लेखक- अहमद यार खान
पंजाब के एक बड़े शहर से 5 किलोमीटर दूर एक दोहरा हत्याकांड हुआ था. वह इलाका मेरे थाने के अंदर आता था. एक दिन सुबह अंधेरे ही मुझे जगा कर बताया गया कि एक हत्या की सूचना आई है. मैं तुरंत तैयार हो कर थाने पहुंचा. वहां गांव का नंबरदार और एक आदमी बैठा हुआ था. उन्होंने बताया हमारे गांव की एक औरत शादो की लाश गांव में ईंटों के पुराने भट्ठे के पास पड़ी है.
‘‘लाश किस ने देखी थी,’’ मेरे पूछने पर नंबरदार ने उस आदमी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘यह अपने खेतों पर जा रहा था. इसने लाश पड़ी देखी.’’
मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर तुरंत घटनास्थल के लिए रवाना हो गया. रास्ते में नंबरदार से मृतका के बारे में पूछताछ करता रहा. उस ने बताया कि शादो पास के शहर से ब्याह कर गांव आई थी. शादी के 5 साल बाद उस के एक बेटा हुआ. जब बेटा 2 साल का हुआ तो उस का पति टाइफाइड की बीमारी से मर गया.
वह बहुत सुंदर थी, जवान थी. बहुत से लोगों ने इशारों में उस से शादी करने की बात की. कुछ ने लूट का माल समझ कर हड़पना चाहा, लेकिन उस ने सब को ठुकरा दिया. उस ने कहा कि वह अपने बेटे पर सौतेले बाप का साया नहीं पड़ने देगी.
अब उस का बेटा 18 साल का जवान हो गया है. लेकिन शादो की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई. वह 40 साल की उमर में भी आकर्षक लगती थी. कुछ लोग उस के बारे में कई तरह की बातें करते थे. इन बातों में 2 आदमियों का नाम अकसर लिया जाता था. एक तो जमींदार और दूसरा गांव का ही एक सब्जी का कारोबार करने वाला, जो गांव से शहर सब्जियां सप्लाई करता है.
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कुछ ही देर में हम घटनास्थल पर पहुंच गए. वह ईंटों का एक पुराना भट्ठा था, जो टूटफूट चुका था. उस भट्ठे के बीच में ईंट पकाने की जगह बनी थी. उस व्यक्ति ने वह जगह दिखाई. मैं लाश के पास पहुंचा. वहां एक औरत की लाश करवट के बल पड़ी थी. उस ने फूलदार कमीज पहन रखी थी और पैरों में चमड़े की कीमती जूती थी.
ऐसी जूती गांव की औरतें नहीं पहनती थीं, केवल शहरों में पहनी जाती थी. उस का दुपट्टा उस के गले में ऐसे लिपटा था, जिस से साफ जाहिर था कि उस को गला घोंट कर मारा गया है. मृतका की आंखें बाहर को निकली हुई थीं. दुपट्टे के कारण उस का मुंह खुल गया था और जुबान बाहर निकली हुई थी.
मैं ने लाश की बारीकी से जांच की. शरीर पर कहीं भी कोई चोट या घाव का निशान नहीं था. उस की हत्या दुपट्टे से गला घोंट कर की गई थी. आसपास की जमीन पर 3 जोड़ी जूतों के निशान थे. एक तो जनाना जूती जो मृतका की थी. 2 जोड़ी जूतों के निशान मरदाना था.
मरदाना जूते अलगअलग प्रकार के थे, जो साफ पहचाने जा रहे थे. एक निशान देसी जूती का था जो गांव में पहने जाते हैं और दूसरा शहरी जूते का था जो अकसर गांव में नहीं पहने जाते. ये तीनों निशान गांव की ओर से आए थे. इन में से एक निशान पिछली ओर को जा रहा था, दूसरा गांव की ही ओर से वापस आ रहा था.
मैं ने निशानों के मोल्ड बनवा लिए. नंबरदार गांव से चारपाई ले आया और लाश को गांव में ले आए. शादो की हत्या की खबर पूरे गांव में फैल गई थी. तभी एक जवान लड़का तेजी से वहां आया और लाश से लिपट कर रोने लगा. नंबरदार ने बताया यह शादो का बेटा है. वह भी अपनी मां की तरह आकर्षक था.
नंबरदार ने अपनी बैठक में हमारे बैठने का प्रबंध कर दिया. मैं ने हत्या के बारे में सोचना शुरू किया.
सब से पहले मैं ने नंबरदार से शादो के लड़के सफदर को बुलवाया. वह आ कर मेरे सामने बैठ गया. मैं ने देखा, उस के चेहरे पर अब ऐसा दुख दिखाई नहीं दे रहा था, जैसा मां की हत्या पर होना चाहिए था. अभी थोड़ी देर पहले तो वह दहाड़ें मार कर रो रहा था और अब ऐसा लग रहा था जैसे वह रोया ही न हो. मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से दुश्मनी तो नहीं थी?’’
उस ने कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. हमारी किसी से कोई लड़ाईझगड़ा नहीं है.’’
‘‘जायदाद का कोई झगड़ा?’’ मेरे पूछने पर उस ने कहा, ‘‘हमारे बाप के कोई भाईबहन नहीं थे, इसलिए जायदाद का कोई झगड़ा नहीं है.’’
‘‘देखो सफदर, मुझे हत्यारे को पकड़ना है और मुझे तुम से तुम्हारी मां के बारे में कुछ ऐसे सवाल करने हैं, जो एक बेटा सहन नहीं कर सकता. लेकिन यह मेरी मजबूरी है. मुझे पता लगा है कि तुम्हारे पिता के मरने के बाद तुम्हारी मां से कुछ लोग शादी करना चाहते थे, लेकिन तुम्हारी मां ने सब को जवाब दे दिया था,’’ मैं सफदर के चेहरे पर आतेजाते भावों को गौर से देख रहा था.
कुछ रुक कर मैं ने कहा, ‘‘अब भी 2 आदमी ऐसे हैं जो तुम्हारी मां में रुचि रखते थे. क्या ऐसा नहीं हो सकता, उन में से किसी ने गुस्से में आ कर तुम्हारी मां की हत्या कर दी हो?’’
वह कुछ नहीं बोला. बस खालीखाली नजरों से मेरे मुंह को ताकता रहा. मैं ने फिर पूछा, ‘‘क्या तुम्हारी जानकारी में ऐसा कोई आदमी है?’’
‘‘यह सब बकवास है.’’ कह कर उस ने मुंह दूसरी ओर फेर लिया. वह मेरे से नजरें मिलाना नहीं चाहता था.
मैं ने उस से कहा, ‘‘मेरी ओर देख कर बात करो.’’
उस ने गरदन नीची कर के धीमी आवाज में कहा, ‘‘जैसा आप ने सुना है, वैसा मैं ने भी सुना है. लोग मेरी मां के बारे में उलटीसीधी बातें करते हैं.’’
‘‘कैसी बातें?’’
‘‘यही कि मेरी मां के अब्बास के साथ संबंध हैं. सब बकवास करते हैं.’’
अब्बास के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि वह मंडी में सब्जी फलों का काम करता है. मुझे याद आया, यह वही सब्जी वाला है जिस के बारे में नंबरदार ने बताया था. लेकिन अब्बास शादो की हत्या क्यों करेगा. एक सवाल और था, शादो ईंटों के भट्ठे पर अगर अब्बास से मिलने गई थी तो फिर दूसरा आदमी कौन था. शादो की हत्या अब्बास या उस दूसरे आदमी में से किसी ने की होगी, क्योंकि वहां 2 आदमियों के पैरों के निशान मिले थे.
मैं ने सफदर से 2-3 सवाल पूछने के बाद उसे भेज दिया और थाने आ गया. लाश को मैं ने पहले ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था.
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मैं ने अपने मुखबिरों को खबर लाने के लिए लगा दिया, जिन में 2 औरतें थीं जो अंदर तक का भेद निकाल लाती थीं. मुझे पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. साथ ही 2 आदमियों से तफ्तीश भी करनी थी. एक तो अब्बास और दूसरा जमींदार सलामत.
मैं ने अब्बास और सलामत को लाने के लिए एक कांस्टेबल को भेज दिया. लेकिन उस के आने से पहले ही 2 मुखबिर आ गए और उन्होंने जो रिपोर्ट दी, उस में अब्बास और सलामत पर शक किया गया था.
एक मुखबिर ने बताया शुरू में तो शादो अपने शादी न करने के निर्णय पर डटी रही और अपना पूरा ध्यान बेटे के पालनपोषण पर लगाती रही. इस बीच उस के चाहने वाले एकएक कर के खिसकते चले गए. लेकिन अब्बास और सलामत ने उम्मीद नहीं छोड़ी. वे शादो की सहायता के बहाने उस से संबंध बनाने की कोशिश में लगे रहे.
इन्हीं कोशिशों के दौरान अब्बास का शादो के घर आनाजाना शुरू हो गया. फिर वे बाहर भी एक साथ देखे जाने लगे. इस पर लोगों ने बातें बनानी शुरू कर दीं तो अब्बास ने यह कह कर उन्हें चुप कर दिया कि उस का शादो के साथ भाईबहन का संबंध है.
दूसरी ओर सलामत ने शादो से निराश हो कर अब्बास को धमकी देनी शुरू कर दी कि वह शादो से दूर रहे वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा. अब्बास ने भी उसी लहजे में जवाब दिया कि हमारे बीच में टांग अड़ाई तो टांगें तोड़ दूंगा.
मुखबिर ने यह भी बताया कि एक बार दोनों की तूतूमैंमैं भी हुई थी. तब सलामत ने अब्बास को धमकी दी थी कि वह और शादो गंदे कामों से दूर रहें, नहीं तो उन्हें रंगेहाथों पकड़ कर उन की हत्या कर देगा. यह जानकारी देने के बाद दोनों मुखबिर चले गए.
एक कांस्टेबल सलामत को ले कर आ गया था. दूसरा अब्बास को लेने गया हुआ था. मैं ने उस से कह दिया था कि अगर वह अब्बास को ले कर आ जाए तो उस को अलग कमरे में बैठा दे. उसे यह पता नहीं चलना चाहिए कि सलामत यहां आया हुआ है.
सलामत मेरे सामने था. वह गठे शरीर का स्वस्थ जवान था. बस एक ही कमी थी कि उस के चेहरे पर चेचक के बड़ेबड़े निशान थे. शायद इसी वजह से शादो ने उस की बजाय अब्बास से दोस्ती की होगी. मैं ने उस से इधरउधर की बातें करने के बाद शादो का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘शादो के साथ बुरा हुआ.’’
वह बोला, ‘‘बुरे काम का अंत भी बुरा ही होता है.’’
मैं ने अनजान बनते हुए पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’
उस ने कहा, ‘‘पूरे गांव को पता है, अब्बास और शादो गंदा काम करते थे.’’
‘‘सचसच बताओ, तुम्हारी अब्बास से क्या दुश्मनी है?’’ मैं ने उसे सोचने का मौका दिए बगैर सीधा सवाल किया तो उस ने यकीन से कहा, ‘‘मेरी उस से कोई दुमश्नी नहीं है.’’
‘‘फिर तुम ने उसे धमकी क्यों दी थी?’’
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‘‘कौन सी धमकी सरकार?’’
‘‘यही कि गंदे काम बंद करो नहीं तो दोनों को रंगेहाथों पकड़ कर दोनों की हत्या कर दूंगा. यही धमकी दी थी न तुम ने?’’