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सौजन्य- सत्यकथा

यश दिल्ली की झिलमिल कालोनी में रहता था. इस साल मार्च में दोबारा हुए लौकडाउन से वह काफी टूट चुका था. नौकरी मिलने की दूरदूर तक उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. बेरोजगारी से बुरी तरह परेशान चल रहा था. वैसे उस के पास शेफ का डिप्लोमा था, लेकिन रेस्टोरेंट का काम बंद होने के चलते उसे कहीं काम नहीं मिल पा रहा था.

क्या करे, क्या नहीं करे, इसी उधेड़बुन में वह खोया हुआ अंधेरा होने पर भी पास के पार्क में चिंतित बैठा था. तभी जेब में रखे फोन की घंटी बजी. यश कुछ सेकेंड के लिए रुका. सोचा, किसी कर्ज देने वाले का फोन होगा.

कुछ देर घंटी बजने के बाद उस ने राहत की सांस ली और जेब से फोन निकाल कर देखा. फोन पर आई काल को ले कर उस की जो आशंका थी, उस से उसे राहत मिली. कारण काल किसी कर्ज देने वाले की नहीं, बल्कि उस के एक करीबी दोस्त रवि की थी. रवि को हाल में ही जयपुर में नौकरी मिली थी. यश ने उसे तुरंत कालबैक किया.

‘‘हैलो रवि! कैसे हो भाई?’’

‘‘मैं तो मजे में हूं, तू बता, कहीं नौकरी मिली या नहीं?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क्या बताऊं अपने बारे में? पहले जैसी ही हालत है. रेस्टोरेंट खुले तब न कहीं काम मिले.’’ यश निराशाभरी आवाज में बोला.

‘‘तू मेरे साथ काम करेगा?’’ रवि ने पूछा.

‘‘यह भी पूछने की बात है?’’ यश ने तपाक से कहा.

‘‘लेकिन नौकरी काल सेंटर की है.’’ रवि ने बताया.

‘‘काल सेंटर की! मैं तो उस बारे में कुछ जानता ही नहीं. तो फिर कैसे?’’ यश ने सवाल किया.

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