जब सुरेश के घर वाले कमलेश की तलाश करतेकरते थक गए तो उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई. रिपोर्ट में सुरेश ने अपने एक रिश्तेदार की संलिप्तता का शक जाहिर किया था.
कमलेश के गायब होने से 15 दिन पूर्व कमलेश की चचेरी बहन भी अचानक गायब हो गई थी, जिस के गायब होने में 2 लोगों के नाम सामने आए थे. ये दोनों लोग सुरेश के दूर के रिश्तेदार थे. लेकिन पुलिस ने उन दोनों पर कोई काररवाई नहीं की थी. इसी आधार पर सुरेश को कमलेश के लापता होने में उन्हीं का हाथ होने की शंका थी.
20 फरवरी, 2019 को सुरेश सिंह के बेटे रूपकिशोर की ओर से थाना बछरायूं, सुल्तानपुर निवासी होमराम, हरफूल, खेमवती, जयपाल और सुरेंद्र के खिलाफ कमलेश के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी. एक युवती के अपहरण की नामजद रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने त्वरित काररवाई कर के इस मामले में होमराम व हरफूल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.
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इस मामले की विवेचना स्वयं आदमपुर थानाप्रभारी अशोक कुमार शर्मा कर रहे थे. उसी विवेचना के दौरान पुलिस को पता चला कि सुरेश का अपने भाइयों के साथ जुतासे की जमीन को ले कर विवाद चल रहा था. जिस का फैसला होने में भाई का दामाद होमराम और हरफूल व उन के रिश्तेदार फैसला नहीं होने दे रहे थे. इसी रंजिश के चलते सुरेश ने दोनों को अपनी लड़की के अपहरण के आरोप में जेल भिजवा दिया था.
यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने इस मामले की फिर से तफ्तीश शुरू की. जांच अधिकारी अशोक कुमार ने इस केस को नया मोड़ देते हुए 28 दिसंबर, 2019 को दूसरे पक्ष के लोगों के दबाव में आ कर सुरेश व उस के बेटे रूपकिशोर और उस के एक रिश्तेदार देवेंद्र को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. तीनों से गहनता के साथ पूछताछ की गई.
सुरेश पहले ही अपनी बेटी के गायब होने से परेशान था, पुलिस की उलटी काररवाई देख उस का मनोबल पूरी तरह से टूट गया. पुलिस ने सुरेश और उस के बेटे के साथ उस के एक रिश्तेदार को इतना टौर्चर किया कि सुरेश का मानसिक संतुलन ऐसा गड़बड़ाया कि उस ने स्वयं को बेटी का हत्यारा मान लिया. पुलिस की काररवाई ने सुरेश व उस के घर वालों को ऐसा दर्द दिया कि उन की रातों की नींद ही उड़ गई थी.
पहले से ही अपनी बेटी के खो जाने का गम मन में पाले सुरेश सिंह की बीवी ने अपने पति और बेटे पर बेटी की मौत का कलंक लगने से क्षुब्ध थी और खानापीना त्याग दिया था.
आखिर पुलिस ने बना दिया रस्सी का सांप
पुलिस की बेरहमी के सामने दुखी और कुंठित सुरेश ने आत्मसमर्पण तो कर दिया, लेकिन पुलिस ने उस के कबूलनामे में जो बात पत्रकारों को बताई, वह निराधार थी. पुलिस विवेचना के अनुसार सुरेश ने अपनी बेटी की हत्या का जुर्म कबूलते हुए बताया था कि उस की लड़की गलत संगत में पड़ गई थी, उस के चालचलन से बदनामी हो रही थी.
काफी समझाने की कोशिश की गई, लेकिन उस ने उस की एक नहीं मानी. उसी से तंग आ कर उस ने अपने बेटे रूपकिशोर और रिश्तेदार देवेंद्र के साथ मिल कर कमलेश की गोली मार कर हत्या कर दी. इस के बाद तीनों ने उस की लाश बोरे में भर कर गंगा नदी में फेंक दी थी.
कमलेश को मौत के घाट उतारने के बाद तीनों अपने घर चले आए. उस के बाद उन्होंने इस केस में अपने भाई रोहताश के दामाद होमराम और उस के परिजनों को फंसाने के लिए षडयंत्र रचा. फिर होमराम और उस के घर वालों सहित 5 लोगों के खिलाफ अपनी बेटी के अपहरण का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया था, ताकि उन के जेल चले जाने के बाद विवाद वाली भूमि उन्हें मिल जाए.
पुलिस ने आरोपी पिता सुरेश की निशानदेही पर उसी के घर के संदूक से कमलेश की हत्या में इस्तेमाल तमंचा, कारतूस और जंगल में छिपाए गए कमलेश के कपड़े बरामद कर लिए. इस केस का खुलासा स्वयं अमरोहा एसपी डा. विपिन ताड़ा व एएसपी ने किया था. 29 दिसंबर, 2019 को पुलिस ने सुरेश सिंह व उस के बेटे रूपकिशोर व टेलर देवेंद्र को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.
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पुलिस ने इस मामले की तहकीकात में लगी पुलिस टीम में शामिल एसएसआई विनोद कुमार त्यागी, एसआई राकेश कुमार, आरिफ मोहम्मद, कांस्टेबल कृष्णवीर सिंह, दीपक कुमार, अनिरुद्ध, महिला कांस्टेबल अपेक्षा तोमर और निधि सिंह की भी इस केस को खोलने में सराहना की थी.
सुरेश सिंह के जेल जाने से पूरे परिवार पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. गांव वालों की नजरों में सुरेश और उस का परिवार बेटी का कातिल बन गया था. गांव के लोग उस के परिवार वालों से मिलते हुए भी कतराने लगे थे. लेकिन उस के घर वालों को उम्मीद थी कि जिस तरह का इलजाम सुरेश सिंह पर लगाया गया है वह निराधार है.
घर वाले जेल में सुरेश से मिलने जाते. उस से हकीकत पूछते तो उस का साफ कहना होता था कि वह इतना पागल नहीं कि अपनी ही बेटी को मौत की नींद सुला सके. सुरेश हर बार यही सफाई देता कि पुलिस ने होमराम और उस के परिवार वालों से मिल कर उसे साजिशन फंसाया है. यह बात जब गांव वालों के सामने आई तो गांव वाले भी उस की जमानत कराने की कोशिश करने लगे.
इसी दौरान घर वालों ने जेल में बंद पिता और बेटे की जमानत के लिए 2 बार आवेदन किया. लेकिन पुलिस के पक्के दावे के कारण दोनों बार आवेदन खारिज हो गया. इस पर घर वालों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण लेते हुए बेटी का शव बरामद नहीं होने को आधार बना कर जमानत पत्र दाखिल किया. लेकिन लौकडाउन के चलते सब कुछ खटाई में पड़ गया.
सुरेश के वकील ने हर तारीख पर तीनों को झूठे मुकदमे में फंसाने की वकालत की, लेकिन पुलिस की ओर से इस मामले को औनर किलिंग का मामला दिखा कर केस को काफी मजबूती से पेश किया गया था, जिस के चलते उन की जमानत में अड़चनें आ रही थीं.
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समय गुजरता गया. सुरेश जेल की सलाखों में पड़ा अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाता रहा. एक बार उस की जमानत की उम्मीद जागी तो देश में लौकडाउन लग गया. देश की सभी अदालतों के दरवाजे बंद हुए तो सुरेश सिंह की दिक्कतें और भी बढ़ गईं. इस मामले को हुए पूरे 17 महीने गुजर गए.