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सौजन्य- सत्यकथा

‘‘हां, ऐसा ही कुछ समझ लो. जिस के सामने रूप का खजाना फैला हो, उसे सामान्य लड़की कैसे पसंद आ सकती है.’’ सनी ने यह बात अनीता की तरफ देखते हुए कुछ इस ढंग से कही कि अनीता एक क्षण के लिए सकुचा गई.

उस ने अपने आप को संभाल कर कहा, ‘‘कम से कम कुछ हिंट तो दो कि तुम्हें कैसी दुलहन चाहिए. अगर तुम मुझे अपनी पसंद बताओगे तो मैं कोशिश करूंगी कि तुम्हारी पसंद की लड़की ढूंढ सकूं.’’

सनी कुछ क्षणों के लिए चुपचाप अनीता को निहारता रहा, ‘‘मुझे बिलकुल आप जैसी दुलहन चाहिए.’’

सनी ने यह बात कही तो कुछ देर के लिए अनीता चुप रही, फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘तुम मजाक बहुत अच्छा कर लेते हो.’’

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा हूं. अगर ऊपर वाले ने आप जैसी कोई और लड़की बनाई हो तो मुझे दिखाना. वैसे मेरा खयाल है कि वह ऐसा नायाब हीरा एक ही बनाता है.’’

तारीफ की यह इंतहा थी. ऐसी इंतहा औरतों को अच्छी लगती है. फिर भी अनीता ने बनते हुए कहा, ‘‘आखिर मुझ में ऐसा क्या खास है कि आप को मेरे जैसी बीवी की आस है.’’

‘‘यह तो मेरा दिल और मेरी आंखें जानती हैं कि आप में ऐसा क्या खास है. जो कुछ भी मैं कह रहा हूं, वह एकदम सच है.’’ सनी ने जब यह बात कही तो अनीता के मुंह से बोल नहीं फूटे.

सनी के जाने के बाद भी अनीता के कानों में सारी रात उस के कहे शब्द गूंजते रहे.

यह हकीकत है कि तारीफ हर नारी की कमजोरी है. सनी की बातों ने उस रात उस की आंखों से नींद छीन ली थी. अगले दिन जब सनी अनीता के घर आया तो उसे ही देखता रहा. अनीता ने उस से नजरें चुराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें और कोई काम नहीं है क्या, जो मुझे ही देखते रहते हो?’’

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