पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दी. मृतका के ससुर चंद्रभान गोदारा ने बहू की हत्या के लिए अपने बेटे सुनील गोदारा और भाजपा नेता बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु गुर्जर के खिलाफ लिखित शिकायत थानेदार संजय कुमार को दी.
उन की तहरीर पर पुलिस ने तीनों आरोपियों सुनील गोदारा, बंटी गुर्जर और अनु गुर्जर के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर के उन की तलाश शुरू कर दी. ये बात 8 फरवरी, 2020 की है.
अगले दिन आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने सड़क जाम कर दी थी. वह पुलिस के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. मामला तूल पकड़ने लगा था. पुलिस बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु को गिरफ्तार करने उस के घर कादरपुर गई तो दोनों पतिपत्नी मौके से फरार थे. आरोपियों को पकड़ना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी.
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जांचपड़ताल में पुलिस को इतना पता चला था कि सुनील गोदारा और उस की बीवी मुनेश गोदारा के बीच रिश्ते काफी समय से खराब चल रहे थे. पत्नी मुनेश के भाजपा नेता बंटी गुर्जर से मधुर संबंध थे. यह बात बंटी गुर्जर की बीवी अनु को भी पता थी. लेकिन पति सुनील ये बात पसंद नहीं करता था. इसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच आए दिन विवाद होता रहता था. ये बात किसी से छिपी नहीं थी.
पुलिस यह मान कर चल रही थी कि मुनेश की हत्या प्रेम संबंधों की वजह से हुई है. मुनेश की कालडिटेल्स में बंटी के साथ लंबीलंबी बातचीत करना पाया गया था. यही हत्या की मूल वजह मान कर पुलिस ने अपनी जांच की दिशा आगे बढ़ाई.
आरोपी सुनील गोदारा को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस उस के संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन वह पुलिस की पकड़ से बहुत दूर था. ऐसा नहीं था कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई थी. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल भी बिछा रखा था. सुनील की खोजबीन में मुखबिर जुट गए थे.
बात 15 फरवरी, 2020 की है. दोपहर का वक्त था. थानेदार संजय कुमार थाने में मौजूद थे. तभी एक चौंका देने वाली खबर उन के खास मुखबिर ने दी. उस ने बताया कि मुनेश का हत्यारा सुनील गोदारा हयातपुर चौक पर घूमता हुआ देखा गया है. जल्दी करें तो पकड़ा जा सकता है. फिर क्या था? संजय कुमार मुखबिर की सूचना पर उस के द्वारा बताई गई जगह पर आवश्यक पुलिस बल के साथ पहुंच गए.
उन्होंने चौक को चारों ओर से घेर लिया ताकि आरोपी मौके से भाग न सके. सभी पुलिस वाले सादा पोशाक में थे, ताकि आरोपी उन्हें आसानी से पहचान न सके और हुआ भी यही. सुनील गोदारा गिरफ्तार कर लिया गया. उसे पुलिस थाना सेक्टर-10 ए पूछताछ के लिए ले कर आई.
हत्यारे पति सुनील गोदारा के गिरफ्तार होने की सूचना थानेदार संजय कुमार ने पुलिस अधिकारियों को दे दी. तब एसीपी (सिटी) राजिंदर सिंह सूचना पा कर थाना सेक्टर- 10ए पूछताछ के लिए पहुंच चुके थे. उन्होंने सुनील से पूछताछ करनी शुरू की तो उस ने बिना हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर किया कि उसी ने बीवी की हत्या की थी.
हत्या की वजह उस ने बीवी का नैतिक पतन बताई थी. उस ने उन्हें बताया कि उस के लाख मना करने के बाद भी वह अपने आशिक से नैनमटक्का करने से बाज नहीं आ रही थी. जिस के कारण परिवार टूट रहा था, इस के बाद उस ने घटना की पूरी कहानी पुलिस को बता दी.
पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया. वहां से जेल भेज दिया गया. सुनील के अलावा दोनों आरोपी बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु अभी भी पुलिस की पकड़ से दूर थे. मुनेश गोदारा हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—
35 वर्षीय मुनेश गोदारा मूल रूप से हरियाणा की रहने वाली थी. उस के घर में मांबाप और 4 भाई बहनें थीं. सब से बड़ा भाई सुनील कुमार जाखड़, उस के बाद खुद मुनेश, उस से छोटा विमलेश और छोटी बहन मनीषा थी. बचपन से ही मुनेश कुशाग्र और प्रखर बुद्धि की थी. पढ़नेलिखने से ले कर बातचीत के कौशल तक सब कुछ अलग था. जिस काम को करने की एक बार वह ठान लेती थी अपनी हिम्मत और साहस के बदौलत उसे कर के ही दम लेती थी.
समय के साथ जवान हुई मुनेश की शादी साल 2001 में चरखी दादरी (हरियाणा) के चंपापुरी में रहने वाले पूर्व फौजी चंद्रभान गोदारा के इकलौते बेटे सुनील गोदारा से हुई थी.
चंद्रभान की इलाके में बड़ी पहचान थी. नियम और उसूल के पक्के चंद्रभान ने सालों तक आर्मी में नौकरी करते हुए शराब को पीना तो दूर की बात, कभी हाथ तक नहीं लगाया था. न ही ऐसे लोगों को वह पसंद करते थे.
वह इकलौते बेटे सुनील को भी अपनी तरह देखना चाहते थे. उन्होंने बेटे को अच्छी तालीम दिलाई और सीख भी दी कि जीवन में आगे बढ़ना है तो कभी शराब मत पीना. अपने को उस का गुलाम कभी मत बनने देना. यदि एक शराब ने अपना गुलाम बना लिया तो जीवन भर उस की गुलामी करते रहोगे. पिता की नसीहत को गांठ बांध कर सुनील ने अपने दिमाग में बैठा ली थी.
तब सुनील आर्मी में जाने की तैयारी कर रहा था. उसी दौरान बहू के रूप में मुनेश गोदारा परिवार में साक्षात लक्ष्मी बन कर आई थी. बीवी के आने के बाद सुनील के बंद भाग्य के दरवाजे खुल गए थे. उस की आर्मी की नौकरी पक्की हो गई थी. ससुर चंद्रभान बहू मुनेश को साक्षात लक्ष्मी मानते थे. उस के शुभ कदमों से घर में खुशियों ने अपने पांव पसार दिए थे.
इसीलिए चंद्रभान उसे बहू कम बेटी ज्यादा मानते थे. रही बात सुनील की, तो वह परिवार से मिलने बीचबीच में घर आता रहता था. इस बीच मुनेश ने 2 बेटियों प्रीति और मोंटी को जन्म दिया. बाद के दिनों में चंद्रभान गोदारा रिटायर हो कर घर आ गए.
आर्मी से रिटायर चंद्रभान गोदारा का घरसंसार बड़े हंसीखुशी से चल रहा था. पैसों की घर में कोई कमी नहीं थी. बेटा कमा रहा था, ससुर की अच्छीखासी पेंशन थी और क्या चाहिए था. प्रीति और मोंटी बड़ी हो रही थीं. बेटियां बड़ी और समझदार हुईं तो मुनेश गृहस्थ आश्रम से बाहर निकल कर समाज के लिए कुछ करने के लिए लालायित होने लगी थी.
मुनेश की सहेली अनु गुर्जर भारतीय जनता पार्टी में काफी दिनों से जुड़ी हुई थी. उस के पति बंटी गुर्जर भाजपा के पुराने सिपाही थे. सहेली को देख कर ही मुनेश के मन में खयाल आया था कि वह भी राजनीति में कदम रखे और गरीबबेसहारों के लिए एक मजबूत कदम बने. उन की बुलंद आवाज बने.
लेकिन यह मुनेश के लिए आसान नहीं था. वह यही सोच रही थी कि पता नहीं पति इस के लिए तैयार होंगे या नहीं. उन का साथ मिलेगा या नहीं. पति की मरजी के बिना राजनीति में कदम रखा तो घर में तूफान खड़ा हो सकता है. क्या करे? किस से सलाह मशविरा ले? उसी समय उस के मन में एक विचार कौंधा और उस की आंखों के सामने ससुर का चेहरा तैरने लगा. उसे विश्वास था कि ससुरजी उस की बातों को कभी नहीं टाल सकते. वह जरूर उस की भावनाओं को समझेंगे.
एक दिन समय और अवसर देख कर मुनेश ने ससुरजी के सामने अपने मन के भाव प्रकट कर दिए. उस ने कहा कि उस की इच्छा है वह राजनीति में जाना चाहती है. इस के लिए आप की इजाजत और आशीर्वाद दोनों की जरूरत है. अगर आप इजाजत दें तो मैं अपने कदम आगे बढ़ाऊं.
ससुर चंद्रभान बहू की बात सुन कर असमंजस में पड़ गए. उन्होंने बहू की बातों पर विचार किया. काफी सोचने और समझने के बाद उन्होंने बहू को राजनीति में जाने की हरी झंडी दिखा दी. ससुर की ओर से मिली हरी झंडी से मुनेश के हौसले बुलंद हुए और उस ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. ये सब उस की सहेली अनु और उस के पति बंटी गुर्जर के द्वारा संभव हुआ था. इसलिए वह दोनों की अहसानमंद थी. ये बात साल 2013 की है.
यहीं से मुनेश गोदारा के बुरे दिन शुरू हो गए. जिस के चलते उस के जीवन में उठापटक होने लगी. मुनेश ने कभी सोचा नहीं था कि जिस राजनीति की चकाचौंध में उस के पांव बढ़ते जा रहे हैं, इसी राजनीति के कारण एक दिन उस का हंसताखेलता घर तिनकातिनका बिखर जाएगा और उस की सांसों की डोर उस के जिस्म से जुदा हो जाएगी.
अपनी मेहनत और लगन की बदौलत मुनेश गोदारा ने कम समय में राजनीति के महारथियों के बीच अच्छीखासी जगह बना ली थी. जल्द ही उसे चरखी दादरी की जिलाध्यक्ष बना दिया गया. ये सब बंटी गुर्जर की मेहरबानियों की बदौलत संभव हुआ था. बंटी गुर्जर पार्टी का बड़ा नेता माना जाता था. पार्टी में उस की ऊंची पकड़ थी. बड़ेबड़े नेताओं से अच्छे संबंध थे.