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सौजन्य- सत्यकथा

‘‘मगर क्यों?’’ यश ने सिर्फ इतना ही पूछा कि लैपटौप संभालने वाले पुलिसकर्मी ने कहा, ‘‘यहां छापेमारी हुई है. तुम्हारे काल सेंटर के खिलाफ कंप्लेन है. जो कुछ भी कहना है, वह थाने में कहना. चलो, लाओ तुम्हारा अपना मोबाइल फोन कहां है? वह भी दो.’’

‘‘जी, वो तो आप ने ले रखा है.’’ यश बोला.

‘‘…और कंपनी का मोबाइल?’’ पुलिसकर्मी ने सवाल किया.

‘‘जी, वह चार्ज हो रहा है.’’ दाईं ओर चार्जर पौइंट की ओर इशारा करते हुए यश बोला. पुलिस ने उस मोबाइल को भी अपने कब्जे में ले लिया.

‘‘कंपनी का कोई दूसरा डिवाइस या फाइल वगैरह भी है?…उसे भी दो.’’

‘‘कोई और डिवाइस नहीं है सर, सिर्फ एक फाइल है,’’ बैड के नीचे से नीले रंग की एक फाइल निकालते हुए यश बोला.

थोड़ी देर में पुलिस यश को रिसौर्ट के रिसैप्शन पर ले आई. वहां उस के कुछ और साथियों को पुलिस ने पकड़ रखा था. उन्हीं में रवि भी था. वहीं उसे मालूम हुआ कि दोनों रिसौर्ट में पुलिस ने छापेमारी की है और कुल 18 लोगों को पकड़ लिया है.

छापेमारी कथित काल सेंटर द्वारा फरजीवाड़ा करने की शिकायत पर की गई थी. पुलिस हिरासत में लिए गए युवाओं में एक युवती भी थी. सभी के लैपटौप, मोबाइल और हेडफोन के अलावा माडम, राउटर एवं दूसरे उपकरण भी जब्त कर लिए गए थे.

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दरअसल, अजमेर जिले में स्थित पुष्कर की पुलिस को जयपुर हेडक्वार्टर से सूचना मिली थी कि वहां 2 रिसौर्ट में फरजी काल सेंटर चलाया जा रहा है. सेंटर के कर्मचारी वर्क फ्रौम होम के तहत जौब कर रहे हैं.

वे विदेशियों से औनलाइन फ्रौड के धंधे में लिप्त हैं. काल सेंटर के कर्मचारी उन्हें अमेजन का प्रतिनिधि बताते हैं. कुछ कर्मचारी खुद को इनकम टैक्स का अधिकारी भी बताते हैं.

इसी शिकायत के आधार पर पुलिस ने दोनों रिसौर्ट पर दबिश दी थी और सेंटर के कर्मचारियों को पकड़ लिया था. उन की ठगी का शिकार होने वाले अमेरिका और आस्ट्रेलिया के लोग थे.

पुलिस सभी को पुष्कर थाने ले आई. उन से पूछताछ से मालूम हुआ कि सभी 10वीं-12वीं तक ही पढ़े हैं, लेकिन वे फर्राटेदार अंगरेजी बोलते हैं. कुछ तो अमेरिकन और ब्रिटिश अंगरेजी दोनों बोलने में माहिर थे.

हैरानी की बात यह थी उन में से कोई भी स्थानीय नहीं था. यहां तक कि जयपुर का भी नहीं था. सभी दिल्ली, गजियाबाद, मुंबई, कोटा, पटना, नागौर और गुजरात के आनंद के थे. उन्हें सेंटर में कुछ माह पहले ही जौब मिली थी. सभी लंबे समय से बेरोजगार थे.

फरजीवाड़े के लिए सेंटर के संचालक ने विदेशी साइटों पर जा कर उन का डेटा खरीदा था. फिर काल या मैसेजिंग के जरिए उन से संपर्क किया और विविध औफर के साथ ठगी को अंजाम दिया. इस काम के लिए नियुक्त किए गए युवाओं को 25 हजार रुपए मंथली सैलरी पर रखा गया था. साथ ही उन्हें इंसेंटिव भी मिलता था.

इस तरह से एक कर्मचारी को 70-80 हजार रुपए तक मिल जाते थे. कुछ लोग एक महीने में एक लाख रुपए तक इंसेंटिव पा चुके थे. यह उन के द्वारा क्लाइंट के संतुष्ट होने और उन के काम से ठगी गई रकम पर निर्भर करता था.

सभी के नाम दोनों रिसौर्ट के अलगअलग कमरे बुक थे. एक तरह से उन का वही औफिस और रहने का ठिकाना था. कमरे में ही खानेपीने की तमाम सुविधाएं उपलब्ध करवा दी गई थीं. सेंटर के ये सारे इंतजाम पिछले जून माह से किए गए थे.

अगस्त के महीने में जयपुर की पुलिस को उस सेंटर की संदिग्ध गतिविधियों की सूचना मिली थी. उस के बाद से ही जयपुर पुलिस ने अजमेर और पुष्कर की पुलिस को अलर्ट कर दिया था. इस की तहकीकात की जिम्मेदारी एएसपी (ग्रामीण) सुमित मेहरड़ा, आईपीएस को सौंपी गई थी.

उस के बाद ही मौका देख कर पुलिस ने 7 अक्तूबर को दोनों रिसौर्ट पर अचानक रेड डाली, जिस में सेंटर के कर्मचारी पकड़े गए और उन से ठगी के कई दस्तावेज भी हाथ लगे.

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उन दस्तावेजों और लैपटौप से मिली जानकारियों के आधार पर ठगी का पूरा मामला सामने आ गया. ठगी के तरीके का खुलासा हो गया. कुछ बातें जौब करने वाले सेंटर के कर्मचारियों ने बताईं. हालांकि कर्मचारियों की आईडेंटिटी में किसी भी तरह की हेराफेरी या फरजीवाड़ा नहीं किया गया था.

पूछताछ में पुलिस को मालूम हुआ कि वे ठगी को किस तरह से अंजाम देते थे. दूर बैठे विदेशियों को फोन पर इस तरह की बातें करते थे, जिस से वे सेंटर द्वारा बुने गए ठगी के जाल में फंस जाते थे. हालंकि इस की पूरी जानकारी सेंटर के उन युवाओं को भी नहीं होती थी कि उन के काम से कोई ठगा जा रहा है.

उन के सभी क्लाइंट आस्ट्रेलिया और अमेरिका के थे. उन्हें वे इनकम टैक्स औफिसर की हैसियत से फोन करते थे या फिर मैसेज भेजते थे. वे कहते थे कि उन के 4-5 साल की औडिट रिपोर्ट में कई खामियां हैं, उसे वे तुरंत सही करवा लें, वरना उन्हें भारी जुरमाना भरना पड़ सकता है.

इसी के साथ उन्हें एक राशि बताई जाती थी और कहा जाता था, वह उन की पिछली गलतियों के लिए निर्धारित किया गया फाइन है. उसे भर देने पर वित्तीय कानून के मुताबिक भविष्य में किसी भी तरह के मुकदमे की काररवाई से बचे रहेंगे.

उस के बाद विदेश में बैठा वह व्यक्ति सेंटर के खाते में पैसा ट्रांसफर कर देता था, जो लाखों में होता था.

अमेरिका के लिए ठगी का तरीका अलग तरह का था. वहां के क्लाइंट के लिए सेंटर के कर्मचारी खुद को अमेजन कंपनी के रिप्रजेंटेटिव कहते थे.

इस के लिए सेंटर के संचालक द्वारा पहले से कर्मचारियों को अलगअलग एग्जीक्यूटिव के रूप में पोस्ट बंटे होते थे. उन से कहा जाता था कि आप ने अमेजन कंपनी का जो सामान खरीदा है, उस बारे वे कुछ विशेष जानकारी बताना चाहते हैं.

उन के द्वारा मना करने पर कहा जाता था कि उन का सिस्टम पहले सामान की खरीद के बारे में दिखा रहा है. इस तरह से उन्हें बातोंबातों किसी गिफ्ट या पहले के किसी औफर को ठुकराने या लौटाने का जिक्र कर उलझा देते थे.

कुछ समय में ही क्लाइंट उस के झांसे में आ जाता था. फिर अमेजन अकाउंट हैक होने की बात कर उस का आईपी एड्रेस आदि ले लेते थे. यहां तक कि एनीडेस्क का इस्तेमाल कर सीधे उस के कंप्यूटर, लैपटौप या मोबाइल में घुस जाते थे.

इस घुसपैठ के बाद क्लाइंट को हैकिंग का भय दिखाया जाता था और छुटकारा पाने के एवज में एक रकम मांगी जाती थी. बदले में उन्हें अमेजन के कूपन का औफर दिया जाता था और उन का यूनिक नंबर ले कर डालर में मोटी राशि सेंटर के अकाउंट में ट्रांसफर करवा ली जाती थी.

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