सौजन्य- सत्यकथा
वीरेंद्र कुमार (25 वर्ष) को गोवा के लोग वीरेंद्र बिहारी कहते थे. कारण वह बिहार के मधुबनी के एक गांव का रहने वाला था. उस के घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही बिगड़ी हुई थी. पढ़ाई के नाम पर वह 8वीं पास था. उसे किसी भी तरह की नौकरी मिलने की उम्मीद कतई नहीं थी. काम के नाम पर वह खेतीकिसानी जानता था. इसलिए कुछ महीने पहले ही रोजीरोटी की तलाश में वह गोवा आया था.
गोवा के उत्तरी इलाके में वह अपने कुछ परिचितों के यहां रह रहा था. उन की मदद से ही वह गाडि़यों की देखरेख के लिए एक गैरेज में लग गया था.
वीरेंद्र की सीखने की ललक थी. किसी भी काम को वह बहुत जल्द सीख लेता था. गाडि़यों की देखरेख करते हुए, गाड़ी से संबंधित वह कई तरह के काम करने में माहिर हो गया था. कुछ ही सालों में उसे गाडि़यों की अच्छी जानकारी भी हो गई थी. गाड़ी खोलना, गाड़ी चलाना आदि से ले कर इंजन की आवाज पहचान कर उस की खराबी के बारे मालूम कर लेना अच्छी तरह जान गया था.
उस ने ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था. उस के बाद मानो उस के सपनों को पंख लग गए थे. गैरेज का काम छोड़ कर टैंपो की ड्राइवरी करनी शुरू कर दी थी.
इस काम की वजह से उस की जानपहचान निशांत मोगन कैंडोलिम से हो गई थी. वह भी उसी की उम्र का था. वह मंगलूर का रहने वाला था. शहर के चर्चित एक शोरूम आशीर्वाद के मालिक नवीन पटेल के यहां कई सालों से काम कर रहा था.
निशांत को हमेशा माल लानेपहुंचाने के लिए टैंपो की जरूरत पड़ती थी. इसी कारण वह वीरेंद्र के संपर्क में आया. उस ने वीरेंद्र का टैंपो किराए पर लेना शुरू कर दिया. उस का काम, समय की पाबंदी और स्वभाव मालिक को पसंद आया.
इस तरह वीरेंद्र भी शोरूम या गोदाम में अकसर सामान की डिलीवरी के लिए जाने लगा. उन में गहरी दोस्ती होने का यही कारण था. जब कभी मौका मिलता तो दोनों इकट्ठे बैठते थे. खातेपीते थे. मौजमस्ती करते थे. एकदूसरे से अपनी बातें शेयर किया करते थे.
निशांत के अलावा 25 वर्षीय सुरजीत केसकर, 28 वर्षीय मंजूनाथ और 51 वर्षीय सुभाष भोसले भी कभीकभार वीरेंद्र बिहारी के टैंपो किराए पर लिया करते थे. सुभाष और सुजीत महाराष्ट्र में कोल्हापुर के रहने वाले थे.
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इन के परिवार में पुश्तैनी काश्तकारी का काम होता था, जिस से गुजरबसर करना मुश्किल हो रहा था. इस कारण वे भी कामधंधे की तलाश में गोवा आ गए थे. उन का तीसरा साथी मंजूनाथ दक्षिणी गोवा के कांदोली गांव का रहने वाला था.
उसे गोवा के चप्पेचप्पे की अच्छी जानकारी थी. दुर्गम से दुर्गम और निर्जन दूरदराज के इलाके के बारे में अच्छी तरह से जानता था. वह भी अच्छी कमाई के मकसद से गांव छोड़ कर गोवा शहर आया था.
पांचों की दोस्ती के केंद्र में वीरेंद्र बिहारी था. सभी उसे इसलिए भी पसंद करते, क्योंकि वह उन्हें पैसा कमाने के नएनए आइडिया देता था. वह खुद भी खूब पैसा कमाना चाहता था.
जब कभी पांचों मिलते तब पैसे कमाने की योजना बनाया करते थे. कोरोना के कहर से गोवा भी तबाह हो गया था. शहर की स्थिति खराब हो गई थी. शहर के अधिकतर कामधंधे और रोजगार ठप पड़ गए थे.
इस का सब से अधिक प्रभाव दिहाड़ी पर काम करने वालों पर पड़ा था. काफी लोग अपने गांव चले गए, किंतु कोरोना कम होने के बाद जब वे वापस लौटे तब उन में से कुछ को ही काम मिल पाया. काम नहीं पाने वालों में ये पांचों दोस्त भी थे.
वीरेंद्र बिहारी शातिर दिमाग का था. जब उसे कोई ढंग का काम नहीं मिला, तो उस ने वाहन की चोरियां और राहजनी का काम शुरू कर दिया, जिस से उस के खिलाफ थाने में कई शिकायतें भी दर्ज हो गई थीं.
एक के बाद एक जब कई शिकायतें उस के खिलाफ थानों में दर्ज हुईं तो वह कई बार गिरफ्तार भी हुआ. लेकिन किसी तरह जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया. इस से वह समझ गया था कि किस तरह के मामले में कैसे छूटा जा सकता है और किस में कितना खर्च कर बचा जा सकता है.
वीरेंद्र बिहारी के मन में एक लंबा हाथ मारने का विचार आया. लेकिन यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था. उस की योजना के मुताबिक उसे और लोगों की जरूरत थी.
वह अपनी योजना को सही तरह से सफल बनाने के लिए एक टीम बनाना चाहता था. इस बारे में उस ने सब से पहले निशांत से बात की. उस ने उसे अपनी योजना के बारे में बताया.
पहले तो निशांत उस की योजना सुनते ही घबरा गया. उस ने इनकार कर दिया. कहा कि इस काम में उस का बनाबानाया काम छूट जाएगा.
तब वीरेंद्र ने उस से कहा, ‘‘हमें इस काम में मोटे पैसे एक बार में ही मिल जाएंगे तो कोई दूसरा काम करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.’’ यह बात निशांत की समझ में आ गई और उस ने इस काम में हामी भर दी.
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उस के बाद दोनों ने मिल कर टीम को पूरा करने का काम शुरू किया. उन्होंने बाकी के 3 दोस्तों से बात की. सभी उन की योजना सुन कर निशांत की तरह ही घबरा गए थे. लेकिन जब उन्हें समझाया गया कि इस में कानून और पुलिस से कैसे बचा जा सकता है, तब वे भी राजी हो गए. फिर उन्हें एक झटके में लाखों रुपए आने का लालच भी था.
इस तरह से पूरी योजना की तैयारी के बाद उन्हें एक ऐसी पार्टी की तलाश थी, जो मालदार हो और उन की थोड़ी सी धमकी पर ही आसानी से बात मान ले. उन की योजना किसी का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलने की थी.
ऐसे में घूमफिर कर के उन की नजर में जिस व्यक्ति की तसवीर उभर कर सामने आई, वह निशांत के मालिक नवीन पटेल की थी.
निशांत कई सालों से उन के यहां काम कर रहा था. इसलिए उसे उन के घर, परिवार के लोगों के अलावा उन की अमीरी के बारे में अच्छी जानकारी थी.
योजना के अनुसार, उन्होंने नवीन पटेल के औफिस की अच्छी तरह से रेकी की. इस काम को निशांत ने किया. साथ में वीरेंद्र की भी मदद ली. रेकी के बाद दिन और समय तय कर वीरेंद्र बिहारी ने एक एसयूवी कार किराए पर ली
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