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सौजन्य- सत्यकथा

मध्य प्रदेश के जबलपुर का उपनगरीय इलाका रांझी रक्षा मंत्रालय की फैक्ट्रियों के लिए जाना जाता है. यहां पर गन कैरेज, आर्डिनैंस, व्हीकल और ग्रे आयरन फाउंडी में सेना के उपयोग में आने वाले गोलाबारूद, टैंक और भारी वाहन बनाए जाते हैं.

ग्रे आयरन फाउंडी के गेट नंबर 2 के पास ही रांझी के रिछाई अखाड़ा मोहल्ले में 40 साल का सोनू ठाकुर अपनी 28 साल की पत्नी नीतू और 2 बेटियों के साथ रहता था. मूलरूप से दामोह जिले के हिनौता गांव का रहने वाला सोनू परिवार में 4 भाईबहनों में सब से बड़ा था.

शादी के बाद खर्चे बढ़े तो सोनू गांव में परेशान रहने लगा. वैसे भी गांव में उस का छोटा सा घर था, जिस में उस का पूरा परिवार रहता था. जहां पतिपत्नी एकदूसरे से ढंग से बात भी नहीं कर पाते थे. रात को दोनों एक छोटी सी कोठरी में सोते थे, जहां मन की बातें नहीं हो पाती थी. यह नीतू को बहुत अखरता था.

रात को जब घर के सभी लोग सो जाते, तब उन्हें एकदूसरे का साथ मिलता था. नीतू उलाहना दे कर अकसर सोनू से कहती थी कि वह कहीं अलग घर ले कर रहे. तब सोनू उसे समझा देता कि हमारी नईनई शादी हुई है. अभी परिवार से अलग रहेंगे तो घर वालों को अच्छा नहीं लगेगा. कुछ महीनों के बाद वह अपना कामधंधा जमा कर अलग  रहने लगेगा.

जब शादी को साल भर का समय बीत गया तो एक रात नीतू ने सोनू को सलाह देते हुए कहा, ‘‘क्यों न हम लोग गांव से दूर शहर जा कर कुछ कामधंधा कर लें.’’

सोनू को पत्नी की सलाह पसंद आई. जबलपुर शहर में हिनौता गांव के कुछ लड़के काम करते थे. सोनू ने उन के घर वालों से मोबाइल नंबर ले कर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि उसे जबलपुर में आसानी से काम मिल जाएगा.

शादी के साल भर बाद सोनू बीवी के साथ काम की तलाश में जबलपुर आ गया था. दोनों रांझी के अखाड़ा मोहल्ले में वे किराए का कमरा ले कर रहने लगे. नीतू सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी और सोनू को बड़ा फुहारा में घमंडी चौक पर कपड़े की एक दुकान में सेल्समैन का काम मिल गया.

देखतेदेखते सोनू को जबलपुर आए करीब 5 साल हो गए थे. पतिपत्नी ने धीरेधीरे तिनकातिनका जोड़ कर एक छोटा सा घर बना लिया था. इन सालों में नीतू 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. सोनू और नीतू की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी, मगर एक रौंग नंबर की काल ने उन के जीवन में जहर घोल दिया.

2020 के जनवरी महीने की बात है. दोपहर का वक्त था. घर के कामकाज से फुरसत पा कर नीतू मोबाइल फोन में यूट्यूब पर वीडियो देख रही थी. तभी मोबाइल की रिंग बजी. नीतू ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘हैलो, मैं राजू बोल रहा हूं.’’

‘‘कौन राजू? मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘जी, मैं गाजीपुर से राजू राजभर बोल रहा हूं. कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता हूं. क्या मेरी बात निशा वर्मा से हो रही है?’’

‘‘जी नहीं, आप ने गलत नंबर लगाया है.’’ नीतू ने जबाब दिया.

‘‘जी सौरी, मुझे निशा वर्मा के घर प्रिंटर भिजवाना था. गलती से आप का नंबर लग गया. वैसे आप कहां से बोल रही हैं?’’ राजू ने विनम्रता से पूछा.

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‘‘मैं तो जबलपुर से बोल रही हूं.’’

‘‘आप की आवाज बड़ी प्यारी है. क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ वह बोला.

‘‘मेरा नाम नीतू ठाकुर है.’’ नीतू ने कहा.

‘‘नीतूजी, आप से बात कर के बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’ कह कर नीतू ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. नीतू को राजू का इस तरह से बात करना अच्छा लगा. इस के बाद राजू नीतू के मोबाइल पर काल करने लगा. रौंग नंबर से शुरू हुआ बातचीत का सिललिला धीरेधीरे दोस्ती में बदल गया. अब नीतू भी हर दिन राजू के फोन आने का इंतजार करने लगी. एकदूसरे को वीडियो काल कर के दोनों की बातचीत होने लगी.

तीखे नैननक्श वाली नीतू ने हायर सेकेंडरी तक पढ़ाई की थी. उसे घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने का बड़ा शौक था. उस ने शादी के पहले जो रंगीन ख्वाब देखे थे, वे सोनू से शादी कर के बिखर चुके थे.

थोड़ी सी पगार में घरगृहस्थी चलाने वाला उस का पति सोनू दिन भर काम में लगा रहता और नीतू घर की चारदीवारी में कैद घर के काम में लगी रहती.

पति के काम पर जाने के बाद फुरसत मिलती तो वह मोबाइल पर सोशल मीडिया साइट पर व्यस्त हो जाती.

मोबाइल फोन के जरिए राजू और नीतू का संबंध जब परवान चढ़ने लगा तो दोनों एकदूसरे से मिलने को बेताब रहने लगे. नीतू राजू के प्रेम में इस कदर खो चुकी थी कि बारबार राजू से जबलपुर आ कर मिलने की बात करती.

आग राजू के सीने में भी धधक रही थी. राजू नीतू को भरोसा दिलाता कि वह जल्द ही जबलपुर आ कर उस से मिलेगा.

इसी बीच मार्च महीने में कोरोना महामारी के कारण 24 मार्च को लौकडाउन लग गया. लौकडाउन में भी नीतू और राजू की मोबाइल पर बातें होती रहीं. नीतू का पति सोनू घर के बाहर गली में जब भी टहलने जाता, नीतू राजू को काल कर लेती. जैसेजैसे लौकडाउन में ढील मिलने लगी, राजू जबलपुर जाने की प्लानिंग करने लगा.

राजू जिस कंपनी के लिए कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता था, उस का कारोबार जबलपुर शहर में भी था. किसी तरह कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से बात कर के उस ने जबलपुर की कंपनी में काम करने का जुगाड़ कर लिया. कंपनी की तरफ से उसे जबलपुर में काम करने का मौका मिला तो उस के मन की मुराद पूरी हो गई.

इसी हसरत में 25 साल का कुंवारा राजू नीतू की चाहत में सितंबर 2020 में अपने गांव जफरपुर, गाजीपुर से जबलपुर आ गया .

जिस दिन राजू जबलपुर आ कर नीतू से मिला तो नीतू की खुशी का ठिकाना न रहा. राजू ने नीतू को करीब से देखा तो देखता ही रह गया.

‘‘वाकई तुम बहुत खूबसूरत हो,’’ राजू ने नीतू से कहा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘मेरी तारीफ बाद में करना. मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

जब नीतू राजू के लिए चाय बनाने किचन में गई, राजू अपने आप को रोक नहीं सका. वह भी किचन में पहुंच गया और नीतू को अपनी बांहों में भर लिया. वह उस के गालों को चूमते हुए बोला, ‘‘तुम्हें पाने को कितना इंतजार करना पड़ा.’’

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नीतू ने अपने आप को छुड़ाते हुए नखरे दिखा कर कहा, ‘‘थोड़ा सब्र और करो, धीरज का फल मीठा होता है.’’

नीतू राजू को चाय का कप पकड़ा कर बाहर आ गई. उस ने बाहर आ कर देखा उस की दोनों बेटियां आंगन में खेल में मस्त थीं.

इसी मौके का फायदा उठा कर नीतू ने राजू के पास जा कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और राजू के सीने से लग गई. राजू ने नीतू की कमर में हाथ डाला और उसे बिस्तर पर ले गया. 8 महीने से मोबाइल पर चल रहे उन के संबंध के हसीन ख्वाब पूरे हो गए. उस दिन दोनों ने दिल खोल कर अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

राजू ने जब उसे बताया कि उस ने अपना ट्रांसफर जबलपुर करा लिया है, इसलिए अब यहीं रहेगा. नीतू बड़ी खुश हुई. इतना ही नहीं, उस ने राजू को अपना रिश्तेदार बताते हुए उसे अपने मोहल्ले में भाड़े पर खाली कमरा दिला दिया. उस के खानेपीने की जिम्मेदारी वह खुद उठाने लगी.

नीतू ने राजू से मिलने का एक तरीका खोज लिया था. उस ने पति सोनू से बात कर उसे इस बात के लिए राजी कर लिया कि ढाई हजार रुपए महीने में राजू को दोनों टाइम खाना बना कर देगी. सोनू ने यह सोच कर हामी भर दी कि थोड़ी सी मेहनत से बैठे ठाले ढाई हजार रुपए महीने की आमदनी बढ़ जाएगी, जो उस की बेटियों की पढ़ाईलिखाई के काम आएगी.

अगले भाग में पढ़ें-  जांच टीम को सोनू के घर में भी खून के धब्बे मिले

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