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सौजन्य- सत्यकथा

ताजनगरी आगरा के सिकंदरा क्षेत्र के नगला सोहनलाल में अपने पति व बच्चों के साथ रहती थी. 30 वर्षीय अनीता. उस का विवाह करीब 14 साल पहले गुलाब सिंह से हुआ था. उस के 3 बच्चे थे. गुलाब सिंह घर के पास ही जूते बनाने की एक फैक्ट्री में काम करता था.

उस दिन गुलाब सुबह फैक्ट्री चला गया. बच्चे स्कूल चले गए. फिर अनीता ने आराम से बैठ कर चायनाश्ता किया. चाय पी कर जब उस ने दोपहर के खाने का इंतजाम करना चाहा तो बनाने के लिए घर पर कोई सब्जी नहीं थी. इसलिए वह दोपहर व शाम के लिए बाजार से सब्जी खरीदने चली गई.

घंटे भर बाद जब वह बाजार से वापस लौट रही थी, तभी उसे पीछे से बाइक के हौर्न की आवाज सुनाई दी. अनीता ने मुड़ कर देखा तो उसे अपनी बगल में बाइक पर सवार एक युवक दिखाई दिया. उसे देखते ही अनीता पहचान गई.

वह उस के पड़ोस में रहने वाला सनी था. 22 वर्षीय सनी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अनीताजी, इतना सारा सामान ले कर पैदल क्यों जा रही हो? मैं भी घर ही जा रहा हूं, आइए आप को छोड़ दूंगा.’’

‘‘आप बेवजह परेशान होंगे?’’ अनीता ने मुसकरा कर कहा. हालांकि वह मन ही मन सनी की पेशकश पर राहत महसूस कर रही थी.

‘‘देखिए, आप मुझ से गैरों की तरह व्यवहार कर रही हैं. मैं आप का पड़ोसी हूं. पड़ोसी होने के नाते आप की मदद करना मेरा फर्ज है.’’ कह कर सनी ने बाइक रोकी और अनीता के हाथ से सामान के थैले ले कर बाइक में लगे हुक में फंसा दिए. फिर बाइक पर बैठते हुए अनीता से बोला, ‘‘आइए बैठिए.’’

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