ताजमहल को किस ने और क्यों बनाया, यह बात आर्किटैक्टों या हिस्टोरियनों के मतलब की हो सकती है, पर आमजन के लिए यह सौंदर्य का अद्भुत नमूना है. ताजमहल उन सैकड़ों मकबरों में से एक है जिन्हें मुगल व अन्य राजाओं ने अपने मरने के बाद शरीर को रखे जाने के लिए बनवाया था, लेकिन इस इमारत की जो वास्तुकला है वह अनूठी है. प्रवेश करते ही चबूतरे पर खड़े हो कर इमारत को देखने के साथ ही जो अनुभूति होती है वह अनूठी होती है.

अफसोस यह है कि देश की भगवा ब्रिगेड जहां इस को भगवा रंग में रंगने में लगी है, वहीं इमारत के आसपास उगते कारखाने इस का रंग फीका कर रहे हैं. देश का पुरातत्त्व विभाग इस की देखभाल करता है पर यह देखभाल खालिस भारतीय तौर पर बेदिल से अधकचरी की जाती है. सरकारी अमले की ताजमहल में रुचि है ही नहीं, यह इस बात से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि या तो इस की देखभाल करो या फिर इसे गिरा दो.

एक बार एक ब्रिटिश औफिसर ने इसे गिराने का प्रस्ताव रखा भी था ताकि इस ‘खंडहर’ के पत्थर सड़क बनाने में इस्तेमाल किए जा सकें. गनीमत है कि तभी पुरातत्त्व विभाग ने इसे संरक्षित करने का जिम्मा लिया. ताजमहल अब न मकबरा है जिसे किसी मुगल बादशाह ने बनवाया था, न भगवा भाषा में कोई हिंदू मंदिर. यह तो एक भव्य सुंदर इमारत है जिस के हर कोने से शांति और प्रेम टपकता है. यह विशाल होेते हुए भी अपना सा लगता है और जो इस की छावं में होता?है उसे यह बौना नहीं बनाता, यह इस की खासीयत है.

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