सौजन्य- सत्यकथा
वीरेंद्र समझ गया कि वर्षा कहना चाहती है कि वह उस का प्यार कबूल तो कर सकती है, मगर शर्त यह है कि उसे शादी करनी होगी. उस वक्त वीरेंद्र के सिर पर वर्षा को पाने का जुनून था, सो उस ने कह दिया, ‘‘मैं टाइमपास करने के लिए तुम्हारी तरफ प्यार का हाथ नहीं बढ़ा रहा हूं, बल्कि संजीदा हूं. मैं तुम से शादी कर के वफा और ईमानदारी से साथ निभाऊंगा.’’
दरअसल वर्षा अपनी मां की मजबूरियां जानती थी. चंदा देवी ने बहुत तकलीफें उठा कर पति का इलाज कराया था. इलाज में उस पर जो कर्ज चढ़ा था, उस की भरपाई होने में बरसों लग जाने थे. परिवार में कोई ऐसा न था जो युवा हो चुकी वर्षा के भविष्य के बारे में सोचता. मां बेटी को दुलहन बना कर विदा कर पाने की हैसियत में नहीं थी. छोटा भाई अशोक खुद अपनी जिम्मेदारियों से जूझ रहा था. अत: वर्षा को अपने भविष्य का निर्णय स्वयं करना था.
वर्षा 20 साल की भरीपूरी युवती थी. उस के मन में किसी का प्यार पाने और स्वयं भी उसे टूट कर चाहने की हसरत थी. मन में इच्छा थी कि कोई उसे चाहने वाला मिल जाए, तो वह जीवन भर के लिए उस का हाथ थाम ले. इस तरह उस का भी जीवन संवर जाएगा और वह भी अपनी गृहस्थी, पति व बच्चों में रमी रहेगी.
लोग गलत नहीं कहते, इश्क पहली नजर में होता है. वर्षा के दिल में भी तब से हलचल मचनी शुरू हो गई थी, जब वीरेंद्र से पहली बार उस की नजरें मिली थीं.
वर्षा की आंखें खूबसूरत थीं, तो वीरेंद्र की आंखों में भी प्यार ही प्यार था. उस पल से ही वीरेंद्र वर्षा की सोच का केंद्र बन गया था. वर्षा ने जितना सोचा, उतना ही उस की ओर आकर्षित होती गई. वर्षा का मानना था कि वीरेंद्र अच्छा और सच्चा आशिक साबित हो सकता है. उस के साथ जिंदगी मजे से गुजर जाएगी.
वर्षा ने यह भी निर्णय लिया कि जब कभी भी वीरेंद्र प्यार का इजहार करेगा, तो वह मुहब्बत का इकरार कर लेगी. उम्मीद के मुताबिक उस दिन वीरेंद्र ने अपनी चाहत जाहिर की, तो वर्षा ने उस का प्यार कबूल कर लिया. उस दिन से वर्षा और वीरेंद्र का रोमांस शुरू हो गया.
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वर्षा के प्रेम की जानकारी उस की मां चंदा देवी और भाई अशोक को भी हो गई थी. चूंकि वर्षा और वीरेंद्र शादी करना चाहते थे, सो उन दोनों ने उन के प्यार पर ऐतराज नहीं किया. एक प्रकार से वर्षा को मां और भाई का मूक समर्थन मिल गया था.
दूसरी ओर वर्षा वीरेंद्र के जितना करीब आ रही थी, उतना ही उसे लग रहा था कि अभी वह वीरेंद्र को ठीक से समझ नहीं पाई, अभी उसे और समझना बाकी है.
अत: वीरेंद्र को समझने के लिए वर्षा ने उस के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने का मन बना लिया. सोचा वीरेंद्र उस की अपेक्षाओं के अनुरूप साबित हुआ, तो उस से शादी कर लेगी. कसौटी पर खरा न उतरा, तो दोनों अपने रास्ते अलग कर लेंगे.
वर्षा को लिवइन रिलेशनशिप में भी दोहरा लाभ नजर आ रहा था. पहला लाभ यह है कि वीरेंद्र को ठीक से समझ लेगी. दूसरा लाभ यह कि अपनी जवानी को घुन नहीं लगाना पड़ेगा. वीरेंद्र उस की देह का सुख भोगेगा, तो वह भी वीरेंद्र के जिस्म से आनंद पाएगी.
एक रोज जब वर्षा और वीरेंद्र का आमनासामना हुआ और बातचीत का सिलसिला जुड़ा तो वीरेंद्र ने जल्द शादी करने का प्रस्ताव रखा. इस पर वर्षा बोली, ‘‘मुझे शादी की जल्दी नहीं है बल्कि हमें अभी एकदूसरे को समझने की जरूरत है.’’
‘‘6 महीने से हमारा रोमांस चल रहा है,’’ वीरेंद्र के शब्दों में हैरानी थी, ‘‘और अब तक तुम मुझे समझ नहीं पाई.’’
‘‘समझी तो हूं, लेकिन उतना नहीं जितना जीवन भर साथ रहने के लिए समझना चाहिए.’’
‘‘पूरी तरह समझने में कितना वक्त लगेगा?’’ वीरेंद्र ने उदास मन से पूछा.
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कुछ देर गहरी सोच में डूबे रहने के बाद वर्षा ने जवाब दिया, ‘‘शायद 6 महीने और.’’
‘‘और इस दौरान मेरा क्या होगा?’’ वीरेंद्र ने पूछा.
वर्षा के होंठों पर मुसकान आई, ‘‘तुम्हारे साथ मैं भी रहूंगी.’’
वीरेंद्र के सिर पर हैरत का पहाड़ टूट पड़ा, ‘‘बिन ब्याहे मेरे साथ रहोगी.’’
‘‘इस में बुरा क्या है?’’ वर्षा मुसकराई, ‘‘नए जमाने के साथ लोगों की सोच और जिंदगी के तरीके भी बदलते रहते हैं. शहरों कस्बों में बहुत सारे लोग लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे हैं, हम भी रह लेंगे.’’
‘‘यानी कि शादी किए बिना ही तुम घर रहोगी.’’
वर्षा ने वीरेंद्र की ही टोन में जवाब दिया, ‘‘बेशक.’’
चूंकि वीरेंद्र वर्षा का दीवाना था. अत: जब वर्षा ने वीरेंद्र के सामने लिवइन रिलेशनशिप का प्रस्ताव रखा तो वह फौरन राजी हो गया.
अगले भाग में पढ़ें- वर्षा मनमानी करने लगी तो घर में कलह होने लगी