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राजेश हरबंस और शांतिबाई यही चाहते थे कि वे बारबार बाबूलाल के पास आएं और संबंध बना कर के पारस मणि के बारे में सच्चाई को जान जाएं और उसे हथिया लें.
राजेश हरबंस हंसहंस के बाबूलाल से बातें करता बड़ा सम्मान देते हुए कुछ भी कहता. एक दिन मौका पा कर राजेश ने कहा, ‘‘बाबूलाल जी, एक बात पूछूं अगर आप बुरा ना मानें और हमें अपना छोटा भाई मानें तो.’’

सहज भाव से बाबूलाल ने कहा, ‘‘नहींनहीं भाई, भला मैं बुरा क्यों मानूंगा. पूछो क्या जानना चाहते हो?’’
‘‘मैं ने सुना है कि आप के पास पारस मणि है. क्या यह सच है? अगर यह सच है तो आप तो दुनिया के सब से अमीर आदमी बन सकते हो. रोज सोना बना कर के दुनिया भर की सुविधाओं का उपभोग कर सकते हो. मगर ऐसा क्यों नहीं कर रहे हो. इस में अगर हमारी कोई मदद चाहिए तो बताइए, मेरी पहचान छत्तीसगढ़ के मंत्री तक है.’’

बाबूलाल ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हर बात हर आदमी को नहीं बताई जाती, मैं जैसा भी हूं खुश हूं. मुझे और ज्यादा क्या चाहिए, मैं तो सेवक आदमी हूं. लोगों की सेवा में मुझे आनंद आता है और जो कुछ भी मेरे पास है वह पर्याप्त है.’’राजेश हरबंस ने अपनी आंखों को घुमाते हुए कहा, ‘‘बाबूलालजी, मैं यह जानना चाहता हूं कि आप के पास पारस मणि है कि नहीं?’’

राजेश की बातों को बाबूलाल ने सहजता से लिया और कहा, ‘‘छोड़ो, तुम अपने इलाज पानी पर ध्यान दो.’’बाबूलाल की बातों को एक गहरे अर्थ में समझ कर के राजेश हरबंस मौन रह गया. अब उसे पूरा विश्वास हो गया था कि बाबूलाल यादव के पास पारस मणि है और वह सहजता से न दिखाएगा और न देगा. इस के लिए कोई दूसरा रास्ता ही अख्तियार करना होगा.उस ने टेकचंद जायसवाल से बात की और बताया कि बाबूलाल तो बड़ा चालाक आदमी है वह कुछ नहीं बता रहा है. इस के लिए कोई योजना बनाओ, ताकि वह सब कुछ सचसच बोल दे और हमें पारस मणि दे दे.

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