘‘अदिति टीचर ही तो हो… करना क्या होता है तुम्हें, सुबह तो सब कामों में मैं भी तुम्हारी मदद करने की कोशिश करता हूं… पहले जब तुम कंपनी में थी तब बात अलग थी… रात हो जाती थी… अब तो सारा टाइम तुम्हारा है.’’

तभी मोबाइल की घंटी बजी. कल उसे 4 बच्चों को एक कंपीटिशन के लिए ले कर जाना था. अदिति इस से पहले कुछ और पूछती, मोबाइल बंद हो गया. बच्चों को ले कर जब वह प्रतियोगिता स्थल पर पहुंची तो पला चला कि उन्हें अभी 4 घंटे प्रतीक्षा करनी होगी. उन 4 घंटों में अदिति अपने विद्यार्थियों से बात करने लगी और कब 4 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला. उसे महसूस हुआ ये बच्चे जैसे घर पर अपनी हर बात मातापिता से बांटते हैं, वैसे ही स्कूल में अध्यापकों से बांटते हैं. पहली बार उसे लगा टीचर का कार्य बस पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है.

आज फिर घर पहुंचने में देर हो गई क्योंकि सब विद्यार्थियों को घर पहुंचा कर ही वह अपने घर पहुंच सकी. डे केयर पहुंच कर देखा, परी बुखार से तप रही थी. वह बिना खाएपीए उसे डाक्टर के पास ले गई और अनुराग भी वहां ही आ गया. बस आज इतनी गनीमत थी कि अनुराग ने रात का खाना बना दिया.

रात खाने पर अनुराग बोला, ‘‘अदिति तुम 2-3 दिन की छुट्टी ले लो.’’

अदिति ने स्कूल में फोन किया तो पता चला कि कल उसी के विषय की परीक्षा है तो कल तो उसे जरूर आना पड़ेगा, परीक्षा के बाद भले ही चली जाए.

सुबह पति का फूला मुंह छोड़ कर वह स्कूल चली गई. परीक्षा समाप्त होते  ही वह विद्यार्थियों की परीक्षा कौपीज ले कर घर की तरफ भागी. घर पहुंच कर देखा तो परी सोई हुई थी और सासूमां आई हुई थीं, शायद अनुराग ने फोन कर के अपनी मां से उस की यशोगाथा गाई होगी.

उसे देखते ही सासूमां बोली, ‘‘बहू लगता है स्कूल की नौकरी तुम्हें अपनी परी से भी ज्यादा प्यारी है. मैं घर छोड़ कर आ गई हूं और देखा मां ही गायब.’’

अदिति किसकिस को सम झाए और क्या सम झाए जब वह खुद ही अभी सब सम झ रही है.

वह कैसे यह सम झाए उस की जिम्मेदारी अब बस परी की तरफ ही नहीं, अपने विद्यालय के हर 1 बच्चे की तरफ है. उस का काम बस स्कूल तक सीमित नहीं है. वह 24 घंटे का काम है जिस की कहीं कोई गणना नहीं होती. बहुत बार ऐसा भी हुआ कि अदिति को लगा कि वह नौकरी छोड़ कर परी की ही देखभाल करे पर हर माह कोई न कोई मोटा खर्च आ ही जाता.

अदिति की नौकरी का तीनचौथाई भाग तो घर के खर्च और डे केयर की फीस में ही खर्च हो जाता और एकचौथाई भाग से वह अपने कुछ शौक पूरे कर लेती. वहीं अनुराग का हाल और भी बेहाल था. उस की तनख्वाह का 80% तो घर और कार की किस्त में ही निकल जाता और बाकी का 20% उन अनदेखे खर्चों के लिए जमा कर लेता जो कभी भी आ जाते थे. उस के सारे शौक तो न जाने कहां खो गए थे.

अदिति जानेअनजाने अनुराग को अपनी बड़ी बहन और बहनोई का उदाहरण देती रहती जो हर वर्ष विदेश भ्रमण करते हैं और उन के पास खाने वाली से ले कर बच्चों की देखभाल के लिए भी आया थी. उन के रिश्तों में प्यार की जगह अब चिड़चिड़ाहट ने ले ली थी. कभीकभी अदिति की भागदौड़ देख कर उस का मन भी भर जाता. ऐसा नहीं है अनुराग अदिति को आराम नहीं देना चाहता था पर क्या करे वह कितनी भी कोशिश कर ले, हर माह महंगाई बढ़ती ही जाती.

इसे कहते हैं सच्चा प्यार

इसे कहते हैं सच्चा प्यार: भाग 3

साहस रोजाना आरुषी को कालेज पहुंचाने और लेने जाने लगा. फिर भी वे लड़के आरुषी को परेशान कर ही रहे थे. आरुषी उन के ध्यान में तो थी, पर साहस ने उन के खिलाफ कालेज में शिकायत कर रखी थी, इसलिए वे ज्यादा कुछ कर नहीं पा रहे थे.

उस दिन आरुषी कालेज के गेट नंबर एक की ओर जा रही थी, तभी कैंटीन में काम करने वाला एक लड़का आरुषी को एक चिट्ठी दे गया. जिस में लिखा था कि आरुषी आज तुम गेट नंबर 2 की ओर आना. वहां बसस्टाप पर मैं तुम्हें मिलूंगा-साहस.

आरुषी गेट नंबर 2 के पास बने बसस्टाप पर खड़ी हो कर साहस का इंतजार करने लगी. तभी वे गुंडे मोटरसाइकिल से आ कर आरुषी को घेर कर उस के साथ छेड़छाड़ करने लगे.

गेट नंबर 2 की ओर कोई आताजाता नहीं था, इसलिए वहां सुनसान रहता था. इसीलिए उन गुंडों ने साहस के नाम से फरजी चिट्ठी लिख कर कैंटीन के लड़के को भेज कर आरुषी को धोखे से वहां बुलाया था.

रोज की तरह साहस गेट नंबर एक पर खड़े हो कर आरुषी का इंतजार कर रहा था. पर जब आरुषी को आने में देर होने लगी तो वह कालेज के अंदर जा कर आरुषी को खोजने लगा.

दूसरी ओर आरुषी को अपनी सुंदरता पर बड़ा घमंड है, कह कर वे लड़के आरुषी को डराधमका रहे थे. अंत में जो लड़का आरुषी को काफी समय से प्रपोज कर रहा था, उस ने आरुषी के चेहरे पर एसिड फेंकते हुए कहा, ‘‘अगर तू मेरी नहीं हुई तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’

इस के बाद सभी गुंडे मोटरसाइकिल से भाग गए. आरुषी दर्द और जलन से जोरजोर चीखते हुए जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. पर उन गुंडों के डर और धाक की वजह से कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. साहस को आरुषी की चीख सुनाई दी तो वह गेट नंबर 2 की ओर भागा. आरुषी की हालत देख कर उस के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई.

आरुषी को उस ने अपनी गाड़ी से नजदीक के अस्पताल पहुंचाया, जहां तत्काल उस का इलाज शुरू किया गया. उस की आंखें तो बच गईं, पर उस का नाजुक कोमल चेहरा भयानक हो चुका था. मम्मीपापा की परी अब परी नहीं रही.

जितना हो सका, उतनी सर्जरी कर के आरुषी को घर लाया गया. अपने कमरे में लगे आईने में अपना चेहरा देख कर आरुषी जिंदा लाश बन गई. आईने के सामने घंटों बैठने वाली आरुषी अब आईने के सामने जाने से डरने लगी थी. अब वह सब से दूर भागने लगी थी.

आरुषीकी हालत देख कर साहस भी परेशान रहने लगा था. आरुषी पर एसिड अटैक करने वाले सभी के सभी लड़कों को साहस ने जेल भिजवा दिया था, साथ ही साथ आरुषी को भी संभाल रहा था.

आरव जो आरुषी को चिढ़ाने के लिए चुहिया कहता था, अब उसी तरह आरुषी चूहे की तरह कोने में छिप गई थी. जो लड़की हाथ पर दाल गिरने से मां से लिपट कर रोने लगी थी, अब वही असह्य पीड़ा सहते हुए मां के पास बैठी रोती रहती थी.

आरुषी और साहस की शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी. एक दिन साहस ने आरुषी के पास आ कर कहा, ‘‘आरुषी शादी की तारीख नजदीक आ गई है, चलो आज थोड़ी शौपिग कर आते हैं. अभी तक हम ने शादी की कोई तैयारी नहीं की है.’’

आरुषी जोरजोर से रोने लगी. उस ने साहस से शादी के लिए मना कर दिया और कहा कि वह किसी दूसरी सुंदर लड़की से शादी कर ले. इस के बाद वह साहस से दूर रहने लगी, जो साहस से सहन नहीं हो रहा था.

आरुषी के इस व्यवहार से दुखी हो कर एक दिन साहस ने कहा, ‘‘आरुषी, तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम देखने में कैसी लगती हो. मैं ने तुम्हें पहली बार देखा था, तभी तुम्हारा भोलापन मुझे बहुत भा गया था. उसी समय तुम मेरे दिल में उतर गई थी. तुम अपनी ही कही बात भूल गई?

‘‘तुम ने ही तो कहा था कि अपना जीवनसाथी खूब प्यार करने वाला होना चाहिए. प्रेम करना आसान है, पर किसी का प्रेम पाना बहुत मुश्किल है. आरुषी, मैं सचमुच तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. जितना तुम मुझे करती हो, उस से भी बहुत ज्यादा. इसी तरह का जीवनसाथी चाहती थीं न तुम?’’

‘‘साहस, तब की बात अलग थी. अब मैं तुम्हारे लायक नहीं रही.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘ऐसा क्यों कहती हो आरुषी? अगर यही घटना मेरे साथ घटी होती तो..? तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? अगर शादी के बाद ऐसा होता तो… जवाब दो?’’

‘‘साहस, तुम समझने की कोशिश करो. अब मैं पहले जैसी नहीं रही.’’ आरुषी ने साहस को समझाने की कोशिश की.

आरुषी के इस व्यवहार से नाराज हो कर साहस वहां से चला गया. उस के जाने के लगभग एक घंटे बाद आरुषी के यहां फोन आया. आरुषी सहित घर के सभी लोग तुरंत अस्पताल भागे. अस्पताल पहुंच कर पता चला कि साहस ने लोहे का सरिया गरम कर के अपना चेहरा उतना ही दाग लिया था, जितना आरुषी का जला था. आरुषी ने साहस के पास जा कर उस का हाथ पकड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘साहस, तुम ने यह क्या किया?’’

‘‘अब तो हम दोनों एक जैसे हो गए हैं न? अब मैं तुम्हारे लायक हो गया न? अब तो तुम शादी के लिए मना नहीं करोगी न?’’ साहस ने कहा.

‘‘सौरी साहस, तुम सचमुच मुझे बहुत प्यार करते हो. मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं, तुम से भी ज्यादा. मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगी, कभी नहीं.’’

इस दृश्य को देख कर दोनों ही परिवारों के सभी लोगों की आंखें भर आईं. शायद इसे ही सच्चा प्यार कहते हैं. प्यार सुंदरता का मात्र आकर्षण नहीं होना चाहिए, प्यार तो एक दिल से दूसरे दिल तक पहुंचने का कठिन जरिया है.

इसे कहते हैं सच्चा प्यार: भाग 2

साहस को देखते ही आरुषी के मम्मीपापा के मन में बेटी की शादी का विचार आ गया. आखिर आता क्यों न. साहस राजकुमार की तरह सुंदर था. फिर वह डाक्टर भी था. शादी में शामिल होने के लिए साहस के मम्मीपापा भी आए थे.

साहस ने आरुषी के मम्मीपापा से अपने मम्मीपापा को मिलवाया. बातचीत में उन लोगों का काफी पुराना परिचय निकल आया. साहस और आरुषी की शादी की बात चल निकली. 2 दिन बाद साहस अपनी मम्मीपापा के साथ शादी की बात करने आरुषी के घर आ पहुंचा.

उस दिन आरुषी और साहस बहुत खुश थे. सभी ने दोनों को बात करने के लिए घर के बाहर लौन में भेज दिया. लौन में लगे झूले पर बैठते हुए साहस ने पूछा, ‘‘अब तुम्हारा हाथ कैसा है आरुषी?’’

‘‘अब तो काफी ठीक है. आप ने बहुत सही समय पर बर्फ ला कर लगा दी थी, इसलिए ज्यादा तकलीफ नहीं हुई.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘जरा अपना हाथ दिखाओ, देखूं तो कैसा है?’’

खूब शरमाते हुए आरुषी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो बहुत ही आराम से उस का हाथ पकड़ कर साहस देखने लगा. साहस के हाथ पकड़ने से आरुषी कुछ अलग तरह का रोमांच अनुभव कर रही थी, जिसे शायद साहस ने महसूस कर लिया था.

इस के बाद अपना दूसरा हाथ उस के हाथ पर रख कर सहलाने लगा. आरुषी ने अपनी नजरें झुका लीं. पर अपना हाथ साहस के हाथों से छुड़ाने की कोशिश नहीं की.

उसे साहस का स्पर्श अच्छा लग रहा था. इसी छोटी सी मुलाकात में साहस ने आरुषी के दिल की स्थिति समझ ली थी. उस ने पूछा, ‘‘आरुषी तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’

‘‘बस, इस तरह का कि जितना प्यार मैं उस से करूं, वह उस से ज्यादा मुझे प्यार करे.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘मैं समझा नहीं,’’ साहस ने कहा.

‘‘किसी को प्यार करना आसान है. पर किसी का प्यार पाना उतना ही मुश्किल है. आप किसी को प्यार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं. इसलिए मुझे इस तरह का जीवनसाथी चाहिए, जो मुझे बहुत ज्यादा प्यार करे. मैं जैसी हूं, मुझे उसी रूप में अपना सके.

‘‘मेरा रूप देख कर कोई मेरी ओर आकर्षित हो, मैं इसे जरा भी प्यार नहीं समझती. यह सुंदरता जीवन भर साथ थोड़े ही साथ देने वाली है. जो जीवनसाथी मुझे बदले बगैर प्यार कर सके, वही सच्चा प्यार है. मैं सुंदरता में जरा भी विश्वास नहीं करती. चेहरे की सुंदरता के बजाय हृदय सुंदर होना चाहिए.’’ आरुषी ने दिल की बात कह दी.

साहस एकटक आरुषी को ताकता रहा. अभी दोनों के हाथ एकदूसरे के हाथ में ही थे. दोनों में से किसी ने भी हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की थी. अपने दिल की बात कहने के बाद आरुषी ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’

साहस ने छूटते ही कहा, ‘‘तुम्हारे जैसा.’’

‘‘क्या?’’ आरुषी चौंकी.

दोनों एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर एकदूसरे को ताकते रहे. तभी आरुषी और साहस की मम्मी दोनों को बुलाने लौन में आ गईं. दोनों के हाथों में एकदूसरे के हाथ देख कर वे समझ गईं कि इन के जवाब क्या होंगे. दोनों ही एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराईं. इस के बाद आरुषी की मम्मी ने कहा, ‘‘आरुषी बेटा अंदर आओ, नाश्ता करने.’’

आरुषी और साहस ने जल्दी से अपनेअपने हाथ अलग किए और सामान्य होने की कोशिश करने लगे. थोड़ा सामान्य होने के बाद आरुषी बोली, ‘‘हां मम्मी, आप चलें, हम आते हैं.’’

आरुषी झूले से उठ कर घर के अंदर जातेजाते पलट कर साहस की ओर देख कर शरमा गई. दोनों को ही एकदूसरे का जवाब मिल चुका था. दोनों के मातापिता को भी उन के जवाब मिल गए थे. 10 दिन बाद उन की सगाई की तारीख रख दी गई.

दोनों के ही घर यह पहला शुभ प्रसंग था, इसलिए उन की सगाई खूब धूमधाम से हुई. अपने पापा की परी आरुषी उस दिन सचमुच परी सी लग रही थी. बड़ी खुशी और शांति के साथ आरुषी और साहस की सगाई की रस्म संपन्न हो गई थी. सभी बहुत खुश थे.

सगाई हो जाने के बाद आरुषी और साहस अकसर मिलने लगे थे. एक दिन आरुषी एक कैफे में बैठी साहस का इंतजार कर रही थी, तभी उस के कालेज के 4 लड़के उस के अगलबगल बैठ कर उस से छेड़छाड़ करने लगे. तभी साहस आ गया और उन लड़कों की हरकत देख कर गुस्से में बोला, ‘‘तुम लोग यहां क्या कर रहे हो, किसी लड़की से कोई इस तरह की हरकत करता है?’’

उन लड़कों में से एक लड़के ने कहा, ‘‘तू कौन है बे, जो बीच में आ टपका. हम आरुषी को 4 साल से जानते हैं.’’

‘‘मेहरबानी कर के ढंग से बात करो. तुम जिस तरह बात कर रहे हो, यह क्या कोई बात करने का तरीका है?’’ साहस ने कहा, ‘‘आरुषी, तुम इन लोगों को जानती हो?’’

‘‘हां, ये मेरे कालेज के गुंडे हैं. 4 साल से मुझे परेशान कर रहे हैं. मुझे अकेली देख कर यहां भी मुझे परेशान करने आ गए.’’

इस के बाद तो साहस और उन गुंडों के बीच हाथापाई शुरू हो गई. अंत में पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस के आने पर मामला शांत हुआ. जातेजाते वे गुंडे आरुषी को धमका गए. उस दिन पहली बार जिस सुंदरता पर आरुषी को घमंड था, उस पर उसे अफसोस हुआ.

आरुषी बहुत डर गई. साहस ने उसे तसल्ली दी. आरुषी ने कहा, ‘‘साहस इन लड़कों में एक लड़का मुझे बहुत दिनों से प्रपोज कर रहा था. पर मैं ने कभी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. इसलिए अब वह गुंडागर्दी और धमकी पर उतर आया है.’’

‘‘आरुषी इन लोगों से डरने की जरूरत नहीं है. ये लोग तुम्हारा कुछ नहीं कर सकते.’’ साहस ने कहा.

‘‘साहस, ये ऐसेवैसे लड़के नहीं हैं. बहुत ही खतरनाक लोग हैं. सभी के सभी बड़े बाप की बिगड़ी औलादें हैं. हम लोग घर पहुंचेंगे, उस के पहले ही ये थाने से छूट जाएंगे. अब मैं कालेज नहीं जाऊंगी.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘डरने की कोई बात नहीं है आरुषी. मैं तुम्हें कालेज से ले आने और ले जाने रोजाना आऊंगा.’’ साहस ने कहा.

इसे कहते हैं सच्चा प्यार: भाग 1

पिछले एक घंटे से ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी आरुषी अभी सज ही रही थी. उस के पूरे कमरे में कपड़े ही कपड़े बिखरे हुए थे. अचानक किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया. पलट कर दरवाजे की ओर देखते हुए आरुषी ने पूछा, ‘‘कौन है?’’

दरवाजे के बाहर से आवाज आई, ‘‘बेटा मैं हूं, तुम्हारी मम्मी, अभी और कितनी देर लगेगी?’’

‘‘मम्मी अंदर आ जाइए, दरवाजा खुला है.’’ आरुषी ने ड्रेसिंग टेबल में लगे आईने में खुद को निहारते हुए कहा.

आरुषी के कमरे के अंदर आ कर इधरउधर देखते हुए मम्मी ने कहा, ‘‘यह क्या है आरुषी, कमरे की हालत तो देखो, किस तरह अस्तव्यस्त कर रखा है. अभी तुम शीशे के सामने ही बैठी हो. हमें 10 बजे तक शादी में पहुंचना था. घड़ी तो देखो, साढ़े 10 बज रहे हैं. इतनी सुंदर तो हो, फिर इतना सजने की क्या जरूरत है. इतने कपड़े पहनपहन कर फेंके हैं, तुम्हें थकान नहीं लगी?’’

आरुषी मम्मी के सामने आ कर दाहिने हाथ से आगे आई बाल की लट को पीछे धकेलते हुए बोली, ‘‘सांस ले लो मम्मी, मैं सारे कपड़े तह कर के रख दूंगी. तुम इस की चिंता मत करो. जरा यह बताओ, मैं कैसी लग रही हूं?’’

मम्मी ने आगे बढ़ कर ड्रेसिंग टेबल पर रखी काजल की डिब्बी से अंगुली में काजल लगा कर आरुषी के कान के पीछे टीका लगा दिया. मम्मी का हाथ पकड़ कर हटाते हुए आरुषी ने कहा, ‘‘मम्मी, तुम ने तो मेरे बाल ही खराब कर दिए, अब ये फिर से संवारने पड़ेंगे.’’

‘‘अब बस करो बेटा, देर हो रही है.’’

मम्मी की बात पूरी ही हुई थी कि आरुषी का छोटा भाई आरव उस के कमरे के बाहर आ कर चीखते हुए कहने लगा, ‘‘अभी कितनी देर लगेगी चुहिया दीदी, तुम्हारी वजह से पापा मुझ पर नाराज हो रहे हैं. जल्दी करो न दीदी.’’

‘‘चलो आ रही हूं. पापा मुझे कुछ नहीं कहेंगे. मैं तो लाडली हूं उन की. तुम ने कोई कांड किया होगा, इसलिए तुझ पर खीझे होंगे. कौवा कहीं का.’’

आरव कमरे के अंदर आ कर बोला, ‘‘मम्मी इस चुहिया से कह दो मुझे कौवा न कहे. इस के मुकाबले मेरा रंग थोड़ा गहरा जरूर है, पर कौवे की तरह तो नहीं है. सुन चुहिया, तेरी शादी नहीं है, जो इस तरह सज रही है. अरे, अपने रिश्तेदार की शादी है, जल्दी कर न.’’

आरुषी जल्दी से भाग कर पापा के पास पहुंची. पापा की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं पापा?’’

‘‘तू तो मेरा चांद है मेरी लाडली. भगवान ने तुझे फुरसत में बनाया है बेटा.’’

‘‘पापा चांद में तो दाग है. आप की लाडली के चेहरे पर तो एक खरोंच तक नहीं है.’’ आरुषी ने कहा.

पापा ने आरुषी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘नाराज हो गई मेरी बेटी, तू तो मेरी परी है. एक दिन कोई राजकुमार आ कर मेरी लाडली को अपने साथ ले जाएगा.’’

‘‘बस, पापा बस,’’ आरुषी ने पैर पटकते हुए कहा, ‘‘मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाली समझ गए न. और हां, मम्मी और आप का बेटा आरव कितनी देर लगा रहे हैं तैयार होने में.’’

दरवाजे से बाहर आते हुए आरव ने आरुषी की बात सुन ली थी. वह वहीं से चिल्लाया, ‘‘पापा, दीदी एकदम झूठ बोल रही है. यही एक घंटे से शीशे के सामने बैठ कर तैयार हो रही थी. और अब मेरा और मम्मी का नाम लगा रही है… चुहिया.’’

‘‘आरव बड़ी बहन को कोई इस तरह कहता है.’’ पापा ने कहा.

आरुषी खुश हो कर पापा न देख पाएं इस तरह जीभ निकाल कर आरव को चिढ़ाया. इस के बाद सभी कार में सवार हो कर जहां शादी हो रही थी, वहां के लिए रवाना हो गए.

आरुषी विवाह स्थल पर पहुंच कर जैसे ही कार से निकल कर बाहर खड़ी हुई, सभी की नजरें उसी पर टिक गईं.

रूप का अंबार, पापा की परी आरुषी अब शादी लायक हो चुकी थी. इसलिए हर कोई आरुषी को अपने घर की बहू बनाना चाहता था. और हर युवा दिल तो उसे देख कर अपनी धड़कन बना लेना चाहता था.

एक ओर विवाह की रस्में हो रही थीं तो दूसरी ओर खाना चल रहा था. आरुषी को बहुत जोर की भूख लगी थी. आरुषी खाना खाने के लिए प्लेट ले कर लाइन में लग गई. एक अंजान लड़का उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया. आरुषी उसे नजरअंदाज करते हुए खाने की चीजें उठाउठा कर प्लेट में रखती जा रही थी.

दाल काफी गरम थी. चमचा भर कर दाल वह प्लेट में डालने लगी तो चमचा पलट गया और सारी दाल उस के हाथ पर गिर गई. उस के मुंह से जोर की चीख निकल गई.

पीछे खड़ा लड़का दौड़ कर शरबत के काउंटर से बर्फ ले आया और आरुषी के हाथ पर रगड़ने लगा. आरुषी को थोड़ा आराम हुआ तो उस ने उस लड़के का आभार व्यक्त करते हुए उसे धन्यवाद कहा. इस के बाद उस लड़के ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘हाय, आई एम साहस. आई एम ए डाक्टर.’’

‘‘साहसजी, आप का बहुतबहुत आभार.’’ आरुषी ने कहा.

तभी आरुषी के मम्मीपापा आ गए. आरुषी छोटे बच्चे की तरह मम्मी से लिपट कर रोते हुए बताने लगी कि वह दाल से जल गई है. मम्मी ने उस के आंसू पोंछते हुए उसे सांत्वना दी तो वह शांत हुई. इस के बाद उस ने अपने मम्मीपापा से साहस का परिचय कराया.

सयाना इश्क: क्यों अच्छा लाइफ पार्टनर नही बन सकता संजय- भाग 2

”कुछ तो है, गेस करो.‘’

”तुम ही बताओ.‘’

”तुम्हारी बेटी को शायद प्यार हो गया है.‘’

विनय जोर से हंसे, ”इतनी खुश हो रही हो. उस ने खुद बताया है या अंदाजा लगाती घूम रही हो.‘’

”नहीं, उस ने तो नहीं बताया, मेरा अंदाजा है.”

”अच्छा, उस ने नहीं बताया?”

”नहीं.‘’

”तो फिर पहले उसे बताने दो.‘’

”नहीं, मैं सही सोच रही हूं.‘’

”देखते हैं.‘’

पर बात इतनी सरल रूप में भी सामने नहीं आई जैसे नंदिता और विनय ने सोचा था. एक संडे पीहू ने सुबह कहा, ”मम्मी, पापा, आज मेरा एक दोस्त घर आएगा.‘’

नंदिता और विनय ने एकदूसरे को देखा, नंदिता ने आंखों ही आंखों में जैसे विनय से कहा, देखा, मेरा अंदाजा!”

विनय मुसकराए, ”अच्छा, कौन है?”

”संजय, वह भी सीए कर रहा है. बस, में ही साथ आतेजाते दोस्ती हुई. मैं चाहती हूं आप दोनों उस से मिल लें.‘’

नंदिता मुसकराई, ”क्यों नहीं, जरूर मिलेंगे.”

इतने में पीहू का फोन बजा तो नंदिता ने कनखियों से देखा, ‘माय लव’ का ही फोन था. वह विनय को देख हंस दी, पीहू दूसरे रूम में फोन करने चली गई.

शाम को संजय आया. नंदिता तो पीहू के फोन में उस दिन किचन में ही इस ‘माय लव’ की फोटो देख चुकी थी. संजय जल्दी ही नंदिता और विनय से फ्री हो गया. नंदिता को वह काफी बातूनी लगा. विनय को ठीक ही लगा. बहुत देर वह बैठा रहा. उस ने अपनी फेमिली के बारे में कुछ इस तरह बताया, ”पापा ने जौब छोड़ कर अपना बिजनैस शुरू किया है. किसी जौब में बहुत देर तक नहीं टिक रहे थे. अब अपना काम शुरू कर दिया है तो यहां तो उन्हें टिकना ही पड़ेगा. मम्मी को किट्टी पार्टी से फुरसत नहीं मिलती, बड़ी बहन को बौयफ्रैंड्स से.’’

नंदिता और विनय इस बात पर एकदूसरे का मुंह देखने लगे. पर संजय जो भी था, मेहमान था, पीहू उसे कुर्बान हो जाने वाली नजरों से देखती रही थी. चायनाश्ते के साथ गपें चलती रहीं. संजय के जाने के बाद पीहू ने नंदिता के गले में बांहें डाल दीं, ”मम्मी, कैसा लगा संजय?”

”ठीक है.‘’

”मम्मी, मैं चाहती हूं आप एक बार उस के पेरैंट्स से भी जल्दी मिल लें.‘’

”क्यों?”

”मैं उस से शादी करना चाहती हूं.‘’

अब नंदिता को एक झटका लगा, ”अभी तो सीए फाइनल के एक्जाम्स बाकी हैं, बहुत मेहनत के दिन हैं ये तो. और अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी.”

”ओह्ह, मम्मी, पढ़ाई तो हम साथ रह कर भी कर लेंगे. आप को तो पता ही है मैं अपने कैरियर को ले कर सीरियस हूं.‘’

”सीरियस हो तो बेटा, इस समय सिर्फ पढ़ाई के ही दिन हैं, अभी शादी के लिए रुका जा सकता है.‘’

”पर संजय अभी शादी करना चाहता है, और मैं भी. मम्मी, आप को पता है, लड़कियां उस के कूल ऐटिट्यूड की दीवानी हैं, सब जान देती हैं उस के बेफिक्र नेचर पर.’’

”चलो, अभी तुम कुछ पढ़ लो, फिर बात करते हैं,” किसी तरह अपने गुस्से पर कंट्रोल रखते हुए नंदिता कह कर किचन की तरफ चली गई.

अब तक विनय बिलकुल चुप थे. वे अल्पभाषी थे. अभी मांबेटी के बीच में बोलना उन्हें ठीक नहीं लगा. नंदिता पीहू से बात कर ही रही है, तो ठीक है. दोनों एकसाथ शुरू हो जाएंगे तो बात बिगड़ सकती है. यह सोच कर वे बस अभी तक सुन ही रहे थे. अब जब नंदिता किचन में और पीहू पैर पटकते अपने रूम में चली गई तो वे किचन में गए और कुछ बिना कहे बस अपना हाथ नंदिता के कंधे पर रख दिया. नंदिता इस मौन में छिपे हुए उन के मन के भाव भी समझ गई.

अब पीहू अलग ही मूड में रहती. कभी भी ज़िद करने लगती कि आप लोग संजय के पेरैंट्स से कब मिलोगे, जल्दी मिल कर हमारी शादी की बात करो. संजय भी कभी कभी घर आने लगा था. पीहू उस के आने पर खिलीखिली घूमती. अकेले में विनय ने नंदिता से कहा, ”हमें पीहू की पसंद पर कोई आपत्ति नहीं है, पर पहले पढ़ तो ले. सीए की फाइनल परीक्षा का टाइम है, इसे क्या हो गया है, कैसे पढ़ेगी, ध्यान इतना बंट गया है.”

विनय की चिंता जायज थी. नंदिता ने मन ही मन बहुतकुछ सोचा और एक दिन बहुत हलकेफुलके मूड में पीहू के पास जा कर लेट गई. पीहू भी अच्छे मूड में थी. नंदिता ने बात शुरू की, ”पीहू, हमें संजय पसंद है, पर तुम भी हमारी इकलौती बेटी हो और तुम आज तक अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे कर अपना कैरियर बनाने की बात करती रही हो जो हमें गर्व से भर देता था. संजय को पसंद करना, उस से शादी करने की इच्छा होना, इस में कुछ भी गलत नहीं.” फिर नंदिता ने अपने उसी ख़ास स्टाइल में मजाक करना शुरू किया जिस स्टाइल से मांबेटी अब तक बात करती आई थीं, ”तुम्हारी उम्र में प्यार नहीं होगा तो क्या हमारी उम्र में होगा. मेरी बेटी को प्यार फाइनली हो ही गया किसी से, इस बात को तो मैं एंजौए कर रही हूं पर पीहू, मेरी जान, इस हीरो को भी तो अपने पैरों पर खड़े हो जाने दो. अपने पापा से पैसे मांग मांग कर थोड़े ही तुम्हारे शौक पूरे करेगा और अभी तो उस के पापा ही सैट नहीं हुए,” नंदिता के यह कहने के ढंग पर पीहू को हंसी आ गई. नंदिता ने आगे कहा, ”देखो, हम संजय के पेरैंट्स से जल्दी ही जरूर मिलेंगे. तुम जहां कहोगी, हम तुम्हारी शादी कर देंगे. पर तुम्हें हमारी एक बात माननी पड़ेगी.‘’

पीहू इस बात पर चौकन्नी हुई तो नंदिता हंस दी. पीहू ने पूछा, ”कौन सी बात?”

”अभी सब तरफ से ध्यान हटा कर सीए की तैयारी में लगा दो, बैठ जाओ पढ़ने. फिर जो कहोगी, हो जाएगा. सीए करते ही शादी कर लेना, हम खुश ही होंगे.‘’

पीहू ने इस बात पर सहमति दे दी तो नंदिता ने चैन की सांस ली और विनय को भी यह बातचीत बताई तो उन की भी चिंता कम हुई. पीहू फिर सचमुच रातदिन पढ़ाई में जुट गई. वह हमेशा यही कहती थी कि वह एक ही बार में सीए क्लियर करने के लिए जीतोड़ मेहनत करेगी, बारबार वही चीज नहीं पढ़ती रहेगी. नंदिता ने सुना, पीहू फोन पर कह रही थी

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