कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सौजन्य-  सत्यकथा

जिला हमीरपुर का एक बड़ा कस्बा है राठ. मूलत: मध्य प्रदेश के गांव सरमेड़ के रहने वाले
मूलचंद्र अनुरागी का परिवार राठ के मोहल्ला भटियानी में रहता था. परिवार में पत्नी सरस्वती के अलावा 2 बेटे वीरेंद्र व अनिल थे. गांव में मूलचंद्र का पुश्तैनी मकान व जमीन थी. वह खुद गांव में रह कर घरजमीन की देखरेख करता था.

पत्नीबच्चों से मिलने वह राठ आताजाता रहता था. मूलचंद्र की पत्नी सरस्वती, राठ स्थित नवोदय विद्यालय में रसोइया थी. वह छात्रावास में रहने वाले छात्रों के लिए खाना बनाती थी. सरस्वती का बड़ा बेटा वीरेंद्र मिठाई की एक दुकान में काम करता था.

वीरेंद्र बताशा बनाने का उम्दा कारीगर था, जबकि छोटा बेटा अनिल राठ की ही एक जूता बनाने वाली फैक्ट्री में नौकरी कर रहा था. चूंकि सरस्वती और उस के दोनों बेटे कमाते थे, सो घर की आर्थिक स्थिति ठीक थी.

सरस्वती बेटों के साथ खुशहाल तो थी, लेकिन घर में बहू की कमी थी. वह वीरेंद्र की शादी को लालायित रहती थी.

वीरेंद्र अनुरागी जिस दुकान में काम करता था, उसी में अशोक नाम का एक युवक काम करता था. अशोक राठ कस्बे से आधा किलोमीटर दूर स्थित सैदपुर गांव का रहने वाला था. अशोक की छोटी बहन वर्षा अकसर उसे लंच देने आया करती थी.

जयराम की 2 ही संतानें थीं अशोक और वर्षा. कुछ साल पहले जयराम की मृत्यु हो चुकी थी. मां चंदा देवी ने उन दोनों को तकलीफें सह कर बड़ा किया था. आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण अशोक और वर्षा ज्यादा पढ़लिख नहीं सके थे.

अशोक 10वीं कक्षा छोड़ कर नौकरी करने लगा था, जबकि वर्षा 10वीं कक्षा पास करने के बाद मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...