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‘‘तो क्या मुझे कालीकलूटी बदसूरत होना चाहिए था?’’ अपनी सुंदरता की प्रशंसा सुन कर मानसी ने तंज कसा.

‘‘अरे मैं ने ऐसा कब कहा, और न ही ऐसा कोई खयाल मेरे दिमाग में ही आया. अगर मेरी बात बुरी लगी हो तो उस के लिए माफी मांगता हूं.’’ ऐसा कहते हुए संजीव ने अपना हाथ मानसी के हाथ पर रख दिया.

मानसी थोड़ी असहज हुई, लेकिन अन्यथा नहीं लिया और बात बदलते हुए बोली, ‘‘आप का यहां आना बिजनैस के सिलसिले में हुआ है?’’

‘‘ऐसा ही समझो. फिलहाल तो मैं यही कहूंगा कि तुम ने मुझ पर भरोसा किया. मेरे बुलाने पर आ गई और हम साथसाथ डेटिंग पर हैं.’’ संजीव ने कहा.

‘‘मुझे आप के साथसाथ खुद पर भी विश्वास है. तभी तो मैं ने दोस्ती की है. इसे निभाया जाना बहुत कुछ दूसरी बातों पर भी निर्भर है,’’ मानसी बोली.

उस के बाद दोनों ने रायपुर में करीब 2 घंटे साथसाथ गुजारे. हाइवे से होते हुए उन्होंने एक रेस्टोरेंट में साथ खाना खाया, माल में खरीदारी की. इस दौरान उन्होंने एकदूसरे को समझते हुए कई तरह की बातें की.

मानसी ने जब संजीव से विदा ली तो उस का चेहरा खिला हुआ था. संजीव भी घंटों की निजी व्यस्तता के बावजूद संतुष्ट और तरोताजा महसूस कर रहा था.

रायपुर में हुई दोनों की पहली मुलाकात में ही दोस्ती की बुनियाद पड़ गई थी. हालांकि संजीव और मानसी की उम्र में 15 सालों का अंतर था. फिर भी उन के बातव्यवहार हमउम्र युवाओं की तरह होने लगे थे.

बातोंबातों में संजीव ने मानसी को आश्वस्त कर दिया था कि वह उस के हर सुखदुख में भागीदार बनेगा. इस तरह बहुत जल्द ही वे एकदूसरे के काफी करीब आ गए.

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