सौजन्य- मनोहर कहानियां
18अक्तूबर, 2021 को सुबह से ही पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत के बाहर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. अदालत के आसपास धारा 144 लागू कर दी गई थी. हत्या के जिस मामले में विशेष सीबीआई कोर्ट के जज सुशील कुमार गर्ग सजा का ऐलान करने वाले थे, उस में 5 आरोपी उन के सामने कठघरे में खडे़ थे. जबकि एक आरोपी पिछले कई घंटों से रोहतक की सुनारिया जेल से वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए जुड़ा था. इसी शख्स के कारण सुरक्षा के तमाम इंतजाम किए गए थे.
क्योंकि प्रशासन को आशंका थी कि उस के खिलाफ सजा का ऐलान होने से कहीं उस के भक्त भड़क कर हिंसा पर उतारू न हो जाएं. यह शख्स कोई छोटामोटा व्यक्ति नहीं, बल्कि डेरा सच्चा सौदा का मुखिया संत गुरमीत राम रहीम था, जिस के देशविदेश में लाखों समर्थक थे.
सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकीलों की कई घंटे दलील चली. आखिरकार कई घंटों की बहस के बाद सीबीआई जज सुशील कुमार ने अपना फैसला देते हुए डेरे के सेवादार रणजीत कुमार की हत्या के आरोप में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम, अवतार सिंह, जसबीर सिंह, सर्बदिल सिंह और कृष्णलाल को धारा 120बी, 302 एवं 506 के साथ उम्रकैद की सजा सुनाई.
इस मामले में आरोपित इंद्रसेन की सुनवाई के दौरान 8 अक्तूबर, 2020 को मौत हो गई थी. जज ने गुरमीत राम रहीम को 32 लाख रुपए का जुरमाना अदा करने की सजा भी सुनाई. यह रकम पीडि़त परिवार को देने का आदेश दिया.
सजा का ऐलान होते ही रोहतक की सुनारिया जेल से वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए कोर्ट के साथ जुड़े राम रहीम ने अपना सिर पकड़ लिया और वहीं जमीन पर बैठ गया.
ये वही गुरमीत राम रहीम था, जिस के आगेपीछे कुछ साल पहले तक लाखों अनुयायियों की भीड़ जुटी रहती थी. लेकिन अपने कर्मों के कारण आज वह सलाखों के पीछे एक नहीं बल्कि 3 आपराधिक मामलों में सजा भोग रहा है.
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रणजीत सिंह हत्याकांड की कहानी को समझने के लिए हमें पहले राम रहीम और उस के उस साम्राज्य की बात करनी होगी, जिस के गुमान में वह अपराध दर अपराध करते हुए आज सलाखों के पीछे है.
गुरमीत सिंह के डेरा प्रमुख राम रहीम बनने की कहानी
गुरमीत सिंह अपने मातापिता की इकलौती संतान था. उस का जन्म 15 अगस्त, 1967 को राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के गुरुसर मोदिया में जट सिख परिवार में हुआ था. उस के पिता का नाम मघर सिंह व मां का नाम नसीब कौर है. मातापिता हरियाणा के सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी थे.
महज 7 साल की उम्र में मातापिता ने 31 मार्च, 1974 को अपने बेटे गुरमीत सिंह को तत्कालीन डेरा प्रमुख शाह सतनाम सिंह के चरणों में समर्पित कर दिया था. जिस के बाद डेरे में ही उस की शिक्षादीक्षा शुरू हुई.
23 सितंबर, 1990 को शाह सतनाम सिंह ने देशभर से अनुयायियों का सत्संग बुलाया. उसी समय उन्होंने गुरमीत सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. गुरमीत सिंह हरियाणा के सिरसा में स्थित आध्यात्मिक संस्था डेरा सच्चा सौदा के तीसरे प्रमुख बने. जिस की स्थापना 1969 में शाह सतनाम सिंह के गुरु शाह मस्तानाजी ने की थी.
डेरा प्रमुख बनने से पहले ही गुरमीत सिंह का गृहस्थ जीवन शुरू हो चुका था. गुरमीत सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा है. बड़ी बेटी चरणप्रीत और छोटी का नाम अमरप्रीत है. उस ने इन 2 बेटियों के अलावा एक बेटी हनीप्रीत को गोद लिया हुआ था. इस की बड़ी बेटी चरणप्रीत कौर के पति का नाम डा. शान-ए-मीत इंसां जबकि छोटी बेटी अमरप्रीत के पति का नाम रूह-ए-मीत इंसां है.
गुरमीत सिंह के बेटे जसमीत की शादी बठिंडा के पूर्व एमएलए हरमिंदर सिंह जस्सी की बेटी हुस्नमीत इंसां से हुई थी. डेरा सच्चा सौदा का साम्राज्य विदेशों तक फैला हुआ है.
अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड से ले कर आस्ट्रेलिया और यूएई तक उन के आश्रम व अनुयायी हैं. डेरे की तरफ से दावा किया जाता है कि दुनिया भर में उन के करीब 5 करोड़ अनुयायी हैं, जिन में से 25 लाख अनुयायी अकेले हरियाणा में ही मौजूद हैं.
बहरहाल, गद्दी संभालने के बाद गुरमीत सिंह ने सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिए अपने नाम में सभी धर्मों के नाम शामिल किए और अपना नाम गुरमीत सिंह से बदल कर गुरमीत राम रहीम सिंह रख लिया. जिस कारण चौतरफा उन की प्रशंसा हुई.
उन्होंने जाति प्रथा की समाप्ति का आह्वान किया तथा अपने भक्तों से जातिवाचक नाम हटा कर ‘इंसां’ नाम लगाने को प्रेरित किया. गुरमीत राम रहीम ने कई वेश्याओं को अपनी पुत्री का दरजा दे कर अपनाया व अनुयायियों से आह्वान कर उन के घर बसाए.
उन्होंने सफाई के कई अभियान चलाए. ऐसे कई काम थे, जिस कारण संत गुरमीत राम रहीम की शोहरत दुनिया भर में फैलने लगी और उन के भक्तों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी.
लेकिन इंसान चाहे साधारण हो या कोई संत, अगर अपनी इच्छाओं और कामनाओं पर अंकुश न रख सके तो शोहरत को कलंक लगने में देर नहीं लगती. गुरमीत राम रहीम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
गुरमीत राम रहीम सन 2002 में पहली बार सुर्खियों में तब आए, जब उन के ऊपर डेरे की साध्वियों के यौनशोषण के आरोप लगे. उसी साल उन के खिलाफ यौन शोषण की खबर छापने वाले सिरसा के एक स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या हो गई. इस के आरोप भी डेरामुखी पर ही लगे.
अचानक शोहरत की बुलंदियां छूते राम रहीम अपने किसी न किसी कारनामे के कारण आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनने लगे. डेरामुखी राम रहीम ने अपने ऊपर लगे आरोपों से निकलने के लिए एक के बाद ऐसी गलतियां कीं, जिस से वह अपराध की दलदल में गहरे तक फंसते चले गए.
जब हुआ बेनकाब डेरे में चल रही अय्याशगाह का खेल
28 अगस्त, 2017 को सीबीआई कोर्ट ने पहली बार गुरमीत राम रहीम को 4 साध्वियों के बलात्कार मामले में 20 साल की जेल व 30 लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी. जिस मामले में उन्हें सजा सुनाई गई थी. डेरे में चल रहे साध्वियों के यौन उत्पीड़न के खुलासे की कहानी बेहद रोचक है.
हुआ यूं कि साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक गुमनाम पत्र मिला. इस में एक गुमनाम साध्वी ने लिखा कि वह पंजाब की रहने वाली है और सिरसा के डेरा सच्चा सौदा में 5 साल से रह रही है. डेरे में साध्वियों का यौन शोषण किया जा रहा है. लेटर में बठिंडा, कुरुक्षेत्र की कुछ साध्वियों के यौन शोषण किए जाने की बात भी लिखी थी.
साध्वी के पत्र में लिखी बातों का कुछ हिस्सा बेहद आपत्तिजनक था. इस गुमनाम पत्र के बाद से ही बवाल शुरू हो गया था.
2002 में गुमनाम साध्वी की लिखी चिट्ठी की गोपनीय जांच शुरू हो गई, लेकिन इसी बीच ये चिट्ठी मीडिया के जरिए सार्वजनिक हो गई, जिस पर संज्ञान लेते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच सौंप दी.
सीबीआई ने डेरे के मैनेजर इंद्रसेन से 1999 से 2001 तक की साध्वियों की लिस्ट मांगी तो 2005 में सीबीआई को 3 लिस्ट मिलीं. पहली लिस्ट में 53, दूसरी में 80 और तीसरी लिस्ट में 24 साध्वियों के नाम थे.
राम रहीम के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए सीबीआई ने 1997 से 2002 के बीच डेरा छोड़ चुकी 24 साध्वियों पर फोकस किया. इन में से 18 को ही सीबीआई ट्रेस कर पूछताछ कर पाई. इन में भी सिर्फ 2 ही साध्वियां अदालत तक पहुंचीं और और अपने बयान दर्ज कराए. इन शादीशुदा साध्वियों के बच्चे भी हैं.
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जो साध्वी सीबीआई के सामने आईं, उस में से फतेहाबाद की एक पूर्व साध्वी ने 4 मई, 2006 को सीबीआई के सामने बयान दर्ज कराया. उस ने बताया कि 1998 में डेरा में बतौर साध्वी जौइन किया था. वह शाह सतनामजी स्कूल में पढ़ाती थी. 6 महीने बाद उस की बहन भी साध्वी बन गई. बाबा ने उस का नाम नाजम और बहन का तसलीम रखा.
बाबा गर्ल्स हौस्टल के पास बनी अपनी गुफा में रहता था और गुफा के बाहर साध्वियों को ही संतरी रखता था. जिन की ड्यूटी रात 8 बजे से 12 और 12 बजे से 4 बजे 2 शिफ्टों में होती थी.
एक दिन उसे रात को 10 बजे गुफा में बुलाया गया, जहां बाबा ने उस के साथ जबरन रेप किया. वह रोती हुई गुफा से निकली और हौस्टल चली गई. वहां पर उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. मगर उस दिन उस की बहन ने बताया कि बाबा उस के साथ भी रेप कर चुका है.
रेप होने के एक साल बाद उसे डेरे के मैनेजर ने बुलाया और कहा कि बाबा ने उसे गुफा में बुलाया है. मगर पहले हुई घटना के कारण उस ने गुफा में जाने से मना कर दिया.
इस के बाद मैनेजर ने उसे ऐसा करने पर भूखा रखने की धमकी दी. मजबूर हो कर उसे गुफा में दोबारा जाना पड़ा और बाबा ने उस के साथ फिर रेप किया.
दोनों बहनों ने हौस्टल की दूसरी साध्वियों को भी बाबा की गुफा से कई बार रोते हुए निकलते देखा था. एक बहन ने तो अपने साथ हुई घटना के तुरंत बाद डेरा छोड़ दिया. दूसरी साध्वी बहन भी डेरा छोड़ना चाहती थी, मगर उस के भाई की बेटियां डेरे में बीए की पढ़ाई कर रही थीं. इस कारण उसे वहां रुकने के लिए मजबूर होना पड़ा.
फिर अप्रैल, 2001 में उस ने अपने भाई और उस की दोनों बेटियों समेत डेरा छोड़ दिया.
दोनों बहनों के डेरा छोड़ने के बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय को गुमनाम चिट्ठी मिली थी. बहरहाल, साध्वी के बयान कोर्ट में दर्ज कराने के बाद सीबीआई ने बाबा के साथ एक आरोपी अवतार सिंह, डेरा मैनेजर इंद्रसेन और मैनेजर कृष्णलाल को आरोपी बना कर उन का चंडीगढ़ और दिल्ली में लाई डिटेक्टर टेस्ट कराया.
जहां झूठ पकड़ने वाली मशीन से खुलासा हुआ कि डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम साध्वियों का यौन शोषण करता था.
दोनों साध्वियों ने सीबीआई और अदालत को अपनी जो आपबीती सुनाई, उस में कहा था कि बाबा हर रोज साध्वियों को गुफा में बुलाता था और रेप करता था. उस के शीश महल जिसे वह गुफा कहता था, वहां से साध्वियां हर रोज रोते हुए बाहर निकलती थीं.
गुफा के आसपास बने हौस्टलों में 200 से ज्यादा सुंदर साध्वियों को रखा गया था. बाबा की गुफा के आसपास रात के वक्त महिला साध्वियों को गार्ड के रूप में तैनात किया जाता था. साध्वियों से दुष्कर्म का यही वो केस था, जिस के बाद गुरमीत राम रहीम नायक से खलनायक और संत से अपराधी बन गया था.
प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजे गए गुमनाम साध्वी के इस पत्र को पहले गृह मंत्रालय को सौंपा गया था. जहां से बाद में पत्र की जांच का जिम्मा सिरसा के सेशन जज को सौंपा गया. इसी दौरान हाईकोर्ट ने भी इस पर संज्ञान ले लिया था.
दिसंबर 2002 में राम रहीम के खिलाफ धारा 376, 506 और 509 आईपीसी के तहत केस दर्ज किया गया था. दिसंबर 2003 में इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी दी गई. जांच अधिकारी सतीश डागर ने केस की जांच शुरू की और आखिर साल 2005-2006 में उस साध्वी को ढूंढ निकाला, जिस का यौन शोषण हुआ था.
जुलाई 2007 में सीबीआई ने केस की जांच पूरी कर अंबाला सीबीआई कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी. अंबाला से केस की सुनवाई पंचकूला शिफ्ट कर दी गई. चार्जशीट के मुताबिक, डेरे में 1999 और 2001 में कुछ और साध्वियों का भी यौन शोषण हुआ, लेकिन वे मिल नहीं सकीं.
अगस्त 2008 में साध्वियों से दुष्कर्म केस का ट्रायल शुरू हुआ और डेरा प्रमुख राम रहीम के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए. साल 2011 से 2016 तक केस का ट्रायल चला और डेरा प्रमुख राम रहीम की ओर से बड़ेबड़े वकील लगातार जिरह करते नजर आए.
जुलाई 2016 तक चली केस की सुनवाई के दौरान कुल 52 गवाह पेश किए गए, इन में 15 प्रौसिक्यूशन और 37 डिफेंस के थे. और फिर वह दिन आ गया, जब राम रहीम की गरदन इस केस में पूरी तरह फंसी नजर आई और जून 2017 में कोर्ट ने डेरा प्रमुख के विदेश जाने पर रोक लगा दी.
17 अगस्त, 2017 को दोनों पक्षों की ओर से चल रही जिरह खत्म हो गई और फैसले के लिए 25 अगस्त की तारीख तय की गई. 25 अगस्त, 2017 को पंचकूला सीबीआई कोर्ट के जज जगदीप सिंह ने राम रहीम को उम्र कैद की सजा सुनाई.
राम रहीम के खिलाफ सजा दिए जाने के आदेश के बाद डेरा सर्मथकों ने पंचकूला और सिरसा में जम कर उत्पात मचाया और हिंसा की, जिस में करीब 41 लोगों की मौत हुई. अदालत के फैसले के खिलाफ सिरसा व पंचकूला में हुई हिंसा के बाद गुरमीत राम रहीम के डेरा सच्चा सौदा पर पुलिस के छापे पडे़ तो वहां से हथियारों का जखीरा बरामद हुआ.
अगले भाग में पढ़ें- फ्रीज हुए डेरा के 90 बैंक एकाउंट