उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का एक कस्बा है धाता. यह कस्बा दूध, घी, खोया तथा दूध से बने उत्पादों के लिए मशहूर है. इसी कस्बे में दयाराम यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस का दूध, घी का अच्छा कारोबार था. उस के परिवार में पत्नी मालती के अलावा 2 बेटियां थीं.

दयाराम अपने नजदीक के गांवों से दूध खरीदता, उस से घी और खोया तैयार कर के उसे खागा, धाता, फतेहपुर आदि के थोक बाजारों में बेच देता था. इस काम में दयाराम की बेटियां और  पत्नी भी उस की मदद करती थीं.

वक्त की बयार चलती रही. रेखा और सुलेखा का बचपन किशोरावस्था के सांचे में ढला और निखरता हुआ जवानी में तब्दील हो गया. बेटियां जवान हुईं तो पिता को उन की शादी की चिंता सताने लगी. दयाराम को अपनी बड़ी बेटी रेखा के लिए लड़के की तलाश में अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी.

दयाराम ने अपने ही जिले के बिंदकी कस्बे के एक संपन्न खोया व्यापारी घनश्याम के बेटे रामबाबू से रेखा का विवाह कर के मुक्ति पा ली. लेकिन दूसरी बेटी सुलेखा बहुत खूबसूरत थी. इसलिए उस के योग्य लड़का तलाशने में काफी भागदौड़ करनी पड़ी.

ऐसे लड़के की तलाश में उन्हें समय तो जरूर ज्यादा लगा, लेकिन उन के मन मुताबिक एक लड़का फतेहपुर जिले के बेरुई गांव में मिल गया. लड़का था रामसिंह यादव का बेटा दिनेश यादव.

दिनेश अपने 3 भाइयों में सब से बड़ा था. उम्र में वह सुलेखा से बड़ा जरूर था, लेकिन संपन्न था. दिनेश कम उम्र से ही पिता के साथ खेतीबाड़ी करने लगा था. इसी वजह से वह अधिक पढ़लिख नहीं पाया था.

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