उस दिन तारीख थी 8 दिसंबर. राजस्थान के शहर धौलपुर के कचहरी परिसर में उस दिन आम दिनों से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. सर्दी होने के बावजूद लोग 10 बजे से पहले ही कचहरी पहुंच गए थे. कारण यह था कि उस दिन बहुचर्चित नरेश कुशवाह हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था, जिस में अभियुक्त थे धौलपुर के बसपा विधायक बी.एल. कुशवाह. अदालत के फैसले से जहां एक तरफ विधायक बी.एल. कुशवाह के भविष्य का निर्णय होना था, वहीं दूसरी ओर राजस्थान के कई प्रमुख दलों की निगाहें भी इस फैसले पर टिकी थीं. इस की वजह यह थी कि विधायक को सजा होने पर बसपा की एक सीट कम हो जाती, जिस के लिए उपचुनाव होना तय था, क्योंकि राजस्थान में मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल दिसंबर 2018 तक था.  अदालत ने नरेश कुशवाह हत्याकांड का फैसला सुनाने की तारीख 8 दिसंबर पहले ही तय कर दी थी. सत्र न्यायाधीश सलीम बदर निर्धारित समय पर अदालत पहुंच गए. उन्हें ही इस केस का फैसला सुनाना था. पुलिस गार्ड भी अभियुक्तों बी.एल. कुशवाह और सत्येंद्र सिंह को जेल वैन में ले कर समय पर अदालत आ गए थे.

अपर सत्र न्यायाधीश के कुरसी संभालते ही अदालत में सन्नाटा छा गया. दोनों अभियुक्त तो अदालत में थे ही, मृतक नरेश कुशवाह के घर वाले, राज्य सरकार की ओर से नियुक्त लोक अभियोजक अजय कुमार गुप्ता, विपक्ष के वकील रामकुमार शर्मा और सत्येंद्र सिंह के वकील सुरेंद्र शर्मा भी अदालत में मौजूद थे. अदालत में शांति बनाए रखने का आदेश देने के बाद न्यायाधीश महोदय ने अपना फैसला सुनाना शुरू किया, ‘‘अदालत ने दंड के रूप में दी जाने वाली सजा पर दोनों पक्षों को ध्यान से सुना. अभियुक्तों के वकीलों का तर्क है कि इस से पहले अभियुक्तों ने कोई भी अपराध नहीं किया है. उन के विरुद्ध अपराध भी पहली बार सिद्ध हुआ है, जो जघन्य से जघन्यतम नहीं है. इसलिए उन्हें दिए जाने वाले दंड में नरमी बरती जानी चाहिए. जबकि लोक अभियोजक अजय कुमार गुप्ता ने नरेश कुशवाह हत्याकांड को जघन्य अपराध बताते हुए अधिकतम दंड देने की गुजारिश की है.’’

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